उसके नीचे जो कु छ तार-चख पिहये पजु हो सब तोड़ डालो। नीचे एक कोठरी िमलेगी िजसमबगुले के िबगड़ जाने से िब कु ल उजाला हो गया होगा। उस कोठरी से एक रा ता नीचे उसकु एं म गया है जो परू ब वाले दलान म है। वहां भी मसाले से बना एक बङु ्ढा आदमी हाथ मिकताब िलये िदखाई देगा। उसके हाथ से िकताब ले लो, मगर एकाएक मत छीनो नहीं तोधोखा खाओगे! पहले उसका दािहना बाजू पकड़ो, वह मुंह खोल देगा, उसका मुहं काफू र से खूबभर दो, थोड़ी ही देर म वह भी गल के बह जायेगा, तब िकताब ले लो। उसके सब प नेभोजपत्र के ह गे। जो कु छ उसम िलखा हो वसै ा करो। -िवक्रम।'' कु मार ने पढ़ा, सभी ने सुना। घटं े भर तक तो िसवाय ितिल म बनाने वाले की तारीफ केिकसी की जुबान से दसू री बात न िनकली। बाद इसके यह राय ठहरी िक अब िदन भी थोड़ारह गया है, डरे े म चलकर आराम िकया जाय, कल सबरे े ही कु ल काम से छु ट्टी पाकर ितिल मकी तरफ झुक। यह खबर चार तरफ मशहूर हो गई िक चुनारगढ़ के इलाके म कोई ितिल म है िजसमकु मारी चदं ्रका ता और चपला फं स गई ह। उनको छु ड़ाने और ितिल म तोड़ने के िलए कंु अरवीरे द्रिसहं ने मय फौज के उस जगह डरे ा डाला है। ितिल म िकसको कहते ह? वह क्या चीज है? उसम आदमी कै से फं सता है? कंु अरवीरे द्रिसहं उसे क्य कर तोड़गे? इ यािद बातो को जानने और देखने के िलए दरू -दरू के बहुतसे आदमी उस जगह इकट्ठे हुए जहां कु मार का ल कर उतरा हुआ था, मगर खौफ के मारेखंडहर के अंदर कोई परै नहीं रखता था, बाहर से ही देखते थ।े कु मार के ल कर वाल ने घूमते-िफरते कई नकाबपोश सवार को भी देखा िजनकी खबरउन लोग ने कु मार तक पहुंचाई।
पिं डत बद्रीनाथ, अहमद और नािजम को साथ लेकर महाराज िशवद त को छु ड़ाने गये थ,ेतहखाने म शरे के मुहं से जबु ान खीचं िकवाड़ खोलना चाहा मगर न खलु सका, क्य िक यहांतेजिसहं ने दोहरा ताला लगा िदया था। जब कोई काम न िनकला तब वहां से लौटकरिवजयगढ़ गये, ऐयारी की िफक्र म थे िक यह खबर कंु अर वीरे द्रिसहं की इ ह ने भी सुनी।लौटकर इसी जगह पहुंच।े प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल भी उसी िठकाने जमा हुएऔर इन सब की यह राय होने लगी िक िकसी तरह ितिल म तोड़ने म बाधा डालनी चािहए।इसी िफक्र म ये लोग भेष बदलकर इधर-उधर तथा ल कर म घूमने लगे। प चीसवाँ बयान दसू रे िदन नान-पूजा से छु ट्टी पाकर कंु अर वीरे द्रिसहं , तेजिसहं , देवीिसहं और योितषीजीिफर उस खंडहर म घुसे, िसरका साथ म लेते गये। कल जो प थर िनकला था उस पर जो कु छिलखा था िफर पढ़ के याद कर िलया और उसी िलखे के बमूिजब काम करने लगे। बाहरदरवाजे पर बि क खडं हर के चार तरफ पहरा बठै ा हुआ था। बगलु े के पास गये, उसके सामने की तरफ जो सफे द प थर जमीन म गड़ा हुआ था, िजसपर परै रखने से बगलु ा मुहं खोल देता था, उखाड़ िलया। नीचे एक और प थर कमानी परजड़ा हुआ पाया। सफे द प थर को िसरके म खबू बारीक पीसकर बगुले के सारे बदन म लगािदया। देखते-देखते वह पानी होकर बहने लगा, साथ ही इसके एक खशू बू-सी फै लने लगी। दोघटं े म बगलु ा गल गया। िजस खंभे पर बैठा था वह भी िब कु ल िपघल गया, नीचे की कोठरीिदखाई देने लगी िजसम उतरने के िलए सीिढ़यां थीं और इधर-उधर बहुत से तार और कलपुजवगैरह लगे हुए थे। सब को तोड़ डाला और चार आदमी नीचे उतरे, भीतर ही भीतर उस कु एंम जा पहुंचे जहां हाथ म िकताब िलये बङु ्ढा आदमी बठै ा था, सामने एक प थर की चौकी परप थर ही के बने रंग-िबरंगे फू ल रखे हुए देखे। बाजू पकड़ते ही बङु ्ढे ने महुं खोल िदया, तेजिसहं से काफू र लेकर कु मार ने उसके मुंह मभर िदया। घंटे भर तक ये लोग उसी जगह बठै े रहे। तेजिसहं ने एक मशाल खूब मोटी पहले
ही से बाल ली थी। जब बङु ्ढा गल गया िकताब जमीन पर िगर पड़ी, कु मार ने उठा िलया।उसकी िज द भी िजस पर कु छ िलखा हुआ था भोजपत्र ही की थी। कु मार ने पढ़ा, उस परयह िलखा हुआ पाया- ''इन फू ल को भी उठा लो, तु हारे ऐयार के काम आवगे। इनके गणु भी इसी िकताब मिलखे हुए ह, इस िकताब को डरे े म ले जाकर पढ़ो, आज और कोई काम मत करो।'' तजे िसहं ने बड़ी खशु ी से उन फू ल को उठा िलया जो िगनती म छ: थे। उस कु एं म सेकोठरी म आकर ये लोग ऊपर िनकले और धीरे- धीरे खंडहर के बाहर हो गये। थोड़ा िदन बाकी था जब कंु अर वीरे द्रिसहं अपने डरे े म पहुंच।े यह राय ठहरी िक रात मइस िकताब को पढ़ना चािहए, मगर तजे िसहं को यह ज दी थी िक िकसी तरह फू ल के गुणमालूम ह । कु मार से कहा, ''इस वक्त इन फू ल के गणु पढ़ लीिजए बाकी रात को पिढ़येगा।''कु मार ने हंसकर कहा, ''जब कु ल ितिल म टू ट लेगा तब फू ल के गणु पढ़े जायगे।'' तेजिसहं ने बड़ी खशु ामद की, आिखर लाचार होकर कु मार ने िज द खोली। उस वक्तिसवाय इन चार आदिमय के उस खेमे म और कोई न था, सब बाहर कर िदये गये। कु मारपढ़ने लगे-फू ल के गणु ( 1) गुलाब का फू ल-अगर पानी म िघसकर िकसी को िपलाया जाय तो उसे सात रोजतक िकसी तरह की बेहोशी असर न करेगी। ( 2) मोितये का फू ल-अगर पानी म थोड़ा-सा िघसकर िकसी कु एं म डाल िदया जाय तोचार पहर तक उस कु एं का पानी बेहोशी का काम देगा, जो िपयेगा बेहोश हो जायगा, इसकीबेहोशी आधा घटं े बाद चढ़ेगी।
दो ही फू ल के गणु पढ़े थे िक तीन ऐयार मारे खशु ी के उछल पड़,े कु मार ने िकताब बंदकर दी और कहा, ''बस अब न पढ़गे।'' अब तेजिसहं हाथ जोड़ रहे ह, कसम देते जाते ह िक िकसी तरह परमे वर के वा तेपिढ़ये, आिखर यह सब आप ही के काम आवेगा, हम लोग आप ही के तो ताबेदार ह। थोड़ी देरतक िद लगी करके कु मार ने िफर पढ़ना शु िकया- ( 3) ओरहुर का फू ल-पानी म िघसकर पीने से चार रोज तक भखू न लगे। ( 4) कनेर का फू ल-पानी म िघसकर पैर धो ले तो थकावट या राह चलने की सु तीिनकल जाय। ( 5) गुलदावदी का फू ल-पानी म िघसकर आंख म अजं न करे तो अधं ेरे म िदखाई दे। (6) के वड़े का फू ल-तेल म िघसकर लगावे तो सदीर् असर न करे, क थे के पानी मिघसकर िकसी को िपलाए तो सात रोज तक िकसी िक म का जोश उसके बदन म बाकी नरहे। इन फू ल को बड़ी खुशी से तेजिसहं ने अपने बटु ए म डाल िलया, देवीिसहं और योितषीजी मागं ते ही रहे मगर देखने को भी न िदया। छ बीसवाँ बयान इन फू ल को पाकर तेजिसहं िजतने खुश हुए शायद अपनी उम्र म आज तक कभी ऐसेखुश न हुए ह गे। एक तो पहले ही ऐयारी म बढ़े-चढ़े थ,े आज इन फू ल ने इ ह और बढ़ािदया। अब कौन है जो इनका मुकाबला करे? हां एक चीज की कसर रह गई, लोपाजं न या कोईगुटका इस ितिल म म से इनको ऐसा न िमला, िजससे ये लोग की नजर से िछप जाते, औरअ छा ही हुआ जो न िमला, नहीं तो इनकी ऐयारी की तारीफ न होती क्य िक िजस आदमी के
पास कोई ऐसी चीज हो िजससे वह गायब हो जाय तो िफर ऐयारी सीखने की ज रत ही क्यारही। गायब होकर जो चाहा कर डाला। आज की रात इन चार को जागते ही बीती। ितिल म की तारीफ, फू ल के गुण, ितिल मीिकताब के पढ़ने, सबेरे िफर ितिल म म जाने आिद की बातचीत म रात बीत गई। सबेरा हुआ,ज दी-ज दी नान-पजू ा से चार ने छु ट्टी पा ली और कु छ भोजन करके ितिल म म जाने कोतयै ार हुए। कु मार ने तजे िसहं से कहा, ''हमारे पलगं पर से ितिल मी िकताब उठा के तमु लेते चलो,वहां िफर एक दफे पढ़ के तब कोई काम करगे।'' तजे िसहं ितिल मी िकताब लेने गये, मगरिकताब नजर न पड़ी, चारपाई के नीचे हर तरफ देखा, कहीं पता नहीं, आिखर कु मार से पछू ा,''िकताब कहां है? पलंग पर तो नहीं है?'' सनु ते ही कु मार के होश उड़ गये, जी स न हो गया, दौडे हुए पलगं के पास आये। खूबढूंढा, मगर कहीं िकताब हो तब तो िमले। कु मार 'हाय' करके पलंग के ऊपर िगर पड़,े िब कु लहौसला टू ट गया, कु मारी चंद्रका ता के िमलने से नाउ मीद हो गये, अब ितिल मी िकताब कहांिजसम ितिल म तोड़ने की तरकीब िलखी है। तेजिसहं , देवीिसहं , और जग नाथ योितषी भीघबरा उठे । दो घड़ी तक िकसी के महंु से आवाज तक न िनकली, बाद इसके तलाश होने लगी।ल कर भर म खूब शोर मचा िक कु मार के डरे े से ितिल मी िकताब गायब हो गई, पहरे वालपर सख्ती होने लगी, चार तरफ चोर की तलाश म लोग िनकले। तेजिसहं ने कु मार से कहा, ''आप जी मत छोटा कीिजये, म वादा करता हूं िक चोर ज रपकड़ूगं ा, आपके सु त हो जाने से सभी का जी टू ट जायगा, कोई काम करते न बन पड़गे ा!''बहुत समझाने पर कु मार पलगं से उठे , उसी वक्त एक चोबदार ने आकर अजीब खबर सुनाई।हाथ जोड़कर अज्र िकया िक ''ितिल म के फाटक पर पहरे के िलए जो लोग मु तदै िकये गयेह उनम से एक पहरे वाला हािजर हुआ है और कहता है िक ितिल म के अंदर कई आदिमय
की आहट िमली है, िकसी को अंदर जाने का हुक्म तो है नहीं जो ठीक मालमू कर, अब जसै ाहुक्म हो िकया जाय।'' इस खबर को सनु ते ही तजे िसहं पता लगाने के िलए ितिल म म जाने को तैयार हुए।देवीिसहं से कहा, ''तमु भी साथ चलो, देख आव क्या मामला है।'' योितषीजी बोले, ''हम भीचलगे।'' कु मार भी उठ खड़े हुए। आिखर ये चार ितिल म म चले। बाहर फतहिसहं सेनापितिमले, कु मार ने उनको भी साथ ले िलया। दरवाजे के अंदर जाते ही इन लोग के कान म भीिच लाने की आवाज आई, आगे बढ़ने से मालूम हुआ िक इसम कई आदमी ह। आवाज कीधुन पर ये लोग बराबर बढ़ते चले गये। उस दलान म पहुंचे िजसम चबतू रे के ऊपर हाथ मिकताब िलये प थर का आदमी सोया था। देखा िक प थर वाला आदमी उठ के बठै ा हुआ पंिडत बद्रीनाथ ऐयार को दोन हाथ सेदबाये है और वह िच ला रहे ह। प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल छु ड़ाने की तरकीबकर रहे ह मगर कोई काम नहीं िनकलता। ितिल मी िकताब के खो जाने का इन लोग कोबड़ा भारी गम था, मगर इस वक्त पिं डत बद्रीनाथ ऐयार की यह दशा देख सब को हंसी आगई, एकदम िखलिखला के हंस पड़।े उन ऐयार ने पीछे िफरकर देखा तो कंु अर वीरे द्रिसहं मयतीन ऐयार के खड़े ह, साथ म फतहिसहं सेनापित ह। तजे िसहं ने ललकारकर कहा, ''वाह खूब, जैसी िजसकी करनी होती है उसको वसै ा ही फलिमलता है, इसम कोई शक नहीं। बेचारे कंु अर वीरे द्रिसहं को बेकसरू तुम लोग ने सताया, इसीकी सजा तुम लोग को िमली! परमे वर भी बड़ा इंसाफ करने वाला है। क्य प नालाल तमुलोग जान-बूझकर क्य फं सते हो? तमु लोग को तो िकसी ने पकड़ा नहीं है, िफर बद्रीनाथ केपीछे क्य जान देते हो? इनको इसी तरह छोड़ दो, तमु लोग जाओ हवा खाओ!'' प नालाल ने कहा, ''भला इनको ऐसी हालत म छोड़ के हम लोग कहीं जा सकते ह? अबतो आपके जो जी म आवे सो कीिजये हम लोग हािजर ह।'' तेजिसहं ने पिं डत बद्रीनाथ केपास जाकर कहा, ''पिं डतजी परनाम! क्य , िमजाज कै सा है? क्या आप ितिल म तोड़ने को आये
थे? अपने राजा को तो पहले छु ड़ा िलये होते। खरै शायद तुमने यह सोचा िक हम ही ितिल मतोड़कर कु ल खजाना ले ल और खदु चनु ार के राजा बन जाय!'' देवीिसहं ने भी आगे बढ़ के कहा, ''बद्रीनाथ भाई, ितिल म तोड़ना तो उसम से कु छ मझु ेभी देना, अके ले मत उड़ा जाना!'' योितषीजी ने कहा, ''बद्रीनाथजी, अब तो तु हारे ग्रह िबगड़े ह!खिै रयत तभी है िक वह ितिल मी िकताब हमारे हवाले करो िजसे आप लोग ने रात कोचुराया है!'' बद्रीनाथ सबकी सुनते मगर िसवाय जमीन देखने के जवाब िकसी को नहीं देते थे।प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल पंिडत बद्रीनाथ को छोड़ अलग हो गये और कु मार सेबोले, ''ई वर के वा ते िकसी तरह बद्रीनाथ की जान बचाइये!'' कु मार ने कहा, ''भला हम क्या कर सकते ह, कु ल हाल ितिल म का मालूम नहीं, जोिकताब ितिल म से मुझको िमली थी, िजसे पढ़कर ितिल म तोड़त,े वह तमु लोग ने गायबकर ली। अगर मेरे पास होती तो उसम देखकर कोई तरकीब इनके छु ड़ाने की करता, हां अगरतमु लोग वह िकताब मुझे दे दो तो ज र बद्रीनाथ इस आफत से छू ट सकते ह।'' यह सनु कर प नालाल ने ितरछी िनगाह से बद्रीनाथ की तरफ देखा, उ ह ने भी कु छइशारा िकया। प नालाल ने कु मार से कहा, ''हम लोग ने िकताब नहीं चरु ाई है, नहीं तो ऐसीबेबसी की हालत म ज र दे देत।े या तो िकसी तरह से पिं डत बद्रीनाथ को छु ड़ाइये या हमलोग के वा ते यह हुक्म दीिजये िक बाहर जाकर इनके िलए कु छ खाने का सामान लाकरिखलाव, बि क जब तक आपकी िकताब न िमले आप ितिल म न तोड़ ल और बद्रीनाथ उसीतरह बेबस रह, तब तक हम लोग म से िकसी को िखलान-े िपलाने के िलए यहां आन-े जाने काहुक्म हो।'' देवीिसहं ने कहा, ''प नालाल, भला यह तो कहो िक अगर कई रोज तक बद्रीनाथ इसी तरहकै द रह गये तो खान-े पीने का बदं ोब त तो तमु कर लोगे, जाकर ले आओगे लेिकन अगर
इनको िदशा मालमू पड़गे ी तो क्या उपाय करोगे? उसको कहां ले जाकर फकोगे? या इसी तरहइनके नीचे ढेर लगा रहेगा?'' इसका जवाब प नालाल ने कु छ न िदया। तेजिसहं ने कहा, ''सनु ो जी, ऐयार को ऐयारलोग खूब पहचानते ह। अगर तु हारे आने-जाने के िलए कु मार हुक्म नहीं देते तो हम हुक्मदेते ह िक आया करो और िजस तरह बने बद्रीनाथ की िहफाजत करो। तुम लोग ने हमाराबड़ा हज्र िकया, ितिल मी िकताब चुरा ली और अब मुकरते हो। इस वक्त हमारे अिख्तयार मसब कोई हो, िजसके साथ जो चाहे क ं , सीधी तरह से न दो तो डडं के जोर से िकताब ले लंूमगर नही,ं छोड़ देता हूं और खूब होिशयार कर देता हूं, िकताब स हाल के रखना, म िबनािलये न छोडू गं ा और तमु लोग को िगर तार भी न क ं गा!'' तजे िसहं की बात सनु कर पिं डत बद्रीनाथ लाल हो गये और बोले, ''इस वक्त हमको बेबसदेख के शखे ी करते हो! यह िह मत तो तब जान िक हमारे छू टने पर कह-बद के कोई ऐयारीकरो और जीत जाओ! क्या तमु ही एक दिु नया म ऐयार हो? हम भी जोर देकर कहते ह िकहम ही ने तु हारी ितिल मी िकताब चुराई है, मगर हम लोग म से िकसी को कै द िकए यासताये िबना तुम नहीं पा सकत।े यह शखे ी तु हारी न चलेगी िक ऐयार को िगर तार भी नकरो बि क आने-जाने के िलए छु ट्टी दे दो और िकताब भी ले लो। ऐसा कर तो लो उसी िदनसे हम लोग तु हारे गुलाम हो जायं और महाराज िशवद त को छोड़कर कु मार की ताबेदारीकर। म बता देता हूं िक िकताब भी न दंगू ा और यहां से छू ट के भी िनकल जाऊं गा।'' तेजिसहं ने कहा, ''म भी कसम खाकर कहता हूं िक िबना तुम लोग को कै द िकये अगरिकताब न ले लंू तो िफर ऐयारी का नाम न लूं और िसर मुड़ा के दसू रे देश म िनकल जाऊं !मुझको भी तुम लोग से एक ही दफे म फै सला कर लेना है।'' इस बात पर तेजिसहं और बद्रीनाथ दोन ने कसम खाईं। बेचारे कंु अर वीरे द्रिसहं सब कामंुह देखते थे, कु छ कहते बन नहीं पड़ता था। तेजिसहं ने देवीिसहं और योितषीजी को अलगले जाकर कान म कु छ कहा और दोन उसी वक्त ितिल म के बाहर हो गये। िफर तजे िसहं
बद्रीनाथ के पास आकर बोले, ''हम लोग जाते ह, प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल कोजहां जी चाहे भेजो और अपने छु ड़ाने की जो तरकीब सझू े करो। पहरे वाल को कह िदयाजाता है, वे तु हारे सािथय को आते-जाते न रोकगे।'' कु मार को िलये हुए तजे िसहं अपने डरे े म पहुंचे, देखा तो योितषीजी बैठे ह। तेजिसहं नेपूछा, ''क्य योितषीजी देवीिसहं गये?'' यो-हां वह तो गये। तजे -आपने अभी कु छ देखा िक नहीं? यो-हां पता लगा, पर आफत पर आफत नजर आती है। तेज-वह क्या? यो-रमल से मालूम होता है िक उन लोग के हाथ से भी िकताब िनकल गई और अभीतक कहीं रखी नहीं गई। देख देवीिसहं क्या करके आते ह, हम भी जाते तो अ छा होता। तजे -तो िफर आप राह क्य देखते ह, जाइये, हम भी अपनी धुन म लगतेह। यह सुन योितषीजी तुरंत वहां से चले गये। कु मार ने कहा, ''भला कु छ हम भी तो मालमूहो िक तमु लोग ने क्या सोचा, क्या कर रहे हो और क्या समझ के तुमने उन लोग को छोड़िदया। म तो ज र यही कहूंगा िक इस वक्त तु हीं ने शखे ी म आकर काम िबगाड़ िदया, नहींतो वे लोग हमारे हाथ फं स चुके थ।े '' तेजिसहं ने कहा, ''मेरा मतलब आप अभी तक नहीं समझ,े िकताब तो म उनसे ले ही लूगं ामगर जहां तक बने उन सब को एक ही दफे म अपना चेला भी क ं , नहीं तो यह रोज-रोज कीऐयारी से कहां तक होिशयारी चलेगी? िसवाय िज और बदाबदी के ऐयार कभी ताबेदारी कबलूनहीं करते, चाहे जान चली जाय, मािलक का सगं कभी न छोडग़े!'' कु मार ने कहा, ''इससे तो
हमको और तर दु हुआ। ई वर न करे कहीं तुम हार गए और बद्रीनाथ छू ट के िनकल गये तोक्या तमु हमारा भी सगं छोड़ दोगे?'' तजे -बेशक छोड़ दंगू ा, िफर अपना महंु न िदखाऊं गा! कु मार-तो तमु आप भी गये और मझु े भी मारा, अ छी दो ती अदा की! हाय अब क्याक ं ? भला यह तो बताओ िक देवीिसहं और योितषीजी कहां गये? तेज-अभी न बताऊं गा, पर आप डिरये मत, ई वर चाहेगा तो सब काम ठीक होगा औरमेरा-आपका साथ भी न छू टेगा। आप बैिठये, म दो घंटे के िलए कहीं जाता हूं। कु मार-अ छा जाओ। तेजिसहं वहां से चले गये, फतहिसहं को भी कु मार ने िबदा िकया, अब देखना चािहए येलोग क्या करते ह और कौन जीतता है। स ताईसवाँ बयान तजे िसहं , देवीिसहं और योितषीजी के चले जाने पर कु मार बहुत देर तक सु त बठै े रहे।तरह-तरह के ख्याल पैदा होते रहे, जरा खटु का हुआ और दरवाजे की तरफ देखने लगते िकशायद तेजिसहं या देवीिसहं आते ह , जब िकसी को नहीं देखते तो िफर हाथ पर गाल रखकरसोच-िवचार म पड़ जाते। पहर भर िदन बाकी रह गया पर तीन ऐयार म से कोई भी लौटकरन आया, कु मार की तबीयत और भी घबड़ाई, बैठा न गया, डरे े के बाहर िनकले। कु मार को डरे े के बाहर होते देख बहुत से मलु ािजम सामने आ खड़े हुए। बगल ही मफतहिसहं सेनापित का डरे ा था, सुनते ही कपड़े बदल हरब को लगाकर वह भी बाहर िनकलआये और कु मार के पास आकर खड़े हो गये। कु मार ने फतहिसहं से कहा, ''चलो जरा घूमआव, मगर हमारे साथ और कोई न आवे!'' यह कह आगे बढ़े। फतहिसहं ने सब को मना कर
िदया, लाचार कोई साथ न हुआ। ये दोन धीरे-धीरे टहलते हुए डरे े से बहुत दरू िनकल गये, तबकु मार ने फतहिसहं का हाथ पकड़ िलया और कहा, ''सुनो फतहिसहं तमु भी हमारे दो त हो,साथ ही पढ़े और बड़े हुए, तुमसे हमारी कोई बात िछपी नहीं रहती, तजे िसहं भी तमु को बहुतमानते ह। आज हमारी तबीयत बहुत उदास हो गई, अब हमारा जीना मिु कल समझो, क्य िकआज तेजिसहं को न मालूम क्या सूझी िक बद्रीनाथ से िज कर बैठे , हाथ म फं से हुए चोर कोछोड़ िदया, न जाने अब क्या होता है? िकताब हाथ लगे या न लगे, ितिल म टू टे या न टू टे,चदं ्रका ता िमले या ितिल म ही म तड़प-तड़पकर मर जाय!'' फतहिसहं ने कहा, ''आप कु छ सोच न कीिजये। तजे िसहं ऐसे बेवकू फ नहीं ह, उ ह ने िजिकया तो अ छा ही िकया। सब ऐयार एकदम से आपकी तरफ हो जायगे। आज का भीिब कु ल हाल मुझको मालूम है, इंतजाम भी उ ह ने अ छा िकया है। मझु को भी एक काम सपु दु ्रकर गए ह वह भी बहुत ठीक हो गया है, देिखये तो क्या होता है?'' बातचीत करते दोन बहुत दरू िनकल गये, यकायक इन लोग की िनगाह कई औरत परपड़ी जो इनसे बहुत दरू न थी।ं इ ह ने आपस म बातचीत करना बंद कर िदया और पेड़ कीआड़ से औरत को देखने लगे। अंदाज से बीस औरत ह गी, अपने-अपने घोड़ की बाग थामे धीरे-धीरे उसी तरफ आ रहीथी।ं एक औरत के हाथ म दो घोड़ की बाग थी। य तो सभी औरत एक से एक खबू सरू त थींमगर सब के आगे-आगे जो आ रही थी बहुत ही खबू सरू त और नाजुक थी। उम्र करीब पदं ्रहवषर् के होगी, पोशाक और जेवर के देखने से यही मालमू होता था िक ज र िकसी राजा कीलड़की है। िसर से पांव तक जवाहरात से लदी हुई, हर एक अंग उसके सदंु र और सुडौल, गुलाब-सा चेहरा दरू से िदखाई दे रहा था। साथ वाली औरत भी एक से एक खबू सरू त बेशकीमतीपोशाक पिहरे हुई थी।ं कंु अर वीरे द्रिसहं एकटक उसी औरत की तरफ देखने लगे जो सब के आगे थी। ऐसेतर दु की हालत म भी कु मार के महंु से िनकल पड़ा, ''वाह क्या सुडौल हाथ-पैर ह! बहुत-सी
बात कु मारी चदं ्रका ता की इसम िमलती ह, नजाकत और चाल भी उसी ढंग की है, हाथ म कोईिकताब है िजससे मालमू होता है िक पढ़ी-िलखी भी है।'' वे औरत और पास आ गईं। अब कु मार को बखबू ी देखने का मौका िमला। िजस जगहपेड़ की आड़ म ये दोन िछपे हुए थे िकसी की िनगाह नहीं पड़ सकती थी। वह औरत जोसबो के आगे-आगे आ रही थी, िजसको हम राजकु मारी कह सकते ह चलत-े चलते अटक गई,उस िकताब को खोलकर देखने लगी, साथ ही इसके दोन आखं से आसं ू िगरने लगे। कु मार ने पहचाना िक यह वही ितिल मी िकताब है, क्य िक इसकी िज द पर एक तरफमोटे-मोटे सनु हरे हरफ म 'ितिल म' िलखा हुआ है। सोचने लगे-'इस िकताब को तो ऐयार लोगचुरा ले गये थ,े तेजिसहं इसकी खोज म गये ह। इसके हाथ यह िकताब क्य कर लगी? यहकौन है और िकताब देख-देखकर रोती क्य है!!' ॥ भाग 2 (दसू रा अ याय) समा त ॥ ॥ भाग -3 (तीसरा अ याय) ॥ पहला बयान वह नाजकु औरत िजसके हाथ म िकताब है और जो सब औरत के आगे-आगे आ रहीहै, कौन और कहां की रहने वाली है जब तक यह न मालूम हो जाय तब तक हम उसकोवनक या के नाम से िलखगे।धीरे-धीरे चलकर वनक या जब उन पेड़ के पास पहुंची िजधर आड़ म कंु अर वीरे द्रिसहं औरफतहिसहं िछपे खड़े थ,े तो ठहर गई और पीछे िफर के देखा। इसके साथ एक और जवान,नाजुक तथा चंचल औरत अपने हाथ म एक त वीर िलए हुए चल रही थी जो वनक या को
अपनी तरफ देखते देख आगे बढ़ आई। वनक या ने अपनी िकताब उसके हाथ म दे दी औरत वीर उससे ले ली। त वीर की तरफ देख लबं ी सासं ली, साथ ही आंख डबडबा आईं, बि क कई बंूद आंसओु ंकी भी िगर पड़ी।ं इस बीच म कु मार की िनगाह भी उसी त वीर पर जा पड़ी, एकटक देखते रहेऔर जब वनक या बहुत दरू िनकल गई तब फतहिसहं से बातचीत करने लगे। कु मार-क्य फतहिसहं , यह कौन है कु छ जानते हो? फतहिसहं -म कु छ भी नहीं जानता मगर इतना कह सकता हूं िक िकसी राजा की लड़कीहै। कु मार-यह िकताब जो इसके हाथ म है ज र वही है जो मुझको ितिल म से िमली थी,िजसको िशवद त के ऐयार ने चुराया था, िजसके िलए तजे िसहं और बद्रीनाथ म बदाबदी हुईऔर िजसकी खोज म हमारे ऐयार लगे हुए ह! फतहिसहं -मगर िफर वह िकताब इसके हाथ कै से लगी? कु मार-इसका तो ता जुब हई है मगर इससे भी यादे ता जबु की एक बात और है,शायद तमु ने ख्याल नहीं िकया। फतह-नही,ं वह क्या? कु मार-वह त वीर भी मेरी ही है िजसको बगल वाली औरत के हाथ से उसने िलया था। फतह-यह तो आपने और भी आ चयर् की बात सुनाई। कु मार-म तो अजब हैरानी म पड़ा हूं, कु छ समझ ही नहीं आता िक क्या मामला है।अ छा चलो पीछे -पीछे देख ये सब जाती कहां ह।
फतह-चिलए। कु मार और फतहिसहं उसी तरफ चले िजधर वे औरत गई थी।ं थोड़ी ही दरू गये ह गे िकपीछे से िकसी ने आवाज दी। िफर के देखा तो तजे िसहं पर नजर पड़ी। ठहर गये, जब पासपहुंचे उ ह घबराये हुए और बदहवास देखकर पूछा, ''क्य क्या है जो ऐसी सूरत बनाए हो?'' तेजिसहं ने कहा, ''है क्या, बस हम आपसे िजंदगी भर के िलए जुदा होते ह।'' इससे यादेन बोल सके , गला भर आया। आंख से आंसुओं की बूदं टपाटप िगरने लगी।ं तजे िसहं कीअधूरी बात सनु और उनकी ऐसी हालत देख कु मार भी बेचैन हो गये मगर यह कु छ भी नजान पड़ा िक तजे िसहं के इस तरह बेिदल होने का क्या सबब है। फतहिसहं से इनकी यह दशा देखी न गई। अपने माल से दोन की आंख प छीं, इसकेबाद तजे िसहं से पूछा, ''आपकी ऐसी हालत क्य हो रही है, कु छ मंहु से तो किहए। क्या सबबहै जो ज म भर के िलए आप कु मार से जदु ा ह गे?'' तेजिसहं ने अपने को स हालकर कहा- ''ितिल मी िकताब हम लोग के हाथ न लगी और न िमलने की कोई उ मीद है इसिलएअपने कौल पर िसर मड़ु ा के िनकल जाना पड़गे ा।'' इसका जवाब कंु अर वीरे द्रिसहं और फतहिसहं कु छ िदया ही चाहते थे िक देवीिसहं औरपंिडत जग नाथ योितषी भी घमू ते हुए आ पहुंचे। योितषीजी ने पकु ारकर कहा, ''तजे िसहं ,घबराइए मत, अगर आपको िकताब न िमली तो उन लोग के पास भी न रही, जो मने पहलेकहा था वही हुआ, उस िकताब को कोई तीसरा ही ले गया।'' अब तेजिसहं का जी कु छ िठकाने हुआ। कु मार ने कहा, ''वाह खबू , आप भी रोये औरमुझको भी लाया। िजसके हाथ म िकताब पहुंची उसे मने देखा मगर उसका हाल कहने काकु छ मौका तो िमला नहीं तुम पहले से ही रोने लगे!!'' इतना कह के कु मार ने उस तरफ देखािजधर वे औरत गई थीं मगर कु छ िदखाई न पड़ा। तजे िसहं ने घबराकर कहा, ''आपने िकसके
हाथ म िकताब देखी? वह आदमी कहां है?'' कु मार ने जवाब िदया, ''म क्या बताऊं कहां है, चलोउस तरफ शायद िदखाई दे जाय, हाय िवपत पर िवपत बढ़ती ही जाती है!'' आगे-आगे कु मार तथा पीछे -पीछे तीन ऐयार और फतहिसहं उस तरफ चले िजधर वेऔरत गई थी,ं मगर तेजिसहं , देवीिसहं और योितषीजी हैरान थे िक कु मार िकसको खोज रहेह, वह िकताब िकसके हाथ लगी है, या जब देखा ही था तो छीन क्यो न िलया! कई दफे चाहािक कु मार से इन बात को पूछ मगर उनको घबराए हुए इधर-उधर देखते और लबं ी-लंबी सासंलेते देख तजे िसहं ने कु छ न पछू ा। पहर भर तक कु मार ने चार तरफ खोजा मगर िफर उनऔरत पर िनगाह न पड़ी। आिखर आंख डबडबा आईं और एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। तेजिसहं ने पछू ा, ''आप कु छ खलु ासा किहए भी तो िक क्या मामला है?'' कु मार ने कहा,''अब इस जगह कु छ न कहगे। ल कर म चलो, िफर जो कु छ है सुन लेना।'' सब कोई ल कर म पहुंच।े कु मार ने कहा, ''पहले ितिल मी खंडहर म चलो। देख बद्रीनाथकी क्या कै िफयत है!'' यह कहकर खंडहर की तरफ चले, ऐयार सब पीछे -पीछे रवाना हुए।खडं हर के दरवाजे के अंदर पैर रखा ही था िक सामने से पंिडत बद्रीनाथ, प नालाल वगरै हआते िदखाई पड़।े कु मार-यह देखो वह लोग इधर ही चले आ रहे ह! मगर ह, यह बद्रीनाथ छू ट कै से गये? तेजिसहं -बड़े ता जबु की बात है! देवीिसहं -कहीं िकताब उन लोग के हाथ तो नहीं लग गई। अगर ऐसा हुआ तो बड़ीमिु कल होगी। फतह-इससे िनि चतं रहो, वह िकताब इनके हाथ अब तक नहीं लगी, हां आगे िमल जायतो म नहीं कह सकता, क्य िक अभी थोड़ी ही देर हुई है वह दसू रे के हाथ म देखी जा चकु ी है।
इतने म बद्रीनाथ वगरै ह पास आ गये। प नालाल ने पकु ार के कहा, ''क्य तजे िसहं , अबतो हार गये न!'' तजे -हम क्य हारे! बद्री-क्य नहीं हारे, हम छू ट भी गये और िकताब भी न दी। तजे -िकताब तो हम पा गये, तमु चाहे आपसे आप छू टो या मेरे छु ड़ाने से छू टो! िकताबपाना ही हमारा जीतना हो गया, अब तुमको चािहए िक महाराज िशवद त को छोड़कर कु मार केसाथ रहो। बद्री-हमको वह िकताब िदखा दो, हम अभी ताबेदारी कबलू करते ह। तजे -तो तमु ही क्य नहीं िदखा देत,े जब तु हारे पास नहीं तो सािबत हो गया िक हमपा गये। बद्री-बस-बस, हम बेिफक्र हो गये, तु हारी बातचीत से मालमू हो गया िक तमु ने िकताबनहीं पाई और उसे कोई तीसरा ही उड़ा ले गया, अभी तक हम डरे हुए थ।े देवी-िफर आिखर हारा कौन यह भी तो कहो? बद्री-कोई भी नहीं हारा। कु मार-अ छा यह तो कहो तुम छू टे कै से! बद्री-बस ई वर ने छु ड़ा िदया, जानबूझ के कोई तरकीब नहीं की गई। प नालाल ने उसकेिसर पर एक लकड़ी रखी, उस प थर के आदमी ने मझु को छोड़ लकड़ी पकड़ी बस म छू ट गया।उसके हाथ म वह लकड़ी अभी तक मौजूद है। कु मार-अ छा हुआ, दोन की ही बात रह गई।
बद्री-कु मार, मेरा जी तो चाहता है िक आपके साथ रहूं मगर क्या क ं , नमकहरामी नहींकर सकता, कोई तो सबब होना चािहए! अब मुझे आज्ञा हो तो िबदा होऊं । कु मार-अ छा जाओ। यो-अ छा हमारी तरफ नहीं होते तो न सही मगर ऐयारी तो बदं करो। तेज-वाह योितषीजी, आिखर वेदपाठी ही रहे। ऐयारी से क्या डरना? ये लोग िजतना जीचाह जोर लगा ल! प ना-खैर देखा जायगा, अभी तो जाते है, जय माया की! तेज-जय माया की! बद्रीनाथ वगैरह वहां से चले गए। िफर कु मार भी ितिल म म न गये और अपने डरे े मचले आए। रात को कु मार के डरे े म सब ऐयार और फतहिसहं इकट्ठे हुए। दरबान को हुक्मिदया िक कोई अदं र न आने पाव।े तेजिसहं ने कु मार से पूछा, ''अब बताइए िकताब िकसकेहाथ म देखी थी, वह कौन है, और आपने िकताब लेने की कोिशश क्य नहीं की?'' कु मार ने जवाब िदया, ''यह तो म नहीं जानता िक वह कौन है लेिकन जो भी हो, अगरकु मारी चदं ्रका ता से बढ़ के नहीं है तो िकसी तरह कम भी नहीं है। उसके हु न ने उससेिकताब िछनने न िदया।'' तेज-(ता जबु से) कु मारी चंद्रका ता से और उस िकताब से क्या सबं धं ा? खलु ासा किहएतो कु छ मालमू हो। कु मार-क्या कह हमारी तो अजब हालत है! (ऊं ची सासं लेकर चुप हो रहे) तजे -आपकी िविचत्र ही दशा हो रही है, कु छ समझ म नहीं आता। (फतहिसहं की तरफदेख के ) आप तो इनके साथ थे, आप ही खलु ासा हाल किहए, यह तो बारह दफे लंबी सांस लेगे
तो डढ़े बात कहगे! जगह-जगह तो इनको इ क पदै ा होता है, एक बला से छू टे नहीं दसू रीखरीदने को तयै ार हो गए।'' फतहिसहं ने सब हाल खुलासा कह सनु ाया। तजे िसहं बहुत हैरान हुए िक वह कौन थीऔर उसने कु मार को पहले कब देखा, कब आिशक हुई और त वीर कै से उतरवा मंगाई? योितषीजी ने कई दफे रमल फका मगर खुलासा हाल मालमू न हो सका, हां इतना कहािक िकसी राजा की लड़की है। आधी रात तक सब कोई बठै े रहे, मगरकोई काम न हुआ, आिखरयह बात ठहरी िक िजस तरह बने उन औरत को ढूंढना चािहए। सब कोई अपने डरे े म आराम करने चले गये। रात भर कु मार को वनक या की याद नेसोने न िदया। कभी उसकी भोली-भाली सूरत याद करते, कभी उसकी आंख से िगरे हुएआंसुओं के यान म डू बे रहते। इसी तरह करवट बदलते और लबं ी सासं लेते रात बीत गईबि क घंटा भर िदन चढ़ आया पर कु मार अपने पलगं पर से न उठे । तेजिसहं ने आकर देखा तो कु मार चादर से मंहु लपेटे पड़े ह, महुं की तरफ का िब कु लकपड़ा गीला हो रहा है। िदल म समझ गये िक वनक या का इ क परू े तौर पर असर करगया है, इस वक्त नसीहत करना भी उिचत नही।ं आवाज दी, ''आप सोते ह या जागते ह?'' कु मार-(मंुह खोलकर) नहीं, जागते तो ह। तेज-िफर उठे क्य नहीं? आप तो रोज सबेरे ही नान-पूजा से छु ट्टी कर लेते ह, आज क्याहुआ? ''नहीं कु छ नही'ं ' कहते हुए कु मार उठ बठै े । ज दी-ज दी नान से छु ट्टी पाकर भोजनिकया। तेजिसहं वगैरह इनके पहले ही सब काम से िनि चत हो चकु े थ,े उन लोग ने भी कु छभोजन कर िलया और उन औरत को ढूंढने के िलए जगं ल म जाने को तयै ार हुए। कु मार नेकहा, ''हम भी चलगे।'' सभी ने समझाया िक आप चलकर क्या करगे हम लोग पता लगाते ह,
आपके चलने से हमारे काम म हजर् होगा-मगर कु मार ने कहा, ''कोई हज्र न होगा, हमफतहिसहं को अपने साथ लेते चलते ह, तु हारा जहां जी चाहे घमू ना, हम उसके साथ इधर-उधर िफरगे।'' तेजिसहं ने िफर समझाया िक कहीं िशवद त के ऐयार लोग आपको धोखे म नफं सा ल, मगर कु मार ने एक मानी, आिखर लाचार होकर कु मार और फतहिसहं को साथ लेजंगल की तरफ रवाना हुए। थोड़ी दरू घने जंगल म जाकर उन लोग को एक जगह बैठाकर तीन ऐयार अलग-अलगउन औरत की खोज म रवाना हुए। ऐयार के चले जाने पर कंु अर वीरे द्रिसहं फतहिसहं सेबात करने लगे मगर िसवाय वनक या के कोई दसू रा िजक्र कु मार की जुबान पर न था। दसू रा बयान कंु अर वीरे द्रिसहं बैठे फतहिसहं से बात कर रहे थे िक एक मािलन जो जवान और कु छखबू सरू त भी थी हाथ म जगं ली फू ल की डाली िलये कु मार के बगल से इस तरह िनकली जैसेउसको यह मालूम नहीं िक यहां कोई है। मुंह से कहती जाती थी-''आज जगं ली फू ल का गहनाबनाने म देर हो गई, ज र कु मारी खफा ह गी, देख क्या ददु र्शा होती है।'' इस बात को दोन ने सनु ा। कु मार ने फतहिसहं से कहा, ''मालूम होता है यह उ हीं कीमािलन है, इसको बलु ा के पूछो तो सही।'' फतहिसहं ने आवाज दी, उसने च ककर पीछे देखा,फतहिसहं ने हाथ के इशारे से िफर बलु ाया, वह डरती-कापं ती उनके पास आ गई। फतहिसहं नेपूछा, ''तू कौन है और फू ल के गहने िकसके वा ते िलये जा रही है?'' उसने जवाब िदया, ''म मािलन हूं, यह नहीं कह सकती िक िकसके यहां रहती हूं, और येफू ल के गहने िकसके वा ते िलये जाती हूं। आप मुझको छोड़ द, म बड़ी गरीब हूं, मेरे मारने सेकु छ हाथ न लगेगा, हाथ जोड़ती हूं, मेरी जान मत मािरए।'' ऐसी-ऐसी बात कह मािलन रोने और िगड़िगड़ाने लगी। फू ल की डिलया आगे रखी हुईथी िजनकी तजे खुशबू फै ल रही थी। इतने म एक नकाबपोश वहां आ पहुंचा और कु मार की
तरफ महंु करके बोला, ''आप इसके फे र म न पड़, यह ऐयार है, अगर थोड़ी देर और फू ल कीखुशबू िदमाग म चढ़ेगी तो आप बेहोश हो जायगे।'' उस नकोबपोश ने इतना कहा ही था िक वह मािलन उठकर भागने लगी, मगर फतहिसहंने झट हाथ पकड़ िलया। सवार उसी वक्त चला गया। कु मार ने फतहिसहं से कहा, ''मालमूनहीं सवार कौन है, और मेरे साथ यह नके ी करने की उसको क्या ज रत थी?'' फतहिसहं नेजवाब िदया, ''इसका हाल मालूम होना मिु कल है क्य िक वह खुद अपने को िछपा रहा है, खैरजो हो यहां ठहरना मुनािसब नही,ं देिखये अगर यह सवार न आता तो हम लोग फं स ही चुकेथे।'' कु मार ने कहा, ''तु हारा यह कहना बहुत ठीक है, खैर अब चलो और इसको अपने साथलेते चलो, वहां चलकर पूछ लगे िक यह कौन है।'' जब कु मार अपने खेमे म फतहिसहं और उसऐयार को िलये हुए पहुंचे तो बोले, ''अब इससे पछू ो इसका नाम क्या है?'' फतहिसहं ने जवाबिदया, ''भला यह ठीक-ठीक अपना नाम क्य बतावगे ा, देिखये म अभी मालमू िकये लेता हूं।'' फतहिसहं ने गरम पानी मगं वाकर उस ऐयार का मंहु धलु ाया, अब साफ पहचाने गये िकयह पिं डत बद्रीनाथ ह। कु मार ने पूछा, ''क्य अब तु हारे साथ क्या िकया जाय?'' बद्रीनाथ नेजवाब िदया, ''जो मुनािसब हो कीिजये।'' कु मार ने फतहिसहं से कहा, ''इनकी तुम िहफाजत करो, जब तेजिसहं आवगे तो वहीइनका फै सला करगे!'' यह सुन फतहिसहं बद्रीनाथ को ले अपने खेमे म चले गये। शाम कोबि क कु छ रात बीते तजे िसहं , देवीिसहं और योितषीजी लौटकर आये और कु मार के खेमे मगए। उ ह ने पछू ा, ''कहो कु छ पता लगा?'' तेजिसहं -कु छ पता न लगा, िदन भर परेशान हुए मगर कोई काम न चला। कु मार-(ऊं ची सांस लेकर) िफर अब क्या िकया जायेगा?
तेज-िकया क्या जायेगा, आज-कल म पता लगेगा ही। कु मार-हमने भी एक ऐयार को िगर तार िकया है। तेज-ह, िकसको? वह कहां है! कु मार-फतहिसहं के पहरे म है, उसको बुला के देखो कौन है! देवीिसहं को भेजकर फतहिसहं को मय ऐयार के बलु वाया। जब बद्रीनाथ की सरू त देखीतो खशु हो गये और बोले, ''क्य , अब क्या इरादा है?'' बद्री-इरादा जो पहले था वही अब भी है? तजे -अब भी िशवद त का साथ छोड़ोगे या नहीं? बद्री-महाराज िशवद त का साथ क्य छोड़ने लगे? तजे -तो िफर कै द हो जाओगे। बद्री-चाहे जो हो। तेज-यह न समझना िक तु हारे साथी लोग छु ड़ा ले जायगे, हमारा कै दखाना ऐसा नहीं है। बद्री-उस कै दखाने का हाल भी मालूम है, वहां भेजो भी तो सही। देवी-वाह रे िनडर। तेजिसहं ने फतहिसहं से कहा, ''इनके ऊपर सख्त पहरा मकु र्रर कीिजए। अब रात हो गईहै, कल इनको बड़े घर पहुंचाया जायगा।'' फतहिसहं ने अपने मातहत िसपािहय को बलु ाकर बद्रीनाथ को उनके सपु दु र् िकया, इतनेही म चोबदार ने आकर एक खत उनके हाथ म दी और कहा िक एक नकाबपोश सवार बाहर
हािजर है िजसने यह खत राजकु मार को देने के िलए दी है!'' तजे िसहं ने िलफाफे को देखा, यहिलखा हुआ था- ''कंु अर वीरे द्रिसहं जी के चरण कमल म-'' तेजिसहं ने कु मार के हाथ म िदया, उ ह ने खोलकर पढ़ा- बरवा ''सुख स पि त सब याग्यो िजनके हेत। वे िनरमोही ऐसे, सुिधहु न लेत॥ राज छोड़ बन जोगी भसम रमाय। िवरह अनल की धनू ी तापत हाय॥'-कोई िवयोिगनी पढ़ते ही आखं डबडबार् आईं, बधं े गले से अटककर बोले, ''उसको अदं र बलु ाओ जो खतलाया है।'' हुक्म पाते ही चोबदार उस नकाबपोश सवार को लेने बाहर गया मगर तरु ंत वापसआकर बोला-''वह सवार तो मालूम नहीं कहां चला गया!'' इस बात को सनु ते ही कु मार के जी को िकतना दखु हुआ वे ही जानते ह गे। वह खततजे िसहं के हाथ म दे दी, उ ह ने भी पढ़ी, ''इसके पढ़ने से मालमू होता है यह खत उसी ने भेजीहै िजसकी खोज म िदन भर हम लोग हैरान हुए और यह तो साफ ही है िक वह भी आपकीमुह बत म डू बी हुई है, िफर आपको इतना रंज न करना चािहए।'' कु मार ने कहा, ''इस खत ने तो इ क की आग म घी का काम िकया। उसका ख्याल औरभी बढ़ गया घट कै से सकता है! खैर अब जाओ तुम लोग भी आराम करो, कल जो कु छ होगादेखा जायगा।''
तीसरा बयान कल रात से आज की रात कु मार को और भी भारी गजु री। बार-बार उस बरवे को पढ़तेरहे। सबेरा होते ही उठे , नान-पजू ा कर जंगल म जाने के िलए तेजिसहं को बुलाया, वे भीआये। आज िफर तजे िसहं ने मना िकया मगर कु मार ने न माना, तब तेजिसहं ने उनितिल मी फू ल म से गुलाब का फू ल पानी म िघसकर कु मार और फतहिसहं को िपलाया औरकहा िक ''अब जहां जी चाहे घूिमये, कोई बेहोश करके आपको नहीं ले जा सकता, हां जबद्र तीपकड़ ले तो म नहीं कह सकता।'' कु मार ने कहा, ''ऐसा कौन है जो मुझको जबदर् ती पकड़ ले!'' पाचं आदमी जगं ल म गये, कु छ दरू कु मार और फतहिसहं को छोड़ तीन ऐयार अलग-अलग हो गए। कंु अर वीरे द्रिसहं फतहिसहं के साथ इधर-उधर घमू ने लगे। घमू ते-घमू ते कु मारबहुत दरू िनकल गये, देखा िक दो नकाबपोश सवार सामने से आ रहे ह। जब कु मार से थोड़ीदरू रह गये तो एक सवार घोड़े पर से उतर पड़ा और जमीन पर कु छ रख के िफर सवार होगया। कु मार उसकी तरफ बढ़े, जब पास पहुंचे तो वे दोन सवार यह कह के चले गए िक इसिकताब और खत को ले लीिजए। कु मार ने पास जाकर देखा तो वही ितिल मी िकताब नजर पड़ी, उसके ऊपर एक खतऔर बगल म कलम दवात और कागज भी मौजदू पाया। कु मार ने खशु ी-खशु ी उस िकताब कोउठा िलया और फतहिसहं की तरफ देख के बोले, ''यह िकताब देकर दोन सवार चले क्य गएसो कु छ समझ म नहीं आता, मगर बोली से मालमू होता है िक वह सवार औरत है िजसनेमझु े िकताब उठा लेने के िलए कहा। देख खत म क्या िलखा है?'' यह कह खत खोल पढ़ने लगे,यह िलखा था- ''मेरा जी तुमसे अटका है और िजसको तुम चाहते हो वह बेचारी ितिल म म फं सी है।अगर उसको िकसी तरह की तकलीफ होगी तो तु हारा जी दखु ी होगा। तु हारी खशु ी सेमुझको भी खुशी है यह समझकर िकताब तु हारे हवाले करती हूं। खुशी से ितिल म तोड़ो
और चंद्रका ता को छु ड़ाओ, मगर मझु को भूल न जाना, तु ह उसी की कसम िजसको यादाचाहते हो। इस खत का जवाब िलखकर उसी जगह रख देना जहां से िकताब उठाओगे।'' खत पढ़कर कु मार ने तुरंत जवाब िलखा- ''इस ितिल मी िकताब को हाथ म िलए मने िजस वक्त तुमको देखा उसी वक्त सेतु हारे िमलने को जी तरस रहा है। म उस िदन अपने को बड़ा भाग्यवान जानगंू ा िजस िदनमेरी आंख दोन प्रेिमय को देख ठ डी होगी, मगर तमु को तो मेरी सूरत से नफरत है। -तु हारा वीरे द्र।'' जवाब िलखकर कु मार ने उसी जगह पर रख िदया। वे दोन सवार दरू खड़े िदखाई िदये,कु मार देर तक खड़े राह देखते रहे मगर वे नजदीक न आये। जब कु मार कु छ दरू हट गये तबउनम से एक ने आकर खत का जवाब उठा िलया और देखत-े देखते नजर की ओट हो गया।कु मार भी फतहिसहं के साथ ल कर म आये। कु छ रात गये तजे िसहं वगैरह भी वापस आकर कु मार के खेमे म इकट्ठे हुए। तजे िसहं नेकहा, ''आज भी िकसी का पता न लगा, हां कई नकाबपोश सवार को इधर-उधर घमू ते देखा।मने चाहा िक उनका पता लगाऊं मगर न हो सका क्य िक वे लोग भी चालाकी से घमू ते थ,ेमगर कल ज र हम उन लोग का पता लगा लगे।'' कु मार ने कहा, ''देखो तु हारे िकये कु छ न हुआ मगर मने कै सी ऐयारी की िक खोई हुईचीज को ढूंढ िनकाला, देखो यह ितिल मी िकताब।'' यह कह कु मार ने िकताब तजे िसहं के आगेरख दी। तजे िसहं ने कहा, ''आप जो कु छ ऐयारी करगे वह तो मालमू ही है मगर यह बताइए िकिकताब कै से हाथ लगी? जो बात होती है ता जबु की!''
कु मार ने िब कु ल हाल िकताब पाने का कह सुनाया, तब वह खत िदखाई और जो कु छजवाब िलखा था वह भी कहा। योितषीजी ने कहा, ''क्य न हो, िफर तो बड़े घर की लड़की है, िकसी तरह से कु मार कोद:ु ख देना पसदं न िकया। िसवाय इसके खत पढ़ने से यह भी मालमू होता है िक वह कु मार केपरू े-पूरे हाल से वािकफ है, मगर हम लोग िब कु ल नहीं जान सकते िक वह है कौन!'' कु मार ने कहा, ''इसकी शमर् तो तजे िसहं को होनी चािहए िक इतने बड़े ऐयार होकर दो-चार औरत का पता नहीं लगा सकत!े '' तेज-पता तो ऐसा लगावगे िक आप भी खुश हो जायगे, मगर अब िकताब िमल गई है तोपहले ितिल म के काम से छु ट्टी पा लेनी चािहए। कु मार-तब तक क्या वे सब बठै ी रहगी? तेज-क्या अब आपको कु मारी चंद्रका ता की िफक्र न रही? कु मार-क्य नहीं, कु मारी की मुह बत भी मेरे नस-नस म बसी हुई है, मगर तमु भी तोइंसाफ करो िक इसकी मुह बत मेरे साथ कै सी स ची है, यहां तक िक मेरे ही सबब से कु मारीचंद्रका ता को मुझसे भी बढ़कर समझ रखा है। तेज-हम यह तो नहीं कहते िक उसकी महु बत की तरफ ख्याल न कर, मगर ितिल म काभी तो ख्याल होना चािहए। कु मार-तो ऐसा करो िजसम दोन का काम चले। तजे -ऐसा ही होगा, िदन को ितिल म तोड़ने का काम करगे, रात को उन लोग का पतालगावगे।
आज की रात िफर उसी तरह काटी, सबेरे मामूली काम से छु ट्टी पाकर कंु अर वीरे द्रिसहं ,तेजिसहं और योितषीजी ितिल म म घसु े, ितिल मी िकताब साथ थी। जैसे-जैसे उसम िलखाहुआ था उसी तरह ये लोग ितिल म तोड़ने लगे। ितिल मी िकताब म पहले ही यह िलखा हुआ था िक ितिल म तोड़ने वाले को चािहए िकजब पहर िदन बाकी रहे ितिल म से बाहर हो जाय और उसके बाद कोई काम िलित म तोड़नेका न करे। चौथा बयान ितिल मी खडं हर म घुसकर पहले वे उस दलान म गए जहां प थर के चबूतरे पर प थरही का आदमी सोया हुआ था। कु मार ने इसी जगह से ितिल म तोड़ने म हाथ लगाया। िजस चबूतरे पर प थर का आदमी सोया था उसके िसरहाने की तरफ पांच हाथ हटकरकु मार ने अपने हाथ से जमीन खोदी। गज भर खोदने के बाद एक सफे द प थर की चट्टानदेखी िजसम उठाने के िलए लोहे की मजबूत कड़ी लगी हुई भी िदखाई पड़ी। कड़ी म हाथ डालके प थर उठाकर बाहर िकया। तहखाना मालमू पड़ा, िजसम उतरने के िलए सीिढ़यां बनी थीं। तजे िसहं ने मशाल जला ली, उसी की रोशनी म सब कोई नीचे उतरे। खबू खलु ासा कोठरीदेखी, कहीं गद्र या कू डे का नाम-िनशान नहीं, बीच म सगं ममर्र प थर की खूबसरू त पतु ली एकहाथ म काटं ी दसू रे हाथ म हथौड़ी िलए खड़ी थी। कु मार ने उसके हाथ से हथौड़ी-काटं ी लेकर उसी के बाएं कान म काटं ी डाल हथौड़ी सेठोक दी, साथ ही उस पुतली के ह ठ िहलने लगे और उसम से बाजे की-सी आवाज आने लगी,मालमू होता था मानो वह पतु ली गा रही है। थोड़ी देर तक यही कै िफयत रही, यकायक पुतली के बाएं-दािहने दोन अंग के दो टु कड़े होगये और उसके पेट म से आठ अगं ुल का छोटा-सा गलु ाब का पेड़ िजसम कई फू ल भी लगे
हुए थे और डाल म एक ताली लटक रही थी िनकला, साथ ही इसके एक छोटा-सा ताबं े का पत्रभी िमला िजस पर कु छ िलखा हुआ था। कु मार ने उसे पढ़ा- ''इस पेड़ को हमारे यहां के वै य अजायबद ता ने मसाले से बनाया है। इन फू ल सेबराबर गुलाब की खशु बू िनकलकर दरू -दरू तक फै ला करेगी। दरबार म रखने के िलए यह एकनायाब पौधा सौगात के तौर पर वै यजी ने तु हारे वा ते रखा है।'' इसको पढ़कर कु मार बहुत खुश हुए और योितषीजी की तरफ देखकर बोले, ''यह बहुतअ छी चीज मझु को िमली, देिखये इस वक्त भी इन फू ल म से कै सी अ छी खुशबू िनकलकरफै ल रही है।'' तेज-इसम तो कोई शक नही।ं देवी-एक से एक बढ़कर कारीगरी िदखाई पड़ती है! अभी कु मार बात कर रहे थे िक कोठरी के एक तरफ का दरवाजा खुल गया। अधं ेरीकोठरी म अभी तक इन लोग ने कोई दरवाजा या उसका िनशान नहीं देखा था पर इसदरवाजे के खलु ने से कोठरी म बखूबी रोशनी पहुंची। मशाल बझु ा दी गई और ये लोग उसदरवाजे की राह से बाहर हुए। एक छोटा-सा खूबसरू त बाग देखा। यह बाग वही था िजसमचपला आई थी और िजसका हाल हम दसू रे भाग म िलख चुके ह। बमिू जब िलखे ितिल मी िकताब के कु मार ने उस ताली म एक र सी बांधी जो पतु ली केपेट से िनकली थी। र सी हाथ म थाम ताली को जमीन म घसीटते हुए कु मार बाग म घूमनेलगे। हर एक रिवश और क्वािरय म घमू ते हुए एक फ वारे के पास ताली जमीन से िचपकगई। उसी जगह ये लोग भी ठहर गये। कु मार के कहे मुतािबक सब ने उस जमीन को खोदनाशु िकया। दो-तीन हाथ खोदा था िक योितषीजी ने कहा, ''अब पहर भर िदन बाकी रहगया, ितिल म से बाहर होना चािहए।''
कु मार ने ताली उठा ली और चार आदमी कोठरी की राह से होते हुए ऊपर चढ़ के उसदलान म पहुंचे जहां चबूतरे पर प थर का आदमी सोया था, उसके िसरहाने की तरफ जमीनखोदकर जो प थर की चट्टान िनकली थी उसी को उलटकर तहखाने के महुं पर ढापं िदया।उसके दोन तरफ उठाने के िलए कड़ी लगी हुई थी, और उलटी तरफ एक ताला भी बना हुआथा। उसी ताली से जो पतु ली के पेट से िनकली थी यह ताला बदं भी कर िदया। चार आदमी खंडहर से िनकल कु मार के खेमे म आये। थोड़ी देर आराम कर लेने के बादतेजिसहं , देवीिसहं और योितषीजी कु मार से कह के वनक या की टोह म जगं ल की तरफरवाना हुए। इस समय िदन अनमु ानत: दो घ टे बाकी होगा। ये तीन ऐयार थोड़ी ही दरू गये ह गे िक एक नकाबपोश जाता हुआ िदखा। देवीिसहंवगरै ह पेड़ की आड़ िदये उसी के पीछे-पीछे रवाना हुए। वह सवार कु छ पि चम हटता हुआसीधो चनु ार की तरफ जा रहा था। कई दफे रा ते म का, पीछे िफरकर देखा और बढ़ा। सरू ज अ त हो गया। अंधेरी रात ने अपना दखल कर िलया, घना जंगल अंधेरी रात मडरावना मालमू होने लगा। अब ये तीन ऐयार सखू े प तो की आवाज पर जो टाप के पड़ने सेहोती थी जाने लगे। घटं े भर रात जात-े जाते उस जगं ल के िकनारे पहुंच।े नकाबपोश सवार घोड़े पर से उतर पड़ा। उस जगह बहुत से घोड़े बंधे थ।े वहीं पर अपनाघोड़ा भी बाधं ा िदया, एक तरफ घास का ढेर लगा हुआ था, उसम से घास उठाकर घोड़े के आगेरख दी और वहां से पदै ल रवाना हुआ। उस नकाबपोश के पीछे-पीछे चलते हुए ये तीन ऐयार पहर रात बीते गगं ा िकनारे पहुंचे।दरू से जल म दो रोशिनयां िदखाई पड़ी,ं मालूम होता था जसै े दो चंद्रमा गगं ाजी म उतर आयेह। सफे द रोशनी जल पर फै ल रही थी। जब पास पहुंचे देखा िक एक सजी हुई नाव पर कईखबू सरू त औरत बैठी ह, बीच म ऊं ची ग ी पर एक कमिसन नाजुक औरत िजसका रोआब देखने
वाल पर छा रहा है बठै ी है, चादं -सा चहे रा दरू से चमक रहा है। दोन तरफ माहताब जल रहेह। नकाबपोश ने िकनारे पहुंचकर जोर से सीटी बजाई, साथ ही उस नाव म से इस तरहसीटी की आवाज आई जसै े िकसी ने जवाब िदया हो। उन औरत म से जो उस नाव पर बठै ीथीं दो औरत उठ खड़ी हुईं तथा नीचे उतर एक ड गी जो उस नाव के साथ बधं ी थी, खोलकरिकनारे ला नकाबपोश को उस पर चढ़ा ले गयीं। अब ये तीन ऐयार आपस म बात करने लगे- तेज-वाह, इस नाव पर छू टते हुए दो माहताब के बीच ये औरत कै सी भली मालूम होतीह। योितषी-पिरय का अखाड़ा मालूम होता है, चलो तैर के उनके पास चल। देवी- योितषीजी, कहीं ऐसा न हो िक पिरयां आपको उड़ा ले जायं, िफर हमारी मडं ली मएक दो त कम हो जायगा। तेज-म जहां तक ख्याल करता हूं यह उ हीं लोग की मडं ली है िज ह कु मार ने देखा था। देवी-इसम तो कोई शक नही।ं यो-तो तैर के चलते क्य नहीं? तुम तो जल से ऐसा डरते हो जसै े कोई बुङ्ढा आिफयूनीडरता हो। देवी-िफर तु हारे साथ आने से क्या फायदा हुआ? तु हारी तो बड़ी तारीफ सनु ते थे िक योितषीजी ऐसे ह, वसै े ह, पिहया ह, चख ह मगर कु छ नही,ं एक अदनी-सी मंडली का पतानहीं लगा सकते।
यो-म क्या खाक बताऊं ? वे लोग तो मुझसे भी यादे ओ ताद मालूम होती ह! सब नेअपने-अपने नाम ही बदल िदये ह, असल नाम का पता लगाना चाहते ह तो अजीब-गरीब नामका पता लगता है। िकसी का नाम िवयोिगनी, िकसी का नाम योिगनी, िकसी का भूतनी िकसीका डािकनी, भला भताइये क्या म मान लूं िक इन लोग के यही नाम ह? तेज-तो इन लोग ने अपना नाम क्य बदल िलया? यो-हम लोग को उ लू बनाने के िलए। देवी-अ छा नाम जाने दीिजये इनके मकाम का पता लगाइये। यो-मकाम के बारे म जब रमल से दिरया त करते ह तो मालूम होता है िक इन लोगका मकाम जल म है, तो क्या हम समझ ल िक ये लोग जलवासी अथारत् ् मछली ह। तेज-यह तो ठीक ही है, देिखए जलवासी ह िक नहीं? यो-भाई सनु ो, रमल के काम म ये चार पदाथ-्र हवा, पानी, िमट्टी और आग हमेशा िवघ्नडालते ह। अगर कोई आदमी योितषी या र माल को छकाना चाहे तो इन चार के हेर-फे र सेखबू छकाया जा सकता है। योितषी बेचारा खाक न कर सके , पोथी-पत्र बेकार का बोझ होजाय। तजे -यह कै से? खुलासा बताओ तो कु छ हम लोग भी समझ, वक्त पर काम ही आवेगा। यो-बता दगे, इस वक्त िजस काम को आये हो वह करो। चलो तैरकर चल। तजे -चलो। ये तीन ऐयार तरै कर नाव के पास गये। बटु आ ऐयारी का कमर म बांधा कपड़ा-ल तािकनारे रखकर जल म उतर गये। मगर दो-चार हाथ गये ह गे िक पीछे से सीटी की आवाजआई, साथ ही नाव पर जो माहताब जल रहे थे बुझ गये, जसै े िकसी ने उ ह ज दी से जल म
फक िदया हो। अब िब कु ल अंधेरा हो गया, नाव नजर से िछप गई। देवीिसहं ने कहा, ''लीिजए,चिलए तैर के !'' तेज-ये सब बड़ी शतै ान मालमू होती ह? यो-मने तो पहले ही कहा िक ये सब की सब आफत ह, अब आपको मालूम हुआ न िकम सच कहता था, इन लोग ने हमारे नजूम को िमट्टी कर िदया है। देवी-चिलये िकनारे, इ ह ने तो बेढब छकाया, मालूम होता है िक िकनारे पर कोई पहरेवाला खड़ा देखता था। जब हम लोग तैर के जाने लगे उसने सीटी बजाई, बस अधेरा हो गया,पहले ही से इशारा बधं ा हुआ था। यो-इस नालायक को यह क्या सूझी िक जब हम लोग पानी म उतर चकु े तब सीटीबजाई, पहले ही बजाता तो हम लोग क्य भीगत?े ये तीनो ऐयार लौटकर िकनारे आये, पिहरने के वा ते अपना कपड़ा खोजते ह तो िमलताही नहीं। देवी- योितषीजी पालागी, लीिजए कपड़े भी गायब हो गये! हाय इस वक्त अगर इन लोगम से िकसी को पाऊं तो क चा ही चबा जाऊं । तेज-हम तो उन लोग की तारीफ करगे, खबू ऐयारी की। देवी-हां-हां खबू तारीफ कीिजए िजससे उन लोग म से अगर कोई सुनता हो तो अब भीआप पर रहम करे और आगे न सताव।े यो-अब क्या सताना बाकी रह गया! कपड़े तक तो उतरवा िलये! तेज-चिलए अब ल कर म चल, इस वक्त और कु छ करते बन न पड़गे ा।
आधी रात जा चुकी होगी जब ये लोग ऐयारी के सताये बदन से नंग-धाड़गं कापं त-ेकलपते ल कर की तरफ रवाना हुए। पाचं वाँ बयान तेजिसहं , देवीिसहं और योितषीजी के जाने के बाद कंु अर वीरे द्रिसहं इन लोग के वापसआने के इंतजार म रात भर जागते रह गए। य - य रात गजु रती थी कु मार की तबीयतघबड़ाती थी। सबेरा हुआ ही चाहता था जब ये तीन ऐयार ल कर म पहुंचे। तजे िसहं की रायहुई िक इसी तरह नंग-धाड़गं कु मार के पास चलना चािहए, आिखर तीन उसी तरह उनके खेमेम गये। कंु अर वीरे द्रिसहं जाग रहे थ,े शमादान जल रहा था, इन तीन ऐयार की िविचत्र सरू तदेख हैरान हो गये। पूछा, ''यह क्या हाल है?'' तेजिसहं ने कहा, ''बस अभी तो सरू त देख लीिजएबाकी हाल जरा दम ले के कहगे।'' तीन ऐयार ने अपने-अपने कपड़े मगं वाकर पहरे, इतने म साफ सबेरा हो गया। कु मार नेतजे िसहं से पूछा, ''अब बताओ तुम लोग िकस बला म फं स गए?'' तजे -ऐसा धोखा खाया िक ज म भर याद करगे। कु मार-वह क्या? तेज-िजनके ऊपर आप जान िदये बैठे ह, िजनकी खोज म हम लोग मारे-मारे िफरते ह,इसम तो कोई शक नहीं िक उनका भी प्रेम आपके ऊपर बहुत है, मगर न मालूम इतनी िछपीक्य िफरती ह और इसम उ ह ने क्या फायदा सोचा है? कु मार-क्या कु छ पता लगा?
तजे -पता क्या आखं से देख आये ह तभी तो इतनी सजा िमली। उनके साथ भी एक सेएक बढ़ के ऐयार ह, अगर ऐसा जानते तो होिशयारी से जात।े कु मार-भला खलु ासा कहो तो कु छ मालमू भी हो। तेजिसहं ने सब हाल कहा, कु मार सुनकर हंसने लगे और योितषीजी से बोले, ''आपकेरमल को भी उन लोग ने धोखा िदया।'' यो-कु छ न पिू छए, सब आफत ह! कु मार-उन लोग का खलु ासा हाल नहीं मालूम हुआ तो भला इतना ही िवचार लेते िकिशवद त के ऐयार की कु छ ऐयारी तो नहीं है? यो-नहीं, िशवद त के ऐयार से और उन लोग से कोई वा ता नहीं बि क उन लोग कोइनकी खबर भी न होगी, इस बात को म खबू िवचार चकु ा हूं। तेज-इतनी ही खैिरयत है। देवी-आज िदन ही को चलकर पता लगायगे। तजे -ितिल म तोड़ने का काम कै से चलेगा? कु मार-एक रोज काम बदं रहेगा तो क्या होगा? तेज-इसी से तो म कहता हूं िक चदं ्रका ता की महु बत आपके िदल से कम हो गई है। कु मार-कभी नहीं, चदं ्रका ता से बढ़कर म दिु नया म िकसी को नहीं चाहता मगर न मालमूक्या सबब है िक वनक या का हाल मालमू करने के िलए भी जी बेचनै रहता है। तेज-(हंसकर) खरै पहले तो पिं डत बद्रीनाथ ऐयार को ले जाकर उस खोह म कै द करना हैिफर दसू रा काम देखगे, कहीं ऐसा न हो िक वे छू ट के चल द।
कु मार-आज ही ले जाकर छोड़ आओ। तेज-हां अभी उनको ले जाता हूं, वहां रखकर रात -रात लौट आऊं गा, पदं ्रह कोस का मामलाही क्या है, तब तक देवीिसहं और योितषीजी वनक या की खोज म गये। तजे िसहं की राय पक्की ठहरी, वे नान-पूजा से छु ट्टी पाकर तयै ार हुए, खाने की चीज मबेहोशी की दवा िमलाकर बद्रीनाथ को िखलाई गईं और जब वे बेहोश हो गये तब तजे िसहंगट्ठर बाधं ाकर पीठ पर लाद खोह की तरफ रवाना हुए। कु मार ने देवीिसहं और योितषीजी कोवनक या की टोह म भेजा। तेजिसहं पंिडत बद्रीनाथ की गठरी िलये शाम होत-े होते तहखाने म पहुंच।े शरे के मुंह महाथ डाल जबु ान खीचं ी और तब दसू रा ताला खोला, मगर दरवाजा न खलु ा। अब तो तजे िसहंके होश उड़ गए, िफर कोिशश की, लेिकन िकवाड़ न खुला। बैठ के सोचने लगे, मगर कु छसमझ म न आया। आिखर लाचार हो बद्रीनाथ की गठरी लादे वािपस हुए। छठवाँ बयान देवीिसहं और योितषीजी वनक या की टोह म िनकलकर थोड़ी ही दरू गए ह गे िक एकनकाबपोश सवार िमला िजसने पुकार के कहा- ''देवीिसहं कहां जाते हो? तु हारी चालाकी हम लोग से न चलेगी, अभी कल आप लोगकी खाितर की गई है और जल म गोते देकर कपड़े सब छीन िलए गए, अब क्या िगर तारही होना चाहते हो? थोड़े िदन सब्र करो, हम लोग तमु लोग को ऐयारी िसखलाकर पक्का करगेतब काम चलेगा।'' नकाबपोश सवार की बात सनु देवीिसहं मन म हैरान हो गए पर योितषीजी की तरफदेखकर बोले, ''सनु लीिजए! यह सवार साहब हम लोग को ऐयारी िसखलायगे जो शमर् के मारेअपना महुं तक नहीं िदखा सकते।''
नकाब- योितषीजी क्या सनु गे, यह भी तो शमा्तर े ह गे क्य िक इनके रमल को हम लोगने बेकार कर िदया, हजार दफे फक मगर पता खाक न लगेगा। देवी-अगर इस इलाके म रहोगे तो िबना पता लगाए न छोड़गे। नकाब-रहगे नहीं तो जायगे कहां? रोज िमलगे मगर पता न लगने दगे। बात करते-करते देवीिसहं ने चालाकी से कू दकर सवार के मुहं पर से नकाब खीचं ली।देखा िक तमाम चहे रे पर रोली मली हुई है, कु छ पहचान न सके । सवार ने फु तीर् के साथ देवीिसहं की पगड़ी उतार ली और एक खत उनके सामने फक घोड़ादौड़ाकर िनकल गया। देवीिसहं ने शिमर् दगी के साथ खत उठाकर देखा, िलफाफे पर िलखा हुआथा- ''कंु अर वीरे द्रिसहं '' योितषीजी ने देवीिसहं से कहा, ''न मालमू ये लोग कहां के रहने वाले ह। मुझे तोमालमू होता है िक इस मडं ली म िजतने ह सब ऐयार ही ह।'' देवी-(खत जबे म रखकर) इसम तो शक नही,ं देिखए हर दफे हम ही लोग नीचा देखते ह,समझा था िक नकाब उतार लेने से सूरत मालूम होगी, मगर उसकी चालाकी तो देिखए चहे रारंग के तब नकाब डाले हुए था। यो-खैर देखा जायगा, इस वक्त तो िफर से ल कर म चलना पड़ा क्य िक खत कु मार कोदेनी चािहए, देख इससे क्या हाल मालूम होता है? अगर इस पर कु मार का नाम न िलखा होतातो पढ़ लेत।े देवी-हां चलो, पहले खत का हाल सनु ल तब कोई कारर्वाई सोच।
दोन आदमी लौटकर ल कर म आये और कंु अर वीरे द्रिसहं के डरे े म पहुंचकर सब हालकह खत हाथ म दे दी। कु मार ने पढ़ा, यह िलखा हुआ था- ''चाहे जो हो, पर म आपके सामने तब तक नहीं हो सकती जब तक आप नीचे िलखीबात का िलखकर इकरार न कर ल। ( 1) चदं ्रका ता से और मुझसे एक ही िदन एक ही सायत म शादी हो। ( 2) चंद्रका ता से तबे म म िकसी तरह कम न समझी जाऊं क्य िक म हर तरह हरदज म उसके बराबर हूं। अगर इन दोन बात का इकरार आप न करगे तो कल ही म अपने घर का रा ता लूंगी।िसवाय इसके यह भी कहे देती हूं िक िबना मेरी मदद के चाहे आप हजार बरस भी कोिशशकर मगर चदं ्रका ता को नहीं पा सकते।'' कु मार का इ क वनक या पर पूरे दज का था। चदं ्रका ता से िकसी तरह वनक या कीचाह कम न थी, मगर इस खत को पढ़ने से उनको कई तरह की िफक्र ने आ घेरा। सोचने लगेिक यह कै से हो सकता है िक कु मारी से और इससे एक ही सायत म शादी हो, वह कब मंजूरकरेगी और महाराज जयिसहं ही कब इस बात को मानगे! िसवाय इसके यहां यह भी िलखा हैिक िबना मेरी मदद के आप चंद्रका ता से नहीं िमल सकते, यह क्या बात है? खरै सो सब जोभी हो वनक या के िबना मेरी िजदं गी मिु कल है, म ज र उसके िलखे मुतािबक इकरारनामािलख दंगू ा पीछे समझा जायगा। कु मारी चंद्रका ता मेरी बात ज र मान लेगी। देवीिसहं और योितषीजी को भी कु मार ने वह खत िदखाई। वे लोग भी हैरान थे िकवनक या ने यह क्या िलखा और इसका जवाब क्या देना चािहए। िदन और रात भर कु मार इसी सोच म रहे िक इस खत का क्या जवाब िदया जाय। दसू रेिदन सुबह होते-होते तजे िसहं भी पंिडत बद्रीनाथ ऐयार की गठरी पीठ पर लादे हुए आ पहुंचे।
कु मार ने पूछा, ''वापस क्य आ गये?'' तजे -क्या बताव मामला ही िबगड़ गया। कु मार-सो क्या? तजे -तहखाने का दरवाजा नहीं खुलता। कु मार-िकसी ने भीतर से तो बंद नहीं कर िलया। तजे -नहीं भीतर तो कोई ताला ही नहीं है। यो-दो बात म से एक बात ज र है, या तो कोई नया आदमी पहुंचा िजसने दरवाजाखोलने की कल िबगाड़ दी, या िफर महाराज िशवद त ने भीतर से कोई चालाकी की। तेज-भला िशवद त अदं र से बदं करके अपने को और बला म क्य फं सावगे? इसम तोउनका हज्र ही है कु छ फायदा नहीं। कु मार-कहीं वनक या ने तो कोई तरकीब नहीं की। तेज-आप भी गजब करते ह, कहां बेचारी वनक या कहां वह ितिल मी तहखाना! कु मार-तमु को मालमू ही नही।ं उसने मझु े खत िलखी है िक-िबना मेरी मदद के तमुचदं ्रका ता से नहीं िमल सकते। और भी दो बात िलखी ह। म इसी सोच म था िक क्या जवाबदंू और वह कौन-सी बात है िजसम मझु को वनक या की मदद की ज रत पड़गे ी, मगर अबतु हारे लौट आने से शक पैदा होता है। देवी-मझु े भी कु छ उ हीं का बखेड़ा मालमू होता है। तजे -अगर वनक या को हमारे साथ कु छ फसाद करना होता तो ितिल मी िकताब क्यवापस देती? देिखये उस खत म क्या िलखा है जो िकताब के साथ आया था।
यो-यह भी तु हारा कहना ठीक है। तजे -(कु मार से) भला वह खत तो दीिजए िजसम वनक या ने यह िलखा है िक िबनाहमारी मदद के चंद्रका ता से मुलाकात नहीं हो सकती। कु मार ने वह खत तेजिसहं के हाथ म दे दी, पढ़कर तेजिसहं बड़े सोच म पड़ गये िक यहक्या बात है, कु छ अक्ल काम नहीं करती। कु मार ने कहा, ''तुम लोग यह जानते ही हो िकवनक या की मुह बत मेरे िदल म कै सा असर कर गई है, िबना देखे एक घड़ी चैन नहीं पड़ता,तो िफर उसके िलखे बमिू जब इकरारनामा िलख देने म क्या हजर् है, जब वह खशु होगी तोउससे ज र ही कु छ न कु छ भेद िमलेगा।'' तेज-जो मनु ािसब समिझये कीिजए, चंद्रका ता बेचारी तो कु छ न बोलेगी मगर महाराजजयिसहं यह कब मंजरू करगे िक एक ही मड़वे म दोन के साथ शादी हो। क्या जाने वहकौन, कहां की रहने वाली और िकसकी लड़की है? कु मार-उसकी खत म तो यह भी िलखा है िक 'म िकसी तरह तबे म कु मारी से कम नहींहूं।' ये बात हो ही रही थीं िक चोबदार ने आकर अज्र िकया, ''एक िसपाही बाहर आया है औरजो हािजर होकर कु छ कहना चाहता है।'' कु मार ने कहा, ''उसे ले आओ।'' चोबदार उस िसपाहीको अदं र ले आया, सब ने देखा िक अजीब रंग-ढंग का आदमी है। नाटा-सा कद, काला रंग,टाट का चपकन पायजामा िजसके ऊपर से लैस टंकी हुई, िसर पर दौरी की तरह बांस कीटोपी, ढाल-तलवार लगाये था। उसने झुककर कु मार को सलाम िकया। सब को उसकी सूरत देखकर हंसी आयी मगर हंसी को रोका। तेजिसहं ने पूछा, ''तमुकौन हो और कहां से आये हो?'' उस बांके जवान ने कहा, ''म देवता हूं, दै य की मडं ली से आरहा हूं, कु मार ने उस खत का जवाब चाहता हूं जो कल एक सवार ने देवीिसहं और जग नाथ योितषी को दी थी।''
तजे -भला तुमने योितषीजी और देवीिसहं का नाम कै से जाना? बाकं ा- योितषीजी को तो म तब से जानता हूं जब से वे इस दिु नया म नहीं आये थ,े औरदेवीिसहं तो हमारे चले े ही ह। देवी-क्य बे शतै ान, हम कब से तेरे चेले हुए? बेअदबी करता है? बाकं ा-बेअदबी तो आप करते ह िक ओ ताद को बे-बे करके बलु ाते ह, कु छ इ जत नहींकरत!े देवी-मालमू होता है तेरी मौत तझु को यहां ले आई है। बांका-म तो वयं मौत हूं। देवी-इस बेअदबी का मजा चखाऊं तुझको? बांका-म कु छ ऐसे-वसै े का भेजा नहीं आया हूं, मझु को उसने भेजा है िजसको तमु िदन मसाढ़े सत्रह दफा झुककर सलाम करोगे। देवीिसहं और कु छ कहा ही चाहते थे िक तेजिसहं ने रोक िदया और कहा, ''चपु रहो,मालूम होता है यह कोई ऐयार या मसखरा है, तमु खदु ऐयार होकर जरा िद लगी म रंज होजाते हो! बांका-अगर अब भी न समझोगे तो समझाने के िलए म चपं ा को बलु ा लाऊं गा। उस बाकं े -टेढ़े जवान की बात पर सब लोग एकदम हंस पड़,े मगर हैरान थे िक वह कौनहै? अजब तमाशा तो यह िक वनक या के कु ल आदमी हम लोग का र ती-र ती हाल जानते हऔर हम लोग कु छ नहीं समझ सकते िक वे कौन ह!
तेजिसहं उस शतै ान की सूरत को गौर से देखने लगे। वह बोला, ''आप मेरी सरू त क्यादेखते ह। म ऐयार नहीं हूं, अपनी सूरत मने रंगी नहीं है, पानी मंगाइए धोकर िदखा दं,ू म आजसे काला नहीं हूं, लगभग चार सौ वष से मेरा यही रंग रहा है।'' तेजिसहं हंस पड़े और बोले, ''जो हो अ छे हो, मुझे और जाचं ने की कोई ज रत नहीं, अगरदु मन का आदमी होता तो ऐसा करते भी मगर तमु से क्या? ऐयार हो तो, मसखरे हो तो, इसमकोई शक नहीं िक दो त के आदमी हो।'' यह सुन उसने झुककर सलाम िकया और कु मार की तरफ देखकर कहा, ''मुझको जवाबिमल जाय क्य िक बड़ी दरू जाना है।'' कु मार ने उसी खत की पीठ पर यह िलख िदया, ''मुझकोसब-कु छ िदलोजान से मजं ूर है।'' बाद इसके अपनी अंगूठी से मोहर कर उस बाकं े जवान केहवाले िकया, वह खत लेकर खेमे के बाहर हो गया। सातवाँ बयान आज तजे िसहं के वापस आने और बाकं े -ितरछे जवान के पहुंचकर बातचीत करने औरखत िलखने म देर हो गई, दो पहर िदन चढ़ आया। तजे िसहं ने बद्रीनाथ को होश म लाकरपहरे म िकया और कु मार से कहा, ''अब नान-पजू ा कर िफर जो कु छ होगा सोचा जायगा, दोरोज से ितिल म का भी कोई काम नहीं होता।'' कु मार ने दरबार बखा्र त िकया, नान-पजू ा से छु ट्टी पाकर खेमे म बैठे , ऐयार लोग औरफतहिसहं भी हािजर हुए। अभी िकसी िक म की बातचीत नहीं हुई थी िक चोबदार ने आकरअज्र िकया, ''एक बङु ्ढी औरत बाहर हािजर हुई है, कु छ कहा चाहती है, हम लोग पछू ते ह तोकु छ नहीं बताती, कहती है जो कु छ है कु मार से कहूंगी क्य िक उ हीं के मतलब की बात है।'' कु मार ने कहा, ''उसे ज दी अदं र लाओ।'' चोबदार ने उस बङु ्ढी को हािजर िकया, देखते हीतजे िसहं के मुंह से िनकला, ''क्या िपशाच और डािकिनय का दरबा खलु पड़ा है?''
उस बुङ्ढी ने भी यह बात सुन ली, लाल-लाल आंख कर तेजिसहं की तरफ देखने लगीऔर बोली, ''बस कु छ न कहूंगी जाती हूं, मेरा क्या िबगड़गे ा, जो कु छ नुकसान होगा कु मार काहोगा।'' यह कह खेमे के बाहर चली गई। कु मार का इशारा पा चोबदार समझा-बुझाकर उसे पनु :ले आया। यह औरत भी अजीब सरू त की थी। उम्र लगभग स तार वषर् के होगी, बाल कु छ-कु छसफे द, आधो से यादा दातं गायब, लेिकन दो बड़-े बड़े और टेढ़े आगे वाले दातं दो-दो अंगलुबाहर िनकले हुए थे िजनम जदीर् और कीट जमी हुई थी। मोटे कपड़े की साड़ी बदन पर थीजो बहुत ही मैली और िसर की तरफ से िचक्कट हो रही थी। बड़ी-सी पीतल की नथ नाक मऔर पीतल ही के घंुघ पैर म पिहरे हुए थ।े तजे िसहं ने कहा, ''क्य क्या चाहती हो?'' बुङ्ढी-जरा दम ले लूं तो कहूं, िफर तुमसे क्य कहने लगी जो कु छ है खास कु मार ही सेकहूंगी। कु मार-अ छा मुझ ही से कह, क्या कहती है? बुङ्ढी-तमु से तो कहूंगी ही, तु हारे बड़े मतलब की बात है। (खासं ने लगती है) देवी-अब डढ़े घटं े तक खासं ेगी तब कहेगी? बुङ्ढी-िफर दसू रे ने दखल िदया! कु मार-नहीं-नही,ं कोई न बोलेगा। बुङ्ढी-एक बात है, म जो कु छ कहूंगी तु हारे मतलब की कहूंगी िजसको सनु ते ही खशु होजाओगे, मगर उसके बदले म म भी कु छ चाहती हूं। कु मार-हा-ं हां तुझे भी खुश कर दगे।
बङु ्ढी-पहले तमु इस बात की कसम खाओ िक तमु या तु हारा कोई आदमी मझु को कु छन कहेगा और मारने-पीटने या कै द करने का तो नाम भी न लेगा! कु मार-जब हमारे भले की बात है तो कोई तमु को क्य मारने या कै द करने लगा! बङु ्ढी-हां यह तो ठीक है, मगर मझु े डर मालमू होता है क्य िक मने आपके िलए वह कामिकया है िक अगर हजार बरस भी आपके ऐयार लोग कोिशश करते तो वह न होता, इस सबबसे मझु े डर मालूम होता है िक कहीं आपके ऐयार लोग खार खाकर मुझे तंग न कर। उस बङु ्ढी की बात सनु कर सब दंग हो गये और सोचने लगे िक यह कौन-सा ऐसा कामकर आई है िक आसमान पर चढ़ी जाती है। आिखर कु मार ने कसम खाई िक 'चाहे तू कु छकहे मगर हम या हमारा कोई आदमी तझु े कु छ न कहेगा' तब वह िफर बोली, ''म उसवनक या का पूरा पता आपको दे सकती हूं और एक तरकीब ऐसी बता सकती हूं िक आपघड़ी भर म िब कु ल ितिल म तोड़कर कु मारी चंद्रका ता से जा िमल।'' बुङ्ढी की बात सुनकर सब खशु हो गये। कु मार ने कहा, ''अगर ऐसा ही है तो ज द बतािक वह वनक या कौन है और घड़ी भर म ितिल म कै से टू टेगा?'' बङु ्ढी-पहले मेरे इनाम की बात तो कर लीिजए। कु मार-अगर तरे ी बात सच हुई तो जो कहेगी वही इनाम िमलेगा। बुङ्ढी-तो इसके िलए कसम खाइये। कु मार-अ छा क्या इनाम लेगी, पहले यह तो सनु लू।ं बङु ्ढी-बस और कु छ नहीं के वल इतना ही िक आप मुझसे शादी कर ल, वनक या औरचदं ्रका ता से तो चाहे जब शादी हो मगर मझु से आज ही हो जाय क्य िक म बहुत िदन सेतु हारे इ क म फं सी हुई हूं, बि क तु हारे िमलने की तरकीब सोचते-सोचते बुङ्ढी हो चली।
आज मौका िमला िक तमु मेरे हाथ फं स गये, बस अब देर मत करो नहीं तो मेरी जवानीिनकल जायगी, िफर पछताओगे। बङु ्ढी की बात सनु मारे गु से के कु मार का चेहरा लाल हो गया और उनके ऐयार लोगभी दातं पीसने लगे मगर क्या कर लाचार थे, अगर कु मार कसम न खा चुके होते तो ये लोगउस बुङ्ढी की पूरी दगु िर् त कर देत।े तेजिसहं ने योितषीजी से पछू ा, ''आप बताइए यह कोई ऐयार है या सचमुच जैसी िदखाईदेती है वसै ी ही है? अगर कु मार कसम न खाये होते तो हम लोग िकसी तरकीब से मालूम करही लेते।'' योितषीजी ने अपनी नाक पर हाथ रखकर वांस का िवचार करके कहा, ''यह ऐयार नहींहै, जो देखते हो वही है।'' अब तो तेजिसहं और भी िबगड़,े बङु ्ढी से कहा, ''बस तू यहां से चलीजा, हम लोग कु मार के कसम खाने को पूरा कर चकु े िक तझु े कु छ न कहा, अगर अब जाने मदेर करेगी तो कु तो से नचु वा डालूगा। क्या तमाशा है! ऐसी-ऐसी चड़ु लै भी कु मार पर आिशकहोने लगीं!'' बङु ्ढी ने कहा, ''अगर मेरी बात न मानोगे तो पछताओगे, तु हारा सब काम िबगाड़ दंगू ी,देखो उस तहखाने म मने कै सा ताला लगा िदया िक तुमसे खुल न सका, आिखर बद्रीनाथ कीगठरी लेकर वापस आए, अब जाकर महाराज िशवद त को छु ड़ा देती हूं, िफर और फसादक ं गी! यह कहती हुई गु से के मारे लाल-लाल आखं िकये खेमे के बाहर िनकल गई, तजे िसहं केइशारे से देवीिसहं भी उसके पीछे चले गए। कु मार-क्य तजे िसहं , यह चुडलै तो अजब आफत मालमू पड़ती है, कहती है िक तहखाने ममने ही ताला लगा िदया था।
तजे -क्या मामला है कु छ समझ म नहीं आता! यो-अगर इसका कहना सच है तो हम लोग के िलए यह एक बड़ी भारी बला पदै ा हुई। तजे -इसकी स चाई-झुठाई तो िशवद त के छू टने ही से मालूम हो जायगी, अगर स चीिनकली तो िबना जान से मारे न छोड़ूगं ा। यो-ऐसी को मारना ही ज री है। तजे -कु मार ने कु छ यह कसम तो खाई नहीं है िक ज म भर कोई उसको कु छ न कहेगा। कु मार-(लंबी सांस लेकर) हाय, आज मुझको यह िदन भी देखना पड़ा। तेज-आप िचतं ा न कीिजए, देिखये तो हम लोग क्या करते ह, देवीिसहं उसके पीछे गये हीह कु छ पता िलए िबना नहीं आत।े कु मार-आजकल तमु लोग की ऐयारी म उ ली लग गई है, कु छ वनक या का पतालगाया, कु छ अब डािकनी की खबर लोगे! कु मार की यह बात तजे िसहं और योितषीजी को तीर के समान लगी मगर कु छ बोलेनही,ं िसफ्र उठ के खेमे के बाहर चले गए। इन लोग के चले जाने के बाद कु मार खेमे म अके ले रह गये, तरह-तरह की बात सोचनेलगे, कभी चदं ्रका ता की बेबसी और ितिल म म फं स जाने पर, कभी ितिल म टू टने म देरऔर वनक या की खबर या ठीक-ठीक हाल न पाने पर, कभी इस बुङ्ढी चड़ु लै की बात पर जोअभी शादी करने आई थी अफसोस और गम करते रहे। तबीयत िब कु ल उदास थी। आिखरिदन बीत गया और शाम हुई। कु मार ने फतहिसहं को बलु ाया, जब वे आये तो पछू ा, ''तेजिसहं कहां ह?'' उ ह ने जवाबिदया, ''कु छ मालमू नहीं, योितषीजी को साथ लेकर कहीं गये ह?''
आठवाँ बयान देवीिसहं उस बुङ्ढी के पीछे रवाना हुए। जब तक िदन बाकी रहा बङु ्ढी चलती गई।उ ह ने भी पीछा न छोड़ा। कु छ रात गये तक वह चुडलै एक छोटे से पहाड़ के दर म पहुंचीिजसके दोन तरफ ऊं ची-ऊं ची पहािड़यां थीं। थोड़ी दरू इस दर के अंदर जा वह एक खोह मघुस गई िजसका मुहं बहुत छोटा, िसफर् एक आदमी के जाने लायक था। देवीिसहं ने समझा शायद यही इसका घर होगा, यह सोच पेड़ के नीचे बैठ गये। रात भरउसी तरह बैठे रह गये मगर िफर वह बुिढ़या उस खोह म से बाहर न िनकली। सबेरा होते हीदेवीिसहं भी उसी खोह म घसु े। उस खोह के अदं र िब कु ल अंधकार था, देवीिसहं टटोलते हुए चले जा रहे थे। अगल-बगलजब हाथ फै लाते तो दीवार मालूम पड़ती िजससे जाना जाता िक यह खोह एक सुरंग के तौरपर है, इसम कोई कोठरी या रहने की जगह नहीं है। लगभग दो मील गये ह गे िक सामने कीतरफ चमकती हुई रोशनी नजर आई। जैसे-जैसे आगे जाते थे रोशनी बढ़ी मालमू होती थी, जबपास पहुंचे तो सुरंग के बाहर िनकलने का दरवाजा देखा। देवीिसहं बाहर हुए, अपने को एक छोटी-सी पहाड़ी नदी के िकनारे पाया, इधर-उधर िनगाहदौड़ाकर देखा तो चार तरफ घना जगं ल। कु छ मालूम न पड़ा िक कहां चले आए और ल करम जाने की कौन-सी राह है। िदन भी पहर भर से यादे जा चकु ा था। सोचने लगे िक उसबङु ्ढी ने खूब छकाया, न मालूम वह िकस राह से िनकलकर कहां चली गई, अब उसका पतालगाना मुि कल है। िफर इसी सरु ंग की राह से िफरना पड़ा क्य िक ऊपर से जंगल-जंगलल कर म जाने की राह मालमू नही,ं कहीं ऐसा न हो िक भलू जायं तो और भी खराबी हो, बड़ीभूल हुई िक रात को बुङ्ढी के पीछे -पीछे हम भी इस सरु ंग म न घुसे, मगर यह क्या मालमूथा िक इस सरु ंग म दसू री तरफ िनकल जाने के िलए रा ता है।
देवीिसहं मारे गु से के दातं पीसने लगे मगर कर ही क्या सकते थ?े बुङ्ढी तो िमली नहींिक कसर िनकालते, आिखर लाचार हो उसी सुरंग की राह से वापस हुए और शाम होते-होतेल कर म पहुंचे। कु मार के खेमे म गये, देखा िक कई आदमी बठै े ह और वीरे द्रिसहं फतहिसहं से बात कररहे ह। देवीिसहं को देख सब कोई खेमे के बाहर चले गये िसफ्र फतहिसहं रह गये। कु मार नेपछू ा, ''क्यो उस बुङ्ढी की क्या खबर लाए?'' देवी-बुङ्ढी ने तो बेिहसाब धोखा िदया! कु मार-(हंसकर) क्या धोखा िदया? देवीिसहं ने बुङ्ढी के पीछे जाकर परेशान होने का सब हाल कहा िजसे सनु कर कु मारऔर भी उदास हुए। देवीिसहं ने फतहिसहं से पछू ा, ''हमारे ओ ताद और योितषीजी कहां ह?'' उ ह ने जवाब िदया िक ''बुङ्ढी चड़ु लै के आने से कु मार बहुत रंज म थे, उसी हालत मतजे िसहं से कह बठै े िक तमु लोग की ऐयारी म इन िदन उ ली लग गई। इतना सनु गु सेम आकर योितषीजी को साथ ले कहीं चले गए, अभी तक नहीं आए।'' देवी-कब गए? फतह-तु हारे जाने के थोड़ी देर बाद। देवी-इतने गु से म ओ ताद का जाना खाली न होगा, ज र कोई अ छा काम करकेआवगे! कु मार-देखना चािहए।
इतने म तेजिसहं और योितषीजी वहां आ पहुंचे। इस वक्त उनके चेहरे पर खुशी औरमु कराहट झलक रही थी िजससे सब समझे िक ज र कोई काम कर आए ह। कु मार ने पछू ा,''क्य क्या खबर है?'' तजे -अ छी खबर है। कु मार-कु छ कहोगे भी िक इसी तरह? तजे -आप सनु के क्या कीिजएगा? कु मार-क्या मेरे सनु ने लायक नहीं है? तेज-आपके सनु ने लायक क्य नहीं है मगर अभी न कहगे। कु मार-भला कु छ तो कहो? तजे -कु छ भी नही।ं देवी-भला ओ ताद हम भी बताओगे या नही?ं तेज-क्या तुमने ओ ताद कहकर पकु ारा इससे तमु को बता द? देवी-झख मारोगे और बताओगे! तेज-(हंसकर) तमु कौन-सा जस लगा आए पहले यह तो कहो? देवी-म तो आपकी शािगदीर् म बट्टा लगा आया। तजे -तो बस हो चकु ा।
ये बात हो ही रही थीं िक चोबदार ने आकर हाथ जोड़ अजर् िकया िक ''महाराज िशवद तके दीवान आये ह।'' सुनकर कु मार ने तजे िसहं की तरफ देखा िफर कहा, ''अ छा आने दो, उनकेसाथ वाले बाहर ही रह।'' महाराज िशवद त के दीवान खेमे म हािजर हुए और सलाम करके बहुत-सा जवाहरातनजर िकया। कु मार ने हाथ से छू िदया। दीवान ने अज्र िकया, ''यह नजर महाराज िशवद त कीतरफ से ले आया हूं। ई वर की दया और आपकी कृ पा से महाराज कै द से छू ट गये ह। आतेही दरबार करके हुक्म दे िदया िक आज से हमने कंु अर वीरे द्रिसहं की ताबेदारी कबलू की,हमारे िजतने मलु ािजम या ऐयार ह वे भी आज से कु मार को अपना मािलक समझ, बाद इसकेमझु को यह नजर और अपने हाथ की िलखी खत देकर हुजूर म भेजा है, इस नजर को कबलूिकया जाय!'' कु मार ने नजर कबलू कर तेजिसहं के हवाले की और दीवान साहब को बैठने का इशारािकया, वे खत देकर बठै गये। कु छ रात जा चुकी थी, कु मार ने उसी वक्त दरबारेआम िकया, जब अ छी तरह दरबार भरगया तब तेजिसहं को हुक्म िदया िक खत जोर से पढ़ो। तेजिसहं ने पढ़ना शु िकया, लंबे-चौड़ेिसरनामे के बाद यह िलखा था- ''म िकसी ऐसे सबब से उस तहखाने की कै द से छू टा जो आप ही की कृ पा से छू टनाकहला सकता है। आप ज र इस बात को सोचगे िक म आपकी दया से कै से छू टा, आपने तोकै द ही िकया था, तो ऐसा सोचना न चािहए। िकसी सबब से म अपने छू टने का खुलासा हालनहीं कह सकता और न हािजर ही हो सकता हूं। मगर जब मौका होगा और आपको मेरेछू टने का हाल मालूम होगा यकीन हो जायगा िक मने झूठ नहीं कहा था। अब म उ मीदकरता हूं िक आप मेरे िब कु ल कसरू को माफ करके यह नजर कबूल करगे। आज से हमाराकोई ऐयार या मुलािजम आपसे ऐयारी या दगा न करेगा और आप भी इस बात का ख्यालरख।
-आपका िशवद त।'' इस खत को सनु कर सब खशु हो गए। कु मार ने हुक्म िदया िक पिं डत बद्रीनाथजी, जोहमारे यहां कै द ह लाये जाव। जब वे आये कु मार के इशारे से उनके हाथ-पैर खोल िदए गए।उ ह भारी िखलअत पिहराकर दीवान साहब के हवाले िकया और हुक्म िदया िक आप दो रोजयहां रहकर चुनार जाय। फतहिसहं को उनकी मेहमानी के िलए हुक्म देकर दरबार बखा्र तिकया। नौवाँ बयान जब दरबार बखार् त हुआ आधी रात जा चकु ी थी। फतहिसहं दीवान साहब को लेकर अपनेखेमे म गये। थोड़ी देर बाद कु मार के खेमे म तेजिसहं , देवीिसहं , और योितषीजी िफर इकट्ठेहुए। उस वक्त िसवाय इन चार आदिमय के और कोई वहां न था। कु मार-क्य तजे िसहं , बिु ढ़या की बात तो ठीक िनकली! तेज-जी हां, मगर महाराज िशवद त की खत से तो कु छ और ही बात पाई जाती है। देवी-उसके िलखने का कौन िठकाना, कहीं वह धोखा न देता हो। यो-इस वक्त बहुत सोच-िवचारकर काम करने का मौका है। चाहे िशवद त कै सी हीसफाई िदखाए मगर दु मन का िव वास कभी न करना चािहए। तजे -आप योितषी ह, िवचािरए तो यह खत िशवद त ने स चे िदल से िलखी है या खटु ाईरख के । यो-(कु छ िवचारकर) यह खत तो उसने स चे िदल से िलखी है मगर यह िव वास नहींहोता िक आगे भी उसका िदल साफ बना रहेगा।
तजे -आजकल तो ऐसे-ऐसे मामले हो रहे ह िक िकसी के िसर-पैर का कु छ पता ही नहींलगता! अगर यह खत उसने स चे िदल से ही िलखी है तो अपने छू टने का खुलासा हाल क्यनहीं िलखा? यो-इसका भी ज र कोई सबब होगा। कु मार-क्या आप रमल से नहीं बता सकते िक वह कै से छू टा। यो-जी नही,ं ितिल म म रमल काम नहीं करता और वह तहखाना ितिल मी है िजसममहाराज िशवद त कै द िकए गए थे। तजे -कु छ समझ म नहीं आता! देवी-वह चुडलै भी कोई पूरी ऐयार मालूम होती है। यो-कभी नहीं, म सोच चुका हूं, ऐयारी का तो वह नाम भी नहीं जानती। कु मार-खरै जो कु छ होगा देखा जायगा, अब कल से ितिल म तोड़ने म ज र हाथ लगानाचािहए। तजे -हां कल ज र ितिल म की कार्रवाई शु हो। कु मार-अ छा अब तमु लोग भी जाओ। तीन ऐयार कु मार से िबदा हो अपने डरे े म गए। दसू रे िदन कंु अर वीरे द्रिसहं तीन ऐयारको साथ ले ितिल म म गए। ितिल मी िकताब और ताली भी साथ ले ली। दलान म पहुंचकरतहखाने का ताला खोल प थर की चट्टान को िनकालकर अलग िकया और नीचे उतरकरकोठरी म होते हुए बाग म पहुंचे जहां थोड़ी-सी जमीन खोदकर छोड़ आये थ।े
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