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JANKRITI ISSUE 78-80

Published by jankritipatrika, 2022-01-23 18:13:39

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251 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 स्वाधीनिा की भावना का सचं ार दकया। स्विंििा की ऊष्ट्मा से अदभमदण्डि दनराला ििे ी-दवििे ी िासिा के दवरुद्ध आज िक लड़िा रहा ह।ै अिः छायावािी कल्पनाओं की रंगीनी के साथ दनराला मंे स्वििं िा की भावना का नवोन्मेर् ओि-प्रिे ह।ै अिम्य साहस, अपरादजि स्वादभमान उनकी कदविा कामनी को रणचंडी बनाने के दलए पयाषप्त ह।ै ‘दिल्ली’ कदविा में इदिहास पर दृदि डालिे हुए वह भारिीय जनमानस में आत्म गौरव, ििे प्रमे एवं स्वादभमान की भावना का संचार करिे हंै - भारि के स्वादभमान को जाग्रि कर भारिीयों को अपने इदिहास से पररदचि कराना और उसके अनकू ल आचरण का सिं ेि िने ा दनराला की अन्यिम दविेर्िा रही है । यथा- क्या यह वही िेि ह-ै भीमाजनष आदि का कीदिकष ्षिे , दचरकमार भीष्ट्म की पिाका िह्मचयष िीप्त उड़िी है आज भी जहाँ वायमडं ल मंे उज्जवल, अधीर और दचरनवीन? ‘जागो दफर एक बार’ कदविा में दनराला ने स्वाधीनिा आंिोलन का िंख फँू का ह।ै इसमें भारिवादसयों को संबोदधि करिे हएु वह कहिे हैं दक स्वाधीनिा की प्रादप्त के दलए अन्याय के दवरुद्ध िेर की िरह अंग्रजे ों का मकाबला करो । बदल के दलए िेरनी का बच्चा कोई नहीं छीन पािा क्योंदक वह अत्याचार नहीं सहिी, बदल्क वह अपने िि पर आक्रमण करिी है जबदक बकरे की माँ कायर होने के कारण अपने दिि की रक्षा नहीं कर पािी। पररणामस्वररूप उसके बच्चे की बदल िे िी जािी ह।ै अिः भारिवादसयों को दसहं की िरह अंग्रेजों का सामना करना चादहए क्योंदक कायर और डरपोक लोग चपचाप रहकर अत्याचार सहिे ह।ंै अिः दनराला ने परििं िा से मदक्त के दलए ििे वादसयों में अगं ्रेजों से िरे की िरह मकाबला करने आवान दकया ह-ै दसंही की गोि से छीनिा रे दिि कौन? मौन भी क्या रहिी वह रहिे प्राण? रे अजान! एक मरे ्मािा ही रहिी है दनदनषम।े इस प्रकार दनराला ने भारिवादसयों मंे स्वाधीनिा की भावना जगािे हुए उन्हें अज्ञान अकमणष ्यिा और कायरिा की नींि से जगाने का प्रयास दकया ह।ै दनराला दिदटि सरकार के दवरुद्ध भारिवादसयों में स्वाधीनिा की भावना का संचार करिे हुए दलखिे ह-ंै िेरों की मािं में आया है आज स्यार- जागो दफर एक बार। इसका प्रमाण उनकी सन् 1920 ई॰ में रदचि ‘जन्मभूदम’ कदविा ह।ै यह उनकी प्रथम िेिभदक्त पूणष कदविा थी। इसके बाि वह लगािार ििे -प्रेम एवं स्वाधीनिा प्रमे से सम्बंदधि कदविाएं दलखिे रह।े वे आदथकष राजनीदिक िथा सामादजक स्विंििा के साथ मानदसक स्विंििा को भी महत्वपणू ष मानिे ह।ंै ‘बाहरी स्वाधीनिा और दस्त्रयाँ’ नामक दनबधं में उन्होंने दस्त्रयों की स्वाधीनिा को समाज के दलए महत्वपूणष माना ह।ै अतः वनष्ट्कषातः कहा जा सकिा है दक दनराला ने स्वाधीनिा आंिोलन में महत्वपूणष भूदमका दनभायी। उन्होंने सभ्य वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 251

252 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 समाज के दलए राष्ट्रीय स्वाधीनिा के समािं र व्यदक्तगि िथा सामादजक स्वाधीनिा पर भी दविरे ् बल दिया। इस प्रकार िखे ने से लगिा है दक छायावाि काल के काव्य में स्वाधीनिा प्रमे के साथ मािभृ ूदम के प्रदि अगाध श्रद्धा िेखने को दमलिी ह।ै वह स्वाधीनिा के सच्चे साधक थ।े वे ित्कालीन राजनीदिक, सासं ्कृ दिक, एवं राष्ट्रीय दवचारधाराओं से पररदचि एवं प्रभादवि थ।े उनकी कदविा मंे प्रारम्भ से राष्ट्रीय स्वाधीनिा का स्वर दिखायी िेिा ह।ै वह के वल उल्लास- दवलार् के ही कदव नहीं ह,ंै उनके काव्य मंे समाज के यथाथष दचि भी दवद्यमान ह।ै छायावािी काव्य में मािभृ ूदम प्रेम की अदभव्यजं ना करने वाले गीि ह,ंै मािभृ दू म की विं नाएँ व उद्बोधन ह,ंै िोर्ण मक्त समाज की सकं ल्पना है िथा आध्यादत्मक चेिना, रहस्य व दनच्छल भदक्त से परू रि भावक भदक्तगीि भी हंै । इनके अदिररक्त सासं ्कृ दिक आलोक को दबखेरने वाली उनकी लम्बी कदविाएँ हंै । राष्ट्रीयिा, ििे की दमट्टी के प्रदि प्रेम, उसकी दवरासि के प्रदि प्रणि भावना, उसके जन और ससं ्कृ दि के प्रदि प्रेम और दनष्ठा, अिीि की गररमामय संस्कृ दि की गाथा, वीर परूर्ों के प्रदि श्रद्धा, विषमान दस्थदि का दवश्लेर्ण और भदवष्ट्य के प्रदि उज्ज्वल आकाकं ्षा आदि में प्रकट होिी है । सिं भा ग्रंथ सू ी- 1. दसहं , बच्चन, क्रादं िकारी कदव दनराला, दवश्वदवद्यालय प्रकािन, 5वाँ संस्करण, 2003, पषृ ्ठ- 165। 2. नवल, नंिदकिोर (संपा॰), दनराला रचनावली, भाग-1, राजकमल प्रकािन, 5वाँ संस्करण, 2014, पषृ ्ठ- कवर पजे । 3. दसंह, बच्चन, क्रादं िकारी कदव दनराला, दवश्वदवद्यालय प्रकािन, 5वाँ ससं ्करण, 2003, पषृ ्ठ- 42। 4. वही,पषृ ्ठ-136। 5. उपाध्याय, दवश्वम्भरनाथ, दवनोि पस्िक मदं िर, आगरा, दद्विीय ससं ्करण,1965, पषृ ्ठ-67। 6. नवल, नंिदकिोर (संपा॰), दनराला रचनावली, भाग-1, राजकमल प्रकािन, नई दिल्ली, 5वाँ ससं ्करण, 2014, पषृ ्ठ- 281। 7. नवल, नंिदकिोर(संपा॰), दनराला रचनावली, भाग-1, राजकमल प्रकािन, 5वाँ संस्करण, 2014, पषृ ्ठ- 153 8. वही, पषृ ्ठ-153। वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 252

253 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ‘कलभषू ण का नाम िजा कीवजए’: पिू ी बगं ाल की िास्तान’ डॉ. वप्रयंका सहायक प्राध्यापक, दहन्िी दवभाग माउंट कामलष कॉलेज, स्वायत्त, बगंै लोर ईमेल[email protected] सारांश ‘कु िभषण का नाम दजश कीतजए’ उपन्यास पूिी िरं ्गाल की उस दास्तान को सावहत्य मंे दिव करिाता है विसकी आहट सावहत्य मंे इससे पहले महसूस नहीं की र्गई थी। िंर्गाल विभािन के समय िंर्गाल को दो वहस्सों मंे िाँाटा र्गया पूिी और पवश्चमी िंर्गाल। यही पूिी िरं ्गाल दशे विभािन के पश्चात पिू ी पावकस्तान एिं भारत-पाक युद्ध के पश्चात िागं्लादशे नाम से सिं ोवधत वकया र्गया। ितमव ान िागं्लादशे के अतीत की कहानी को विसमें अन्धाधुन्ध क़त्लआे म और अपना सिकु छ छोिकर दसू रे देश में शरणाथी का िीिन िीने की वििशता, ऑपरेशन सिवलाइट िैसे अमानिीय कृ त्य शावमल ह,ैं इन्हें सहने के वलए िे वनदोष लोर्ग मििूर थे विन्हंे पता ही नहीं था वक आवखर उनका कसरू क्या ह!ै बीज शब्ि र्रमान, शरणाथी, विभािन, निरिंद, मूल वनिासी, वर्गरफ्तार, दडं कारण्य, न्याय, ररयायत, िब्त, दोहन, ऑपरेशन सिलव ाइट। शोध आलेख ‘भारि’ एक ऐसा िब्ि दजसे सनिे ही सभ्यिा, ससं ्कृ दि, संस्कार का बोध हो जािा ह।ै जो भी यहाँ आया वह यहीं का होकर रह गया, उसे माँ की गोि का सकू न यहीं दमला। अनेक ससं ्कृ दियों, सभ्यिाओ,ं धमों, परंपराओ,ं रीदि-ररवाजों, खान-पान आदि को अपने में समेटे ‘भारि ििे ’ है। हम अपने ििे को ‘भारि मािा’ कहकर पकारिे ह।ैं इसने अपनी ही गोि मंे अपने बच्चों को खनू से लथपथ कटिे, दमटि,े िड़पि,े मरिे और दवभादजि होिे िेखा ह।ै मूल दवर्य पर आने से पवू ष उस इदिहास को जानना जरूरी होगा, दजसके ििष की अदभव्यदक्त इसके के न्र में दनदहि ह।ै 19 जलाई 1905 को वायसराय कजनष के द्वारा बंगाल दवभाजन का एलान दकया गया था। दजसका उद्दशे ्य एक मदस्लम बहलु प्रान्ि का सजृ न करना था। भारि सरकार के गहृ सदचव ररसले ने 6 दिसंबर 1904 को एक दटप्पणी मंे दलखा- ‘‘एकजट बगं ाल अपने-आप मंे एक िदक्त ह।ै बगं ाल और दवभादजि हो िो सभी भागों की दििाएँ अलग-अलग होंगी।’’1 उनका उद्देश्य यहीं खत्म नहीं हो जािा, वे आगे दलखिे ह-ंै ‘‘हमारा एक उद्देश्य हमारे िासन के दवरोदधयों को िोड़ना और इस प्रकार उन्हें कमजोर करना ह।ै ’’2 ररसले महोिय का यह स्वप्न परू ा भी हुआ। 1947 मंे दवभाजन के बाि बंगाल भी िो भागों मंे दवभादजि हो गया। दहन्िू बहुल इलाका भारि को और मदस्लम बहुल इलाका पादकस्िान को दमला। यानी दक भारि का बंगाल ‘पदश्चम बंगाल’ और पादकस्िान का बगं ाल ‘पवू ी बगं ाल’ कहलाया। 1955 मंे पादकस्िान सरकार ने इसका नाम पवू ी बंगाल से पूवी पादकस्िान कर दिया। पूवी पादकस्िान का पदश्चमी पादकस्िान से कोई जमीनी सबं ंध नहीं था। के न्रीय सरकार के सभी उच्च अदधकारी पदश्चमी पादकस्िान से ही थे। जहाँ लोग उिषू और पंजाबी बोलिे थे, वहीं, पवू ी में बंगाली भार्ा अदधक बोलने वाले थे, दजनपर उिषू भार्ा को थोपने की कई कोदििंे की गई ंलेदकन 7-8 वर्ों के कड़े सघं र्ष के बाि 1956 मंे बांनला को आदधकाररक िजाष दमला। िरू से ही पवू ष के साथ पदश्चम का रवैया कछ ठीक नहीं रहा, लेदकन आबािी की दृदि से पवू ी की जनसंख्या परू े पादकस्िान की 60 प्रदििि थी, दफर भी बजट का के वल 30 प्रदििि ही उस पर खचष दकया जािा था। दनयाषि के द्वारा भी वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 253

254 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 उसका जबरिस्ि िोर्ण हो रहा था। पदश्चमी पादकस्िान के द्वारा एक भिे भाव पूणष नीदि पवू ी पादकस्िान के साथ िरूआि से ही अपनाई गई, दजसके चलिे वहाँ अवामी लीग का गठन हुआ। दजसके निे ा िेख मजीबरषहमान थ।े दजनके नेितृ ्व में 1966 मंे एक आंिोलन िरू हुआ, दजसे 6 पाइन्ट मूवमेन्ट कहा जािा ह।ै दजसमें 6 माँगें रखी गई,ं दजनका मख्य उद्दशे ्य पदश्चमी पादकस्िान द्वारा पूवी पादकस्िान के िोर्ण को समाप्त करना था- 1. संघीय प्रणाली 2. रक्षा एवं दविेिी मामले को छोड़कर, बाकी सभी मामलों मंे काननू बनाने की िाकि राज्य को होनी चादहए। 3. एक अलग मरा और एक अलग राजकोर्ीय नीदि। 4. कराधान की िदक्त 5. बाहरी ििे ों के साथ व्यापार करने की िदक्त िथा दविेिी मरा आरदक्षि यानी दक दवििे के साथ जो भी व्यापार करेंग,े उससे जो भी पैसा आएगा वह पूवी और पदश्चमी पाक के दलए अलग हो क्योंदक पहले पूवी पाक का पसै ा पदश्चमी पाक मंे पलायन कर जािा था। 6. अलग फौज और अलग नवे ी इन्हीं सब माँगों के पश्चाि् पादकस्िानी राष्ट्रपदि अयबू खान ने िेख मजीबरषहमान को जेल मंे डलवा दिया। अयूब खान ने 1969 िक सत्ता मंे रहने के पश्चाि् िानािाही याहया खान को सत्ता सौंपी। इन्होंने आिे ही यह ऐलान दकया दक अब चनाव के आधार पर ही सत्ता के उम्मीिवार का चनाव होगा, क्योंदक अभी िक सत्ताधारी चनावी गदिदवदधयों से होकर नहीं गजरिा था। अथािष ् 1970 में राष्ट्रीय सभा और प्रािं ीय दवधानसभा के बीच मंे चनाव होने वाले थे। उस समय पादकस्िान मंे एक पाटी थी ‘पादकस्िान पीपल्ज़ पाटी’ इसके उभरिे हएु निे ा जदल्फ़क़ार अली भट्टो थे। जो दक अयबू खान के कायषकाल मंे दविेि मिं ी पि पर रह चके थ।े वे भी चनाव के दलए खड़े हएु । इन चनावों में सीट का बँटवारा जनसंख्या के आधार पर हुआ। जहाँ पूवष की आबािी 6.8 करोड़ एवं पदश्चम की 6 करोड़ थी। पहली बार राष्ट्रीय सभा के पादकस्िान मंे चनाव होने जा रहे थे। 1970 में चनाव से पहले ही पूवी पाक मंे िो प्राकृ दिक आपिाएँ आई।ं बाढ़ और चक्रविी िफू ान (भोला िूफान) दजसके कारण 3 से 5 लाख लोगों की मौि हईु । याहया खान ने पवू ष पाक को इन आपिाओं के समय दकसी भी प्रकार की सहायिा महयै ा नहीं कराई। भारि एवं अन्य िेिों द्वारा मिि की पिे कि को भी ठकरा दिया। पररणामिः पूवी लोगों का गस्सा दिसम्बर-जनवरी में होने वाले चनावों पर फू टा। फलिः अवामी लीग ने 162 में से 160 सीटंे जीि लीं। िसू री ओर जदल्फ़क़ार अली भट्टो की पाटी ने 138 मंे से 81 सीटों पर कब्जा दकया। निीज़े के आधार पर अवामी लीग के निे ा िखे मजीबरषहमान को प्रधानमिं ी बन जाना चादहए था, लेदकन पदश्चमी पाक कै से मंजरू कर लिे ा! इन चनावों को स्थदगि कर दिया गया। याहया खान, जदल्फ़क़ार अली भट्टो, िखे मजीबरषहमान के बीच कई वािाषलापें हुई,ं दजनका निीजा कोई साथकष नहीं दनकल सका। याहया खान के भीिर यह भय अवश्य पिै ा हो गया दक भट्टो और मजीबरषहमान की नजिीदकयाँ मझसे सत्ता छीन लगे ीं, इसी भय के चलिे िोनों को जले मंे डलवा दिया। मजीबरषहमान को जेल मंे डालिे ही पूवष पाक में हड़िाले, धरने, दवरोध प्रििषन िरू हुए। अवामी लीग ने इसी समय माचष 1970 से ही अधष सरकार के रूप में कायष करना वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 254

255 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 िरू कर दिया। यानी दक वे अब अपने ऊपर पदश्चमी पाक का िासन नहीं चाहिे थ।े पादकस्िानी आमी द्वारा इस दवरोधपणू ष गदिदवदध को िबाने के दलए कई लोगों पर अन्धाघन्ध गोदलयाँ बरसाई गई।ं दजसे िेखिे हएु अवामी लीग ने 26 माचष 1971 को घोर्णा की दक आज से हम पादकस्िान से अलग हो रहे ह।ैं घोर्णा के िरंि पश्चाि् पादकस्िानी आमी ने ऑपरेिन सचलष ाइट जैसा अमानवीय कृ त्य िरू कर दिया। माचष से दिसम्बर 1971 िक पादकस्िानी आमी ने बड़ी सखं ्या में बंगाली बदद्धजीदवयों, राष्ट्रवादियों, छािों, अवामी लीग के समथषकों और दहन्िओं को मारा। दजसमंे लगभग 3-5 लाख लोगों ने अपनी जान गँवाई। लाखों मदहलाओं के साथ िष्ट्कमष हुए। इसके पीछे कारण यह था दक पढ़े-दलखे लोगों को मार िो दजससे यह सोच अपने-आप खत्म हो जाए। इस ऑपरेिन सचलष ाइट के दखलाफ पूवी पाक के लोगों ने हदथयार उठाए और मदक्त वादहनी सने ा का गठन दकया। उन्होंने पादकस्िानी सेना के दखलाफ गररल्ला यद्ध की िकनीक इस्िमे ाल की। भारि मंे लगभग 1 करोड़ िरणाथी पूवी पाक से आ चके थे। दजनके दलए कै म्प, खान-पान की व्यवस्था करना भारि के दलए चनौिीपूणष कायष था। भारि ने िरू में िो पवू ष का खलकर समथषन नहीं दकया, दजसके पीछे कारण यह था दक नागा- दमजो आदिवासी स्वयं को भारि से अलग करने की बाि कर रहे थे। ऐसे समय में यदि पूवी पाक की स्विंििा का समथनष भारि करिा िो उसे नागा-दमजो को भी स्वििं करना पड़िा। लदे कन भारि पदश्चमी पाक पर िवाब बनाने की कोदिि लगािार करिा रहा, दजसमें संयक्त राष्ट्र ने उसका साथ दिया। जब इस िबाव का कोई असर पदश्चमी पाक पर नहीं हुआ िो भारि ने अप्रलै 1971 को स्पि िब्िों में ऐलान कर दिया दक हम बांनलाििे के लोगों के साथ ह।ंै नवम्बर माह से भारि- पाक की सेनाएँ सीमाओं पर सगं दठि होना िरू हईु ।ं 3 दिसम्बर को पादकस्िानी फोसष ने भारि के पदश्चमी दहस्से के हवाई दठकानों पर अचानक से आक्रमण कर दिया। इसके िरन्ि बाि ही भारि ने पवू ी और पदश्चमी सीमा पर हमला कर दिया। पररणामिः 13 दिनों के भीिर भारि ने ढाका पर कब्जा कर दलया। 16 दिसम्बर को ढाका मंे पादकस्िानी सेना ने आत्मसमपणष कर दिया। भारि के जनरल लेदफ्टनेटं जगजीि दसहं अरोड़ा के सामने पादकस्िान के जनरल लेदफ्टनेंट अमीर अब्िल्ला खान दनआजी के साथ नब्बे हजार सैदनकों ने भी आत्मसमपणष दकया। 12 जनवरी 1972 को िखे मजीबरषहमान सत्ता मंे लौटे एवं उन्हंे बंगबंध की उपादध से नवाज़ा गया। 1975 मंे उन्हें उनके पूरे पररवार समिे मार दिया गया। उनकी िो बदे टयाँ बचीं जो दक उस समय दविेि मंे थी, उनमंे से ही एक बेटी बांनलािेि की विमष ान प्रधानमंिी िेख हसीना ह।ंै भारि दवभाजन एक ऐसी घटना थी दजसका असर कई वर्ों िक, लाखों-करोडों दजन्िदगयों पर पड़ा। दजन कदठनाइयों, सघं र्ों, भयकं र दस्थदियों, ििनष ाक हािसों का सामना उन लोगों को करना पड़ा उन्हें व्यक्त करने के दलए िब्िों की साथषकिा भी कम जान पड़िी ह।ै दवभाजन का ििष, जान बचाने के दलए घर-द्वार छोड़कर िर-िर ठोकरे खाना, िरणाथी का जीवन जीने को दववि हो जाना, अपने अिीि को ऐसे दिलो-दिमाग से साफ कर िने ा जैसे िजे ाब से कीडे-मकोड़ों को, एक ही झटके में लावाररिों की िरह जीवन काटने को दववि हो जाना। विषमान बानं लािेि के इसी अिीि की कहानी को दजसमंे अन्धाधन्ध क़त्लेआम और अपना सबकछ छोड़कर िसू रे ििे मंे िरणाथी का जीवन जीने की दववििा की िास्िान लेदखका अल्का सरावगी ने अपने उपन्यास ‘कलभरू ्ण का नाम िजष कीदजए’ में की ह।ै एक पल में अपना घर-द्वार, गाँव-िहर, व़िन को छोड़ िेना और िर-िर ठोकर खाने को मोहिाज हो जाना, भागि-े भागिे जो अपने पीछे छू ट गए, उनकी ओर पलट कर न िखे ना, दिल को कड़ी जंजीरों से जकड़ लेना। लेदकन क्या दफर भी अपना घर, द्वार, गली, मोहल्ले, गावँ , माटी को भूलाया जा सकिा ह!ै भले ही साि समन्िर िरू बसरे ा बन जाए लेदकन वह जो पीछे छू ट गया है दिल के उिने ही करीब लगिा ह।ै ‘‘सच भूर्ण, गंगा दकनारे का हमारा कदिया का घर अभी भी सपने वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 255

256 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 में आिा ह।ै घर िो वहीं खड़ा होगा। जाने कौन मसलमान रहिा होगा उसमंे? कै से हम लोग रािों-राि सब कछ छोड़ कर चले आए थे।’’3 घर िो करीब लगिा है लदे कन यह सोचकर रूह भी िड़प जािी होगी जब यह ध्यान आिा होगा दक अब उस घर मंे उसी िख्ि का डेरा होगा दजसकी यािनाओं का पररणाम यह विमष ान ििषिा ह।ै यह पीड़ा ऐसी है दजसे भक्तभोगी खि के खून को भी महसूस कराने में असमथष ह।ै िायि कलभरू ्ण भी अपने बेटे प्रिान्ि को यह एहसास दिलाने मंे असमथष ही ह।ै ‘‘प्रिान्ि को क्या मालमू दक ििे और काम दछन जाना क्या होिा ह?ै दबना एक दिनके के सहारे जीना क्या होिा ह?ै ’’4 पूवजष ों के बसाये हएु बसेरों को छोड़ना सब के बस की बाि नहीं होिी। वह बसरे ा हमारे वजिू के होने को ज़ादहर करिा ह।ै कछ िो दवपदत्त के समय घर-द्वार छोड़कर वहाँ से पलायन कर लेिे हंै, लेदकन कछ ऐसे भी होिे हैं जो आदखरी सासँ िक वहीं जमे रहिे ह।ंै ‘‘िखे ो गोदबन्िो, मेरे िािा हरमखरायजी और मरे े दपिा भजनलालजी राजस्थान के दबसाऊ से यहाँ एक लोटा-डोरी लेकर आए थ।े उन्होंने बहुि मेहनि से दिल-दिल कर अपना कारोबार खड़ा दकया।’’5 यह कथन उपन्यास के के न्रीय पाि ‘कलभरू ्ण’ के दपिा का है जो अपने बेटों को पत्नी समेि बानं लाििे की सीमा से परे भारि भजे िेिे हैं लेदकन स्वयं कदिया नहीं छोड़ि।े भला अपने बाप-िािा की खनू -पसीने की कमाई को एक झटके मंे छोड़ कर चले जाना सब के बस की बाि नहीं होिी। यह कै सा नया िेि बना था! जो न िो ज़मीनी और न ही भावनात्मक स्िर पर एक था। कोई अपने आधे अगं को भला और आधे को बरा कै से कह सकिा ह!ै एक माँ अपने लाल को िो दवपरीि सजं ्ञाओं से कै से पकार सकिी ह!ै इसका जवाब िेना उिना आसान नहीं ह।ै पदश्चमी पादकस्िान द्वारा अपने ही आधे अंग पवू ी पादकस्िान की अवहले ना करना कहाँ की बदद्धमत्ता का कायष था? ‘‘पदश्चम पादकस्िानी बगं ादलयों को चावल खानेवाले, काले, नाटे, दपलदपले लोग समझिे ह।ैं उन्हें ‘दबगं ो’ कहकर मज़ाक बनािे ह।ंै यहाँ के इस्लाम को भी घदटया दक़स्म का इस्लाम समझिे ह।ंै बांनला भार्ा को घदटया भार्ा समझिे ह।ंै ’’6 अरे मखू ों के सरिाज मानव पहले िू स्वयं धमों के चगं ल में फँ सकर प्रसन्न हुआ दफर अपने ही धमष को घदटया भी कहने लगा, ज़रा िो बदद्धमत्ता दिखाई होिी। कछ व्यदक्तयों के िष्ट्कमों के कारण परू ी कौम को बरा नहीं कहा जा सकिा। जहे ल भाई अपने ही धमष के असलम खान के बरे मनसूबों से कादिकष बाबू के बचाव के दलए श्यामा से कहिे ह-ंै ‘‘कादिकष बाबू को उससे सावधान रहने को कह।ें पर मरे ा नाम कहीं आना नहीं चादहए। असलम खान सोचिा है दक मैं मसलमान होने के नािे उसका ही साथ िँगू ा। उसका ऐसा ही सोचिे रहना सबके दलए ठीक ह।ै ’’7 धमष िबाही नहीं फै लािा, िबाही फै लािी है बरी सोच, जो असलम खान जसै े लोग धमष की आड़ लेकर उस सोच को अजं ाम िने े के कायष करिे ह।ंै िरीर के िो टकड़े दकए, दफर उस लाि के आधे टकड़े के भी कई टकड़े दकए जाएँ, इससे भयकं र िररंिगी और दकसे कहगें े! दवभाजन के पश्चाि् पवू ी पाक के पास अपनी भार्ा यानी की मािभृ ार्ा का सहारा था। दजसे बोलकर माँ से दबछड़ने का एहसास कम हो जािा ह,ै अगर उसी मािभृ ार्ा को बिलकर अपररदचि भार्ा से पहचान कराई जाए िो ििष आकदस्मक बढ़ जािा ह।ै ‘‘पादकस्िान वाले बानं ला भार्ा को हटाकर उिषू लाना चाहिे थ।े स्कू लों से सबह की प्राथनष ा बांनला की जगह अचानक उिषू में होने लगी थी। कछ समझ में नहीं आिा था दक जो बोला जा रहा ह,ै उसका मिलब क्या ह?ै ’’8 यह िारीररक-मानदसक यािना से आगे आदत्मक यािना का कि था। बटँ वारे, भिे भाव, अपना-पराया की नौबि क्यों आिी है? क्योंदक बनानवे ाले ने धरिी बनाई दजसे सरहिों मंे बांट दिया गया, इसं ान बनाया िो उसे धमष, जादि, रंग-रूप, दलगं के आधार पर बांट दिया। वाह रे इसं ान िरे ी कलाकारी की क्या िाि िी जाए! कहीं न कहीं लेदखका इससे परे अपनी दृदि रखिी हैं और कल्पना करिी हैं- ‘‘अगर सारी िदनया में सबका एक वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 256

257 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ही रंग होिा, सब एक ही बोली बोलिे और सबका एक ही धमष और एक ही जादि होिी, िो दकिना बखड़े ा खत्म हो जािा।’’9 अगर ऐसा होिा िो इसं ान सच में इसं ान कहलाने योनय हो जािा। आदखर धमष को क्यों मानिे ह?ंै इसीदलए दक जीवन भर उस परमसत्ता का हाथ ऊपर बना रहे, जीवन समाप्त होने पर परमसत्ता का सादन्नध्य प्राप्त हो सके । धमष को मानने का िायि मलू कारण यही ह!ै लेदकन यह क्यों भूल जािे हैं दक अन्य धमष को मानने वाला व्यदक्त भी िो उस खिा, परमसत्ता, गरु, ईि के सामने इसी मराि को परू ी करने के दलए उसे पकार रहा ह।ै रंग, रूप, दलंग के आधार पर इिनी िररंिगी क्यों! जो इसं ादनयि की सारी सीमाओं को लांघ जािी ह।ै ‘‘उनमंे से एक ने कहा-अरे यहाँ कोई बंगादलन िो दमली नहीं। इन मसलमानों को असली मसलमान बनाना ह।ै हमारे बीज से इनके बच्चे पैिा होंगे, िभी यहाँ पादकस्िान बनगे ा।’’10 लड़ाई का कारण चाहे कोई भी हो, लेदकन औरि का िरीर बीच में कै से भी आ ही जािा ह।ै लेदखका अनादमका ने अपने उपन्यास ‘आईनासाज़’ मंे दलखा है-‘‘यद्ध हों या िंगे-फ़साि-सबसे क्रू रिम कोप झेलिा है औरि का िरीर, उसका मन, उसका सवं िे न’’11 व्यदक्त अपने जीवन को बहे िर बनाने के दलए कड़े संघर्ष करिा ह।ै उसका यही उद्देश्य होिा है दक अपने घर-पररवार की िदै नक जरूरिों के अलावा उनके भदवष्ट्य को भी सरदक्षि कर सकँू । वह कड़ी महे नि-संघर्ों के पश्चाि् जब कादबल बन जािा ह,ै दफर अचानक एक दिन उसे सब कछ पीछे छोड़कर अपनों के साथ जान बचािे हएु भागना पड़िा ह,ै उस मनः दस्थदि को कौन समझ सकिा ह!ै ‘‘क्या बिाऊँ ? मझे िेखकर कौन कहगे ा दक यह ढाके श्वरी कॉटन दमल नम्बर िो का हडे सपरवाइजर सभार् िास ह,ै दजनके नीचे पाँच सौ लोग काम करिे थे! ये जो िरीर पर कपड़े हैं न, ऐसे गन्िे कपड़े सभार् िास ने कभी नहीं पहने। पर बीिी बािंे िो बीि गयीं। यहाँ आर.आर. दडपाटषमंेट से मिि दमल जाए, िो रायपर के पास माना कै म्प में चला जाऊँ गा। वहाँ सरकार ररफ़्यूदजयों को ज़मीन िे रही ह।ै मकान बनाने के दलए लोन िे रही है और काम करने के दलए भी।’’12 व्यदक्त अपने परू े जीवनभर संघर्ष स्वयं के दलए नहीं बदल्क पररवार की खिी के दलए करिा ह।ै वह संघर्ष बच्चों के भदवष्ट्य के दलए, अगर बटे ी है िो सघं र्ष के बारे मंे कहा ही क्या जाए! हर दपिा की िरह रमाकान्ि के मन मंे भी ये भाव अवश्य ही रहे होंगे दक बटे ी लदलिा का जीवन सवँ ारकर एक दिन संपन्न घर में उसकी िािी कर सकँू । उसे क्या पिा था दक यह यथाथष भी एक दिन सपना बन जाएगा। वह और उसका परू ा पररवार िरणाथी के रूप में अपना जीवन जीने के दलए अदभिप्त होगा। उसकी बीबी कलभरू ्ण से कहिी ह-ै ‘‘बाब,ू िम िो िेख ही रहे हो। मरे ी बेटी लदलिा चौिह साल की हो गई ह।ै इधर-उधर खाने का जगाड़ करिी दफरिी रहिी ह।ै फ़रीिपर मंे रहिे, िो क्या उसे ऐसा करने ििे े? अब िक िो ब्याह हो जािा। मंै उसे क्या िोर् िँ?ू वह आठ साल की थी िब हम कलकत्ता के दसयापिह प्लटे फ़ामष पर आकर कई महीने पड़े रह।े िभी वह पेट के दलए जगाड़ करना सीख गई थी। एकिम सबह-सबह धापा के खेिों से ठेलागाड़ी मंे सदब्जयाँ आिीं। लदलिा उसमंे से गोभी-बंगै न चराकर ले आिी। डाँटने पर कहिी-पेट िो सब्जी से ही भरिा ह।ै ’’13 उपन्यास के के न्रीय पाि कलभूर्ण की दस्थदि भी कछ ज्यािा अच्छी नहीं थी। वह ऐसा पाि है जो न िो स्वयं को अपने भाईयों की िरह यहाँ का मलू दनवासी ही कह सकिा है और न ही िरणाथी। वह सभार् िास से अपनी दस्थदि कछ इस प्रकार व्यक्त करिा ह-ै ‘‘िािा, मरे ी हालि आपसे ज़्यािा अच्छी नहीं ह।ै मरे े बड़े भाई लोग कलकत्ता में पहले से ही आकर बस गए थे। अब मंै माँ को लेकर आया हूँ िो उनकी आखँ ों मंे काँटे की िरह चभ रहा ह।ूँ रोज़ मझे नालायक, आवारा, कामचोर जसै ी उपादधयाँ मरे े मँह पर ही िी जािी ह।ंै ’’14 यहाँ िक दक उसे अपना गजारा करने के दलए दकसी अन्य नाम को अपने साथ ढोना पड़िा ह-ै ‘‘नॉथष कलकत्ता के िले ीपाड़ा मंे भाड़े के छोटे-से मकान के एक िल्ले पर कोई गोपाल चन्र िास रहिा ह,ै कलभूर्ण जैन नहीं।’’15 दप्रंदटंग मिीन में काम करिे हएु जब उसपर चोरी का इल्जाम लगाया गया, दजसके दलए उसे चार दिनों की जले यािा भी करनी पड़ी। उस समय वह जज से कहिा है- ‘‘साहब िक्ल पर मि वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 257

258 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 जाइए। यह िक्ल आपकी भारि मािा की िी हईु ह,ै दजसने अपने ही लोगों को मारे और लटू े जाने के दलए एक िसू री सरकार के हवाले कर दिया।’’16 अगर कलभूर्ण िरणाथी यह बाि उस ििे के कानून से कह रहा ह,ै जो ििे उसका अपना ििे ह,ै लदे कन वह वहाँ िरणाथी बना न्याय की गहार लगा रहा ह,ै िो ज्यािा इसमंे असमजं स की बाि नहीं ह।ै इसका सामना एक नहीं बदल्क लाखों कलभरू ्ण को करना पड़ा, वही कलभरू ्ण जब आसँ ू बहािा है िो कोई नहीं जानिा इसके पीछे कारण क्या ह-ै ‘‘पर कलभरू ्ण जनै ही जानिा था दक वह दसफ़ष और दसफ़ष ईस्ट बगं ाल की अपनी गंगा-‘गोराई’ निी के दलए रो रहा ह।ै ’’17 बाि के वल पवू ष पादकस्िान के कलभरू ्ण द्वारा अपनी गंगा-गोराई निी के दलए आसँ ू बहाने की नहीं, वह पदश्चमी पादकस्िान से भारि आने वाले कलभूर्ण की भी ह,ै भारि से पदश्चम या पूवष पादकस्िान गए कलभूर्ण की भी ह,ै दवभाजन का ििष दकसी एक ही दििा ने झेला ऐसा नहीं, बदल्क िेि की चारों दििाओं ने झेला था। जब पवू ी पाक के हालाि बि से बित्तर होिे चले जा रहे थे, दफर भी कछ कादिकष बाबू जैसे भी लोग थे दजन्हंे भरोसा था दक उनके साथ सरकार कोई अन्याय नहीं करेगी। कादिकष बाबू अपने इसी दवश्वास से कहिे ह-ैं ‘‘जागशे ्वरी दमल मेरे िािा कालीप्रसन्न चक्रविी की पचास साल पहले बनाई हईु दमल ह।ै यहाँ के सारे मसलमान कालीबाबू को िवे िा की िरह मानिे ह।ैं िम जानिे ही हो, दडप्टी मदजस्रेट हो या पदलस के बड़े अदधकारी बराबर मझसे दमलने आिे रहिे ह।ंै वे मेरा कोई नकसान कभी नहीं होने िंगे ।े ’’18 यह दवश्वास ज्यािा लम्बे समय िक नहीं अदडग रह पािा वह जल्ि ही टूटिा ह,ै जब दगरफ्िार करिे समय कादिकष बाबू को सनने को यह िब्ि दमले-‘‘आप पादकस्िान के िश्मन ह।ंै ’’19 इन िब्िों ने दवश्वास की िो जैसे इमारि सदहि बदनयाि को ही ढहा दिया हो। हमििी कछ इस प्रकार से पादकस्िान सरकार द्वारा कादिकष बाबू को िी गई-‘‘श्रीमान कादिकष बाबू को हम उन्हीं के घर मंे कै ि करके नज़रबन्ि रखंेग।े उनके बिले उनके बेटे को दगरफ्िार कर जले ले जाया जाएगा। पादकस्िान सरकार िेि के िश्मनों के साथ इससे ज़्यािा कोई ररयायि नहीं कर सकिी।’’20 इिना बड़ा दिल दजसके आगे समन्िर की गहराई भी कम पड़ जाए। एक दपिा िो वैसे ही मौि को एक दिन गले लगा लेगा दजसे यह ज्ञाि हो दक उसका बटे ा जले की सलाखों के पीछे ह।ै कादिषक बाबू के भाई िो पूवी पाक से भागकर भारि आ गए थ,े उन्होंने यहाँ आकर अपना जीवन पनः िरू कर दलया था लदे कन वे पीछे जागेश्वरी दमल के मादलकों मंे अपना नाम छोड़ आए थे, उन्हंे क्या पिा था दक इसकी सजा उनके भाई को भगिनी थी। ‘‘जागशे ्वरी दमल के मादलकों मंे कादिषक बाबू के कलकत्ता वाले भाईयों के भी नाम ह।ंै इसी आधार पर उन्हें भी इदं डयन माना जा रहा है यानी ििे का िश्मन कहा जा रहा ह।ै ’’21 यहाँ िक दक कादिषक बाबू का बंकै खािा एवं घर भी सरकार के फ़रमान से ज़ब्ि कर दलया गया। यह उस व्यदक्त के साथ दकया जा रहा था दजसके बाप-िािाओं ने उस समाज के दलए बहुि कछ दकया। ‘‘कादिकष बाबू के िािा ने पचास साल पहले जागशे ्वरी दमल बनायी। इिने सारे घर-मकान, दमल-पाड़ा, बगीचे, मदन्िर, स्कू ल, क्लब, पस्िकालय बनवाय।े वे िेि के िश्मन कै से हो सकिे ह?ैं ’’22 इसं ादनयि की दवभाजन की आड़ मंे कै से धदज्जयाँ उड़ायी गई,ं कादिषक बाबू के संग बीिीं अनके कहादनयों द्वारा यह जग ज़ादहर होिा ह।ै ‘ऑपरेिन सचलष ाइट’ इदिहास का एक ऐसा िब्ि दजसके साथ लाखों मासूमों की चीखें गँूजिी ह।ैं जो पदश्चमी पादकस्िान की ओर से पवू ी पादकस्िान पर की गई थी। ‘ऑपरेिन सचलष ाइट’ यानी दक पूवी पाक के एक-एक व्यदक्त को चन-चनकर मारना। इस िररंिगी को प्रकृ दि कछ ऐसे समेट रही थी- ‘‘घोर नरक था। चारों िरफ़ परू ी िदनया जसै े श्मिान बन गई थी। आकाि में चील, कौवे और दगद्ध मँडरा रहे थे। हर िरफ़ जलने की गन्ध, खनू की गन्ध, जलिे मासं की गन्ध पूरे नारायणगजं मंे फै ली थी।’’23 कदिया में जब ‘ऑपरेिन सचषलाइट’ खलआे म क़त्लेआम का माहौल बना हुआ था, उस समय अंजान श्यामा का दपिा गोदबन्िो कदिया से बाहर था। वह हसँ ी-खिी नौका से 6-7 लोगों के साथ कदिया की भदू म पर नाव से परै रखने ही वाला था- ‘‘िभी अचानक गोदलयाँ चलने की आवाज़ से निी का दकनारा गँूज उठा। कोयल झप वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 258

259 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 से उड़ गयी। एक पल में जो लोग हसँ -बोल रहे थे, निी की रेि पर िड़पिे हएु या एकिम िान्ि पड़े हुए नज़र आए।’’24 भारि के जब िो टकड़े हएु उसका भयंकर पररणाम भी भारि को ही िेखना पड़ा। हर दिन बढ़िी िरणादथषयों की सखं ्या को जीवनयापन की सदवधाएँ महयै ा कराना भारि के दलए कोई आसान काम नहीं था। ननीगोपाल साहा कलभरू ्ण से कहिा है दक-‘‘पाटीिन के बाि से ही इसी काम मंे लगा ह।ूँ उसी समय कलकत्ता में हरेक सौ आिमी में सत्ताईस ईस्ट बगं ाली ररफ़्यूजी थे। दकिने ररफ़्यजू ी कै म्प खोले गए। पर बंगाल मंे और दकिने आिमी समािे? िब सरकार ने मध्यप्रििे , उड़ीसा, आन्ध्र प्रिेि मंे जगह खोजी जहाँ इन लोगों को बसाया जा सके ।’’25 उस समय िेि दकन पररदस्थदियों से गजरा होगा, इसका एहसास सहज ही दकया जा सकिा ह।ै पूवी पादकस्िान उफ़ष पूवी बगं ाल या बगं ाल क्या नाम कहकर सबं ोदधि दकया जाए क्योंदक िीनों ही नाम एक ही िख्स के हैं और चौथा नाम उसे ‘बानं लािेि’ भी दमला। लेदकन मूल नाम बंगाल ही मान लंे इस दस्थदि में दक ििष सहकर बेटा माँ की गोि में ही चनै महससू करिा ह।ै पवू ी पाक गए बटे े की वह माँ थी पदश्चम बंगाल जहाँ से वह अब िरू होना नहीं चाहिा था लेदकन उस माँ की मजबूरी कछ ऐसी हो गई थी दक उससे दबछडे कई लाल एक साथ गोि में आन पड़े दजनके दलए उसका आँचल छोटा पड़ गया था। ‘‘पाँच साल पहले यहाँ के लगभग सारे, सौ से ऊपर ररफ़्यजू ी कै म्प बंगाल की सरकार ने बन्ि कर दिए। कहा दक िण्डकारण्य जाओ, वरना सरकारी सहायिा बन्ि कर िी जाएगी। कै म्प से भगाने के दलए टयूवबले िक बन्ि कर दिए गए। लोग भखू े-प्यासे मर रहे थे, पर जलूस बनाकर नारे लगािे रहे दक हम बगं ाल से बाहर नहीं जायंेगे।’’26 भारि मंे उन िरणादथषयों को बसाने के दलए प्रकृ दि का िोहन आरंभ होना िो स्वभादवक था। ‘‘एक बड़ी जगह मंे बड़ी-बड़ी मिीनों से िाल-महआु -आम-चम्पा के बड़े-बड़े पेड़ धक्का मार-मारकर दगराए जा रहे ह।ैं दजन पदक्षयों के बसेरे टूट रहे थे, वे चीखिे-दचल्लािे इधर-उधर उड़ रहे थ।े ’’27 राजा से आकदस्मक रंक मंे जीवन पररवदिषि हो जाए, जब वह व्यदक्त स्वयं के दलए िरणाथी िब्ि सनिा ह,ै उसके मन मंे िबे दकिने ििष एक साथ उभर आिे होंगे। सभार् िास इसी ििष को कछ इस िरह प्रकट करिे ह-ैं ‘‘ररफ़्यजू ी िब्ि सनिे ही कलेजे में जैसे घूँसा लगिा ह।ै हम जसै े इन्सान ही नहीं रह।े उससे एक िजाष नीचे ररफ़्यजू ी बन गय।े लोगों को क्या मालमू दक घरबार छू टने का ििष क्या होिा ह।ै ’’28 ररफ्यूजी िब्ि को लदे खका कछ इस िरह से पररभादर्ि करिी ह,ैं दजसमें उनके हृिय का अगाह ििष दछपा हआु ह-ै ‘‘ररफ़्यूजी िो बेचारा िक़िीर का मारा होिा ह।ै उसके गाँव का नाम पूछने भर िेर ह,ै वह आपको अपनी जन्मपिी सना िगे ा।’’29 कोई भी व्यदक्त अपने अिीि से अपना विषमान और भदवष्ट्य बहे िर करने की कोदिि में लगा दिखाई िेिा ह,ै लदे कन ररफ्यूजी के दलए ऐसा नहीं-‘‘उनके दलए समय विषमान से भदवष्ट्य की ओर नहीं जािा। विषमान से भूिकाल की िरफ जािा ह।ै ’’30 वनष्ट्कषा : यह दवभाजन कछ ही व्यदक्तयों की सोच का निीजा था, करोड़ों की आबािी का नहीं। बेहिर होगा दक उस आबािी को दकसी धमष का नाम न दिया जाए। आम जन अपने मोहल्ले, पररवेि, कायकष ्षेि आदि स्थलों पर प्रमे से रहना चाहिा ह।ै उसके जीवन मंे धमष-जादि के बंधनों से ऊपर पररवार जनों के पटे भरने की चनौिी सामने होिी ह।ै दवभाजन से पहले और बाि में बाि धमष की नहीं, अपनी िदक्त दिखाने की थी। दकसी को डराकर, धमकाकर, मारकर उसके अपने घर से ही उसका वजिू दमटा िने ा, उसे हड़प कर अपना डेरा जमा लने ा, रािोंराि रईस बन जाने का दकिना आसान िरीका है- ‘‘या दक यह यद्ध एक बहाना है कछ लोगों के दलए मफ़्ि मंे अमीर बनने का।’’31 सत्य ही िो है यद्ध दकसी एक की मंिा पूरी करने के दलए लाखों मासूमों की कबाषनी की मांग करिा ह।ै यद्ध से पहले और बाि की दस्थदि मंे कोई ज्यािा अिं र नहीं होिा, जीिा हआु भी सब कछ हारा हुआ सा नज़र आिा है और हारा हआु सब कछ जीिा हुआ। सिं भा वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 259

260 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 1 दवदपन चन्र, प्रकािन वर्ष 2019, आधदनक भारि का इदिहास, ओररयंटल ब्लवै स्वॉन प्राइवेट दलदमटेड प्रकािन, हिै राबाि, प.ृ -246 2 वही, प.ृ -246 3 अल्का सरावगी, प्रकािन वर्ष 2020, कलभूर्ण का नाम िजष कीदजए, वाणी प्रकािन, नई दिल्ली, प.ृ -15 4 वही, प.ृ -39 5 वही, प.ृ -62 6 वही, प.ृ -81 7 वही, प.ृ -115 8 वही, प.ृ -81 9 वही, प.ृ -54 10 वही, प.ृ -184-185 11 अनादमका, प्रकािन वर्ष 2020, आईनासाज़, राजकमल प्रकािन, नई दिल्ली, प.ृ -7 12 अल्का सरावगी, प्रकािन वर्ष 2020, कलभूर्ण का नाम िजष कीदजए, वाणी प्रकािन, नई दिल्ली, प.ृ -96 13 वही, प.ृ -145-146 14 वही, प.ृ -97 15 वही, प.ृ -12 16 वही, प.ृ -190 17 वही, प.ृ -74 18 वही, प.ृ -105 19 वही, प.ृ -119 20 वही, प.ृ -120 21 वही, प.ृ -121 22 वही, प.ृ -120 23 वही, प.ृ -99 24 वही, प.ृ -165 25 वही, प.ृ -95 26 वही, प.ृ -135 27 वही, प.ृ -153 28 वही, प.ृ -97 29 वही, प.ृ -147 30 वही, प.ृ -160 31 वही, प.ृ -126 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 260

261 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 आधवनक जीिन की झलक मंे ‘ क्रव्यूह’ अवखला आर िोध छािा कोदच्चन दवज्ञान व प्रौद्योदगकी दवश्वदवद्यालय 9446157264 [email protected] साराशं कँाु िर नारायण का काव्य संग्रह ‘िक्व्यहू ’ सन् 1956 में प्रकावशत हआु विसमें विविध विषयों पर वलवखत 71 कविताएाँ संकवलत ह।ैं नई कविता मंे विद्यमान आधुवनक भाििोध तथा अवस्तत्ि की तलाश का स्िर सकं लन की कविताओं में मुखररत ह।ै प्रकृ वत, प्रमे , अन्धविश्वास का खडं न, वमथकों एिं पुराणों को ितमव ान से िोिना आवद िहमु ुखी प्रिवृ त्तयााँ संकलन को अलर्ग स्िरुप प्रदान करता ह।ै आधवु नक मानि के संघषों को कवि ने अनुभतू वकया ह,ै इसी कारण उनकी अवभव्यवि की प्रामावणकता पाठकों के अन्तमनव को स्पशव करती है। वमथक एिं पुराणों के ज़ररए तत्कालीन युिा िर्गव की मानवसकता को प्रवतफवलत करने का कायव कवि ने वकया है। साथ ही अवस्तत्ििाद, क्षणिाद आवद को तत्कालीन यिु ा मन की आइने से प्रस्तुत करने का प्रयास उन्होंने अपने इस सगं ्रह मंे वकया ह।ै आधुवनक िीिन की िो खाका उन्होंने प्रस्तुत सकं लन के ज़ररए खींिा ह,ै उसे उसकी र्गहनता में समझते हएु उस पर अपनी सिं ादात्मक वटप्पणी ज़ावहर करना इस आलेख का उद्दशे ्य है। बीज शब्ि (Key words) कँाु िर नारायण, िक्व्यूह, आधुवनक िीिन, क्षणिाद, अवस्तत्ििाद, अवस्तत्ि की तलाश शोध आलेख मानव अनभूदियों को सन्िर एवं सवं िे नायक्त ढ़गं से प्रस्िि करने मंे कदविा हमेिा से ही सक्षम ह।ै सादहत्य के िरुआिी िौर से लके र आज िक उसने अपना प्रभाव कायम रखा है। हालांदक आज के समय को गद्य यग कहा जािा ह,ै दकन्ि पाठक वगष आज भी कदविा की जािईू िदनया की ओर उिनी ही घदनष्ठिा से दखंचे चले आिे हैं दजिना दक पूववष िी यगों म।ंे कहने का िात्पयष यह है दक कदविा एक ऐसी दवधा है जो समय के पार जाकर जीवन सत्य को जीवन्ििा के साथ प्रस्िि करिी ह।ै अिः वह कालजयी ह।ै कदविा के प्रभाव को उसके आकार से आँका नहीं जा सकिा। यानी, कदविा चाहे छोटी हो या बड़ी, लदे कन उसमंे बाि को गहराई के साथ प्रस्िि करने की िाक्कि होिी ह।ै जैसे, गागर में सागर भरने की क्षमिा। यगीन पररदस्थदियों िथा बिलिे मानवीय सवं ेिनाओं का प्रभाव दकसी भी सादहदत्यक दवधा के सामान कदविा मंे भी नज़र आिी है। इसदलए हम कह सकिे हैं दक प्रत्यके यग का प्रदिफलन उस यग की कदविा में अवश्य दमलिी ह।ै दहिं ी काव्य मंे एक नवीन चेिना भरने वाली धारा है – ‘नई कदविा’ जो ‘िसू रा सप्तक’ (1951) के साथ दहिं ी मंे अविररि हईु ह।ै यह सवषदवदिि है दक कोई भी काव्यधारा एक दनदश्चि समय में अचानक जन्म लेकर दकसी िसरे समय में अचानक समाप्त नहीं होिी। इसी अथष मंे नई कदविा में भी कदवयों को कछ आगे पीछे से जोड़ सकिे ह।ैं अब िक दहिं ी कदविा मंे परानी परम्परा का जो अनगमन होिा चला, उससे ऊबकर एक िाजपे न या निू निा लाने का प्रयास नए कदवयों ने दकया। यानी, परानी काव्य रूदढयों, प्रदिमानों, काव्य रचना के ढ़गं , सौन्ियष के मानिण्ड आदि सभी चीज़ों को टकराकर वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 261

262 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 बिलिे यग के अनरूप काव्यसम्बन्धी मान्यिाओं में भी बिलाव की माँग उन्होंने की। जब पररदस्थदियाँ एवं मानव की जीवन िैली में पररविषन होिा है, िब उसी को अदभव्यदक्त िने े वाले सादहत्य क्यों पराने लीक पर ही चले ? उसमंे भी पररविनष आवश्यक ह,ै िादक वह ित्कालीन जीवन को अंदकि करने में कादबल हो। इसी दवचार के साथ नए कदवयों ने खि अपने दलए नए प्रदिमानों, दबम्बों, उपमानों, मान्यिाओं आदि का गठन करने के साथ-साथ दवदभन्न काव्य दवर्यों एवं दिल्प का भी चनाव दकया। िब नई कदविा की इस लहर ने काव्य जगि् के दलए एक नई दृदि प्रिान की। अथाषि् दहिं ी काव्य जगि् मंे नई कदविा का आगमन ने एक हलचल मचाया। लेदकन इस धारा को बहिु सारे आरोपों एवं अस्वीकार भावनाओं का सामना करना पड़ा। दफर भी नए कदव अपने दवचारों पर अदडग रह।ें इस प्रकार िेखने पर नयी कदविा को हम आधदनक दहिं ी काव्य के दवकास में मील के पत्थर के रूप मंे मान सकिे ह।ंै नई कदविा में एक प्रमख नाम है कँ वर नारायण, दजन्होंने ‘िीसरा सप्तक’ (1959) के ज़ररए दहिं ी सादहत्य जगि् में पिापणष दकया था। कहानी, दनबधं आदि दवधाओं में भी उन्होंने अपनी कलम चलाई ह।ै उनका पहला एवं महत्वपूणष काव्य संग्रह ‘चक्रव्यूह’ का प्रकािन सन् 1956 में हआु दजसमें चार खड़ं ो मंे दवभक्त 71 कदविाएँ दमलिी ह।ैं दवदभन्न दवर्यों पर कदविा दलखने के साथ ही उन्हंे अत्यन्ि काव्यमय नामों वाले अध्यायों में रखा ह।ै इन खड़ं ो के नाम इस प्रकार हैं -‘दलपटी परछाइया’ँ , ‘दचटके स्वप्न’, ‘िीिे का कवच’, िथा ‘चक्रव्यहू ’। आधदनक कदविा की लगभग सभी प्रवदृ त्तयाँ प्रस्िि संग्रह की कदविाओं मंे रिव्य ह।ै जैसे, आधदनक मानव का संघर्ष, पीड़ा, िःख-िि,ष उसके मन की अदनदश्चििा आदि के साथ ही अदस्ित्ववाि, क्षणवाि जसै े महत्वपणू ष वािों को भी अपने िब्िों मंे समाने का कायष उन्होंने दकया। इिना ही नहीं, दमथकों एवं पराणों के कथानकों के सहारे आधदनक समय की जदटलिाओं को दिखाने का प्रयास भी इन कदविाओं में िेख सकिे ह।ंै प्रकृ दि िो सिा से ही कदवयों का दप्रय दवर्य रहा ह।ै अपनी कदविाओं में प्रकृ दि के सन्िर रूप को दिखाकर हमारे जीवन मंे प्रकृ दि की अहदमयि को ििाषने का भी प्रयास कदव ने दकया ह।ै यादन जीवन और जगि मंे व्याप्त सभी दवर्यों पर उन्होंने दवचार दकया ह।ै अिः नई कदविा की प्रदिदनदध सकं लन के रूप में इस सकं लन को िेख सकिे ह।ैं “कदविा हमारे हर्ोल्लास, सघं र्ष और िःख ििष की स्वाभादवक अदभव्यदक्त ह।ै वह हमारे जीवन और भार्ा मंे रची बसी ह।ै अदननपक्षी की िरह उसमंे अपने ही भस्म से बारबार दनकल कर जी उठने की अमर जीवन- िदक्त ह।ै “1 कदविा के बारे में कँ वर नारायण का प्रस्िि कथन ही उनकी काव्य दृदि का पररचय करािी ह।ै वे कदविा में दछपी असीम िदक्त में दवश्वास करिे हंै, जो बारबार िबाने पर भी नए ओज के साथ उभर आिी है। जसै े, कहा जािा है दक सत्य को दछपाने की लाख कोदिि दकया जाए, वह दछपिा नहीं। इस दृदि से िेखा जाए िो ‘चक्रव्यूह’ का अत्यिं महत्व ह।ै कँ वर नारायण ने ित्कालीन समाज के जीवन यथाथष को अपनी कदविाओं मंे उिारा ह।ै आज़ािी के बाि भारिीय जनिा में एक िरह का मोहभगं छा गया। आज़ािी की उम्मीि में रहने वाली जनिा भारिीय िासकों के पैरों के नीचे कचलिे गए। साथ ही वजै ्ञादनक प्रगदि के पररणामस्वरूप, जीवन में हमेिा प्रथम स्थान की ओर आधदनक मानव िौड़िा रहा। इसके बीच उसे खि का अदस्ित्व िक नि हो गया और वह अपने से अलग होकर कछ और बनिा चला। िब वह अपने अदस्ित्व की िलाि मंे लग गया। आधदनक समय में व्यदक्त की सबसे बड़ी खोज अपने अदस्ित्व या स्वत्व की ही ह।ै इसी स्वर को कँ वर नारायण ने अपनी कदविाओं मंे मखररि दकया ह।ै अदस्ित्व की अहदमयि को जानकर आधदनक वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 262

263 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मानव जीवन की अदनदश्चििा को भी पहचानिा ह।ै िब वह हर क्षण को दवश्वास मंे रखिा ह।ै यादन इस नश्वर जगि् मंे इस पल के आगे क्या होगा, कोई नहीं जानिा। अिः क्षणवाि से आधदनक समाज प्रभादवि होने लगा। कदव स्वयं इसी समाज का ही दहस्सा ह।ै आधदनक समाज मंे रहकर वे भी इन सभी भावनाओं का अनभव करिे थे। अिः िदनया को अपनी नज़ररये से िेखकर स्वयं की अनभदू ियों को ही कदविाओं के ज़ररए दिखािे ह।ंै इनकी कदविा में क्षण की महत्ता का अकं न इस प्रकार हआु है : “दकिना गहन हर एक क्षण, दकिना कसा जीवन बसा, दकिना वज़न हर एक कण...”2 अदस्ित्ववािी दवचारों के प्रभाव के कारण लोगों मंे मतृ ्यबोध, खंदडि व्यदक्तत्व का आभास, ससं ार की उपेक्षा, अपने अदस्ित्व की दचिं ा आदि बढ़ने के साथ-साथ जीवन मंे व्यथषिा बोध भी बढ़ गया। ित्कालीन समय में लोगों के मन में जो बचै नै ी उत्पन्न हुई थी, वह कदव की बचै नै ी बन गई। जनिा के व्यदक्तत्व का सकं ट कदव के व्यदक्तत्व का संकट बन गया। ‘एक आश्वासन’ नामक कदविा मंे इसी बैचैनी को कदव ने अदभयक्त दकया है : “अन्िर के दचंिन में डूबे है िःख अनके , बहिा चप आँखों से हकलािा मौन एक: “3 कँ वर नारायण की कदविाओं के बारे मंे मदक्तबोध ने कहा है – “कँ वर नारायण की कदविा में अंिरात्मा की पीदड़ि दववेक-चिे ना और जीवन की आलोचना ह।ै “4 इस कथन से स्पि है दक उन्होंने जीवन यथाथष को दबना दकसी ओढ़नी के , पाठकों के सम्मख पेि करने का कायष दकया ह।ै पूवषविी यगों में लोग यदि कोई वायवीय िदक्त में आश्रय पािे थे िो ित्कालीन यग में कदव व्यदक्त के भीिर की िदक्त को पहचानने की बाि करिे ह।ैं ईश्वर, धमष जसै े आधारदवहीन बािों के प्रदि नकारात्मक भावना आधदनक यग की पहचान ह।ै अब मानव बदद्ध को महत्व ििे ा ह।ै इसी िरह कँ वर नरायण भी इश्वर को टकरािे ह,ैं जो कदठन समय मंे व्यदक्त की सहायिा नहीं करिा, दसफष मदं िर की मूदियष ों में कै ि रहिा ह।ै उनके दवचार में ईश्वर अपादहज है जो आदश्रिों के पास पहुचँ ने मंे असमथष ह।ै इश्वर के प्रदि उनमंे जो रोर् है, उनकी पंदक्तयों में प्रकट होिा है : “हम बनिे रहे िम्हारे पग पर चढ़े फू ल िम वह चलिा दनरपेक्ष चरण जो रुका नहीं :”5 वे ईश्वर के ऊपर व्यदक्त और उसके भी ऊपर कमष को महत्त्व ििे े ह।ैं उनके अनसार व्यदक्त वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 263

264 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 और संसार के बीच कमष का ररश्िा ह।ै कदव िब्ि की िाक्कि को पहचानिे ह।ंै अज्ञेय ने भी िब्ि और उसके अथष के महत्व पर दवचार दकया है। उसी प्रकार नए कदव होने के नािे भी, कँ वर नारायण ने भार्ा को अदभयदक्त का सिक्त माध्यम माना है। कदविा बनाने के पहले अपने अिं मनष में उमड़ने वाले दवचारों को िब्िों में कै से उिारा जाए, कदविा रचने की प्रदक्रया क्या है, इसे भी उन्होंने कदविा के ज़ररए दिखाया है : “कोख से उगलने िो लहरों की गदत्थयाँ, दनरुद्देश्य भँवरों मंे नचने/फँ सने िो यहाँ वहाँ...“6 ‘चक्रव्यहू ’ को जगिीि गप्त ने नई कदविा का प्रदिदनदध संकलन के रूप मंे िखे ा ह।ै अिः नई कदविा की प्रवदृ त्तयाँ इसमें रिव्य ह।ै आधदनक यवा मन में जो आत्मपहचान की ललक एवं जीवन रहस्य को समझने की कोदिि ह,ै उसे इन कदविाओं मंे िेख सकिे ह।ैं जीवन की क्षणभगं रिा एवं नश्वरिा, अदनदश्चििा से व्यदक्त का मन िकं ाग्रस्ि एवं प्रश्नाकल हो जािा ह।ै ‘एक िाँव’ नामक कदविा की पंदक्तयाँ इसे ििािष ी है : “आज मैं हू।ँ “ “कल नहीं हू।ँ “ एक दनश्चय के अदनदश्चि वाक्य। दिन बझा कर राि करिी साझँ ।“7 कदव यह जानिे हंै दक संसार मंे हर चीज़ का अिं एक दिन ज़रूर होगा। दफर एक नया जगि् का दनमाषण होगा। मतृ ्य और जीवन के बीच वे एक अद्भि सिं लन स्थादपि करिे ह।ैं दकसी भी व्यदक्त की जीवन दृदि अपने जीवनानभवों एवं पररदस्िदथयों से ही रूपादयि होिी ह।ै वसै े ही व्यदक्त दकसी भी चीज़ का समथनष या दवरोध करना सीखिा है। समाज की असमानिाओं के दखलाफ आवाज़ उठाकर सबको समानादधकार दिलाने के दलए हमेिा से ही सादहत्यकार प्रयत्नरि हैं। कँ वर नारायण भी इसी प्रकार अपने समाज एवं प्रकृ दि आदि से प्रभादवि होकर ही सादहत्य सजृ न करिे आए ह।ंै हम जानिे हैं दक प्रकृ दि हमारे जीवन का आधार ह,ै दजससे अलग होकर हमारा कोई अदस्ित्व नहीं है। इसी को अदभव्यक्त करके जीवन में प्रकृ दि की अहदमयि को दिखाने का कायष कँ वर नारायण की कदविाओं में रिव्य है। उसी प्रकार प्रेम को भी अपनी कदविाओं में उन्होंने स्थान दिया ह।ै ित्कालीन समाज में मानदसक प्रमे की अपेक्षा िारीररक प्रेम अथाषि् िैदहक वासनाओं को महत्व दिया जािा ह।ै कदव ने इस िरह की यगीन मानदसकिाओं का भी अकं न दकया ह।ै साथ ही उन्होंने इस बाि पर भी बल दिया है दक के वल सख- भोग में दवलीन रहने से जीवन में कछ भी प्राप्त नहीं होिा। िसरे िब्िों में कहे िो, कदव जीवन डगर में भटकिी जनिा को सही राह दिखाने का प्रयास करिे ह।ंै उनकी पंदक्तयाँ इस बाि का प्रमाण िेिी है : “आमािय, वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 264

265 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 यौनािय, गभािष य,... दजसकी दज़िं गी का यही आिय, यही इिना भोनय, दकिनी सखी है वह, भानय उसका ईष्ट्याष के योनय !”8 हम जानिे हैं दक कदविा या सादहत्य का जीवन के साथ घदनष्ठ सम्बन्ध ह।ै िोनों एक साथ दवकदसि होिे ह।ैं पवू षविी यगों मंे जो काव्य प्रवदृ त्तयाँ थी, आज लोग उससे अलग होकर सोचने लगे। इसी सोच को उन्होंने अपनी कदविाओं के ज़ररए अदभव्यक्त दकया ह।ै आधदनक भावबोध से यक्त यवा वगष को आवाज़ िेने की कोदिि ‘चक्रव्यूह’ की कदविाओं मंे दमलिी ह।ै मानव दजिना आधदनक होगा, उसकी मानदसकिा उिनी संकीणष होगी। वह खि के घरे े में दसमटिा जाएगा। कई प्रकार के मानदसक सघं र्ों से झझू कर वह दनरािा की दस्थदि मंे पहुचँ जाएगा दजससे मतृ ्यबोध की राह मंे जाने के दलए वह मजबूर हो जािा ह।ै कँ वर नारायण ने परंपरा एवं आधदनकिा िोनों को अपनाकर ही अपनी कदविाओं का सजृ न दकया ह।ै हमारे दमथक और पराण भारिीय संस्कृ दि की अहम दहस्सा है दजनसे वे भी काफी हि िक प्रभादवि हुए ह।ंै दमथकीय एवं पौरादणक दबम्बों एवं प्रिीकों के प्रयोग से ित्कालीन सामादजक समस्याओं को प्रभावी ढ़ंग से उिारने में वे सफल हुए। अदभमन्य, भीष्ट्म, पांडव, कौरव आदि पािों का दज़क्र कदव ने दकया है। उनकी जीवन दृदि दवकदसि होने मंे इन सबका भी योगिान रहा ह।ै इस सकं लन के नाम से ही यह बाि स्पि ह।ै आज की िदनया मंे हर व्यदक्त को, जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना स्वयं करना पड़िा ह।ै कदव भी स्वयं इन सभी चीज़ों का अनभव करिे होंगे। िभी उन्होंने यह जाना दक खि के अदस्ित्व या खि की सच्चाई को समझने से ही खि की मिि कर सकिे ह।ैं जीवन संघर्ों में फँ सकर चक्रव्यहू में फँ से अदभमन्य की भाँदि व्यदक्त, या दफर कदव भी स्वयं िड़पिे ह।ैं कदव के िब्िों में : “मरे े ही दलए यह व्यहू घेरा, मझे हर आघाि सहना, गभष-दनदश्चि मंै नया अदभमन्य, पिै कृ -यद्ध!”9 कँ वर नारायण जीवन मंे ईमानिारी से काम करने का पक्षधर हैं। आज की िदनया में लोग खोखला जीवन जीिे ह,ंै दजसे उन्होंने अपनी कदविाओं में अदं कि दकया ह।ै साथ ही साथ आज की उपभोक्तावािी िदनया में अपने ईमान को भी बचे ने वाले लोगों पर भी दवचार दकया है। मूल्यों का ह्रास, समाज मंे व्याप्त भिे -भाव आदि को िखे कर , मानव दचंिाग्रस्ि हो जािा ह।ै जीवन की रहस्यात्मकिा को जानने के दलए आधदनक मानव आिर रहिा ह।ै जीवन के प्रदि सकारात्मक भावना के साथ कदव यह सन्िेि ििे े हैं दक जीवन मंे आये दिन उभर आने वाले प्रदिबंधो को पार करिे हएु आगे बढ़ना चादहए। क्योंदक हारने वालों को िदनया भूल जािा ह,ै जीिने वाले ही सिा स्मरणीय रहगें े। यह सवषदवदिि है की नई कदविा मंे िब्ि को महत्वपणू ष स्थान दिया गया ह।ै प्रस्िि संग्रह के िीर्कष से लके र ही यह बाि वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 265

266 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ज्ञाि होिा ह।ै जनसाधारण की भार्ा से लके र प्राचीन भार्ा संस्कृ ि िक उन्होंने इस्िमे ाल दकया ह।ै इस सगं ्रह के चार खड़ं ो के नाम भी आधदनक िनावग्रस्ि मानव की अनभूदियों एवं भावनाओं को व्यक्त करने वाले ह।ंै साथ ही कदविा में प्रयक्त िब्िों से भार्ा पर कदव की पकड़ को समझ सकिे ह।ैं कदविा मंे दवर्य के अनरूप भार्ा या िब्िों का प्रयोग दकया ह।ै अलकं ारों, प्रिीकों, दबम्बों पर भी उन्होंने दविरे ् ध्यान दिया ह।ै उनकी कदविा मंे से हम इन बािों को िेख सकिे हंै : “पागल-स,े लटे-लटे जीवन से छटे-छटे ऊपर से सटे-सटे, अन्िर से हटे-हटे, कछ ऐसे भी िदनया जानी जािी है :”10 इस प्रकार िखे ने से कह सकिे हैं दक ‘चक्रव्यूह’ कदविा सगं ्रह से कँ वर नारायण की काव्य प्रदिभा का सीधा साक्षात्कार होिा ह।ै अपने चारों ओर व्याप्त दवर्यों को गहराई से जानकर, अपनी नज़ररए से व्यक्त करने का कायष इसमें दमलिा है। एक ही दवर्य को दवदभन्न ढ़ंग से अदभव्यक्त करने मंे भी वे सक्षम ह,ैं उसमंे पनरावदृ त्त का आभास भी नहीं दमलिा। आधदनक व्यदक्त के मानदसक सघं र्ों को भी उन्होंने वाणी िी ह।ै कदव दजस समाज में रहिे ह,ंै दजन चीज़ों का अनभव करिे ह,ैं उसी की छदव उनकी कदविाओं में दमलिी ह।ै दहिं ी सादहत्य के दलए ही एक अमूल्य दनदध के रूप में उनकी रचनाएँ दवद्यमान ह।ैं सकारात्मक दवचारों से यक्त कदविाओं के साथ-साथ जीवन के कट यथाथों को भी दिखाने का प्रयास इन कदविाओं मंे रिव्य ह।ै संक्षेप में कह सकिे हंै दक जीवन यथाथष को दिखाने में कँ वर नारायण की कदविाएँ अत्यिं सफल दसद्ध होिी ह।ैं सन्िभा 1. कँ वर नारायण -दििाओं का खला आकाि, वाणी प्रकािन, 2012, नई दिल्ली, प.ृ 15 2. कँ वर नारायण-चक्रव्यूह , राधाकृ ष्ट्ण प्रकािन, 2011, नई दिल्ली, प.ृ 27 3. वही, प.ृ 76 4. (स)ं नेदमचंर जैन- मदक्तबोध रचनावली भाग -5, राजकमल प्रकािन,1980, नई दिल्ली पृ.473 5. कँ वर नारायण-चक्रव्यूह, राधाकृ ष्ट्ण प्रकािन, 2011, नई दिल्ली, प.ृ 90 6. वही, प.ृ 77 7. वही, प.ृ 69 8. वही, प.ृ 43 9. वही, प.ृ 111 10. वही, प.ृ 122 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 266

267 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 बिरीनारायण ौधरी ‘प्रेमघन’ का महत्ि मके श कमार, एम०दफल िोधाथी, महात्मा गाधँ ी के न्रीय दवश्वदवद्यालय मोदिहारी,दबहार सपं कष : 852 175 8547 ईमेल: [email protected] शोध सार िदरीनारायण िौधरी ‘प्रेमघन’ वहदं ी नििार्गरण के एक सशि हस्ताक्षर ह।ंै इन्होंने वनिंध, नाटक, आलोिना, काव्य ,पत्रकाररता आवद विधाओं से वहदं ी सावहत्य को समदृ ्ध वकया। और भारतीय िनमानस में एक नई िते ना का सिं ार वकया। िे स्ित्ि पर विशेष रूप से िोर वदये और स्िभाषा, स्िदेशी, स्िावभमान स्िधमव ि स्िराि की िात पुरिोर तरीके से रख।े वहन्दी नििार्गरण में प्रेमघन का महत्ि अन्यतम ह।ै बीज शब्ि दहन्िी नवजागरण, भारिीय जनमानस, दिदटि सरकार, प्रमे घन, स्वत्व । शोध आलेख बिरीनारायण चौधरी प्रेमघन दहिं ी नवजागरण के एक सिक्त हस्िाक्षर ह।ंै आप भारिंिे मडं ल के लेखक, कदव,दनबधं कार,आलोचक, नाटककार एवं किल पिकार ह।ंै आपका जन्म 1855 ई० दमजाषपर उत्तर प्रिेि मंे हुआ। आपका जन्म ऐसे समय मंे हुआ जब भारि कई समस्याओं से जझू रहा था।अगं ्रेजों की आदथषक नीदि से भारि कमजोर हो रहा था। ईस्ट इदं डया कं पनी भारि की अकू ि संपदत्त को इनं लैंड भजे रही थी।आपके जन्म के 2 वर्ष बाि हुई 1857 की क्रादं ि अदखल भारिीय आन्िोलन का रूप धारण कर रही थी और जनमानस में राष्ट्रीयिा की भावना जागिृ हो रही थी। भारिीयों मंे आपसी भेि-भाव के जगह आपसी एकिा के भाव को बल दमल रहा था। अंग्रेजों की िोर्ण नीदि, उपदनवेिवाि के दखलाफ दहिं -ू मदस्लम एकिा दिख रहा थी। रामदवलास िमाष जी कहिे हंै दक 1857 ई०की क्रांदि के बाि भारिेंि यग में खड़ी बोली दहन्िी का दवकास हआु । इस यग मंे खड़ी बोली दहन्िी की अनके दवधाओं का जन्म हुआ दजसमंे नाटक, उपन्यास, कहानी और आलोचना आदि दवधा समदृ ्ध हुई। इस सिं भष में भारिेंि यग के कदव बिरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' का नाम दहन्िी जगि में इनका नाम बड़े ही सम्मान के साथ दलया जािा ह।ै इन्होंने भारिेिं हररश्चरं के साथ कं धे से कं धा दमलाकर खड़ी बोली दहिं ी के दवकास मंे योग दिया । इसके साथ ही इन्होने भारिीय जनमानस मंे एक नई चिे ना जागिृ की। बिरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' ित्कालीन पररदस्थदियों की नब्ज को भली-भाँदि टटोलिे ह।ै वे िरू रिा ह,ै लेखक ह,ै कदव ह,ै पिकार है समाज सेवी ह,ै सासं ्कृ दिक योद्धा है और िेि प्रमे ी भी ह।ैं वह अपने ििे की विमष ान पररदस्थदि व भदवष्ट्य को लके र दचिं न-मनन करिे ह।ंै आप िेि की सामादजक करीदिया,ँ ऊँ च-नीच, भिे भाव और असमानिा का दवरोध करिे हैं और स्वधमष की अच्छाइयों को भारिीय जनमानस मंे जागिृ करने का काम करिे ह।ंै आप अपने समदृ ्ध अिीि की दवरासि से अपने पि-पदिकाओं व लेखों के माध्यम से भारिीय जनमानस को अवगि करािे ह।ंै भारि की विषमान दस्थदि, अंग्रेजों का प्रभाव, भारिीयों पर अगं ्रजे ी हुकू मि िीव्र रूप से चलना, इसपर बिरीनारायण चौधरी 'प्रमे घन' क्षोभ व्यक्त करिे ह।ैं अपने लखे ों, नाटकों, पि-पदिकाओं आदि वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 267

268 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 दवधाओं के माध्यम से अंग्रेजों के प्रदि आक्रोि जादहर करिे ह,ंै अगं ्रजे ों को िोर्क बिािे ह।ंै अगं ्रेजों की नीदि से िोदर्ि भारिीय के मन मंे ऊजाष का सचं ार दकया । बिरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ ने भारिीय सभ्यिा ससं ्कृ दि व अपने पूवजष ों के िौयष, पराक्रम और वीरिा की गाथा को स्मरण कराकर हिाि दनराि मन मंे नई स्फू दि,ष नई ऊजाष का सचं ार दकया। अंग्रजे ों से लोहा लने े के दलए प्ररे रि दकया । राष्ट्र धमष के साथ ही दहन्िू समाज का जागरण, धमष सधार, धमानष ्िरण की दचिं ा, धमष की रक्षा की भावना िथा धमष रक्षकों के प्रदि सम्मान ये सभी इनकी सादहत्य दवधा मंे दमलिे ह।ै चिे ना के इस यग में प्रेमघन जी की दृदि समाज और धमष पर पड़ी । प्रेमघन जी ने अपने गद्य काव्य को इन भावनाओं से प्रभादवि कर ित्कालीन समाज िथा धमष की समदचि व्यवस्था का दचि ही बना डाला। प्रमे घन के काव्य पर ित्कालीन स्वामी ियानंि सरस्विी के साहचयष का प्रभाव दविेर् रूप से पड़ा। 'दवधवा दवपदत्त वर्ा'ष इसका एक उिाहरण ह।ै दजस प्रकार दवधवा दवपदत्त वर्ाष में प्रमे घन दवधवा की ििा का वास्िदवक दचि दचदिि करिे ह,ैं उसी प्रकार दहिं ू धमष के आडंबरों, आनाचारों िथा कदवचारों की बड़ी कट आलोचना करिे ह।ैं \"प्रेमघन ने एक और िो अपने सादहत्य मंे दहिं ू धमष के आडंबरों िथा आनाचारों की कट आलोचना की, िो िसू री ओर दहिं ू धमष को नवीन दवचारों की ओर अग्रसर कर, नवीन उन्नदिमय मागष का प्रििषन कराया- दजसके फलस्वरुप प्रेमघन जी के सादहत्य मंे वैचाररक लेखों की दविरे ् प्रधानिा दिखाई पड़िी है”।1 स्वभार्ा की दचिं ा प्रेमघन की सादहत्य की मूल दचिं ाओं मंे एक ह।ै \"उन्नसवीं सिी के अदं िम चरण में वाणी के दजन साधकों ने दहिं ी को प्राण िान दिया ह,ै उनमें प्रमे घन का अन्यिम स्थान है \"प्रमे घन ने दहिं ी गद्य को दस्थरिा प्रिान की ह,ै उन्होंने दहिं ी गद्य को प्रौढ़िा िी और पररष्ट्कार दकया। 'कलम की कारीगरी' के रूप- आनिं में कािदम्बनी और नागरी नीरि की छटा से दहिं ी काव्यकाि को सिोदभि करिा ह।ै \"2 सर सैयि अहमि खान के रवयै े से दहिं ी-उिषू दववाि प्रारंभ हुआ। भारििें यगीन पिकारों, लेखकों और बदद्धजीदवयों ने दहिं ी के पक्ष मंे आवाज उठाई। उिषू को बाजार और वशे ्याओं की भार्ा कहा जाने लगा। नागरी दववाि भार्ा दववाि बना। दफर सापं ्रिादयक दववाि बन गया। भारिेिं मंडल िथा बाहर भी दहिं ी के पक्ष मंे िथा उिषू के दवरोध में लखे दलखे जाने लग।े मसलमान उिषू की वकालि कर रहे थे और दहिं ू दहिं ी की। दहिं ी चँदू क चिे ना और भार्ा िोनों स्िर पर मराठी, बंगला आदि से संवाि कर रही थी। ऐसे में उिषू इस समदन्वि चेिना की भार्ा नहीं हो सकिी थी। इस िरह के दहन्िी-उिषू दववाि मंे प्रेमघन ने दहिं ी का पक्ष दलया और उिषू का डटकर दवरोध दकया। “पूरबवि सो बीच कहचरी उिषू बीबी। बैठी ऐठं ी करि अजहूँ सौ सौ दवदध सीबी।। लदख आवि नागरी नागरी बरन बरन िदक। नाक दसकोरदि, भौंहँ मरोरदि औचकदहं चदक”।3 प्रेमघन ने अंग्रजे ों की आदथकष नीदि की कठोर आलोचना की ह।ै भारि का कच्चा माल को सस्िे िामों पर दवििे को दनयाषि और दवलायि से कई गणे अदधक मूल्य पर ििे में आयाि होिा है और दबका करिा ह।ै प्रेमघन दलखिे ह-ंै “हम अदिकि से भदू म जोििे,अन्न बोि,े सींचि,े काटिे और िां ओसा और गावं स्वच्छ रादि माि लगािे, परंि उसको खािे हंै िसू रे द्वीप के लोग।हम उसे बेचकर क्या पािे ह?ैं सीप, बटन या सींग की कं घी, कागज के दचि और दमट्टी के दखलौने। हम सौ सौ िःख झेलकर कपास बोिे, परंि रूई दनकाल दविेि भजे ििे े और उसके बिले में दवििे ीय बने कपड़े वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 268

269 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मोल लेिे। उसके सीने को सई या यंि िथा बटे सूि भी वहीं से लेकर सीिे, वहीं के दसद्ध रंग से उसे रंगिे और वहीं के बने बटन लगा कर पदहनिे, उसे हाथ महं धोने के दलए साबन भी वहीं से लिे े, दलखने के कागज,कलम, रोिनाई वहीं से मगं ाई जािी, पढ़ने की दकिाबंे भी वहीं से आिी। यदि यहाँ भी छपिी िो सब सामान वहीं से आिा। यदि लोटा , थाली और लोहे की सिं कू े , हम यहाँ बनािे, िो िाबं े,पीिल और लोहे की चिरें वही ँ की लके र। कहाँ िक दगनायंे बहिु रे ा कोरा माल प्रायः यहां से एक रुपये मलू ्य पर वहाँ जािा िो घूमकर पचीस पचास का होकर यहाँ आिा। हम दजसे रुपये पर बचे िे िो दफर उसी को पचास रुपये पर मोल लेिे ह।ैं चार रुपये का बलै का चमड़ा यहाँ से जािा, िो वहाँ से पचास रुपये के जूिे और सैकड़ों के बेग बनकर आिे। यहां से िस रुपये की रूई जािी िो पाँच सौ की आधी बनकर आिी”।4 स्विेिी आन्िोलन की भावना प्रेमघन के दचन्िन में है । डॉ रामदवलास िमाष दलखिे ह-ंै \"कागं ्रेस ने अभी स्विेिी आंिोलन दवदधपूवकष न आरंभ दकया था न बगं ाल मंे बंग भंग आंिोलन ने जन्म दलया था। के वल दहन्िी मंे भारिने ्ि ने स्विेिी आंिोलन का सूिपाि बहुि पहले ही दकया था। 'ििीय समाज' के सिस्यों के दलए स्विेिी वस्त्रों का व्यवहार उन्होंने अदनवायष रखा था”।5 अगं ्रेजों की िोर्ण नीदि रवयै े से कदव िखी थे। कई प्रकार के टैक्स महसलू आदि लगाकर अंग्रेज सरकार भारि को आदथषक दृदि से खोखला बना दिया। अगं ्रजे ों की स्वाथपष णू ष नीदि का दवरोध प्रमे घन इस िरह करिे ह-ैं “लटू ी दवलायि भारि खाय। माल िाल बहु दवदध फै लाय।। िाको मासूली छदट जाय। जमै लागै लाभ दिखाय।। िेसी मालन इहाँ दबचाय। घाटा भारि के दसर जाय।। रोओ सब महँ बाय बाय। हय हय दटक्कस हाय”।।6 प्रेमघन ने आनिं कािदम्बनी मंे स्विेिी वस्िओं को स्वीकार और दवििे ी वस्िओं का बदहष्ट्कार करिे ह।ंै इन्होंने स्वििे ी को सासं ्कृ दिक प्रिीक के रूप में िेखा। प्रमे घन की कजली और बढ़वा मंगल की व्याख्या से यह स्पि ह।ै इनके यगीन कदवयों ने दविेिी वस्िओं के बदहष्ट्कार का आवान दकया। बालमकं ि गप्त ने स्वििे ी वस्िओं का उत्पािन कर आत्मदनभरष बनने और व्यवहार मंे लाने पर जोर दिया- “छोड़ो सभी दवििे ी माल, अपने घर का करो ख्याल। अपने चीजें आप बनाओ, उनसे अपना अगं सजाओ”।7 वनबधं : “दनबधं आधदनक दहिं ी गद्य सादहत्य की एक महत्वपूणष दवधा ह।ै व्यत्पदत्त की दृदि से दनबधं िब्ि के दवदभन्न िब्ि कोिों की सहायिा से भले ही दकिने ऐसे अथष दनकाल दलये जायँ िो अगं ्रेजी ऐसे िब्ि के समानाथकष प्रिीि होिे ह”ंै ।8 दहन्िी गद्य मंे दनबधं का उिय आधदनक यग में ही हआु था। भारिेन्ि यग के मख्य सादहत्यकार बिरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' आनिं कािदम्बनी (मादसक) और नागरी नीरि (सप्तादहक) पदिकाओं का सपं ािन दकया। इन पिों में अनके दनबधं वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 269

270 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 प्रकादिि हयु े। जसै े- “दहिं ी भार्ा का दवकास, पररपणू ष प्रयास, उत्साह आलबं न आदि। प्रेमघन की भार्ा मंे अलकं ाररकिा कृ दिमिा और चमत्कारोत्पदत्त का प्रवास दमलिा ह”ै ।9 रामदवलास िमाष ने भारिेन्ि यग को नवजागरण का िसू रा चरण मानिे ह।ैं “प्रेमघन का समय प्रायः आन्िोलनों और दविेर् पररविनष ों का समय था, दजसमें नवीन सभ्यिा दिक्षा व नीदि के प्रभाव स्वरूप सभी क्षिे ों में नवीन समस्याएं उत्पन्न हो रही थी। क्या धमष और क्या समाज क्या राजनीदि और क्या आदथषक दस्थदि, सभी दृदियों से िेि का काया पलट हो रहा था। परम्परा और नवीनिा के संघाि से ििे की परंपरागि िीव्रिा का जैसा अनभव भारिंेि के समसामदयक लेखकों का हुआ वह अभिू पवू ष था, अिः प्रमे घन की दृदि का अपने समय में ज्वलिं समस्याओं पर कें दरि रहना स्वाभादवक था यही कारण है दक न के वल उनकी ही प्रत्यि अनेक समसामदयक अन्य लेखकों की भी प्रवदृ त्त प्रायः वैसे ही रही है प्रमे घन में यग चेिना अपेक्षाकृ ि आधदनक थी। अिः उनमंे अपने समय की दस्थदि व समस्याओं को ऐदिहादसक परंपराक्रम मंे िखे ने की प्रवदृ त्त दविरे ् रूप से पररलदक्षि होिी ह।ै प्रमे घन भार्ा, आलोचना, पिकाररिा, आदथकष , राजनीदिक, धादमषक, सामादजक आदि दवर्यों पर दनबधं दलखे ह”ंै ।10 आलो ना: “आधदनक दहिं ी आलोचना का आरंभ भारिेन्ि यग से हुआ ह।ै कहा जािा है दक भारिने ्ि हररश्चरं 'कदववचन सधा' और हररश्चंर में कछ नोट समालोचना के रूप में दनकाला करिे थे”।11 आलोचना एक गद्य दवधा के रूप मंे दवकदसि हुयी। “आधदनक आलोचना का सूिपाि भी इसी यग में हुआ था और इसका श्रये इस काल के िो दलखो को दिया जािा है यह िो बालकृ ष्ट्ण भट्ट को और िसू रा पंदडि बरीनारायण चौधरी प्रमे घन ने श्रीदनवासिास कृ ि संयोदगिा स्वयवं र की आलोचना और गिाधर दसहं कृ ि बगं दवजेिा के अनवाि की आलोचना आनन्ि कािदम्बनी के कई पषृ ्ठों में दवस्िार पवू षक की थी। उनकी ये आलोचनाएं उनकी व्यदक्तगि रूदच पस्िकों के गण िोर् उद्घाटन िक ही सीदमि ह।ै कहीं-कहीं भार्ा संबधं ी मद्दों पर व्यापक रूप से दवचार दकया गया है”।12 आनन्ि कािदम्बनी' में प्रकादिि प्रेमघन की सभी आलोचना का उल्लेख ह-ै ▪ मधिरंग, (आ.क.ख.1.स.ं 2,) ▪ नीलीिवे ी, (ख-1 प.ृ सं. 6-7-8) ▪ सयं ोदगिा स्वयवं र और आलोचना (आ.का.मा.2) ▪ मेघ(10-11-12) बगं दवजिे ा की आलोचना” ▪ प्रमे घन सवसष ्व भाग-2,पषृ ्ठ संख्या 441-445 ▪ श्री गोदपका गीिम और प्रेम पष्ट्पहार या 6 मेघ 5-6 ▪ सौ अजान एक सजान (आ.का.मा.6 में 11-12) ▪ महादवद्या िथा नवीन भारि (आ.का.मा.7 में 3-9) ▪ आनन्ि कािदम्बनी: माला-2, दव.सं. 1943 इस प्रकार हम िेखिे हंै दक आलोचना के क्षिे में भी प्रमे घकन का बड़ा नाम ह।ै वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 270

271 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 नाटक: प्रेमघन ने अपने दवदभन्न नाटकों एवं प्रहसनों के माध्यम से िेि की विषमान पररदस्थदियों से अवगि कराकर भारिीय जनमानस मंे एक नयी चेिना का सचं ार दकया और िेिप्रेम के प्रदि भाव उत्पन्न दकया। नाटक और चौिह प्रहसन आदि की रचना प्रेमघन ने की है- भारि सौभानय (1881 ई.) वीरागं ना रहस्य महानाटक (1881 ई.) माधवी माधव नाटक (1885 ई.) प्रयाग समागन (1911 ई.) प्रसनल आलाप- 1.पाठिाला किूह (1872 ई.) 2.घोघेमल साहू ओर दसदवलाइज्ड जदंे टलमनै (1881 ई.) 3.रावो रोवो रोिे जावो (1881 ई.) 4.बीबी महिरानी और िह्मणी की बािचीि सन (1881 ई.) 5.जबली जमघट या दक यारों का ठि सन (1887 ई.) 8.पिप्रपंच (1904 ई.) 9.अपवू ष सदम्मलन (1904 ई.) 10.कट्टी और जट्टी 1907 ई. 11.उपासक और पररहासक सन 1907 ई. 12.वक्ता और श्रोिा 1907 ई. 13.एक आयष समाजी बराि के बरािी और उनके ििकष 1893 ई. 14.पाडं े और पािररन का समागम 1894 ई. बिरीनारायण चौधरी अपने नाटकों के माध्यम से दहिं ी सादहत्य को समदृ ्ध दकया। और जनमानस मंे जागृदि उिपन्न की। बिरीनारायण चौधरी 'प्रमे घन' अपने अिीि का स्मरण करिे ह,ैं बदलिानी वीरों को याि करिे हैं और पनरुत्थानवािी चेिना को जागिृ करिे हैं और विषमान ििषिा से िखी होिा ह-ै “पाटदलपि गयो कहां, िेरो गजब गरूर। नदहं दचत्तौर वह जहं रह,े एक एक से वीर। रहो न वह पजं ाब अब, रहो न वह किमीर। पूना करी सूना गयो, दकिै दिवाजी वीर”।।13 वनष्ट्कषा: इसप्रकार दहन्िी गद्य की दवकास परंपरा, दनबंध,आलोचना, नाटक िथा पिकाररिा की दृदि से प्रेमघन का महत्व अन्यिम ह।ै इसके अदिररक्त िेिभदक्त और राष्ट्रीयिा की दृदि से भी प्रेमघन महत्वपूणष है।ं दहन्िी नवजागरण का कोई दवमिष प्रेमघन के बगरै पूरा नहीं हो सकिा। वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 271

272 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 संिभा सू ी: 1. भूदमका: प्रमे घन सवषस्व भाग-2 प.ृ सं.-12-13 2. वही, प.ृ सं.-7 3. आनिं वधाई: प्रेमघन सवसष ्व भाग-1 पृ. सं.-314 4.स्वििे ी वस्ि स्वीकार और दवििे ी बदहष्ट्कार: प्रेमघन सवसष ्य भाग-2 प.ृ सं.- 215-216 5. डॉ रामदवलास िमा:ष भारििें यग, प.ृ सं.-112 6. होली की नकल या मोहरषम की िक्ल: प्रेमघन सवषस्य भाग-1, प.ृ सं.-186 7. डॉ० चन्रप्रकाि आयष : राष्ट्रीयिा की अवधारणा पृ. स.ं -200 8. डॉ० िैलिे जिै ी: सपं ािक िलाि, िैमादसक पदिका, अलीगढ़ 9. डॉ० गणपदि चंरगप्त: सादहदत्यक दनबधं , प.ृ स.ं - 440 10. डॉ० प्रिाप दसहं : बिरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' की कृ दियों मंे अदभव्यक्त राष्ट्रीय चेिना, प.ृ सं.-229 11. डॉ लक्ष्मी सागर वाष्ट्णये : आधदनक दहिं ी का इदिहास, प.ृ स.ं -156 12. डॉ धीरंेर वमाष: दहिं ी सादहत्य कोि, भाग-2, पृ. स.ं -368 (ज्ञान मडं ल दल. वाराणसी-4) 13.दपिर प्रलाप : प्रेमघन सवषस्व भाग-2, प.ृ सं.-157-158 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 272

273 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 THE FIRE OF SONAKHAN \"SONAKHAN KE AAGI\" - AN EPIC HEROIC CHHATTISGARHI VERSIFICATION OF BRAVEHEART VEERNARANYAN SINGH BY LAXMAN MASTURIYA Dr Vineeta Diwan1 Mr Arun Jaiswal2 Assistant Professor, English, Department of Arts and Humanities, Kalinga University, New Raipur e mail- [email protected],9340666247 Assistant Professor, Department of Journalism and Mass Communication, Mandsaur University, Mandsaur e mail- [email protected], 9026053870 ABSTRACT- Veernarayan Singh, the benevolent landlord of Sonakhan, spearheaded the revolt of 1857 in Chhattisgarh. He was leading the rebellion of Sonakhan against selfish feudal lords and their illegal hoarding of grains during the severe famine. The rebellion was finally crushed by Deputy Commissioner Eliot. Veernarayan Singh, the brave heart and a man of fiery character, kissed the noose on 10 December 1 1857 and gave away his life by confronting the British army in order to save the life of his fellow rebels. The long narrative versification of \"Sonakhan ke Aagi\" by Laxman Masturiya, an eminent literary figure, lyricist, singer , poet and writer of Chhattisgarh chronicles the valour and heroism of Shaheed Veernarayan Singh in the form of an epic heroic poem in Chhattisgarhi language. The poetic narrative sings the glory of the land of Chhattisgarh and martyr Veernarayan Singh who emerged as a fire of revolt from the land of Sonakhan. The composition of poetry in the language of the soil enhances the beauty of the narrative and propels the essence of nativity and ethnicity of the region. The inspiring poem and the signature art of Laxman Masturiya highlights the iconic persona of Veernarayan Singh as an unforgettable saga, an inspiration for the future generations as an exemplar for ages to come. keywords- language development, Apabhramsha, Indo Aryan , Bhakti, medieval, modern phase Article Chhattisgarhi language, just like other languages has evolved from old Aryan language. The language of the Aryans gradually changed with advancing times and underwent great transformations leading to the formation of many modern languages and dialect. Chhattisgarhi language is also one of the language developing from the Aryan as parent language. Chhattisgarhi emerged as a dialect with advancing time. According to the eminent linguists the linguistic development of Indian languages is divided into three categories- वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 273

274 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 [1] Classic Indo- Aryan language era- 1580-500 BC [2] The Medieval Indo- Aryan language era- 500BC- 1000 BC [3] The Modern Indo- Aryan language era- 1000 BC- till date The Classic era language is evident in the vedic literature, scriptures and first stone tablet of Sanskrit known as Girnar stone tablet of 150 BC credited to Rudradaman. With the advent and emergence of Buddhism in Chhattisgarh the usage of local language also came into play along with Pali as the common medium of exchange. The later dialects denominated as Apabhramsa meaning corrupt or non grammatical language was the one that deviated from the norms of the Sanskrit grammar. Apbhramsa is a prominent source to study the linguistic history from the period spanning from 12 to 16 th century. Chhattisgarhi language is believed to develop from Ardhamagadhi Apabhramsa that also led to the development of East Hindi, Awadhi and Bagheli. Chhattisgarhi is a dialect evolving from East Hindi having no literary works created in olden times, but in recent decades the language acquired richness with literary works glorifying the Chhattisgarhi indigenous and evolutionary cultures. The Saga era literature in Chhattisgarh was infused with gestures of courage and love which did not follow any scripting rules and succeeded orally as folklores from one generation to another. Later in the modern era these oral forms came under scripting which included Kevla Rani, Ahiman Rani, Rewa Rani and Raja Veer Singh's sagas which were some of the leading and exceptional works. The mythical narrations included Phulbasan and Pandwani. The sagas were written were written as treatise poetry which described occult practices, life of people , fundamental desires and helplessness of womankind. The medieval saga showcased Fulkunwar devi, Dholamaru, Lorik Chanda as prominent works. The compositions of this time reflected Bhakti literature and the advent of Kabirpanthis in Chhattisgarh. Some of medieval literary figures included Babu Revaram, Prahlad Dubey, Gopal Mishra and Makhan Mishra. The modern age of Chhattisgarhi literature started from 1900 onwards which included novels, short stories plays and much more. Laxman Masturiya was an eminent poet, lyricist, singer and literary genius of the modern literary age of Chhattisgarh. He was also the editor cum publisher of the monthly magazine \"Loksur\" and was awarded \" Aanchlik Rachnakar Samman\" by the former Governor of Madhya Pradesh. Apart from literature, Laxman Masturiya was also interested in politics and fought elections on the behalf of Aam Aadmi Party from Mahasamund in the year 2014. वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 274

275 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 The literary art and poetic style of Laxman Masturiya is a pen picture and realistic portrayal of the simplicity of rural life of Chhattisgarh, its people and their culture. His poetries voiced the true essence of Chhattisgarhi life, its social and religious traditions, the myths and beliefs of the region that placed him in the category of \" Jan Kavi\" or \" The People's Poet\" . Though he composed some of his literary works in Hindi also but it was his outstanding contribution in Chhattisgarhi language and literature that brought an overwhelming response from the audience and popularized his works. On one hand his works convey the helplessness of the poor, downtrodden and dejected and on the other hand Masturiya strongly voiced the fury and blazing flames of India's freedom fighters by depicting the heroic character of Shaheed Veernarayan Singh, the first freedom fighter and revolutionist from Chhattisgarh who threw a tough challenge against the British rule. \"Sonakhan ke Aagi\" or \" The Fire of Sonakhan\" is an adoration and a glowing tribute to the martyr Veernarayan Singh through an Epic Heroic versification in the form of a block poetry depicting his life journey, right from his birth to the last breath of his life which was infused with patriotic feelings and revolutionary ideas against injustice towards mankind. The poem showcases visual imageries, metaphors and similes to the zenith of ornamental language chosen to highlight the infuriating character sketch and biography of Veernarayan Singh. The poem greatly appreciates the land of Chhattisgarh blessed with the bounties of nature generating a favourable atmosphere for its growth and cultural diversity. The poem Sonakhan k Aagi begins with the glorification of Chhattisgarh state and its rich cultural diversity, its position in India and its proud factor: ( translated in English for this research work by the contributor) Dharam Dham Bharat Bhuiya k In the holy land of India Manjh ma he Chhattisgarh Raj The central region is of Chhattisgarh raj Jihan k maati Sonha dhanha This land's soil is as rich as gold Loha Koyla ugle khaan And the mines disgorge coal and iron Jahan Sihawa k maatha le There from the facade of Sihava वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 275

276 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 Nikle Mahanadi k dhaar springs out the Mahanadi Paavan Pairi Shivnath teer And near the holy Pairi and Shivnath Sahar pahar k mangalhaar Cities garland like Mangalhaar Jonk nadi Indravati tak le From river Jonk to Indravati Gadh Chhattisgarh Chhati kas looks like broad chest of Garh Chhattisgarh Utti bar Sarguja katakat The North lined by furious Sarguja Dakkhin Bastar baagi kas And Bastar is the rebel rising in South Purab le Sarangadh garje Sarangarh roars from the East Pachhim le Rajnandgaon And Rajnandgaon from the west Ek na ek din rar machahi to announce that one day he will revolt Beta Mor Son pankhin k My son riding on the wings of gold In the above four stanzas the poet begins with the glorification of Chhattisgarh as state situated in the centre of India. He regards India as the holy land of which Chhattisgarh is a crucial part. He denominates Chhattisgarh as the \" Chhattisgarh Raj\" to highlight its rich legacy of Princely states on which the denomination of the state has been done when it boasted of thirty six forts and their rule. He glorifies the rich mineral deposits of Iron and coal as they are abundant in the Bastar, Korba and Chirimiri region. The soil of the state is rich soil due to which Chhattisgarh is also known as the \"Paddy Bowl\" of the country. Masturiya maintains the theme of glorification of land and its people throughout the poem and personifies Chhattisgarh as a brave mother of a brave son, वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 276

277 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 about who she predicts that one day he will bring a revolutionary change in the state, a turbulence by riding on the \"golden wings\" which is a metaphorical expression of Sonakhan, the birth place of martyr Veernarayan Singh. Sonakhan is a small town in district Raipur, tehsil Baloda bazaar is also a Panchayat abounding in large scale tribal population basically consisting of Gond, Binjhwar, and Kanwars. The land of Sonakhan still buries in its heart the fire of rebel when Naxalism broke out during 1967 at Naxalbari district of North Bengal. The spirit of revolution is depicted to be deeply embedded not only in the land of Sonakhan but also in regions of Rajnandgaon and Bastar which was the pivot of the multiple freedom movements against Britishers in Chhattisgarh including names like Thakur Pyarelal, and Tribal rebellions including the Halba, Maria, Muriya, Rani rebellion and the famous Bhumkal revolution lead by Gundadhur, the brave fighter of Bastar. The names of the places allude the stories associated with the acts of bravery performed by great revolutionaries and freedom fighters from Chhattisgarh during the war of Independence. The proud Mother Chhattisgarh (Chhatisgarh dai) is confident that one day her son from Sonakhan will surely bring about a turning point in the historical chapters of Chhattisgarh. Laxman Masturiya's style establishes a strong connection between Veernanaryan Singh and his native state. The lines further indicate some of the most renowned cities of Chhattisgarh and the reasons behind their credit and fame. Not only the descriptions talks about places but also the culture of Chhattisgarh and places of spiritual significance. The stanza reflects the prominence and spread of Shaivism among the common people who worship Lord Shiva not only for his wrath but also as a a benevolent God who drank poison for the sake of humanity. There have been allusions of Sage Valmiki and Raja Harishchandra and Dharamraj Yudhishthir who have close connections with Chhattisgarh. Jahan Bhilai Korba Thade Where Ghilai and Korba exist Patthar sirmit bhare khadan And have rich stone mines and cement plants Tamba, peetal, tin, kaanch ke Where brass, bronze, tin and glass Ihi maati ma thathi khan This is the soil where they are found in abundance... वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 277

278 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 Shiv base jihan mankhe man ma Where Shiva rules the mind of his people and is worshipped Amrit baat karen bispaan Who after distributing the elixir of life to all gulped poison Maya me maate mud katawe Who out of his wrath had cut the head ( Lord Ganesha) Daya ma jeev tak de dai daan And who out of love can even do charity of life The mythology tales of Ramayana and Mahabharata are strongly connected with the region of Chhattisgarh or Dakshin Kosala. The state has a significant role in the life of Lord Rama, whose maternal home is situated here and is the birthplace of his mother Mata Kaushalya. It is believed that Lord Rama along with his wife and brother Laxman had started their exile in the Dandakaranya region of Bastar where they spent more than ten years out of their fourteen years of exile. Presently the work is in process for the Ram Van Gaman tourism circuit which aims at developing such places which were linked with Lord Ram including nine locations - Sitamarhi Harchauka, Ramgarh, Shivrinarayan, Turturiya, Chandkhuri, Prayagraj, Sihava, Chitrakoot, and Sukma with a budget provision of Rs 137 crores 45 lakhs. Shaivism is regarded as one of the oldest religious beliefs in Chhattisgarh which is a large number of Shiva temples in the region. It is believed that a particular religious sect was at times promoted by the rulers of the state and in this context the Kalchuris who ruled Chhattisgarh for loner times promoted Shaivism who is believed to be their ideal God. During their rule they constructed large number of Shiva temples and also Shaivism is evident in the coins, scriptures and images at temples. Through the legendary and mythological references of Lord Shiva and Lord Ram, Masturiya highlights the rich and strong ethical grounds of the people in Chhattisgarh deeply influenced with the preaching of Ramayana and deriving inspirations from the life of Lord Ram and Lord Shiva, who for the sake of the world drank the poison and distributed the elixir of life to all. If Shiva's wrath can destroy, his love has the ultimate credit of creation. Masturiya further highlights the significance of Valmiki's ashram located at Chandkhuri and where Sita is believed to spend her life with her sons Luv and Kush who gained education at Valmiki's Gurukul. He also regards the legendary tale of Raja Harishchandra who was the son of Chhattisgarh and who for the sake of truth and charity was even ready to give away his life. He regards the soil वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 278

279 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 of Chhattisgarh as gold and no less magical than touchstone which transformed every normal or inferior thing into gold when he praises Saran pare bhikhmanga aaen Beggars came here for refuge Chhin bhar ma hogin dhanwan And in no less time they became rich Tapsi aaen ihi maati ma Hermits came to this land Mya karin ban gin bhagwan And became demi Gods when they loved this land Praising the soil of Chhattisgarh Masturiya further adds that changing times in the history of the state also changed the circumstances and situations and everything became topsy turvy. A time came when the honest suffered hand to mouth condition whereas the dishonest and cheats led a luxurious life. He expresses sorrow over the people who came here to seek rfuge in their worst time and after they became self sufficient they exploited the people of the state who once pitied them and gave them shelter. In other words Masturiya strongly criticizes the outsiders coming to the state and later exploiting the natural resources, bounties of nature and the local people whom they eyed as the inferiors and low class. Land acquisition is the core of political and social disputes in the tribal areas of Chhattisgarh. On one hand the Naxal extremists enforce their justice by supporting land alienation and on the other hand the government' s definition of development is industrialization which follows the policy of moving tribal people out of their land and expose the rich subterranean territories. Masturiya also exposes the exploitation of th local people by landlords, zamindars and extortion of money from the poor as taxes. Masturiya shifts the subject steadily from exploitation of the locals to the exploitation of the nation when he contextualizes the Revolt of 1857 and its heroic figures from all over India. e presents the big picture of the revolt all over India and depicts how it was led by Veernarayan Singh at Chhattisgarh who took the command of the state : Foonkin sankh san santawan ma In the year 1857 they blew the conch Kaapin bairi ge ghabray वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 279

280 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 The enemies were frightened Sah Bahadur Laxmibai auw It was Shah, Bahadur, Laxmibai and Nana Tope Surinder Sahay Nana Sahib, Tatya Tope, Surinder and Sahay Mandsaur le Khan Firoza From Mandsaur it was Khan Firoza Gwalior k Baija Rani From Gwalior it was Baija Rani Saheed Kunwarsingh Aarawaale Shaheed Kunwarsingh from Aara Maanpur k mardan baaghi ... And Mardan Baagi from Maanpur Uhi samay ma Chhattisgarh k At that time only from Chhattisgarh Garajis Veernarayan Singh Veernarayan Singh roared Ramrai k baghwa beta The lion cub of Ramrai Sonakhan dharti k dheer Was the brave heart of Sonakhan Masturiya portrays Veernarayan Singh and his string contribution in the revolt of 1857 when the central state also led the movement. He discusses the drought of year 1857 when the villages starved and numerous people died. He reflects the intensity of the draught and famine by using the phrase \"even root cultivations were not there to eat\". The severe famine even made the birds and animals also migrate. At this time the business class people had their coffers full of money and Godowns full of grains. In order to help the poor Veernarayan Singh nearly begged before the landlords to give him grains on credit so as to help the poor and needy. The rich and selfish landlords refused to help Veernarayan, in turn of which, he robbed off the entire grain and distributed evenly among all villagers. The business class and the feudal lords complained the British officials who immediately got Veernarayan arrested and later brought to Raipur for keeping imprisoned. However Veernarayan did not give up before the British and absconded from the jail वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 280

281 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 with the help of one friend. After coming out Veernarayan was again reminded of his liability towards his people who called him his \"Mukhiya\". Mor jinagi mor parja khatir My life is meant for my people je mola mukhiya maane he Who have regarded me as their chief Jameendar main Sonakhan k I am the landlord of Sonakhan Sona upje mor maati ma Gold is the harvest of my land Jihan k bhuindhar bhookh marat he But now the landowners here are starving Aag barai mor chhati ma Due to this my heart is on fire The above lines reflect Veernarayan Singh's belongingness towards his place and people and a strong sense of determination to resolve their problems during the famine. The idea of crops bringing prosperity in the region has been strongly connected with the term 'golden harvest' in which the excellent soil quality is responsible for profitable harvest. When Veernarayan saw his people starving he neither begged nor asked for the charity but asked to get grains on credit from the feudal lords who blatantly rejected his idea. An oldest adivasi resident of Sonakhan, Charan Singh speaks on Veernarayan's self respect and self esteem staying intact even in the moments of crisis- “He did not seek charity,” says Charan Singh, the oldest Adivasi resident in this largely tribal village.He asked the merchants and lords to open the godowns and let the poor eat.” Like in so many famines, the granaries were full. “And he said that when the first crop came, people would replace the grain they were given. When they refused, he led the poor to seize and distribute the grain.” The struggle that followed spread across the region as the tribals took on their oppressors.\" ('Sonakhan: When Veernarayan died twice, PARI, People's Archive of Rural India, August 14, 2015) While Veernarayan was captured in Sonakhan, it was due to the betrayal of his own brother in law who joined hands with General Smith who was instructed not to leave even a single stone unturned वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 281

282 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 in capturing Veernarayan. General Smith called more forces from Bilaspur, Bilaigarh and Bhatgaon, still he could not show down the soaring high spirits of Veernarayan, who despite his starving people did not surrender. He said that dying merely by starvation is a coward's death, but fighting empty stomach and embracing death is an act of bravery , and through these words he inspired his people to fight against General Smith. Ghoda Kareliya ma chadhe Narayan Mounting on his horse Gali gali kinjre alakh jagaye Narayan explored every corner of the village to kindle the rebel fire Bhookh ma to jeev tadpat jaahi Our soul is restless due to hunger Ran joojh maro swarag mil jaye Its better to fight and die with a purpose, so that you go to heaven Anyayi k anyay sahne To suffer the exploitation of an exploiter sab le bade hove anyay Is also biggest exploitation kaat k paapi la khud kat jave its better to kill the sinner and sacrifice one's life Dharam karam Geeta gun gaye As of this kind of death is even praised in the Bhagwadgita Bina Suraji ka jingani A life without Swaraj Murda he tan mare pran The body is dead with a dead soul Bina maan sabhimaan k mankhe Without self respect and self esteem Gaay garu aud kukur samman A human is no less than cattle and stray dogs The rhyme scheme ab, ab is followed throughout the poem in the quatrains, with imageries and similes abounding in the poem. The comparison of a human without Suraaj (Swaraj) self esteem वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 282

283 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 and self respect is just like a body without soul that has no mission, no objective of the life incapable of doing anything for his people. Similarly a human being's identity is reduced to cattle who with her mentality are always good followers but worst leaders as they lack the decisive power and will power to take initiatives in life. The preaching of Verrnarayn and his ethics have been beautifully interwoven in the Chhattisgarhi language that is highly motivating and inspiring patriotism. The powerful diction of Masturiya's poetic style arouses strong patriotic feelings in one's heart and makes an individual realize the true worth and meaning of his birth as a human on this planet. This thought is quite evident in the coming lines when he rebukes his people on humanity and being a superior animal : Dharam Dham ma Raj karat he This land of Dharma is ruled by Kayar kukur dhan lobhi Coward dogs and greedy rogues Murda kas jinagi jeetho You all are like dead bodies Dhikkar tunhar maanus yoni Its a shame upon your life as a human The lines express revolutionary and rebelling spirit of Masturiya against the injustice on the locals inflicted by the selfish moneylenders and feudal lords through the protesting tongue of Veernarayan Singh. Masturiya brings out the true essence of humanity and purpose of human life that is not meant just for taking birth and dying but idea is that even birth and death should have a noble purpose which can be none other than humanitarian outlook and noble actions. The aspects of self esteem, self reliance and self respect have been considered as the qualities distinguishing man from animals. A voice has been raised against herd mentality and following the footsteps with blind faith as it is capable of destroying a whole nation and generation. There is a muscular voice for awakening of the labours and peasants who must understand their worth and fight for their rights: Jaag Kisanha, Jaag kamaiyya Be Awake farmers, be awake workers and labourers Haq bar lado maro jung ma Fight for your rights and sacrifice your life in the rebellion Laaj bachale apan kul ke वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 283

284 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 Save the honour of your clan Rang matha man rang man ma Colour your forehead and your thoughts with the colour of war The pathetic and heart rendering scene of Veernarayan Singh after arrest and blown on the canon mouth brings tears into the eyes of every patriot who lives his nativity, his soil and his people. A mixture of strong pathos, passions and aggression is evident in the lines that convey the tragic demise of Veernarayan Singh. The soil of the land stands personified as a silent witness of Veernarayn's martyrdom. The lines are quite moving infused with patriotic feelings and sacrificing one's life for the sake of motherland with an undaunted spirit. The philosophy of karma has also been highlighted as even God can forgive but the motherland will never forgive the ones who betrayed Veernarayan and shook hands with the British. The deadly silence after the order of blowing Veernarayan on the canon mouth is heart breaking and makes the soul restless : Taan k chhati khade Veersingh Veersingh stood with his chest erected Bedhadak dekh rahe muskaye He had a smile on his face and remained unaffected Order hot bhaye sannata As the order was given for killing there was a deadly silence Chhootis top garaj garjaye The canon blew with a deep roar... Mankhe sang gaddari karke Those who cheat others Maafi pa jahi beimaan May be forgiven Maati sang gaddari karhi But those who cheat and betray the motherland Ola nai bakse bhagwan Will never be spared even by God These valuable words of Masturiya on karma are significant for all times as betrayal towards the motherland is an unforgiving sin. The martyrdom of Veernarayan Singh was exceptional as he embraced death with a smiling face at the same time with a guilt in his heart that his own people वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 284

285 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 betrayed him for whom he lived his whole life and sacrificed everything. Hunger is still an issue in Sonakhan which is not a goldmine as the name suggests. One of the tribal Shyamsunder Kanwar says that every year the population is decreasing on account of migration leading to a drop in the literacy drive for the region. Still the land is under the control of those forces which were strongly opposed by Veernarayan Singh, and which includes the merchant class, moneylenders and feudal elements. The politics of the protest which was strongly favoured by Veernarayan has lost with receding times and unfortunately the politics of patronage has won. He was an authentic folk hero who was demolished by the embrace of the elite, but the issues he raised are still alive. Beer narayan k sapna ha The dream of Veernarayan Turat havae adhoora he Is still broken and unfulfilled Dhadhke chhati Chhattisgarh k The chest of Chhattisgarh has still fire buried in its heart Dukh k badhti poora he Due to the increasing sorrow Are naag tai kaat nahi to Hey Naga, you don't sting Jee bhar k fufkaar to re But at least make hissing sound Arre baagh tai marr nahi ta Hey Tiger! do not kill Garaj garaj dhutakkar to re But at least you roar loudly Ek na ek din e mati k One day again the pain of this land peera rar machahi re will again give rise to rebellion Nari katahi bairi man k The nerves of the exploiters will be cut Nawa Suruj phir aahi re वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 285

286 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 And a new sun will rise again In the concluding lines of the poetry Masturiya comments upon the helplessness of the people as an intentional passivity whose fire needs to be kindled with changing times and in this context he says indirectly that ' Hey Naga, do not sting but at least hiss, hey tiger, do not kill but at least roar' which reflects the idea that the fire of rebellion which is still buried in the heart of Sonakhan should not extinguish, but stay alive with time, even if it does not show itself it must be retained that \"Sonakhan was the place where Shaheed Veernarayan Singh was born\". Though the dreams of Veernarayan Singh are unaccomplished till date , but the fire of Sonakhan will up rise one day and will rebel with all might against the injustice done to the innocent locals who are still the victims of the feudal and merchant class, who still are migrating with a starved face and empty stomach. Standing on the threshold of the past and present the poet is still hopeful for better days to come and the rising of a 'Nawa Suruj' or a new sun bringing a better future. CITATIONS 1. 'Sonakhan k Aagi' Gurtur Goth, Masturiya Laxman, https://gurturgoth.com/sonakhan-ke- aagi/ December 9, 2017 2. 'Reviving Chhattisgarh Heritage History' https://www.sundaygudimanlive.co/business/reviving- chhattisgarhs-heritage-history 3. 'Influence of Shaivism in Chhattisgarh' DIGICGVision https://www.digicgvision.in/2021/04/chhattisgarh-me-shaiv-dharm.html, 2021 4. 'Red Alert in Chhattisgarh' Down to Earth,Mitra, Maureen Nandini, https://www.downtoearth.org.in/coverage/mining/red-alert-in-chhattisgarh-8554, 31 October, 2006 5. 'Revolt of 1857 in Chhattisgarh' ,CG Exam Preparation https://chhattisgarh.pscnotes.com/chhattisgarh-history/revolt-of-1857-in- chattisgarh/#:~:text=Chhattisgarh%20took%20active%20part%20in%20the%20Revolt%20of%2018 57.&text, 2015 6. Chhattisgarhi Dictionary, Learn Chhattisgarhi, https://chhattisgarhidictionary.learnchhattisgarhi.com/, 2021 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 286

287 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 आलेख कोविड़ 19 के पररप्रेक्ष्य में सावहत्य और समाज डॉ.श्रीलता विष्ट्ण महाभारि में यमिवे िा ने यज्ञ बनकर यदधदष्ठर से पूछा था दक ससं ार में सबसे िेज़ चलनेवाली वस्ि कौन-सी है यदधदष्ठर ने उत्तर दिया दक ससं ार में सबसे िेज़ चलनवे ाली वस्ि हमारा मन ह।ै एक क्षण में वह हमें एक जगह से िसू री जगह ले जािा है और िसू रे ही क्षण मंे यहाँ से कहीं और। उन दिनों या बाि के समय में भी यह कल्पना भी न की गई होगी दक कोई चीज़ इसकी बराबरी कर सकिा ह।ै विषमान समय ने बेिकी बािों को भी सच मंे पररणि करके हमारे सम्मख प्रस्िि दकया ह।ै यदि हम कोदवड़ 19 को ही ले लें िो अणयक्त दकसी चीज़ को छू ने माि से हमारा पूरा िरीर अणग्रस्ि हो जािा ह।ै िो वर्ष पहले हम ने सोचा भी नहीं था दक ऐसी कोई बीमारी मानव का हत्यारा बनकर हमारे बीच व्याप्त होगी। आज हम इस महामारी के चपेट मंे आ ही गई ह।ै जब हम ने प्रकृ दि पर हस्िक्षपे दकया जैदवक वस्िओं का भक्षक बना और प्रकृ दि की स्वाभादवक प्रदक्रया को बिल डाला िो यह छोटा सा, िेखने में िच्छ वैरस मानव समाज की स्वाभादवक प्रदक्रया पर प्रश्न दचह्न डालकर प्रत्यक्ष हुआ। अपनी स्विंििा को, चाल-चलन को इसने प्रभादवि दकया ह।ै दवज्ञान ने भी कोदवड के सामने अपना हदथयार डाल चका ह।ै स्वििं िा आन्िोलन के समय जब भारिीय आज़ािी हादसल करने के दलए लड़ रहे थे िो अब िो कोदवड़ से स्विंििा, कोदवड़ से मदक्त हम चाहिे ह।ंै और उसके दलए लड़ रहे ह।ैं िदनया मंे इिना पररविषन होगा दक हम कोदवड के पहले या कोदवड के बाि आदि सजं ्ञा से उसका सबं दन्धि करेगा। दवकदसि राज्य की अवधारणा को भी कोदवड़ ने बिल डाली ह।ै वैज्ञादनक क्षेि मंे , प्रौद्योदगकी के क्षेि मंे दकिना भी दवकदसि हो कोदवड़ के सामने सब नागण्य ह।ै िदनया भर के मानव की यह दमथ्या धारणा रही थी दविरे ्कर इस उत्तर आधदनक यग मंे, ससं ार की कोई भी चीज़ उन्हें हरा नहीं सकिी। उन्हें ऐसा लगने लगा था दक उन्होंने प्रकृ दि के रहस्यों को जान पाया और प्रकृ दि के परे हो गया। ससं ्कृ दि के कई ित्वों को भी हम भूल बठै े। अथवषवेि मंे कहा गया ह-ै मािा भूदमः पिोहं पदथव्याः यह भूदम हमारी मािा है मैं इसका पि ह।ूँ इसके पाररदस्थदिक संिलन को, माँ की संिानों ने ही दबगाडा ह।ै हमारी आर्ष संस्कृ दि ने वास्िव मंे हमें यह सीख िी थी दक वकृ ्षों को काटना पाप ह।ै यदि हमंे इसे काटना पड़े िो वकृ ्षों से अनमदि मागँ नी होगी। “फलिानं ि वकृ ्षाणां च्छेिने जप्यमकृ ििम गल्मवल्ली लिानां च पदष्ट्पिानां चवीरुधां’’ ऐसा उपििे वैदिक सादहत्य हमें िे रहा ह।ै पयावष रण पर सदृ ि की रूपरेखा इस किर बिलेगी िायि ही हमने कभी कल्पना की होगी। आज प्रकृ दि की ओर मड़ना मानव के दलए अनपेक्षणीय हो गया ह।ै कोदवड़ सकं ट का कारण, मानव की असीदमि दलण्सा और बके ाबू प्राकृ दिक िोहन ह।ै मानव- मानव पर, मानव-प्रकृ दि पर स्वाभादवक ररश्िा बनािे हएु ही दवकास के पथ पर हमंे आगे वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 287

288 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 बढ़ना होगा। इस साल भी जून पाँच को हम ने दवश्व पयाषवरण दिवस मनाया। इस कोदवड़ काल मंे पयावष रण के प्रदि कछ गंभीर सिकष िा एवं सजगिा हम ने दिखाया। कोरोना महामारी हमें बहुि कछ दसखा रही ह।ै कामायनी मंे अन्िदृदि संपन्न प्रसाि जी ने इस ओर पहले ही हमंे चिे ावनी िी थी – “अरे अमरिे के चमकीले पिलों/ िरे े वे जयनाि/ काँप रहे हैं आज प्रदिध्वदन बन कर मानो िीन दवर्ाि/ प्रकृ दि रही िजेय, परादजि हम सब थे, भूले मि में भोले थे/ हा,ँ दिरिे के वल सब दवलादसिा के नि म’ंे ’ (दचन्िा, प.ृ 13) भारि के मनीर्ी दवचारक िािदष नक कदव एवं प्रबल क्रांदिकारी निे ा कबीर को, सपं दत्त के पीछे भागिे हएु मनष्ट्य को िेखकर यों बिाना पड़ा – साई इिना िीदजए जा मंै कटम्ब समाय मैं भी भखू ा न रहूँ साध न भखू ा जाय। कबीर ने अपनी सहज प्रदिभा एवं सबल आत्मवत्ता के बल पर समाज के किाचारों एवं िभाषवनाओं के दवरुद्ध इिना ज़ोरिार आन्िोलन चलाया था दक वे अपने यग िथा परविी अनेक यगों के दलए दनस्वाथष क्रादन्िकाररिा के आििष मागिष िकष हो गए ह।ंै आज के इस कोदवड काल मंे जादि-पादँ ि के दवरुद्ध कबीर द्वारा कहे गए वाक्य दकिना साथकष दसद्ध होिा ह।ै इस कोदवड काल में सापं ्रिादयकिा फै लाने की कोदिि भी हो रही ह।ै क्या कोरोना वरै स दकसी जादि या वणष या धमष िखे कर मानव के अन्िर घस जािा ह।ै सापं ्रिादयकिा िो दकिना दनरथषक या बिे ूकी बाि है – इसे भी हमंे कोदवड़ समझा रहा ह।ै सूय,ष अदनन, वाय, जल सब पर प्रकृ दि मानव को समान अहसास करािी ह।ै कोदवड ने इन्सान और ईश्वर के बीच के अन्िर को भी दमटा दिया ह।ै िोनों बंि िरवाज़ा के भीिर रहा। मदन्िर मज़दजि दगरजा घर सब बिं पि था। सब मंे िाला लगा हआु था। मानव ने सीमा पार कर दिया ह।ै इसका पररणाम भी भगिाना ही पडिा ह।ै महान आलोचक रामचन्र िक्ल ने पहले ही चेिावनी थी दक ज्यों ज्यों औद्योगीकरण बढ़िा जाएगा। दवज्ञान के चरण मानव जीवन पर गहरी छाप छोड़ने लगेगं े समाज और सादहत्य की अदस्मिा के दलए सकं ट की दस्थदियाँ बनेगं ी। लदे कन उन्होंने यह कहकर हमें धीरज बँधाया था दक िबावों और सकं टों के बावजिू मनष्ट्य की रागात्मक वदृ त्त दनिरे ् नहीं रह जाएगी। जब िक मनष्ट्य की सवं ेिनाएँ बची हुई हैं िब िक सादहत्य का अदस्ित्व सरदक्षि और भदवष्ट्य दनरापि ह।ै लदे कन विमष ान माहौल में दस्थदियाँ दवघटन को बढ़ावा िे रही ह।ै राजनीदि, धमष, ििषन, ससं ्कृ दि आदि मंे आपसी वरै और अलगाव उभर कर आ रहे ह।ैं अखंडिा, जीवन मलू ्य और आििों का दिरस्कार कर पूणिष ः प्रौद्योदगक संस्कृ दि को मनष्ट्य स्वीकार कर चके ह।ंै प्रोद्योदगकी और िकनीकी के रि दवकास ने मानव अपससं ्कृ दि का दनमाषण दकया ह।ै उसके सामने मनष्ट्य दकिना लाचार है दववि है यह भी सोचने के दलए इस कोदवड काल में हम बाध्य बन गए ह।ंै दवदभन्न प्रचार माध्यमों, दवज्ञापनों और िान्ड ससं ्कृ दि ने मानव को अधं ेरे गफे मंे धके ल दिया ह।ै नयी उपभोक्तृ ससं ्कृ दि की ओर मानव ने मैग्रटे दकया ह।ै इक्कीसवीं सिी मंे उपभोक्तावाि का िष्ट्पररणाम भी हम िखे रहे ह।ंै खला बाज़ार मनष्ट्य की जीवन-िैली को भी बिल डाला ह।ै अपने बनाए उत्पाद्य या स्विेि वस्िओं एवं स्मॉल स्के ल इन्डस्री को अब भारिीय समाज मंे जगह दमलनी ही चादहए। भारि के दवत्तमंिी दनमलष ा सीिारामन ने इसके दलए कई पॉके जों की घोर्णा भी की थी। यदि यह पणू ष रूप से कायम कर पाये िो समाज के बहुि सारे लोगों की दस्थदि बहत्तर हो जाएगी। हम आत्मदनभरष भी हो जाएगँ ।े इस कोदवड काल की आपिा को अवसर बनाकर हमें अपने ही राज्य के उत्पाद्यों को ही इस्िेमाल करने का संकल्प करना ह।ै संकल्प से ही दसदद्ध होिी ह।ै वास्िव मंे भारि के बाहर भारिीय उत्पाद्यों का बड़ी माँग है, दडमंडे ह।ै इसका उत्पािन एवं दविरण भारि में ही करें िो हमारी सामादजक संस्कृ दि वापस आएगी, अपनी अदस्मिा वापस आएगी। कोदवड 19 काल वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 288

289 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 से हमें ऐसा ही कछ लाभ उठाना चादहए। गले लगाने की और हाथ दमलाने की प्रथा को हटा कर हमारी अजं ली जटाकर नमस्िे की मरा को दवििे ी लोग अपनी सभ्यिा का भाग बना दिया है । पदश्चमीकरण की ओर के मानदसक दवस्थापन से मानव पदश्चमी संस्कृ दि की सख सदवधाएँ और स्वच्छन्ि जीवन चाहिा है पर उनसे होनवे ाले सामादजक एवं सांस्कृ दिक अवमूल्यन को हम नकार नहीं सकि।े प्रमे और यौन सबं न्धों के बिलिे समीकरणों ने हमारे ररश्िे नािे को भारिीय भदू म से उखाड़कर एक नयी ज़मीन पर खड़ा दकया ह।ै आज के इस वैदश्वक वािावरण मंे पदि-पत्नी सिं ान ऐसा कोई भी नहीं दसफष “मैं’’ ही “मं’ै ’ हू।ँ सारे ररश्िे खंदडि-दवखंदडि हो चके ह,ैं दवरूदपि-दवस्थादपि हो चके ह।ैं गोदवन्ि दमश्र की कैं पस, िवे ने ्र की क्षमा करो ये वत्स, राजी सठे की यह कहानी नहीं, स्वयंप्रकाि की गौरी का गस्सा, अजय दनवाररया की िहे िंि, लवलीन का चक्रवाि जसै ी कई कहादनयाँ इस दवखंदडि ररश्िे को सामने ला रही ह।ै कदव राजेि जोिी की कदविा की पंदक्तयाँ हैं – संयक्त पररवार/अब दसफष आलबम मंे रहिे ह।ंै पररवार के सारे लोग एक साथ/ टूटने की प्रदक्रया मंे/क्या क्या टूटा कोई नहीं जानिा। यह िो हम ज़रूर बिा सकिे हैं दक इस कोदवड़ के समय ने पररवार के सारे लोगों को एक साथ रहने का मौका िो ज़रूर दिया ह।ै अपने घर की सरक्षा और कहाँ दमल पािा ह।ै माँ-बाप को दबना िनाव के , दबना भाग-िौड के अपने बच्चों के साथ घर के आत्मीय वािावरण मंे दबिाने का अवसर इस लॉकडाउन या िालाबिं ी ने दिया ह।ै इससे कई आदथषक परेिादनयाँ िो अवश्य हुई हंै उससे हम आँख मूँि नहीं सकि।े दफर भी पाररवाररक ऊष्ट्मा एवं ऊजाष से हम ज़रूर लाभादन्वि हुए ह।ंै यह िालाबंिी मानव जादि के इदिहास में पहली बार पूरी िदनया मंे एक साथ आयी ह।ै समाज पर इसका असर िात्कादलक नहीं िीघषकादलक ह।ै सादहत्य और समाज इससे बहिु कछ प्रभादवि होगा। कोदवड़ 19 ने मानव के सामने कई नई बािों को खोल रखा ह।ै मनष्ट्य को समाज में जीना होिा है प्रत्येक मनष्ट्य का जीवन इसदलए समाज से सबं द्ध और दनयदं िि होिा ह।ै प्रत्येक व्यदक्त को अपने भावव्यापारों को, आवश्यकिाओं को सयं ि और दनयदं िि करके जीना ह।ै यह दनयिं ण सामादजक दनयमों के आधार पर चलाना भी है क्योंदक सामादजकिा से व्यदक्त जीवन संबद्ध ही होिा ह।ै व्यदक्त मानस को सामादजक जीवन के दलए सवधष ा अनकू ल बनाने के दलए स्वाभादवक रूप से सामादजक अनिासन के दलए िैयार करने की प्रदक्रया को मानर्ीकरण कहिे हंै यह मानर्ीकरण ही सच्चे अथष में संस्कृ दिकरण ह।ै पिसामान्य वदृ त्तयों से मनष्ट्य का दविद्धीकरण अथवा उिात्तीकरण ही संक्षेपिः सामादजक संस्कृ दि का िात्पयष ह।ै नागण्य मनष्ट्यिा का ििषनाक दचि भी हमंे इस काल में अदिदथ मज़िरू के पलायन के रूप में िेखना पडा। इस घटना ने मानव सभ्यिा पर नया महावरा गढ़ा ह।ै यह सांस्कृ दिक दवघटन व्यदक्त का दवघटन ह।ै यह दवकास की गलि दििा का पररणाम ह।ै यग की पि थ्वदन सादहत्य में यगरिा कदवयों द्वारा गूजँ उठी ह।ै इक्कीसवीं ििी के िहलीज पर खड़े रखकर कदव अरुण कमल ने दलख ही दिया ह।ै उस मरे ा चहे रा फू टा हआु । कं प्यूटर अपने ही घर में दकराए िार हम जा रहे हैं इक्कीसवीं ििाब्िी की ओर खड़े रखकर कदव अरुण कमल ने दलख ही दिया ह।ै और मरे ा चहे रा फू टा हुआ। कं प्यटू र का िाना अपने ही घर में दकराए िार हम जा रहे हैं इक्कीसवीं ििाब्िी की ओर वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 289

290 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 भूखे नगं े जलधं र, सरू ि, अदलगढ़ भोपाल, हिै राबाि होिे गड्ढ़ों मंे जमा आिमी के खून से हाथ महँ धोिे ढहे महानों की छाँह में ठंडािे अनाथ बच्चों दवधवाओं दभखमंगों के साथ उठ पठ हम िरणाथी भदवष्ट्य के । (सबिू काव्य सगं ्रह) समाज दवज्ञान और सादहत्य पर सकारात्मक सोच-दवचार अनपके ्षणीय ह।ै भारिीय सादहत्य गदििील है इसमें यगीन पररविनष होिे रहे ह।ंै जनिा की सकारात्मक मनोव्यापार को, सोच- दवचार को ठीक रास्िे पर चलाने का िादयत्व सादहत्य दनभा रहा ह।ै समिा और ममिा की संवेिीना बरिना सादहत्य का िादयत्व बनिा ह।ै कोदवड़ से मदक्त के दलए उन्हें समाप्त करने के दलए मनःदस्थदि की बिलाव ज़रूरी ह।ै कोई जैव या अजवै हदथयार हमारे पास है ही नहीं। कोरोना काल में उससे प्रभादवि कई रचनाएँ रची ह।ै वदै श्वक सकं ट के समय मंे रचने गनने का माद्दा बेहि ज़रूरी ह।ै सादहत्य के साथ समाज समाज के साथ सादहत्य यही रीदि ह,ै यही चलन है िोनों सहकमी ह।ै कोरोना व्यंनय की कोरोना गो गो जसै ी कदविाएँ िो अल्पकादलक ही ह।ै दवश्व यद्ध के पहले और उसके बाि कई कदविाएँ कई रचनाएँ दलखी गई ंदजनमें जनिा की जीवन-दस्थदियाँ यद्ध का प्रभाव जैसी कई बािंे रेखांदकि की गयीं वसै े ही इस आपाि काल की भीर्णिा से प्रभादवि स्िरीय रचनाएँ वे चाहे कदविा हो, नाटक हो, उपन्यास हो, कहादनयाँ हो ज़रूर सामने आएगँ ी। परविी यग के समाज के दलए भी यह अवश्य लोभकारी दसद्ध होगा। Words worth ने कहा है Spontaneous overflow of powerful feelings recollected in intrananquility ऐसे रीकलक्टड़ कई बािें सन्िर प्रभावी रचनाओं का रूप धारण करके सामने प्रस्िि होंगी दजनमें दवश्वभर के अनभव एवं िरनभवों का अहसास होगा, स्पिं न होगा, धडकन होगा। ये रचनाएँ वैदश्वक सबं न्धों को उजागर कर िेंगी। मानव जीवन की गदि को इस छोटे-से वैरस ने धीमी िो कर दिया ह।ै लदे कन हमिे ा की िरह मानव इस बार भी लडंेग,े उठ खड़े हो जाएँगे। इस के दलए हम प्रदिबद्ध ह।ंै प्रोफसर और अध्यक्षा िीिकं राचायष ससं ्कृ ि दवश्वदवद्यालय कालड़ी ,एणाकष लम दजला ,के रल ई मले –[email protected] मोब 09497273927 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 290

291 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 प्रेम का अजब वत्रकोण ‘अमतृ ा, सावहर और इमरोज’ डॉ. हरीश निल आज मंै वाररसिाह से कहिी ह।ूँ ‘अपनी क़ि से बोल/और इश्क की दकिाब का कोई पन्ना खोल पजं ाब की एक बेटी के रोने पर िूने पूरी गाथा दलख डाली थी/िेख आज पजं ाब की लाखों रोिी बदे टयाँ िझे बला रही ह/ैं उठ ििष मंिों को आवाज़ िने े वाले और अपना पजं ाब िखे /खिे ों में लािें दबछी हुई हैं और चनाव लहू से भरी ह।ै दकसी ने पाचँ ों नदियों मंे दिया ज़हर दमला/और उन नदियों ने धरिी को उसी पानी से दिया सींच।’ यह प्रख्याि कवदयिी अमिृ ा प्रीिम की प्रदसद्ध कदविा ‘आज्ज आखाँ वाररस िाह नू’ का एक अंि है यह कदविा दवभाजन के बाि प्रकादिि अमिृ ा प्रीिम का पहला सगं ्रह है जो 1949 ई॰ मंे ‘लंमीआं वाटां (दचर प्रिीदक्षि)’ के नाम से छपा मरे ा पररचय भी उनसे इसी कदविा के माध्यम से हुआ। दवभाजन की िासिी पर आधाररि यह कदविा हमारे पररवार को उन यािों मंे ले जािी रही जो उन्होंने दवभाजन के समय झले ी थीं, दजनकी कड़वाहट आज िक नहीं गई ह।ै मेरा जन्म पंजाब में 1947 मंे ही हआु था, मैं बचपन से ही दवभाजन की लोमहर्कष गाथाएँ सनिा था दजन्हें अमिृ ा प्रीिम ने अपने उपन्यास ‘दपजं र’ मंे जीविं बनाए रखा हआु ह।ै मैंने अमिृ ा जी के गद्य का प्रथम अनभव इसी उपन्यास से दलया था। अनमानिः उन्होंने सौ पस्िकें दलखीं। दवभाजन के समय वह 28 वर्ष की थी। दपजं ड़ 31 वर्ष की आय में दलखी गई, जो एक बहुि पररपक्व रचना ह।ै इससे एक वर्ष उन्होंने ‘डॉ॰ िवे ’ जसै ा प्रमे सबं धं ों पर आधाररि उपन्यास दलखा जो मंैने ‘दपजं र’ के कछ वर्ों के बाि पढ़ा था और उसका प्रभाव भी मेरे मन पर अत्यदधक रहा। यही कारण था दक जब वर्ों बरस बाि ‘ब्यटू ेक्स दफल्म्स’ के दनमािष ा श्री जनै ने मझसे दकसी सादहदत्यक कृ दि पर िरू ििनष के दलए धारावादहक दलखने का अग्रह दकया, िब मैनं े ‘डॉ॰ िवे ’ पर दनमाणष का प्रस्िाव रखा और उन्हंे वह उपन्यास पढ़ने को दिया। वे एक ही दसदटंग मंे उसे पढ़ गए और उसकी पटकथा दलखने का अनबंध मझसे करने को कहा। मनैं े श्री जनै से कहा दक पहले वे अमिृ ा जी से स्वीकृ दि ले ल।ंे हम िोनों ने अमिृ ा जी से समय दलया और उनकी स्वीकृ दि हाथों हाथ प्राप्त की। मैं इससे पूवष उन्हंे एक बार दमल चका था। नाटककार रेविीसरन िमाष के घर एक छोटी सी गोष्ठी हुई थी दजसमंे अमिृ ा जी मख्य अदिदथ थी। उस गोष्ठी मंे मेरी अमिृ ा जी से दमलने की वर्ों की कामना पूणष हुई थी। उसी का हवाला िके र मंैने उनसे समय दलया था। अमिृ ा जी ने बहुि गभं ीर स्वर मंे कहा था, ‘मेरी हर दकिाब मरे ी जान का एक दहस्सा है, इस पर जसे ा इसमंे दलखा है वसै ा ही धारावादहक बनना चादहए।’ मनैं े अमिृ ा जी को आश्वस्ि दकया था दक उन्हें हम बनाने से पहले हर एदपसोड की पटकथा दिखाया करेंगे और वे उसमें संपािन या संिोधन कर सकें गी इसपर वे ख़ि हईु ंऔर पंजाबी में मझसे कहा, ‘िू बड़ा बीबा लगिाँ हं।ै ’ पटकथा िो पूरी दलखी गई और अमिृ ा जी को भजे ी भी गई दकं ि िभानष य से श्री जैन के आकदस्मक िहे ावसान से धारावादहक का दनमाणष नहीं हो सका। सवदष वदिि है दक अमिृ ा जी सादहर लदधयानवी को बेिहािा प्यार करिी थीं और इमरोज अमिृ ा प्रीिम जी को सादहर और अमिृ ा की प्रेम गाथा न के वल चदचिष रही अदपि उस पर जावेि दसदद्दकी ने एक पूणषकादलक नाटक ‘िम्हारी अमिृ ा’ वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 291

292 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 दलखा जो िेि भर में अनके स्थलों पर मंदचि हआु । इसी थीम पर ‘एक मलाक़ाि’ नाटक रचा गया। इस नाटक में सादहर और अमिृ ा प्रत्यक्ष दिखिे हंै और इमरोज नपै थ्य मंे रहिे हुए भी मानो सादृश्य होिे ह।ैं आजकल जो रंगकमी मख्य भूदमकाएँ दनभा रहे ह,ंै वे हैं सादहर के रूप मंे िेखर समन और अमिृ ा प्रीिम के रूप मंे उन्हें साकार दकया िीदप्त नवल न।े सादहर और अमिृ ा प्रमे मंे थे दकं ि साथ न रह,े सादहर प्रदसद्ध गादयका सधा मल्होिा से श्प्रेम करने लगे लेदकन अमिृ ा सादहर को िाउम्र भला नहीं पाई।ं उनके जीवन के एक ख़ास मोड़ पर इमरोज आए जब वह अपनी एक पस्िक का कवर बनवाने के दलए दचिकार इमरोज से दमलीं यह बाि 1958 ई॰ की ह।ै िब अमिृ ा जी लगभग चालीस वर्ष की थीं। इमरोज अमिृ ा के मोहपाि मंे दबधं गए। वे िोनों दमलिे थे लदे कन अमिृ ा के मन में कभी भी इमरोज के प्रदि मोहब्बि का वैसा ज्वार नहीं फू टा जैसा उनके मन मंे सादहर के दलए रहा। िरअसल उनके दिल मंे सादहर थे िो इमरोज कै से आिे। लेदकन इमरोज अमिृ ा से बिे हािा पूणष समदपिष भदक्तभाव से प्रेम करिे रह।े वे अमिृ ा के साथ रहने लगे थे। माना जािा है दक उनका साथ रहना दलदवंग टगिे र का प्रथम िौर था। मंनै े इमरोज के ये भाव स्वयं िेखे ह।ंै अमिृ ा प्रीिम सफू ी संिों पर कायष कर रही थीं, उन्हीं दिनों मरे ा उनके घर जाना हुआ। संिभष था मराठी पि ‘जनवाणी’ के ‘इदं िरा गाधँ ी स्मदृ ि दविरे ्ाकं ’ का दजसके दलए मझे इदं िरा गाँधी जी के संबधं में अमिृ ा जी से इटं रव्यू लेना था। अपने अदिव्यस्ि समय में से उन्होंने इदं िरा जी के दलए मझे फौरन समय दिया था। इदं िरा जी से उनके सबं धं बहुि मिै ीपूणष थे। अमिृ ा जी राज्यसभा की सिस्या भी रही थीं। मंै इटं रव्यू लने े उनके बगं ले में गया और मेरा स्वागि इमरोज भाई ने दकया। इमरोज अत्यिं िालीन और मिृ ल व्यवहार वाले िदख्सयि ह।ैं वे बहिु बड़े दचिकार हंै और अब िो िायर भी। िब मझे उन्हीं से ज्ञाि हआु था दक उन्होंने घदड़यों के डायलों के बहिु से दडजाइन दचदिि दकये ह।ैं वे मझे घमाविार सीदढ़यों से ऊपर लेकर गए, इिने अिब से दक मझे बहिु संकोच हो रहा था। अमिृ ा प्रीिम ने उस रोज बड़ी सजं ीिगी से इदं िरा जी के दवर्य में बहिु कछ बिाया दजसमंे एक प्रदसद्ध ज्योदिर्ी ने इदं िरा जी के दवर्य में आगाह दकया था दक उनके जीवन पर संकट है दजसे टाला जा सकिा ह,ै उसका उपाय भारिीय स्टंैडडष टाइम को बिल दिया जाए। अमिृ ा जी के अनसार उन्होंने इदं िरा जी से इस दवर्य में बाि भी की दजसे इदं िरा जी ने गंभीरिा से सना और दवचारा। इदं िरा जी ने ऐसा करने से इकं ार दकया और सब दनयदि पर छोड़ने की बाि की .... जब मैं और अमिृ ा जी वािालष ाप में दनमनन थे, सौम्य इमरोज भाई उसी मध्य कॉफी के िो प्याले और कछ दबदस्कट हमारे समक्ष रख गए, दजस पर अमिृ ा जी ने मेरे मन की बाि उनसे कही दक वे भी हमारे साथ कॉफी पीये।ं वे अपना प्याला ले आए और चपचाप कॉफी पीने लगे और मंै कॉफी के साथ-साथ इमरोज और अमिृ ा प्रीिम के चेहरे के भावों को पीिा रहा। अमिृ ा जी का अनग्रह और इमरोज का समपषण भाव मझे दिख रहे थे, उस बीच अमिृ ा जी और इमरोज जी ने दकसी प्रकािन के दवर्य मंे भी कछ बािंे की। मैं उन इमरोज पर मनध हो रहा था जो अमिृ ा प्रीिम पर बिे ाख्िा मनध थे। इटं रव्यू के उपरािं मैंने उनसे दविा ली और सीदढ़यों की ओर बढ़ गया, पीछे अमिृ ा जी की आवाज़ आई, ‘मैं छोड़ने आऊँ गी िरवाज़े िक’ मनैं े उनसे ऐसा न करने का दनविे न दकया और सीदढ़याँ उिर गया और पनः पलटकर िखे ा वे इमरोज के साथ नीचे उिर रही थीं, इमरोज उन्हंे ऐसे ला रहे थे जसै े कोई माली फू लों को सहजके र ला रहा हो। दविरे ्ांक छपने पर मैं अमिृ ा जी को िेने गया िब भी प्यादलयाँ इमरोज ही लाए थे। उस दिन अमिृ ा जी ने अपने सूफी-सिं दवर्यक कायष की बहृ ि् चचाष की दजस िौरान मंैने उन्हें बिाया दक मरे े िािा पंदडि दिलोक नाथ ‘आजम’ उनके बड़े भाई वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 292

293 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पदं डि िगाष प्रसाि ‘सफू ी’ और उनके चाचा पदं डि इलायचीराम जी भी सूफी काव्य रचिे रहे ह।ंै इस पर वे बहुि उत्सादहि होकर बोलीं, ‘मरे े पास िायि पंदडि इलायचीराम का संिभष ह।ै ’ उन्होंने मझसे िीनों मेरे परखों के काव्य सगं ्रह उन्हंे प्रिान करने के दलए कहा। जब मनैं े बिाया दक मरे े िािा ‘आज़म’ जी का साथ अभी भी हंै और वे नब्बे वर्ष के हो चके हंै और अभी भी दलखिे ह,ंै िब वह अत्यिं हदर्िष हईु ।ं मनैं े उनका दजिना सादहत्य उन िीनों का मरे े पास था उन्हंे सौंप आया और फोन पर उनकी बाि िािाजी से करवाई थी िािाजी भी बहिु ख़ि हएु थे। वे अमिृ ा जी के सादहदत्यक क़ि से परू ी िरह वादकफ़ थे। यह मरे ी अमिृ ा प्रीिम जी ने हुई आदखरी मलाक़ाि थी। 2005 ई॰ मंे वे कहने को ससं ार से दविा हुई ंलेदकन वो आज भी हमारे साथ ह।ंै इमरोज भाई के िब्िों में ‘उसने दजस्म छोड़ा है साथ नहीं! वह अब भी दमलिी है ..... इमरोज ने इश्क के ििष को सहा अथवा नहीं दकं ि अमिृ ा प्रीिम के िब्िों मंे, ‘उम्र भर िा इश्क बआे वाज़ ह/ै हर मरे ा ननमा मरे ी आवाज़ ह/ै हरफ मरे े िरफ़ उठ िे हन इव/ंे सलगिंे इन राि भर िारंे दजव।ें उम्र भर का इश्क बेआवाज ह/ै हर मेरा ननमा मरे ी आवाज़ ह/ै मेरे अक्षर िड़प उठिे हैं ऐसे/सलगिे हंै राि भर िारे जसै े। डॉ. हरीि नवल, 65 साक्षरा अपाटषमंटे स, ए-3 पदश्चम दवहार, नई दिल्ली-110063 9818999225 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 293

294 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 सावहवत्यक र नाए:ँ कविता मोतीलाल िास की कविता अदभिाप बहिु चपके स.े वह अक्सर मेरे िम्हारे कांटे बािें करिी रहिी है अपने आप से जब और खोजिी रहिी है िमने िय कर िी है अपने आपको हमारी सीमाएं अपने ही भीिर बाधं िी है िमने कहीं भीिर िक हमारी दृदि ठोक िी है िमने अक्सर उनमें कीलंे उसकी खोज िब गंिे में िब्िील हो जािी है धरा से गगन िक और वह लढ़क जािी है खेि से पहाड़ िक अपने ही आगं न मंे कहां बच पाया है कहीं िरू िक कोई रास्िा जो जा सके अक्सर वह िम्हारे महलों मंे अपने होने के सवाल पर और पा सके िाकिी है िीपक की वो ज्योदि अपने ही आईने को दजससे और उसका चहे रा िायि ही रोिन हो दवभक्त हो जािा है हमारी झोपदड़यां टकड़े टकड़े मंे जब वह जानिी है िमने िय कर िी है आईना झठू नहीं बोलिी हमारी सांसंे यदि बोल पािी िो बारूि के महानों पर कभी नहीं रोिी िाग िी है िमने उनके प्रहार से हमारे सपनों में जब वह आिा दमसाईलों के गोले हर रोज राि को िब वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 294

295 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मीनारों के पार िाकना अपनापन िो हो और भर लेना अपने आचं ल में जब अपनों के बीच उन अनदगनि िारों को अपनी रेखाएं ढूंढिे हंै हम जो िायि दबना छि के िम्हारे आकाि में दृदि िखे िी है कभी चमके ही न हो दवनय से उगलिे आग को एक सपना ही िो है और पिचाप दमटिे जािे हंै सारे रास्िों से अब कहां बची है िब िम अपने अंिस मंे वो आग भले अट्टहास करिे दफरिे हो दक दजससे पर कहीं कोने मंे बझाया जा सके िम भी िाकिे हो पटे के सवालों को उसी आकाि को और टांगा जा सके जहां िम्हारे िारे गायब हैं एक टेंट और िम्हारे खाली हाथ छि की िक्ल मंे सीमा से परे उस भदू म मंे दक्षदिज की ओर बढ़िे ह.ंै जहां अपनों के बीच मोिीलाल िास, दबजली लोको िेड, बडं ामंडा, राउरके ला – 770 032, ओदडिा मो.9931346271/7978537176 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 295

296 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 सावहवत्यक र नाए:ँ कहानी स्पशा पारल [email protected] पदि को मतृ ्यिैया पर िेख मजं होि-हवास खो बठै ी थी । अपने पदि की मतृ ्य का ििष िो था ही, पर इससे अदधक उसे अपने बेसहारा होने का ि:ख सिा रहा था । पदि की अथी उठी नहीं दक सास ने उसे ‘अपने’ घर से दनकाल दिया । “ये चड़ैल मेरे बेटे को खा गयी... ये बच्चा भी न जाने कहाँ से महं काला करा कर लायी है ।” मजं की कोख में पल रहे बच्चे की िरफ इिारा कर के उसने कहा । लदे कन मजं पर लगाये ये आरोप दनराधार थे । पदि से उसे आज िक उपहार स्वरूप ‘मार’ ही दमली थी । हमे िं के जीवन में िो ही कायष थे, िराब पीना और लड़ाई करना । पदि-पत्नी के सखि लम्हों के रूप मंे उसकी स्मदृ ियों मंे धधं लाहट नहीं, अधं रे ा था । उसके जीवन में िहे -सख िून्य समान था । पन्रह वर्ीय मंज का दववाह, दफर एक साल बाि गभवष िी होने पर पदि की मतृ ्य । उस पर भी आत्मसम्मान को चोट पहं चु ािे ऐसे बेबदनयािी आरोप । “मंज... अरी मजं ... क्या सोचिी रहिी ह.ै .. िेरा आधा समय िो यँू बि बने सोचिे हएु ही चला जािा है । साहब आ गये ह,ंै जा चाय बना ले ।” मजं िो जैसे अिीि से विमष ान की सरै कर लौटी हो । जी िीिी, अभी लायी । वह अपने बटे े रमन के साथ दपछले बीस साल से िहर आ कर दकराए के घर मंे रहने लगी है । अपने गजर-बसर के दलए लोगों के घर में काम करने जािी है । वह अपने रमन को खूब पढ़ाना चाहिी ह,ै इसदलए दिन-राि महे नि करिी है । खि अनपढ़ है िो क्या हुआ, रमन के सहारे िो खि के सपनों को पूरा कर सकिी है । जब मजं काम से घर लौटी िो रमन घर मंे ही था । उसे िेखिे ही वह अपने दिन-भर की थकान भूल जाना चाहिी है । पर इस चाह को वह परू ा नहीं कर पािी । रमन हमेिा मोबाईल फोन मंे कछ न कछ करिा रहिा है । इस ‘कछ’ का अथष मजं नहीं जानिी । उसे कहाँ मोबाईल चलाना आिा है । रमन मजं से अदधक समय फोन के साथ ही गज़ारिा था । मजं ू को उसकी यह आिि परेिान भी करिी थी । “बटे ा सारा दिन िू इस फोन मंे लगा रहिा ह,ै कभी पढ़ भी दलया कर । िरे े दलए ही मंै इिनी मेहनि कर रही हू.ँ .. इसी आस में दक िू एक दिन ज़रूर मरे ा नाम रौिन करेगा ।” मोबाईल से ध्यान हटा कर रमन कहिा है “हाँ मां िू दचंिा मि कर, मंै सारा दिन पढ़ाई ही करिा हूँ । िझे नहीं पिा फोन मंे भी पढ़ाई होिी है ।” रमन की बाि पर दवश्वास करने के अलावा उसके पार कोई अन्य दवकल्प भी नहीं था । इसी िरह सनहरे भदवष्ट्य के इिं ज़ार मंे मजं अपने बटे े के साथ जीवन दनवाहष कर रही थी । अगली सबह जब वह स्नानघर से दनकली िो िरवाजे पर राधशे ्याम जी खड़े थे । जब वे मंज को ललचाई नजरों से िेखने लगे िो मजं ने अपनी त्यौररयां चढ़ाई । वे कछ सकपका कर बोले “क्या बाि है मजं रानी आज कल दिखायी नहीं िेिी ?” मजं दबना कछ बोले ही अपने काम मंे लग गयी । “इस महीने का दकराया अभी बाकी ह,ै कब िोगी ? भई ऐसे िो गज़ारा नहीं हो पाएगा ।” मंज ने कहा “मनैं े दकिनी बार कहा है पैसे आिे ही आपको दभजवा िंगू ी । आपको इस उम्र में यहाँ आने का कि नहीं करना पड़ेगा, रमन के हाथ दभजवा िगंू ी ।” वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 296

297 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 इिना कहकर मंज दफर अपने काम मंे लग गयी और राधेश्याम जी की िाल न गलने पर वे भी बड़बड़ािे चले गये । राधेश्याम जी का इस िरह धमकना पहली बार नहीं था । आए दिन वे उस पर अपनी दगद्ध दृदि गढ़ाए रखिे, कब मौका दमले और कब... । मजं ने कभी िसू रा दववाह करने के बारे मंे नहीं सोचा, ऐसा नहीं था । पर मजं को सब उसकी िहे को चाहने वाले ही दमले, कोई जीवनसाथी कहलाने लायक नहीं दमला । जो उसे सच्चे मन से अपनाना चाहिा हो । रमेि उसकी सहले ी दप्रया का भाई था । िोनों एक-िसू रे को चाहने लगे थे । पर एक दिन रमिे ने कहा “िू रमन को दकसी अनाथाश्रम में छोड़ कर मझसे िािी कर ले ।” ये सनकर मजं का प्रेम-महल मानो ढह सा गया । उसने रमिे का प्रस्िाव अस्वीकार कर दिया । उसके बाि उसने दववाह का ख्याल अपने मन से दनकाल फें का । उसकी िदनया स्वयं उसके और रमन के बीच दसमट के रह गयी । एक दिन मंज काम से बहुि थकी-हारी लौटी थी । उसने जल्ि सारा काम दनपटा कर अपने और रमन के दलए भोजन बनाया, रमन की राह िखे िे–िखे िे न जाने कब उसकी आँख लग गयी । अक्सर रमन घर िेर से ही आिा था । वापस आ कर यही कहिा दक मैं िोस्ि के घर पढ़ रहा था । अचानक िरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ हुई । मंज ने िरवाज़ा खोला और रमन को डाटं लगायी “कहाँ था िू ? इिनी िेर से िरे ी बाटं जोह रही हूँ ?” डांट को लगभग अनसना करिे हुए वह अन्िर आ गया । मंजू ने उसे दफर बोला “िू मेरी बाि सन रहा है ?... कहाँ था अब िक ?” िब अचानक रमन ने मां को गले लगा दलया और माफ़ी मांगने लगा । न जाने क्यों मजं को यह स्पिष और दिन से कछ अलग लगा । दफर उसने सोचा यह उसका भ्रम होगा और उसे खाना परोस कर वह भी खाना खाने बैठ गयी । इस बीच िोनों के मध्य कोई वािालष ाप नहीं हुआ । मानों िोनों ही एक-िसू रे से नज़रे चरा रहे हों । आज मजं ने अपना दबस्िर भी रमन से थोड़ा हटकर लगाया । अपने ही बेटे के स्पिष से आज उसका मन आिदं कि हो रहा था । मजं ू उस स्पिष की अजनबीयि को भली-भादं ि पहचान सकिी है । ये सपना नहीं था, ये हकीकि थी । ‘वह’ कोई और नहीं उसकी अपनी संिान है । अपनी ही संिान से उसे अपनी दहफाज़ि करनी पड़ रही है । एक मां को लेकर भी दकसी के मन मंे वासना का कीड़ा दबलदबला सकिा है ? सोच कर ही उसे उबकाई आने लगी । उस दघनौने स्पिष को याि कर उसके बिन पर चीदटयाँ िौड़ने लगी । उसके अपने बटे े ने मां-बटे े के पदवि ररश्िे को दकिने अपररदचि सा ररश्िा बना दिया । यह अजनबीयि क्या कभी िरू हो पाएगी ? ये वही रमन ह,ै दजसे उसने अपना िधू दपलाया ह,ै उसी ने इस दनमषल स्पिष को मैला कर दिया । कपड़े िो अक्सर मैले करिा ही था, कपड़े आसानी से धल जािे थे, पर अब मंज क्या करे । इस मैल को वह कै से साफ़ करे ? वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 297

298 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पस्तक समीिा मध्यकालीन काव्य की नूतन मीमासं ा वप्रयकं ा वमश्रा िोधाथी दिल्ली दवश्वदवद्यालय, दिल्ली 110007 Email id : [email protected] मध्यकालीन कदविा का पनपष ाठ डॉ. करुणािकं र उपाध्याय का सद्यः प्रकादिि अलोचनात्मक ग्रंथ है दजसमंे सम्पूणष मध्यकाल को नये दसरे से दवश्लेदर्ि दकया गया ह।ै इस ग्रंथ मंे विषमान िौर की पाठ के दन्रि आलोचना पद्धदियों के आलोक में सम्पणू ष मध्यकालीन कदविा को नये संिभो मंे पढ़ा गया ह।ै साथ ही उसके ऐसे अनछए और अनिखे े संिभो को उद्घादटि दकया गया है दजस पर अभी िक आलोचकों का ध्यान नहीं गया ह।ै लेखक ने मध्यकालीन कदविा मंे अदभव्यक्त दवचारों और िािषदनक पद्धदियों ,भाव संपिा और भदक्तभावना का बिलिे सिं भों के आलोक मंे गहन दवमिष प्रस्िि दकया ह।ै हमारा मध्यकालीन सादहत्य आििष-यथाथष और लोक-जीवन के गदििील संिभों का ऐसा अद्भि आख्यान है जो बिलिे जीवन संिभों के अनरूप अपनी नई व्याख्या की मांग करिा ह।ै इस दृदि से प्रस्िि पस्िक को पढ़ना समीचीन होगा। डॉ. उपाध्याय ने प्रथम अध्याय के अन्िगषि'भदक्तकाव्य और उत्तर आधदनकिा' का दविि दववेचन दकया ह।ै इन्होंने उत्तर आधदनकिा के अदभलक्षणों को ध्यान में रखकर दलखा है दक ,\"भदक्तकाव्य को लके र एक खला दवमिष आज के उत्तर-आधदनक िौर की अपररहायष माँग ह।ै भदक्तकाव्य मंे अथष की ऐसी अनके सनी-अनसनी अनगूजँ ें हैं दजन्हंे सनन-े सनाने का कायष उत्तर आधदनक समीक्षा पद्धदियाँ बखूबी कर सकिी ह।ंै यह दहन्िी सादहत्य के इदिहास का सवादष धक महत्वपणू ष रचनात्मक आन्िोलन है दजसे भारिवर्ष का प्रथम नवजागरण भी माना जा सकिा ह।ै गण और पररमाण िोनों ही दृदियों से यह सादहत्य इिना उत्कृ ि और दवपल है दक उसकी श्रषे ्ठिा को लदक्षि करने के दलए ‘स्वणष यग’ जसै े िब्िबन्ध का प्रयोग दकया जािा ह।ै इसमें नवजागरण की प्रदिध्वदन िथा िदलिों-पीदड़िों, उपेदक्षिों के प्रदि अिरे ् संवेिनिीलिा पररलदक्षि होिी ह।ै भारिवर्ष के इदिहास में यह वह िौर है जब समाज के सबसे उपदे क्षि वगष के रचनाकार सजृ न के क्षेि के क्षिे मंे दविरे ् रूप से सदक्रय दिखलाई पड़े जो उत्तर-आधदनकिा का भी एक महत्वपूणष अदभलक्षण ह।ै भदक्तकाव्य िास्त्रीय रुदढ़यों, सामादजक वजानष ाओ,ं धादमकष संकीणषिाओं के दवरुद्ध लोक चिे ना के स्वाभादवक उन्मेर् का प्रदिफलन ह।ै काव्य अपने समस्ि भाववैभव और िास्त्रसम्पन्निा के साथ इस काल मंे ही प्रकट हुआ। इसमें न के वल मध्ययगीन समाज, ससं ्कृ दि, सामन्िी समाज की दवसंगदि और सादहत्य की अदधकिम प्रवदृ त्तयाँ मौजूि हंै अदपि यग-यगान्िर को प्ररे रि-प्रभादवि और रसमनन करने की क्षमिा ह।ै इसकी दवदवधिापूणष सजषनात्मक उपलदब्ध, जीवन और जगि के लौदकक-अलौदकक आयामों का दचिण िथा जीवन मलू ्य और सन्िेि सावभष ौम-िाश्वि महत्व के अदधकारी ह।ै इसमें ििनष काव्य सम्पदत्त बन गया है और िोनों का अन्िराल दमट गया ह।ै भदक्तकाव्य में बहिु कछ ऐसा है जो काव्य समीक्षा के बिलिे प्रदिमानों के समक्ष चनौिी प्रस्िि करिा है िथा हर नई दवश्लेर्ण पद्धदि को समीक्षण के दलए सजनष ात्मक और बौदद्धक उत्तजे ना प्रिान करिा ह।ै आज हम उत्तर-आधदनक समीक्षात्मक प्रदिमानों के आधार पर उसका पनपाठष ियै ार करके उक्त चनौिी को स्वीकार कर सकिे ह।ंै भदक्तकाव्य कभी अप्रासदं गक नहीं हो सकिा।\"1 डॉ. उपाध्याय ने सम्पूणष भदक्तकाव्य के बिलिे सिं भष में मूल्यांकन करने के उपरान्ि यह दसद्ध दकया है दक वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 298

299 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ,\"भदक्तकाव्य भारिीय सभ्यिा, ससं ्कृ दि, धम,ष ििषन ,जादि, समाज िथा राष्ट्र के चैिन्य िथा अदस्मिाबोध को उद्भादसि करने वाला सादहत्य ह।ै इसमें सत्यम् दिवम् और सन्िरम् िथा प्रये एवं श्रये का दवलक्षण सामजं स्य हआु ह।ै \"2 इसी क्रम मंे िसू रा अध्याय 'वशै ्वीकरण के िौर मंे संि नामिवे के काव्य की प्रासदं गकिा' का दववेचन दकया गया ह।ै लखे क का मानना है दक संि नामिेव अपनी काव्यवाणी द्वारा भारिवर्ष के दवदवधिापूणष जीवन और सामादजक मलू ्यों के दनरूपण मंे व्याप्त करीदियों िथा आडंबरों का जो दवरोध दकया है वह आज और भी प्रासंदगक ह।ै आपने कबीर पर सिं नामिवे के प्रभाव का भी सोिाहरण उल्लेख दकया ह।ै 'भारिीय योग परम्परा और कबीर' िीर्कष अध्याय मंे यह बिाया गया है दक ,\"यदि आज अन्िराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है और वह दवश्वस्िर पर प्रचदलि प्रसाररि हो रहा िो इसमंे कबीर जसै े कदवयों एवं योदगयों की महत्वपणू ष भूदमका रही ह।ै आज संपूणष दवश्वसमिाय इसके महत्व से पररदचि होकर इसकी प्रासदं गकिा को और भी बर प्रिान कर रहा ह।ै \"3 डॉ. उपाध्याय ने कबीर सादहत्य में दचदिि गरु के स्वरूप का विमष ान सिं भष में आकलन भी दकया ह।ै इनका मानना है दक,\" कबीर दकसी भौदिक गरु के बजाय सिगरु की चचाष करिे हैं जो िह्म िक ले जाने का रास्िा है ।\"4 इसमें लखे क ने विमष ान समय और समाज की सापेक्षिा मंे कबीर के सद्गरु संबंधी दवचारों का दवश्लेर्ण दकया ह।ै इसके उपरान्ि 'आचायष रामचन्र िक्ल के कबीर सबं धं ी मलू ्याकं न का पनपष ाठ' ियै ार दकया गया ह।ै इनका मानना है दक,\" आचायष िक्ल ने दजस िरह कबीर की प्रखर प्रदिभा की प्रिंसा करिे हएु उनके काव्य के मादमकष स्थलोुेुं की पहचान की िथा उसमंे दनदहि लोकधदमषिा को सराहा है वह इस बाि का प्रमाण है दक उन्होंने कबीर का जो पाठ िैयार दकया था आज भी प्रामादणक एवं प्रासंदगक ह।ै ऐसी दस्थदि मंे उनके योगिान को सही सिं भष में िेखने की जरूरि ह।ै \"5 इसी क्रम मंे' सफू ी काव्य का समाजिास्त्र एवं विषमान समय' नामक अध्याय आिा है दजसमें लेखक ने एकादं िक समझे जानेवाले सूफी काव्य में दनदहि सामादजकिा, लोक समपदृ क्त और मानवीय मूल्यों के दवमिष द्वारा उसके सजनष ात्मक महत्व को रेखादं कि दकया ह।ै इसी िरह जायसी का दवरह वणषन नामक अध्याय में लखे क यह दसद्ध करिा है दक,\" यह उनके काव्य की चरम उपलदब्ध ह।ै प्रेम पि के इस अमर गायक का दवयोग- वणषन ही उन्हंे महाकदवयों की पािं मंे दबठाने के दलए पयापष ्त ह।ै इस दृदि से इनका दवरह वणषन संपूणष दवश्व सादहत्य मंे श्रेष्ठिम स्थान का अदधकारी ह।ै \"6 लेखक जायसी के बाि 'पदिमागष एवं सरू िास 'नामक अध्याय मंे पदि मागष के स्वरूप का दवश्लेर्ण करिे हुए सरू िास के काव्य मंे उपलब्ध उसके उत्कर्ष को उद्घादटि करिा ह।ै यह अध्याय पदिमागष के स्वरूप दवश्लेर्ण की दृदि से अदििय महत्वपणू ष ह।ै डॉ. उपाध्याय के दप्रय कदवयों मंे महाकदव गोस्वामी िलसीिास भी हंै दजन पर इस पस्िक मंे सवादष धक नौ अध्याय ह।ंै सवपष ्रथम' रामायण और रामचररिमानस में प्रदिदष्ठि मलू ्यों की सावषभौदमकिा' को उद्घादटि दकया गया ह।ै इसके उपरािं लेखक ने अनेक उिाहरणों और प्रमाण के साथ रामचररिमानस को आििष सामादजक व्यवस्था का महाकाव्य दसद्ध दकया ह।ै इसी िरह सामादजक प्रदिबद्धिा लोकवतृ ्त नामक अध्याय में लखे क ने िलसी के जीवनबोध एवं भावबोध और सौंियबष ोध की सापेक्षिा मंे उनकी सामादजक प्रदिबद्धिा को रेखांदकि दकया ह।ै लेखक के अनसार वह अदििय व्यापक गहरी और साथकष ह।ै इसी क्रम मंे ' दहिं ी के पहले नारीवािी कदव हंै िलसी' िीर्कष अध्याय आिा ह।ै किादचि् डॉ. उपाध्याय पहले आलोचक हैं दजन्होंने िलसीिास को िकष एवं प्रमाण के साथ दहिं ी का पहला नारीवािी कदव दसद्ध दकया ह।ै लखे क का मानना है दक िलसी के संिभष को समझे बगरै दजन लोगों ने उनको नारी दवरोधी दसद्ध करने का कायष दकया है वे आलोचनात्मक दववके के साथ ईमानिार नहीं ह।ै यह दहिं ी आलोचना की दििा बिलना वाला अध्याय ह।ै इसके उपरांि 'दजसमंे सब रम जाएं वही राम ह'ैं िीर्कष अध्याय आिा है दजसमें लेखक ने राम की नये संिभष में और वजै ्ञादनक व्याख्या की है और यह दसद्ध दकया है दक ऐसा कदवत्वपूणष और सवषगण सम्पन्न व्यदक्तत्व समूचे दवश्व वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 299

300 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 सादहत्य में अदद्विीय स्थान का अदधकारी ह।ै इसी िरह' रामलीला की परम्परा और िलसीिास' नामक अध्याय में रामलीला के दवकास मंे िलसीिास के योगिान का अत्यिं गहरा दवश्लेर्ण करिे हुए रामचररिमानस को रामलीला की परंपरा का मरे ुिडं कहा ह।ै इस पस्िक का सबसे चौंकाने वाला अध्याय 'िलसीिास एवं िाजमहल 'है दजसमंे लखे क ने िलसीिास के वास्िकला सबं ंधी ज्ञान को िाजमहल की वस्िकला से बहुि आगे दसद्ध दकया ह।ै लेखक का मानना है दक\" िलसीिास का वास्िदवर्यक और स्थापत्य कला सबं ंधी ज्ञान िाजमहल की कला से भी बढ़कर था। िलसीिास ने जनक के मंडप दनमाषण की प्रदक्रया का जो दचि खींचा है वह िाजमहल की वास्िकला से बहुि आगे है क्योंदक वे दनपण स्थपदि द्वारा बहुमलू ्य पत्थरों से स्वाभादवक रंगसौंियष प्रस्फदटि करिे हएु के वल भोगों और पदक्षयों का दनमाणष ही नहीं करवािे अदपि उसमंे उन यादं िक दविरे ्िाओं को भी भर िेिे हंै दजसके कारण पवन- संचरण से प्रस्िर के भौरों का गजं ार पदक्षयों से उनका नैसदगकष मधर कू जन अनस्वदनि हो। हवा चलने से पत्थरों के रंग-दबरंगे पक्षी एवं भरे गजं ार कर बठै े, यह िलसी की कला- प्रदिभा का प्रकर्ष ह।ै \"7 इसके साथ ही अगले अध्याय में 'िलसी की भार्ा' का दवदवध संिभो मंे दवश्लेर्ण दकया गया है और उन्हें बहभु ार्ादवि् कहिे हुए यह दनष्ट्कर्ष दिया गया है दक िलसी की भार्ा की सत्यिा और जनसलभिा ने उनकी लोकदप्रयिा को अमरत्व प्रिान दकया ह।ै लखे क ने िलसीिास पर दलखे गए सबसे बड़े अध्यायों 'आचायष कदव गोस्वामी कदव िलसीिास का काव्य दचिं न है दजसमें उनके काव्यिास्त्रीय दचंिन और अविान का दवस्ििृ दवश्लेर्ण दकया गया है ।इसके अन्िगषि िलसी के काव्य की रचना प्रदक्रया उनकी दवश्वदृदि, जीवन दृदि और समीक्षा दृदि को दवश्लेदर्ि करिे हुए उनके काव्य मंे दवद्यमान काव्य स्वरूप,, काव्य हिे , काव्य प्रयोजन, काव्य वस्ि िथा कलात्मक सजृ न की मूल िदक्त का दवश्लेर्ण दकया गया ह।ै लखे क ने िलसी के समाजिास्त्रीय दचंिन और भादर्क दचंिन को स्पि करिे हुए उनके काव्यिास्त्रीय अविान को भी सही संिभष मंे रेखांदकि दकया ह।ै लेखक की दृदि में िलसी का काव्य-दचंिन मौदलक सवांगपणू ष और लोकोपयोगी है सच्चे अथों में आचायष कदव ह।ैं इनके काव्य दचंिन के सम्यक दनवचष न द्वारा हम दहिं ी के स्वायत्त काव्यिास्त्र की अवधारणा को मूिष रूप िे सकिे ह।ंै इसी क्रम 'वैदश्वक सन्िभष में गरु जाभं ोजी के वाणी की प्रासंदगकिा' िथा 'भारिीय पयाषवरणीय दृदि और संि जाम्भोजी का दचिं न 'िीर्कष आलेख आिा है दजसमें लखे क ने भारिीय पयावष रणीय दृदि का दवकास दिखलािे हुए जाम्भोजी द्वारा प्रवदिषि उन्िीस दनयमों के आलोक मंे वदै श्वक पयाषवरण का दवमिष प्रस्िि दकया ह।ै साथ ही विमष ान पररदृश्य में सिं वील्होजी के काव्य की प्रासदं गकिा का दनवचष न भी दकया ह।ै लेखक ने भदक्तकालीन कदवयों का काव्य दचिं न नामक अध्याय में भदक्त काल के सभी महत्वपणू ष कदवयों का काव्यिास्त्रीय दचिं न प्रस्िि करिे हुए यह दनष्ट्कर्ष दिया है दक इसके सही दववचे न द्वारा दहिं ी का स्वििं काव्य िास्त्र दनदमषि हो सकिा ह।ै इसी िरह रीदिकालीन कदवयों का काव्य दचिं न भी प्रस्िि दकया गया ह।ै लेखक ने रीदिकालीन काव्यदचिं न के महत्व को प्रदिपादिि करिे हएु दलखा है दक-,\"इसने न के वल दहिं ी की काव्यिास्त्रीय परम्परा को गदि प्रिान की अदपि उसमें एक िास्त्रीय दवमिष का वह जज्बा भी भर दिया दजसके कारण वह समस्ि आधदनक भारिीय भार्ाओं मंे नेितृ ्वकारी भूदमका मंे आ गई।इस क्षेि मंे कोई भी भारिीय भार्ा उसके समक्ष नहीं ठहरिी क्योंदक गण और पररमाण िोनों ही दृदियों से दवदिि दििाओं में दजन लक्षण ग्रथं ों का दनमाषण हुआ वे अपना प्रदिमान आप ही ह।ैं \" 8 इसके उपरांि 'मनीर्ी परंपरा के सादहदत्यक आचायष दनत्यानन्ि िास्त्री' िीर्कष आलेखक आिा है दजसमंे िास्त्री जी को सजनष ात्मक प्रदिभा के साथ-साथ आलोचनात्मक प्रदिभा का धनी भी बिलाया गया ह।ै इस पस्िक मंे 'मराठी रामकाव्य का स्वरूप दवश्लेर्ण भी दमलिा ह।ै इसमंे मराठी राम काव्य के दवकासमान वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 300


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