ISSN 2454-2725 संपादक सपं ादन एवं सकं लन सहयोग कु मार गौरव ममश्रा अमनल जनमवजय (मास्को)
जनकृ ति (विमर्श कंे वित अतं रराष्ट्रीय पविका) परामर्श मंडल (रायपरु ), विमलेर् विपाठी (कोलकाता), र्कं र नाथ डॉ. सधु ा ओम ढींगरा (अमरे रका), प्रो. सरन घई वतिारी (विपरु ा), बी.एस. वमरगे (महाराष्ट्र), िीणा (कनाडा), प्रो. अवनल जनविजय (रूस), प्रो. राज भाविया (वदल्ली), िभै ि वसंह (वदल्ली), रचना वसंह हीरामन (मॉरीर्स), प्रो. उदयनारायण वसहं (वदल्ली), र्लै ने ्ि कु मार र्कु ्ला (उत्तर प्रदरे ्), सजं य (कोलकाता), प्रो. ओमकार कौल (वदल्ली), प्रो. र्फे डश (वदल्ली), दानी कमाकश ार (कोलकाता), पजू ा चौथीराम यादि (उत्तर प्रदरे ्), डॉ. हरीर् निल पिार (हदै राबाद), ज्ञान प्रकार् (वदल्ली), प्रदीप (वदल्ली), डॉ. हरीर् अरोड़ा (वदल्ली), डॉ. रमा विपाठी (महाराष्ट्र), (वदल्ली), डॉ. प्रेम जन्मजे य (वदल्ली), प्रो.जिरीमल पारख (वदल्ली), पंकज चतिु दे ी (मध्य प्रदरे ्), प्रो. सहयोगी रामर्रण जोर्ी (वदल्ली), डॉ. दगु ाश प्रसाद अग्रिाल गीता पंवडत (वदल्ली) (राजस्थान), पलार् वबस्िास (कोलकाता), डॉ. वनलय उपाध्याय (मंबु ई, महाराष्ट्र) कै लार् कु मार वमश्रा (वदल्ली), प्रो. र्लै ेन्ि कु मार र्माश मनु्ना कु मार पाण्डेय (वदल्ली) (उज्जनै ), ओम पाररक (कोलकाता), प्रो. विजय कौल अविचल गौतम (िधाश, महाराष्ट्र) (जम्मू ), प्रो. महरे ् आनंद (वदल्ली), वनसार अली महिें प्रजापवत (उत्तर प्रदरे ्) (छत्तीसगढ़), तवदेर् प्रतितनति सपं ादक डॉ. अनीता कपरू (कै वलफोवनशया) कु मार गौरव तमश्रा डॉ. वर्प्रा वर्ल्पी (जमनश ी) सह-सपं ादक राके र् माथरु (लन्दन) जनै ेन्ि (वदल्ली), कविता वसंह चौहान (मध्य प्रदरे ्) मीना चौपड़ा (िोरंिो, कै नडे ा) कला संपादक पजू ा अवनल (स्पने ) आर्ीष यादि अरुण प्रकार् वमश्र (स्लोिेवनया) सपं ादन मंडल ओल्या गपोनिा (रवर्या) प्रो. कवपल कु मार (वदल्ली), डॉ. नामदिे (वदल्ली), डॉ. पनु ीत वबसाररया (उत्तर प्रदरे ्), डॉ. वजतिंे सोहन राही (यनू ाइिेड वकं गडम) श्रीिास्ति (वदल्ली), डॉ. प्रज्ञा (वदल्ली), तवे जदं र गगन पवू णमश ा िमनश (यएू ई) डॉ. गगं ा प्रसाद 'गणु र्खे र' (चीन) संबवं धत लखे कों द्वारा पविका में प्रकावर्त विचारों से संपादक की सहमवत अवनिायश नहीं ह.ै
‘अनवु ाद एक भाषा का दसू री भाषा की ओर बढाया गया मतै ्री का हाथ ह।ै वह जितनी बार और जितनी जदशाओं में बढाया िा सके , बढाया िाना चाजहए’- कजववर बच्चन (साजहत्यानवु ाद: सवं ाद और सवं दे ना, डा० आरसू प०ृ 85) भाषा के अविष्कार के पश्चात जब मनषु ्य-समाज का विस्तार हुअ, वजससे सम्पकक और अदान-प्रदान की प्रविया के विस्तार की अिश्यकता महससू हुइ. आस अिश्यकता ने ऄनिु ाद को जन्म वदया. ऄनिु ाद के माध्यम दो भाषाओं के ऄतं ः संबधं ों, आन भाषाओं के माध्यम से समाज, कला, ससं ्कृ वत का अदान-प्रदान हुअ. प्रारंवभक काल मंे जब राजा वकसी ऄन्य प्रदशे में यदु ्ध के वलए जाते थे तो ऄपने साथ एक ऐसे व्यवि को लके र जाते थे जो विभावषए होते थ.े यही ऄनिु ाद का अवदम रूप था. ऄनिु ाद को विस्तार दने े में प्रारंवभक तौर पर ईन व्यवियों का हाथ ह, वजन्होंने विवभन्न दशे ों की यात्राएं की और िहां के ग्रथं ों का ऄपनी भाषा मंे ऄनिु ाद वकया. ऄनिु ाद ही एकमात्र ईदाहरण था वकसी दशे की सामावजक सरं चना को समझने के वलए यही कारण ह वक ऄनिु ाद के महत्त्ि को सपं णू क विश्व ने समझा. अगे चलकर विश्व के कइ महान ग्रथं ों का विवभन्न भाषाओं में ऄनिु ाद हुअ. विज्ञान, कला, तकनीक के बढ़ते कदम ने अधवु नक कला में ऄनिु ाद के महत्त्ि को विशषे रूप से रेखांवकत वकया वजससे व्यापक तौर पर ऄनिु ाद का विस्तार हअु . ऄनिु ाद के वसद्धातं भाषाओं के बीच एक विशषे प्रकार के सबं धं से सबं द्ध होता ह. पिरणामस्िरूप ऄनिु ाद को तलु नातमक भाषा विज्ञान की एक शाखा भी कहा जाता ह. ऄनिु ाद ईसी वस्थवत मंे ऄनिु ाद कहा जा सकता ह, जब स्रोत भाषा का सपं णू क संदभक और प्रसगं लक्ष्य भाषा में व्याख्यात्मक अकृ वत पाने पर भी स्रोत भाषा से दरू न जाना पड़े कयंवू क ऄपने समग्र रूप मंे ऄनुिाद एक भाषा के भाि एिं विचारगत प्रतीकों का ऄन्य भाषा के भाि एिं विचारपरक प्रतीकों में प्रवतस्थापन ह. 'ऄनिु ाद' ही िह माध्यम ह जो ऄतं रभावषक सावहवत्यक संिाद स्थावपत करने मंे सक्षम ह सावहत्य के दोनों रूपों पर जब चचाक की जाती ह तब सजृ नशील सावहत्य (गद्य और पद्य, अलोचनात्मक सावहत्य) और ज्ञानात्मक सावहत्य (समाज विज्ञान, मानविकी, विज्ञान, प्रबधं न, जनसंचार, व्यापार-िावणज्य, विपणन, प्रौद्योवगकी अवद का सावहत्य) का संदभक ऄनिु ाद के दो िहृ द क्षते ्रों को लेकर ईपवस्थत होता ह दोनों ही क्षेत्रों मंे ऄनिु ाद की व्यापक सभं ािनाएँ वनवहत हैं ऄनिु ाद ही भावषक विवभन्नता और ऄलगाि को दरू करने की क्षमता रखती ह विदशे ी भाषी सावहवत्यक रचनाओं के भारतीय भाषाओं विशषे कर वहदं ी भाषा मंे ऄनिु ाद की सशि परम्परा रही ह. विविश काल के दौरान व्यापक मात्रा मंे पाश्चात्य सावहत्य का भारत में अगमन हुअ, वजसने भारतीय विितजनों को िवश्वक सावहत्य की ओर अकवषतक वकया पिरणाम स्िरुपप व्यापक रूप से विदशे ी भाषाओं मंे रवचत सावहत्य का
ऄनिु ाद प्रारंभ हअु . आन ऄनिु ादों ने एक ओर जहाँ भारतीय भावषक संपदा को समदृ ्ध करने का कायक वकया िही ँदसू री ओर िवश्वक स्तर पर भारतीय भाषाओं का विस्तार हुअ. ‘१८५७ मंे जब भारतीय जनमानस ने करिि ली तो आस बदलाि और जागरण की चेतना की लहरें दरू तक गइ.ं वहदं ी सावहत्य के भारतंेदु हिरश्चदं ्र और महािीर प्रसाद वििदे ी जसे परु ोधाओं ने प्रवतरोध और पिरितनक की आस अिाज को पहचाना और आसे पत्रकािरता तथा ऄनिु ाद के माध्यम से अत्मबोध और भारतीयता की पहचान का बाना पहनाया. दवु नया भर के िाङ्मय को ऄपनी भाषाओं मंे ऄितिरत करने की आस काल मंे होड सी लग गइ. स्ियं भारतेदं ु हिरश्चदं ्र ने शके सपीयर के नािक ‘मचंेि अफ िवे नस’ का ऄनिु ाद (दलु भक बंध)ु वकया और वििदे ी जी ने 'सरस्िती' में विवभन्न विषयों के ऄनिु ाद छापकर वहदं ी पाठक को दवु नया भर की जानकारी प्रदान करने का ऄवभयान चलाया. रामचंद्र शकु ल ने जोसफ एवडसन कृ त ‘प्लेजसक अफ आमवे जनशे न’, हके े ल कृ त ‘वद िरवडल ऑफ द यवु निस’क एिं एडविन अनाकल्ड कृ त ‘लाआि ऑफ एवशया’ का िमशः ‘कल्पना का अनंद’, ‘विश्व प्रपंच’ और ‘बदु ्ध चिरत’ नाम से ऄनिु ाद वकया. श्रीधर पाठक ने ओवलिर गोल्डवस्मथ कृ त ‘द हवमिक ' और 'डेसरिेड विलेज’ को ‘एकातं िासी योगी' एिं 'उजड ग्राम’ के रूप मंे ऄनवू दत वकया. प्रेमचदं ने भी वलयो िालस्िाय की रचनाओं को वहदं ी में लाने काम वकया. आन बड़े और यगु ातं रकारी रचनाकारों के ऄनिु ाद कायक के प्रवत रुपझान का पिरणाम यह हअु वक धीरे धीरे वहदं ी मंे विश्व सावहत्य के ऄनिु ाद की एक समदृ ्ध परंपरा बन गइ अगे चलकर भीष्म साहनी ने पच्चीस रूसी पसु ्तकों का वहदं ी मंे ऄनिु ाद वकया. नामिर वसंह के सपं ादन में भी ऄनवू दत रूसी कविताओं का सकं लन छपा ह. हिरिशं राय बच्चन ने रूसी कविताओं के तो ऄनिु ाद वकए ही शके सपीयर के नािकों के ऄनुिाद िारा भी बड़ी ख्यावत प्राप्त की. रामधारी वसहं वदनकर ने डी.एच.लारंेस की भलू ी वबसरी कविताओं को वहदं ी में ईतारा तो रघिु ीर सहाय ने 'बरनम िन' के रूप में शके सपीयर के मके बेथ को नया जन्म वदया. रागं ये राघि, वनमलक िमाक, कंु िर नारायण, मोहन राके श, राजदंे ्र यादि, गगं ा प्रसाद विमल, विष्णु खरे, ऄमतृ महे ता, ऄभयकु मार दबु े, प्रभात नौवियाल, ईदय प्रकाश, मदु ्राराक्षस, सरू ज प्रकाश, नीलाभ और कृ ष्ण कु मार जसे ऄनेक सावहत्यकारों-ऄनिु ादकों ने दवु नया की सभी प्रमखु भाषाओं के सावहत्य को ऄनिु ाद के माध्यम से वहदं ी जगत तक पहचुं ाने का ऄवभनंदनीय कायक वकया ह. ऄशोक िाजपेयी के संपादन में प्रकावशत विश्व कविता का चयन भी पयाकप्त व्यापक ह. खास तौर से ऄमतृ महे ता ने मध्य भाषा [वफ़ल्िर लंेगएु ज] ऄगं ्रेजी के सहारे वकए गए ऄनिु ादों की प्रामावणकता को बहतु जोर दके र प्रनांावं कत वकया ह. ईन्होंने ऄनवू दत विश्व सावहत्य की ऄपनी पवत्रका ‘सार संसार’ के माध्यम से जमनक ी, अवस्िया और स्िीडन सवहत ऄनेक दशे ों के सावहत्य का ईनकी भाषाओं से वहदं ी में सीधे ऄनिु ाद करने का अदं ोलन ही चला रखा ह.’ (विश्व सावहत्य एिं ऄनिु ाद: वहदं ी का संदभ-क डॉ. ऊषभ दिे शमा)क यवद हम विशेष तौर पर कविताओं के ऄनिु ाद की बात करंे तो सावहवत्यक ऄनिु ादों मंे कविता के ऄनिु ाद की वजतनी चचाकएँ होती ह,ैं ईतनी ऄन्य वकसी विधा के ऄनिु ाद की नहीं आस संदभक में ऄनिु ादक विजय कु मार कहते हंै वक- संकै ड़ों िषो से एक भाषा और संस्कृ वत में जन्मी कविता का दसू री भाषा और ससं ्कृ वत में ऄनिु ाद होता रहा ह यह एक
अिागमन ह हममंे से वकतनों ने होर, दांते, िवजलक , गिे े, वजमनजे ़, बोयख्खो, किाफी, बोरिसे , बॉदलये र, मले ामे, ईमर खय्याम, हावफज़, मायकोव्स्की, अख़्मातोिा, नावजम वहकमत, नेरूदा, िरत्सोस िरल्के , लोकाक, होलबु , मोंताले, पेसोअ, ऄमीखाइ या वशम्बोस्काक की कविताओं को ईनकी मलू भाषाओं मंे पढ़ा ह ? ये तमाम ऄसाधारण कवि ग्रीक, लविन, आतालिी, पतु गक ाली, स्पवे नश, जमनक , फ्रें च, रूसी, पोवलश, तकु ी, फारसी और वहिू अवद भाषाओं से ऄगँ ्रजे ़ी मंे ऄनवू दत होकर ही तो हम तक पहचुँ े हैं जनकृ वत पवत्रका के ितकमान ऄकं ‘विदशे ी भाषा कविता विशेषांक’ मंे ऄनिु ाद की प्रविया ईसके स्िरुपप को रेखावं कत करते हएु विदशे ी भाषा में रवचत श्रषे ्ठ कृ वतयों के वहदं ी ऄनिु ाद को प्रकावशत वकया गया ह. विश्वभर के पचास से ऄवधक कवियों की कविताओं के वहदं ी ऄनिु ाद को संकवलत करने में जान-े माने ऄनिु ादक ऄवनल जनविजय जी का विशेष सहयोग वमला. आस ऄंक मंे भारत के प्रमखु ऄनिु ादकों के ऄनिु ाद को प्रकावशत वकया गया ह. यह ऄकं भारतीय काव्यानिु ाद की परंपरा में अवं शक योगदान ह. आस ईम्मीद के साथ जनकृ वत पवत्रका का यह विशषे ाकं अप सभी पाठकों के समक्ष प्रस्ततु ह. -कु मार गौरव ममश्रा
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) विदेशी भाषा कविता विशेषाांक Vol.2, issue.13, March 2016 िषष: 2, अांक 13, मार्ष 2016 विदेशी भाषी कविताओां के अनुिाद- ईरानी कतव फ़रोग फ़रोखज़ाद: अनवु ादक- माररया विस्लािा एना वसम्बोस्काष: अनवु ादक- यादवने्द्र, भारि भषू ण तिवारी एस्ट्िोतनयाई कतव मागषस लैवटक: अनवु ादक- पजू ा तिवारी कोररयाई कविताए:ँ अनवु ादक- तदतवक रमशे गौिम वतसष्ठ बतोल्त ब्रेख्त की कतविाए:ँ अनवु ादक- वीणा (गांाग अन ग्यो) दतिणी हमग्यंेग प्रान्द्ि -\"पहाड़ मंे फू ल \" कोररयाई कतविा संिग्रह: अनवु ादक- तकम वू भातिया जो, कणतम सह चौहान रोज़ा आउसलेण्डर की दस कतविाएँ : अनवु ादक- चीनी कतव गनू ल्यू: अनवु ादक- अतनल जनतवजय प्रतिभा उपाध्याय चीनी कतव बेई दाओ: अगँ ्रेज़ी से अनवु ादक -- गीि टोमास ट्रान्सट्रोमर की कतविाए:ँ अनवु ादक- चिवु दे ी धमने्द्र कु मार तसिहं जमनम कतव हाइनररश हाइने: अनवु ादक – प्रतिभा अगंि ोला के कतव एरवलण्डो बारबेइटोस की कतविाए:ँ अनवु ादक: राजा खगु शाल, अतनल उपाध्याय जमनम कतव बतोल्त ब्रेख़्त: अनवु ादक- तवजने्द्र जनतवजय जमनम कतव रेनय माररया ररल्के : अनवु ादक- इला यनू ानी कतव कां स्तावन्तन किाफ़ी, जमनम कतव- माशा कालेको, पेटर रोज़ेग्ग, रोज़ा कु मार आउसलेण्डर: अनवु ादक- अतनल जनतवजय जमनम कतव हेनररख़ हायने: अनवु ादक- अतनल विस्टोफर र ओवकग्बो, डेवनस ब्रूटस: अनवु ादक- जनतवजय कु मार मकु ु ल िकु ी के कतव ओरहान िेली: अनवु ादक- अतनल एलन ब्राउनजॉन (इगंि्लणै ्ड): अनवु ादक: प्रो. जनतवजय, मनोज पिेल, तसद्धेश्वर तसिंह िकु ी के महाकतव नावज़म वहक़मत: अनवु ादक- अपवू ामनंिद सोमदत्त, उत्पल बनै जी, तशवरिन थानवी, नीलाभ अजणे ्िीना के कतव र्े ग्िेिारा: अनवु ादक- नीलाभ अजणे ्िीना के कतव पाब्लो नेरुदा की कतविाए:ँ दतिणी अफ़्रीकी कतव अमेवलया हाउस: अनवु ादक- मधु शमाम, सरु ेश सतलल बेलारूस के कतव मक्सीम ताांक: अनवु ादक- अनवु ादक- हमे न्द्ि जोशी नाइजीररया के कतव र्ीनुआ एर्ेबे: अनवु ादक- वरयाम तसिंह फर े डररको गावशषया लोरका: अनवु ादक- आनंदि सरु ेश सलील नॉवे के कतव ऊलाि हाउगे: अनवु ादक- रुस्ट्िम बाला शमाम आस्ट्रेतलयाई कवि लेस मरे: अनवु ादक – तसंहि बोररस पासतरनाक: अनवु ादक- सरू ज प्रकाश अनातमका फ़्रासँ ीसी कतव गैयोम अपोल्लीनेर: अनवु ादक- ईरानी कतव फ़रीदे हसनज़ादे मोस्ताफ़ािी: अतनल जनतवजय अनवु ादक- यादवने्द्र पाण्डे फ़्राँसीसी कतव जाक प्रेिेर: अनवु ादक- हमे न्द्ि जोशी
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) फ़्रासँ ीसी कतव पॉल एल्युआर: अनवु ादक- हमे न्द्ि रोमातनयाई कतव माररन सोरस्क्यू: अनवु ादक- मतण मोहन महे िा जोशी लीतबयाई कतव इदरीस मौहम्मद तैयब: फ़्रासँ ीसी कतव रोबेर साबावतए : अनवु ादक- हमे न्द्ि अनवु ादक- इन्द्दकु ान्द्ि आतंि गरस जोशी होखे लुइस बोखेस: अनवु ादक- श्रीकािंि दबु े फ़्राँसीसी कतव विक्टर ह्यूगो: अनवु ादक- हमे न्द्ि स्ट्पानी भाषा के कतव फ़े दररको गावसषया: जोशी अनवु ादक- गलु शरे खान शानी, धमवम ीर भारिी, गीि फ्रंे च कतव बॉदंा लेयर: अनवु ादक- डॉ. आभा चिवु दे ी स्ट्लावते नयाई कतव डेन जैक: अनवु ादक- अतनल खडे ेकर जनतवजय िसलीमा नसरीन: अनवु ादक- रिन चंिद ‘रत्नेश’ स्ट्वीतडश कतव टोमस ट्राँसटोमर : अनवु ादक- तितिश कतव जेम्स फ़े ण्टन: अनवु ादक- प्रमोद तप्रयकंि र पालीवाल, तशरीष कु मार मौयाम, मनोज पिेल हगंि ारी कतव अविला योझेफ़: अनवु ादक- उमा कौंसवाल जमनम कतव रेनय माररया ररल्के : अनवु ादक- इला तितिश कतव स्टेफ़ान स्पैण्डर: अनवु ादक- रमशे चिंर कु मार शाह, अतनल एकलव्य शैक्सपीय़र का सबसे अतधक रोमािंतिक सोनेि १८: अनवु ादक- राके श माथरु (लिदं न) तितिश कतव हैरॉल्ड वपण्टर: अनवु ादक- व्योमशे शकु ्ल, अतनल एकलव्य विदेशी भाषी कवियों पर लेख- नज़ीम वहकमत- प्रोतमला क़ाज़ी मतै क्सको के कतव ओक्तावियो पास: अनवु ादक- अनवु ाद की प्रतिया व तवतवध सोपान: प्रो. सशु ील ररनू िलवाड़, सरु ेश सलील कु मार शलै ी यनू ानी कतव कंा स्तावन्तन किाफ़ी: अनवु ादक- तजसके किं ठ से पथृ ्वी के सारे विृ एक साथ कतविा सरु ेश सलील, तपयषू दईया पाठ करिे थे : वमगएु ल हनाषन्देज़- उदय प्रकाश यनू ानी कतव यावनस ररत्सोस : अनवु ादक- मगिं लेश सेगेई एसेवनन: रूसी कतविा का अमर लोकगायक- डबराल उमा यनू ानी महाकतव ग्योगेस सेफ़े ररस: अनवु ादक- फ़राज़ आओ तसिारे सफ़र के दखे िे ह-ंै कृ ष्ण कु मार अमिृ ा भारिी, अतनल जनतवजय यादव रूसी कतव अनतोली परपरा: अनवु ादक- अतनल नाइजीररया के वटि समुदाय के मौतखक शौयम गीि: प्रोफे सर हरदीप तसहंि जनतवजय प्रमे और िांति ि के कतव पाब्लो नेरूदा- प्रदीप रूसी कतव वनकलाय रेररख़: अनवु ादक- वरयाम तिपाठी तसहंि रूसी कतव मरीना वस्िताएिा: अनवु ादक- वरयाम तसहंि रूसी कतव येव्गेनी येव्तुशंेको: अनवु ादक- अतनल जनतवजय रूसी कतव व्लदीवमर मायकोिस्की: अनवु ादक- राजशे जोशी रूसी महाकतव अलेक्सान्दर पवू ककन: अनवु ादक- मदनलाल मधु
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) माररया तवस्लावा एना तिम्बोस्काा 2 जलु ाइ 1923 में जन्मी पोलडैं की लेखखका खजन्हंे 'कखिता का मोजार्ट' के नाम से जाना जाता है और आन्हें 1996 का साखहत्य का नोबेल परु स्कार प्राप्त हो चकु ा ह.ै ईनकी 'अदर्ट लोक (यरू ्ोखपया)' कखिता को 1976 मंे खसम्बोस्काट ने 'ए लाजट नंबर' कखिता सकं लन मंे सखम्मखलत खकया था. यह मलू तः स्िीखडर् भाषा में खलखी हइु है खजसका ऄंग्रेजी ऄनिु ाद एस. बरान्जैक और सी. कािनाघ ने खकया. अनवु ादक- पूजा तिवारी द्वीप जहांा सबकु छ स्पष्ट हो जाता है तमु ्हारे परै ों के नीचे सख्त ज़मीन. वे अके ली सड़कंे जो तमु ्हे मांजजल तक पहुचने की राह दते ी हैं शहादत के प्रमाणों के भार से नीचे झकु ी झाजड़यााँ. लम्बे समय से सलु झी हुई शाखाओां के साथ वास्तजवक से लगने वाले अनमु ानों के वकृ ्ष यहााँ उग गये ह.ंै समझदारी के वकृ ्ष, जो आश्चययजनक रूप से सीधे और साधारण, बसातं के पकु ारने पर उग आते हंै उनको अब मंै जान चकु ी ह.ाँ घना जंागल वहृ द् पररदृश्य : स्पष्टता की घाटी. यजद कोई सदंा हे पनपता ह,ै हवा तत्काल उन्हंे जततर-जबतर कर दते ी ह.ै प्रजतध्वजनयों के जवप्लव को बलु ा भेजती है
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) और उत्सकु ता से समस्त जगत के रहस्य को खोलती ह.ै दाजहने तरफ एक गफु ा है जहांा अथय/प्रयोजन रहता ह.ै बायीं तरफ गहरी आस्था की झील ह.ै सत्य तली से जनकलकर जछछले भाग की ओर जहचकोले खाता हआु बढ़ता ह.ै जवश्वास का दृढ बजु य घाटी के ऊपर तक पहुचाँ गया ह.ै इसकी चोटी वस्तओु ंा के ममय की उत्कृ ष्ट झलक जदखलाती है . अपने समस्त सौन्दयय के बावजदू , द्वीप जनजयन ह,ै और इसके तटों पर धधंाु ले पदजचन्ह जबखरे हुए हंै जो सभी जबना जकसी अपवाद के समदु ्र की ओर जाते हुए ह.ै ऐसा लगता है इस स्थान को छोड़कर जाने और समदु ्र की गहराइयों मंे डूब जाने के अजतररक्त कोई कु छ नहीं कर सकता इन गहराइयों में, इस अपररमेय जीवन मंे कभी न लौटकर आने के जलए जाना. शोधाथी, हदै राबाद के न्द्रीय जवश्वजवद्यालय मो.न.- 9559918846
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक)
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) कोररयाई कविताएं अनिु ादक कवि वदविक रमेश हान योंग उन (1879-1944) :होंगसाॆगं ( छु नछॉग) प्ांतॆ में जन्म । एक समवपतथ बॊद्ध वभक्षु थे वजनका बोद्ध नाम \"मन्ह\"े था। उन 33 सदस्यों में से एक थे वजन्होंने 1919 में जापानी उपवनवशे ्वाद से कोररया की मवु ि सॆंबधंॆ ी ऎवतहावसक दस्तावज़े पर हस्ताक्षर वकए थे । स्वाधीनता आन्दोलन मंे भाग लेने के कारण जले में भी रहे । पद्य ऒर गद्य दोनों मंे वलखा हॆ । रवीन्रनाथ टॆगोर से प्भाववत माने जाते हॆं । इनकी कववताओॆं की बहे ्द प्वसद्ध पसु ्तक \"वनम अइ वछममकु \" ( प्मे का मॊन, silence of love) 1926 मंे प्कावशत हुई थी। संकॆ लन मंे इसी शीषकथ से कववता भी हॆ । यहांॆ इसी संॆकलन से कववताएॆं िनु ी गई हंॆ । \"वनम\" या प्ेम अपने आशय मंे साधारण अथवा सीवमत प्ेम मात्र नहीं हॆ । इसकी अनके अथथ-छववयांॆ हॆं । कु छ लोग इसे दशे या दशे प्ेम से भी जोड़ते हॆं । कवव के अनसु ार, \"वह सब वजसे मंॆ प्यार करता हंॆ वनम (प्ेम) हॆ । जसॆ े हर प्ाणी बदु ्ध का प्यार हॆ वसॆ े ही काॆंट का प्यार उसका दशनथ हॆ । ’प्यार’ (वनम) मझु े उतना ही प्यार करता हे वजतना मॆं उसे । अगर प्यार मंे होना मवु ि हॆ तो मरे ा अनवु ादक कवव: वदववक रमशे हूँ एक गरीब वित्रकार । जझू ता हुआ नींद से वबस्तर मंे । मनंॆ े रिी हॆ कला तमु ्हारे वक्ष पर, नाक पर, होंठों पर ऒर तमु ्हारे गालों के गड्ढ़ों पर अपनी उंॆगवलयों की छाप से । लवे कन व्यथथ गई ंॆसंकॆ ड़ों कोवशशंे तमु ्हारी आखँू ों को ढालने की खले ती हॆ आसपास वजनके एक उज्जज्जवल मसु ्कान । एक अपणू थ गायक हॆं में जब सो गए पड़ोसी, मॊन हो गए कीट मनंॆ े की कोवशश वह गीत गाने की, वसखाया था वजसे एक बार आपने पर नहीं गा सका, एक ऊंॆ घती वबल्ली के रहते, संॆकोि से । बस गा सका एक सामवू हक गान, मॊन, पास से गजु रती, साफ करती वखड़की के पल्ले हवा के साथ । सि, लगता हॆ नहीं हॆ कवव मझु मंे
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) करता हॆ अवरुद्ध वह वलखने से मझु े आनन्द के बारे मंे बारे में द:ु ख या \"प्यार\" के । िाहता हंॆ करॆं विवत्रत ह ब ह आपके िहे रे का भाव आपकी आवाज़ ऒर िाल आपका वनवास, आपका वबस्तर ऒर आपकी पषु ्प वावटका के नन्हंे पत्थर । अकारण नहीं करता प्यार आपको; दसू रे करते हैं प्यार महज मरे े जवान िहे रे को पर आप करते हॆं प्यार मरे े सफे द बालों को भी । अकारण नहीं रहता मॆं आपके साथ; दसू रे करते हंॆ प्यार महज मरे ी मसु ्कु राहटों से पर आप करते हॆं प्यार मरे े आसॆं ओु ॆं से भी । अकारण नहीं तरसता आपके वलए मंॆ; दसू रे करते हॆं प्यार महज मरे े स्वस्थ जीवन से पर आप करते हॆं प्यार मरे ी मत्यु से भी । वमत्र, मरे े वमत्र, आप रुलाते हॆं मझु े वप्यतमा की समावध पर वखले फू ल सा । वमत्र, पहुिॆं ाते हॆं आप मझु े सखु मरे ी वप्यतमा सा वमला था वजसे एकदम शनू्य पक्षी की उड़ान से, रेवगस्तानी रात मंे ।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) आप खशु बू हॆं श्वते अवस्थयों की, वनकलती प्ािीन समावधयों को फोड़कर, भरती खशु बओु ंॆ से हवा को । आप गीत हॆं उम्मीद का हताशा मंे करते हएु एकवत्रत झड़े फू लोूँ को, बनाने को हार महज दसू री शाखाओॆं पर । वमत्र, कयोूँ रोए टूटे प्यार पर! नही ूँलौटा सकते आसँू ू टूटी पखॆं वु ड़याॆं शाखाओॆं पर वखलने को, एक बार वफर । मत वछड़काओ आॆसं ू मरु झायी पंॆखवु ड़यों पर वछड़काओंॆ इन्हें वकृ ्ष की जड़ों में, वमट्टी पर । वमत्र मरे े, िमू तो नहीं सकती न होंठ हड्डी के , मधरु तम मतृ ्यगु धंॆ भी! मत बनु ो समावध पर सनु हरा जाल गीत का मत रोंपो रिरॆंवजत ध्वज समावध पर । बता सकती हॆ तो भी वासन्ती हवा, कॆ से घमू ती हॆ पथृ ्वी कवव के गीत म।ंे शवमनथ ्दा हंॆ मं,ॆ मरे े वमत्र! कापॆं ता ह,ंॆ गीत सनु कर आपके , शवमनथ ्दगी में कयोंवक सनु ता हंॆ इन्हें तन्हा वबना अपनी वप्यतमा के ।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) गो अन ( Ko Un) ( 1933) : उत्तरी िल्ला प्ान्त के गनु्सान मंे जन्म। बिपन से ही प्वतभाशाली। 1950 में कोररयाई यदु ्ध से द:ु खी हुए। 1952 मंे बॊद्ध हो गए। 1973 में बदलाव आया ऒर घनघोर राष्रवादी कवव हो गए। 1983 मंे वफर बदलाव। पिास वषथ का अके ला जीवन समाप्त कर वववाह कर वलया। बहुत ववशाल लेखन। भारत की यात्रा (1992) कर िकु े ह।ॆं मन्हे परु स्कार से ववभवू षत। तानाशाह का हमशे ा ववरोध वकया हॆ ऒर जनतंतॆ ्र के वहमायती रहे ह।ंॆ वविारों मंे थोड़े वाम कहे जा सकते ह।ॆं अनुिादक कवि : वदविक रमेश (1) गाओ अब, गाओ होने से पहले सयू ासथ ्त गीत ददथ के सदी की पहली बफथ के । गाओ अब, जसॆ े गाता हॆ अमावस की रात का पक्षी भरने को िमकीला प्काश । (२) भरसक दखे ता हंॆ लगाकर टकटकी नहीं हॆ आकाश अलग कल के आकाश से । अब वगर रही हॆ बफथ , होते एकत्र गहरे मरे ी छाती में । गाओ अब, गाओ सयू ाथस्त से पहले । भोग रहा हंॆ द:ु ख अके ले पर भोगना अके ले होना हॆ बहुत । (3) गाओ सयू ाथस्त से पहले, गाओ इससे पहले वक हो जाए सयू ाथस्त
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) नहीं पा सका प्यार वकसी का भी लगायी टकटकी उदासीन पहाड़ों पर ऒर वकया प्यार । वगर रही हॆ शरु ुआती बफथ , गाओ । कोररयाई स्त्री कवि मून चंुग ही (Moon Chung-Hee) कोररया की एक प्रवतवित मवहला कवि। कोररया के दविण मंे 1945 मंे जन्म हुआ। पली- बढ़ीं राजधानी ’सोल’ में।यंू तो स्कू ल के वदनों मंे ही इनका साइवययक जीिन शुरु हो गया था लेवकन सही मायनों में इनका सावहवययक जीिन 1969 में िॉलगन वलटरेचर में इनकी कविताओं के प्रकाशन के साथ माना गया हॆ वजन्हें पुरस्कृ त भी वकया गया था। जंगली गलु ाब, परु ुषों के तलए, झूठा प्यार, मेरे बालों में पोस्ि का फू ल आतद इनके 11 कविता सगं ्रह प्रकावशत हो चुके हॆ।ं इन्होंने जीिन ऒर अन्य घटकों को नारी की वनगाह से देखा हॆ। इनकी रचनाओं मंे वनभीकता ऒर सॊन्दयय का वमलन हॆ। स्त्री के पि मंे वलखी गई ंइनकी कविताएं विवशष्ट मानी गई हॆ।ं इनकी कु छ रचनाओं का अंग्रजी अनुिाद 2004 में हो गया था। इन्हंे अनेक प्रवतवित परु स्कार वमल चुके हॆं वजनमें सो िॉल कविता परु स्कार, जुंग जी योंग कविता परु स्कार ऒर समसामवयक सावहवययक परु स्कार सवममवलत हॆ।ं इन्हंे यूरोप में भी अनेक पुरस्कार वमल चुके हॆ।ं इनकी कविताओं के अनिु ाद जमयनी, स्पानी, जापानी आवद 9 भाषाओं में हो चुके हॆ।ं दोन्गुक विश्वविद्यालय, सोल मंे कविता पीठ की अध्यि रह चुकी हॆ।ं कोररया विश्वविद्यालय में सजृ नायमक लेखन की प्रोफे सर हॆ।ं अनिु ादक कवि: वदविक रमेश ओह बटे ी! रोको असावधानी से झकु ना सू सू के वि। शालीनता से करो, बॆठ कर तमीज़ से एक हरे पड़े के नीिे। सनु ो पथृ ्वी पर फॆ लते हुए पानी की सॊम्य आवाज… एक दॊड़ती गमथ नदी ररसती तमु ्हारी दहे से... करती नतृ ्य प्कृ वत की बह रही धनु ों पर। सनु ो बढ़ती हरी घास की आवाज, एक होते तमु ऒर प्कृ वत के समन्वय के वलए। कभी-कभी करने को व्यि अपनी घणृ ा
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) िाहती हो तमु मतू ना िट्टान के ववरुद्ध…. पर ठहरो-ररवाज के वलए, उठाओ अपना स्कटथ शालीनता से ऒर हॊले से छू ने दो अपनी परू ी िन्रकाॆवं त ज़मीन से, गन्द पर ररसे जब गमथ नदी तमु ्हारी दहे की सनु ो आवाज अपने ऒर पथृ ्वी के ववलय की। वमला दो सरु प्कृ वत के लयात्मक राग म।ंे बन जाओ प्मखु समस्त हरे-भरे जीवन की तावलयों की गड़गड़ाहट के वलए। ओह, मरे ी प्यारी लड़की! स्नान करते हुए सबु ह करती हंॆ बात अपनी नग्न दहे स:े \"मत करो मरे ा अनकु रंॆण मॆं कवव ह,ॆं पर तमु ्हें नहीं बनना वह। कल ऒर हो गई मॆं तीन साल बड़ी। अिानक हो गया हॆ यह-- हॆं मॆं सॊ वषथ की लोमड़ी। ओ! नग्न दहे ! करती हंॆ प्ाथथना, हो जाओगी तमु हर वदन तीन वषथ छोटी। बहुत बार वदया हॆ तमु ने धोखा। पा ली हॆं झरु रथयाॆं ऒर पा वलया हॆ मोटापा मरे ी इच्छा के ववरुद्ध। जब वलखी मनॆं े िपु िाप कववता, तमु वमली परु ुषों स।े तब भी,. रहो रहो नग्न। बालों में लगाए पोस्त वबताओ समय वबस्तर पर न वक पीछॆ मजे के । ओ! मरे ी पवनिककी, मरे ी पजू ाघर! आधी रात को िीखती हॆ टेलीफोन की घटंॆ ी सोल से:
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जी रही हंॆ वजस कराण करता हॆ वह टाल मटोल। यहाॆं करोड़ों बनाते हॆं लोग रात भर मंे वनवशे कर ज़मीन जायदाद म।ें इतना घना होता हॆ यहाॆं रेवफक, इतनी प्दवू षत होती हॆ हवा वक सासंॆ तक नहीं ले पाती ठीक स।े ऒर भी घणृ ास्पद हॆ टेलीववजन हमशे ा की तरह लवे कन ऊबी, जड़ती हंॆ इसे अपनी टाकटकी म।ें झठू ों ऒर मककारों से अटे शहर म,ंे कवव तक हंॆ कपटी कभी-कभार ऒर िलते हंॆ पीछे अपने नेताओॆं के भीड़ म।ंे प्तीकात्मक आभषू ण की तरह इस्तमे ाल करते हॆं वे अपना वपयककड़पन, लवे कन हॆ यह वसफथ पश्चाताप वववके या वकसी अन्य हालात का। करते हएु अपनी दवु नयावी सफलता की लालासा, यश की अधंॆ इच्छा में मिाते भगदड़, सभा के सदस्य तक िढ़ जाते हॆं मिॆं पर,। बहुतों ने पाया हे यश ऒर हुए हॆं सम्मावनत, लेवकन मनॆं े कभी ही पीटी हों तावलयांॆ ललक स।े सोल लढ़ु कता हॆ एक जजरथ रत बस की तरह ब्रेक लगते ही जो हो जाएगा तहस नहस। कवठन हे खशु ी का पाना। कयों सोिता हॆ वह वक आती हॆ खशु ी ददथ स?े कयॊॆं करता हॆ इसे द:ु ख ऒर हार समझने की गलती। जब भी होती हंॆ लालावयत, िाहती हंॆ लॊटना उसी वि सोल। अगर कर सकती वववाह उसकी ददथ भरी खशु ी ऒर मरे ी अके ली पड़ी खशु ी ऒर होता जन्म वकसी नए कु छ का तो हुई होती कया मंॆ एक सच्िी कवव? * सोल : दवक्षण कोररया की राजधानी।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) स्नान करते हुए सबु ह करती हंॆ बात अपनी नग्न दहे स:े \"मत करो मरे ा अनकु रंॆण मॆं कवव ह,ॆं पर तमु ्हंे नहीं बनना वह। कल ऒर हो गई मॆं तीन साल बड़ी। अिानक हो गया हॆ यह-- हॆं मंॆ सॊ वषथ की लोमड़ी। ओ! नग्न दहे ! करती हंॆ प्ाथनथ ा, हो जाओगी तमु हर वदन तीन वषथ छोटी। बहुत बार वदया हॆ तमु ने धोखा। पा ली हॆं झरु रथयाॆं ऒर पा वलया हॆ मोटापा मरे ी इच्छा के ववरुद्ध। जब वलखी मनंॆ े िपु िाप कववता, तमु वमली परु ुषों स।े तब भी,. रहो रहो नग्न। बालों मंे लगाए पोस्त वबताओ समय वबस्तर पर न वक पीछॆ मजे के । ओ! मरे ी पवनिककी, मरे ी पजू ाघर! न मरे ा वपता न मरे ा भाई वह परु ुष हॆ एक इन दोनों के बीि खड़ा। कॊई ऎसा जो सबसे करीब हो, तब भी बहतु दरू का। जब भी होती हॆं पीवड़त अवनॆंरा से नत होती हॆं मंॆ उसकी सलाह के वलए--
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ओह कु छ भी वसवा उसके ! तभी न िपु िाप मोड़ लेती हंॆ महंॆु उससे वबस्तर म।ें कभी मरे ा शत्र,ु कभी वसफथ एक आदमी पथृ ्वी पर जो रखता हॆ मरे े बच्िों को इतने प्यार स।े इसीवलए बनाती हंॆ मंॆ रात का भोजन वफर एक बार उसके वलए, यह आदमी वजसके साथ खाया हॆ खाना बहुत बार यह आसमी वजसने वसखाया मझु े सॆंघषथ। खले ो मझु संगॆ उड़ाओ मझु े ऊॆं ि,े भर दो मझु में गमथ हवा। थोड़ी ऒर मारो फंॆू क, हो जाए मरे ी कोमल खाल,, कसी। करो कु छ उलटा-सीधा, टपाओ मझु े नहीं, बहतु हॊले से छू ओ मझु ।े नाजकु हॆ मरे ी दहे जसॆ े समय की धारदार गलु ले ों ऒर तीरों के सामने खलु ी एक बफथ की छड़ी। नहीं िावहए कोई िाबी मझु े खोलने को बस फे क दो मझु े हवा में नहीं, मार डालो मझु े उत्तजे ना स।े आज वदन सनु ्दर हॆ --बस यंॆू ही आइने की तरह पारदशी साफ। कागज के टुक़ड़े पर वलखने की जगह कववता बना रही हंॆ पीले िाॆदं का वित्र।
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) थक गई हॆं मॆं उन कववताओंॆ से भरी हंॆ जो बेईमावनयों, हवाईबावजयों, बहानों ऒर डींगों स।े थक गई हॆं उन कववताओॆं से जो हंॆ फू लों, पहाड़ों ऒर पवक्षयों के बारे म.ंे . ऒर आक्रोश, खशु ी, गमी ऒर प्यार वाली कववताओॆं से भी... मॆं बना रही हंॆ वित्र िाॆदं का कागज के टुकड़े पर, कॆं िी से काट रही हॆं ऒर टागॆं रही हंॆ दरवाजे पर। होगा यह एक पीली लालटेन न वक लाल। आप पकु ारते हंॆ मझु े िादंॆ सो नामपट्टी होगा मरे ा, दरवाजे पर िांॆद। सि म,ें मॆं हॆं सावहत्य, हॆं मॆं िाॆंद। मडंॆ रा रही हॆं मॆं, कर रहीं हॆं घनी िाहत तमु ्हारे वलए लालटेन की तरह डालती हॆ जो रॊशनी दवु नया की पीड़ाओंॆ पर। कयों नहीं हॆ लाल प्काश स्तम्भ उन सबके वलए जो हॆं वनरीह ऒर अके ले, भटकते गली गली प्यार की खोज म?ंे कर सकते हॆं प्वशे वे दरवाजे मंे वबना वकसी शलु ्क के । आज वदन सनु ्दर हॆ --बस यंॆू ही आइने की तरह पारदशी साफ। * मनू (Moon) कवव का नाम ह।ॆ कोररयाई में मनू का एक अथथ द्वार भी होता ह।ॆ कहाॆं वमल सकती हॆ उमगॆं हमें जीवन म?ें िाहे अवनवायथ हॆ ववनाश आग ने पर बनाया हॆ ववश्व को सॆंदु र। ओ अवग्न फड़फड़ाओ न हजार पंखॆ , मार वगराओ न वसतारे, मडंॆ राओ आकाश की वदशा म.ंे अगर न हआु होता यह सब तमु से तो कहांॆ ले सकते थे सपना उत्कृ ष्ट अनन्त का?
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) कया सोि भी सकते थे प्यार िनु ॊती दते ा हॆ जो ववनाश को? अब सीख लगॆंू ी मंॆ उम्र बढ़ने की कला वकृ ्षों स।े हो जाती हंॆ ऒर बड़ी हर वषथ उम्र बढ़ने पर-- बस अब ऒर नहीं जमाखाता यंॆू ही। बवल्क गोद लॆंगू ी अपनी उम्र अपने भीतर जसॆ े गोद लेता हॆ वकृ ्ष। जब टहलती हंॆ सदाबहार वकृ ्षों में जब छू ती हॆ हॊले से शाखा मरे े कंॆ धे को, जब शरत् हलके से लगाता हॆ हाथ मझु े जब प्वशे करते हॆं हृदय मंे उसके बोल- \"मंॆ तमु ्हंे प्यार करता ह।ंॆ \" जब कहती हॆं \"मसु ्कु राओ’, थामते हएु उस क्षण को वकृ ्षों भरी पषृ ्ठभवू म के सामने, वबना उजागर करते अपनी उम्र, ववकवसत हो िकु े वकृ ्षों न,े कर दी हॆ वकलाबदंॆ ी प्ािीन मवंॆ दर की- आशा से भरपरू नॊजवान वकृ ्षों की तरह। अब सीख लंगॆू ी मॆं उम्र बढ़ने की कला वकृ ्षों से, करते हएु उत्कीणथ बीतते वषथ अपने भीतर- होने को अवश्य, ऒर ऒर हरा ऒर रसीला अगले वषथ, अवश्य। मलू कववयत्री: मनू िगंॆु ही (Moon Chung-Hee) अनवु ादक कवव: वदववक रमशे (Divik Ramesh)
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) मत जाओ वनकट पत्थर से बने बदु ्ध के वजसके पास न आखॆं ंे हॆं न कान। बस बिे हॆं मात्र उसके विन्ह। नही रहा बदु ्ध, लॊट रहा हॆ यह पणू तथ ्व की ओर लॊट रहा हॆ यह पत्थर की ओर। उके री थीं आखॆं ें ऒर कान कमथ ने हज़ारों साल पहले आगॆं न में इस इन्गाक मवॆं दर के । पववत्र ऒर गढ़ू हॆ जले बदु ्ध की। नहीं ठहरता काल वबना उके रे पत्थर की ओर लॊटने की प्ाकृ वतक प्वक्रया म।ंे बके ार मत जोड़ो हाथ अपने प्ाथथना म।ें इस एक शब्द \"पणू तथ ्व\" को होने दो काफी। * इन्गाक मंवदर दविण कोररया वबयोन्संेग (Byepmgsamg) मंे हॆ वजसमंे सुविख्यात बॊद्ध वभिकु इल्योन(1206-1289) (Ilyon) ने तीन राज्यों के स्मरणीय तथ्यों की सपु ्रवसद्ध पसु ्तक समगकु यूसा (Samguk Yusa) वलखी थी| वहन्दी के वररष्ठ एवंॆ प्वतवष्ठत कवव, अनवु ादक एवॆं बाल-सावहत्यकार। 1946 में वदल्ली के वकराड़ी गावंॆ में जन्म। 8 कववता संॆग्रह, 6 अनवु ाद की पसु ्तकंे ऒर लगभग 40 बाल-सावहत्य की पसु ्तकें प्कावशत। सोववयत लंॆड नेहर परु स्कार, वगररजाकु मार माथरु परु स्कार वहन्दी अकादमी, वदल्ली सावहत्यकार सम्मान, भारत में कोररयाई दतू ावास प्शसॆं ा-सम्मान, भारतीय अनवु ाद पररषद के वद्ववागीश परु स्कार सवहत अनके राष्रीय एवंॆ अन्तरराष्रीय परु स्कार प्ाप्त हो िकु े ह।ॆं दवक्षण कोररया में भारत सरकार की ओर से हांॆगकु ववश्वववद्यालय, सोल में वववजवटंॆग प्ोफे सर के पद पर रह िकु े ह।ॆं वदल्ली ववश्वववद्यालय के मोतीलाल नेहर महाववद्यालय के प्ािायथ-पद से सेवावनवतृ । सपंॆ कथ : बी-295, सके टर-20, नोएडा-201301. मो० 9910177099.
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) ब्रतोल्त ब्रेख़्त की कववताएं अनवु ाद : वीणा भाविया बािरे रया, जमनध ी मंे जन्मे बटोल्ट ब्रेख़्ट (10 णरिरी 1898-14 अगस्त 1956)बीसिीं सदी के उन सावहत्यकारों मंे हैं वजन्होंने परू ी दवु नया पर अपना असर छोडा ह।ै िे नाटककार, कवि और नाट्य-वनदशे क थे। पिू ी और वहन्दसु ्तानी परम्पराओं से िरे णा ले कर उन्होंने समचू े नाट्य-कमध को अपनी नयी शलै ी से िभावित वकया। बीस-बाईस साल की उमर से िे एक िवतबद्ध माक्सिध ादी बन गए और वफर जीिन भर माक्सधिादी रह।े उन्होंने दो-दो महायदु ्धों की विभीविका नज़दीक से दखे ी थी और वहट्लर और उसकी नात्सी पाटी की वहट-वलस्ट मंे रहे वजसकी िज़ह से उन्हंे दस साल से ज़्यादा की जलाितनी से गजु ़रना पडा। ब्रेख़्ट कहते थे वक िे कविताएँ िकावशत करने के वलए नहीं, बवल्क अपने नाटकों को और बहे तर बनाने के वलए वलखते थे । लेवकन उनका काव्य-भण्डार वजसमंे 500 से ज़्यादा कविताएँ हंै बज़ातखे दु एक अहवमयत रखता ह।ै इसके अलािा उन्होंने उपन्यास और कु छ कहावनयाँ भी वलखी हैं और नाट्य िस्तवु तयों पर िचै ाररक लखे भी। 1. वेश्या एववलन रो का उपाख्यान और तमु हसीनों मंे (कथानक) सबसे हसीन हो जब बसन्त आया ईश्वर तमु ्हें समनु्दर पीला पडा था इसका अच्छा बदला दे (उसका मन धडकता रहा) मैं एक वनधनध लडकी जहाज के साथ एक डोंगी बन्धी थी मरे ी आत्मा और एक लडकी थी एविलन रो नाम की मरे े क्राइस्ट की अमानत है ! बदन पर रोयंदे ार कमीज तब तो जरूर हमें जो अलौवकक रूप से गोरा था अपना शरीर दो िो कोई सोने का गहना नहीं पहने थी हे विये वसिाय अपने अद्भुत के शों के वजस िभु से तमु इतना नेह स्नेह रखती हो ओह कप्तान िह तमु ्हारी दहे का ले चलो मझु े पणु ्यलोक भोग नहीं ले सकता मंै जरूर जीसस क्राइस्ट के पास जाऊँ गी क्योंवक ले चलंेगे हम तमु ्हंे िह तो काफी पहले ही क्योंवक हम हैं बेिकू फ मर चकु ा धपू और हिा के साथ िे
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जहाज में बहते रहे कै प्टन और एविलन रो से उसकी गदु ाज बाहं ों मंे लेटा था उन्होंने खासा िेम वकया चमू कर हसं ा ‘अगर वकसी को भी उसने उनका खाना खाया दोि दे सकंे ’ उसने उनकी मवदरा पी हम िहाँ कभी भी न पहचुं े और बहुत रोई तो िह कोई एविलन रो ही है उसने जब जब ऐसा वकया िह रात नाचती रात के समय नाचे िह नाचे सारा वदन वदन के समय नतृ ्य वकया और घातक रूप से उन्होंने आवखर अपनी थकन की बीमार हो पतिारंे डाल दी ऊब चकु े थे सब कै प्टन से लेकर एविलन रो उस जहाज के छोरे तक वकतनी सनु ्दर जो सबसे कमवसन थे वकतनी कोमल थी और िे पत्थर की तरह से उसके शरीर पर परू े कठोर थे। रेशम के कपडे थे जख्म थे खरु ण्ड थी आयी बसन्त ऋतु जो खरु दरी हो आयी थी गवमयध ां गजु र गयीं रात के समय उसके कलंवकत माथे पर परु ाने जतू ों मंे भागती लटकी हईु थी िह मस्तलू दर मस्तलू बालों की मलै ी लट ! वकसी शान्त समनु्दर की तलाश में अभागी लडकी, अभागी एविलन रो। मैं आपको कभी नहीं वमल पाऊं गी िह नाची रात भर क्राइस्ट मरे े िभु वदन भर नतृ ्य वकया आप एक िशे ्या की खावतर ऊब और थकान में तो नहीं आ सकंे गे न, भारी मन, भारी तन और मैं ‘ओह कै प्टन’ अब एक बदनाम औरत हँ कब पहुचं ंेगे हम िहाँ मस्तलू ों के दरवमयान अपने िभु के नगर ? िह घटं ों भागती उसका वदल दखु ता था
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) उसके पैर दखु ते थे जब तमु पर वमट्टी के ढले े फें के गये। जब तक वक 3. मााँ के वलए शोकगीत एक अन्धरे ी रात मंे जब उसे कोई नहीं देख रहा था अब मझु े खदु -ब-खदु उसका चेहरा याद नहीं रह गया िह उस तट को ढूढं ने वनकल गई। क्योंवक यह उसके पहले की बात है जब उसके ददध की शरु ुआत हुई 2. इस पेचीदी दुवनया मंे वनढाल हाथों से/जो वसफध हाड था इस पचे ीदी दवु नया की उसने काले बाल बवे हस कहानी मंे अपने माथे से हटाये तमु नगं े आये थे मंै दखे सकता हँ सबसे तटस्थ और उसके हाथों को। वबल्कु ल असहाय थे। उसी तरह, जसै े िह करती ह।ै जब तक एक औरत ने बीस सवदयध ों ने तमु ्हें एक शाल में उसे आशवं कत वकये रखा लपटे नहीं वदया उसकी िदे नाओं का ओर-छोर नहीं था मौत वजसके जीिन से वकसी ने कतई शवमनध ्दा नहीं थी तमु ्हंे नहीं पकु ारा और तब न वकसी ने हकु ्म वदया िो मर गयी न ही घोडा-गाडी में लाया गया। और तब उन्हें लगा उसका वजस्म अजनबी थे तमु एक बच्चा था। इस िाचीन ससं ार में िह िन मंे पली पसु ी जब वकसी इन्सान ने उन चेहरों के बीच मरी तमु ्हारे हाथों को छु आ। वजन्होंने उसे हमेशा मरते दखे ा था। इस पचे ीदा दवु नया की बेवहस तकलीफों से और िे बेवहस थे तमु वबल्कु ल अलग थे कौन क्षमा करता था उसे उसके दखु वलए तकरीबन तमु सबने वफर भी िह दवु नया को प्यार वकया घमू ती वफरी
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) उन्हीं चेहरों के इदध वगदध अपनी कोवशशें करके । जब तक मर ही न गयी। 4. बच्चों की रोिी कई हंै जो हमंे छोड जाते हंै उन्होंने रोटी नहीं खाई वबना हमारा इन्तजार वकये जो लकडी के बॉक्स में थी हम कह चकु े हंै लेवकन वचल्लाये जो कु छ हमें कहना था। इसके बजाय औक ज्यादा कु छ नहीं िे चट्टानें खाना चाहते थे हमारे और उनके बीच इसवलए हमारे चहे रे पत्थर हो जाते हैं बासी रोटी पर हमशे ा वबछु डते समय फफंू द उग आयी लेवकन हम कहते नहीं वबना खाई गई बहतु जरूरी बातंे िह यंू ही पडी रही और और तहों में रखते हैं आकाश की ओर घरू ती रही उसने गोदामों को बोलते सनु ा आह एक वदन ऐसा होगा वक लोग हम क्यों नहीं करते रोटी के वछलके की खावतर मदु ्दे की बात वक लड मरंेगे ऐसा करना होगा और महज गधं ों के स्िाद से वलजवलजे हो जाते हैं मजबरू होंगे पटे भरने के वलए क्योंवक हम नहीं करते बच्चे चले गये थे सरल शब्द िे थे रास्तों पर घमू ने हमारे दातं ों को ढके लते जो अनजाने दशे ों की ओर ले जाते थे िो बाहर जा वगरे और जहाँ ईसा के भक्त नहीं वमलते थे हम जसै े ही हसं े धमध के महन्तों ने और अब उन्हंे कु छ नहीं वदया हमारी ही सांसों मंे फं सते ह।ंै बवल्क उन्हंे यंू ही तडपने को छोड वदया सो अब माँ धमध के महन्तों ने मर चकु ी थी बच्चों के भखू से तडपते हुए दखे ा कल संध्या के समय वजनके चेहरे पीले और कु म्हालाये हएु थे कोई आदमी उसे दोबारा नहीं ला सकता उन्होंने
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) उन बच्चों के कु छ भी नहीं वदया वशवथल और वनश्चेष्ट भखू ा तडपने वदया नरक जाने की राह पर उलझे हुए वचपवचपे शिै ालों के समान सकं ट अब आ पहचुं ा एक दसू रे में गथंु े अब िे रोटी के वछलके की खावतर लडंेगे िहाँ मरे े लगं र डालने के ढीहे पर और महज गधं ों से भखू शान्त करेंग।े थमने की ताक में रोटी तो इससे पहले पशओु ं के वखलाई जा चकु ी है उनके ढीले शरीरों ने िह सड गई थी ईधं न महु यै ा वकया और बहुत सखू ी भी ऐसी ज्िाला के वलए इसवलए जो मनंै े खदु हे ईश्वर अपने आप में जलायी थी तमु अपनी दवु नया में वकन्तु वजन्होंने उनकी खावतर थोडी रोटी बचा रखना। मरे ी बगलों मंे मरे े सखु भरे वदनों के मजे मारे 5. नुची लड़वकयों के वलए उन्होंने वििाद भरी रातों में मझु से वकनारा वकया। कीच और भरू ी शिै ालों से भरे वछछले तालाब तले वबल्कु ल तपृ ्त वनवश्चंत और सतं ुष्ट िे छोड गये मझु े ले जायगे ा मझु े खबू झलु साये शतै ान वमट्टी तक खोद दी मरे े बढु ापे मंे और आसमान को और भी मवलन वकया पानी में गले बसु े वजस्मों को बाकी और मरे े वलए वदखलाने के वलए एक दवू ित दहे छोड गये जो मरे े पापी वजसमें वकसी वकस्म की आसवक्त शिे नहीं। रृदय के बोझ हैं 6. जनता की रोिी उदास और उचाट आसमान के नीचे न्याय, असल में िे चले जनता की रोटी है जो पयाधप्त होती है कभी
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) और कभी दलु धभ उसी तरह होता है जरूरी न्याय। कभी यह स्िावदष्ट होती है और कभी फीकी वदन मंे दलु भध हो जाती है रोटी कई बार तो क्षधु ा बन जाती है आिश्यक होता है यह भी और जब बसे ्िाद हो तो असंतोि। सबु हो शाम खोटे न्याय को फें क दो काम आराम और दशु ्वार समयों में जो वबना सचू ना और सरोकार के हो लोगों को दरकार होती है – न्याय की रोटी स्िाद के वबना न्याय धसू र होता है औप बासी न्याय जो विलवम्बत हो जाता चवंू क इतनी आिश्यक है – न्याय की रोटी ह,ै फें क दो तो दोस्तो – इसे पकायगे ा कौन ? यवद रोटी स्िावदष्ट और पयाधप्त हो रोटी को कौन पकाता है ? तो बाकी की चीजों से बचा जा सकता है दसू री रोटी की तरह ही वक एक समय मंे सब कु छ नहीं पाया जा न्याय की रोटी पकाई जानी चावहए सकता लोगों के द्वारा – काफी पौवष्टक और वजससे पयाधप्त रोटी िाप्त हो हमशे ा-हमेशा। वजस तरह रोज की रोटी ...................................................................................... वीणा भाविया : 7 वसतबं र को वदल्ली में जन्म। वदल्ली यवू निवसटध ी में वशक्षा के साथ ‘चयन’ बकु शॉप, मडं ी हाउस के सचं ालन मंे सहयोग। आईसीएसएसआर लाइब्रेरी में दो ििों तक काय।ध छात्र जीिन से ही िामपंथी विचारधारा के िवत झकु ाि। सेंटर फॉर डेिलपमटंे ऑफ इसं ्रक्शनल टेक्नोलॉजी मंे लाइब्रेरी का संचालन। यवू नसेफ के एक िोजके ्ट मंे ररसचध एसोवसएट का कायध। यनू ाइटेड नेशन्स डेिलपमटंे िोग्राम की फे लोवशप। स्लम के बच्चों के साथ एजकु े शनल-वलटररी िकध शॉप। दो ििों तक वदल्ली यवू निवसधटी मंे राजनीवत विज्ञान का अध्यापन। लपु ्त होती विदशे ी कहावनयों का संपादन-िकाशन। वशक्षा शास्त्री वगजभु ाई बघके ा की ‘वदिास्िप्न’ का पजं ाबी अनिु ाद नेशनल बकु रस्ट से िकावशत। पत्र-पवत्रकाओं मंे पसु ्तक-समीक्षा, बाल कविताए,ं साक्षात्कार। 1992 से सावहत्य चयन की वनदशे क। सावहत्य चयन द्वारा कु छ दलु भध पसु ्तकों का िकाशन। संपकध : पोस्ट बॉक्स ; 10527, जएे नय,ू नई वदल्ली – 110067 ईमले - [email protected] मोबाइल - 9013510023
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) रोज़ा आउसलेण्डर (Rose Ausländer) की दस कविताएँ अनुिादक: प्रवतभा उपाध्याय रोज़ा आउसलेण्डर (Rose Ausländer) का जन्म 11 मई 1901 को बूकोिीना (िततमान उक्रे न) मंे और वनधन 3 जनिरी 1988 ड्यूसलडोर्त (जमतनी) मंे हुआI रोज़ा आउसलेण्डर एक जमतन भाषी यहूदी कवि थीं. उनका अवधकाँश जीिन संयुक्त राज्य अमेररका और जमतनी मंे वनिातसन में व्यतीत हुआ. उन्होंने वलखा “शब्द ही उनका असली घर है I” अपनी कविता “मातृभूवम” में उन्होंने राष्ट्रीय पहचान और व्यवक्तगत पहचान को शब्दों के माध्यम से व्यक्त वकया है. यहाँ यह उल्लेखनीय है वक जमतनी को “वपतृभूवम-Vaterland” कहा जाता हैI रोज़ा आउसलेण्डर को उनकी पारदशी कविताओं के वलए जाना जाता है, वजसमें उन्होंने ससं ार के प्राकृ वतक आश्चयत तारों, मधुमवखखयों, फू लों आवद का बखबू ी वचत्रण वकया है , साथ ही साथ द्वीतीय विश्वयुद्ध के अपने अनुभिों का भी िणतन वकया हैI रोज़ा आउसलेण्डर के पास मात्र दो सटू के स थे, वजन्हें साथ लेकर वजन्दगीभर िह एक देश से दूसरे देश मंे भटकती रहीं. उनकी कविता Verregnete Abreise (Rainy Departure) में वनिातसन में “सूटके स” उनके जीिन का प्रतीक हैI उनका जीिन दु:ख और हार, विध्िसं (Holocaust) और वनिातसन से प्रभावित रहा. शब्द ही उनके गाढ़े के िर्ादार साथी, मातृभूवम और घर बन गए. उन्होंने जमतन एिं अंग्रेजी दोनों मंे वलखा. रोज़ा आउसलेण्डर की प्रवसद्ध रचनाएं हैं – Blinder Sommer. Vienna: 1965; Wir wohnen in Babylon. Gedichte. Frankfurt a.M.: 1984–1992; Die Sonne fällt. Gedichte. Frankfurt a.M.: 1984–1992; Braun, Helmut, ed. Ausländer, Rose. Die Erde war ein atlasweißes Feld. Gedichte 1927–1956. Frankfurt a.M.: 1985; Melin, Charlotte, ed. and trans. German Poetry in Transition. 1945–1990. Bilingual Edition. Hanover: 1999.
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) 1. जो तनू े चनु े हIंै I मातृभवू म (Motherland) 3. मझु े बस इतना िता है (Ich weiss nur) मर चकु ी है मरे ी पितभृ पू म िछू ते हो तमु मझु से दफना पदया है उन्होंने क्या चाहती हूँ मंै उसे आग मंे I मझु े यह नहीं िता मझु े बस इतना िता है पनवास करती हँू मैं पक ख़्वाब दखे ती हूँ मैं अिनी मातभृ पू म पक ख़्वाब जी रहा है मझु े “शब्द” में II और तरै रही हूँ मैं इसके बादलों में 2. प्रेम VI (Liebe VI) मझु े बस इतना िता है पक पमलंेगे हम दोनों पफर से प्यार करती हँू मंै इसंू ान को समदु ्र में िहाड़ बागान समदु ्र तू िानी की तरह जानते हैं पक बहुत से मदु ाय मंै कमल के फू ल की तरह रहते हंै मझु मंे तू मझु े ले जाएगा करूं गी मैं तेरा रसिान एक ही हैं हम आखूँ ों की सबकी सामनेI यहाँू तक पक तारे भी हंै आश्चयचय पकत बदल पलए हैं यहाँू रि दोनों ने सिनों मंे तरे े
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) आत्मसात करती हँू मैं अिने ही ये बझु ाते हंै आग जो जलती है तमु ्हारे भीतरI लम्हों को आदशे िर जानती हूँ इतना ही पवस्मयकारी क्षणों के ढुलक जाते हैं तमु ्हारी आखूँ ों से पक यह समय का खले है गालों के रास्ते नीचे वे I आगे-िीछे . रोक नहीं सकता इन्हंे कोई नहीं लते े हंै तमु से वे अनमु पत 4. तमु भी अभी भी यहाूँ हो (Noch bist Du ये हंै पवश्वसनीय नमकीन बँूदंे da) तमु ्हारे अन्दर के समदु ्र की II फें क दो अिने डर को 6. अके ले (Allein) हवा में शीघ्र ही रहती हूँ मैं अके ले हो जाएगा िरू ा समय तमु ्हारा गानों के साथ शीघ्र ही ऊिर उठेगा आकाश मरे े प्रश्न घास के नीचे से होंगे नहीं खत्म नहीं पगरंेगे कहीं भी सिने तमु ्हारे आकाश ज़बाव दते ा है नहीं अभी तक हाँू सगु धंू आ रही है लवगंू की गा रही है साररका नहीं िता मझु े प्यार कर सकती हो तमु अभी कहाँू प्रारम्भ होता है अतूं खोल सकती हो भदे शब्दों से और कहाूँ अतूं होता है प्रारम्भ पक तमु अभी यहाँू होI 7.भाषा (Sprache) बनो जो तमु हो दो वही जो है तमु ्हारे िास सेवा में रख लो मझु े अिनी 5. आसँू ू (Tränen)
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जीवनभर सूसं ार चाहती हूँ मैं श्वास लने ा तमु ्हारे अन्दर गमन (गपत) का प्यासी हँू मंै तमु ्हारी और करती हँू िान तमु ्हारा शब्द प्रपतशब्द अमन (शापन्त) का II मरे े स्रोत तमु ्हारे क्रोध की पचगंू ारी 9. मेरी संपदा (Mein Eigentum) जाड़े का शब्द सनु ्दर नीला रूंग यह अजनबी शहर पखलता है मझु में मरे ी सिूं दा बसूतं का शब्द सनु ती हूँ मंै िीछा करती हूँ मंै तमु ्हारा चीं चीं करती पचपड़या को दखे ती हँू नींद आने तक बहुरंूगी ित्ते उच्चारण करती हूँ सिनों का तमु ्हारे फव्वारे समझते हैं हम शब्द एक दसू रे के खले ते हुए बच्चे I प्रमे करते हैं हम एक दसू रे से II रहती हूँ यहाूँ मंै 8. मुझे नहीं पता (Ich weiß nicht) हज़ारों वषों से समय के साथ नहीं िता मझु े बदलते हुए पववके के पदन पकस तरह िथृ ्वी के साथ बदल जाता है और अनतंू आकाश के साथ II शनू्य मंे रात में 10. शुरू मंे शब्द था (Am Anfang war शनू्य मंे I das Wort) पदन और रात शरु में नहीं िता मझु े था शब्द कहाँू से कहाूँ तक और शब्द है शनू्य था ईश्वर के िास I उससे और ईश्वर ने पदया सजृ न करती हँू मंै हमें शब्द
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) और रहते थे हम है हमारा सिना शब्द में I और सिना है हमारा जीवन II और शब्द
टोमास ट्रान्सट्रोमर (Tomas Tranströmer) की कविताएँ जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 अनिु ादक: धमेन्र कु मार वसहंि (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) वषष 2011 के नोबेल परु स्कार से सम्माननत टोमास ट्रान्सट्रोमर (Tomas Tranströmer) का जन्म 15 अप्रलै 1931 को स्टॉकहोम, स्वीडन मंे हुआ। इनकी मााँ एक अध्यानपका थीं। जब ट्रान्सट्रोमर तीन वषष के थे तब इनके नपता द्वारा इनकी माँा को तलाक नदये जाने के बाद इनका पालन पोषण इनकी माँा ने अके ले नकया। इन्होंने स्टॉकहोम नवश्वनवद्यालय से मनोनवज्ञान और कनवता का अध्ययन नकया। ये स्वीडन के सबसे महत्वपणू ष कनवयों मंे से एक ह।ंै इनकी कनवताओं का पचास से भी अनधक भाषाओं में अनवु ाद नकया जा चकु ा ह।ै ये उच्चकोनट के कनव होने के साथ साथ उच्च कोनट के मनोवजै ्ञाननक भी ह।ंै मनोनवज्ञान का गहन अध्ययन करने के कारण इनकी कनवताओं मंे रोजमराष की नजन्दगी और प्रकृ नत के साधारण से नदखने वाले नचत्रों के माध्यम से मानव मन के सावषभौम पहलओु ं की एक रहस्यवादी अतं र्दनष ि उजागर होती ह।ै वषष 1990 में इनके शरीर का दानहना नहस्सा लकवाग्रस्त हो गया लेनकन इसके बावजदू इन्होंने वषष 2000 तक कनवता नलखना और प्रकानशत करवाना जारी रखा। ट्रान्सट्रोमर एक अच्छे नपयानोवादक भी ह।ैं इनकी कई कनवताएँा प्रनसद्ध सगं ीतकारों और संगीत की नवनशि धनु ों पर आधाररत ह।ैं लकवाग्रस्त होने के बाद इन्होंने अपने बायें हाथ से नपयानो बजाना सीखा। ट्रान्सट्रोमर कहते हैं नक नपयानोवादन ही एकमात्र कारण है नजसकी वजह से वो लकवाग्रस्त होने के बाद भी जीनवत ह।ंै कई सगं ीतकारों को इनकी कनवताओं से प्ररे णा नमली और कई संगीतकारों ने इनकी कनवताओं के नलए धनु ंे बनाई।ं लकवाग्रस्त होने के बाद इन्होंने शब्दों का कम से कम इस्तेमाल करना शरु ू नकया और काव्य के छोटे रूपों जसै े हाइकु इत्यानद मंे रचना करने लग।े यहााँ तक नक कु छ कनवताओं को परू ा करने में इन्हें कई वषष लग गए। ट्रांसट्रोमर बहतु कम शब्दों में शानन्त और र्दढ़ता से अपनी बात रखते हैं लेनकन उनकी कनवता फ़ासीवाद, बाजारवाद और मीनडया क्लीशे का परू ी ताकत से नवरोध करने में सक्षम ह।ै स्वीनडश भाषा को पढ़ सकने वालों की संख्या परू े नवश्व भर में मात्र एक हजार के लगभग ह।ै ऐसे मंे यह बात आसानी से समझी जा सकती है नक इनकी कनवता के अनवु ादकों का काम नकतना सराहनीय है नजनकी वजह से धीरे धीरे ये नवश्व भर मंे प्रनसद्ध हएु । इस संबंध में इनके अनवु ादक और घननि नमत्र राबटष ब्लाई का नाम उल्लेखनीय ह।ै नोबेल सनमनत ने इन्हें वषष 2011 के नोबेल परु स्कार से सम्माननत करते समय कहा नक ये ‘अपनी सघन, अद्धषपारदशी छनवयों के माध्यम से यथाथष का एक नया द्वार खोलते ह।ैं ’ इनके कनवता सगं ्रहों मंे सत्रह कनवताएाँ (1954), अधबना स्वगष (1962), नखड़नकयाँा और पत्थर (1972), नजन्दा और मदु ों के नलए (1989), सबसे बड़ी पहले ी (2006), स्मनृ तयों मरे ी ओर दखे ो (2011) इत्यानद प्रमखु ह।ैं
टोमास ट्रान्सट्रोमर (Tomas Tranströmer) की कविताएँ जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 अनिु ादक: धमेन्र कु मार वसहंि (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) तेज़ मीठी धनु एक काले नदन के बाद मैं हाइडन* की धनु बजाता हँा और मरे ी हथने लयााँ गनु गनु ी हो जाती ह।ैं चानबयाँा दबना चाहती ह।ैं नाज़कु हथौड़े नगरते ह।ंै अननु ाद हरा, सजीव और शांत ह।ै सगं ीत कहता है नक आजादी का अनस्तत्व है और एक व्यनि शहशं ाह का कर अदा करने से इनकार कर दते ा ह।ै मंै अपने हाथ अपनी हाइडनजेबों** के भीतर डालता हाँ और शानं त से दनु नया दखे ने वाला आदमी होने का नाटक करता ह।ँा मंै हाइडनझडं ा** लहराता हाँ जो कहता है हम आत्मसमपषण नहीं करेंगे मगर हमंे शानं त चानहए। सगं ीत ढलान पर बना शीशे का घर है जहााँ पत्थर उड़ते ह,ंै पत्थर लढ़ु कते हंै और पत्थर आर पार ननकल जाते हैं लेनकन एक भी शीशा नहीं टूटता। ------- *आनस्ट्रया के एक संगीतकार नजन्हें नसम्फनी और नस्ट्रंग क्वाटेट का नपता कहा जाता ह।ै टोमास ट्रान्सट्रोमर एक अच्छे नपयानो प्लये र ह।ैं **टोमास ट्रान्सट्रोमर द्वारा प्रयोग नकए गए नए शब्द
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अधबना स्िगग ननराशा और नचन्ता अपना अपना काम छोड़ दते ी हैं नगद्ध अपनी उड़ान छोड़ दते ा है आतरु प्रकाश बह ननकलता है प्रेत भी एक घटाँू पी लेते हंै और नदन में हमारे नचत्र हमारी नहमयगु ीन सभ्यता के रिरंनजत जानवर हर चीज अपने आसपास दखे ना शरु ू करती है हम सकै ड़ों बार धपू मंे जाते हंै हर आदमी अधखलु ा दरवाजा है जो हर आदमी को उसके नलए बने एक कमरे में ले जाता है हमारे पैरों के नीचे अनंत तक फै ला मदै ान है पेड़ों के बीच पानी चमक रहा है झील पथृ ्वी मंे एक नखड़की है दबाि मंे नीले स्वगष के इजं नों की गड़गड़ाहट बहतु तेज है हम काापँ ती हुई ज़मीन पर मौजदू हंै जहााँ समदु ्र अचानक गहरा हो जाता है - सीनपयााँ और टेलीफोन हवा की आवाज़ सनु ाते हैं सौंदयष को बस एक नदशा से जल्दबाजी में दखे ा जा सकता है खते में सघन मक्का, एक पीली धारा में अनेक रंग मरे े नदमाग में मौजदू बचे ैन साये इसी जगह उके रे जाते हंै जो मक्के मंे रंेगकर सोना बन जाना चाहते हंै
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अधं ेरा हो जाता ह।ै मैं आधी रात मंे सोने जाता हँा बड़ी नाव से छोटी नाव बाहर ननकलती है पानी पर आप अके ले हंै समाज का काला पेंदा धीरे धीरे दरू होता जा रहा है खुले और बिंद कमरे आदमी दनु नया को अपने काम के दस्ताने से महससू करता है दोपहर में वो थोड़ी दरे के नलए आराम करता है अपने दस्तानों को ताक पर रखकर जहाँा वो अचानक बड़े होकर फै लने लगते हैं और परू े घर को भीतर से अधं कारमय कर दते े हैं अधं कारमय घर वसंत की बयार के बीच बीच मंे पड़ते हैं ‘आम माफ़ी’ घास फु सफु साती है ‘आम माफ़ी’ एक लड़का परू ी ताकत से दौड़ता है उस अर्दश्य रस्सी पर जो झकु ी है आकाश की ओर जहाँा उसके भनवष्य का सनु हरा स्पप्न उड़ रहा है एक पतंग की तरह जो नकसी कस्बे से भी बड़ी है और उत्तर नदशा मंे ऊाँ चाई से आप दखे सकते हंै अतं हीन नीला मलु ायम लकड़ी का कालीन जहााँ बादलों की छाँवा नस्थर है नहीं, उड़ रही है
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) हरे टीले की बुलबुल हरी आधी रात को उत्तर नदशा में जहाँा तक बलु बलु की आवाज़ जाती है भारी पत्ते मदहोशी मंे झमू ते ह,ैं बहरी कारंे ननयान-लाइन की ओर दौड़ती ह।ंै बलु बलु की आवाज़ नबना कापाँ े गजँाू ती ह।ै यह मगु े की बागँा नजतनी मदभष दे ी है नफर भी खबू सरू त और घमडं से मिु ह।ै जब मैं जले में था ये मझु े दखे ने आई थी। तब मनंै े ध्यान नहीं नदया लने कन अब दे रहा ह।ाँ समय सयू ष और चन्द्रमा से नीचे बह बहकर सभी नटक नटक करती धनड़यों को धन्यवाद दते ा ह।ै लने कन यहाँा आकर समय का अनस्तत्व समाप्त हो जाता ह।ै के वल बलु बलु की आवाज़ है नजसके कच्चे स्वरों की झनकार रात मंे आसमान के चमकते हनाँ सये पर धार लगा रही ह।ै
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अंगोला के कवव एरवलण्डो बारबेइटोस (जन्म: 24 वदसम्बर 1940) की कववताएँ अनुवादक: राजा खगु शाल, अवनल जनववजय नाम: एरवलण्डो बारबेइटोस जन्म: 24 वदसम्बर 1940 स्थान: अंगोला प्रमुख कृ वतया-ँ अंगोला अंगोला अंगोलेमा, जब ढोलक की आवाज़ बदलती है छायाहीन आओ पेड़ डरो नहीं बाररश से यौनहीन स्त्री हवा में डसर्फ़ डनरुद्दशे ्य उड़ती डचडड़याूँ हंै । धलू हीन हवा अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजा खगु शाल पूछँ हीन कु त्ता । अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजा खगु शाल घास, अके ली घास साथी ! गीली हैं लकडड़याूँ घास में अके ली झील ख़त्म हो चकु ी हैं झील मंे अके ला फू ल माडचस की तीडलयाूँ और ठण्डी हो रही हंै फू ल पर मकई की रोडियाूँ अके ली मधुमक्खी अके ली । अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजा खगु शाल
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) डगरडगि को दखे कर जानमे न ! डगरडगि बदलता है तमु ्हारी आखँू ें जामनु हंै आग जसै ा लाल रंग खा जाऊूँ गा मैं उन्हें तमु ने मरे े भाई मझु े होना नहीं चाडहए महान् आग मंे फें क डदया उसे अन्धपे न का डर वह भरू ा हो गया भनु ा हआु । पर आत्मा जानमे न ! अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजा खगु शाल इश्क मरे ा है एक डर नरभक्षक अँग्रेज़ी से अनवु ाद : अवनल जनववजय
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) यूनाऩी कलव कं स्तालततन कवाफ़ी की कलवताएँ अनुवादक: सुरेश सि़ीि, लियूष दईया (जतम: 29 अप्रैल 1863 - लनधन: 29 अप्रलै 1933) मकानों, कहवाघरों और पास-पड़ोस का पररवशे जदनानजु दन की चलू ें बैठाते हुए । जजसे मनंै े दखे ा और सालों-साल अँग्रेज़ी से जजससे ह़ोकर गजु ़रा : अनवु ाद : सुरेश सलिि मनैं े तमु ्हें जसरजा अपनी खशु ी एक जक़ं दील काफी है । उसकी मजिम ऱोशनी अपनी उदासी के दौरान ज़्यादा मौजँू ह़ोगी, ज़्यादा रमर्ीय जब रंगतंे उभरंेगी... बहतु सारी घटनाओं से बहुत-से ब्य़ोरों से प्यार की रंगतें उभरंेगी । और अब तमु -सब एक जक़ं दील काफी है । आज रात कमरे में मरे े जलए अनभु जू त मंे बदल गए ह़ो । ज़्यादा ऱोशनी नहीं चाजहए । खबू ख़्वाब़ो-खयाली भरपरू जशद्दत और मजिम ऱोशनी— अँग्रेज़ी से अनवु ाद : सरु ेश सलिि इस खबू ख़्वाब़ो-खयाली से मैं सवारँू ँूूगा नज़्ज़ारे— ताजक रंगतें उभरें । प्यार की रंगतें उभरंे । जदवास्वप्न की-सी हालत में मैं बठै ा हँू । कला मंे समाजहत कर दी हैं मनैं े अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिि इच्छाएँू-अनभु जू तयाँू जसै े जक— अस्पष्ट चीज़,ें चेहरे या रेखाएूँ ब-े वक़्त मर गए ल़ोगों के खबू सरू त जजस्म, कु छेक धँधूु ली यादें अपरू ्ण प्रमे -प्रसंगों की । जकसी शानदार मक़बरे में उदासी के बीच क़ै द जसरहाने गलु ाब और पायतूँ ाने चबूँ ेली के फू ल, मझु े कला की सरपरस्ती में जाने द़ो : उसे पता है जक सौन्दयण के रूपाकारों क़ो वसै े ही हंै वे इच्छाएँू, ज़ो परू ी हुए जबना बीत गई,ं जजनमंे से जकसी क़ो भी कै से अरेहा जाए, तक़रीबन अतीजन्िय भाव से चाहत-भरी एक रात तक मयस्सर न हईु , जीवन क़ो परू ्तण ा दते े हएु प्रभावाजन्वजत के साथ—
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) या उसके बाद की खशु नमु ा सबु ह ही क़ोई । सबसे क़रीबवाजलयों से अभी तक धआु ूँ उठ रहा है ठंडा, जपघला हुआ और मडु ा-तडु ा । अँग्रेज़ी से अनवु ाद : सुरेश सलिि मैं उनकी तरफ दखे ना नहीं चाहता : आवाज़ें, प्रीजत-पगी और जमसाल बन चकु ीं उनकी शक़्ल मझु े उदास कर जाती है । उनकी, ज़ो मर गए, या— ज़ो मरे हओु ं की ही तरह उदास कर जाती है मझु े उनकी शरु ूआती ऱोशनी । मैं आगे, ऱोशन जक़ं दीलों क़ो, दखे ता हँू । हमारे जलए गमु ह़ो गए, उनकी । मैं पीछे मडु ना नहीं चाहता, दखे ना नहीं चाहता डरा हुआ हँू जक जकतनी तजे ़ी से वह काली कभी-कभार वे ख़्वाबों मंे हमसे बजतयाते हैं कभी-कभार स़ोच मंे गहरे डूबा जदमाग़ उनक़ो सनु ता है क़तार । लम्बी ह़ोती जाती ह,ै जकतनी तेज़ी से एक और बझु ी हईु जक़ं दील जा जमलती है और उनकी आवाज़ के साथ, पल भर के जलए जपछलीवाजलयों से । लौट आती हैं हमारी जज़न्दगी की पहली कजवता की आवाज़ंे— अँग्रेज़ी से अनवु ाद : सुरेश सलिि जसै े जक रात के वक़्त मजिम पडता जाता दरू स्थ सगं ीत । एक ऊबाने वाला जदन लाता है दसू रा जबलकु ल वसै ा ही उबाऊ । अँग्रेज़ी से अनुवाद : सरु ेश सलिि एक-सी चीज़ें घटेंगी, वे घटंेगी जफर... वही घजडयाूँ हमंे पाती हैं और छ़ोड दते ी हमें । आने वाले जदन गजु ़रता है महीना एक और दसू रे में आता । खडे हंै हमारे सम्मखु क़ोई भी सरलता से घटनाएूँ भाँूप ले सकता है आने वाली; जसै े जक— वे वही हैं बीते जदन की ब़ोजझल वाली । ऱोशन जक़ं दीलों की एक पाूतँ — और खत्म ह़ोता है आने वाला कल जबना एक आने वाला कल लगे सनु हरी, चमकीली और भरपरू जक़ं दीलें । अँग्रेज़ी से अनवु ाद : ि़ीयूष दईया बीत चकु े जदन पीछे जा पडे हंै हमारे, जसै े जक एक उदास क़तार; बझु ी जक़ं दीलों की,
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) बीते कल हवाख़ोरी करते एक सीमावती । पड़ोस में, मैं गजु ़रा उस मकान के नीचे जहाँू वह आइने के सामने गया और अपने पर एक नज़र डाली । अक्सर जाता था जब बहतु जवान था मंै । और सीधी की उसने अपनी टाई । वहाँू प्रमे ने अपनी अचंजभत करती मज़बूती से पाूचँ जमनट बाद जकड ली मरे ी दहे । वे पावती वापस लाए । इसे ले वह चला गया । और बीते कल लेजकन परु ाना आइना जजसने देखे थे और दखे े अपने अजस्तत्व के लंबे, लबं े सालों के दौरान, ज्यों मंै गजु ़रा परु ानी सडक के बगल से हज़ारों चीज़ें और चहे रे, दकु ान,ें बाज़-ू पटररयाूँ, पत्थर, दीवालें, बाल्कजनयाँू और जखडजकयाूँ इस दफे लेजकन परु ाना आइना आनजं दत था, बनी थी संदु र एकाएक प्रेम के जादजू ़ोर से; और इसने महससू ा गवण जक इसमें पाया था अपने में कु छेक लम्हों के जलए अजनन्य सौंदयण का एक जबंब । वहाँू असदंु र कु छ भी नहीं बचा था । और ज्यों मंै खडा रहा वहाँू, और दरवाज़े क़ो दखे ा, अँग्रेज़ी से अनुवाद : ि़ीयूष दईया और खडा रहा, और झकु ा मकान तले, मरे े ह़ोने ने लौटा जदया वापस सारा इस याद क़ो मंै बखानना चाहगँू ा... जमारखा आनंदमय ऐजन्िय जज़्बा । लेजकन अब इतना जझलजमला गई है यह...शायद ही बचा है कु छ - अँग्रेज़ी से अनुवाद : ि़ीयूष दईया ज़माना पहले थी यह क्योंजक, मरे ी मसें भीगने के सालों म।ंे था आलीशान घर के दाजखले पर एक आदमकद, बहतु परु ाना आइना, एक त्वचा माऩो चमले ी से बनी... जजसे ह़ो न ह़ो अस्सी बरस पहले त़ो खरीदा ही गया था अगस्त की उस शाम - क्या वह अगस्त था ? - उस । शाम... एक असाधारर् खबू सरू त लडका, एक दज़ी का नौकर अब भी ला सकता हूँ पर याद में आखँू ंे : नीली, मंै (इतवार के जदनों मंे एक नौजसजखया धावक) स़ोचता हँू वे थीं... खडा था एक पासणल थामे । इसे सौंप जदया उसने अरे हाूँ,नीली : एक नीला नीलम । जकसी क़ो घर मंे, ज़ो इसे अदं र ले गया पावती लाने । दज़ी का नौकर अँग्रेज़ी से अनुवाद : ि़ीयूष दईया छू ट गया अके ला अपने संग, और उसने इतं ज़ार जकया
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) जकसी क़ो यह बरामद करने की क़ोजशश मत करने द़ो जक मैं कौन था उस सब से ज़ो मनंै े कहा और जकया । अडचन थी वहाूँ जजसने बनावट बदल दी मरे े जीवन के लहज़े और करनी की । अक्सर वहाँू अटकाव था एक ऱोक लेने क़ो मझु े जब मैं बस ब़ोलने ब़ोलने क़ो था । मरे ी जनतान्त अलजित करनी मरे े खजु फया लेखन से - मंै समझा जाऊं गा के वल इन सबसे । लेजकन शायद यह इस जानलेवा छानबीन के लायक नहीं है ख़ोज लने े के जलए जक असल मंे कौन हूँ मैं । बाद में । एक ज़्यादा मजूँ े-जखले समाज मंे जबल्कु ल मरे े जसै ा बना क़ोई और जदखाई दगे ा ही जफरता छु ट्टा । अँग्रेज़ी से अनवु ाद : ि़ीयूष दईया
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) क्रिस्टोफर ओक्रिग्बो, डेक्रिस ब्रटू स िी िक्रिता िा अििु ाद अंग्रेजी से अििु ाद- िु मार मुिु ल हमारे पीठ पीछे आ चकु ा है चदं ्रमा एक.दसू रे पर झकु े हम दो दवे दारों के मध्य चढते चदं ्रमा के साथ हमारा प्यार हमारे आददम एकांत मंे वास कर रहा है अब छायाएं हैं हम दिपटे एक.दसू रे से शनू्य को चमू ती छायाएं के वि। चनै से सोओ मरे े प्यारे चनै से सोओ व्यस्त तटों पर बदं रगाहों की रोशनी चमक रही है अधं ेरी सरु ंगों से दतिचटटों की तरह गजु र रही हैं पदु िस की गादडयां दटन की चादर से बनी घरों की छतंे चरमरा रही हंै दहसं ा के नाम पर फंे के जा रहे हंै खटमिों से भरे दचथडे हवा में तरै ती सायरण की आवाज सा व्याप्त है आतं ररक भय। ददन भर की तदपश से रेदगस्तान और पवतव ों का आक्रोश धडक रहा है पर कम अज कम इस जीदवत रादि के दिए मरे े दशे ए मरे े प्यार सोओ चैन की नींद सोओ। कु मार मकु ु ि / Kumar Mukul, Rajasthan Patrika, kesargadh,Jawahar lal Nehru Marg, Jaipur, Rajasthan, Mo- 8769942898, http://hindiacom.blogspot.com/ [कारवॉंKARVAAN]
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) सामान्य समझ / एलन ब्राउनजॉन (इगं्लैण्ड) अनवु ादक: प्रो. अपवू ाानंद एक खते िहर मज़दरू , तिसके एक बीवी और चार बच्चे ह,ंै पािा है 20 तित ंिग एक हफ़्िे के . ¾ से आिा है भोिन, और पररवार के सदस्य िीन बार खाना खािे हैं प्रतितदन. िो तिर प्रति व्यति प्रति खरु ाक तकिना पडा? एक मा ी को, तिसे तम िा है 24 तित िंग प्रति सप्ताह, िमु ाना ा होिा है 1/3 अगर वह काम पर दरे से आिा ह.ै 26 हफ़्िे के अन्ि मंे उसे तम िे हैं 30.5.3 पौण्ड. तकिनी बार वह दरे से आया ? नीचे दी गई सचू ी मंे सिखं ्या दी हुई है गरीबों की यनू ाइटेड तकंि गडम मंे, और परू ा खचा गरीबों को दी िाने वा ी राहि का. िो पिा करो औसि संिख्या गरीबों की प्रति दस हज़ार व्यति । 28,000 ोगों की सेना में से 15% मारे गए, 25% घाय हएु . िो गणना करो तक तकिने ोग बचे रह गए यदु ्ध करने के त ए ?
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अर्जेण्टीना के कवि चे ग्िेिारा की एक कविता अँग्रेज़ी से अनिु ाद : नीलाभ आओ चलंे, तब वहाूँ तमु ्हारे साथ-साथ, भोर के उमगं -भरे द्रष्टा, आचख़ऱी चभडन्त की प्रत़ीक्षा में बेतार से जडु े उन अमानचचचित रास्तों पर हम होंगे, तैयार । उस हरे घचडयाल को आजाद कराने चजसे तमु इतना प्यार करते हो । चजस चदन वह चहसं ्र पशु कयबाई जनता के बरिों से आहत हो कर आओ चलें, अपऩी जख़्म़ी पसचलयाूँ चाट रहा होगा, अपने माथों से हम वहाूँ तमु ्हाऱी बगल में होंगे, --चजन पर चिटके हैं ददु मद बाग़ी नक्षि-- गवद-भरे चदलों के साथ । अपमानों को तहस--नहस करते हुए । यह कभ़ी मत सोचना चक वचन दते े हैं उपहारों से लदे और हम चवजय़ी होंगे या मौत का सामना करंेगे । शाह़ी शान-शौकत से लैस वे चपस्स जब पहले ह़ी धमाके की गजूँ से हमाऱी एकता और सच्चाई को चस पाएगूँ े । जाग उठेगा सारा जगं ल हम उनकी बन्दकें , उनकी गोचलयाूँ और एक कवाँूरे, दहशत-भरे, चवस्मय मंे एक चट्टान चाहते हैं । बस, तब हम होंगे वहाँू, और कु ि नहीं । सौम्य अचवचचलत योद्धाओ, तमु ्हारे बराबर मसु ्तैद़ी से डटे हुए । और अगर हमाऱी राह मंे बाधक हो इस्पात तो हमंे कयबाई आसँू ओु ं का चसफद एक जब चारों चदशाओं मंे फै ल जाएग़ी कफन चाचहए तमु ्हाऱी आवाज : चजससे ढूँक सकें हम अपऩी िापामार हड्चडयाँू, कृ चष-सधु ार, न्याय, रोट़ी, स्वाध़ीनता, अमऱीकी इचतहास के इस मकु ाम पर । तब वहीं होंगे हम, तमु ्हाऱी बगल में, और कु ि नहीं । उस़ी स्वर में बोलते । और जब चदन ख़त्म होने पर चनरंकु श तानाशाह के चवरुद्ध फौज़ी कारदवाई पहुचँू गे ़ी अपने अचन्तम िोर तक,
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (तिदेशी भाषा कतििा तिशेषांक) अर्जेण्टीना के कवि पाब्लो नेरुदा की कविताएँ अनिु ादक: मधु शमाा, सुरेश सवलल नाम: पाब्लो नेरुदा र्जन्म: 12 र्जुलाई 1904 स्थान: अर्जेण्टीना वनधन: 23 वसतम्बर, 1973) स्त्री दहे , सछे द पहाडङयाँा, उजली रानंे तमु डबल्कु ल वसै ी डदखती हो जसै ी यह दडु नया समपणप मंे लेटी— मरे ी रूखी डकसान दहे धासँ ती है तमु में और धरती की गहराई से लते ी एक वशं वकृ ्षी उछाल । अके ला था मंै एक सरु ंग की तरह, पक्षी भरते उङान मझु मंे रात मझु े जलमग्न कर दते ी अपने परास्त कर दने े वाले हमले से खदु को बचाने के वास्ते एक हडथयार की तरह गचा मनंै े तमु ्ह,ंे एक तीर की तरह मरे े धनषु में, एक पत्थर जसै े गलु ले मंे डगरता है प्रडतशोध का समय लेडकन, और मंै तझु े प्यार करता हँा डचकनी हरी काई की रपटीली त्वचा का, यह ठोस बेचनै डजस्म दहु ता हँा मैं ओह ! ये गोलक वक्ष के , ओह ! ये कहीं खोई-सी आखाँ ें, ओह ! ये गलु ाब तरुणाई के , ओह ! तमु ्हारी आवाघ धीमी और उदास ! ओ मरे ी डप्रया-दहे ! मैं तरे ी कृ पा मंे बना रहगँा ा मरे ी प्यास, मरे ी अन्तहीन इच्छाए,ँा ये बदलते हुए राजमागप ! उदास नदी-तालों से बहती सतत प्यास और पीछे हो लेती थकान, और यह असीम पीङा !
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