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chandrakanta by Babu Devki Nandan Khatri_akfunworld

Published by akfunworld1, 2017-10-31 12:11:53

Description: Read Iconic and highly appreciated thriller Hindi novel chandrakanta written by Babu Devki Nandan Khatri. It is considered one of the early and path breaking novel for thriller and fantasy genre in Hindi writing. Uploaded by akfunworld

Keywords: Hindi Pulp Fiction,Pulp Fiction,Hindi Novel,Chandrakanta,Devki Nandan Khatri,akfunworld

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योगी - (वनक या की तरफ इशारा करके ) इस लड़की ने तु हारी बहुत मदद की है औरतुमने तथा तु हारे ऐयार ने इसे देखा भी है। इसका हाल और कौन - कौन जानता है औरतु हारे ऐयार के िसवाय इसे और िकस - िकस ने देखा है? कु मार - मेरे और फतहिसहं के िसवाय इ ह आज तक िकसी ने नहीं देखा। आज ये ऐयारलोग इनको देख रहे ह। वनक या - एक दफे ये (तजे िसहं की तरफ बताकर) मझु से िमल गए ह, मगर शायद वहहाल इ ह ने आपसे न कहा हो, क्य िक मने कसम दे दी थी। यह सुनकर कु मार ने तेजिसहं की तरफ देखा। उ ह ने कहा, ''जी हा,ं यह उस वक्त की बातहै जब आपने मझु से कहा था िक आजकल तुम लोग की ऐयारी म उ ली लग गई है। तबमने कोिशश करके इनसे मुलाकात की और कहा िक 'अपना परू ा हाल मझु से जब तक नकहगी म न मानगंू ा और आपका पीछा न छोड़ूगं ा।' तब इ ह ने कहा िक 'एक िदन वह आवेगािक चंद्रका ता और मै कु मार की कहलाऊं गी मगर इस वक्त तुम मेरा पीछा मत करो नहीं तोतु हीं लोग के काम का हजर् होगा।' तब मने कहा िक 'अगर आप इस बात की कसम खाय िकचदं ्रका ता कु मार को िमलगी तो इस वक्त म यहां से चला जाऊं ।' इ ह ने कहा िक 'तमु भी इसबात की कसम खाओ िक आज का हाल तब तक िकसी से न कहोगे जब तक मेरा औरकु मार का सामना न हो जाय।' आिखर इस बात की हम दोन ने कसम खाई। यही सबब है िकपछू ने पर भी मने यह सब हाल िकसी से नहीं कहा, आज इनका और आपका पूरी तौर सेसामना हो गया इसिलए कहता हूं।'' योगी - (कु मार से) अ छा तो इस लड़की को िसवाय तु हारे तथा ऐयार के और िकसी नेनहीं देखा, मगर इसका हाल तो तु हारे ल कर वाले जानते ह गे िक आजकल कोई नई औरतआई है जो कु मार की मदद कर रही है।

कु मार - नहीं, यह हाल भी िकसी को मालमू नहीं, क्य िक िसवाय ऐयार के म और िकसीसे इनका हाल कहता ही न था और ऐयार लोग िसवाय अपनी मडं ली के दसू रे को िकसी बातका पता क्य देने लगे। हा,ं इनके नकाबपोश सवार को हमारे ल कर वाल ने कई दफे देखा हैऔर इनका खत लेकर भी जब - जब कोई हमारे पास गया तब हमारे ल कर वाल ने देखकरशायद कु छ समझा हो। योगी - इसका कोई हजर् नहीं, अ छा यह बताओ िक तु हारी जुबानी राजा सरु े द्रिसहं औरजयिसहं ने भी कु छ इसका हाल सुना है? कु मार - उ ह ने तो नहीं सुना, हा,ं तेजिसहं के िपता जीतिसहं जी से मने सब हाल ज र कहिदया था, शायद उ ह ने मेरे िपता से कहा हो। योगी - नहीं, जीतिसहं यह सब हाल तु हारे िपता से कभी न कहगे। मगर अब तुम इसबात का खबू ख्याल रखो िक वनक या ने जो - जो काम तु हारे साथ िकए ह उनका हालिकसी को न मालमू हो। कु मार - म कभी न कहूंगा, मगर आप यह तो बताव िक इनका हाल िकसी से न कहने मक्या फायदा सोचा है? अगर म िकसी से कहूंगा तो इसम इनकी तारीफ ही होगी। योगी - तुम लोग के बीच म चाहे इसकी तारीफ हो मगर जब यह हाल इसके मां - बापसुनगे तो उ ह िकतना रंज होगा? क्य िक एक बड़े घर की लड़की का पराये मद्र से िमलना औरपत्र - यवहार करना तथा याह का सदं ेश देना इ यािद िकतने ऐब की बात है। कु मार - हा,ं यह तो ठीक है। अ छा, इनके मां - बाप कौन ह और कहां रहतहे । योगी - इसका हाल भी तमु को तब मालमू होगा जब राजा सरु े द्रिसहं और महाराजजयिसहं यहां आवगे और कु मारी चदं ्रका ता उनके हवाले कर दी जायगी।

कु मार - तो आप मझु े हुक्म दीिजए िक म इसी वक्त उन लोग को लाने के िलए यहां सेचला जाऊं । योगी - यहां से जाने का भला यह कौन - सा वक्त है। क्या शहर का मामला है? रात -भर ठहर जाओ, सुबह को जाना, रात भी अब थोड़ी ही रह गई है, कु छ आराम करलो। कु मार - जसै ी आपकी मजीर्। गमीर् बहुत थी इस वजह से उसी मदै ान म कु मार ने सोना पसदं िकया। इन सब के सोनेका इंतजाम योगीजी के हुक्म से उसी वक्त कर िदया गया। इसके बाद योगीजी अपने कमरेकी तरफ रवाना हुए और वनक या भी एक तरफ को चली गई। थोड़ी - सी रात बाकी थी, वह भी उन लोग को बातचीत करते बीत गई। अभी सूरज नहींिनकला था िक योगीजी अके ले िफर कु मार के पास आ मौजूद हुए और बोले, ''म रात को एकबात कहना भलू गया था सो इस वक्त समझाए देता हूं। जब राजा जयिसहं इस खोह म आनेके िलए तैयार हो जायं बि क तु हारे िपता और जयिसहं दोन िमलकर इस खोह के दरवाजेतक आ जायं, तब पहले तुम उन लोग को बाहर ही छोड़कर अपने ऐयार के साथ यहां आकरहमसे िमल जाना, इसके बाद उन लोग को यहां लाना, और इस वक्त नान - पजू ा से छु ट्टीपाकर तब यहां से जाओ।'' कु मार ने ऐसा ही िकया, मगर योगी की आिखरी बात से इनको औरभी ता जुब हुआ िक हम पहले क्य बलु ाया। कु छ खाने का सामान हो गया। कु मार और उनके ऐयार को िखला - िपलाकर योगी नेिबदा कर िदया। दोहराके िलखने की कोई ज रत नहीं, खोह म घूमते - िफरते कंु अर वीरे द्रिसहं और उनकेऐयार िजस तरह इस बाग तक आये थे उसी तरह इस बाग से दसू रे और दसू रे से तीसरे महोते सब लोग खोह के बाहर हुए और एक घने पेड़ के नीचे सबो को बैठा देवीिसहं कु मार केिलए घोड़ा लाने नौगढ़ चले गये।

थोड़ा िदन बाकी था जब देवीिसहं घोड़ा लेकर कु मार के पास पहुंचे, िजस पर सवार होकरकंु अर वीरे द्रिसहं अपने ऐयार के साथ नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। नौगढ़ पहुंचकर अपने िपता से मुलाकात की और महल म जाकर अपनी माता से िमले।अपना कु ल हाल िकसी से नहीं कहा, हा,ं प नालाल वगरै ह की जुबानी इतना हाल इनको िमलािक कोई जािलमखां इन लोग का दु मन पदै ा हुआ है िजसने िवजयगढ़ म कई खनू िकए हऔर वहां की िरयाया उसके नाम से कापं रही है, पिं डत बद्रीनाथ उसको िगर तार करने गये ह,उनके जाने के बाद यह भी खबर िमली है िक एक आफतखां नामी दसू रा शख्स पैदा हुआ हैिजसने इस बात का इि तहार दे िदया है िक फलाने रोज बद्रीनाथ का िसर लेकर महल मपहुंचूगं ा, देखंू मझु े कौन िगर तार करता है। इन सब खबर को सनु कर कंु अर वीरे द्रिसहं , तजे िसहं , देवीिसहं और योितषीजी बहुतघबराये और सोचने लगे िक िजस तरह हो िवजयगढ़ पहुंचना चािहए क्य िक अगर ऐसे वक्तम वहां पहुंचकर महाराज जयिसहं की मदद न करगे और उन शतै ान के हाथ से वहां कीिरयाया को न बचावगे तो कु मारी चदं ्रका ता को हमेशा के िलए ताना मारने की जगह िमलजायगी और हम उसके सामने मंुह िदखाने लायक भी न रहगे। इसके बाद यह भी मालूम हुआ िक जीतिसहं पंद्रह िदन की छु ट्टी लेकर कहीं गये ह। इसखबर ने तेजिसहं को परेशान कर िदया। वह इस सोच म पड़ गये िक उनके िपता कहां गये,क्य िक उनकी बेरादरी म कहीं कु छ काम न था जहां जात,े तब इस बहाने से छु ट्टी लेकर क्यगये? तजे िसहं ने अपने घर म जाकर अपनी मां से पछू ा िक हमारे िपता कहां गये ह! िजसकेजवाब म उस बेचारी ने कहा, ''बेटा, क्या ऐयार के घर की औरत इस लायक होती ह िक उनकेमािलक अपना ठीक - ठीक हाल उनसे कहा कर!''

इतना ही सुनकर तजे िसहं चपु हो रहे। दसू रे िदन राजा सरु े द्रिसहं के पूछने पर तजे िसहंने इतना कहा िक ''हम लोग कु मारी चंद्रका ता को खोजने के िलए खोह म गये थे, वहां एकयोगी से मुलाकात हुई िजसने कहा िक अगर महाराज सुरे द्रिसहं और महाराज जयिसहं कोलेकर यहां आओ तो म चंद्रका ता को बुलाकर उसके बाप के हवाले कर दं।ू इसी सबब से हमलोग आपको और महाराज जयिसहं को लेने आये ह।'' राजा सुरे द्रिसहं ने खुश होकर कहा, ''हम तो अभी चलने को तयै ार ह मगर महाराजजयिसहं तो ऐसी आफत म फं स गये ह िक कु छ कह नहीं सकत।े पिं डत बद्रीनाथ यहां से गयेह, देख क्या होता है। तुमने तो वहां का हाल सनु ा ही होगा!'' तजे - म सब हाल सुन चकु ा हूं, हम लोग को वहां पहुंचकर मदद करना मुनािसब है। सरु े द्रिसहं - म खुद कहने को था। कु मार की क्या राय है, वे जायगे या नही?ं तेज - आप खदु जानते ह िक कु मार काल से भी डरने वाले नही,ं वह जािलमखां क्याचीज है! राजा - ठीक है, मगर िकसी वीर पु ष का मकु ाबला करना हम लोग का धम्र है और चोरतथा डाकु ओं या ऐयार का मुकाबला करना तुम लोग का काम है, क्या जाने वह िछपकर कहींकु मार ही पर घात कर बैठे ! तेज - वीर और बहादरु से लड़ना कु मार का काम है सही, मगर दु ट, चोर, डाकू या औरिकसी को भी क्या मजाल है िक हम लोग के रहते कु मार का बाल भी बाकं ा कर जाय 1 राजा - हम तो मान के आगे जान कोई चीज नहीं समझते, मगर दु ट घाितय से बचेरहना भी धमर् है। िसवाय इसके कु मार के वहां गए िबना कोई हज्र भी नहीं है, अ तु तुम लोगजाओ और महाराज जयिसहं की मदद करो। जब जािलमखां िगर तर हो जाय तो महाराज कोसब हाल कह - सुनकर यहां लेते आना, िफर हम भी साथ होकर खोह म चलगे।

राजा सरु े द्रिसहं की मजीर् कु मार को इस वक्त िवजयगढ़ जाने देने की नहीं समझकरऔर राजा से बहुत िजद करना भी बुरा ख्याल करके तजे िसहं चुप हो रहे। अके ले ही िवजयगढ़जाने के िलए महाराज से हुक्म िलया और उनके खास हाथ की िलखी हुई खत का खलीतालेकर िवजयगढ़ की तरफ रवाना हुए। कु छ दरू जाकर दोपहर की धपू घने जंगल के पेड़ की झुरमटु म काटी और ठंडे हो रवानाहुए। िवजयगढ़ पहुंचकर महल म आधी रात को ठीक उस वक्त पहुंचे जब बहुत से जवामं दकी भीड़ बटु री हुई थी और हर एक आदमी चौक ना होकर हर तरफ देख रहा था। यकायकपरू ब की छत से धामाधाम छ: आदमी कू दकर बीच बीच भीड़ म आ खड़े हुए, िजनके आगे -आगे बद्रीनाथ का िसर हाथ म िलये आफतखां था। तेजिसहं को अभी तक िकसी ने नहीं देखा था, इस वक्त इ ह ने ललकारकर कहा - ''पकड़ोइन नालायक को, अब देखते क्या हो?'' इतना कहकर आप भी कमदं फै लाकर उन लोग कीतरफ फका, तब तक बहुत से आदमी टू ट पड़।े उन लोग के हाथ म जो गद मौजदू थे, जमीनपर पटकने लगे, मगर कु छ नहीं, वहां तो मामला ही ठंडा था, गद क्या था धोखे की टट्टी थी। कु छकरते - धारते न बन पड़ा और सब - के - सब िगर तार हो गये। अब तजे िसहं को सब ने देखा, आफतखां ने भी इनकी तरफ देखा और कहा - ''तजे , मेमचेबद्री।'' इतना सनु ते ही तेजिसहं ने आफतखां का हाथ पकड़कर इनको सब से अलग कर िलयाऔर हाथ - परै खोल गले से लगा िलया। सब गलु मचाने लगे - ''हां - हां यह क्या करते हो,यह तो बड़ा भारी दु ट है, इसी ने तो बद्रीनाथ को मारा है। देखो, इसी के हाथ म बेचारे बद्रीनाथका िसर है, तु ह क्या हो गया िक इसके साथ नेकी करते हो?'' पर तेजिसहं ने घड़ु ककर कहा -''चुप रहो, कु छ खबर भी है िक यह कौन ह? बद्रीनाथ को मारना क्या खेल हो गया है?'' तजे िसहं की इ जत को सब जानते थे। िकसी की मजाल न थी िक उनकी बात काटता।आफतखां को उनके हवाले करना ही पड़ा, मगर बाकी पाचं आदिमय को खूब मजबतू ी सेबाधं ा।

आफतखां का हाथ भी तेजिसहं ने छोड़ िदया और साथ - साथ िलये हुए महाराजजयिसहं की तरफ चले। चार तरफ धूम मची थी, जािलमखां और उसके सािथय के िगर तारहो जाने पर भी लोग कांप रहे थ,े महाराज भी दरू से सब तमाशा देख रहे थ।े तेजिसहं कोआफतखां के साथ अपनी तरफ आते देख घबरा गये। यान से तलवार खीचं िलया। तेजिसहंने पकु ारकर कहा, ''घबराइये नहीं, हम दोन आपके दु मन नहीं ह। ये जो हमारे साथ ह औरिज ह आप कु छ और समझे हुए ह, वा तव म पंिडत बद्रीनाथ ह।'' यह कह आफतखां की दाढ़ीहाथ से पकड़कर झटक दी िजससे बद्रीनाथ कु छ पहचाने गए। आप महाराज जयिसहं का जी िठकाने हुआ, पछू ा, ''बद्रीनाथ उनके साथ क्य थ?े '' बद्री - महाराज अगर म उनका साथी न बनता तो उन लोग को यहां तक लाकरिगर तार कौन कराता? महा - तु हारे हाथ म यह िसर िकसका लटक रहा है? बद्री - मोम का, िब कु ल बनावटी। अब तो धूम मच गई िक जािलमखां को बद्रीनाथ ऐयार ने िगर तार कराया। इनके चारतरफ भीड़ लग गई, एक पर एक टू टा पड़ता था। बड़ी ही मिु कल से बद्रीनाथ उस झु ड सेअलग िकये गए। जािलमखां वगरै ह को भी मालमू हो गया िक आफतखां कृ पािनधान बद्रीनाथही थ,े िज ह ने हम लोग को बेढब धोखा देकर फं साया, मगर इस वक्त क्या कर सकते थ?े हाथ- परै सभी के बंधे थे, कु छ जोर नहीं चल सकता था, लाचार होकर बद्रीनाथ को गािलयां देनेलगे। सच है जब आदमी की जान पर आ बनती है तब जो जी म आता है बकता है। बद्रीनाथ ने उनकी गािलय का कु छ भी ख्याल न िकया बि क उन लोग की तरफ देखकरहंस िदया। इनके साथ बहुत से आदमी बि क महाराज तक हंस पड़।े

महाराज के हुक्म से सब आदमी महल के बाहर कर िदये गये, िसफर् थोड़े से मामूलीउमरा लोग रह गए और महल के अदं र ही कोठरी म हाथ - पैर जकड़ जािलमखां और उसकेसाथी बंद कर िदये गये। पानी मगं वाकर बद्रीनाथ का हाथ - परै धलु वाया गया, इसके बाददीवानखाने म बठै कर बद्रीनाथ से सब खुलासा हाल जािलमखां के िगर तार करने का पछू नेलगे िजसको सनु ने के िलए तजे िसहं भी याकु ल हो रहे थ।े बद्रीनाथ ने कहा, ''महाराज, इस दु ट जािलमखां से िमलने की पहली तरकीब मने यह कीिक अपना नाम आफतखां रखकर इि तहार िदया और अपने िमलने का िठकाना ऐसी बोली मिलखा िक िसवाय उसके या ऐयार के िकसी को समझ म न आवे। यह तो म जानता ही थािक यहां इस वक्त कोई ऐयार नहीं है जो मेरी इस िलखावट को समझगे ा।'' महा - हां ठीक है, तुमने अपने िमलने का िठकाना 'टेटी - चोटी' िलखा था, इसका क्या अथर्है? बद्री - ऐयारी बोली म 'टेटी - चोटी' भयानक नाले को कहते ह। इसके बाद बद्रीनाथ ने जािलमखां से िमलने का और गद का तमाशा िदखला के धोखे कागद उन लोग के हवाले कर भलु ावा दे महल म ले आने का पूरा - परू ा हाल कहा, िजसकोसनु कर महाराज बहुत ही खुश हुआ और इनाम म बहुत - सी जागीर बद्रीनाथ को देना चाहा,मगर उ ह ने उसको लेने से िब कु ल इंकार िकया और कहा िक िबना मािलक की आज्ञा के मआपसे कु छ नहीं ले सकता, उनकी तरफ से म िजस काम पर मुकरर्र िकया गया था जहां तकहो सका उसे परू ा कर िदया। इसी तरह के बहुत से उज्र बद्रीनाथ ने िकये िजसको सनु महाराज और भी खुश हुए औरइरादा कर िलया िक िकसी और मौके पर बद्रीनाथ को बहुत कु छ दगे जबिक वे लेने से इंकारन कर सकगे।

बात ही बात म सबेरा हो गया, तेजिसहं और बद्रीनाथ महाराज से िबदा हो दीवानहरदयालिसहं के घर आये। चौदहवाँ बयान सबु ह को खुशी - खुशी महाराज ने दरबार िकया। तजे िसहं और बद्रीनाथ भी बड़ी इ जतसे बठै ाये गए। महाराज के हुक्म से जािलमखां और उसके चार साथी दरबार म लाये गये जोहथकड़ी - बेड़ी से जकड़े हुए थ।े हुक्म पा तजे िसहं जािलमखां से पछू ने लगे : तेजिसहं - क्य जी, तु हारा नाम ठीक - ठीक जािलमखां है या और कु छ? जािलम - इसका जवाब म पीछे दंगू ा, पहले यह बताइये िक आप लोग के यहां ऐयार कोमार डालने का कायदा है या नहीं? तेज - हमारे यहां क्या िहदं ु तान भर म कोई धािमर् ठ िहदं ू राजा ऐयार को कभी जान सेन मारेगा। हां वह ऐयार जो अपने कायदे के बाहर काम करेगा ज र मारा जायगा। जािलम - तो क्या हम लोग मारे जायगे? तेज - यह खशु ी महाराज की मगर क्या तमु लोग ऐयार हो जो ऐसी बात पछू ते हो? जािलम - हां हम लोग ऐयार ह। तजे - राम - राम, क्य ऐयारी का नाम बदनाम करते हो। तुम तो परू े डाकू हो, ऐयारी सेतुम लोग का क्या वा ता? जािलम - हम लोग कई पु त से ऐयार होते आ रहे ह कु छ आज नये ऐयार नहीं बने। तजे - तु हारे बाप - दादा शायद ऐयार हुए ह , मगर तुम लोग तो खासे दु ट डाकु ओं मसे हो।

जािलम - जब आपने हमारा नाम डाकू ही रखा है, तो बचने की कौन उ मीद हो सकतीहै! तजे - जो हो खरै यह बताओ िक तुम हो कौन? जािलम - जब मारे ही जाना है तो नाम बताकर बदनामी क्य ल और अपना पूरा हालभी िकसिलए कह? हां इसका वादा करो िक जान से न मारोगे तो कह। तेज - यह वादा कभी नहीं हो सकता और अपना ठीक - ठीक हाल भी तमु को झख मारके कहना होगा। जािलम - कभी नहीं कहगे। तेज - िफर जूते से तु हारे िसर की खबर खूब ली जायेगी। जािलम - चाहे जो हो। बद्री - वाह रे जतू ीखोर। जािलम - (बद्रीनाथ से) ओ ताद, तमु ने बड़ा धोखा िदया, मानता हूं तमु को! बद्री - तु हारे मानने से होता ही क्या है, आज नहीं तो कल तुम लोग के िसर धाड़ सेअलग िदखाई दगे। जािलम - अफसोस कु छ करने न पाए! तेजिसहं ने सोचा िक इस बकवाद से कोई मतलब न िनकलेगा। हजार िसर पटकगे परजािलमखां अपना ठीक - ठीक हाल कभी न कहेगा, इससे बेहतर है िक कोई तरकीब की जाय,अ तु कु छ सोचकर महाराज से अज्र िकया, ''इन लोग को कै दखाने म भेजा जाय िफर जैसा

होगा देखा जायगा, और इनम से वह एक आदमी (हाथ से इशारा करके ) इसी जगह रखाजाय।'' महाराज के हुक्म से ऐसा ही िकया गया। तजे िसहं के कहे मतु ािबक उन डाकु ओं म से एक को उसी जगह छोड़ बाकी सब कोकै दखाने की तरफ रवाना िकया। जाती दफे जािलमखां ने तजे िसहं की तरफ देख के कहा,''ओ ताद, तमु बड़े चालाक हो। इसम कोई शक नहीं िक चहे रे से आदमी के िदल का हाल खूबपहचानते हो, अ छे डरपोक को चुन के रख िलया, अब तु हारा काम िनकल जायगा।'' तजे िसहं ने मु कराकर जवाब िदया, ''पहले इसकी ददु र्शा कर ली जाय िफर तमु लोग भीएक - एक करके इसी जगह लाए जाओगे।'' जािलमखां और उसके तीन साथी तो कै दखाने की तरफ भेज िदए गए, एक उसी जगहरह गया। हकीकत म वह बहुत डरपोक था। अपने को उसी जगह रहते और सािथय को दसू रीजगह जाते देख घबरा उठा। उसके चहे रे से उस वक्त और भी बदहवासी बरसने लगी जबतजे िसहं ने एक चोबदार को हुक्म िदया िक ''अगं ीठी म कोयला भरकर तथा दो - तीन लोहेकी सींख ज दी से लाओ, िजनके पीछे लकड़ी की मूठ लगी हो।'' दरबार म िजतने थे सब हैरान थे िक तजे िसहं ने लोहे की सलाख और अगं ीठी क्यमगं ाई और उस डाकू की तो जो कु छ हालत थी िलखना मिु कल है। चार - पाचं लोहे के सींखचे और कोयले से भरी हुई अगं ीठी लाई गई। तेजिसहं ने एकआदमी से कहा, ''आग सलु गाओ और इन लोहे की सीखं को उसम गरम करो।'' अब उस डाकूसे न रहा गया। उसने डरते हुए पछू ा, ''क्य तजे िसहं , इन सींख को तपाकर क्या करोगे?'' तेज - इनको लाल करके दो तु हारी दोन आंख म, दो दोन कान म और एक सलाखमंुह खोलकर पेट के अदं र पहुंचाया जायगा।

डाकू - आप लोग तो रहमिदल कहलाते ह, िफर इस तरह तकलीफ देकर िकसी को मारनाक्या आप लोग की रहमिदली म बट्टा न लगावगे ा? तजे - (हंसकर) तमु लोग को छोड़ना बड़े संगिदल का काम है, जब तक तुम जीते रहोगेहजार की जान लोगे, इससे बेहतर है िक तु हारी छु ट्टी कर दी जाय। िजतनी तकलीफ देकरतमु लोग की जान ली जायगी उतना ही डर तु हारे शतै ान भाइय को होगा। डाकू - तो क्या अब िकसी तरह हमारी जान नहीं बच सकती? तेज - िसफ्र एक तरह से बच सकती है। डाकू - कै से? तजे - अगर अपने सािथय का हाल ठीक - ठीक कह दो तो अभी छोड़ िदए जाओगे। डाकू - म ठीक - ठीक हाल कह दंगू ा। तेज - हम लोग कै से जानगे िक तुम स चे हो? डाकू - सािबत कर दंगू ा िक म स चा हूं। तेज - अ छा कहो। डाकू - सुनो कहता हूं। इस वक्त दरबार म भीड़ लगी हुई थी। तजे िसहं ने आग की अगं ीठी क्य मंगाई? ये लोहेकी सलाइय िकस काम आवगी? यह डाकू अपना ठीक - ठीक हाल कहेगा या नहीं? यह कौनहै? इ यािद बात को जानने के िलए सब की तबीयत घबड़ा रही थी। सभी की िनगाह उस डाकूके ऊपर थीं। जब उसने कहा िक 'म ठीक - ठीक हाल कह दंगू ा' तब और भी लोग का ख्यालउसी की तरफ जम गया और बहुत से आदमी उस डाकू की तरफ कु छ आगे बढ़ आये।

उस डाकू ने अपने सािथय का हाल कहने के िलए मु तदै होकर महुं खोला ही था िकदरबारी भीड़ म से एक जवान आदमी यान से तलवार खींचकर उस डाकू की तरफ झपटाऔर इस जोर से एक हाथ तलवार का लगाया िक उस डाकू का िसर धाड़ से अलग होकर दरूजा िगरा, तब उसी खनू भरी तलवार को घमु ाता और लोग को जख्मी करता वह बाहर िनकलगया। उस घबड़ाहट म िकसी ने भी उसे पकड़ने का हौसला न िकया, मगर बद्रीनाथ कब कनेवाले थ,े साथ ही वह भी उसके पीछे दौड़।े बद्रीनाथ के जाने के बाद सैकड़ आदमी उस तरफ दौड़,े लेिकन तेजिसहं ने उसका पीछान िकया। वे उठकर सीधो उस कै दखाने की तरफ दौड़ गए िजसम जािलमखां वगरै ह कै द िकयेगये थ।े उनको इस बात का शक हुआ िक कहीं ऐसा न हो िक उन लोग को िकसी ने ऐयारीकरके छु ड़ा िदया हो। मगर नही,ं वे लोग उसी तरह कै द थ।े तजे िसहं ने कु छ और पहरे काइंतजाम कर िदया और िफर तुरंत लौटकर दरबार म चले आये। पहले दरबार म िजतनी भीड़ लगी हुई थी अब उससे चौथाई रह गई। कु छ तो अपनीमजीर् से बद्रीनाथ के साथ दौड़ गए, िकतन ने महाराज का इशारा पाकर उसका पीछा िकयाथा। तजे िसहं के वापस आने पर महाराज ने पूछा, ''तुम कहां गए थ?े '' तजे - मुझे यह िफक्र पड़ गई थी िक कहीं जािलमखां वगैरह तो नहीं छू ट गए, इसिलएकै दखाने की तरफ दौड़ा गया था। मगर वे लोग कै दखाने म ही पाए गए। महा - देख बद्रीनाथ कब तक लौटते ह और क्या करके लौटते ह? तेज - बद्रीनाथ बहुत ज द आवगे क्य िक दौड़ने म वे बहुत ही तजे ह। आज महाराज जयिसहं मामलू ी वक्त से यादा देर तक दरबार म बैठे रहे। तेजिसहं नेकहा भी - ''आज दरबार म महाराज को बहुत देर हुई?'' िजसका जवाब महाराज ने यह िदया िक

''जब तक बद्रीनाथ लौटकर नहीं आते या उनका कु छ हाल मालूम न हो ले हम इसी तरह बैठेरहगे।'' पंद्रहवाँ बयान दो घंटे बाद दरबार के बाहर से शोरगुल की आवाज आने लगी। सब का ख्याल उसी तरफगया। एक चोबदार ने आकर अज्र िकया िक पंिडत बद्रीनाथ उस खूनी को पकड़े िलए आ रहेह। उस खनू ी को कमंद से बांधो साथ िलए हुए पंिडत बद्रीनाथ आ पहुंचे। महा - बद्रीनाथ, कु छ यह भी मालमू हुआ िक यह कौन है? बद्री - कु छ नहीं बताता िक कौन है और न बताएगा। महा - िफर? बद्री - िफर क्या? मुझे तो मालूम होता हे◌ै िक इसने अपनी सरू त बदल रखी है। पानी मंगवाकर उसका चेहरा धुलवाया गया, अब तो उसकी दसू री ही सरू त िनकल आई। भीड़ लगी थी, सब म खलबली पड़ गई, मालमू होता था िक इसे सब कोई पहचानते ह।महाराज च क पड़े और तजे िसहं की तरफ देखकर बोले, ''बस - बस मालमू हो गया, यह तोनािज़म का साला है, म ख्याल करता हूं िक जािलमखां वगैरह जो कै द ह वे भी नािज़म औरअहमद के िर तदे ार ही ह गे। उन लोग को िफर यहां लाना चािहए।'' महाराज के हुक्म से जािलमखां वगैरह भी दरबार म लाए गए। बद्री - (जािलमखां की तरफ देखकर) अब तमु लोग पहचाने गये िक नािज़म और अहमदके िर तेदार हो, तु हारे साथी ने बता िदया।

जािलमखां इसका कु छ जवाब िदया ही चाहता था िक वह खनू ी (िजसे बद्रीनाथ अभीिगर तार करके लाए थ)े बोल उठा, ''जािलमखा,ं तमु बद्रीनाथ के फे र म मत पड़ना। यह झूठे ह,तु हारे साथी को हमने कु छ कहने का मौका नहीं िदया, वह बड़ा ही डरपोक था, मने उसे दोजखम पहुंचा िदया। हम लोग की जान चाहे िजस ददु ्रशा से जाय मगर अपने महुं से अपना कु छहाल कभी न कहना चािहए।'' जािलम - (जोर से) ऐसा ही होगा। इन दोन की बातचीत से महाराज को बड़ा क्रोध आया। आंख लाल हो गईं, बदन कापं नेलगा। तजे िसहं और बद्रीनाथ की तरफ देखकर बोले, ''बस हमको इन लोग का हाल मालमूकरने की कोई ज रत नहीं, चाहे जो हो, अभी, इसी वक्त, इसी जगह, मेरे सामने इन लोग कािसर धाड़ से अलग कर िदया जाये। हुक्म की देर थी, तमाम शहर इन डाकु ओं के खून का यासा हो रहा था, उछल -उछलकर लोग ने अपने - अपने हाथ की सफाई िदखाई। सब की लाश उठाकर फक दी गईं।महाराज उठ खड़े हुए। तजे िसहं ने हाथ जोड़कर अज्र िकया - ''महाराज, मुझे अभी तक कहने का मौका नहीं िमला िक यहां िकस काम के िलए आयाथा और न अभी बात कहने का वक्त है।'' महा - अगर कोई ज री बात हो तो मेरे साथ महल म चलो! तजे - बात तो बहुत ज री है मगर इस समय कहने को जी नहीं चाहता, क्य िक महाराजको अभी तक गु सा चढ़ा हुआ है और मेरी भी तबीयत खराब हो रही है, मगर इस वक्तइतना कह देना मनु ािसब समझता हूं िक िजस बात के सुनने से आपको बेहद खुशी होगी मवही बात कहूंगा।

तजे िसहं की आिखरी बात ने महाराज का गु सा एकदम ठं डा कर िदया और उनके चहे रेपर खुशी झलकने लगी। तजे िसहं का हाथ पकड़ िलया और महल म ले चले, बद्रीनाथ भीतेजिसहं के इशारे से साथ हुए। तजे िसहं और बद्रीनाथ को साथ िलए हुए महाराज अपने खास कमरे म गए और कु छ देरबठै ने के बाद तेजिसहं के आने का कारण पूछा। सब हाल खुलासा कहने के बाद तेजिसहं ने कहा - ''अब आप और महाराज सरु े द्रिसहंखोह म चल और िसद्धनाथ योगी की कृ पा से कु मारी को साथ लेकर खशु ी - खशु ी लौट आव।'' तजे िसहं की बात से महाराज को िकतनी खुशी हुई इसका हाल िलखना मिु कल है।लपककर तेजिसहं को गले लगा िलया और कहा, ''तमु अभी बाहर जाकर हरदयालिसहं कोहमारे सफर की तयै ारी करने का हुक्म दो और तुम लोग भी नान - पजू ा करके कु छ खाओ -पीओ। म जाकर कु मारी की मां को यह खशु खबरी सनु ाताहूं। आज के िदन का तीन िह सा तर ुद - रंज, गु से और खुशी म गजु र गया, िकसी के मंहुम एक दाना अ न नहीं गया था। तजे िसहं और बद्रीनाथ महाराज से िबदा हो दीवान हरदयालिसहं के मकान पर गये औरमहाराज ने महल म जाकर कु मारी चंद्रका ता की मां को कु मारी से िमलने की उ मीद िदलाई। अभी घंटे भर पहले वह महल और ही हालत म था और अब सब के चहे रे पर हंसीिदखाई देने लगी। होते - होते यह बात हजार घर म फै ल गयी िक महाराज कु मारी चदं ्रका ताको लाने के िलए जाते ह। यह भी िन चय हो गया िक आज थोड़ी - सी रात रहते महाराज जयिसहं नौगढ़ कीतरफ कू च करगे। सोलहवाँ बयान

पाठक, अब वह समय आ गया िक आप भी चंद्रका ता और कंु अर वीरे द्रिसहं को खुशहोते देख खशु ह । यह तो आप समझते ही ह गे िक महाराज जयिसहं िवजयगढ़ से रवानाहोकर नौगढ़ जायगे और वहां से राजा सुरे द्रिसहं और कु मार को साथ लेकर कु मारी से िमलनेकी उ मीद म ितिल मी खोह के अदं र जायगे। आपको यह भी याद होगा िक िसद्धनाथ योगीने तहखाने (खोह) से बाहर होते वक्त कु मार को कह िदया था िक जब अपने िपता औरमहाराज जयिसहं को लेकर इस खोह म आना तो उन लोग को खोह के बाहर छोड़कर पहलेतुम आकर एक दफे हमसे िमल जाना। उ हीं के कहे मतु ािबक कु मार करगे। खरै इन लोगको तो आप अपने काम म छोड़ दीिजए और थोड़ी देर के िलए आखं बंद करके हमारे साथउस खोह म चिलए और िकसी कोने म िछपकर वहां रहने वाल की बातचीत सिु नये। शायदआप लोग के जी का भ्रम यहां िनकल जाय और दसू रे तीसरे भाग के िब कु ल भेद की बातभी सनु ते ही सुनते खुल जायं, बि क कु छ खशु ी भी हािसल हो। कंु अर वीरे द्रिसहं और महाराज जयिसहं वगरै ह तो आज वहां तक पहुंचते नहीं मगर आपइसी वक्त हमारे साथ उस तहखाने (खोह) म बि क उस बाग म पहुंिचए िजसम कु मार नेचदं का ता की त वीर का दरबार देखा था और िजसम िसद्धनाथ योगी और वनक या सेमुलाकात हुई थी। आप उसी बाग म पहुंच गये। देिखए अ त होते हुए सूय्र भगवान अपनी सदुं र लालिकरण से मनोहर बाग के कु छ ऊं चे - ऊं चे पेड़ के ऊपरी िह स को चमका रहे ह। कु छ -कु छ ठं डी हवा खशु बदू ार फू ल की महक चार तरफ फै ला रही है। देिखए इस बाग के बीच वालेसंगममरर् के चबतू रे पर तीन पलगं रखे हुए ह, िजनके ऊपर खबू सूरत ल िडयां अ छे - अ छेिबछौने िबछा रही ह; खास करके बीच वाले जड़ाऊ पलगं की सजावट पर सब का यादा यानहै। उधर देिखये वह घास का छोटा - सा रमना कै से खुशनुमा बना हुआ है। उसम की हरी -हरी दबू कै से खबू सूरती से कटी हुई है, यकायक स ज मखमली फश्र म और इसम कु छ भेदनहीं मालूम होता, और देिखए उसी स ज दबू के रमने के चार तरफ रंग - िबरंगे फू ल से खूबगुथे हुए सीधो - सीधो गलु महदी के पेड़ की कतार प टन की तरह कै सी शोभा दे रही है।

उसके बगल की तरफ ख्याल कीिजए, चमेली का फू ला हुआ तख्ता क्या ही रंग जमा रहाहै और कै से घने पेड़ ह िक हवा को भी उसके अंदर जाने का रा ता िमलना मिु कल है, औरइन दोन तख्त के बीच वाला छोटा - सा खूबसूरत बंगला क्या मजा दे रहा है तथा उसकेचार तरफ नीचे से ऊपर तक मालती की लता कै सी घनी चढ़ी हुई और फू ल भी िकतने यादेफू ले हुए ह। अगर जी चाहे तो िकसी एक तरफ खड़े होकर िबना इधर - उधर हटे हाथ भरका चगं ेर भर लीिजये। पि चम तरफ िनगाह दौड़ाइये, फू ली हुई महदी की टट्टी के नीचे जंगलीरंग - िबरंगे प त वाले हाथ डढ़े हाथ ऊं चे दरख्त (करोटन) की चौहरी कतार क्या भलीमालूम होती है, और उसके बंदु कीदार, सुखीर् िलए हुए सफे द लकीर वाले, स ज धािरय वाले, लबं ेघूंघरवाले बाल की तरह ऐठं े हुए प तो क्या कै िफयत िदखा रहे ह और इधर-उधर हट के दोनतरफ ितरकोिनया तख्त की भी रंगत देिखये जो िसफर् हाथ भर ऊं चे रंगीन िछटकती हुईधािरय वाले प तो के जंगली पेड़ (कौिलयस) के गमल से पहाड़ीनुमा सजाये हुए ह औरिजनके चार तरफ रंग - िबरंगे देशी फू ल िखले हुए ह। अब तो हमारी िनगाह इधर - उधर और खबू सरू त क्यािरयो, फू ल और छू टते हुए फ वारका मजा नहीं लेती, क्य िक उन तीन औरत के पास जाकर अटक गयी है, जो महदी के प तोतोड़कर अपनी झोिलय म बटोर रही ह। यहां िनगाह भी अदब करती है, क्य िक उन तीनऔरत म से एक तो हमारी उप यास की ताज वनक या है और बाकी दोन उसकी यारीसिखयां ह। वनक या की पोशाक तो सफे द है, मगर उसकी दोन सिखय की स ज और सुख।र् वे तीन महदी की पि तयां तोड़ चकु ीं, अब इस सगं ममर्र के चबूतरे की तरफ चली आरही ह। शायद इ हीं तीन पलगं पर बठै ने का इरादा हो। हमारा सोचना ठीक हुआ। वनक या महदी की पि तयां जमीन पर उझलकर थकावट कीमदु ्रा म िबचले जड़ाऊ पलगं पर लेट गयी और दोन सिखयां अगल - बगल वाले दोन पलं ग

पर बैठ गयीं। पाठक, हम और आप भी एक तरफ चपु चाप खड़े होकर इन तीन की बातचीतसनु । वनक या - ओफ, थकावट मालूम होती है! स ज कपड़े वाली सखी - घमू ने म क्या कम आया है? सखु ्र कपड़े वाली सखी - (दसू री सखी से) क्या तू भी थक गयी है? स ज सखी - म क्य थकने लगी? दस - दस कोस का रोज चक्कर लगाती रही, तब तोथकी ही नहीं। सखु ्र सखी - ओफ, उन िदन भी िकतना दौड़ना पड़ा था। कभी इधर तो कभी उधर, कभीजाओ तो कभी आओ। स ज - आिखर कु मार के ऐयार हम लोग का पता नहीं ही लगा सके । सुखर् - खदु योितषीजी की अक्ल चकरा गयी जो बड़े र माल और नजमू ी कहलाते थ,ेदसू र की कौन कहे! वनक या - योितषीजी के रमल को तो इन यतं ्र ने बेकार कर िदया, जो िसद्धनाथ बाबाने हम लोग के गले म डाल िदया है और अभी तक िजसे उतारने नहीं देते। स ज - मालमू नहीं इस तावीज (यंत्र) म कौन - सी ऐसी चीज है जो रमल को चलनेनहीं देती! वनक या - मने यही बात एक दफे िसद्धनाथ बाबाजी से पछू ी थी, िजसके जवाब म वेबहुत कु छ बक गये। मझु े सब तो याद नहीं िक क्या - क्या कह गये हां, इतना याद है िकरमल िजस धातु से बनाई जाती है और रमल के साथी ग्रह, रािश, नक्षत्र, तार वगरै ह के असरपड़ने वाली िजतनी धातुएं ह, उन सब को एक साथ िमलाकर यह यंत्र बनाया गया है इसिलए

िजसके पास यह रहेगा, उसके बारे म कोई नजमू ी या योितषी रमल के जिरये से कु छ नहींदेख सके गा। सुख्र - बेशक इसम बहुत कु छ असर है। देिखये म सरू जमुखी बनकर गयी थी, तब भी योितषीजी रमल से न बता सके िक यह ऐयार है। वनक या - कु मार तो खूब ही छके ह गे? सखु ्र - कु छ न पूिछये, वे बहुत ही घबराये िक यह शतै ान कहां से आयी और क्या शत्रकरा के अब क्या चाहती है? स ज - उसी के थोड़ी देर पहले म यादा बनकर खत का जवाब लेने गयी थी औरदेवीिसहं को चले ा बनाया था। यह कोई नहीं कह सका िक इसे म पहचानता हूं। सखु र् - यह सब तो हुई मगर िक मत भी कोई भारी चीज है। देिखये जब िशवद त केऐयार ने ितिल मी िकताब चरु ायी थी और जगं ल म ले जाकर जमीन के अंदर गाड़ रहे थ,ेउसी वक्त इि तफाक से हम लोग ने पहुंचकर दरू से देख िलया िक कु छ गाड़ रहे ह, उन लोगके जाने के बाद खोदकर देखा तो ितिल मी िकताब है। वनक या - ओफ, बड़ी मुि कल से िसद्धनाथ ने हम लोग को घमू ने का हुक्म िदया था,ितस पर भी कसम दे दी थी िक दरू - दरू से कु मार को देखना, पास मत जाना। सखु र् - इसम तु हारा ही फायदा था, बेचारे िसद्धनाथ कु छ अपने वा ते थोड़े ही कहते थ।े वनक या - यह सब सच है, मगर क्या कर िबना देखे जी जो नहीं मानता। स ज - हम दोन को तो यही हुक्म दे िदया था िक बराबर घमू - घूमकर कु मार कीमदद िकया करो। मािलन पी बद्रीनाथ से कै सा बचाया था।

सखु ्र - क्या ऐयार लोग पता लगाने की कम कोिशश करते थ?े मगर यहां तो ऐयार केगु घटं ाल िसद्धनाथ हरदम मदद पर थे, उनके िकए हो क्या सकता था? देखो गगं ाजी म नाव केपास आते वक्त तेजिसहं , देवीिसहं और योितषीजी कै सा छके , हम लोग ने सभी कपड़े तक लेिलए। स ज - हम लोग तो जान - बझू कर उन लोग को अपने साथ लाये ही थे। वनक या - चाहे वे लोग िकतने ही तेज ह , मगर हमारे िसद्धनाथ को नहीं पा सकते। हा,ंउन लोग म तेजिसहं बड़ा चालाक है! सुख्र - तेजिसहं बहुत चालाक ह तो क्या हुआ, मगर हमारे िसद्धनाथ तेजिसहं के भी बापह। वनक या - (हंसकर) इसका हाल तो तुम ही जानो। सखु ्र - आप तो िद लगी करती ह। स ज - हकीकत म िसद्धनाथ ने कु मार और उनके ऐयार को बड़ा भारी धोखा िदया। उनलोग को इस बात का ख्याल तक न आया िक इस खोह वाले ितिल म को िसद्धनाथ बाबा हमलोग के हाथ फतह करा रहे ह। सखु ्र - जब हम लोग अदं र से इस खोह का दरवाजा बंद कर ितिल म तोड़ रहे थे तबतेजिसहं बद्रीनाथ की गठरी लेकर इसम आए थ,े मगर दरवाजा बदं पाकर लौट गये। वनक या - बड़े ही घबराये ह गे िक अंदर से इसका दरवाजा िकसने बदं कर िदया? सखु र् - ज र घबराये ह गे। इसी म क्या और कई बात म हम लोग ने कु मार और उनकेऐयार को धोखा िदया था। देिखये म उधर सरू जमखु ी बनकर कह आयी िक िशवद त को छु ड़ा

दंगू ी और इधर इस बात की कसम िखलाकर िक कु मार से दु मनी न करेगा, िशवद त को छोड़िदया। उन लोग ने भी ज र सोचा होगा िक सरू जमखु ी कोई भारी शतै ान है। वनक या - मगर िफर भी हरामजादे िशवद त ने धोखा िदया और कु मार से दु मनी करनेपर कमर बाधं ी, उसके कसम का कोई एतबार नहीं। सखु ्र - इसी से िफर हम लोग ने िगर तार भी तो कर िलया और ितिल मी िकताबपाकर िफर कु मार को दे दी। हा,ं क्रू रिसहं ने एक दफे हम लोग को पहचान िलया था। मनेसोचा िक अब अगर यह जीता बचा तो सब भंडा फू ट जायगा, बस लड़ ही तो गयी। आिखर मेरेहाथ से उसकी मौत िलखी थी मारा गया। स ज - उस मुए को धुन सवार थी िक हम ही ितिल म फतह करके खजाना ले ल। वनक या - मुझको तो इसी बात की खुशी है यह खोह वाला ितिल म मेरे हाथ से फतहहुआ। सखु ्र - इसम काम ही िकतना था, ितस पर िसद्धनाथ बाबा की मदद! वनक या - खरै एक बात तो है। सत्रहवाँ बयान अपनी जगह पर दीवान हरदयालिसहं को छोड़ तेजिसहं और बद्रीनाथ को साथ लेकरमहाराज जयिसहं िवजयगढ़ से नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। साथ म िसफर् पांच सौ आदिमयका झमेला था। एक िदन रा ते म लगा, दसू रे िदन नौगढ़ के करीब पहुंचकर डरे ा डाला। राजा सरु े द्रिसहं को महाराज जयिसहं के पहुंचने की खबर िमली। उसी वक्त अपनेमुसाहब और सरदार को साथ ले इ तकबाल के िलए गये और अपने साथ शहर म आये।

महाराज जयिसहं के िलए पहले से ही मकान सजा रखा था, उसी म उनका डरे ा डलवायाऔर याफत के िलए कहा, मगर महाराज जसिसहं ने याफत से इंकार िकया और कहा िक''कई वजह से म आपकी याफत मंजरू नहीं कर सकता, आप मेहरबानी करके इसके िलएिजद न कर बि क इसका सबब भी न पूछ िक याफत से क्य इनकार करता हूं।'' राजा सुरे द्रिसहं इसका सबब समझ गए और जी म बहुत खुश हुए। रात के वक्त कंु अर वीरे द्रिसहं और बाकी के ऐयार लोग भी महाराज जयिसहं से िमले।कु मार को बड़ी खुशी के साथ महाराज ने गले लगाया और अपने पास बठै ाकर ितिल म काहाल पछू ते रहे। कु मार ने बड़ी खूबसूरती के साथ ितिल म का हाल बयान िकया। रात को ही यह राय पक्की हो गयी िक सबेरे सरू ज िनकलने के पहले ितिल मी खोह मिसद्धनाथ बाबा से िमलने के िलए रवाना ह गे। उसी मुतािबक दसू रे िदन तार की रोशनी रहतेही महाराज जयिसहं , राजा सुरे द्रिसहं , कंु अर वीरे द्रिसहं , तजे िसहं , देवीिसहं , पिं डत बद्रीनाथ,प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल वगरै ह हजार आदमी की भीड़भाड़ लेकर ितिल मीतहखाने की तरफ रवाना हुए। तहखाना बहुत दरू न था, सरू ज िनकलते तक उस खोह(तहखाने) के पास पहुंचे। कंु अर वीरे द्रिसहं ने महाराज जयिसहं और राजा सरु े द्रिसहं से हाथ जोड़कर अज्र िकया,''िजस वक्त िसद्धनाथ योगी ने मझु े आप लोग को लाने के िलए भेजा था उस वक्त यह भीकह िदया था िक 'जब वे लोग इस खोह के पास पहुंच जायं तो तब अगर हुक्म द तो तमुउन लोग को छोड़कर पहले अके ले आकर हमसे िमल जाना।' अब आप कह तो योगीजी के कहेमतु ािबक पहले म उनसे जाकर िमल आऊं ।'' महाराज जयिसहं और राजा सरु े द्रिसहं ने कहा, ''योगीजी की बात ज र माननी चािहए,तमु जाओ उनसे िमलकर आओ, तब तक हमारा डरे ा भी इसी जगं ल म पड़ताहै।''

कंु अर वीरे द्रिसहं अके ले िसफ्र तजे िसहं को साथ लेकर खोह म गये। िजस तरह हम पहलेिलख आए ह उसी तरह खोह का दरवाजा खोल कई कोठिरय , मकान और बाग म घमू ते हुएदोन आदमी उस बाग म पहुंचे िजसम िसद्धनाथ रहते थे या िजसम कु मारी चदं ्रका ता कीत वीर का दरबार कु मार ने देखा था। बाग के अदं र पैर रखते ही िसद्धनाथ योगी से मलु ाकात हुई जो दरवाजे के पास पहले हीसे खड़े कु छ सोच रहे थ।े कंु अर वीरे द्रिसहं और तेजिसहं को आते देख उनकी तरफ बढ़े औरपुकार के बोले, ''आप लोग आ गए ?'' पहले दोन ने दरू से प्रणाम िकया और पास पहुंचकर उनकी बात का जवाब िदया : कु मार - आपके हुक्म के मतु ािबक महाराज जयिसहं और अपने िपता को खोह के बाहरछोड़कर आपसे िमलने आया हूं। िसद्धनाथ - बहुत अ छा िकया जो उन लोग को ले आये, आज कु मारी चंद्रका ता से आपलोग ज र िमलोगे। तजे - आपकी कृ पा है तो ऐसा ही होगा। िसद्धनाथ - कहो और तो सब कु शल है? िवजयगढ़ और नौगढ़ म िकसी तरह का उ पाततो नहीं हुआ था। तजे - (ता जुब से उनकी तरफ देखकर) हां उ पात तो हुआ था, कोई जािलमखां नामीदोन राजाओं का दु मन पैदा हुआ था। िसद्धनाथ - हां यह तो मालमू है, बेशक पंिडत बद्रीनाथ अपने फन म बड़ा ओ ताद है,अ छी चालाकी से उसे िगर तार िकया। खबू हुआ जो वे लोग मारे गये, अब उनके संगी -सािथय का दोन राज से दु मनी करने का हौसला न पड़गे ा। आओ टहलते - टहलते हमलोग बात कर।

कु मार - बहुत अ छा। तेज - जब आपको यह सब मालूम है तो यह भी ज र मालमू होगा िक जािलमखां कौनथा? िसद्धनाथ - यह तो नहीं मालमू िक वह कौन था मगर अंदाज से मालूम होता है िकशायद नािज़म और अहमद के िर तेदार म से कोई होगा। कु मार - ठीक है जो आप सोचते ह वही होगा। िसद्धनाथ - महाराज िशवद त तो जगं ल म चले गये? कु मार - जी हा,ं वे तो हमारे िपता से कह गए ह िक अब तप या करगे। िसद्धनाथ - जो हो मगर दु मन का िव वास कभी नहीं करना चािहए। कु मार - क्या वह िफर दु मनी पर कमर बांध गे? िसद्धनाथ - कौन िठकाना! कु मार - अब हुक्म हो तो बाहर जाकर अपने िपता और महाराज जयिसहं को ले आऊं । िसद्धनाथ - हां मगर पहले यह तो सुन लो िक हमने तुमको उन लोग से पहले क्यबलु ाया। कु मार - किहये। िसद्धनाथ - कायदे की बात यह है िक िजस चीज को जी बहुत चाहता है अगर वह खोगयी हो और बहुत मेहनत करने या बहुत हैरान होने पर यकायक ता जुब के साथ िमल जाय,तो उसका चाहने वाला उस पर इस तरह टू टता है जैसे अपने िशकार पर भूखा बाज। यह हमजानते ह िक चदं ्रका ता और तुमम बहुत यादा महु बत है, अगर यकायक दोन राजाओं के

सामने तुम उसे देखोगे या वह तु ह देखेगी तो ता जबु नहीं िक उन लोग के सामने तुमसेया कु मारी चदं ्रका ता से िकसी तरह की बेअदबी हो जाय या जोश म आकर तमु उसके पासही जा खड़े हो तो भी मनु ािसब न होगा। इसिलए मेरी राय है िक उन लोग के पहले ही तुमकु मारी से मलु ाकात कर लो। आओ हमारे साथ चले आओ। अहा, इस वक्त तो कु मार के िदल की हुई! मु त के बाद िसद्धनाथ बाबा की कृ पा से आजउस कु मारी चदं ्रका ता से मुलाकात होगी िजसके वा ते िदन - रात परेशान थ,े राजपाट िजसकीएक मुलाकात पर यौछावर कर िदया था, जान तक से हाथ धो बैठे थे। आज यकायक उससेमलु ाकात होगी - सो भी ऐसे वक्त पर जब िकसी तरह का खटु का नहीं, िकसी तरह का रंज याअफसोस नहीं, कोई दु मन बाकी नही।ं ऐसे वक्त म कु मार की खशु ी का क्या कहना! कलेजाउछलने लगा। मारे खुशी के िसद्धनाथ योगी की बात का जवाब तक न दे सके और उनके पीछे- पीछे रवाना हो गए। थोड़ी दरू कमरे की तरफ गए ह गे िक एक ल डी फू ल तोड़ती हुई नजर पड़ी िजसेबलु ाकर िसद्धनाथ ने कहा, ''तू अभी चदं ्रका ता के पास जा और कह िक कंु अर वीरे द्रिसहं तमु सेमलु ाकात करने आ रहे ह, तुम अपनी सिखय के साथ अपने कमरे म जाकर बैठो।'' यह सुनते ही वह ल डी दौड़ती हुई एक तरफ चली गई और िसद्धनाथ कु मार तथा तेजिसहंको साथ ले बाग म इधर- धर घूमने लगे। कंु अर वीरे द्रिसहं और तजे िसहं दोन अपनी -अपनी िफक्र म लग गए। तेजिसहं को चपला से िमलने की बड़ी खशु ी थी। दोन यह सोचनेलगे िक िकस हालत म मलु ाकात होगी, उससे क्या बातचीत करगे, क्या पछू गे, वह हमारीिशकायत करेगी तो क्या जवाब दगे? इसी सोच म दोन ऐसे लीन हो गये िक िफर िसद्धनाथयोगी से बात न की, चुपचाप बहुत देर तक योगीजी के पीछे - पीछे घूमते रह गये। घूम - िफरकर इन दोन को साथ िलए हुए िसद्धनाथ योगी उस कमरे के पास पहुंचेिजसम कु मारी चंद्रका ता की त वीर का दरबार देखा था। वहां पर िसद्धनाथ ने कु मार की तरफदेखकर कहा :

''जाओ इस कमरे म कु मारी चदं ्रका ता और उसकी सिखय से मलु ाकात करो, म तब तकदसू रा काम करता हूं।'' कंु अर वीरे द्रिसहं उस कमरे म अंदर घुसे। दरू से कु मारी चंद्रका ता को चपला और चंपाके साथ खड़े दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देखा। देखते ही कंु वर वीरे द्रिसहं कु मारी की तरफ झपटे और चंद्रका ता कु मार की तरफ, अभीएक - दसू रे से कु छ दरू ही थे िक दोन जमीन पर िगरकर बेहोश हो गए। तेजिसहं और चपला की भी आपस म टकटकी बंधा गई। बेचारी चपं ा कंु अर वीरे द्रिसहंऔर कु मारी चदं ्रका ता की यह दशा देख दौड़ी हुई दसू रे कमरे म गई और हाथ म बेदमु क केअक्र से भरी हुई सरु ाही और दसू रे हाथ म सूखी िचकनी िमट्टी का ढेला लेकर दौड़ी हुई आई। दोन के मंुह पर अकर् का छीटं ा िदया और थोड़ा - सा अक्र उस िमट्टी के ढेले पर डालहलका लखलखा बनाकर दोन को सघंु ाया। कु छ देर बाद तेजिसहं और चपला की भी टकटकी टू टी और ये भी कु मार और चंद्रका ताकी हालत देख उनको होश म लाने की िफक्र करने लगे। कंु अर वीरे द्रिसहं और चदं ्रका ता दोन होश म आए, दोन एक - दसू रे की तरफ देखनेलगे, मंहु से बात िकसी के नहीं िनकलती थी। क्या पछू , कौन - सी िशकायत कर, िकस जगहसे बात उठाव, दोन के िदल म यही सोच था। पेट से बात िनकलती थी मगर गले म आकर क जाती थी, बात की भरावट से गला फू लता था, दोन की आखं डबडबा आई थीं बि क आसं ूकी बदंू बाहर िगरने लगी।ं घंट बीत गये, देखा - देखी म ऐसे लीन हुए िक दोन को तनोबदन की सधु ा न रही।कहां ह, क्या कर रहे ह, सामने कौन है, इसका ख्याल तक िकसी को नहीं।

कंु अर वीरे द्रिसहं और कु मारी चंद्रका ता के िदल का हाल अगर कु छ मालमू है तोतजे िसहं और चपला को, दसू रा कौन जाने, कौन उनकी महु बत का अंदाजा कर सके , सो वे दोनभी अपने आपे म नहीं थ।े हां, बेचारी चपं ा इन लोगो का हद दज तक पहुंचा हुआ प्रेम देखकरघबरा उठी, जी म सोचने लगी िक कहीं ऐसा न हो िक इसी देखा - देखी म इन लोग कािदमाग िबगड़ जाय। कोई ऐसी तरकीब करनी चािहए िक िजससे इनकी यह दशा बदले औरआपस म बातचीत करने लग। आिखर कु मारी का हाथ पकड़ चपं ा बोली - ''कु मारी, तुम तो कहती थीं िक कु मार िजस रोज िमलगे उनसे पूछू ं गी िक वनक यािकसका नाम रखा था? वह कौन औरत है? उससे क्या वादा िकया है? अब िकसके साथ शादीकरने का इरादा है? क्या वे सब बात भलू गईं, अब इनसे न कहोगी?'' िकसी तरह िकसी की लौ तभी तक लगी रहती है जब तक कोई दसू रा आदमी िकसीतरह की चोट उसके िदमाग पर न दे और उसके यान को छे ड़कर न िबगाड़े इसीिलये योिगयको एकांत म बठै ना कहा है। कंु अर वीरे द्रिसहं और कु मारी चंद्रका ता की महु बत बाजा नथी, वे दोन एक प हो रहे थ;े िदल ही िदल म अपनी जुदाई का सदमा एक ने दसू रे से कहाऔर दोन समझ गए मगर िकसी पास वाले को मालूम न हुआ, क्य िक जबु ान दोन की बदंथी। हां चपं ा की बात ने दोन को च का िदया, दोन की चार आखं जो िमल - जलु कर एक होरही थीं िहल - डोलकर नीचे की तरफ हो गईं और िसर नीचा िकए हुए दोन कु छ - कु छबोलने लगे। क्या जाने वे दोन क्या बोलते थे और क्या समझत,े उनकी वे ही जान। बेिसर -पैर की टू टी - फू टी पागल की - सी बात कौन सनु े, िकसके समझ म आए। न तो कु मारीचंद्रका ता को कु मार से िशकायत करते बनी और न कु मार उनकी तकलीफ पूछ सके । वे दोन पहर आमने - सामने बठै े रहते तो शायद कहीं जबु ान खलु ती, मगर यहां दो घंटेबाद िसद्धनाथ योगी ने दोन को िफर अलग कर िदया। ल डी ने बाहर से आकर कहा, ''कु मार,आपको िसद्धनाथ बाबाजी ने बहुत ज द बुलाया है, चिलए देर मत कीिजए।''

कु मार की यह मजाल न थी िक िसद्धनाथ योगी की बात टालते, घबराकर उसी वक्तचलने को तैयार हो गए। दोन के िदल की िदल ही म रह गई। कु मारी चंद्रका ता को उसी तरह छोड़ कु मार उठ खड़े हुए, कु मारी को कु छ कहा ही चाहतेथ,े तब तक दसू री ल डी ने पहुंचकर ज दी मचा दी। आिखर कंु अर वीरे द्रिसहं और तेजिसहंउस कमरे के बाहर आए। दरू से िसद्धनाथ बाबा िदखाई पड़े िज ह ने कु मार को अपने पासबुलाकर कहा - ''कु मार, हमने तुमको यह नहीं कहा था िक िदन भर चंद्रका ता के पास बैठे रहो। दोपहरहुआ चाहती है, िजन लोग को खोह के बाहर छोड़ आए हो वे बेचारे तु हारी राह देखते ह गे।'' कु मार - (सरू ज की तरफ देखकर) जी हां िदन तो... बाबा - िदन तो क्या? कु मार - (सकपकाये से होकर) देर तो ज र कु छ हो गई, अब हुक्म हो तो जाकर अपनेिपता और महाराज जयिसहं को ज दी से ले आऊं ? बाबा - हां जाओ उन लोग को यहां ले आओ। मगर मेरी तरफ से दोन राजाओं को कहदेना िक इस खोह के अदं र उ हीं लोग को अपने साथ लाय जो कु मारी चंद्रका ता को देखसक या िजसके सामने वह हो सके । कु मार - बहुत अ छा। बाबा - जाओ अब देर न करो। कु मार - प्रणाम करता हूं। बाबा - इसकी कोई ज रत नहीं, क्य िक आज ही तमु िफर लौटोगे।

तेज - द डवत। बाबा - तुमको तो ज म भर द डवत करने का मौका िमलेगा, मगर इस वक्त इस बातका ख्याल रखना िक तुम लोग की जबानी कु मारी से िमलने का हालखोह के बाहर वाले नसुन और आती वक्त अगर िदन थोड़ा रहे तो आज मत आना। तेज - जी नहीं हम लोग क्य कहने लगे! बाबा - अ छा जाओ। दोन आदमी िसद्धनाथ बाबा से िबदा हो उसी मालमू ी राह से घमू ते - िफरते खोह के बाहरआए। अठारहवाँ बयान िदन दोपहर से कु छ यादे जा चकु ा था। उस वक्त तक कु मार ने नान - पजू ा कु छनहीं की थी। ल कर म जाकर कु मार राजा सरु े द्रिसहं और महाराज जयिसहं से िमले और िसद्धनाथयोगी का संदेशा िदया। दोन ने पूछा िक बाबाजी ने तमु को सबसे पहले क्य बुलाया था? इसकेजवाब म जो कु छ मुनािसब समझा कहकर दोन अपने - अपने डरे े म आए और नान - पजू ाकरके भोजन िकया। राजा सुरे द्रिसहं तथा महाराज जयिसहं एकांत म बैठकर इस बात की सलाह करने लगेिक हम लोग अपने साथ िकस - िकस को खोह के अंदर ले चल। सरु े द्र - योगीजी ने कहला भेजा है िक उ हीं लोग को अपने साथ खोह म लाओ िजनकेसामने कु मारी हो सके ।

जयिसहं - हम, आप, कु मार और तजे िसहं तो ज र ही चलगे। बाकी िजस - िजसको आपचाह ले चल। सरु े द्र - बहुत आदिमय को साथ ले चलने की कोई ज रत नहीं हा,ं ऐयार को ज र लेचलना चािहए क्य िक इन लोग से िकसी िक म का पदार् रह नहीं सकता, बि क ऐयार से पदार्रखना ही मुनािसब नही।ं जयिसहं - आपका कहना ठीक है, इन ऐयार के िसवाय और कोई इस लायक नहीं िकिजसे अपने साथ खोह म ले चल! बातचीत और राय पक्की करते िदन थोड़ा रह गया, सरु े द्रिसहं ने तजे िसहं को उसी जगहबुलाकर पछू ा िक ''यहां से चलकर बाबाजी के पास पहुंचने तक राह म िकतनी देर लगती है?''तेजिसहं ने जवाब िदया, ''अगर इधर - उधर ख्याल न करके सीधो ही चले चल तो पांच - छ:घड़ी म उस बाग तक पहुंचगे िजसम बाबाजी रहते ह, मगर मेरी राय इस वक्त वहां चलने कीनहीं है क्य िक िदन बहुत थोड़ा रह गया है और इस खोह म बड़े बेढब रा ते से चलना होगा।अगर अंधेरा हो गया तो एक कदम आगे चल नहीं सकगे।'' कु मारी को देखने के िलए महाराज जयिसहं बहुत घबरा रहे थे मगर इस वक्त तजे िसहंकी राय उनको कबलू करनी पड़ी और दसू रे िदन सबु ह को खोह म चलने की ठहरी। उ नीसवाँ बयान बहुत सबेरे महाराज जयिसहं , राजा सुरे द्रिसहं और कु मार अपने कु ल ऐयार को साथ लेखोह के दरवाजे पर आये। तजे िसहं ने दोन ताले खोले िज ह देख महाराज जयिसहं औरसरु े द्रिसहं बहुत हैरान हुए। खोह के अदं र जाकर तो इन लोग की और ही कै िफयत हो गयी,ता जुब भरी िनगाह से चार तरफ देखते और तारीफ करते थ।े

घुमाते - िफराते कई ता जुब की चीज को िदखाते और कु छ हाल समझात,े सब कोसाथ िलए हुए तेजिसहं उस बाग के दरवाजे पर पहुंचे िजसम िसद्धनाथ रहते थे। इन लोग केपहुंचने के पहले ही से िसद्धनाथ इ तकबाल (अगवु ानी) के िलए वार पर मौजदू थ।े तेजिसहं ने महाराज जयिसहं और सुरे द्रिसहं को उं गली के इशारे से बताकर कहा, ''देिखयेिसद्धनाथ बाबा दरवाजे पर खड़े ह।'' दोन राजा चाहते थे िक ज दी से पास पहुंचकर बाबाजी को द डवत कर मगर इसकेपहले ही बाबाजी ने पुकारकर कहा, ''खबरदार, मुझे कोई द डवत न करना नहीं तो पछताओगेऔर मुलाकात भी न होगी।'' इरादा करते रह गये, िकसी की मजाल न हुई िक द डवत करता। महाराज जयिसहं औरराजा सुरे द्रिसहं हैरान थे िक बाबाजी ने द डवत करने से क्य रोका। पास पहुंचकर हाथिमलाना चाहा, मगर बाबाजी ने इसे भी मजं रू न करके कहा, ''महाराज, म इस लायक नही,ंआपका दजा्र मुझसे बहुत बड़ा है।'' सरु े द्र - साधुओं से बढ़कर िकसी का दजार् नहीं हो सकता। बाबाजी - आपका कहना बहुत ठीक है, मगर आपको मालमू नहीं िक म िकस तरह कासाधु हूं। सरु े द्र - साधु चाहे िकसी तरह का हो पूजने ही योग्य है। बाबाजी - िकसी तरह का हो, मगर साधु हो तब तो! सुरे द्र - तो आप कौन ह? बाबाजी - कोई भी नहीं।

जय - आपकी बात ऐसी ह िक कु छ समझ ही म नहीं आतीं और हर बात ता जबु ,तर ुद, सोच और घबराहट बढ़ाती है। बाबाजी - (हंसकर) अ छा आइये इस बाग म चिलए। सब को अपने साथ िलए िसद्धनाथ बाग के अंदर गये। पाठक, घड़ी - घड़ी बाग की तारीफ करना तथा हर एक गुल - बूटे और पि तय कीकै िफयत िलखना मुझे मंजरू नहीं, क्य िक इस छोटे से ग्रथं को शु से इस वक्त तक मुख्तसरही म िलखता चला आया हूं। िसवाय इसके इस खोह के बाग कौन बड़े लबं े - चौड़े ह िजनकेिलए कई प ने कागज के बरबाद िकए जाएं, लेिकन इतना कहना ज री है िक इस खोह मिजतने बाग ह चाहे छोटे भी हो मगर सभी की सजावट अ छी है और फू ल के िसवाय पहाड़ीखुशनमु ा पि तय की बहार कहीं बढ़ी - चढ़ी है। महाराज जयिसहं , राजा सरु े द्रिसहं , कु मार वीरे द्रिसहं और उनके ऐयार को साथ िलएघमू ते हुए बाबाजी उसी दीवानखाने म पहुंचे िजसम कु मारी का दरबार कु मार ने देखा थाबि क ऐसा क्य नहीं कहते िक अभी कल ही िजस कमरे म कु मार खास कु मारी चदं ्रका ता सेिमले थ।े िजस तरह की सजावट आज इस दीवानखाने की है, इसके पहले कु मार ने नहीं देखी थी।बीच म एक कीमती ग ी िबछी हुई थी, बाबाजी ने उसी पर राजा सुरे द्रिसहं , महाराज जयिसहंऔर कंु अर वीरे द्रिसहं को िबठाकर उनके दोन तरफ दज - ब - दज ऐयार को बठै ाया औरआप भी उ हीं लोग के सामने एक मगृ छाला पर बठै गये जो पहले ही िबछा हुआ था, इसकेबाद बातचीत होने लगी। बाबाजी - (महाराज जयिसहं और राजा सुरे द्रिसहं की तरफ देखकर) आप लोग कु शल सेतो ह।

दोन राजा - आपकी कृ पा से बहुत आनदं है, और आज तो आपसे िमलकर बहुतप्रस नता हुई। बाबाजी - आप लोग को यहां तक आने म तकलीफ हुई, उसे माफ कीिजयेगा। जयिसहं - यहां आने के ख्याल ही से हम लोग की तकलीफ जाती रही। आपकी कृ पा नहोती और यहां तक आने की नौबत न पहुंचती तो न मालूम कब तक कु मारी चदं ्रका ता केिवयोग का द:ु ख हम लोग को सहना पड़ता। बाबा - (मु कराकर) अब कु मारी की तलाश म आप लोग तकलीफ न उठावगे। जयिसहं - आशा है िक आज आपकी कृ पा से कु मारी को ज र देखगे। बाबा - शायद िकसी वजह से अगर आज कु मारी को देख न सक तो कल ज र आपलोग उससे िमलगे। इस वक्त आप लोग नान - पजू ा से छु ट्टी पाकर कु छ भोजन कर ल, तबहमारे आपके बीच बातचीत होगी। बाबाजी ने एक ल डी को बलु ाकर कहा िक ''हमारे मेहमान लोग के नहाने का सामान उसबाग म दु त करो िजसम बावली है।'' बाबाजी सब को िलए उस बाग म गये िजसम बावली थी। उसी म सब ने नान िकयाऔर उ तार तरफ वाले दलान म भोजन करने के बाद उस कमरे म बठै े िजसम कंु अरवीरे द्रिसहं की आंख खुली थी। आज भी वह कमरा वसै ा ही सजा हुआ है जैसा पहले िदनकु मार ने देखा था, हां इतना फक्र है िक आज कु मारी चंद्रका ता की त वीर उसम नहीं है। जब सब लोग िनि चत होकर बैठे तब राजा सरु े द्रिसहं ने िसद्धनाथ योगी से पछू ा:

''यह खबू सूरत पहाड़ी िजसम छोटे - छोटे कई बाग ह हमारे ही इलाके म है, मगर आजतक कभी इसे देखने की नौबत नहीं पहुंची। क्या इस बाग से ऊपर - ही - ऊपर कोई औररा ता भी बाहर जाने का है?'' बाबा - इसकी राह गु त होने के सबब से यहां कोई आ नहीं सकता था, हां िजसे इस छोटेसे ितिल म की कु छ खबर है वह शायद आ सके । एक रा ता तो इसका वही है िजससे आपआये ह, दसू री राह बाहर आने - जाने की इस बाग म से है, लेिकन वह उससे भी यादे िछपीहुई है। सरु े द्र - आप कब से इस पहाड़ी म रह रहे ह। बाबाजी - म बहुत थोड़े िदन से इस खोह म आया हूं सो भी अपनी खशु ी से नहीं आया,मािलक के काम से आया हूं। सरु े द्र - (ता जुब से) आप िकसके नौकर ह? बाबाजी - यह भी आपको बहुत ज दी मालूम हो जायगा। जयिसहं - (सुरे द्रिसहं की तरफ इशारा करके ) महाराज की जुबानी मालमू होता है िकयह िदलच प पहाड़ी चाहे इनके रा य म हो मगर इ ह इसकी खबर नहीं और यह जगह भीऐसी नहीं मालमू होती िजसका कोई मािलक न हो, आप यहां के रहने वाले नहीं ह तो इसिदलच प पहाड़ी और सदंु र - संदु र मकान और बागीच का मािलक कौन है? महाराज जयिसहं की बात का जवाब अभी िसद्धनाथ बाबा ने नहीं िदया था िक सामने सेवनक या आती िदखाई पड़ी। दोन बगल उसके दो सिखयां और पीछे - पीछे दस - पदं ्रहल िडय की भीड़ थी। बाबा - (वनक या की तरफ इशारा करके ) इस जगह की मािलक यही है।

िसद्धनाथ बाबा की बात सनु कर दोन महाराज और ऐयार लोग ता जबु से वनक या कीतरफ देखने लगे। इस वक्त कंु अर वीरे द्रिसहं और तजे िसहं भी हैरान हो वनक या की तरफदेख रहे थ।े िसद्धनाथ की जुबानी यह सुनकर िक इस जगह की मािलक यही है, कु मार औरतेजिसहं को िपछली बात याद आ गईं। कंु अर वीरे द्रिसहं िसर नीचा कर सोचने लगे िक बेशककु मारी चदं ्रका ता इसी वनक या की कै द म है। वह बेचारी ितिल म की राह से आकर जबइस खोह म फं सी तब इ ह ने कै द कर िलया, तभी तो इस जोर की खत िलखी थी िक िबनाहमारी मदद के तुम कु मारी चंद्रका ता को नहीं देख सकते, और उस िदन िसद्धनाथ बाबा ने भीयही कहा था िक जब यह चाहेगी तब चंद्रका ता से तुमसे मुलाकात होगी। बेशक कु मारी कोइसी ने कै द िकया है, हम इसे अपना दो त कभी नहीं कह सकते, बि क यह हमारी दु मन हैक्य िक इसने बेफायदे कु मारी चदं ्रका ता को कै द करके तकलीफ म डाला और हम लोग कोभी परेशान िकया। नीचे मंुह िकये इसी िक म की बात सोचते - सोचते कु मार को गु सा चढ़ आया औरउ ह ने िसर उठाकर वनक या की तरफ देखा। कु मार के िदल म चदं ्रका ता की मुह बत चाहे िकतनी ही यादा हो मगर वनक या कीमुह बत भी कम न थी। हां इतना फकर् ज र था िक िजस वक्त कु मारी चदं ्रका ता की याद ममग्न होते थे उस वक्त वनक या का ख्याल भी जी म नहीं आता था, मगर सूरत देखने सेमुह बत की मजबूत फासं गले म पड़ जाती थी।ं इस वक्त भी उनकी यही दशा हुई। यहसोचकर िक कु मारी को इसने कै द िकया है एकदम गु सा चढ़ आया मगर कब तक? जब तकिक जमीन की तरफ देखकर सोचते रहे, जहां िसर उठाकर वनक या की तरफ देखा, गु सािब कु ल जाता रहा, ख्याल ही दरू हो गये, पहले कु छ सोचा था अब कु छ और ही सोचने लगे : ''नहीं - नहीं, यह बेचारी हमारी दु मन नहीं है। राम - राम, न मालमू क्य ऐसा ख्यालमेरे िदल म आ गया! इससे बढ़कर तो कोई दो त िदखाई ही नहीं देता। अगर यह हमारी

मदद न करती तो ितिल म का टू टना मुि कल हो जाता, कु मारी के िमलने की उ मीद जातीरहती, बि क म खदु दु मन के हाथ पड़ जाता।'' कु मार क्या सबो के ही िदल म एकदम यह बात पदै ा हुई िक इस बाग और पहाड़ी कीमािलक अगर यह है तो इसी ने कु मारी को भी कै द कर रखा होगा। आिखर महाराज जयिसहंसे न रहा गया, िसद्धनाथ की तरफ देखकर पूछा : ''बेचारी चंद्रका ता इस खोह म फं सकर इ हीं की कै द म पड़ गई होगी?'' बाबा - नहीं, िजस वक्त कु मारी चंद्रका ता इस खोह म फं सी थी उस वक्त यहां कामािलक कोई न था, उसके बाद यह पहाड़ी बाग और मकान इनको िमला है। िसद्धनाथ बाबा की इस दसू री बात ने और भ्रम म डाल िदया, यहां तक िक कु मार का जीघबराने लगा। अगर महाराज जयिसहं और सुरे द्रिसहं यहां न होते तो ज र कु मार िच लाउठते, मगर नहीं - शमर् ने मुंह बंद कर िदया और गंभीरता ने दोन मोढ़ पर हाथ धारकरनीचे की तरफ दबाया! महाराज जयिसहं और सुरे द्रिसहं से न रहा गया, िसद्धनाथ की तरफ देखा औरिगड़िगड़ाकर बोले, ''आप कृ पा कर के पेचीली और बहुत से मानी पैदा करने वाली बात कोछोड़ दीिजए और साफ किहए िक यह लड़की जो सामने खड़ी है कौन है, यह पहाड़ी इसे िकसनेदी और चंद्रका ता कहां है?'' महाराज जयिसहं और सुरे द्रिसहं की बात सनु कर बाबाजी मु कु राने लगे और वनक याकी तरफ देख इशारे से उसे अपने पास बलु ाया। वनक या अपनी अगल - बगल वाली दोनसिखय को िजनम से एक की पोशाक सुखर् और दसू री की स ज थी, साथ िलए हुए िसद्धनाथके पास आई। बाबाजी ने उसके चेहरे पर से एक िझ ली जैसी कोई चीज जो तमाम चहे रे केसाथ िचपकी हुई थी खीचं ली और हाथ पकड़कर महाराज जयिसहं के परै पर डाल िदया औरकहा, ''लीिजए यही आपकी चंद्रका ता है!''

चेहरे पर की िझ ली उतर जाने से सबो ने कु मारी चदं ्रका ता को पहचान िलया, महाराजजयिसहं पैर से उसका िसर उठाकर देर तक अपनी छाती से लगाये रहे और खुशी से ग गहो गए। िसद्धनाथ योगी ने उसकी दोन सिखय के महुं पर से भी िझ ली उतार दी! लाल पोशाकवाली चपला और स ज पोशाक वाली चपं ा साफ पहचानी गईं। मारे खशु ी के सबो का चेहरा चमक उठा, आज की - सी खुशी कभी िकसी ने नहीं पाईथी। महाराज जयिसहं के इशारे से कु मारी चंद्रका ता ने राजा सुरे द्रिसहं के परै पर िसर रखा,उ ह ने उसका िसर उठाकर संघू ा। घटं तक मारे खुशी के सब की अजब हालत रही। कंु अर वीरे द्रिसहं की दशा तो िलखनीही मुि कल है। अगर िसद्धनाथ योगी इनको पहले ही कु मारी से न िमलाये रहते तो इस समयइनको शमर् और हया कभी न दबा सकती, ज र कोई बेअदबी हो जाती। महाराज जयिसहं की तरफ देखकर िसद्धनाथ बाबा बोले, ''आप कु मारी को हुक्म दीिजए िकअपनी सिखय के साथ घमू े - िफरे या दसू रे कमरे म चली जाय और आप लोग इस पहाड़ीऔर कु मारी का िविचत्र हाल मझु से सुन।'' जयिसहं - बहुत िदन के बाद इसकी सरू त देखी है, अब कै से अपने से अलग क ं , कहींऐसा न हो िक िफर कोई आफत आए और इसको देखना मुि कल हो जाय। बाबा - (हंसकर) नही,ं नही,ं अब यह आपसे अलग नहीं हो सकती। जयिसहं - खरै जो हो, इसे मझु से अलग मत कीिजए और कृ पा करके इसका हाल शु सेकिहए। बाबा - अ छा, जैसी आपकी मजीर्।

बीसवाँ बयान महाराज जयिसहं और सुरे द्रिसहं के पछू ने पर िसद्धनाथ बाबा ने इस िदलच प पहाड़ीऔर कु मारी चदं ्रका ता का हाल कहना शु िकया। बाबाजी - मझु े मालमू था िक यह पहाड़ी एक छोटा - सा ितिल म है और चनु ार केइलाके म भी कोई ितिल म है। िजसके हाथ से वह ितिल म टू टेगा उसकी शादी िजसके साथहोगी उसी के दहेज के सामान पर यह ितिल म बधं ा है और शादी होने के पहले ही वह इसकीमािलक होगी। सुरे द्र - पहले यह बताइए िक ितिल म िकसे कहते ह और वह कै से बनाया जाता है? बाबा - ितिल म वही शख्स तैयार कराता है िजसके पास बहुत माल - खजाना हो औरवािरस न हो। तब वह अ छे - अ छे योितषी और नजूिमय से दिरया त करता है िक उसकेया उसके भाइय के खानदान म कभी कोई प्रतापी या लायक पदै ा होगा या नहीं? आिखर योितषी या नजमू ी इस बात का पता देते ह िक इतने िदन के बाद आपके खानदान म एकलड़का प्रतापी होगा, बि क उसकी एक ज म िलखकर तैयार कर देते ह। उसी के नाम सेखजाना और अ छी - अ छी कीमती चीज को रखकर उस पर ितिल म बाधं ाते ह। आजकल तो ितिल म बाधं ाने का यह कायदा है िक थोड़ा - बहुत खजाना रखकर उसकीिहफाजत के िलए दो - एक बिल दे देते ह, वह प्रेत या सापं होकर उसकी िहफाजत करता हैऔर कहे हुए आदमी के िसवाय दसू रे को एक पैसा लेने नहीं देता, मगर पहले यह कायदा नहींथा। परु ाने जमाने के राजाओं को जब ितिल म बाधं ाने की ज रत पड़ती थी तो बड़े - बड़े योितषी, नजमू ी, वै य, कारीगर और तािं त्रक लोग इकट्ठे िकए जाते थे। उ हीं लोग के कहेमतु ािबक ितिल म बांधाने के िलए जमीन खोदी जाती थी, उसी जमीन के अंदर खजाना रखकरऊपर ितिल मी इमारत बनायी जाती थी। उसम योितषी, नजूमी, वै य, कारीगर और तािं त्रकलोग अपनी ताकत के मतु ािबक उसके िछपाने की बंिदश करते थे मगर साथ ही इसके उस

आदमी के नक्षत्र और ग्रह का भी ख्याल रखते थे िजसके िलए वह खजाना रखा जाता था।कंु अर वीरे द्रिसहं ने एक छोटा - सा ितिल म तोड़ा है, उनकी जबु ानी आप वहां का हाल सिु नएऔर हर एक बात को खूब गौर से सोिचए तो आप ही मालमू हो जायगा िक योितषी, नजमू ी,कारीगर और दशन्र - शा त्र के जानने वाले क्या काम कर सकते थ।े जयिसहं - खरै इसका हाल कु छ - कु छ मालमू हो गया, बाकी कु मार की जबु ानी ितिल मका हाल सनु ने और गौर करने से मालमू हो जायगा। अब आप इस पहाड़ी और मेरी लड़की काहाल किहए और यह भी किहए िक महाराज िशवद त इस खोह से क्य कर िनकल भागे औरिफर क्य कर कै द हो गये? बाबा - सुिनए म िब कु ल हाल आपसे कहता हूं। जब कु मारी चंद्रका ता चुनार केितिल म म फं सकर इस खोह म आईं तो दो िदन तक तो इस बेचारी ने तकलीफ से काटा।तीसरे रोज खबर लगने पर म यहां पहुंचा और कु मारी को उस जगह से छु ड़ाया जहां वह फं सीहुई थी और िजसको म आप लोग को िदखाऊं गा। सुरे द्र - सनु ते ह ितिल म तोड़ने म ताकत की भी ज रत पड़ती है? बाबा - यह ठीक है, मगर इस ितिल म म कु मारी को कु छ भी तकलीफ न हुई और नताकत की ज रत पड़ी, क्य िक इसका लगाव उस ितिल म से था िजसे कु मार ने तोड़ा है। वहितिल म या उसके कु छ िह से अगर न टू टते तो यह ितिल म भी न खुलता। कु मार - (िसद्धनाथ की तरफ देखकर) आपने यह तो कहा ही नहीं िक कु मारी के पासिकस राह से पहुंचे? हम लोग जब इस खोह म आए थे और कु मारी को बेबस देखा था तबबहुत सोचने पर भी कोई तरकीब ऐसी न िमली थी िजससे कु मारी के पास पहुंचकर इ ह उसबला से छु ड़ाते। बाबा - िसफ्र सोचने से ितिल म का हाल नहीं मालूम हो सकता है। म भी सुन चकु ा थािक इस खोह म कु मारी चंद्रका ता फं सी पड़ी है और आप छु ड़ाने की िफक्र कर रहे ह मगर

कु छ बन नहीं पड़ता। म यहां पहुंचकर कु मारी को छु ड़ा सकता था लेिकन यह मझु े मजं ूर नथा, म चाहता था िक यहां का माल - असबाब कु मारी के हाथ लगे। कु मार - आप योगी ह, योगबल से इस जगह पहुंच सकते ह, मगर म क्या कर सकता था। बाबा - आप लोग इस बात को िब कु ल मत सोिचए िक म योगी हूं, जो काम आदमी केया ऐयार के िकए नहीं हो सकता उसे म भी नहीं कर सकता। म िजस राह से कु मारी के पासपहुंचा और जो - जो िकया सो कहता हूं, सुिनए। इक्कीसवाँ बयान िसद्धनाथ योगी ने कहा, ''पहले इस खोह का दरवाजा खोल म इसके अंदर पहुंचा औरपहाड़ी के ऊपर एक दर म बेचारी चदं ्रका ता को बेबस पड़े हुए देखा। अपने गु से म सनुचुका था िक इस खोह म कई छोटे - छोटे बाग ह िजनका रा ता उस च मे म से है जो खोहम बह रहा है, खोह के अंदर आने पर आप लोग ने उसे ज र देखा होगा, क्य िक खो हम उसच मे की खूबसूरती भी देखने के कािबल है।'' िसद्धनाथ की इतनी बात सनु कर सभी ने 'हूं हूं' कह के िसर िहलाया। इसके बाद िसद्धनाथयोगी कहने लगे - िसद्ध - म लंगोटी बांधाकर च मे म उतर गया और इधर से उधर और उधर से इधरघूमने लगा। यकायक परू ब तरफ जल के अदं र एक छोटा - सा दरवाजा मालूम हुआ, गोतालगाकर उसके अदं र घसु ा। आठ - दस हाथ तक बराबर जल िमला इसके बाद धीरे - धीरे जलकम होने लगा, यहां तक िक कमर तक जल हुआ। तब मालमू पड़ा िक यह कोई सरु ंग हैिजसम चढ़ाई के तौर पर ऊं चे की तरफ चला जा रहा हूं। आधा घंटा चलने के बाद मने अपने को इस बाग म (िजसम आप बठै े ह) पि चम औरउ तार के कोण म पाया और घूमता - िफरता इस कमरे म पहुंचा, (हाथ से इशारा करके ) यह

देिखए दीवार म जो अलमारी है, असल म वह अलमारी नहीं दरवाजा है, लात मारने से खलुजाता है। मने लात मारकर यह दरवाजा खोला और इसके अंदर घुसा। भीतर िब कु ल अधं कारथा, लगभग दो सौ कदम जाने के बाद दीवार िमली। इसी तरह यहां भी लात मारकर दरवाजाखोला और ठीक उसी जगह पहुंचा जहां कु मारी चंद्रका ता और चपला बेबस पड़ी रो रही थीं।मेरे बगल से ही एक दसू रा रा ता उस चनु ारगढ़ वाले ितिल म को गया था, िजसके एक टु कड़ेको कु मार ने तोड़ा है। मझु े देखते ही ये दोन घबरा गईं। मने कहा, ''तुम लोग डरो मत, म तुम दोन को छु ड़ानेआया हूं।'' यह कहकर िजस राह से म गया था, उसी राह से कु मारी चदं ्रका ता और चपला कोसाथ ले इस बाग म लौट आया। इतना हाल, इतनी कै िफयत, इतना रा ता तो म जानता था,इससे यादे इस खोह का हाल मझु े कु छ भी मालूम न था। कु मारी और चपला को खोह केबाहर कर देना या घर पहुंचा देना मेरे िलए कोई बड़ी बात न थी, मगर मझु को यह मंजूर थािक यह छोटा - सा ितिल म कु मारी के हाथ से टू टे और यहां का माल - असबाब इनके हाथलगे। म क्या सभी कोई इस बात को जानते ह गे और सबो को यकीन होगा िक कु मारीचदं ्रका ता को इस कै द से छु ड़ाने के िलए ही कु मार चनु ारगढ़ वाले ितिल म को तोड़ रहे थे,माल - खजाने की इनको लालच न थी। अगर म कु मारी को यहां से िनकालकर आपके पासपहुंचा देता तो कु मार उस ितिल म को तोड़ना बदं कर देते और वहां का खजाना भी य हीरह जाता। म आप लोग की बढ़ती चाहने वाला हूं। मुझे यह कब मंजरू हो सकता था िकइतना माल - असबाब बरबाद जावे और कु मार या कु मारी चंद्रका ता को न िमले। मने अपने जी का हाल कु मारी और चपला से कहा और यह भी कहा िक अगर मेरी बातन मानोगी तो तु ह इसी बाग म छोड़कर म चला जाऊं गा। आिखर लाचार होकर कु मारी नेमेरी बात मजं ूर की और कसम खाई िक मेरे कहने के िखलाफ कोई काम न करेगी।

मझु े यह तो मालमू ही न था िक यहां का माल - असबाब क्य कर हाथ लगेगा, और इसखजाने की ताली कहां है, मगर यह यकीन हो गया िक कु मारी ज र इस ितिल म की मािलकहोगी। इसी िफक्र म दो रोज तक परेशान रहा। इन बागीच की हालत िब कु ल खराब थी, मगरदो - चार फल के पेड़ ऐसे थे िक हम तीन ने तकलीफ न पाई। तीसरे िदन पूिणम्र ा थी। म उस बावली के िकनारे बैठा कु छ सोच रहा था, कु मारी औरचपला इधर - उधर टहल रही थीं, इतने म चपला दौड़ी हुई मेरे पास आई और बोली, ''ज दीचिलए, इस बाग म एक ता जुब की बात िदखाई पड़ी है।'' म सुनते ही खड़ा हुआ और चपला के साथ वहां गया जहां कु मारी चदं ्रका ता परू ब कीदीवार तले खड़ी गौर से कु छ देख रही थी। मझु े देखते ही कु मारी ने कहा, ''बाबाजी, देिखए इसदीवार की जड़ म एक सरू ाख है िजसम से सफे द रंग की बड़ी - बड़ी िचउं िटयां िनकल रही ह!यह क्या मामला है?'' मने अपने ओ ताद से सनु ा था िक सफे द िचउं िटयां जहां नजर पड़ समझना िक वहांज र कोई खजाना या खजाने की ताली है। यह ख्याल करके मने अपनी कमर से खंजरिनकाल कु मारी के हाथ म दे िदया और कहा िक तमु इस जमीन को खोदो। अ तु मेरे कहेमतु ािबक कु मारी ने उस जमीन को खोदा। हाथ ही भर के बाद काचं की छोटी - सी हाडं ीिनकली िजसका मुंह बदं था। कु मारी के ही हाथ से वह हाडं ी मने तोड़वाई। उसके भीतर िकसीिक म का तेल भरा हुआ था जो हाडं ी टू टते ही बह गया और ताली का एक गु छा उसके अदं रसे िमला िजसे पाकर म बहुत खुश हुआ। दसू रे िदन कु मारी चंद्रका ता के हाथ म ताली का गु छा देकर मने कहा, ''चार तरफ घूम- घूमकर देखो, जहां ताला नजर पड़,े इन तािलय म से िकसी ताली को लगाकर खोलो, म भीतु हारे साथ चलता हूं।''

मखु ्तसर ही म बयान करके इस बात को ख म करता हूं। उस गु छे म तीस तािलयांथी,ं कई िदन म खोजकर हम लोग ने तीस ताले खोले। तीन दरवाजे तो ऐसे िमले, िजनसेहम लोग ऊपर - ऊपर इस ितिल म के बाहर हो जाय।ं चार बाग और तेईस कोठिरयां असबाबऔर खजाने की िनकलीं िजसम हर एक िक म का अमीरी का सामान और बेहद खजानामौजूद था। जब ऊपर ही ऊपर ितिल म से बाहर हो जाने का रा ता िमला, तब म अपने घर गयाऔर कई ल िडयां और ज री चीज कु मारी के वा ते लेकर िफर यहां आया।कई िदन म यहांके सब ताले खोले गये, तब तक यहां रहते - रहते कु मारी की तबीयत घबड़ा गई, मुझसे कईदफे उ ह ने कहा िक ''म इस ितिल म के बाहर घमू ा - िफरा चाहती हूं।'' बहुत िजद करने पर मने इस बात को मजं रू िकया। अपनी कारीगरी से इन लोग कीसरू त बदली और दो - तीन घोड़े भी ला िदये िजन पर सवार होकर ये लोग कभी - कभीितिल म के बाहर घूमने जाया करती।ं इस बात की ताकीद कर दी थी िक अपने को िछपायेरह िजससे कोई पहचानने न पावे। इ ह ने भी मेरी बात परू े तौर पर मानी और जहां तक होसका अपने को िछपाया। इस बीच म धीरे –धीरे म इन बाग की भी दु ती की गई। कंु अर वीरे द्रिसहं ने उस ितिल म का खजाना हािसल िकया और यहां का माल -असबाब जो कु छ िछपा था कु मारी को िमल गया। (जयिसहं की तरफ देखकर) आज तक यहकु मारी चंद्रका ता मेरी लड़की या मािलक थी, अब आपकी जमा आपके हवाले करता हूं। महाराज िशवद त की रानी पर रहम खाकर कु मारी ने दोन को छोड़ िदया था और इसबात की कसम िखला ली थी िक कु मार से िकसी तरह की दु मनी न करगे। मगर उस दु टने न माना, परु ाने सािथय से मुलाकात होने पर बदमाशी पर कमर बांधी और कु मार के पीछेल कर की तबाही करने लगा। आिखर लाचार होकर मने उसे िगर तार िकया और इस खोह मउसी िठकाने िफर ला रखा जहां कु मार ने उसे कै द करके डाल िदया था। अब और जो कु छआपको पछू ना हो पिू छए, म सब हाल कह आप लोग की शकं ा िमटाऊं ।

सरु े द्र - पूछने को तो बहुत - सी बात थीं मगर इस वक्त इतनी खुशी हुई है िक वेतमाम बात भलू गया हूं, क्या पूछू ं ? खैर िफर िकसी वक्त पछू लगूं ा। कु मारी की मदद आपनेक्य की? जयिसहं - हां यही सवाल मेरा भी है, क्य िक आपका हाल जब तक नहीं मालूम होतातबीयत की घबड़ाहट नहीं िमटती, ितस पर आप कई दफे कह चकु े ह िक 'म योगी महा मानहीं हूं' यह सुनकर हम लोग और भी घबड़ा रहे ह िक अगर आप वह नहीं ह जो सरू त सेजािहर है तो िफर कौन ह! बाबा - खैर यह भी मालमू हो जायगा। जयिसहं - (कु मारी चदं ्रका ता की तरफ देखकर) बेटी, क्या तुम भी नहीं जानतीं िक यहयोगी कौन ह? चदं ्रका ता - (हाथ जोड़कर) म तो सब - कु छ जानती हूं मगर कहूं क्य कर! इ ह ने तोमझु से सख्त कसम िखला ली है, इसी से म कु छ भी नहीं कह सकती! बाबा - आप ज दी क्य करते ह! अभी थोड़ी देर म मेरा हाल भी आपको मालूम होजायगा, पहले चलकर उन चीज को तो देिखए जो कु मारी चदं ्रका ता को इस ितिल म सेिमली ह। जयिसहं - जैसी आपकी मजीर्। बाबाजी उसी वक्त उठ खड़े हुए और सबो को साथ ले दसू रे बाग की तरफ चले। बाईसवाँ बयान

बाबाजी यहां से उठकर महाराज जयिसहं वगरै ह को साथ ले दसू रे बाग म पहुंचे और वहांघमू - िफरकर तमाम बाग, इमारत, खजाना और सब असबाब को िदखाने लगे जो इसितिल म म से कु मारी ने पाया था। महाराज जयिसहं उन सब चीज को देखते ही एकदम बोल उठे , ''वाह - वाह, ध य थे वेलोग िज होने इतनी दौलत इकट्ठी की थी। म अपना िब कु ल रा य बेचकर भी अगर इस तरहके दहेज का सामान इकट्ठा करना चाहता तो इसका चौथाई भी न कर सकता!!'' सबसे यादा खजाना और जवािहरखाना उस बाग और दीवानखाने के तहखाने म नजरपड़ा जहां कंु वर वीरे द्रिसहं ने कु मारी चदं ्रका ता की त वीर का दरबार देखा था। तीसरे और चौथे भाग के शु म पहाड़ी बाग, कोठिरय और रा ते का कु छ हाल हमिलख चकु े ह। दो - तीन िदन म िसद्ध बाबा ने इन लोग को उन जगह की पूरी सैर कराई।जब इन सब काम से छु ट्टी िमली और सब कोई दीवानखाने म बठै े उस वक्त महाराजजयिसहं ने िसद्ध बाबा से कहा : ''आपने जो कु छ मदद कु मारी चदं ्रका ता की करके उसकी जान बचाई, उसका एहसानतमाम उम्र हम लोग के िसर रहेगा। आज िजस तरह हो आप अपना हाल कहकर हम लोगके तर ुद को दरू कीिजए, अब सब्र नहीं िकया जाता।'' महाराज जयिसहं की बात सुन िसद्ध बाबा मु कराकर बोले, ''म भी अपना हाल आप लोगपर जािहर करता हूं जरा सब्र कीिजए।'' इतना कहकर जोर से जफील (सीटी) बजाई। उसीवक्त तीन - चार ल िडयां दौड़ती हुई आकर उनके पास खड़ी हो गईं। िसद्धनाथ बाबा ने हुक्मिदया, ''हमारे नहाने के िलए जल और पिहरने के िलए असली कपड़ का सदं कू (उं गली काइशारा करके ) इस कोठरी म लाकर ज द रखो। आज म इस मगृ छाले और लंबी दाढ़ी कोइ तीफा दंगू ा।''

थोड़ी ही देर म िसद्ध बाबा के हुक्म की तामील हो गई। तब तक इधर - उधर की बातहोती रहीं। इसके बाद िसद्ध बाबा उठकर उस कोठरी म चले गए िजसम उनके नहाने का जलऔर पिहरने के कपड़े रखे हुए थ।े थोड़ी ही देर बाद नहा - धो और कपड़े पिहर िसद्ध बाबा उस कोठरी के बाहर िनकले। अबतो इनको िसद्ध बाबा कहना मुनािसब नही,ं आज तक बाबाजी कह चकु े बहुत कहा, अब तोतेजिसहं के बाप जीतिसहं कहना ठीक है। अब पूछने या हाल - चाल मालमू करने की फु रसत कहा!ं महाराज सरु े द्रिसहं तोजीतिसहं को पहचानते ही उठे और यह कह के िक 'तमु मेरे भाई से भी हजार दज बढ़ के हो'गले लगा िलया और कहा, ''जब महाराज िशवद त और कु मार से लड़ाई हुई तब तमु ने िसफ्रपाचं सौ सवार लेकर कु मार की मदद की थी। 1 आज1. दसू रा भाग, पाचं वां बयान।तो तुमने कु मार से भी बढ़कर नाम पदै ा िकया और पु तहापु त के िलए नौगढ़ और िवजयगढ़दोन रा य के ऊपर अपने अहसान का बोझ रखा!'' देर तक गले लगाए रहे, इसके बादमहाराज जयिसहं ने भी उ ह बराबरी का दजा्र देकर गले लगाया। तेजिसहं और देवीिसहं वगैरहने भी बड़ी खशु ी से पजू ा की। अब मालूम हुआ िक कु मारी चंद्रका ता की जान बचाने वाले, नौगढ़ और िवजयगढ़ दोनकी इ जत रखने वाले, दोन रा य की तरक्की करने वाले, आज तक अ छे - अ छे ऐयार कोधोखे म डालने वाले, कंु अर वीरे द्रिसहं को धोखे म डालकर िविचत्र तमाशा िदखाने वाले, पहाड़ीसे कू दते हुए कु मार को रोककर जान बचाने और चनु ार रा य म फतह का डकं ा बजाने वालेिसद्धनाथ योगी बने हुए यही महा मा जीतिसहं थे। इस वक्त की खुशी का क्या अदं ाजा है। अपने - अपने म सब ऐसे मग्न हो रहे ह िकित्रवन की सपं ि त की तरफ हाथ उठाने को जी नहीं चाहता। कंु अर वीरे द्रिसहं को कु मारी

चंद्रका ता से िमलने की खशु ी जसै ी भी थी आप खुद ही सोच - समझ सकते ह, इसके िसवायइस बात की खुशी बेहद हुई िक िसद्धनाथ का अहसान िकसी के िसर न हुआ, या अगर हुआतो जीतिसहं का, िसद्धनाथ बाबा तो कु छ थे ही नहीं। इस वक्त महाराज जयिसहं और सरु े द्रिसहं का आपस म िदली प्रेम िकतना बढ़ - चढ़रहा है वे ही जानते ह गे। कु मारी चदं ्रका ता को घर ले जाने के बाद शादी के िलए खत भेजनेकी ताब िकसे? जयिसहं ने उसी वक्त कु मारी चंद्रका ता के हाथ पकड़ के राजा सुरे द्रिसहं केपैर पर डाल िदया और डबडबाई आखं को प छकर कहा, ''आप आज्ञा कीिजए िक इस लड़कीको म अपने घर ले जाऊं और जात - बेरादरी तथा पंिडत लोग के सामने कंु अर वीरे द्रिसहंकी ल डी बनाऊं ।'' राजा सुरे द्रिसहं ने कु मारी को अपने परै से उठाया और बड़ी महु बत के साथ महाराजजयिसहं को गले लगाकर कहा, ''जहां तक ज दी हो सके आप कु मारी को लेकर िवजयगढ़ जायंक्य िक इसकी मां बेचारी मारे गम के सखू कर कांटा हो रही होगी!'' इसके बाद महाराज सुरे द्रिसहं ने पछू ा, ''अब क्या करना चािहए?'' जीत -अब सब को यहां से चलना चािहए, मगर मेरी समझ म यहां से माल - असबाबऔर खजाने को ले चलने की कोई ज रत नहीं, क्य िक अ वल तो यह माल - असबाब िसवायकु मारी चदं ्रका ता के िकसी के मतलब का नहीं, इसिलए िक दहेज का माल है, इसकी तािलयांभी पहले से ही इनके क जे म रही ह, यहां से उठाकर ले जाने और िफर इनके साथ भेजकरलोग को िदखाने की कोई ज रत नहीं, दसू रे यहां की आबोहवा कु मारी को बहुत पसंद है, जहांतक म समझता हूं, कु मारी चंद्रका ता िफर यहां आकर कु छ िदन ज र रहगी, इसिलए हमलोग को यहां से खाली हाथ िसफ्र कु मारी चदं ्रका ता को लेकर बाहर होना चािहए। बहादरु और पूरे ऐयार जीतिसहं की राय को सब ने पसंद िकया और वहां से बाहर होकरनौगढ़ और िवजयगढ़ जाने के िलए तैयार हुए।

जीतिसहं ने कु ल ल िडय को िज ह कु मारी की िखदमत के िलए वहां लाए थे, बलु ा केकहा, ''तुम लोग अपने - अपने चेहरे को साफ करके असली सूरत म उस पालकी को लेकरज द यहां आओ जो कु मारी के िलए मने पहले से मंगा रखी है।'' जीतिसहं का हुक्म पाकर वे ल िडयां जो िगनती म बीस ह गी दसू रे बाग म चली गईंऔर थोड़ी ही देर बाद अपनी असली सरू त म एक िनहायत उ दा सोने की जड़ाऊ पालकीअपने कं धो पर िलये हािजर हुईं। कंु अर वीरे द्रिसहं और तजे िसहं ने अब इन ल िडय को पहचाना। तजे िसहं ने ता जबु मआकर कहा : ''वाह - वाह, अपने घर की ल िडय को आज तक मने न पहचाना। मेरी मां ने भी यहभेद मुझसे न कहा!'' तेईसवाँ बयान िजस राह से कंु अर वीरे द्रिसहं वगरै ह आया - जाया करते थे और महाराज जयिसहंवगैरह आये थे वह राह इस लायक नहीं थी िक कोई हाथी - घोड़े या पालकी पर सवार होकरआए और ऊपर वाली दसू री राह म खोह के दरवाजे तक जाने म कु छ चक्कर पड़ता था,इसिलए जीतिसहं ने कु मारी के वा ते पालकी मगं ाई मगर दोन महाराज और कंु अर वीरे द्रिसहंिकस पर सवार ह गे अब वे सोचने लगे। वहां खोह म दो घोड़े भी थे जो कु मारी की सवारी के वा ते लाये गये थ।े जीतिसहं नेउ ह महाराज जयिसहं और राजा सरु े द्रिसहं की सवारी के िलए तजवीज करके कु मार के वा तेएक हवादार मगं वाया, लेिकन कु मार ने उस पर सवार होने से इनकार करके पैदल चलनाकबूल िकया।

उसी बाग के दिक्खन तरफ एक बड़ा फाटक था िजसके दोन बगल लोहे की दो खबू सूरतपतु िलयां थी।ं बाईं तरफ वाली पतु ली के पास जीतिसहं पहुंचे और उसकी दािहनी आंख मउं गली डाली, साथ ही उसका पेट दो प ले की तरह खुल गया और बीच म चादं ी का एक मुट्ठानजर पड़ा िजसे जीतिसहं ने घुमाना शु िकया। जैसे - जैसे मुट्ठा घमु ाते थे तैसे - तैसे वहफाटक जमीन म घसु ता जाता था, यहां तक िक तमाम फाटक जमीन के अदं र चला गया औरबाहर खुशनुमा स जी से भरा हुआ मदै ान नजर पड़ा। फाटक खलु ने के बाद जीतिसहं िफर इन लोग के पास आकर बोले, ''इसी राह से हमलोग बाहर चलगे।'' िदन आधी घड़ी से यादा न बीता होगा जब महाराज जयिसहं और सुरे द्रिसहं घोड़े परसवार हो कु मारी चदं ्रका ता की पालकी आगे कर फाटक के बाहर हुए। 11. फाटक के बाहर भी उसी ढंग की दो पतु िलयां थी।ं उसी तरह बाईं तरफ वाली पुतली कापेट खोल मटु ्ठा उलटा घुमाकर फाटक बंद िकया गया।दोन महाराज के बीच म दोन हाथ से दोन घोड़ की रकाब पकड़े हुए जीतिसहं बात करतेऔर इनके पीछे कंु अर वीरे द्रिसहं अपने ऐयार को चार तरफ िलए क हैया बने खोह केफाटक की तरफ रवाना हुए। पहर भर चलने के बाद ये लोग उस ल कर म पहुंचे जो खोह के दरवाजे पर उतरा हुआथा। रात भर उसी जगह रहकर सबु ह को कू च िकया। यहां से खबू सूरत और कीमती कपड़ेपिहर कहार ने कु मारी की पालकी उठाई और महाराज जयिसहं के साथ िवजयगढ़ रवाना हुएमगर वे ल िडयां भी जो आज तक कु मारी के साथ थीं और यहां तक िक उनकी पालकीउठाकर लाई थी,ं महु बत की वजह और महाराज सुरे द्रिसहं के हुक्म से कु मारी के साथ गयी।ं राजा सरु े द्रिसहं कु मार को साथ िलए हुए नौगढ़ पहुंचे। कंु अर वीरे द्रिसहं पहले महल मजाकर अपनी मां से िमले और कु लदेवी की पजू ा करके बाहर आये।


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