देवी - इसम तो कोई शक नहीं योितषीजी हम लोग के पूरे दो त ह, कभी संग नछोड़गे, अगर यह मर भी जायगे तो ब्र मराक्षस ह गे, और भी हमारा काम इनसे िनकला करेगा। यो - क्या हमारी ही अवगित होगी? अगर ऐसा हुआ तो तु ह कब छोड़ूगं ा तु हीं से यादे मुह बत है। इनकी बात पर कु मार हंस पड़े और घोड़े पर सवार हो ऐयार को साथ ले चुनार कीतरफ रवाना हुए। शाम होते - होते ये लोग चनु ार पहुंचे और रात को मौका पा कमंद लगािकले के अंदर घसु गये। उ नीसवाँ बयान िदन अनमु ान पहर - भर के आया होगा िक फतहिसहं की फौज लड़ती हुई िफर िकले केदरवाजे तक पहुंची। िशवद त की फौज बुिजय्र पर से गोल की बौछार मार कर उन लोग कोभगाना चाहती थी िक यकायक िकले का दरवाजा खलु गया और जदर् रंग 1 की चार झि डयांिदखाई पड़ीं िज ह राजा सरु े द्रिसहं , महाराज जयिसहं और उनकी कु ल फौज ने दरू से देखा।मारे खशु ी के फतहिसहं अपनी फौज के साथ धाड़धाड़ाकर फाटक के अंदर घसु गया और बादइसके धीरे - धीरे कु ल फौज िकले म दािखल हुई। िफर िकसी को मकु ाबले की ताब न रही, साथवाले आदमी चार तरफ िदखाई देने लगे। फतहिसहं ने बुजर् पर से महाराज िशवद त का स जझडं ा िगराकर अपना जदर् झडं ा खड़ा कर िदया और अपने हाथ से चोब उठाकर जोर से तीनचोट डकं े पर लगाईं जो उसी झंडे के नीचे रखा हुआ था। 'क्रू म धमू फतह' की आवाज िनकलीिजसके साथ ही िकले वाल का जी टू ट गया और कंु अर वीरे द्रिसहं की महु बत िदल म असरकर गई। अपने हाथ से कु मार ने फाटक पर चालीस आदिमय के िसर काटे थ,े मगर ऐयार केसिहत वे भी जख्मी हो गये थ।े राजा सरु े द्रिसहं िकले के अदं र घसु े ही थे िक कु मार, तेजिसहंऔर देवीिसहं झि डयां िलए चरण पर िगर पड़,े योितषीजी ने आशीवार्द िदया। इससे यादे न
ठहर सके , जख्म के दद्र से चार बेहोश होकर जमीन पर िगर पड़े और बदन से खनू िनकलनेलगा। जीतिसहं ने पहुंचकर चार के जख्म पर पट्टी बांधी, चहे रा धलु ने से ये चार पहचाने गए।थोड़ी देर म ये सब होश म आ गए। राजा सुरे द्रिसहं अपने यारे लड़के को देर तक छाती सेलगाये रहे और तीन ऐयार पर भी बहुत मेहरबानी की। महाराज जयिसहं कु मार की िदलावरीपर मोिहत हो तारीफ करने लगे। कु मार ने उनके पैर को हाथ लगाया और खुशी - खशु ी दसू रेलोग से िमले। चुनार का िकला फतह हो गया। महाराज जयिसहं और सुरे द्रिसहं दोन ने िमलकर उसीरोज कु मार को राजग ी पर बठै ाकर ितलक दे िदया। ज न शु हुआ1. वीरे द्रिसहं के ल कर का जदर् िनशान था।और मुहताज को खैरात बंटने लगी। सात रोज तक ज न रहा। महाराज िशवद त की कु लफौज ने िदलोजान से कु मार की ताबेदारी कबूल की। हमारा कोई आदमी जनाने महल म नहीं गया बि क वहां इंतजाम करके पहरा मुकर्ररिकया गया। कई िदन के बाद महाराज जयिसहं और राजा सुरे द्रिसहं कंु अर वीरे द्रिसहं को ितिल मतोड़ने की ताकीद करके खशु ी - खुशी िवजयगढ़ और नौगढ़ रवाना हुए। उनके जाने के बादकंु अर वीरे द्रिसहं अपने ऐयार और कु छ फौज साथ ले ितिल म की तरफ रवाना हुए। बीसवाँ बयान ितिल म के दरवाजे पर कंु अर वीरे द्रिसहं का डरे ा खड़ा हो गया। खजाना पहले हीिनकाल चकु े थ,े अब कु ल दो टु कड़े ितिल म के टू टने को बाकी थे, एक तो वह चबूतरा िजसपर प थर का आदमी सोया था दसू रे अजदहे वाले दरवाजे को तोड़कर वहां पहुंचना जहां
कु मारी चदं ्रका ता और चपला थी।ं ितिल मी िकताब कु मार के हाथ लग ही चकु ी थी, उसकेकई प ने बाकी रह गये थे, आज उसे िब कु ल पढ़ गए। कु मारी चदं ्रका ता के पास पहुंचने तकजो - जो काम इनको करने थे सब यान म चढ़ा िलए, मगर उस चबतू रे के तोड़ने की तरकीबिकताब म न देखी िजस पर प थर का आदमी सोया हुआ था, हां उसके बारे म इतना िलखाथा िक 'वह चबूतरा एक दसू रे ितिल म का दरवाजा है जो इस ितिल म से कहीं बढ़ - चढ़ केहै और माल - खजाने की तो इ तहा नहीं िक िकतना रखा हुआ है। वहां की एक - एक चीजऐसे ता जुब की है िक िजसके देखने से बड़े - बड़े िदमाग वाल की अक्ल चकरा जाय। उसकेतोड़ने की तरकीब दसू री ही है, ताली भी उसकी उसी आदमी के क जे म है जो उस पर सोयाहुआ है।' कु मार ने योितषीजी की तरफ देखकर कहा, ''क्य योितषीजी! क्या वह चबूतरे वालाितिल म मेरे हाथ से न टू टेगा?'' यो - देखा जायगा, पहले आप कु मारी चदं ्रका ता को छु ड़ाइए। कु मार - अ छा चिलए, यह काम तो आज ही ख म हो जाय। तीन ऐयार को साथ लेकर कंु अर वीरे द्रिसहं उस ितिल म म घसु े। जो कु छ उसितिल मी िकताब म िलखा हुआ था खूब ख्याल कर िलया और उसी तरह काम करने लगे। खंडहर के अंदर जाकर उस मालूमी दरवाजे 1 को खोला जो उस प थर वाले चबतू रे केिसरहाने की तरफ था। नीचे उतरकर कोठरी म से होते हुए उसी बाग म पहुंचे जहां खजानेऔर बारहदरी के िसहं ासन के ऊपर का वह प थर हाथ लगा1. पहले िलख चकु े ह िक इसकी ताली तेजिसहं के सुपदु ्र थी।था िजसको छू कर चपला बेहोश हो गई थी और िजसके बारे म ितिल मी िकताब म िलखाहुआ था िक 'वह एक िड बा है और उसके अदं र एक नायाब चीज रखीहै।'
चार आदमी नहर के रा ते गोता मारकर उसी तरह बाग के उस पार हुए िजस तरहचपला उसके बाहर गई थी और उसी की तरह पहाड़ी के नीचे वाली नहर के िकनारे - िकनारेचलते हुए उस छोटे - से दलान म पहुंचे िजसम वह अजदहा था िजसके मंहु म चपला घुसीथी। एक तरफ दीवार म आदमी के बराबर काला प थर जड़ा हुआ था। कु मार ने उस पर जोरसे लात मारी, साथ ही वह प थर प ले की तरह खुल के बगल म हो गया और नीचे उतरनेकी सीिढ़यां िदखाई पड़ी।ं मशाल बाल चार आदमी नीचे उतरे, यहां उस अजदहे की िब कु ल कारीगरी नजर पड़ी।कई चरखी और पुरज के साथ लगी हुई भोजपत्र की बनी मोटी भाथी उसके नीचे थी िजसकोदेखने से कु मार समझ गये िक जब अजदहे के सामने वाले प थर पर कोई पैर रखता है तोयह भाथी चलने लगती है और इसकी हवा की तेजी सामने वाले आदमी को खीचं कर अजदहेके मुंह म डाल देती है। बगल म एक िखड़की थी िजसका दरवाजा बदं था। सामने ताली रखी हुई थी िजससेताला खोलकर चार आदमी उसके अदं र गए। यहां से वे लोग छत पर चढ़ गए जहां से गलीकी तरह एक खोह िदखाई पड़ी। िकताब से पहले ही मालूम हो चुका था िक यही खोह की - सी गली उस दलान म जानेके िलए राह है जहां चपला और चदं ्रका ता बेबस पड़ी ह। अब कु मारी चंद्रका ता से मलु ाकात होगी, इस ख्याल से कु मार का जी धड़कने लगा।चपला की महु बत ने तजे िसहं के परै िहला िदये। खशु ी - खशु ी ये लोग आगे बढ़े। कु मारसोचते जाते थे िक 'आज जैसे िनराले म कु मारी चंद्रका ता से मुलाकात होगी वसै ी पहले कभीन हुई थी। म अपने हाथ से उसके बाल सलु झाऊं गा, अपनी चादर से उसके बदन की गदर्झाडू गं ा। हाय, बड़ी भारी भलू हो गई िक कोई धोती उसके पहनने के िलए नहीं लाए, िकस मुहं
से उसके सामने जाऊं गा, वह फटे कपड़ म कै सी द:ु खी होगी! म उसके िलए कोई कपड़ा नहींलाया इसिलए वह ज र खफा होगी और मझु े खुदगजर् समझगे ी। नहीं - नहीं वह कभी रंज नहोगी, उसको मुझसे बड़ी मुह बत है, देखते ही खुश हो जायगी, कपड़े का कु छ ख्याल न करेगी।हां, खूब याद पड़ा, म अपनी चादर अपनी कमर म लपेट लंगू ा और अपनी धोती उसे पिहराऊं गा,इस वक्त का काम चल जायगा। (च ककर) यह क्या, सामने कई आदिमय के परै की चापसनु ाई पड़ती है! शायद मेरा आना मालमू करके कु मारी चंद्रका ता और चपला आगे से िमलनेको आ रही ह। नहीं - नहीं, उनको क्या मालूम िक म यहां आ पहुंचा!' ऐसी - ऐसी बात सोचते और धीरे - धीरे कु मार बढ़ रहे थे िक इतने म ही आगे दो भेिड़यके लड़ने और गुरा्रने की आवाज आई िजसे सुनते ही कु मार के पैर दो - दो मन के हो गए।तजे िसहं की तरफ देखकर कु छ कहा चाहते थे मगर महुं से आवाज न िनकली। चलते - चलतेउस दलान म पहुंचे जहां नीचे खोह के अदं र से कु मारी और चपला को देखा था। परू ी उ मीद थी िक कु मारी चंद्रका ता और चपला को यहां देखगे, मगर वे कहीं नजर नआईं, हां जमीन पर पड़ी दो लाश ज र िदखाई दीं िजनम मासं बहुत कम था, िसर से परै तकनुची ह डी िदखाई देती थी,ं चेहरे िकसी के भी दु त न थे। इस वक्त कु मार की कै सी दशा थी वे ही जानते ह गे। पागल की - सी सरू त हो गई,िच लाकर रोने और बकने लगे - ''हाय चदं ्रका ता, तुझे कौन ले गया? नहीं, ले नहीं बि क मारगया! ज र इ हीं भेिड़य ने तुझे मझु से जुदा िकया िजनकी आवाज यहां पहुंचने के पहले मनेसनु ी थी। हाय वह भेिड़या बड़ा ही बेवकू फ था जो उसने तरे े खाने म ज दी की, उसके िलए तोम पहुंच ही गया था, मेरा खनू पीकर वह बहुत खशु होता क्य िक इसम तेरी मुह बत कीिमठास भरी हुई है! तेरे म क्या बचा था, सूख के पहले ही कांटा हो रही थी! मगर क्या सचमचुतुझे भेिड़या खा गया या म भूलता हूं? क्या यह दसू री जगह तो नहीं है? नहीं - नहीं, वह सामनेदु ट िशवद त बैठा है। हाय अब म जीकर क्या क ं गा, मेरी िजदं गी िकस काम आवगे ी, मकौन मुहं लेकर महाराज जयिसहं के सामने जाऊं गा! ज दी मत करो, धीरे -धीरे चलो, म भी
आता हूं, तु हारा साथ मरने पर भी न छोड़ूगं ा! आज नौगढ़, िवजयगढ़ और चनु ारगढ़ तीनरा य िठकाने लग गए। म तो तु हारे पास आता ही हूं, मेरे साथ ही और कई आदमी आवगेजो तु हारी िखदमत के िलए बहुत ह गे। हाय, इस स यानाशी ितिल म न,े इस दु ट िशवद तने, इन भेिड़य न,े आज बड़े - बड़े िदलावर को खाक म िमला िदया। बस हो गया, दिु नयाइतनी ही बड़ी थी, अब खतम हो गई। हां - हा,ं दौड़ी क्य जाती हो, लो म भी आया!'' इतना कह और पहाड़ी के नीचे की तरफ देख कु मार कू द के अपनी जान िदया ही चाहतेथे और तीन ऐयार स न खड़े देख ही रहे थे िक यकायक भारी आवाज के साथ दलान के एकतरफ की दीवार फट गयी और उसम से एक वदृ ्ध महापु ष ने िनकलकर कु मार का हाथ पकड़िलया। कु मार ने िफरकर देखा लगभग अ सी वषर् की उम्र, लंबी - लबं ी सफे द ई की तरह दाढ़ीनाभी तक आई हुई, िसर की लबं ी जटा जमीन तक लटकती हुई, तमाम बदन म भ म लगाये।लाल और बड़ी - बड़ी आंख िनकाले, दािहने हाथ म ित्रशलू उठाये, बाय हाथ से कु मार को थामे,गु से से बदन कं पाते तापसी प िशवजी की तरह िदखाई पड़े िज ह ने कड़क के आवाज दीऔर कहा, ''खबरदार जो िकसी को िवधावा करेगा!'' यह आवाज इस जोर की थी िक सारा मकान दहल उठा, तीन ऐयार के कलेजे कांप उठे ।कंु अर वीरे द्रिसहं का िबगड़ा हुआ िदमाग िफर िठकाने आ गया। देर तक उ ह िसर से परै तकदेखकर कु मार ने कहा : ''मालूम हुआ, म समझ गया िक आप साक्षात िशवजी या कोई योगी ह, मेरी भलाई केिलए आये ह। वाह - वाह खबू िकया जो आ गए! अब मेरा धम्र बच गया, म क्षत्री होकरआ मह या न कर सका। एक हाथ आपसे लड़ूगं ा और इस अद्भतु ित्रशलू पर अपनी जान यौछावर क ं गा? आप ज र इसीिलए आये ह, मगर महा माजी, यह तो बताइये िक म िकसकोिवधावा क ं गा? आप इतने बड़े महा मा होकर झठू क्य बोलते ह? मेरा है कौन? मने िकसके
साथ शादी की है, हाय! कहीं यह बात कु मारी सनु ती तो उसको ज र यकीन हो जाता िक ऐसेमहा मा की बात भला कौन काट सकता है?'' वदृ ्ध योगी ने कड़ककर कहा, ''क्या म झूठा हूं? क्या तू क्षत्री है? क्षित्रय के यही धम्र होतेह? क्य वे अपनी प्रितज्ञा को भूल जाते ह? क्या तनू े िकसी से िववाह की प्रितज्ञा नहीं की? लेदेख पढ़ िकसका िलखा हुआ है?'' यह कह अपनी जटा के नीचे से एक खत िनकालकर कु मार के हाथ म दे दी। पढ़ते हीकु मार च क उठे । ''ह, यह तो मेरा ही िलखा है! क्या िलखा है? 'मझु े सब मजं ूर है!' इसके दसू रीतरफ क्या िलखा है। हां अब मालमू हुआ, यह तो उस वनक या की खत है। इसी म उसनेअपने साथ याह करने के िलए मुझे िलखा था, उसके जवाब म मने उसकी बात कबूल कीथी। मगर खत इनके हाथ कै से लगी! वनक या से इनसे क्या वा ता?'' कु छ ठहरकर कु मार ने पछू ा, ''क्या इस वनक या को आप जानते ह?'' इसके जवाब म िफरकड़क के वदृ ्ध योगी बोले, ''अभी तक जानने को कहता है! क्या उसे तेरे सामने कर दं?ू '' इतना कहकर एक लात जमीन पर मारी, जमीन फट गई 1 और उसम से वनक या नेिनकलकर कु मार का पावं पकड़ िलया। ॥ भाग -3(तीसरा अ याय) समा त ॥
॥ भाग -4 (चौथा अ याय) ॥ पहला बयान वनक या को यकायक जमीन से िनकल परै पकड़ते देख वीरे द्रिसहं एकदम घबरा उठे ।देर तक सोचते रहे िक यह क्या मामला है, यहां वनक या क्य कर आ पहुंची और यह योगीकौन ह जो इसकी मदद कर रहे ह? आिखर बहुत देर तक चुप रहने के बाद कु मार ने योगी सेकहा, ''म इस वनक या को जानता हूं। इसने हमारे साथ बड़ा भारी उपकार िकया है और मइससे बहुत कु छ वादा भी कर चुका हूं, लेिकन मेरा वह वादा िबना कु मारी चंद्रका ता के िमलेपरू ा नहीं हो सकता। देिखये इसी खत म, जो आपने दी है, क्या शतर् है? खुद इ ह ने िलखा हैिक 'मुझसे और कु मारी चदं ्रका ता से एक ही िदन शादी हो' और इस बात को मने मंजरू िकयाहै, पर जब कु मारी चदं ्रका ता ही इस दिु नया से चली गयी, तब म िकसी से याह नहीं करसकता, इकरार दोन से एक साथ ही शादी करने का है।'' योगी - (वनक या की तरफ देखकर) क्य रे, तू मुझे झठू ा बनाया चाहती है? वनक या - (हाथ जोड़कर) नहीं महाराज, म आपको कै से झठू ा बना सकती हूं? आप इनसेयह पूछ िक इ ह ने कै से मालमू िकया िक चदं ्रका ता मर गई? योगी - (कु मार से) कु छ सुना! यह लड़की क्या कहती है? तुमने कै सा जाना िक कु मारीचंद्रका ता मर गई है? कु मार - (कु छ चौक ने होकर) क्या कु मारी जीती है? योगी - जो म पछू ता हूं, पहले उसका तो जवाब दे लो? कु मार - पहले जब म इस खोह म आया था तब इस जगह मने कु मारी चदं ्रका ता औरचपला को देखा था, बि क बातचीत भी की थी। आज उन दोन की जगह इन दो लाश कोदेखने से मालमू हुआ िक ये दोन ...!(इतना कहा था िक गला भर आया।)
योगी - (तजे िसहं की तरफ देखकर) क्या तु हारी अक्ल भी चरने चली गई? इन दोनलाश को देखकर इतना न पहचान सके िक ये मद की लाश ह या औरत की? इनकी लबं ाईऔर बनावट पर भी कु छ ख्याल न िकया! तजे - (घबड़ाकर तथा दोन लाश की तरफ गौर से देख और शमार्कर) मुझसे बड़ी भूलहुई िक मने इन दोन लाश पर गौर नहीं िकया, कु मार के साथ ही म भी घबड़ा गया।हकीकत म दोन लाश मद की ह, औरत की नहीं। योगी - ऐयार से ऐसी भलू का होना िकतने शमर् की बात है! इस जरा - सी भलू मकु मार की जान जा चुकी थी! (उं गली से इशारा करके ) देखो उस तरफ उन दोन पहािड़य केबीच म! इतना इशारा बहुत है, क्य िक तमु इस तहखाने का हाल जानते हो, अपने ओ ताद सेसनु चुके हो। तेजिसहं ने उस तरफ देखा, साथ ही टकटकी बंधा गयी। कु मार भी उसी तरफ देखने लगे,देवीिसहं और योितषीजी की िनगाह भी उधर ही जा पड़ी। यकायक तेजिसहं घबड़ाकर बोले,''ओह, यह क्या हो गया?'' तेजिसहं के इतना कहने से और भी सभी का ख्याल उसी तरफ चलागया। कु छ देर बाद योगीजी से और बातचीत करने के िलए तजे िसहं उनकी तरफ घूमे मगरउनको न पाया, वनक या भी िदखाई न पड़ी, बि क यह भी मालमू न हुआ िक वे दोन िकसराह से आये थे और कब चले गये। जब तक वनक या और योगीजी यहां थे, उनके आने कारा ता भी खलु ा हुआ था, दीवार म दरार मालूम पड़ती थी, जमीन फटी हुई िदखाई देती थी,मगर अब कहीं कु छ नहीं था। दसू रा बयान
आिखर कंु अर वीरे द्रिसहं ने तजे िसहं से कहा, ''मुझे अभी तक यह न मालमू हुआ िकयोगीजी ने उं गली के इशारे से तु ह क्या िदखाया और इतनी देर तक तु हारा यान कहांअटका रहा, तमु क्या देखते रहे और अब वे दोन कहां गायब हो गये। तेज - क्या बताव िक वे दोन कहां चले गये, कु छ खुलासा हाल उनसे न िमल सका, अबबहुत तर ुद करना पड़गे ा। वीरे द्र - आिखर तुम उस तरफ क्या देख रहे थ?े तजे - हम क्या देखते थे इस हाल के कहने म बड़ी देर लगेगी और अब यहां इन मुदकी बदबू से का नहीं जाता। इ ह इसी जगह छोड़ इस ितिल म के बाहर चिलये, वहां जोकु छ हाल है कहूंगा। मगर यहां से चलने के पहले उसे देख लीिजये िजसे इतनी देर तक मता जबु से देख रहा था। वह दोन पहािड़य के बीच म जो दरवाजा खलु ा नजर आ रहा है, सोपहले बंद था, यही ता जबु की बात थी। अब चिलये, मगर हम लोग को कल िफर यहां लौटनापड़गे ा। यह ितिल म ऐसे राह पर बना हुआ है िक अदं र - अंदर यहां तक आने म लगभगपांच कोस का फासला मालमू पड़ता है और बाहर की राह से अगर इस तहखाने तक आव तोपंद्रह कोस चलना पड़गे ा। कु मार - खैर यहां से चलो, मगर इस हाल को खलु ासा सुने िबना तबीयत घबड़ा रही है। िजस तरह चार आदमी ितिल म की राह से यहां तक पहुंचे थे उसी तरह ितिल म केबाहर हुए। आज इन लोग को बाहर आने तक आधी रात बीत गई, इनके ल कर वाले घबड़ारहे थे िक पहले तो पहर िदन बाकी रहते बाहर िनकल आते थ,े आज देर क्य हुई? जब ये लोगअपने खेमे म पहुंचे तो सब का जी िठकाने हुआ। तेजिसहं ने कु मार से कहा, ''इस वक्त आपसो रह कल आपसे जो कु छ कहना है कहूंगा।'' तीसरा बयान
यह तो मालमू हुआ िक कु मारी चंद्रका ता जीती है, मगर कहां है और उस खोह म सेक्य कर िनकल गई, वनक या कौन है, योगीजी कहां से आये, तेजिसहं को उ ह ने क्या िदखायाइ यािद बात को सोचते और ख्याल दौड़ाते कु मार ने सुबह कर दी, एक घड़ी भी नीदं न आई।अभी सबेरा नहीं हुआ िक पलगं से उतर ज दी के मारे खदु तजे िसहं के डरे े म गए। वे अभीतक सोये थे, उ ह जगाया। तजे िसहं ने उठकर कु मार को सलाम िकया। जी म तो समझ ही गए थे िक वही बातपछू ने के िलए कु मार बेताब ह और इसी से इ ह ने आकर मझु े इतनी ज दी उठाया है मगरिफर भी पछू ा, ''किहए क्या है जो इतने सबेरे आप उठे ह?'' कु मार – रातभर नींद नहीं आई,अब जो कु छ कहना हो, ज दी कहो, जी बेचैनहै। तेज - अ छा आप बठै जाइये, म कहता हूं। कु मार बठै गये और देवीिसहं तथा योितषीजी को भी उसी जगह बलु वा भेजा। जब वेआ गये, तजे िसहं ने कहना शु िकया, ''यह तो मझु े अभी तक मालूम नहीं हुआ िक कु मारीचंद्रका ता को कौन ले गया या वह योगी कौन थे और वनक या की मदद क्य करने लगे,मगर उ ह ने जो कु छ मझु े िदखाया वह इतने ता जबु की बात थी िक म उसे देखने म हीइतना डू बा िक योगीजी से कु छ पछू न सका और वे भी िबना कु छ खुलासा हाल कहे चलतेबने। उस िदन पहले पहल जब म आपको खोह म ले गया, तब वहां का हाल जो कु छ मनेअपने गु जी से सुना था आपसे कहा था, याद है?'' कु मार - बखूबी याद है। तजे - मने क्या कहा था?
कु मार - तुमने यही कहा था िक उसम बड़ा भारी खजाना है, मगर उस पर एक छोटा -सा ितिल म भी बंधा हुआ है जो बहुत सहज म टू ट सके गा, क्य िक उसके तोड़ने की तरकीबतु हारे ओ ताद तु ह कु छ बता गये ह। तेज - हां ठीक है, मने यही कहा था। उस खोह म मने आपको एक दरवाजा दो पहािड़यके बीच म िदखाया था, िजसे योगी ने मझु े इशारे से बताया था। उस दरवाजे को खुला देखमुझे मालमू हो गया िक उस ितिल म को िकसी ने तोड़ डाला और वहां का खजाना ले िलया,उसी वक्त मझु े यह ख्याल आया िक योगी ने उस दरवाजे की तरफ इसीिलए इशारा िकया िकिजसने ितिल म तोड़कर वह खजाना िलया है, वही कु मारी चदं ्रका ता को भी ले गया होगा।इसी सोच और तर ुत म डू बा हुआ म एकटक उस दरवाजे की तरफ देखता रह गया औरयोगी महाराज चलते बने। तजे िसहं की इतनी बात सनु कर बड़ी देर तक कु मार चपु बठै े रहे, बदहवासी - सी छा गई,इसके बाद स हलकर बठै े और िफर बोले : कु मार - तो कु मारी चंद्रका ता िफर एक नई बला म फं स गई? तजे - मालूम तो ऐसा ही पड़ता है। कु मार - तब इसका पता कै से लगे? अब क्या करना चािहए? तजे - पहले हम लोग को उस खोह म चलना चािहए। वहां चलकर उस ितिल म कोदेख िजसे तोड़कर कोई दसू रा वह खजाना ले गया है। शायद वहां कु छ िमले या कोई िनशानपाया जाय, इसके बाद जो कु छ सलाह होगी िकया जायगा। कु मार - अ छा चलो, मगर इस वक्त एक बात का ख्याल और मेरे जी म आता है। तजे - वह क्या?
कु मार - जब बद्रीनाथ को कै द करने उस खोह म गये थे और दरवाजा न खलु ने परवापस आए, उस वक्त भी शायद उस दरवाजे को भीतर से उसी ने बंद कर िलया हो िजसनेउस ितिल म को तोड़ा है। वह उस वक्त उसके अंदर रहा होगा। तेज - आपका ख्याल ठीक है, ज र यही बात है, इसम कोई शक नहीं बि क उसी नेिशवद त को भी छु ड़ाया होगा। कु मार - हो सकता है, मगर जब छू टने पर िशवद त ने बेईमानी पर कमर बांधी और पीछेमेरे ल कर पर धावा मारा तो क्या उसी ने िफर िशवद त को िगर तार करके उस खोह मडाल िदया? और क्या वह पजु ार् भी उसी का िलखा था जो िशवद त के गायब होने के बादउसके पलंग पर िमला था? तेज - हो सकता है। कु मार - तो इससे मालूम होता है िक वह हमारा दो त भी है, मगर दो त है तो िफरकु मारी को क्य ले गया? तेज - इसका जवाब देना मिु कल है, कु छ अक्ल काम नहीं करती, िसवाय इसके िशवद तके छू टने के बाद भी तो आपको उस खोह म जाने का मौका पड़ा था और हम लोग भीआपको खोजते हुए उस खोह म पहुंचे, उस वक्त चपला ने तो नहीं कहा िक इस खोह म कोईआया था िजसने िशवद त को एक दफे छु ड़ा के िफर कै द कर िदया। उसने उसका कोई िजक्रनहीं िकया, बि क उसने तो कहा था िक हम िशवद त को बराबर इसी खोह म देखते ह, नउसने कोई खौफ की बात बतायी। कु मार - मामला तो बहुत ही पेचीदा मालमू पड़ता है, मगर तुम भी कु छ गलती कर गये। तजे - मने क्या गलती की?
कु मार - कल योगी ने दीवार से िनकलकर मझु े कू दने से रोका, इसके बाद जमीन परलात मारी और वहां की जमीन फट गई और वनक या िनकल आई, तो योगी कोई देवता तोथे ही नहीं िक लात मार के जमीन फाड़ डालते। ज र वहां पर जमीन के अंदर कोई तरकीबहै। तु ह भी मुनािसब था िक उसी तरह लात मारकर देखते िक जमीन फटती है या नही।ं तेज - यह आपने बहुत ठीक कहा, तो अब क्या कर? कु मार - आज िफर चलो, शायद कु छ काम िनकल जाय, अभी खोह म जाने की क्याज रत है? तजे - ठीक है चिलए। आज िफर कु मार और तीन ऐयार उस ितिल म म गए। मालूमी राह से घूमते हुए उसीदलान म पहुंचे जहां योगी िनकले थे। जाकर देखा तो वे दोन सड़ी और जानवर की खाई हुईलाश वहां न थी,ं जमीन धोई – धोई साफ मालमू पड़ती थी। थोड़ी देर तक ता जुब म भरे येलोग खड़े रहे, इसके बाद तजे िसहं ने गौर करके उसी जगह जोर से लात मारी जहां योगी नेलात मारी थी। फौरन उसी जगह से जमीन फट गई और नीचे उतरने के िलए छोटी - छोटी सीिढ़यांनजर पड़ीं। खशु ी - खुशी ये चार आदमी नीचे उतरे। वहां एक अंधेरी कोठरी म घूम - घमू करइन लोग को कोई दसू रा दरवाजा खोजना पड़ा मगर पता न लगा। लाचार होकर िफर बाहरिनकल आए, लेिकन वह फटी हुई जमीन िफर न जड़ु ी, उसी तरह खलु ी रह गयी। तजे िसहं नेकहा, ''मालमू होता है िक भीतर से बदं करने की कोई तरकीब इसम है जो हम लोग कोमालूम नहीं, खरै जो भी हो काम कु छ न िनकला, अब िबना बाहर की राह इस खोह म आएकोई मतलब िसद्ध न होगा।'' चार आदमी ितिल म के बाहर हुए। तजे िसहं ने ताला बंद कर िदया। 1
एक रोज िटककर कंु अर वीरे द्रिसहं ने फतहिसहं सेनापित को नायब मकु रर्र करके चुनारभेज देने के बाद नौगढ़ की तरफ कू च िकया और वहां पहुंचकर अपने िपता से मुलाकात की।राजा सुरे द्रिसहं के इशारे से जीतिसहं ने रात को एकांत म ितिल म का हाल कंु अर वीरे द्रिसहंसे पूछा। उसके जवाब म जो कु छ ठीक - ठीक हाल था कु मार ने उनसे कहा। जीतिसहं ने उसी जगह तजे िसहं को बलु वाकर कहा, ''तमु दोन ऐयार कु मार को साथलेकर खोह म जाओ और उस छोटे ितिल म को कु मार के हाथ से फतह करवाओ िजसकाहाल तु हारे ओ ताद ने तमु से कहा था। जो कु छ हुआ है सब1. िजस चबूतरे पर प थर का आदमी सोया था उसके िसरहाने की तरफ जो प थर रखकरताला बदं कर देते थे वही ितिल म का मुंह बदं कर देना या ताला बदं कर देना था, िफर कोईखोल नहीं सकता था।इसी बीच म खुल जायगा। लेिकन ितिल म फतह करने के पहले दो काम करो, एक तो थोड़ेआदमी ले जाओ और महाराज िशवद त को उनकी रानी समेत यहां भेजवा दो, दसू रे जब खोहके अदं र जाना तो दरवाजा भीतर से बदं कर लेना। अब महाराज से मलु ाकात करने और कु छपछू ने की ज रत नहीं, तुम लोग इसी वक्त यहां से कू च कर जाओ और रानी के वा ते एकडोली भी साथ िलवाते जाओ।'' कंु अर वीरे द्रिसहं ने तीन ऐयार और थोड़े आदिमय को साथ ले खोह की तरफ कू चिकया। सबु ह होते - होते ये लोग वहां पहुंचे। िसपािहय को कु छ दरू छोड़ चार आदमी खोहका दरवाजा खोलकर अदं र गये। सबेरा हो गया था, तजे िसहं ने महाराज िशवद त और उनकी रानी को खोह के बाहरलाकर िसपािहय के सपु ुदर् िकया और महाराज िशवद त को पदै ल और उनकी रानी को डोलीपर चढ़ाकर ज दी नौगढ़ पहुंचाने के िलए ताकीद करके िफर खोह के अदं र पहुंच।े
चौथा बयान राजा सुरे द्रिसहं के िसपािहय ने महाराज िशवद त और उनकी रानी को नौगढ़ पहुंचाया।जीतिसहं की राय से उन दोन को रहने के िलए सुदं र मकान िदया गया। उनकी हथकड़ी -बेड़ी खोल दी गयी, मगर िहफाजत के िलए मकान के चार तरफ सख्त पहरा मकु र्रर कर िदयागया। दसू रे िदन राजा सरु े द्रिसहं और जीतिसहं आपस म कु छ राय कर के पिं डत बद्रीनाथ,प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल - इन चार कै दी ऐयार को साथ ले उस मकान म गयेिजसम महाराज िशवद त और उनकी महारानी को रखा था। राजा सुरे द्रिसहं के आने की खबर सुनकर महाराज िशवद त अपनी रानी को साथ लेकरदरवाजे तक इ तकबाल (अगवानी) के िलए आए और मकान म ले जाकर आदर के साथबठै ाया। इसके बाद खुद दोन आदमी सामने बैठे । हथकड़ी और बेड़ी पिहरे ऐयार भी एक तरफबैठाये गये। महाराज िशवद त ने पूछा, ''इस वक्त आपने िकसिलए तकलीफ की?'' राजा सरु े द्रिसहं ने इसके जवाब म कहा, ''आज तक आपके जी म जो कु छ आया िकया,क्रू रिसहं के बहकाने से हम लोग को तकलीफ देने के िलए बहुत - कु छ उपाय िकया, धोखािदया, लड़ाई ठानी, मगर अभी तक परमे वर ने हम लोग की रक्षा की। क्रू रिसहं , नािज़म औरअहमद भी अपनी सजा को पहुंच गये और हम लोग की बरु ाई सोचते - सोचते ही मर गये।अब आपका क्या इरादा है? इसी तरह कै द म पड़े रहना मजं ूर है या और कु छ सोचा है?'' महाराज िशवद त ने कहा, ''आपकी और कंु अर वीरे द्रिसहं की बहादरु ी म कोई शक नहीं,जहां तक तारीफ की जाय थोड़ी है। परमे वर आपको खशु रखे और पोते का सखु िदखलाव,ेउसे गोद म लेकर आप िखलाव और मने जो कु छ िकया उसे आप माफ कर। मुझे रा य कीअब िब कु ल अिभलाषा नहीं है। चुनार ◌के ो आपने िजस तरह फतह िकया और वहां जो कु छहुआ मुझे मालमू है। म अब िसफर् एक बात चाहता हूं, परमे वर के िलए तथा अपनी जवांमदीर्
और बहादरु ी की तरफ ख्याल करके मेरी इ छा परू ी कीिजए।'' इतना कह हाथ जोड़कर सामनेखड़े हो गये। राजा सरु े द्र - जो कु छ आपके जी म हो किहए, जहां तक हो सके गा म उसे पूरा क ं गा। िशव - जो कु छ म चाहता हूं आप सनु लीिजए। मेरे आगे कोई लड़का नहीं है िजसकीमझु े िफक्र हो, हां चुनार के िकले म मेरे िर तेदार की कई बेवाएं ह िजनकी परविरश मेरे हीसबब से होती थी, उनके िलए आप कोई ऐसा बंदोब त कर द िजससे उन बेचािरय की िजंदगीआराम से गजु रे। और भी िर ते के कई आदमी ह, लेिकन म उनके िलए िसफािरश न क ं गाबि क उनका नाम भी न बतलाऊं गा, क्य िक वे मदर् ह, हर तरह से कमा - खा सकते ह, औरहमको अब आप कै द से छु ट्टी दीिजए। अपनी त्री को साथ ले जंगल म चला जाऊं गा, िकसीजगह बैठकर ई वर का नाम लंगू ा, अब महंु िकसी को िदखाना नहीं चाहता, बस और कोईआरजू नहीं है। सुरे द्र - आपके िर ते की िजतनी औरत चनु ार म ह सभी की अ छी तरह से परविरशहोगी, उनके िलए आपको कु छ कहने की ज रत नहीं, मगर आपको छोड़ देने म कई बात काख्याल है। िशव - कु छ नही,ं (जनेऊ हाथ म लेकर) म धम्र की कसम खाता हूं अब जी म िकसीतरह की बुराई नहीं है, कभी आपकी बरु ाई न सोचूंगा। सरु े द्र - अभी आपकी उम्र भी इस लायक नहीं हुई है िक आप तप या कर। िशव - जो हो, अगर आप बहादरु ह तो मझु े छोड़ दीिजये। सुरे द्र - आपकी कसम का तो मुझे कोई भरोसा नहीं, मगर आप जो यह कहते ह िकअगर आप बहादरु ह तो मुझे छोड़ द तो म छोड़ देता हूं, जहां जी चाहे जाइये और जो कु छआपको खचर् के िलए चािहए ले लीिजए।
िशव - मझु े खच्र की कोई ज रत नहीं, बि क रानी के बदन पर जो कु छ जेवर ह वह भीउतार के िदये जाता हूं। यह कहकर रानी की तरफ देखा, उस बेचारी ने फौरन अपने बदन के िबलकु ल गहने उतारिदये। सुरे द्र - रानी के बदन से गहने उतरवा िदये यह अ छा नहीं िकया। िशव - जब हम लोग जंगल म ही रहा चाहते ह तो यह ह या क्य िलए जाये? क्या चोरऔर डकै त के हाथ से तकलीफ उठाने के िलए और रात भर सखु की नीदं न सोने के िलए? सरु े द्र - (उदासी से) देखो िशवद तिसहं , तमु हाल ही तक चुनार की ग ी के मािलक थ,ेआज तु हारा इस तरह से जाना मुझे बुरा मालमू होता है। चाहे तुम हमारे दु मन थे तो भीमुझको इस बेचारी तु हारी रानी पर दया आती है। मने तो तु ह छोड़ िदया, चाहे जहां जाओ,मगर एक दफे िफर कहता हूं, अगर तमु यहां रहना कबूल करो तो मेरे रा य का कोई काम जोचाहो म खशु ी से तुमको दं,ू तुम यहीं रहो। िशव - नहीं, अब यहां न रहूंगा, मझु े छु ट्टी दे दीिजए। इस मकान के चार तरफ से पहराहटा लीिजए, रात को जब मरे ा जी चाहेगा चला जाऊं गा। सुरे द्र - अ छा जैसी तु हारी मजीर्! महाराज िशवद त के चार ऐयार चुपचाप बठै े सब बात सनु रहे थे। बात खतम होने परदोन राजाओं के चुप हो जाने पर महाराज िशवद त की तरफ देखकर पिं डत बद्रीनाथ ने कहा,''आप तो अब तप या करने जाते ह, हम लोग के िलए क्या हुक्म होता है?'' िशव - जो तमु लोग के जी म आवे करो, जहां चाहो जाओ, हमने अपनी तरफ से तुमलोग को छु ट्टी दे दी, बि क अ छी बात हो िक तमु लोग कंु अर वीरे द्रिसहं के साथ रहना पसदंकरो, क्य िक ऐसा बहादरु और धािमक्र राजा तुम लोग को न िमलेगा।
बद्री - ई वर आपको कु शल से रखे, आज से हम लोग कंु अर वीरे द्रिसहं के हुए, आप अपनेहाथ हम लोग की हथकड़ी - बेड़ी खोल दीिजए। महाराज िशवद त ने अपने हाथ से चार ऐयार की हथकड़ी - बेड़ी खोल दी, राजासरु े द्रिसहं और जीतिसहं ने कु छ भी न कहा िक आप इनकी बेड़ी क्य खोलते ह। हथकड़ी -बेड़ी खलु ने के बाद चार ऐयार राजा सरु े द्रिसहं के पीछे जा खड़े हुए। जीतिसहं ने कहा, ''अभीएक दफे आप लोग चार ऐयार, मेरे सामने आइये िफर वहां जाकर खड़े होइये, पहले अपनीमामलू ी र म तो अदा कर लीिजए।'' मु कु राते हुए प.ं बद्रीनाथ, प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल जीतिसहं के सामनेआये और िबना कहे जनऊे और ऐयारी का बटु आ हाथ म लेकर कसम खाकर बोले - ''आज सेम राजा सुरे द्रिसहं और उनके खानदान का नौकर हुआ। ईमानदारी और मेहनत से अपनाकाम िकया क ं गा। तजे िसहं , देवीिसहं और योितषीजी को अपना भाई समझगंू ा। बस अब तोर म पूरी हो गयी?'' ''बस और कु छ बाकी नही।ं '' इतना कहकर जीतिसहं ने चार को गले से लगा िलया, िफरये चार ऐयार राजा सरु े द्रिसहं के पीछे जा खड़े हुए। राजा सुरे द्रिसहं ने महाराज िशवद त से कहा, ''अ छा अब म िबदा होता हूं। पहरा अभीउठाता हूं, रात को जब जी चाहे चले जाना, मगर आओ गले तो िमल ल।'' िशव - (हाथ जोड़कर) नहीं म इस लायक नहीं रहा िक आपसे गले िमलं।ू ''नहीं ज र ऐसा करना होगा!'' कहकर सुरे द्रिसहं ने िशवद त को जबरद ती गले लगािलया और उदास मुख से िबदा हो अपने महल की तरफ रवाना हुए। मकान के चार तरफ सेपहरा उठाते गये।
जीतिसहं ,बद्रीनाथ, प नालाल, रामनारायण और चु नीलाल को साथ िलए राजा सुरे द्रिसहंअपने दीवानखाने म जाकर बैठे । घंट तक महाराज िशवद त के बारे म अफसोस भरी बातचीतहोती रही। मौका पाकर जीतिसहं ने अज्र िकया, ''अब तो हमारे दरबार म और चार ऐयार होगये ह िजसकी बहुत ही खुशी है। अगर ताबेदार को पदं ्रह िदन की छु ट्टी िमल जाती तो अ छीबात थी, यहां से दरू बेरादरी म कु छ काम है, जाना ज री है।'' सरु े द्र - इधर एक - एक दो - दो रोज की कई दफे तमु छु ट्टी ले चुके हो। जीत - जी हां, घर ही म कु छ काम था, मगर अबकी तो दरू जाना है इस िलए पदं ्रह िदनकी छु ट्टी मांगता हूं। मेरी जगह पर पं. बद्रीनाथजी काम करगे, िकसी बात का हजर् न होगा। सरु े द्र - अ छा जाओ, लेिकन जहां तक हो सके ज द आना। राजा सुरे द्रिसहं से िबदा हो जीतिसहं अपने घर गये और बद्रीनाथ वगरै ह चार ऐयार कोभी कु छ समझाने - बुझाने के िलए साथ लेते गये। पाचं वाँ बयान कंु अर वीरे द्रिसहं तीन ऐयार के साथ खोह के अदं र घमू ने लगे। तेजिसहं ने इधर - उधरके कई िनशान को देखकर कु मार से कहा, ''बेशक यहां का छोटा ितिल म तोड़ कोई खजानाले गया। ज र कु मारी चंद्रका ता को भी उसी ने कै द िकया होगा। मने अपने ओ ताद कीजबु ानी सनु ा था िक इस खोह म कई इमारत और बाग देखने बि क रहने लायक ह। शायदवह चोर इ हीं म कहीं िमल भी जाय तो ता जबु नही।ं '' कु मार - तब जहां तक हो सके काम म ज दी करनी चािहए। तेज - बस हमारे साथ चिलये, अभी से काम शु हो जाय।
यह कह तजे िसहं कंु अर वीरे द्रिसहं को उस पहाड़ी के नीचे ले गये जहां से पानी काच मा शु होता था। उस च मे से उ तार को चालीस हाथ नापकर कु छ जमीन खोदी। कु मार से तेजिसहं ने कहा था िक ''इस छोटे ितिल म के तोड़ने और खजाना पाने कीतरकीब िकसी धा◌ातु पत्र पर खदु ी हुई यहीं जमीन म गड़ी है।'' मगर इस वक्त यहां खोदने सेउसका कु छ पता न लगा, हां एक खत उसम से ज र िमली िजसको कु मार ने िनकालकर पढ़ा।यह िलखा था : ''अब क्या खोदते हो! मतलब की कोई चीज नहीं है, जो था सो िनकल गया, ितिल म टू टगया। अब हाथ मल के पछताओ।'' तेज - (कु मार की तरफ देखकर) देिखये यह परू ा सबतू ितिल म टू टने का िमल गया! कु मार - जब ितिल म टू ट ही चुका है तो उसके हर एक दरवाजे भी खलु े ह गे? ''हां ज र खलु े ह गे'', यह कहकर तेजिसहं पहािड़य पर चढ़ाते - घुमाते - िफराते कु मारको एक गुफा के पास ले गए िजसम िसफर् एक आदमी के जाने लायक राह थी। तेजिसहं के कहने से एक - एक कर चार आदमी उस गफु ा म घुसे। भीतर कु छ दरूजाकर खलु ासी जगह िमली, यहां तक िक चार आदमी खड़े होकर चलने लगे, मगर टटोलते हुएक्य िक िब कु ल अंधेरा था, हाथ तक नहीं िदखाई देता था। चलते - चलते कंु अर वीरे द्रिसहं काहाथ एक बंद दरवाजे पर लगा जो धाक्का देने से खलु गया और भीतर बखूबी रोशनी मालूमहोने लगी। चार आदमी अंदर गये, छोटा - सा बाग देखा जो चार तरफ से साफ, कहीं ितनके कानाम - िनशान नही,ं मालमू होता था अभी कोई झाड़ू देकर गया है। इस बाग म कोई इमारतन थी, िसफ्र एक फ वारा बीच म था, मगर यह नहीं मालूम होता था िक इसका हौज कहां है।
बाग म घमू ने और इधर - उधर देखने से मालूम हुआ िक ये लोग पहाड़ी के ऊपर चलेगये ह। जब फ वारे के पास पहुंचे तो एक बात ता जुब की िदखाई पड़ी। उस जगह जमीनपर जनाने हाथ का एक जोड़ा कं गन नजर पड़ा, िजसे देखते ही कु मार ने पहचान िलया िककु मारी चंद्रका ता के हाथ का है। झट उठा िलया, आंख से आसं ू की बूदं टपकने लगी,ं तजे िसहंसे पूछा - ''यह कं गन यहां क्य कर पहुंचा? इसके बारे म क्या ख्याल िकया जाय?'' तेजिसहं कु छजवाब िदया ही चाहते थे िक उनकी िनगाह एक कागज पर जा पड़ी जो उसी जगह खत कीतरह मोड़ा पड़ा हुआ था। ज दी से उठा िलया और खोलकर पढ़ा, यह िलखा था : ''बड़ी होिशयारी से जाना, ऐयार लोग पीछा करगे, ऐसा न हो िक पता लग जाय, नहीं तोतु हारा और कु मार दोन का ही बड़ा भारी नुकसान होगा। अगर मौका िमला तो कल आऊं गी- वही।'' इस पजु को पढ़कर तेजिसहं िकसी सोच म पड़ गये, देर तक चपु चाप खड़े न जाने क्या -क्या िवचार करते रहे। आिखर कु मार से न रहा गया, पूछा, ''क्य क्या सोच रहे हो? इस खत मक्या िलखा है?'' तेजिसहं ने वह खत कु मार के हाथ म दे दी, वे भी पढ़कर हैरान हो गए, बोले, ''इसम जोकु छ िलखा है उस पर गौर करने से तो मालमू होता है िक हमारे और वनक या के मामले मही कु छ है, मगर िकसने िलखा यह पता नहीं लगता।'' तजे - आपका कहना ठीक है पर म एक और बात सोच रहा हूं जो इससे भी ता जुब कीहै। कु मार - वह क्या? तेज - इन हरफ को म कु छ - कु छ पहचानता हूं, मगर साफ समझ म नहीं आताक्य िक िलखने वाले ने अपना हरफ िछपाने के िलए कु छ िबगाड़कर िलखा है।
कु मार - खैर इस खत को रख छोड़ो, कभी - न - कभी कु छ पता लग ही जायगा, अब आगेका काम करो। िफर ये लोग घूमने लगे। बाग म कोने म इन लोग को छोटी - छोटी चार िखड़िकयांनजर आईं जो एक के साथ एक बराबर - सी बनी हुई थीं। पहले चार आदमी बाईं तरफ वालीिखड़की म घुसे। थोड़ी दरू जाकर एक दरवाजा िमला िजसके आगे जाने की िब कु ल राह न थीक्य िक नीचे बेढब खतरनाक पहाड़ी िदखाई देती थी। इधर - उधर देखने और खबू गौर करने से मालमू हुआ िक यह वही दरवाजा है िजसकोइशारे से उस योगी ने तजे िसहं को िदखाया था। इस जगह से वह दलान बहुत साफ िदखाईदेता था िजसम कु मारी चंद्रका ता और चपला बहुत िदन तक बेबस पड़ी थी।ं ये लोग वापस होकर िफर उसी बाग म चले आये और उसके बगल वाली दसू री िखड़कीम घसु े जो बहुत अंधेरी थी। कु छ दरू जाने पर उजाला नजर पड़ा बि क हद तक पहुंचने परएक बड़ा - सा खुला फाटक िमला िजससे बाहर होकर ये चार आदमी खड़े हो चार ओरिनगाह दौड़ाने लगे। लबं े - चौड़े मदै ान के िसवाय और कु छ न नजर आया। तजे िसहं ने चाहा िक घमू कर इसमदै ान का हाल मालमू कर। मगर कई सबब से वे ऐसा न कर सके । एक तो धपू बहुत कड़ीथी दसू रे कु मार ने घमू ने की राय न दी और कहा, ''िफर जब मौका होगा इसको देख लगे।इस वक्त तीसरी व चौथी िखड़की म चलकर देखना चािहए िक क्या है।'' चार आदमी लौट आये और तीसरी िखड़की म घसु े। एक बाग म पहुंचते ही देखावनक या कई सिखय को िलए घूम रही है, लेिकन कंु अर वीरे द्रिसहं वगरै ह को देखते ही तेजीके साथ बाग के कोने म जाकर गायब हो गई।
चार आदिमयो ने उसका पीछा िकया और घमू - घमू कर तलाश भी िकया मगर कहींकु छ भी पता न लगा, हां िजस कोने म जाकर वे सब गायब हुई थीं वहां जाने पर एक बंददरवाजा ज र देखा िजसके खोलने की बहुत तरकीब की मगर न खलु ा। उस बाग के एक तरफ छोटी - सी बारहदरी थी। लाचार होकर ऐयार के साथ कंु अरवीरे द्रिसहं उस बारहदरी म एक ओर बैठकर सोचने लगे, ''यह वनक या यहां कै से आई? क्याउसके रहने का यही िठकाना है? िफर हम लोग को देखकर भाग क्य गई? क्या अभी हमसेिमलना उसे मंजूर नहीं?'' इन सब बात को सोचते - सोचते शाम हो गई मगर िकसी कीअक्ल ने कु छ काम न िकया। इस बाग म मेव के दरख्त बहुत थ।े और एक छोटा - सा च मा भी था। चार आदिमयने मेव से अपना पेट भरा और च मे का पानी पीकर उसी बारहदरी म जमीन पर ही लेटगये। यह राय ठहरी िक रात को इसी बारहदरी म गजु ारा करगे, सबेरे जो कु छ होगा देखाजायगा। देवीिसहं ने अपने बटु ए म से सामान िनकालकर िचराग जलाया, इसके बाद बठै कर आपसम बात करने लगे। कु मार - चदं ्रका ता की मुह बत म हमारी दगु ि्र त हो गई, ितस पर भी अब तक कोईउ मीद मालमू नहीं पड़ती। तेज - कु मारी सही - सलामत ह और आपको िमलगी इसम कोई शक नहीं। िजतनीमेहनत से जो चीज िमलती है उसके साथ उतनी ही खुशी म िजदं गी बीततीहै। कु मार - तमु ने चपला के िलए कौन - सी तकलीफ उठाई? तजे - तो चपला ही ने मेरे िलए कौन - सा दखु भोगा? जो कु छ िकया कु मारी चंद्रका ताके िलए।
यो - क्य तजे िसहं , क्या यह चपला तु हारी ही जाित की है? तजे - इसका हाल तो कु छ मालमू नहीं िक यह कौन जात है, लेिकन जब महु बत हो गईतो िफर चाहे कोई जात हो। यो - लेिकन क्या उसका कोई वली वािरस भी नहीं है? अगर तु हारी जाित की न हुईतो उसके मां - बाप कब कबूल करगे? तेज - अगर कु छ ऐसा - वैसा हुआ तो उसको मार डालगूं ा और अपनी भी जान दे दंगू ा। कु मार - कु छ इनाम दो तो हम चपला का हाल तु ह बता द। तजे - इनाम म हम चपला ही को आपके हवाले कर दगे। कु मार - खूब याद रखना, चपला िफर हमारी हो जायगी। तजे - जी हा,ं जी हां, आपकी हो जायगी आपकी हो जायगी। कु मार - चपला हमारी ही जाित की है। इसका बाप बड़ा भारी जमींदार और परू ा ऐयारथा। इसको सात िदन का छोड़कर इसकी मां मर गयी। इसके बाप ने इसे पाला और ऐयारीिसखाई। अभी कु छ ही वष्र गुजरे ह िक इसका बाप भी मर गया। महाराज जयिसहं उसकोबहुत मानते थे, उसने इनके बहुत बड़े - बड़े काम िकये थ।े मरने के वक्त अपनी िब कु ल जमा- पजंू ी और चपला को महाराज के सपु दु ्र कर गया, क्य िक उसका कोई वािरस नहीं था।महाराज जयिसहं इसको अपनी लड़की की तरह मानते ह और महारानी भी इसे बहुत चाहतीह। कु मारी चंद्रका ता का और इसका लड़कपन ही से साथ होने के सबब दोन म बड़ी महु बतहै। तजे - आज तो आपने बड़ी खुशी की बात सनु ाई, बहुत िदन से इसका खुटका लगा हुआथा पर कई बात को सोचकर आपसे नहीं पछू ा। भला यह बात आपको मालूम कै से हुईं?
कु मार - खास चंद्रका ता की जुबानी। तजे - तब तो बहुत ठीक है। तमाम रात बातचीत म गजु र गई, िकसी को नीदं न आई। सबेरे ही उठकर ज री कामसे छु ट्टी पा उसी च मे म नहाकर सं या - पूजा की और कु छ मेवा खा िजस राह से उस बाग मगये थे उसी राह से लौट आये और चौथी िखड़की के अदं र क्या है यह देखने के िलए उसमघसु े। उसम भी जाकर एक हरा - भरा बाग देखा िजसे देखते ही कु मार च क पड़।े छठवाँ बयान तजे िसहं ने कंु अर वीरे द्रिसहं से पछू ा, ''आप इस बाग को देखकर च के क्य ? इसम कौन -सी अद्भतु चीज आपकी नजर पड़ी?'' कु मार - म इस बाग को पहचान गया। तेज - (ता जबु से) आपने इसे कब देखा था? कु मार - यह वही बाग है िजसम म ल कर से लाया गया था। इसी म मेरी आंख खलु ीथी,ं इसी बाग म जब आखं खलु ीं तो कु मारी चंद्रका ता की त वीर देखी थी और इसी बाग मखाना भी िमला था िजसे खाते ही म बेहोश होकर दसू रे बाग म पहुंचाया गया था। वह देखो,सामने वह छोटा - सा तालाब है िजसम मने नान िकया था, दोन तरफ दो जामनु के पेड़कै से ऊं चे िदखाई दे रहे ह। तजे - हम भी इस बाग की सरै कर लेते तो बेहतर था। कु मार - चलो घमू ो, म ख्याल करता हूं िक उस कमरे का दरवाजा भी खुला होगा िजसमकु मारी चदं ्रका ता की त वीर देखी थी।
चार आदमी उस बाग म घमू ने लगे। तीसरे भाग म इस बाग की पूरी कै िफयत िलखीजा चकु ी है, दोहराकर िलखना पढ़ने वाल का समय खराब करना है। कमरे के दरवाजे खलु े हुए थ,े जो - जो चीज पहले कु मार ने देखी थीं आज भी नजरपड़ी।ं सफाई भी अ छी थी, िकसी जगह गदर् या कतवार का नाम - िनशान न था। पहली दफे जब कु मार इस बाग म आये थे तब इनकी दसू री ही हालत थी, ता जुब मभरे हुए थ,े तबीयत घबड़ा रही थी, कई बात का सोच घेरे हुए था, इसिलए इस बाग की सैरपूरी तरह से नहीं कर सके थे, पर आज अपने ऐयार के साथ ह, िकसी बात की िफक्र नहीं,बि क बहुत से अरमान के परू ा होने की उ मीद बधं ा रही है। खुशी - खुशी ऐयार के साथघूमने लगे। आज इस बाग की कोई कोठरी, कोई कमरा, कोई दरवाजा बदं नहीं है, सब जगहको देखत,े अपने ऐयार को िदखाते और मौके - मौके पर यह भी कहते जाते ह - ''इस जगहहम बैठे थ,े इस जगह भोजन िकया था, इस जगह सो गये थे िक दसू रे बाग म पहुंच।े '' तजे िसहं ने कहा, ''दोपहर को भोजन करके सो रहने के बाद आप िजस कमरे म पहुंचे थ,ेज र उस बाग का रा ता भी कहीं इस बाग म से ही होगा, अ छी तरह घमू के खोजनाचािहए।'' कु मार - म भी यही सोचता हूं। देवी - (कु मार से) पहली दफे जब आप इस बाग म आये थे तो खबू खाितर की गयी थी,नहाकर पहनने के कपड़े िमले, पजू ा - पाठ का सामान दु त था, भोजन करने के िलए अ छी- अ छी चीज िमली थीं, पर आज तो कोई बात भी नहीं पूछता, यह क्या? कु मार - यह तमु लोग के कदम की बरकत है। घूमते - घमू ते एक दरवाजा इन लोग को िमला िजसे खोल ये लोग दसू रे बाग म पहुंचे।कु मार ने कहा, ''बेशक यह वही बाग है िजसम दसू री दफे मेरी आखं खुली थी या जहां कई
औरत ने मुझे िगर तार कर िलया था, लेिकन ता जुब है िक आज िकसी की भी सूरत िदखाईनहीं देती। वाह रे िचत्रनगर, पहले तो कु छ और था आज कु छ और ही है। खरै चलो इस बागम चलकर देख िक क्या कै िफयत है, वह त वीर का दरबार और रौनक बाकी है या नहीं।रा ता याद है और म इस बाग म बखूबी जा सकता हूं।'' इतना कह कु मार आगे हुए और उनकेपीछे - पीछे चार ऐयार भी तीसरे बाग की तरफ बढ़े। सातवाँ बयान िवजयगढ़ के महाराज जयिसहं को पहले यह खबर िमली थी िक ितिल म टू ट जाने परभी कु मारी चदं ्रका ता की खबर न लगी। इसके बाद यह मालमू हुआ िक कु मारी जीती -जागती है और उसी की खोज म वीरे द्रिसहं िफर खोह के अंदर गए ह। इन सब बात को सनु- सुनकर महाराज जयिसहं बराबर उदास रहा करते थे। महल म महारानी की भी बरु ी दशाथी। चदं ्रका ता की जदु ाई म खाना - पीना िब कु ल छू टा हुआ था, सखू के काटं ा हो रही थींऔर िजतनी औरत महल म थीं सभी उदास और द:ु खी रहा करती थीं। एक िदन महाराज जयिसहं दरबार म बठै े थ।े दीवान हरदयालिसहं ज री अिजयर् ां पढ़करसनु ाते और हुक्म लेते जाते थ।े इतने म एक जाससू हाथ म एक छोटा - सा िलखा हुआकागज लेकर हािजर हुआ। इशारा पाकर चोबदार ने उसे पेश िकया। दीवान हरदयालिसहं ने उससे पछू ा, ''यह कै साकागज लाया है और क्या कहता है?'' जाससू ने अजर् िकया, ''इस तरह के िलखे हुए कागज शहर म बहुत जगह िचपके हुएिदखाई दे रहे ह। ितरमहु ािनय पर, बाजार म, बड़ी - बड़ी सड़क पर इसी तरह के कागज नजरपड़ते ह। मने एक आदमी से पढ़वाया था िजसके सुनने से जी म डर पदै ा हुआ और एककागज उखाड़कर दरबार म ले आया हूं। बाजार म इन कागज को पढ़ - पढ़कर लोग बहुतघबड़ा रहे ह।''
जाससू के हाथ से कागज लेकर दीवान हरदयालिसहं ने पढ़ा और महाराज को सुनाया।यह िलखा हुआ था - ''नौगढ़ और िवजयगढ़ के राजा आजकल बड़े जोर म आये ह गे। दोन को इस बात कीबड़ी शखे ी होगी िक हम चुनार फतह करके िनि चत हो गए, अब हमारा कोई दु मन नहीं रहा।इसी तरह वीरे द्रिसहं भी फू ले न समाते ह गे। आजकल मजे म खोह की हवा खा रहे ह।मगर यह िकसी को मालमू नहीं िक उन लोग का बड़ा भारी दु मन म अभी तक जीता हूं।आज से म अपना काम शु क ं गा। नौगढ़ और िवजयगढ़ के राज , सरदार और बड़े - बड़ेसेठ - साहूकार को चनु - चुनकर मा ं गा। दोन रा य िमट्टी म िमला दंगू ा और िफर भीिगर तार न होऊं गा। यह न समझना िक हमारे यहां बड़े - बड़े ऐयार ह, म ऐसे - ऐसे ऐयारको कु छ भी नहीं समझता। म भी एक बड़ा भारी ऐयार हूं लेिकन म िकसी को िगर तार नक ं गा, बस जान से मार डालना मेरा काम होगा। अब अपनी - अपनी जान की िहफाजतचाहो तो यहां से भागते जाओ। खबरदार! खबरदार!! खबरदार!! - ऐयार का गु घंटाल - जािलमखां'' इस कागज को सनु महाराज जयिसहं घबरा उठे । हरदयालिसहं के भी होश जाते रहे औरदरबार म िजतने आदमी थे सभी कापं उठे । मगर सब को ढाढ़स देने के िलए महाराज नेगंभीर भाव से कहा, ''हम ऐसे - ऐसे लु च के डराने से नहीं डरते! कोई घबराने की ज रतनहीं। अभी शहर म मुनादी करा दी जाय िक जािलमखां को िगर तार करने की िफक्र सरकारकर रही है। यह िकसी का कु छ न िबगाड़ सके गा। कोई आदमी घबराकर या डरकर अपनामकान न छोड़!े मुनादी के बाद शहर म पहरे का इंतजाम पूरा - परू ा िकया जाय और बहुत सेजासूस उस शतै ान की टोह म रवाना िकए जाएं।'' थोड़ी देर बाद महाराज ने दरबार बखार् त िकया। दीवान हरदयालिसहं भी सलाम करकेघर जाना चाहते थे, मगर महाराज का इशारा पाकर क गए।
दीवान को साथ ले महाराज जयिसहं दीवानखाने म गए और एकांत म बठै कर उसीजािलमखां के बारे म सोचने लगे। कु छ देर तक सोच - िवचारकर हरदयालिसहं ने कहा, ''हमारेयहां कोई ऐयार नहीं है िजसका होना बहुत ज री है।'' महाराज जयिसहं ने कहा, ''तमु इसीवक्त एक खत यहां के हालचाल की राजा सुरे द्रिसहं को िलखो और वह िवज्ञापन (इि तहार)भी उसी के साथ भेज दो, जो जाससू लाया था।'' महाराज के हुक्म के मतु ािबक हरदयालिसहं ने खत िलखकर तयै ार की और एक जाससूको देकर उसे पोशीदा तौर पर नौगढ़ की तरफ रवाना िकया, इसके बाद महाराज ने महल केचार तरफ पहरा बढ़ाने के िलए हुक्म देकर दीवान को िबदा िकया। इन सब काम से छु ट्टी पा महाराज महल म गए। रानी से भी यह हाल कहा। वह भीसनु कर बहुत घबराई। औरत म इस बात की खलबली पड़ गई। आज का िदन और रात इसतर दु म गजु र गई। दसू रे िदन दरबार म िफर एक जाससू ने कल की तरह एक और कागज लाकर पेशिकया और कहा, ''आज तमाम शहर म इसी तरह के कागज िचपके िदखाई देते ह।'' दीवानहरदयालिसहं ने जाससू के हाथ से वह कागज ले िलया और पढ़कर महाराज को सुनाया, यहिलखा था : ''वाह वाह वाह! आपके िकये कु छ न बन पड़ा तो नौगढ़ से मदद मांगने लगे! यह नहींजानते िक नौगढ़ म भी मने उपद्रव मचा रखा है। क्या आपका जाससू मुझसे िछपकर कहींजा सकता था? मने उसे खतम कर िदया। िकसी को भेिजए उसकी लाश उठा लावे। शहर केबाहर कोस भर पर उसकी लाश िमलेगी। - वही - जािलमखा'ं ' इस इि तहार के सनु ने से महाराज का कलेजा कांप उठा। दरबार म िजतने आदमी बठै ेथे सब के छक्के छू ट गये। अपनी - अपनी िफक्र पड़ गई। महाराज के हुक्म से कई आदमी
शहर के बाहर उस जासूस की लाश उठा लाने के िलए भेजे गए, जब तक उसकी लाश दरबारके बाहर लाई जाय एक धा◌मू - सी मच गई। हजार आदिमय की भीड़ लग गई। सब कीजुबान पर जािलमखां सवार था। नाम से लोग के र ए खड़े होते थे। जासूस के िसर का पतान था और जो खत वह ले गया था वह उसके बाजू से बंधी हुई थी। जािहर म महाराज ने सब को ढाढ़स िदया मगर तबीयत म अपनी जान का भी खौफमालमू हुआ। दीवान से कहा, ''शहर म मुनादी करा दी जाय िक जो कोई इस जािलमखां कोिगर तार करेगा उसे सरकार से दस हजार पया िमलेगा और यहां के कु ल हालचाल की खतपांच सवार के साथ नौगढ़ रवाना की जाए।'' यह हुक्म देकर महाराज ने दरबार बखा्र त िकया। पाचं सवार जो खत लेकर नौगढ़रवाना हुए, डर के मारे कापं रहे थ।े अपनी जान का डर था। आपस म इरादा कर िलया िकशहर के बाहर होते ही बेतहाशा घोड़े फके िनकल जायगे, मगर न हो सका। दसू रे िदन सबेरे ही िफर इि तहार िलए हुए एक पहरे वाला दरबार म हािजर हुआ।हरदयालिसहं ने इि तहार लेकर देखा, यह िलखा था : ''इन पांच सवार की क्या मजाल थी जो मेरे हाथ से बचकर िनकल जाते। आज तोइ हीं पर गुजरी, कल से तु हारे महल म खेल मचाऊं गा। ले अब खूब स हलकर रहना। तुमनेयह मुनादी कराई है िक जािलमखां को िगर तार करने वाला दस हजार इनाम पावगे ा। म भीकहे देता हूं िक जो कोई मझु े िगर तार करेगा उसे बीस हजार इनाम दंगू ा!! - वही जािलमखां!!'' आज का इि तहार पढ़ने से लोग की क्या ि थित हुई वे ही जानते ह गे। महाराज के तोहोश उड़ गये। उनको अब उ मीद न रही िक हमारी खबर नौगढ़ पहुंचगे ी। एक खत के साथपरू ी प टन को भेजना यह भी जवांमदीर् से दरू था। िसवाय इसके दरबार म जाससू ने यह
खबर सुनाई िक जािलमखां के खौफ से शहर कापं रहा है, ता जुब नहीं िक दो या तीन िदनम तमाम िरयाया शहर खाली कर दे। यह सनु कर और भी तबीयत घबरा उठी। महाराज ने कई आदमी उन सवार की लाश को लाने के िलए रवाना िकये। वहां जातेउन लोग की जान कांपती थी मगर हािकम का हुक्म था, क्या करते लाचार जाना पड़ता था। पांच आदिमय की लाश लाई गईं। उन सब के िसर कटे हुए न थे, मालूम होता था फांसीलगाकर जान ली गई है, क्य िक गदर्न म र से के दाग थे। इस कै िफयत को देखकर महाराज हैरान हो चपु चाप बठै े थे। कु छ अक्ल काम नहीं करतीथी। इतने म सामने से पंिडत बद्रीनाथ आते िदखाई िदये। आज पिं डत बद्रीनाथ का ठाठ देखने लायक था। पोर - पोर से फु तीर्लापन झलक रहा था।ऐयारी के पूरे ठाठ से सजे थ,े बि क उससे फािजल तीर - कमान लगाए, चु त जांिघया कसे,बटु आ और खजं र कमर से, कमदं पीठ पर लगाये प थर की झोली गले म लटकती हुई, छोटा- सा डडं ा हाथ म िलए कचहरी म आ मौजदू हुए। महाराज को यह खबर पहले ही लग चकु ी थी िक राजा िशवद त अपनी रानी को लेकरतप या करने के िलए जगं ल की तरफ चले गये और पिं डत बद्रीनाथ, प नालाल वगरै ह सबऐयार राजा सरु े द्रिसहं के साथ हो गये ह। ऐसे वक्त म पिं डत बद्रीनाथ का पहुंचना महाराज के वा ते ऐसा हुआ जैसे मरे हुए परअमतृ बरसना। देखते ही खशु हो गए, प्रणाम करके बैठने का इशारा िकया। बद्रीनाथ आशीवाद्रदेकर बैठ गये। जय - आज आप बड़े मौके पर पहुंचे। बद्री - जी हां, अब आप कोई िचतं ा न कर। दो - एक िदन म ही जािलमखां को िगर तारकर लंगू ा।
जय - आपको जािलमखां की खबर कै से लगी। बद्री - इसकी खबर तो नौगढ़ ही म लग गई थी, िजसका खलु ासा हाल दसू रे वक्त कहूंगा।यहां पहुंचने पर शहर वाल को मने बहुत उदास और डर के मारे कांपते देखा। रा ते म जो भीमुझको िमलता था उसे बराबर ढाढ़स देता था िक 'घबराओ मत अब म आ पहुंचा हूं।' बाकी हालएकातं म कहूंगा और जो कु छ काम करना होगा उसकी राय भी दसू रे वक्त एकांत म हीआपके और दीवान हरदयालिसहं के सामने पक्की होगी, क्य िक अभी तक मने नान - पूजाकु छ भी नहीं िकया है। इससे छु ्रट्टी पाकर तब कोई काम क ं गा। अब महाराज जयिसहं के चहे रे पर कु छ खुशी िदखाई देने लगी। दीवान हरदयालिसहं कोहुक्म िदया िक ''पंिडत बद्रीनाथ को आप अपने मकान म उतािरए और इनके आराम की कु लचीज का बदं ोब त कर दीिजए िजससे िकसी बात की तकलीफ न हो, म भी अब उठता हूं।'' बद्री - शाम को महाराज के दशनर् कहां ह गे? क्य िक उसी वक्त मरे ी बातचीत होगी? जय - िजस वक्त चाहो मझु से मुलाकात होगी। महाराज जयिसहं ने दरबार बखार् त िकया, पिं डत बद्रीनाथ को साथ ले दीवानहरदयालिसहं अपने मकान पर आये और उनकी ज रत की चीज का पूरा - परू ा इंतजाम करिदया। जो कु छ िदन बाकी था पिं डत बद्रीनाथ ने जािलमखां के िगर तार करने की तरकीबसोचने म गुजारा। शाम के वक्त दीवान हरदयालिसहं को साथ ले महाराज जयिसहं से िमलनेगये, मालूम हुआ िक महाराज बाग की सैर कर रहे ह, वे दोन बाग म गये। उस वक्त वहां महाराज के पास बहुत से आदमी थ,े पिं डत बद्रीनाथ के आते ही वे लोगिबदा कर िदए गए, िसफर् बद्रीनाथ और हरदयाल महाराज के पास रह गये।
पहले कु छ देर तक चनु ार के राजा िशवद तिसहं के बारे म बातचीत होती रही, इसके बादमहाराज ने पूछा िक ''नौगढ़ म जािलमखां की खबर कै से पहुंची?'' बद्री - नौगढ़ म भी इसी तरह के इि तहार िचपकाए ह, िजनके पढ़ने से मालमू हुआ िकिवजयगढ़ म वह उपद्रव मचावगे ा, इसीिलए हमारे महाराज ने मुझे यहां भेजाहै। महाराज - इस दु ट जािलमखां ने वहां तो िकसी की जान न ली? बद्री - नहीं, वहां अभी उसका दाव नहीं लगा, ऐयार लोग भी बड़ी मु तदै ी से उसकीिगर तारी की िफक्र म लगे हुए ह। महाराज - यहां तो उसने कई खनू िकए। बद्री - शहर म आते ही मझु े खबर लग चकु ी है, खरै देखा जायगा। महाराज - अगर योितषीजी को भी साथ लाते तो उनके रमल की मदद से बहुत ज दिगर तार हो जाता। बद्री - महाराज, जरा इसकी बहादरु ी की तरफ ख्याल कीिजए िक इि तहार देकर डकं े कीचोट काम कर रहा है! ऐसे शख्स की िगर तारी भी उसी तरह होनी चािहए। योितषीजी कीमदद की इसम क्या ज रत है। महा - देख वह कै से िगर तार होता है, शहर भर उसके खौफ से कांप रहाहै। बद्री - घबराइए नही,ं सुबह - शाम म िकसी न िकसी को िगर तार करता हूं। महाराज - क्या वे लोग कई आदमी ह? बद्री - ज र कई आदमी ह गे। यह अके ले का काम नहीं है िक यहां से नौगढ़ तक कीखबर रखे और दोन तरफ नकु सान पहुंचाने की नीयत करे।
महाराज - अ छा जो चाहो करो, तु हारे आ जाने से बहुत कु छ ढाढ़स हो गई नहीं तोबड़ी ही िफक्र लगी हुई थी। बद्री - अब म खसत होऊं गा बहुत कु छ काम करना है। हरदयाल - क्या आप डरे े की तरफ नहीं जाएंगे? बद्री - कोई ज रत नहीं, म पूरे बदं ोब त से आया हूं और िजधर जी चाहेगा चल दंगू ा। कु छ रात जा चुकी थी जब महाराज से िबदा हो बद्रीनाथ जािलमखां की टोह म रवानाहुए। आठवाँ बयान बद्रीनाथ जािलमखां की िफक्र म रवाना हुए। वह क्या करगे, कै से जािलमखां को िगर तारकरगे इसका हाल िकसी को मालमू नहीं। जािलमखां ने आिखरी इि तहार म महाराज कोधामकाया था िक अब तु हारे महल म डाका मा ं गा। महाराज पर इि तहार का बहुत कु छ असर हुआ। पहरे पर आदमी चौगुने कर िदए गए।आप भी रात भर जागने लगे, हरदम तलवार का क जा हाथ म रहता था। बद्रीनाथ के आने सेकु छ तस ली हो गई थी, मगर िजस रोज वह जािलमखां को िगर तार करने चले गए उसकेदसू रे ही िदन िफर इि तहार शहर म हर चौमहु ािनय और सड़क पर िचपका हुआ लोग कीनजर पड़ा, िजसम का एक कागज जासूस ने लाकर दरबार म महाराज के सामने पेश िकयाऔर दीवान हरदयालिसहं ने पढ़कर सुनाया - यह िलखा हुआ था : ''महाराज जयिसहं ,
होिशयार रहना, पिं डत बद्रीनाथ की ऐयारी के भरोसे मत भूलना, वह कल का छोकड़ा क्याकर सकता है? पहले तो जािलमखां तु हारा दु मन था, अब म भी पहुंच गया हूं। पदं ्रह िदन केअदं र इस शहर को उजाड़ कर दंगू ा और आज के चौथे िदन बद्रीनाथ का िसर लेकर बारह बजेरात को तु हारे महल म पहुंचूंगा। होिशयार! उस वक्त भी िजसका जी चाहे मुझे िगर तार करले। देखूं तो माई का लाल कौन िनकलता है? जो कोई महाराज का दु मन हो और मुझसेिमलना चाहे वह 'टेटी - चोटी' म बारह बजे रात को िमल सकता है। - आफतखां खनू ी'' इस इि तहार ने तो महाराज के बचे - बचाये होश भी उड़ा िदये। बस यही जी म आताथा िक इसी वक्त िवजयगढ़ छोड़ के भाग जायं, मगर जवांमदीर् और िह मत ऐसा करने सेरोकती थी। ज दी से दरबार बखार् त िकया, दीवान हरदयालिसहं को साथ ले दीवानखाने म चले गयेऔर इस नए आफतखां खनू ी के बारे म बातचीत करने लगे। महाराज - अब क्या िकया जाय! एक ने तो आफत मचा ही रखी थी अब दसू रे इसआफतखां ने आकर और भी जान सुखा दी। अगर ये दोन िगर तार न हुए तो हमारे रा यकरने पर लानत है। हरदयाल - बद्रीनाथ के आने से कु छ उ मीद हो गई थी िक जािलमखां को िगर तारकरगे! मगर अब तो उनकी जान भी बचती नजर नहीं आती। महाराज - िकसी तरकीब से आज की यह खबर नौगढ़ पहुचती तो बेहतर होता। वहां सेबद्रीनाथ की मदद के िलए कोई और ऐयार आ जाता। हरदयाल - नौगढ़ िजस आदमी को भेजगे उसी की जान जायगी, हां सौ दो सौ आदिमयके पहरे म कोई खत जाय तो शायद पहुंचे।
महाराज - (गु से म आकर) नाम को हमारे यहां पचास जाससू ह, बरस से हरामखोरकी तरह बठै े खा रहे ह मगर आज एक काम उनके िकए नहीं हो सकता। न कोई जािलमखांकी खबर लाता है न कोई नौगढ़ खत पहुंचाने लायक है! हरदयाल - एक ही जासूस के मरने से सब के छक्के छू ट गये। महाराज - खैर आज शाम को हमारे कु ल जासूस को लेकर बाग म आओ, या तो कु छकाम ही िनकालगे या सारे जासूस तोप के सामने रखकर उड़ा िदये जायगे, िफर जो कु छ होगादेखा जायगा। म खुद उस हरामजादे को पकड़ूगं ा। हरदयाल - जो हुक्म! महाराज - बस अब जाओ, जो हमने कहा है उसकी िफक्र करो। दीवान हरदयालिसहं महाराज से िबदा हो अपने मकान पर गए, मगर हैरान थे िक क्याकर, क्य िक महाराज को बेतरह क्रोध चढ़ आया था। उ मीद तो यही थी िक िकसी जाससू केिकये कु छ न होगा और वे बेचारे मु त म तोप के आगे उड़ा िदये जायगे। िफर वे यह भीसोचते थे िक जब महाराज खदु उन दु ट की िगर तारी की िफक्र म घर से िनकलगे तो मेरीजान भी गई, अब िजदं गी की क्या उ मीद है! नौवाँ बयान कंु अर वीरे द्रिसहं तीसरे बाग की तरफ रवाना हुए, िजसम राजकु मारी चंद्रका ता कीदरबारी त वीर देखी थी और जहां कई औरत कै िदय की तरह इनको िगर तार करके ले गईथी।ं उसम जाने का रा ता इनको मालमू था। जब कु मार उस दरवाजे के पास पहुंचे िजसम सेहोकर ये लोग उस बाग म पहुंचते तो वहां एक कमिसन औरत नजर पड़ी जो इ हीं की तरफआ रही थी। देखने म खूबसूरत और पोशाक भी उसकी बेशकीमती थी, हाथ म एक खत िलए
कु मार के पास आकर खड़ी हो गई, खत कु मार के हाथ म दे दी। उ ह ने ता जबु म आकरखुद उसे पढ़ा, िलखा हुआ था - ''कई िदन से आप हमारे इलाके म आए हुए ह, इसिलए आपकी मेहमानी हमको लािजमहै। आज सब सामान दु त िकया है। इसी ल डी के साथ आइये और झ पड़ी को पिवत्रकीिजए। इसका अहसान ज म - भर न भलू गंू ा। - िसद्धनाथ योगी।'' कु मार ने खत तेजिसहं के हाथ म दे दी, उ ह ने पढ़कर कहा, ''साधु ह, योगी ह इसी से इसखत म कु छ हुकू मत भी झलकती है।'' देवीिसहं और योितषीजी ने भी खत को पढ़ा। शाम हो चकु ी थी, कु मार ने अभी उस खत का कु छ जवाब नहीं िदया था िक तजे िसहं नेउस औरत से कहा, ''हम लोग को महा माजी की खाितर मजं ूर है, मगर अभी तु हारे साथ नहींजा सकते, घड़ी भर के बाद चलगे, क्य िक सं या करने का समय हो चकु ा है।'' औरत - तब तक म ठहरती हूं आप लोग सं या कर लीिजए, अगर हुक्म हो तो सं या केसमय के िलए जल और आसन ले आऊं ? देवी - नहीं कोई ज रत नही।ं औरत - तो िफर यहां सं या कै से कीिजएगा? इस बाग म कोई नहर नहीं, बावली नहीं। तजे - उस दसू रे बाग म बावली है। औरत - इतनी तकलीफ करने की क्या ज रत है, म अभी सब सामान िलए आती हूं, यािफर मेरे साथ चिलए, उस बाग म सं या कर लीिजएगा, अभी तो उसका समय भी नहीं बीतचला है। तेज - नहीं, हम लोग इसी बाग म सं या करगे, अ छा जल ले आओ।
इतना सनु ते ही वह औरत लपकती हुई तीसरे बाग म चली गई। कु मार - इस खत के भेजने वाले अगर वे ही योगी ह िज ह ने मुझे कू दने से बचाया था तोबड़ी खुशी की बात है, ज र वहां वनक या से भी मलु ाकात होगी। मगर तमु क क्य गए?उसी बाग म चलकर सं या कर लेत!े म तो उसी वक्त कहने को था मगर यह समझकर चुपहो रहा िक शायद इसम भी तु हारा कोई मतलब हो। तेज - ज र ऐसा ही है। देवी - क्य ओ ताद, इसम क्या मतलब है? तजे - देखो मालूम ही हुआ जाता है। कु मार - तो कहते क्य नहीं, आिखर कब बतलाओगे? तेज - हमने यह सोचा िक कहीं योगीजी हम लोग से धोखा न कर िक खाने - पीने मबेहोशी की दवा िमलाकर िखला द, जब हम लोग बहे ोश हो जायं तो उठवाकर खोह के बाहररखवा द और यहां आने का रा ता बंद करवा द, ऐसा होगा तो कु ल मेहनत ही बरबाद होजायगी। देिखए आप भी इसी बाग म बेहोश िकए गए थ,े जब कै दी बनाकर लाये थे और यास लगने पर एक कटोरा पानी पीया था, उसी वक्त बेहोश हो गए और खोह म ले जाकररख िदये गये थे। अगर ऐसा न हुआ होता तो उसी समय कु छ न कु छ हाल यहां का िमलगया होता। िफर म यह भी सोचता हूं िक अगर हम लोग वहां जाकर भोजन से इनकार करगेतो ठीक न होगा क्य िक याफत कबलू करके मौका पर खाने से इनकार कर जाना उिचतनहीं है। देवी - तो िफर इसकी तरकीब क्या सोची है? तजे - (हंसकर) तरकीब क्या, बस वही ितिल मी गलु ाब का फू ल िघसकर सब कोिपलाऊं गा और आप भी पीऊं गा, िफर सात िदन तक बेहोश करने वाला कौनहै?
कु मार - हां ठीक है, पर वह वै य भी कै सा चतरु होगा िजसने दवाइय से ऐसे काम केनायाब फू ल बनाए। तेज - ठीक ही है। इतने म वही औरत सामने से आती िदखाई पड़ी, उसके पीछे तीन ल िडयां आसन, पचं पात्र,जल इ यािद हाथ म िलए आ रही थी।ं उस बाग म एक पेड़ के नीचे कई प थर बठै ने लायक रखे हुए थ,े औरत ने उन प थरोपर सामान दु त कर िदया, इसके बाद तेजिसहं ने उन लोग से कहा, ''अब थोड़ी देर के वा तेतमु लोग अपने बाग म चली जाओ क्य िक औरत के सामने हम लोग सं या नहीं करत।े '' ''आप ही लोग की िखदमत करते जनम बीत गया, ऐसी बात क्य करते ह। सीधी तरहसे क्य नहीं कहते िक हट जाओ। लो म जाती हूं!'' कहती हुई वह औरत ल िडय को साथ लेचली गई। उसकी बात पर ये लोग हंस पड़े और बोले - ''ज र ऐयार के संग रहने वाली है!'' सं या करने के बाद तेजिसहं ने ितिल मी गलु ाब का फू ल पानी म िघसकर सब कोिपलाया तथा आप भी पीया और तब राह देखने लगे िक िफर वह औरत आये तो उसके साथहम लोग चल। थोड़ी देर के बाद वही औरत िफर आई, उसने इन लोग को चलने के िलए कहा। ये लोगभी तैयार थ,े उठ खड़े हुए और उसके पीछे रवाना होकर तीसरे बाग म पहुंच।े ऐयार ने अभीतक इस बाग को नहीं देखा था मगर कंु अर वीरे द्रिसहं इसे खूब पहचानते थ।े इसी बाग मकै िदय की तरह लाए गए थे और यहीं पर कु मारी चदं ्रका ता की त वीर का दरबार देखा थामगर आज इस बाग को वसै ा नहीं पाया, न तो वह रोशनी ही थी न उतने आदमी ही। हां पाचं- सात औरत इधर - उधर घूमती - िफरती िदखाई पड़ीं और दो - तीन पेड़ के नीचे। कु छरोशनी भी थी जहां उसका होना ज री था।
शाम हो गई थी बि क कु छ अधं ेरा भी हो चकु ा था। वह औरत इन लोग को िलए उसकमरे की तरफ चली जहां कु मार ने त वीर का दरबार देखा था। रा ते म कु मार सोचते जातेथ,े ''चाहे जो हो आज सब भेद मालमू िकए िबना योगी का िप ड न छोडू गं ा। हाल मालूम होजायगा िक वनक या कौन है, ितिल मी िकताब उसने क्योकर पाई थी, हमारे साथ उसने इतनीभलाई क्य की और चदं ्रका ता कहां चली गई?'' दीवानखाने म पहुंचे। आज यहां त वीर का दरबार न था बि क उ हीं योगीजी का दरबारथा िज ह ने पहाड़ी से कू दते हुए कु मार को बचाया था। लबं ा - चौड़ा फश्र िबछा हुआ था औरउसके ऊपर एक मगृ छाला िबछाये योगीजी बैठे हुए थे। बाईं तरफ कु छ पीछे हटकर वनक याबठै ी थी और सामने की तरफ चार - पाचं ल िडयां हाथ जोड़े खड़ी थी।ं कु मार को आते देख योगीजी उठ खड़े हुए, दरवाजे तक आकर उनका हाथ पकड़ अपनीग ी के पास ले गये और अपने बगल म दािहने ओर मगृ छाला पर बैठाया। वनक या उठकरकु छ दरू जा खड़ी हुई और प्रेम - भरी िनगाह से कु मार को देखने लगी। सब तरफ से हटकर कु मार की िनगाह भी वनक या की तरफ जा डटी। इस वक्त इनदोन की िनगाह से मुह बत, हमददीर् और शम्र टपक रही थी। चार आखं आपस म घलु रहीथीं। अगर योगीजी का ख्याल न होता तो दोन िदल खोलकर िमल लेत,े मगर नहीं, दोन ही कोइस बात का ख्याल था िक इन प्रेम की िनगाह को योगीजी न जानने पाव। कु छ ठहरकरयोगी और कु मार म बातचीत होने लगी। योगी - आप और आपकी मंडली के लोग कु शल - मंगल से तो ह? कु मार - आपकी दया से हर तरह से प्रस न ह, परंतु... योगी - परंतु क्या?
कु मार - परंतु कई बात का भेद न खलु ने से तबीयत को चैन नहीं है, िफर भी आशा हैिक आपकी कृ पा से हम लोग का यह दखु भी दरू हो जायगा। योगी - परमे वर की दया से अब कोई िचतं ा न रहेगी और आपके सब सदं ेह छू ट जायगे।इस समय आप लोग हमारे साग - स तू को कबूल कर, इसके बाद रात - भर हमारे आपकेबीच बातचीत होती रहेगी, जो कु छ पूछना हो पिू छएगा। ई वर चाहगे तो अब िकसी तरह काद:ु ख उठाना न पड़गे ा और आज ही से आपकी खशु ी का िदन शु होगा। योगी की अमतृ भरी बात ने कु मार और उनके ऐयार के सूखे िदल को हरा कर िदया।तबीयत प्रस न हो गई, उ मीद बंधा गई िक अब सब काम पूरा हो जायगा। थोड़ी देर के बादभोजन का सामान दु त िकया गया। खाने की िजतनी चीज थीं सभी ऐसी थीं िक िसवायराजे - महाराजे के और िकसी के यहां न पाई जाय।ं खाने - पीने से िनि चत होने पर बाग केबीचो बीच प थर के खूबसूरत चबतू रे पर फशर् िबछाया गया और उसके ऊपर मगृ छालािबछाकर योगीजी बैठ गये, अपने बगल म कु मार को बठै ा िलया, कु छ दरू पर हटकर वनक याअपनी दो सिखय के साथ बैठी, और िजतनी औरत थीं हटा दी गईं। रात पहर से यादा जा चकु ी थी, चंद्रमा अपनी पूण्र िकरण से उदय हो रहे थे। ठं डी हवाचल रही थी िजसम सुगिं धत फू ल की मीठी महक उड़ रही थी। योगी ने मु कराकर कु मार सेकहा : ''अब जो कु छ पछू ना हो पूिछये, म सब बात का जवाब दंगू ा और जो कु छ काम आपकाअभी तक अटका है उसको भी कर दंगू ा।'' कंु अर वीरे द्रिसहं के जी म बहुत - सी ता जबु की बात भरी हुई थी,ं हैरान थे िक पहलेक्या पछू ू ं । आिखर खबू स हलकर बैठे और योगी से पूछने लगे। दसवाँ बयान
जो कु छ िदन बाकी था दीवान हरदयालिसहं ने जासूस को इकट्ठा करने और समझाने -बझु ाने म िबताया। शाम को सब जाससू को साथ ले हुक्म के मतु ािबक महाराज जयिसहं केपास बाग म हािजर हुए। खदु महाराज जयिसहं ने जासूस से पछू ा, ''तमु लोग जािलमखां का पता क्यो नहीं लगासकते?'' इसके जवाब म उ ह ने अजर् िकया, ''महाराज, हम लोग से जहां तक बनता है कोिशशकरते ह, उ मीद है िक पता लग जायगा।'' महाराज ने कहा, ''आफतखां एक नया शतै ान पदै ा हुआ? इसने अपने इि तहार म अपनेिमलने का पता भी िलखा है, िफर क्य नहीं तुम लोग उसी िठकाने िमलकर उसे िगर तारकरते हो?'' जाससू ने जवाब िदया, ''महाराज आफतखां ने अपने िमलने का िठकाना 'टेटी -चोटी' िलखा है, अब हम लोग क्या जान 'टेटी - चोटी' कहां है, कौन - सा महु ला है, िकस जगहको उसने इस नाम से िलखा है, इसका क्या अथर् है तथा हम लोग कहां जाय?'' यह सनु कर महाराज भी 'टेटी - चोटी' के फे र म पड़ गए। कु छ भी समझ म न आया।जाससू को बेकसरू समझ कु छ न कहा, हां डरा - धामका के और ताकीद करके रवाना िकया। अब महाराज को अपने जीने की उ मीद कम रह गई, खौफ के मारे रात भर हाथ मतलवार िलये जागा करते, क्य िक थोड़ा - बहुत जो कु छ भरोसा था अपनी बहादरु ी ही का था। दसू रे िदन इि तहार िफर शहर म िचपका हुआ पाया गया िजसे पहरे वाल ने लाकरहािजर िकया। दीवान हरदयालिसहं ने उसे पढ़कर सनु ाया, यह िलखा था: ''देखना, खबू स हले रहना! बद्रीनाथ को िगर तार कर चुका हूं, अपने पहले वादे केबमूिजब कल बारह बजे रात को उसका िसर लेकर तु हारे महल म हम लोग कई आदमीपहुंचगे। देख कै से िगर तार करते हो!! - आफतखां''
ग्यारहवाँ बयान िवजयगढ़ के पास भयानक जगं ल म नाले के िकनारे एक प थर की चट्टान पर दोआदमी आपस म धीरे - धीरे बातचीत कर रहे ह। चांदनी खूब िछटकी हुई है िजसम इन लोगकी सूरत और पोशाक साफ िदखाई पड़ती है। दोन आदिमय म से जो दसू रे प थर पर बठै ेहुए ह एक की उम्र लगभग चालीस वषर् की होगी। काला रंग, लबं ा कद, काली दाढ़ी, िसफ्रजांिघया और चु त कु रता पहने हुए, तीर - कमान और ढाल - तलवार आगे रखे एक घुटनाजमीन के साथ लगाए बठै ा है। बड़ी - बड़ी काली और कड़ी मोछ ऊपर को चढ़ी हुई ह, भूरीऔर खखूं ार आंख चमक रही ह, चहे रे से बदमाशी और लटु ेरापन झलक रहा है। इसका नामजािलमखां है। दसू रा शख्स जो उसी के सामने वीरासन म बैठा है उसका नाम आफतखां है। दर यानाकद, लबं ी दाढ़ी, चु त पायजामा और कु रता पहने, गंडासा सामने और एक छोटी - सी गठरीबाईं तरफ रखे जािलमखां की बात खूब गौर से सुनता और जवाब देताहै। जािलमखां - तु हारे िमल जाने से बड़ा सहारा हो गया। आफतखां - इसी तरह मुझको तु हारे िमलने से! देखो यह गडं ासा, (हाथ म लेकर) इसी सेहजार आदिमय की जान जाएंगी। म िसवाय इसके कोई दसू रा हरबा नहीं रखता। यह जहर सेबुझाया हुआ है, िजसे जरा भी इसका जख्म लग जाय िफर उसके बचने की कोई उ मीद नही।ं जािलम - बहुत हैरान होने पर तुमसे मलु ाकात हुई! आफत - मझु े तुमसे ज र िमलना था, इसिलए इि तहार िचपका िदए क्य िक तमु लोगका कोई िठकाना तो था नहीं जहां खोजता, लेिकन मुझे यकीन था िक तमु ऐयारी ज र जानतेहोगे, इसीिलए ऐयारी बोली म अपना िठकाना िलख िदया िजससे िकसी दसू रे की समझ म नआवे िक कहां बलु ाया है!
जािलम - ऐसी ही कु छ थोड़ी - सी ऐयारी सीखी थी, मगर तुम इस फन म ओ तादमालमू होते हो, तभी तो बद्रीनाथ को झट िगर तार कर िलया! आफत - ओ ताद तो म कु छ नहीं, मगर हां बद्रीनाथ जैसे छोकड़े के िलए बहुत हूं। जािलम - जो चाहो कहो मगर मने तुमको अपना ओ ताद मान िलया, जरा बद्रीनाथ कीसरू त तो िदखा दो। आफत - हां - हां देखो, धाड़ तो उसका गाड़ िदया मगर िसर गठरी म बधं ा है, लेिकनहाथ मत लगाना क्य िक इसको मसाले से तर िकया है िजससे कल तक सड़ न जाय। इतना कह आफतखां ने अपनी बगल वाली गठरी खोली िजसम बद्रीनाथ का िसर बंधाहुआ था। कपड़ा खून से तर हो रहा था। िजतने आदमी उसके सािथय म से उस जगह थेबद्रीनाथ की खोपड़ी देख खशु ी के मारे उछलने लगे। जािलम - यह शख्स बड़ा शैतान था। आफत - लेिकन मुझसे बच के कहां जाता! जािलम - मगर ओ ताद, तमु एक बात बड़ी बेढब कहते हो िक कल बारह बजे रात कोमहल म चलना होगा। आफत - बेढब क्या है देखो कै सा तमाशा होता है! जािलम - मगर ओ ताद, तु हारे इि तहार दे देने से उस वक्त वहां बहुत से आदमी इकट्ठेह गे, कहीं ऐसा न हो िक हम लोग िगर तार हो जाएं? आफत - ऐसा कौन है जो हम लोग को िगर तार करे?
जािलम - तो इसम क्या फायदा है िक अपनी जान जोिखम म डाली जाय, वक्त टाल केक्य नहीं चलते? आफत - तमु तो गदहे हो, कु छ खबर भी है िक हमने ऐसा क्य िकया? जािलम - अब यह तो तुम जानो! आफत - सुनो म बताता हूं। मेरी नीयत यह है िक जहां तक हो सके ज दी से उन लोगको मार - पीट सब मामला खतम कर दं।ू उस वक्त वहां िजतने आदमी मौजूद ह गे सब कोबस तुम मुदा्र ही समझ लो, िबना हाथ - परै िहलाए सब का काम तमाम क ं तो सही। जािलम - भला ओ ताद, यह कै से हो सकता है! आफत - (बटु ए म से एक गोला िनकालकर और िदखाकर) देखो, इस िक म के बहुत सेगोले मने बना रखे ह जो एक - एक तुम लोग के हाथ म दे दंगू ा। बस वहां पहुंचते ही तमुलोग इन गोल को उन लोग के हजूम (भीड़) म फक देना जो हम लोग को िगर तार करनेके िलए मौजदू ह गे। िगरते ही ये गोले भारी आवाज देकर फू ट जायगे और इनम से बहुत -सा धआु ं िनकलेगा िजसम वे लोग िछप जायगे, आखं ो म धुआ लगते ही अधं ो हो जायगे औरनाक के अंदर जहां गया िक उन लोग की जान गई, ऐसा जहरीला यह धआु होगा। आफतखां की बात सनु कर सब - के - सब मारे खुशी के उछल पड़।े जािलमखां ने कहा,''भला ओ ताद, एक गोला यहां पटक के िदखाओ, हम लोग भी देख ल तो िदल मजबतू होजायगा।'' ''हां देखो।'' यह कह के आफतखां ने वह गोला जमीन पर पटक िदया, साथ ही एकआवाज देकर गोला फट गया और बहुत - सा जहरीला धुआं फै ला िजसको देखते हीआफतखा,ं जािलमखां और उनके साथी लोग ज दी से हट गए ितस पर भी उन लोग कीआखं सूज गईं और िसर घूमने लगा। यह देखकर आफतखां ने अपने बटु ए म से मरहम की
एक िडिबया िनकाली और सब की आखं म वह मरहम लगाया तथा हाथ म मलकर सघुं ायािजससे उन लोग की तबीयत कु छ िठकाने हुई और वे आफतखां की तारीफ करने लगे। जािलम - वाह ओ ताद, यह तो तमु ने बहुत ही बिढ़या चीज बनाई है! आफत - क्य अब तो महल म चलने का हौसला हुआ? जािलम - शुक्र है उस पाक परवरिदगार का िजसने तु ह िमला िदया! जो काम हम सालभर म करते सो तुम एक रोज म कर सकते हो। वाह ओ ताद वाह, अब तो हम लोग उछलते- कू दते महल म चलगे और सब को दोजख म पहुंचाएंगे। लाओ एक - एक गोला सब को देदो। आफत - अभी क्य , जब चलने लगगे दे दगे, कल का िदन जो काटना है। जािलम - अ छा, लेिकन ओ ताद, तुमने इतने िदन पीछे का इि तहार क्य िदया? आज काही िदन अगर मकु रर्र िकया होता तो मजा हो जाता। आफत - हमने समझा िक बद्रीनाथ जरा चालाक है, शायद ज दी हाथ न लगे इसिलएऐसा िकया मगर यह तो िनरा बोदा िनकला! जािलम - अब क्या करना चािहए? आफत - इस वक्त तो कु छ नही,ं मगर कल बारह बजे रात को महल म चलने के िलएतैयार रहना चािहए। जािलम - इसके कहने की कोई ज रत नहीं, अब तो हम और तुम साथ ही ह। जब जोकहोगे करगे।
आफत - अ छा तो आज यहां से टलकर िकसी दसू री जगह आराम करना मुनािसब है।कल देखो खदु ा क्या करता है। म तो कसम खा चकु ा हूं िक महल म जाकर िबना सब काकाम तमाम िकए एक दाना मुहं म नहीं डालगूं ा। जािलम - ओ ताद, ऐसा नहीं करना चािहए, तुम कमजोर हो जाओगे। आफत - बस चपु रहो, िबना खाये हमारा कु छ नहीं िबगड़ सकता। इसके बाद वे सब वहां से उठकर एक तरफ को रवाना हो गये। बारहवाँ बयान वह िदन आ गया िक जब बारह बजे रात को बद्रीनाथ का िसर लेकर आफतखां महल मपहुंचे। आज शहर भर म खलबली मची हुई थी। शाम ही से महाराज जयिसहं खदु सब तरहका इंतजाम कर रहे थ।े बड़े - बड़े बहादरु और फु तीर्ले जवांमद्र महल के अंदर इकट्ठा िकए जारहे थ।े सब म जोश फै लता जाता था। महाराज खुद हाथ म तलवार िलये इधर - से - उधरटहलते और लोग की बहादरु ी की तारीफ करके कहते थे िक ''िसवाय अपने जान - पहचान केिकसी गैर को िकसी वक्त कहीं देखो िगर तार कर लो'' और बहादरु लोग आपस म डींग हाकंरहे थे िक यो पकडू गं ा, य काटूंगा! महल के बाहर पहरे का इंतजाम कम कर िदया गया, क्य िकमहाराज को परू ा भरोसा था िक महल म आते ही आफतखां को िगर तार कर लगे और जबबाहर पहरा कम रहेगा तो वह बखबू ी महल म चला आवगे ा, नहीं तो दो - चार पहरे वाल कोमारकर भाग जायगा। महल के अंदर रोशनी भी खबू कर दी गयी, तमाम मकान िदन की तरहचमक रहा था। आधी रात बीता ही चाहती थी िक परू ब की छत से छ: आदमी धामाधाम कू दकरधाड़धाड़ाते हुए उस भीड़ के बीच म आकर खड़े हो गये, जहां बहुत से बहादरु बठै े और खड़े थे।सबके आगे वही आफतखां बद्रीनाथ का िसर हाथ म लटकाये हुए था।
तेरहवाँ बयान खोह वाले ितिल म के अदं र बाग म कंु अर वीरे द्रिसहं और योगीजी मे बातचीत होनेलगी िजसे वनक या और इनके ऐयार बखूबी सुन रहे थ।े कु मार - पहले यह किहये चदं ्रका ता जीती है या मर गई? योगी - राम - राम, चंद्रका ता को कोई मार सकता है? वह बहुत अ छी तरह से इसदिु नया म मौजूद है। कु मार - क्या उससे और मझु से िफर मलु ाकात होगी? योगी - ज र होगी। कु मार - कब? योगी - (वनक या की तरफ इशारा करके ) - जब यह चाहेगी। इतना सुन कु मार वनक या की तरफ देखने लगे। इस वक्त उसकी अजीब हालत थी।बदन म घड़ी - घड़ी कं पकं पी हो रही थी, घबराई - सी नजर पड़ती थी। उसकी ऐसी गितदेखकर एक दफे योगी ने अपनी कड़ी और ितरछी िनगाह उस पर डाली, िजसे देखते ही वहस हल गई। कंु अर वीरे द्रिसहं ने भी इसे अ छी तरह से देखा और िफर कहा : कु मार - अगर आपकी कृ पा होगी तो म चंद्रका ता से अव य िमल सकंू गा। योगी - नहीं यह काम िब कु ल (वनक या को िदखाकर) इसी के हाथ म है, मगर यह मेरेहुक्म म है, अ तु आप घबराते क्य ह। और जो - जो बात आपको पूछनी हो पछू लीिजये, िफरचदं ्रका ता से िमलने की तरकीब भी बता दी जायगी। कु मार - अ छा यह बताइये िक यह वनक या कौन है?
योगी - यह एक राजा की लड़की है। कु मार - मझु पर इसने बहुत उपकार िकये, इसका क्या सबब है? योगी - इसका यही सबब है िक कु मारी चदं ्रका ता म और इसम बहुत प्रेम है। कु मार - अगर ऐसा है तो मझु से शादी क्य िकया चाहती है? योगी - तु हारे साथ शादी करने की इसको कोई ज रत नहीं और न यह तुमको चाहतीही है। के वल चदं ्रका ता की िज से लाचार है, क्य िक उसको यही मंजरू है। योगी की आिखरी बात सुनकर कु मार मन म बहुत खशु हुए और िफर योगी से बोले - कु मार - जब चंद्रका ता म और इनमे इतनी मुह बत है तो यह उसे मेरे सामने क्य नहींलाती?ं योगी - अभी उसका समय नहीं है। कु मार - क्यो योगी - जब राजा सरु े द्रिसहं और जयिसहं को आप यहां लावगे, तब यह कु मारी चंद्रका ताको लाकर उनके हवाले कर देगी। कु मार - तो म अभी यहां से जाता हूं, जहां तक होगा उन दोन को लेकर बहुत ज दआऊं गा। योगी - मगर पहले हमारी एक बात का जवाब दे लो। कु मार - वह क्या?
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