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chandrakanta by Babu Devki Nandan Khatri_akfunworld

Published by akfunworld1, 2017-10-31 12:11:53

Description: Read Iconic and highly appreciated thriller Hindi novel chandrakanta written by Babu Devki Nandan Khatri. It is considered one of the early and path breaking novel for thriller and fantasy genre in Hindi writing. Uploaded by akfunworld

Keywords: Hindi Pulp Fiction,Pulp Fiction,Hindi Novel,Chandrakanta,Devki Nandan Khatri,akfunworld

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उसी जमीन को ये लोग िमलकर िफर खोदने लगे। आठ-नौ हाथ जमीन खोदने के बादएक संदकू मालमू पड़ा िजसके ऊपर का प ला बंद था और ताले का मंहु एक छोटे से तांबे केप तार से ढंका हुआ था िजससे अदं र िमट्टी न जाने पावे। कु मार ने चाहा िक संदकू को बाहर िनकाल ल मगर न हो सका। य - य चार तरफ सेिमट्टी हटाते थे नीचे से सदं कू चौड़ा िनकल आता था। कोिशश करने पर भी इसका पता न लगसका िक वह जमीन म िकतने नीचे तक गड़ा हुआ है। आिखर लाचार होकर कु मार नेितिल मी िकताब खोली और पढ़ने लगे। यह िलखा हुआ था- ''ताली म र सी बांधाकर जब बाग म उसे घसीटते िफरोगे तो एक जगह वह तालीजमीन से िचपक जायगी। वहां की िमट्टी हटाकर ताली उठा लेना, बाद इसके उस जमीन कोखोदना, जब तक िक एक संदकू का महुं न िदखाई पड़।े जब संदकू के ऊपर का िह सा िनकलआवे खोदना बंद कर देना क्य िक असल म यह सदं कू नहीं दरवाजा है। बाग के बीचो ◌ंबीचजो फ वारा है उसके परू ब तरफ ठीक सात हाथ हटकर जमीन खोदना, एक हाडं ी िनकलेगी,उसी म उसकी ताली है, उसे लाकर उस तहखाने का ताला खोलना, सीिढ़यां िदखलाई पड़गी,उसी रा ते से नीचे उतरना। भीतर से वह तहखाना बहुत अधं ेरा और धएु ं से भरा हुआ होगा। खबरदार कोई रोशनी मतकरना क्य िक आग या मशाल के लगने ही से वह धआु ं बल उठे गा िजससे बड़ा उपद्रव होगाऔर तुम लोग की जान न बचगे ी। महंु पर कपड़ा लपेटकर उस तहखाने म उतरना, टटोलतेहुए िजधर रा ता िमले ज दी-ज दी चले जाना िजससे नाक के रा ते धआु ं िदमाग म न चढ़नेपाव।े थोड़ी ही दरू जाकर एक चमकती कोठरी िमलेगी िजसम की कु ल चीज िदखाई पड़तीह गी। तमाम कोठरी म नीचे से ऊपर तक तार लगे ह गे। बहुत खोज करने की कोई ज रतनहीं, तलवार से ज दी-ज दी इन तार को काटकर बाहर िनकल आना।'' इतना पढ़कर कु मार ने छोड़ िदया। िलखे बमिू जब बाग के बीच बीच वाले फ वारे से सातहाथ परू ब हटकर जमीन खोदी, हाडं ी िनकली, उसम से ताली िनकालकर तहखाने का मंहु खोला।

देवीिसहं ने कहा, ''अब अपने-अपने मुहं पर कपड़ा लपेटते जाओ। ितिल म क्या है जान जोखमहै, रोशनी मत करो, अधं ेरा म टटोलते चलो, आंख रहते अंधो बनो और ज दी-ज दी चलो, िदमागम धुआं भी न चढ़ने पावे!'' देवीिसहं की बात सुनकर कु मार हंस पड़।े सब ने मुंह पर कपड़े लपेटे और घसु करचमकती हुई कोठरी म पहुंचे। जहां तक हो सका ज दी-ज दी उन तार को काटकर तहखानेसे बाहर िनकल आये। मंुह पर कपड़ा तो लपेटे हुए थे ितस पर भी थोड़ा-बहुत धुआं िदमाग म चढ़ ही गयािजससे सब की तबीयत घबरा गई। तहखाने के बाहर िनकलकर दो घंटे तक चार आदमीबेसधु ा पड़े रहे, जब होश-हवाश िठकाने हुए तब तेजिसहं ने योितषीजी से पूछा, ''अब िदनिकतना बाकी है?'' उ ह ने जवाब िदया, ''अभी चार घटं ा बाकी है।'' कु मार ने कहा, ''अब कोई काम करने का वक्त नहीं रहा। एक घंटे म क्या हो सकता है?'' येितषीजी की भी यही राय ठहरी। आिखर चार आदमी बाग से बाहर रवाना हुए और कोठरीतथा तहखाने के रा ते होकर खंडहर के दलान म आये। पहले की तरह चट्टान को तहखाने केमंहु पर रख ताला बदं कर िदया और खडं हर के बाहर होकर अपने खेमे म चले आये। थोड़ी देर आराम करने के बाद कु मार के जी म आया िक जरा जगं ल म इधर-उधरघूमकर हवा खानी चािहए। तेजिसहं से कहा, वह भी इस बात पर मु तदै हो गये, आिखर तीनऐयार को साथ लेकर ल कर के बाहर हुए। कु मार घोड़े पर और तीन ऐयार पदै ल थे। कु मार धीरे- धीरे जा रहे थ।े कोस भर के करीब गये ह गे िक एक मोटे से साखू के पेड़म कु छ िलखा हुआ एक कागज िचपका नजर पड़ा। तजे िसहं ने कहा, ''देखो यह कै सा कागजिचपका है और क्या िलखा है?'' यह सुनकर देवीिसहं ने उस पेड़ के पास जाकर कागज पढ़ा, यहिलखा हुआ था-

''क्य , अब तमु को मालमू हुआ िक म कै सी आफत हूं! कहती थी िक मुझसे शादी कर लोतो एक घटं े म ितिल म तोड़कर चदं ्रका ता से िमलने की तरकीब बता दं।ू लेिकन तमु ने नमाना, आिखर मने भी गु से म आकर महाराज िशवद त को छु ड़ा िदया। अब क्या इरादा है?शादी करोगे या नहीं? अगर मजं रू हो तो जवाब िलखकर इसी पेड़ से िचपका दो, म तरु ंततु हारे पास चली आऊं गी, और अगर नामंजूर हो तो साफ जवाब दे दो। अबकी दफे मचदं ्रका ता और चपला को जान से मार कलेजा ठ डा क ं गी। मुझे ितिल म म जाते िकतनीदेर लगती है। िदन म तरे ह दफे जाऊं और आऊं । अपनी भलाई और मेरी जवानी की तरफख्याल करो। मेरे सामने तु हारे ऐयार की ऐयारी कु छ न चलेगी। उस िदन देवीिसहं ने मेरापीछा िकया था मगर क्या कर सके ? मानो, मानो, िज मत करो, मेरे ही कहने से िशवद ततु हारा दो त बना है। अब भी समझ जाओ! -तु हारी सूरजमखु ी।'' इसे पढ़ देवीिसहं ने हाथ के इशारे से सब को अपने पास बलु ाया और कहा, ''आप लोग भीइसे पढ़ लीिजए।'' आिखर म 'सूरजमुखी' पढ़कर सब को हंसी आ गई। कु मार ने कहा, ''देखो इस चड़ु लै नेअपना नाम कै से मजे का िलखा है।'' तजे िसहं ने योितषीजी से कहा, ''देिखए यह सब क्यािलखा है!'' योितषीजी ने जवाब िदया, ''चाहे जो भी हो, मगर म भी ठीक कहे देता हूं िक वह चड़ु लैकु मार का कु छ िबगाड़ नहीं सकती। इस िलखावट की तरफ ख्याल न कीिजये।'' कु मार ने कहा, ''आपका कहना ठीक है मगर वह जो कहती है उसे कर िदखाती है।'' इतनाकह कु मार आगे बढ़े। घूमते समय कई पेड़ पर इसी तरह के िलखे हुए कागज िचपके हुएिदखाई पड़।े योितषीजी के कहने से कु मार की तबीयत न भरी, उदास होकर अपने ल कर मलौट आये और तीन ऐयार के साथ अपने खेमे म चले गये।

थोड़ी देर उसी सूरजमखु ी की बातचीत होती रही। पहर रात गई होगी जब तजे िसहं नेकु मार से कहा, ''हम लोग इस वक्त बालादवी को जाते ह, शायद कोई नई बात नजर पड़ जाय।''यह कहकर तेजिसहं , देवीिसहं और योितषीजी कु मार से िबदा हो ग त लगाने चले गये। कु मारभी कु छ भोजन करके पलंग पर जा लेटे। नींद काहे को आनी थी, पड़-े पड़े कु मारी चंद्रका ता कीबेबसी, वनक या की चाह, और बुङ्ढी चडु लै की शतै ानी को सोचत-े सोचते आधी रात से भी यादेगुजर गई। इतने म खेमे के अदं र िकसी के आने की आहट िमली, दरवाजे की तरफ देखा तोतजे िसहं नजर पड़।े बोले, ''कहो तेजिसहं , कोई नई खबर लाये क्या!'' तेज-हां एक बिढ़या चीज हाथ लगी है? कु मार-क्या है? कहां है? देख।ंू तजे -खेमे के बाहर चिलये तो िदखाऊं । कु मार-चलो। कंु अर वीरे द्रिसहं तेजिसहं के पीछे -पीछे खेमे के बाहर हुए। देखा कु छ दरू पर रोशनी होरही है और बहुत से आदमी इकट्ठे ह। पूछा, ''यह भीड़ कै सी है?'' तेजिसहं ने कहा, ''चिलएदेिखये, बड़ी खशु ी की बात है!'' कु मार के पास पहुंचते ही भीड़ हटा दी गई। कई मशाल जल रहे थे िजनकी रोशनी मकु मार ने देखा िक क्रू रिसहं की खून से भरी हुई लाश पड़ी है, कलेजे म एक खजं र घसु ा हुआअभी तक मौजूद है। कु मार ने तेजिसहं से कहा, ''क्य तजे िसहं , आिखर तुमने इसको मार हीडाला।'' तजे -भला हम लोग एकाएक इस तरह िकसी को मारते ह? कु मार-तो िफर िकसने मारा?

तेज-म क्या जान।ंू कु मार-िफर लाश को कहां से लाये? तजे -बालादवी करते (ग त लगात)े हम लोग इस ितिल मी खंडहर के िपछवाड़े चले गये।दरू से देखा िक तीन-चार आदमी खड़े ह। जब तक हम लोग पास जायं, वे सब भाग गये।देखा तो क्रू र की लाश पड़ी थी। तब देवीिसहं को भेज यहां से डोली और कहार मगं वाये औरइस लाश को य का य उठवा लाए, अभी मरा नहीं है, बदन गम्र है मगर बचेगा नही।ं कु मार-बड़े ता जुब की बात है! इसे िकसने मारा? अ छा वह खंजर तो िनकालो जो इसकेकलेजे म घुसा हुआ है। तेजिसहं ने खजं र िनकाला और पानी से धो कर कु मार के पास लाये। मशाल की रोशनीम उसके क जे पर िनगाह की तो कु छ खदु ा हुआ मालूम पड़ा। खूब गौर करके देखा तो बारीकहरफ म 'चपला' का नाम खुदा हुआ था। तजे िसहं ने ता जुब से कहा, ''देिखए इस पर तोचपला का नाम खुदा है और इस खजं र को म बखबू ी पहचानता हूं, यह बराबर चपला के कमरम बंधा रहता था। मगर िफर यहां कै से आया? क्या चपला ही ने इसे मारा है?'' देवी-चपला बेचारी तो खोह म कु मारी चदं ्रका ता के पास बैठी होगी जहां िचराग भी नजलता होगा। कु मार-तो वहां से इस खंजर को कौन लाया? तजे -इसके िसवाय यह भी सोचना चािहए िक क्रू रिसहं यहां क्य आया! यह तो महाराजिशवद त के साथ था और उनका दीवान खदु ही आया हुआ है जो कहता है िक महाराज अबआपसे दु मनी नहीं करगे। कु मार-िकसी को भेजकर महाराज िशवद त के दीवान को बलु ाओ।

तजे िसहं ने देवीिसहं को कहा िक तुम ही जाकर बलु ा लाओ। देवीिसहं गये, उ ह नींद सेउठाकर कु मार का सदं ेशा िदया, वे बेचारे भी घबराए हुए ज दी-ज दी कु मार के पास आए।फतहिसहं भी उसी जगह पहुंचे। दीवान साहब क्रू रिसहं की लाश देखते ही बोले, ''बस यहबदमाश तो अपनी सजा को पहुंच चकु ा मगर इसके साथी अहमद और नािज़म बाकी ह, उनकीभी यही गित होती तो कलेजा ठ डा होता।'' कु मार ने पछू ा, ''क्या यह आपके यहां अब नहीं है!'' दीवान साहब ने जवाब िदया, ''नही,ं िजस रोज महाराज तहखाने से छू टकर आए और हुक्मिदया िक हमारे यहां का कोई भी आदमी कु मार के साथ दु मनी का ख्याल न रखे उसी वक्तक्रू रिसहं अपने बाल-ब च तथा नािज़म और अहमद को साथ लेकर चनु ार से भाग गया, पीछेमहाराज ने खोज भी कराई मगर कु छ पता न लगा।'' देखत-े देखते क्रू रिसहं ने तीन-चार दफे िहचकी ली और दम तोड़ िदया। कु मार ने तेजिसहंसे कहा, ''अब यह मर गया, इसको िठकाने पहुंचाओ और खजं र को तमु अपने पास रखो, सुबहदेखा जायगा।'' तेजिसहं ने क्रू रिसहं की लाश को उठवा िदया और सब अपने-अपने खेमे म गए। दसवाँ बयान सुबह को कु मार ने नान-पजू ा से छु ट्टी पाकर ितिल म तोड़ने का इरादा िकया और तीनऐयार को साथ ले ितिल म म घसु े। कल की तरह तहखाने और कोठिरय म से होते हुए उसीबाग म पहुंचे। याह प थर के दलान म बैठ गए और ितिल मी िकताब खोलकर पढ़ने लगे, यहिलखा हुआ था- ''जब तुम तहखाने म उतर धएु ं से जो उसके अदं र भरा होगा िदमाग को बचाकर तारको काट डालोगे तब उसके थोड़ी ही देर बाद कु ल धआु ं जाता रहेगा। याह प थर की बारहदरीम सगं ममरर् के िसहं ासन पर चौखूटे सखु र् प थर पर कु छ िलखा हुआ तुमने देखा होगा, उसकेछू ने से आदमी के बदन म सनसनाहट पदै ा होती है बि क उसे छू ने वाला थोड़ी देर म बेहोशहोकर िगर पड़ता है मगर ये कु ल बात उन तार के कटने से जाती रहगी क्य िक अंदर ही

अदं र यह तहखाना उस बारहदरी के नीचे तक चला गया है और उसी िसहं ासन से उन तारका लगाव है जो नीचे मसाल और दवाइय म घुसे हुए ह। दसू रे िदन िफर धएु ं वाले तहखानेम जाना, धुआं िब कु ल न पाओगे। मशाल जला लेना और बखे ौफ जाकर देखना िक िकतनीदौलत तु हारे वा ते वहां रखी हुई है। सब बाहर िनकाल लो और जहां मनु ािसब समझो रखो।जब तक िब कु ल दौलत तहखाने म से िनकल न जाए तब तक दसू रा काम ितिल म का मतकरो। याह बारहदरी म सगं ममर्र के िसहं ासन पर जो चौखूटा सखु र् प थर रखा है उसको भीले जाओ। असल म वह एक छोटा-सा सदं कू है िजसके भीतर बहुत-सी नायाब चीज ह। उसकीताली इसी ितिल म म तमु को िमलेगी।'' कु मार ने इन सब बात को िफर दोहरा के पढ़ा, बाद उसके उस धएु ं वाले तहखाने म जानेको तैयार हुए। तजे िसहं , देवीिसहं और योितषीजी तीन ने मशाल बाल ली और कु मार केसाथ उस तहखाने म उतरे। अदं र उसी कोठरी म गये िजसम बहुत-सी तार काटी थी।ं इसवक्त रोशनी म मालमू हुआ िक तार कटी हुई इधर-उधर फै ल रही ह, कोठरी खूब लंबी-चौड़ी है।सकै ड़ लोहे और चादं ी के बड़-े बड़े सदं कू चार तरफ पड़े ह, एक तरफ दीवार म खटंू ी के साथतािलय का गु छा भी लटक रहा है। कु मार ने उस ताली के गु छे को उतार िलया। मालूम हुआ िक इ हीं सदं कू की येतािलयां ह। एक सदं कू को खोलकर देखा तो हीरे के जड़ाऊ जनाने जेवर से भरा पाया, तरु ंतबंद कर िदया और दसू रे सदं कू को खोला, कीमती हीर से जड़ी नायाब क ज की तलवार औरखजं र नजर आये। कु मार ने उसे भी बदं कर िदया और बहुत खशु होकर तजे िसहं से कहा- ''बेशक इस कोठरी म बड़ा भारी खजाना है। अब इसको यहां खोलकर देखने की कोईज रत नहीं, इन संदकू को बाहर िनकलवाओ, एक-एक करके देखते और नौगढ़ भेजवातेजायगे। जहां तक हो ज दी इन सब को उठवाना चािहए।'' तेजिसहं ने जवाब िदया, ''चाहे िकतनी ही ज दी की जाय मगर दस रोज से कम म इनसदं कू का यहां से िनकलना मुि कल है। अगर आप एक-एक को देखकर नौगढ़ भेजने लगगे

तो बहुत िदन लग जायगे और ितिल म तोड़ने का काम अटका रहेगा। इससे मेरी समझ मयह बेहतर है िक इन संदकू को िबना देखे य का य नौगढ़ भेजवा िदया जाय। जब सबकाम से छु ट्टी िमलेगी तब खोलकर देख िलया जायगा। ऐसा करने से िकसी को मालूम भी नहोगा िक इसम क्या िनकला और दु मन की आंख भी न पड़गे ी। न मालमू िकतनी दौलतइसम भरी हुई है िजसकी िहफाजत के िलए इतना बड़ा ितिल म बनाया गया!'' इस राय को कु मार ने पसदं िकया और देवीिसहं और योितषीजी ने भी कहा िक ऐसाही होना चािहए। चार आदमी उस तहखाने के बाहर हुए और उसी मालमू ी रा ते से खंडहर केदलान म आकर प थर की चट्टान से ऊपर वाले तहखाने का मंुह ढांप ितिल मी ताली से बंदकर खंडहर से बाहर हो अपने खेमे म चले आये। आज ये लोग बहुत ज दी ितिल म के बाहर हुए। अभी कु ल दो पहर िदन चढ़ा था।कु मार ने ितिल म की और खजाने की तािलय का गु छा तेजिसहं के हवाले िकया और कहािक ''अब तमु उन संदकू को िनकलवाकर नौगढ़ भेजवाने का इंतजाम करो।'' ग्यारहवाँ बयान तजे िसहं को ितिल म म से खजाने के सदं कू को िनकलवाकर नौगढ़ भेजवाने म कईिदन लगे क्य िक उसके साथ पहरे वगैरह का बहुत कु छ इंतजाम करना पड़ा। रोज ितिल म मजाते और पहर िदन जब बाकी रहता ितिल म से बाहर िनकल आया करते। जब तक कु लअसबाब नौगढ़ रवाना नहीं कर िदया गया तब तक ितिल म तोड़ने की कारर्वाई बंद रही। एक रात कु मार अपने पलंग पर सोये हुए थे। आधी रात जा चकु ी थी। कु मारी चंद्रका ताऔर वनक या की याद म अ छी तरह नींद नहीं आ रही थी, कभी जागते कभी सो जाते।आिखर एक गहरी नीदं ने अपना असर यहां तक जमाया िक सबु ह क्या बि क दो घड़ी िदनचढ़े तक आखं खलु ने न दीं।

जब कु मार की नीदं खलु ी अपने को उस खेमे म न पाया िजसम सोये थे अथवा जोितिल म के पास जगं ल म था बि क उसकी जगह एक बहुत सजे हुए कमरे को देखा िजसकीछत म कई बेशकीमती झाड़ और शीशे लटक रहे थ।े ता जबु म पड़ इधर-उधर देखने लगे।मालमू हुआ िक यह एक बहुत भारी दीवानखाना है िजसम तीन तरफ सगं ममर्र की दीवार औरचौथी तरफ बड़-े बड़े खूबसरू त दरवाजे ह जो इस समय बदं ह। दीवार पर कई दीवारगीर लगीहुई ह, िजनम िदन िनकल आने पर भी अभी तक मोमी बि तयां जल रही ह। ऊपर उसके चारतरफ बड़ी-बड़ी खूबसरू त और हसीन औरत की त वीर लटक रही थी।ं लंबी दीवार के बीच बीचएक त वीर आदमी के कद के बराबर सोने के चौखटे म जड़ी दीवार के साथ लगी हुई थी। कु मार की िनगाह तमाम त वीर पर से दोड़ती हुई उस बड़ी त वीर पर आकर अटकगई। सोचने लगे बि क धीमी आवाज म इस तरह बोलने लगे जसै े अपने बगल म बैठे हुएिकसी दो त को कोई कहता हो- ''अहा, इस त वीर से बढ़कर इस दीवानखाने म कोई चीज नहीं है और बेशक यह त वीरभी उसी की है िजसके इ क ने मुझे तबाह कर रखा है! वाह क्या साफ भोली सरू त िदखलाईहै।'' कु मार झट से उठ बैठे और उस त वीर के पास जाकर खड़े हो गये। दीवानखाने केदरवाजे बदं थे मगर हर एक दरवाजे के ऊपर छोटे-छोटे मोखे (सरू ाख) बने हुए थे िजनम शीशेकी टिट्टयां लगी हुई थी,ं उ हीं म से सीधी रोशनी ठीक उस लंबी-चौड़ी त वीर पर पड़ रही थीिजसको देखने के िलए कु मार पलगं पर से उतरकर उसके पास गये थ।े असल म वह त वीरकु मारी चदं ्रका ता की थी। कु मार उस त वीर के पास जाकर खड़े हो गये और िफर उसी तरह बोलने लगे जसै ेिकसी दसू रे को जो पास ही खड़ा हो सनु ा रहे ह-

''अहा, क्या अ छी और साफ त वीर बनी हुई है! इसम ठीक उतना ही बड़ा कद है, वैसीही बड़ी-बड़ी आंख ह िजनम काजल की लकीर कै सी साफ मालमू हो रही ह। अहा, गाल परगलु ाबीपन कै सा िदखलाया है, बारीक ह ठ म पान की सुखीर् और मु कु राहट साफ मालूम होरही है, कान म कानबाले, माथे म बदी और नाक म नथ तो हई है मगर यह गले की गोपक्या ही अ छी और साफ बनाई है िजसके बीच के चमकते हुए मािनक और अगल-बगल केकंु दन की उभाड़ म तो हद दज की कारीगरी खच्र की गई है। गोप क्या सभी गहने अ छे ह।गले की माला, हाथ के बाजबू ंद, कं गन, छं द, पहुंची, अंगूठी सभी चीज अ छी बनाई ह, और देखोएक बगल चपला दसू री तरफ चपं ा क्या मजे म अपनी ठु डी पर उं गली रखे खड़ी ह।'' ''हाय, चंद्रका ता कहां होगी!'' इतना कह एक लंगी सासं ले एकटक उस त वीर की तरफदेखने लगे। कहीं से पाजबे की छ न से आवाज आई िजसे सनु ते ही कु मार च क पड़।े ऊपर की तरफकई छोटी-छोटी िखड़िकयां थीं जो सब की सब बदं थी।ं यह आवाज कहां से आई! इस घर मकौन औरत है! इतनी देर तक तो कु मार अपने परू े होशहवास म न थे मगर अब च के औरसोचने लगे- ''ह, इस जगह म कै से आ गया? कौन उठा लाया? उसने मेरे साथ बड़ी नके ी की जो मेरी यारी चदं ्रका ता की त वीर मझु े िदखला दी, मगर कहीं ऐसा न हो िक म यह बात व न मदेखता होऊं ? ज र यह व न है, चलो िफर उसी पलगं पर सो रह।'' यह सोच िफर कु मार उसी पलंग पर आ के लेट गये, आंख बदं कर ली,ं मगर नीदं कहांसे आती। इतने म िफर पाजबे की आवाज ने कु मार को च का िदया। अबकी दफे उठते हीसीधो दरवाज की तरफ गये और सात दरवाज को धाक्का िदया, सब खुल गये। एक छोटा-साहरा-भरा बाग िदखाई पड़ा। िदन अनमु ानत: पहर भर के चढ़ चुका होगा।

यह बाग िब कु ल जगं ली फू ल और लताओं से भरा हुआ था, बीच म एक छोटा-सातालाब भी िदखाई पड़ा। कु मार सीधो तालाब के पास चले गये जो िब कु ल प थर का बनाहुआ था। एक तरफ उसके खूबसरू त सीिढ़यां उतरने के िलए बनी हुई थीं, ऊपर उन सीिढ़य केदोन तरफ दो बड़-े बड़े जामुन के पेड़ लगे हुए थे जो बहुत ही घने थ।े तमाम सीिढ़य परबि क कु छ जल तक उन दोन की छाया पहुंची हुई थी और दोन पेड़ के नीचे छोटे-छोटेसगं ममर्र के चबूतरे बने हुए थ।े बाएं तरफ के चबूतरे पर नरम गलीचा िबछा हुआ था, बगलम एक ट टीदार चादं ी का गड़वा, उसके पास ही शहततू के प तो पर बना-बनाया दातनू एकतरफ से िचरा हुआ था, बगल म एक छोटी-सी चांदी की चौकी पर धा◌ोती, गमछा और पिहरनेके खबू सरू त और कीमती कपड़े भी रखे हुए थे। दािहनी तरफ वाले संगममर्र के चबूतरे पर चांदी की एक चौकी थी िजस पर पूजा कासामान धारा हुआ था। छोटे-छोटे जड़ाऊ पचं पात्र, त टी, कटोिरयां सब साफ की हुई थीं औरनरम ऊनी आसन िबछा हुआ था िजस पर एक छोटा-सा बेल भी पड़ा था। कु मार इस बात पर गौर कर रहे थे िक वे कहां आ पहुंचे, उ ह कौन लाया, इस जगह कानाम क्या है तथा यह बाग और कमरा िकसका है? इतने म ही उस पेड़ की तरफ िनगाह जापड़ी िजसके नीचे पूजा का सब सामान सजाया हुआ था। एक कागज िचपका हुआ नजर पड़ा।उसके पास गये, देखा िक कु छ िलखा हुआ है। पढ़ा, यह िलखा था- ''कंु अर वीरे द्रिसहं , यह सब सामान तु हारे ही वा ते है। इसी बावली म नहाओ और इनसब चीज को बरतो, क्य िक आज के िदन तुम हमारे मेहमान हो।'' कु मार और भी सोच म पड़ गए िक यह क्या, सामान तो इतना लबं ा-चौड़ा रखा गया हैमगर आदमी कोई भी नजर नहीं पड़ता, ज र यह जगह पिरय के रहने की है और वे लोग भीइसी बाग म िफरती ह गी, मगर िदखाई नहीं पड़तीं! अ छा इस बाग म पहले घूमकर देख लिक क्या-क्या है िफर नहाना-धोना होगा, आिखर इतना िदन तो चढ़ ही चुका है। अगर कहींदरवाजा नजर पड़ा तो इस बाग के बाहर हो जायगे, मगर नहीं, इस बाग का मािलक कौन है

और वह मझु े यहां क्य लाया जब तक इसका हाल मालमू न हो इस बाग से कै से जाने कोजी चाहेगा? यही सब सोचकर कु मार उस बाग म घूमने लगे। िजस कमरे म नींद से कु मार की आखं खुली थी वह बाग के पि चम तरफ था। परू बतरफ कोई इमारत न थी क्य िक िनकलता हुआ सूरज पहले ही से िदखाई पड़ा था जो इसवक्त नजे े बराबर ऊं चा आ चुका होगा। घूमते हुए बाग के उ तर तरफ एक और कमरा नजरपड़ा जो परू ब तरफ वाले कमरे के साथ सटा हुआ था। कु मार ने चाहा िक उस कमरे की भी सरै कर मगर न हो सका, क्य िक उसके सबदरवाजे बंद थ,े अ तु आगे बढ़े और जगं ली फू ल , बेल और खबू सूरत क्यािरय को देखते हुएबाग के दिक्षण तरफ पहुंच।े एक छोटी-सी कोठरी नजर पड़ी िजसकी दीवार पर कु छ िलखाहुआ था, पढ़ने से मालमू हुआ िक पाखाना है। उसी जगह लकड़ी की चौकी पर पानी से भराहुआ एक लोटा भी रखा था। िदन डढ़े पहर से यादे चढ़ चकु ा होगा, कु मार की तबीयत घबड़ाई हुई थी, आिखर सोच-िवचारकर चौकी पर से लोटा उठा िलया और पाखाने गए, बाद इसके बावली म हाथ-महुं धोए,सीिढ़य के ऊपर जामनु के पेड़ तले चौकी पर बैठकर दातनु िकया, बावली म नान करकेउ हीं कपड़ को पहना जो उनके िलए संगममर्र के चबतू रे पर रखे हुए थ,े दसू रे पर बठै केसं या-पूजा की। जब इन सब काम से छु ट्टी पा चकु े तो िफर उसी कमरे की तरफ आए िजसम सोते सेआंख खलु ी थी और कु मारी चंद्रका ता की त वीर देखी थी, मगर उस कमरे के कु ल िकवाड़ बंदपाये, खोलने की कोिशश की मगर खुल न सके । बाहर दलान म खबू कड़ी धूप फै ली हुई थी। धूपके मारे तबीयत घबड़ा उठी, यही जी चाहता था िक कहीं ठ डी जगह िमले तो आराम िकयाजाय। आिखर उस जगह से हट कु मार घूमते हुए उस दसू री तरफ वाले कमरे को देखने चलेिजसम िकवाड़ पहर भर पहले बदं पाये थे, वे अब खलु े हुए िदखलाई पड़,े अंदर गए।

भीतर से यह कमरा बहुत साफ संगममरर् के फशर् का था, मालमू होता था िक अभी कोईइसे धोकर साफ कर गया है। बीच म एक का मीरी गलीचा िबछा हुआ था। आगे उसके कईतरह की भोजन की चीज चादं ी और सोने के बरतन म सजाई हुई रखी थी।ं आसन पर एकखत पड़ी हुई थी िजसे कु मार ने उठाकर पढ़ा, यह िलखा हुआ था- ''आप िकसी तरह घबड़ाएं नही,ं यह मकान आपके एक दो त का है जहां हर तरह सेआपकी खाितर की जायगी। इस वक्त आप भोजन करके बगल की कोठरी म जहां आपकेिलए पलंग िबछा है कु छ देर आराम कर।'' इसे पढ़कर कु मार जी म सोचने लगे िक अब क्या करना चािहए। भखू बड़े जोर की लगीहै पर िबना मािलक के इन चीज को खाने को जी नहीं चाहता और कु छ पता भी नहीं लगतािक इस मकान का मािलक कौन है जो िछप-िछपकर हमारी खाितरदारी की चीज तैयार कररहा है पर मालमू नहीं होता िक कौन िकधर से आता है, कहां खाना बनाता है, मािलक मकानया उसके नौकर-चाकर िकस जगह रहते ह या िकस राह से आत-े जाते ह। उन लोग को जबइसी जगह िछपे रहना मंजूर था तो मझु े यहां लाने की ज रत ही क्या थी? उसी आसन पर बठै े हुए बड़ी देर तक कु मार तरह-तरह की बात सोचते रहे, यहां तक िकभखू ने उ ह बेताब कर िदया, आिखर कब तक भूखे रहते? लाचार भोजन की तरफ हाथ बढ़ाया,मगर िफर कु छ सोचकर क गये और हाथ खीचं िलया। भोजन करने के िलए तयै ार होकर िफर कु मार के क जाने से बड़े जोर के साथ हंसनेकी आवाज आई िजसे सुनकर कु मार और भी हैरान हुए। इधर-उधर देखने लगे मगर कु छ पतान लगा, ऊपर की तरफ कई िखड़िकयां िदखाई पड़ीं मगर कोई आदमी नजर न आया। कु मार ऊपर वाली िखड़िकय की तरफ देख ही रहे थे िक एक आवाज आई- ''आप भोजन करने म देर न कीिजये, कोई खतरे की जगह नहीं है।''

भखू के मारे कु मार िवकल हो रहे थ,े लाचार होकर खाने लगे। सब चीज एक से एक वािद ट बनी हुई थीं। अ छी तरह से भोजन करने के बाद कु मार उठे , एक तरफ हाथ धोने केिलए लोटे म जल रखा हुआ था, अपने हाथ से लोटा उठा हाथ धोए और उस बगल वालीकोठरी की तरफ चले। जैसा िक परु जे म िलखा हुआ था उसी के मतु ािबक सोने के िलए उसकोठरी म िनहायत खूबसूरत पलगं िबछा हुआ पाया। मसहरी पर लेटकर तरह-तरह की बात सोचने लगे। इस मकान का मािलक कौन है औरमुलाकात न करने म उसने क्या फायदा सोचा है, यहां कब तक पड़े रहना होगा, वहां ल करवाल की हमारी खोज म क्या दशा होगी, इ यािद बात को सोचत-े सोचते कु मार को नीदं आगई और बेखबर सो गये। दो घटं े रात बीते तक कु मार सोये रहे। इसके बाद बीन की और उसके साथ ही िकसी केगाने की आवाज कान म पड़ी। झट आंख खोल इधर-उधर देखने लगे, मालमू हुआ िक यह वहकमरा नहीं है िजसम भोजन करके सोये थे, बि क इस वक्त अपने को एक िनहायत खबू सूरतसजी हुई बारहदरी म पाया िजसके बाहर से बीन और गाने की आवाज आ रही थी। कु मार पलंग पर से उठे और बाहर देखने लगे। रात िब कु ल अधेरी थी मगर रोशनी खबूहो रही थी िजससे मालूम पड़ा िक यह बाग भी वह नहीं है िजसम िदन को नान और भोजनिकया था। इस वक्त यह नहीं मालूम होता था िक यह बाग िकतना बड़ा है क्य िक इसके दसू रेतरफ की दीवार िब कु ल नजर नहीं आती थी। बड़-े बड़े दरख्त भी इस बाग म बहुत थे। रोशनीखूब हो रही थी। कई औरत जो कमिसन और खबू सरू त थी,ं टहलती और कभी-कभी गाती याबजाती हुई नजर पड़ी,ं िजनका तमाशा दरू से खड़े होकर कु मार देखने लगे। वे आपस महंसती और िठठोली करती हुई एक रिवश से दसू री और दसू री से तीसरी पर घमू रही थीं।कु मार का िदल न माना और ये धीरे धीरे उनके पास जाकर खड़े हो गये।

वे सब कु मार को देखकर क गईं और आपस म कु छ बात करने लगी,ं िजसको कु मारिब कु ल नहीं समझ सकते थ,े मगर उनके हाथ-परै िहलाने के भाव से मालमू होता था िक वेकु मार को देखकर ता जबु कर रही ह। इतने म एक औरत आगे बढ़कर कु मार के पास आईऔर उनसे बोली, ''आप कौन ह और िबना हुक्म इस बाग म क्य चले आये?'' कु मार ने उसे नजदीक से देखा तो िनहायत हसीन और चंचल पाया। जवाब िदया, ''मनहीं जानता यह बाग िकसका है, अगर हो सके तो बताओ िक यहां का मािलक कौन है?'' औरत-हमने जो कु छ पूछा है पहले उसका जवाब दे लो िफर हमसे जो पछू ोगे सो बतादगे। कु मार-मझु े कु छ भी मालमू नहीं िक म यहां क्य कर आ गया! औरत-क्या खबू ! कै से सीधो-सादे आदमी ह (दसू री औरत की तरफ देखकर) बिहन, जराइधर आना, देखो कै से भोले-भाले चोर इस बाग म आ गये ह जो अपने आने का सबब भी नहींजानते! उस औरत के आवाज देने पर सब ने आकर कु मार को घेर िलया और पूछना शु िकया,''सच बताओ तमु कौन हो और यहां क्य आये?'' दसू री औरत-जरा इनके कमर म तो हाथ डालो, देखो कु छ चरु ाया तो नहीं? तीसरी-ज र कु छ न कु छ चरु ाया होगा। चौथी-अपनी सूरत इ ह ने कै सी बना रखी है, मालमू होता है िक िकसी राजा ही के लड़केह। पहली-भला यह तो बताइए िक ये कपड़े आपने कहां से चरु ाये?

इन सब की बात सनु कर कु मार बड़े हैरान हुए। जी म सोचने लगे िक अजब आफत मआ फं से, कु छ समझ म नहीं आता, ज र इ हीं लोग की बदमाशी से म यहां तक पहुंचा औरयही लोग अब मुझे चोर बनाती ह। य ही कु छ देर तक सोचते रहे, बाद इसके िफर बातचीतहोने लगी- कु मार-मालमू होता है िक तु हीं लोग ने मुझे यहां लाकर रखा है। एक औरत-हम लोग को क्या गरज थी जो आपको यहां लाते या आप ही खशु हो हमक्या दे दगे िजसकी उ मीद म हम लोग ऐसा करते! अब यह कहने से क्या होता है। ज रचोरी की नीयत से ही आप आये ह। कु मार-मुझको यह भी मालमू नहीं िक यहां आने या जाने का रा ता कौन है। अगर यहभी बतला दो तो म यहां से चला जाऊं । दसू री-वाह, क्या बेचारे अनजान बनते ह! यहां तक आये भी और रा ता भी नहीं मालमू । तीसरी-बिहन, तुम नहीं समझतीं यह चालाकी से भागना चाहते ह। चौथी-अब इनको िगर तार करके ले चलना चािहए। कु मार-भला मझु े कहां ले चलोगी? एक औरत-अपने मािलक के सामन।े कु मार-तु हारे मािलक का क्या नाम है? एक-ऐसी िकसकी मजाल है जो हमारे मािलक का नाम ले! कु मार-क्या तु ह अपने मािलक का नाम बताने म भी कु छ हज्र है! दसू री-हज!र् नाम लेते ही जबु ान कटकर िगर पड़गे ी!

कु मार-तो तुम लोग अपने मािलक से बातचीत कै से करती होओगी? दसू री-मािलक की त वीर से बातचीत करते ह, सामना नहीं होता। कु मार-अगर कोई पछू े िक तमु िकसकी नौकर हो तो कै से बताओगी? तीसरी-हम लोग अपने मािलक राजकु मारी की त वीर अपने गले म लटकाए रहती हिजससे मालूम हो िक हम सब फलाने की ल डी ह। कु मार-क्या यहां कई राजकु मारी ह जो ल िडय की पहचान म गड़बड़ी हो जाने का डर है? पहली-नहीं, यहां िसफर् दो राजकु मारी ह और दोन के यहां यही चलन है, कोई अपनेमािलक का नाम नहीं ले सकता। जब पहचान की ज रत होती है तो गले की त वीर िदखा दीजाती है। कु मार-भला मझु े भी वह त वीर िदखाओगी? ''हां, हा,ं लो देख लो!'' कहकर एक ने अपने गले म की छोटी-सी त वीर जो धकु धकु ी कीतरह लटक रही थी िनकालकर कु मार को िदखाई िजसे देखते ही उनके होश उड़ गये। यहत वीर तो कु मारी चदं ्रका ता की है! तो क्या ये सब उ हीं की ल डी ह। नही-ं नही,ं कु मारीचंद्रका ता यहां भला कै से आवगी? उनका रा य तो िवजयगढ़ है। अ छा पूछ तो यह मकानिकस शहर म है? कु मार-भला यह तो बताओ इस शहर का क्या नाम है िजसम हम इस वक्त ह! एक-इस शहर का नाम िचत्रनगर है क्य िक सब के गले म कु मारी की त वीर लटकतीरहती है। कु मार-और इस शहर का यह नाम कब से पड़ा?

एक-बरस -बरस से यही नाम है और इसी रंग की त वीर कई पु त से हम लोग के गलेम है। पहले मेरी परदादी को सरकार से िमली थी, होत-े होते अब मेरे गले म आ गई। कु मार-क्या तब से यही राजकु मारी यहां का रा य करती आई ह, कोई इनका मां-बाप नहींहै? दसू री-अब यह सब हम लोग क्या जान, कु छ राजकु मारी से तो मलु ाकात होती नहीं जोमालमू हो िक यही ह या दसू री, जवान ह या बुङ्ढी हो गईं। कु मार-तो कचहरी कौन करता है? दसू री-एक बड़ी-सी त वीर हम लोग के मािलक राजकु मारी की है, उसी के सामने दरबारलगता है। जो कु छ हुक्म होता है उसी त वीर से आवाज आती है। कु मार-तुम लोग की बात ने तो मझु े पागल बना िदया है। ऐसी बात करती हो जो कभीमुमिकन ही नही,ं अक्ल म नहीं आ सकतीं। अ छा उस दरबार म मझु े भी ले जा सकती हो? औरत-इसम कहने की कौन-सी बात है, आिखर आपको िगर तार करके उसी दरबार म तोले चलना है, आप खदु ही देख लीिजयेगा। कु मार-जब तुम लोग का मािलक कोई भी नहीं या अगर है तो एक त वीर, तब हमनेउसका क्या िबगाड़ा? क्य हम बाधं ा के ले चलोगी? औरत-हमारी राजकु मारी सब की नजर से िछपकर अपने रा य भर म घूमा करती ह औरअपने मकान और बगीच की सरै िकया करती ह मगर िकसी की िनगाह उन पर नहीं पड़ती।हम लोग रोज बाग और कमर की सफाई करती ह, और रोज ही कमर का सामान, फश,्र पलगंके िबछौने वगैरह ऐसे हो जाते ह जसै े िकसी के मसरफ म आये ह । वह र दे जाते और मैलेभी हो जाते ह, इससे मालमू होता है िक हमारी राजकु मारी सभो की नजर से िछपकर घूमाकरती ह, िजनकी हजार बरस की उम्र है, और इसी तरह हमेशा जीती रहगी।

दसू री-बिहन तमु इनकी बात का जवाब कब तक देती रहोगी? ये तो इसी तरह जानबचाया चाहते ह? पहली-नहीं-नही,ं ये ज र िकसी रईस राजा के लड़के ह, इनकी बात का जवाब देनामनु ािसब है और इनको इ जत के साथ कै द करके दरबार म ले चलना चािहए। तीसरी-भला इनका और इनके बाप का नामधाम भी तो पछू लो िक इसी तरह राजा कालड़का समझ लोगी! (कु मार की तरफ देखकर) क्य जी आप िकसके लड़के ह और आपका नामक्या है? कु मार-म नौगढ़ के महाराज सरु े द्रिसहं का लड़का वीरे द्रिसहं हूं। इनका नाम सुनते ही वे सब खशु होकर आपस म कहने लगीं, ''वाह, इनको तो ज रपकड़ के ले चलना चािहए, बहुत कु छ इनाम िमलेगा, क्य िक इ हीं को िगर तार करने के िलएसरकार की तरफ से मुनादी की गई थी, इ ह ने बड़ा भारी नकु सान िकया है, सरकारी ितिल मतोड़ डाला और खजाना लटू कर घर ले गए। अब इनसे बात न करनी चािहए। ज दी इनकेहाथ-परै बाधं ो और इसी वक्त सरकार के पास ले चलो। अभी आधी रात नहीं गई है, दरबारहोता होगा, देर हो जायगी तो कल िदन भर इनकी िहफाजत करनी पड़गे ी, क्य िक हमारेसरकार का दरबार रात ही को होता है।'' इन सब की ये बात सनु कर कु मार की तो अक्ल चकरा गई। कभी ता जुब कभी सोच,कभी घबराहट से इनकी अजब हालत हो गई। आिखर उन औरत की तरफ देखकर बोले,''फसाद क्य करती हो हम तो आप ही तमु लोग के साथ चलने को तयै ार ह, चलो देखतु हारी राजकु मारी का दरबार कै सा है।'' एक-जब आप खुद चलने को तयै ार ह तब हम लोग को यादे बखेड़ा करने की क्याज रत है, चिलए।

कु मार-चलो। वे सब औरत िगनती म नौ थी,ं चार कु मार के आगे चार पीछे हो उनको लेकर रवाना हुईंऔर एक यह कहकर चली गई िक म पहले खबर करती हूं िक फलाने डाकू को हम लोग नेिगर तार िकया है िजसको साथ वाली सिखयां िलए आती ह। वे सब कु मार को िलए बाग के एक कोने म गईं जहां दसू री तरफ िनकल जाने के िलएछोटा-सा दरवाजा नजर पड़ा िजसम शीशे की िसफ्र एक सफे द हांडी जल रही थी। वे सबकु मार को िलए हुए इसी दरवाजे म घसु ी।ं थोड़ी दरू जाकर दसू रा बाग जो बहुत सजा था नजरपड़ा िजसम हद से यादे रोशनी हो रही थी और कई चोबदार हाथ म सोन-े चादं ी के आसे िलएइधर-उधर टहल रहे थे। इनके अलावे और भी बहुत से आदमी घमू त-े िफरते िदखाई पड़।े उन औरत से िकसी ने कु छ बातचीत या रोक-टोक न की, ये सब कु मार को िलए हुएबराबर धाड़धाड़ाती हुई एक बड़े भारी दीवानखाने म पहुंचीं जहां की सजावट और कै िफयत देखकु मार के होश जाते रहे। सबसे पहले कु मार की िनगाह उस बड़ी त वीर के ऊपर पड़ी जो ठीक सामने सोने केजड़ाऊ िसहं ासन पर रखी हुई थी। मालमू होता था िक िसहं ासन पर कु मारी चदं ्रका ता िसर परमकु ु ट धारे बठै ी ह, ऊपर छत्र लगा हुआ है, और िसहं ासन के दोन तरफ दो िजदं ा शरे बठै े हुए हजो कभी-कभी डकारते और गरु ा्तर े भी थ।े बाद इसके बड़-े बड़े सरदार बेशकीमती पोशाक पिहरेिसहं ासन के सामने दो-पट्टी कतार बाधं ो िसर झुकाए बैठे थ।े दरबार म स नाटा छाया हुआ था,सब चपु मारे बैठे थे। चदं ्रका ता की त वीर और ऐसे दरबार को देखकर एक दफे तो कु मार पर भी रोब छागया। चपु चाप सामने खड़े हो गए, उनके पीछे और दोन बगल वे सब औरत खड़ी हो गईंिज ह ने कु मार को चोर की तरह हािजर िकया था। त वीर के पीछे से आवाज आई, ''ये कौन ह?''

उन औरत म से एक ने जवाब िदया, ''ये सरकारी बाग म घमू ते हुए पकड़े गए ह औरपूछने से मालमू हुआ िक इनका नाम वीरे द्रिसहं है, िवक्रमी ितिल म इ ह ने ही तोड़ा है।'' िफरआवाज आई, ''अगर यह सच है तो इनके बारे म बहुत कु छ िवचार करना पड़गे ा, इस वक्त लेजाकर िहफाजत से रखो, िफर हुक्म पाकर दरबार म हािजर करना।'' उन ल िडय ने कु मार को एक अ छे कमरे म ले जाकर रखा जो हर तरह से सजा हुआथा मगर कु मार अपने ख्याल म डू बे हुए थ।े नये बाग की सरै और त वीर के दरबार ने उ हऔर अचभं े म डाल िदया था। गद्रन झकु ाये सोच रहे थ।े पहले बाग म जो ता जुब की बातदेखीं उनका तो पता लगा ही नही,ं इस बाग म तो और भी बात िदखाई देती ह िजसम कु मारीचदं ्रका ता की त वीर और उनके दरबार का लगना और भी हैरान कर रहा है। इसी सोच-िवचार म गद्रन झकु ाये ल िडय के साथ चले गए, इसका कु छ भी ख्याल नहीं िक कहां जाते ह,कौन िलए जाता है, या कै से सजे हुए मकान म बठै ाये गये ह। जमीन पर फश्र िबछा हुआ और ग ी लगी हुई थी, बड़े तिकए के िसवाय और भी कईतिकए पड़े हुए थे। कु मार उस ग ी पर बैठ गए और दो घटं े तक िसर झकु ाये ऐसा सोचते रहेिक तनोबदन की िब कु ल खबर न रही। यास मालमू हुई तो पानी के िलए इधर-उधर देखनेलगे। एक ल डी सामने खड़ी थी, उसने हाथ जोड़कर पछू ा, ''क्या हुक्म होता है?'' िजसके जवाबम कु मार ने हाथ के इशारे से पानी मांगा। सोने के कटोरे म पानी भर के ल डी ने कु मार केहाथ म िदया, पीते ही एकदम उनके िदमाग तक ठं डक पहुंच गई साथ ही आखं म झपकीआने लगी और धीरे - धीरे िब कु ल बेहोश होकर उसी ग ी पर लेट गये। बारहवाँ बयान कंु अर वीरे द्रिसहं के गायब होने से उनके ल कर म खलबली पड़ गई। तजे िसहं औरदेवीिसहं ने घबराकर चार तरफ खोज की मगर कु छ पता न लगा। िदन भर बीत जाने पर योितषीजी ने तजे िसहं से कहा, ''रमल से जान पड़ता है िक कु मार को कई औरत बेहोशी की

दवा सघंु ा बेहोश कर उठा ले गई ह और नौगढ़ के इलाके म अपने मकान के अदं र कै द कररखा है, इससे यादे कु छ मालूम नहीं होता।'' योितषीजी की बात सुनकर तजे िसहं बोले, ''नौगढ़ म तो अपना ही रा य है, वहां कु मारके दु मन का कहीं िठकाना नहीं। महाराज सरु े द्रिसहं की अमलदारी से उनकी िरयाया बहुतखुश तथा उनके और उनके खानदान के िलए वक्त पर जान देने को तैयार है िफर कु मार कोले जाकर कै द करने वाला कौन हो सकताहै।'' बहुत देर तक सोच-िवचार करते रहने के बाद तेजिसहं कु मार की खोज म जाने के िलएतैयार हुए। देवीिसहं और योितषीजी ने भी उनका साथ िदया और ये तीन नौगढ़ की तरफरवाना हुए। जाते वक्त महाराज िशवद त के दीवान को चनु ार िबदा करते गये जो कंु अरवीरे द्रिसहं की मुलाकात को महाराज िशवद त की तरफ से तोहफा और सौगात लेकर आयेहुए थे और ितिल मी िकताब फतहिसहं िसपहसालार के सुपुद्र कर दी जो कंु अर वीरे द्रिसहं केगायब हो जाने के बाद उनके पलंग पर पड़ी हुई पाई गई थी। ये तीन ऐयार आधी रात गुजर जाने के बाद नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। पाचं कोस तकबराबर चले गये, सबेरा होने पर तीन एक घने जगं ल म के और अपनी सरू त बदलकर िफररवाना हुए। िदन भर चलकर भूखे- यासे शाम को नौगढ़ की सरहद पर पहुंच।े इन लोग नेआपस म यह राय ठहराई िक िकसी से मलु ाकात न कर बि क जािहर भी न होकर िछपे हीिछपे कु मार की खोज कर। तीन ऐयार ने अलग-अलग होकर कु मार का पता लगाना शु िकया। कहीं मकान मघसु कर, कहीं बाग म जाकर, कहीं आदिमय से बात करके उन लोग ने दिरया त िकया मगरकहीं पता न लगा। दसू रे िदन तीन इकट्ठे होकर सूरत बदले हुए राजा सरु े द्रिसहं के दरबार मगये और एक कोने म खड़े हो बातचीत सनु ने लगे।

उसी वक्त कई जासूस दरबार म पहुंचे िजनकी सूरत से घबराहट और परेशानी साफमालूम होती थी। तेजिसहं के बाप दीवान जीतिसहं ने उन जाससू से पछू ा, ''क्या बात है जोतमु लोग इस तरह घबराये हुए आये हो?'' एक जाससू ने कु छ आगे बढ़के जवाब िदया, ''ल कर से कु मार की खबर लाया हूं।'' जीत-क्या हाल है, ज द कहो। जाससू -दो रोज से उनका कहीं पता नहीं है। जीत-क्या कहीं चले गये? जासूस-जी नहीं, रात को खेमे म सोये हुए थ,े उसी हालत म कु छ औरत उ ह उठा ले गईं,मालमू नहीं कहां कै द कर रखा है। जीत-(घबराकर) यह कै से मालूम हुआ िक उ ह कई औरत ले गईं? जाससू -उनके गायब हो जाने के बाद ऐयार ने बहुत तलाश िकया। जब कु छ पता न लगातो योितषी जग नाथजी ने रमल से पता लगाकर कहा िक कई औरत उ ह ले गई ह औरइस नौगढ़ के इलाके म ही कहीं कै द कर रखा है? जीत-(ता जुब से) इसी नौगढ़ के इलाके म! यहां तो हम लोग का कोई दु मन नहीं है! जाससू -जो कु छ हो, योितषीजी ने तो ऐसा ही कहा है। जीत-िफर तजे िसहं कहां गया? जासूस-कु मार की खोज म कहीं गये ह, देवीिसहं और योितषीजी भी उनके साथ ह।मगर उन लोग के जाते ही हमारे ल कर पर आफत आई? जीत-(च ककर) हमारे ल कर पर क्या आफत आई?

जासूस-मौका पाकर महाराज िशवद त ने हमला कर िदया। हमले का नाम सनु ते ही तजे िसहं वगैरह ऐयार लोग जो सूरत बदले हुए एक कोने मखड़े थे आगे की सब बात बड़े गौर से सनु ने लगे। जीत-पहले तो तुम लोग यह खबर लाये थे िक महाराज िशवद त ने कु मार की दो तीकबूल कर ली और उनका दीवान बहुत कु छ नजर लेकर आया है, अब क्या हुआ? जासूस-उस वक्त की वह खबर बहुत ठीक थी पर आिखर म उसने धोखा िदया औरबेईमानी पर कमर बांधा ली। जीत-उसके हमले का क्या नतीजा हुआ? जाससू -पहर भर तक तो फतहिसहं िसपहसालार खबू लड़,े आिखर िशवद त के हाथ सेजख्मी होकर िगर तार हो गये। उनके िगर तार होते ही बेिसर की फौज ितितर-िबितर हो गई। अभी तक सरु े द्रिसहं चपु चाप बैठे इन बात को सनु रहे थे। फतहिसहं के िगर तार होजाने और ल कर के भाग जाने का हाल सनु आखं लाल हो गईं। दीवान जीतिसहं की तरफदेखकर बोले, ''हमारे यहां इस वक्त फौज तो है नहीं, थोड़-े बहुत िसपाही जो कु छ ह उनको लेकरइसी वक्त कू च क ं गा। ऐसे नामद्र को मारना कोई बड़ी बात नहीं है।'' जीत-ऐसा ही होना चािहए, सरकार के कू च की बात सनु कर भागी हुई फौज भी इकट्ठी होजायगी। ये बात हो ही रही थीं िक दो जासूस और दरबार म हािजर हुए। पूछने से उ ह ने कहा,''कु मार के गायब होन,े ऐयार के उनकी खोज म जाने, फतहिसहं के िगर तार हो जाने औरफौज के भाग जाने की खबर सनु कर महाराज जयिसहं अपनी कु ल फौज लेकर चुनार पर चढ़गये ह। रा ते म खबर लगी िक फतहिसहं के िगर तार होने के दो ही पहर बाद रात कोमहाराज िशवद त भी कहीं गायब हो गये और उनके पलगं पर एक पजु ार् पड़ा हुआ िमला

िजसम िलखा हुआ था िक इस बेईमान को परू ी सजा दी जायगी, ज म भर कै द से छु ट्टी निमलेगी। बाद इसके सुनने म आया िक फतहिसहं भी छू टकर ितिल म के पास आ गये औरकु मार की फौज िफर इकट्ठी हो रही है।'' इस खबर को सुनकर राजा सरु े द्रिसहं ने दीवान जीतिसहं की तरफ देखा। जीत-जो कु छ भी हो महाराज जयिसहं ने चढ़ाई कर ही दी, मनु ािसब है िक हम भीपहुंचकर चुनार का बखेड़ा ही तय कर द, यह रोज-रोज की खटपट अ छी नही!ं राजा-तु हारा कहना ठीक है, ऐसा ही िकया जाय, क्या कह हमने सोचा था िक लड़के के हीहाथ से चनु ार फतह हो िजससे उसका हौसला बढ़े मगर अब बदा्र त नहीं होता। इन सब बात और खबर को सुन तीन ऐयार वहां से रवाना हो गए और एकातं मजाकर आपस म सलाह करने लगे। तेज-अब क्या करना चािहए? देवी-चाहे जो भी हो पहले तो कु मार को ही खोजना चािहए। तेज-म कहता हूं िक तुम ल कर की तरफ जाओ और हम दोन कु मार की खोज करतेह। यो-मेरी बात मानो तो पहले एक दफे उस तहखाने (खोह) म चलो िजसम महाराजिशवद त को कै द िकया था। तजे -उसका तो दरवाजा ही नहीं खलु ता। यो-भला चलो तो सही, शायद िकसी तरकीब से खलु जाय।

तजे -इसकी कोिशश तो आप बेफायदे करते ह, अगर दरवाजा खुला भी तो क्या कामिनकलेगा? यो-अ छा चलो तो। तेज-खरै चलो। तीन ऐयार तहखाने की तरफ रवाना हुए। तरे हवाँ बयान कंु अर वीरे द्रिसहं धीरे - धीरे बेहोश होकर उस ग ी पर लेट गए। जब आखं खलु ी अपने कोएक प थर की चट्टान पर सोये पाया। घबराकर इधर-उधर देखने लगे। चार तरफ ऊं ची-ऊं चीपहाड़ी, बीच म बहता च मा, िकनारे-िकनारे जामनु के दरख्त की बहार देखने से मालूम होगया िक यह वही तहखाना है िजसम ऐयार लोग कै द िकये जाते थे, िजस जगह तेजिसहं नेमहाराज िशवद त को मय उनकी रानी के कै द िकया था, या कु मार ने पहाड़ी के ऊपरचंद्रका ता और चपला को देखा था। मगर पास न पहुंच सके थे। कु मार घबराकर प थर की चट्टान पर से उठ बैठे और उस खोह को अ छी तरह पहचाननेके िलए चार तरफ घूमने और हर एक चीज को देखने लगे। अब शक जाता रहा और िब कु लयकीन हो गया िक यह वही खोह है, क्य िक उसी तरह कै दी महाराज िशवद त को जामनु केपेड़ के नीचे प थर की चट्टान पर लेटे और पास ही उनकी रानी को बैठे और परै दबाते देखा।इन दोन का ख दसू री तरफ था, कु मार ने उनको देखा मगर उनको कु मार का कु छ गमु ानतक भी न हुआ। कंु अर वीरे द्रिसहं दौड़े हुए उस पहाड़ी के नीचे गये िजसके ऊपर वाले दलान म कु मारीचंद्रका ता और चपला को छोड़ ितिल म तोड़ने खोह के बाहर गये थे। इस वक्त भी कु मारी

को उस िदन की तरह वही मलै ी और फटी साड़ी पहने उसी तौर से चहे रे और बदन पर मैलचढ़ी और बाल की लट बाधं ो बठै े हुए देखा। देखते ही िफर वही मुह बत की बला िसर पर सवार हो गई। कु मारी को पहले की तरहबेबसी की हालत म देख आंख म आसं ू भर आये, गला क गया और कु छ शमार् के सामने सेहट एक पेड़ की आड़ म खड़े हो जी म सोचने लगे, 'हाय, अब कौन मंुह लेकर कु मारी चंद्रका ताके सामने जाऊं और उससे क्या बातचीत क ं ? पछू ने पर क्या यह कह सकंू गा िक तु ह छु ड़ानेके िलए ितिल म तोड़ने गये थे लेिकन अभी तक वह नहीं टू टा। हा! मुझसे तो यह बात कभीनहीं कही जायगी। क्या क ं वनक या के फे र म ितिल म तोड़ने की सुधा जाती रही और कईिदन का हज्र भी हुआ। जब कु मारी पूछे गी िक तुम यहां कै से आये तो क्या जवाब दंगू ा?िशवद त भी यहां िदखाई देता है। ल कर म तो सनु ा था िक वह छू ट गया बि क उसकादीवान खुद नजर लेकर आया था, तब यह क्या मामला है!' इन सब बात को कु मार सोच ही रहे थे िक सामने से तेजिसहं आते िदखाई पड़े िजनकेकु छ दरू पीछे देवीिसहं और पिं डत जग नाथ योितषी भी थे। कु मार उनकी तरफ बढ़े।तेजिसहं सामने से कु मार को अपनी तरफ आते देख दौड़े और उनके पास जाकर पैर पर िगरपड़,े उ ह ने उठाकर गले से लगा िलया। देवीिसहं से भी िमले और योितषीजी को द डवतिकया। अब ये चार एक पेड़ के नीचे प थर पर बैठकर बातचीत करने लगे। कु मार-देखो तेजिसहं , वह सामने कु मारी चंद्रका ता उसी िदन की तरह उदास और फटेकपड़े पिहरे बैठी है और बगल म उसकी सखी चपला बैठी अपने आंचल से उनका महुं पोछरही है। तेज-आपसे कु छ बातचीत भी हुई? कु मार-नहीं कु छ नहीं, अभी म यही सोच रहा था िक उसके सामने जाऊं या नही।ं तजे -कै िदन से आप यह सोच रहे ह?

कु मार-अभी मझु को इस घाटी म आये दो घड़ी नहीं हुई। तजे -(ता जबु से) क्या आप अभी इस खोह म आये ह? इतने िदन तक कहां रहे? आपकोल कर से आये तो कई िदन हुए! इस वक्त आपको यकायक यहां देख के मने सोचा िककु मारी के इ क म चुपचाप ल कर से िनकलकर इस जगह आ बठै े ह। कु मार-नहीं, म अपनी खुशी से ल कर से नहीं आया, न मालूम कौन उठा ले गया था। तेज-(ता जबु से) ह, क्या अभी तक आपको यह भी मालूम नहीं हुआ िक ल कर सेआपको कौन उठा ले गया था। कु मार-नहीं, िब कु ल नहीं। इतना कहकर कु मार ने अपना िब कु ल हाल पूरा-पूरा कह सनु ाया। जब तक कु मार अपनीकै िफयत कहते रहे तीन ऐयार अचभं े म भरे सनु ते रहे। जब कु मार ने अपनी कथा समा त कीतब तेजिसहं ने योितषीजी से पछू ा, ''यह क्या मामला है, आप कु छ समझ?े '' यो-कु छ नहीं, िब कु ल ख्याल म ही नहीं आता िक कु मार कहां गये थे और उ ह ऐसेतमाशे िदखलाने वाला कौन था। कु मार-ितिल म तोड़ने के वक्त जो ता जबु की बात देखी थीं उनसे बढ़कर इन दो-तीनिदन म िदखाई पड़ी।ं देवी-िकसी छोटे िदल के डरपोक आदमी को ऐसा मौका पड़े तो घबरा के जान ही दे दे। यो-इसम क्या सदं ेह है! कु मार-और एक ता जुब की बात सनु ो, िशवद त भी यहां िदखाई पड़ रहा है। तजे -सो कहां?

कु मार-(हाथ का इशारा करके ) वह, उस पेड़ के नीचे नजर दौड़ाओ। तेज-हां ठीक तो है, मगर यह क्या मामला है! चलो उससे बात कर, शायद कु छ पता लगे। कु मार-उसके सामने ही कु मारी चदं ्रका ता पहाड़ी के ऊपर है, पहले उससे कु छ हाल पूछनाचािहए। मेरा जी तो अजब पेच म पड़ा हुआ है, कोई बात बैठती ही नहीं िक वह क्या पछू े गीऔर म क्या जवाब दंगू ा। तेज-आिशक की यही दशा होती है, कोई बात नही,ं चिलए म आपकी तरफ से बातक ं गा। चार आदमी िशवद त की तरफ चले। पहले उस पहाड़ी के नीचे गये िजसके ऊपर छोटेदलान म कु मारी चदं ्रका ता और चपला बठै ी थीं। कु मारी की िनगाह दसू री तरफ थी, चपला नेइन लोग को देखा, वह उठ खड़ी हुई और आवाज देकर कु मार के राजी-खुशी का हाल पछू नेलगी। जवाब खुद कु मार ने देकर कु मारी चदं ्रका ता के िमजाज का हाल पछू ा। चपला ने कहा,''इनकी हालत तो देखने ही से मालमू होती होगी, कहने की ज रत ही नहीं।'' कु मारी अभी तक िसर नीचे िकए बैठी थी। चपला के बातचीत की आवाज सुन च ककरउसने िसर उठाया। कु मार को देखते ही हाथ जोड़कर खड़ी हो गई और आंख से आंसू बहानेलगी। कंु अर वीरे द्रिसहं ने कहा, ''कु मारी तमु थोड़े िदन और सब्र करो। ितिल म टू ट गया, थोड़ाबाकी है। कई सबब से मझु े यहां आना पड़ा, अब म िफर उसी ितिल म की तरफ जाऊं गा!'' चपला-कु मारी कहती ह िक मेरा िदल यह कह रहा है िक इन िदन या तो मेरी महु बतआपके िदल से कम हो गई है या िफर मेरी जगह िकसी और ने दखल कर ली। मु त से इसजगह तकलीफ उठा रही हूं िजसका ख्याल मुझे कभी भी न था मगर कई िदन से यह नयाख्याल जी म पदै ा होकर मुझे बेहद सता रहा है।

चपला इतना कह के चुप हो गई। तेजिसहं ने मु कु राते हुए कु मार की तरफ देखा औरबोले, ''क्य , कहो तो भ डा फोड़ दं!ू '' कु मार इसके जवाब म कु छ कह न सके , आखं से आसं ू की बूंद िगरने लगीं और हाथजोड़ के उनकी तरफ देखा। हंसकर तेजिसहं ने कु मार के जुड़े हाथ छु ड़ा िदये और उनकी तरफसे खदु चपला को जवाब िदया- ''कु मारी को समझा दो िक कु मार की तरफ से िकसी तरह का अदं ेशा न कर, तु हारेइतना ही कहने से कु मार की हालत खराब हो गई।'' चपला-आप लोग आज यहां िकसिलए आये? तजे -महाराज िशवद त को देखने आये ह, वहां खबर लगी थी िक ये छू टकर चुनार पहुंचगये। चपला-िकसी ऐयार ने सरू त बदली होगी, इन दोन को तो म बराबर यहीं देखती रहती हूं। तजे -जरा म उनसे भी बातचीत कर लू।ं तेजिसहं और चपला की बातचीत महाराज िशवद त कान लगाकर सुन रहे थ।े अब वेकु मार के पास आये, कु छ कहा चाहते थे िक ऊपर चदं ्रका ता और चपला की तरफ देखकर चुपहो रहे। तेज-िशवद त, हां क्या कहने को थ,े कहो क क्य गये? िशव-अब न कहूंगा। तेज-क्य ? िशव-शायद न कहने से जान बच जाय।

तजे -अगर कहोगे तो तु हारी जान कौन मारेगा? िशव-जब इतना ही बता दंू तो बाकी क्या रहा? तेज-न बताओगे तो म तु ह कब छोड़ूगं ा। िशव-जो चाहो करो मगर म कु छ न बताऊं गा। इतना सुनते ही तेजिसहं ने कमर से खंजर िनकाल िलया, साथ ही चपला ने ऊपर सेआवाज दी, ''नहीं, ऐसा मत करना!'' तेजिसहं ने हाथ रोककर चपला की तरफ देखा। चपला-िशवद त के ऊपर खजं र खीचं ने का क्या सबब है? तेज-यह कु छ कहने आये थे मगर तु हारी तरफ देखकर चपु हो रहे, अब पछू ता हूं तोकु छ बताते नहीं, बस कहते ह िक कु छ बोलूंगा तो जान चली जायगी। मेरी समझ म नहींआता िक यह क्या मामला है। एक तो इनके बारे म हम लोग आप ही हैरान थ,े दसू रे कु छकहने के िलए हम लोग के पास आना और िफर तु हारी तरफ देखकर चपु हो रहना औरपछू ने से जवाब देना िक कहगे तो जान चली जायगी इन सब बात से तबीयत और परेशानहोती है? चपला-आजकल ये पागल हो गये ह, म देखा करती हूं िक कभी-कभी िच लाया और इधर-उधर दौड़ा करते ह। िब कु ल हालत पागल की-सी पाई जाती है, इनकी बात का कु छ ख्यालमत करो? िशव-उ टे मुझी को पागल बनाती है! तजे -(िशव त से) क्या कहा, िफर तो कहो? िशव-कु छ नहीं, तुम चपला से बात करो, म तो आजकल पागल हो गया हूं।

देवी-वाह, क्या पागल बने ह। िशव-चपला का कहना बहुत सही है, मेरे पागल होने म कोई शक नही।ं कु मार- योितषीजी, जरा इन नई गढ़ त के पागल को देखना! यो-(हंसकर) जब आकाशवाणी हो ही चकु ी िक ये पागल ह तो अब क्या बाकी रहा? कु मार-िदल म कई तरह के खटु के पैदा होते ह। तजे -इसम ज र कोई भारी भेद है। न मालमू वह कब खुलेगा, लाचारी यही है िक हमकु छ कर नहीं सकते! देवी-हमारी ओ तािदन इस भेद को जानती ह मगर उनको अभी इस भेद को खोलनामंजरू नहीं। कु मार-यह िब कु ल ठीक है। देवीिसहं की बात पर तजे िसहं हंसकर चुप हो रहे। महाराज िशवद त भी वहां से उठकरअपने िठकाने जा बठै े । तजे िसहं ने कु मार से कहा, ''अब हम लोग को ल कर म चलनाचािहए। सनु ते ह िक हम लोग के पीछे महाराज िशवद त ने ल कर पर धावा मारा िजससेबहुत कु छ खराबी हुई। मालूम नहीं पड़ता वह कौन िशवद त था, मगर िफर सनु ने म आयािक िशवद त भी गायब हो गया। अब यहां आकर िफर िशवद त को देख रहे ह!'' कु मार-इसम तो कोई शक नहीं िक ये सब बात बहुत ही ता जबु की ह, खरै तुमने जोकु छ िजसकी जबु ानी सनु ा है साफ-साफ कहो। तजे िसहं ने अपने तीन आदिमय का कु मार की खोज म ल कर से बाहर िनकलना,नौगढ़ रा य म सुरे द्रिसहं के दरबार म भेष बदले हुए पहुंचकर दो जाससू की जुबानी ल करका हाल सनु ना, महाराज जयिसहं और राजा सुरे द्रिसहं का चुनार पर चढ़ाई करना इ यािद सब

हाल कहा िजसे सनु कु मार परेशान हो गये, खोह के बाहर चलने के िलए तयै ार हुए। कु मारीचदं ्रका ता से िफर कु छ बात कर और धीरज दे आंख से आसं ू बहाते कंु अर वीरे द्रिसहं उसखोह के बाहर हुए। शाम हो चकु ी थी जब ये चार खोह के बाहर आये। तेजिसहं ने देवीिसहं से कहा िक हमलोग यहां बठै ते ह तुम नौगढ़ जाकर सरकारी अ तबल म से एक उ दा घोड़ा खोल लाओिजस पर कु मार को सवार कराके ितिल म की तरफ ले चल, मगर देखो िकसी को मालमू नहो िक देवीिसहं घोड़ा ले गए ह। देवी-जब िकसी को मालूम हो ही गया तो मेरे जाने से फायदा क्या? तजे -िकतनी देर म आओगे? देवी-यह कोई भारी बात तो है नहीं जो देर लगेगी, पहर भर के अदं र आ जाऊं गा। 1 यह कहकर देवीिसहं नौगढ़ की तरफ रवाना हुए, उनके जाने के बाद ये तीन आदमी घनेपेड़ के नीचे बठै बात करने लगे। कु मार-क्य योितषीजी, िशवद त का भेद कु छ न खुलेगा? यो-इसम तो कोई शक नहीं िक वह असल म िशवद त ही था िजसने कै द से छू टकरअपने दीवान के हाथ आपके पास तोहफा भेजकर सलु ह के िलए कहलाया था, और िवचार सेमालूम होता है िक वह भी असली िशवद त ही है िजसे आप इस वक्त खोह म छोड़ आए ह,मगर बीच का हाल कु छ मालूम नहीं होता िक क्या हुआ। कु मार-िपजाती ने चुनार पर चढ़ाई की है, देख इसका नतीजा क्या होता है। हम लोग भीवहां ज दी पहुंचते तो ठीक था। यो-कोई हजर् नही,ं वहां बोलने वाला कौन है? आपने सुना ही है िक िशवद त

1. उस खोह से नौगढ़ िसफ्र डढ़े या दो कोस होगा।िफर गायब हो गया बि क उस पुरजे से जो उसके पलंग पर िमला मालमू होता है िफरिगर तार हो गया। तजे -हां चनु ार दखल होने म क्या शक है, क्य िक सामना करने वाला कोई नहीं, मगरउनके ऐयार का खौफ जरा बना रहता है। कु मार-बद्रीनाथ वगरै ह भी िगर तार हो जाते तो बेहतर था। तेज-अबकी चलकर ज र िगर तार क ं गा। इसी तरह की बात करते इनको पहर भर से यादे गुजर गया। देवीिसहं घोड़ा लेकर आपहुंचे िजस पर कु मार सवार हो ितिल म की तरफ रवाना हुए, साथ-साथ तीन ऐयार पैदलबात करते जाने लगे। चौदहवाँ बयान कु मार के गायब हो जाने के बाद तजे िसहं , देवीिसहं और योितषीजी उनकी खोज मिनकले ह इस खबर को सनु कर महाराज िशवद त के जी म िफर बईे मानी पैदा हुई। एकातं मअपने ऐयार और दीवान को बलु ाकर उसने कहा, ''इस वक्त कु मार ल कर से गायब ह औरउनके ऐयार भी उ ह खोजने गये ह, मौका अ छा है, मेरे जी म आता है िक चढ़ाई करकेकु मार के ल कर को खतम कर दंू और उस खजाने को भी लटू लूं जो ितिल म म से उनकोिमला है।'' इस बात को सनु दीवान तथा बद्रीनाथ, प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल ने बहुतकु छ समझाया िक आपको ऐसा न करना चािहए क्य िक आप कु मार से सलु ह कर चुके ह।अगर इस ल कर को आप जीत ही लगे तो क्या हो जायेगा, िफर दु मनी पैदा होने म ठीकनहीं है इ यािद बहुत-सी बात कहके इन लोग ने समझाया मगर िशवद त ने एक न मानी।

इ हीं ऐयार म नािज़म और अहमद भी थे जो िशवद त की राय म शरीक थे और उसे हमलाकरने के िलए उकसाते थ।े आिखर महाराज िशवद त ने कंु अर वीरे द्रिसहं के ल कर पर हमला िकया और खुदमदै ान म आ फतहिसहं िसपहलासार को मकु ाबले के िलए ललकारा। वह भी जवामं द्र था, तुरंतमदै ान म िनकल आया और पहर भर तक खबू लड़ा, लेिकन आिखर िशवद त के हाथ सेजख्मी होकर िगर तार हो गया। सेनापित के िगर तार होते ही फौज बेिदल होकर भाग गई। िसफर् खेमा वगैरह महाराजिशवद त के हाथ लगा। ितिल मी खजाना उसके हाथ कु छ भी नहीं लगा क्य िक तजे िसहं नेबदं ोब त करके उसे पहले ही नौगढ़ भेजवा िदया था, हां ितिल मी िकताब उसके क जे म ज रपड़ गई िजसे पाकर वह बहुत खुश हुआ और बोला, ''अब इस ितिल म को म खदु तोड़ कु मारीचंद्रका ता को उस खोह से िनकालकर याहूंगा।'' फतहिसहं को कै द कर िशवद त ने जलसा िकया। नाच की महिफल से उठकर खासदीवानखाने म आकर पलंग पर सो रहा। उसी रोज वह पलगं पर से गायब हुआ, मालूम नहींकौन कहां ले गया, िसफर् वह पजु ार् पलगं पर िमला िजसका हाल ऊपर िलख चकु े ह। उसकेगायब होने पर फतहिसहं िसपहसालार भी कै द से छू ट गया, उसकी आखं सुनसान जगं ल मखलु ी। यह कु छ मालूम न हुआ िक उसको कै द से िकसने छु ड़ाया बि क उसके उन जख्म परजो िशवद त के हाथ से लगे थे पट्टी भी बांधी गई थी िजससे बहुत आराम और फायदा मालमूहोता था। फतहिसहं िफर ितिल म के पास आए जहां उनके ल कर के कई आदमी िमले बि क धीरे- धीरे वह सब फौज इकट्ठी हो गई जो भाग गई थी। इसके बाद ही यह खबर लगी िकमहाराज िशवद त को भी कोई िगर तार कर ले गया।

अके ले फतहिसहं ने िसफ्र थोड़े से बहादरु पर भरोसा कर चुनार पर चढ़ाई कर दी। दोकोस गया होगा िक ल कर िलए हुए महाराज जयिसहं के पहुंचने की खबर िमली। चुनार काजाना छोड़ जयिसहं के इ तकबाल (अगुआनी) को गया और उनका भी इरादा अपने ही-सा सनुउनके साथ चनु ार की तरफ बढ़ा। जयिसहं की फौज ने पहुंचकर चुनार का िकला घेर िलया। िशव त की फौज ने िकले केअदं र घसु कर दरवाजा बंद कर िलया। फसील 1 पर तोप चढ़ा दी,ं और कु छ रसद का सामानकर फसील और बुज पर लड़ाई करने लगे। पदं ्रहवाँ बयान चनु ार के पास दो पहािड़य के बीच के एक नाले के िकनारे शाम के वक्त पंिडत बद्रीनाथ,रामनारायण, प नालाल, नािज़म और अहमद बठै े आपस म बात कर रहे ह। नािज़म-क्या कह हमारा मािलक तो बिह त म चला गया, तकलीफ उठाने को हम रहगये। अहमद-अभी तक इसका पता नहीं लगा िक उ ह िकसने मारा। बद्री-उ ह उनके पाप ने मारा और तमु दोन की भी बहुत ज द वही दशा होगी। कहनेके िलए तमु लोग ऐयार कहलाते हो मगर बेईमान और हरामखोर परू े दज के हो इसम कोईशक नही।ं नािज़म-क्या हम लोग बेईमान ह? बद्री-ज र, इसम भी कु छ कहना है? जब तुम अपने मािलक महाराज जयिसहं के न हुएतो िकसके होवोगे। आप भी गारत हुए, क्रू रिसहं की भी जान ली, और हमारे राजा को भी चौपटबि क कै द कराया। यही जी म आता है िक खाली जूितयां मार-मारकर तुम दोन की जान लेलं।ू

अहमद-जुबान स हालकर बात करो नहीं तो कान पकड़ के उखाड़ लंूगा! अहमद का इतना कहना था िक मारे गु से के बद्रीनाथ कापं उठे । उसी जगह1. चहारदीवार।से प थर का एक टु कड़ा उठाकर इस जोर से अहमद के िसर म मारा िक वह तुरंत जमीनसघंू कर दोजख (नक्र ) की तरफ रवाना हो गया। उसकी यह कै िफयत देख नािज़म भागा मगरबद्रीनाथ तो पहले ही से उन दोन की जान का यासा हो रहा था, कब जाने देता। बड़ा-साप थर छागे 1 म रखकर मारा िजसकी चोट से वह भी जमीन पर िगर पड़ा और प नालालवगरै ह ने पहुंचकर मारे लात के भुरता करके उसे भी अहमद के साथ क्रू र की ताबेदारी कोरवाना कर िदया। इन लोग के मरने के बाद िफर चार ऐयार उसी जगह आ बठै े और आपसम बात करने लगे। प ना-अब हमारे दरबार की झंझट दरू हुई। बद्री-महाराज को जरा भी रंज न होगा। प ना-िकसी तरह ग ी बचाने की िफक्र करनी चािहए। महाराज जयिसहं ने बेतरह आघेरा है और िबना महाराज के फौज मदै ान म िनकलकर लड़ नहीं सकती। चु नी-आिखर िकले म भी रहकर कब तक लड़गे? हम लोग के पास िसफ्र दो महीने केलायक ग ला िकले के अदं र है, इसके बाद क्या करगे। राम-यह भी मौका न िमला िक कु छ ग ला बटोर के रख लेते। बद्री-एक बात है, िकसी तरह महाराज जयिसहं को उनके ल कर से उड़ाना चािहए, अगरवह हम लोग की कै द म आ जायं तो मदै ान म िनकलकर उनकी फौज को भगाना मुि कल नहोगा।

प ना-ज र ऐसा करना चािहए, िजसका नमक खाया उसके साथ जान देना हम लोग काधमर् है। राम-हमारे राजा ने भी तो बेईमानी पर कमर बांधी है। बेचारे कंु वर वीरे द्रिसहं का क्यादोष है? चु नी-चाहे जो हो मगर हम लोग को मािलक का साथ देना ज री है। बद्री-नािजम और अहमद ये ही दोन हमारे राजा पर क्रू र ग्रह थे, सो िनकल गये। अबकीदफे ज र दोन राज म सलु ह कराऊं गा, तब वीरे द्रिसहं की चोबदारी नसीब होगी। वाह, क्याजवामं द्र और होनहार कु मार ह? प ना-अब रात भी बहुत गई, चलो कोई ऐयारी करके महाराज जयिसहं को िगर तार करऔर गु त राह से िकले म ले जाकर कै र कर। बद्री-हमने एक ऐयारी सोची है, वही ठीक होगी। प ना-वह क्या? बद्री-हम लोग चल के पहले उनके रसोइये को फांस। म उसकी शक्ल बनाकर रसोईबनाऊं और तमु लोग रसोईघर के िखदमतगार को फासं कर उनकी शक्लबना1. छागा-एक िक म का छीका (ढेलवासं ) होता है। छीके म चार तरफ डोरी रहती है मगरछागे म दो ही तरफ। एक तरफ की डोरी कलाई म पिहर लेते ह और दसू री डोरी चटु की मथामकर बीच म से घुमाकर िनशाना मारते ह।हमारे साथ काम करो। म खाने की चीज म बेहोशी की दवा िमलाकर महाराज को और बादम उन लोग को भी िखलाऊं गा जो उनके पहरे पर ह गे, बस िफर हो गया।

प ना-अ छी बात है, तमु रसोइया बनो क्य िक ब्रा मण होगे, तु हारे हाथ का महाराजजयिसहं खायगे तो उनका धमर् भी न जायगा, इसका भी ख्याल ज र होना चािहए, मगर एकबात का यान रहे िक चीज म तजे बेहोशी की दवा न पड़ने पाये। बद्री-नहीं-नही,ं क्या म ऐसा बेवकू फ हूं, क्या मुझे नहीं मालमू िक राजे लोग पहले दसू रेको िखलाकर देख लेते ह! ऐसी नरम दवा डालंगू ा िक खाने के दो घटं े बाद तक िब कु ल नमालूम पड़े िक हमने बेहोशी की दवा िमली हुई चीज खाई ह। राम-बस, यह राय पक्की हो गई, अब यहां से उठो। सोलहवाँ बयान राजा सरु े द्रिसहं भी नौगढ़ से रवाना हो दौड़ादौड़ िबना मुकाम िकये दो रोज म चुनार केपास पहुंचे। शाम के वक्त महाराज जयिसहं को खबर लगी। फतहिसहं सेनापित को जो उनकेल कर के साथ था इ तकबाल के िलए रवाना िकया। फतहिसहं की जुबानी राजा सुरे द्रिसहं ने सब हाल सनु ा। सबु ह होते-होते इनका ल करभी चुनार पहुंचा और जयिसहं के ल कर के साथ िमलकर पड़ाव डाला गया। राजा सुरे द्रिसहंने फतहिसहं को महाराज जयिसहं के पास भेजा िक आकर मलु ाकात के िलए बातचीत कर। फतहिसहं राजा सरु े द्रिसहं के खेमे से िनकल कु छ ही दरू गये थे िक महाराज जयिसहं केदीवान हरदयालिसहं सरदार को साथ िलये परेशान और बदहवास आते िदखाई पड़े िज ह देखयह अटक गये, कलेजा धाकधाक करने लगा। जब वे लोग पास आये तो पछू ा, ''क्या हाल है जोआप लोग इस तरह घबराये हुए आ रहे ह?'' एक सरदार-कु छ न पछू ो बड़ी आफत आ पड़ी! फतह-(घबराकर) सो क्या?

दसू रा सरदार-राजा साहब के पास चलो, वहीं सब-कु छ कहगे। उन सब को िलये हुए फतहिसहं राजा सुरे द्रिसहं के खेमे म आये, कायदे के मािफकसलाम िकया, बैठने के िलए हुक्म पाकर बठै गये। राजा सरु े द्रिसहं को भी इन लोग के बदहवास आने से खटु का हुआ। हाल पूछने परहरदयालिसहं ने कहा, ''आज बहुत सबेरे िकले के अंदर से तोप की आवाज आई िजसे सुनकरखबर करने के िलए म महाराज के खेमे म आया। दरवाजे पर पहरे वाल को बेहोश पड़ेदेखकर ता जबु मालमू हुआ मगर म बराबर खेमे के अंदर चला गया। अदं र जाकर देखा तोमहाराज का पलंग खाली पाया। देखते ही जी स न हो गया, पहरे वाल को देखकर किवराजजीने कहा इन लोग को बेहोशी की दवा दी गई है। तरु ंत ही कई जासूस महाराज का पता लगानेके िलए इधर-उधर भेजे गए मगर अभी तक कु छ भी खबर नहीं िमली।'' यह हाल सनु कर सरु े द्रिसहं ने जीतिसहं की तरफ देखा जो उनके बाईं तरफ बठै े हुए थ।े जीतिसहं ने कहा, ''अगर खाली महाराज गायब हुए होते तो म कहता िक कोई ऐयारिकसी दसू री तरकीब से ले गया, मगर जब कई आदमी अभी तक बेहोश पड़े ह तो िव वासहोता है िक महाराज के खान-े पीने की चीज म बेहोशी की दवा दी गई। अगर उनका रसोइयाआवे तो परू ा पता लग सकता है।'' सनु ते ही राजा सरु े द्रिसहं ने हुक्म िदया िक महाराज केरसोइए हािजर िकए जायं। कई चोबदार दौड़ गए। बहुत दरू जाने की ज रत न थी, दोन ल कर का पड़ाव साथ हीसाथ पड़ा था। चोबदार खबर लेकर बहुत ज द लौट आये िक रसोइया कोई नहीं है। उसी वक्तकई आदिमय ने आकर यह भी खबर दी िक महाराज के रसोइए और िखदमतगार ल कर केबाहर पाये गये िजनको डोली पर लादकर लोग यहां िलए आते ह। दीवान तेजिसहं ने कहा, ''सब डोिलयां बाहर रखी जायं, िसफर् एक रसोइए की डोली यहांलाई जाय।''

बेहोश रसोइया खेमे के अंदर लाया गया िजसे जीतिसहं लखलख सघंु ाकर होश म लायेऔर उससे बेहोश होने का सबब पूछा। जवाब म उसने कहा िक ''पहर रात गए हम लोग केपास एक हलवाई खोमचा िलए हुए आया जो बोलने म बहुत ही तजे और अपने सौदे की बेहदतारीफ करता था। हम लोग ने उससे कु छ सौदा खरीदकर खाया, उसी समय िसर घूमने लगा,दाम देने की भी सधु ा न रही, इसके बाद क्या हुआ कु छ मालूम नहीं।'' यह सुन दीवान जीतिसहं ने कहा, ''बस-बस, सब हाल मालूम हो गया, अब तुम अपने डरे े मजाओ।'' इसके बाद थोड़ा & सा लखलखा देकर उन सरदार को भी िबदा िकया और यह कहिदया िक इसे संघु ाकर आप उन लोग को होश म लाइए जो बेहोश ह और दीवान हरदयालिसहंको कहा िक अभी आप यहीं बिै ठए। सब आदमी िबदा कर िदए गए, राजा सुरे द्रिसहं , जीतिसहं और दीवान हरदयालिसहं रहगए। राजा सरु े द्र - (दीवान जीतिसहं की तरफ देखकर) महाराज को छु ड़ाने की कोई िफक्रहोनी चािहए। जीत - क्या िफक्र की जाय, कोई ऐयार भी यहां नहीं िजससे कु छ काम िलया जाय,तजे िसहं और देवीिसहं कु मार की खोज म गए हुए ह, अभी तक उनका भी कु छ पता नहीं। राजा - तुम ही कोई तरकीब करो। जीत - भला म क्या कर सकता हूं! मु त हुई ऐयारी छोड़ दी। िजस रोज तजे िसहं कोइस फन म होिशयार करके सरकार के नजर िकया उसी िदन सरकार ने ऐयारी करने सेताबेदार को छु ट्टी दे दी, अब िफर यह काम िलया जाता है। ताबेदार को यकीन था िक अबिजंदगी भर ऐयारी की नौबत न आयेगी, इसी ख्याल से अपने पास ऐयारी का बटु आ तक भीनहीं रखता।

राजा - तु हारा कहना ठीक है मगर इस वक्त दब जाना या ऐयारी से इनकार करनामुनािसब नहीं, और मुझे यकीन है िक चाहे तमु ऐयारी का बटु आ न भी रखते हो मगर उसकाकु छ न कु छ सामान ज र अपने साथ लाए होगे। जीत - (मु कराकर) जब सरकार के साथ ह और इस फन को जानते ह तो सामान क्यन रखगे, ितस पर सफर म! राजा - तब िफर क्या सोचते हो, इस वक्त अपनी परु ानी कारीगरी याद करो और महाराजजयिसहं को छु ड़ाओ। जीत - जो हुक्म! (हरदयालिसहं की तरफ देखकर) आप एक काम कीिजए, इन बात कोजो इस वक्त हुई ह िछपाए रिहए और फतहिसहं को लेकर शाम होने के बाद लड़ाई छे ड़दीिजए। चाहे जो हो मगर आज भर लड़ाई बंद न होने पावे यह काम आपके िज मे रहा। हरदयाल - बहुत अ छा, ऐसा ही होगा। जीत - आप जाकर लड़ाई का इंतजाम कीिजए, म भी महाराज से िबदा हो अपने डरे ेजाता हूं क्य िक समय कम और काम बहुत है। दीवान हरदयालिसहं राजा सुरे द्रिसहं से िबदा हो अपने डरे े की तरफ रवाना हुए। दीवानजीतिसहं ने फतहिसहं को बुलाकर लड़ाई के बारे म बहुत कु छ समझा & बुझा के िबदा िकयाऔर आप भी हुक्म लेकर अपने खेमे म गए। पहले पजू ा, भोजन इ यािद से छु ट्टी पाई, तबऐयारी का सामान दु त करने लगे। दीवान जीतिसहं का एक बहुत परु ाना बङु ्ढा िखदमतगार था िजसको ये बहुत मानते थे।इनका ऐयारी का सामान उसी के सपु ुद्र रहा करता था। नौगढ़ से रवाना होते दफे अपना ऐयारीका असबाब दु त करके ले चलने का इंतजाम इसी बङु ्ढे के सपु दु ्र िकया। इनको ऐयारी छोड़ेमु त हो चुकी थी मगर जब उ ह ने अपने राजा को लड़ाई पर जाते देखा और यह भी मालमू

हुआ िक हमारे ऐयार लोग कु मार की खोज म गये है, शायद कोई ज रत पड़ जाय, तब बहुत& सी बात को सोच इ ह ने अपना सब सामान दु त करके साथ ले लेना ही मुनािसबसमझा था। उसी बुङ्ढे िखदमतगार से ऐयारी का सदं कू मगं वाया ओरै सामान दु त करकेबटु ए म भरने लगे। इ ह ने बेहोशी की दवाओं का तले उतारा था, उसे भी एक शीशी म बंदकर बटु ए म रख िलया। पहर िदन बाकी रहे तक सामान दु त कर एक जमींदार की सरू तबना अपने खेमे के बाहर िनकल गये। जीतिसहं ल कर से िनकलकर िकले के दिक्खन की एक पहाड़ी की तरफ रवाना हुए औरथोड़ी दरू जाने के बाद सुनसान मदै ान पाकर एक प थर की चट्टान पर बैठ गये। बटु ए म सेकलम & दवात और कागज िनकाला और कु छ िलखने लगे िजसका मतलब यह था - ''तुम लोग की चालाकी कु छ काम न आई और आिखर म िकले के अंदर घसु ही आया।देखो क्या ही आफत मचाता हूं। तुम चार ऐयार हो और म ऐयारी नहीं जानता ितस पर भीतमु लोग मझु े िगर तार नहीं कर सकते, लानत है तु हारी ऐयारी पर।'' इस तरह के बहुत से पुरजे िलखकर और थोड़ी & सी ग द तयै ार कर बटु ए म रख ली औरिकले की तरफ रवाना हुए। पहुंचते - पहुंचते शाम हो गई, अ तु िकले के इधर - उधर घमू नेलगे। जब खबू अंधेरा हो गया, मौका पाकर एक दीवार पर जो नीची और टू टी हुई थी कमंदलगाकर चढ़ गये। अदं र स नाटा पाकर उतरे और घूमने लगे। िकले के बाहर दीवान हरदयालिसहं और फतहिसहं ने िदल खोलकर लड़ाई मचा रखी थी,दनादन तोप की आवाज आ रही थी।ं िकले की फौज बुिजयर् या मीनार पर चढ़कर लड़ रहीथी और बहुत से आदमी भी दरवाजे की तरफ खड़े घबड़ाये हुए लड़ाई का नतीजा देख रहे थे,इस सबब से जीतिसहं को बहुत कु छ मौका िमला।

उन पुरज को िज ह पहले से िलखकर बटु ए म रख छोड़ा था, इधर - उधर दीवार औरदरवाज पर िचपकाना शु िकया, जब िकसी को आते देखते हटकर िछप रहते और स नाटाहोने पर िफर अपना काम करत,े यहां तक िक सब कागज को िचपका िदया। िकले के फाटक पर लड़ाई हो रही है, िजतने अफसर और ऐयार ह सब उसी तरफ जुटे हुएह, िकसी को यह खबर नहीं िक ऐयार के िसरताज जीतिसहं िकले के अंदर आ घुसे औरअपनी ऐयारी की िफक्र कर रहे ह। वे चाहते ह िक इतने लंबे & चौड़े िकले म महाराज जयिसहंकहां कै द ह इस बात का पता लगाव और उ ह छु ड़ाव, और साथ ही िशवद त के भी ऐयारको िगर तार करके लेते चल, एक ऐयार भी बचने न पावे जो फं से हुए ऐयार को छु ड़ाने कीिफक्र करे या छु ड़ाव।े सत्रहवाँ बयान फतहिसहं सेनापित की बहादरु ी ने िकले वाल के छक्के छु ड़ा िदये। यही मालूम होता थािक अगर इसी तरह रात भर लड़ाई होती रही तो सबेरे तक िकला हाथ से जाता रहेगा औरफाटक टू ट जायेगा। तर दु म पड़े बद्रीनाथ वगैरह ऐयार इधर - उधर घबराये घमू रहे थे िकइतने म एक चोबदार ने आकर गुल & शोर मचाना शु िकया िजससे बद्रीनाथ और भी घबरागए। चोबदार िब कु ल जख्मी हो रहा था ओरै उसके चेहरे पर इतने जख्म लगे हुए थे िक खनूिनकलने से उसको पहचानना मिु कल हो रहा था। बद्री - (घबराकर) यह क्या, तमु को िकसने जख्मी िकया? चोबदार - आप लोग तो इधर के ख्याल म ऐसा भलू े ह िक और बात की कोई सुधा हीनहीं। िपछवाड़े की तरफ से कंु अर वीरे द्रिसहं के कई आदमी घुस आए ह और िकले म चारतरफ घूम - घूमकर न मालमू क्या कर रहे ह। मने एक का मकु ािबला भी िकया मगर वहबहुत ही चालाक और फु तीर्ला था, मुझे इतना जख्मी िकया िक दो घटं े तक बदहवास जमीन

पर पड़ा रहा, मुि कल से यहां तक खबर देने आया हूं। आती दफे रा ते म उसे दीवार परकागज िचपकाते देखा मगर खौफ के मारे कु छ न बोला। प ना - यह बुरी खबर सनु ने म आई! बद्री - वे लोग कै आदमी ह, तुमने देखा है? चोब - कई आदमी मालमू होते ह मगर मुझे एक ही से वा ता पड़ा था। बद्री - तुम उसे पहचान सकते हो? चोब - हां, ज र पहचान लगंू ा क्य िक मने रोशनी म उसकी सूरत बखूबी देखीहै। बद्री - म उन लोग को ढूंढने चलता हूं, तुम साथ चल सकते हो? चोब - क्य न चलगूं ा, मझु े उसने अधामरा कर डाला था, अब िबना िगर तार कराये कबचैन पड़ना है! बद्री - अ छा चलो। बद्रीनाथ, प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल चार आदमी अदं र की तरफ चले, साथ -साथ जख्मी चोबदार भी रवाना हुआ। जनाने महल के पास पहुंचकर देखा िक एक आदमीजमीन पर बदहवास पड़ा है, एक मशाल थोड़ी दरू पर पड़ी हुई है जो कु छ जल रही है, पास हीतले की कु पी भी नजर पड़ी, मालूम हो गया िक कोई मशालची है। चोबदार ने च ककर कहा,''देखो - देखो एक और आदमी उसने मारा!'' यह कहकर मशाल और कु पी झट से उठा ली औरउसी कु पी से मशाल म तले छोड़ उसके चेहरे के पास ले गया। बद्रीनाथ ने देखकर पहचानािक यह अपना ही मशालची है। नाक पर हाथ रख के देखा, समझ गये िक इसे बेहोशी कीदवा दी गई है। चोबदार ने कहा, ''आप इसे छोिड़ये, चलकर पहले उस बदमाश को ढूंिढए, म

यही मशाल िलए आपके साथ चलता हूं। कहीं ऐसा न हो िक वे लोग महाराज जयिसहं कोछु ड़ा ले जाय।ं '' बद्रीनाथ ने कहा, ''पहले उसी जगह चलना चािहए जहां महाराज जयिसहं कै द ह।'' सब कीराय यही हुई और सब उसी जगह पहुंच।े देखा तो महाराज जयिसहं कोठरी म हथकड़ी पहनेलेटे ह। चोबदार ने खूब गौर से उस कोठरी और दरवाजे को देखकर कहा, ''नहीं, वे लोग यहांतक नहीं पहुंच,े चिलए दसू री तरफ ढूंढ।'' चार तरफ ढूंढने लगे। घमू ते - घूमते दीवार औरदरवाज पर सटे हुए कई पजु िदखे िजसे पढ़ते ही इन ऐयार के होश जाते रहे। खड़े हो सोचही रहे थे िक चोबदार िच ला उठा और एक कोठरी की तरफ इशारा करके बोला, ''देखो - देखो,अभी एक आदमी उस कोठरी म घुसा है, ज र वही है िजसने मुझे जख्मी िकया था!'' यह कहउस कोठरी की तरफ दौड़ा मगर दरवाजे पर क गया, तब तक ऐयार लोग भी पहुंच गये। बद्री - (चोबदार से) चलो, अंदर चलो। चोब - पहले तमु लोग हाथ म खंजर या तलवार ले लो, क्य िक वह ज र वार करेगा। बद्री - हम लोग होिशयार ह, तुम अदं र चलो क्य िक तु हारे हाथ म मशालहै। चोब - नहीं बाबा, म अदं र नहीं जाऊं गा, एक दफे िकसी तरह जान बची, अब कौन & सीक बख्ती सवार है िक जानबझू कर भाड़ म जाऊं । बद्री - वाह रे डरपोक! इसी जीवट पर महाराज के यहां नौकरी करता है? ला मेरे हाथ ममशाल दे, मत जा अंदर! चोब - लो मशाल लो, म डरपोक सही, इतने जख्म खाये अभी डरपोक ही रह गया, अपनेको लगती तो मालमू होता, इतनी मदद कर दी यही बहुत है! इतना कह चोबदार मशाल और कु पी बद्रीनाथ के हाथ म देकर अलग हो गया। चारऐयार कोठरी के अदं र घुसे। थोड़ी दरू गये ह गे िक बाहर से चोबदार ने िकवाड़ बंद करके

जजं ीर चढ़ा दी, तब अपनी कमर से पथरी िनकाल आग झाड़कर ब ती जलाई और चौखट केनीचे जो एक छोटी & सी बा द की चुपड़ी हुई पलीती िनकाली हुई थी उसम आग लगा दी।वह ब ती बलकर सरु सरु ाती हुई घसु गई। पाठक समझ गये ह गे िक यह चोबदार साहब कौन थे। ये ऐयार के िसरताज जीतिसहंथ।े चोबदार बन ऐयार को खौफ िदलाकर अपने साथ ले आये और घमु ाते & िफराते वह जगहदेख ली जहां महाराज जयिसहं कै द थे। िफर धोखा देकर इन ऐयार को उस कोठरी म बदं करिदया िजसे पहले ही से अपने ढंग का बना रखा था। इस कोठरी के अदं र पहले ही से बेहोशी की बा द 1 पाव भर के अदं ाज कोनेम रख दी थीऔर लबं ी पलीती बा द के साथ लगा कर चौखट के बाहर िनकाल दीथी। पलीती म आग लगा और दरवाजे को उसी तरह बंद छोड़ उस जगह गये जहां महाराजजयिसहं कै द थे। वहां िब कु ल स नाटा था, दरवाजा खोल बेड़ी और हथकड़ी काटकर उ ह बाहरिनकाला और अपना नाम बताकर कहा, ''ज द यहां से चिलए।'' िजधर से जीतिसहं कमंद लगाकर िकले म आये थे उसी राह से महाराज जयिसहं कोनीचे उतारा और तब कहा, ''आप नीचे ठहिरये, मने ऐयार को भी बेहोश िकया है, एक - - एककरके कमंद म बांधाकर उन लोग को लटकाता जाता हूं आप खोलते जाइये। अतं म म भीउतरकर आपके साथ ल कर म चलंूगा।'' महाराज जयिसहं ने खशु होकर इसे मंजरू िकया।1. बेहोशी की बा द से आग लगने या मकान उड़ जाने का खौफ नहीं होता, उसम धा◌ुआंबहुत होता है और िजसके िदमाग म धा◌ुआं चढ़ जाता है वह फौरन बेहोश हो जाता है। जीतिसहं ने लौटकर उस कोठरी की जजं ीर खोली िजसम बद्रीनाथ वगरै ह चार ऐयार कोफं साया था। अपने नाक म लखलखे से तर की हुई ई डाल कोठरी के अदं र घुसे, तमाम धूएंसे भरा हुआ पाया, ब ती जला बद्रीनाथ वगरै ह बेहोश ऐयार को घसीटकर बाहर लाये और िकलेकी िपछली दीवार की तरफ ले जाकर एक - एक करके सब को नीचे उतार आप भी उतर आये।

चारो ऐयारो को एक तरफ िछपा महाराज जयिसहं को ल कर म पहुंचाया िफर कई कहार कोसाथ ले उस जगह जा ऐयार को उठवा लाए, हथकड़ी - बेड़ी डालकर खेमे म कै र कर पहरामुकरर्र कर िदया। महाराज जयिसहं और सुरे द्रिसहं गले िमले, जीतिसहं की बहुत कु छ तारीफ करके दोनराज ने कई इलाके उनको िदये, िजनकी सनद भी उसी वक्त मुहर करके उनके हवाले की गई। रात बीत गई, परू ब की तरफ से धीरे - धीरे सफे दी िनकलने लगी और लड़ाई बंद कर दीगई। अठारहवाँ बयान तजे िसहं वगरै ह ऐयार के साथ कु मार खोह से िनकलकर ितिल म की तरफ रवाना हुए।एक रात रा ते म िबताकर दसू रे िदन सबेरे जब रवाना हुए तो एक नकाबपोश सवार दरू सेिदखाई पड़ा जो कु मार की तरफ ही आ रहा था। जब इनके करीब पहुंचा, घोड़े से उतर जमीनपर कु छ रख दरू जा खड़ा हुआ। कु मार ने वहां जाकर देखा तो ितिल मी िकताब नजर पड़ीऔर एक खत पाई िजसे देख वे बहुत खशु होकर तेजिसहं से बोले - ''तेजिसहं , क्या कर, यह वनक या मेरे ऊपर बराबर अपने अहसान के बोझ डाल रही है।इसम कोई शक नहीं िक यह उसी का आदमी है तो ितिल मी िकताब मेरे रा ते म रख दरूजा खड़ा हुआ है। हाय इसके इ क ने भी मुझे िनक मा कर िदया है! देख इस खत म क्यािलखा है।'' यह कह कु मार ने खत पढ़ी : ''िकसी तरह यह ितिल मी िकताब मेरे हाथ लग गई जो तु ह देती हूं। अब ज दीितिल म तोड़कर कु मारी चदं ्रका ता को छु ड़ाओ। वह बेचारी बड़ी तकलीफ म पड़ी होगी। चनु ार

म लड़ाई हो रही है, तमु भी वहीं जाओ और अपनी जवांमदीर् िदखाकर फतह अपने नामिलखाओ। - तु हारी दासी... िवयोिगनी।'' कु मार - तेजिसहं तुम भी पढ़ लो। तेजिसहं - (खत पढ़कर) न मालूम यह वनक या मनु य है या अ सरा, कै से - कै से कामइसके हाथ से होते ह! कु मार - (ऊं ची सासं लेकर) हाय, एक बला हो तो िसर से टले! देवी - मेरी राय है िक आप लोग यहीं ठहर, म चुनार जाकर पहले सब हाल दिरया त करआता हूं। कु मार - ठीक है, अब चुनार िसफ्र पाचं कोस होगा, तमु वहां की खबर ले आओ तब हमचल क्य िक कोई बहादरु ी का काम करके हम लोग का जािहर होना यादा मनु ािसब होगा। देवीिसहं चनु ार की तरफ रवाना हुए। कु मार को रा ते म एक िदन और अटकना पड़ा,दसू रे िदन देवीिसहं लौटकर कु मार के पास आए और चनु ार की लड़ाई का हाल, महाराजजयिसहं के िगर तार होने की खबर, और जीतिसहं की ऐयारी की तारीफ कर बोले - ''लड़ाईअभी हो रही है, हमारी फौज कई दफे चढ़कर िकले के दरवाजे तक पहुंची मगर वहां अटककरदरवाजा नहीं तोड़ सकी, िकले की तोप की मार ने हमारा बहुत नकु सान िकया।'' इन खबर को सुनकर कु मार ने तेजिसहं से कहा, ''अगर हम लोग िकसी तरह िकले केअंदर पहुंचकर फाटक खोल सकते तो बड़ी बहादरु ी का काम होता।''

तजे - इसम तो कोई शक नहीं िक यह बड़ी िदलावरी का काम है, या तो िकले का फाटकही खोल दगे, या िफर जान से हाथ धोवगे। कु मार - हम लोगो के वा ते लड़ाई से बढ़कर मरने के िलए और कौन - सा मौका है? यातो चनु ार फतह करगे या बैकु ठ की ऊं ची ग ी दखल करगे, दोन हाथ ल डू ह। तेज - शाबाश, इससे बढ़कर और क्या बहादरु ी होगी, तो चिलए हम लोग भेष बदलकरिकले म घुस जाय।ं मगर यह काम िदन म नहीं हो सकता। कु मार - क्या हज्र है रात ही को सही। रात - भर िकले के अदं र ही िछपे रहगे, सबु ह जबलड़ाई खबू रंग पर आवेगी उसी वक्त फाटक पर टू ट पड़गे। सब ऊपर फसील पर चढ़े ह गे,फाटक पर सौ - पचास आदिमय म घसु कर दरवाजा खोल देना कोई बात नहीं है। देवी - कु मार की राय बहुत सही है, मगर योितषीजी को बाहर ही छोड़ देना चािहए। यो - सो क्य ? देवी - आप ब्रा मण ह, वहां क्य ब्र मह या के िलए आपको ले चल, यह काम क्षित्रय काहै, आपका नहीं। कु मार - हां योितषीजी, आप िकले म मत जाइये। यो - अगर म ऐयारी न जानता होता तो आपका ऐसा कहना मुनािसब था, मगर जोऐयारी जानता है उसके आगे जवामं दीर् और िदलावरी हाथ जोड़े खड़ी रहतीह। देवी - अ छा चिलए िफर, हमको क्या, हम तो और फायदा ही है। कु मार - फायदा क्या?


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