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JANKRITI ISSUE 78-80

Published by jankritipatrika, 2022-01-23 18:13:39

Description: JANKRITI ISSUE 78-80

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51 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ससिं ्कृ वत ,ंै इस आवदिासी समाज की कल्पना गीत और नतृ ्य के वबना न ीं कर सकते । य उनका जीिन ।ै प्रकृ वत से ,उत्सि से ,पिव से ,त्यो ार से आवदिासी समाज का स ज सिबं िंध ै ।प्रकृ वत पजू ा का एक वनवित दशवन इनके पास ।ै यवद उनके जीिन मलू ्यों को विश्व के सामने लाया जाया तो य विश्व कल्यार् के वलए कारगर सावबत ो सकता ।ैं इनके दशनव मंे सामूव कता, स जीविता, स अवस्तत्ि जैसे मूल दशनव ।ैं आवदिासी दशनव मलू रूप में प्रकृ वत िादी ।ै ितमव ान पजिूं ीिादी समाज प्रकृ वत के साथ जीिन की कल्पना शायद न ीं कर पा र ा ै वजसकी िज ै वक ि आवदिासी समाज को भी िशै ्वीकरर् की दौड़ में जोड़ दते ा ।ै जनजातीय समाज की सिपं वि को वथयाने के वलए बा री समाज उसे तर -तर के अंिधविश्वासों में ढके लता ।ै कविता मंे डोडे िैद्य वबरसी को बताते ंै वक चड़ु ैल और डायन का कोई अवस्तत्ि न ीं ोता ।ि सिा के िचवस्ि का साधन ।ै उत्पीड़न का माध्यम ै ।सपिं वि लालसा का प्रवतवबंिब ।ै सब वमलकर शोर्र् का तंति ्र फै ला र े ैं आवदिासी लेवखका रोज के र के ट्टा आवदिासी दशवन को इस तर से अवभव्यक्त करती -ंै ''अब म ये क गंे े वक जीिन दशवन और आजीविका का ग रा संिबंिध ।ै और आवदिावसयों की आजीविका श्रम पर आधाररत र ी ।ै चा े िो खते में ,ंै चा े िो जगिं ल मंे ।ैं लेवकन िो श्रम करके ी अपना जीिनयापन करते ।ंै और कवठन श्रम प ाड़ में, जगंि ल म,ंे नवदयों म,ंे घावटयों में उन्द् ें ब ुत श्रम करना पड़ा ।ै इस बीच में जो भी बाधाएंि आती र ी ैं उन्द् ें कभी सुख से कभी दखु से व्यक्त वकया ।ै ये जो मौवखक परंिपरा का साव त्य ,ैं सभी भार्ाओिं में िो सिंकवलत ोकर प्रकावशत ो र ा ।ैं अब जरूरत ंै उनको ढूंढि कर उनमंे उनके जीिन दशवन को खोजने की।\"(2) भूमंडि लीकरर् का प्रभाि इस खबू सरू त समाज दशवन िाले समू पर भी पड़ा ।ै आवदिासी समाज में आवदिासी िी अपने कई अवधकार रखती ,ंै लवे कन िशै ्वीकरर् के इस दौर मंे आज िी के िल भोग करने की िस्तु मात्र समझी जाता ,ंै ि अपने पररिार ि समाज के प्रवत मशे ा समवपतव भाि रखती ,ंै ि अपना पूरा जीिन न्द्यौछािर कर दते ी ैं उनको सिंि ारने मंे लवे कन आज ि अपने ी समाज में प्रतावड़त की जा र ी ।ंै सिथं ाली किवयत्री वनमवला पुतलु अपनी कविता में एक िी के स्िर को इस तर से अवभव्यक्त करती -ंै ''तन के भगू ोल से परे एक िी के मन की गािठं े खोल कर कभी पढा ै तुमने उसके भीतर का खौलता इवत ास? पढा ै कभी उसकी चपु ्पी की द लीज पर बैठ शब्दों की प्रतीक्षा में उसके चे रे को?\" (3) वनमवला पतु लु अपनी कविता ‘क्या ूँ मंै तमु ् ारे वलए’ में भी िी सशक्तीकरर् के स्िर को बलु दुंि करती ुई क ती -ैं ''क्या ँू मंै तमु ् ारे वलए, एक तवकया, वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 51

52 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 वक वसर वटका वदया, कोई खंिटू ी, वक ऊब उदासी थकान से भरी कमीज उतार कर टािगं दी, या आगंि न मंे तनी अरगनी, वक घर-घर के कपड़े लाद वदए, कोई घर वक सबु वनकला, शाम लौट आया। (4) आवदिासी किवयत्री िदिं ना टेटे ने अपनी कविता औरत-1 मंे जनजातीय समाज की मव लाओंि के सघिं र्व को इस प्रकार से प्रस्ततु वकया ै :- ''कोई-कोई मोचे पर खड़ी लड़ र ी औरत भीड में अके ली, अनिरत थकती-टूटती वफर मजबतू करती खदु को खुद से। खेतों, खवल ानों में जिंगल मरूभवू म में घर मंे आंगि न मे।ं '' (5) इन्द् ीं लेखकों की परिंपरा मंे अनुज लगु नु शावमल ,ैं जो समय और समाज को बदलने को कृ तसकंि ल्प ।ंै ि मानते ैं वक दवु नया के सारे भेद उपवनिशे िादी ससिं ्कृ वत के द्वारा तैयार वकए गए ।ैं सवृ ि के आरिंभ से ी मनषु ्यों की दो दवु नया र ी -ै एक उपवनिशे िादी सिसं ्कृ वत पर यकीन रखने िाली दवु नया और दसू री स जीवियों का संिसार। िर्,व िगव और वलिंग उपवनिेशिावदयों की सासिं ्कृ वतक उपज ।ै इस कविता मंे वबरसी के नते तृ ्ि और सघंि र्शव ीलता के द्वारा िी नेततृ ्ि को सामने लाने का म त्िपूर्व प्रयास वकया गया ।ै उसके नते तृ ्ि मंे ी समान विचार िालों की स भावगता के द्वारा नये स जीिी समाज के वनमारव ् की पररकल्पना ।ै डोडे वबरसी से क ते ैं – “ मारे गर्तितं ्र के आधार गीत ैं गीत ी मंितर ैं रोग वनिारक प्रमुख और्वध ंै गीतों का ह्रास गर्िंतत्र का ह्रास ै गीत रव त गर्ततिं ्र प्रभओु िं की व्यिस्था ै प्रभतु ाओिं के वखलाफ मैं तुम् ें मतिं र दगिंू ा, गीत सौंपगिंू ा ि ी ोगा रोगों से मवु क्त का आधार।”6 वबरसी कविता में अपने कु शल नेततृ ्ि क्षमता का पररचय देती ।ै वबरसी का सबंि ोधन अत्यंित प्रभािशाली ै – वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 52

53 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 \"जाओ, जाओ ुकनू जाओ, जाओ जोना वजतनी जाओ वबधनी जाओ सब जाओ लांघि कर इवत ास की दीिारें / दशवन की खाई और सब प ाड़ों को... ो स जीविता का सामवू क गान। सनु ो रे े वटरिंूग सुनो रे े असकल तलिार चमकाते एु मशाल वलए एु क ांि जा र े ो? जदरु के वलए जा र े ो करम के वलए जा र े ो लड़ने के वलए जा र े ो वभड़ने के वलए जा र े ो क ांि जा र े ो? सुनो रे े वटरंिूग सनु ो रे े असकल सिगं ी सगोवतयों को न्द्योता देते जाओ।”7 ‘बाघ और सुगना मुण्डा की बेटी’ कविता से एक बात स्पि ोती ै वक आवदिासी जीिन प्रकृ वत और मनषु ्य का रागात्मक सम्बन्द्ध शाश्वत ।ै प्रकृ वत के साथ साथ ‘बाघ और सगु ना मणु ्डा की बटे ी’ कविता में िी के श्रम, सघिं र्,व शोर्र् सब कु छ का वचत्रर् वमल जाता ।ै मडिुं ा समाज की कविता क ना इसे स ी न ीं ोगा य कविता परू े विश्व की वचंति ा करती ।ै जिंगल से ,नदी से ,पेड़ से, जुगनू से ,वततली स,े प्रकृ वत से जड़ु ी य कविता स जीविता की बात करती ।ै इस कविता की नावयका वबरसी अपनी जड़ो से जड़ु ी ,ै लवे कन बा री खतरों से ि अनजान ।ै लवे कन ि भयभीत न ीं ।ै एक आवदिासी िी ोने के नाते उसे सघिं र्व स्िीकार :ै - “ओ गोमके ! मझु े जल्दी बताओ ि कौन ै ? क ािं से आया था ? वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 53

54 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मेरा खनू मरे ी आखंि ों से टपक र ा ै मरे ा धनुर् तन गया ै मुझे उसका पता चाव ए मझु े उसका स ी वठकाना चाव ए।”8 आवदिासी अवस्मता की लड़ाई में आवदिासी मव लाएूँ परु ूर्ों से पीछे कभी न ी र ीं। फू लों, मकी, वसनगी दई इसकी उदा रर् ।ैं वसनगी दई ने मीर कावसम के वखलाफ सशि संिघर्व वकया था। आवदिासी अवस्मता की रक्षा मंे वियाूँ मेशा बराबर की भागीदार र ी ।ैं इन्द् ीं िीरागंि नाओिं की प्रवतवनवध ै ‘वबरसी’। आज की बदली ुई पररवस्थवतयों में ‘वबरसी’ के समक्ष कवठन चनु ौती ।ै सघिं र्ों के सामने ि घबराती न ीं ।ै य शवक्त वबरसी को वपता से भी वमली ।ै सगु ना मुण्डा अपनी बवे टयों को बेटों से कम न ीं मानते थे। आवदिासी समाज मंे स जीविता उसका मखु ्य आधार ,ै जो वकसी भी तर की असमानता को प्रश्रय न ीं दते ी। उनकी बेवटयाूँ घघूँ ट के नीचे स म कर जीिन न ी जीती, िे योद्धा एिंि बवलदानी ोती ।ंै अनजु लुगनु वलखते :ैं - “सगु ना मणु ्डा की बेवटयाँू घूँघट के नीचे स म कर न ी जीती ंै िे तो फरसे और धनरु ् के साथ बवलदानी ंै सुगना मणु ्डा अपनी बवे टयों को बेटों से अलग न ीं करता ।ै ”9 कविता के पात्र रीडा, वबरसी को समझाते ंै वक ितवमान चनु ौती वसनगी दई के समय के चनु ौती से अलग -ै “सुनो वबरसी! य इतना आसान न ीं ै समय के साथ कायिव ाई के तरीके भी बदल जाते ै और चनु ौती भी तुम् ारी चनु ौती ि ी न ीं थी जो वसनगी दई की थी।”10 वसनगी दई जैसी िीर योद्धा िी मुगल सने ा के साथ मदै ान मंे अके ले ी लड़ती ।ैं ग्रेस कु जुर अपनी कविता में वसनगी दई को याद करते एु व्यक्त करती :ंै - “अगर अब भी तमु ् ारे ाथों की उंिगवलयाूँ थरथराई तो जान लो मैं बनूगिं ी एक बार और वसनगी दई।”11 अनजु लुगनु की कविता ‘बाघ और सगु ना मुण्डा की बटे ी’ की नावयका वबरसी अपने पररजनों की लाशें देखकर वसनगी वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 54

55 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 दई बनने के वलए तयै ार -ै “ओ ड़म! मंै और क्या कर सकती ँू जब मरे ी ी आखूँ ों के सामने मरे े पररजनों को लाशंे वबछी ,ंै क्या करना चाव ए मुझ?े क ाूँ ै ि ”12 आवदिासी िी की प्रवतवनवध वबरसी लैंवगक भेद न ीं मानती ।ै संघि र्व को जीिन मानने िाली य िी वसफव इस बात पर पीछे न ीं टने िाले वक ि वबरसा मुंडि ा की बटे ी ै बटे ा न ीं:- “य क्या क र े ?ै म सुगना मणु ्डा की बवे टयाँू ैं उनके बेटों के सामने बेवटयाूँ न ीं उनके बेटों की संिगी बेवटयाूँ ।”13 अनुज लगु ुन ‘बाघ और सगु ना मुण्डा की बटे ी’ कविता में वपतसृ िा को विर्ार्ु बताते ुए इसे मुवक्त के रा मंे घातक मानते ंै । लेखक मानते ैं वक आवदिासी मुण्डा समाज में लंैवगक भेद न ीं र ा ,ै लवे कन अब मातसृ िात्मक पीढी को धीरे-धीरे समाप्त वकया जा र ा ।ै वजससे मातसृ िा कमजोर पड़े और वपतसृ िा का विर्ार्ु समाज मंे फै ल सके । अपनी काव्य नावयका से सििं ाद स्थावपत करते एु िे क ते ंै वक तमु स ी ो वबरसी और लवैं गक भेद पर तुम् ारा य आिेश मारी मातसृ िा का ी अिशेर् ै जो र बार र तरफ से छीना जा र ा ै ।इसे नोच-नोच कर वनगला जा र ा ै । और य भी सच ै वक जनव त के वलए उठाए गये तुम् ारे कदम पर सबसे प ले तुम् ारे लोगों के बीच से ी उूँगली उठेगी । जनजातीय समाज की परंिपरा वजतनी समदृ ्ध र ी ै उसे नि करने मंे अपने लोगों ने भी कम योगदान न ीं वदया ।ै जनजातीय समाज मंे िी को संपि वि का अवधकार मेशा से र ा ै य मातसृ िात्मक पररिशे समाज के उत्थान मंे भी स ायक र ा ।ै आज आवदिासी मणु ्डा समाज मंे वियों के विरूद्ध सिाओंि का उदय घातक ोता जा र ा ।ै इस समाज की प्रचवलत धारर्ा थी वक अगर कोई लड़की वजसके माता-वपता न ीं ।ैं अवििाव त र ना चा ती ।ै तो उम्र भर ि सम्पवि की अवधकररर्ी र गे ी। उसके मतृ ्यु के उपरान्द्त सब कु छ समाज में स्तान्द्तररत ो जायगे ा। य फै सला पिचं ायत का ोता -ै “और यवद अवििाव त र ना चा ती ै तो उम्र भर ि सम्पवि की अवधकाररर्ी ै मतृ ्यु उपरान्द्त सब कु छ समाज मंे स्तान्द्तररत ो जायेगा अब वबवटया ममु वु की कथा क ी न ीं दो रायी जायेगी वियों के विरूद्ध सिाओंि का उदय घातक ।ै ”14 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 55

56 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 अनजु लुगनु की कविता ‘बाघ और सगु नु ा मुण्डा की बेटी’ समाज मवु क्त की आकांकि ्षा वलए एक बड़ी कविता ।ै ‘बाघ’ का सफल रूपक कवि ने य ांि गढा ।ै एक बाघ, उसका स जीिी ै तो दसू रा, पिजंू ीिादी सरिं चना का साम्राज्यिादी बाघ ।ै अपने स चर, स जीिी बाघ और साम्राज्यिादी बाघ के बीच इस कविता की नावयका ‘वबरसी’ तमाम चनु ौवतयों के साथ सिंघर्शव ील ।ै उसकी य छवि कविता की एक मजबतू कड़ी ।ै य कविता समाज का ध्यान आकृ ि करने मे सफल ।ै कविता के माध्यम से आवदिासी वियों की वजन्द्दगी का सच अनभु ूत वकया जा सकता ।ै तनष्कर्व – ‘बाघ और सगु ना मुण्डा की बेटी’ कविता में आवदिासी समाज की त्रासदी के साथ िी की पीड़ा भी दजव ुई ।ै संिस्कृ वत,समाज,धमव और वपतसृ िा की संिरचना मंे िी को उसके प्रवतरोध के वबना कु छ भी प्राप्त करना असभिं ि ।ै शारीररक सरिं चना मंे िी की जावत एक ोने पर भी पररवस्थवत विशरे ्, उसकी आजीविका, आवथवक सबलता, वशक्षा और विवभन्द्न संिस्कृ वतयों के कारर् उनका यथाथव वभन्द्न ोता ।ै आवदिासी वियािं अपनी अवस्मता-अवस्तत्ि को लके र वकतनी संिघर्वशील ैं य कवि ने वबरसी के माध्यम से प्रस्ततु वकया ै । सदं र्व सू ी - 1. िदंि ना टेटे, आवदिासी दशवन और साव त्य, विकल्प प्रकाशन- 2016, प.ृ 33 2. ि ी, प.ृ 54 3. वनमवला पुतुल, नगाड़े की तर बजते शब्द, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी वदल्ली, 2005, प.ृ 8 4. वनमवला पतु ुल, नगाड़े की तर बजते शब्द, भारतीय ज्ञान पीठ, 2005, प.ृ 28 5. िदंि ना टेटे, कोनजोगा, प्यारा के रके ट्टा फाउण्डेशन, राचंि ी, 2015, प.ृ 35 6. अनजु लगु नु , बाघ और सुगना मणु ्डा की बेटी, िार्ी प्रकाशन, नयी वदल्ली, प0ृ -71 7. अनजु लुगुन, बाघ और सगु ना मणु ्डा की बटे ी, िार्ी प्रकाशन, नयी वदल्ली, प0ृ -109 8. अनजु लुगुन, बाघ और सुगना मणु ्डा की बटे ी, िार्ी प्रकाशन, नयी वदल्ली, प0ृ -49 9. ि ी, प0ृ -40 10. ि ी, प0ृ -50 11. रमवर्का गपु ्ता, आवदिासी स्िर और नई शताब्दी, िार्ी प्रकाशन, नयी वदल्ली, प0ृ -23 12. अनुज लगु ुन, बाघ और सुगना मणु ्डा की बेटी, िार्ी प्रकाशन, नयी वदल्ली, प0ृ -50 13. ि ी, प0ृ -50 14. ि ी, प0ृ -94 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 56

57 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ‘ माई ’ : स्त्री संिेिना का ज्िलंत िस्तािेज़ आवतरा कृ ष्ट्णन िोध छाि कोदच्चन दवज्ञान एवं प्रौद्योदगकी दवश्वदवद्यालय 8589031047 [email protected] साराशं नारी िेतना के सन्दभव मंे र्गीतांिली िी का ‘माई’ उपन्यास एक सराहनीय प्रस्तुवत ह।ै इस उपन्यास के ज़ररये उन्होंने नारी अवस्मता को िहुत र्गहराई के साथ परखने की कोवशश वकया ह।ै एक सयं ुि पररिार की रीढ़ की हड्डी िनी हुई स्त्री उपन्यास के कें द्र में है िो अपना परू ा िीिन पररिार के वलए समवपतव वकया ह।ै औपवनिवे शक सामतं िादी मूल्यों से वघरे हएु एक पररिार के िीि के िीिन संघषव ही उपन्यास का मुख्य विषय रहा ह।ै इस उपन्यास के ज़ररये नारी िते ना के विवभन्न पक्षों को प्रस्तुत करने के साथ-साथ एक माँा के िीिन की विडंिनाओं और ििे ैवनयों को सही मावमवकता से कार्गज़ पर उतारने का सफल प्रयास वकया ह।ै तीन पीढ़ी की नाररयाँा और तीनों के मलू ्य और मान्यताएाँ और उसके िीि के माई की आकु लताएाँ ही इस रिना को आर्गे ले िाता ह।ै सामंती समाि की नारी के रूप में दादी पुरानी ख्यालातों और रूवढ़िादी वििारों से सवं ित एक पात्र ह।ै माई िह दसू री पीढ़ी की प्रवतवनवध है िो परंपरार्गत नारी की तरह अपने कतवव्यों को वनभानिे ाली और तकलीफों को सहकर विना मयावदा को तोिे,िपु ्पी को अपना हवथयार समझकर िैठती ह।ै सुनैना आधुवनक नारी का प्रतीक है िो अपने पैरों पर खिा होना िाहती है और वपतसृ त्तात्मकता का सख्त विरोध करती ह।ै पाररिाररक ढािं े के भीतर स्िततं ्रता की राह दखे ती और पररिार के वलए खुद वमटने मंे ही साथकव समझने िाली स्त्री पात्र ही उपन्यास मंे ह।ै इस तरह पररिार में स्त्री की भूवमका को समझने और स्त्री सिं दे नाओं के नए परतों को खोि वनकालने में यह एक सक्षम रिनाह।ै बीज शब्ि स्ित्ििोध - स्िािलिं न - नारी िेतना - र्गीतांिली श्री – माई - आज्ञाकाररणी - पररिार वपतसृ त्तात्मकता - प्रवतरोध - नारी अवस्मता भूवमका विषमान नारी अपनी दज़न्िगी का रास्िा खि ियै ार कर रही है और अपने अदधकारों की माँग भी। इसमंे स्त्री दवमिष जैसी अवधारणा का यही महत्व है दक वह स्त्री को एक व्यदक्त के रूप मंे प्रदिष्ठा दिलाने िथा अपने अदस्ित्व को पहचानने की क्षमिा प्रिान कर रहा ह।ै सरकार की िरफ से भी स्त्री की उन्नदि एवं दवकास को लक्ष्य करके कई योजनाएँ और काननू का दनमाणष हो रहा ह।ै ये योजनाएँ काफी हि िक औरिों के भीिर स्वत्वबोध जगाने स्वावलबं न बनाने मंे सहायक भी रहीं ह।ैं दजस िरह औरिों की मानदसकिा मंे बिलाव आया है उसी मायने मंे समाज की मानदसकिा को बिलना आसान काम नहीं ह।ै आज भी वह स्त्री को परािन एवं अप्रासंदगक धादमकष ,सांस्कृ दिक रूदढ़यों एवं परम्पराओं के खेरे में बाधँ कर रखिा ह।ै स्त्री सिक्तीकरण के संिभष में रमदणका गप्ता का कहना है “सिक्तीकरण की सबसे बड़ी ििष है चेिना, स्वावलंबन और दनज की पहचान यानी स्वादभमान अथािष ् आत्मसम्मान। इनके दबना स्त्री सिक्तीकरण संभव नहीं है ”।1 सदियों से बधं े हएु बेदड़यों को काट डालने का एक सिक्त हदथयार है सादहत्य।भारि में स्त्री लखे न के ज़ररये नारी चिे ना को जागिृ करने मंे वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 57

58 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 सादहत्यकारों का योगिान सराहनीय है। स्त्री समस्याओं को जानन,े परखने और उसी अनभूदि के साथ कागज़ में उिारने में मदहला रचनाकारों का दहस्सा बहिु बड़ा ह।ै सादहत्य के धरािल पर दविरे ् रूप से उपन्यासों मंे स्त्री जीवन के समग्र रूप का अकं न लदे खकाएँ कर रही ह।ंै परंपरागि जीवन मूल्यों मंे दपसिी नारी-जीवन के साथ-साथ उस जीवन से बाहर दनकलकर स्वावलबं ी जीवन जीने की आकांक्षा रखने वाली नारी जीवन का दचिण भी सादहत्य मंे उपलब्ध ह।ै नारी चेिना को अपनी रचनाओं का मख्य दवर्य बनानेवालों मंे गीिांजदल श्री की अलग पहचान ह।ै उन्होंने अपनी लेखनी के ज़ररये नारी की दववििा, नए पराने ररश्िों के संबधं , सामादजक आदथषक दवर्मिाएँ, जीवन मूल्यों का दवघटन, िाम्पत्य सबं ंध, दववाहिे र संबधं ों, रीदि ररवाजों के भवँ र में फँ सी नारी आदि का दचिण दकया ह।ै एक स्त्री होने के नािे लदे खका ने स्त्री की पीड़ा को गहन रूप में समझा और अपने कथा सादहत्य के माध्यम से स्त्री जीवन के दवदभन्न पक्षों को दविि रूप मंे उके रा ह।ै उनके कथा सादहत्य के अदधकािँ नारी पाि अपने जीवन के संघर्ों से दनरंिर जझू रही हंै लेदकन हारकर दनराि नहीं बठै िी ह,ै बदल्क नयी उम्मीि के साथ आगे बढ़िी ह।ै इस दृदि से िखे ने पर एक उल्लखे नीय प्रयास है गीिांजली जी का उपन्यास ‘माई’। स्वििं भारि में दस्त्रयों के दलए जो भी दनयम, काननू लाग दकए गए ह,ंै वे दसफष कानूनी दकिाबों मंे ह।ंै कई मदहलाओं का अदस्ित्व आज भी घर,पररवार और ररश्िे - नािे िक ही सीदमि ह।ै कछ दस्त्रयाँ ऐसी भी हंै जो अपने किवष ्य बोध और समपषण में इिनी अदड़ग रहिी हैं दक वे अपने अदस्ित्व को भलू जािी ह,ैं दजसका जीिा- जागिा उिाहरण उपन्यासकार ने माई के द्वारा दचदिि दकया है। प्रस्िि उपन्यास में सामंिवािी ढांचे के एक सपं न्न पररवार में िोदर्ि हो रही दस्त्रयों की कथा प्रस्िि दकया गया ह।ै पररवार मंे िािा, बाब, माई(रज्जो) िथा भाई-बहन (सबोध - सननै ा) कल छः लोग ह।ंै ड्योढ़ी में साया सी दफरनेवाली, सबकी ख्याल रखने वाली, दजम्मिे ारी और ईमानिारी से अपने किवष ्य को दनभानेवाली माई ही उपन्यास का मख्यपाि ह।ै बाहर िािा हकु ्म चलािा है और भीिर िािी राज करिी ह।ै बाब अपने मंे सीदमि स्वत्वदवहीन व्यदक्त ह,ै िहर के नामी इडं दस्रयल कोम्प्लेक्स में नौकर हो गए थे। माई सबकी आज्ञाकाररणी ह।ै सबकी सेवा करिे,सबकी बोझ ढोिे उसकी कमर झक गयी ह:ै - “हम िरू से जानिे थे दक माई की रीढ़ की हड्डी कमज़ोर ह।ै डाक्टर ने भी बाि मंे यही कहा दक हरिम झकनवे ालों का यही हश्र होिा ह।ै लगािार झके रहने के कारण रीढों के बीच का ित्व दघस जािा है और नसों पर यहाँ - वहाँ िबाव पड़ने लगिा ह।ै हम िरू से िेखिे आये ह।ैं हमारी िरुआि ही उसकी भी िरुआि ह।ै िभी से वह एक मौन, झकी हईु साया थी, इधर से उधर दफरिी,सबकी ज़रूरिों को पूरा करने मंे जटी ”। 2 माई पूरे घर की रीढ की हड्डी ह,ै जो स्वयं सकं ट में रहकर भी िसू रों के दलए जूझ रही ह।ै उपन्यास में लेदखका ने एक सामिं ीय पररवार के िीन पीदढ़यों की नारी-अदस्मिा की कहानी को आधार बनाया है। पहली पीढ़ी ड्योढ़ी की सीमाओं में कै ि और अपने में संिि ह,ै िसू री पीढ़ी ऊपर से िान्ि है लेदकन अंिर ही अिं र जलिी रहिी ह।ै िीसरी पीढ़ी घर के बाहर दनकल जाना चाहिी है लदे कन घर के बाहर दनकलकर भी घटन भरी दज़न्िगी जी रही ह।ै नारी के दलए सदवधा और सरक्षा की बािंे बहिु हो रही हैं लेदकन हर बार यह सवाल खड़ा हो जािा है दक स्विंि िेि मंे मदहलाएँ दकिना स्विंि ह।ै परुर् द्वारा स्त्री को िास बनाये जाने की प्रवदृ त्त दववाह संस्था की िरुआि से ही भारिीय सभ्यिा में मौजिू ह।ै धीरे धीरे वह एक पाररवाररक संपदत्त में बिल गयी। सामंिी समाज उसे दनजी उपभोग की वस्ि और वंि चलाने का साधन समझिे ह।ैं उसकी अपनी कोई स्विंि पहचान या अदस्मिा नहीं ह।ै आज भी मदहलाएँ अपनी फै सले खि नहीं ले पा रही ह।ैं वह पररवार, ररश्िे, परंपरा आिी मंे बधं ी हुई ह।ै माई का पररवार उसकी इच्छाओं को कभी िखे िा नहीं, उसे नज़रअिं ाज़ कर दिया जािा है। माई की आिि बन गयी है अपनी इच्छाओं को मारने और िसू रों के दहसाब से जीवन जीने की। माई का इस िरह रहना उनके बच्चों को अच्छा नहीं लगिा ह।ै बच्चे उन्हंे ड्योढ़ी से बाहर दनकाल लेने को बेचैन होिे ह।ैं वे चाहिे हंै दक माई अपनी इच्छाएँ प्रकट करंे, जैसा उसका मन करें वसै ा दजए। इसदलए वे वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 58

59 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 उन्हें अपने साथ दविेि ले जाना चाहिे हैं। लेदकन माई के दलए ड्योढ़ी छोड़ पाना आसान काम नहीं ह।ै भारिीय नारी दजिना भी अदधकार, अदस्मिा की सकं ल्पना करें उसका समपषण, त्याग, प्रमे भावना हमिे ा बनी रहिी ह।ै जब भी सबोध और सननै ा माई को उनके अदधकारों के बारे मंे सचिे करिे हैं िो माई इन सबसे हट जािी ह।ै उपन्यास मंे सननै ा एक बार कहिी है दक “ हम िो माई को ही एक बोझ मानिे रहे जब से चेिे िब से उसे उठाये, चाहि,े सम्हालिे रहे। उसे ही बचामे की हसरि मंे बड़े होिे गए। उसी की बोझ ने हमें िबाया। उसे बहाना बनाकर िसू रों ने हमंे िबाया। वहीं बधं क बनी दजसको आगे करके िािा, िािी, बाब सबने अपने इच्छाओं - आज्ञाओं की बन्िकू हम पर िानी ”।3 एक स्त्री की मदक्त िभी हो सकिी है जब उसे आदथषक आत्मदनभषरिा के साथ सामादजक स्विंििा दमले। मणृ ाल पाण्डे जी का कहना कहना है दक “पढ़ी - दलखी लड़की के बहिर मानदसक पररष्ट्कार की आज के मध्यवगीय जीवन मंे ज़रुरि को िेखिे हुए उसे पढ़ाना दलखना िो ज़रूरी मान दलया गया, पर पढ़ी दलखी लड़की के मन में भी नौकरी करने का अपना एक अलग िरह का घर - संसार बसाने का सपना पल सकिा ह,ै इस संभावना को बखासष ्ि कर दिया गया। ” 4 उपन्यास मंे नयी पीढ़ी की बटे ी सननै ा अपने परै ों पर खड़ा होना चाहिी ह।ै वह यािों के सहारे माई और उसके अंिमषन को समझने का प्रयास करिी ह।ै सननै ा के व्यदक्तगि जीवन मंे माई का प्रभाव पड़िा ह।ै सनैना अपने भाई की िरह दविेि जाकर आगे की दिक्षा लेना चाहिी ह।ै लेदकन घरवाले उसकी िािी करा िने ा चाहिे हंै। बआ हमेिा सनैना के डाक्टर बनने के आग्रह प्रकट करिी ह:ै - “दजसको बनना है वह चलू ्हा, लकड़ी, आटे के बीच भी बन जािा है। मंै भी बहुि पढना चाहिी थी, फूँ क गयी न पढाई चलू ्हे में ? चलू ्हे से पढ़े - दलखकर ही कौन औरि बच जािी है ? ” 5 माई भी कई बार परम्पराओं को िोड़ने के दलए बच्चों का साथ ििे ी ह।ै सननै ा का हॉस्टल भिी करने में बच्चों को मकू समथनष िेिी ह,ै सनैना कहिी है “ मैं भी हॉस्टल पहुचँ गई थी। सबोध ने बोलकर और माई ने चप रहकर मझे वहाँ पहूचं ाया था। मंै पनप जाऊँ इसदलए। कछ बन पाऊँ इसदलए। उम्मीिों के साथ। ”6 सबोध का सननै ा की सहदे लयों से और सननै ा का सबोध के िोस्िों से बाि करने में माई कोई दिक्कि नहीं दिखािी थी। माई की इस स्विंि सोच से लेदखका यही कहना चाहिी है की स्त्री- परुर् को स्विंििा िेने पर ही समाज मंे स्त्री- परुर् भिे दमटाया जा सकिा ह।ै इसदलए ही माई सननै ा के िोस्ि एहसान और सबोध की मदहला िोस्ि जूदडथ से कोई आपदत्त नहीं रखिी ह।ै लेदखका ने उपन्यास मंे िो पीदढ़यों के बीच के अिं र को बहुि गहराई के साथ दिखाने का प्रयास दकया है। सननै ा और माई िोनों परानी परम्पराओं और मान्यिाओं से संघर्ष करिी ह।ै लेदकन माई सबकछ चपचाप सहन करिी ह।ै सननै ा माई की िरह सहन करिे हएु रहना नहीं चाहिी, इसदलए वह कहिी है :- “ मझे माई नहीं बनना, मंे माई वसै े भी नहीं बनंूगी, माई खि मझे मई नहीं बनािी, मंै चाहूँ भी िो माई नहीं बन सकिी, वह दसफि नहीं मझमंे, मंै माई को झकझोडके झड़क िेिी हूँ अलग, मझे त्याग बरा लगिा है क्योंदक वही माई का बोदझल इदिहास है ”। 7 िोनों का सघं र्ष अलग ह।ै जीवन जीने का और पररदस्िदथयों से लड़ने का िोनों की सोच मंे काफी फकष ह,ै सनैना कहिी है :- “ उसकी आग अंिर को गई, मेरी बाहर को को ”।8 दपिसृ त्तात्मक समाज दस्त्रयों को हमेिा हीन समझिा ह।ै उनके दलए स्त्री के वल उपभोग और संिानोत्पदत्त का उपकरणमािह।ै उनके भीिर के सामिं वािी दवचार स्त्रीयों को घर के चाहर िीवारी, रसोई, दबस्िर में बाँधके रखना चाहिे ह।ंै उपन्यास में कई बार इस सामंिी सोच के उिाहरण हमें दमलिे ह।ंै माई हमिे ा घर के लोगों की माँगंे पूरी करने में लगी रहिी है दफर भी अपने ही पररवारवालों से अपमादनि हो जािी है। िािी हमेिा उन्हें कोसिी है कभी व्यनं य भी करिी ह।ै माई का एक ही गण उन्हें अच्छी लगिी है दक वह पिाष करिी ह।ै वह जहाँ भी जािी है पल्लू दसर पर होिी है और लोग िािी से कहिी है दक “ मािाजी, यह आप ही का पण्य है दक ऐसी िीन हीन,सिील बहु दमली, कभी आँख ऊपर करिी हो।”9 पिे को सब लोग िेखिे हंै लेदकन उसके पीछे के माई क्या है यह जानने की कोदिि दकसी ने की नहीं। लेदखका के वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 59

60 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 अनसार माई की सहनिीलिा और लाज का प्रिािं है वह पिाष। दस्त्रयों की एक और िासिी यह है दक वे दजिना भी पढ़े समाज उनके दिक्षा या ज्ञान की कोई अहदमयि नहीं िेिा है। उनका यही मानना है दक स्त्री की दज़म्मेिारी दसफष घर की चलू ्हा, चौक,बच्चों का पालन करना ह।ै िािा जी को औरिों के प्रदि संकदचि दृदिकोण है। औरिों का घर के सामने दिख जाना उन्हंे अच्छा नहीं लगिा। उनका यही सोच है दक “ गानेवाली और परै में घंघरू पहनने वाली बरी औरि है ”।10 इसदलए वे औरिों को घर मंे गाने या नाचने की अनमदि नहीं ििे े ह।ैं इस िरह के अंधदवश्वास और पाखंडिा अदधकाँि घरों में मौजूि ह।ै दपिसृ त्ताधाररयों के दलए औरिों का दिदक्षि होने का कोई मायना नहीं रखिा। माई दिदक्षि ह,ै एम.ए पास है लदे कन कई बार बाब माई का मज़ाक उठािा ह।ै कई बार उन्हें अनपढ़, अज्ञानी कहिे हैं। दलगं भेि की भावना समाज के हर क्षेि में मौजूि ह।ै स्त्री और परुर् के दलए अलग अलग मापिडं रखने की यह प्रवृदत्त सामंिी दवचारधारा की ही उपज ह।ै इस मानदसकिा की वास्िदवक जड़ घर से होिी है। उपन्यास मंे सनैना को ड्योढ़ी के बाहर जाने और खेलने की अनमदि नहीं लेदकन सबोध पढाई करने हॉस्टल, दविेि सभी जगह जािा ह।ै िािा चाहिे हंै दक सननै ा अंग्रजे ी सीखे परन्ि अगं ्रजे ी बोले नहीं। डाक्टर बनने की सननै ा के आग्रह पर बाब कहिे हंै दक “ लड़दकयों के दलए साइन्स में कोई भदवष्ट्य नहीं ह।ै ”11 स्त्री की ख़ामोिी को उसके सबसे बड़ा गण माना जािा ह।ै अदधकांि घरों मंे लड़दकयों को यही सीख िी जािी है दक ज़्यािा ज़बान चलाना ठीक नहीं है और यह भी मानिे हैं दक बड़ों के सामने जवाब िेना बििमीज़ी है। इसके कारण वह अपने दवचारों को, अपने जज़्बािों को बयान करने मंे दहचकिी है। एक बार माई सनैना को िािी को जवाब िेने से रोकिी है िो सबोध दचल्ला पड़िा है “ यही दसखाओ, िम्हारी िरह चप रहकर सब सहिी रह।े माई की िरह हम चप नहीं रहना चाहिे थ।े सर झकाए, आखँ ें ज़मीन पर गड़ाए, िसू रों की सनन,े िसू रों की मज़ी परू ी करने ”12। माई इस प्रकार अपनी चप्पी को ही अपना हदथयार समझिी ह।ै अगर औरि अपने दवचारों को सही रूप से व्यक्त नहीं कर पािी है कहीं पर भी उसका कोई जगह नहीं होगा। पदि-पत्नी का संबधं प्रायः सभी संबधं ों का मूल ह।ै उनके आपसी समझ- सामजं स्य की प्रवदृ त्त संबंधों में मधरिा का सचं ार करिी ह।ै नारी दवदवध रूपों मंे परुर् के जीवन मंे अपनी भूदमका अिा करिी ह।ै माई अपनी पूरी दज़न्िगी घर, बच्चे, पदि और सास की सवे ा करिे बीि जािी है लदे कन माई के पदि हमेिा उसे नीचे दिखाने की कोदिि करिे ह।ैं उसे कोई इज़्ज़ि, आिर, महत्व भी नहीं िेिे हैं। दकसी भी कायष में उसकी सलाह या मज़ी नहीं पूछी जािी। बाब माई को दबन पेंिे का लोटा कहिे हैं दजसे दजधर लढ़का िो लढ़क जाये। दपिसृ त्तात्मक समाज मंे पदि परमेश्वर के समान ह।ै माई पदि िथा अपने बच्चों की भलाई के दलए करवाचौथ, िीज आिी व्रि रखिी है। वह हमिे ा िसू रों की भलाई सोचिी है लदे कन बिले में पदि से हमेिा धोखा, अपमान,और उपेक्षा ही दमलिी है। संबंधों मंे बंधे रहने की अदनवायिष ा आज स्त्री और परुर् िोनों में कम होिी जा रही ह।ै एक िसू रे के दलए पणू िष ः समदपिष होने के बावजिू भी समाज में दववाहिे र सबं धं पनप रहे ह।ंै उपन्यास में बाब का एक औरि से सबं धं ह।ै पहले माई चप रहिी है लेदकन एक बार वह अपनी स्वादभमान की रक्षा के दलए अपने पदि के अनैदिक सबं ंध पर दवरोध करिे हुए - “ घडी उिारकर बाब के महू पर मारी - िे आओ यह भी उसे ”। 13 दववाह के बाि अपने ररश्ििे ारों से दमलने के दलए भी घर वाले माई पर पाबंिी लगािे हैं लेदकन बेटे के अनदै िक सबं ंध पर चप रहिे ह।ैं स्त्री-परुर् के दलए समाज की यह िोगली नीदि पर भी लेदखका प्रहार करिी ह।ै माई ख़ामोिी से सब सहिी है पर असल मंे यह नारी- प्रदिरोध का नया रूप ह।ै उसकी चप्पी वास्िव मंे एक प्रिीकात्मक प्रदिरोध ह।ै वह झककर चलिी है लेदकन मानदसक रूप से वह परानी रज्जो ही ह।ै वह िबे स्वर मंे ही अपनी अदस्मिा के दलए दवरोह करिी ह।ै नई पीढ़ी को अपने दहसाब से जीने और परम्पराओं को िोड़ने के दलए उनका साथ िेिी ह।ै माई वास्िव में अपने बच्चों के दलए एक मागदष नििे क रही है। िािी और सननै ा, िोनों पीदढ़यों की ज़रुरि को समझकर घर के वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 60

61 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 िालमले को बनाये रखा। सनैना और सबोध माई को कमज़ोर, बाब की पत्नी, चप रहनेवाली बहु के रूप मंे ही समझा है रज्जो के रूप में नहीं। वह उसे ड्योढ़ी से बाहर दनकलना चाहा लेदकन इन भदू मकाओं से बंधे हएु रज्जो को दकसी ने पहचाना नहीं। माई की मतृ ्य के पश्चाि् ही उसके अदस्ित्व को सननै ा समझ पािी ह।ै सनैना कहिी है “माई में भी आग थी, दजसका िसू रों के दलए जलना हमने िेखा पर,दजसका अपना जलना, अपने दलए हमने नहीं िेखा ”।14 इस िरह दपिसृ त्तात्मक समाज में अपनी अलग जगह की िलाि करिी नारी उपन्यास का के न्रीय दवचार ह।ै गीिांजदल जी इस उपन्यास के ज़ररये एक ऐसी माँ का चररि दिखने का प्रयास दकया है जो कभी अपने दलए कछ नहीं मागँ िी और हर पल िने े को और त्याग करने को ित्पर रहिी ह।ै समाज में हर व्यदक्त ‘ लने ा और पाना ’ चाहिा हंै। माई सबकछ सहन करिी िसू रों को बहिु कछ िे रही ह।ै बच्चे दजन्हें दसफष साया समझिी रही वह उनके दलए हर िम लड़ी ह,ै उनके भदवष्ट्य का रास्िा बनाया है। रज्जो के माध्यम से नारी अदस्मिा के कई पहलओं को लेदखका ने यहाँ दिखाया ह।ै आधदनक यग में दस्त्रयों को परुर् के समान अदधकार दमल रहे ह।ंै इसने उसको आदथकष रूप से मज़बूि दकया ह,ै परन्ि आज भी नारी रूदढ़वािी व्यवस्था से परू ी िरह मक्त नहीं हुई ह।ै दनष्ट्कर्ष रूप से यह कह सकिे हैं दक जब स्त्री स्वयं अपनी स्वििं िा को पहचान पायेगी िभी वह हर िरह के बंधनों से मक्त हो जायगे ी। संिभा :- 1 . रमदणका गप्ता - स्त्री दवमिष कलम और किाल के बहान,े 2004, प्रकािक - दिल्पायन , दिल्ली प-ृ 14 2 . गीिाजं दल श्री - माई , 2004 ,राजकमल प्रकािन ,दिल्ली , पृ - 9 3 . गीिांजदल श्री - वही, पृ - 44 4 . मणृ ाल पाण्डे - स्त्री िेह की राजनीदि से िेि की राजनीिी िक, 2002, राधाकृ ष्ट्ण प्रकािन, दिल्ली ,प-ृ 129 5 . गीिाजं दल श्री - माई, 2004 ,राजकमल प्रकािन ,दिल्ली, पृ - 66 6 . गीिाजं दल श्री - वही, पृ - 92 7 . गीिाजं दल श्री - वही, पृ -152 8 . गीिाजं दल श्री - वही,पृ - 47 9 . गीिांजदल श्री - वही, प-ृ 19 10. गीिांजदल श्री - वही, पृ - 36 11. गीिाजं दल श्री - वही, पृ - 72 12. गीिाजं दल श्री - वही, पृ -19 13. गीिांजदल श्री – वही,पृ - 50 14. गीिाजं दल श्री - वही,पृ -152 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 61

62 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ‘आिशा संबधं ों की ाह में तनािग्रस्त नारी : आप न बिलेंगे’ डॉ. सोमाभाई जी. पटेल , अदसस्टंट प्रोफ़े सर, नीमा गल्सष आट्षस कोलजे – गोझाररया, चलभार्-९४२९२२६०३७, [email protected] साराशं : समकालीन मवहला सावहत्यकार ममता कावलया ने अपनी रिनाओं में आदमी की पहिान िनाने की कोवशश की ह।ै उन्होंने आि की विंदर्गी को सम्प्पणू व रूप में उसके समस्त िैविध्य और विस्तार के साथ प्रस्ततु करने का प्रयत्न वकया ह।ै संख्या की दृवष्ट से कथा-सावहत्य की अपेक्षा उनका नाट्य-सावहत्य भले ही कम रहा हो; र्गुणात्मक दृवष्ट से साथवक ह।ै नाट्य-कृ वतयों मंे ‘आप न िदलेंर्गे’ ितवमान सन्दभव मंे प्रासंवर्गक और नारी-विमशव को लेकर ख्यात ह।ै ‘कथािस्तु मध्यमिर्गीय पररिार की र्गवृ हणी नीता के संघषों को वनरुवपत करता ह।ै कथानक का ियन-क्षते ्र आधवु नक ह।ै नीता पवत विधु की डाटं का वशकार ह।ै नीता का हर कायव उसके पवत के मन मंे विढ़ पदै ा करता है। न वसर्व पवत; दोनों िच्िे भी उससे िात-िात पर नाराि होते हंै। िात िाहे खान-पान की हो या रहन-सहन की; नीता हमशे ा टीका-वटपण्णी का भोर्ग िनती ह।ै िह पवत और िच्िों के प्यार के वलए तरसती है। पररिार के वलए िह एक साधन मात्र िनाकर रह र्गई है। विन्न अके ला नीता को समझता ह,ै उसके प्रवत सहानुभूवत रखता ह।ै विन्न नीता के समक्ष एक अल्िम पशे करता है। उसमें नीता की इच्छा के मुताविक़ व्यिहार करने िाला यिु क और िच्िे वमलते ह।ैं युिक नीता की हर िात मानता ह,ै उससे प्यार करता ह।ै िच्िे भी नीता की आज्ञा का पालन करते हंै। स्िीि दिाने से अल्िमी युिक और िच्िों का व्यिहार विलकु ल िसै ा वमलता है िसै ा नीता िाहती है। युिक नीता को अपनी िाहों मंे भर लेता है तो हडिडाहट अनुभि करती ह।ै नीता को अन्य पुरुष का प्यार और दसू रे िच्िों से सम्प्मान नहीं िावहए। उसे तो अपने पवत और अपने िच्िों का प्यार िावहए। ति विन्न कहता ह,ै ‘र्गलत आप न पवत िाहती हैं न िच्िे। आप कठपतु ले िाहती ह।ंै ’ इसी िरमसीमा पर एकाकं ी समाप्त हो िाता ह।ै पात्रों के िररत्र के उसी अशं का उदघाटन वकया र्गया ह,ै विसका अंतिवस्तु से र्गहन सम्प्िन्ध ह।ै िो भी पात्रों का वनमाणव हआु है िे हमारी विंदर्गी के िीितं प्राणी ह।ैं ‘आप न िदलरंे ्गे’ का सिल पक्ष है – द्वदं ्व। नावयका नीता के अतं िावह्य द्वदं ्व से ही कथानक र्गवतशील, रोिक, आकषकव िन पडा ह।ै नीता एिं पवत विधु के घात-प्रवतघात से एकाकं ी प्रभािक िना ह।ै बीज शब्ि – समकालीन, पदविह्न,उपलवब्ध, र्गणु ात्मक, प्रासंवर्गक, कंु वठत, िरमसीमा, आयाम, वक्या-कलाप, अवस्तत्ि, िर्गवर्गत, संिदे ना, िीवनयस, अंतिवस्तु, र्गवतशील, दशवन, दृवष्ट, तावकव कता, प्रयोर्गशीलता, रंर्ग-संके त, संकलनत्रय, मनोदशा, संक्मण, र्गहृ स्थी, िते ना आवद। भवू मका समकालीन दहिं ी सादहत्य को दजन सादहत्यकारों ने समदृ ्ध दकया है उनमंे ममिा जी का अहम् स्थान ह।ै उत्कृ ि रचनाओं द्वारा दहिं ी सादहत्य को मजबूि बनाने वाली समकालीन मदहला कथाकारों में ममिा कादलया पहली पंदक्त की लदे खका ह।ंै अपनी रचनाओं में उन्होंने आिमी की पहचान बनाने की कोदिि की ह।ै वे अपने पूवषविी रचनाकारों से अलग होकर नहीं चली,उनमें दिल्प पररविनष सम्बन्धी कोई दवदिि प्रयास भी नहीं ह,ै लेदकन एक ऐसा दबंि अवश्य दमल जािा है जो उन्हें वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 62

63 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 अपने समकालीनों से स्पिि:अलगा िेिा है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से आज की दजिं गी को सम्पूणष रूप में उसके समस्ि वैदवध्य और दवस्िार के साथ प्रस्िि करने का प्रयत्न दकया ह।ै आिमी से सरोकार रखने वाले उनके बहुआयामी रचना-ससं ार को अनके प्रदिदष्ठि सम्मान और परस्कारों से दवभूदर्ि दकया ह।ै कथा-सादहत्य मंे िो वे पिदचह्न हैं ही; नाट्य-सादहत्य भी महत्वपूणष उपलदब्ध ह।ै संख्या की दृदि से कथा-सादहत्य की अपके ्षा उनका नाट्य-सादहत्य भले ही कम रहा हो; गणात्मक दृदि से साथकष ह।ै नाट्य-कृ दियों के रूप मंे ‘आत्मा अठन्नी का नाम ह’ै , ‘यहाँ रोना मना ह’ै , ‘आप न बिलंेग’े आदि विषमान सन्िभष में प्रासंदगक दवचार को प्रस्िि करिी ह।ंै उनका ‘आप न बिलेंगे’ एकांकी नारी- दवमिष को लेकर ख्याि ह।ै ‘आप न बिलंगे ’े का कथावस्ि मध्यमवगीय पररवार की गदृ हणी नीिा के सघं र्ों को दनरुदपि करिा ह।ै कथानक का चयन-क्षेि आधदनक ह।ै कथा कल पांच दृश्यों में दनयोदजि ह।ै नीिा पदि दवध की डांट का दिकार ह।ै नीिा का हर कायष उसके पदि के मन मंे दचढ़ पैिा करिा है। न दसफ़ष पदि; िोनों बच्चे भी उससे बाि-बाि पर नाराज होिे ह।ंै बाि चाहे खान- पान की हो या रहन-सहन की; नीिा हमेिा टीका-दटपण्णी का भोग बनिी ह।ै वह पदि और बच्चों के प्यार के दलए िरसिी ह।ै पररवार के दलए वह एक साधन माि बनाकर रह गई है। कं दठि नीिा अपने पदि के कहने पर लैम्प ले आिी ह।ै लैम्प से दनकला दजन्न अके ला नीिा को समझिा ह,ै उसके प्रदि सहानभूदि रखिा ह।ै एक दिन पदि दवध नीिा को डाटं कर दकसी ज़रूरी मीदटंग के दलए गोवा चला जािा ह।ै उस वक्त दजन्न नीिा के समक्ष एक अल्बम पेि करिा है। उसमंे नीिा की इच्छा के मिादबक़ व्यवहार करने वाला यवक और बच्चे दमलिे ह।ंै यवक नीिा की हर बाि मानिा ह,ै उससे प्यार करिा ह।ै बच्चे भी नीिा की आज्ञा का पालन करिे हंै। स्वीच िबाने से अल्बमी यवक और बच्चों का व्यवहार दबलकल वसै ा दमलिा है जैसा नीिा चाहिी है। यवक नीिा को अपनी बाहों में भर लिे ा है िो हडबडाहट अनभव करिी ह।ै नीिा को अन्य परुर् का प्यार और िसू रे बच्चों से सम्मान नहीं चादहए। उसे िो अपने पदि और अपने बच्चों का प्यार चादहए। िब दजन्न कहिा ह,ै “गलि आप न पदि चाहिी हंै न बच्चे। आप कठपिले चाहिी ह।ंै ”1 इसी चरमसीमा पर एकांकी समाप्त हो जािा ह।ै कथा का आयाम वाकई लघ है। मध्यमवगीय पररवार की रोचकिा, प्रवादहिा को लेकर कथा पाठक को आकदर्िष करिी ह।ै चररि-योजना की दृदि से ‘आप न बिलगें ’े एकाकं ी को परखने पर पािे हैं दक यहाँ सीदमि पाि ही दनदमिष ह।ैं पररवार मंे कल चार सिस्य ह।ंै दवध, नीिा, सोनू और मोनू। इस एकाकं ी का प्रधान पाि नीिा ह।ै लेखक का आिय इसी पाि के दक्रया-कलाप द्वारा उजागर हआु ह।ै नीिा दवध की पत्नी है जो दिदक्षि ह।ै समग्र एकांकी मंे नीिा के अिं मषन की गदत्थयों का प्रकािन ह।ै ममिा कादलया ने नारी का यथाथष व सजग दचि दनरुदपि दकया है। “नारी मन की अनभदू ियों की सन्िर व्याख्या करने मंे उन्हें िक्षिा प्राप्त है। वे दनरंिर नारी अदस्ित्व की पहचान हिे सजग दिखाई ििे ी ह।ैं वे नारी को परुर् के समकक्ष स्थान पर आसीन करने का सफल प्रयास अपने नारी पािों के माध्यम से करिी हैं।”2 नीिा मध्यमवगीय पररवार की गदृ हणी के रूप मंे सघं र्ों, िनावों का प्रिीक ह।ै अि: इसे वगगष ि पाि कह सकिे ह।ंै पदि दवध एवं बटे े सोनू एवं मोनू के औपचाररक प्रमे -सबं ंधों में पररविषन लाने मंे नीिा असमथ,ष कं ठाग्रस्ि ह।ै पररवार मंे उसे न िो कोई समझना चाहिा है और न उसको मन से कोई प्यार करिा है। प्यार के िो बोल सनने के दलए वह िरसिी ह।ै उसकी करुणिा यह दक पूरा पररवार उससे दसफ़ष ‘उपकरण’ के रूप मंे पेि आिे हंै। न िो पदि को उसके प्रदि सवं िे ना है और न िो बच्चे उसका सम्मान करिे ह।ैं पदि दवध को नीिा का प्रत्यके काम फू हड़ लगिा ह।ै वह ऱोज नाश्िे मंे इमदे जनेिन चाहिा है। उसकी दृदि से पत्नी मंे वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 63

64 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 टाइम-सने ्स होना चादहए, जो नीिा मंे नहीं दिखाई ििे ा। पररणामस्वरूप वह पत्नी की हर बाि पर नाराज हो जािा है। वह पत्नी नीिा को फू हड़ और जादहल औरि समझिा ह।ै बच्चे सोनू और मोनू को भी नीिा के नाश्िा बनाने, जिे पहनाने, टाई लगान;े हर काम मंे बहे िू ापन लगिा ह।ै वे भी नीिा से नाराज नज़र आिे ह,ंै सम्मान की दृदि से नहीं िखे िे। दसफ़ष लमै ्प से दनकले दजन्न को ही नीिा के साथ सहानभदू ि है। िरअसल वह जीदनयस ह।ै इस प्रकार ‘आप न बिलंगे ’े में पािों की संख्या सीदमि ह।ै पािों के चररि को दवस्िार नहीं दमला है। एकांकी मंे पािों के चररि के उसी अंि का उिघाटन दकया गया ह,ै दजसका अंिवसष ्ि से गहन सम्बन्ध ह।ै जो भी पािों का दनमाषण हआु है वे हमारी दजिं गी के जीवंि प्राणी ह।ंै लेखक ने िादकष क िथ्यों द्वारा पाठक के दिलोदिमाग को नीिा के प्रदि या कहें नारी के प्रदि आकदर्िष दकया ह।ै ‘आप न बिलेगं े’ का सबल पक्ष है – द्वदं ्व। इस एकांकी में नादयका नीिा के अंिबाहष ्य द्वदं ्व से ही कथानक गदििील, रोचक, आकर्षक बन पडा ह।ै नीिा एवं पदि दवध के घाि-प्रदिघाि से एकाकं ी प्रभावक बना ह।ै िो दवपरीि पररदस्थदियाँ, िकष , दृदियाँ बख़बू ी दनरुदपि ह।ंै इस एकांकी के कथोपकथन मंे ममिा जी की बहुमखी प्रदिभा के ििनष होिे ह।ंै जैसे – “नीिा : बच्चों मंे लगी थी जी, यह लीदजए। दवध : (बश्िटष िेखिे ही भड़क जािा है।) ऱोज यही बश्िटष, ऱोज यही बश्िटष, यह क्या मेरा यदनफोमष है ? बाक़ी कमीजों से िमने बिषन ले डाले क्या ? नीिा : (भड़क कर) िम मझे उन्हीं फू हड़ जादहल औरिों मंे दगनािे हो, जो सारा दिन लउे -बचे ू दकया करिी ह।ंै (रुक कर) दकसी का कोलर दघस गया ह,ै दकसी का रंग उड़ गया ह।ै दवध : (व्यंनय से) यह ठीक िस बजे सनाने वाला समाचार ह।ै (नीिा का जाना और प्लेट दलए फिी से आना ) दवध : अब और िरे करोगी। िम्हें टाइम सेन्स कब आएगी नीिा ? एक-एक दमनट भारी हो रहा ह,ै बस छट रही है और िम धमकी की िरह नाश्िा दलए खड़ी हो गई।”3 इस प्रकार संवाि आदि से अंि िक गदििीलिा बनाए रखिे ह।ैं पािों की मन:दस्थदियों, दक्रयाकलापों की प्रस्िदि मंे संवाि दबलकल सफल ह।ंै आदि से अंि िक िकष -दविकष इिनी चस्ििा से प्रस्िि हएु हंै दक पाठक उसमें बहिा नज़र आिा ह।ै चस्ििा, भावानकलिा, सदं क्षप्तिा, िादकष किा सारे गण इस एकाकं ी मंे उभरे ह।ंै दजिना कथावस्ि वजन रखिा है उिना ही इस एकांकी का दिल्पपक्ष भी। हम यदि कहंे दक इस एकाकं ी की लोकदप्रयिा में दिल्पयोजना अहदमयि रखिी ह;ै अदिियोदक्त न होगा। दवर्यानरूप, पररविे ानरूप, पािानकू ल भार्ा प्रयोग नाटकीयिा में रंग लािे ह।ैं भार्ा में अंग्रजे ी िब्िावली का प्रयोग आधदनक वािावरण के अनकू ल ह।ै जैसे – यदनफोम,ष टाइम-सेन्स, ररमोट कं रोल दसस्टम, ररपोटष काडष, प्लटे ंे आदि। ममिा कादलया ने ‘आप न बिलेंगे’ में अपनी प्रयोगिीलिा का पररचय दिया है। कहिे हंै न, जहाँ नहीं पहुचँ े रदव, वहाँ पहचुँ े कदव’, यह वदै चत्र्य ममिा कादलया के दनजी जीवन पर दजिना साथकष लगिा है उिना ही उनकी िादब्िक प्रयोगधदमषिा में। इसका साक्ष्य यह एकांकी ह।ै एकांकी को रंगमचं ीय बनाने हिे आवश्यक रंग संके ि दिए ह।ैं जसै ,े “(जिू ों की धम-धम के साथ िोनों बच्चों का आगमन। आिे ही वे बसिे एक कोने में पटकिे ह,ैं मोज़े जटे िसू रे कोने म।ंे नीिा प्लेट में नास्िा लािी ह।ै बच्चे प्लेट एक नज़र िखे िे ह।ंै )”4 एकांकी में मोटे िौर पर मानदसक दस्थदि का दनरूपण ह।ै अि: सवं ाि कम; दस्थदियां ज्यािा दनरुदपि ह।ैं कह,ें एकाकं ी मंे आधा प्रदििि सवं ाि और आधा प्रदििि िो रंग- सकं े ि ही ह।ैं किम-किम पर पािों के अदभनय के सकं े ि और स्टेज की सज्जा-दसच्यएिन का सकं े ि दिया गया ह,ै दजसके वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 64

65 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 कारण एकाकं ी का अदभनय सरल-सहज-सफल हो सकिा ह।ै अदभनय द्वारा दस्थदियों का दनरूपण यहाँ बख़बू ी हुआ ह।ै एकांकी मंे सकं लनिय का दनवाहष ह।ै स्थान ह,ै एक मध्यवगीय मकान की बठै क। िाम का समय ह।ै हाँ, अलग-अलग दृश्यों में समय ििायष ा गया ह।ै दृश्य एक में िाम का समय ह।ै दृश्य िो में समय : िाम- घडी पाचं बजा रही ह।ै दृश्य िीन मंे समय : राि, घडी बारह बजा रही है। िश्यष चार में समय : सबह घडी में नौ बजे हंै और दृश्य पाचँ में समय : घडी बारह बजा रही ह।ै कायष की एकिा भी आकर्षक एवं साथषक ह।ै साठोत्तरी दहिं ी सादहत्य में प्रयोगिील सादहत्यकार के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली ममिा जी का निू न प्रयोग सराहनीय ह।ै “अपनी बेबाक अदभव्यजं ना िैली और दवदिि लखे न िलै ी के कारण दहिं ी की विमष ान मदहला कथाकारों मंे वे समादृि हईु ह।ैं ”5 ‘आप न बिलेंगे’ एकांकी को आकर्कष बनाने में ममिा कादलया की िैली अहदमयि रखिी ह।ै उन्होंने नीिा के पररवार के अलावा दजन्न का नीिा के दलए व्यवस्था िने ा, मिीनी नवयवक एवं बच्चे वाली मिीनी गहृ स्थी की पिे कि कथा-वस्ि दनदमषदि में नवीनिा कह सकिे ह।ंै यह नयी पेिकि रोचक िो है ही; हास्य-व्यनं य के हल्के -फल्के इजं ेक्िनों द्वारा पाठक को सोचने के दलए दववि करिी ह।ै वसै े भी व्यंनय का पट उनके हर सादहत्य को अन्य से अलगा िेिा ह।ै अपनी व्यनं यमखर प्रखरिा के नािे उनकी रचनाएं जहाँ अपने समकालीनों से सवथष ा अलग प्रिीि होिी ह,ैं वहाँ आज भी उिनी ही महत्वपूणष और प्रासदं गक बनी हईु ह।ैं ‘आप न बिलेंगे’ मंे भी व्यनं य िैली प्रयक्त ह,ै “यह ठीक िास बजे सनाने वाला समाचार ह।ै ”6 “जब मैं जगह-जगह पड़े िौदलय,े जिू े प्याले, दिडकी प्लेटंे, गलि िय दकए अखबार गवारा कर सकिा हूँ िो मैं इसे भाड कहना भी गवारा कर सकिा हू।ँ ”7 आदि। ममिा जी का अदधकिर सादहदत्यक ससं ार नारी-जीवन को कें र मंे रखकर विमष ान जीवन की भयावहिा िथा सघं र्ष परायणिा को यथाथष रूप में प्रिदििष करिा है। ख़ासकर ममिा जी के सादहत्य में पाररवाररक माहौल से िंग होने वाली िथा पदि से असिं ि रहने े वाली नाररयों को प्रचर मािा में स्थान दमला ह।ै ‘पाररवाररक सबं ंधों का विषमान रूप’ इस एकांकी का प्रमख दवर्य ह।ै दवर्य को साथकष िा प्रिान करने मंे ‘आप न बिलंगे े’ की नादयका नीिा का दक्रया-कलाप आधार ह।ै यहाँ िोदर्ि नादयका की मनोििा का मनोवैज्ञादनक दचिण है। दनस्संिेह नीिा संक्रमण काल से गजर रही ह।ै आज हर पदि को अपनी पत्नी की; हर बच्चे को अपनी माँ की हर चीज भद्दी लगिी है। स्त्री अपने पदि की दचढ़ का, गस्से का, गराहष ट का दिकार ह।ै पररवार के दलए बहिु कछ कर गज़रने पर भी नीिा बहिु परेिान ह।ै वह दजन्न से कहिी ह,ै “मैं सारा दिन खटिी हू,ँ सारा दिन खपिी हू।ँ क्या इसी सब के दलए ! दवध बाि करिे हंै िो लगिा है कोई भदे ड़या गराष रहा ह।ै उनकी गराहष ट मरे े दिमाग मंे ऐसे भर गई ह,ै जसै े स्टोव का िोर। बच्चे ह,ैं िो मेरी एक नहीं सनिे। सारा दिन नचािे हैं मझ।े ”8 आगे भी कहिी ह,ै “एक अिि सामान से ज्यािा अहदमयि नहीं है मेरी। मैं इन सब की दज़ंिगी का एक उपकरण ह।ूँ ”9 नीिा दसफ़ष अच्छा खाना या उम्िा साड़ी नहीं चाहिी। इसीदलए िो कहिी ह,ै “क्या मंैने रोटी-कपडे के दलए िािी की थी ! यह िो मझे िािी से पहले भी दमलिा था। अपने दलए मैं अपनों से प्यार के िो बोल सनने को िरस जािी हू।ँ कोई म ]झे समझिा नहीं, सराहिा नहीं !”10 समाज मंे अदधकांि नाररयाँ अपने पदि िथा पाररवाररक सिस्यों से स्नहे िथा आत्मीयिा की आकांक्षा रखिी ह।ै वास्िदवक रूप मंे पररवार के सिस्यों में सामंजस्य, एक िसू रे के प्रदि संलननिा की भावना होनी चादहए, यह पाररवाररक संस्कारों की िने होिी ह।ै स्नहे और सम्मान के अभाव मंे सवं ेिनिील नारी अपने आप को पररवार मंे संिि नहीं रख पािी। िंग नीिा के सामने दजन्न जीिे-जागिे दखलौने पिे करिा है। जब जी चाहे दिल बहला लंे, जब जी चाहे आलमारी मंे बंि करके रख िें। ररमोट कं रोल दसस्टम यक्त ! प्रिसं ा के दलए लाल बटन िबाना, प्यार के दलए हरा बटन िबाना और बाहर वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 65

66 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 घमू ने के दलए दपला बटन िबाना। सारी व्यवस्था दमल जायेगी। आज्ञाकारी बच्चे नीिा की हर आज्ञा का पालन करिे ह,ैं उसे सम्मान िेने ह।ंै नवयवक नीिा से अनहि प्यार करिा ह,ै हर क़िम पर नीिा को खि रखिा ह।ै लेदकन नीिा दजसदिस के दलए उपलब्ध नहीं हो सकिी। उसकी इज्जि, उसका मान, उसकी प्रदिष्ठा को खोना नहीं चाहिी। आदखर वह चाहिी है दक उसका पदि उससे प्यार करें, चाव से बोलंे। उसके खि के बच्चे उसे प्यार करंे। इस प्रकार एकांकी में आधदनक यग की नारी नीिा घोर अदिक्रमण के सकं ट मंे भी अपने ससं ्कारों को सरदक्षि रखना चाहिी ह।ै यहाँ मिीनी यवक और बच्चे का दनमाषण कर लदे खका सकं े ि करिी है दक विषमान नीिा को अपनी गहृ स्थी से ऊब कर दजिं गी को नकष नहीं बनाना ह।ै वह चाहे िो अपने अनकू ल नयी गहृ स्थी अपना सकिी ह।ै लेदकन नहीं, यहाँ नीिा को दगरावट पसिं नहीं ह।ै “आवश्यकिा ह,ै नए सन्िभों मंे नारीत्व को नए दसरे से पररभादर्ि करने की या मध्यकाल में खोई प्राचीन काल की पररभार्ा को वापस पाने की। नारीत्व, दजसका अपना एक पथृ क अदस्ित्व हो, अपनी एक छदव हो, अपना एक अहम् हो, गौरव हो, अपना स्वादभमान, अपनी उपयोदगिा, अपनी साथकष िा हो। जो न परुर् से हीं मानी जाए, न परुर् की बराबरी मंे अपनी क्षमिाओं का अपव्यय करे। जो परुर् की परू क हो। उसकी प्रेरणा हो। उसका मागिष िनष करने वाली हो। उसकी सहयोगी हो – घर, बाहर, सभी जगह, सभी क्षेिों मंे।”11 लदे खका ने इस एकाकं ी मंे नारी के िादयत्व पर भी इिारा दकया ह।ै व्यक्त ह,ै “नारी कभी नहीं चकिी, मिष ही चक जािा ह।ै परुर् नल की िरह खाली हो जािा ह,ै जबदक स्त्री सरोवर की िरह भरी रहिी है लबालब, दकनारे िक ! बीच की दस्थदि में वह जीना नहीं चाहिी।”12 िसू रा, नीिा के िनाव, सघं र्ष, आििष का पररचय िके र परोक्ष रूप से लेदखका यह भी संिेि ििे ी है दक “दिदक्षि नारी आििष सबं धं ों की चाह में यथाथष को भूल जािी ह।ै पारंपररक आििष एवं जीवन के समकालीन व्यदक्तवािी सोच, एवं दवदवध समस्याओं के बीच उसका जीवन िनाव से भर उठा है। पररवार का हर व्यदक्त नारी से अपने-अपने संबंधों के अनसार सख-सदवधाओं की चाह रखिा ह।ै बहुि कछ करने िथा चाहने के बीच वह अन्िर से टूट जािी ह।ै स्वाभादवकिा एवं सहजिा खोिी जा रही ह।ै ”13 एकाकं ी में दसफ़ष नीिा की समस्या नहीं है बदल्क नीिा के समान अनेक आधदनक मध्यमवगीय पदत्नयों, गदृ हदणयों की समस्या अदभव्यक्त हईु ह।ै पदि अदधनस्ि स्त्री मनोििा का पररचय यहाँ बख़ूबी होिा ह।ै वनष्ट्कषा नारी-जीवन के द्वदं ्व को अपने नए आयाम के साथ प्रस्िि करने में िथा पाररवाररक समस्याओं को सकू ्षमिा के साथ प्रस्िि करने मंे ‘आप न बिलेगं ’े सफल दसद्ध है। इस एकाकं ी मंे नारी के वरै ्म्य की भावना और वयै दक्तक जीवन-प्रसंग के आपसी संयोग से एक समीकरणात्मक मानवीय चिे ना की दवचारणा पि दनधारष णा और अदभव्यंजना दिखाई ििे ी ह।ै सामादजक बोध की भूदमका, दवकदसि चेिना का स्फरण और स्पि अदभव्यंजन ‘आप न बिलंेगे’ में उपलब्ध ह।ै संिभा 1. डॉ॰ जी॰ भास्कर मयै ा (सं॰), नाटक आज िक, प॰ृ 74 2. डॉ. सानप िाम, ममिा कादलया के कथा-सादहत्य में नारी-चिे ना, प॰ृ 114 3. डॉ॰ जी॰ भास्कर मयै ा (स॰ं ), नाटक आज िक, प॰ृ 63-64 4. वही॰, पृ॰ 60 5. डॉ. सानप िाम, ममिा कादलया के कथा-सादहत्य मंे नारी-चिे ना, प॰ृ 114 6. डॉ॰ जी॰ भास्कर मैया (सं॰), नाटक आज िक, प॰ृ 64 7. वही॰, प॰ृ 69 8. वही॰, प॰ृ 62 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 66

67 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 9. वही॰, प॰ृ 62 10. वही॰, पृ॰ 63 11. डॉ. सानप िाम, ममिा कादलया के कथा-सादहत्य मंे नारी-चेिना, फ्लपै से 12. डॉ॰ जी॰ भास्कर मयै ा (स॰ं ), नाटक आज िक, पृ॰ 72 13. वही॰, प॰ृ 57-58 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 67

68 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 कहानीकार यशपाल का नारीिािी दृविकोण डॉ. आशा कमारी सहायक प्रोफे सर, दहिं ी दवभाग मानदवकी एवं सामादजक दवज्ञान, आईईसी दवश्वदवद्यालय, बद्दी, दज़ला – सोलन, दहमाचल प्रििे , 174103 मोबाइल : 9805193104 [email protected] शोध सार : वहदं ी कथाकारों की श्रणे ी में यशपाल का नाम अग्रणी ह।ै उन्होंने अपनी कहावनयों के माध्यम से न के िल नारी िीिन की समस्याओं को उद्घावटत वकया है िवल्क उन समस्याओं को दरू करने पर भी िल वदया ह।ै यशपाल का नारीिादी दृवष्टकोण उनकी अनके कहावनयों में देखने को वमलता है। यशपाल ने समाि मंे फै ली विसंर्गवतयों को दरू करने के वलए एक स्िस्थ दृवष्टकोण की र्गुहार लर्गाई ह।ै यशपाल की कहावनयों में नारी के प्रवत पुरुष की ििसव ्ििादी मानवसकता, समाि द्वारा वनधारव रत वनवश्चत प्रवतमान एिं आदशव आवद वनयमों पर प्रहार वकया र्गया ह।ै नारी को संैकिों िषों से अपने िीिन के फै सले लने े तथा मुि िीिन िीने के अवधकार से िंवित रहने के वलए वििश वकया िाता रहा ह।ै शतावब्दयों से नारी आत्मसघं षव करती रही ह।ै यशपाल की वििारधारा इसके विपरीत है। िह नारी के अवधकारों, स्ितंत्रता तथा समानता की मांर्ग करते ह।ैं िि िि भी नारी ने अपने अवधकारों की मांर्ग की है ति-ति उसे अपने ही पररिार की िरे ुखी को सहन करना पिा। इन पररवस्थवतयों में िदलाि के साथ ही आि नारी वशवक्षत तथा आत्मवनभरव हो कर अपने अवधकारों एिं कतवव ्यों के प्रवत िार्गरूक हईु है तथा अपनी राह िनाने मंे सक्षम भी ह।ै बीज शब्ि: नारीिाद, प्रवतमान, संघषव, अवधकार, आत्मवनभरव , यौन शोषण, वपतसृ त्ता, सामाविक असुरक्षा, विषमता, विसरं ्गवतयां, कु रीवतयाँा, अभाि, कंु ठा। प्रस्तािना : वंिृ ा काराि के अनसार “नारीवाि एक दवचारधारा ह,ै दजसके आधार पर मदहलाओं की मदक्त के प्रयास दकये जािे ह।ैं ”1 यिपाल की कहादनयां इसका एक सिक्त उिाहरण ह।ै उन्होंने नारी मदक्त दवर्य पर कई कहादनयां दलखी ह।ैं यिपाल के सबं धं मंे आचायष नरेन्र िवे का कथन है – “समाज को जगाने के दलए यिपाल दलखिे हैं और समाज को जगिे न िखे कर बड़े दनममष िा से वे उसके िरीर मंे कलम की नोक चभा िेिे ह।ंै ”2 यिपाल समाज की सप्त मानदसकिा को झकझोरने का प्रयास करिे दिखाई पड़िे है। वास्िव में नारीवािी दृदिकोण वह दवचारधारा है दजसके कें र मंे दस्त्रयों की समस्याएं हैं जो दपिसृ िात्मक सत्ता की िोयम िजे की मानदसकिा, यौन िोर्ण िथा सामादजक कं ठाओं का दिकार रही ह।ै दसमोन िा बउआ का कथन है – “औरि पैिा नहीं होिी, बनायी जािी है।”3 अथाषि् स्त्री को घर एवं कल की इज्जि मान कर एक कठपिली के समान रहने के ससं ्कार दिए जािे हंै और खोखली मान्यिाओं एवं मयाषिाओं की पट्टी पढाई जािी ह।ै यहाँ प्रश्न उठिा है दक क्या परुर् घर की मयाषिा नहीं ? जबदक वंि को बढ़ाने वाला िो परुर् ही माना जािा ह।ै क्या परुर् अके ले ही वंि को बढ़ाने मंे सक्षम है ? दस्त्रयों के प्रदि समाज की यह िदकयानूसी सोच एवं रवैया दचंिनीय 1 http://www.debateonline.in/060512/ 2 http://rsaudr.org/show_artical.php?&id=2192 3 http://www.sahityasetu.co.in/issue12/gargishah.html वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 68

69 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 दवर्य ह।ै आज स्त्री अन्िररक्ष िक पहुचँ ने में सफल हईु ह,ै लदे कन दफर भी उसे अपने सपनों को सजाने िथा उन्हंे परू ा करने के दलए कहीं न कहीं अपने पररवार पर दनभषर रहना पड़िा है। लोक समाज के डर से आज भी स्त्री पूरी िरह से मक्त नही हो पायी ह।ै “प्रमे चन्ि के अनसार नारी परुर् से श्रषे ्ठ है क्योंदक वह अदहसं ा और िांदि की प्रदिमूदिष ह।ै लदे कन यिपाल की दृदि में नारी परुर् से श्रेष्ठ या परुर् से घटकर नहीं, वह परुर् का समभागी ह।ै उनके मि मंे समाज मंे नारी को परुर् के समान अदधकार िने े की आवश्यकिा ह।ै उनकी दृढ़ धारणा है दक जब िक भारिीय नारी दिदक्षि होकर आदथषक दृदि से स्वावलबं ी नहीं बनगे ी िब िक वह अदभिप्त जीवन दबिाने को बाध्य होगी।”1 यिपाल नारी की आदथकष स्वाधीनिा के पक्ष में ह।ैं नारी को आत्मदनभरष िथा दिदक्षि बनाना उनकी कहादनयों के कें र मंे है। इसके अदिररक्त भी उन्होंने कई राजनीदिक, सामादजक, आदथषक समस्याओं को रेखांदकि दकया ह।ै यिपाल ने स्त्री सरोकारों से सम्बद्ध दवदभन्न मद्दों को अपनी कहादनयों के माध्यम से अदभव्यक्त दकया है। कहादनयों मंे दपिसृ िात्मक वचषस्व की परिों को उधेड़ने का प्रयास दकया ह,ै दजसमें दस्त्रयों की छटपटाहट, सामादजक असरक्षा, दवर्मिा, दवसगं दियां, करीदियाँ, अभाव, कं ठा आदि बन्धनों से मदक्त की ओर ध्यान आकदर्षि दकया ह।ै यिपाल नारी मदक्त का आवान करिे हैं और उनकी कहादनयों की नारी पाि परुर् पाि की अपेक्षा अदधक सिक्त एवं सबल दिखाई पड़िी ह।ै “नई कहानी के िौर मंे स्त्री के िेह और मन के कृ दिम दवभाजन के दवरुद्ध एक सम्पूणष स्त्री की दजस छदव पर जोर दिया गया उसकी वास्िदवक िरुआि यिपाल से ही होिी ह।ै आज की कहानी के सोच की जो दििा है उसमें यिपाल की दकिनी ही कहादनयां बिौर खाि इस्िेमाल हुई ह।ंै विषमान और आगि फ़सल की सम्भावनाओं की दृदि से उनकी साथकष िा असंदिनध ह।ै ”2 यिपाल की कहादनयों मंे समाज की रुदढ़वािी परम्परागि मान्यिाओं पर प्रहार दकया गया ह।ै यिपाल की ‘करवा का व्रि’ एक ऐसी कहानी है दजसमें कहानी की नादयका लाजवंिी को अपने िौक पूरे करने के दलए कभी अपने दपिा और भाई पर िो कभी अपने पदि पर दनभषर रहना पड़िा है। लदे कन होिा यह है दक कोई भी उसके िौक पूरे नहीं करिा। कहानी में परुर् की मानदसकिा पहले से ही ऐसी बनी हुई है दक स्त्री घर की चारिीवारी के दलए ही बनी हुई ह।ै जब स्त्री अपनी जबान खोले िो उसे मार पीटकर िािं करवा दिया जाय,े लदे कन नादयका की नम्रिा िदे खए वह दफर भी अनचाहे मन से ही सही मगर परुर् की हर इच्छा को पूरा करिी ह।ै नारी इिनी धयै वष ान एवं किवष ्यपरायण है दजसका परुर् अंिाजा भी नहीं लगा सकिा। कहानी की कछ पंदक्तयाँ इस बाि को व्यक्त करिी है - “मार से लाजो को िारीररक पीड़ा िो होिी ही थी, पर उससे अदधक होिी थी अपमान की पीड़ा। ऐसा होने पर वह कई दिन के दलए उिास हो जािी। घर का सब काम करिी रहिी। बलाने पर उिर भी िे ििे ी। इच्छा न होने पर भी कन्हयै ा की इच्छा का दवरोध न करिी, पर मन-ही-मन सोचिी रहिी, इससे िो अच्छा है मर जाऊं ।”3 लाजो कई समय िक दबना दकसी अपराध के उपके ्षा, अन्याय और दनरािर सहने को दववि रहिी है। यिपाल ने कहानी में करवाचौथ के व्रि का उिहारण िेकर पदि की लापरवाही पर व्यंनय दकया ह।ै पदि उसकी चप्पी को उसकी कमजोरी समझिा ह।ै पदि के दनियष ी व्यवहार के बावजिू भी लाजो उसकी लम्बी उम्र की कामना करिी ह।ै कहानी का अिं सखि ह।ै ‘करवा का व्रि’ आििोन्मख कहानी की श्रेणी में आिी ह,ै दजसमें नादयका अपने व्यवहार से पदि की सोच िथा हृिय को पररवदििष करने मंे सफल रहिी ह।ै 1 सी. एम. योहन्नान, यिपाल का कहानी संसार : एक अन्िरंग पररचय, लोकभारिी प्रकािन, इलाहाबाि, प्र. स.ं : 2005, प०ृ 133 2 सम्पा. मधरेि, यिपाल रचना सचं यन (भूदमका), सादहत्य अकािमी, नई दिल्ली, पनमषरण सं. : 2012, प०ृ 22 3 सम्पा. मधरेि, यिपाल रचना सचं यन (भदू मका), सादहत्य अकािमी, नई दिल्ली, पनमरष ण स.ं : 2012, प०ृ 238 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 69

70 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ‘िकष का िफू ान’ कहानी सगं ्रह की दनवादष सिा, िकष का िूफान, मरे ी जीि, डायन, सोमा का साहस, होली नहीं खेलिा, जािू के चावल, औरि आदि कहादनयों मंे अनमेल दववाह, प्रेम, काम वासना और नारी स्वाधीनिा जसै ी समस्याओं को उद्घादटि दकया गया ह।ै ‘डायन’ कहानी मंे यिपाल ने समाज मंे प्रचदलि रुदढ़वािी परम्पराओं का दिकार बनी नारी का दचिण दकया है। कहानी की नादयका सजूष घर के नौकर पिना के साथ भाग कर दववाह कर लिे ी ह।ै इस कहानी मंे िहर और गावँ के पररविे िथा िहर के प्रदि गावँ के लोगों की मानदसकिा का दचिण दकया गया है। सजूष िहर में रहने वाली है और पिना पहाड़ के गाँव का। एक बार वह घर से िहर चला जािा है। जब लौटकर आिा है िो िहर की औरि को ब्याह के लािा ह।ै इस कहानी में परम्परागि रूदढयों िथा अधं दवश्वास में बंधे लोगों का दचिण ह।ै “धरिी और औरि क्या कभी दकसी एक भाई की हुई है ? माँ होकर मैं यह कै से िखे सकिी हूँ ! मरे े घर क्या िो-िो चार-चार औरिें आएगं ी। क्या मरे ा कल दििर-दबिर करके घर का सत्यानास करना चाहिी है ?|”1 ओ भैरवी संग्रह की कहानी ‘ओ भरै वी’ में यौन समस्या को उठाया ह,ै दजसमें बौद्ध दभक्षओं को नारी के सम्पकष से िरू रहने की सलाह िी गयी ह।ै ‘सबकी इज्जि’ कहानी में नारी के प्रदि सम्मान की भावना को जगाने का प्रयास दकया गया ह।ै ‘सच बोलने की भूल’ संग्रह मंे ‘नारी की ना’ कहानी मंे नारी की संकोचिील प्रवदृ ि को परुर्ों को आकदर्षि करने वाली बिाया गया ह।ै खच्चर और आिमी की ‘वषै्ट्णवी’ कहानी मंे बाल दवधवा की समस्या को उद्घादटि दकया गया है। ‘उपिेि’ कहानी में “नारी की समस्या को अथष से सम्पकृ ्त कर िेखा ह।ै इस कहानी के जररये वे यह स्थादपि करिे हैं दक नारी के दलए यौन िदृ प्त दववििा है और परुर् के दलए मन बहलाने का साधन इसमें नारी की दववििाओं और िहे व्यापार की ओर जाने की दस्थदियों का अंकन ह।ै ”2 ‘धमषयद्ध’ संग्रह मंे नारी की सामादजक दस्थदि को सधारने िथा नारी की मदक्त पर बल दिया गया ह।ै सगं ्रह की कहानी ‘मगं ला’ मंे कहानी की पाि मगं ला की ियनीय दस्थदि और कानून के खोखलेपन का पिाफष ाि दकया गया ह।ै “अन्िदवरष ोध की पररदस्थदि में जो लोग बदद्ध से काम लने े के दलये ियै ार रहना चाहिे हंै उन्हीं को यह कहादनयाँ सनाना चाहिा हू।ँ ”3 ‘दचि का िीर्षक’ संग्रह की आिमी और पसै ा, मार का मोल, एक दसगरेट, पांव िले की डाल आदि कहादनयों मंे दपिसृ त्तात्मक समाज मंे नारी की पराधीनिा, नारी की अदस्ित्वदवहीन दस्थदि आदि को रेखांदकि दकया गया ह।ै यिपाल नारी को एक सहयोगी के रूप में िखे िे हंै और उसके सम्मान, समानिा, और स्वििं िा के पक्षधर रहे ह।ंै नारी जीवन के दवदवध पहलू यिपाल की कहादनयों में दृदिगोचर होिे हैं जो नारी के प्रदि उनके सकारात्मक दृदिकोण का बोध करािे ह।ंै यिपाल ने नारी जीवन की दवदवध समस्याओं को व्यक्त दकया ह,ै दजससे नारी की पीड़ा का अहसास होिा ह।ै यिपाल के नारी पाि सघं र्िष ील है जो पररदस्थियों से समझौिा स्वीकार न कर उसका डटकर सामना करिी ह।ै यिपाल की कहादनयों में नारी के वल घर की चाहरिीवारी में रहकर जीवन दबिाने वाली नहीं बदल्क इस बधं न से मक्त होकर परुर् के साथ कं धे से कं धा दमलाकर चलने का साहस रखने वाली ह।ै हमारी ससं ्कृ दि एवं समाज नारी को पराधीनिा का नकाब पहना कर एक समदृ ्ध परम्परा से अलग थलग रुदढ़वािी मानदसकिा के बंधन मंे रखना चाहिा ह।ै यिपाल की दृदि में नारी की सत्ता इससे कहीं अदधक दभन्न है वह इस खोखली मान्यिा के पक्ष में नहीं है। नारी के वल भोग की वस्ि नहीं बदल्क उसका अपना अदस्ित्व ह।ै उसकी अपनी अलग पहचान ह।ै यिपाल की दृदि में नारी न के वल एक पररवार का बदल्क सम्पणू ष समाज का आधार ह।ै यिपाल एक स्वस्थ समाज की कल्पना करने के दहमायिी हंै। नारी समाज का अहम दहस्सा ह।ै नारी के न जाने दकिने ही रूप िथा गण हंै दजन्हंे समझना बहे ि जदटल ह।ै 1 यिपाल, िकष का िूफ़ान, लोकभारिी प्रकािन, इलाहाबाि, स.ं : 2010, प०ृ 78 2 हमे राज कौदिक, कथाकार एवं उपन्यासकार यिपाल, पष्ट्पाजं दल प्रकािन, दिल्ली, स.ं : 2006, प०ृ 31 3 यिपाल, धमयष द्ध, समपणष , लोकभारिी प्रकािन, इलाहाबाि, िसू रा स.ं : 2014, प०ृ 5 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 70

71 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 यिपाल का उद्दशे ्य नारी को परुर् के समानान्िर रखना था। नारी िोर्ण के पीछे परुर् प्रधान समाज के अत्याचारों की िीव्र प्ररे णा रही ह।ै इसी भावना और समस्या को यिपाल की कहादनयों में दकसी न दकसी िरह दचदिि दकया गया ह।ै नारी िोर्ण, अनमले दववाह, बाल दववाह, दवधवा समस्या, स्त्री प्रथा आदि सामादजक अनीदियों का स्पि प्रभाव यिपाल की कहादनयों में िखे ने को दमलिा है। समाज के पररविषन से के वल सादहत्य और नारी की मन:दस्थदि में ही बिलाव नहीं आया अदपि कहानीकारों की नारी सम्बन्धी दृदि में भी पररविनष आया है। “यिपाल का नारी दृदिकोण बड़ा क्रांदिकारी ह।ै उनकी मान्यिा है दक पूजं ीवािी व्यवस्था मंे नारी क्रय-दवक्रय की वस्ि बना िी गई ह।ै उसकी कोई स्वििं सत्ता नहीं ह,ै वह सवथष ा पराधीन ह।ै हमारी परम्परा नारी की पराधीनिा को उसके चररि की महिा के रूप में ग्रहण करिी ह।ै परन्ि यिपाल नारी के प्रदि हमारे परम्परागि दृदिकोण को मानिे नहीं वे ऐसे एक िोर्ण-मक्त समाज की रचना करना चाहिे हंै जहाँ नारी दकसी की सम्पदि या िान की वस्ि न हो।”1 वनष्ट्कषा: अंििः कह सकिे हैं दक यिपाल ने नारी की दवदवध समस्याओं िथा जीवन से जड़े मद्दों एवं पररदस्थदियों को अपनी कहादनयों मंे उजागर दकया ह।ै यिपाल ने प्रमख रूप से नारी का आदथकष दपछड़ापन, दिक्षा का अभाव, नारी के प्रदि परुर् की वचसष ्ववािी सोच िथा िोर्ण आदि दवसंगदियों को रेखादं कि दकया ह।ै यिपाल अपनी कहादनयों मंे सामादजक दवर्मिाओं िथा दवसंगदियों पर प्रहार करिे हएु नारी को मदक्त के पथ पर चलने का आवान करिे ह।ंै दिक्षा और आदथषक सम्पन्निा स्त्री मदक्त का िस्त्र ह।ै यिपाल ने अपनी कहादनयों में नारी की स्विंििा, अदस्मिा को बनाये रखने की पहल की ह।ै यिपाल ने नारी चेिना को सिक्त करने हिे कई कहादनयों का सजृ न दकया ह।ै एक स्वस्थ दृदिकोण का पररचय ििे े हएु उन्होंने नारी के दवदवध पहलओं को संविे निीलिा से व्यक्त दकया ह।ै यिपाल ने अपनी कहादनयों के माध्यम से नारी को प्रेररि करिे हएु उसे समाज में अपनी पथृ क पहचान बनाने का संििे दिया ह।ै संिभा ग्रंथ सू ी : 1. सी. एम. योहन्नान, यिपाल का कहानी संसार : एक अन्िरंग पररचय, लोकभारिी प्रकािन, इलाहाबाि, प्र. सं. : 2005, प०ृ 133 2. सम्पा. मधरेि, यिपाल रचना संचयन (भदू मका), सादहत्य अकािमी, नई दिल्ली, पनमषरण स.ं : 2012, प०ृ 22 3. सम्पा. मधरेि, यिपाल रचना संचयन (भूदमका), सादहत्य अकािमी, नई दिल्ली, पनमषरण सं. : 2012, पृ० 238 4. यिपाल, िकष का िूफ़ान, लोकभारिी प्रकािन, इलाहाबाि, सं. : 2010, प०ृ 78 5. हमे राज कौदिक, कथाकार एवं उपन्यासकार यिपाल, पष्ट्पांजदल प्रकािन, दिल्ली, सं. : 2006, प०ृ 31 6. यिपाल, धमषयद्ध, समपषण, लोकभारिी प्रकािन, इलाहाबाि, िसू रा स.ं : 2014, प०ृ 5 7. सी. एम. योहन्नान, यिपाल का कहानी ससं ार : एक अन्िरंग पररचय, लोकभारिी प्रकािन, इलाहाबाि, प०ृ 132 1 सी. एम. योहन्नान, यिपाल का कहानी संसार : एक अन्िरंग पररचय, लोकभारिी प्रकािन, इलाहाबाि, प०ृ 132 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 71

72 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 सभ्य समाज की जरूरत है वकन्नर विमशा नेहा झा पीएच-ड़ी. िोधाथी, दहिं ी दवभाग दहमाचल प्रिेि के न्रीय दवश्वदवद्यालय ईमेल – [email protected] साराांश सावहत्य से लके र समाि मंे अि लर्गातार विमशों का दौर ह।ै विसमे दवलत, आवदिासी, िदृ ्ध तथा स्त्री िसै े महत्िपणू व विमशव सावहत्य मंे उभरकर आये ह।ंै लंवै र्गकता के विस आधार पर स्त्री विमशव ने सावहत्य तथा समाि में अपनी अवस्मता तथा अवस्तत्ि की लिाई को प्रस्ततु वकया तथा एक नई दृवष्ट से समाि को वििार करने पर मििरू वकया। तो उसी लैवं र्गकता के आधार पर सावहत्य और समाि में वकन्नर विमशव ने भी एक नई िहस को छेि वदया। सवदयों से उपेवक्षत हावशये का िीिन िी रहे वकन्नर समाि से लेकर सावहत्य मंे प्रािीन समय से ही विद्यमान ह।ंै महाभारत के वशखंडी तथा िहृ न्नला से लेकर वहन्दू तथा मुग़ल सम्राटों तक के दरिारों में उनकी महत्िपूणव वस्थवत रही है परन्तु ितवमान समय मंे उनके प्रवत अपवित्रता तथा अमानिीय व्यिहार के साथ - साथ उन्हंे घणृ ा की निर से दखे ना वकसी भी सभ्य समाि के वलए कलंक ह।ै समाि के वनमावण मंे इनकी भी साझेदारी को सवु नवश्चत करना होर्गा और समाि मंे उनके प्रीवत िार्गरूकता लानी होर्गी। विससे वक िह सभी वकन्नर भी अपने व्यवित्ि का वनमाणव कर सकंे । बीज शब्ि: दहजड़ा, दकन्नर दवमिष , समाज, सरकार प्रस्तािना: जब से िदनया मंे मानव सभ्यिा ने दवकास दकया है िभी से समाज ने मानव सभ्यिा को िो वगो में बाँटकर उसके दवकास के क्रम को समझा ह।ै मानवीय समाज को िो वगों में लैदगंकिा के आधार पर ही बांटा स्त्री एवं परुर्। इन्ही िो वगों के साथ - साथ समाज में एक अन्य वगष का भी दवकास हआु दजसको प्राचीन समय से ही नजरअिं ाज दकया गया जबदक वह मानव जादि में प्राचीन समय से ही उपदस्थि रहा ह।ंै सामान्यि: समाज में ऐसे अन्य वगष के दलए ‘दकन्नर’ एवं ‘दहजड़ा’ िब्ि का प्रयोग दकया गया ह।ै मानवीय समाज मंे यह वह लोग होिे है जो न िो पूणष रूप से स्त्री होिे है और न ही पूणष रूप से परुर्। कछ दविेर् अगं ो अथवा गण सूिों के दनयदमि दवकास न होने की के कारण, ये लोग सामान्यि: स्त्री एवं परुर् की भांदि न िो संभोग कर पािे है और न ही गभष धारण। इसदलए ही इन्हंे समाज मंे अपदवि िथा अिभ माना जािा ह।ै विषमान समाज मंे अनेक दवमिष जसै े िदलि दवमिष, स्त्री दवमिष, आदिवासी दवमिष, वदृ ्ध दवमिष के साथ ही साथ दकन्नर दवमिष की गंजू भी सनाई पड़ने लगी ह।ै इनकी समस्याओं को लेकर सादहत्य में कहादनयां िथा उपन्यास और कदविायंे भी खूब दलखी जा रही ह।ै दपछले कछ समय मंे दकन्नर दवमिष िजे ी से उभरकर आया ह।ै साधारणि: दहजड़ा िब्ि से हमारे मदस्िष्ट्क में रेल गाड़ी में, बस अड्डों पर, रेड लाइट पर, या पाकष मंे जबरन पैसा मागं ने वाली, गंिी गदलयाँ िने े वाली, िाली पीट पीट कर पसै ा माँगने वाली परुर्ों के िरह दिखने वाली औरि आिी ह।ै क्योंदक हमने अपने आसपास उन्हंे इसी िरह जीवन-यापन करिे िेखा ह।ै जैसे वह हम सबसे दबल्कल अलग हो। उन्हंे समझनें से पहले हमंे दलंग को अच्छे से समझना होगा। दलंग िो प्रकार के होिे है 1. Homo sexual (समलदैं गक) 2. Hetro Sexual ( वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 72

73 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 दवर्मदलंगी) । समलदंै गक को LGBTI Community या Queer भी कहिे ह।ैं समलेंदगक पांच प्रकार के होिे हंै - 1.Lesbean 2.Gay 3.Bi-sexual 4.Transgender 5.Inter-sex वास्िदवकिा में Transgender को ही दहजड़ा कहिे ह।ै दहजड़ों के समिाय को सामादजक संरचना की दृदिकोण से 7 घरानों में बाटं ा जािा ह।ै हर घराने के मदखया को ‘नायक' कहा जािा ह।ै यह नायक ही अपने द्वारा आश्रम के दलए गरु का चयन करिे ह।ंै दहजड़े दजन्हंे अपने पदि के रूप में स्वीकार करिे है उन्हें ‘दगररया’ कहिे ह।ंै दकसी कारण से ऐसा होिा है दक बच्चे पणू ष रूप से न िो नर रह पिा है न ही मािा परंि इसमे इनका क्या िोर् है दजसकी सजा इन्हंे दमलिी ह।ै के वल समाज ही नहीं इन्हे अपने पररवार से भी प्रिाड़ना दमलिी है जो इनके दलए सबसे ज्यािा िख िने े वाला ह।ै ऐसे बच्चे के जन्म लिे े ही उन्हे या िो मार दिया जािा है या दहजड़ों को सोंप दिया जािा ह।ै अगर कोई माँ अपने ममिा के कारण बच्चे को अपने पास रखना भी चाहिी है िो बादक घर वाले और समाज यह होने नहीं ििे े ह।ैं परन्ि विषमान समय मंे समाज इनको लेकर काफी जागरूक हो रहा ह।ै सादहत्य के माध्यम से भी लोग इनके ििष को समझ रहे ह।ै इसदलए आजकल दहजड़ों को सम्मान सचू क िब्ि ‘दकन्नर’ नामे से पकारा जािा है परंि दकन्नर कहने से यह िात्पयष नहीं है की दहजड़ों को सम्मान दिया जाने लगा हो या दकन्नरों का िख कम हो गया हो। आज भी दहजड़ा िब्ि गाली के रूप में एक िसू रे को नीचा दिखने के दलए िी जािी ह।ै वे हमारे िभ कायों मंे आकार नाच – गाना करिे है और आिीर् िेकर नगे ले जािे ह।ै ऐसा माना जािा है की दहजड़ों का आिीवाषि बहिु असर करिा ह।ै इसी कारण हम उसे दकसी भी िभ कायष में बलािे है परंि सपने में भी उसके जैसा बनने या उसके करीब जाने से डरिे ह।ै समाज में उनके प्रदि इिना घणृ ा भरी होिी है दक हम उन्हंे इसं ान के िौर पर भी समझना नहीं चाहिे ह।ै दजस प्रकार हम िारीररक दवकलागं व्यदक्त के प्रदि सहनभदू ि रखिे है उसी प्रकार हम दहजड़ों के प्रदि क्यँू नहीं रख पािे है वे भी िो एक प्रकार से िारीररक दवकलांग ही होिे है न। इनके दलए न िो पररवार ह,ै न ही दिक्षा, न रोजगार और न ही समाज ह।ै इनका सपं णू ष जीवन ित्कार और मागं कर ही कट जािा ह।ै इसके अलावा इनके पास कमाई का और कोई जररया नहीं होिा इसी कारण आदथषक मिं ी से परेिान होकर कछ दहजड़े वेश्यावदृ ि की और जाने पर मजबूर हो जािे ह।ै हमारे ही समाज का दहस्सा होिे हयु े हम इसे समाज से प्रिादड़ि करके समाज से िरू जीवन दकसी िरह काटने पर मजबूर कर ििे े ह।ै हम इसे िखे कर हसँ िे है इनका मज़ाक उड़ािे है लदे कन हम भूल जािे है की इस दिरस्कार या मजाक से उन्हे दकिना कि होिा होगा। हमने इन्हंे आत्मसम्मान से जीने का समाज में एक मौका नही दिया। इनकी समस्यों को ध्यान में रखकर न िो सामादजक सरंचना िैयार की, यहाँ िक की इनके दलए सावषजदनक िौचालय भी हमारे समाज मंे नहीं बनाय।े इनको अपदवि – अिभ मानकर हमने समाज से िरदकनार िो कर दिया पर जब यह लोग जीवन जीने के दलए रेड लाइट पर या दफर बच्चे पिै ा होने पर या घर मंे िभ काम होने पर नगे मागं ने आिे है िो हमारे अिं र घणृ ा का बोध होने लगिा ह।ै हमने समाज में ही नहीं बदल्क सरकारी नौकररयों में भी इन्हंे अलग से आरक्षण नहीं दिया। न िो इनके दलए स्कू ल अलग बनाये और न ही कॉलेजों में िौचालय बनाय।े दहजड़ा होने की वजह से इनका मजाक उड़ाया जािा है इनके िरीररक लक्षणों को िेखिे हएु िंग दकया जािा ह।ै दजस कारण यह लोग अपनी पढ़ाई बीच मंे छोड़ िेिे है या दफर इन्हें दिक्षा पूरी करने का मौका ही नहीं दमलिा ह।ै इनकी इन्हीं सभी समस्यों को ध्यान में रखकर अब इनपर सादहत्य दलखा जा रह ह।ै दकन्नरों की चचाष विमष ान वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 73

74 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 सादहत्य में ही नहीं बदल्क पौरादणक ग्रथं ो मे रामायण और महाभारि मंे भी की गयी ह।ै महाभारि महाकाव्य में दिखडं ी नामक दकन्नर की चचाष है िो रामायण मंे भी दकन्नरों से संबदन्धि अनेक कथाएँ प्रचदलि ह।ै पराने समय में दहन्िू एवं मदस्लम िासक इन्हें हरम की सरक्षा के दलए दनयक्त करिे थ।े पहले दजस दवर्य पर बाि भी नहीं की जािी थी आज उस दवर्य पर लोग चचाष करना आरंभ ही नहीं दकए बदल्क इसे समाज की ज्वलंि समस्या के रूप में भी स्वीकार दकया जा रहा ह।ै वसै े िो दकन्नरों की समस्याओं पर बहुि पहले ही गौर करना चादहए था परंि िेर से ही सही यह अब दकन्नरों की समस्या को गभं ीरिा से दलया जा रहा ह।ै सादहत्य में दकन्नर समाज पर रचनाएँ दलखी जा रही है, लखे प्रकादिि हो रहे ह,ै कई दवश्वदवद्यालयों मंे इनपर िोध भी कराया जा रहा। वसै े िो पराने समय से ही अनेक रचनाकारों ने दकन्नरों की चचाष अपनी रचनाओं में की है परंि वास्िव मंे दकन्नर दवमिष की िरुआि नीरजा माधव का उपन्यास ‘यमिीप’ से माना जािा है दजसकी रचना 2001 में हईु । यमिीप उपन्यास की नादयका नन्िरानी या नाज बीवी ह।ै नन्िरानी के चाल - चलन एवं स्वभाव से उसकी माँ को पिा चल जािा है दक नन्िरानी दहजरा है परंि वह समाज की परवाह दकए बगेर उसे अपने साथ रखना चाहिी है और उसे अच्छी दिक्षा प्रिान करवाने की चिे ा करिी ह।ै परंि पढ़ने मंे होदियार होने के बावजूि उसकी दिक्षा पूरी नहीं हो पािी क्योंदक उम्र के बढ़ने के साथ - साथ उसे िाढ़ी - मूछ आने लगिे ह।ै उसके साथ के बच्चों का उसे इस कारण दचढ़ाना उसे अिं र िक िोड़ कर रख िेिा ह।ै समाज के िाने और पररवार के िख के कारण वो दहजड़ो की बस्िी उनकी िदनया मंे जाने का फै सला लिे ी ह।ै वहाँ उसका नाम नंिरनी से नाज बीवी हो जािा है और उसके गरु मेहिाब गरु बनिे ह।ै इस उपन्यास के माध्यम से माधव जी दहजड़ा समाज के यथाथष को ििाषया है उन्होने ये दिखाने की कोदिि की है की समाज अगर मौका िे िो दहजड़े बहुि कछ कर सकिे है वो ये सादबि कर सकिे है दक उन्हें दकसी से कम नहीं आंकना चादहए। नाज बीबी कहिी भी है दक “अगर सरकार हमंे भी हदथयार िे, मैं िो लड़ंगी। लड़िे-लड़िे दहन्िस्िान के पीछे अपनी जान िे िंगू ी।” इसी िरह मबं ई के कं पनी मंे ऋण की वसलू ी के दलए दहजड़ो की सहायिा ली जािी है दजसे वो चटकी मंे वसूल कर ले आिी ह।ै एक लड़की का बलात्कार होने से दहजड़े ही उसे बचािे ह।ैं माँ की ममिा से िरू होने के बाि भी उनके अिं र इिनी ममिा बच्ची होिी है की वो एक पागल औरि के बच्चे को जन्म िने े में मिि भी करिी हैं और उस बच्चे को दकसी के द्वारा स्वीकार ना करने पर खि ही उस बच्चे को अपने साथ ले भी जािी ह।ैं बच्चे का स्कू ल मंे भिी करवाने के समय नाज बीवी का कथन दकन्नरों की व्यथा को अत्यिं मादमषक रूप से प्रकट करिा है - “जब हम धंधे पर नहीं होिे बहन जी िो इस िरह का मजाक हमारे सीने मंे गाली की िरह लगिा ह।ै हम आसमान से िो नहीं टपकिे हंै ना आप ही की िरह दकसी मां की कोख से जन्मे है हाड़ - मासं का िरीर दलया। हमंे िो अपने आप िख होिा है जीवन पर आप लोग भी िखी कर िेिे हो।” दहजरा अगर एक बार पररवार को छोड़ ििे े है िो वापस से पररवार मंे चाह कर भी नहीं जा पािा ह।ै नाज बीवी अपने मािा - दपिा को याि करने पर भी उनसे दमलने नहीं जा पािी ह।ै माँ की मतृ ्य के पश्चाि घर जाने पर भाभी भगा िेिी और िमिान में भाई। नीरजा माधव जी ने इस उपन्यास द्वारा दकन्नरों पर हो रहे अत्याचारों को िथ्यों के माध्यम से दिखिे हुये समाज में उनका महत्व और समाज के मखी धारा से उन्हंे जोड़ने का प्रयास दकया ह।ै दकन्नर जीवन पर आधारर िसू रा प्रख्याि उपन्यास प्रिीप सौरव कृ ि ‘िीसरी िाली’ है जो 2014 में आया। इस उपन्यास मंे दहजड़ो की मजबरू ीयों का खल कर वणषन दकया वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 74

75 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 गया ह।ै वे दकन कारणों से वेश्यावदृ ि मंे जाने को मजबरू होिे ह?ै क्या सभी दहजड़े वेश्यावदृ ि करिे ह?ै क्यूँ वे स्वयं ही दहजड़ा समिाय में चले जािे ह?ै आदि अनके प्रश्नों के उत्तर के साथ यह भी पिा चलिा है की उन्हंे समाज मौका नहीं ििे ा अगर इन्हंे मौका दमलगे ा िो वे दवनीिा जैसी एक प्रख्याि ब्यटू ीदियन और सदप्रया जैसी दफल्मी डासं र बन सकिी ह।ै इस उपन्यास मंे असली और नकली दहजड़ो की समस्याओं को भी दिखाया गया ह।ै इसके साथ ही दहजड़ा समाज की अनेक सच्चाईयों से भी पाठकों को रूबरू कराया है दजनसे वे अदनदभज्ञ थे। इसी क्रम मंे आगे महरंे भीष्ट्म का ‘दकन्नर कथा’ उपन्यास आिा है दजसका प्रकािन 2014 में हुआ इस उपन्यास मंे खानिान का की झूठी इज्जि, मान मयािष ा और सामादजक िबाव के कारण के से एक दपिा अपनी दहजरा संिान को को जान से मारने मंे भी सकं ोच नहीं करिा। साथ ही एक माँ की ममिा को भी दिखाया गया है एक माँ दकस प्रकार अपनी बेटी सोना का दकन्नर होने का राज सबसे दछपिी ह।ै सोना राजघराने की लड़की है लदे कन उसके दपिा को उसके दकन्नर होने की खबर लगने पर सोना के प्रदि उनका सारा प्रेम खत्म हो जािा है और वो उसे मारना चाहिे है परंि कहानी एक नया मोड़ लिे ी है और वह बच जािी है भदवष्ट्य मंे वह खूब नाम कमािी ह।ै इन्हीं का एक और उपन्यास जो दकन्नर पर आधाररि है वो है ‘मंै पायल’। मंै पायल उपन्यास दकन्नर के सघं र्,ष कि, पीड़ा सह कर भी खिहाल जीवन जीने की ललक की ह।ै दपिा का पायल के दलए ये कहना की “ये जगनी! हम क्षदिय विं में कलंक पैिा हईु ह,ै साली दहजड़ा।” उसे बार - बार मारना और एक बार िो इिनी बरी िरह से मारना की उसकी जान चली जाए। ये सारी चीजे उसे दवचदलि कर िेिी थी। वह अत्यंि िखी हो जािी थी परंि वहीं उसकी माँ का हमिे ा उसे बचाना, उसे हमिे ा स्नेह करना उसके दपिा के दिये गए घाव पर मरहम का काम करिा था। उपन्यास मंे उन दकन्नरों के जीवन का, उसके पररवार, उसके दहजड़ा समिाय का, सामादजक नजररए आदि का अत्यिं बारीकी से वणषन दकया गया ह।ै उपन्यास ‘मंै पायल’ के जररये समाज की सोच बिलने की कोदिि की गयी ह।ै दनमलष ा भरादडया का ‘गलाम मंडी’ में समाज के इस चमचमािी िदनया का िसू रा अधं रे ा पक्ष दिखाया गया ह।ै यह उपन्यास अिं रराष्ट्रीय स्िर पर थडष जेंडर, दजस्म्फ़रोिी, ह्यूमन रैदफदकं ग आदि दवर्यों पर दलखा गया है दजसे हमारा िथाकदथि समाज हमेिा से िबाना चाहिा ह।ै इस उपन्यास मंे काफी हि िक सच्चाई है दजसे ररपोटषर से बनी लेदखका दनमषला ने ररपोिजष िलै ी मंे भी दलखा ह।ै उपन्यास की नादयकाएं ‘कल्याणी’ और ‘जानकी’ ह।ंै इन्हीं के माध्यम से हमारे सामने उस िदनया का काला सच जो दिल िेहला िने े वाला है वो सामने आ पािा ह।ै इस उपन्यास के माध्यम से यह बिाया गया है दक दजस समाज मंे एक स्त्री की पीड़ा को उसके िख को नहीं समझा जा सकिा िो दकन्नरों की पीड़ा को समझने की उपेक्षा कै से रख सकिे ह।ैं दचिा मद्गल के उपन्यास ‘पोस्ट बॉक्स नंबर 203 नालासोपारा’ 2016 में प्रकादिि हुआ। हाल ही में इसे अकािदमक परस्कार से सम्मादनि दकया गया ह।ै इस उपन्यास में माँ - बेटे का ममसष ्पिी ररश्िा दिखाया गया ह।ै उपन्यास का मख्य पाि दवनोि उफष ‘दबन्नी’ है दजसे दलंग िोर् के कारण न चाहिे हयु े भी माँ दहजड़ो को सोंप िेिी ह।ै दवनय उस समिाय मंे अपने आप को ढाल नहीं पिा और न ही वो घर जा सकिा है लेदकन इसके बावजूि वह टूटिा नहीं है बदल्क वह समान्य जीवन जीना चाहिा है, नाम कमाना चाहिा ह,ै अपनी माँ का बेटा होने का फजष दनभाना चाहिा है और दहजड़ा समिाय के दलए भी बहुि कछ करना चाहिा ह।ै दवनय अपनी माँ को खि मंे दलखिा भी है - “सबने मझसे महं मोड़ दलया, पर सपनों ने मझसे महं नहीं फे रा, आज भी वे मरे े पास बेरोक-टोक चले आिे ह।ंै ” दवनोि और उसकी माँ एक ही िहर में रहने के बावजूि दचरियां के माध्यम से बाि करने पर मजबूर ह।ैं वह अपनी माँ को छोटी से छोटी वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 75

76 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 समस्याओं को बिािा है लेदकन माँ से दमल नहीं सकिा है और इसका िोर्ी हमारा समाज है जो एक मनष्ट्य की सारी कदमयों को बिासष ्ि कर सकिा है लदे कन दलंग िोर् जैसी कमी को नहीं। दचिा जी ने इस उपन्यास में यह भी दिखाया है की दकस प्रकार राजनीदि मंे भी इन्हंे दसफष वोट बैकं के रूप मंे िखे ा जािा है जब दबन्नी अपने अदधकारो के दलए लड़िी है िो उसे मरवा दिया जािा ह।ै सादहत्य मंे कहादनयों के अिं र दकन्नर दवमिष की बाि करे िो उपन्यास की िलना में कहानी ज्यािा समदृ ्ध नहीं है परंि दफर भी दजिनी कहादनयाँ है वो दकन्नरों की व्यथा कहने में सफल है जैसे दिवप्रसाि दसंह की ‘दबिं ा महाराज’ एक कालजयी कहानी ह।ै इस कहानी में एक वदृ ्ध दहजड़ा का कि और िख से समाज को अवगि कराने की कोदिि की गयी ह।ै कहानी के िरुआि में ही दबंिा महाराज की दस्थदि दिखाई गयी ह।ै - “मच्छरों से भरे, भीगी-भीगी िीवार वाले घर में चारपाई पर लटे े-लेटे दबिं ा महराज का दिल डूबने लगा था, बिख की िरह उजली धूप िखे कर उसे बड़ी राहि दमली। उसने हाथ से धपू छआ, दसर को छू कर सोचा दक आज बेगानी लगने वाली यह िहे उसी की ह।ै ” समान्य वदृ ्ध को दजस समाज में बच्चे अपनािे नहीं है वहीं दहजड़ा वदृ ्ध को कौन अपनाएगा। ऐसे मंे उनकी दस्थदि बि से बत्तर हो जािी है यही इस कहानी मंे दिखाया गया ह।ै गररमा संजय िबे की कहानी ‘पन्ना बा’ दकन्नर दवमिष की एक सिक्त कहानी है दजसमे दिखाया गया है दक उनके जीने पर िो उन्हें इज्ज़ि नहीं ही दमलिी है मरने के बाि भी उन्हंे जिू े और डंडों से मारिे हयु े िमिान ले जाया जािा ह।ै डॉ। दवजंरे प्रिाप दसहं की कहानी ‘संकल्प’ अपने में एकिम अलग िरीके की कहानी ह।ै यह दहजड़ा जीवन की मेदडकल साइसं और प्लादस्टक सजरष ी के द्वारा होने वाले इलाज आदि के बारे मंे बिािी ह।ै इस कहानी में इिनी सारी जानकारी िी गयी है दजसे िायि ही पाठक जनिा हो। कहानी की मख्य पाि ‘माधरी’ है जो अनेक प्रकार के अपमान सह कर भी दवजय प्राप्त करिी है और हमारे सामने एक साहसी और दनडर दकन्नर के रूप मंे आिी ह।ंै अनके दकन्नरों ने आत्मकथा के माध्यम से अपनी पीड़ा को बया दकया है दजसमंे लक्ष्मी नारायण दिपाठी जो की ‘मी दहजड़ा मी लक्ष्मी’ िीर्षक से आयी दजसमें उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष का वणषन दकया ह।ै उन्होने अनके ऐसे कायष दकये दजससे दहजड़ा समाज आज अपने अदधकारों को पाने मे सफल हुआ ह।ै यह उनका ही सघं र्ष और लगन है दक दवगि अप्रैल 2015 मंे उच्चिम न्यायालय ने दकन्नरों को िीसरे दलंग की मान्यिा प्रिान दकया गया। दकन्नर समाज में ऐसी ही और भी अनके सामादजक कायकष िा उभर कर आ रही है जो अपने समिाय के हीि में कायष कर रही ह।ै दकन्नर को समाज मंे अन्य लोगों की िरह जीने का अदधकार िने े के दलए भारि सरकार ने अनेक कानून और योजनाए इनके दहि मंे बनाई ह।ै साल 2013 मंे राज्यसभा ने दनजी दवधेयक पाररि दकया था– ि राइट्स ऑफ रासं जेंडसष पसषन्स दबल, जो दकन्नरों के अदधकारों की बाि करिा था। अब सरकार ने दवधये क मंे िडं ात्मक प्रावधान भी रखा ह।ै काननू के दहसाब से दकन्नरों को उत्पीड़न या प्रिादड़ि की सजा 6 महीने की जले हो सकिी ह।ै इससे अब समाज मंे उनका मजाक बनाना या दफर उन्हें िंग करना बिं हो गया ह।ै इन्ही दवधये के ों के माध्यम से सामादजक लाभ अब इन्हें दमलने लगा ह।ै दकन्नरों को ओबीसी (अन्य दपछड़ा वग)ष में िादमल करने का प्रस्िाव ह।ै हालादं क, यह िभी लागू होगा, वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 76

77 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 जब वे अनसदू चि जादि या अनसदू चि जनजादि में िादमल नहीं होंग।े यानी यदि वे अजा–अजजा का दहस्सा हंै िो उन्हें उसका ही लाभ दमलिा रहगे ा। अप्रैल 2014 मंे भारि की िीर्ष न्यादयक संस्था– सप्रीम कोटष ने दकन्नरों को िीसरे दलगं के रूप मंे पहचान िी थी। निे नल लीगल सदवषससे अथॉररटी की अजी पर यह फै सला सनाया गया था। इस फै सले की ही बिौलि, हर दकन्नर को जन्म प्रमाण पि, रािन काडष, पासपोटष और ड्राइदवगं लाइसंसे में िीसरे दलंग के िौर पर पहचान हादसल करने का अदधकार दमला। इसके साथ ही उन्हें एक–िसू रे से िािी करने और िलाक िने े का अदधकार भी प्राप्त हआु । वे बच्चों को गोि ले सकिे हैं और उन्हंे उत्तरादधकार कानून के िहि वाररस होने एवं अन्य अदधकार भी दमल गए। परंि अनके दकन्नर दिदक्षि न होने के कारण अपने अदधकारों से अवगि नहीं हो पािे ह।ैं दिक्षा को लेकर थोड़ा सरकारों के साथ साथ इन्हंे भी आगे आना पड़ेगा। ये दजन - दजन अदधकारों से वंदचि थे वो सभी इन्हंे दिया जा रहा ह।ै दजस कारण अब अनेक दकन्नर खल कर सामने आ रहे है वे भी पढ़ दलख कर बड़े - बड़े पि पर बठै रहे ह।ै दकन्नर हर छेि में अपनी कादबदलयि समाज को दिखा रहे ह।ै िबनम मौसी, कमला जान, आिा िवे ी, कमला दकन्नर, मध दकन्नर, और रासं जडें र एदक्टदवस्ट लक्ष्मी नारायण दिपाठी आदि इसका उिाहरण ह।ंै विमष ान में हर वो कोदिि की जा रही है जो इन्हें मख्यधारा से जोड़ सके और यह लक्ष्य धीरे धीरे ही सही लेदकन परू ा होिा हुआ भी नज़र आ रहा ह।ै 2019 में भारि में सरकारी नौकरी लेकर दकन्नर सजं ना दसहं ने इदिहास रच दिया था। संजना दसंह को मध्य प्रििे के सामादजक न्याय एवं दिव्यांग कल्याण दवभाग के सदचव की दनजी सहायक के िौर पर दनयक्त दकया गया था। जोदयिा मंडल कभी भीख मागं ने पर मजबरू थी लेदकन अपनी महे नि से वह बंगाल के दिनाजपर दजले के इस्लामपर मंे भारि की पहली रांसजडंे र जज बनी। हाल ही माचष 2021 मंे छिीसगढ़ सरकार ने 13 रासं जडंे र को पदलस कांस्टेबल की नौकरी िेकर एक दमसाल कायम की ह।ै दबहार सरकार ने भी दसपाही और िरोगा के 500 पिों पर एक पि रांसजंडे र के दलए आरदक्षि रखा ह।ै इसके दलए उन्हंे दलदखि परीक्षा पास करनी होगी।ऐसे ही अब दकन्नर भी समाज के हर छेि में अपनी भागीिारी बराबरी के साथ दनभाने की िरुआि करिी ह।ै वनष्ट्कषातः उपयक्त अध्ययन एवं दचंिन के बाि हम कह सकिे है दक समाज के ििृ ीय एंव अन्य वगष की पीड़ा एंव िःख को समझिे हएु समाज में उनकी भागीिारी बराबर की ह।ै समाज के ऐसे वगष के लोगो के दलए समाज में जीने के दलए हम सबको एक सकारात्मक माहौल िने ा होगा दजससे की वह एक बेहिरीन जीवन जी सकें । एक छोटी सी उम्र से ही उन्हंे ित्कार और सामादजक बदहष्ट्कार जैसी यािनाओं को झेलना पड़िा ह।ै अपना पररवार, िोस्ि अपने सपने एवं अपनी इच्छाओं को िफनाकर एक नीरस जीवन की िरफ आगे बढ़ना होिा ह।ै इसदलए हम सबको इनके प्रदि घणृ ा के भाव की जगह स्नेह के भाव को महससू कराना होगा। जीवन यापन के दलए इन्हें भीख मागं नी पड़े इसदलए इन्हें नौकरीयों के बराबर अवसर प्रिान करने होंग।े इन्हे समाज से के वल इज्ज़ि और बादक लोगों की िरह सामान्य व्यव्हार चादहए सहानभूदि नहीं। समाज कछ वर्ो से इनके प्रदि सजग हआु है और साथ ही िमाम रचनाकार सादहत्य की दवदभन्न दवधाओं में लगािार इनके दवर्यों पर दलखकर इनके समाज की इनके वगष की समस्याओं से सभी को अवगि करवा रहंे ह।ै दजससे लोग अब इनके प्रदि सकारात्मकिा का भाव रखिे ह।ै सरकारी नौकररयों से लेकर के चनाव िक मंे अब यह बढ़ – चढ़ कर दहस्सा वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 77

78 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ले रहंे ह।ैं दहजड़ा िब्ि कलदं कि नहीं है बदल्क हमने उन्हे कलदं कि दकया है और इस कलकं को िूर करने के दलए इन्हे स्वयं भी दिदक्षि होना पड़ेगा िभी ये समाज के दबच अपनी पहचान एवं इज्ज़ि बना पायेंग।े सिं भा सू ी 1. माधव,नीरजा.(2009). यमिीप, सामदयक प्रकािन नई दिल्ली 2. भरादडया,दनमषला.(2016), गलाम मंडी, सामादयक प्रकािन नई दिल्ली 3. सौरभ, प्रिीप.(1997). िीसरी िाली, वाणी प्रकािन नई दिल्ली 4. दिपाठी,लक्ष्मी.(2015). मी दहजड़ा मी लक्ष्मी, वाणी प्रकािन नई दिल्ली 5. दसंह, दिव प्रसाि। दबंिा महारज - थडष जडें र : दहिं ी कहादनयां संग्रह 6. िब,े गररमा सजं य, ‘पन्ना बा’ - िो ध्रवों के बीच की आस : कहानी सगं ्रह वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 78

79 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 वहंिी कहावनयों मंे वकन्नर समाज -डॉ. वशराजोद्दीन फ्लटै नं.301, हपै ्पी होम्स प्लाज़ा अपाटषमेटं दपलर न.ं 191, दचंिलमेट, हिै राबाि सपं कष : 8880293329 ईमले : [email protected] सारांश विमशव के इस दौर में ये कहावनयां वकन्नर समाि को कें द्र में लाकर एक नया विमशव खिा करती ह।ैं वकन्नर या वकन्नर समाि को कालातं र से हावशए पर रखने के साथ-साथ उससे घणृ ा, हीन भाि, अपमान िोध यहााँ तक वक उसे शोषण का वशकार भी होना पिा। िह अपनी पहिान की तलाशा में आि भी संघषव कर रहा ह।ै इसी किी में लि कु मार ‘लि’ की कहानी ‘अधं ेरे की परत’ंे ध्यानाकवषतव करती ह।ै बीज शब्ि समाि, वकन्नर, अपमान, अवस्मता शोध आलेख जब भी हम भारिीय समाज की बाि करिे हंै िो यहाँ के अलग-अलग समाजों का चेहरा सामने आिा ह।ै और उन समाजों की ससं ्कृ दि, भार्ा, परम्पराओ,ं रीदि-ररवाज़ों आदि से भी रूबरू होिे ह।ंै समाज चाहे कोई भी हो और दकिना भी दवकदसि क्यों न हों, लदे कन वह अपने भीिर कहीं न कहीं एक संकदचि सामादजक ढाँचे का दनमाषण करिा ह।ै दजसमें एक िसू रे के प्रदि घणृ ा, सकं ीणष मानदसकिा, अपमान, िोर्ण, अत्याचार आदि असामादजक ित्व दवद्यमान ह।ंै विमष ान समय की सच्चाई यह है दक व्यदक्त ख़ि को दज़िं ा रखने और अपने अदस्ित्व को बचाए रखने के दलए जद्दोजहि करिा हुआ दिखाई िे रहा ह।ै इसीदलए विषमान समय मंे भारिीय समाज का दवश्लेर्ण करने पर मालमू होिा है दक कहीं आत्मसम्मान की लड़ाई है िो कहीं अदस्ित्व की लड़ाई, कहीं पहचान की लड़ाई िो कहीं वगष सघं र्ष की लड़ाई िखे ी जा सकिी ह।ै बड़ी आसानी से कहने को िो कह सकिे हैं दक समाज िमाम समिायों से दमलकर बनिा है और इसे समिायों की इकाई की सजं ्ञा िी जािी ह।ै लेदकन समाज के भीिर िखे ा जाए िो सच्चाई कछ और ही िीखिी ह।ै जहां उसके दवखदं डि रूप से पररदचि होिे ह।ंै समाज के बाहरी और भीिरी पहलओं को प्रस्िि करने में सादहत्य ही एक सिक्त माध्यम ह,ै दजसके ज़ररए समाज की प्रत्यके गदिदवदधयों को समझा जा सकिा ह।ै दजसमंे सादहत्यकार समाज की सच्चाई पर दवचार-दवमिष करने के साथ-साथ मानवीय संवेिनाओं को भी प्रकट करिा ह।ै सादहत्यकार की रचनाएं स्वानभदू ि और सहानभदू ि इस िोनों चीज़ों को प्रस्िि करने में मख्य भूदमका दनभािी ह।ंै सादहत्यकार कभी अपने भोगे हएु जीवनानभव का उल्लेख करिा ह,ै िो कभी आँखों िेखे हाल को बयान करिा ह।ै एक सच्चे सादहत्यकार की संविे नाएं हमेिा समाज के प्रदि बनी वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 79

80 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 रहिी ह।ै इसमंे कोई िो राय नहीं है दक सादहत्यकार का व्यापक दृदिकोण और समसामदयक मद्दों पर पनै ी नज़र ही उसे प्रासंदगक बनािी ह।ै यदि बाि की जाए दहिं ी कहानी लेखन की िो इसमंे विषमान भारिीय सामादजक पररविे और समकालीन दवर्यों पर चचाष-पररचचाष की गई ह।ै भारिीय पररप्रेक्ष्य में हरेक समाज की अपनी कहानी है और हरेक समाज का अपना ििष भी ह।ै इस कड़ी में समकालीन दहिं ी कहादनयां दकन्नर समाज और उसके के ििष को बयान करने में अपना सफ़र िय कर रही ह।ंै दवमिष के इस िौर मंे ये कहादनयां दकन्नर समाज को कें र में लाकर एक नया दवमिष खड़ा करिी ह।ैं दकन्नर या दकन्नर समाज को कालािं र से हादिए पर रखने के साथ-साथ उससे घणृ ा, हीन भाव, अपमान बोध यहाँ िक दक उसे िोर्ण का दिकार भी होना पड़ा। वह अपनी पहचान की िलािा में आज भी सघं र्ष कर रहा ह।ै इसी कड़ी में लव कमार ‘लव’ की कहानी ‘अधं रे े की परिंे’ ध्यानाकदर्षि करिी ह।ै इस कहानी मंे परेि (दकन्नर) की माँ ‘दनिा’ को दजन पररदस्थदियों और यािनाओं से गज़रना पड़िा ह,ै उसे पढ़कर दिलो-दिमाग दवचदलि हो जािा ह।ै इस कहानी में दनिा की िीन बेदटयां पैिा होिे ही मर जािी ह।ैं दफर वह हर बार की िरह चौथी बार भी गभषधारण करिी ह।ै जब वह अस्पिाल में नवजाि दिि ‘परेि’ (दकन्नर) को जन्म ििे ी ह।ै पि की चाहि मंे बैठा रदव डॉक्टर से दकन्नर पैिा होने की ख़बर सनिे सन्न रह जािा ह।ै िो दिन बाि जब रदव जच्चा और बच्चा को घर ले आिा ह,ै िो बच्चे के दलंग-िोर् की खबर पूरी कॉलोनी मंे आग िरह फै ल जािी ह।ै यहाँ िक दक कोई भी उसे िेखने नहीं आिा। कहानी की इस घटना और लोगों के व्यवहार से पिा चलिा है दक समाज सकं ीणिष ा के िायरे से अभी दनकला नहीं ह।ै नवजाि दिि और उसके पररवार के प्रदि घणृ ा, इस बाि की ओर इिारा करिी है दक मानवीय सवं िे नाएं ख़त्म होने के कगार पर ह।ंै पि चाह प्रधान समाज के िानों और िव्यवष हार से िगं आ कर रदव भी अपनी पत्नी और बच्चे को छोड़कर कहीं िरू चला जािा ह।ै पदि के जाने के बाि दनिा को समाज के िाने यहाँ िक मजबरू करिे हंै दक वह अपने बच्चे परेि के साथ आत्महत्या करने का मन बना लिे ी ह।ै सड़क के दकनारे बने एक बौद्ध मठ के द्वार पर दलखा हआु ‘जीवन अभी खत्म नहीं हआु ह,ै अभी िो िरुआि हईु ह’ै वाक्य दनिा को प्रभादवि करिा ह।ै और उसे दज़न्िगी जीने के दलए उम्मीि पिै ा करिा ह।ै वह अपना िहर छोड़कर िसू रे िहर चली जािी है।ं िहरी पररविे मंे अपनी दजजीदवर्ा चलाने के साथ-साथ परेि को पढ़ाना चाहिी ह।ै इसी कारण उसे स्कू ल मंे भिी भी करािी ह।ै लदे कन जब स्कू ल में परेि के दलंग-िोर् का पिा चलिा है िो उसे स्कू ल से दनकाल दिया जािा ह।ै यह कहानी न के वल दकन्नर की व्यथा को दचदिि करिी है बदल्क दनिा के माध्यम से स्त्री जीवन के संघर्ष को भी रेखांदकि करिी ह।ै सामादजक व्यवस्था मंे घटिी दनिा परेि से कहिी ह-ै “बेटा ये समाज वास्िव मंे समाज नहीं ह,ै वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 80

81 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 यह रूदढ़यों और गंिदगयों भरी बदस्ियों के समूह ह।ंै जो असामान्य को कभी सामान्य नहीं बनने िेिे, यहां िो कई बार इसं ान समाज की वजह से अपना सब कछ खो िेिा ह,ै उसे भी यह समाज अपनाने से परहजे करिा ह।ै जहां लोगों को अपने जसै े ही लोग जीने के दलए चादहए होिे ह.ंै ..”1 भले ही “भारि में साल 2014 मंे सप्रीम कोटष ने इन्हें सरकारी िस्िावेज़ों में बाक़ायिा थडष जंेडर के िौर पर एक पहचान िी ह।ै वो सरकारी नौकररयों में जगह पा सकिे ह।ंै स्कू ल कॉलेज मंे जाकर पढ़ाई कर सकिे ह।ंै उन्हंे वही अदधकार दिए हंै जो दकसी भी भारिीय नागररक के ह।ंै ”2 लेदकन समाज में दकन्नर को हास्य की वस्ि समझा जािा ह,ै या दफर घणृ ा की दृदि से िखे ा जािा ह।ै विमष ान समय में दकन्नर समाज आदथकष रूप से भी दपछड़ा हआु ह।ै िािी-ब्याह मंे नाच-गाकर या दकसी बच्चे की पिै ाइि पर जश्न मनाकर ये अपनी कमाई करिे ह।ैं इनके आदथकष स्त्रोि के बारे में बीबीसी दहिं ी दलखिा ह-ै “ये सड़कों पर, पाकों, बसों, रेनों, चौराहों, कहीं भी मांगिे हएु नज़र आ जािे हं।ै लोगों की नज़र मंे अब इनकी पहचान दभखारी की हो गई ह।ै ”3 इस समाज की दववििा और सघं र्ष को दचदिि करने में समकालीन कथाकारों का योगिान रहा ह।ै दहिं ी की सप्रदसद्ध लेदखका कसम अंसल की कहानी 'ई मिनष का गांव' मंे लदंै गक दवकृ दि से पीदड़ि लोगों की मादमकष ििा को दचदिि दकया गया ह।ै इस कहानी की पाि सलीमा कहिी ह-ै “भानय की बाि ह,ै हम जब अदलगं ी पिै ा हएु हंै एसके ्सअल, इसी से यहां रहने को मजबरू ह।ै ”4 लदे खका दकन्नर गरु जया के माध्यम से कहिी है दक जन्म पर दकसी का अदधकार नहीं होिा बदल्क यह एक प्राकृ दिक ह।ै इसीदलए सभी को जीने का सम्पूणष अदधकार ह।ै दकन्नरों के सन्िभष मंे समाज की िो धारणाएं ह।ंै पहली धारणा यह है दक उनसे घणृ ा करने के साथ-साथ अमानवीय व्यवहार भी दकया जािा ह,ै िसू री धारण यह है दक दिि के जन्म, दववाह, गहृ प्रवेि आदि के अवसर पर दकन्नरों को आमदं िि कर उनका आिीवािष भी दलया जािा ह।ै इस सन्िभष में कहानी की पािा दकन्नर गरु जया कहिी ह-ै “बाझं औरिंे हमारे पास बच्चे की कामना से आिी हंै और िाज्जब हमारा आिीवािष फलिा भी है दकसी भी बच्चे का जन्म हमारे नाच गाने के दबना परू ा नहीं होिा।”5 इसी क्रम मंे गररमा सजं य िबे की ‘पन्ना बा’ कहानी दकन्नर समाज के अनछए पहलओं को उजागर करने मंे महत्वपूणष ह।ै भारिीय समाज मंे दकन्नरों को जीिे जी नकार, अपमान, घणृ ा, गादलयों आदि का सामना करना पड़िा है। लदे कन मरने के बाि भी उसकी लाि को ििष के दसवा कछ नहीं दमल पिा। िरअसल दकन्नरों के अदं िम ससं ्कार को गैर-दकन्नरों से दछपाकर दकया जािा है। अंदिम ससं ्कार से पहले लाि को 1 सं. डॉ.एम. दफ़रोज़ खान, हम भी इंसान ह,ंै वानं मय बक्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण 2018, प.ृ 82-83 2 https://www.bbc.com/hindi/magazine-41038752 3 वही 4 कसम अंसल,मेरी दृदि िो मरे ी है, वाणी प्रकािन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2018, प.ृ 106 5 वही. प.ृ 107 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 81

82 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 जिू -े चप्पलों से पीटा जािा ह।ै ऐसा माना जािा है दक इससे उस जन्म मंे दकए सारे पापों का प्रायदश्चि हो जािा है। इस मादमकष दृश्य को लेदखका ने अपनी इस कहानी में प्रस्िि दकया ह।ै “दकन्नर की मौि पर उसकी लाि की जूिों से दपटाई की खबर पढ़ ही रही थी की पिा चला पन्ना बा मर गया।”1 लदे खका ने दकन्नरों के िःख को महससू करिे हुए विमष ान सामादजक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करिी है। वह कहिी ह-ैं “कोई काम पर रखे नहीं, कोई मािा दपिा इस अदभिाप को साथ रखने को राजी नहीं, कोई नौकरी नहीं, कोई पढ़ाई नहीं, बचे ारा मनष्ट्य दजए भी िो कै से? कै से िेह से परे हो, दफर भी जीिा है एक दकन्नर।”2 दकन्नरों की वेिनाओं को अदभव्यक्त करने में दकरण दसहं की कहानी 'संझा' भी महत्वपूणष ह।ै इस कहानी मंे नादयका सझं ा का जीवन दबखरा हुआ ह,ै दजसे रचनाकार ने बारीदकयों से दचदिि करने का प्रयास दकया ह।ै इस कहानी में िंपदत्त को बरसों से संिान प्रादप्त की इच्छा थी, वह क्षण भर मंे समाप्त हो गई। िरअसल जब सझं ा का जन्म हआु िो उसमें कोई जननांग नहीं था। इससे सझं ा के मािा-दपिा काफी दनराि थे। अमूमन िेखा जािा है दक जब दकसी पररवार मंे ऐसे दिि का जन्म होिा है िो समाज के िानों और िव्यवष हारों से बचने के दलए उस बच्चे को दकन्नरों को सौंप दिया जािा ह।ै लेदकन सझं ा के मािा-दपिा ऐसा नहीं करिे बदल्क समाज की नजरों से बचाकर स्वयं उसका पालन-पोर्ण करिे ह।ंै िीन साल की सझं ा के सर से माँ का साया उठ जािा ह।ै जैसे-जसै े सझं ा बड़ी होने लगिी ह,ै वैसे-वैसे उसके अन्िर भी बाहरी िदनया को िेखने की इच्छा जागने लगिी ह।ै वह अपने वदै ्य दपिा की सहायिा भी करना चाहिी ह।ै “बाउिी! आप की फं की मंे फफँू ि लग रही ह।ै इमाम िस्िे मंे िवा कू टिे समय आपके आँसू दगरिे रहिे हंै ! अपने मन भर जड़ी नहीं बटोर पािे इसदलए न! आज से जगं ल में और्दध के दलए मंै जाऊँ बाउिी!”3 लेदकन दपिा को समाज का डर सिाने लगिा है। इसीदलए संझा को बाहर दनकलने की अनमदि नहीं िेिा। वह कहिा ह-ै “नहीं! नहीं! बाहर दनकलिे ही िम्हें छू ि लग जाएगी। एकिम भयकं र! लाइलाज बीमारी! मैंने दकिनी बार िम्हें समझाया ह।ै ”4 आज समाज दजन पररदस्थदियों से गज़र रहा ह,ै वह दचिं ा का दवर्य ह।ै लगािार दगरिे मानवीय मूल्य और मानवीयिा का हनन सामादजक िाने-बाने को खोखला कर रहा ह।ै िरअसल अपराध, दहसं ा, बलात्कार आदि घटनाओं को अजं ाम दिया जाना कानून व्यवस्था की नाकामी को ििाषिा ह।ै इस सन्िभष मंे डॉ.पद्मा िमाष द्वारा रदचि 'इज्जि के रहबर' कहानी का दज़क्र करना प्रासंदगक ह।ै इस कहानी का पाि श्रीलाल की बेटी का स्थानीय गडं े द्वारा बलात्कार दकया 1 सं. डॉ.एम. दफ़रोज़ खान, वानं मय, अकं -जनवरी-माचष 2017, प.ृ 120 2 वही, प.ृ 121 3 स.ं डॉ. अरुण िेव, समालोचन वबे पदिका, अंक- दिसम्बर 26, 2017, प.ृ वेब पजे 4 वही वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 82

83 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 जािा ह।ै जब इस अमानवीय घटना का सोदफया (दहजड़ा) को पिा चलिा ह,ै िो वह िरंि श्रीलाल के पास जाकर बलात्कारी पर पदलस मंे मामला िजष करने के दलए कहिी ह।ै लदे कन श्रीलाल बलात्कारी पर मामला िजष करने से इकं ार कर िेिा ह।ै उसका मानना था दक अब िक दजस बाि का पिा के वल गांव वालों को ह,ै यदि पदलस िक बाि पहचुँ गई िो िहर भर में बाि फै ल जाएगी। इसीदलए वह चप हो जािा ह।ै लेदकन सोदफया के भीिर की ज्वालामखी चप रहने नहीं ििे ी। क्योंदक सोदफया को दजस जननागं के न होने से लोग उसकी इज्जि नहीं करिे और कछ लोग इसी जननागं के कारण िसू रों की इज्जि से खेलिे ह।ंै इसीदलए सोदफया ही उस गडं े को नपसं क बना ििे ी ह।ै सोदफया कहिी ह-ै “नहीं, लालजी। हमारी संख्या िो ईश्वर बढ़ािा ह।ै खिा न करे, वह और अदधक सखं ्या बढ़ाए। हमंे दकिना कि ह,ै इस योदन मंे होने का। ये िो हम ही जानिी ह।ंै हां, हमंे उस चीज पर बड़ा गस्सा जरूर ह,ै दजसके होने पर ये नासपीटे िम भरिे हैं और हमारी बहू बेदटयों की इज्जि से खेलिे ह।ैं ”1 ठीक इसी िरह से महरें भीष्ट्म की कहानी 'िासिी' मंे संिरी नामक दहजड़ा अपनी जान पर खेलकर बलात्कारी से रदि को बचािा ह।ै कहानी का पाि बिं ी के िेहांि के बाि रदि अपने पदि की नौकरी करिी ह।ै एक दिन कड़ी िोपहर में घाि लगाए बैठे िो वासना के भदे ड़यों ने रदि को िबोच दलया और उसे गलि इरािे से मालगाड़ी के खाली दडब्बे मंे ले गए। “प्लेटफामष पर ही लोगों को नाच-गाना दिखा कर अपना पटे पालने वाली दहजड़ा सिं री ने रदि के साथ हो रही जोर-जबरिस्िी कप िरू से िेख दलया था। वह भागी-भागी उस मालगाड़ी के दडब्बे मंे पहुचं गई जहां वहिी अपना वहिीपन करने जा रहे थ।े सिं री बिे हािा दचल्लािे हुए उन िोनों पर टूट पड़ी।”2 विमष ान समय मंे मनष्ट्यों के भीिर दनरंिरिा से स्वाथी भाव का बढ़ना, नदै िक मूल्यों के दवघटन को ििाषिा ह।ै कै स जौनपरी द्वारा रदचि 'एक दकन्नर की लव स्टोरी' कहानी एक ऐसे दकन्नर की िास्िां बयां करिी ह,ै दजसे सनकर क्रोध आना स्वाभादवक ह।ै इस कहानी की पाि रानो खबू सूरि दकन्नर ह।ै अपना जीवन यापन करने के दलए बड़े-बड़े होटलों में अमीरों का मनोरंजन करिी ह।ै अपने घर से हर रोज राजू के ऑटो से आना-जाना करिी ह।ै लेदकन ऑटो ड्राईवर राजू की दनगाह उसके धन-सपं दत्त पर होिी ह।ै इसीदलए वह रानो को अपने प्रमे जाल में फं साकर ब्लैकमेल करने लगिा ह।ै भोली-भाली और प्यार की भूखी रानो उसके र्ड्यिं को समझ नहीं पािी, बदल्क उस व्यदक्त पर आंख मंिू कर दवश्वास करने लगिी ह।ै राजू के प्रदि उसके प्रेम को कहानी के इस अिं से अंिाजा लगाया जा सकिा ह-ै “उसने राजू को अपना पदि ही मान दलया था और राजू को खि रखने की भरपूर कोदिि करिी थी, राजू एक ऑटो ड्राइवर था मगर रानो 1 https://hindi.matrubharti.com/book/read/content/19901403/honor-of-honor 2 सं. प्रिीप दिपाठी, कं चनजंघा, अंक-जनवरी-जून,2020, प.ृ 214 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 83

84 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ने उस पर इिने पसै े खचष दकए दक खि राजू ही भूल गया दक वो ऑटो ड्राइवर ह,ै और रानो जब बहिु खि हो जािी, िब राजू को खबू प्यार करिी और राजू भी खि हो जाए इसदलए वो राजू के आगे घोड़ा बन जािी।”1 एक दिन मौक़ा पाकर इसी अवस्था मंे रानो की पीठ मंे चाकू घोंपकर हत्या कर िेिा है और उसकी सारी जमा पजूँ ी लके र फरार हो जािा ह।ै दकन्नरों के प्रदि समाज का िव्यषवहार, संकीणष मानदसकिा और दिरस्कार िो है ही। लेदकन अपने घर मंे भी घणृ ा, नफरि, अपमान और िोर्ण का दिकार होना पड़िा ह।ै दजसका ज्वलंि उिाहरण बदबिा भंडारी की ‘समर से सरमई’ कहानी मंे दमलिा ह।ै कहानी की पाि िेवकी रमा िाई से बालक के सामान्य नहीं होने की ख़बर सनकर सन्न हो गई थी। समर मंे प्रदि दिन होने वाले बिलाव के कारण दपिा वीर दसंह का प्यार भी कम होने लगा था। यहां िक दक समर को मारिे-पीटिे भी थे। अपने अंिर होने वाले पररविनष और दपिा की यंिणा से समर समझने लगा था दक उसका जीवन और भदवष्ट्य सामान्य नहीं है बदल्क चनौिीपूणष ह।ै इसीदलए वह स्कू ल जाने से किराने लगिा था। घर के अलावा बाहरी समाज में भी समर के साथ िोर्ण व अत्याचार की घटनाओं का दसलदसला जारी था। वह अपने िोस्िों के बीच भी वह मज़ाक का पाि बन चका था। सभी लोग उसे लड़की व दहजड़ा कहकर मज़ाक बनाने लगे थे। हि िो िब हो गई जब चार- पांच बड़े लड़कों के इिारे पर समर के ही कछ िोस्ि उसके कपड़े उिारने की घटना को अंजाम ििे े ह।ंै “हम भी िो िखे ंे दहजड़ा आदखर बला क्या ह.ै .. कर डालो नगं ा हरामी को... िमष बचगे ी िो भाग खड़ा होगा मोहल्ले स।े ”2 इस घटना ने समर को अन्िर िक दहला कर रख दिया। इसीदलए वह अपनी चीत्कार सनािे हुए ईश्वर पर सवाल खड़ा करिा ह-ै “मझे क्या बनाकर िदनया में भेजा िनू े? क्या जानवर का जन्म भी नसीब न था मझे? क्या नरक की आग भी बिी न थी मझे?”3 समर की यह चीत्कार िथाकदथि सभ्य समाज के चहे रे पर से नकाब उिारिी है। अि: मख्य रूप से ये कहादनयां भारिीय समाज मंे दकन्नर जीवन के दवदभन्न पहलओं को दचदिि करने के साथ-साथ समाज का व्यवहार और सकं ीणष मानदसकिा से भी पररदचि करािी ह।ंै समाज के इस कट यथाथष को प्रस्िि करने मंे रचनाकार अपनी प्रदिबद्धिा दिखा रहा ह।ै यह भी सच है दक विषमान समय में दकन्नर समिाय अनेक समस्याओं िथा चनौदियों से गज़र रहा ह।ै दविरे ् रूप से अपनी पहचान और आत्मसम्मान की लड़ाई िेखी जा सकिी ह।ै मख्य बाि यह है दक स्त्री और परुर् की िरह ही दकन्नर भी इसी समाज का दहस्सा हंै और समान नागररक भी ह।ंै उनके प्रदि संकीणष 1 https://hindi.matrubharti.com/book/read/content/9232/ek-kinnar-ki-love-story 2 सं. डॉ.एम. दफ़रोज़ खान, हम भी इंसान ह,ैं वानं मय बक्स, अलीगढ़, प्रथम ससं ्करण 2018, प.ृ 77 3 वही वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 84

85 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 भाव रखने के बजाय व्यापक दवचार रखिे हएु उसके अदस्ित्व को स्वीकार करने की आवश्यकिा ह।ै इस बाि को भी भलू ना नहीं चादहए दक भारि का संदवधान सभी नागररकों को समान का अदधकार िेिा ह।ै साथ ही दलगं , जादि, धम,ष क्षिे , भार्ा आदि के नाम पर भेिभाव नहीं दकया जा सकिा। इस दििा मंे दहिं ी कहादनयां समाज को नई दििा, नई सोच और नए दवचार प्रिान करने में आगे बढ़ रही ह।ंै सन्िभा सू ी : 1. स.ं डॉ.एम. दफ़रोज़ खान, हम भी इसं ान ह,ंै वानं मय बक्स, अलीगढ़, प्रथम ससं ्करण 2018, प.ृ 82-83 2. कसम असं ल,मेरी दृदि िो मेरी ह,ै वाणी प्रकािन, नई दिल्ली, प्रथम ससं ्करण 2018, पृ.106 3. स.ं डॉ.एम. दफ़रोज़ खान, वांनमय, अंक-जनवरी-माचष 2017, प.ृ 120 4. सं. डॉ. अरुण िेव, समालोचन वेब पदिका, अकं - दिसम्बर 26, 2017, प.ृ वबे पजे 5. स.ं प्रिीप दिपाठी, कं चनजघं ा, अंक-जनवरी-जनू ,2020, प.ृ 214 6. स.ं डॉ.एम. दफ़रोज़ खान, हम भी इसं ान ह,ंै वानं मय बक्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण 2018, प.ृ 77 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 85

86 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मतु ललम औरतों की सच्ची अक्कासी ‘सूखी रेत’ गतु िया का घर’ में डॉ. बेनजीर अवतवथ वशक्षक, डी.य.ू नई वदल्ली Contect No: 9958716211 ईमेल: [email protected] सारांश-धमण की आड में हस्त्रयां सदैव हपतसृ त्ता का दशं झेलती रिी ि,ै समाज मंे प्रचहलत गलत रूहिवादी धाहमणक मान्यताएं इनके बदिाली के प्रमखु कारण ि।ैं यहद महु थलम महिलाओं की हथथहत पर हवचार करंे तो हनहितरूप से समाज मंे इन हस्त्रयों की हबगडती िुई सामाहजक, आहथकण , धाहमकण एवं सांथकृ हतक िहै सयत का अनुमान लगाया जा सकता ि।ंै महु थलम समाज के भीतर सासं ले रिी आधी आबादी एक बडे संकट के दौर से गुजर रिी ि।ै यि सकं ट उनकी अहथमता, थवतंत्रता एवं समाज मंे गैरबराबरी का ि।ैं यि एक गम्भीर प्रश्न ि।ै यि िाहशए का वि समाज िै जो हनरन्तर अपने हलए सामाहजक न्याय की मागं कर रिा ि।ै इन्िीं हस्त्रयों की पीडा, यातना, संघषण साहित्य में हकस रूप में अहभव्यहक्त पाते ि,ै मरे े इस आलेख मंे हवशेषरूप से इस ओर ध्यान के हन्ित करने का प्रयास हकया गया ि।ंै इस दृहि से उदणू साहित्य की प्रहसद्ध ख्याहत प्राप्त लहे खका जीलानी बानो को मंै एक मित्वपूणण रचनाकार के रूप मंे देखती िं जो बितु िी बारीकी से महु थलम स्त्री जीवन की समथयाओं का वाथतहवक एवं जीवन्त हचत्रण करती ि।ैं मेरा यि आलखे मुहथलम स्त्री हवमशण की हदशा मंे हवशषे योगदान को दशाणता ि।ै बीज शब्द - समाज, मुहथलम, महु थलम स्त्री अहथमता, समानता एवं थवततं ्रता, मुहथलम स्त्री हवमश,ण साहित्य, लघ-ु उपन्यास और किानी-सगं ्रि। र्तू मका धमव की आड़ में वियािं सदैि वपतसृ िा का दंिश झेलती र ी ,ै समाज मंे प्रचवलत गलत रूवढिादी धावमवक मान्द्यताएिं इनकी बद ाली के प्रमुख कारर् ।ैं यवद मुवस्लम मव लाओंि की वस्थवत पर विचार करंे तो वनवितरूप से समाज मंे इन वियों की वबगड़ती ईु सामावजक, आवथकव , धावमकव एिंि सासंि ्कृ वतक वै सयत का अनुमान लगाया जा सकता ।ैं मुवस्लम समाज के भीतर सासिं ले र ी आधी आबादी एक बड़े सकिं ट के दौर से गुजर र ी ।ै य सकिं ट उनकी अवस्मता, स्िततंि ्रता एििं समाज मंे गरै बराबरी का ।ैं य एक गम्भीर प्रश्न ।ै य ावशए का ि समाज ै जो वनरन्द्तर अपने वलए सामावजक न्द्याय की मागंि कर र ा ।ै य सत्य ै वक समय-समय पर वजन मुसलमान औरतों ने दशे की वपतसृ िा के विरूद्ध विरो करने का सा स वकया ै उन्द् ोंने िास्ति में समाज की परम्परागत रूवढिादी सोच पर सिावलया वनशान लगाया ,ै इतना ी न ीं बवल्क स्ियंि िी ोकर अन्द्य वियों के प्रवत ोने िाले सामावजक भदे -भाि को तथा उनके प्रवत अमानिीय व्यि ार तथा जलु ्म के वखलाफ बाआिाज बलु ंदि वकया। य मव लाएिं उन तमाम औरतों की जुबान बनी जो कभी भी अपने अवधकारों के वलए बगाित कर सकती ।ै उनमंे एक म त्िपरू ्व शवख्सयत लेवखका जीलानी बानों ।ै आज के अवतआधवु नक युग में टेक्नालॉजी का तीव्र विकास तथा तजे ी से बदलते एु सामावजक, राजनीवतक पररवस्थवतयों एिंि म ामारी के बढते नकारात्मक प्रभाि के कारर् पररिार को अनके ो चनु ौवतयों का सामना करना पड़ र ा ।ै पाररिाररक टूटन, अके लापन, ईष्या,व कल , वियों के प्रवत घरेलू व संि ा जैसी क्ु रतम त्रासदी अपने सबाब पर ।ै ऐसे में ‘सूखी रेत’ ’गवु ड़या का घर’ जसै ी म त्िपूर्व कृ वतयािं अवधक प्रासविं गक लगने लगती ।ंै मवु स्लम औरतों की बद ाली के वलए मध्यकालीन व्यिस्था, पररिेश और पररवस्थवतयांि विशेर् रूप से वजम्मेदार र ी वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 86

87 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ।ैं वजसमंे परदा प्रथा, ब ुवििा , तलाक, जैसी कु रीवतयांि स्ितः ी उत्पन्द्न ो गयी । परन्द्तु बीसिीं शताब्दी तक आत-े आते मुवस्लम औरतों की वस्थवत में कु छ पररितनव आने लग।े मवु स्लम मव लाओंि ने राजनीवतक, सामावजक और साव वत्यक आवद क्षेत्रों में अपनी म त्िपूर्व भवू मकाएंि वनभाने लगी । सऩ 1930 के आस-पास कु छ ऐसी लवे खकाएंि सामने आयी जैसे रवजया सज्जाद ज ीर, इस्मत चग़ु ताई, बानो, मुमताज शीरी, ज ािंबानो बगे म आवद वजन्द् ोंने अपने सशक्त अवभव्यवक्त और क्ावन्द्तकारी विचारों से समाज को समदृ ्ध करने का प्रयास वकया तथा इनकी अगली कड़ी में मे रुवन्द्नसा परिेज, ुस्न तबस्सुम, वन ा वकश्वर नाव द, रूकै या सखाित ुसनै के अवतररक्त त मीना दरु ावनी और नावसरा शमा,व गीतािजं वल श्री, जयश्री राय, तसलीमा नसरीन जसै ी लेवखकाओंि का नाम स्ितः ी जुड़ जाता ।ै वजस प्रकार से इस्मत चगु ताई ने बड़े ी बबे ाक तरीके से वपतसृ िामक के विरूद्ध मोचाव वलया ि ी काम आगे चलकर बाद की लेवखकाओंि में िावजदा तबस्समु और जीलानी बानो ने वकया। जीलानी बानो को मंै 20 िीं सदी की एक म त्िपूर्व लेवखका के रूप में देखती ।िं लेवखका उदवू की मश र मव ला कथाकार र ी ।ै इन्द् ोंने बड़े ी संिजीदगी से आज के दौर में बदलते ुए जीिन मलू ्यों ि अंितविरव ोधों की जो तस्िीर अपने उपन्द्यासों ि क ावनयों के माध्यम से प्रस्ततु वकया ै ि सरा नीय ।ै विशरे ् रूप से िी जीिन की अवभव्यवक्त। लवे खका अपनी धरती और दवु नया को ी अपनी क ावनयों तथा उपन्द्यासों का मजमनू बनाती ।ै जो दै राबाद की सामावजक, सांसि ्कृ वतक तथा राजनीवतक पररदृश्य को वदखाती ।ै इन्द् ोंने अपने समय मंे दै राबाद की जो बनती वबगड़ती तस्िीर अपनी आँखू ों से दखे ा उसका यथाथव एििं िास्तविक वचत्र प्रस्ततु वकया। इसी कारर् से इनके ज्यादातर रचनाओंि की पषृ ्ठभवू म इसी श र के इदववगदव घूमती ।ै य समाज ि जीिन से सम्बन्द्ध रखने िाली दो मूँु ी सोच की असवलयत को बेपदाव करती ।ै इनके इसी अतलु नीय साव वत्यक अिदान के वलए सन् 1997-98 मंे ‘मजवलस फरोग उद’वू नामक बड़े अदबी परु स्कार से निाजा गया। जीलानी बानो का जन्द्म 14 जलु ाई 1936 को बदायूँ, उिर प्रदशे में आु था। परंितु इनकी परिररश दै राबाद मंे ईु । जीलानी बानो ने 1954 में लघुकथा लेखन से अपना लेखकीय जीिन आरिंभ वकया। इन्द् ोंने क ावनयाूँ उपन्द्यास, लघु उपन्द्यास तथा इसके अवतररक्त बच्चों के वलए क ावनयाँू आवद वलखीं। लेवखका की म त्िपूर्व साव वत्यक रचनाओिं में - उपन्द्यास -(1)ऐिाने गज़ल (2) बाररशे संिग लघु उपन्द्यास -नग़मंे का सफर, जुगनू और वसतारे। क ानी संिग्र ‘रोशनी के मीनार’ ‘वनिानव ’ ‘पराया घर’ ‘रोज का वकस्सा’य कौन सा, तरयाक सच के वसिा, बात फू लों की आवद ।ै जीलानी बानो की कृ वतयों का अनुिाद के िल भारतीय भार्ाओंि मंे ी न ीं बवल्क विश्व की कई भार्ाओिं में अनिु ाद कायव आु । क ानी संगि ्र “सखू ी रेत’ की क ावनयांि िी जीिन के उस मरुस्थल को प्रवतवबिवं बत करती ै जो सवदयों से विस्ताररत ोता चला आया ै और उसकी तवपश और खवलश से ि न तो उकताती ै और न ी ार मानती ।ै नारी का य ी अिंतविवरोध एक प्रवतकार बनने से कै से क ाँू चकू जाता ै इसी मसले की दास्तान ै ‘सूखी रेत’ ।”1 ‘सखू ी रेत’: में 20 क ावनयांि सवम्मवलत -ै ज्िाएि,ं मजु ररम, एक वदन लबे र - रूम म,ंे स्कू टरिाला, आग ी, दश्त-े कबलव ा से दरू , गोश्त के व्यापारी, प्रॉवमस, एक शवू टिंग-वस्क्प्ट-एक पूरी, ताक में रखी ुई गवु ड़या, वजल्ले-सबु ानी, ए वदल... ए वदल, अजायबघर म,ें कब्ल-अज-मगव-बयािं प्रीमचै ्योर बच्च,े सखू ी रेत आवद सम्पूर्व क ावनयाूँ िी जीिन को व्यक्त करती ।ै ‘गुवड़या का घर’ लघु उपन्द्यास मंे (1) गवु ड़या का घर, (2) अबाशवन, (3) मशाले-जा,ँू (4) जगु नू और वसतारंे, सिंग्रव त ैं इस कृ वत में अपने समय ि आसपास के मवु स्लम समाज और जीिन को देखने वदखाने का प्रयास वकया गया ।ै इस उपन्द्यास में विशरे ् रूप से अतीत की स्मवृ तयों के आइने में ितमव ान की पड़ताल और भविष्य के सपने ।ैं य उपन्द्यास मनषु ्य को मनषु ्य वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 87

88 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 बनाए रखने तथा सिंस्कृ वत की रखा के वलए अ म भवू मका अदा करता ।ै जीलानी बानो के साव त्य का मखु ्य विर्य में राजनीवत, वकसान, मजदरू तबका र ा ।ंै इसके बािजदू इन्द् ोंने अपनी रचनाओिं में जबरदस्त िी वकरदार उठाए ।ै क ी ऐसा प्रतीत ोता ै वक मानों िी जीिन की समस्याएंि ी इनके साव त्य के कंे र में ।ै इससे सम्बवन्द्धत शायद ी कोई पक्ष अछू ता ो वजस पर लेवखका की दृवि न गयी ो। स्ियिं एक िी ोने के कारर् लेवखका ने बड़ी ी बारीकी से िी जीिन को परखा तथा उन पर ोने िाले शोर्र् को अवभव्यवक्त दी। इनकी वियािं संिघर्शव ील ैं तथा शोर्र्, अन्द्याय के वखलाफ बगाित करने का जज्बा रखती ैं उनके अंिदर स्िततंि ्रता एिंि मुवक्त की तड़प ै जो अिसर पाते ी एक सशक्त चररत्र के रूप मंे उभरती ।ै सरू जीत भवू मका मंे वलखते ै वक “जीलानी बानो की क ावनयों के नारी पात्र बार-बार प्यासे र जाने और अपनी तकमील की तलाश के नाकाम ो जाने को अपनी वकस्मत न ीं मानते ैं िे सब न तो वछछला विरो करते ंै और न ी अपनी गररमा से च्यतु ोते ,ैं सब सलु ग र े ैं भीतर ी भीतर सब रेवगस्तान से वनकलने की मुकम्मल रा तलाशते ुए”2 जीलानी बानो इस्मत चगु ाताई के जीिन तथा लेखन से विशरे ्रूप से प्रभावित र ी ।ैं इस्मत के समान ी जीलानी बानों ने विशेर्रूप से मध्यमिगीय मुवस्लम वियों को ी अपने लेखन का आधार बनाया ।ै एक मध्यमिगीय पररिार, वजसमें पवत-पत्नी साथ तो ै परंितु उनके बीच ै के िल वनराशा, आपसी नोक झोंक, नफरत की ऊँू ची दीिार ै ‘‘ ज ाूँ सब एक दसू रे से मु फे रकर जी र े थे एक दसू रे का जी जलाकर अपना जी खुश करते थ।े बा र वमलने िाली सारी नाकावमयों नाइसिं ावफयों का इतिं काम (बदला) एक दसू रे से लते े थे।”3 य ा लेवखका ने वििा ससंि ्था की सच्चाई को बेनकाब वकया ।ै एक िी को वकस तर से अपना जीिन ी बोवझल लगने लगता ै खशु ी का अ सास भी उसके अन्द्तःमन को छू न ीं पाता इसवलए ि अिंदर ी अिंदर बेचैन ।ै उसके अन्द्तद्ववन्द्द्व की जद्दोज द ी उसके मवु क्त की रा वदखाते ।ै प्रायः पररिार में वनर्वय लने े का दावयत्ि के िल परु ूर्ों को ी प्राप्त र ा ै य ी कारर् ै वक वपतसृ िात्मक समाज मंे िी सदिै ी दोयम दजे की नागररक मानी जाती ।ै उसकी अपनी इच्छा क्या ,ै ि कै सा जीिन जीएगी य पुरुर् ी तय करता आ र ा ।ै एक िी सदिै से अपने वपता, पवत एििं बटे े पर ी आवश्रत र ी उसका अपना कोई स्ितितं ्र अवस्तत्ि न ीं र ा, इसवलए ि अपनी खशु ी सदैि पुरुर् में ी ढढूंि ने का प्रयास करती ।ै निे स्ट पछू ती ै - एक िी से - ‘‘क्या ुआ ै तुम् ?ें ’’ ि मदव की तरफ दखे ती ।ै मंै समझ गई। अपने वदल की बात क ने का अवख्तयार ि मशे ा वकसी और को देती ।ै ’’ मदव क ता ै -:‘‘डॉक्टर! इसे बच्चा न ीं चाव ए। चार म ीने चढ गए ’ंै ’ इसे क्या चाव ए? ि कु छ न ीं क ती।’’4 लवे खका ने िी की जीिन की पराधीनता के वलए के िल परु ुर् को ी कु सरू िार न ीं ठ राया बवल्क औरत ी औरत की दशु ्मन ै और ि स्ियंि भी वजम्मदे ार ।ै ”एक अधड़े उम्र की तजे तरारव औरत ि मसु लसल (लगातार) बोले जा र ी ।ै ‘‘वबवस्मल्ला करके अंदि र जाओ भाभी, अल्ला ने चा ा इस बार लड़का ी ोगा। तमु ् ारे घर में उजाला ो जाएगा।.....‘‘बचे ारी के पािंच लड़वकयांि ो चकु ी ।ै घर में अल्ला का वदया सब कु छ ,ै मगर मेरे भाई के नसीब खोटे ।ंै म आप के पास बड़ी आस लके र आए ैं डॉक्टर...’’ य सनु कर औरत चकराकर वगरने लगती .ै ..।’’5 इस्मत ने ब ुत प ले ी ‘सोने का अण्डा’ क ानी वलखकर समाज की इस गम्भीर रूवढिादी सोच की ओर इशारा वकया था। एक लड़का और लड़की जन्द्मने पर इनके साथ वकस प्रकार से असमानता का व्यि ार वकया जाता ।ै लड़के को वसर पर वबठाने की ब ुत परु ानी रूवढिादी परम्परा र ी ै जो आज भी कायम ।ै इसी की मुखर अवभव्यवक्त जीलानी बानो के य ािं दखे ने को वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 88

89 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 वमलती ।ै समाज में कु छ ऐय्यास पुरुर् को भी लेवखका ने आड़े ाथों वलया ै जो बड़ी आसानी से वियों के भािनाओंि रौंदकर अपने शारीररक भूख शांित करते ।ै एक लड़की जो बचपन में ी अपने भोलेपन के कारर् परु ुर् द्वारा शारीररक एििं मानवसक रूप से ठगी जाती ै एक घबराई ुई सी लड़की नी की स ले ी बताती ै वक ‘‘डॉक्टर नी ने कु छ न ीं वकया। ि जो टीचर शाम को स्कू ल मंे स्पशे ल क्लास लेता ै न ि ... ि ...’’ /‘‘ि टीचर क ता ।ै वकसी से क ा तो बदनाम ो जाओगी, वफर तमु से कोई शादी न ीं करेगा....।’’लेवखका का मानना ै वक ऐसे परु ूर् भी ोते ैं जो मदव औरत में फकव न ीं करते बवल्क वियों के प्रवत समान भाि एििं सिंि ेदनशील बने र ते ।ै लड़की क ती ै - मैं इस दवु नया में न ीं र गंि ी ज ांि मदव ंै ि खौफ भरे ल जे में क ती ।ै /डॉक्टर - ‘‘पगली... दवु नयािं मंे सब मदव ि शी न ीं ोत।े ’’6 इसवलए लेवखका ऐसे परु ुर्ों की व मायत करती ै य िास्ति मंे िी के साथ किं धे से किं धा वमलाकर खुश ाल जीिन जीते ैं । जीलानी बानो ने ‘स्कू टरिाला’ क ानी शीर्कव को प्रतीकात्मक रूप में प्रस्ततु वकया ै अथातव एक िी का शातिं र ना तथा अन्द्दर ी अन्द्दर स्ियंि को तलाशने की वखड़की का दरिाजा उस खड़खड़ाते ुु एु स्कू ुूटर की बेल से खुलता ।ै लवे कन इसे खोलना आसान न ीं। घर की मजबूत चारदीिारी उसे ऐसा करने से रोकती ।ै क्योंवक वियों ने य जान वलया ै उनकी जग के िल घर ी न ीं बा र की दवु नयािं मंे भी ।ैं उसके दावयत्ि के िल घर तक ी म ददू न ीं ै बवल्क घर से बा र भी ै ज ांि उन्द् े अपने अन्द्य अनेक सामावजक दावयत्िों का भी वनिव न करना शरे ् ।ै िी विमशव अिधारर्ा के आरम्भ मंे ी छायािादी लवे खका म ादिे ी िमाव ने ‘घर और बा र’ लखे मंे एक ऐसी ी िी की कल्पना की थी जो सम्भािनाओिं से भरपरू कमवठ एिंि सशक्त िी ।ै वजसके सम्मुख कवठन चनु ौवतयािं भी ै उससे वपनटने का रास्ता क्या ै इसका साकार रूप जीलानी बानों के य ा आवबदा के जीिन में दखे सकते ।ै वजसकी अवभव्यवक्त कु छ इस रूप मंे ईु ै ‘‘अके ले घर मंे र तरफ आवबदा को परु -असरार (र स्यपूर्व) सरगोवशयािं सनु ाई दते ी।/मुन्द्ने को किं धे से लगाए ट लने मंे न जाने क्या सोचा करती थी कभी उसका जी चा ता वक सामने दीिार पर बैठी ईु वचवड़या बन जाए.....कभी उसे ख्याल आता ै वक मनु्द्ने की तर एक साल की बच्ची बनकर वफर से वजिदं गी शुरू करें, तो क्या बनेगी?’’7 आवबदा की जीवजविर्ा तब दम तोड़ने लगती ै जब उसका पवत उस पर व्यगिं्य कसने से न ीं चकू ता ।ंै ‘‘िा भई! स्कू टर िाले की मसरूवफयत की औकात तो तुम् ें खबू याद ो गई ै अब य करो वक उसकी प्राइिेट सके ्े टरी बन जाओ।’’8 जीलानी बानो की वियांि कवठनाईयों में भी अपने बचने का रास्ता वनकाल लते ी ै ि सा सी तथा आत्मविश्वास से भरपरू नारी ै जो अपनी आत्मरक्षा करना जानती ।ै ि इनका पवत तथा उसके पररिार के द्वारा अि ले ना तथा प्रताड़ना की वशकार ोती ,ै ज ांि ब ादरु ी की प्रशसंि ा करने िाला कोई भी न ीं ै वफर व म्मत न ारती ‘‘ि तो सारी दवु नया को पकु ार-पुकार कर य बात सनु ाना चा ती थी वक उसने वकतनी ब ादरु ी से अपनी इज्जत बचाई ।ै ’’ /‘‘य दो कौड़ी के मदव क्या समझते ंै वक जब चा ो वकसी औरत की इज्जत पर मला कर दो।’’9 वसतारा के पररिार िाले सास, ननद, शौ र सभी उसको ये ए सास वदलाते ंै वक मारे घर की इज्जत चली गई म समाज में क्या मुंि वदखाएिगं े खास बात तो य ै वक खावलद तो खदु अपनी प्रवे मका को चा ता ै उसके वलए वसतारा शारीररक सुख दने े के अलािा और कु छ भी न ीं ।ै वसतारा एक वशवक्षत एििं आत्मवनभवर िी ै अपनी बच्ची को लेकर उसके अिदं र एक आत्मविश्वास पदै ा ोता ै जब ‘‘जला-भनु ा खावलद कमरे में आया।’’/बच्ची को अपनी विपता (विपवि) क्यों सनु ा र ी ो?’’/अब इसी को सनु ाना ।ै उसे तो जरूर बताना ै वक र कदम पर वकतने आवदल उसका रास्ता रोकंे ग।े ’’10 जीलानी बानो िदृ ्ध वियों के प्रवत भी ग री सिंिदे ना रखती ।ैं जीिन के इस पड़ाि पर विवभन्द्न समस्याओंि का सामना वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 89

90 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 करना पड़ता ।ै य ा लवे खका ने उस समस्या को इशारा करती ै जो अपने बाल बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करती ै जो बढु ापे की लाठी बनने के बजाए उन्द् ंे बसे ारा छोड़ देते ैं और मरने पर आंिसू का एक कतरा भी न ीं वनकलता बचता ै के िल वदखािा मात्र ‘‘अम्मों सबकी तरफ बड़े दःु ख के साथ दखे र ी थी।’’/“उसके सबसे बड़े बटे े ने जल्दी सफे द कपड़ा डालकर अम्मों का मुूँ छु पाना चा ा था। अगर अम्मों ाथ उठाकर चादर न टा देती तो शायद िे सब दसू रे कमरे में जाकर उन्द् ंे दफन करने की तयै ारी शुरू कर दते े।’’11 मध्यमिगीय पररिारों में द जे प्रथा का चलन आज भी अपने चरम पर ।ै वदन प्रवतवदन इसमंे इजाफा ी ोता जा र ा ।ै िी जीिन मंे य वकसी अवभशाप से कम न ीं। स्ियंि वियांि भी इस रूवढिादी परम्परा को वनभाने से तवनक भी गरु ेज न ीं करती। इस सन्द्दभव मंे एक िी की मानवसकता कु छ इस रूप मंे प्रकट ोती ।ै ‘‘ मंे ऐसी नकचढी जल्दबाज ब न ीं चाव ए जो पंिवडतों, ज्ञावनयों की रस्मों का इतिं जार वकए बगैर खदु अपनी वचता में जल बैठे और वफर इल्जाम आए पवतदिे पर। इसवलए क ते ैं वक प ले ी इतना दे दो वक सती की रस्म तमु ् ारी बेटी को खदु ी न करना पड़े...।’’12 मारे समाज मंे पवत परमशे ्वर या खुदा मजाजी का रूप र ा ।ै वपतसृ िात्मक समाज मंे पवत को शीर्व पर बैठाने की य परंिपरा सवदयों से चली आ र ी इस अिधारर्ा को लवे खका ने तोड़ने की कोवशश की ।ै एक लड़की को पररिार के द्वारा य वशक्षा दी जाती ै वक ि पवत की इच्छा के विरुद्ध कु छ न करंेगी ‘‘अरी जोर से मत सँू ना खबरदार जो वकसी बात का पलट कर जिाब वदया। ि तरे ा पवतदेि ोगा, भगिान समान ि आए तो प ले अपने आपको समटे े रखना...।’’13 और भी नसी तंे दी जाती ंै जसै े ‘‘अरे पवत वजस छू री से मारे उस छू री का भला... ि नाररयािं सीधी स्िगव में जाती थी जो पवत के साथ सती ो जाती ।ै ’’14 लवे खका ने गवु ड़या के खेल को कु छ इस ढंगि से प्रतीकात्मक रूप में प्रस्ततु वकया। मीरा वजसे गवड़या से बे द लगाि ै ऐसा लगता ि गुवड़या मंे स्ियंि को ढूढँ ती ै ि क ती ै वक: ‘‘एक वदन भैया ने लड़वकयों का सारा खेल वबगाड़ वदया था। गुस्से मंे गुवड़या की धवज्जयाँू वबखेर डाली। सँू ते- सूँ ते उसका सारा वसगंि ार उजाड़ वदयाि।ं ....मीरा उस वदन ब तु रोई थी जसै े भैया ने गुवड़या के न ीं उसके टुकड़े कर डाले ों।’’15 जीलानी बानो ने एक पुरूर् की दोमु ी सोच को भी बपे दाव वकया ।ै एक तरफ उसकी प्रेवमका तो दसू री तरफ उसकी पत्नी ।ै पर पत्नी कभी भी अपने पवत से कोई सिाल न ीं करती न ी उसे छोड़ पाती ।ै ि अपना सिसव ्ि त्यागकर पवत को खशु रखने का प्रयास करती ै ऐसे में उस परु ूर् की मानवसकता कु छ इस तर से खलु कर सामने आती ।ै परन्द्तु एक का प्रवतरोध चकू ता न ीं । जमीला का पवत य सोचने पर मजबरू ो जाता ै वक ‘‘ि मुझे छोड़कर क्यों न ीं चली जाती? ि मुझे क्या पाने की उम्मीद में बैठी ?ै जमीला की इसी अदा ने मझु े घरे रखा था और इसी चक्कर में आकर मंै उसके तीन बच्चों का बाप बन गया, ालावंि क मरे ा वदली अभी भी किंु िारा था। मैंने अपनी चा त, अपनी प्यास, अपनी मु ब्बत का ीरा अभी तक अपने वदल मंे छु पाए रखा था।’’16 य एक िी का त्याग ी ै वक पुरूर् चा कर भी उससे बन्द्धनमुक्त न ीं ो पाता ।ै एक िी ऐसी विर्म पररवस्थवतयों में भी अपनी अलग रा बनाने की चा रखती ।ै ‘मशाले जा’ंि मंे एक ऐसे ी पररिार की क ानी ै वजसमंे पवत पत्नी साथ तो ैं परिंतु अपनी प्रेवमका के यादों का वचराग पवत मशे ा अपने वदल मंे जलाए रखता ।ै जैसे ी पत्नी को पता चलता ै क ती ै वक ‘‘मंै भी उस मदव पर क्या भरोसा करू? मैं अपने बच्चे को लेकर क ीं दरू चली जाऊिं गी.....। मैं इस घर मंे एक पल भी न ीं र सकती। वजस पर वकसी और औरत का क ो...।’’17 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 90

91 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 प ले तो लड़की का घर मंे जन्द्म लेना ी पररिार िालों के वसर पर खतरा मंिडराने लगता ।ै और जैसे-जसै े ि बड़ी ोने लगती उस पर प रा कई गुना बढ जाता । क्योंवक ‘‘अब नरू ी आ गई सबको चौंकान,े द लान,े खानदान की इज्जत के वलए खतरे की घंटि ी सब मदव चौक पड़े। उसे बाधने के वलए जाल, ब लाने के वलए वखलौने और समझाने के वलए वकताबें वलखी गई।’’18 नरू ी के ऊपर जार तर की बंिवदशे लगाई गई वफर भी कु छ-कु छ सिाल उसे मशे ा परेशान करते ंै ि पूछती भी ै ‘‘अब्बा आपकी वकताब मंे य क्यों न ीं वलखा ै वक औरतों को मदों के साथ कै सा सलूक करना चाव ए।’’ उसका बाप चौक पड़ा अपनी भोली-भाली सोने की मूरत जसै ी बटे ी को उसने गौर से दखे ा और उसके ाथ से वकताब छीन ली, ये वकताबंे लड़वकयों के पढने की न ीं ।ै ’’19 इस तर से मारा समाज लड़वकयों पर र तर की बधिं न लगाता ै और वकतनी खबु सरू ती से घर की चा रदीिारी मंे र ने की सावजश की जाती ।ै ‘अजायबघर म’ें नरू ी नाम की पात्र जो सदैि ी अपने बाप, भाई और माूँ के द्वारा बताए गए िसूलों पर चलती ै उसे पररिार के सदस्यों द्वारा कु छ इस प्रकार की सीख दी जाती ।ै ‘‘ मारे खानदान की लड़की का चे रा प ली बार देखने िाला मदव उसका शौ र ोता ।ै ’’ नूरी ने अपने वसर का पल्लू चे रे पर खींच वलया। ‘‘लड़वकयािं वफल्मी गीत न ीं सुनती ।ंै ’’ नरू ी ने अपने कानों पर ाथ रख वलए। ‘‘लड़वकयांि बातें न ीं करती ’ंै ’ अपनी माूँ के ुक्म पर उसने अपने लब सी वलए।’’20 पररिार के अनेक प्रयासों के बाद भी लड़की नूरी एक वदन वपजड़ा तोड़ फरार ो जाती ।ै वबना बताये बाजार चले जाना य ी उसका सामतंि ी व्यिस्था के प्रवत प्रवतकार और प्रवतशोध की भािना को बताता ।ै लेवखका ने उच्च वशवक्षत, आत्मवनभरव ,सा सी िी का वकरदार भी गढा ै जो समानता, स्ितंति ्रत मवु क्त की चेतना से भरपरू ।ै ि उन सभी बन्द्धनों को तोड़ दने ा चा ती ै जो इसकी मवु क्त की रा मंे बाधा बने । अपनी अवस्मता की रक्षा के वलए ि शोर्र् के विरूद्ध बगाित करने का जज्बा भी रखती ।ै तभी ि क ती ै वक ‘‘ न न ीं जाग र ी ँू प ले िार करने िाले को ढूंढि र ी ूँ । ’’21 तनष्कर्व स्पि ै वक जीलानी बानो की रचनाएिं नारी चते ना से युक्त सिंघर्शव ील वियों की दास्तान ।ै लवे खका ने अपने लेखन के माध्यम से िी जीिन के विवभन्द्न दृविकोर्ों अपनी जोरदार अवभव्यवक्त की ।ंै य लेवखका की अदभुत विलक्षर् क्षमता का पररचायक ।ै उनका ऐसा सजीि ि जीिन्द्त वचत्रर् कर पाना ी लवे खका की अनूठी विशेर्ता क ी जा सकती ।ै लवे खका मुवस्लम वियों के अनुरूप िी भार्ा का इस्तेमाल करना भी बखबू ी जानती ।ै जो पाठकिगव पर अपनी ग री छाप छोड़ते ।ै य कालजयी रचनाएिं ै जो आज तथा आने िाले समय मंे भी वियों मंे सा स एििं ऊजाव का संिचार करते र गें ें। वजससे वजससे ि अपनी आत्मरक्षा और अवस्मता सुरवक्षत रख सके । इसवलए लवे खका चते ािनी देती ैं और सचते करते एु क ती ै वक ”धनु क में वकतने रंिग घुले ?ंै /सत सरु ों का भेद ै क्या?/अवलफ लैला में वकतने दर (द्वार) खलु ते ?ंै /गावलब वदल को क्यों दतू ा ?ै /इन भेदों को जान लो, रजाए/िरना,/आने िाले िक्त के जब्र से/अपने जमीर को बचा न सकोगी...।” इसवलए प्रत्येक िी वशवक्षत और आत्मवनभवर बनंे इसके वलए लवे खका अपनी रचनाओंि के माध्यम से र सम्भि प्रयास करती ।ै सदं र्व 1. बानो, जीलानी ‘सूखी रेत’(वलप्यन्द्तरर्-सरु जीत) रामकमल प्रकाशन प्रा.वल., ससंि ्करर्, भवू मका, 2001। 2. ि ी, भूवमका 3. ज्िाए, प.ृ 9-10। वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 91

92 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 4. एक वदन लेबर रूम म,ें प.ृ 23। 5. ि ी, प.ृ 25। 6. ि ी, प.ृ 26। 7. स्कू टर िाला, प.ृ 29। 8. ि ी, प.ृ 31। 9. आग ी, प.ृ 39। 10. ि ी, प.ृ 41। 11. प्रॉवमस, प.ृ 57। 12. ताक में रखी ुई गुवड़या, प.ृ 78-79। 13. ि ी, प.ृ 79। 14. ि ी, प.ृ 81। 15. ि ी, प.ृ 79। 16. ऐ वदल ऐ वदल, प.ृ 97। 17. बनों, जीलानी ‘गूवड़या का घर’’(रूपान्द्तर-सरु जीत) भारतीय ज्ञानपीठ,नई वदल्ली-110003 सिसं ्करर् 2009, प.ृ 85। 18. अजायबघर म,ें प.ृ 103। 19. ि ी, प.ृ 105। 20. ि ी, प.ृ 106। 21. कब्ल अज-मगव बया,ूँ प.ृ 128। वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 92

93 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 विवटश राज मंे वहन्िी पत्रकाररता डॉ. वििेक कमार जायसिाल सहायक प्राध्यापक, सचं ार एवं पिकाररिा दवभाग डॉक्टर हरीदसहं गौर दवश्वदवद्यालय, सागर (म.प्र.) [email protected] Mob- 8269885473 साराशं - भारत में राष्रिाद का उदय, दसू रे पूिी देशों के समान िहतु हद तक यूरोपीय श्रेष्ठता की प्रवतक्या के रूप मंे हआु था। राष्रिाद, यह सि है वसद्धांत रूप में यरू ोपीय आविष्कार ह,ै विसे पूिी देशों ने पवश्चमी भौवतक प्रर्गवत के महत्त्ि को स्िीकार करते हएु अपनाया, लवे कन समान रूप से उन्होंने पवश्चमी ििसव ्ि का प्रवतकार भी वकया। प्रर्गवत सिको स्िीकार होती है लेवकन पराधीन रहकर नहीं। व्यवि से अवधक यह िनसमूहों पर लार्गू होती ह।ै भारतीयों के वलए ििा आसान तरीका यह था वक िे पवश्चम की भौवतक प्रर्गवत को अपनी सासं ्कृ वतक श्रेष्ठता के धरातल पर िनु ौती दंे और र्गुलामी के दायरे से िाहर प्रर्गवत का मार्गव वनकालने का प्रयास करंे। पत्रकाररता इसी अवस्थर काल के साथ उपिी आधवु नकता की एक विवशष्ट उपलवब्ध ह।ै िंवू क िनमानस के भीतर यह उत्सुकता प्रिल होने लर्गी थी वक हम कै से पवश्चमी िर्गत को अवधक से अवधक िान सकते हैं, इस उत्कं ठा की पूवतव विना अंग्रेिी भाषा को िाने नहीं हो सकती थी। पररणामत: अंग्रेिी वशक्षा का हर तरफ प्रभाि िढ़ने लर्गा। पवश्चम को िानने की इच्छा रखने िालों में दो तरीके के लोर्ग थे। एक िो आधवु नकता को फै शन के तौर पर अपनाना िहते थे दसू रा िे िो यरू ोपीय िर्गत के ज्ञानपक्ष से भारत को आलोवकत करने की आकाकं ्षा रखते थे। इन्हीं के िीि भारतीय पत्रकाररता का पदापवण हुआ. प्रस्ततु शोध पत्र अगं ्रेिी राि में भारतीय पत्रकाररता का समकालीन इवतहास के साथ सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत करेर्गा विसमंे अंग्रिे ी राि में भारतीय पत्रकाररता के इवतहास के साथ-साथ उस समय का सही-सही अिलोकन और उसमें पत्रकाररता की भवू मका का विश्लेषण भी देखने को वमलरे ्गा. बीज शब्ि- पत्रकाररता, राष्रिाद, िरं ्गाल, नििार्गरण, वहन्दी-उदवू पत्रकाररता, र्गाधं ी, अम्प्िडे कर, स्ितंत्रता शोध आलेख भारिीय जीवन और इदिहास मंे उन्नीसवीं सिी का महत्त्वपूणष स्थान ह।ै यह एक ऐसा समय था दजसके पहले मगल, राजपिू , मराठा आदि िदक्तयों का लगभग परू ी िरह क्षरण हो चका था और भारिीय संस्कृ दि और सभ्यिा पिन की ओर अग्रसर हो रही थी। इन दस्थदियों में अचानक जो एक बड़ा पररविनष आया, वह यह दक अंग्रजे , भारिीय नरेिों के अदधकार को छीनिे हुए स्वयं िासक बन बठै े। यह एक बड़ा राजनीदिक पररविषन था दजसका पररणाम यह हुआ दक भारि की आदथकष और सांस्कृ दिक पररदस्थदियों मंे ह्रास की गदि और िजे हो गई। यह एक ऐसा समय भी था जब यूरोप में औद्योदगक क्रादं ि हो चकी थी। इस क्रादं ि में ही नई सामादजक मान्यिाओ,ं नए सांस्कृ दिक मलू ्यों, आदथषक क्षेि में नए उत्पािन के साधनों िथा नई राजनीदिक चिे ना और व्यवस्थाओं का अभ्यिय हआु । इन नए मलू ्यों, मान्यिाओ,ं और ससं ्कृ दि का असर भारि की सामादजक व्यवस्था पर पड़ना स्वाभादवक था। सवषप्रथम अंग्रजे ों ने चाियषपूणष नीदियों के जररए भारि के व्यापार को अपने कब्जे में दकया। कर-नीदि, भदू म संबधं ी नीदि आदि में आमलू चलू पररविषन दकया गया। इन साम्राज्यवािी नीदियों ने भारि का व्यापार दछन्न-दभन्न िो दकया ही दजससे आदथषक िासिा की िरुआि हुई साथ ही दवर्मिापूणष नीदियों के कारण भारिीय समाज मंे भी अलगाव पिै ा हो गया। गावं की सभ्यिा टूटने लगी और समस्ि वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 93

94 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 संसाधनों पर अंग्रजे ी प्रभत्व स्थादपि हो गया। ईस्ट इदं डया कं पनी के आने का पररणाम यह हुआ दक दिक्षा के क्षेि में भी एक नई ‘क्रांदि’ ने जन्म दलया। अपनी िासन व्यवस्था सदृढ़ करने के उद्देश्य से अंग्रजे ों ने भारिीय गरुकल परंपरा की िैदक्षक नीदियों को ध्वस्ि कर अपने ढंग से दिक्षा व्यवस्था लागू की। लाडष मकै ाले ने एक और नई दिक्षा पद्यदि लाई दजसका एकमाि उद्देश्य भारि में पाश्चात्य सभ्यिा को और सदृढ़ बनाना था और ऐसे लोगों का दनमाषण करना था जो अगं ्रेजों और आम भारिीय जनिा के बीच िभादर्ए का काम करे। उनका मूल मिं व्य एक ऐसा वगष पैिा करने का था जो रक्त और रंग मंे िो भारिीय हों, दकं ि अदभरुदच, दवचार-आचार और ज्ञान मंे अंग्रजे ों जैसे हों। इस वगष को पिै ा करने का दवचार पदश्चम से आया था और इसे पिै ा करने की दजम्मिे ारी उन अंग्रेजों पर थी जो भारि में व्यापार का काम िखे रहे थ।े नई अथष व्यवस्था और नई सामादजक जरूरिों को ध्यान मंे रखकर इस ििे मंे जो दिक्षा प्रणाली ियै ार की गई थी उसने न के वल उन्हें नौकरी योनय दिदक्षि दकया बदल्क उनके भीिर यह मानस भी िैयार दकया दक वे अन्य भारिीयों से अदधक श्रषे ्ठ और बदद्धजीवी ह।ैं इस प्रकार इस दिक्षा व्यवस्था से दिदक्षिों का जो वगष पिै ा हआु उसका एक माि उद्दशे ्य के वल ऊं चे सरकारी ओहिों को पाना, समाज मंे ऊं ची हदै सयि प्राप्त करना और बदद्धजीवी कहलाना था। मैकाले की अगं ्रजे ी दिक्षा का िीघकष ालीन प्रभाव पड़ा जो आज िक व्याप्त ह।ै एक िरफ जहां इससे कछ लाभ हुआ वहीं कछ आिकं ाएं भी भारिीय जनमानस में दघर गई।ं भारिीय समाज मध्ययगीन जड़िा से मक्त िो हुआ लदे कन सामादजक एकिा, धादमषक समन्वय और राष्ट्रीय चेिना के प्रदि सिंदकि हो गया। चेिना की इस लहर से उच्च और प्रबद्ध वगष ही नहीं दपछड़े वगष भी प्रभादवि हुए दबना नहीं रह सके । इस दिक्षा के प्रभाव से प्राचीन सादहत्य और संस्कृ दि की अवहले ना होने लगी। नई दिक्षा और अथष नीदियों के कारण समाज मंे बदनयािी पररविषन के लक्षण दिखने लग।े सपं ूणष भारि आधदनकीकरण की नई संकल्पना के साथ आगे आने को िैयार हो उठा। इदिहास का यही काल ‘नवजागरण काल’ के नाम से जाना जािा ह।ै यरू ोपीय पनजाषगरण (रेनेसां) और भारिीय नवजागरण की मूल चिे ना भले ही एकसमान हो लेदकन इनकी प्रकृ दि, प्रवदृ त्त, पररवेि, प्ररे णास्रोि, ििनष , दृदिकोण, आििों और ऐदिहादसक संिभों में मौदलक अिं र है दजनसे इसका पथृ क और दवदिि रूप पररलदक्षि होिा ह।ै यूरोप का पनजाषगरण वहां के परािन सादहदत्यक-सासं ्कृ दिक मलू ्यों की पनस्थाषपना, नव-आदथषक पररवेि और ऐदिहादसक दक्रयािीलिा की उपज है जबदक भारिीय नवजागरण की प्रकृ दि इसके दवपरीि थी। भारिीय नवजारण की अवधारणा का सबं धं वस्िि: अपनी भार्ा, अपनी संस्कृ दि, अपना उत्पािन, और अपने राष्ट्र के उन्नयन िथा स्वाधीनिा के साथ था। इसके स्वरुप को राष्ट्रीय उत्थानवािी भी कहा जा सकिा है क्योंदक इसका प्रमख उद्दशे ्य पराधीन भारिीय जनमानस को आत्मनलादन, दववििा और यूरोपीय सभ्यिा िथा पदश्चमी मानदसकिा से उबारना था। राष्ट्रवािी भावनाओं के उभरने और इसकी व्याख्या को औपदनवदे िक संिभों से जोड़े दबना नहीं िेखा जा सकिा। उपदनवेिवाि और राष्ट्रवाि, इसमें कोई िक नहीं, एक ही इदिहास के आपस मंे उलझे हुए िो पक्ष ह।ंै इस बाि को समझने के दलए पदश्चमी राष्ट्रवाि और पूवी राष्ट्रवाि के भिे को भी समझना जरूरी ह।ै भारि मंे राष्ट्रवाि का उिय, िसू रे पूवी िेिों के समान बहुि हि िक यूरोपीय श्रेष्ठिा की प्रदिक्रया के रूप में हआु था। राष्ट्रवाि, यह सच है दसद्धािं रूप में यूरोपीय आदवष्ट्कार ह,ै दजसे पूवी ििे ों ने पदश्चमी भौदिक प्रगदि के महत्त्व को स्वीकार करिे हुए अपनाया, लदे कन समान रूप से उन्होंने पदश्चमी वचसष ्व का प्रदिकार भी दकया। प्रगदि सबको स्वीकार होिी है लेदकन पराधीन रहकर नहीं। व्यदक्त से अदधक यह जनसमूहों पर लागू होिी ह।ै भारिीयों के दलए बड़ा आसान िरीका यह था दक वे पदश्चम की भौदिक वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 94

95 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 प्रगदि को अपनी सांस्कृ दिक श्रषे ्ठिा के धरािल पर चनौिी िंे और गलामी के िायरे से बाहर प्रगदि का मागष दनकालने का प्रयास करंे। नवजागरण और आधदनकीकरण की संकल्पनाओं ने िो चीजें पिै ा कीं। पहला यह दक लोगों में ज्यािा से ज्यािा आधदनक होने की उत्कं ठा जाग उठी और िसू री इस दचंिा के रूप मंे उभरी दक पदश्चमी सभ्यिा के प्रभाव मंे आए दबना उस सभ्यिा के बारे में कै से अदधक से अदधक जाना जा सकिा है? हालांदक यह सोचना एक हि िक मूखषिा ही थी, क्योंदक पदश्चम से आई आधदनकीकरण की अवधारणा का मूल चररि ही यही था दक वह के वल मनष्ट्य के िौर-िरीकों, खान-पान और अन्य बाहरी चीजों में पररविनष ही नहीं चाहिी थी बदल्क उसका मख्य लक्ष्य इन चीजों के साथ भारिीय मानस में पररविषन और उस पर दनयिं ण करना था। पिकाररिा इसी अदस्थर काल के साथ उपजी आधदनकिा की एक दवदिि उपलदब्ध ह।ै चदंू क जनमानस के भीिर यह उत्सकिा प्रबल होने लगी थी दक हम कै से पदश्चमी जगि को अदधक से अदधक जान सकिे हैं, इस उत्कं ठा की पूदिष दबना अगं ्रजे ी भार्ा को जाने नहीं हो सकिी थी। पररणामि: अगं ्रेजी दिक्षा का हर िरफ प्रभाव बढ़ने लगा। पदश्चम को जानने की इच्छा रखने वालों में िो िरीके के लोग थ।े एक जो आधदनकिा को फै िन के िौर पर अपनाना चहिे थे िसू रा वे जो यूरोपीय जगि के ज्ञानपक्ष से भारि को आलोदकि करने की आकांक्षा रखिे थ।े भारिीय नवजारण के परस्किाष इसी वगष के थे। वे अंग्रेदजयि के पीछे पागल नहीं थे बदल्क अपनी परंपरा को आधदनक संिभष मंे प्रदिदष्ठि करने के दलए उसे एक नई अथवष त्ता िेना चाहिे थे। इसके दलए आवश्यक था पाश्चात्य दिक्षा और संस्कृ दि से अपने को एक हि िक संपकृ ्त रखिे हुए प्रगदि और सधार के मागष को प्रिस्ि करना। इस वगष के ज्यषे ्ठ प्रदिदनदध राजा राममोहन राय थे। उन्होंने भारिीय नवजागरण के जनक की भूदमका दनभाई और १८२५ में ‘िह्म समाज’ की स्थापना की। उनके साथ एक ऐसी स्वस्थ परंपरा आदवभिूष हुई दजसने आधदनक भारि ही नहीं संपूणष मानव जादि को उपकृ ि दकया। उन्हीं की पहल का पररणाम था दक सिीप्रथा, बहुदववाह प्रथा, िहजे प्रथा जसै ी सामादजक करीदियों के दवरोध में कड़े क़ानून बनाए गए। “राजा राममोहन राय ने दजस सधारवािी आिं ोलन का सिू पाि दकया वह नए-नए सधारकों और दवचारकों का वैचाररक अवलबं पाकर दनरंिर दवकासमान था। इस प्रकार एक ओर सामादजक कलर्- प्रक्षालन का महत् उपक्रम चल रहा था और िसू री ओर हमारी राजनीदिक चेिना प्रखर हो रही थी”।1 राजा राम मोहन राय और उनके सहयोदगयों ने सामादजक-आदथकष और राजनीदिक सधार आंिोलन की सदक्रयिा बनाए रखने के दलए स्वििं पिों की आवश्यकिा महसूस की। राजा राम मोहन राय ने भारिीय लोगों का प्रथम पि ‘संवाि कौमिी’ (बांनला) प्रकादिि दकया।2 पि प्रकािन की मूल दृदि को स्पि करिे हएु राजा राम मोहन राय ने दलखा था, “मेरा उद्दशे ्य माि इिना ही है दक जनिा के सामने ऐसे बौदद्धक दनबंध उपदस्थि करंू जो उनके अनभव को बढ़ाएं और सामादजक प्रगदि मंे सहायक दसद्ध हों, मंै अपनी िदक्त-भर िासकों को उनकी प्रजा की पररदस्थदियों का सही पररचय िेना चाहिा हूं और प्रजा को उनके िासकों द्वारा स्थादपि दवदध-व्यवस्था से पररदचि कराना चाहिा हूं िादक िासक जनिा को अदधक से अदधक सदवधा िेने का अवसर पा सकें और जनिा उन उपायों से अवगि हो सके दजनके द्वारा सरक्षा पाई जा सके और अपनी उदचि मांगे पूरी कराई जा सकें ” (हमे िं प्रसाि घोर् : ि न्यूजपेपर इन इदं डया, प।ृ २५- 1 कृ ष्ट्णदबहारी दमश्र, दहंिी पिकाररिा, प.ृ २७-२८ 2 राहलु रंजन, उन्नीसवीं सिी की दहंिी पिकाररिा मंे सामादजक चेिना, प.ृ २९ वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 95

96 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 २६)1। समाचार पिों के प्रदि सरकार का रवैया इिना कठोर था दक प्रकािकों और संपािकों को िरह-िरह से परेिान करने के उपक्रम दकए जाने लग।े एक समय ऐसी दस्थदि आ गई दक राजा राम मोहन राय को पि-प्रकािन का काम रोक िेना पड़ा। इस प्रकार िेि संक्रमण काल से गजर रहा था। “इसी संक्रं मण काल में भारिीय पिकाररिा का जन्म और दवकास हुआ था। भारिीय नवजागरण का पहला अनभव बगं ाल ने दकया था, बंगाल की खाड़ी से ही भारि में आधदनकिा का प्रवेि हआु । स्वभावि: भारिीय पिकाररिा की जन्मभूदम बगं ाल है और दहिं ी पिकाररिा का जन्म और दवकास कलकत्ता मंे ही हआु ”।2 भारिीय भूदम पर पहले अगं ्रजे ी पिकाररिा का पिापषण हआु था। इस दििा मंे पहला असफल प्रयास १७६८ मंे दवदलयम बोल्ट नामक अगं ्रजे व्यापारी ने दकया था। १७८० मंे जेम्स आगस्टस दहक्की द्वारा दनकाले गए ‘बंगाल गजट’ को भारिीय धरिी पर पहला अगं ्रेजी समाचार पि माना जािा ह।ै इसके बाि ‘कलकत्ता गजट’, ‘बगं ाल जनरल’, ‘मरास कू ररयर’, ‘बंबई हरे ल्ड’ आदि अगं ्रजी पि भी दनकले दजन्हें अपनी ही िासक जादि के कठोर दनयमों का दिकार होना पड़ा था। इस िथ्य मंे कोई सिं ेह नहीं दक दहिं ी पिकाररिा का जन्म बगं ाल मंे हआु लेदकन दहिं ी के प्रथम पि को लके र कई िरह की भ्रांदियां फै लाई गई।ं एक खास वगष द्वारा पं. यगलदकिोर िक्ल द्वारा कलकत्ता से दनकाले गए ‘उििं मािडं ’ को दहिं ी का प्रथम पि कहा गया जबदक इस बाि के ठोस प्रमाण मौजूि हंै दक दहिं ी का प्रथम पि दमिनररयों द्वारा दनकाला गया। ‘दिनििषन’ का प्रकािन पहले अंग्रजे ी-बंगला मंे १८१८ से १८२० िक हुआ। बाि में दिल्ली से आिमी बलाकर इसके िीन अंक दहिं ी में भी प्रकादिि कराए गए थ।े इस िौरान दहिं ी का एक और पि ‘गास्पल मैगजीन’ भी दमिनररयों द्वारा ही दनकाला गया था। हालांदक इन िोनों दमिनरी पिों में भी पहले पि होने को लेकर भी भ्रांदियां फै लीं लदे कन प्रामादणक खोज और उपलब्ध सामग्री के आधार पर दहिं ी का पहला पि ‘गास्पल मैनजीन’ को ही माना जािा ह।ै दहिं ी के प्रथम पि को लके र होने वाली इस बहस का मूल कारण यही समझ में आिा है दक भारिीय ‘पदं डिों’ को िसू रे धमष के अनयादययों द्वारा दहिं ी मंे दकए जा रहे कायष रास नहीं आए, क्योंदक उनके भीिर यह धारणा व्याप्त थी दक दहिं ी और उस भार्ा मंे काम करने का उनको ही एकादधकार प्राप्त ह।ै ३० मई १८२६ को ‘उििं मािडं ’ पि दनकलने के बाि दहिं ी पिों के प्रकािन मंे थोड़ी िजे ी आई लेदकन भारिीय समाज का ठीक ढगं से प्रदिदनदधत्व करने के दलए यह पयाषप्त नहीं थे। १८२६ से लके र १८५० िक दहिं ी पि-पदिकाओं के दनकलने की गदि यह िो प्रमादणि करिी है दक दहिं ी के पिकारों मंे अिम्य दजजीदवर्ा थी लेदकन सरकारी असहयोग और धनाभाव ने दहिं ी पिकाररिा के दवकास में रोड़े अटकाए। चदंू क उस समय अंग्रजे ी सरकार द्वारा दहिं ी पिकाररिा को कोई संरक्षण-समथनष नहीं प्राप्त था। उच्च दिक्षा, आजीदवका और न्यायालयी प्रदक्रया में या िो उिषू का प्रयोग होिा था या दफर अगं ्रजे ी का। जनिा का दनम्न आदथषक जीवन-स्िर भी दहिं ी पिकाररिा के दवकास की गदि में अवरोध बना। पिकारों की आदथकष कदठनाईया,ं दहिं ी प्रििे मंे साक्षरों की अल्प संख्या, पि-पदिकाओं के प्रदि जनरुदच और जन समथनष की न्यूनिा, िरू गामी सचं ार साधनों के अभाव, पिकारों के भीिर पिकार-कला दवर्यक ज्ञान का अभाव और पिकारों की अल्प संख्या आदि ने इस बाधा को और अदधक पि दकया। 1 कृ ष्ट्णदबहारी दमश्र, दहंिी पिकाररिा, प.ृ २८ 2 वही. प.ृ २८-२९ वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 96

97 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 भारिीय पिकाररिा के दवकास के साथ दिदटि सरकार की िमन नीदियां भी लागू होनी िरू हो गई थीं। लाडष वेलजे ली के िासनकाल मंे भारिीय पिों के िमन के दलए पहला क़ानून बनाया गया दजसका कल दमलाकर स्पि उद्दशे ्य यही था दक जहां िक हो सके भारि के लोगों को बबरष िा और अंधकार मंे रखा जाए और ििे ी जनिा में दकसी भी प्रकार का ज्ञान फै लाने वाले उपक्रमों और प्रयत्नों की कड़ी रोकथाम की जाए। कल दमलाकर उस समय का विावरण पूरी िरह दहिं ी पिकाररिा दवरोधी वािावरण था। ऐसी दस्थदि में छोटी-मोटी पदिकाओं का दनकालना भी िभू र हो गया था। अगं ्रेज गवनषर जनरल बिलिे गए लदे कन उनकी प्रेस सबं धं ी नीदियों में कोई उिारात्मक पररविनष नहीं आया बदल्क वे दिन-ब-दिन कठोर ही होिे गए। भारिीय पिकाररिा के इदिहास मंे के वल मटे कॉफ़ के कालखडं को पिों की स्वििं ा के दलहाज से स्वणषयग माना जा सकिा ह।ै १८५० िक अदधकिर बगं ला, उिषू और अगं ्रजे ी भार्ाओं मंे पि प्रकादिि हएु । दहिं ी या दहिं ी ससं ्करण के रूप में दजन पि-पदिकाओं का प्रकािन हआु उनमंे ‘बगं ििू ’ (१८२९), ‘प्रजादमि’ (१८३४), ‘बनारस अखबार’ (१८४५), ‘ज्ञानिीप’ (१८४६), ‘मालवा अखबार’ (१८४८), ‘साम्यिंड मािंड’ (१८५०) प्रमख थे। दहिं ी और दहिं ी पिकाररिा के दवकास के दृदिकोण से ये पि महत्त्वपणू ष िो थे ही लेदकन इनमें से कईयों के कलवे र में पूरी िरह चाटकाररिा की बू थी। राजा दिवप्रसाि ‘दसिारेदहिं ’ द्वारा दनकाले गए पि ‘बनारस अखबार’ की भार्ा ऐसी ही थी। दहिं ी पिकाररिा के इदिहास मंे इस पि को महत्त्व इसदलए दिया जाना चादहए क्योंदक इसके उिषू संस्करण से दहिं ी अनवाि ने दहिं ी पिकाररिा के मागष को प्रिस्ि दकया और इसने दद्वभार्ी पिों की परंपरा का सूिपाि दकया। इसने दहिं ी-उिषू बधं न को दृढ़िा भी प्रिान दकया। ‘बनारस अखबार’ का दहिं ी में अनूदिि संस्करण भी उिषू प्रधान ही था। उसमें आम बोलचाल की दहिं ी की झलक कहीं नहीं दिखिी थी। ‘मालवा अखबार’ इिं ौर िरबार का राजकीय मखपि था दजसके प्रारंदभक अकं ों मंे न िो ित्कालीन राजनीदिक पररवेि और सत्ताधाररयों की कोई िस्वीर पिे की गई और न ही सामादजक-सधारों और िकै ्षदणक सधारों को लेकर दकसी भी प्रकार का आवाह्न दकया गया। चदंू क ‘बनारस अखबार’ एक िरह से िासक वगष का प्रदिदनदधत्व करिा था और उस समय सरकारी कामकाज मंे उिषू को ही महत्त्व दिया जािा था इसदलए एक िरह की राजनीदि के िहि आम जन को दहिं ी से िरू रखे जाने का यह एक प्रयत्न भी था। इसकी प्रदिक्रया स्वरूप दविद्ध दहिं ी मंे ‘सधाकर’ (१८५०), ‘बदद्धप्रकाि’ (१८५२), ‘प्रजा दहिरै ्ी’ (१८५५), ‘ित्त्वबोदधनी पदिका’ (१८६५) आदि अनके पि-पदिकाएँ दनकलनी िरू हईु ।ं इस िौर की पि-पदिकाओं का जीवन-काल बहुि ही अल्प रहा। इनके कारणों को हम पवू ष में जान चके ह।ैं अल्प जीवन-काल और असहयोगात्मक वािावरण के कारण ही इस िौर की दहिं ी पिकाररिा की कोई दवदिि उपलदब्ध नहीं रही दफर भी ऐसे माहौल मंे पिकाररिा की परंपरा को जीदवि बनाए रखने में इनका ऐदिहादसक और सादहदत्यक महत्त्व दनदवषवाि ह।ै प्रकािकों-संपािकों के पास उस समय न िो ग्राहकों की कोई मागं थी और न ही दवज्ञापन का कोई लोभ और न ही कोई दनजी स्वाथ।ष इन दस्थदियों मंे िेि दहि और प्रजा की कामना से प्रेररि होकर अपना िन, मन, धन लगाना उनके दन:स्वाथष समपणष का ही सचू क ह।ै उत्तर उन्नीसवीं ििाब्िी मंे राष्ट्रीय नवजागरण का स्वरुप व्यापक रूप मंे दिखाई ििे ा ह।ै परू ा िेि पदश्चमीकरण, वैज्ञादनक सचं ार साधनों और सासं ्कृ दिक-राजनीदिक पररविनष ों से स्पंदिि था। यह एक ऐसा काल था दजसमंे राष्ट्रीय पिकाररिा का दवकास हुआ। ऊपर हम यह जान चके हंै दक िेि मंे िो धाराओं के लोग साथ-साथ चल रहे थे। एक वे जो पदश्चमी सभ्यिा को परू ी िरह अपनाकर आधदनक बनने की कोदिि कर रहे थे, और िसू रा वे जो पदश्चमी सभ्यिा से स्वयं को संपकृ ्त कर भारिीय ससं ्कृ दि और सभ्यिा को संजोने में लगे थे। इस काल की पिकाररिा को राष्ट्रीय पिकाररिा वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 97

98 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 इसदलए कहा जा सकिा है क्योंदक इस काल मंे पिों के जररए जनिा मंे राष्ट्रीय चिे ना दवकदसि करने का कायष दकया जा रहा था। इस काल की पिकाररिा ने ही अंग्रेजी औपदनवेदिक िासन के प्रदि जनिा मंे व्यापक मोहभंग की अनभदू ि जागिृ कर राष्ट्रीय आिं ोलन की नींव डाली और लगािार इस िासन से मदक्त के दलए अपना सघं र्ष और समपषण जारी रखा। इस काल की मख्य दविेर्िा यह थी दक दद्वभार्ी पिकाररिा की परंपरा की जो िरुआि हईु थी उसे कायम रखा गया। दहिं ी और उिषू िोनों भार्ाओं मंे दनकलने वाले पिों की बहलु िा थी। इसका एक कारण यह था दक १८५७ का महासमर दहिं -ू मदस्लम निे ाओं और जनिा ने एक साथ दमलकर लड़ा था। एक िरह से उस समय िक दहिं -ू मदस्लम संबधं ों को मिै ीपूणष माना जा सकिा ह।ै इस मिै ीपूणष पररवेि का दहिं ी-उिषू पिकाररिा पर पड़ना स्वाभादवक था। इसी कारण से इस काल मंे दहिं ी-उिषू पिकाररिा संयक्त रूप से की जािी रही क्योंदक यही िोनों भार्ाएं ही दहिं ू और मसलामानों की सपं कष भार्ाएं थीं। उस समय िक धमष के आधार पर भार्ा का कोई सांप्रिादयक दवभाजन नहीं था। इन पि-पदिकाओं का सपं ािन-प्रकािन भी िोनों धमों के लोग दमलकर दकया करिे थ।े पिों के दवभाजन का आधार धादमषक या सांप्रिादयक नहीं थे। ‘मजहरुल सरूर’ (१८५०), ‘नवादलयर गजट’ (१८५३), ‘समाचार सधावर्षण’ (१८५४), ‘सवषदहिकारक’ (१८५५), ‘राजपिाना अखबार’ (१८५६), ‘पयामे आजािी’ (१८५७), ‘खैरख्वाहे दहिं ’ (१८६५), ‘ज्ञान प्रिादयनी पदिका’ (१८६६), ‘रिन प्रकाि’ (१८६७), ‘दवद्यादवलास’ (१८६७), ‘विृ ािं िपणष ’ (१८६८), ‘दहिं ी प्रकाि’ (१८७३), ‘मयािष ा पररपाटी’ (१८७३), ‘कािी पदिका’ (१८७५), ‘नूरुलबसर’, ‘कमरुल अखबार’, ‘कब्ि-े जाइर’ (सभी १८७६), ‘िाह्मण समाचार’ (१८९०), ‘िौकि जाफरी’ (१८९०), ‘गौड़ दहिकारी’ (१८९८) आदि इस कालखंड की प्रमख पि-पदिकाएँ थीं। दहिं ी और उिषू पिों के बीच भिे और दवभाजन ने उग्र रूप िब धारण दकया जब अंग्रजे ी िासन ने ‘फू ट डालो और िासन करो’ की नीदि लागकू र इसे बढ़ावा दिया। इसके दलए अगं ्रेजों ने कई हथकं डे अपनाए। १८५७ के महासमर से सीख लिे े हुए सबसे पहले अंग्रेजों ने सने ा को नए ढंग से पनगदष ठि करना िरू दकया। दिक्षा-प्रिासन आदि के ढांचों में धमष को आधार रखकर पररविनष दकया गया। यह सब इसदलए दकया गया िादक दहिं -ू मदस्लम सगं दठि होकर पन: दवरोह करने की दहम्मि न कर सकें । सापं ्रिादयक मिभिे बढ़ाना उनका मख्य मकसि था िादक वे दिदटि िासन के दखलाफ एकजट न हो सकंे और दकसी भी प्रकार के राष्ट्रीय आंिोलन या स्विंििा संघर्ष की िरुआि न हो सके । इन सबके दलए धादमषक आधार पर भार्ा का भी दवभाजन दकया गया। दहिं ी को दहिं ओं की भार्ा और उिषू को मदस्लमों की भार्ा बना दिया गया। इस काम मंे कछ भारिीय निे तृ ्वकिाषओं ने भी सहयोग दकया था। दहिं ी-उिषू भार्ा दववाि और राजनीदि का असर ित्कालीन पिकाररिा पर भी पड़ा। १८५७ के पश्चाि भारि सदहि समचू े दवश्व मंे घटनाओं का दसलदसला िजे ी से चल रहा था। सादहत्य, राजनीदि और ज्ञान के क्षिे में नई दवधाओं और दवश्लेर्ण के दलए दिन-प्रदिदिन दहिं ी पिकाररिा को नए-नए िब्िों की आवश्यकिा महसूस हो रही थी। लेदकन भार्ा दववाि से अलगाववािी प्रवदृ त्त धीरे-धीरे अपनी व्यापकिा की िरफ बढ़ रही थी। इस अलगाव का पररणामस्वरूप दहिं ी-उिषू पिों का पाठकवगष भी बंट गया। दहिं ी-उिषू खड़ी बोली का दवकास अलग-अलग दहिं ी-उिषू पिकाररिा के माध्यम से होने लगा। यहीं से उपजे दहिं -ू उिषू भार्ा दववाि का वहृ ि पररणाम कालािं र मंे हमें भारि-पदकस्िान दवभाजन के रूप में िेखने को भी दमलिा ह।ै राष्ट्रीय स्वरुप का पहला पि १८६८ मंे भारिंिे हररश्चंर द्वारा दनकाली गई पदिका ‘कदववचन सधा’ को माना जािा ह।ै पवू ष मंे यह दजक्र दकया जा चका है दक इससे पहले दनकली ज्यािािर पि-पदिकाओं का कोई दनदश्चि सामादजक वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 98

99 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 उद्दशे ्य और सरोकार नहीं था और वे दकस प्रकार िासक वगष के मख-पि की िरह काम करिी थीं। ‘कदववचन सधा’ ने दनभीक पिकार-कला का आििष प्रस्िि दकया। इस पदिका ने दहिं ी समाज के लोगों मंे राष्ट्रीय भावना जागिृ करने, दहिं ी भार्ा और पिकाररिा को जािीय स्वरुप प्रिान करने और दहिं ी पिकारों के दलए प्रेरणास्रोि का काम दकया। दनदश्चि रूप से एक ऐसे समय में जब अंग्रेजों की िानािाही और िोर्ण का पूरा ििे दिकार था, िब ऐसे दनभीक कलेवर की पदिका का दनकालना एक साहदसक किम था। भारिंेि जी ने स्वििे ी वस्त्रों के उपयोग का आग्रह गाधं ी के भारि आने के पहले ही कर दिया था। जनसाधारण को जोड़ने वाली एक और असाधारण पदिका ‘हररश्चरं मैनजीन’ का भी िभारंभ उन्होंने १८७३ मंे दकया जो आगे चलकर ‘हररश्चंर चदं रका’ नाम से छपने लगी। इसका भी कलवे र अधं रूदढ़वादििा, औपदनवेदिक साम्राज्यवाि और सामंिी ससं ्कृ दि दवरोधी था। भारििें जी ने िो अन्य पदिकाओं ‘बालबोदधनी’ (१८७४) जो मदहलाओं पर कंे दरि थी और ‘भगवि िोदर्णी’ का भी सपं ािन दकया। उत्तर उन्नीसवीं सिी मंे दहिं ी पिकाररिा के सिू धार रहे और उसके दलए समदपिष रहे भारिंिे जी के यग को उन्हीं के नाम से जाना जािा ह।ै चंदू क यह यग समपणष की पिकाररिा का यग भी माना जािा है इसदलए डॉ. रामदवलास िमाष ने इस यग के पिकारों और उनकी पिकाररिा के दवर्य मंे दटप्पणी करिे हुए दलखा है दक “राजनीदिक वािावरण में जो रूदढ़दप्रयिा, अधं परंपरादप्रयिा, िासकों की खिामि और अपनी सभ्यिा के प्रदि हीन भावना फै ली हईु थी, उसे िेखिे हएु दहिं ी पिकारों की दनभीक लेखन-िैली और भी चमक उठिी ह।ै उनमे पयाषप्त साहस था और उस साहस का उपयोग वे बपे र की बािे करने में न करिे थे वरन दिन-प्रदिदिन की ििे िथा दविेि सबं धं ी समस्याओं के दववचे न मंे उसका उपयोग करिे थ।े काबल यद्ध, जलू और अंग्रेजों की लड़ाई आदि पर जो कछ िब दलखा गया था, उससे बड़ी बाि उनकी सरल भार्ा और मनोरंजक िैली ह।ै वे जनिा के दहि का नारा बलिं न करके वास्िदवक जन सादहत्य की सदृ ि करने में लगे थे। अकाल, महामारी, टैक्स, दकसानों की दनधनष िा, स्वििे ी आदि पर उनहोंने सीधे सरल ढंग से दनबधं और कदविाएं दलखीं।” (डॉ. रामदवलास िमाष : भारिेिं यग, प.ृ ४१)1 । इस काल की कछ अन्य मख्य पि-पदिकाएँ ‘अल्मोड़ा अखबार’ (१८७१), ‘दहिं ी प्रिीप’ (१८७७), ‘भारि दमि’ (१८७८), ‘सारसधादनदध’ (१८७९), ‘उदचि वक्ता’ (१८८०), ‘िाह्मण’ (१८८३) भी ह।ैं कल दमलाकर ित्कालीन पिकाररिा का स्वरुप दमिनरी कहा जा सकिा ह।ै हालांदक इस यग की पिकाररिा में कई दवरोधाभास भी झलकिे ह।ंै जैसे - राजभदक्त-ििे भदक्त और दहिं ी-उिषू के बीच समन्वय और साथ ही अंग्रेजी भार्ा के प्रदि भी प्रदिबद्धिा और द्वदं ्व का दवरोधाभासी दचि उभरिा ह।ै इस यग के पिों में राष्ट्रीय चेिना कभी खलकर मखर हईु िो कभी राजभदक्त की आड़ मंे। लेदकन इस यग की जो एक महत्त्वपणू ष उपलदब्ध कही जा सकिी है वह यह दक इस यग की पिकाररिा दहिं ी सादहत्य को व्यापक राष्ट्रीय चेिना और जनजीवन से जोड़ने का महत्त्वपणू ष माध्यम बनी जो पूवष में िरबारी-सामंिी प्रवदृ त्त के कारण बेहि सकं दचि थी और िरबारी गौरवगान और चाटकाररिा िक सीदमि थी। बीसवीं सिी की िरुआि में दहिं ी जगि की छापे की ससं ्कृ दि भारििंे यग के बाि के िौर मंे प्रविे कर चकी थी। इस िौर में दहिं ी जगि में महत्त्वपूणष सासं ्थादनक बिलाव भी हो रहे थ।े १८८५ में इलाहाबाि में इदं डयन प्रसे की स्थापना, १८९३ मंे श्याम सिं र िास की अगआई में कािी नागरी प्रचाररणी सभा, १९१० में इलाहाबाि मंे ही दहिं ी सादहत्य सम्मलेन की स्थापना और १९१६ में बनारस दहिं ू दवश्वदवद्यालय की स्थापना ने एक दनरंिर फै लिे सावजष दनक क्षेि को ठोस रूप िने े में अपनी महत्त्वपूणष भूदमकाएं दनभाई।ं इन सभी संस्थानों से जड़ी बहसें भी ित्कालीन पदिकाओं के माध्यम से खलकर आई।ं इदं डयन प्रेस द्वारा १९०० में ‘सरस्विी’ के प्रकािन से सामान्यिया दहिं ी प्रकािन के एक नए यग की 1 कृ ष्ट्णदबहारी दमश्र, दहंिी पिकाररिा, ११८-१९ वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 99

100 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 िरुआि मानी जािी ह।ै ‘सरस्विी’ ने जहां एक ओर दहिं ी भार्ा के दवकास और और दिदक्षिों की सौंियिष ास्त्रीय आकांक्षाओं के बीच एक संिलन स्थादपि करने का प्रयास दकया वहीं दहिं ी पिकाररिा मंे दवर्य के स्िर पर काफी दवस्ििृ फलक सामने रखा। समाज सधार से लके र वजै ्ञादनक प्रयोग, इदिहास, पराित्त्व, स्त्री दवमिष, दिक्षा से लके र यािा- वतृ ्तािं आदि इसके मख्य दवर्य वस्ि थे। बीसवीं सिी के आरंभ मंे भारिीय समाज लाडष कजनष के िमनात्मक कायों का दिकार हआु । अंग्रजे ी सरकार के कृ त्यों से नवजागरण की चिे ना और भी व्यापक होिी चली गई और आिं ोलन का स्वरुप और िायरा भी काफी दवस्ििृ होिा गया। इसी के साथ स्वििे ी आंिोलन ने भी िजे ी पकड़ी, विं े मािरम का जयघोर् हुआ। १९०६ के कलकत्ता अदधवेिन में ‘स्वराज्य’ िब्ि की घोर्णा की गई। ये सब ऐसे कारणों में से थे दजससे दहिं ी पिकाररिा की गदि में अपके ्षाकृ ि और िेजी आई। इस यग मंे दविरे ् रूप से कलकत्ता की दहिं ी पिकाररिा मंे ‘भारि दमि’ ने महत्त्वपूणष भदू मका दनभाई दजसका निे तृ ्व बाबू बालमकं ि गप्त कर रहे थ।े दहिं ी पिकाररिा मंे पिों के ‘पॉदलसी’ दनधाषरण की अवधारणा उन्हीं के साथ आई। इसका दजक्र इटली मूल की लदे खका फ्रं चसे ्का ओसीनी ने इस प्रकार दकया ह-ै “जहां एक ओर पिकाररिा की छदव पूरी िरह नदै िक उत्तरिादयत्व से लसै थी, वहीं िसू री इसकी व्यवहाररक, व्यावसादयक क्षमिाओं का पक्ष भी समकालीन बदद्धजीदवयों के ध्यान से बाहर नहीं था। अंग्रेजी के पि ‘पॉदलसी’ और उसका प्रयोग ित्कालीन पिकाररिा के संिभष मंे उन दिनों बड़े पमै ाने पर खास अथों मंे ही हो रहा था। उस वक्त के एक और प्रदसद्ध पिकार-लखे क बाबू बालमकं ि गप्त जो ‘भारिदमि’ िदै नक के संपािक थे, ने उिषू और दहिं ी पिकाररिा पर कई धारावादहक दनबधं दलखे दजसमें उन्होंने इस बाि पर जोर दिया दक दकसी भी अखबार की एक ‘पॉदलसी’ होना जरूरी ह।ै ”1 लेदकन उनकी पॉदलसी और मादलकों के दहिों की रक्षा के बीच काफी टकराहटंे होिी रहीं और अंिि: उन्हें यह मानना पड़ा दक अखबार का काम अंिि: अपने मादलक के दहिों की रक्षा करना ही है क्योंदक पिकाररिा के सबं ंध में उनकी सिं दलि दटप्पणी से यह स्पि होिा ह,ै दजसमें उन्होंने कहा दक, “हमारा ‘भारिदमि’ अपने स्वरुप में राजनीदिक है और दहिं ी प्रचार िथा राजनीदिक चचाष इसके मख्य उद्दशे ्य हैं लेदकन चंदू क सनािनी दहिं ू इसके मादलक ह,ंै इसदलए जरूरि पड़ने पर धमष के आंिोलन मंे िरीक होना उनका किषव्य ह”ै ।2 यहां यह महत्त्वपूणष है दक पि मादलकों के दहिों की रक्षा करने की परंपरा अंग्रेजी िासन काल से ही चली आ रही ह।ै इस यग के प्रारंदभक िो ििकों पर बाल गंगाधर दिलक और उनकी दवचारधारा का अदधक प्रभाव रहा क्योंदक भारिीय राजनीदि का निे तृ ्व उन्हीं के हाथों में था। दिलक स्वयं िो पिकार थे ही परंि राष्ट्रीय आंिोलन में वे अदधक सदक्रय थे। यह यग नवजागरण काल और भारिंेि यग की पिकाररिा के दमले जले प्रभावों का दवस्िार था। िेि मंे स्विंििा आंिोलन जोर पकड़ रहा था इसदलए पिों का स्वर राजनीदि प्रधान था। ‘स्वराज्य हमारा जन्मदसद्ध अदधकार ह’ै नारे ने पूरे िेि मंे स्वराज्य की भखू पैिा कर िी। दिलक के सहयोदगयों में दवदपन चंर पाल, अरदवंि घोर् और लाला लाजपि राय थ।े नई पीढ़ी के यवाओं से लैस उनके नेितृ ्व ने परविी राजनीदिक पररवेि को नई दििा िी। ‘के सरी’ और ‘मराठा’ जैसे पिों के जररए उन्होंने राजनीदिक चिे ना उत्पन्न करने का काम दकया। ‘के सरी’ का स्वर ‘मराठा’ की अपेक्षा ज्यािा दवरोही था। बदहष्ट्कार, असहयोग के अदिररक्त वह लोगों के बीच क़ानून भंग के दलए प्रेररि करिा था। इस पि ने एक महत्त्वपूणष भूदमका जो दनभाई थी वह यह दक इसने दकसान, व्यापाररयों, उद्योगपदियों और ग्रामीणों को एक ही झडं े के 1 िीवान-ए-सराय ०१, मीदडया दवमिष/दहंिी जनपि, प.ृ ०६ 2 वही. वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 100


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