सम्पादकीय एक सषु पु ्त कली जो न जाने कब से एक अनचाही ननद्रा में थी अचानक एक तजे हवा के झोंके से जाग उठी l उसकी बाहरी हरी पंखुड़ियों ने जजन्होंने आपस में एक दसू रे को जक़ि रखा था उस हवा के स्पर्श से अचकचा कर अलसाते हुए आखं ें खोली और जागते ही बस एक अंग़िाई क्या ली कक वो जक़िन ढीली हो कर टू ट गई l उसके अंदर छु पी हुई सोई, अलसाई रंगीन पंखुड़ियों में खखलने की जो चाहत मदु ्दतों से उम्मीद से थीl वह खखलने, खुलने, हंसने खखलखखलाने को तत्पर थी l बस एक हवा के झोंके की तलार् थी उन्हंे और जानते हैं यह हवा का झोंका क्या था और कौन था? यह था समय, अनुकू ल समय, समय के झोंके ने सहारा ददया और सुषुप्त कली के भीतर की भावनाएं जाग उठी l देखती हूं बाहर की कु छ पंखडु ़ियां खुर् हैं, व्यस्त है, उम्मीद है अंदर बैठी पंखुड़ियां भी बाहर की पंखडु ़ियों के चेहरे की चमक और रौनक देखकर धीरे-धीरे अपनी तंद्रा भंग करेंगी l खलु ंेगीं, खखल उठंे गी l उनकी सुवास, सौरभ और परागकण हर तरफ स्पंदन अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
बबखरेंगे और नई संतनत को भी अवसर ममलेगा l हम सब अपने जीवन मंे समय की राह देखते हैं बहुत सी चीजों के मलए l रोजमराश के काम तो होते ही रहते हैं, कु छ खास कामों के मलए हम देखते हैं, सोचते हंै कक जब सही समय होगा तो यह काम आप ही हो जाएगा और देखो एक समूह बन गया अचानक या यूं कहंे सही समय आ गया था l इतने सारे लोगों का एक साथ सही समय आ जाना भी तो एक चमत्कार ही लगता है इतने सारे लोग एक साथ एक समय एक जगह पर हंै अपनी बातंे मलख रहे हंै सनु रहे हैं भाषा को भी पक़ि रहे हैं उसका सहारा ले रहे हंै,कलम भी हाथ में है घर पररवार ररश्ता समाज सब साथ साथ कदमताल कर रहे हैं सब कु छ समानातं र चल रहा है ककसी ने अपना कोई काम छो़िा नहीं है बस दैननक कायों से हटकर अपनी एक रुचच को, अपनी भावनाओं, वेदनाओं, संवेदनाओं और अनभु वों को आकार ददया है l लोगों के पास भावनाएं होती हंै, सोच होती है, कई बार समय भी होता है, मलखना भी चाहते हैं पर मंच नहीं होता l सादहत्य साधक मंच वह मंच है जो एक जैसी सोच रखने वाले और कलम से उसे कागज पर उतारने वाले कारीगरों का पररवार है l मंै देख रही हूं उन कमलयों की पखं ुड़ियों के वलय खलु रहे हंै, ब़िे हो रहे हैं आर्ा है जल्द ये इतने ब़िे होंगे की समहू से बाहर भी इनके अपने समहू होंगे और म.ैं ... इतने सारे वलयों को अपने हृदय मंे सहेजे एक पूणश वतृ ्त हो जाऊं गी l स्पदं न अंक 3 रचना दीक्षित जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
1. जेठ की दपु हरी में - रचना दीक्षित Page |1 जठे की दपु हरी मंे जलु ाई 2023 आम और अम्बौरी में कोयल और चगलहरी में मन के आंगन और देहरी मंे छाया उस छरहरी में खरु ्बू तुम फु रहरी मैं दग्ध प्रज्वमलत बयारी में तन की क्यारी क्यारी मंे फल सब्जी तरकारी में हल्की झीनी सी सारी में राधा और बनवारी मंे गन्ना तुम खाडं सारी मंै इतने बरसों की दरू ी में उस र्ाम एक मसदं रू ी में उन आखँ ों भूरी भरू ी मंे तेरी खरु ्बू कस्तूरी में मरे ी इक मजं रू ी में आए पास तुम परू ी मैं प्यार की खमु ारी मंे मरे ी अलकों कजरारी में स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
Page |2 अपनी उस लाचारी में सासं ों भारी भारी मंे हम दोनों की र्ुमारी में जीत गए तुम हारी मैं 2. हवा - मनोरमा मसहं सववश ्यापकता है इसका गणु , जीवन का ये आधार, हवा बबना मतृ ्य है, ये समस्त ससं ार, बबना इसके एक पल में सब, जीवन जाते हार हवा से ही सम्भव होता संचरण और र्ब्दों का संसार, बबना इसके होते सभी,मूक बचधर, लाचार, पंचभूतों में प्रमुख ये, है सजृ टट का आधार !! 3. पकं ज गुप्ता ए हवा जरा रुको! जरा अपना पता दठकाना तो बताना। कहां से आती हो, कहां चली जाती हो? कहां रहती हो तुम? स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
कभी बबन बुलाए आधं ी की तरह आ जाती हो, Page |3 कभी तफू ान के साथ ममलकर कहर ढाती हो। जुलाई 2023 पर जब मंै बलु ाता हूं, तो कहां गायब हो जाती हो? कभी दीपक बुझा देती हो, कभी आग भ़िका देती हो, गुस्से में तुम ककसी की नहीं सनु ती। ककसी को चगरा देती हो, ककसी को उ़िा देती हो। जब मौसम गमश होता है, मंै तमु ्हंे ककतना याद करता हूं, अब रुक गई हो तो अपना फोन नंबर दे कर जाना। ए हवा अपना पता दठकाना तो बताना। 4. पकं ज र्माश ये हवा का झोंका ददखा गया चहे रा उ़िा के आँचल कक ननहारती गोपपयां ख़िी गली मंे लगा के आँचल इन हवाओं ने कै से उ़िाया था यह हमारा आचँ ल यंू खीचं ने की आदत तो मोहन की थी हमारा आँचल स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
यह माया मंे फं सी दनु नयां ना मानगे ी न माना है Page |4 यह अनपु म कृ टण प्रमे ा भजक्त का महज़ बहाना है जलु ाई 2023 5. हवा का आंचल - रचना दीक्षित जब जब मरे ा आंचल लहराया मरे े बालों ने मरे े गालों को सहलाया मसहरन सी हुई मझु े लगा तमु हो पर तुम न थे जब जब सांसंे बेतरतीब हुईं मरे े माथे पे पसीना छलछलाया कोई सकु ू न दे गया मझु े लगा तमु हो पर तमु न थे जब जब खख़िकी का कांच थपथपाया मेरे द्वार पर ककसी ने खटखटाया एक उम्मीद जगी मझु े लगा तमु हो पर तुम न थे जब जब मेरी चनू र तरे ी छत पर हो कर आई स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
मेरी सांसंे तेरी छत पर पसरायीं Page |5 ददल जोर से ध़िका मुझे लगा तमु हो जलु ाई 2023 पर तमु न थे आज प्रेम पार् से ननकल बाहर आई धरती आकार् से ममल मुसकाई एक सुकू न मेरी ओर बढा मझु े लगा तुम नहीं हो कफर हवा ने आचं ल लहराया..... 6. पप्रयकं ा श्रीवास्तव चचं ल हवा ने आज , आंचल ही उ़िा ददया। मन के कोरो मंे नछपा, कृ टण प्रमे उजागर कर ददया।। अदं र नछपी मेरे कान्हा की, सरू त को जग को ददखा , जमाने मंे मुझे , रुसवा कर ददया। प्रेम चिु मंे बसी , स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
ननपवकश ार काया को , Page |6 साकार ककया।। जुलाई 2023 झूम उठी मंै मस्त मलंग, नाच उठा मन का मदृ ंग , ददल के तार खनक गए, सरगम की गंूजे उठी । आज कु छ पल के मलए ही सही, तमु ने इस मीरा को राधा बना ददया।। 7. समीिा र्खे र तमाम कोमर्र्ें कीं दहज़ाब मैं रखने की सब नाकाम हो गई, मरी न जाने ककस रुख़ से आई हवा बने काब कर गई, ममली जो नज़र महबूब ए यार से ददल बेकरार कर गई। 8. ऐ हवा - राजश्री मंै माटी की देह, तमु प्राण वायु हो, मरे े अजस्तत्व का, तत्व भाव हो, स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
सुलझाती, Page |7 सहलाती, मेरे विृ ों से के र्ों को, जुलाई 2023 कभी मारती, गरम थपे़ि,े फल से नरम, कपोलों को, प्राखणत करती, सजे वस्र से, फ्लोरा- फोना दोनों को, लहराती, फह राती, आँचल रोमाचं चत करती, मेरे धाररत अगं ों को, रुद्र रूप मंे, प्रलय मचाती, सबक मसखाती मुझमंे व्यापपत पिपातमय स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
अतं रमन को Page |8 ऐ हवा, जुलाई 2023 मैं माटी की देह, तमु प्राण वायु हो 9. नीलम पाठक अदृश्य हो अमूल्य हो स्पर्श की अनुभूनत हो प्राणों की तमु झंकार हो देहावरण श्रगंृ ार हो आंचल तुम्हारा नहे व्रत गगन तक लहरा रहा धपू में चल एक पचथक प्रेम पार् पा रहा सजृ टट के हर कण में हो चगरर, कानन, नददयों मंे उपवन, प़े िो की हर पत्ती में हो र्ीतल सी मन्द बयार हो लयबद्ध सी रफ्तार हो जीवन हो सगं ीत हो स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
क्रु द्ध हो तुफान हो Page |9 कौन हो आयी कहां से जज़न्दगी की र्ान हो जलु ाई 2023 अदृश्य हो अमलू ्य हो स्पर्श की अनुभूनत हो र्ायद हवा हो या हवा ही हो।। 10. नीलम पाठक यमुना का तट हो बंर्ीवट हो राधा की पायल संग मोहन की बरं ्ी हो मयरू ों का नतनश हल्की घटा हो नछटके जुन्हाई मंे चन्दा का छु पना और और थो़िा ननकलना आचं ल हवा का बेला प्रणय की फू लो की वषाश हो स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
प्रेमी यगु ल पर P a g e | 10 राधा न राधा कृ टणा न कृ टणा जलु ाई 2023 कृ धा बन सभी पर कृ पा हो रही है।। 11. आर्ीष - रचना दीक्षित मंै एक माँ हूँ... पर मैं तमु ्हे हर माँ की तरह ये आर्ीष नहीं दंगू ी, कक सरू ज बनो, सरू ज की तरह चमको, छा जाओ परू े ब्रह्माण्ड पर, वर् में कर लो पूरी धरती, बधं जाओ एक समय सीमा मंे अपपत,ु मैं तमु ्हंे आर्ीष दंगू ी तुम चादँ बनो, कु छ कम चमको, यथाथश में होते हुए भी कभी अपनी उपजस्थनत न दजश करा पाने का ददश समझो स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
Page |2 अमावस के चाँद से अपने पास बबखरे नन्हे मसतारों से घलु ो, ममलो, उन्हें भी चमकने का अवसर दो दजू के चाँद की तरह, कभी वेदना, सवं दे ना, प्रणय और बबछोह को व्यक्त करने का माध्यम बनो, कहीं ककसी प्रमे ी यगु ल को सरं िण दो, अपने उजाले में, एक पूनम के चादँ की तरह और हाँ ! कभी सरू ज की पूणश उपजस्थनत मंे ददन के उजाले मंे, आकार् के ककसी कोने मंे, सूरज से मसफश चदं कदमों के फासले पे, अपने होने को प्रमाखणत करो ताकक लोग पछू ें ये ककसका चाँद है जो आकार् में सूरज के सामने भी दटका है स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
12. पकं ज र्माश Page |3 मरे ी इस जजदं गी के सखु श पन्नों पर जलु ाई 2023 भावनाओ की मलखी कु छ इबारतें मेरे जीवन मंे है कभी धूप कभी छांह मेरे अनभु वों से अलंकृ त हैं ये इबारतंे सबं धं ों की नींव पर ख़िी ये इमारतंे ननदं ा और प्रर्ंसा से सजी ये इबारतें दुु ःख और खरु ्ी से सजी ये इबारतंे र्ब्दों से गढी हंै मनैं े कु छ इमारतें मरे ी कपवता, मेरे दोहे, गीत मेरे और गजल 'कमळ' जजंदा रहे ना रहे पर जजंदा रहंेगी मरे ी इबारतें 13. नीलम पाठक हाथन में लाल गलु ाल मलए पपय सगं खले न चली होली जब बांह पक़ि लई सैया ने स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
Page |4 हाय-हाय कत मुहं लाल भई बबन लाल गुलाल भई होली। 14. अपव ओबरे ॉय ज़रा सी जज़न्दगी मंे व्याधान बहुत है.. तमार्ा देखने को यहाँ इंसान बहुत है., और कोई भी नहीं बताता ठीक रास्ता यहाँ... अजीब से इस र्हर में नादान बहुत है.. ना करना भरोसा भूल कर भी तमु , यहाँ हर गलती मंे बईमान बहुत है.. और ढूंढते कफरते है ना जाने क्या पाने को., लगे रहते है जगु ा़ि में परेर्ान बहुत है., खदु ही बनाते है पचे ीदा जज़न्दगी को वरना तोह जज़न्दगी के नुसके आसान बहुत है... ज़रा सी जज़न्दगी मंे व्याधान बहुत है.. तमार्ा देखने को यहाँ इंसान बहुत है. स्पंदन अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
15. भोर – रचना दीक्षित Page |5 छं टने लगा धरा से अब तो, जलु ाई 2023 पसरा हुआ नतममर आच्छादन नील तमस का अतं समय है, टू ट रहा धरती से बधं न दरू गगनचमु ्बी मर्लाओं पर, आतुर बठै े हंै सब दहम कन उनको अपने प्याले में भरने को, घूम रहे हैं इत उत घन बहका रही धरा को अब है, पटु प पराग औ सुरमभ की बबछलन र्टु क समीर की सरगम, लगी चाटने है तदु हन कन अरुखणम पीत हरीनतमा देखो, बबखर रही है समु न समु न ये ककसे ररझाने को प्राची, इतराती आगं न आगं न, संके त और संवाद कह रहे आने को है नवयौवन देखो कै से पवजस्मत करता, ये सासं ों में भरकर जीवन स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
ये दहमकर का है पुनगमश न Page |6 और रपवकर का पुनरागमन जुलाई 2023 16. अपव ओबरे ॉय तेरा जाना था कक लफ्ज़ों का रूठना था तेरा रूठना मनाना और मोहब्बत को मलखना था ना ददल करता है अब कलम उठाने का ना अब कागज़ों पर ददश उ़िले ना अच्छा लगता है। मलखने वाले सब मलखते हंै......; प्रेम मलखते हंै, नफरत मलखते हैं ग़रीबी मलखते हैं, ददश मलखते हैं वस्ल मलखते हैं, दहज़्र मलखते हंै आसमां मलखते हैं, जमीं मलखते हंै समन्दर मलखते हंै,सहरा मलखते हैं लेककन.........??? मेरे पास बस एक उदास कहानी है और हर लफ़्जज़ उसी की तजमुश ानी है।। हा.ं ......; मेरे अल्फाज़ ही पदाश हैं ,मेरे चहे रे का मैं हूं ख़ामोर् जहां, मझु े वहीं से सनु नए। स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
Page |7 17. पंकज र्माश गहन ननद्रा की आगोर् मंे जब सारी दनु नया समाती है। र्नै र्नै वो नीचे देख धरा को तब मदं मंद मुस्काती है.. र्ीतल वायु मद्धम सुर में अपना मधरु गान सनु ाती है। ओस भरी रूपहली चादर कफर जमीं की तरफ आती है... मोती सी अनठू ी चमक मलए हर झौंके के साथ आती है। हरी दबू पर बदूं ों की पवर्ाल चादर सी बबछ जाती है.. ये ओस की बूंद, जब जमीन पर आती है ... चमकते मोनतयों सी प्रकृ नत पर आच्छाददत हो जाती है, प्रकृ नत के हर अरं ् मंे देखो ये कै से समादहत हो जाती है । बादलों से जुदा होने पर भी देखो नवीन सजृ न कर जाती है हर सबु ह दृग बबदं ओु ं भरी कु छ आखं ों मंे आस जगाती है ... ये ओस की बदंू , जब जमीन पर आती है...... स्पदं न अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
Page |8 18. आंगन का कजश - राजश्री सरू ज की सनु हरी ककरणें मरे े कमरे की खख़िककयों से अदं र आवाहन कर रही थीं, मंै उठकर कमरे के परु ाने दरवाजे को खोलकर घर के आंगन की थो़िी सी ऊँ ची उठी दीवार पर बठै कर, नदी के बहते पानी में ककरणों के प्रनतबबबं को ननहारने लगा, मझु े अपना बचपन याद आ रहा था, ककतने पत्थर एक के बाद एक फंै कता था, पानी के बनते बबग़िते बुलबुलों को देखने के मलए, नदी पार छोटे छोटे बच्चे पीठ पर बस्ते लटकाये हुए जा रहे थे, दरू वही पाठर्ाला नज़र आ रही थी जहाँ से मनैं े भी किा तीन की पढाई पूरी की थी, पपता जी की नौकरी सने ा मंे होने के कारण ननै ीताल के ब़िे स्कू ल में दाखखला करा ददया, सपने पूरे करने मंे जी जान से जुट गया, क़िी मेहनत के बाद सने ा मंे अचधकारी बन गया। र्हरी ममै साब मरे ी अधाचां गनी जजनको गावँ मंे रहना रास नहीं आता था , गावँ जैसे छू ट ही गया था, घंटों हो गए सोच में डू बे, तभी माँ ने धीरे से कं धे पर हाथ रख कर, गरम चाय का चगलास थमा ददया, नीदं भी उ़िन छू सी हो गयी थी, माँ की बगल मंे ख़िी, चहे रे पर अनेको झुररशयाँ प़िी बजु गु श अम्मा खडी थी, ददमाग पर जोर डालने पर याद आया अरे !ये तो बगल वाली ताई है, हर रोज आगं न मंे बट्टे से अखरोट तो़ि कर खखलाती थी, तीस साल पहले की यादंे ताजा हो गयीं, माँ की आखँ ों में चमक थी, मेरी तारीफों के लम्बे लम्बे पुल बाँध रही थी, मन हपषतश हो रहा था, वातावरण में बहती हवा, चारों तरफ खखले फू लों को झकझोर रही थी, मानो कह रही हो, हे देव भमू म पुर माँ की आखँ ों के तारे अपनी माँ की आखँ ों की चमक धमू मल मत होने देना, इस आगं न में अपनी मसु ्कान से, इस बूढी माँ की आखँ ों को नम न होने देना, इस आंगन का कजश चकु ाते रहना । 19. पप्रयंका श्रीवास्तव सारी रात आसमान मंे, बबताने के बाद सुबह सबु ह, पत्तों पर प़िी, मोनतयों सी चमकती, स्पंदन अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
Page |9 ये ओस की बूदं ंे । सरू ज की ककरणों से, सुनहरी हुई, ये ओस की बदंू ें।। धीरे धीरे भाप बन , अपना अजस्तत्व खो , जीवन के िण भंगुर, होने का सदं ेर् देती यह, ओस की बूंदंे। दखु का कौन सा कारण, कब ककसे कै से सूखा दे, पता ही नही चलता।। कफर भी ... जजदं गी भले छोटी हो, पर खबू सूरत हो, इन ओस की बूदं ों, की तरह..... स्पंदन अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
20. राजश्री P a g e | 10 ओस की बँूद सा जुलाई 2023 िण भंगरु जीवन, सरू ज की ककरणों से प्रनतबबबं बत होता, मोती सा भ्रममत होता; कभी मखमली दबू पर इतराता, कभी पुटप और पात पर बन इठलाता, कभी स्वानत निर आस भर सीप अतं ुः तन भाग चगर गपवतश मन कर , मोती बन ने की चाहकरममट जाता ओस की बँदू सा िण भगं ुर जीवन स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
21. पंकज र्माश P a g e | 11 यह ओस की नन्ही-सी बंूद जलु ाई 2023 मसखलाती है मानव को जीवन का सार , कक जाना तो सबको है एक ददन पर जब तक है जीना हँसत-े मसु ्कु राते ही जीना , इसी आस में कक कफर नया ददन, नई भोर होगी और कफर से ओस की एक नन्ही बंदू पल्लपवत होगी ! 22. ओस की बंदू े - मनोरमा मसहं र्ातं समीर, हवा में नमी और स्वच्छ चादँ नी की ककरणों पर होकर आरूढ, चली धरा से ममलने, रूप धरा मोनतयों सा, बनकर ओस माला, बबखर कर तरु पल्लव पर, ननर्ा से ऊषा तक का अल्प समय की मुलाकात, कफर रजश्म रथ पर होकर सवार, ककया प्रस्थान, स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
दे ददया सदं ेर् मानव को P a g e | 12 िणभगं ुर और सुदं र अथपश णू श जीवन का, जलु ाई 2023 पपघलती हुई ओस की बदंू े ने !! 23. दीजप्त मसन्हा सुबह सुबह रोज सूरज के उगने से पहले र्ीर्े सी चमक ननखरती उस की बंदू े ककतनी र्ीतल ककतनी गगं ा पावन जादईु सपने सी प्रकृ नत का चमत्कार सी लगेगी उस बूंदे दपणश सी काया चादर सी बबखरी ओस की बंूदे 24. ओस के मोती - रचना दीक्षित दबू का आचं ल थे वो ओस के मोती धरती का श्रगं ार थे वो ओस के मोती पे़िों की पाजेब थे वो ओस के मोती हवा का प्यार थे वो ओस के मोती स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
उषा को न आते थे रास वो ओस के मोती P a g e | 13 सरू ज के मन पर भार थे वो ओस के मोती ककरणों को देख अवाक थे वो ओस के मोती जलु ाई 2023 हवा की बाहों मंे घलु गए वो ओस के मोती आंखों मंे मरे ी कै द हैं वो ओस के मोती 25. ओस के मोती – रचना दीक्षित नहीं जानती, हवाओं को मार ज्ञान है या स्वामभमान है ओस के मोती जनने का हर बार सतं पृ ्त होने पर, क्या संतपृ ्त होना हवा होना ही जरूरी है ओस के मोती जनने को अस्पताल मंे प़िे मरणासन्न रोगी को जीवन देती असंतपृ ्त सलाइन की बदंू ंे कम तो नहीं ककसी स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 14 ओस के मोती से घबराहट परेर्ानी और श्रम से छलछलाते मेरे माथे पर मरे े ही जने ओस के मोती मेरी आंखें पारंगत हंै कभी संतपृ ्त कभी असतं पृ ्त कारणों से जनने को ओस के मोती मैं आज करती हूं खण्डन सतं पृ ्त हवाओं के ओस के मोती जनने के एकाचधकार का स्पंदन अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
26. पकं ज र्माश P a g e | 15 अधखलु ी अंजरु ी मंे जलु ाई 2023 आज भी तमु ्हारी यादें समटे े बठै े हंै हम.. कक तुम आओ और मंै तमु ्हें वो यादंे सौप कर खदु को आजाद कर लँ.ू . मेरे प्रेम की पराकाटठा, हो तमु मेरा अतं ,, अनादद मेरा प्रारंभ हो तमु 27. कं काल - रचना दीक्षित साकँ ल से आगँ न तक लहूलुहान टपकते देखे हैं मनंै े ररश्तों के कं काल लटकते देखे हैं छत औ दीवारें गलबदहयाँ डाले इक दजू े को साझे बरसों बरस स्वागत में महकते देखे हैं फलदार फसलंे फासलों की बोईं थी जजसने स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 16 फू ल भी उनकी याद में अक्सर मससकते देखे हैं सहमी हुई ककलकाररयों के झडंु पावँ भारी मलए चौखट के बाहर हर रोज़ दठठकते देखे हैं बाहें आहें और ननगाहें ददन रात कराहें अपने ही काधं ों पर सर रख कर बबलखते देखे हंै ररश्तों के जख़्मों के रंग बबरंगे टाकँ ंे सूखने के बाद भी जब तब चटकते देखे हैं पपसते-पपसते ररसते-ररसते सारे ररश्ते बमल की वेदी पर सर पटकते देखे हंै आँगन तलु सी लहू के धब्बे जीवतं अभी भी मन की चौखट के भीतर धू धू कर धधकते देखे हैं माँ की आखँ े और सांसंे खख़िकी का कोना थामें जाने क्यों इतने बरस मनैं े ही सबु कते देखंे हंै साँकल से आगँ न तक लहूलुहान टपकते देखे हैं मनैं े ररश्तों के कं काल लटकते देखे हैं साँकल से आँगन तक लहूलुहान टपकते देखे हंै मनैं े ररश्तों के कं काल लटकते देखे हैं स्पदं न अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
28. पप्रयंका श्रीवास्तव P a g e | 17 गावं का वो साझं ा घर , जलु ाई 2023 जहां का चलू ्हा भी सांझा था । ररश्ते भी साझं ा थे , उनका प्यार भी साझं ा था।। दखु भी सांझा थे , और सुख भी सांझा थ।े देनदार भी सांझा थे , कजदश ार भी सांझा थे।। इसी समझ के साथ एक उम्र गजु र गई, कक बस यही सारा जहान है। बक्त के साथ सब बदल गए, ररश्ते बदल गए सोच बदल गई।। सबका दहत ब़िा हो गया , मसफश अपनी खरु ्ी रह गई। पसै े की दौ़ि में सब दौ़िे , कोई जीत गया कोई हार गया।। घर की छत बबक गई , ईट बबक गई । सररया और समान बबक गए।। ककसी के दहस्से कु छ आया, स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
ककसी के दहस्से कु छ। P a g e | 18 जजसने सबको जो़ि रखा था, जलु ाई 2023 उसके दहस्से मसफश इल्जाम आया।। थो़िा और सह लेते तो क्या हो जाता ? वो घर तो बच जाता। पर क्या वह घर होता, र्ायद नहीं?.... 29. नीलम पाठक ओस की बँदू ों की तरह ररश्तों को बनते बबग़िते देखा कभी नमी कभी पानी कभी वाटप बनते देखा दृजटटकोण था जसै ा जजसका उसने अपना मत बता ददया कपव ने मोती वजै ्ञाननक ने संघनन लेखक ने उसमंे ररश्ता देखा िण भगं ुर ओस की बदू ंे स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 19 याममनी की स्तब्धता में मयकं से र्ीतल होकर नमी का रुप पररवनततश कर वसनु ्धरा पर चगरती है ददनकर की हल्की उटणता पर वाटप बन उ़ि जाती हंै ररश्तों का भी यही हाल हंै मतलब है तो झठू ही सही पर ररश्तदे ार है ररश्तों का खनू करने में अब वक्त कहां लगता है क्योंकक ररश्ते ददल से नहीं अब ददमाग से होते हंै इसमलए तो हर रोज ककसी ररश्ते की लार् पर रोते हंै। 30. रंजीता सक्सेना ओस की बँूद सी िणभंगुर जज़ंदगी, कफर भी आकािं ाओं से इतनी बंदगी.. स्पदं न अकं 3 जुलाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 20 31. अपव ओबेरॉय आना जब समय ममले जब समय न ममले तब भी आना आना जैसे हाथों में होती है ककस्मत की लकीरंे जैसे धमननयों में आता है रक्त जैसे चलू ्हों मंे धीरे धीरे आती है आचँ ... आना आना जसै े बाररर् के बाद बबूल में आ जाते हैं नये नए काटँ े... ददनों को चीरते-फा़िते और वादों की धजज्जयाँ उ़िाते हुए आना... आना जैसे मगं ल के बाद चला आता है बुध आना... स्पदं न अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 21 32. ओस के मोती - दीपमर्खा र्रद ऋतु के चदं ्र ककरणों से सजी बादलों की पालकी पर सवार.. मदं –मदं मुस्कु राती.. इठलाती..सकु चाती..इतराती फलक से धरा को आती अप्सरा रूपी हीरे सी चमकती.. र्बनम की बदंू ंे!! सदश रातों में मदं –मदं चलती वायु संग.. चपु के –चपु के सखखयों सखाओं संग,अठखेमलयांंंँ करती.. धरा पर उत्तर आई र्बनमीं बदंू ें!! देवदार तरु पे चमन मंे गुलाबों के गलीचों प.े . हौले–हौले उतर आई र्बनमीं बदंू े!! फलक से धरा तक पवन संग अठखेमलयांंंँ करती.. ननमलश ननश्चल स्वच्छं द चदं ककरणों से दमकती.. धरा के कण-कण में गलीचे सी बबछ गई र्बनमीं बदंू े!! पवन संग हँसी दठठोंली कर रास रचातीं,नयन ममलाती,बीती रात रुपहली.. थकन ममटाने धरा के कण-कण में समा गई र्बनमीं बदूं े.. भोर की बेला मंे,सरू ज की लाल ककरणों मंे.. मानो लाज से लाल हुई र्बनमीं बंदू े.. स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 22 ओढ–ओढनी लाल ककरण की, नई नवले ी दलु ्हन सी र्मातश ी,सकू चाती.. सयू श रथ पर सवार, सुनहरी सयू श ककरणों का कर् श्रगं ार.. कफर वहीं फलक में जा ममली अप्सरा सी खबू सरू त..र्बनमी बूंदे!! 33. तमु को ढूंढना खुद के खो जाने जैसा है - पकं ज र्माश तमु को ढूंढना खदु के खो जाने जैसा है जजसमंे तमु नही हो और मंै भी नही हूँ और कफर भी जैसे सबकु छ है। \"एक नदी बह रही है मैं तुम्हारा बहना देख रहा हूँ ककनारे पे कु छ ममट्टी है मैं तुम्हारा सरकना देख रहा हूँ हल्की हल्की हवा चल रही है मंै तुम्हारा उ़िना देख रहा हूँ गलु मोहर का एक प़े ि है मंै तुम्हारा महकना देख रहा हूँ आखं ों के दरीचों में मंै तमु ्हारा मसमटना देख रहा हूँ स्पंदन अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
ख्वाबों का एक समंदर है P a g e | 23 तमु ्हारी यादों का सादहल की नमु ाइर् में जलु ाई 2023 मंै खदु का डू बना देख रहा हूं ना जाने ककतना दरू चला आया मैं तमु से और कफर भी तुम्हारी ही यादों मंे बबखरना देख रहा हूँ।\" सच मंे तुम्हंे ढूंढना खुद के खो जाने जसै ा है 34. र्हर - रचना दीक्षित इस र्हर में हर र्ख्स बारूद ले के चलता है, महुं खोलते बारूद झरता है उ़िती हैं धजज्जयाँ अरमानों की यहाँ हर ददन, चचथ़िे कोई यहाँ चगनता नही,ं रखता नहीं चगरह खलु जाए ररश्तों की, ददल की कभी, स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
सीवन उध़ि जाये P a g e | 24 ददल के दरों दीवार की, जुलाई 2023 घर की फें क दो, दफन कर दो, मेरे र्हर में अब रफू गर नहीं ममलता 35. पप्रयकं ा श्रीवास्तव मसालों की खरु ्बू से, लदी फदी मंै , पसीने से तर बतर, हाफं ती सी मैं । बच्चे भी कहने लगे , मां एक कु क लगा लो।। बहु ने तो परफ्यूम, ही चगफ्ट कर ददया। पनत भी र्ायद, प्रताड़ित ही होंग।े । पर मरे ा तो जीवन ही, स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
उन्ही डडब्बों मंे है... P a g e | 25 जब उनके पास नही जाना था, जलु ाई 2023 तो वहीं धके ल दी गई। जब वही जीवन बन गया तो, ररटायमेंट की बातंे की जा रही।। बटे ी चाय बना दो से लेकर , बहु महे मान आने वाले हंै तक। कु छ कलीग आ रहे हंै से लेकर, मम्मी मरे े दोस्त आ रहे हैं तक।। लोग आते जाते रहे पर म,ैं रसोई मंे ही रह गई। दआु सलाम के बाद , मेरी जरूरत सबको वहीं रही।। अब इसकी आदत प़ि गई , इसके बबना मुझे कु छ आता ही नहीं। कै से छो़ि दंू इन्हे, इन्होंने मेरा हमेर्ा साथ ददया।। आखं ों से बहे आंसुओ को नछपाने का बहाना प्याज बन गया। रोटी से बहा पसीना हमारी, आचं ल में पनाह पाता रहा।। स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
कै से छो़ि दंू वो एक जगह, P a g e | 26 जो मरे े मलए बनी है। जलु ाई 2023 जहां पहुंच कर म,ैं मजल्लका बन जाती हूं।। जहां मेरी कल्पना , रंग लाती है। जहां मरे ी कलाकृ नत , तारीफ पाती है।। 36. नीलम पाठक स्वजप्नल महलों को न तो़िो हवा महल हंै ये मन के लेर्मार ही खरु ् करते वक्त ढले ये उ़ि जायेगं ंे। घ़िी जरा ये स्वप्न हमंे मीठा वक्त कटाते हैं हाथ बढाये जो पाने को नहीं उन्हें हम पा पायंगे ें वक्त ढले ये उ़ि जायेंगें। काले बादल के गजनश पर स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
ये ददल को दहलायगंे ें P a g e | 27 रुक जाये जब बाद बरस कर मन मयूर हषाशयगंे ंे जलु ाई 2023 वक्त ढले ये उ़ि जायगंे ें। खोये हैं जजन सपनों मंे टू ट गये तो ढह जायंगे ें मीठी यादंे खण्डहरों की नये महल से दब जायगंे े वक्त ढले ये उ़ि जायगंे ंे।। 37. राजश्री मैं स्तब्ध हूँ सनु ्न हूँ देख कर र्हर में, वहम और अहम सी बीमाररयों से ग्रमसत ररश्त,े मससकते, स्पंदन अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
त़िफत,े P a g e | 28 आक्सीजन के जुलाई 2023 मसलेंडर से सासं लेते दम सा तोडते आह भरत,े आस करते दो चार ददन और काटने के , चलते दवाओं के सहारे ननढाल से, बेजान से पीड़ित ररश्ते मंै स्तब्ध हूँ सुन्न हूँ II 38. पकं ज र्माश आकार् से पटल तक जीव चलता मार ररश्तों पर कु छ लबं े समय तक दटकते हंै स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 29 कु छ बीच में दम तो़ि देते हैं कु छ ररश्ते पैसों से बनते हैं कु छ प्रमे प्रतीक भी होते हंै कु छ िण भर के ,कु छ युग-युग के ररश्तों पर जीवन दटकता है ररश्तों से जीवन बनता है ररश्तों मंे दरार, पवश्वास की कमी ररश्तों में ममठास, प्रमे अनुभनू त एक जीवन, अनके ररश्ते जीवन से जु़िे सारे ररश्ते ननजीव सजीव सभी ररश्ते ररश्तों का प्रतीक, स्वयं ररश्ते 39. पंकज र्माश इस सारी जज़न्दगी की भाग - दौ़ि का यह महे नताना भी क्या खबू है 'कमळ' बुज़ुगों के चहे रों पर यह अनचगनत झुररया,ँ अपनों को तलार्ती ननगाहंे और बस दरू रया।ँ स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 30 40. पंकज र्माश हाथों की ग़लु ामी की जंजीर टू टनी चादहये मुफमलसी की दर्ा अब तो बदलनी चादहये कट रही है ये गदशन तो अफसोस काहे का बच गयी जो उं गली वो तो दहलनी चादहये कलम और तलवार दोनों से हम सिम रहे इस सोच से अब हर औलाद पलनी चादहये दहदं ु रहे या मसु ्लमान, कोई फकश नहीं है मुझे बस मसयासत की यह दीवारंे चगरनी चादहये इन चार ककताबों मंे ही दफन ना रह जाऊँ मंै गली मोहल्लों में भी बात ननकलनी चादहये इस लहू से बेहतर तो स्याही ही बबखर जाये बदं कू ों से पहले अब ये कलम चलनी चादहये स्पंदन अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 31 41. राजश्री 42. दीजप्त मसन्हा सभी कु छ तो है बंधा गलु ामी की जजं ीर में फकश मसफश इतना है कोई कहे ररवाज कोई कहे खोट है तकदीर मंे जरा गौर से देखो ककतना आसान है आजादी की हवा मंे ना कोई राजा ना कोई प्रजा है ससं ार मंे स्पदं न अकं 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
43. पवकास के र्रवानी P a g e | 32 घर से ननकलते ही जुलाई 2023 कु छ दरू चलते ही पथ के ककनारे जो बहुत से पे़ि रहते है कभी उनसे भी दो ममनट रुक कर बात कर मलया करो जो आप पीते हो पानी जो ये मदं मंद हवाएं चलती है ये प़े ि की ही ननर्ानी है। ये हरी हरी पपत्तयां आंखो मंे प्रमे रस भर देते है ये फल लगे हुए विृ इंसान को मानव मंे तब्दील कर देते है स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
मुझे लगता है कक P a g e | 33 सब छू ट जाता है पर ये पे़ि ही है जलु ाई 2023 जो आपके मरने के बाद भी आपके चचताओं के साथ रहती है ऐसे प़े ि से जरूर ममल कर चलो दो ममनट बात करते है। 44. बडे ़ियां - पप्रयकं ा श्रीवास्तव एक ही मां के जन्मे, एक ही पररवार हमारा। कफर भी इतना भदे भाव, इतनी असमानता।। मसफश इसमलए कक तमु , परु ुष हो और मंै नारी। तुम र्जक्तर्ाली हो, और मैं बचे ारी।। परंपराओं की बेड़ियां, स्पंदन अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
मसफश मरे े मलए। P a g e | 34 घ़िी का अल्टीमेटम, जलु ाई 2023 मसफश मेरे मलए।। मसरपर पल्ल,ू वि पे आचं ल, ढका हुआ तन, मसफश मेरा।। नजरों में कमी तुम्हारे , ननयत मंे खोट तुम्हारे । वहमर्याना ममजाज तमु ्हारा, कफर भी बंधन मुझ पर है।। मैं उ़ि नही सकती, बाहर चगद्ध भरे हंै। मंै चल नही सकती, स़िक पर कु त्ते ख़िे हैं।। घर मंे भी कहां सरु क्षित , वहां भी तो नर पपर्ाच प़िे हैं। र्रीर पर कफसलता वो हाथ तेरा, आग लगाता है तन बदन में।। चडं ी बन भस्म कर दं,ू हर उस मदहषासरु को। स्पदं न अकं 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 35 बस हमे भी थो़िा पखं दे दो, थो़िा सा खलु ा आसमां दे दो।। 45. ररश्ता - पकं ज र्माश हम सभी का एक बहुमखु ी व्यजक्तत्व होता है, इसके पवमभन्न आयाम होते हैं और आपका जीवन ररश्तों से नघरा हुआ है। ररश्ते आपकी संवदे नाएं, प्यार और समय के ननवेर् के बबना मुरझा सकते हैं, जैसे कक एक पौधा बबना जल मरु झा जाता है। जब हम ररश्तों को उचचत समय और प्रेम से ध्यान नहीं देते हंै, तो उनका धीरे-धीरे मर्चथल एवं उदासीन हो जाने का खतरा होता है। व्यस्त जीवनस्तर, काम के दबाव और तनाव आपके समय को सकं ु चचत कर देते हंै, और ररश्तों को अधीर बना देते हैं। एक ररश्ता पौधे की तरह होता है, जो आपकी देखभाल, सवं दे ना और प्यार की अपेिा करता है। अगर हम इसे उचचत मारा में यह सब नहीं देते हैं, तो यह अपनी सजं ीवनी खो देता है और ददन- प्रनतददन मतृ प्राय जाता है। लेककन जब हम ररश्तों को ध्यान से सीचं ते हंै, तो वे सुरमय होते हंै और हमारे जीवन को समदृ ्चध और खुमर्यों से भर देते हंै। नारी, तू नारायणी इस जग की पालनहाररणी नारी, तू नारायणी तुम समझे हो अबला जजसको उसकी तो मसहं सवारी है मोहन के छप्पन भोगों पर बस एक तुलसी भारी है नर से है नारी र्ब्द ब़िा स्पदं न अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
नर से इसका संकल्प ब़िा P a g e | 36 इस अन्नपूणाश के द्वारे मर्व लेकर मभिा-पार ख़िा जलु ाई 2023 46. अपव ओबेरॉय ज़लु ्फ रातों सी है रंगत है उजालों जसै ी पर तबबयत है वही भूलने वालों जैसी ढूंढता कफरता हूँ यँू लोगों मंे र्बाहत उसकी के वो ख़्वाबों मंे भी लगती है ख्यालों जैसी उसकी बातंे भी ददल फरेब हंै सरू त की तरह मेरी सोचंे भी परेर्ान मरे े ख़्यालो जैसी उसकी आँखों को कभी गौर से देखा है सोने वालों की तरह जागने वालों जसै ी 47. पंकज र्माश समय हर जख्म को भर देता है समय हर गम को भुला देता है स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
P a g e | 37 अपनों के खोने का दखु ,या बबछ़िने का समय दखु ों पे मरहम लगा देता है ब़िी तेज रफ्तार है इस समय की कभी ककसी के मलए नहीं रुकता है फू लों की सजे है,काटँ ो का ताज भी वक्त हर हाल में जीना मसखा देता है वक्त हर पल बदलता ही रहता है ददन है तो रात, धपू है तो छाँव देता है वक्त की गददशर् मे हैं आती जातीरौनकंे वक्त हुकू मत समाज को भीममटा देता है आदमी को चादहए वक्त से डर कर रहे ककसी भी घ़िी वक्त ममजाज बदल देता है जब चाहे राजा को रंक बना देता है और मभखारी के सर पर ताज देता है स्पदं न अंक 3 जलु ाई 2023 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
जो वक्त के साथ चला मजं जल ममली उसे P a g e | 38 वक्त की कदर न की कमल ममटा देता है जलु ाई 2023 48. राजश्री हे मानव! मत बाधं मझु े तू कु प्रथाओं की क़िी जजं ीरों से, ना कु चल आर्ा भरे सपने मेरे इन पैरों से, उ़िने दे मुझ,े होसलों के पखं ों से, छू ने दे आसमां कामयावी के , तू मर्वा सा भेष रख कर स्पदं न अंक 3 Please join us on our You Tube Channel “Sahitya Sadhak Manch” by scanning the QR code
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