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JANKRITI ISSUE 78-80

Published by jankritipatrika, 2022-01-23 18:13:39

Description: JANKRITI ISSUE 78-80

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301 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 स्वरूप का गहरा दववचे न दकया गया ह।ै इस पस्िक का अंदिम अध्याय 'अयोध्या कालयािी ह'ै िीर्षक से है दजसमंे अयोध्या के संस्कृ दि और राजनीदिक इदिहास को बड़ी वस्िदनष्ठिा के साथ अदभव्यक्त दकया गया ह।ै यह अयोध्या के सपं ूणष व्यदक्तत्व का दनधाषरक अध्याय है । इस प्रकार स्पि है दक 'मध्यकलीन कदविा पनपाठष सम्पूणष मध्यकाल पर एक नया दवश्लेर्ण प्रस्िि करने वाला आलोचना ग्रथं जो न के वल मध्यकालीन काव्य की गदििील संिभों में व्याख्या करिा है अदपि उसके मलू ्याकं न के दलए नये औजार भी उपलब्ध करािा ह।ै लेखक के ही िब्िों मंे ‘‘मध्यकालीन सादहत्य अपनी सम्पणू ष संरचना मंे दवचार, ििनष , भाव-भदक्त, आििष यथाथष समय-समाज, व्यदष्ठ-समदष्ठ, िास्त्र-लोक, उच्चिर, नदै िक मूल्यों और चराचर जगि की दचन्िाओं का बहरु ंगी समच्चय ह।ै इसमें जीवन और जगि की कोई ऐसी गदि िथा कोई ऐसा प्रश्न नहीं है दजससे जूझिे हएु हमारे कदव उन अनगँजू ों िथा आियों िक न पहुचँ े हों जो मनष्ट्यमाि के उज्ज्वल भदवष्ट्य के प्रदि दववेकपणू ष संके ि करिे ह।ै इन कदवयों ने जीवन और जगि की मादमषक झांकी प्रस्िि करने के साथ-,साथ काव्यदचंिन, काव्यस्वरूप, काव्यभार्ा, काव्यदिल्प िथा कलात्मक अदभव्यदक्त के नए दक्षदिज उद्घादटि दकए ह।ंै यह ग्रंथ सपं णू ष मध्यकालीन सादहत्य मंे दनदहि बह-ु आयामी सादभप्रायिा को उजागर करने के उद्दशे ्य से उसमंे गहरे दछपे अनके स्िरों िक जा।\"9 कहने का आिय यह है दक प्रस्िि आलोचना ग्रंथ बिलिे सिं भों और नई चनौदियों के आलोक में मध्यकालीन सादहत्य की अंिरात्मा को उद्घादटि करिा ह।ै उसे नए सिं भष और प्रदिमान के आधार पर दवश्लेदर्ि करिा ह।ै लेखक ने सवषि दवश्लेर्ण मंे स्विंि दववेक,मौदलकिा ;नवीनिा और गहनिा का पररचय दिया ह।ै संक्षपे मंे, यह पस्िक वैचाररक आग्रह से मक्त होकर विमष ान समय की प्रासदं गकिा के अनरूप सम्पूणष भदक्तकाल के पनपाठष का गम्भीर एवं साहदसक प्रयास ह।ै संिभा ग्रथं सू ी 1- मध्यकालीन कदविा का पनपष ाठ- डॉ.करुणािंकर उपाध्याय, पषृ ्ठ- 11 2- वही. पषृ ्ठ- 50 3- वही. पषृ ्ठ- 60 4- वही. पषृ ्ठ- 67 5- वही.पषृ ्ठ- 76 6- वही.पषृ ्ठ- 104 7-- वही. पषृ ्ठ- 159-160 8- वही.पषृ ्ठ- 240 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 301

302 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 समीक्ष्य पस्तक - िज्रपात (कहानी) समीिा आलेख - ग्राम और कस्बे के फलक सषमा मनीन्र यवा कथाकार ओम प्रकाि दमश्र के इस पहले कहानी संग्रह ‘वज्रपाि’ मंे िस कहादनयॉंह।ैं वज्रपाि, सी पोल, छट्टी आदि ऐसी पररपक्व और व्यवदस्थि कहादनयॉं हैं दक लगिा नहीं यह ओम प्रकाि का पहला कथा सगं ्रह ह।ै ओम प्रकाि को ग्रामीण -कस्बायी पषृ ्ठभूदम की गहरी समझ ह।ै अिः अदधकॉिं कहादनयों में ग्राम और कस्बे की दस्थदि-पररदस्थदि-मनः दस्थदि रची-बनी गई ह।ै लदे कन ये कहादनयॉं ग्राम और कस्बे का रोजनामचा भर नहीं ह,ै यहॉं इक्कीसवीं सिी के बिलाव प्रखरिा से िजष ह।ैं इसीदलये कहादनयॉं आकार मंे छोटी होिे हयु े भी बड़ा फलक बनािी ह।ंै प्रगदििील दिमाक और सवं ेिनिील दिल से दलखी गई कहादनयॉं कहन की सािगी के बावजूि स्मदृ ि में रह जािी ह।ैं वज्रपाि, सी पोल, दकरपाले काकू की जले यािा, माधव, कू री, बंि दकवाड़ कहादनयॉं ग्रामीण पषृ ्ठभूदम पर हैं लदे कन कथ्य पथृ क है।ं पाि अभाव और िास से गजरिे हंै िथादप अपनी भीिरी िदक्त के जोर पर दस्थदि का भरसक दवरोध करिे ह।ैं इनके दवरोध से जड़कर लोग सादबि करिे हंै संगठन में बल होिा ह।ै छत्तीसगढ़ का नक्सलवाि कहानी ‘वज्रपाि’ का कथ्य ह।ै इस क्षेि में नक्सदलयों को मामा कहा जािा ह।ै स्वयं को आदिवासी चिे ना के पहरुये कहने वाले मामा आदिवादसयों के साथ बलात्कार, दहसं ा जसै ी क्रू रिा करिे ह।ैं कहानी की नादयका ‘डोकरी’ के पररवार पर बरपी क्रू रिा को पढ़कर पाठकों के मानस में चीत्कार भर जािी ह।ै लेदकन क्षीणकाय डोकरी साहस नहीं खोिी। खाना खाने के दलये घर में बलाि घस आये नक्सदलयों के भोजन में दवर् दमला कर, धारिार हदथयार से उनकी अचं ेि िहे को दछन्न-दभन्न कर प्रदििोध लिे ी ह।ै क्हानी ‘सी पोल’ का पचं ायिी चनाव प्रजािंि की पोल खोलिा ह।ै गॉवं की राजनीदि, िहर की राजनीदि से िरूह और पेंचीिा होिी जा रही ह।ै चनाव में दहसं ा, हत्या, आगजनी, बलै टे पेपर फाड़ना, पटे ी लेकर भागना, पीठासीन अदधकारी से बलै टे पेपर छीन कर अपने प्रत्यािी के चनाव दचन्ह पर ठप्पा लगाना जैसे कृ त्य कहानी ‘सी पोल’ के पचं ायिी चनाव मंे होने के कारण िो बार चनाव रद्द होिा ह।ै सी पोल (िीसरी बार मििान) िादं ि से सम्मपन्न हो सके इस हिे दजलाधीि, पदलस अधीक्षक वहॉं मौजूि रहिे ह।ैं अदधकाररयों की मौजिू गी मंे मििािा ‘‘वोट ि ओट मा पड़ी (पषृ ्ठ सखं ्या 43)।’’ जैसे साहस का पररचय िे सही प्रत्यािी को दवजयी बनािे ह।ैं चदंू क यह चनाव मदहला आरदक्षि सीट का चनाव ह,ै ओम प्रकाि ने मदहला प्रत्यादियों की दनबषल दस्थदि को भी पूरी वास्िदवकिा से प्रस्िि दकया है ‘‘सरपंच पि के दलये दजस दिन से उसके (रुदचिा का) नाम का पचाष भरा गया, उसे रसोई से फरसि नहीं दमली। (31)।’’ सच ह।ै प्रत्यािी मदहला होिी है लदे कन प्रचार, राजनीदि, पि संचालन उसके पदि और ररश्िेिार करिे ह।ैं दकसानों की दस्थदि भी इन मदहला प्रत्यादियों की िरह दचंिनीय ह।ै उन्नि खेिी, कजष माफी को दकिना ही प्रचाररि दकया जाये सत्य यह है, अनाज उगाने वाले कृ र्क दवपन्न, उनसे अनाज खरीि कर बेचने वाले व्यापारी धन्ना सठे बन रहे ह।ैं कहानी ‘दकरपाले काकू की जेल यािा’ का दकसान काकू कजष नहीं चका पािा। िल-बल के साथ आये सोसायटी के अदधकारी कजष के बिले उसका अनाज ले जाने पर उिारू ह।ैं अनग्रह पर वसलू ी कमचष ारी मोहलि नहीं ििे े। काकू लाठी से उन्हें पीटने लगिा ह।ै प्ररे रि होकर गॉव वाले कमचष ाररयों को पीट कर भगािे ह।ैं काकू को जेल होिी है लदे कन वह अपने स्िर पर दवरोध िजष करािा ह।ै भमू ण्डलीकरण, उिारीकरण, बाजारवाि, आधदनकिा का जो िोर है उसकी आहट कहानी ‘माधव’ के माि पन्रह सौ की आबािी वाले छोटे गॉवं मंे नहीं पहुचँ ी ह।ै ‘‘मैंने भी कछ कहादनयॉं दलखी ह।ंै पढ़ना चाहोगे ? मरे ी कहानी ‘रोटी’ भखू े वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 302

303 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पटे पढ़ना। मरे ी कहानी ‘कपड़ा’ नगं े बिन पढ़ना। मेरी कहानी ‘मकान’ फटपाथ के दकनारे लटे कर पढ़ना। (62)।’’ ये पदं क्तयॉं कई गॉवं ों की िस्वीर ह।ैं गॉवं ों मंे यह दवपन्निा ही नहीं छआछू ि और अधं दवश्वास भी मौजिू ह।ै वहॉं आज भी ‘चौरा’ लगिा ह।ै कहानी ‘कू री’ का दनम्न जादि का समना बरुआ (पडं ा) बनने के दलये कदठन िसीहा (परीक्षा) से गजरिा ह।ै चौरा लगिा ह।ै कल िेविा उसकी िहे में आिे ह।ैं अदिदक्षि ग्रामीण उस पर आस्था रखिे हैं दक वह सकं ट िरू कर सकिा ह।ै दिक्षा से इस दकस्म के भ्रम िरू हो सकिे हैं पर ‘स्कू ल चलें हम ......... ’ जैसा स्लोगन िायि ग्रामीण बच्चों के दलये नहीं ह।ै कहानी ‘बिं दकवाड़’ का मािहृ ीन नयारह साल का रमआ पढ़ना चाहिा ह।ै उसका दपिा उसे दकसान पररवार मंे टहल करने के दलये लगा िेिा ह।ै दवरोहस्वरूप घर से भागा रमआ ियोग से राम सहावन ढाबे वाले के िमन चक्र मंे जा पड़िा ह।ै इस कहानी मंे भी दवरोध प्रमख ह।ै रमआ के साथ िष्ट्कमष की चेिा कर रहे राम सहावन का रमआ भरसक दवरोध कर भागने लगिा ह।ै राम सहावन उसके उिर में िजे धार वाला चाकू मार ििे ा ह।ै राहगीर की मिि से रमआ अस्पिाल पहुचँ िा ह।ै सफल हो, न हो पर रमआ, डोकरी, काकू जसै े पाि अपने स्िर पर जो दवरोध करिे हैं वह इन कहादनयों की खूबी ह।ै ‘प्रेम नमे ’ और ‘दप्रय आकाि अलदविा’ प्रमे कहादनयॉं ह।ंै प्रेम नमे में प्लेटोदनक लव ह।ै प्रमे ी का दववाह हो जािा ह।ै प्रेदमका दववाह नहीं करिी लेदकन प्रेमी के पररवार के प्रदि ईष्ट्याष, द्वेर् न रखकर सद्भाव रखिी ह।ै साल मंे एक बार दनयदमि रूप से प्रमे ी के घर आया करिी है जहॉं उसका आिर होिा ह।ै यह आििष दस्थदि है जबदक ‘दप्रय आकाि अलदविा’ मंे अस्वाभादवक दस्थदि ह।ै रेल यािा में प्रथम वर्ष का छाि व बारहवीं की छािा आमने-सामने की बथष पर ह।ैं पहले ही पररचय में रेन के गेट के पास दजस िरह प्रमे ालाप करिे हंै वह ग्राह्य नहीं होिा। लखे क को ऐसी अदिरंजना से बचना चादहय।े यह अदिरंजना ‘अप्रैल की राि’ जसै ी आभासी संसार की कहानी में ग्राह्य हो जािी है क्योंदक फं िासी में कल्पना को इन पदं क्तयों की िरह मक्त उड़ान िी जा सकिी है ‘‘प्रभाि ने दजस समय समादध स्िपू के दनकट पैर रखा उसी समय उसके िोनों ओर दफर प्रकाि पजं जगमगा उठे। उसके आगे-पीछे ऐसी कलाकृ दियॉं भागिी हुई दिखाई पड़ रही थीं दजनके हाथ मंे जलिी मिालें थीं। ये आकृ दियॉं दविेर् प्रकार की डरावनी ध्वदन करिी हईु भाग रही थीं। (67)।’’ परू ी कहानी में फं िासी के भरपूर प्रयोग को िेखकर कहा जा सकिा है ओम प्रकाि सिं र सस्पेन्स कहादनयॉं दलख सकिे ह।ंै ‘फौजी’ इस सगं ्रह की संिर कहानी ह।ै छट्टी न दमलने का रंज हवलिार रामानज को इिना क्षब्ध करिा है दक फौज की नौकरी छोड़ िने े का िात्कादलक ख्याल आिा है लेदकन ड्यटू ी करिे हुये सीमा पार जब उसे घसपैदठये का आभास होिा है उसकी चिे ना मंे दसफष और दसफष किवष ्य ह।ै वह घसपदै ठये को पकड़वा कर अपनी ड्यूटी को अथष िेिा ह।ै समग्रिा मंे कहूँ िो ओम प्रकाि दमश्र को अपने अचं ल के प्रसंग, पररदृश्य, बोली का अच्छा ज्ञान है जो कहादनयों को स्वाभादवक बनािा ह।ै पािों के भीिर की सरलिा और व्यवहार की सािगी स्वाभादवकिा को बढ़ािी ह।ै पस्तक - िज्रपात (कहानी सगं ्रह) सषमा मनीन्र लखे क - ओम प्रकाि दमश्र द्वारा श्री एम. के . दमश्र प्रकािक - संिभष प्रकािन जीवन दवहार अपाटषमने ्ट्स ज-े 154, हर्ष वधषन नगर दद्विीय िल, फ्लटै नं0 7 भोपाल (म0प्र0) महशे ्वरी स्वीट के पीछे संस्करण - 2018 रीवा रोड, सिना (म0प्र0)-485001 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 303

304 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पस्तक समीिा अलग-अलग भवं गमाओं को समेटता कहानी सगं ्रह 'गड़ँ ासा गर की शपथ' डॉ.मधवलका बेन पटेल सहायक प्राध्यापक दहन्िी दवभाग िदमलनाड के न्रीय दवश्वदवद्यालय, दिरुवारूर [email protected] गड़ँ ासा गरू की िपथ' हाल ही मंे राजकमल प्रकािन से प्रकादिि कन्िन यािव का कहानी संग्रह ह।ै कल बारह कहादनयों वाला संग्रह है यह। 'मजबिू ी का नाम महात्मा गांधी' आकार की दृदि से सबसे लबं ी कहानी है और 'फू लचिं का स्कू टर' सबसे छोटी। सभीं कहादनयों मंे मख्य कहानी के साथ-साथ कािी की अलग-अलग भदं गमाओं को उसी के अिं ाज में उके रा गया ह।ै इस सगं ्रह की सभीं कहादनयाँ अगल-अलग पररदृश्य को लके र सामने आिी ह।ैं सभीं मंे कािी का अलग-अलग रंग समाया ह।ै कछेक कहानी कािी के बाहर की होिे हुए भी भाव और भार्ा की दृदि से अलग नहीं जान पड़िी। ये कहादनयाँ कहीं मजिे ार हो जािी हैं 'गड़ँ ासा गरु की िपथ' और 'अंवरागटे ा और दसरी' कहानी के श्रीनाथ के कॉदमक्स वाचन की िरह और कहीं 'जिू ा' व 'राजा कािी हव' की िरह गला भर िेिी ह।ैं सभीं कहादनयाँ अलग-अलग दकस्म की कहादनयाँ ह।ैं रचनाकार ने घर-बाहर, थाना-पदलस, बाल मन, वदृ ्ध मन, सिही राजनीदि, टले र, स्कू टर, थोथी प्रगदििीलिा आदि को भी अपनी कहादनयों मंे समेट दलया ह।ै कहना न होगा दक उन्होंने सभीं भंदगमाओं को बहिु नजिीक से िेखा ह।ै 'कोिवाल रामलखन दसहं ' इस संग्रह की पहली कहानी ह।ै कोिवाल रामलखन की नौकरी की पनः बहाली के बहाने कट यथाथष से सामना होिा है। दक सट्टा-हवाला के दखलाफ एक्िन लेने मीदटंग के िौरान रामलखन बिािे हैं का अिं - पर बिली आम बाि ह।ै िदे खए कहानी \"\"रामलखन दसंह ने इिना ही कहा, \"जनाब, मैं आपकी बािों को हल्के में नहीं ले रहा था, लेदकन आपका हुक्म िामील होना सम्भव नहीं ह।ै दपछले साहब भी इसी चक्कर मंे छह महीने में ही पीएसी में चले गए। इधर और कछ िो है नहीं। बस, हवाला और सट्टा का ही दहसाब-दकिाब ह।ै मान लीदजए, हम लोग िो आप के आििे से संिोर् कर लंगे े लदे कन सत्ता पक्ष के बहुि बड़े लोगों की िह है इन चीजों मंे। अगर हजु रू ने ज्यािा कड़ाई की िो ई लॉबी बहुि पउआ वाली ह।ै समझ लंे दक आज की िारीख मंे उनका कोई कछ उखाड़ नहीं सकिा।\"’’1 कोिवाल रामलखन द्वारा अपराध रोकने के दलए अपनाये गये नायाब िरीके पढ़िे हएु प्रिीि होिा है दक कहानीकार समाज में ऐसे नायाब िरीके स्थादपि करना चाहिे हंै और वे खि रामलखन के चररि में कनवटष हो जािे हैं, लेदकन कहानी 1 गँड़ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागंज , प्रथम ससं ्करण ,पषृ ्ठ 10 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 304

305 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 में आगे बढ़ने पर वे रामलखन को पनः अपने चररि के रूप मंे गढ़ िेिे ह।ैं आदखर, कहानीकार चररिों का दनमाषिा जो होिा ह।ै वह अपनी रचना मंे कभी खि अपने ही चररिों मंे ढलिा है और कभी अपने को अलगा भी लेिा ह।ै इस कहानी मंे रचनाकार कई चटीले प्रसंगों के बीच गभं ीर बाि कह जािे हैं जैसे, \"मानवादधकार उनके दलए होिा है जो मानव वाला काम करे।\"1 यह इस कहानी का प्राण वाक्य ह।ै इस कहानी में एक अलग अिं ाज मंे साफ दकया गया है दक पदलस दवभाग अगर िरू िक ईमानिारी पर चलने का प्रयत्न करे िब भी सत्ता के िमखम के आगे उसकी एक नहीं चलिी। िसू री कहानी 'आवभगि' भीष्ट्म साहनी के 'चीफ की िावि' की मख्य थीम से अलग ह,ै लदे कन मेहमान के आगमन पर िावि की ियै ारी की हलचलें कछ-कछ वसै ी ही ह।ैं कहानी मंे पहले दहस्से के आवभगि मंे पदि-पत्नी के झगड़े के आपसी संवाि कहानी को मजेिार बनािे ह।ैं हमारे समाज में हर दकस्म के घरेलू झगड़ों मंे आस-पड़ोस के लोगों द्वारा मजा-मनोरंजन िलाि दलया जािा ह।ै इस कहानी के पहले दहस्से पर दवराम िब लगिा है जब लड़-झगड़ के पत्नी मायके चली जािी ह।ै अब िरू होिा है कहानी का अगला दहस्सा। जसै े-जैसे कहानी कच्ची पगडंडी की भांदि आगे बढ़िी ह,ै मन हररयर होिा जािा ह।ै कै लाि के हृिय की हररयरी सबका मन मोह लिे ी ह।ै कहानी मंे छोटा सा िड़का भी लगा है िारू को भगवि् कृ पा मानकर। और हो भी क्यों न, आदखर इसके ऊपर कई दनणाषयक फै सले जो दटके होिे ह।ैं बोिल व्यवस्था के बाि कछ ऐसा राग उिपन्न होिा है दक बोिल पसिं ों को 'िह्मानन्ि सहोिर' की अनभदू ि से दसदं चि कर ििे ा ह।ै यहाँ क्यों न बच्चन साहब याि आएं \"बरै करािे मदं िर मसदजि/ मेल करािी मधिाला।\" अगली कहानी 'अंवरागेटा और दसरी' में चार मोड़ ह।ैं पहली, एक्सीडंेट वाली घटना, िसू री जूिा लने े वाली, िीसरी कॉदमक्स पढ़ने वाली और चौथी, श्रीनाथ के लाचार हो जाने वाली। कहानी का पहला दृश्य िीर्कष की ओर इिारा करिा है िभी पाठक को लगिा है दक िीर्कष खल गया है, लेदकन यह खलिा है अंि में। इस कहानी की खादसयि यह है दक हर दृश्य पढ़ने के बाि पाठक जब उसके साथ चलने लगिा है िभी, एक मोड़ आ जािा है और पाठक का सामना िसू रे दृश्य से होिा ह,ै लेदकन उसे अटपटा या दवसगं दि सा कछ महसूस नहीं होिा। कहानी में बनारदसयों, दविरे ्कर परुर्ों की पान के प्रदि ललक साफ नजर आिी ह।ै पान खािे समय वाक्य की ध्वदन की टागँ ंे दकस प्रकार लड़खड़ािी हंै इससे कहानीकार भली भाँदि अवगि ह।ैं वे इसका जीवंि ध्वन्यात्मक दृश्य दिखािे ह-ैं ‘‘\"श्रीनाथ के मन मंे एक पल में पान थूकने का दवचार आया लदे कन महँ मंे घलिे हुए पान से वे बेरुखी न कर सके । एक िरफ िबा कर िरन्ि पँहुचे और गाड़ी स्टाटष की। साहब भी बैठ गए और पूछा, \"छोटे बटे े का कोदचंग संेटर िेखे हो?\" श्रीनाथ ने दसर दहलािे हुए आवाज दनकाली, \"ह।ूँ \" साहब ने दफर कहा, \"वहीं ले चलो और दटदफन बॉक्स रखवा दलया था?\" श्रीनाथ कहना चाहिे थे, \"पिा नहीं सोहनवा रखा होगा।\", लदे कन उच्चारण दनकला, \"पड़ा वई वोअवनवा अक्खा वोआ।\"’’2 यहां दफ़ल्म 'िीसरी कसम' में आिा भोंसले द्वारा गाये गये गीि 'पान खाये सयै ां हमारो... साँवली सरदिया होठ लाल लाल हायss हायss मलमल का करिाss मलमल के करिे पे छींट लाल लाल' जैसा मनोहारी मामला नहीं ह,ै बदल्क वडलंैड के जिू ों से खार खाये साहब पान खाने के कारण श्रीनाथ का दनलंबन का आिेि दनकाल िेिे ह।ंै कहानी मंे लेखक ने एक और जरूरी बाि की ओर इिारा दकया ह।ै बड़े िो रूम के ड्यटू ी बॉय के यह कहने दक 'इस िो रूम का सामान आप जैसों के दलए नहीं है'। िरअसल, यह एक बीमार मानदसकिा का लक्षण है दक गरीब या साधारण दिखने वालों के साथ बािचीि मंे िच्छिा जादहर करने की प्रवदृ त्त दिखाई िेिी ह।ै 1 गड़ँ ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागंज , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 14 2 गड़ँ ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागंज , प्रथम ससं ्करण ,पषृ ्ठ 51 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 305

306 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 अगली कहानी है 'गँड़ासा गरु की िपथ' दजसका िीर्षक कहानी संग्रह का िीर्षक भी ह।ै कहानी अपने चटीले अन्िाज मंे आगे बढ़िी ह।ै गजाधर दिवारी को दमली 'गड़ँ ासा गरु' की उपादध से कहानी का प्रारम्भ होिा ह।ै कहानी का दसरा पकड़ कर जसै े ही आगे बढ़िे हंै वसै े ही िो दृश्य आकदर्िष करिे ह।ंै हममंे से अदधकािं जन इससे अवगि ह।ंै वैसे िो िोनों बािंे आम ह,ंै लेदकन कहानी में आ जाने से खास लगिी ह।ैं पहला- गावं ों में बेवकू फी भरे साहस भी चचाष का दवर्य बन जािे ह।ंै \"डॉक्टर को यह दनहायि बवे कू फी भरी करिूि लगी लेदकन गजाधर बाबू की दहम्मि की चचाष आसपास के गाँवों मंे फै ल गयी और लोग उनको 'गँड़ासा गरु' कहने लग।े \"1 िसू री बाि, पदलस का घटना स्थल पर अत्यदधक हो-हल्ला मचािे आना- \"जए के सचं ालन को लेकर गाँव के कई लोगों ने उनकी दिकायि की लेदकन पदलस कभी नहीं आई। जब आई भी िो इिना हो-हल्ला मचािे हएु आई दक जआरी समिाय पहले ही सचिे हो गया और पदलस िल 'गँड़ासा गरु' के यहाँ जलपान आदि कर के लौट गया।\"2 कहानी के अदन्िम दहस्से मंे क्लाइमेक्स है, लेदकन परू ी कहानी में कहीं भी दिदथलिा नहीं ह।ै किम-किम पर जआररयों द्वारा अपनाये गए िाँव-पंचे ज्ञाि होिे ह।ैं इस कहानी मंे उस दवडम्बना की ओर ध्यान आकदर्षि दकया गया है दक जो कायष कानून की नजर मंे गनाह ह,ै उसे अलग जामा पहना कर खलआे म उसे वैध घोदर्ि कर दिया जािा ह।ै यहाँ िक दक उसे महज वैधिा का प्रमाण-पि ही नहीं प्रिान दकया जािा है, वरन काननू के परै ोकारों के हाथों ही उसे करवाया भी जािा ह।ै \"गड़ँ ासा गरु ने घोर्णा की, अब माननीय डीएम साहब और माननीय दवधायक जी, महािेव जी और मािा पावषिी के रूप मंे द्यिू क्रीड़ा में भाग लगें ।े \"3 इस कहानी का िीर्कष पढ़िे ही कौिहू ल उपजिा है 'कौन हंै गँड़ासा गरु'?, क्या है उनकी िपथ और क्यों? लेदकन पाठक को इिना अनमान अवश्य हो जािा है दक जरूर दकसी मजिे ार प्रसंग का दलफाफा खलने वाला है गड़ँ ासा गरु के बारे में और कहानी पढ़ने के बाि अनमान के मिादबक हास्य-व्यनं य व यथाथष के िमाम िावँ -पेंच पारििी हो जािे ह।ंै 'जूिा' कहानी बाल मनोदवज्ञान की कहानी ह।ै इसमें जूिे के बहाने बालक साथकष मंे होिे बिलावों की कहानी कही गयी ह।ै यह कहानी पाठक के ममष को छू िी ह।ै ग्रामीण इलाके के प्राथदमक दवद्यालय मंे गरीब दवद्यादथषयों के साथ साथषक अपने-आप को साफ-सथरे, कपड़े-जूि,े दटदफन, वाटर बॉटल से लैस पाकर असहज महससू करिा ह।ै उसे लगिा है दक उसके और उसके सादथयों के बीच एक िीवार है जो उनसे घलने-दमलने मंे बाधा बन रही ह।ै यह कहानी पढ़िे-पढ़िे 1980 ई. में सई परांजपे के दनििे न मंे बनी दफल्म 'स्पिष' याि आ जािी है जहाँ नवजीवन अंध दवद्यालय के दृदिहीन छािों के बीच एक सामान्य छाि पपलू अपने आप को उपेदक्षि समझ कर अधं ा बनना चाहिा ह।ै 'जिू ा' कहानी अपने दकस्म की दबल्कल अलग कहानी ह।ै इसकी खास खूबी यह है दक कहानी पढ़िे-पढ़िे पाठक स्वयं साथकष में कब िब्िील हो जािा ह,ै उसे पिा ही नहीं चलिा। वह साथषक द्वारा अन्य छािों के साथ की जाने वाली मस्िी को महससू करने लगिा ह।ै \"अब वह पूरी मस्िी से अपने बाल-सखाओं के बीच दवद्यालय के िौरान पढ़ाई-दलखाई, खले -कू ि कर पा रहा ह।ै कभी कबड्डी खले रहा है िो कभी खो-खो, कभी ओल्हा-पािी िो कभी आइस-पाइस, कभी नगं े पाँव फटबाल िो कभी गल्ली-डंडा। कभी वह दकसी सहपाठी के खेि से गन्ने चसू िा, कभी िाजा गड़ खािा, कभी दकसी के घर से आई िही या मिा आदि का स्वाि लेिा। कभी िाकाहारी होिे हुए भी िालाब मंे मछली मारने वालों की 1 गँड़ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागंज , प्रथम ससं ्करण ,पषृ ्ठ 60 2 गड़ँ ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागंज , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 61 3 गड़ँ ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागजं , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 71 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 306

307 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 डंडी पकड़ कर बठै िा िो कभी पआल के ढेर पर उछलिा-कू ििा या दफर दकसी पेड़ पर चढ़कर फल खािा।\"1 अब ऐसी मस्िी भला दकस पाठक ने न की होगी। कहानी के आदखरी दहस्से मंे पहुचँ िे-पहुचँ िे पाठक भी भावक हो जािा है ठीक बालक साथषक की िरह। संग्रह की अगली कहानी 'िािी के िीनानाथ' वदृ ्ध की मनोििा को लेकर दलखी गयी कहानी ह।ै िरुआि में कहानीकार ने िफसील से परू े खानिान का पररचय दिया ह।ै पाररवाररक बटं वारे के समय एक बड़ी दवडंबना को इन िब्िों मंे उके रा गया ह,ै \"घर का बंटवारा हुआ, नकिी व गहने के साथ बिषन भाड़े भी बांट दिये गए। अगर िािी कोई वस्ि होिीं िो उनका भी बटं वारा हो जािा लेदकन िािी में जान बसिी थी और जान बाटं ी नहीं जा सकिी।\"2 बंटवारे के बाि वदृ ्धों को बटं ा हआु िाना-पानी दमलिा ह।ै इस महीने इनके यहाँ, उस महीने उनके यहाँ। कछ लोग वदृ ्धों की सेवा इस लालच मंे करिे हैं दक उनके पास पराने गहने, पैसे वगरै ह होंगे जो उनके मरने पर उसी के हो जाएंगे। इसदलए गांवों मंे आज भी वदृ ्ध अपने पास कछ गहने, पसै े, पिें न वगैरह छपा के रखिे ह।ैं इस कहानी में िािी भी खजाने का रहस्य बना कर रखना चाहिी ह।ैं िरअसल, वदृ ्धों को यह ज्ञाि होिा है दक अगर उनके पास कछ जमा-पंूजी न हईु िो बढ़ापे का सहारा कोई न बनगे ा। अदधकांि पररवार के सिस्य इस लालच में वदृ ्धों का सहारा बनिे हैं अन्यथा दबलदबलािे वदृ ्धों की सखं ्या मंे कोई कमी नहीं ह।ै हालाँदक, गाँवों में वदृ ्धों को वदृ ्धाश्रम भेजने की रवायि अभी नहीं आई है िथादप एक बटे े से िसू रे बेटे के यहाँ भेजी जाने वाली रवायि खूब ह।ै इसके साथ-साथ के कभी-कभी िो सबसे िगं आ कर वे खि ही कापँ िी ठठररयों को दहला-डला कर खाना पकािी ह।ंै इस कहानी मंे िािी के खजाने का रहस्य बनाये रखने के पीछे समाज के लालच की बहिु बड़ी सचाई को उजागर दकया गया ह।ै इसके अलावा िािी का यह कथन जो खाट पर पड़े-पड़े दनकलिे रहिे ह,ंै \"हे िीनानाथ! दकिने दिन और रुकना ह;ै उठा ल हमको हे नाथ! एक बार हम पर भी रहम करा।...कौन जनम का सजा भोग रहे ह।ंै \"3 यह लगभग सभीं अदि वदृ ्धों का कथन है खासकर, मदहलाओं का। कहानी मंे ज्ञाि होिा है दक िािी मन ही मन अदधक जीना चाहिी थीं। यह यथाथष है दक लोग जैसे-जसै े वदृ ्ध होिे चले जािे ह,ंै उन्हें अदधक जीने की लालसा बढ़िी चली जािी है, कम से कम अपने नािी-पोिे का मँह िखे ने या िािी-ब्याह िेखने की खादिर। यहाँ एक बाि ध्यान िेने योनय है दक वदृ ्ध जब अदििय अिक्त हो जािे हंै दफर भी उनमें मरने या आत्महत्या जसै ा दवचार नहीं आिा, नवयवकों की िरह। कारण दक वे मानदसक रूप से सबल होिे ह।ैं ऐसे मंे सवाल यह है दक वे (वदृ ्ध मदहलाएं) ऐसा कहिी क्यों ह?ै इसके पीछे िो कारण नजर आिे ह।ंै एक, वे अपनी थकिी, िखिी, अिक्त िेह के कारण इस प्रकार भगवान को याि करिी ह।ैं िसू रा कारण यह है दक उन्हंे ज्ञाि होिा है दक पररवार के अदधकांि जनों को वे नहीं सहािी, खासिौर पर उनकी बहओु ं को। यह बाि गॉवं ों मंे आम ह।ै यहाँ िक दक वदृ ्धों के सामने पररवार-समाज के अदधकािं जन मजाक मंे ही सही, लेदकन यह कहिे दमल जाएगं े दक 'इनकर दजनगी पूरै होि ह' या 'के िना दिन अउर दजयबss' या दफर 'बस पड़ल-पड़ल खाि बाड़ss'। अब ऐसे में वदृ ्धों को अपने होने का अपराधबोध सा होने लगिा है और वे अपने को ले जाने के दलए ईश्वर से अरिास करने लगिे ह,ैं लदे कन सबको सना कर। कहानीकार ग्रामीण इलाके की एक महत्वपूणष बाि नोट करना नहीं भलू ि।े िवा दवक्रे िा को लोग डॉक्टर साहब कहिे ह।ंै 1 गँड़ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागंज , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 79 2 गँड़ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागजं , प्रथम ससं ्करण ,पषृ ्ठ 85 3 गड़ँ ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागंज , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 84 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 307

308 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 यहां िो लोग िवा से दकसी भी प्रकार जड़े व्यदक्त को डॉक्टर समझिे ह,ंै िवा-दवक्रे िा िो दफर भी डॉक्टर की दलखावट पढ़ लिे ा ह।ै इस सगं ्रह में बनारदसया समाज को इिनी बारीकी से िेखा गया है दक कहादनयों मंे कई ऐसे वाक्य दमल जाएगं े जो दडक्टो बनारदसयों के महँ से दनकलिी ह।ैं एक ऐसा ही अिं िेदखए-\"सीखो आनन्ि से दक मािा-दपिा और बड़ों की सवे ा का दकिना पण्य दमलिा ह!ै िेखना, वह फस्टष क्लास पास होगा क्योंदक उसे इिना बड़ा आिीवाषि जो दमल रहा ह.ै ..िम लोग भीख माँगोगे और उसको नौकरी भी दमल जाएगी।\"1 यह बड़ी दवडंबना है दक फस्टष क्लास पास होने के दलए पण्य और आिीवाषि की आवश्यकिा समझी जािी ह।ै कन्िन यािव की कहादनयों की भार्ा में भाव, ध्वदन और दृश्य एक साथ उपदस्थि ह।ंै इसकी एक बानगी 'भगेलू दसहं ' कहानी के िरुआि मंे ही दृिव्य ह,ै \"रामनगर दकले पर िनै ाि पीएसी के क्वाटषर गाडष के जवान ने िाम के चार बजने की सचू ना पीिल के घण्टे को चार बार बजा कर िी। िभी चंगी पर आिे दिखे भगले ू दसहं । सफे ि लंगी और गजं ी पहने। सहबे न धोबी की िकान पर िो दमनट के दलए रुके , कछ खािी के किे और धोदियाँ इस्िरी करने को िीं और लल्लन की पान की िकान पर आ एक पान दखलाने को कहा, और दफर मौसम को कोसिे हएु इन्रिेव को एक मीठी गाली िी और बगल के पत्थर पर बैठ गय।े \"2 'भगेलू दसंह' कहानी मंे झूठी िान के भूखे व्यदक्तयों की कारगजारी को िफसील से उके रा गया ह।ै नेिा चाहे पि पर हों या न हों नेिादगरी नहीं छू टिी। भगेलू दसहं ऐसे ही निे ा ह।ैं अपने एररया मंे अपनी धौंस बनाये रखने के दलए व्यदक्त क्या-क्या कर सकिा है यह इस कहानी से ज्ञाि होिा है। ऊपर से वह व्यदक्त बनारसी हो िो दफर क्या कहना। वह है ही हररयरी के बीच लाल दमच।ष पका बनारसी जानिा है सेर के सामने सवा सेर बनकर कै से उसे पटखनी िने ी ह।ै बनारसी महँ में पान ही नहीं घलािा, न्ययू ाकष स्ययू ाकष को भी घला कर दपच्च से थूक िेिा ह।ै कम से कम िो िो ऐसा ही करिा ह।ै िसू रों को अपने आगे बच्चा सादबि करने की कला में ये मादहर होिे ह।ैं कहानी का एक दृश्य, \"\"भगले ू दसहं ने रघनाथ से चाय के दलए बैठने को कहा और जयराम से बोले,\"अबे खाली चाय दपलाओगे? अपना बच्चा इिने दिन बाि आया है, चल कछ नाश्िा ले आ।\"\" दजला अध्यक्ष के दलए 'बच्चा' संबोधन पर पाठकगण अवश्य ध्यान िंगे े। अपनी िान बरकरार रखने के दलए भगले ू दसहं द्वारा दकये गए उधािम पढ़ कर मजा आिा ह।ै इस कहानी से अदभनेिा अजय िवे गन की दफल्म 'दृश्यम' याि आिी ह।ै इस दफ़ल्म के दनििे क दनदिकािं कामि ह।ैं बहरहाल, िोनों की कहानी में बहुि अंिर है दकन्ि दृश्य दिखाने की कलाबादजयां दबल्कल एक सी लगिी ह।ंै यह समाज दृश्य िेखने का इिना आिी है दक जो न दिखे, वह उसे भी िखे लेिा ह।ै कन्हयै ा हलवाई ने भगेलू दसहं को टीवी िक मंे िखे ने की बाि समाज में ठीक वैसे ही प्रचाररि की जैसे गाँव के बड़े-बूढ़े भिू को उठा कर पटक िेने या दफर उसे सिी-चनू ा िेने की बाि बिािे ह।ैं 'मजबूिी का नाम महात्मा गाधं ी' कथन एक सूक्त वाक्य की िरह है जो अगली कहानी का िीर्कष ह।ै इस वाक्य को प्रो. परुर्ोत्तम अग्रवाल के व्याख्यान और लेखन से दलया गया ह।ै मरे ी अध्ययन की सीमा के अनसार इस वाक्य पर यह पहली कहानी ह।ै इस कहानी मंे समाज के सड़े रूप से लड़ने के दलए गाधं ी जी का सहारा दलया गया ह।ै इसमंे समाज का भयावह रूप महने ्िर दसहं के स्वप्न मंे उभर कर आिा ह।ै यह अंि पाठक को उसे पनः पढ़ने के दलए रोक लिे ा ह।ै \"मदिरा के निे मंे चरू अट्टहास करिा हुआ जादिवाि उनकी बटे ी को बार-बार भाले से कोंच रहा है और वह छटपटा रही ह।ै प्यास से पानी माँग रही ह।ै िैलेि थोड़ी िरू पर पानी का दगलास दलए खड़ा ह,ै लदे कन छआछू ि जो दक जादिवाि का भाई ह,ै 1 गँड़ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागजं , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 88 2 गँड़ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागजं , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 93 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 308

309 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 िैलेि के ऊपर ख़ंजर से आक्रमण करिा है और पानी का दगलास फें क ििे ा ह।ै दफर िलै िे का खून पीकर अट्टहास करिे हएु उछलिा है और जादिवाि मीना के बालों को पकड़कर घसीटिे हुए उसे अन्धे कएँ मंे लटकाने जा रहा ह।ै महने ्िर अपने घर से लाठी-भाला लेकर बेटी की रक्षा करना चाहिे हंै, लदे कन उनका परू ा गावँ एक साथ उनको िबोच कर उनको रोक लिे ा ह।ै पत्नी छािी पीट रो रही है और वह खि दचल्ला रहे ह,ैं रो रहे हैं लेदकन सब हसँ रहे ह।ंै परम्परा खून के छीटों वाली सफे ि साड़ी मंे नाच रही ह।ै उसके दहसं क िाडं व के बाि परंपरा का पदि ररवाज आ करके सभी गाँव वालों को िाबािी ििे ा है और इसके साथ चेिावनी भी ििे ा है दक िम लोग भी अगर हमारी किर नहीं करोगे िो हमारे सदै नक और दसपहसालार िम्हारे बच्चों का यही हाल करंेगे-हा-हा-हा-हा!\"1 कहानी में जो स्वप्न ह,ै वह इस समाज का कठोर, वीभत्स यथाथष ह।ै आज भी कछ अलग करने वाले व्यदक्तयों पर समाज का भय हावी ह;ै क्योंदक समाज उनके प्रदि दहसं क हो उठिा ह।ै भले ही दकसी की हादन न हो दफर भी अलग करने वाले व्यदक्तयों को घेर कर उनकी जघन्यिम हत्या िक कर िी जािी ह।ै आश्चयष है दक ऐसा समाज दजिना प्रेम करने पर आक्रोदिि होिा है, उिना लूट, िोर्ण, अन्याय व हत्याओं आदि पर कभी नहीं। यह समाज अपने स्वाथों के दलए उसी दनयम-कायिों में दकस िरह की ढील दिए हुए होिा है इसकी एक बानगी िदे खए- \"\"सरपंच ने चीख कर कहा, \"पागल मि बण महने ्िर। संिों, फकीरों और डॉक्टरों की जाि नहीं िखे ी जािी।\"\"2 'उल्टे बाँस बरेली' कहानी िरू से ही बाधं िी चलिी है दबल्कल रेन की यािा की िरह। खि दहन्िी मीदडयम से पढ़ने वाले मािा-दपिा अपने बेटे या बेटी के दहन्िी न जानने पर गवष महससू करिे ह।ंै इसे कहानी के िरुआि में ही दिखाया गया ह।ै भार्ा न जानने पर गव!ष बड़ी दवडंबना ह।ै इसके बाि जसै े-जसै े रेन आगे बढ़िी है वैसे कहानी और उसी िरह रामसरन की प्रगदििीलिा के लच्छेिार भार्ण। उसमंे िो पाठक दबल्कल खो सा जािा ह।ै उसकी िन्रा काफी िरू चले जाने पर सहसा झटके के साथ भंग िब होिी है जब रामसरन के साथ खाने वाले सहयािी के डोम होने का पिा चलिा ह।ै जैसे रामसरन सहयािी के डोम होने का अनमान नहीं लगा पािा ठीक उसी िरह पाठक को भी इस बाि की जरा भी भनक नहीं लगिी। उसे भी रामसरन के साथ ही पिा चलिा ह।ै कहानी का क्लाइमके ्स यहीं ह।ै उसके बाि रामसरन की थोथी प्रगदििीलिा दटदफन की िरह रेन में ही छू ट जािी है और यथाथष 'सहयािी' संबोधन वाले व्यदक्त के साथ स्टेिन पर उिर जािा ह।ै अगली कहानी 'िेिभदक्त में दफदजयोथेरेपी' 1980 के ििक में ले जािी ह।ै िरू ििषन यग, दजसमें कोई जल्िीबाजी न थी। टेलीदवजन के दलए गजब का सादत्वक क्रे ज था। सादत्वक इसदलए दक स्वस्थ प्रसारण को लोग स्वस्थ मन से ग्रहण करिे थ।े िब मोबाइल सदृ जि िनाव न था। बाकी कहानी मंे वदणषि पदलदसया व्यवहार िो जग-जादहर है ही। बाि साफ है 'करैि और 'पदलस से नजिीकी ठीक नहीं होिी' ऐसा इस कहानी को पढ़ कर ज्ञान उत्पन्न होिा। ह।ै इसमंे कई अलग िरह के प्रसंग हैं जसै े कौआ भगाने के दलए दपस्िौल की फायररंग और मारपीट के दखलाफ फररयाि लके र आये हएु आिदमयों की ही डंडे से दपटाई और के स का दनपटारा। अगली कहानी 'फू लचिं का स्कू टर' पढ़कर हसँ ी आिी ह,ै लदे कन फू लचिं का िख भी िखे ा नहीं जािा। िरअसल, जब अपनी वस्ि पर आस-पड़ोस के लोग अदधकार जमाने लगंे िो ऐसा ही मानदसक िख होिा है और अदधकार जमाने वाले 1 गड़ँ ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागजं , प्रथम ससं ्करण ,पषृ ्ठ 113 2 गँड़ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागंज , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 127 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 309

310 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 व्यदक्त थेथर हों िो यह िख कई गना बढ़ जािा ह।ै कहानी के िरुआि मंे ही कहानीकार ने बिा दिया है दक 'लोग हजार लड़ाई-झगड़े के बावजिू परंपरा और मरजाि को लेकर व्यवहाररक थ।े लोगों के आपसी सम्बन्ध ऐसे थे दक एक-िसू रे पर अपना हक समझिे थे।'’1 यहाँ िो मोहल्ले की बाि है, लदे कन गाँवों में यह भावना अभी भी बरकरार ह।ै अपने खेि में मलू ी या चने की साग न हो िो बगल के खिे से साधभाव से उखाड़ ली जािी ह।ै मटर, चन,े िरकारी या फल दकसी की जमीन मंे हों परू ा गावँ उसे अपना समझिा ह।ै इसी िरह फू लचिं का स्कू टर भी आस-पड़ोस के लोगों द्वारा उनका समझा जािा रहा। बाि यहीं िक नहीं रुकिी। एक िो मना करने पर लोग मानिे नहीं, ऊपर से लोगों की भीड़ में उस बाि को इिनी कला से कहगंे े दक मना करने वाला व्यदक्त ही िमसष ार हो जाय।े थेथरई का उत्कृ ि नमूना िेखना हो िो कहानी का यह अिं िेखंे - \"\"अमरनाथ इस बीच स्कू टर खड़ा कर के मस्करािे हएु पान घलािा रहा। िब िक कई लोग गली मंे जमा भी हो गए। जब फू लचंि कछ िान्ि पड़े िो उसने नाली में पीक थूकिे हएु कहा, \"बस होय गयल िोहार भार्ण? ई नौटंकी बन्ि करबा दक अउर गरजे के हव?\" दफर उसने जमा लोगों को सम्बोदधि करिे हुए कहा, \"िखे ा एनके सब लोग! सरवा मँगनी के स्कू टर पे एिना गमान! पचाष लगावलन दक जे एनकर स्कू टर छई, उ हरामी हव। अब बिावा, चच्चा के गाली िेवे से भिीजवन के बरा लगी भला? और ओइसे दिन भर हमने के उल्टा सीधा कहि रहलन, ओकर कउनों दहसाब ना हव। और रहल बाि स्कू टर छए क, ि भला गइला इजं ीदनयरवा के यहां से के ले के आयल एके ? िोहंै ड्राईदवंग हम दसखइली और हमारे ऊपर गरािष हउआ? फाइनल बाि सन ला- हमंे िोहरे गररयइले से कौनों दिक्कि ना हव। चच्चा हउआ, िोहार हक हव गररआवे क। और हाँ, स्कू टर बिे िू मना नाहीं कर सकिआ। िोहार ड्राइदवंग गरू होए के नािे हम जब चाहब िब ले जाब। इहै हमार गरू-िदक्षणा हव।\" दफर उसने लक्ष्मण को िखे िे हएु कहा, \"कहो चच्चा, गलि कहि हई?\"2 'राजा कािी हव' इस संग्रह की अदं िम कहानी ह।ै इसे पढ़कर टेलर के पास जाने और िय समय पर दसले कपड़े न दमल पाने वाले व्यदक्तयों का िख उभर आिा ह।ै यह आम बाि है दक एक बार टेलर को कपड़ा िे िो दफर िौड़ारी पर िौड़ारी। कपड़ा टेलर भरोस।े पहले कपड़ा िने े वाला बिािा है दक कपड़ा कब चादहए। उसके बाि टेलर बिािा है दक कपड़ा दमलेगा कब, लदे कन इस कहानी मंे मोड़ ह।ै दजस टेलर के प्रदि िरू में पाठक खीझिा ह,ै उसके प्रदि अन्ि मंे कहानीकार भरे दिल से कृ िज्ञिा दिलवा िेिे ह।ैं आदखर कहानीकार की लखे नी िरू मंे ही सब कछ थोड़े ही बिाएगी। पाठक कहानी की पंदक्त को पगडंडी की भादँ ि पकड़कर यािा करिा है िब जाकर उसे ज्ञाि होिा है दक असल मोड़ कहाँ ह।ै 'राजा कािी हव' िीर्कष की परिें अंि मंे खलिी ह।ैं अब बाि इस सगं ्रह की भार्ा पर। सभी कहादनयों में बनारसी भोजपरी का िाना-बाना ह।ै इस इलाके के लोगों को भार्ा के कारण ये सभीं कहादनयाँ अदधक आकदर्िष करिीं ह।ैं कािी की भार्ा, संस्कृ दि, जीवन-िलै ी, ठाठ, सथरई, थथे रई की अिा इन कहादनयों मंे सविष दबखरी है या यों कहंे दक कहानी की बदनयाि भी यही ह।ै इनमें कोई हड़बड़-धड़बड़ नहीं मची ह।ै सब कछ बनारस के बनारसीपन के चाल में चलिा ह।ै इन कहादनयों को पादलि मार कर चमकाया नहीं गया ह।ै ये अपने ठेठ, भद्दर, खद्दर अन्िाज में ह।ंै इनकी भार्ा मंे लोक प्रचदलि कहाविंे ह।ैं एक कहानी में कम से कम एक कहावि। उिाहरण के दलए - 'कोिवाल के पिे ाब से दचराग जला करिे हंै' (कोिवाल रामलखन दसहं ), 'चना-चबने ा-चबने ा गंगाजल जो परू वे करिार, कािी कबहूँ न छादँ ड़ये दवश्वनाथ िरबार'(आवभगि), 'माई करे कटौनी-दपसौनी, बटे वा के नाम हव िरगािास' (अवं रगेटा और दसरी), 'पदलस वालन पे भरोसा और कीरा के दबल मंे हाथ नायल एक बराबर हव' (गड़ँ ासा गरु की िपथ), झोली में घास नाहीं, सराई में डेरा'(उल्टे बासँ बरेली), डल्लू मंे डेढ़सरे ा' (उल्टे बाँस बरेली), 'बाि कहीं हम 1 गँड़ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागजं , प्रथम ससं ्करण ,पषृ ्ठ 159 2 गड़ँ ासा गरु की िपथ : कन्िन यािव; राजकमल प्रकािन, िररयागजं , प्रथम संस्करण ,पषृ ्ठ 165 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 310

311 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 छरा,ष गोली लगे चाहे छराष' (उल्टे बाँस बरेली), 'सब धान बाईस पसेरी' (िेिभदक्त मंे दफदजयोथरे ेपी) आदि। कािी की जमीनी भार्ा पर मजबिू पकड़ है कहानीकार की या यों कहें दक उनकी लखे नी बखूबी जानिी है दक दखदसयाई औरि के मखवनृ ्ि से 'मँह फकौना', 'िदढजरौन'ू गाली ही दनकलिी ह।ै परुर्ों की जबान पर 'ससरा' बगरै काम नहीं चलिा। दवख्याि है दक कािी मंे दबना गाली पड़े िो िहर के कोिवाल भी नहीं रह पाि।े गाली यहां की भार्ा मंे वसै े घली है जैसे खाने में नमक। मानना यह है दक इससे जीवन मंे दमठास बढ़ जािी ह।ै अपनी कहादनयों मंे रचनाकार कन्िन यािव ने आद्योपािं इसका ख्याल रखा ह।ै उनकी कहादनयों के ये दहस्से आिे ही 'कािी का अस्सी' बरबस याि आ ही जािा ह।ै कािीनाथ जी ने िो बिा ही दिया है दक कािी मंे दकसे-दकसे गाली पड़ सकिी ह।ै दफर कन्िन यािव कािी की कहानी दलखिे िो इस परम्परा को भला छोड़ कै से सकिे थे। यदि छोड़ िेिे िो भार्ा बजे ान होिी और ये कहादनयां इहाँ की न होकर उहाँ की मालूम पड़िी। चौथी कहानी के िीर्कष को इस संग्रह का िीर्कष भी बनाया गया ह।ै अपने आकर्कष , चटीले और नयेपन को समेटे 'गँड़ासा गरु की िपथ' संग्रह पाठक को खबू आकदर्िष करिा ह।ै कल दमला कर कािी और उसके आसपास के इलाकों के जीिे-जागिे जीवन-यथाथष को बड़ी बारीकी से इस सगं ्रह में उके रा गया ह।ै वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 311

312 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 312 Photo by Ashkan Forouzani


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