101 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 नीचे लाने का काम दकया। दिलक यग में उग्र राष्ट्रीयिा की एक दहसं ापरक राजनीदिक धारा भी चल रही थी दजसका नेितृ ्व भपू रंे नाथ ित्त ने ‘यगांिर’ के माध्यम से दकया। दहसं ावाि के प्रचार के कारण इन्हंे लंबी सजा भी दमली। इसके पररणामस्वरुप दहिं ू राष्ट्रीयिा और दहिं त्व प्रखर रूप में सामने आया। आंिोलन का दहसं क स्वरुप सामने आया। इस पि के जररए दहसं ात्मक कायों को सही ठहराया जा रहा था। राजनीदिक खनू और हत्याओं का दसलदसला चल पड़ा और अिं ि: इसकी पररणदि मिन लाल ढींगरा द्वारा लाडष कजनष की हत्या के रूप मंे हईु । हालादं क दिलक भी उग्र राष्ट्रीयिा के प्रबल समथकष थे लदे कन वे दहसं ावािी आंिोलन के दवरुद्ध थे। इस यग के िेजस्वी पिकारों मंे िगाषप्रसाि दमश्र, अदं बका प्रसाि बाजपये ी और बाबरू ाव दवष्ट्ण पराड़कर थ।े अंदबका प्रसाि बाजपये ी ने कलकत्ते से प्रखर राजनीदिक पि ‘नदृ सहं ’ का सपं ािन-सचं ालन दकया। उनके सपं ािन मंे ‘नदृ संह’ ने अगं ्रजे ों की पक्षपािपूणष न्यायव्यवस्था पर, राष्ट्रभार्ा के प्रश्न पर, स्वराज्य और ििे ी पिों द्वारा की जा रही अंग्रेजी िासन की चाटकाररिा पर खूब लेख दलखे गए। इस यग की दहिं ी पिकाररिा के एक और स्वरुप के बारे मंे फ्रं चसे ्का ओसीनी ने मररयोला ऑफरीिी द्वारा सपं ादिि पस्िक ‘दलटरेचर लंैनवजे एंड ि मीदडया इन इदं डया’ (१९९२) के हवाले से कहा है दक उस िौर मंे दजस ‘दहिं ी बदद्धजीवी’ की भूदमका ठोस िक्ल अदख्ियार कर रही थी वह ऐसे लोगों की थी जो िरुआि में राजनीदिक गदिदवदधयों के माध्यम से अपनी पहचान बना चके थ,े और इसी के माध्यम से प्रगदििील पिकाररिा के द्वारा सावजष दनक क्षिे में अपनी वैधिा स्थादपि कर रहे थे। उस वक्त के प्रदसद्ध िैदनक ‘आज’ के संपािक बाबरू ाव दवष्ट्ण पराड़कर का उल्लखे वह इस संिभष में करिी ह।ैं “पर यह प्रदक्रया एकिरफा नहीं थी। मिन मोहन मालवीय, परुर्ोत्तमिास टंडन, माखनलाल चिवेिी, गणेि िंकर दवद्याथी जसै े कई लोग थे दजन्होंने अपनी पहचान पिकाररिा के माध्यम से बनाई और उसके बाि ही सदक्रय राजनीदिक कायषकिाष बने। इस सिं भष में महावीर प्रसाि दद्वविे ी जसै े कदथि रूप से ‘गैर-राजनीदिक’ लोग जो सामादजक सादहदत्यक सवालों पर अपना ध्यान कंे दरि कर रहे थ,े उन्हें भी अराजनीदिक या दपछड़ा नहीं कहा जा सकिा, क्योंदक एक ओर िो इन्हीं दवर्यों पर ध्यान कें दरि कर वह राजनीदिक हस्िक्षेप कर रहे थ,े िो िसू री ओर दद्वविे ी अवध के दकसानों की हालि, भारिीय अथवष ्यवस्था पर संपदत्त िास्त्र जैसी दकिाबें दलखकर दिदटि व्यवस्था की आलोचना भी कर रहे थे। िसू री िरफ यह समझ दक राजनीदिक रेदनगं बदद्धजीदवयों को प्रगदिकामी बना रही थी, अधूरी ही नहीं, गलि भी ह।ै इसका उिाहरण दहिं ी प्रििे के ित्कालीन कई बदद्धजीवी थे। इन मायनों मंे परस्पर दवरोधाभासी प्रवदृ त्तयां उस यग के एक पहचान दबंि थीं। लेदकन भारिेंि यग से दद्ववेिी िक चली आई इस परंपरा ने बीसवीं सिी के िसू रे ििक से एक दनणायष क मोड़ िब दलया जब मख्य रूप से राजनीदिक पदिकाओं का िौर िरू हआु , दजनमें ‘अभ्यिय’, ‘प्रिाप’, ‘मयािष ा’, ‘कमषयोगी’, ‘कमषवीर’ और ‘सैदनक’ िादमल थे। माखनलाल चिवेिी- जो माधवराव सप्रे और दवष्ट्णित्त िक्ल द्वारा स्थादपि ‘कमषवीर’ के पहले संपािक थे, ने पिकाररिा के दमिन को राजनीदि से जोड़कर खि पिकाररिा को भी नए आयाम दिए”।1 दहिं ी पिकाररिा के गांधी यग की िरुआि १९२० से मानी जािी ह।ै यह माना जा रहा था दक दिलक यग के स्वराज्य के आवाह्न की आवाज गांवों में रहने वाले दकसानों और मजिरू ों िक नहीं पहुचं ी थी। गांधी यग में यह महान कायष सपं न्न हुआ दजसकी िरुआि १९१९ मंे रौलट एक्ट के दवरोध के साथ उठे आंिोलन से हुई। १९१९ में ही जदलयावाला बाग हत्याकांड के बाि गाधं ीजी ने असहयोग की िरफ रुख अपनाया। १९२० के कांग्रसे के कलकत्ता 1 वही, प.ृ ०७ वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 101
102 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 अदधवेिन मंे गाधं ी जी की अदहसं ात्मक असहयोग नीदियों को स्वीकृ दि दमलने के बाि असहयोग आिं ोलन में िजे ी आई। गाँव-गावँ वैचाररक क्रांदि का बीज बोने के दलए कायषकिाष सदक्रय हो उठे। गाधं ीजी ने राष्ट्रीय भदू मका पर कायष दकया और मागं ल्य के दलए दनरंिर उपक्रम करिे रह।े गाधं ी यग दविरे ् रूप से राजनदै िक पिकाररिा का यग था। इस यग मंे साप्तादहक, मादसकों के स्थान पर िैदनक पिों का प्रकािन बढ़ रहा था। िैदनक पिों के बढ़िे प्रकािन इस बाि के सूचक हंै दक भारिीय स्विंििा आिं ोलन िजे ी के साथ अपने मकाम पर पहचुं ने को ित्पर था। गांधी यग की दहिं ी पिकाररिा की सबसे बड़ी दविरे ्िा यह है दक इस यग में सादहदत्यक पिकाररिा, राजनीदिक पिकाररिा से अलग हुई। ‘माधरी’, ‘मिवाला’, ‘सधा’, ‘चािं ’, ‘हसं ’ और ‘दविाल भारि’ जसै ी पदिकाएँ इसी समय दनकलीं दजनमंे गांधी यग की मलू चेिना मखर ह।ै इसके अलावा ‘समन्वय’, ‘अजनष ’, ‘जागरण’ आदि महत्त्वपणू ष पि-पदिकाएँ भी दनकलीं। स्वयं गाधं ीजी ने लिं न के ‘वेजटे ेररयन’ अखबार से अपने लखे न की िरुआि की थी। १९०४ में िदक्षण अफ्रीका से ‘इदं डयन ओदपदनयन’ (साप्तादहक) पि िरू दकया। भारि आकर १९२० मंे उन्होंने अगं ्रेजी मंे ‘यगं इदं डया’ दनकाला। इसके अलावा गजरािी मंे ‘नवजीवन’ (१९३२-३३), दहिं ी मंे ‘हररजन सेवक’ (१९३३), ‘हररजन बधं ’ आदि के माध्यम से अपने दवचारों को उन्होंने िेि भर में फै लाया। दहिं ी पिकाररिा के इदिहास में स्वििं िा आिं ोलन के एक और सारथी भीमराव अंबडे कर की पिकाररिा का भी योगिान ह।ै अंबेडकर ने १९३० ई. मंे ‘जनिा’ का संपािन िरू दकया। ‘जनिा’ का प्रकािन काल डॉ. अंबडे कर के जीवन की सवादष धक दजम्मेिाररयों, व्यस्ििाओं और संघर्ष का काल रहा ह।ै ‘जनिा’ के करीब िीन साल बाि गाधं ीजी ने ‘हररजन’ दनकाला। ‘हररजन’ के पूवष की गाधं ी जी की पिकाररिा में िदलि प्रश्नों को उिना महत्त्व नहीं दिया गया था। ‘हररजन’ की पिकाररिा के जररए गाधं ीजी ने िदलि प्रश्नों को प्रमखिा से उठाया। गांधी और अबं डे कर के बीच स्वयं को िदलिों का नेिा होने के दलए प्रदिस्पधाष चली। १९३० से १९३२ िक चले गोलमजे सम्मलेन में िोनों ने स्वयं को िदलिों का निे ा ठहराने की परजोर कोदिि की लदे कन गाधं ी यह कर सकने में असमथष रहे और अंिि: अबं डे कर को िदलिों का निे ा स्वीकार दकया गया। यहां यह िथ्य ध्यान िेने लायक है दक गाधं ी ने ‘हररजन’ की िरुआि एक राजनीदिक एजंेडे के िहि और ‘जनिा’ की प्रदिक्रया में िरू की थी िादक वह िदलिों के एक दविाल वगष का समथनष हादसल कर सकंे और स्वयं को िदलिों के बीच भी उनके निे ा के रूप मंे स्थादपि कर सकें । गांधी और अंबडे कर िोनों ही १९२० से पिकाररिा के क्षेि में उिरे थे। गाधं ी ‘यंग इदं डया’ के साथ, और अबं डे कर ‘मकू नायक’ के साथ सामने आए। ित्कालीन पररदस्थदियों के कारण िोनों ही सवं ेिनिील थे क्योंदक वह समय प्रथम दवश्व यद्ध के उिार का समय था। ‘जनिा’ (१९३०) और ‘हररजन’ (१९३३) के उद्भव का काल दद्विीय दवश्व यद्ध (१९३९-४५) के आगाज का समय था। परू े दवश्व के जन-जीवन के पररविनष के िफू ानी दिन थे और भारि में भी अदस्थर ही था क्योंदक स्वििं िा आंिोलन अपने चरम पर था और भारिीय नेितृ ्व और दिदटि हकु ्मरानों के बीच दनणाषयक दस्थदियां थीं। िोनों की आरंदभक पिकाररिा में ज्यािा मिभिे िो नहीं दिखिा लेदकन ‘जनिा’ और ‘हररजन’ मंे उनके वचै ाररक मिभिे खलकर सामने आए। अंबेडकर ही एकमाि ऐसे पिकार थे जो गाधं ी की आंधी में नहीं उखड़े। उनका मिभिे यह था दक गांधी दजन्हें राष्ट्रदपिा और बापू जैसे अलकं रण से नवाजा जा रहा है उनके साथ िेि का िाह्मणवाि और पूजं ीवाि भी खड़ा ह।ै कांग्रेस के एजंेडे में अछू िों के दलए कोई योजना न होने के कारण और दहिं ू महासभा में िदलि दवर्यक मद्दों को लेकर भी काफी दवरोध रहा। अंबेडकर ने ‘बदहष्ट्कृ ि भारि’ (१९२३) के जररए भी िदलि प्रश्नों को वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 102
103 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 लगािार उठाया। गांधी यग की पिकाररिा मदहलाओं के दलए भी काफी महत्त्व की रही। यह उस यग की पिकाररिा का ही असर था दक सदवनय अवज्ञा आंिोलन (१९३०-३१) के िौरान लगभग बीस हजार मदहलाएं जेल गई।ं गांधीजी के निे तृ ्व मंे सामूदहक भागीिारी ने मदहलाओं को परुर्ों से समानिा का बोध दिया। हालांदक गाधं ीजी के स्त्री दृदि को लेकर कई िरह के मिभिे भी हैं क्योंदक गांधीजी मदहलाओं की भागीिारी परुर्ों के द्वारा िय की गई सीमा और परुर्ों के नेितृ ्व के भीिर ही आिं ोलन मंे मदहलाओं का सहयोग लेने के पक्षधर थे। लेदकन इसके बावजिू यह यग मदहलाओं के दलए एक नए यग की िरह िरह था। इसमें कई मदहला संगठनों का राष्ट्रीय स्िर पर दनमाणष हआु दजनमंे वीमेसं कौंदसल ऑफ इदं डया, मबं ई (१९२०), ज्योदि सघं (१९३४), कस्िरू बा गांधी नेिनल ममे ोररयल रस्ट जसै े कई सगं ठन और ससं ्थाए बनीं लेदकन सही अथों में दजस राष्ट्रीय सगं ठन का उिय हआु वह था, आल इदं डया वीमंसे कॉन्फ्रंे स, पूना (१९२७) जो भदवष्ट्य मंे और भी बड़ी और स्थाई ससं ्था सादबि हईु । चंदू क यह िथ्य पूरी िरह साफ है और कई प्रमाणों के साथ इदिहास मंे भी िजष है दक गांधीजी हमिे ा पजंू ीपदियों को साथ लके र चले। िरअसल गाधं ी और पजूं ीवादियों के बीच अन्योनाश्रय सबं ंध था। गाधं ी पजू ीपदियों से आंिोलन के दलए पसै ा चाहिे थ।े िसू री िरफ पूजं ीपदि इसदलए गाधं ीजी के साथ थे क्योंदक उन्हंे भदवष्ट्य में स्विंि भारि की प्रत्येक गदिदवदध मंे हस्िक्षपे करने का अवसर चादहए था। चंदू क गाधं ी उस समय के स्विंििा आिं ोलन के सबसे प्रबल नेितृ्त्वकिाष थे और वह एक ऐसा समय था जब ििे को यह अनमान हो गया था दक दिदटि हकु ू मि अब ज्यािा दिन िक नहीं रहने वाली है अथािष लोगों में यह अहसास पैिा होने लगा था दक अब सनहरे दिन आने वाले ह।ैं इन िोनों बािों को यदि एक साथ समेटा जाए िो यह स्पि होिा है दक ििे का पंूजीपदि वगष उस दिन की बाट जोह रहा था दक गांधी और उनके लोग स्विंि भारि के नेितृ्त्वकिाष हों िादक भदवष्ट्य मंे उनका राजनीदिक हस्िक्षेप भी बना रहे और भारि के भदवष्ट्य को पंजू ीवािी िरीके से ढाल सकें या ऐसा अदधकार उनके पास रहे िादक उनकी पजंू ी, उद्योग सदहि उनके दकसी चीज पर दकसी िरह का सकं ट न आए। इस बाि को ध्यान मंे रखिे हुए पंजू ीपदियों-उद्योगपदियों ने पि दनकाले और यह दसलदसला स्वििं िा प्रादप्त के बाि िक चलिा रहा। इस समय पंजू ी वाले घरानों से सबसे अदधक पि दनकले। ‘स्विंि भारि’, ‘दहिं स्िान’, ‘नवभारि टाइम्स’, ‘धमषयग’, ‘अमर उजाला’, ‘राजस्थान पदिका’ आदि पिों के साथ पिकाररिा का स्वरुप भी बिला और पिों के प्रकािन ने उद्योग का रूप ले दलया। १५ अगस्ि १९४७ के पश्चाि भारि के जीवन के सभी क्षेिों मंे आमूलचलू पररविनष हएु । पिकाररिा पर इसका असर पड़ना स्वाभादवक था। ‘आजाि’ भारि ने जीवन के िमाम क्षिे ों मंे अपने एजेडं े िय दकए। इसदलए प्रसे मादलक भी नए एजंेडे के दनमाणष मंे जट गए। क्योंदक ििे को आजािी दिलाने का उनका एजंडे ा खत्म हो चका था। पवू ष में यह बाि आ चकी है दक आिं ोलन काल मंे राजनीदि और पिकाररिा का घदनष्ठ संबंध था। इसदलए अब स्वििं भारि की राजनीदि से प्रेस का संबधं होना स्वाभादवक था। राष्ट्र के एजेंडे के दवरुद्ध पिकाररिा न िो संिै ालीस के पहले थी और न ही उसे सिैं ालीस के बाि होना चादहए था। इस प्रकार ‘आजाि’ भारि की पिकाररिा का एजंेडा अब बिल चका था। प्रसे , पजूं ी और सत्ता, िीनों का बहदु वमीय सबं धं आज भी ििे के भदवष्ट्य को िय कर रहा ह।ै वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 103
104 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 संिभा-सू ी 1. जेफ्री, रोदबन : भारत की समाचार पत्र क्ातां त, भारिीय जनसचं ार ससं ्थान प्रकािन, नई दिल्ली, २००४ 2. दमश्र, कृ ष्ट्णदबहारी : त दां ी पत्रकाररता, भारिीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, २००४ 3. जोिी, रामिरण : मीतिया-तमशन से बाजारीकरण तक, वानिवे ी प्रकािन, बीकानरे , २००८ 4. बचे ैन, श्यौराज दसहं : अाबं ेिकर, गांधा ी और दतित पत्रकाररता, अनादमका प्रकािन, नई दिल्ली, २०१० 5. वैदिक, डॉ. विे प्रिाप (संपा.) : त ंदा ी पत्रकाररता- तितिध आयाम भाग-एक, दहंिी बक सटंे र नई दिल्ली, २००६ 6. वैदिक, डॉ. वेिप्रिाप (संपा.) : त दां ी पत्रकाररता- तितिध आयाम भाग-दो, दहिं ी बक सटंे र नई दिल्ली, २००६ 7. ओसीनी, फ्रं चेस्का : त ांदी का िोकितृ ्त (अन.ु - नीिाभ), वाणी प्रकािन, २०११ 8. श्रीधर, दवजयित्त : भारतीय पत्रकाररता कोश (खांि-एक), वाणी प्रकािन, नई दिल्ली २००८ 9. श्रीधर, दवजयित्त : भारतीय पत्रकाररता कोश (खिां -दो), वाणी प्रकािन, नई दिल्ली २००८ 10. जोिी रामिरण (संपा.) : िैश्वीकरण के दौर म,ें समयािं र प्रकािन, नई दिल्ली, २००६. 11. चिवेिी जगिीश्वर, दसंह सधा (सं.-सपं ा.) : स्िाधीनता-सगां ्राम त ंदा ी प्रेस और स्त्री का िैकतपपक क्षेत्र, अनादमका पदब्लिसष एडं दडस्रीब्यूटसष (प्रा.) दलदमटेड, नई दिल्ली, २००६. 12. गौिम सरेि, गौिम वीणा (संपा.) : त ांदी पत्रकाररता: कि, आज और कि, सत्सादहत्य प्रकािन, दिल्ली २००१. 13. जोिी, रामिरण : मीतिया तिमशश, सामदयक प्रकािन, नई दिल्ली, २००८. 14. दिलर हरबटष आई., दमश्र विं ना (अन.) : बतु ि के व्यिस्थापक, ग्रथं दिल्पी, नई दिल्ली. २०१०. 15. बाजपेयी, अदं बका प्रसाि : समाचार पत्रों का इतत ास, ज्ञानमंडल प्रकािन, वाराणसी 16. नीनन, सवे िं ी : ेििाइसां फ्रॉम ार्शिंैि, सजे पदब्लके िन, २००७ 17. नटराजन, ज.े : भारतीय पत्रकाररता का इतत ास, चिे नक्रांदि आर.(अन.), प्रकािान दवभाग, सचू ना और प्रसारण मिं ालय, भारि सरकार, नई दिल्ली, २००२ 18. कांि, डा. मीरा : अंातराशष्ट्रीय मत िा दशक और त दंा ी पत्रकाररता, क्लादसकल पदब्लदिंग कं पनी, नई दिल्ली, 19. दसहं , मरली मनोहर प्रसाि (सपं ा.), मालवीय ओमप्रकाि (अन.) : सचां ार माध्यम और पजंा ीिादी समाज, ग्रथं दिल्पी, नई दिल्ली. २००६. 20. जोिी परू नचंर, दसंह सनील कमार (अन.) : सासं ्कृ तत तिकास और सचां ार क्ांता त, ग्रथं दिल्पी, नई दिल्ली. २००१. 21. ‘प्ररे णा’, िमै ादसक, सादहदत्यक पिकाररिा अकं , जनवरी-जून २०१२. 22. दमश्र, अदखलेि : पत्रकाररता: तमशन से मीतिया तक, राजकमल प्रकािान, नई दिल्ली, २००४. 23. दमश्र, कृ ष्ट्णदबहारी, पत्रकाररता: इतत ास और प्रश्न, वाणी प्रकािन, नई दिल्ली, २००४. 24. पचौरी, सधीि : भमांििीकरण, बाजार और त ादं ी, अनराग प्रकािन, नई दिल्ली, २००४. वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 104
105 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 वहिं ी पत्रकाररता का धमा : अतीत, ितामान और भविष्ट्य डॉ. अजीत कमार परी सहायक प्रोफे सर,कािी दहिं ू दवश्वदवद्यालय, वाराणसी सम्पकष - 9968637345 ईमले - [email protected] सारांश दहिं ी पिकाररिा ने मानव-मूल्य,जीवन-मलू ्य,सदृ ि के समस्ि जीवों के उत्थान के दलए, उसके संरक्षण के दलए काम दकया। इसदलए यदि ससं ार के पिकाररिा के इदिहास को िेखा जाए, दभन्न-दभन्न भार्ाओं मंे जो पिकाररिा हुई ह,ै िो कहीं ना कहीं दहिं ी की जो पिकाररिा ह,ै उसका जो इदिहास ह,ै उसमंे जो जीवन मूल्यों को सरं दक्षि करने की उसकी प्रवदृ त्त ह,ै उसका एक बहिु गौरवपूणष स्थान दिखाई िेिा ह।ै बीज शब्ि: पत्रकार, पत्रकाररता, धमव, समाि शोध आलेख आज की पररदस्थदियों को िेखिे हएु इस दवर्य पर दवचार दकया जाना चादहए। जहां िक दहिं ी पिकाररिा की बाि ह,ै इसका इदिहास अत्यिं गौरविाली रहा ह।ै वैसे यदि हम भारि की दचिं न परंपरा में सूचनाओं के आिान-प्रिान की बाि करिे हंै िो सवषप्रथम महदर्ष नारि का नाम लिे े ह।ैं इस उपलक्ष्य में नारि जयंिी भी मनािे हैं। पिकाररिा के आदिपरुर् के रूप मंे महदर्ष नारि जी को स्वीकार दकया जािा ह।ै लेदकन दहिं ी पिकाररिा की जो बाि है वह आधदनक काल में प्रेस के अदवष्ट्कार से हआु । दिदटिसष के आगे पीछे जैसे डच,पिगष ाली,फ्रासं ीसी आदि चारों आए िो इन्होंने बाइबल का भारिीय भार्ाओं मंे अनवाि करके ईसाईयि के प्रचार प्रसार करने का जो उपक्रम िथा अदभयान चलाया। दजसकी प्रदिदक्रया म,ें प्रत्यत्तर मंे भारिीय नवजागरण अपने ििे ीय स्वरूप मंे पनपा। सभी को आवश्यकिा थी,अपने दवचारों के प्रचार-प्रसार करने की; ईसाइयि भारि में अपनी जड़ें जमाना चाहिी थी और उस समय के भारिीय जो बदद्धजीवी थे ,भारिीय ससं ्कृ दि चिे ा जो थे, वह उनका प्रदिकार करना चाहिे थे। ऐसी पररदस्थदियों में भारि ििे मंे पिकाररिा जन्म लिे ी ह।ै अंग्रेजी पिकाररिा की प्रथम भार्ा बनी। धीरे धीरे बगं ाल पिकाररिा का प्रमख क्षिे बनिा ह।ै दहिं ी भार्ा-भार्ी संपूणष भारि में व्याप्त रहे ह।ैं एक समय था दक बंगाल मंे उनका बड़ा बोलबाला था िो हम िखे िे हैं दक दहिं ी पिकाररिा दहिं ीिर प्रािं ों से प्रस्फदटि होिी ह।ै 30 मई 1826 दहिं ी पिकाररिा की दृदि से कालजयी दिदथ ह,ै जब यगल दकिोर िक्ल \"उिंि मािडं \" का संपािन करिे ह।ैं यह एक क्रांदिकारी एवं महत्वपणू ष पदिका थी। दकं ि अथष की समस्या से जझू िे हएु यह अल्पावदध में ही बंि हो गई। लदे कन इस पदिका ने जो अक्षण्ण अलख जगाई,वह भारिीय जनमानस में ििै ीप्यमान रहा। कालािं र मंे अपनी सीदमि ससं ाधनों के बावजूि भारिीय बौदद्धक चिे ना अपनी जगह बनािी ह।ै दफर बंगाल से दनकलकर के परू ा भारि दहिं ी पिकाररिा का क्षेि बन जािा ह।ै इसी क्रम मंे १८२५ मंे दिवप्रसाि दसिारे दहिं \"बनारस\"अखबार दनकालिे ह।ंै भारििंे यग का आदवभाषव दहिं ी पिकाररिा के आदवभावष का यग था। हम सभी जानिे हंै दक भारििें मडं ली के सादहत्यकार एक प्रबद्ध सादहत्यकार होने के साथ-साथ प्रखर पिकार भी थ।े बालकृ ष्ट्ण भट्ट,बालमकं ि गप्त,प्रिाप नारायण दमश्र आदि कदव एवं सादहत्यकार के साथ-साथ समथष पिकार भी रह।े ििपरांि दद्ववेिी यग के प्रारंभ मंे महावीर प्रसाि दद्ववेिी जी 1903 में सरस्विी का प्रकािन करिे हंै िो उनके ध्येय में भी दहिं ी सादहत्य के साथ साथ दहिं ी पिकाररिा के प्रदि दनष्ठा और सवे ा वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 105
106 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 का भाव अंिदनदष हि रहा । गणेि िंकर दवद्याथी, श्रीरामवकृ ्ष बेनीपरी, माखनलाल चिवेिी आदि अनके बदद्धजीवी लोग पिकाररिा के माध्यम से सादहत्य मंे प्रवेि करिे ह।ंै दहिं ी पिकाररिा अपना एक \"दनज-धमष\"लेकर चलिी है । आजकल िेखा जाए िो भारि में बहिु लोगों का मन धमष को लके र खराब हो जािा है । बहुिों की दस्थदि \"छई-मई\" जसै ी हो जािी ह।ै 1 धमष की बाि अथाषि सत्य सनािन की बाि । धमष कोई ररलीदजयस या पंथवािी एकदनष्ठ दवचार नहीं है । हर व्यदक्त का, हर समहू का एक अपना धमष होिा है अथािष अपना एक किवष ्य होिा है । उिाहरण स्वरूप जब श्री लक्ष्मण को िदक्त लगिी है और सर्णे वैद्य को हनमान जी लेकर आिे हैं िो वह कहिा है दक \"मझे दचदकत्सा नहीं करनी चादहए मंै लंकादधपदि का राजवदै ्य हू।ं मझे िि की दचदकत्सा नहीं करनी चादहए; और आपको भी मेरे ऊपर दवश्वास नहीं करनी चादहए क्योंदक मैं िो दवरोधी पक्ष का वदै ्य हू।ं \" 2 इस पर हनमान जी एवं दवभीर्ण आदि वैद्य के धमष की बाि करिे करिे हंै और कहिे हैं दक\"वैद्य और रोगी के बीच मंे एक अदृश्य संबंध होिा ह,ै दवश्वास उसका आधार होिा है इसदलए वदै ्य को यह नहीं िेखना चादहए दक रोगी का काल, ििे , पररदस्थदियां क्या ह?ैं वह कौन ह?ै कहां का ह?ै दकस कल और विं का ह?ै इस आधार पर िो रोगी की दचदकत्सा हो ही नहीं सकिी; रोगी के वल रोगी होिा है उसके प्रदि वदै ्य का धमष है दक वह रोगी को हर प्रकार से दनरोग करें। रोगी का पररचय िो दद्विीयक है । रोगी के दनरोग होने के उपरांि भी पररचय प्राप्त दकया जा सकिा ह।ै \" ठीक उसी प्रकार हम भारिीय ज्ञान परंपरा मंे िेखिे ह-ैं राजधमष, लोकधमष आदि का उल्लखे एवं चचाष दविि रूप मंे प्राप्त होिी ह।ै ऐसे मंे पिकाररिा का धमष क्या हुआ? इस पर भी दवचार करना चादहए । इस संिभष मंे बार-बार आख्यान- व्याख्यान होने ही चादहए । भारिीय स्वाधीनिा आंिोलन जब चल रहा था उस समय िक दिदटि राज्य लगभग आधे भारि पर व्याप्त था; िरे ् िेिी ररयासिें स्विंि थी ।3 उनकी अपनी प्रिासदनक व्यवस्थाएं थी । दिदटिों से उनका अपना अनबंध था; जैसे दक आज भारि दिदटि राष्ट्रमंडल का सिस्य होकर के भी एक स्वििं राष्ट्र ह,ै ठीक उसी प्रकार ििे ी ररयासिों का संबंध भी अगं ्रेजों से था । अगं ्रेजी राजििू िेिी प्रािं ों मंे आिे जािे थे दकं ि उनकी आंिररक संरचना एवं उनका िासन उनके ही अनकू ल था ।1857 के बाि दिदटि संसि के द्वारा अनमोदिि दिदटि िासन उिने ही दहस्सों िक था जहां िक लाडष डलहौजी ने राज्य हड़पने की नीदि के िहि ले दलया था । िेर् भारि अपने अनसार जीवन जी रहा था। ित्कालीन समय मंे जो उस समय की पिकाररिा थी, वह दिदटि िासन का दवरोध इसदलए नहीं कर रही थी दक दिदटिसष अन्य है और उनके हर दवचार का दवरोध करना चादहए। वह दवरोध इसदलए कर रहे थे क्योंदक अगं ्रजे झठू से, छल से,कपट से भारि के लोगों को ठग करके एन के न प्रकारेण दहसं ा से ,उत्पाि से अपना िासन यहां बना रहे थे जो दक मानवोदचि नहीं था ,यह असभ्यिा थी । यह दकसी सभ्यिा का सूचक नहीं था , मानव धमष के दवरुद्ध था , सदृ ि के दनयमों के दवरुद्ध था ; इसदलए ित्कादलक पिकारों ने दिदटि िासन का परजोर दवरोध दकया । स्वाधीनिा यदि अंग्रेजों के दलए दप्रय ह,ै फ़्ंेरच के दलए दप्रय ह,ै जमनष के दलए दप्रय है िो भारि के दलए भी दप्रय होनी चादहए । समग्रिा में प्रत्यके िेि के दलए दप्रय होनी चादहए । इसदलए भारिीय पिकाररिा ने उस समय का जो अपना धमष दनभाया या अपनाया वह था- अनाचार का, अत्याचार का, झठू का, छल का,कपट का दवरोध-प्रदिरोध करना था । उसने वह दकया और सफलिापूवषक दकया। इसदलए दिदटि राज्य के उन्मलू न के कें र मंे कहीं ना कहीं जो दहिं ी 1 दवद्यादनवास दमश्र – अनछए दबंि 2 रामचररिमानस लंकाकाडं 3 1857 के यद्ध के बाि जब ईस्ट इंदडया कं पनी भंग हो गई और भारि का िासन सीधे दिदटि संसि के द्वारा होने लगा था िबसे भारि दक एक इचं भदू म पर दिदटि ने अदिक्रमण नहीं दकया । वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 106
107 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पिकाररिा,दहिं ी प्रििे ों में व्याप्त थी उसका भी बहिु बहुि बड़ा योगिान ह।ै पिकाररिा के इसी िाप के भय से अगं ्रेजों ने बहिु से दनयम बनाएं पिकाररिा पर रोकथाम करने के दलए; मख्य था-वनाषकलर एक्ट। इस एक्ट के िहि उस समय कई सारे समाचार पिों को बंि कर दिया गया जसै े 'प्रिाप' 'यवक' आदि। \"दहिं ी प्रिीप\" 33 वर्ों िक दनकला बालकृ ष्ट्ण भट्ट की अगवाई मंे प्रयागराज से । दवचारणीय है दक उस समय इिने अल्प ससं ाधनों के बावजूि इिने लबं े लंबे समय िक पि पदिकाएं दनकलिे थे। उसमंे पिकार प्रमखिा से यह ध्यान रखिा था दक \"दकस िरह से अपने पि में ससं ार भर की दचंिन के क्षिे की जो उत्कृ ि चीजंे हैं उसको ले आए,भारि की जो मलू समस्या है उसको रखे; नवजागरण की जो वाणी प्रस्फदटि हो रही थी स्वामी ियानिं के निे तृ ्व में उसको स्थान िे । दहिं ी भार्ा का जो स्वरूप बन रहा था खड़ी बोली के माध्यम से, उसको भार्ाई रूप से सजाएं सवारंे सगदठि करंे। इस िरह से ििे काल मंे उपदस्थि पररदस्थदियां थीं- भार्ायी, धादमषक,सांस्कृ दिक,राजनदै िक। और उस समय जो पिकाररिा की भदू मका थी, उस मंे पिकारों ने अपना योगिान दिया और समय की मागं की पूदिष का, परजोर प्रयास दकया । दजसका पररणाम है दक अंग्रेजों को भारि छोड़ना पड़ा। पिकाररिा के प्रयास ने बहुि बहृ ि् स्िर पर आिं ोलनों को खड़ा दकया। कांग्रसे ने समझौिे और आंिोलन िोनों की नीदि अपनाई। पररणाम यह हआु दक अंग्रेज कागं ्रेस को समझौिे के िहि राज्य िके र चले गए। स्विंििा के पूवष; जो स्वप्न पिकारों, आंिोलनकाररयों ने िेखा था,उस स्वप्न को साकार करने के दलए पिकार दलखिे रहे,जो योजनाएं होनी चादहए उस पर लेखन जारी रहा । राष्ट्रधमष 1947 में लखनऊ से प्रकादिि हुआ और अद्यिन अधनािन बना हुआ ह।ै भाउराव िवे रस और िीनियाल उपाध्याय की योजना थी दक एक ऐसा पि दनकले जो राष्ट्र की आकाकं ्षा कोई स्थान िे। यहां \"राष्ट्र\" िब्ि पर दवचार करना आवश्यक है । अगं ्रजे ी भार्ा का िष्ट्प्रभाव होने से, अंग्रजे ी रूपािं रण करके लोग इसका अथष दनकाल लिे े हंै दक राष्ट्र 'निे न' ह।ै जबदक 'निे न' राष्ट्र नहीं ह।ै राष्ट्र िो वह अमिू ष चेिना है जो दकसी दनदश्चि भूभाग में रहने वाले लोगों के हृिय मंे दनवास करिी है । भारि में इस चेिना का दवकास लाखों वर्ष पवू ष हो चका ह।ै संकल्प पाठ हम करिे आ रहे हंै उसमंे सदृ ि की परू ी आय की गणना होिे-होिे विषमान काल िक आ करके दफर हम संकल्प लके र कोई काम करिे ह।ंै सकं ल्प पाठ क्या ह?ै उसे भी समझना चादहए। मरे े कहने का आिय यह है दक जो राष्ट्र धमष है वह राष्ट्र की जो आकांक्षा ह,ै चेिना है उसको वाणी िेने का जो उद्योग है वो होना चादहए। ऐसा पंदडि िीनियाल उपाध्याय जो भारिीय जनसघं के संस्थापक सिस्यों मंे से थे और प्रख्याि दवचारक थे िथा भाउराव िेवरस ित्कालीन सर संघचालक थे;िोनों का मानना था। कालािं र मंे राष्ट्र धमष के संपािक का िादयत्व अटल दबहारी वाजपेयी जी के मजबिू कं धों पर आ गया। वाजपेयी जी ने दहिं ू िन मन दहिं ू जीवन जैसे दिव्य पंदक्तयों के साथ राष्ट्रधमष का सपं ािन प्रारंभ दकया । राष्ट्रधमष का अपना एक ऐदिहादसक अविान रहा ह।ै दहिं ी पिकाररिा के क्षेि में जो आज भी अद्यिन बना हुआ ह।ै इस िरह से राष्ट्रधमष भी दहिं ी पिकाररिा के जो बनाए हएु मागष थे दजस पर चलकर के भारि ने स्वाधीनिा की लड़ाई मानव माि की आजािी की लड़ाई को लड़ा और स्वाधीनिा प्राप्त दकया, पर चला । स्वाधीनिा के बाि राष्ट्र कै सा हो? इसको लके र के दवचार चलिा रहा । स्वगीय िीनानाथ दमश्र, भानप्रिाप िक्ल आदि राष्ट्रधमष के प्रख्याि स्िभं लेखक रह,े दजनके दवचारों का प्रभाव रहा दक भारि की स्वाधीनिा के बाि भारि मंे एक दद्विीय नवजागरण आया दक जब भारि अपने खोए हुए स्वरूप को पाने के दलए चल पड़ा । और हम िखे िे हंै दक 1992 िक आिे-आिे जो असंभव से कायष थे, जो यह माने जािे थे दक भारि उस दस्थदि को प्राप्त नहीं कर सकिा, वह अपना खोया हआु गौरव नहीं प्राप्त कर सकिा; ये जो स्वििं िा के बाि की भारिीय वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 107
108 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पिकाररिा और उसकी जो राष्ट्र के प्रदि समपषण है उसके प्रभावस्वरूप एक ऐसा जन आंिोलन,जो अयोध्या जन आिं ोलन के नाम से दवख्याि ह,ै चला । इसको हम नकार नहीं सकिे; यह भारिीय दहिं ी पिकाररिा का ही एक प्रभाव ह,ै उसका बल है दजसमंे उच्च कोदट के लेखकों ने एक ऐसा जनमानस िैयार दकया दक आज हम िखे पा रहे हैं दक अयोध्या अपने पराने गौरव को प्राप्त कर रही है । वह जो एक ढांचा, टीस िे रहा था दहिं ू समाज को, 450 वर्ों के पश्चाि भी, उसको हटा दिया गया जनिा द्वारा ; और दफर लबं ी लड़ाई के बाि न्यायालय के द्वारा वह स्थान दहिं ू समाज को प्राप्त हआु । िो क्या इसमें दहिं ी पिकाररिा का कोई योगिान नहीं ह?ै यह ऐसे ही हो गया? यह ऐसे ही नहीं हुआ,यह दचिं क, दवचारिील जो लखे क थे,पिकार थे, दजन्होंने चीजों को बार-बार सामने रखा, अिम्य दनष्ठा से िो उस के नािे यह सब सभं व हआु । जहां िक विषमान पिकाररिा है यदि उसकी दस्थदि को िेखा जाए िो दचंिनीय भी ह,ै उत्साहजनक भी ह;ै िोनों दस्थदियां हमारे सामने दिखाई िेिी है । लदे कन इससे पहले अगं ्रेजों के जमाने से चले आ रहे िो िब्ि हैं मैं उनकी व्याख्या करना चाहूगं ा, जहां भारिीय पिकाररिा उसका सामना नहीं कर पा रही, उसका जवाब नहीं िे पा रही; वह िब्ि ह-ै भीड़ और िंगा । अंग्रेजों का भारिीय समाज के साथ कोई लगाव नहीं था और लगाव हो भी नहीं सकिा था क्योंदक वे नौकरी करने के दलए पहले यहां आए और उसके बाि झठू का सहारा लेकर ईस्ट इदं डया कं पनी के जो लटेरे चोर उचक्के टाइप के थ,े उन्होंने भारिीय राजनैदिक पररदस्थदियों का लाभ उठा कर के यहां िासन ले दलया । उनके दलए समाज में घटने वाली जो घटनाएं थी िीज , त्यौहार थे, व्रि थे, उपवास थ,े कं भ का स्नान आदि दकसी भी पवष में यदि बहुि बड़ी सखं ्या मंे लोग इकिे हो रहे थे िो उसको भी भीड़ के रूप मंे िखे िे थे; क्योंदक वह िो आत्मीयिा से िन्य थे इसदलए अंग्रेजों ने उन्हंे दचदन्हि करने का कि भी नहीं उठाया । अिः भीड़ बोल कर के काम चला लेिे थे । भड़े और भड़े में बहुि अंिर नहीं ह;ै भीड़-भेड़- एक के पीछे एक। वास्िव मंे भारिीय दहिं ू समाज कई श्रेदणयों, वगों, खापों, पंचायिों इन सब भौदिक इकाइयों में बंटा हुआ है अथाषि सयं ोदजि है । जसै े िरीर के दवदभन्न अंग ह,ैं वैसे ही सब समाज के अंग हंै । भारि मंे यह परंपरा रही है दक समूह को उसके नाम से संबोदधि करना । वणाशष ्रम मंे चार समूह बनाए- िाह्मण,क्षदिय,वशै ्य,िूर। कमष के आधार पर सयं ोदजि यह एक बड़ा वगष था। दफर जैसे जैसे पेिे बनिे गए वैसे वैसे जादियां बढ़िी गई; वसै े-वैसे सबं ोधन बढिे गए। और आश्रमों मंे िो दवदिि ह-ै िह्मचयष, गहृ स्थ,वानप्रस्थ, सनं ्यास यह सभी संबोधन हएु । दवद्याथी,दिक्षक आदि अन्य कमगष ि संबोधन भी हुए, होिे रहे हैं । कोई ऐसा वगष नहीं था दजसकी कोई पहचान न हो । उसके पहचान के साथ उसका सबं ोधन करना हमारा अपना िरीका रहा है । नहीं कछ िो आदत्मक सबं ंध से \"भाई\" कहकर संबोदधि कर लेिे हैं। \"सिं ो! आई ज्ञान की आंधी\" 1 कबीर कहिे हंै न; इसमें भी संबोधन ह।ै लेदकन अगं ्रजे ों ने जो एक िब्ि िे दिया क्योंदक वह िो आदत्मक सबं ंध िून्य थ;े भीड़!! अब दफर वह भारिीय पिकाररिा में चल पड़ा। अंग्रेजों को गए 73-74 साल हो गए 1947 के बाि से, लदे कन आप समाचार पि उठाकर िेखें िो पिकार और समूह के बीच की जो िरू ी ह,ै खाई है वह आपको दिख जाएगी । वह दलखिा ह-ै लाखों की भीड़ इकिी हो गई । जबदक वह िेख रहा है दक वह एक भरे ् में,दचिं न मंे,एक दवचार मंे जा रहे हंै चाहे वे कावं दडए हों, चाहे कं भ के यािी हों, चाहे अन्य िेिाटन करने वाले हों । लेदकन आज भी समाचार पि एक बार उठा कर के िखे ें िो सबं ोधन क्या दमलगे ा दक भीड़ !! हजारों की भीड़ इकिी हो गई । ऐसे मंे जो संबंध है वह िो दृदिगोचर नहीं हो रहा है । एक परायपे न के साथ संवाििािा जो ह,ै खबर को अपने ही िेि के एक िसू रे भाग मंे प्रस्िि कर रहा है । विमष ान दहिं ी पिकाररिा मंे यह जो परायपे न की दस्थदि ह,ै इसको दविा होना चादहए। एक सवं ाििािा के दलए यह 1 श्यामसिं रिास – कबीर ग्रथं ावली वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 108
109 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 आवश्यक है दक वो उस समूह को उसके नाम से संबोदधि करके , समाचार या खबर बना करके , उसको प्रस्िि करे। पिकाररिा से इसी िरह एक और िब्ि पनपा है- िंगा । अब यह दकस भार्ा का िब्ि ह?ै कहां से दनकला ह?ै उसकी खोज की जानी चादहए । ईस्ट इदं डया कम्पनी जो थीं, जब समाज मंे दस्थदियां दहसं क रूप ले लिे ी थी,दहिं ू और मसलमान समिाय के बीच संघर्ष की दस्थदि बन जािी थी,िो वे इसे िंगे िब्ि का उपयोग करिे थे । इससे चीजें स्पि नहीं हो पािी हंै दक समस्या के मलू में क्या ह?ै , अगं ्रेजों को िो समस्या का समाधान करना नहीं था, उनके दलए िो कोई दहिं ू हो या मसलमान उनसे कोई मिलब नहीं था । उनको िो अदधक से अदधक कर इकिा करना था, धन का िोहन करना था। और इसदलए लॉ एंड ऑडषर के नाम पर ऐसे चीजों को वे िबा िने ा चाहिे थे। भारिीय प्रिासन दफलहाल अभी उसी “मूड” में ह।ै जब भी कोई उपरव होिा है िो कफ्यषू लग जािा है । समाचार पि ऐसी दस्थदियों का जो दचिण करिे हैं,खबर बनािे ह;ंै िो छपिे क्या हैं दक फला जगह में िगं ा हो गया। अब आप पिा करिे रदहए, खोजिे रदहए दक समस्या क्या है? िथा उसका मूल क्या ह?ै उसमें िो पक्ष कौन ह?ै झगड़ा क्यों हआु ? आपको पिा ही नहीं चलेगा, आप एक भ्रम का दिकार होकर रह जाएंगे।1 दहिं ी पिकाररिा के दलए यह बहिु ियनीय दस्थदि है । घटना दजस प्रकार से घटे उसको समाज के सामने उसी रूप में आना चादहए और घटना िरू कै से हुई? घटना का अदभयक्त कौन ह?ै इसका दववरण स्पि रूप से समाज के सामने आना चादहए; िादक समाज को सही चीज का बोध हो सके । 'िंगा' िब्ि भ्रम का दनमाणष करिा है । 'भीड़' भी भ्रम का दनमाषण करिी है । लदे कन हम जब इसका एक पक्ष और िखे िे हैं,िो पािे हैं दक दहिं ी पिकाररिा मंे ऐसा वगष भी,ऐसा समूह भी उभरा, राष्ट्रीय चिे ना के दवकास के साथ-साथ दजसने दचदन्हि दकया चीजों को; और अयोध्या आिं ोलन जब िक चला, एक बहुि दविाल समूह जो श्री राम मंदिर की आकाकं ्षा लेकर आिं ोलन करिा था; उस समूह को \"कारसवे क\" के रूप मंे दचदन्हि दकया गया । दवश्व दहिं ू पररर्ि ने उस समय \"कारसवे क\" नाम से उपक्रम चलाया िो कारसवे क एक नया िब्ि भारिीय दहिं ी पिकाररिा में प्रविे कर गया। और इसके समानांिर \"रामभक्त\" िब्ि भी चला;जैसे रामभक्तों ने यहां सभा की, यहां आिं ोलन दकया, यहां रैली दनकाली। इस िरह से राष्ट्रीय चिे ना से ओिप्रोि जो समूह रहा,राष्ट्रधमष उसकी अगवाई कर रहा था;उसने दहिं ी पिकाररिा मंे नए नए िब्ि गढ़।े इस प्रकार हम िखे सकिे हैं दक दहिं ी पिकाररिा का आज का जो धमष ह,ै उसका जो किषव्य ह,ै उस पर िो कछ समहू दनसहृ भाव से चल रहे ह,ैं राष्ट्र में अपनी भूदमका दनभा रहे ह;ैं दकं ि िसू रा पक्ष भी है जो पिकार के भेर् मंे क्रीििास का आचरण कर रहे हैं । क्रीििास अथाषि धन लके र के चीजों को करना । अगर हम प्रकादिि समाचार पिों की बाि करें िो विमष ान में जो उसकी दस्थदि है; अगर भार्ा के स्िर पर िखे ंे, िो एक समय में वह उिषू से आक्रांि रही, अरबी- फारसी और दहिं ी के िब्ि से दमलकर एक भार्ा बनी जो उिषू कहलाई; हम सब जानिे ही हंै वह कोई नई भार्ा नहीं थी, दलखने की दस्क्रप्ट उसकी पदियष न थी, इसदलए के वल इिना अिं र होने से उसे उिषू के नाम से अदभदहि दकया गया। इसी आधार पर पादकस्िान बना है;यह सारा िेि,समाज जानिा ह।ै अरबी-फारसी के िब्िों की भरमार दहिं ी में हो जाए,ऐसा एक वगष चाहिा था; और उसके दलए यत्न भी करिा था। लदे कन आचायष महावीर प्रसाि दद्वविे ी जी जैसे प्रिापी, िपस्वी परुर्ों का यह अविान ह,ै उनका श्रम ह,ै उनका परुर्ाथष ह,ै िप है दक खड़ी बोली दहिं ी इन र्ड़यिं ों से मक्त हुई और दविद्ध रूप से उसका एक स्वरूप बना, सादहत्य में,पिकाररिा में और काव्य में । ऐसे में दहिं ी पिकाररिा ने दहिं ी भार्ा को अपने 1 यह दस्थदि आज भी बनी हईु है । पिकार यह बिा सकने मंे अपने को असमथष पािे हंै दक आदखर कोई समहू जो दहसं ा या फसाि कर रहा है िो उसकी पहचान क्या ह।ै कानूनों जकडन बरकरार है। वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 109
110 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 उत्कर्ष िक पहचुं ाया। दहिं ी के पिकारों ने उस समय िो लड़ दलया,दकं ि आज उिषू िो नहीं,पर अंग्रजे ी भार्ा जो ह,ै वह दहिं ी को आक्रािं कर रही ह।ै मझे याि है 1995 में जब मंै दिल्ली गया था, िो नवभारि टाइम्स प्रकादिि होिा था वहां से दहिं ी मंे ; और आज 25 वर्ों के बाि भी जारी ह।ै अगर आपको प्रदियां दमल जाए िो आप िेखंे िोनों को,आपको समझ में नहीं आएगा दक यह जो प्रदियां अब दनकल रही ह,ंै क्या वह 25 साल पहले ऐसा था? 25 साल पहले के नवभारि टाइम्स की िब्ि योजना उसके आलखे और उसकी भार्ा का स्िर दमलिा है क्या? क्या वह आज भी ह?ै नहीं ! आज परू ी िरह से नाममाि के दहिं ी के िब्ि और रोमन िब्ि को िेवनागरी में रख करके उस अखबार ने दहिं ी भार्ा की हत्या करने का एक सकं ल्प ले दलया ह,ै ऐसा लगिा है । और उसका िष्ट्प्रभाव यह है दक जो अन्य अखबार ह,ंै वह भी जाने अनजाने में अंग्रजे ी भार्ा के िब्िों को ला रहे ह।ंै भार्ा दवचारों की वादहका होिी ह।ै अगर वह दबगड़ेगी,िो दवचार भी दबगड़ेगा। और हम िखे रहे हैं दक जैसे जैसे िब्ि जो हंै समाज से,अन्य चीजों मंे प्रविे कर रहे हैं,पिकाररिा के भी क्षिे ों में प्रयोग मंे लाये जा रहे ह।ंै इससे जो पिकाररिा की नींव रखी गई थी; हमारे पवू जष ों न,े दहिं ी के पिकारों ने,आज डावांडोल हो रही ह;ै सकं ट आ रहा है उस पर। इसदलए आज आवश्यकिा है दक दहिं ी पिकाररिा का एवं पिकारों का जो धमष ह,ै उसे पनः स्थादपि करें; उसको दहिं ी के पिकार दनभाए; भार्ा को दबगड़ने ना ि।ंे पिकाररिा में राष्ट्र दवरोधी ित्वों का प्रविे आज हो चका ह।ै अगर आप इलके ्रॉदनक चनै लों को िखे ंे िो आपको समझ नहीं आएगा दक एक ही घटना की व्याख्या कै से कर रहे हंै? एक जगह आप िखे ंेगे िो वह चीज आपको सही दिखाई िगे ी, िसू री जगह कोई पिकार उसकी गलि व्याख्या करेगा, वह गलि दिखाई िेगी। ऐसे में सत्य क्या है? उसका पिा लगाना कदठन हो जािा ह।ै पिकार का मलू धमष ह-ै वस्ि दस्थदि को बयां करना। लेदकन आज के इलके ्रॉदनक मीदडया का जो पिकार है वह खबर नहीं परोस रहा, खबर िेने के साथ वह उसका व्याख्यािा भी हो जा रहा ह।ै वहीं ित्काल वह व्याख्या करने लग जा रहा ह।ै यह नहीं दक कछ समय लके र दवचार-दवमिष करे जो उसका धमष ह;ै करना चादहए। लेदकन ऐसा उद्यम न कर के वहीं ित्काल वह व्याख्या करने लग जा रहा है; दजससे एक भ्रम बन जा रहा ह,ै दजससे जो पाठक या श्रोिा ह,ै वह जान ही नहीं पा रहा है दक सत्य क्या है? एक समस्या और आई जो दक समय की िने ह।ै एक समय था, जब पिकार अपने पि का स्वामी स्वयं हआु करिा था। गणिे िंकर दवद्याथी ‘प्रिाप’ के प्रकािक,मरक सब थे। उस समय भी वैिदनक-अविै दनक पिकार हआु करिे थे। लदे कन अदधकांि के स्वामी पिकार स्वयं ही हआु करिे थ।े आज की दस्थदि बिल गई ह।ै पिकाररिा भी एक बहिु बड़ा व्यवसाय हो गया ह,ै चाहे वह दप्रंट मीदडया हो या इलेक्रॉदनक मीदडया हो, बहुि बड़ी मािा मंे दनवेि करके चलाई जा रही ह।ै दहस्सेिारी बनिी दबगड़िी रहिी है पूंजीपदियों की। पिकार की दस्थदि डांवाडोल ह।ै आज इस अखबार में हैं िो कल उस अखबार में, आज इस चनै ल में ह,ंै िो कल उस चनै ल मंे ह।ैं ऐसे मंे पिकार के सामने एक बहुि कदठन चनौिी है दक ऐसी कदठन पररदस्थदियों मंे वह दकस प्रकार से अपने बािों को रखे, सत्य का उद्घाटन करे, समाज की सवे ा करे; और जो एक पिकार का मूल धमष ह-ै मानव दहिों की बाि करना, सदृ ि के दहिों की बाि करना, सत्य का साथ िेना, अन्याय और अत्याचार का दवरोध करना; जो दहिं ी पिकाररिा की नींव रही ह,ै उसको दनभाए। इस समय यह कदठन सा है क्योंदक पिकार िो माि संपािक ह,ै स्वामी िो कोई और ही ह।ै यह प्रारंदभक समय में भी था,थोड़ा कम था। दकं ि अब िो यह ज्यािा ह।ै इसदलए जहां िक भदवष्ट्य की बाि है, दहिं ी पिकाररिा का भदवष्ट्य िो चनौिीपूणष ह।ै अंधकारमय िो मंै नहीं कह सकिा क्योंदक भारि आज की दस्थदि मंे समथष है,दवश्व मंे इसकी पछू ह,ै और दहिं ी भार्ा दबना दकसी सरकारी सहायिा के , दबना दकसी राजकीय संरक्षण के भी अपनी िदक्त से खड़ी ह,ै अपनी चनौदियों को िरू करने का प्रयास कर रही ह,ै दवकदसि हो रही ह,ै गदििील हो रही ह।ै इसका प्रमाण यह है दक आप जो इलेक्रॉदनक मीदडया िेखिे हंै , िो हर वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 110
111 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 प्रािं के जो नेिा हंै या वहां के जो दनवासी ह;ैं वह बड़े सहज भाव मंे दहिं ी भार्ा मंे अपनी बाि रखिे ह।ंै 25-30 साल पहले ऐसी दस्थदि नहीं थी ।अगर कोई बाइट रखिा था मीदडया के सामने, िो वह क्षेिीय भार्ा में बोलिे थे अथवा अगं ्रेजी में बोलिे थ।े लेदकन अब दहिं ी की व्यादप्त है इिनी दक अरुणाचल,के रल आदि सब जगहों पर इसका दवस्िार हो रहा ह।ै इसके दवकास में दहिं ी पिकाररिा की जो भूदमका है वह बहिु बड़ी ह।ै पिकाररिा का धमष चनौदियों से दघरा हुआ उस समय भी था,जब इस का जन्म हो रहा था। लेदकन उस समय मेधावी पिकारों ने अपने त्याग से, िप से पिकाररिा के धमष को बचाए रखा, सत्य का उद्घोर् दकया,असत्य को दनभीक होकर कहने का साहस रखा। दवदिि है दक कै से बालमकं ि गप्त ने नाम1 बिलकर \"भारिदमि\" मंे ित्कालीन वायसराय का दवरोध दकया, खडं न दकया, उस पर व्यगं दकया था। \"दिव िंभू के दचिे\" नाम से िो संग्रदहि दकए गए। उसी िरह से \"चक्रपादण िमाष 'दद्वरेफ' के नाम से महावीर प्रसाि दद्ववेिी जी दलखा करिे थ।े इस िरह से दवर्म पररदस्थदियों में भी दहिं ी के पिकारों ने अपने धमष को नहीं छोड़ा अथािष ् अपने कत्तषव्य को नहीं छोड़ा था, अथाषि् जो पिकाररय िादयत्व है उसको छोड़ा नहीं,उसको दनभाया। राष्ट्रधमष भी उस पर चलिा हुआ आगे बढ़ा। उसके साथ जो पांचजन्य साप्तादहक पदिका दनकलिी थी,उसने भी अपना योगिान दिया। इस िरह से िेखा जाए िो दहिं ी पिकाररिा ने मानव-मूल्य,जीवन-मूल्य,सदृ ि के समस्ि जीवों के उत्थान के दलए, उसके संरक्षण के दलए काम दकया। इसदलए यदि ससं ार के पिकाररिा के इदिहास को िेखा जाए, दभन्न-दभन्न भार्ाओं मंे जो पिकाररिा हुई ह,ै िो कहीं ना कहीं दहिं ी की जो पिकाररिा ह,ै उसका जो इदिहास ह,ै उसमंे जो जीवन मलू ्यों को संरदक्षि करने की उसकी प्रवदृ त्त ह,ै उसका एक बहिु गौरवपणू ष स्थान दिखाई िेिा ह।ै आज के संपािक रहे स्वनाम धन्य बाबू कृ ष्ट्ण पराड़कर जी ने दलखा है दक आने वाले समय मंे समाचार पि रंगीन होंगे, चमक-िमक बढ़ेगी; लेदकन जो दवचार ह,ै वह वैसा नहीं रहगे ा।2 आज यह दिख रहा है दक क्षरण हुआ ह,ै दवचारों मंे कमी आई ह।ै दकस िरह से दवज्ञापन भी खबर के रूप में दप्रटं होकर के सामने आ जा रहे हैं दक पिा ही नहीं चल पा रहा है सामान्य पाठक को, दक वह दवज्ञापन है या समाचार है; इस िरह से दडजाइन करके उसे छाप दिया जा रहा है। यह पाठक के साथ अन्याय ही िो ह।ै इसदलए आने वाला जो भदवष्ट्य ह,ै वह बहिु चनौिीपणू ष ह।ै दहिं ी के पिकार पहले भी चनौदियों का सामना करके उसका प्रदिकार दकए ह,ैं आगे भी करंेग,े ऐसी आिा ह।ै और जसै ा दक हम िेख रहे हैं, \"राष्ट्रधम\"ष उसका नेितृ ्व कर रहा ह,ै उसका और फै लाव हो, दवस्िार हो, ऐसे यत्न करना चादहए। सिं भा 1. दवद्यादनवास दमश्र – अनछए दबिं 2. रामचररिमानस लंकाकांड 3. 1857 के यद्ध के बाि जब ईस्ट इदं डया कं पनी भगं हो गई और भारि का िासन सीधे दिदटि ससं ि के द्वारा होने लगा था िबसे भारि दक एक इचं भूदम पर दिदटि ने अदिक्रमण नहीं दकया । 4. श्यामसंिरिास – कबीर ग्रथं ावली 5. यह दस्थदि आज भी बनी हईु है । पिकार यह बिा सकने में अपने को असमथष पािे हैं दक आदखर कोई समहू जो दहसं ा या फसाि कर रहा है िो उसकी पहचान क्या ह।ै कानूनों जकडन बरकरार ह।ै 1 बालमकं ि गप्त जी भारिदमि मंे दिविम्भ के छद्म नाम से लखे दलखिे रहे दजसमे ित्कालीन वाइसराय कजनष के नीदियों की समीक्षा होिी थी । 2पराडकर जी की दकसी समय की गई उक्त दटप्पडी को िब समझा जा सकिा है जब दहंिी पिों की स्वाधीनिा से पवू ष और आज के साथ िखे ा जाए । पिकाररिा और पिकार कहाँ पहचंु गए हंै , सहज अनमान लगाया जा सकिा है। वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 111
112 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ‘‘न्यू मीतिया एर्ं संलकृ तत’’ माधर्ी व न्द्दी विभाग वदल्ली विश्वविद्यालय, वदल्ली मो. 8447545614 ईमले : [email protected] सारांश आज ‘न्यू मीहडया’ संवाद का एक ऐसा जररया बनकर उभर चकु ा िै जिाूँ इटं रनटे के माध्यम से पॉडकाथट, ब्लॉग्स, सोशल साइट्स, टैक्सट मसै हे जंग आहद करते िएु एक-दसू रे से पारथपररक सवं ाद धारण कर लेता ि।ै हजसमंे पाठक / दशकण / श्रोता तरु ंत अपनी हटप्पणी न के वल लखे क। प्रकाशक से साझा कर सकते ि,ंै बहल्क अन्य लोग भी प्रकाहशत / प्रसाररत / संचाररत हवषय वथतु पर अपनी हटप्पणी दे सकते ि।ंै बीज शब्ि: मीवडया, संिाद, समाि, पररितवन शोध आलेख भारतीय सिंविधान के त त मीवड़या को लोकतिंत्र का चौथा स्तम्भ क ा जाता ।ै मीवड़या ने मारे समाज को र क्षेत्र मंे प्रभावित वकया ।ै अगर मीवड़या समाज के प्रवत अपने दावयत्ि वनभाये, सत्य पर अवड़ग खड़े र े तो उस समाज और राष्र की नींि व ल न ीं सकती ।ै मीवड़या की वजम्मेदारी समाज को जागरूक करने की ै और स ी मागव दशवन वदखाने में म त्िपरू ्व भूवमका वनभाती ।ै आज मीवड़या का स्िरूप ी बदल गया ।ै मीवड़या की जग न्द्यू मीवड़या का िचवस्ि ।ै य 21िीं सदी का मीवड़या ,ै इस मीवड़या ने अभी तक के चले आ र े अवभव्यवक्त के तरीकों को पूरी तर से बदल वदया ।ै क ने का तात्पयव य ै वक ‘‘न्द्यू मीवड़या एक ऐसा मीवड़या ै वजसने वफल्म, छवियों, संगि ीत, मौवखक और वलवखत शब्द जसै े पारंिपररक मीवड़या को किं प्यटू र की इटंि रैवक्टि शवक्त और सिंचार प्रोद्योवगकी विशरे ्कर इटंि रनेट से जोड़ वदया ।ै ’’ आज म चारों तरफ से न्द्यू मीवड़या के अितार से वघरे एु ।ंै आज इसने मारी वदनचयाव को पूरी तर से प्रभावित वकया ै लेवकन आज म इसके वबना अपनी वनजी जीिन की कल्पना भी न ीं कर सकते ।ंै आज मारे दवै नक जीिन का कौन-सा क्षते ्र वजसमें मीवड़या की दखल न ो? वशक्षा, मनोरंिजन, विज्ञान, पत्रकाररता वनजी ि सरकारी कायावलय, बवैं कग, रक्षा, वचवकत्सा, उद्योग िवै श्वक बाजार, कृ वर्, मौसम, पयाविरर्, खेल, तकनीक सचू ना प्रौद्योवगकी जैसे विविध और म त्िपूर्व क्षते ्रों में इसका योगदान ।ै क ाूँ भारत अपनी प्राचीन संिस्कृ वत और कला के वलए प्रवसद्ध ै आज भी विश्व भर में भारतीय सिंस्कृ वत, कला, नतृ ्य, दस्तकारी वशल्प और पररधान की िज से आज म रोजमराव की वजदंगि ी में न्द्यू मीवड़या से इतने प्रभावित ।ंै वक म अपनी सिसं ्कृ वत को फल-फू लने की बजाय नि ससंि ्कृ वत को ग्र र् कर र े ।ैं लेवकन वस्थवत य अपने देश में अपनी ससंि ्कृ वत की वस्थवत वचतंि ाजनक ।ै नि सिसं ्कृ वत के आने से समाज, कला, मनोरिंजन या फै शन और पविमी संसि ्कृ वत अधंि ाधधिंु नकल मंे अपनी पुरानी संसि ्कृ वत को भूलते जा र े ैं आज न्द्यू मीवड़या वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 112
113 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 के दौर मंे में अपनी संसि ्कृ वत को पररभावर्त करने की जरूरत ।ै दस्तकारी, वशल्प, ऐवत ावसक स्मारक, विवभन्द्न राज्यों के विवशि पररधान, अलग-अलग तर से व्यिंजन आवद भी मारी ससिं ्कृ वत का अ म व स्सा ।ै मारी भारतीय ससिं ्कृ वत का मलू सतू ्र ै वक विश्वबंिधुत्ि और विश्वकल्यार् की भािना ।ै भारतीय ससंि ्कृ वत न तो वकसी जावत, सिंप्रदाय, िगव, कबीले, धम,व वफर के समू और सीमाओिं की बात करती ै बवल्क विश्व कल्यार् भारतीय सिसं ्कृ वत का मूल ध्यये ै आज न्द्यू मीवड़या और नि सिंस्कृ वत ने परु ानी सिंस्कृ वत में वमलािट कर दी ।ै आज न्द्यू मीवड़या की क्ावन्द्त मानि समाज, अथवव ्यिस्था, राजनीवतक व्यिस्था, ससिं ्कृ वत, सामावजक ररश्तों, पाररिाररक ररश्तों पर प्रभाि डाल र ी ै और असतिं ुलन की वस्थवत पदै ा ो गयी ।ै ज ाँू भारतीय सिंस्कृ वत में िसुधैि कु टुम्बकम् पररिार और कु टुम्ब की पररकल्पना ै ि ीं िैवश्वकरर् या यू क ंे ग्लाब्लाइजशे न, व्यापार और धिधं ा करने की कल्पना मात्र ।ै जो ससंि ्कृ वत विश्वकल्यार् और विश्व बधंि तु ्ि की बात करती ै उसे क्यों खंवि डत वकया जा र ा ?ै उसके वनव त कारक क्या ?ै िे कौन से कारर् ै जो मारी ससंि ्कृ वत खिंवडत करें उन्द् ें जानना और विचार विमशव करना सभी का दावयत्ि ।ै मंे अपनी सिंस्कृ वत का सिंरक्षर् करना चाव ए। सिसं ्कृ वत वकसी भी समाज की प चान का म त्िपूर्व वबन्द्दु ।ैं समाजशािी भीखू पारेख मानते ैं वक ससंि ्कृ वत एक इवत ास द्वारा वनवमतव विश्वासों और प्रथाओंि की व्यिस्था ै वजसके सदिं भव मंे व्यवक्त और समू अपने जीिन को समझता और व्यिवस्थत करता ।ै सिसं ्कृ वत में जीने का तरीका और समाज को जीिन की व्यिस्था दते ी ।ै समाज की तर ससंि ्कृ वत पर भी इस न्द्यू मीवड़या का ग रा असर पड़ा ।ै परु ाने मीवड़या मंे ज ाूँ व्यवक्त मात्र कंि टेट का उपभोक्ता था ि ीं अब ि किं टेट को वनवमतव भी कर र ा ।ै आज ससिं ्कृ वत को बचाए रखने के वलए अनके संसि ्थाएूँ ि व्यवक्त अब लुप्त ोते जा र े सासिं ्कृ वतक वचन्द् ों परिंपराओिं और बोवलयों की वडवजटल दस्तािेजीकरर् भी कर र े ।ैं परन्द्तु इसने संसि ्कृ वत के नाम अनके प्रकार की रूवढयों को भी प्रचाररत वकया ।ै संसि ्कृ वत के नाम आजकल धावमवक कमवकाडंि ों को ी अवधक म त्ि वदया जाने लगा ।ै इसी प्रकार सांिस्कृ वतक विरासत का विरूपीकरर् करके आने िाली पीवड़यों को गुमरा करने का प्रयास भी वकया जाने लगा ।ै इसवलए अनेक बार ससिं ्कृ वत के स्थान पर अपससिं ्कृ वत का प्रसार भी इसके माध्यम से ो र ा ।ै इसके प्रवत जागरूक और सािधान र ने की आिश्यकता ।ै विगत कु छ िर्ों से देखा जाए तो न्द्यू मीवड़या बनाम नि ससिं ्कृ वत मंे पररितनव अविराम गवत से चलता एु आज वकस प्रकार मारा देश संिक्मर् के दौर से गजु र र ा ।ै आज वकसी भी क्षते ्र में नजर उठाकर देखें तो न्द्यू मीवड़या ने एक जाल-सा वबछा वदया ।ै और न्द्यमू ीवड़या के दौर मंे ऐसा कोई क्षेत्र इससे अछु ता न ीं र ा ।ै चा े ि क्षते ्र राजनीवतक, धावमवक, सामावजक, आवथकव सासिं ्कृ वतक, प्रौद्योवगकी या तकनीकी क्ांवि त ो सभी क्षते ्र मंे आज पररितवन बढी तेजी से ो र ा ।ै क्योंवक आज िैश्वीकरर् और पविमीकरर् की चकाचधैं में मानवसक पररपक्िता को कोई स्थान न ीं वदया जा र ा ।ै अतः म एक भड़े चाल मंे आखूँ े मूँदकर चलते चले जा र े ।ंै अच्छे-बुरे अथिा स ी और गलत का अतंि र करना भी भलू ते एु जा र े ।ंै आज वशवक्षत समाज धीरे-धीरे भारतीय ससिं ्कृ वत से और सबसे बड़ी बात म स्ियिं अपने से दरू ोते जा र े ।ंै आज इसकी संखि ्या कम ै लेवकन आने िाले िर्ों में य सिंख्या बढ जाएगी। आज भी मारा झुकाि क ीं न वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 113
114 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 क ीं अिगं ्रेजी सिंस्कृ वत एिंि उनके जीिन दशनव की ओर वदखाई पड़ता ।ै मारे देश की सरकार भी य ी चा ती ै सबकु छ वडवजटल ो जाए। सबसे म त्िपूर्व बात ै वक आज मीवड़या स्ियंि को उपभोक्तािादी ससिं ्कृ वत से प्रभावित ै इसवलए सामावजक व तों के बजाए, वनजी स्िाथव की तरफ झकु ाि कु छ ज्यादा ी दखे ने को वमल र ा ।ै आज मीवड़या वनजी स्िाथव ि ाूँ की उपभोक्तािादी संसि ्कृ वत मंे इस तर घलु वमल गया ै वक अपनी नवै तक, कतवव ्य, दावयत्िों, उद्देश्यों से वकस तर भटकता जा र ा ।ै आज पररर्ाम य ै वक जब कोई नीवत ससिं ्कृ वत में बदलाि की बात क ती ,ै तब टकराि की एक वस्थवत बन जाती ।ै अवधकाशंि दशे िासी मूल अिधारर्ाओंि में बदलाि न ीं चा ते। नई संसि ्कृ वत इन मयादव ाओिं को तोड़ती ईु वदखाई पड़ती ै आज न्द्यू मीवड़या और निसंसि ्कृ वत की िज से 377 धारा को मान्द्यता प्राप्त ुई। इसके आने के बाद समाज मंे इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाि दखे ने को वमलते ।ंै इस विर्य को मचंि पर लाने के वलए मैवथलीशरर् गपु ्त की पंिवक्त याद आ र ी -ै म कौन थे, क्या ो गये और क्या ोंगे अभी आओ विचारंे, आज वमलकर ये समस्याएँू सभी।। मारे देश के राष्रकवि जब य बात उठा र े थे उस समय उनके सामने सम्परू ्व भारत और भारतीय अवस्मता का प्रश्न था। य प्रश्न, ब ुत बड़ा प्रश्न था। ‘ म कौन थ’े अथावत् अतीत का मलू ्यांिकन। ‘क्या ो गय’े अथावत् ‘ितमव ान की परख’ और क्या ोंगे सभी’ अथावत् भविष्य की सम्भािनाओंि पर विचार। अतीत के मलू ्यांकि न के वबना ितमव ान की समझ न ीं बन सकती और ितवमान की समझ के वबना भविष्य की दशा और वदशा के बारे मंे म सोच न ीं सकते ।ंै आज न्द्यू मीवड़या बनाम नि संिस्कृ वत के सिंदभव मंे य विर्य इसी चीज को लेकर चल र ा ।ै आज ‘न्द्यू मीवड़या’ सिंिाद का एक ऐसा जररया बनकर उभर चकु ा ै ज ाँू इटंि रनेट के माध्यम से पॉडकास्ट, ब्लॉग्स, सोशल साइट्स, टैक्सट मैसेवजिगं आवद करते एु एक-दसू रे से पारस्पररक सिंि ाद धारर् कर लेता ।ै वजसमंे पाठक / दशकव / श्रोता तुरिंत अपनी वटप्पर्ी न के िल लखे क। प्रकाशक से साझा कर सकते ,ैं बवल्क अन्द्य लोग भी प्रकावशत / प्रसाररत / संचि ाररत विर्य िस्तु पर अपनी वटप्पर्ी दे सकते ।ंै य वटप्पवर्याँू एक से अवधक भी ो सकती ै अथातव ् ब धु ा सशक्त वटप्पवर्याँू पररचयाव मंे पररिवततव ो जाती ।ै उदा रर्तः आप फे सबुक को ी लं-े यवद आप कोई सिदं ेश प्रकावशत करते ंै और ब तु से लोग आपकी विर्य िस्तु पर वटप्पर्ी देते ैं तो कई बार पाठक-िगव परस्पर पररचयाव आरम्भ कर देते ै और लेखक एक से अवधक वटप्पवर्यों का उिर दते ा ।ै न्द्यू मीवड़या िास्ति मंे परम्परागत मीवडया का रूप ।ै आज य क ाित सटीक बठै ती ै पररितवन, प्रकृ वत का वनयम ।ै य एक क्षते ्र मंे लागु न ीं ोता ,ै प्रत्येक क्षते ्र मंे लागु ोती ।ै इसी तर मीवड़या भी इससे अछु ता न ीं र ा ।ै इसका सबिं ंधि सूचना प्रौद्योवगकी के विकास के साथ ै सूचना प्रौद्योवगकी क्ावन्द्त ने दवु नया एक ग्लोबल गाूँि मंे तब्दील कर वदया ।ै आज म घर बैठे दवु नया के वकसी भी कोने को देख सकते ै और ि ाूँ के लोगों से बात कर सकते ।ंै इसी सूचना प्रौद्योवगकी के माध्यम से पूरा विश्व ग्लोबल गािूँ बन गया ।ै वजससे म एक दसू रे दशे का र न-स न, तकनीकी, विकास, ससिं ्कृ वत को जान सकते ।ंै ‘‘आज न्द्यू मीवड़या मात्र तकनीक का ी न ीं बवल्क तकनीक के प्रयोग वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 114
115 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 का भी नयापन वलए ुए ।ै य व्यवक्त की सािवजवनकता और सािजव वनक की वनजता का समीकरर् बन गया ।ै दौर अब ‘न्द्यू मीवड़या का आ गया ।ै ि दौर चला जब समाचारों को जल्दी मंे वलखा गया इवत ास क ने के साथ ी 'Next Today- History to morrow क ा जाता ै लवे कन अब तो 'News this moment- History next moment' का जमाना आ गया ।ै वबलों को जमा करन,े नौकरी-परीक्षा के फॉमष भरने जमा करन,े फोन करन,े पढने ि खरीददारी आवद के वलए लम्बी लाइनों का दौर बीते दौर की बात ोने जा र ी ,ै और जमाना लाइन में लगने का न ीं र ा, ‘ऑनलाइन’ ोने का आ गया ।ै इसकी वजम्मदे ार वसफव 'न्द्यू मीवड़या' ।ै इसकी वस्थवत आज ऐसी ै कब इसका स्िरूप अपने िाले समय में बदल जाए। मारे दशे के प्रधानमंति ्री नरंेर मोदी ‘वडवजटल इविं डया’ बनाने की लगातार बात करते र ते ।ैं इसकी राजनवै तक सामावजक, भौगोवलक, सीमाओंि से पूरी तर मुक्त ।ै आज आम जनता अपनी अवभव्यवक्त को स्िततंि ्र रूप से व्यक्त कर र ी ।ै वक य वकसी बधिं न, कायदे काननू को न ीं मानती ।ै ि स्ितिंत्रता पिू व अपनी अवभव्यवक्त बयाँू करती ।ै एक ऐसा माध्यम वजसमें न समय की कोई समस्या आती ,ै न सकवु लेशन की कमी, न म ीने भर तक पाठकीय प्रवतवक्याओंि का इतंि जार करने की जरूरत पड़ती ।ै य त्िररत अवभव्यवक्त, त्िररत प्रसारर्, त्िररत प्रवतवक्या का एक प्लटे फामव बन चकु ी ।ै इसीवलए स्िरूप विश्वव्यापी बन गया ।ै इसकी शरु ुआत एक उद्दशे ्य को लेकर उभरी थी, वजसका उद्देश्य समाज व त तथा देश व त था लवे कन अब न्द्यू मीवड़या एक व्यिसाय बन गया ै और बढ गया ै मनोरंिजन। इसने मीवड़या की तकनीक को बदला, नई साज-सज्जा आई ,ै नया वमजाज, नये पत्रकार, नये सम्पादक, नई तकनीक, सब कु छ नया वदखाई दे र ा ै वसफव वमवल्कयत ी पुरानी ।ै इस नई फौज ने नई भूख, नई चा त, नये सपने, नये द्वन्द्द्व तथा नये सिंघर्व वदये ।ंै आज इसने ितमव ान यगु को सचंि ार क्ािंवत का यगु बना वदया ।ै और इसका विकवसत माध्यम ‘इलके ्रोवनक मीवड़या’ छोटे-छोटे अिंधकारमय कोने में धँूसता जा र ा ।ै वजसकी ि ज से आज मारे सामावजक सन्द्दभों सिंस्कृ वत ि जीिन पद्धवत सभी को अपने दबाि मंे लने ा शरु ू कर वदया ।ै ये दबाि इतना अवधक बढ गया ै वक अब ये क ने का िक्त न ीं बचा वक ‘इलेक्रोवनक मीवड़या’ की ये िायंे क ीं मारे घर को अस्त-व्यस्त न करें? अब तो म उस आधँू ी के मध्य में ै जो पविम से आई ,ै वजसके पररर्ामस्िरूप मारी सािंस्कृ वतक िाओिं का रुख बदल गया ।ै आज नि ससंि ्कृ वत विकवसत ो र ी ।ै मारे नवै तक मूल्य, कतवव ्य सब अस्त व्यस्त नजर आते ।ंै इसके आने से असल मंे ऐसा लगता ै वक मने निसिंस्कृ वत का जामा प न वलया ो। रेवडयो, वफल्म, टी.िी. और इटंि रनटे नि सिसं ्कृ वत को धारर् वकये एु ।ंै परम्परा उन सासंि ्कृ वतक जलु ूसों की तर ै जो मारे श रों मंे वकसी न वकसी रूप मंे वनकलते र ते ।ैं नि ससंि ्कृ वत मलू ाधार ै सािंस्कृ वतक उद्योग के कलाकार-रचनाकार, ये िे कलाकार ैं जो नारा दे र े ंै ‘‘उनको कोई रोक न ीं सकता।’’ नि संिस्कृ वत की धरु ी ै विज्ञापन। विज्ञापनों के जररए य जामा प नाया जा र ा ।ै ‘‘नि ससिं ्कृ वत में शावमल ोने िाले लोग य बात बार-बार क ते ंै वक उनके द्वारा सांिस्कृ वतक जाम लगा वदया गया ।ै इसके कारर् संसि ्कृ वत का समूचा पररि न ठप्प ो गया ।ै ऑवडयन्द्स को सासिं ्कृ वतक िा वमलनी बन्द्द ो गई ।ै नि सिसं ्कृ वत का बुवनयादी लक्ष्य ै ‘‘सासिं ्कृ वतक भ्रम या दवु िधा पदै ा करना।’’ क ने का तात्पयव य ै इसके आने के बाद वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 115
116 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 म अपनी सिसं ्कृ वत के मलू ्य भूलते जा र े ।ैं आज नि सिसं ्कृ वत का जामा मंे चारों तरफ वदखाई देता ।ै वजससे अवधक आधुवनक वदखाई दंे। य स ी बात ै न्द्यू मीवड़या और नि ससिं ्कृ वत के आने के बाद परू ा विश्व ग्लोबल गािूँ बन गया ।ै म उपभोक्तादी सिंस्कृ वत मंे र र े ।ैं लेवकन मंे अपनी ससंि ्कृ वत न ीं भूलनी चाव ए, प्रत्येक संसि ्कृ वत मंे कु छ नया सीखने को दते ी ।ै म एक दसू रे राज्य और दशे की संिस्कृ वत से पररचय करते ंै इसका मतलब य न ीं म दसू रे दशे ों की ससिं ्कृ वत को ग्र र् कर अपने ऊपर पूरी तर से लागू करलंे। मारे भारत दशे में विविधता ोने के बाद भीएक समन्द्िय ै य ी समन्द्िय, सतिं लु न, एकता निीन विकास की तरफ इशारा करता ।ै आज नि सिसं ्कृ वत का सबसे बड़ा उदा रर् ै थ्योरी का ग्लोबल स्तर पर वितरर्। भारत के सिदं भव मंे पयटव न, धमव और स्थानीय ससिं ्कृ वतयों को वजस तर निीकृ त वकया जा र ा ै और विसदंि भीकृ त रूप मंे वजस तर पविमी सिंस्कृ वत को मारे गले उतारा जा चकु ा ै और पविमी उपभोग के स्िगव को मारे पयवटन, धमव और देशज सिंस्कृ वत से जोड़ा गया ।ै उसने गभंि ीर सकंि ट पदै ा कर वदया ।ै इस ‘नि ससंि ्कृ वत जामा’ ी न्द्यु मीवडया उद्योग को गवतशील अिस्था में लाया ।ै ब रु ाष्रीय मीवड़या कम्पवनयों का लगातार दबाि बढ र ा। विज्ञापन एजंेवसयों सये वसलवसला शुरू ुआ था और आज इसके सभी माध्यमों को अपने दायरे मंे ले वलया।’’ आज िैश्वीकरर् के आने से न्द्यू मीवड़या को न के िल प्रभावित वकया ै बवल्क इसकी रूप रेखा ी बदली ।ै िैश्वीकरर् की शरु ुआत उदारीकरर् के साथ ुई थी लवे कन धीरे-धीरे इसने राजनीवत, सिंस्कृ वत, साव त्य भार्ा आवद को प्रभावित वकया ।ै इसके आने से समाज, ससिं ्कृ वत, वशक्षा जगत, राजनीवत, कृ वर् और मारे दवै नक जीिन पर भी प्रभाि पड़ा ।ै इसके आने से में रोज नये-नये पररितवन देखने को वमलते ।ंै ये पररितनव सामावजक रीवत-परम्परा, र न-स न, खान-पान मंे तो देखने को वमलते ंै अब तो सोशल मीवड़या रोज नई गवतविवध देखने को वमलती ।ै सोशल मीवड़या का चे रा र वदन बदलता र ता ।ै आज मारे दैवनक जीिन पर फे सबकु ट्विटर, व् ाट्सएप ने ब तु ग रा प्रभाि डाला ।ै इसकी भूवमका का सच आज ब ुत खुले रूप मंे मारे सामने आ चकु ा ।ै आज की युिा पीढी वजस तर से इस माध्यम का उपयोग कर र ी ै ि बे द वचन्द्तनीय ।ै इसके माध्यम से अक्सर कु छ लोगों द्वारा म ान व्यवक्तयों या देिी- दिे ताओिं के बारे मंे उप ासास्पद वटप्पवर्याूँ की जाती ,ै समाज मंे असन्द्तोर् फै ला कर लोगों की धावमवक भािनाओंि को भड़का वदया जाता ।ै वजसकी िज से सच तो य ै वक न्द्यू मीवड़या जैसे माध्यमों को विचारों के आदान-प्रदान के वलए बनाया गया ।ै य मंे दशे के कौने-कौने की जानकारी दते ा ।ै दशे और समाज को बदलने िाली बड़ी-बड़ी घटनाओंि के सच को भी सामने लाने का काम करता ।ै दशे मंे ो र े भ्रिाचार का खलु ासा भी करता ,ै आज कई घोटालों को भी सामने लाया ै उदा रर्- पी.एन.बी., शारदा वचट घोटाला, विजय माल्या, के श, नीरिमोदी, टू जी स्पेक्रम घौटाला आवद। आज समाज में फै ले कु रीवतयों, अिंधविश्वासों, धमव की आड़ के प्रवत ो र े भ्रिाचार का खलु ासा करना उदा रर्- आसाराम बाब,ू राम र ीम, रामपाल बाबा वचन्द्मयानन्द्द के स आवद की पोल भी इसके माध्यम से खुली ।ै कभी-कभी य मारे सामने फै ली ुई झूठी वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 116
117 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 अफिा ों का खुलासा भी करता ।ै इस प्रकार सचू नाओिं के आदान-प्रदान की दृवि से लोगों को जागरूक भी करता ।ै लेवकन इसके आने से लोग जागरूक तो एु ैं र वसक्के के दो प लु ोते ंै इसी न्द्यू मीवड़या की कु छ अच्छाईयाँू भी ैं तो कु छ बरु ाईयाूँ भी ।ै प ले सभी पररिार आपस मंे वमलजुल र ते थ,े कई घिंटों तक पररिार के लोग आपस मंे बात करते थ,े अपनी पुरानी यादंे ताजा करना बचपन मंे साथ खेलना, र त्यौ ारों पर आपस में वमलना जुलना ोता था। अब वस्थवत य आ गई वबना बोले ी सब काम ो जाते ैं व् ाट्सप, फे सबकु , वटिरर, मसै जंे र के आने से अनवगनत एप्प वजसके माध्यम से सिंि ाद ोता ।ै सालों तक लोग अपने पररिार का ाल वबना बोल,े वबना वमले ी जान लेते ।ैं इस वस्थवत की न्द्यू मीवड़या ी वजम्मेदार ।ै इस व्यिस्था में मंे अपने िास्तविक जीिन के बारे मंे कोई खबर ी न ीं र ती ।ै मारे पास इतना समय न ीं ोता ै वक म अपने पररिार, आस पड़ोस में र ने िालों के सुख-दःु ख मंे शावमल भी ो जाये आज य विडबंिना न्द्यू-मीवड़या, नि ससंि ्कृ वत की िज से आई ।ै आज में य अफसोस न ीं ोता ,ै मंे अपने मन में विचार करना चाव ए। कु छ आत्म वचतंि न करना चाव ए कै से म अपनों से और अपनी सिंस्कृ वत से दरू ोते जा र े ।ंै आज य वस्थवत वचंति ा का विर्य बन गई ै लोग फे सबकु व् ाटसप आवद सोशल साइट्स पर घिटं ो तक समय की बबादव ी करते ंै वफजलु का समय बबादव वसफव वकसके कारर् पविमी संसि ्कृ वत के कारर्, इस पविमी ससंि ्कृ वत, नि संिस्कृ वत का झुठा प नािा प न कर म स्ियिं खदु को और अपनी संिस्कृ वत को भूल गये ।ैं ‘‘ितमव ान मंे इसके आगमन ने समाज, राजनीवत आवद सभी क्षते ्रों मंे बवु नयादी पररितवन ला वदया ।ै लवे कन मंे य देखना ोगा वक इस पररितनव की वदशा क्या ै और मंे य पररितवन क ाँू ले जा र ा ?ै देश एिंि संिस्कृ वत का विकास जरूरी तो ै परन्द्तु विकास का मतलब य न ीं वक म अपनी ससिं ्कृ वत को भूल विकास के नाम पर उन संिस्कृ वतयों को अपना लें वजनका मारे मूल संिस्कृ वत से दरू -दरू तक कोई सबंि ंधि न ीं ।ै इसमंे कोई शक न ीं की ‘न्द्यू मीवडया’ ने देश- दवु नया की शक्ल ी बदल दी ।ै आज इस माध्यम के द्वारा परू ी दवु नया एक विश्व-ग्राम में बदल गयी ,ै सचू नाएँू दो तरफा ो गयी ।ैं लेवकन मंे वसक्के दसू रे प लू से सािधान र ने की भी जरूरत ।ै मनषु ्य एक वििेकशील प्रार्ी ।ै अतः उसे न्द्यू मीवड़या के उस दसू रे प लू को समझते एु इसका स ी उपयोग करना ोगा तावक ि विकास के स ी रास्ते पर चल सके और खुद के विकास के साथ-साथ समाज एििं देश के विकास में अपना म त्िपूर्व योगदान दे सके ।’’ सदं र्व ग्रन्थ सचू ी 1. नया मीवडया: नया विश्व, नया पररिेश, राके श कु मार, ई-पवत्रका 2. मीवडया और व न्द्दी बदलती प्रिवृ िया-ँू रविन्द्र जाधि, के शि मोरे, पषृ ्ठ 342-343 3. डॉ. मो म्मद फ़ररयाद- सोशल मीवडया के विविध आयाम, पषृ ्ठ 53,193 4. डॉ. उमेश कु मार राय, डॉ. रेखा अजिानी- मीवडया अतीत, ितमव ान एििं भविष्य, पषृ ्ठ 278-279 5. अकबर ररज़बी- मीवडया का ितमव ान 6. मीवड़या लखे न, वसद्धाितं और व्यि ार- डॉ. चन्द्र प्रकाश वमश्र 7. जन-सिचं ार और मीवडया, मीवडया लेखन- खते ी सरन शमाव वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 117
118 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 लेख पूिोिर भारत का भावषक पररदृश्य और वहिं ी का भविष्ट्य िीरेन्र परमार सारांश पूिोत्तर भारत अनके धमों, िावतयों, सभ्यताओं और ससं ्कृ वतयों का संर्गम स्थल ह।ै पिू ोत्तर की कु छ ऐसी विशेषताएाँ हैं िो शषे भारत से इसे अलर्ग करती ह।ंै समन्ियकारी भािना इस क्षेत्र की अद्भुत विशषे ता ह।ै इस क्षेत्र मंे भारत और विश्व के विवभन्न क्षेत्रों से अलर्ग-अलर्ग मत और ससं ्कृ वत के लोर्ग आए और इस समन्ियकारी ससं ्कृ वत में घलु वमलकर एकरूप हो र्गए। इस पणु ्य भूवम मंे अनेक संस्कृ वत, सभ्यता, वििारधारा और परम्प्परा घलु वमलकर दधू में पानी की तरह एकाकार हो र्गई।ं विवभन्न कालखंडों मंे यहााँ आयव, द्रविि, वतब्िती आवद आए और यहाँा के लोकिीिन के अंर्ग िन र्गए। इसवलए यवद भारत के पूिोत्तर क्षेत्र को दशे की सांस्कृ वतक प्रयोर्गशाला कहा िाए तो कोई अवतशयोवि नहीं होर्गी। भाषा की दृवष्ट से पिू ोत्तर भारत अत्यतं समदृ ्ध ह।ै इस क्षेत्र मंे 220 से अवधक भाषाएँा–िोवलयााँ अवस्तत्ि में ह,ैं लेवकन अवधकाशं भाषाएाँ वलवपविहीन ह।ंै बीज शब्ि: असम, मवणपुर, वत्रपरु ा, नार्गालैंड, पूिोत्तर, लोक शोध आलेख पवू ोत्तर भारि अनके धमों, जादियों, सभ्यिाओं और संस्कृ दियों का संगम स्थल ह।ै पूवोत्तर की कछ ऐसी दविेर्िाएँ हंै जो िेर् भारि से इसे अलग करिी ह।ंै समन्वयकारी भावना इस क्षेि की अद्भि दविेर्िा ह।ै इस क्षेि मंे भारि और दवश्व के दवदभन्न क्षिे ों से अलग-अलग मि और ससं ्कृ दि के लोग आए और इस समन्वयकारी ससं ्कृ दि मंे घलदमलकर एकरूप हो गए। इस पण्य भूदम में अनेक ससं ्कृ दि, सभ्यिा, दवचारधारा और परम्परा घलदमलकर िधू में पानी की िरह एकाकार हो गई।ं दवदभन्न कालखंडों मंे यहाँ आयष, रदवड़, दिब्बिी आदि आए और यहाँ के लोकजीवन के अगं बन गए। इसदलए यदि भारि के पवू ोत्तर क्षेि को ििे की सांस्कृ दिक प्रयोगिाला कहा जाए िो कोई अदिियोदक्त नहीं होगी। इस क्षेि में लगभग 400 समिायों के लोग रहिे हंै और वे 220 से अदधक भार्ाएँ बोलिे ह।ंै पूवोत्तर की अदधकांि भार्ाओं के पास अपनी कोई दलदप नहीं ह,ै लेदकन लोककं ठों में दवद्यमान लोकसादहत्य अत्यंि समदृ ्ध और बहुआयामी ह।ै ससं ्कृ दि, भार्ा, परंपरा, रहन-सहन, खान-पान, रीदि-ररवाज, पवष-त्योहार, वेि-भरू ्ा आदि की दृदि से यह क्षेि अत्यिं वदै वध्यपणू ष, रंगीन, उत्सवधमी और जदटल है । सैकड़ों आदिवासी समूहों और उनकी अनेक उपजादियाँ, असंख्य भार्ाएँ, दभन्न-दभन्न प्रकार के रहन-सहन, खान-पान और पररधान, अपन-े अपने ईश्वरीय प्रिीक, धमष और अध्यात्म की अलग-अलग सकं ल्पनाओं के कारण इस क्षेि का अपना सासं ्कृ दिक महत्व ह।ै भार्ा की दृदि से पवू ोत्तर भारि अत्यंि समदृ ्ध ह।ै इस क्षेि मंे 220 से अदधक भार्ाएँ–बोदलयाँ अदस्ित्व में ह,ंै लेदकन अदधकािं भार्ाएँ दलदपदवहीन हैं। असदमया और अगं ्रजे ी असम की राजभार्ाएँ ह।ैं असम की बराक घाटी मंे दस्थि दजलों की राजभार्ा बंगला है जबदक काबी आंगलोंग के स्वायत्त दजलों िथा नाथष कछार के दजलों की राजभार्ा अंग्रजे ी ह।ै कोकराझार और अन्य बोडो बहलु दजलों में बोड़ो भार्ा को सहभार्ा के रूप में मान्यिा िी गई है। दिक्षा के क्षेि मंे दिभार्ा सूि लागू है दजसके अंिगषि असदमया के अदिररक्त बगं ला, दहिं ी, बोड़ो िथा अंग्रजे ी को भी सहयोगी भार्ा के रूप मंे मान्यिा िी गई ह।ै मेघालय मंे खासी, जयंदिया और गारो िीन प्रमख आदिवासी समिाय के अदिररक्त दिवा, राभा, हाजोंग, लाखरे , काबी, बाइिे, ककी आदि जनजादियों के लोग दनवास करिे हंै । मघे ालय राज्य भार्ा अदधदनयम 2004 के अनसार अंग्रेजी यहाँ की राजभार्ा ह।ै ईस्ट खासी दहल्स, वसे ्ट खासी दहल्स, जयदं िया दहल्स और रर-भोई दजलों में खासी भार्ा सहायक राजभार्ा है। इसके अदिररक्त ईस्ट गारो दहल्स, वसे ्ट वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 118
119 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 गारो दहल्स औए साऊथ गारो दहल्स दजले में गारो भार्ा सहायक राजभार्ा है। मघे ालय मंे खासी भार्ा बोलनेवालों की सखं ्या सबसे अदधक ह।ै यहाँ लगभग 48 प्रदििि लोग खासी और 32 प्रदििि लोग गारो भार्ा बोलिे हंै। इसके अदिररक्त बंगला, नेपाली, दहिं ी, मराठी और असदमया भार्ा भी बोली जािी ह।ै वमज़ो, जाह, लखेर, हमार, पाइते, लाई, राल्ते इत्यादि वमजोरम की प्रमख भार्ाएँ ह।ंै दमजोरम की राजभार्ा दमज़ो है। दमज़ो भार्ा चीनी-दिब्बिी पररवार की भार्ा ह।ै यह दमज़ोरम और म्यामं ार के चीन दहल राज्य में बोली जािी ह।ै इसे िहदलयन भार्ा के नाम से भी जानिे ह।ैं दमज़ो भार्ा मख्य रूप से लसेई बोली पर आधाररि ह,ै लेदकन इस भार्ा मंे दमजोरम के अन्य आदिवासी समूहों की बोदलयों के िब्ि भी घलदमल गए ह।ंै दमज़ो भार्ा दमज़ोरम और उसके आसपास के क्षेिों जसै े, असम, दिपरा और मदणपर के कछ दहस्सों मंे बोली जािी ह।ै इस भार्ा मंे पावी, पाइिे, मार आदि भार्ाओं के िब्ि ही नहीं बदल्क काव्य-परंपरा भी उपलब्ध ह।ै नागालंैड की एक समदृ ्ध भादर्क परंपरा ह।ै नागालैंड की प्रत्येक जनजादि की अलग–अलग भार्ा है और इन भार्ाओँ के भीिर भी अनके बोदलयाँ हंै जो एक-िसू रे के दलए अबझू हंै । उिाहरण के दलए, अंगामी जनजादि की अगं ामी भार्ा है और अगं ामी भार्ा की भी अनेक बोदलयाँ ह।ै इन बोदलयों मंे भी अिं र ह।ै दकसी गाँव मंे एक बोली के भीिर भी दभन्निा ह।ै भौगोदलक पररविषन के साथ यह दभन्निा उत्तरोत्तर बढ़िी जािी ह।ै भार्ाओ–ँ बोदलयों का यह अिं र अन्य समिायों और जनजादियों के बीच के संचार को बहिु कदठन बना ििे ा ह।ै नागालडंै की कोई भी स्थानीय भार्ा सम्पणू ष प्रिेि मंे नहीं बोली जािी ह।ै अिः अगं ्रेजी को नागालैडं की राजभार्ा बनाया गया है जबदक नागामीज बोलचाल की भार्ा बन गई ह।ै नार्गालंडै मंे लर्गभर्ग 16 भाषाएं िोली िाती ह।ै इसके अवतररि इन भाषाओं की भी अनके िोवलयाँा ह।ै वितनी िनिावतयााँ उससे अवधक भाषाएँा। इस भाषाई पररदृश्य मंे परस्पर वििार–विवनमय कवठन हो िाता ह।ै एक र्गािं की भाषा पिोसी र्गांि के वलए अिूझ ह।ै इसवलए नार्गालडैं के वनिावसयों ने एक सपं कव भाषा विकवसत कर ली है विसका नाम नार्गामीि है । यह असवमया, नार्गा, िांग्ला, वहदं ी और नपे ाली का वमश्रण ह।ै िािव वग्रयसवन ने नार्गामीि को असमी का टूटा–फू टा रूप माना ह,ै लेवकन भाषा िजै ्ञावनक एम.िी.श्रीधर ने इसे ‘वपिन’ (Pidgin) भाषा कहा ह।ै ‘वपिन’ का अथव है विवभन्न भाषाओँा के शब्दों के मेल से िनी ऐसी भाषा िो वकसी समूह के लोर्गों के िीि संपकव भाषा का काम करती हो। ‘वपिन’ की पररभाषा है “दो या दो से अवधक भाषाओँा के वमश्रण से विकवसत ऐसी भाषा विसका उपयोर्ग ऐसे लोर्गों द्वारा वकया िाता है िो एक–दसू रे की भाषा नहीं िोल–समझ सकते हों।” अतः नार्गामीि को वपिन भाषा कहना अवधक साथवक और व्यािहाररक ह।ै नार्गालंडै मंे नार्गामीि का उपयोर्ग वशवक्षत–अवशवक्षत सभी लोर्गों द्वारा वकया िाता ह।ै प्रारंभ मंे यह मखु ्य रूप से िाज़ार और व्यापार-संिार की माध्यम भाषा के रूप में विकवसत हुई। राज्य की आवधकाररक भाषा अगं ्रेिी होने के िाििदू नार्गामीि सपं कव भाषा का कायव करती ह।ै यह कमोिशे सम्प्पूणव नार्गालंडै मंे िोली िाती ह।ै समािार और रेवडयो स्टेशन, वशक्षा, रािनीवतक और सरकारी क्षते ्रों सवहत आवधकाररक मीवडया मंे भी इसका उपयोर्ग वकया िाता ह।ै इसे नार्गालंडै के सिसे ििे शहर वदमापरु में िोडो-कछारी समुदाय की मातभृ ाषा के रूप में भी िाना िाता ह।ै यद्यवप नार्गा लोर्गों की उत्पवत्त का वनधावरण करना मवु श्कल ह,ै लवे कन आमतौर पर इवतहासकारों का मानना है वक नार्गालैडं मंे नार्गा िनिावतयों का आर्गमन अनके कालखडं ों और अनके समहू ों मंे हुआ। िीन और अन्य िर्गहों से विवभन्न नार्गा िनिावतयों ने िमाव होते हएु नार्गा पहावियों मंे प्रिशे वकया और नार्गालंैड और पूिोत्तर के अन्य प्रदशे ों मंे अपना वनिास िनाया। नार्गालंैड िीस से अवधक स्िदशे ी नार्गा समूहों के साथ ही कई अन्य आप्रिासी समहू ों का वनिास ह।ै ये सभी समूह अलर्ग-अलर्ग भाषाएँा िोलते थे। असम के मदै ानी क्षते ्रों में नार्गालंैड के विवभन्न भाषाई समूह के सदस्यों और असम के मदै ानी इलाकों में िस्तु विवनमय-व्यापार कें द्रों में संपकव के कारण नार्गामीि मुख्य रूप से एक सपं कव भाषा के रूप में विकवसत हुई। अहोम शासक नार्गाओं पर हमला करने और उस क्षते ्र को अपने अधीन करने के वलए अक्सर अवभयान िलाया करते थे विससे अलर्ग-अलर्ग समय में नार्गा और असवमयों के िीि तनाि और शत्रतु ा पदै ा होती थी । वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 119
120 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 14 िीं शताब्दी के अतं तक अहोम शासकों पर ब्राह्मणिादी वहदं ू प्रभाि िढ़ता र्गया और धीरे-धीरे असवमया भाषा का उपयोर्ग िढ़ने लर्गा। इसके िाद ताई भाषा का उपयोर्ग पूरी तरह से िदं हो र्गया और इडं ो-यरू ोपीय असवमया भाषा राज्य के भीतर िोली िानेिाली मुख्य भाषा िन र्गई, लेवकन उस समय मंे भी नार्गामीि नार्गा वहल्स की संपकव भाषा थी िो अवधकाशं लोर्गों द्वारा िोली िाती थी। 1930 के दशक के िाद एक भाषा के रूप मंे नार्गामीि का प्रिार-प्रसार आर्गे िढ़ा। अंग्रेिी को नार्गालडैं की एकीकृ त आवधकाररक राज्य भाषा के रूप मंे िनु ा र्गया था, लवे कन 5% से कम आिादी धाराप्रिाह अगं ्रेिी िोल पाती थी। वनवश्चत रूप से अंग्रेिी िोलनिे ालों की सखं ्या अत्यल्प थी। वशक्षक अक्सर कक्षा की ििावओं में और विषय िस्तु को ठीक से समझाने के वलए नार्गामीि का उपयोर्ग करते थे । ज्यादातर नार्गा िच्िे अगं ्रेिी की अपके ्षा नार्गामीि से पररवित थे और धाराप्रिाह नार्गामीि िोलते थे। आर्गे िलकर िहसु खं ्यक आिादी द्वारा व्यापक रूप से नार्गामीि का इस्तमे ाल होने लर्गा। िषव 1970 के दशक की शरु ुआत में एम.िी.श्रीधर ने नार्गामी शवै क्षक सामग्री के वनमाणव के इरादे से मानकीकरण प्रवक्या शरु ू करने की मारं ्ग की। उन्होंने नार्गा नते ाओं और सिं ंवधत अवधकाररयों के साथ परामशव वकया विसका उद्दशे ्य दिे नार्गरी, असवमया, रोमन और िरं ्गला वलवपयों में से वकसी एक वलवप को नार्गामीि के वलए अरं ्गीकार करना था । इस िात पर सहमवत िनी वक नार्गामीि के वलए रोमन वलवप को अपना वलया िाए। वब्रवटश शासनकाल के दौरान नार्गालडंै की अवधकांश िनसखं ्या ईसाई धमव को अपना िकु ी थी और आमतौर पर रोमन वलवप से पररवित थी। इसवलए सभी लोर्ग रोमन वलवप को अरं ्गीकार करने पर सहमत हो र्गए । िातीय संघषव के िाििदू नार्गा और र्गरै -नार्गा लोर्गों के िीि सिं ार की आिश्यकता ने नार्गामीि के विकास और उपयोर्ग के वलए प्रेररत वकया । नार्गामीि धीरे-धीरे परू े क्षेत्र और राज्य के विवभन्न भार्गों में फै ल र्गई और ितमव ान में दवै नक िीिन के लर्गभर्ग सभी क्षेत्रों में इसका उपयोर्ग वकया िाता ह।ै अि यह व्यापक संिार की भाषा िन र्गई ह।ै कालातं र मंे नार्गामीि का शब्द भंडार भी समदृ ्ध हो र्गया है और ििा वकसी भी विषय पर इस भाषा में अपनी िात प्रस्ततु करने मंे सक्षम ह।ैं अनौपिाररक िातिीत के अलािा नार्गामीि भाषा का प्रयोर्ग धावमकव समारोहों, वशक्षा ससं ्थानों, अस्पतालों मंे भी वकया िाता है । नार्गामीि ग्रामीण क्षते ्रों मंे संिार की पसदं ीदा भाषा िन र्गई ह।ै नार्गामीि में दो कारक और दो काल हैं । इसमें कोई वलरं ्ग नहीं होता ह,ै हालावं क वहदं ी प्रभाि के कारण विशषे रूप से वहदं ी शब्दों और अवभव्यवियों में व्याकरवणक वलंर्ग वदखाई देता ह।ै इसमंे 26 व्यंिन और 6 स्िर ह।ंै इसमंे आनुनावसक स्िर नहीं हंै । वसवक्कम सरकार ने प्रििे की 11 भार्ाओँ को राजभार्ा घोदर्ि दकया ह–ै नेपाली, लेप ा, भवू टया, तमागं , वलबं ,ू नेिारी, खम्ब राई, गरं ग, मागं र, शेरपा और सनिार। इन भार्ाओँ के अदिररक्त भी दसदक्कम में अनके बोदलयाँ बोली जािी हैं दजनमंे थमी, भजेल, कलगं े, खदलगं े आदि प्रमख ह।ैं नेपाली दसदक्कम की प्रमख भार्ा है। इसे पहाड़ी और गोरखाली भी कहा जािा है। इसकी दलदप िवे नागरी ह।ै भूदटया, लेपचा और अन्य समिाय भी नेपाली बोलिे–समझिे ह।ंै दसदक्कम की लगभग 80 प्रदििि जनिा नेपाली बोलिी–समझिी ह।ै वर्ष 1924 में िादजषदलगं मंे नपे ाली सादहत्य सम्मलने की स्थापना की गई थी दजसके बाि नेपाली भार्ा का बहुआयामी दवस्िार हुआ। अनेक नपे ाली पि-पदिकाओं का प्रकािन िरू हुआ दजनमें “दसदक्कम हरे ाल्ड” (1959), “कं चनजंघा” (1957), “िीनिारा” (1958) और “दसदक्कम” (1966) प्रमख ह।ैं इन पि–पदिकाओं ने नेपाली भार्ा और सादहत्य के दवकास मंे उल्लखे नीय भूदमका का दनवाहष दकया। दसदक्कम का भदू टया समिाय भूदटया भार्ा बोलिा ह।ै भूदटया भार्ा को दसक्कमी, दिब्बिी और ड्रेनजोंनपा भी कहा जािा ह।ै यह दसदक्कम की प्राचीनिम भार्ाओँ मंे से एक ह।ै यह पूणष रूप से दिब्बिी मलू की भार्ा ह।ै लेपचा समिाय लपे चा भार्ा बोलिा ह।ै यह दिब्बिी–बमी मूल की भार्ा ह।ै लेपचा भार्ा की अपनी लपे चा दलदप है। लपे चा भार्ा का प्रथम व्याकरण वर्ष 1876 मंे जेनरल जी.बी.मेनवाररंग द्वारा दलखा गया था। चागिोर नामनयाल ने 18 वीं ििाब्िी के आरंभ मंे लेपचा दलदप की रूपरेखा िैयार की थी। दलबं ू एक दिब्बिी–बमी भार्ा है दजसकी दलदप ‘दसररजगं ा’ है। दलबं ू भार्ा और सादहत्य बहिु समदृ ्ध ह।ै श्री ज.े आर. सब्बा ने अपनी वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 120
121 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पस्िक “दहस्री एडं डेवलॉपमटें ऑफ़ दलबं ू लनंै वेज” (2002) मंे पाठ्यपस्िकों को छोडकर वर्ष 1951 से 2001 िक प्रकादिि 47 पस्िकों एवं 34 पदिकाओं की सचू ी बनाई ह।ै वलबं ू भाषा में अनेक िब्िकोि भी प्रकादिि हो चके हैं िथा वर्ष 1983 मंे आकािवाणी, गगं टोक से दलंबू भार्ा मंे प्रसारण भी आरंभ हो गया। दलबं ू लोकसादहत्य, दनबंध, कदविा, उपन्यास आदि प्रकादिि हो चके ह।ंै तमांग एक दिब्बिी–बमी भार्ा है दजसकी अपनी दलदप है। िमांग “सभं ोिा” दलदप मंे दलखी जािी है दजसे “िमयक दलदप” भी कहिे ह।ंै श्री बदद्धमान मोकिन द्वारा दलदखि “िमांग वंिावली” को िमागं भार्ा की प्रथम पस्िक माना जािा ह।ै वर्ष 1957 से 1997 िक िमांग भार्ा, ससं ्कृ दि, परंपरा और लोकजीवन पर लगभग 99 पस्िकें प्रकादिि हो चकी ह।ैं दसदक्कम में अभी छह िमागं भार्ा दवद्यालय संचादलि दकए जा रहे ह।ैं वर्ष 1995 में दसदक्कम सरकार ने “खम्ब राई” भार्ा को राजभार्ा का िजाष दिया। “खम्ब राई” भार्ा की अपनी दलदप ह।ै यह भार्ा अभी अपनी िैिवावस्था मंे ह,ै लेदकन िो दवद्यालयों मंे इस भार्ा में दिक्षा आरंभ कर िी गई ह।ै नेवारी दिब्बिी–बमी समहू की भार्ा है जो “रंजना” दलदप मंे दलखी जािी ह।ै “रंजना” दलदप का दवकास िाह्मी दलदप से हुआ ह।ै मागं र भी दिब्बिी–बमी समहू की भार्ा है जो मागं र दलदप में दलखी जािी ह।ै मांगर दलदप को “अखररका” दलदप के नाम से भी जानिे ह।ंै यह दसदक्कम की प्राचीनिम दलदप है। दसदक्कम सरकार द्वारा घोदर्ि मान्यिा प्राप्त नयारह भार्ाओँ में मांगर भी िादमल ह।ै अदखल दसदक्कम मांगर एसोदसएिन दसदक्कम में मांगर भार्ा के उन्नयन के दलए प्रयत्निील ह।ै सनिार भाषा भी दिब्बिी–बमी समहू की भार्ा है जो सनवार दलदप मंे दलखी जािी ह।ै िरे पा भार्ा भी दिब्बिी–बमी समहू की भार्ा है जो “संभोिा” दलदप में दलखी जािी ह।ै इस भार्ा के दवकास के दलए सरकारी और दनजी स्िर पर प्रयास दकए जा रहे ह।ंै गरुं ग समिाय अपनी भार्ा को “िम” कहिा है जो दिब्बिी– बमी समूह की भार्ा ह।ै यह “खमे ा” दलदप मंे दलखी जािी ह।ै अदखल दसदक्कम गरुं ग (िम) बौद्ध सघं इस भार्ा के दवकास के दलए प्रयास कर रहा ह।ै नेपाली इस प्रिेि की संपकष भार्ा ह।ै नेपाली को भारिीय संदवधान की अिम अनसचू ी में िादमल दकया गया ह।ै बंगला और कोकबोरोक वत्रपरा की राजभार्ा है । यहाँ अनके भार्ाएँ बोली जािी हैं दजनमें बंगला, कोकबोरोक, कमा, लशाई, मंडारी, गारो, ककी प्रमख ह।ैं दहिं ी भी व्यापक रूप से यहाँ बोली जािी ह।ै चकमा समिाय द्वारा चकमा भार्ा बोली जािी ह।ै चकमा भार्ा मंे इडं ो-आयषन, दिब्बिी-चीनी और मख्य रूप से अराकान भार्ा के िब्िों का दमश्रण ह।ै उनकी भार्ा को टूटी-फू टी बंगला और असदमया भार्ा भी कहा जािा ह।ै चकमा भार्ा के पास अपनी बमी दलदप ह,ै लेदकन उनका उपयोग नहीं होिा ह।ै येलोग बगं ाला दलदप का उपयोग करिे ह।ंै गारो समिाय के लोग गारो भार्ा बोलिे ह।ैं गारो भार्ा की असम में बोली जानवे ाली बोडो कछारी, राभा, दमदकर आदि भार्ाओँ से बहिु समानिा ह।ै भादर्क दृदि से गारो भार्ा दिब्बिी–बमी पररवार की भार्ा ह।ै दग्रयसनष ने इसे बोडो वगष की भार्ा बिाया है। हलाम समिाय के लोग अपनी हलाम भार्ा बोलिे ह।ंै जािीय रूप से हलाम समिाय ककी-चीन जनजादि मलू के हंै । उनकी भार्ा भी कमोबिे दिब्बिी-बमी पररवार की िरह ही ह।ै हलाम को ‘दमला ककी’ के रूप में भी जानिे ह,ंै लदे कन भार्ा, ससं ्कृ दि और जीवन िलै ी की दृदि से हलाम समिाय ककी जनजादि से दबल्कल दभन्न ह।ै जमादिया समिाय के लोग कोकबोरोक भार्ा बोलिे ह।ंै मडं ा प्रोटो-ऑस्रलॉइड जनजादि ह।ंै उनकी भार्ा मडं ारी है जो ऑस्रो-एदियाई पररवार से सबं दं धि ह।ै ओरंग जनजादि के लोग टूटी-फू टी दहिं ी मंे बाि करिे ह।ंै इनकी भार्ा आस्रेदलयन भार्ा समूह की भार्ा ह,ै लदे कन दिपरा मंे वे अपनी भार्ा में बाि नहीं करिे ह,ंै वे दहिं ी दमदश्रि बंगला भार्ा बोलने में सहज महसूस करिे हंै । जािीय रूप से दिपरी समिाय भारिीय- मगं ोदलयाई मलू के और भार्ाई रूप से दिब्बिी-बमी पररवार के हंै । वे कोकबोरोक भार्ा बोलिे हैं और दलखने के दलए बगं ला दलदप का उपयोग करिे ह।ैं दिपरी समिाय का एक वगष बगं ादलयों के संपकष मंे आया दजसके कारण उसकी भार्ा और संस्कृ दि पर बंगादलयों का प्रभाव स्पि िेखा जा सकिा ह।ै कोकबोरोक भार्ा बोरोक समिाय की मािभृ ार्ा ह।ै बोरोक को दिपरी भी कहा जािा ह।ै बोरोक समिाय की नौ उपजनजादियों अथवा कल के लोगों द्वारा कोकबोरोक भार्ा वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 121
122 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 बोली जािी ह।ै ये उपजनजादियां अथवा कल ह–ंै िबे बमाा, ररयागं , जमावतया, वत्रपरी, नोआवतया, कलई, मरावसंग, रूवपनी और उ ई। वर्ष 2011 की जनगणना के अनसार कोकबोरोक बोलनवे ालों की सखं ्या 8,80,537 (कल जनसखं ्या का 23.97 %) ह।ै इस भार्ा के पास गौरवमयी सासं ्कृ दिक परंपरा और समदृ ्ध लोकसादहत्य ह।ै वर्ष 1897 मंे िौलि अहमि द्वारा प्रथम कोकबोरोक व्याकरण दलखा गया दजसका नाम “कोकबोरोमा” था। इसके बाि 1900 ई. मंे राधा मोहन ठाकर की कोकबोरोक व्याकरण पस्िक “कोकबोरोकमा” िीर्षक से प्रकादिि हुई। राधा मोहन ठाकर की व्याकरण पस्िक को दिपरा सरकार ने प्रथम कोकबोरोक प्रकािन के रूप में मान्यिा िी ह।ै कोकबोरोक दिपरा मंे बोली जानेवाली वहृ ि चीनी–दिब्बिी पररवार के बोडो– गारो उपवगष की भार्ा ह।ै पड़ोसी िेि बांनलाििे मंे भी यह बोली जािी ह।ै असम की बोडो, दिमासा और कछारी भार्ाओं से कोकबोरोक की बहुि दनकटिा ह।ै ‘कोक’ का अथष भार्ा और ‘बोरोक’ का अथष ‘मनष्ट्य’ ह।ै इस प्रकार ‘कोकबोरोक’ का अथष मनष्ट्य की भाषा ह।ै पहले ‘कोकबोरोक’ को ‘दिप्रा’ कहा जािा था। बीसवीं ििाब्िी मंे इसका नाम पररविनष हुआ। पहली ििाब्िी से कोकबोरोक के साक्ष्य दमलिे हंै जब से दिप्रा राजाओं के ऐदिहादसक अदभलखे दलखे जाने लगे । कोकबोरोक की दलदप को \"कोलोमा\" कहा जािा था। राजरत्नाकर नामक पस्िक मलू रूप से कोकबोरोक भार्ा और कोलोमा दलदप मंे दलखी गई थी। बाि में िो िाह्मण, सक्रे श्वर और वनशे ्वर ने इसका संस्कृ ि में अनवाि दकया और दफर 19 वीं ििाब्िी मंे इसका बगं ला भार्ा मंे अनवाि दकया गया । वर्ष 1979 में दिपरा सरकार द्वारा कोकबोरोक को दिपरा राज्य की आदधकाररक भार्ा घोदर्ि दकया गया । इसके बाि 1980 के ििक से दिपरा के स्कू लों में प्राथदमक स्िर से उच्च माध्यदमक स्िर िक इसकी पढ़ाई होने लगी। दिपरा दवश्वदवद्यालय मंे वर्ष 1994 से कोकबोरोक मंे सदटषदफके ट कोसष और 2001 में पोस्ट ग्रजे एट दडप्लोमा कोसष िरू दकया गया । दिपरा दवश्वदवद्यालय द्वारा वर्ष 2015 से कोकबोरोक मंे एम.ए. का पाठ्यक्रम िरू दकया गया । कोकबोरोक भार्ाभादर्यों द्वारा इस भार्ा को सदं वधान की 8 वीं अनसूची में िादमल करने की मांग दनरंिर की जा रही है । कोकबोरोक एक भार्ा नहीं ह,ै बदल्क दिपरा में बोली जानवे ाली कई भार्ाओं और बोदलयों का दमश्रण ह।ै मवणपर में मिै ै के अदिररक्त 29 आदिवासी समिाय रहिे ह।ंै यहाँ के दनवादसयो को िो वगों में दवभक्त दकया जा सकिा है-(1) मिै ै अथवा मदणपरी और (2)आदिवासी। आदिवासी समिायों को भी िो वगों में दवभक्त दकया जा सकिा ह–ै नागा समूह के आवििासी और ककी– ीन समूह के आवििासी। मदणपर मंे मदणपरी अथवा मिै ै आम बोलचाल की भार्ा ह।ै यहाँ के लगभग 54 % लोग मिै ै बोलिे हैं। मिै ै इस राज्य की राजभार्ा एवं संपकष भार्ा ह।ै इसे मदणपरी भार्ा के नाम से जानिे ह।ंै मीिलै ोन मदणपर की मिै ै जादि की मािभृ ार्ा ह।ै मदणपरी भार्ा को अदधकांि भार्ावजै ्ञादनकों ने चीनी–दिब्बिी भार्ायी पररवार के अंिगिष दिब्बिी बमषन भार्ायी वगष की ककी चीन भार्ा के रूप मंे वगीकृ ि दकया ह।ै मदणपरी भार्ा की उत्पदत्त के संबंध मंे दनदश्चि रूप से कछ नहीं कहा जा सकिा ह।ै ऐसी मान्यिा है दक मदणपरी भार्ा उिनी ही प्राचीन है दजिनी मैिै जादि। घाटी में रहनवे ाले लोगों को मीिै अथवा मिै ै कहा जािा है और उनकी भार्ा को मिै ले ोन/ मीिलै ोन कहा जािा ह।ै आदिवादसयों की भार्ा उन आदिवादसयों के नाम से जानी जािी ह,ै जसै े–िगं खल, ककी, पाइिे इत्यादि। दफर भी मदणपरी घाटी के लोगों के साथ–साथ पहाड़ी लोगों की भी संपकष भार्ा ह।ै टी. सी. हडसन का मानना है दक मदणपरी आसपास के पहाड़ी आदिवादसयों के विं ज हंै और उनकी भार्ा मदणपररयों और आदिवादसयों के बीच जड़नवे ाली कड़ी ह।ै डॉ दग्रयसनष की मान्यिा है दक मदणपरी ककी–चीन भार्ाओँ की िो िाखाओं में से एक है जो दिब्बिी–बमी पररवार का एक भार्ासमहू ह।ै मीिै भार्ा की लबं ी और गौरवपणू ष सादहदत्यक परंपरा ह।ै पहली ििाब्िी से ही इसके सादहत्य दमलिे ह।ैं मीिै भार्ा मंे दवदभन्न दवधाओं के लगभग एक हजार पाडं दलदपयों की खोज हुई ह।ै प्राचीन और मध्यकालीन सादहत्य को ‘मीिै मयक’ दलदप मंे दलखा गया है जबदक आधदनक सादहत्य बंगला दलदप में दलखा गया ह।ै ‘मीिै मयक’ दलदप की उत्पदत्त अस्पि ह।ै मीिै समिाय के अदिररक्त आदिवासी समाज के लोग भी मीिै अथवा वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 122
123 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मदणपरी भार्ा बोलिे ह।ंै सभी आदिवासी समिायों की अपनी अलग–अलग भार्ाएँ और बोदलयाँ हैं दजनका प्रयोग वे आपस में बािचीि के दलए करिे ह।ैं पाइिे जनजादि के पास अपनी पाइिे भार्ा है। ये लोग पाइिे भार्ा बोलिे हैं दजसके िस रूप ह।ंै अदधकांि पाइिे ‘तेईजंग’ और ‘िपजर’ भार्ा रूपों का प्रयोग करिे हंै। पाइिे दिब्बिी–बमी पररवार की ककी–चीन िाखा से सम्बंदधि भार्ा ह।ै दिदक्षि पाइिे दहिं ी और अगं ्रेजी भार्ा का प्रयोग भी करिे ह।ैं पाइिे भार्ा को दलखने के दलए रोमन दलदप का प्रयोग दकया जािा है। राल्ते समिाय के पास अपनी राल्िे भार्ा ह,ै लदे कन उसकी कोई दलदप नहीं ह।ै वे अपने पररवार और सगे-सबं दं धयों से राल्िे भार्ा मंे बािचीि करिे ह।ैं ये लोग अन्य समिाय के लोगों से मदणपरी भार्ा मंे बाि करिे ह।ंै थडाऊ समिाय के पास अपनी थडाऊ भार्ा है, लेदकन इसकी कोई दलदप नहीं है। दलदप के रूप में वे रोमन दलदप का प्रयोग करिे हैं। दिदक्षि लोग अंग्रेजी और दहिं ी भी बोलिे ह।ंै ककी समिाय दिब्बिी–बमी पररवार की आस्रो–एदियाई पररवार की भार्ा बोलिा है। ककी समिाय के सभी गोिों की भार्ा समान ह,ै लेदकन इसमंे स्थानगि उच्चारण दभन्निा दिखाई पड़िी है। मदणपरी भार्ा से ककी भार्ा की समानिा ह।ै आईमोल समिाय अपनी आईमोल भार्ा बोलिा है और दलखने के दलए रोमन दलदप का उपयोग करिा है। वटड्डीम ीन समिाय के लोग दटड्डीमचीन भार्ा बोलिे ह।ंै दटड्डीमचीन भार्ा बमाष (म्यामं ार) के उत्तरी चीन दहल्स प्रांि की आम बोलचाल की भार्ा ह।ै तराि जनजावत की अपनी बोली है दजसे ‘िराविरोंग’ कहिे हैं। वले ोग मदणपरी भार्ा भी बोलिे हंै और िसू रे समिायों से मदणपरी भार्ा में बािचीि करिे ह।ंै अनल समिाय दिब्बिी–बमी पररवार की भार्ा अनल भार्ा बोलिा है और दलखने के दलए रोमन दलदप का उपयोग करिा है। सांस्कृ दिक दृदि से तंगखल नागा जनजादि की माओ और मरम जनजादि से समानिा ह।ै पड़ोसी जनजादियों जैसे अगं ामी, चाके सागं और रंेगमा जनजादि से भी िगं खल समिाय की दनकटिा ह।ै सामादजक–सासं ्कृ दिक और जीवन िैली की दृदि से इन सभी जनजादियों मंे बहुि समानिा ह,ै लेदकन इन सभी की अपनी अलग–अलग भार्ाएँ ह।ंै थंगल नागा समिाय का मदणपर की अन्य नागा जनजादियों के साथ घदनष्ठ संबधं ह।ै सामादजक, आदथकष और धादमषक दृदि से थंगल नागा जनजादि की मरम, कबई, जेदलयागं रोंग आदि समिायों से दनकटिा ह।ै अदधकािं थंगल मरम भार्ा समझ लिे े ह,ैं लेदकन मरम लोग थंगल भार्ा नहीं समझ पािे ह।ैं सांस्कृ वतक और भावषक दृवष्ट से िीन वहल्स के वनिावसयों से मोनसांग समदु ाय की िहुत समानता ह।ै ये मोनसरं ्ग भाषा िोलते हंै िो वतब्िती–िमी भाषा पररिार की एक भाषा है। अनि भाषा से मोनसरं ्ग भाषा की िहुत समानता ह।ै वग्रयसवन ने मध्य िीन की भाषा से मोनसरं ्ग भाषा का संिंध स्थावपत वकया है विसमें िुशाई भाषा भी सवम्प्मवलत ह।ै मोनसंर्ग भाषा को वलखने के वलए हाल के वदनों तक िंर्गला वलवप का प्रयोर्ग वकया िाता था, लवे कन अि पढ़े–वलखे नियुिक मोनसंर्ग भाषा के वलए रोमन वलवप का उपयोर्ग करने लर्गे हैं। इस समुदाय के लोर्ग दसू री िनिावत के लोर्गों से िातालव ाप के वलए मवणपुरी भाषा का उपयोर्ग करते हैं। मोयोन, मोनसांग, लमगंग और अनल समिाय की भार्ाएँ पराने ककी समहू में िादमल ह,ंै लदे कन वेलोग अब स्वयं को नागा कहिे ह।ैं सभी नागा समिायों की अलग–अलग भार्ा ह।ै मरम जनजादि की अपनी मरम भार्ा ह।ै यह चीनी–दिब्बिी भार्ा पररवार की भार्ा है। यह नागा–ककी उपसमहू के दिब्बिी–बमी भार्ा पररवार की भार्ा ह।ै औपचाररक रूप से मदणपर की िो राजभार्ाएँ ह–ैं मदणपरी (मिै )ै और अगं ्रजे ी। मदणपर के अदिररक्त असम और दिपरा के कछ सीदमि अचं लों मंे भी मदणपरी बोली जािी ह।ै इसे यूनसे ्को द्वारा एक असरदक्षि भार्ा के रूप मंे वगीकृ ि दकया गया ह।ै मदणपरी भार्ा भारिीय संदवधान की अिम अनसूची में िादमल ह।ै यह मदणपर मंे स्नािक स्िर िक की दिक्षा का माध्यम ह।ै मदणपरी को भारि के कछ दवश्वदवद्यालयों मंे स्नािकोत्तर स्िर िक एक दवर्य के रूप में पढ़ाया जािा ह।ै मदणपरी भार्ा की अपनी दलदप ह-ै मीिै-मएक । अरणा ल प्रिेश में लगभग 25 प्रमख जनजादियाँ दनवास करिी ह।ंै आिी, दन्यिी, आपािानी, दहल मीरी, िादगन, सलंग, मोम्पा, खाम्िी, िरे िक्पेन, दसहं फ़ो, ममे ्बा, खम्बा, नोक्ते , वांचो, िांगसा, दमश्मी, बगन (खोवा), आका, दमजी इत्यादि प्रिेि की प्रमख जनजादियाँ ह।ैं इन सभी जनजादियों की वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 123
124 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 अलग-अलग भार्ाएं ह,ैं लेदकन लेदकन अदधकािं के पास अपनी कोई दलदप नहीं है । के वल खाम्िी भार्ा की अपनी खाम्िी दलदप ह,ै लदे कन इस दलदप का प्रयोग बहुि कम होिा ह।ै अरुणाचल की भार्ाओँ मंे इिनी दभन्निा है दक एक समिाय की भार्ा िसू रे समिाय के दलए असपं ्ररे ्णीय है । डॉ. दग्रयसनष ने अरुणाचल की भार्ाओं को दिब्बिी-बमी पररवार का उत्िरी असमी वगष माना है । यहाँ की राजभार्ा अगं ्रजे ी ह।ै कोई भी जनजािीय भार्ा इिनी दवकदसि नहीं है दक उसे राज्य की राजभार्ा बनाया जा सके । इसदलए अगं ्रजे ी को ही िासकीय कामकाज और राज्य दवधानसभा के कामकाज के दलए प्रयोग दकया जािा है। दवधानसभा की बहस मंे दहिं ी और अगं ्रजे ी िोनों भार्ाओँ का प्रयोग दकया जािा ह।ै राज्य की सेवाओं मंे भिी परीक्षा का माध्यम अंग्रजे ी ह।ै दकसी परीक्षा में दहिं ी का दवकल्प नहीं ह।ै राज्य की सेवाओं मंे प्रविे के दलए अगं ्रजे ी का ज्ञान अदनवायष ह।ै राज्य सदचवालय एवं दजला स्िर पर कामकाज अगं ्रेजी में होिा ह।ै कंे र सरकार और अन्य राज्यों के साथ पिाचार अगं ्रजे ी मंे दकया जािा ह।ै राज्य के अदधकािं कमषचारी दहिं ी पढना, दलखना एवं बोलना जानिे ह,ैं परंि दहिं ी में प्राप्त पिों के उत्तर भी अगं ्रेजी मंे दिए जािे ह।ैं सभी लोग सपं कष भार्ा के रूप में दहिं ी का प्रयोग करिे ह।ै दवद्यालयों-महादवद्यालयों मंे व्यावहाररक रूप मंे माध्यम भार्ा दहिं ी है । दहिं ी इस प्रिेि की सपं कष भार्ा ह।ै पवू ोत्तर भारि के भार्ायी वदै वध्य के बीच दहिं ी सपं कष भार्ा के रूप मंे दवकदसि हो गई ह।ै इस क्षेि मंे 220 भार्ाएँ हैं और सभी एक िसू रे से दभन्न ह।ंै नागालंैड की आओ भार्ा बोलनवे ाला व्यदक्त उसी प्रिेि की अगं ामी, चाके सांग अथवा लोथा भार्ा नहीं समझ सकिा ह।ै इसी प्रकार असम का असदमया भार्ाभार्ी उसी राज्य में प्रचदलि बोड़ो, राभा, काबी अथवा दमदसगं भार्ा नहीं समझ-बोल सकिा ह।ै इसदलए दहिं ी पूवोत्तर भारि की आवश्यकिा बन चकी ह।ै अपनी सरलिा, आंिररक ऊजाष और जनजड़ाव के बल पर दहिं ी पूवोत्तर क्षेि में दनरंिर दवकास के पथ पर अग्रसर ह।ै क्षेि के िरू स्थ अंचल िक दहिं ी का पण्य आलोक दवकीणष हो चका ह।ै क्षिे की दवदभन्न भार्ाओ-ं बोदलयों के रूप, िब्ि, िैली, वचन-भदं गमा को ग्रहण व आत्मसाि करिे हएु दहिं ी का रथ आगे बढ़ रहा ह।ै दहिं ी की दवकास-गंगा पूवोत्तर के सभी घाटों से गजरिी है एवं सभी घाटों के कं कड़-पत्थर, रेिकण, दमट्टी आदि को समटे िे िथा अपनी प्रकृ दि के अनरूप उन्हंे आकार ििे े हुए आगे बढ़िी ह।ै यहाँ की दहिं ी मंे असदमया का माधयष ह,ै बगं ला की छौंक ह,ै नपे ाली की कोमलिा ह,ै दमज़ो का सौरभ है, बोड़ो, खासी, जयंदिया, गारो का पष्ट्प-पराग ह,ै आिी, आपािानी, मोंपा भार्ा की सरलिा है। इस क्षेि में दहिं ी व्यापार, मनोरंजन, सचू ना और जनसंचार की भार्ा बन चकी ह।ै पवू ोत्तर के नौ के न्रीय दवश्वदवद्यालयों के अदिररक्त राज्य के दवश्वदवद्यालयों में दहिं ी के अध्ययन-अध्यापन व अनसंधान की व्यवस्था ह।ै यहाँ के हजारों मूल दनवासी छाि दहिं ी का अध्ययन-अनसधं ान कर रहे ह,ैं यहाँ के सैकड़ों मूल दनवासी दहिं ी के प्राध्यापक ह।ैं अिः पवू ोत्तर भारि में दहिं ी का भदवष्ट्य उज्ज्वल ह।ै सपं का 103, नवकादिषक सोसायटी, प्लाट न.–13, सके ्टर-65, फरीिाबाि-121004 मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected] वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 124
125 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 वहंिी-उिूा वििाि की प्रमख बहसंे कलिीप वसहं एम. दफल. िोधाथी भारिीय भार्ा कें र, भार्ा सादहत्य एवं संस्कृ दि अध्ययन ससं ्थान जवाहरलाल नेहरू दवश्वदवद्यालय, नई दिल्ली ई-मले - [email protected] साराशं सावहवत्यक वििादों मंे वहदं ी-उदवू का वििाद िहतु पुराना एिं िवितव वििाद रहा ह।ै वितना अवधक वििाद वहदं ी-उदवू के िीि हआु है शायद ही अन्य वकसी भारतीय भाषाओं के िीि हुआ हो। उन्नीसिीं शताब्दी इस भावषक वििाद की उत्सर्गव भवू म ह।ै यह वहदं ी - उदवू का झर्गिा अंग्रिों के भारत आर्गमन के साथ शरु ू हुआ था और आि तक यह वििाद कायम ह।ै यह वहदं ी - उदवू वििाद, भारतीय उपमहाद्वीप की भाषा का स्िरूप क्या हो? क्या वहदं ी-उदवू दो नहीं एक ही भाषा ह?ै क्या वहदं ी से उदवू या उदवू से वहदं ी का िन्म हुआ ह?ै िैसे प्रश्नों के साथ शुरू हुआ और धीरे - धीरे यह वििाद दो सम्प्प्रदायों, दो वििारधाराओ,ं दो संस्कृ वतयों के टकराहट में िदल र्गया। इसी वहदं ी - उदवू वििाद की पररणीवत वहन्द-ू मुवस्लम वििाद के रूप मंे हईु । प्रस्तुत शोध पत्र का मखु ्य उद्दशे ्य वहदं ी-उदवू वििाद के कारणों का और इस वििाद से सिं वं धत प्रमुख िहसों का विश्लेषण ह।ै बीज शब्ि: भाषा, वििाद, सपं ्रदाय, ससं ्कार, इवतहास शोध आलेख भारि भूदम भार्ाओं का सगं म ह।ै यहाँ एक नहीं अनेक भार्ाओं मंे इसं ान गािा ह,ै हसँ िा ह,ै रोिा ह।ै यही इस जमीं की खूबसूरिी ह।ै भार्ाएं दकसी भी समाज के दलए फ़क़ि अदभव्यदक्त माि का साधन नहीं होिी बदल्क भार्ाओं से समाज बनिा भी है और ससं ्काररि भी होिा ह।ै भारिीय समाज गगं ा जमनी िहज़ीब से बना समाज है और गंगा जमनी िहज़ीब ही इसकी पहचान ह।ै दहिं ी और उिषू महज़ भार्ाएं नहीं हैं ये भारिीय समाज के िो दिल हंै दजनका ज़मीर एक है दजनका इदिहास एक ह।ै िम्भनाथ दसंह दहिं ी-उिषू के संबधं मंे बड़ी महत्त्वपणू ष बाि कहिे हंै - \"दहिं ी और उिषू िो एकिम अलग- अलग परम्पराएँ नहीं थीं, क्योंदक इनका अभ्यिय एक ही जािीय वािावरण में हआु था। इनका स्वरूप धादमषक नहीं था। लोक-जीवन मंे ये जबान पर आज भी एक ह,ैं दिि समिायों में कलम िक आकर भले िो हो जाया करें। इदिहास मंे कई बार ससं ्कृ दि की सहज दमदश्रि धाराओं को राजदननीदिक चालंे पनः अलग-अलग कर िेिी ह।ैं \"1 यह िोनों भार्ाएं ठीक वैसे ही हंै जसै े दहिं स्िान और पादकस्िान का कभी एक ही हुआ करिा था और आज राजनीदिक चालों के कारण ही िो िेि ह।ंै आज हम दजसे दहिं ी - उिषू िो भार्ाओं के रूप में जानिे हंै यदि हम इदिहास में पीछे की और जाएंगे िो पिा चलेगा दक दहिं ी-उिषू कभी िो नहीं एक ही भार्ा हुआ करिी थीं। दजसे दहिं वी या रेख़्िा के नाम से जाना जािा था। अमीर ख़सरो इसी दहिं वी अथािष रेख़्िा के प्रविकष माने जािे ह।ंै दवद्वानों ने भी अमीर खसरों से ही दहिं ी-उिषू जबां की परंपरा को स्वीकार दकया ह।ै रामधारी दसहं दिनकर ने 'ससं ्कृ दि के चार अध्याय' में दलखा है दक \"भारि के सासं ्कृ दिक इदिहास मंे 1 िभं नाथ, दहिं ी नवजागरण और ससं ्कृ दि, आनंि प्रकािन, 2004, कोलकािा, प.ृ 44 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 125
126 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 खसरों ने बहिु बड़ी क्रांदि की और, सत्य ही, वे दहिं ी और उिषू के प्रविकष कहलाने योनय ह।ैं \"1 अिः यह दनदवषवाि रूप से कहा जा सकिा है दक अमीर खसरों खड़ी बोली दहंिी के ही नहीं उिषू के भी पहले कदव ह।ंै वहंिी-उिूा उत्पवि सबं ंधी वििाि ‘दहिं ी’ एक फारसी िब्ि ‘दहिं ’ से व्यत्पन्न ह,ै दजसका अथष होिा ह-ै ‘दसंध निी का सीमाविी क्षेि’। भारि में दहिं ी का उद्भव और दवकास 7वीं ििाब्िी के आस-पास संस्कृ ि की पाली एवं प्राकृ ि भार्ाओं के अपभ्रिं के रूप में हुआ। दहिं ी को कई नामों से जाना जािा ह।ै आज भी इसके कई नाम प्रचदलि हैं दजसे कहीं दविेर्ण के रूप में िो कहीं दविषे्ट्य के रूप मंे प्रयोग दकया जािा है जसै े िेवनागरी या नागरी, आयष भार्ा, राष्ट्र भार्ा या राजभार्ा। लदे कन दहिं ी ही अदधक पराना नाम ह।ै अमीर खसरों की रचना 'खादलकबारी' को दहिं ी - उिषू का सबसे पराना कोि माना जािा ह।ै उसमें सभी जगह कल बारह बार 'दहिं ी' और पचपन बार 'दहिं वी' िब्ि का प्रयोग हुआ ह।ै दहिं ी' का अथष है दहिं की भार्ा, और 'दहिं वी' से मिलब है दहिं ओं या दहिं स्िादनयों की भार्ा। 'खादलकबारी' मंे कहीं भी उिषू या रेख़्िा जसै े िब्ि का दज़क्र नहीं हुआ ह।ै लेदकन कछ उिषू के दहमायदियों का मानना है दक यह दहिं ी या दहिं वी उिषू का ही पराना रूप ह,ै जो उदचि एवं िकष यक्त नहीं लगिा। दहिं ी से उिषू या उिषू से दहिं ी के सिं भष रामधारी दसहं दिनकर का मि उल्लेखनीय है - \"जो लोग यह कहिे हंै दक दहिं ी से उिषू दनकली ह,ै उन्हंे यह भी कहना चादहए दक दहन्ििान अरब और ईरान के पेट में था। वहीं से कढ़कर वह दहमालय और दहन्ि महासागर के बीच फै ला ह।ै दहिं ी से उिषू बनी ह,ै उिषू से दहिं ी नहीं। दहिं ी में अरबी, फारसी, िकी िब्ि बढ़ा िेने और फ़ारसी महावरे चला िेने से उिषू का जन्म हुआ ह।ै वस्िदस्थदि यह है दक दहिं ी के दबना उिषू एक पग नहीं धर सकिी और उिषू के दबना दहिं ी के महाग्रथं दलखे जा सकिे ह।ैं \"2 ऐसे अनके िकष दमल जाएंगे दजनके आधार पर एकमि होकर स्वीकार दकया जा सकिा है दक उिष,ू दहिं ी से बनी ह,ै दहिं ी, उिषू से नहीं। उिषू मलू िः िकी भार्ा का लफ़्ज़ है दजसका कोिगि अथष है लश्कर या छावनी का बाज़ार। वह बाज़ार जहाँ सब िरह की चीज़ें दबकिी हों। दहिं ी भार्ा का वह रूप दजसमंे अरबी, फ़ारसी और िकी आदि के िब्ि अदधक हों और जो फ़ारसी दलदप मंे दलखी जाए। उिषू फ़क़ि एक भार्ा का नाम नहीं है यह एक िहज़ीब, एक ससं ्कृ दि की पहचान ह।ै उिषू भार्ा का इदिहास बेहि जदटल रहा है और उिषू िब्ि की उत्पदत्त भी बड़ी ही दववािस्पि रही ह।ै आज िक ठीक ठीक दनणयष कर पाना संभव नहीं है दक उिषू का प्रयोग पहली मिषबा कब और दकस रूप मंे दकया गया। उिषू भार्ा के आदलम मीर 'अम्मन' के अनसार उिषू का जन्म अकबर के समय मंे हआु और 'अबे हयाि' के लखे क महम्मि हुसनै आज़ाि उिषू की उत्पदत्त िज भार्ा से मानिे ह।ैं लेदकन कोई ऐसे िथ्य िखे ने को नहीं दमलिे हैं दजसके आधार पर उिषू की उत्पदत्त प्रामादणक रूप से स्वीकार की जा सके । दहिं स्िानी अकािमी, इलाहाबाि से प्रकादिि पदं डि पिम् दसंह िमाष की अंदिम सादहदत्यक कृ दि 'दहिं ी, उिषू और दहिं स्िानी' मंे यह उिषू उत्पदत्त संबंधी समस्या िजष है - \"उिषू भार्ा के अथष मंे कब से प्रयक्त और प्रचदलि हुआ, यह दवर्य अबिक दववािास्पि बना हआु ह।ै इसका ठीक दनणयष दकसी पि प्रमाण के आधार पर अभी नहीं हो सका ह।ै कछ दवचारिील दवद्वानों का कथन है दक आमिौर पर उिषू िब्ि भार्ा के दलए अठाहरवीं सिी के अिं में इस्िेमाल होना िरू हआु ।\"3 अठाहरवीं सिी के अन्ि िक दहन्िी, दहन्िवी, उिषू, रेख़्िा, िहे लवी, दहन्िस्िानी, आदि 1 दिनकर, रामधारी दसंह, संस्कृ दि के चार अध्याय, लोकभारिी प्रकािन, 2018, नई दिल्ली, प.ृ 329 2 दिनकर, रामधारी दसहं , संस्कृ दि के चार अध्याय, पृ. 335 3 िमा,ष पद्मदसहं , दहिं ी, उिूष और दहिं स्िानी, दहंिस्िानी अके डमी, 1932, यू. पी., पृ. 28 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 126
127 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 लफ़्ज़ों का समान रूप मंे प्रयोग होिा रहा दकं ि अठाहरवीं सिी के उत्तराधष मंे उिषू िब्ि के कछ उिाहरण उिषू ग़ज़लगों की िायरी मंे दिखाई िेने लगिे हंै - ख़िा रक्खे ज़बाँ हम ने सनी है 'मीर' ओ 'दमज़ा'ष की कहंे दकस मँह से हम ऐ 'मसहफ़ी' उिषू हमारी ह।ै - मसहफ़ी ग़लाम हमिानी नहीं खले ऐ 'िाग़' यारों से कह िो दक आिी है उिषू ज़बाँ आिे आिे। - िाग़ िेहलवी उिषू भार्ा की उत्पदत्त के सिं भष में रामधारी दसहं दिनकर महत्वपणू ष दटप्पणी करिे हुए दलखिे हैं दक - \"उिषू का जन्म खड़ी बोली मंे से संस्कृ ि और दहिं ी के िब्िों को दनकालकर हआु ह।ै यह भी ध्यान िने े की बाि है दक जब िक खड़ीबोली में दहिं ी और ससं ्कृ ि के िब्ि बने रह,े िब िक उसका प्रचदलि नाम भी दहिं ी, दहिं वी अथवा रेख़्िा ही रहा। दकं ि, जब इस भार्ा पर फ़ारसी और अरबी का पूरा प्रभत्त्व हो गया, िब से वह उिषू कहलाने लगी।\"1 वहीं एहिेिाम हसु नै दलखिे हंै दक \"प्रत्यके भार्ा की िरह उिषू को भी सामादजक आवश्यकिाओं ने जन्म दिया, दजसमें धीरे - धीरे - धीरे सांस्कृ दिक दवचारों और सादहदत्यक कृ दियों का प्रविे हुआ।\"2 अरबी फ़ारसी के प्रभाव से ही उिषू भार्ा का जन्म दहन्ि-ू मदस्लम एकिा की भार्ा के रूप मंे हआु और यही दहिं ी मदस्लम की एकिा गगं ा जमनी िहज़ीब के रूप मंे जानी गयी। दकं ि इस एकिा की भार्ा में उन्नीसवीं ििाब्िी के िरुआिी िौर मंे भादर्क सकं ्रमण पैिा हआु । दजसे दहिं ी - उिषू दववाि के रूप मंे जाना गया। मूल ससं ्कारों के रूप मंे दहिं ी पर ससं ्कृ ि के वकृ ्ष की परछाई ंहै िो उिषू पर फ़ारसी, अरबी के वकृ ्ष की परछाई।ं अदधकिर दवद्वानों का मानना है दक दहिं ी में अरबी, फ़ारसी, िकी िब्ि बढ़ा िने े और फारसी महावरे चला िेने से ही उिषू का जन्म हुआ, यह दबल्कल सच ह।ै जो यह मानिे हैं दक दहिं ी, उिषू से दनकली है उनकी की आलोचना करिे हएु आचायष रामचंर िक्ल ने 'दहिं ी सादहत्य के इदिहास' मंे दलखा है - \"कछ लोगों का यह कहना या समझना दक मसलमानों के द्वारा ही खड़ी बोली अदस्ित्व मंे आई और उसका उसका मूल रूप उिषू है दजससे आधदनक दहिं ी गद्य की भार्ा अरबी फारसी िब्िों को दनकालकर गढ़ ली गई, िद्ध भ्रम या अज्ञान ह।ै \"3 दहिं ी-उिषू के जो इदिहास दलखे गए हंै उनमें दहिं ी के इदिहासकार उिषू को नयी भार्ा मानिे हैं िो उिषू के इदिहासकार दहिं ी को नयी मानिे ह।ैं उिषू अिीबों ने िो यह िक दसद्ध कर दिया दक \"भार्ा के दलए दहिं ी िब्ि के सवपष ्रथम नामकरण का सारा श्रेय मसलमान लखे कों और कदवयों को ही दिया जा सकिा ह।ै दहिं ओं का इसमें ज़रा हाथ नहीं। इस बाि को सभी आधदनक उिषू इदिहासलेखकों ने स्वीकार कर दलया है - 'उि-षू ए-क़िीम', 'िारीख़े नस्र उिष'ू , 'पजं ाब में उिष'ू , इत्यादि ग्रथं ों के दवद्वान लेखकों ने बड़ी खोज के साथ यह सादबि कर दिया है दक उिषू का सबसे पराना नाम 'दहिं ी' ही ह।ै \"4 यह उदचि नहीं लगिा ह।ै ऐसा मानने में इदिहासलखे कों और पाठकों के बीच आपसी समझिारी की कमी का अभाव ही नज़र आिा ह।ै फ़क़ि समझ का फे र ह।ै अिः उम्र के दलहाज से नयी भार्ा दहिं ी नहीं, उिषू ह।ै उिषू भार्ा एवं सादहत्य का सफ़र दहिं ी-उिषू दववाि के उथल-पथल से भरा हुआ ह।ै दहिं ी-उिषू के जन्म को लेकर जो दववाि है वह उपयषक्त मिों के आधार पर ख़ाररज हो जािा ह।ै कहा जा सकिा है दक उि,षू दहिं ी से ही दनकली ह।ै 1 दिनकर, रामधारी दसहं , संस्कृ दि के चार अध्याय, प.ृ 333 2 हसु ैन, एहिेिाम, उिूष-सादहत्य का आलोचनात्मक इदिहास, लोकभारिी प्रकािन, 2016, इलाहाबाि, प.ृ 2 3 िक्ल, रामचरं , दहंिी सादहत्य का इदिहास, लोकभारिी प्रकािन, 2019, इलाहाबाि, प.ृ 281 4 िमा,ष पद्मदसहं , दहंिी, उिषू और दहंिस्िानी, पृ. 16 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 127
128 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 राष्ट्रीय एकिा की कड़ी दहिं ी ही जोड़ सकिी है उिषू नहीं। आज यहां 1652 मािभृ ार्ायें िथा 5000 से ज्यािा बोदलयां प्रचदलि ह।ंै भारिीय संदवधान मंे दहिं ी सदहि कल 22 भारिीय भार्ाओं को आदधकाररक भार्ा के िौर पर आठवीं अनसचू ी में जगह िी गई ह।ै दहिं ी यहां के 77 प्रदििि से ज्यािा लोगों द्वारा बोली िथा समझी जािी ह।ै भारि की सदं वधान सभा नें 14 दसिंबर 1949 को सवसष म्मदि से इसे ‘राजभार्ा’ का िजाष प्रिान दकया था। िेि भर में दहिं ी भार्ा के प्रचार- प्रसार और संवधषन को प्रोत्साहन िने े के दलए वर्ष 1953 से, राष्ट्रभार्ा प्रचार सदमदि, वधाष के प्रयासों से 14 दसिबं र को दहिं ी दिवस के रूप मंे मनाया जािा ह।ै वहिं ी-उिूा बनाम वहिं स्तानी का झगड़ा ित्कालीन भार्ा का एक नाम दहिं स्िानी भी था। दजसका नामकरण यरू ोदपयन लोगों ने दकया। सिहवीं-अठारहवीं सिी के िौरान जब दवििे ी लोग भारि आए िो उन्होंने हमारे यहाँ दक भार्ा को 'इडं ोस्िान'(Indostan) नाम दिया। फोटषदवदलयम कॉलेज के दहिं ी उिषू अध्यापक जान दगलक्राइस्ट ने दहिं स्िानी भार्ा से संबंदधि सोलह दकिाबंे दलखीं, दजसमंे 'अंगरेजी- दहिं स्िानी दडक्िनरी' और 'दहिं स्िानी भार्ा का व्याकरण' दकिाब मिहरू हईु । गासाष ि िासी ने भी दहिं ी-उिषू के दजस नाम का प्रयोग दकया वह 'दहिं स्िानी' ही ह।ै लदे कन बाि मंे उसे दहन्ि-ू मदस्लम की साझी भार्ा के नाम से जाना जाने लगा। दहिं स्िानी नाम पर \"सरकारी सनि की बाकायिा छाप उस समय लगी जब (सन् 1803 ई. म)ंे कलकत्ते के फोटषदवदलयम कॉलजे मं,े डॉक्टर जान दगलक्राइस्ट की िखे रेख मंे, ईस्ट इदं डया कं पनी के यरू ोदपयन कमषचाररयों को ििे ी भार्ा दसखाने के दलए एक महकमा कायम दकया गया और दहिं ू मसलमान दवद्वानों से उिष-ू दहिं ी में पस्िकें दलखवाई गई।ं दहिं ी-लखे कों मंे पदं डि सिल दमश्र और पदं डि लल्ललू ाल जी प्रमख थे, और मसलमानों में मीर 'अम्मन' िेहलवी आदि थे।\"1 ऐसा कहा जािा है दक दजस समय दहिं ी उिषू का झगड़ा चल रहा था और एक ओर वह संस्कृ ि-गदभिष हो रही थी, और िसू री ओर फ़ारसी, अरबी िब्िों से लबरेज, उस समय एक िीसरी भार्ा की उत्पदत्त हईु , उसी का नाम दहिं स्िानी था। दहिं ी-उिषू बनाम दहिं स्िानी का जो झगड़ा था उसके संिभष मंे गाधं ी जी का यह भी मानना था दक 'दहिं ी और उिष'ू नदियां हैं और दहिं स्िानी सागर ह।ै दहिं ी और उिषू िोनों को आपस में झगड़ा नहीं करना चादहए।' अयोध्या प्रसाि खिी दहिं स्िानी भार्ा का जन्मिािा उन लोगों को मानिे ह,ैं जो उक्त िोनों दवचारों के दवरोधी थे और जो दलदखि भार्ा को बोलचाल की दहिं ी के अनकू ल अथवा दनकटविी रखना चाहिे थ।े राजा दिवप्रसाि भी कछ हि िक इसी दवचार के थ।े वास्िव मंे दहिं ी-उिषू के दमदश्रि रूप से ही दहिं स्िानी भार्ा की दनदमषदि हुई। दहिं स्िानी भार्ा को लके र जो मख्य दववाि था वह राष्ट्रभार्ा और राजभार्ा के संिभष में था। स्विंििा आिं ोलन की पषृ ्ठभदू म में यह दववाि िेज हआु दक राष्ट्रभार्ा दहिं ी हो या उिष?ू राष्ट्रभार्ा और सपं कष भार्ा के मद्दे पर हस्िक्षेप करिे हएु गांधी जी ने दहिं स्िानी का समथषन दकया। गांधी जी दहिं ी-उिषू की जगह उस दहिं स्िानी भार्ा का समथनष करिे थे दजसे उत्तर भारि के िहरों और गावं ों में दहिं ,ू मसलमान आदि बोलिे हों, समझिे हों और आपस के कारोबार मंे बरििे हों और दजसे नागरी और फ़ारसी िोनों में दलखा-पढ़ा जािा हो। दहिं स्िानी भार्ा के पीछे अंग्रज़े ों का जो र्ड्यंि काम कर रहा था उसके सिं भष में दहिं ी के प्रदसद्ध आलोचक िभं नाथ दलखिे हंै \"उपदनवेिवाि एक िरफ दहिं ी को उिषू दहिं स्िानी से लड़ाकर, िसू री िरफ उसे भारि के िसू रे क्षिे ों मराठी- बांनला-गजरािी-पजं ाबी आदि की िब्ि-पंरपरा और अथष-परंपरा से काट कर, िीसरी िरफ उसे दहिं ी समूह की दवदभन्न 1 िमाष, पद्मदसहं , दहिं ी, उिषू और दहिं स्िानी, प.ृ 30 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 128
129 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 भार्ाओ-ं उपभार्ाओ,ं िज, अवदध, मदै थली, भोजपरी आदि की दवरासि से िोड़कर दकनारे कर िेना चाहिा था।\"1 सन् 1946 में कागं ्रेसी मंदिमंडलों की स्थापना हुई, दजसमंे दहिं स्िानी भार्ा नीदि को रखा गया जो असफल रही। 15 अगस्ि 1947 को िेि दवभाजन के साथ उिषू पादकस्िान की भार्ा बन गई। इससे दहिं स्िानी का जो दववाि था कमज़ोर पड़ गया। दहिं ी के समथषकों का मानना था दक दहिं स्िानी की आवश्यकिा नहीं ह।ै पयाषप्त दवचार-दवमिष के बाि 14 दसिबं र 1949 को संदवधान सभा ने नागरी मंे दलखी जानेवाली दहंिी भार्ा को राजभार्ा के रूप में स्वीकार कर दलया गया। वहंिी-उिूा वििाि : नागरी और फ़ारसी वलवप भार्ा को दजस रूप मंे दलखा जािा है उसे दलदप कहिे ह।ंै दलदप से ही भार्ा का दलदखि अदस्ित्व जड़ा होिा ह।ै दलदप के दबना भार्ा का जो रूप हम िेखिे हंै वह वादचक रूप कहलािा ह।ै हर भार्ा की अपनी एक अलग दलदप होिी ह।ै जो दलदप दजिनी सरल एवं सगम्य होगी वह भार्ा उिनी ही समाज में लोगों के द्वारा सहज ही स्वीकार की जाएगी। दहिं ी और उिषू िोनों की दलदप क्रमिः िेवनागरी एवं फ़ारसी ह।ै िेवनागरी दलदप को बाएं से िाएं दलखा जािा है िो फ़ारसी दलदप िाएं से बाएं की ओर। अक्सर कहा जािा है दक दहिं ी और उिषू को जो चीज़ अलग करिी है वह दलदप ही ह।ै दलदपभेि के कारण ही दवद्वानों ने दहिं ी और उिषू को अलग-अलग माना है अन्यथा िोनों भार्ाओं में इिनी अदधक समानिा है दक िायि ही भारि की अन्य दकसी िो भार्ाओं मंे हो। व्याकरण ही दकसी भार्ा को अन्य भार्ा से अलग करिा है लेदकन यहाँ िो दहिं ी-उिषू का व्याकरण समान ह,ै िोनों के सवनष ाम एवं दक्रयापि भी एक ही ह।ंै ऐसा कभी भी िो अलग भार्ाओं मंे िेखने को नहीं दमलिा। उिाहरण के िौर पर िेखंे िो दहिं ी और बानं ला भार्ा के व्याकरण अलहिा ह।ंै दलदपभेि ही इस दहिं ी-उिषू दववाि के सबसे बड़े मद्दों में से एक था। दजसने इस दववाि को और ज्यािा गदि प्रिान की। ित्कालीन समाज मंे सरकारी महकमों में कामकाज के दलए जो दलदप प्रयोग मंे लाई जा रही थी वह फ़ारसी दलदप थी। सरकारी महकमों मंे सेवाएं िने े वालों में समाज के जो लोग िादमल थे उनमंे दहिं ू मदस्लम की बहुलिा अदधक थी। जब यह भादर्क दववाि िरू हआु िो दलदपगि भेि इसके कें र में था। उन्नीसवीं सिी के उत्तराधष मंे दहिं ी-उिषू के साथ फ़ारसी-नागरी दलदप का द्वंि भी िरू हुआ। मसलमानों के द्वारा उिष-ू फ़ारसी के हक़ में िलीलें िी जा रही थीं। पहली मिबष ा जब सैयि अहमि खां ने 1867 मंे पदश्चमीमोत्तर प्रांि में एक ििे ी भार्ा मंे दवश्वदवद्यालय खोलने के दलए प्रस्िाव रखा (दजसके पीछे उनकी उिषू भार्ा की मिं ा काम कर रही थी) और उिषू की वकालि हिे 'अजं मन-ए-िरक्क़ी-ए-उि'षू जैसे सगं ठन की स्थापना की िो वहीं िसू री ओर दहिं ू दहमायदियों के द्वारा फ़ारसी के स्थान पर नागरी दलदप के प्रयोग पर जोर दिया गया। अहमि खां के बाि राजा दिव प्रसाि दसिारे दहिं ने 1868 ई. में ित्कलीन सरकार को एक प्रदिविे न 'मेमोरण्डम कोटष कै रेक्टर इन ि अपर प्रोदवन्स ऑफ़ इदं डया' दलखा दजसका उद्दशे ्य फ़ारसी दलदप को हटाकर नागरी दलदप बनाना था। कहिे हंै दक यहीं से दहिं ी-उिषू दववाि की नींव डली और यहीं से दलदप आंिोलन की िरुआि भी हुई। दजसके मख्य प्रस्िोिा सयै ि अहमि खां और राजा दिव प्रसाि दसिारे दहिं थे। दजन्होंने इस दलदपगि आंिोलन को मक़म्मल आवाज अथाषि ज़मीन प्रिान की। दहिं ू 'दहिं ी' और मसलमान 'उिष'ू के पक्ष मंे खड़ा था। िोनों ही हर िरह से अपनी अपनी भार्ा को बचाए रखने के दलए जोर लगा रहे थे। आचायष रामचरं िक्ल ने दलखा है दक \"मसलमानों की ओर से इस बाि का घोर प्रयत्न हआु दक िफ्िरों मंे दहिं ी रहने न पाये, उिषू चलाई जाय।े उनका चक्र बराबर चलिा रहा।\"2 1 िंभनाथ, दहंिी नवजागरण और संस्कृ दि, प.ृ 36 2 िक्ल, रामचरं , दहिं ी सादहत्य का इदिहास, पृ. 295 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 129
130 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 यह बाि भी दबल्कल सही है दक दहिं ी - उिषू दववाि को समाधान िने े वालों में बहुि ही दगने चने लोग थे। बदल्क दववाि को बढ़ाने वालों की सखं ्या बहे ि ज्यािा थी। ित्कालीन समय के न्यायमदू िष िारिा चरण दमि को यह मालमू हो गया था दक एक दलदप के दबना यह दववाि ख़त्म नहीं हो सकिा और दहिं ी-उिषू िो क्या दहन्ि-ू मदस्लम में भी एकिा सभं व नहीं। एकिा के उद्दशे ्य से उन्होंने 'एकदलदप दवस्िार पररर्ि' की स्थपना की और िवे नागर पि आदि भी दनकाले। दकं ि इस संिभष में न िो उन्हंे दहिं ू ही और न ही मदस्लमों का कोई ख़ास सहयोग दमला, ित्कालीन दिटि सरकार िो यह एकिा दबल्कल भी नहीं चाहिी थी। उनका एकदलदप का सपना मक़म्मल मदं ज़ल िक न पहुचँ सका और असफ़ल रहा। दहिं ी-उिषू दववाि मलू रूप में दलदप संबधं ी दववाि का दवस्ििृ रूप ह।ै पिम् दसहं िमाष के ठीक दलखा है दक \"दहिं ी उिषू को िो दभन्न भागों में दवभक्त करने का प्रधान कारण दलदप का भिे ह।ै दहिं ी उिषू के दवरोध की बदनयाि दलदप-भिे पर ही कायम हईु ; दवरोध का महल इसी पर खड़ा है - िोनों भार्ाओं में यही भेि एकिा नहीं होने िेिा। यह दलदप-भिे यदि िरू हो जाय, िो दहिं ी-उिषू दववाि के बखेड़े कभी न हों, सब दवरोध िांि हो जाय।\"1 वहिं ी-उिूा और विवटश कू टनीवत हक़ीक़ि यह है दक दहिं ी और उिषू की वादस्वक लड़ाई अंग्रेज़ों के भारि आगमन के साथ िरू होिी ह।ै अंग्रज़े दहिं ी-उिषू के आधार पर दहन्िू मदस्लम को बाटं ना चाहिा थे। इस दहिं ी-उिषू को अलग-अलग भार्ा के रूप में स्थादपि करने मंे फोटष दवदलयम कॉलजे की कंे रीय महत्ता स्वीकार की जािी ह।ै दिदटि कू टनीदि 'फू ट डालो और िासन करो'' की नीदि ने ही उन्हंे एक िसू रे का िश्मन बना दिया। दहिं ी-उिषू दववाि महज़ एक भार्ा या दलदप का दववाि भर नहीं था बदल्क यह एक ख़ास दकस्म की सोच का दववाि रहा ह।ै \"खड़ी बोली दहिं ी के दवकास काल में दहिं ी उिषू का भद्दा झगड़ा पिै ा हआु , जो स्वाधीनिा आंिोलन के काल से ही सांप्रिादयक राजनीदि के साथ-साथ अब िक चल रहा ह।ै \"2 इस दहिं ी-उिषू के दववाि को बढ़ाने मंे दजिना योगिान दिदटि कू टनीदि का था उससे भी कई अदधक राजनीदिक एवं सांप्रिादयक भावनाओं ने इस दववाि की अदनन मंे घी का काम दकया ह।ै बहुि पहले दगलक्राइस्ट ने दहिं ी को 'गँवारू और दहिं ओं की भार्ा' कहा था। िरअसल दहिं ी और उिषू के बीच बढ़े फासले की मख्य वजह आम जन का सांप्रिादयक दवभजान नहीं था, यह उपदनविे वाि का खले था। दजसे फ्रें च दवद्वान गासाष ि िासी के माध्यम से समझा जा सकिा ह।ै जो उन्होंने कहा वह औपदनवेदिक' फू ट डालो िासन करो' की नीदि का उिाहरण है - \"दहिं ी में दहिं ू धमष का आभास है - वह दहिं ू धमष दजसके मूल मंे बिपरस्िी और उसके आनर्दं गक दवधान ह।ंै … मैं सयै ि अहमि खां जसै े दवख्याि मसलमान दवद्वान की िारीफ मंे और ज्यािा कछ कहना नहीं चाहिा। उिषू भार्ा और मसलमानों से मेरा जो लगाव है वह कोई दछपी बाि नहीं ह…ै इस वक्त दहिं ी की हदै सयि भी एक बोली की - सी रह गई ह,ै जो हर गावँ मंे अलग-अलग ढगं से बोली जािी ह।ै \"3 सर सैय्यि अहमि ने मदस्लम समाज में जो हलचल पैिा की, उसके पररणाम बिे क एकायामी नहीं ह।ंै प्रारंभ में उनका दृदिकोण दबल्कल असापं ्रिादयक था, जो बाि मंे सापं ्रिादयक िो हआु , लदे कन आदखरी िौर में उन्होंने गहरी आत्मालोचना की - \"मैं दहिं ओं और मदस्लमों को एक ही आँख से िेखिा हूँ और उन्हें एक िल्हन की िो आंखों की िरह िेखिा ह।ूँ राष्ट्र से मेरा अथष के वल दहिं ू और मदस्लम है िथा और कछ भी नहीं। हम दहिं ू और मदस्लम एक साथ एक ही सरकार के अधीन समान दमट्टी पर रहिे ह।ैं हमारी रुदच और समस्याएं भी समान। हंै अिः िोनों गटों को मंै एक ही राष्ट्र 1 िमाष, पद्मदसंह, दहंिी, उिषू और दहिं स्िानी, पृ. 70 2 पाडं ये , मैनेजर, सादहत्य और इदिहास दृदि, वाणी प्रकािन, 2016, दिल्ली, पृ. 100 3 िक्ल, रामचरं , दहंिी सादहत्य का इदिहास, पृ. 298-299 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 130
131 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 के रूप में िेखिा हू\"ँ 1 िरअसल सयै ्यि अहमि जी की जो दहिं -ू मसलमान को लेकर एक िल्हन की िो सिं र आँखंे वाली भावना थी। वह जज़्बा बाि में ख़ि नहीं दबखरा, दहिं ओं ने नहीं दबखेरा, अंग्रजे ों ने उसे सभ्यिाओं की टकराहट का ग्रास बना दलया था। बाि मंे उन्होंने मसलमानों के प्रवक्ता के रूप मंे अपना रूपांिरण कर दलया। \"उन्होंने 1869 मंे कहा, फारसी बदलदप मंे दलखी हुई उिषू मसलमानों की दनिानी ह\"ै 2 उसी समय से उिषू मसलमानों के दलए महज एक भार्ा नहीं, उनकी संस्कृ दि, उनका इदिहास, यहाँ िक दक उनका मजहब बन गई। सैय्यि अहमि की आलोचना करिे हएु वीरभारि िलवार ने ठीक ही दलखा है दक \"उिषू को इस्लाम से जोड़ने की प्रदक्रया भी दिलचस्प थी। 18 वीं सिी के उत्तराधष से पहले उिषू इस्लाम का प्रिीक कभी नहीं रही। उलटे वह एक गरै इस्लादमक जबान समझी जािी थी। ज्ञान और कदविा की भार्ा फ़ारसी थी और धमष की भार्ा अरबी, दजसे समझने वाले आम मसलमान िो क्या, पढ़े-दलखे मसलमान भी बहिु कम थ।े \"3 सैय्यि अहमि का जो दहिं -ू मसलमानों को िो आँखों से िखे ने का नज़ररया था वह बाि में बिला था और उन्हें इस बाि की पीड़ा बड़ी सिािी रही दक अंग्रज़े ों ने उनका इस्िेमाल दकया । इधर बाि मंे जो दहिं ी आंिोलन चला उसमें बड़े-बड़े दवद्वानों िथा ससं ्थाओं ने भाग दलया। दहिं ी के हक़ मंे जो ससं ्थाएं खड़ी थीं उनमंे आयष समाज, ियानिं एंनलो-वैदिक संस्थाए,ं नागरी प्रचाररणी सभा, दहिं ी सादहत्य सम्मले न आदि िादमल थे और सर सैयि अहमि खां, अंजमन-ए-िरक्की उिष,ू मसदलम लीग आदि द्वारा उिषू का पक्ष दलया जा रहा था। दहिं ी के दवद्वानों की धारणा उिषू के प्रदि और उिषू आदलमों की दहिं ी के प्रदि बहे ि नकारात्मक और अश्लील हो चली थी। स्वयं भारििंे हरीिचंर दजन्होंने उिषू में अनेक ग़ज़लंे दलखीं, ने उिषू को वेश्याओं और नाचने गाने वाले गँवारों की भार्ा कहा। भारिेंि ने 'उिषू का स्यापा' दलखकर उसका मज़ाक बनाया। यही बाि भारििंे मडं ल के प्रिापनारायण दमश्र 'उिषू बीवी की पजंू ी' नामक दनबधं मंे कहिे हंै दजसमें वे उिषू की िलना िवायफ के कोठे से करिे ह।ैं बाल कृ ष्ट्ण भट्ट िो दहिं ी-उिषू के दववाि को छोड़, मसलमान को 'माह जघन्य, नीच और परले दसरे के िि' कहकर दहिं -ू मदस्लम के सांप्रिादयक सौहािष को ठेस पहुचँ ािे ह।ैं यही नहीं वे दहिं ी प्रिीप (जलाई, 1881) में एक जगह िो यह कहने से परहजे भी नहीं करिे दक 'आयों के एकािं दवरोधी मसलमानों को अपना भाई समझना भलू ह।ै यह वो समय था जब दहिं ी-उिषू का दववाि दहिं -ू मदस्लम के रूप बिल रहा था। भारि-पादकस्िान का बटं वारा जो मख्यिः दहिं स्िानी क्षिे का बटं वारा था। नागरी दलदप के मामले मंे दहिं ी का संघर्ष उिषू के दखलाफ नहीं था, पर इसे यही रंग दिया गया और िीवारंे खड़ी की गई। 'उन्नीसवीं सिी का दहिं ी नावजगरण बनाम दहिं ी - उिषू की रस्साकिी' नामक लेख मंे अदमर् वमाष ने एकिम सटीक दवश्लेर्ण दकया है - \"दहिं ी को 'दहन्ि'ू और उिषू को 'मसलमान' करने का जो काम उन्नीसवीं सिी के उत्तराधष मंे दकया गया उसका असर अपने चरम पर आज नजर आ रहा ह।ै उन्नीसवीं सिी मंे होने वाले दहिं ी नावजगरण के दवदभन्न पहलओं और उसके नायकों को अपने-अपने ढंग से 'दडफें ड' करिे हएु भी आज िमाम आलोचक और इदिहासकार के इस काल- खंड में ही दहिं ी के 'सोलह संस्कार' हुए और उिषू की पूरी 'मसलमानी' हुई। हालांदक यह काम फोटष दवदलयम कॉलेज और ईसाई दमिनररयों ने पहले ही िरू कर दिया था लेदकन इसे अजं ाम िक पहुचँ ाया उन्नीसवीं सिी के दहंिी आंिोलन ने।\"4 1https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%E2%80%93%E0%A4%89%E 0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6; 22 फवारी 2021 को िेखा गया. 2 िभं नाथ, दहिं ी नवजागरण और ससं ्कृ दि, प.ृ 39 3 िलवार, वीरभारि, रस्साकिी, सारांि प्रकािन प्राइवटे दलदलटडे , 2006, दिल्ली, प.ृ 253 4 https://www.hindisamay.com/ वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 131
132 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 वहंिी-उिूा वििाि का िशं और गलती सधार की इक्कीसिीं सिी यँू िो इदिहास मंे ऐसी अनके घटनाए,ं दववाि व भूलें हुई दजनका परअसर आज िक िखे ा जा सकिा ह।ै इक्कसवीं सिी का भारि दहिं ी-उिषू दववाि का िंि दहिं -ू मदस्लम दववाि के रूप दजस िरह से झले रहा है वह अत्यिं िःखिायी ह।ै लेदकन इस सरजमीं पर जो घटनाएं घटीं, दववाि हुए, भूलें हईु दजन्हें आज याि कर या िेख कर रूह िक कांप जािी ह।ै िक़सीम के दलए दहिं ी-उिषू दववाि ने एक दचगं ारी का काम दकया ह।ै यदि दहिं ी-उिषू में यह दववाि न होिा िो िायि उस वक्त इसके कारण जो दहिं -ू मदस्लम समिाय के बीच िश्मनी ने जन्म दलया, और जो िक़सीम हुआ वो न होिा। सादहर के मन मंे उस वक्त न जाने क्या रहा होगा जब सन सत्तावन के आसपास उन्होंने यह गीि दलखा - ये िदनया अगर दमल भी जाए िो क्या ह…ै िब चाहे उनके मन मंे कछ भी रहा हो लदे कन िक़सीम के बाि उन्हंे इस दहन्िस्िां पर रोना आया होगा और दफर िभी इस गीि के बोल फू टे होंग…े आज साझा सांस्कृ दिक दवरासि का टूटना, सांप्रिादयकिा आदि फै लना भार्ा संक्रमण से पैिा हुए माहौल की पररणदि ह।ै यह दबल्कल स्पि हो चका है दहिं ी-उिषू दववाि भार्ा दववाि न रहकर एक सापं ्रिादयक दववाि मंे बिल चका ह।ै हमारे मन मंे आज उिषू के नाम पर मदस्लम और दहिं ी के नाम पर दहिं ू धमष की धारणा बन जािी ह।ै यह आश्चयष की बाि नहीं दक हमारे यहां भार्ा का भी धमष ह।ै यह भारि भदू म की खूबसरू िी नहीं दवडंबना है दक हर चीज़ को दहिं -ू मदस्लम में बांटा जािा ह।ै िायर अिम गोंडवी के अिआर यहां मौजंू बठै िे हंै - जो अक्स उभरिा है रसखान की नज़्मों मंे क्या कृ ष्ट्ण की वो मोहक िस्वीर बिल िोग।े जायस से वो दहिं ी का िररया बहके आया, मोड़ोगे उसकी धारा, या नीर बिल िोग।े यह आपस में लड़ने-झड़ने का समय नहीं है बदल्क इदिहास की गलदियों को सधारने का वक़्ि ह।ै दजिनी दहिं ी हमारी है उिनी उिषू भी। आज उिषू हादिए पर जा पहचुं ी है उसे बचाना उसका संवद्धषन करना हमारा िादयत्व ह।ै इस बाबि हमारी सरकारों का भी ध्यान जाना चादहए और िालीम िेने वाले आदलम-अध्यापकों भी चादहए दक वे भार्ा को भार्ा के रूप मंे पढ़ायें न दक एक धमष दविेर् का सहारा लके र। दवजय बहािर दसहं ठीक दलखिे हंै - \"दहिं ी-उिषू पहले से दजिनी और अदधक करीब आकर घल-दमल सकंे , यह दफ़रकापरस्िी के इस वक़्ि में सबसे बड़ा राष्ट्रीय और सासं ्कृ दिक उपहार होगा। दजस िरह मीर और ग़ादलब ने दहिं ओं को अलग रखकर िायरी नहीं की, उसी िरह दहिं ी के लोग भी अल्पसखं ्यक मदस्लम दबरािरी को अलग और उिषू की जनिा मानकर न दलखंे। कोदिि करें दक जो सांस्कृ दिक पल टूट गए हैं या टूट रहे ह,ंै वे न टूटने पाएं और िायरी के माफ़ष ि िोनों आबादियाँ करीब आएं\"1 यह दटपण्णी बड़ी महत्त्वपूणष है दजसे अपनाया जाना चादहए। वनष्ट्कषा दहिं ी-उिषू दववाि जो चला उसका सबसे बड़ा कारण दिदटि िासन की कू टनीदि ही थी दजसे हमारे अपनो ने समझने मंे भूल करिी। यह कहना दबल्कल भी अदि नहीं होगा दक आज जो दहिं स्िान-पादकस्िान हैं उनके दवभाजन की िरुआि दहिं ी-उिषू दववाि से ही िरू हो गई थी। दहिं ी-उिषू दववाि को लेकर िरसअल दकसी ने अपने दहि से परे कभी सोचा ही 1 दवजय बहािर दसहं (2015), 'ये दहिं ी ग़ज़ल क्या चीज़ है', अलाव, वर्ष 2015: अंक 45 (मई-अगस्ि) : प.ृ 48 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 132
133 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 नहीं के वल दहिं ू दहिं ी और मदस्लम उिषू के उद्धार के दलए संघर्ष करिे रहे और उन्हंे यह भी नहीं पिा चला दक हमने जो संघर्ष दकया िरअसल वो दहिं ी-उिषू के दलए नहीं दहिं -ू मदस्लम का बांटने भर का सघं र्ष था। दजसमंे दिदटि िासन अपनी उपलदब्ध समझिा रहा। रामधारी दसंह दिनकर ने ठीक ही दलखा और यह बहिु जरूरी भी है - \"भारि की संस्कृ दि, आरंभ से ही, सामादसक रही ह।ै उत्तर-िदक्षण, पूवष-पदश्चम, ििे में जहाँ भी जो दहन्िू बस्िे ह,ैं उनकी संस्कृ दि एक है एवं भारि की प्रत्यके क्षिे ीय दविेर्िा हमारी इसी सामादसक संस्कृ दि की दविेर्िा ह।ै िब दहन्िू एवं मसलमान ह,ंै जो िखे ने मंे अब भी िो लगिे ह,ैं दकं ि, उनके बीच भी सांस्कृ दिक एकिा दवद्यमान ह,ै जो उनकी दभन्निा को कम करिी ह।ै िभाषनय की बाि है दक हम इस एकिा को पणू ष रूप से समझने मंे असमथष रहे ह।ंै यह कायष राजनीदि नहीं, दिक्षा और सादहत्य के द्वारा सम्पन्न दकया जाना चादहए।\"1 अिः दनष्ट्कर्ष के रूप मं,े पिम् दसंह िमाष के दवचारों पर अमल दकया जाना चादहए दजससे दहिं ी-उिषू के दववाि को खत्म दकया जा सकिा ह-ै \"दहिं ी वाले उिषू सादहत्य से बहिु कछ सीख सकिे ह।ैं इसी िरह उिषू वाले दहिं ी के खजाने से फायिा उठा सकिे ह।ैं यदि िोनों पक्ष एक िसू रे के दनकट पहचुँ जायँ और भेि बदद्ध को छोड़कर भाई भाई की िरह आपस मंे दमल जायँ िो वह गलिफहदमयाँ अपने आप ही िरू हो जाय,ँ जो एक िसू रे को िरू दकये हएु ह।ंै ऐसा होना कोई मदश्कल बाि नहीं ह।ै दसफष मजबिू इरािे और दहम्मि की जरूरि ह,ै पक्षपाि और हठधमी को छोड़ने की आवश्यकिा ह।ै \"2 सिं भा सू ी 1. िंभनाथ, दहिं ी नवजागरण और ससं ्कृ दि, आनंि प्रकािन, 2004, कोलकािा, पृ. 44 2. दिनकर, रामधारी दसंह, संस्कृ दि के चार अध्याय, लोकभारिी प्रकािन, 2018, नई दिल्ली, प.ृ 329 3. दिनकर, रामधारी दसहं , ससं ्कृ दि के चार अध्याय, प.ृ 335 4. िमाष, पद्मदसंह, दहिं ी, उिषू और दहिं स्िानी, दहिं स्िानी अके डमी, 1932, यू. पी., प.ृ 28 5. दिनकर, रामधारी दसंह, संस्कृ दि के चार अध्याय, पृ. 333 6. हुसनै , एहिेिाम, उि-षू सादहत्य का आलोचनात्मक इदिहास, लोकभारिी प्रकािन, 2016, इलाहाबाि, प.ृ 2 7. िक्ल, रामचरं , दहिं ी सादहत्य का इदिहास, लोकभारिी प्रकािन, 2019, इलाहाबाि, प.ृ 281 8. िमा,ष पद्मदसंह, दहिं ी, उिषू और दहिं स्िानी, प.ृ 16 9. िभं नाथ, दहिं ी नवजागरण और ससं ्कृ दि, पृ. 36 10. िक्ल, रामचंर, दहिं ी सादहत्य का इदिहास, प.ृ 295 11. िमाष, पद्मदसहं , दहिं ी, उिषू और दहिं स्िानी, प.ृ 70 12. पांडेय, मनै जे र, सादहत्य और इदिहास दृदि, वाणी प्रकािन, 2016, दिल्ली, प.ृ 100 13. िक्ल, रामचरं , दहिं ी सादहत्य का इदिहास, प.ृ 298-299 14. िलवार, वीरभारि, रस्साकिी, सारांि प्रकािन प्राइवटे दलदलटेड, 2006, दिल्ली, पृ. 253 15. दवजय बहािर दसहं (2015), 'ये दहिं ी ग़ज़ल क्या चीज़ ह'ै , अलाव, वर्ष 2015: अकं 45 (मई-अगस्ि) : प.ृ 48 16. दिनकर, रामधारी दसहं , ससं ्कृ दि के चार अध्याय, पृ. 10 17. िमाष, पद्मदसहं , दहिं ी, उिषू और दहिं स्िानी, प.ृ 173 1 दिनकर, रामधारी दसहं , ससं ्कृ दि के चार अध्याय, पृ. 10 2 िमाष, पद्मदसंह, दहंिी, उिषू और दहंिस्िानी, पृ. 173 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 133
134 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 Women Education in Ancient India: A Rethinking Runismita Pritipuspa Research scholar(Dept of Sahitya) J.R.R.S.U,Jaipur [email protected] Introduction Every enquiry of ancient Indian education goes back to the Vedic Period. Vedas are self-revealed and others being originated later from them. They are the ways and means of achieving the spiritual goal of life the Puruṣārtha Catuṣtaya1. The equivalent words of education in Sanskrit are Vidyā, Śikṣā, and Jñāna. According to A.S. Alteker, from Vedic age down wards the central conception of the India has been that it is a source of illumination giving us a correct lead in the various sphere of life.2 Knowledge is the third eye of man which makes him capable to see the real object.3 Upaniṣad says education is for liberation.4 It nourishes us like the mother, directs us to to right path like the father and gives us pleasure and removes our pain like the wife. It is just like a desire-yielding tree that fulfills our desire.5 The status of women was held high during the Vedic period. According to scriptures women were regarded as Goddess, the embodiment of Śakti. They were worshipped as the symbol of fertility6. A sincere attempt has been made in this paper to discuss in details about women education in ancient India. The topic covers from the Vedic period to the Buddhist period. Key Words: Ancient, Education, Women, Period System of Education: There was gurukula system of education in the Vedic period. Teacher was regarded as Guru or Ācārya. Education of the students started with Upanayana ceremony. The ceremony was continued for three days. During these days the Guru holds the disciple within him as in a womb impregnates him with his spirit and delivers him in new birth.7 After the ceremony the student emerges as a Brahmachāri and the teacher is designated as his spiritual and intellectual father. Upanayana of Girls: Without undergoing upanayana saṁskāra, nobody can recite Vedic mantras offer Vedic sacrifices. It was obligatory for the girls undergo upanayana.8 Even Manu has mentioned the importance of upanayana for girls. The Arthavaveda refers to maidens undergoing the discipline of Brahmacarya.9 Participation in Vedic Sacrifices: No sacrifice was complete in which the woman as the spouse of the man performing the sacrifice.10 In Agrahāyaṇa ceremony a number of Vedic hymns were recited and the harvest sacrifices were performed by women alone.11 In the Rāmāyaṇa we also find Kauśalyā was performing a sacrifice alone in the morning of her husband valī was about to leave the palace to meet Surgreeva in fateful encounter.13 We can record the instance of Sītā offering her Vedic prayer during the days of her captivity in Laṅkā.14 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 134
135 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 We also find examples from Mahābhārata that Kunti was well-versed in the Mantras of Atharvavedas.15 Center of Education During the Vedic period the family played a greater role in the educational system. As professional teachers were not available the father was treated as the usual teacher and the home as the usual school. We find so many examples in Vedic and Upaniṣadic literature of father teaching their sons. Prajāpati was the teacher of his son, devatās, asuras and men.16 Āruṇi had initiated his son Śvetaketu in the study Philosophy.17 We find rare cases of girls being educated at boaring school or colleges. But in Mālatimādhava we notice that Kāmandakī was educated at a college along with Bhurivasu and Devarāta.18 This is clear case of sending girls outside for their education. Dharmasūtras also point out that the girls should be taught at home by their male guardians like the father, the brother or the uncle. Co-education : Co-education is not new to our civilization. It was prevalent in Vedic India. Both boys and girls sitting on the lap of the natural in the so called Tapovanas of the forest acquired education in an ideal way from the same Guru. It has been mentioned in Gṛhyasūtra that the three castes excluding the last one were required to undergo a period of religious studentship. We have also some evidence from Chānogyopaniṣad where king Aśvapati says that there is no ignorant person in my kingdom.19 In Uttararāmcarita, we also find Ātreyī receiving education along with Lava and Kuśa.20 So it is clear from the fact that education was not denied to women during Vedic time. Type of Student There was no strees of child marriage in that period. Majority of girls used to get married at the age of sixteen or seventeen. Only few of them could prosecute their studies after that age. The former classes were called Sadyovadhūs and the latter class Brahmavādinis. Along with the study of Vedic hymns and sacrifices, music, and dancing we taught to Sadyovadhūs. Brahmavādinis used to marry after their education was over. We find in the Rāmāyaṇa that Vedavatī, The daughter of sage Kuśādhvaja never got married. Arrangement for teaching Not only the male teachers but also the female teachers used to teach the girl students. The male teachers were called as Upādhyāyas, and the female teachers as Upādhyāyā. Further the wife of a teachers was known as Upādhyāyinī. Pāṇini refers to bording houses for girl students, Chātraśālās and these śālās were under the supervision of the Upādhyāyās or lady teachers.22 But we do not have any clear evidence of the activities of lady teachers and the management of girls boarding. Girls of rich families must have received good education. Lady Scholars During the Vedic period the girls who remained unmarried for longer time, used to have mastery over the Vedic literature.23 Lady student s of Kaṭha and Bahvṛcha school were known as Kaṭhi and Bahvṛchi respectively. Kathivṛndārikā denoted the foremost female students of the Kaṭha school, indicating the success of some woman students in Vedic branch.24 Kāśakritṣṇin has composed a treatise on Mīmāṁsā. The girls who studied the subject were known as Kāśakṛtṣṇā. Poetesses like Viśvavārā, Sikatā,Nivāvari, Ghoṣā, Romāśā, Lopāmudrā, Apālā, Urvaśi had composed Vedic hymns. Some distinguished laady scholars like Sulabhā, Vaḍavā, Prāthiteyi, Maitreyī, and Gārgī contributed a lot to the Vedic literature and philoshophy. Gārgī and Matreyī took part in philosophical discourse along with the Ṛṣis. Names of several South Indian poetesses like Revi, Rohā, Mādhavi and Śaśiprabhā were mentioned in the वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 135
136 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 Gāthā-Śapta-Sati or Hāla.25 Education in Cultured Family: The conditions of cultured families were fairly good. The ladies of the royal families achieved a lot in the field of literary education and became good poetesses.26 They could appoint special teachers for their girls. Special training was given to them in the fields of domestic arts and fine arts like music, painting, and dancing, garland-making and house hold decorations.27 It has been said in Bṛhadāraṇyaka Upaniṣada that a parent desirous for birth of a daughter perform rituals. He should pray that his daughter must be a learned one and live for hundred years.28 Education in ordinary family: Unlike cultured families, the ordinary families could not employee special teacher for their girls. Literature and fine arts were te subjects of study for them. The women took resort to spinning and weaving during their leisure time to help the family and children.29 Women education in Buddism Women were allowed to join Saṅgha. This resulted an indirect impectus to spread women education. Like Brahmavādinis, several ladies became nuns and poetesses to lead a life of celibacy and other went outside India to preach Buddhism. Among the nunscholars Subhā, Anupamā, Sumedhā, Vijayaṅkā and Sanghamitrā were famous. Monastery was the center of education. Girls from well-to-do families and rich merchants used to get education. Monks and nuns were living separately. Conclusion From the above discussions we may conclude the following: 1. Our ancient civilization is unque in respect of the position of women in the society. 2. Education was not denied to women in ancient India. 3. Ladies took parts in performing sacrifices along with the gents 4. Child marriage was not prevalent in the society. 5. Most of the educated women engaged themselves with philosophical discourse to know the ultimate reality of life. 6. At last we can creat awareness among the people to bring back the past glory of women to the present fold. Reference 1. ālaukikaṁ purūṣārthopāyaṁ vetti aneneti/ 2. Education in ancient India, P.4. 3. jñānaṁ tṛtīyaṁ manujasya netraṁ samastatatvārthvilokadakṣaḥ/tojo’napekṣaṁ vigatāntrāya prabṛttimatsarva jatttrayepi// (subhāṣitaratnasandehaḥ) p-194 4. Sā vidyā yā vimuktaye 5. Māteva rakṣti piteva hite niyukte kānteva cāpi ramayatyapaniykhedam/lakṣmītanoti vitanoti ca dikṣukirtiṁ kiṁ kiṁ na sādhayti kalpalateva vidyā// (subhāsitaratnabhaṇḍāraḥ)3.Iv.14 6. Yatra nāryastu pūjyante ramante tatra tatra devatāḥ/ (Manusmṛtiḥ) 7. Ācārya upanaymāno brahmacāriṇaṁ kṛṇute grbhamantaḥ/ Atharvaveda-XI) 8. Aminttrikā tu kāryeyaṁ strīṇāmāvṛdaśeṣataḥ/saṁskārārthe śarīrasya yathākālaṁ yathākramam// 2/66 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 136
137 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 9. brahmacaryeṇa kanyā yuvānaṁ vindate patim/ 10. ayajñno vā eṣa yo’palikaḥ/ śatapatha brahmaṇa V.1.6.10 11. Parāsaragṛhyasūtram/(III.2) 12. Sā kṣobhavasanā hṛṣṭanityaṁ vrata parāyaṇā/ agniṁ juhoti sma tadā mantra viskṛtamaṅgalā// II.20.15 13. tataḥ svastayayanaṁ kṛtvā mantravidvijayaiṣiṇī/ (tatreva) (IV-16.12) 14. sandhyākālamanāḥ śyāmā dṛvamesyti jānakī/ nadīṁ cemāṁ śubhrajalaṁ sandhyārtha varavarṇinī/ (tatreva) (V-15.48) 15. Mahābhāratam II.20 16. Bṛhadaranyakopaniṣad [ 6.2.1] 17. Chāndogyapaniṣad[5.3.1] 18. aṅka-1 19. V.II.5. 20. aṅka-2 21. VII.17 22. chātradayaḥ śālāyām/ VI.2.86 23. A.S.Altekar, Education in India.P.-210 24. I,II,III,& IV 25. kāvyamīmāṁsā –P – 53 26. kāmasūtram1.3.16 27. VI.4.17 28. Arthaśāstram/ II.23 Bibliography 1. Altekar,A.S. (1975), Education in ancient India, Manohar Prakashan, Varanasi-1 2. Dash, B.N. (1994), Foundation of Educational through and practice, Kalayani Publishers, New Delhi- 2 3. Pathak,P.D(1974) Bharatiya Shisha Aur Uski Samasyaen, Vindod Pustak Mandir, Agra-2 4. Chāndogyopaniṣad, Greeta Press, Gorakhpur. 5. Bṛhadāraṇyakopaniṣad, Geeta Press, Gorakhpur. 6. Manusṁṛti,(1987), Chowkhamba Sanskrit Pratisthan, Delhi-7 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 137
138 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ग्रामीण ओवडशा मंे लड़वकयों की वशिा: समस्याएं और आगे का रास्ता कल्याणी प्रधान पीएचडी ररसचष स्कॉलर, भार्ादवज्ञान दवभाग, इदं िरा गाधं ी राष्ट्रीय जनजािीय दवश्वदवद्यालय, मध्य प्रििे मो- 9879734413 ईमेल- [email protected] साराशं ग्रामीण ओवडशा में कई समस्याएं हैं उनमें से लिवकयों की वशक्षा की वस्थवत एक ह.ै हालांवक िक़्त के साथ ग्रामीण वहस्सों में काफी िदलाि आया ह।ै लेवकन ग्रामीण ओवडशा मंे लिवकयों की वशक्षा की वस्थवत आि के समय में भी सतं ोषिनक नहीं ह।ै िही ँावपछले कु छ दशकों से सरकारों और नार्गररक समािों ने लिवकयों की वशक्षा के महत्ि के िारे मंे िहतु ििाव की ह,ै इसके िाििूद आि के समय मंे लाखों लिवकयां स्कू ल से िाहर ह।ैं बीज शब्ि: वशक्षा, समाि, सरकार, व्यिस्था शोध आलेख ओदडिा भारि का पूवी राज्य ह।ै यह पवू ष मंे बंगाल की खाड़ी से दघरा ह।ै पदश्चम में मध्य प्रिेि, उत्तर में दबहार, उत्तर-पूवष में पदश्चम बंगाल और िदक्षण मंे आंध्र प्रिेि। 2011 की जनगणना के अनसार ओदडिा की कल जनसंख्या 4 करोड़ 19 लाख 74 हजार 218 थी. जो दक भारि की कल जनसखं ्या का 3.47 प्रदििि ह.ै दजसमे से परुर्ों की जनसखं ्या 2 करोड़ 12 लाख 09 हजार 812 ह.ै जबदक मदहलाओं की जनसखं ्या 2 करोड़ 07 लाख 64 हजार 406 ह।ै कल जनसंख्या के लगभग 83.31 प्रदििि लोग ओदडिा के ग्रामीण क्षिे ों मंे रहिे ह.ैं ग्रामीण ओदडिा में कई समस्याएं हैं उनमंे से लड़दकयों की दिक्षा की दस्थदि एक ह.ै हालादं क वक़्ि के साथ ग्रामीण दहस्सों में काफी बिलाव आया ह।ै लेदकन ग्रामीण ओदडिा में लड़दकयों की दिक्षा की दस्थदि आज के समय मंे भी सिं ोर्जनक नहीं ह।ै वही ँ दपछले कछ ििकों से सरकारों और नागररक समाजों ने लड़दकयों की दिक्षा के महत्व के बारे मंे बहिु चचाष की ह,ै इसके बावजूि आज के समय मंे लाखों लड़दकयां स्कू ल से बाहर ह।ंै साल मंे कई बार ऐसे मौके आिे हंै जब हम लड़दकयों और मदहलाओं को िेवी मानकर पजू िे हैं और जब अवसर खत्म हो जािे हंै िो हम उन्हें हीन समझकर गाली ििे े ह।ैं दिक्षा सबसे िदक्तिाली उपकरण है दजसका उपयोग व्यदक्त अपने जीवन को दवकदसि करने के दलए करिा ह।ै यह िखे ा गया है दक िदनया भर की सरकारें इस क्षेि में अदधक पैसा दनविे करके अपने नागररकों को दिदक्षि करने के दलए कड़ी मेहनि कर रही हंै क्योंदक वे जानिे हैं दक दिक्षा िेि के दवकास मंे अहम भूदमका दनभािा ह।ै यह एक बहुि ही महत्वपणू ष क्षेि माना जािा है क्योंदक दकसी भी राष्ट्र का आदथषक, सामादजक और राजनीदिक दवकास दिक्षा पर दनभरष करिा ह।ै दपछले कछ वर्ों में, कें र और राज्य सरकारों ने अपनी दिक्षा प्रणाली के दवकास और और उसके कौिल को बढ़ाने के दलए के दलए कई पहल की ह।ैं आज िेि भर में कंे र और राज्य सरकारों द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही ह।ैं ऐसी योजनाएं बहिु लोकदप्रय हैं और वे एक महत्वपूणष भदू मका दनभािी ह;ैं मध्याह्न भोजन कायषक्रम उनमंे से एक ह।ै हाल के वर्ों मंे, िहरी भारि ने लड़दकयों की दिक्षा के संिभष मंे ऐदिहादसक दवकास िेखा ह,ै लेदकन ग्रामीण क्षिे ों में बहिु सारे काम दकए जाने की जरूरि ह।ै वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 138
139 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 भारि की 2011 की जनगणना के अनसार, िहरी और ग्रामीण क्षिे के बीच का अंिर लगभग 16 प्रदििि है और ग्रामीण क्षेि में परुर् और मदहला के बीच का अंिर लगभग 20 प्रदििि थी। दिक्षा का अदधकार अदधदनयम के लागू होने के बाि बादलकाओं की दिक्षा की दस्थदि धीरे-धीरे दपछली दस्थदि की िलना मंे बहे िर हो रही है, लेदकन हमंे अभी भी इस दििा मंे दविरे ् रूप से ग्रामीण क्षेिों मंे कड़ी मेहनि करनी ह।ै आज के पररदृश्य मंे, यह कदठन िथ्य है दक लड़दकयां दवदभन्न क्षिे ों मंे अद्भि काम कर रही ह।ंै भारि का सदं वधान हमें जडंे र के मामले मंे बराबरी का िजाष िेिा है लेदकन ग्रामीण समाज में ऐसे कई लोग हंै जो अभी भी लड़के और लड़दकयों के बीच भेिभाव करिे ह।ैं ग्रामीण इलाकों मंे अक्सर िेखा जािा है दक दिक्षा िेने मंे लड़दकयों की िलना में लड़कों को अदधक प्राथदमकिा िी जािी ह।ै कई बार ऐसा भी होिा है दक पसै े और जागरूकिा की कमी के कारण गरीब ग्रामीण अपने सभी बच्चों को दिक्षा नहीं िे पािे ह।ंै ऐसे मंे जब भी एक या िो बच्चों की दिक्षा िेने की बाि आिी है िो वे लड़दकयों की बजाय लड़कों को ज्यािा िरजीह ििे े ह।ंै चँदू क यहाँ की ग्रामीण समाज आज भी दपिसृ त्तात्मक समाज माना जािा है इसदलए कई बार इस मानदसकिा के कारण ऐसा भिे भाव भी होिा ह।ै इस सबं धं में हमंे ग्रामीण लोगों को लड़दकयों की दिक्षा के प्रदि संविे निील बनाना होगा। उड़ीसा मंे लड़वकयों के सामने आने िाली समस्याएं इसमें कोई िक नहीं दक सदियों से लड़दकयों को कई िरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा ह।ै वे अब दवदभन्न क्षेिों में भिे भाव का सामना कर रहे ह।ैं आज के समय में इस िरह के भेिभाव के अलावा, कई अन्य समस्याएं हैं जो ओदडिा मंे लड़दकयों की दिक्षा को प्रभादवि करिी हंै, खासकर ग्रामीण क्षेिों मे।ं समावेिी समाज के दलए लड़दकयों की दिक्षा पर ध्यान िने ा चादहए। हमें लड़दकयों के प्रदि अपने भिे भावपूणष व्यवहार को रोकना चादहए क्योंदक इस िरह की प्रथाएं हमारे िेि के दवकास में बाधक हंै और लड़दकयों को हीन बनािी ह।ैं लड़दकयों की दिक्षा में बाधक मख्य समस्याएँ नीचे िी गई ह:ैं वलगं में भेिभाि ग्रामीण समाज में ऐसे कई पररवार हैं जो अभी भी लड़के और लड़दकयों के बीच भिे भाव करिे ह।ंै गावं ों में अक्सर िेखा जािा है दक लड़दकयों से ज्यािा लड़कों को प्राथदमकिा िी जािी ह।ै ग्रामीण क्षिे ों में, कछ पररवार ऐसे हंै दजनकी यह रूदढ़वादििा है दक दिक्षा के वल लड़कों के दलए ही महत्वपणू ष ह।ै लेदकन वक़्ि बिल रहा ह,ै िेि के दवदभन्न दहस्सों मंे लड़दकयां लड़कों की िलना मंे बेहिर प्रििषन कर रही ह।ैं लदे कन आज भी ग्रामीण लोगों की सोच मंे बिलाब नहीं आ पाया ह।ै इस COVID-19 महामारी के िौरान भी जब दिक्षा ऑनलाइन मोड मंे बिल गई, िो ऑनलाइन कक्षाओं मंे भाग लेने के दलए संचार उपकरण अदनवायष हो गए, िब कई मािा-दपिा लड़दकयों के बजाय लड़कों को मोबाइल फोन और लैपटॉप जसै े संचार उपकरण िने े लग।े ऐसी दस्थदि में ऐसी सदवधाओं के अभाव में लड़दकयों की दिक्षा को काफी नकसान हआु ह।ै गरीबी की मार आरटीई अदधदनयम के लागू होने के बाि, सरकारी स्कू लों में दिक्षा लने ा मफ्ि है लदे कन हम सभी जानिे हैं दक लड़दकयों को अच्छी और आगे की दिक्षा प्रिान करने के दलए दवत्तीय दस्थदि मायने रखिी ह।ै यह हमेिा कहा जािा है दक िदै क्षक अभाव और गरीबी साथ-साथ चलिी ह,ै खासकर जब लड़दकयों को दिक्षा प्रिान करने की बाि आिी ह।ै ग्रामीण ओदडिा मंे ऐसे लाखों गरीब लोग रहिे हंै दजनकी आय बहुि कम ह,ै और उनको अगर बटे ा और बटे ी में दकसी एक को वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 139
140 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 स्कू ल भजे ने की बाि होिी है िो वोह बेटी के वजाए बेटे को ही चनिे ह.ंै गावँ में आधी से जािा लड़दकयां दकसी स्कू ल के वजय घर पर काम करिी दमल जायेगं ी. गरीबी की मार सब से जािा लड़दकयों पर ही पड़िा ह.ै कम उम्र मंे वििाह दपछले कछ ििकों मंे, ग्रामीण ओदडिा मंे कम उम्र में कई लड़दकयों की िािी िखे ी गई ह।ै ग्रामीण इलाकों में, लड़दकयों को िसू रों की सपं दत्त माना जािा ह,ै इसदलए उन्हंे लड़कों की िलना मंे अपने मािा-दपिा और समाज से ज्यािा मलू ्य नहीं दमलिा ह।ै ग्रामीण भारि में ऐसे कई पररवार हंै जो िािी की उदचि उम्र के सबं ंध में सरकार के दनयमों का पालन नहीं करिे ह।ैं उनको लगिा है दजिनी जल्िी लड़की को दविा कर दिया जाये उिना बेहिर ह.ै या दफर कोई नौकरी वाला ररश्िा आ जाये िो वोह दबना कछ सोचे लड़की की िािी कर िेिे ह.ंै गावँ के आधे से जािा लोग पढ़े दलखे नहीं होिे ह.ंै उनको पढाई का मूल्य भी पिा नहीं होिा ह.ै उनको लगिा है की लड़का अगर पढ़े गा िो घर की उन्नदि और लड़की की बरी आिी है िो वोह सोचिे हंै िो अक्षर पढना आ जाये िो काफी है क्यूँ की आदखर में लड़की को घर ही संभालना ह.ै असरवित पयाािरण लड़दकयों के दखलाफ दहसं ा अब ििे के दवदभन्न दहस्सों में एक गभं ीर समस्या बन गई ह।ै दपछले कछ वर्ों में, हमने ििे भर में लड़दकयों के दखलाफ दहसं ा से संबदं धि कई मामले िखे े ह।ैं ऐसा मद्दा मानवादधकारों का उल्लघं न नहीं है बदल्क लड़दकयों की दिक्षा को नकारने में भी बड़ी भूदमका दनभािा ह।ै लगभग हर दिन हम अखबारों मंे लड़दकयों के दखलाफ दहसं ा से जड़े सकै ड़ों मामलों के बारे मंे सनिे और पढ़िे ह।ंै इस िरह की लगािार घटनाएं बिािी हैं दक हमारा पयाषवरण दकस हि िक लड़दकयों के दलए असरदक्षि हो गया ह।ै दजस वजह से गाँव मंे मािा दपिा अक्सर लड़की को स्कू ल भेजने से मना कर िेिे ह.ंै क्यूँ की हर गाँव में स्कू ल नहीं होिा ह.ै आज भी बहिु सारी जहग में बच्चे ३/४ km िरू स्कू ल में पढने के दलए जािे ह.ैं घरेलू काम का बोझ यह िखे ा गया है दक ग्रामीण क्षेिों मंे कई लड़दकयों के दलए घरेलू काम का बोझ भी एक बड़ी समस्या ह।ै कई िोध अध्ययनों से पिा चलिा है की लड़दकयों पर लड़कों की िलना में घरेलू काम का बोझ अदधक होिा ह।ै ग्रामीण क्षिे ों मंे, कई पररवार सयं क्त पररवार होिे हैं इसदलए घरेलू कायों को करने के दलए लड़दकयों के साथ-साथ मदहला सिस्यों पर भी बोझ पड़िा ह।ै ऐसे मंे कई लड़दकयां अक्सर क्लास दमस कर िेिी हंै या िरे से अपने स्कू ल पहुचं िी ह।ैं कई बार यह िखे ा गया है दक लड़दकयां पसै े कमाने के दलए घरेलू कामों में िादमल होिी ह।ैं इस मामले मंे, वे हर दिन काम मंे अच्छा समय दबिािे हैं और मदश्कल से ही स्कू लों में जाने का समय पािे ह।ैं कई लड़दकयां स्कू ल से घर आने के बाि पढने के दलए समय नहीं पदि है क्यँू की उनको घर का काम करना होिा ह.ै शौ ालय की सविधा का अभाि ग्रामीण क्षिे ों में आज के समय मंे भी कई स्कू लों मंे अलग से िौचालय की सदवधा नहीं ह।ै यह िेखा गया है दक लड़दकयों के दलए िौचालय की सदवधा की कमी के कारण लड़दकयां स्कू लों मंे सहज महससू नहीं करिी ह।ंै एक लड़की के दलए मादसक चक्र एक प्राकृ दिक प्रदक्रया है जो दकसी भी समय कहीं भी िरू हो सकिी ह।ै जब एक लड़की को स्कू ल मंे वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 140
141 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मादसक धमष आिा है िो इस कदठन पररदस्थदि मंे, हर कोई उम्मीि करिा है दक लड़दकयों के दलए अलग िौचालय या बाथरूम की सदवधा होनी चादहए। यह कड़वी सच्चाई है दक गावं ों में दस्थि कई स्कू लों में या िो िौचालय की सदवधा नहीं है या दफर इिने गिं े िौचालय हैं की कई लड़दकयां स्कू ल जाने के दलए इच्छा नहीं करिी ह।ैं यह िेखा गया है दक ग्रामीण क्षिे ों मंे दस्थि कई स्कू लों में अभी भी दमदश्रि िौचालय हैं और गोपनीयिा और आराम की कमी के कारण लड़दकयां इसका उपयोग करने में सहज महसूस नहीं करिी ह।ंै लड़वकयों के वलए सरकारी योजनाएं बादलकाओं के रास्िे मंे आने वाली दवदभन्न समस्याओं को ध्यान मंे रखिे हुए, कें र और राज्य सरकारों ने भारि में लड़दकयों के सिदक्तकरण के दलए कई महत्वपणू ष योजनाएं िरू की ह।ंै आज के समय मंे ऐसी योजनाएँ अब लड़दकयों के जीवन मंे महत्वपणू ष भूदमका दनभा रही ह।ैं कई महत्वपूणष योजनाओं का उल्लेख नीचे दकया गया ह:ै बीजू कन्या रत्न योजना भारि में कछ क्षेिों मंे बादलकाओं की दस्थदि अच्छी नहीं है और यह बहिु महत्वपूणष है दक लड़दकयों के दवकास के दलए पहल की जाए। पहले भी कई योजनाएं और पहल की गई हैं और िेि में लड़दकयों के दलए कई योजनाएं पहले से चल रही हंै लदे कन अभी भी ऐसे दजले हैं जहां लड़दकयों की दस्थदि अच्छी नहीं ह।ै ओदडिा में भी कछ ऐसे दजले हंै जहां बादलकाओं को अभी भी एक बोझ के रूप में दलया जािा है और उनके रहने की दस्थदि बहिु ियनीय ह।ै इसे ध्यान मंे रखिे हुए ओदडिा में 3 दसिंबर 2016 मंे बीजू कन्या रत्न योजना नामक एक नई योजना िरू की गई। इस योजना का मख्य उद्दशे ्य है की लड़दकयों को प्रारंदभक दिक्षा प्रिान करना, हर स्कू ल मंे लड़दकयों के दलए िौचालय का प्रावधान, लड़दकयों के दलए आत्मरक्षा प्रदिक्षण, स्कू लों से लड़दकयों के ड्रॉपआउट अनपाि पर नज़र रखना, दिक्षा िक पहुचं को बढ़ावा िने ा, दकिोररयों को यौन और प्रजनन पर संविे निील बनाना, स्वास्थ्य सबं धं ी मद्दों आदि। ओवडशा की खशी योजना ओदडिा की खिी योजना का उद्देश्य राज्य की मदहलाओं को अच्छी मादसक धमष स्वच्छिा िेखभाल प्रिान करना ह।ै इस पहल का उद्दशे ्य स्कू ल जाने वाली दकिोररयों के बीच स्वास्थ्य और स्वच्छिा को बढ़ावा िने ा है दजससे स्कू ल में उच्च प्रदिधारण और मदहलाओं का अदधक सिदक्तकरण हो सके । वकशोरी शवक्त योजना दकिोरी िदक्त योजना भारि में मदहला और बाल दवकास मिं ालय द्वारा िरू की गई एक योजना ह,ै दजसे एकीकृ ि बाल दवकास सवे ा सरकारी कायकष ्रम के िहि 11 से 18 वर्ष की आय की दकिोर लड़दकयों के दलए ओदडिा सरकार द्वारा लागू दकया गया ह।ै इस योजना का मख्य उद्दशे ्य पोर्ण और दलंग के नकसान के अिं र-पीढ़ी के जीवन चक्र को िोड़ना और आत्म दवकास के दलए एक सहायक वािावरण प्रिान करना ह।ै बेटी ब ाओ बेटी पढ़ाओ भारि सरकार ने 22 जनवरी, 2015 को पानीपि, हररयाणा मंे बेटी बचाओ बेटी पढाओ (बीबीबीपी) योजना िरू की। वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 141
142 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 इस कायषक्रम का उद्देश्य लड़दकयों को दलगं आधाररि गभषपाि जसै े सामादजक भिे भाव से बचाना और पूरे िेि में बादलका दिक्षा को बढ़ावा िेना है। िदनया। इस कायकष ्रम का मख्य उद्दशे ्य सामादजक आदथकष दृदिकोण को बिलना ह।ै बीबीबीपी के मख्य उद्देश्य नीचे दिए गए ह।ंै • िैिवावस्था में बादलकाओं की सरक्षा और कल्याण की गारंटी िेना। • चदनिं ा दलगं आधाररि गभषपाि को रोकना। • लड़दकयों को सरदक्षि माहौल िेना। बावलका समवृ द्ध योजना बादलका समदृ द्ध योजना एक छािवदृ त्त कायकष ्रम है दजसका मख्य उद्देश्य गरीब पररवारों को दवत्तीय सहायिा प्रिान करना ह।ै इस कायषक्रम का उद्देश्य लड़दकयों की सामादजक दस्थदि मंे वदृ द्ध करना, उनकी दववाह योनय आय मंे वदृ द्ध करना और स्कू ली अध्ययन के दलए नामाकं न में वदृ द्ध करना है। यह कायकष ्रम ग्रामीण और िहरी िोनों क्षिे ों मंे उपलब्ध ह।ै जब एक लड़की का जन्म होिा ह,ै िो बच्चे की मां को नकि परस्कार दिया जािा ह,ै बाि मंे, स्कू ल म,ें एक बादलका रुपये से लेकर वादर्षक छािवदृ त्त अदजिष करेगी। 300 से रु. 1000. इस योजना की पाििा यह है दक लड़की का बच्चा बीपीएल पररवार से सबं दं धि होना चादहए। बच्चों का जन्म 15 अगस्ि 1997 को और उसके बाि होना चादहए। लाडली योजना और कन्या कोष योजना 2011 म,ंे हररयाणा में भारि में जन्म के समय बहिु कम दलगं ानपाि था, प्रत्यके 1000 लोगों में से 834 लड़दकयां, राज्य सरकार दस्थदि को बिलने के दलए दवदभन्न किम उठािी ह।ै दफर उन्होंने लाडली योजना िरू की, यह रुपये का दवत्तीय इनाम प्रिान करिी ह।ै 5000 / - हर साल 5 साल िक उन सभी मािा-दपिा को दजनकी िसू री लड़की का जन्म 20 अगस्ि 2005 को और उसके बाि हुआ ह,ै जादि, धमष, मजिरू ी और बेटों की संख्या की परवाह दकए दबना। 2015 म,ंे मनोहर लाल खट्टर के निे तृ ्व वाली हररयाणा सरकार ने \"कन्या कोर्\" कायषक्रम का अनावरण दकया, इसमें पहले भाई-बहन िादमल ह।ंै जब पहली बादलका का जन्म होगा, िो कल 21,000 जमा दकए जाएगं ।े जब लड़दकयां 18 वर्ष की आय िक पहचुं िी ह,ैं िो िरे ् रादि बढ़कर 1 लाख हो जाएगी। इस योजना की पाििा यह है दक बादलका का जन्म 30 अगस्ि 2005 को और उसके बाि होना चादहए। वनष्ट्कषा कई अध्ययनों से यह सादबि हो चका है दक ग्रामीण क्षिे ों में दिक्षा लने े की बाि आिी है िो लड़दकयों को कई समस्याओं का सामना करना पड़िा ह।ै ग्रामीण क्षिे ों में हर दिन लड़दकयों को लैंदगक भिे भाव, घर के काम, असरदक्षि वािावरण, गरीबी, जल्िी दववाह और िौचालय की सदवधा की कमी जसै ी बड़ी समस्याओं का साम ना करना पड़िा ह।ै ऐसी समस्याएं लड़दकयों की दिक्षा को बरी िरह प्रभादवि करिी हैं और उनके जीवन को ियनीय बना िेिी ह।ंै हालादँ क ग्रामीण क्षेिों मंे बादलकाओं की िदै क्षक दस्थदि दिन-ब-दिन बेहिर होिी जा रही है लदे कन हमंे अभी भी इस दििा में बहिु कछ करने की आवश्यकिा ह।ै हमें यह समझना चादहए दक हम लड़दकयों को दिदक्षि दकए दबना समावेिी समाज नहीं बना सकि।े हालादं क बादलकाओं के रास्िे में आने वाली ऐसी बड़ी समस्याओं को िेखिे हएु , कंे र और ओदडिा राज्य सरकार वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 142
143 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ने लड़दकयों के सिदक्तकरण के दलए कई महत्वपणू ष योजनाएं और कायकष ्रम िरू दकए ह।ंै आज के समय में बेटी बचाओ, बटे ी पढ़ाओ, सकन्या समदृ द्ध योजना, बादलका समदृ द्ध योजना, मख्यमिं ी कन्या सरक्षा योजना जैसी योजनाएं अब लड़दकयों के जीवन मंे महत्वपणू ष भूदमका दनभा रही ह।ंै हमें अपने समाज को दिदक्षि करना चादहए िादक ग्रामीण क्षेिों मंे रहने वाले लोग दिक्षा के मूल्य को आसानी से समझ सकंे । हमें समाज की बेहिरी के दलए अपनी लड़दकयों को सरदक्षि वािावरण भी महयै ा कराना चादहए। इसके अलावा, स्थानीय प्रिासन और सरकार को लड़दकयों के दलए साफ और अलग िौचालय या बाथरूम की व्यवस्था करनी चादहए िादक वे स्कू ल मंे सहज महसूस कर सकंे । िेि के एक दजम्मेिार नागररक के रूप में हमंे लड़दकयों से सबं दं धि अपने भिे भावपूणष और दपिसृ त्तात्मक दवचारों को त्याग िने ा चादहए जो उनकी प्रगदि मंे बाधक ह।ैं हमंे यह समझना चादहए दक बेहिर दिदक्षि लड़दकयां पूरे समाज को बहे िर बना सकिी हैं और वे िसू रों को भी दिदक्षि कर सकिी ह।ंै दिदक्षि लड़की ही अपने जीवन को प्रगदि की ओर ले जा सकिी ह।ै उपाय हर समस्या का समाधान ह।ै इस समस्या के कछ उपाय भी हंै नीचे दिए गए ह।ैं समाज को वशवित करंे हमंे समाज को दिदक्षि करना ह;ै हम उन्हंे बिािे हैं दक दिक्षा सभी के दलए महत्वपणू ष है लदे कन लड़दकयों के दलए यह बहिु महत्वपणू ष ह।ै हमने लड़की को पढ़ाया यानी हम पूरे समाज को दिदक्षि करिे ह,ैं इसदलए हम लक्ष्य दिक्षा के महत्व को समझिे ह।ैं अगर हम उन्हें बिाएं दक यह मििगार होगा। अगर हम एक लड़की को दिदक्षि करिे हंै िो वह समाज को जवाब िेने की अपनी दस्थदि में सधार करने के दलए अपने कौिल और क्षमिा का उपयोग करेगी। पढ़े-दलखे साध- संन्यासी ये दजम्मिे ारी लिे े हंै दक गूगल और िहरी इलाकों मंे जाकर उन्हंे बादलका दिक्षा का महत्व बिाएं क्योंदक एक गावं की जरूरि होिी है क्या दिक्षक बादलका बचपन आपको समाज की मानदसकिा को िद्ध करने में भी िादमल है और जानवर लदैं गक पूवाषग्रह के जीवाणओं को अपने से िरू रखिे ह।ंै उनके दिमाग और दवचार भी, िभी वे लड़दकयों को दिदक्षि होने के दलए प्रोत्सादहि करिे ह।ैं सरवित िातािरण प्रिान करंे सरकार और हमारे समाज को सरदक्षि वािावरण की सवारी करने के दलए कछ उदचि किम उठाने चादहए जैसे स्कू ल पररसर में सीसीटीवी कै मरे लगाना, स्कू लों के अनकू ल माहौल बनाने जसै े प्रारंदभक किम उठाना, लड़दकयों के संस्करण के 1 दकलोमीटर में स्कू ल खोलना और स्कू ल बसों और स्कू ल पररसर में मदहला अंगरक्षक और दिक्षक कं डक्टर दनयक्त करना। प्रमख लड़दकयों की सरक्षा और स्वच्छिा के दलए मिीनों की सदवधा प्रिान करना, स्कू ल में लड़दकयों और लड़कों के दलए अलग-अलग िौचालय होना, पाठ्यक्रम में आत्मरक्षा स्कू लों को एक ऐसे दवर्य के रूप में िादमल करने की पहल करना, और दजसे छािाओं के दलए अदनवायष बनाया जाना चादहए िादक वे मदहला सिदक्तकरण के दलए स्वयं की रक्षा करने में सक्षम हों। दविेर् प्रदिक्षण सि और कायिष ालाओं का दनयदमि आधार पर आयोजन दकया जाना चादहए। अदधक योनय लड़दकयों को अवसर िने े के दलए इसे खेल या टूनामष टंे के रूप मंे भी दलया जा सकिा ह।ै वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 143
144 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 काम का बोझ कम करना अगर हम लड़दकयों के घर के काम के बोझ को कम करने की बाि करंे िो हम घर के काम को लड़दकयों और लड़कों िोनों के बीच बांट सकिे हंै िादक स्वचादलि रूप से लड़दकयों का काम का बोझ भी कम हो जाएगी और समानिा भी आएगी। इसके दलए हमें लड़कों को यह दसखाना होगा दक घर का काम बस लड़दकयों का नहीं होिा लड़कों का भी होिा है क्यँू की घर िोनों का ह।ै यहां िक दक एनईपी 1986, कोठारी आयोग जसै ी सभी िदै क्षक नीदियों और आयोगों ने घरेलू काम करने के कौिल सदहि कायष दिक्षा की अवधारणा पेि की है जो लड़दकयों और लड़कों िोनों के दलए कदठन ह।ै अि: यदि इन सभी उपायों का पूणष रूप से पालन दकया जाए िो ग्रामीण बादलका दिक्षा मंे आने वाली सभी समस्याएं िरू हो जाएंगी। और लड़दकयां िीये की िरह चमकें गी- ज्ञान, िदक्त, आत्मदवश्वास का िीपक, और समग्र रूप से उज्ज्वल भदवष्ट्य बनाएगं ी। सिं भा 1. सटे ्टी, ई., और रॉस. ई। (1987)। ग्रामीण भारि मंे अनप्रयक्त दिक्षा में एक के स स्टडी। कम्यदनटी डेवलपमेंट जनलष , खंड-22, अंक-2, प.ृ 120-129. 2. सेलवन, ए. (2017)। उच्च दिक्षण ससं ्थानों मंे ग्रामीण छािाओं की समस्याए।ं स्कॉलरली ररसचष जनषल फॉर ह्यूमैदनटी साइसं एंड इदं नलि लैनं वजे , वॉल्यमू -4/23। 3. घोर्, एम. और मदलक, डी. (2014)। एक उलझी हुई बनाई: उत्तर भारि मंे ग्रामीण मदहलाओं के जीवन मंे दिक्षा के पररणामों का पिा लगाना। दिक्षा की अंिराष्ट्रीय समीक्षा, खडं -61, प.ृ 343-364। 4. जनै पी, और अग्रवाल, आर। (2017)। ग्रामीण भारि में मदहला दिक्षा। इटं रनेिनल जनलष ऑफ सोिल साइसं ेज एंड ह्यमू ैदनटीज, वॉल्यमू -1, पी.21-26। 5. कौर, एस. (2017)। ग्रामीण मदहलाओं का िैदक्षक अदधकाररिा: पंजाब गावं का एक अध्ययन। िैदक्षक क्वसे ्ट: एक इटं । जे. ऑफ एजके िन एंड एप्लाइड सोिल साइसं , वॉल्यूम-8, अकं -1, पी.95-101. 6. कौदिक, एस. और कौदिक, एस. एट अल (2006)। ग्रामीण क्षिे में उच्च दिक्षा दकस प्रकार मानव अदधकारों और उद्यदमिा में मिि करिी ह।ै जनषल ऑफ एदियन इकोनॉदमक्स, वॉल्यूम-17, अंक-1, पी.29-34। वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 144
145 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 Transgenics in Atwood’s Oryx and Crake Priyanka Research Scholar Department of English, MEOFL HNBGU Srinagar Garhwal Email- [email protected] Abstract: Oryx and Crake details about many experiments which are still in human mind. It looks like a prediction of future where science will do such advancement to create everything. Developments aren’t bad but to disturb natural ecology for science will affect us badly. Atwood gives us a hint of those consequences in her novel. The BlissPluss Pill project which was done by the brilliant and intelligent Crake became the reason of pandemic. This too much technology eventually lead all the characters to death. Well, transgenesis has been a major theme in the novel. Pigoon is obviously the first and most talked about in the entire trilogy. Several other experiments are also done at the campus of OrganInc, Nooskin and Watson-crick through transgenesis. All of them has a major role in the plot. They here and there help the plot to proceed. Also, some of them have an impact on the main character, Jimmy aka Snowman. Keywords: Anthropocentric, Genetic alteration, Technology, Mutation, Ecology, Transplantation Research Summary: Transgenics came as a revolution to our world. in the late 1970s there happened some experiments with genetic engineering and termed as transgenics. It opened several doors for scientists to a new world. It is still developing and there are many corners which are still untouched. In the novel Oryx and Crake writer introduces a number of creatures who are created through genetic modification and splicing. The main protagonist Jimmy has raised amongst such creatures. The novel presents a picture of how circumstances change for Jimmy after pandemic. There is extra focus on ‘pigoons’ who were likeable when jimmy was just a boy but the same cute creatures turned into monsters in the later part of the novel. This paper accounts the detail of those creatures and just keep it straight that human brain is a blessing. It may invent a hundred things to make the life comfortable but the condition should be that it must be aware of its limits. Introduction Transgenesis is a mode of experimentation involving insertion of a foreign gene into the genome of an organism, followed by germ-line transmission of a gene and analysis of the resulting phenotype in the progeny. Transgenesis can be used to induce the expression of an exogenous gene of interest. Alternatively, gene targeting can be used to interrupt the sequence (“knockout”) of a specific endogenous gene.1 Transgenesis is an extremely powerful tool for the genetic analysis and manipulation of mice and other animals. As defined above, a transgene is an experimentally introduced DNA segment carried in the genome of a host animal. A transgene can be designed to encode a new gene product in the transgenic animal, or it can be introduced with the intent of altering or disrupting a host gene at its site of insertion. In many cases, a transgene will do both, for example, disrupt an endogenous gene while expressing a new gene product. Thus, the application of transgenesis take advantage of its ability to induce both loss-of-function and gain-of-function genetic alterations.2 “Transgenesis can be defined as the uncontrolled transfer of foreign DNA into the germline of an animal species. Transgenesis became possible only after significant advances were made in the वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 145
146 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 understanding of developmental, reproductive, and molecular biologic principles of the mammalian genome.”3 These definitions put enough light on what transgenics is and how it is done. It is a way through which we can try creating a creature of our own desire. Nowadays crops, insects etc. are tailored using genetic experimentations. Such is done to find a better entity which may adapt in various circumstances and of some use for humans. As almost the researches are anthropocentric so there is always an angle of benefiting the human species. Transgenesis is regarded as a positive step by many but everything comes with some adverse effect as well. The biggest challenge is that many of the biologists see it as a process that support interference to the naturals, to originals. Oryx and Crake is the first part of MaddAddam trilogy written by Margaret Atwood. It gives a lot of preference to the transgenic projects going inside the compound life where the main character Jimmy aka snowman grows up. Crake is one of the protagonists. He is also raised in compound, gets his higher education from an institution which is engaged in such experiments only. Later he develops a species who is perfect according to him. He is the one who invents the BlyssPluss pill too. Pigoon, rakunk, snat etc. are the names reader come across in the novel. We will further read about the attributes of such creatures in length. Pigoon: this word is used throughout the work and other parts of the trilogy. Pigoons were the major project on which OrganInc farms people were working on. Farm had invested lots of money on this project. Pigoon was a host body for those people who were looking for kidney, liver or heart to replace. Earlier pigoons could provide one or two organs but Jimmy's father and his team was working on that technique through which a pigoon could provide more than four organs at a time. The body of pigoon was properly vaccinated so that it remained immune to harmful microbes and viruses. Many people need organs when their own stops working for some reason. They have to suffer and search. OrganInc was solution for such people, they wouldn't have to run and contact many. They could simply go to OrganInc during those crucial hours. The advantage of such project was that even you extract all the extra organs from the body of pigoon, they will grow new one. \"Pigoon organs could be customized, using cells from individual human donor, and the organs were frozen until needed.\"4 Jimmy on seeing pigoons felt pity on them because they were caged in a small pen; it was inadequate as compared to their large numbers. They were “bigger and fatter than the ordinary pigs”5 due to extra organs inside them. They were kept under high safety walls to keep their genetic composition secure from rival groups. Everyone had to wear biosuits and face mask inside the pens. Washing hands with disinfectant soap or putting a sanitizer was also a compulsory step. Jimmy liked small pigoons, pigoonlets because the adults were frightening. Pigoons had an entirely different situation during Jimmy’s childhood. There used to be twelve in a single row in the pen. They couldn’t roam freely and watching them in such conditions used to make Jimmy sensitive about them. He was even uncomfortable while eating in that restaurant with Ramona and his father. When everyone around him was eating he asks his father if he go and see the pigoons because “He didn’t want to eat a pigoon, because he thought of the pigoons as creatures much like himself. Neither he nor they had a lot of say in what was going on.”6 The narrative presents two images which are almost same but the viewpoint of the two totally varies. Jimmy watching pigoons at OrganInc farm is totally different from Snowman watching pigoons at Paradice compound. Being Jimmy he was gazing at them, adoring their pink eyes, runny nose etc. Snowman at Paradice compound is running to save his life from them, he doesn't find them cute nor does he want to touch them. He is running to save his life. Those cute faces have disappeared somewhere. They are changed into something who wants to tear him up into pieces: वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 146
147 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 They have something in mind, all right. He turns, heads back towards the gatehouse, quickens his pace. They’re far enough away so he can run if he has to. He looks over his shoulder: they’re trotting now. He speeds up, breaks into a jog. Then he spots another group through the gateway up ahead, eight or nine of them, coming towards him across No Man’s Land. They’re almost at the main gate, cutting him off in that direction. It’s as if they’ve had it planned, between the two groups; as if they’ve known for some time that he was in the gatehouse and have been waiting for him to come out, far enough out so they can surround him.7 Two images teach us that sometime our own creation can become a nuisance for us. Science is a boon if used carefully but it can also bring hazardous impacts. We must check our technological development time to time because if we over do something then there is probability that the same invention which we are creating for a comfortable life may haunt us with its negative impacts. At NooSkins, pigoons were small sized and instead of multi organ business they were used to develop skin related biotechnologies. Its aim was to develop a skin which would be wrinkle and blemish free. It was different from laser thinned or other artificial dermatological technologies. People could get a genuine skin through this technique. It challenged the concept of ageing which is natural to living-beings. Everyone wants to look young but to stay young forever is to go against nature, it would disturb the whole life cycle at earth. It was exactly what Sharon was telling Jimmy’s father: \"what you're doing_this pig brain thing. You're interfering with the building blocks of life. It’s immoral. It's sacrilegious” 8 Rakunk: it is one of the animals reader comes across throughout the novel. Jimmy is dearly attached with a pet rakunk gifted by his father. Name of this creature was Killer. This is ironical that Snowman remembers every detail of rakunk but not of the person who gifted it. It was the progeny of the first pair that had been spliced. “It was a tiny one, smallest of the litter born from the second generation of rakunks, the offspring of the first pair that had been spliced. The rest of the litter had been snapped up immediately.”9 Jimmy's father described that he had to put a lot of efforts to get Killer. The efforts were worthwhile because it was Jimmy's birthday. It was black and white in color and tiny in size. The creation of rakunk was also done in OrganInc biolabs. From Snowman's memory slot we are told: There'd been a lot of fooling around in those days: create_an_animal was so much fun, said the guys doing it; it made you feel like God A number of the experiments were destroyed because they were too dangerous to have around – who needed a cane toad with a prehensile tail like a chameleon’s that might climb in through the bathroom window and blind you while you were brushing your teeth? Then there was the snat, an unfortunate blend of snake and rat: they’d had to get rid of those. But the rakunks caught on as pets, inside OrganInc. They hadn’t come in from the outside world – the world outside the Compound – so they had no foreign microbes and were safe for the pigoons. In addition to which they were cute.10 It had a fluffy tail and Jimmy was so happy to found it that he even used to take it to school. Rakunks's description shows that it was friendly to humans. Jimmy talked, kissed and slept with it on the same bed. The animals was made up with the splicing of raccoon and a skunk but it neither had a smell of a skunk nor was it a bad pet like raccoons. Raccoons are difficult to handle once grown up they do a lot of destruction inside the house. This hybrid was a quiet and clean animal. Bandit was the name Jimmy's father had suggested but it was Jimmy who named it as 'Killer'. He took the responsibility of Killer from food to cleaning her excreta. She had brown head, pink nails and soft black-white strips of fur all over her body. She was Jimmy's secret best friend, one he वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 147
148 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 could trust on with his confidential gossips. He would ask her several questions and then answer on her behalf: “Was that out of line, Killer?” he would ask. “Was that too vile?” Vile was a word he’d recently discovered: Righteous Mom was using it a lot these days. Killer would lick his nose. She always forgave him.” 11 After a while Jimmy's mother, Sharon left them. She didn’t go alone but took killer with herself; it left Jimmy angry and sad because both the creatures were close to his heart. He could never forget and replace both of them. P.S., she’d said. I have taken Killer with me to liberate her, as I know she will be happier living a wild, free life in the forest. Jimmy hadn’t believed that either. He was enraged by it. How dare she? Killer was his! And Killer was a tame animal, she’d be helpless on her own, she wouldn’t know how to fend for herself, everything hungry would tear her into furry black and white pieces. But Jimmy’s mother and her ilk must have been right, thinks Snowman, and Killer and the other liberated rakunks must have been able to cope just fine, or how else to account for the annoyingly large population of them now infesting this neck of the woods? Jimmy had mourned for weeks. No, for months. Which one of them was he mourning the most? His mother, or an altered skunk? 12 The last chapter tells us how affected he is to see the sight where a rakunk is burned by three humans. Genetic engineers are doing such experiments to quench their thirst of invention and sometimes for the need of the world. Pigoon was still a useful experiment but there is not much evidence that may tell why rakunk was necessary to make. Everything in the ecosystem has a function to do, everything has a role and it shouldn't be altered just because humans are uncomfortable with it. Biodiversity is the must for ecology and to earth. All the creatures are the part of a family and we all should adjust and adapt according to other members of it. As human is considered more intelligent than others so it is our duty to keep everyone safe. Always! Wolvogs: in the BioDefenses department Jimmy found a series of cages, inside every cage a dog was kept. They weren't equal but of different size and colors, their tail was wagging in a friendly manner. Before Jimmy could pat them Crake warned him, “They aren’t dogs, they just look like dogs. They’re wolvogs – they’re bred to deceive. Reach out to pat them, they’ll take your hand off. There’s a large pit-bull component.”13 He asked Jimmy to stay away as far as possible and not to touch the barriers. Jimmy had a deep desire to tame an animal for so long after Killer's departure he had lost all the hopes of having a pet. He was happy to see them but he wanted to go away from such environment as it reminded him of his past. “The truth was that all this was too reminiscent. The labs, the peculiar bioforms, the socially spastic scientists – they were too much like his former life, his life as a child. Which was the last place he wanted to go back to”.14 On seeing such friendly animals he asked Crake, if they are for sale? Crake explained him that they weren't dogs, they were wolvogs. The name suggests that they had qualities of wolves and dogs in one body. Crake told Jimmy that the animals were ferocious and wild in nature, they wouldn't friendly either. They were created on the demand of CorpSeCorps to catch criminals. It was very risky for humans to unlock them as they could cut down into pieces. In later chapter Snowman carries a gun to protect himself from wolvogs, he even shoot some. His fear towards both the वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 148
149 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 animals be it pigoon or wolvogs is quite visible in some chapters. In one of the scene he is talking to himself, “That’s the worst thing about wolvogs: they still look like dogs, still behave like dogs, pricking up their ears, making playful puppy leaps and bounces, wagging their tails. They’ll sucker you in, then go for you.”15 In the same chapter reader is told that only one thing can be done to protect someone from wolvogs and that is climbing on a tree. Snowman does this because “Wolvogs can’t climb trees, which is one good thing. If they get numerous enough and too persistent, he’ll have to start swinging from vine to vine, like Tarzan. That’s a funny idea, so he laughs. “All you want is my body!” he yells at them. Then he drains the bottle and throws it down. There’s a yelp, a scuttling: they still respect missiles. But how long can that last? They’re smart; very soon they’ll sense his vulnerability, start hunting him. Once they begin he’ll never be able to go anywhere, or anywhere without trees. All they’ll have to do is get him out in the open, encircle him, close in for the kill. There’s only so much you can do with stones and pointed sticks. He really needs to find another spraygun.” 16 Even in the chapter Wovogs, Jimmy gives hint of the apprehensions of some biologists. He while going through that portion have a conversation about wolvogs. He doesn’t utter it out but he contemplates it in his mind: “Why is it he feels some line has been crossed, some boundary transgressed? How much is too much, how far is too far? 17 Crakers: were designed on the same model with some alterations. Crake had removed those destructive features which according to them were responsible for all the problems. He tried to make them a perfect human. Racism( referred as ‘pseudospeciation’18 in Paradice), hierarchy, territoriality etc. were removed from their system. Nuptial bonds, divorces weren't programmed and they were created to adapt according to their habitat. They don’t need to build houses for any weather condition. \"They would have no need to invent any harmful symbolisms, such as kingdoms, icons, gods or money. Best of all, they recycled their own excrement.\"19 When Crake let Jimmy to see his creation for the first time Jimmy couldn’t believe it. “That was his first view of the Crakers. They were naked, but not like the Noodie News: there was no self- consciousness, none at all. At first he couldn’t believe them, they were so beautiful. Black, yellow, white, brown, all available skin colours. Each individual was exquisite. “Are they robots, or what?” he said.” 20 Crake had done a lot of research before the production of crakers. His idea was to launch them publicly after a while. Everything was and he had even plans to customize and modify according to buyer's choice. He was especially looking for vegan's feedback on it. He believed people would like to have a good-looking, intelligent, green-eyed child who only survived on grass, “They ate nothing but leaves and grass and roots and a berry or two; thus their foods were plentiful and always available”.21 They could speak but they were programmed to trust on whatever said to them. They were also unfamiliar with the concept of clothes; it was another layer of skin for them. Crake named them after great personalities of all times like Abraham Lincoln, Madam Curie, Leonardo Da Vinchi and so on. They were programmed to follow instruction and not to ask questions. As novel progresses we see that they were showing those attributes they weren't supposed to. They learnt chanting by the time Snowman returned from Paradice. They were asking numerous question and one of them had come out as a leader too. Work division was also happening among them. Crakers were manufactured to set an ideal world but they couldn't remain as perfect as Crake wanted them to be. Eventually they adopted those things due to which humans are divided into different groups. The temptation leads to fall, Crakers also couldn't help it. वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 149
150 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 Conclusions: Hence, the work is full of such experimentations but only Crakers are shows in a good light. Others after a point of time has become nuisance for the protagonist and other, if they are alive. Especially pigoons and wolvogs are no less than the hungry man-eaters who are running here and there in search of food in the post-pandemic times. Crakers can also not be described as a success as they too have adapted many of the practices which Crake hadn’t wished to install in them. Science is a great boon if used sensibly but it can also bring adverse effect as we have seen in World war 2nd. This novel can be seen as a lesson to humans for using science and transgenics in a proper, balanced way. Reference: 1 Gupta Ramesh C. (2011), Reproductive and Developmental Toxicology. Academic Press, US. 2 Maloy Stanley, Kelly Hughes. (2013) Brenner’s Encyclopedia of Genetics (second Edition). Academic Press, US. 3 Chien Kenneth R. (2004) Molecular Basis of Cardiovascular Disease (second Edition). Saunders. 4Atwood Margaret. (2004), Oryx and crake. Knopf Doubleday Publishing Group, pp. 15. 5 ibid, 20 6 ibid, 18 7 ibid, 222 8 ibid, 42 9 ibid, 36 10 ibid, 28 11 ibid, 45 12 ibid, 46 13 ibid, 172 14 ibid, 171 15 ibid, 87 16 ibid, 88 17 ibid, 172 18 ibid, 255 19 ibid, 256 20 ibid, 253 21 ibid, 256 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 150
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