अब तो बड़ी खुशी से िदन गुजरने लगे, आठव ही रोज महाराज जयिसहं का भेजा हुआितलक पहुंचा और बड़ी धमु धाम से वीरे द्रिसहं को चढ़ाया गया। पाठक! अब तो कंु अर वीरे द्रिसहं और चदं ्रका ता का वृ तात समा त ही हुआ समिझए।बाकी रह गई िसफर् कु मार की शादी। इस वक्त तक सब िक से को मखु ्तसर िलखकर िसफर्बारात के िलए कई वक्र कागज के रंगना मुझे मजं ूर नही।ं म यह नहीं िलखा चाहता िकनौगढ़ से िवजयगढ़ तक रा ते की सफाई की गई, के वड़े के जल से िछड़काव िकया गया, दोनतरफ िब लौरी हांिडयां रोशन की गईं, इ यािद। आप खुद ख्याल कर सकते ह िक ऐसे आिशक -माशकू की बारात िकस धमु धाम की होगी, ितस पर दोन ही राजा और दोन ही की एक -एक औलाद। ितिल म फतह करने और माल - खजाना पाने की खुशी ने और िदमाग बढ़ारखा था। म िसफर् इतना ही िलखना पसदं करता हूं िक अ छी सायत म कंु अर वीरे द्रिसहं कीबारात बड़े धमु धाम से िवजयगढ़ की तरफ रवाना हुई। बारात को मखु ्तसर ही म िलखकर बला टाली मगर एक आिखरी िद लगी िलखे िबना जीनहीं मानता, क्य िक वह पढ़ने के कािबल है। िवजयगढ़ म जनवासे की तैयारी सबसे बढ़ी - चढ़ी थी। बारात पहुंचने के पहले ही समांबधं ा हुआ था, अ छी - अ छी खूबसरू त और गाने के इ म को परू े तौर पर जानने वालीरि डय से महिफल भरी हुई थी, मगर िजस वक्त बारात पहुंची अजब झमेला मचा। बारात के आगे - आगे महाराज िशवद त बड़ी तैयारी से घोड़े पर सवार सरपच बाधं ोकमर से दोहरी तलवार लगाये, हाथ म झ डा िलए, जनवासे के दरवाजे पर पहुंच,े इसके बाद धीरे- धीरे कु ल जलसू पहुंचा। दू हा बने हुए कु मार घोड़े से उतरकर जनवासे के अदं र गए। कु मार वीरे द्रिसहं का घोड़े से उतरकर जनवासे के अदं र जाना ही था िक बाहर हो -ह ला मच गया। सब कोई देखने लगे िक दो महाराज िशवद त आपस म लड़ रहे ह। दोनकी तलवार तजे ी के साथ चल रही ह और दोन ही के मंहु से यही आवाज िनकल रही है िक
'हमारी मदद को कोई न आवे, सब दरू से तमाशा देख।' एक महाराज िशवद त तो वही थे जोअभी - अभी सरपच बांधो हाथ म झ डा िलए घोड़े पर सवार आए थे और दसू रे महाराजिशवद त मामूली पोशाक पिहरे हुए थे मगर बहादरु ी के साथ लड़ रहे थ।े थोड़ी ही देर म हमारे िशवद त को (जो झ डा उठाये घोड़े पर सवार आये थ)े इतनामौका िमला िक कमर म से कमंद िनकाल अपने मकु ाबले वाले दु मन महाराज िशवद त कोबाधं ा िलया और घसीटते हुए जनवासे के अदं र चले। पीछे - पीछे बहुत से आदिमय की भीड़भी इन दोन को ता जबु भरी िनगाह से देखती हुई अदं र पहुंची। हमारे महाराज िशवद त ने दसू रे साधारण पोशाक पिहरे हुए महाराज िशव त को एकखभं े के साथ खबू कसकर बाधं ा िदया और एक मशालची के हाथ से जो उसी जगह मशालिदखा रहा था मशाल लेकर उनके हाथ म थमा आप कंु वर वीरे द्रिसहं के पास जा बठै े । उसीजगह सोने का जड़ाऊ बतनर् गलु ाबजल से भरा हुआ रखा था, उससे माल तर करके हमारेमहाराज ने अपना मंुह प छ डाला। पोशाक वही, सरपच वही, मगर सरू त तेजिसहं बहादरु की!! अब तो मारे हंसी के पेट म बल पड़ने लगा। पाठक, आप तो इस िद लगी को खबू समझगए ह गे, लेिकन अगर कु छ भ्रम हो गया तो म िलखे देता हूं। हमारे तेजिसहं अपने कौल के मतु ािबक महाराज िशवद त की सरू त बना सरपच (फतहका सरपच जो देवीिसहं लाए थे) बाधं ा झंडा ले कु मार की बारात के आगे - आगे चले थे, उधरअसली महाराज िशवद त जो महाराज सुरे द्रिसहं से जान बचा तप या का बहाना कर जंगलम चले गये थे कंु अर वीरे द्रिसहं की बारात की कै िफयत देखने आए। फकीरी करने का तोबहाना ही था असल म तो तबीयत से बदमाशी और खटु ाई गई नहीं थी। महाराज िशवद त बारात की कै िफयत देखने आये मगर आगे - आगे झंडा हाथ म िलएअपनी सरू त देख समझ गए िक िकसी ऐयार की बदमाशी है। क्षत्रीपन का खून जोश म आगया, गु से को स हाल न सके , तलवार िनकालकर लड़ ही गए। आिखर नतीजा यह हुआ िक
उनको महिफल म मशालची बनना पड़ा और कंु अर वीरे द्रिसहं की शादी खशु ी - खुशी कु मारीचदं ्रका ता के साथ हो गई। ॥ समा त॥
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