हरदयालिसहं से पछू ा िक ‘आजकल तजे िसहं नजर नहीं आत,े क्या तुमसे मलु ाकात हुईथी ? दीवान साहब ने अजर् िकया, ‘‘नही,ं मझु से भी मलु ाकात नहीं हुई, आज दिरया तकरके अजर् क ं गा।’’ दरबार बखा्र त होने के बाद दीवान साहब तेजिसहं के डरे े परगये, मलु ाकात ने होने पर नौकर से दिरया त िकया। सभी ने कहा, ‘‘कई िदन से वेयहाँ नहीं है, हम लोग ने बहुत खोज की मगर पता न लगा।’’दीवान हरदयालिसहं यह सनु कर हैरान रह गये। अपने मकान पर जाकर सोचने लगेिक अब क्या िकया जाये ? अगर तेजिसहं का पता न लगेगा तो बड़ी बदनामी होगी,जहाँ से हो, खोज लगाना चािहए। आिखर बहुत से आदिमय को इधर-उधर पता लगानेके िलए रवाना िकया और अपनी तरफ से एक िचट्ठी नौगढ़ के दीवान जीतिसहं केपास भेजकर ले जाने वाले को ताकीद कर दी िक कल दरबार से पहले इसका जवाबलेकर आना। नह आदमी खत िलये शाम को नौगढ़ को पहुंचा और दीवान जीतिसहं केमकान पर जाकर अपने आने की इि तला करवाई। दीवान साहब ने अपने सामनेबलु ाकर हाल पछू ा, उसने सलाम करके खत िदया। दीवान साहब ने गौर से खत कोपढ़ा, िदल म यकीन हो गया िक तेजिसहं ज र ऐयार के हाथ पकड़ा गया। यह जवाबिलखकर िक ‘ वह यहाँ नहीं है’ आदमी को िवदा कर िदया और अपने कई जाससू कोबलु ाकर पता लगाने के िलए इधर-उधर रवाना िकया। दसू रे िदन दरबार म दीवानजीतिसहं ने राजा सरु े द्रिसहं से अजर् िकया, ‘‘महाराज, कल िवजयगढ़ से दीवानहरदयालिसहं का पत्र लेकर एक आदमी आया था, यह दिरया त िकया था, िक तेजिसहंनौगढ़ म है िक नही,ं क्य िक कई िदन से वह िवजयगढ़ म नहीं है ! मने जवाब मिलख िदया है िक ‘यहाँ नहीं ह’।राजा को यह सनु कर ता जबु हुआ और दीवान से पछू ा, ‘‘तजे िसहं वहाँ भी नहीं ह औरयहाँ भी नहीं तो कहाँ चला गया ? कहीं ऐसा तो नहीं हुआ िक ऐयार के हाथ पड़ गयाहो, क्य िक महाराज िशवद त के कई ऐयार िवजयगढ़ म पहुँचे हुए ह और उनसेमलु ाकात करने के िलए अके ला तेजिसहं गया था ! ’’ दीवान साहब ने कहा, ‘‘ जहाँतक म समझता हूँ, वह ऐयार के हाथ म िगर तार हो गया होगा, खैर, जो कु छ होगादो-चार िदन म मालमू हो जायेगा।’’कंु वर वीरे द्रिसहं भी दरबार म राजा के दािहनी तरफ कु सीर् पर बठै े यह बात सनु रहेथे। उ ह ने अजर् िकया, ‘‘अगर हुक्म हो तो म तजे िसहं का पता लगाने जाऊं ?’’ दीवानजीतिसहं ने यह सनु कर कु मार की तरफ देखा और हंसकर जवाब िदया, ‘‘आपकीिह मत और जवांमदीर् म कोई शक नही,ं मगर इस बात को सोचना चािहए िकतजे िसहं के वा त,े िजसका काम ऐयारी ही है और ऐयार के हाथ फं स गया है, आपहैरान हो जाएं इसकी क्या ज रत है ? यह तो आप जानते ही ह िक अगर िकसी ऐयार
को कोई ऐयार पकड़ता है तो िसवाय कै द रखने के जान से नहीं मारता, अगर तेजिसहंउन लोग के हाथ म पड़ गया है तो कै द होगा, िकसी तरह छू ट ही जायेगा क्य िक वहअपने फन म बड़ा होिशयार है, िसवाय इसके जो ऐयारी का काम करेगा चाहे वहिकतना ही चालाक क्य न हो, कभी-न-कभी फं स ही जायेगा, िफर इसके िलए सोचनाक्या ? दस-पाँच िदन सब्र कीिजए, देिखए क्या होता है ? इस बीच म, अगर वह न आयातो आपको जो कु छ करना हो कीिजएगा।’’वीरे द्रिसहं ने जवाब िदया, ‘‘हाँ, आपका कहना ठीक है मगर पता लगाना ज री है, यहसोचकर िक वह चालाक है, खदु छू ट जायेगा-खोज न करना मनु ािसब नहीं।’’जीतिसहं ने कहा, ‘‘सच है, आपको महु बत के सबब से उसका यादा खयाल है, खरै ,देखा जायगा।’’ यह सनु राजा सरु े द्रिसहं ने कहा, ‘‘और कु छ नहीं तो िकसी को पतालगाने के िलए भेज दो।’’ इसके जवाब म दीवान साहब ने कहा, ‘‘कई जाससू का पतालगाने के िलए भेज चुका हूँ।’’ राजा और कंु वर वीरे द्रिसहं चुप रहे मगर खयाल इसबात का िकसी के िदल से न गया।िवजयगढ़ म दसू रे िदन दरबार म जयिसहं ने िफर हरदयालिसहं से पछू ा, ‘‘कहींतेजिसहं का पता लगा ?’’ दीवान साहब ने कहा, ‘‘यहां तो तजे िसहं का पता नहींलगता, शायद नौगढ़ म ह । मने वहाँ भी आदमी भेजा है, अब आता ही होगा, जो कु छहै मालमू हो जायेगा।’’ ये बात हो रही थीं िक खत का जवाब िलये वह आदमी आपहुंचा जो नौगढ़ गया था। हरदयालिसहं ने जवाब पढ़ा औऱ बड़े अफसोस के साथमहाराज से अजर् िकया िक ‘‘नौगढ़ म भी तजे िसहं नहीं ह, यह उनके बाप जीतिसहं केहाथ का खत मेरे खत के जवाब म आया है’। महाराज ने कहा, ‘‘उसका पता लगानेके िलए कु छ िफक्र की गयी है या नहीं ?’’ हरदयालिसहं ने कहा, ‘‘हाँ, कई जाससू मनेइधर-उधर भेजे ह।’’महाराज को तजे िसहं का बहुत अफसोस रहा, दरबार बखार् त करके महल म चले गये।बात-की-बात म महाराज ने तेजिसहं का िजक्र महारानी से िकया और कहा, ‘‘िक मतका फे र इसे ही कहते ह। क्रू रिसहं ने तो हलचल मचा ही रक्खी थी, मदद के वा ते एकतजे िसहं आया था सो कई िदन से उसका भी पता नहीं लगता, अब मझु े उसके िलएसरु े द्रिसहं से शिम्र दगी उठानी पड़गे ी। तजे िसहं का चाल-चलन, बात-चीत, इ म औरचालाकी पर जब खयाल करता हूँ, तबीयत उमड़ आती है। बड़ा लायक लड़का है। उसकेचेहरे पर उदासी तो कभी देखी ही नहीं।’’ महारानी ने भी तेजिसहं के हाल पर बहुतअफसोस िकया। इि तफाक से चपला उस वक्त वहीं खड़ी थी, यह हाल सनु वहाँ सेचली और च द्रका ता के पास पहुंची। तजे िसहं का हाल जब कहना चाहती थी, जी
उमड़ आता है, कु छ कह न सकती थी। च द्रका ता ने उसकी दशा देख पछू ा, ‘‘क्य ?क्या है ? इस वक्त तरे ी अजब हालत हो रही है, कु छ महुं से तो कह !’’ इस बात काजवाब देने के िलए चपला ने महंु खोला ही था िक गला भर आया, आंख से आंसूटपक पड़,े कु छ जवाब न दे सकी। च द्रका ता को और भी ता जबु हुआ, पछू ा, ‘‘तू रोतीक्य है, कु छ बोल भी तो।’’आिखर चपला ने अपने को स हाला और बहुत मिु कल से कहा, ‘‘महाराज की जबु ानीसनु ा है िक तेजिसहं को महाराज िशवद त के ऐयार ने िगर तार कर िलया। अबवीरे द्रिसहं का आना भी मिु कल होगा क्य िक उनका वही एक बड़ा सहारा था।’’ इतनाकहा था िक पूरे तौर पर आंसू भर आये और खबू खुलकर रोने लगी। इसकी हालत सेच द्रका ता समझ गई िक चपला भी तेजिसहं को चाहती है, मगर सोचने लगी िकचलो अ छा ही है इसम भी हमारा ही भला है, मगर तेजिसहं के हाल और चपला कीहालत पर बहुत अफसोस हुआ, िफर चपला से कहा, ‘‘उनको छु ड़ाने की यही िफक्र होरही है ? क्या तरे े रोने से वे छू ट जायगे ? तझु से कु छ नहीं हो सकता तो म ही कु छक ं ?’’ च पा भी वहाँ बठै ी यह अफसोस भरी बात सनु रही थी, बोली, ‘‘अगर हुक्महो तो म तजे िसहं की खोज म जाऊं ?’’ चपला ने कहा, ‘‘अभी तू इस लायक नहीं हुईहै ?’’ च पा बोली, ‘‘क्य , अब मेरे म क्या कसर है ? क्या म ऐयारी नहीं कर सकती?’’ चपला ने कहा, ‘‘हा,ँ ऐयारी तो कर सकती है मगर उन लोग का मकु ाबला नहीं करसकती िजन लोग ने तेजिसहं जसै े चालाक ऐयार को पकड़ िलया है। हा,ँ मझु कोराजकु मारी हुक्म द तो म खोज म जाऊं ?’’ च द्रका ता ने कहा, ‘‘इसम भी हुक्म कीज रत है ? तेरी मेहनत से अगर वे छू टगे तो ज म भर उनको कहने लायक रहेगी।अब तू जाने म देर मत कर, जा।’’ चपला ने च पा से कहा, ‘‘देख, म जाती हूँ, परऐयार लोग बहुत से आये हुए ह, ऐसा न हो िक मेरे जाने के बाद कु छ नया बखेड़ामचे। खरै , और तो जो होगा देखा जायेगा, तू राजकु मारी से होिशयार रिहयो। अगरतझु से कु छ भलू हुई या राजकु मारी पर िकसी तरह की आफत आई तो म ज म-भरतरे ा महुं न देखंगू ी !’’ च पा ने कहा, ‘‘इस बात से आप खाितर जमा रख, म बराबरहोिशयार रहा क ं गी।’’चपला अपने ऐयारी के सामान से लसै हो और कु छ दिक्षणी ढंग के जेवर तथा कपड़ेले तजे िसहं की खोज म िनकली। सत्रहवाँ बयानचपला कोई साधारण औऱत न थी। खूबसरू ती और नजाकत के अलावा उसम ताकतभी थी। दो-चार आदिमय से लड़ जाना या उनको िगर तार कर लेना उसके िलए एक
अदना-सा काम था, श त्र िव या को परू े तौर पर जानती थी। ऐयारी के फन के अलावाऔर भी कई गणु उसम थे। गाने और बजाने म उ ताद, नाचने म कारीगर,आितशबाजी बनाने का बड़ा शौक, कहाँ तक िलख- कोई फन ऐसा न था िजसको चपलान जानती हो। रंग उसका गोरा, बदन हर जगह सुडौल, नाजकु हांथ-पांव की तरफखयाल करने से यही जािहर होता था िक इसे एक फू ल से मारना खनू करना है।उसको जब कहीं बाहर जाने की ज रत पड़ती थी तो अपनी खबू सरू ती जान बूझकरिबगाड़ डालती थी या भेष बदल लेती थी।अब इस वक्त शाम हो गई बि क कु छ रात भी जा चुकी है। च द्रमा अपनी परू ीिकरण से िनकला हुआ है। चपला अपनी असली सरू त म चली जा रही है, ऐयारी काबटु आ बगल म लटकाये कम द कमर म कसे और खजं र भी लगाये हुए जगं ल-ही-जगं ल कदम बढ़ाये जा रही है। तेजिसहं की याद ने उसको ऐसा बेकल कर िदया है िकअपने बदन की भी खबर नहीं। उसको यह मालमू नहीं िक वह िकस काम के िलएबाहर िनकली है या कहाँ जा रही है, उसके आगे क्या है, प थर या ग ढा, नदी है यानाला, खाली परै बढाये जाना ही यही उसका काम है। आखं से आंसू की बूदं िगर रहीह, सारा कपड़ा भीग गया है। थोड़ी-थोड़ी दरू पर ठोकर खाती है, उं गिलय से खनू िगररहा है मगर उसको इसका कु छ खयाल नहीं। आगे एक नाला आया िजस पर चपलाने कु छ यान न िदया और ध म से उस नाले म िगर पड़ी, िसर फट गया, खूनिनकलने लगा, कपड़े बदन के सब भीग गये। अब उसको इस बात का खयाल हुआ िकतजे िसहं को छु ड़ाने या खोजने चली है। उसके महंु से झट यह बात िनकली-‘‘हाय यारे म तमु को िब कु ल भलू गई, तु हारे छु ड़ाने की िफक्र मझु को जरा भी न रही, उसीकी यह सजा िमली !’’ अब चपला सभं ल गई और सोचने लगी िक वह िकस जगह है।खबू गौर करने पर उसे मालमू हुआ िक रा ता िब कु ल भलू गई है और एक भयानकजगं ल म आ फं सी है। कु छ क्षण के िलए तो वह बहुत डर गई मगर िफर िदल कोसभं ाला, उस खतरनाक नाले से पीछे िफरी और सोचने लगी, इसम तो कोई शक नहींिक तेजिसहं को महाराज िशवद त के ऐयार ने पकड़ िलया है, तो ज र चुनार ही लेभी गये ह गे। पहले वहीं खोज करनी चािहए, जब न िमलगे तो दसू री जगह पतालगाऊं गी। यह िवचार कर चनु ार का रा ता ढू ढ़ने लगी। हजार खराबी से आधी रातगजु र जाने के बाद रा ता िमल गया अब सीधे चुनार की तरफ पहाड़-ही-पहाड़ चलिनकली, जब सबु ह करीब हुई उसने अपनी सरू त एक मद्र िसपाही की-सी बना ली।नहाने–धोने, खाने-पीने की कु छ िफक्र नहीं िसफर् रा ता तय करने की उसको धनु थी।आिखर भखू ी- यासी शाम होते चुनार पहुंची। िदल म ठान िलया था िक जब तकतजे िसहं का पता न लगेगा-अ न जल ग्रहण न क ँ गी। कहीं आराम न िलया, इधर-उधर ढूंढ़ने और तलाश करने लगी। एकाएक उसे कु छ चालाकी सझू ी, उसने अपनी पूरी
सरू त प नालाल की बना ली औऱ घसीटािसहं ऐयार के डरे े पर पहुंची।हम पहले िलख चुके ह िक छ : ऐयार म से चार ऐयार िवजयगढ़ गये ह औरघसीटािसहं और चु नीलाल चुनार म ही रह गये ह। घसीटािसहं प नालाल को देखकरउठ खड़े हुए और साहब सलामत के बाद पछू ा, ‘‘कहो प नालाल, अबकी बार िकसकोलाये?’’प नाः इस बार लाये तो िकसी को नही,ं िसफर् इतना पूछने आये ह िक नािजम यहाँ हैया नही,ं उसका पता नहीं लगता।घसीटाः यहाँ तो नहीं आया।प नाः िफर उसको पकड़ा िकसने ? वहाँ तो अब कोई ऐयार नहीं है !घसीटाः यह तो म नहीं कह सकता िक वहाँ और कोई भी ऐयार है या नहीं, िसफर्तेजिसहं का नाम तो मशहूर था सो कै द हो गये, इस वक्त िकले म ब द पड़े रोतेह गे।प नाः खरै , कोई हज्र नहीं, पता लग ही जायेगा, अब जाता हूँ क नहीं सकता। यह कहनकली प नालाल वहाँ से रवाना हुए।अब चपला का जी िठकाने हुआ। यह सोचकर िक तेजिसहं का पता लग गया और वेयहीं मौजदू ह, कोई हज्र नहीं। िजस तरह होगा छु ड़ा लेगी, वह मदै ान म िनकल गईऔर गगं ाजी के िकनारे बैठ अपने बटु ए म से कु छ मेवा िनकाल के खाया, गगं ाजल पीके िनि च त हुई और, तब अपनी सरू त एक गाने वाली औऱत की बनाई। चपला कोखबू सरू त बनाने की कोई ज रत नहीं थी, वह खदु ऐसी थी िक हजार खुबसू रू त कामकु ाबला करे, मगर इस सबब से कोई पहचान ले उसको अपनी सरू त बदलनी पड़ी।जब हर तरह से लसै हो गई, एक वंशी हाथ म ले राजमहल के िपछवाड़े की तरफ जाएक साफ जगह देख बैठ गयी और चढ़ी आवाज म एक िबरहा गाने लगी, एक बारिफर वयं गाकर िफर उसी गत को वशं ी पर बजाती।रात आधी से यादा बीत चकु ी थी, राजमहल म िशवद त महल की छत पर मायारानीके साथ मीठी-मीठी बात कर रहे थ,े एकाएक गाने की आवाज उनके कान म गई औरमहारानी ने भी सनु ी। दोन ने बात करना छोड़ िदया और कान लगाकर गौर से सनु नेलगे। थोड़ी देर बाद वशं ी की आवाज आने लगी िजसका बोल साफ मालमू पड़ता था।महाराज की तबीयत बेचनै हो गई, झट ल डी को बुलाकर हुक्म िदया, ‘‘िकसी को कहो,अभी जाकर उसको इस महल के नीचे ले आये िजसके गाने की आवाज आ रही है।’’हुक्म पाते ही पहरेदार दौड़ गये, देखा िक एक नाजकु बदन बैठी गा रही है। उसकीसरू त देखकर लोग के हवास िठकाने न रहे, बहुत देर के बाद बोले, ‘‘महाराज ने महल
के करीब आपको बलु ाया है और आपका गाना सनु ने के बहुत मु तहक ह। चपला नेकु छ इनकार न िकया, उन लोग के साथ-साथ महल के नीचे चली आई औऱ गानेलगी। उसके गाने महाराज को बेताब कर िदया। िदल को रोक न सके , हुक्म िदया िकउसको दीवान खाने म ले जाकर बठै ाया जाय और रोशनी का ब दोब त हो, हम भीआते ह। महारानी ने कहा, ‘‘आवाज से यह औरत मालमू होती है, क्या हजर् है अगरमहल म बुला ली जाये।’’ महाराज ने कहा, ‘‘पहले उसको देख-समझ ल तो िफर जसै ाहोगा िकया जायेगा, अगर यहाँ आने लायक होगी तो तु हारी भी खाितर कर दीजायेगी।’’हुक्म की देर थी, सब सामान लसै हो गया। महाराज दीवान खाने म जा िवराजे। बीबीचपला ने झकु कर सलाम िकया। महाराज ने देखा िक एक औरत िनहायत हसीन, रंगगोरा, सरु मई रंग की साड़ी और धानी बूटीदार चोली दिक्षणी ढंग पर पहने पीछे से लांगबाधं े, खलु ासा गड़ारीदार जड़ू ा कांटे से बांधे, िजस पर एक छोटा –सा सोने का फू ल, माथेपर एक बड़ा-सा रोली का टीका लगाये, कान म सोने की िनहायत खूबसरू त जड़ाऊबािलयां पहने, नाक म सरजा की नथ, एक टीका सोने का और घुंघ दार पटड़ी गथू नके गले म पहने, हाथ म िबना घडुं ी का कड़ा व छ देली िजसके ऊपर काली चूिड़या,ंकमर म ल छे दार कधनर् ी और पैर म साकं ड़ा पहने अजब आनबान से सामने खड़ी है।गहना तो मखु ्तसर ही है मगर बदन की गठाई और सडु ौली पर इतना ही आफत होरहा है। गौर से िनगाह करने पर एक छोटा-सा ितल ठु डी के बगल म देखा जो चेहरेको औऱ भी रौनक दे रहा था। महाराज के होश जाते रहे, अपनी महारानी साहब कोभलू गये िजस पर रीझे हुए थ,े झट महंु से िनकल पड़ा, वाह ! क्या कहना है !’’टकटकी बंध गई। महाराज ने कहा, ‘‘आओ, यहाँ बैठो।’’ बीबी चपला कमर को बल देतीहुई अठखेिलय के साथ कु छ नजदीक जा सलाम करके बैठ गई। महाराज उसके हु नके रोब म आ गये। यादा कु छ कह न सके एकटक सरू त देखने लगे। िफर पछू ा,‘‘तु हारा मकान कहाँ है ? कौन हो ? क्या काम है ? तु हारी जसै ी औऱत का अके लीरात के समय घूमना ता जबु म डालता है।’’ उसने जवाब िदया, ‘‘म ग्वािलयर कीरहने वाली पटलापा क थक की लड़की हूँ। र भा मेरा नाम है। मेरा बाप भारी गवयै ाथा। एक आदमी पर मेरा जी आ गया, बात-की-बात म वह मझु से गु सा हो के चलागया, उसी की तलाश म मारी-मारी िफरती हूँ। क्या क ं , अकसर दरबार म जाती हूं िकशायद कहीं िमल जाये क्य िक वह भी बड़ा भारी गवयै ा है, सो ता जबु नही,ं िकसीदरबार म हो, इस वक्त तबीयत की उदासी म य ही कु छ गा रही थी िक सरकार नेयाद िकया, हािजर हुई।’’ महाराज ने कहा, ‘‘तु हारी आवाज बहुत भली है, कु छ गाओतो अ छी तरह सनु ूं !’’ चपला ने कहा, ‘‘महाराज ने इस नाचीज पर बड़ी मेहरबानी कीजो नजदीक बलु ाकर बठै ाया और ल डी को इ जत दी। अगर आप मेरा गाना सनु ना
चाहते ह तो अपने मलु ािजम सपदार्र को तलब कर, वे लोग साथ द तो कु छ गाने कालु फ आये, वसै े तो म हर तरह से गाने को तैयार हूँ।’’यह सनु महाराज बहुत खशु हुए और हुक्म िदया िक, ‘‘सपदा्र हािजर िकये जाय।’ यादेदौड़ गये और सपदार्ओं का सरकारी हुक्म सनु ाया। वे सब हैरान हो गये िक तीन पहररात गजु रे महाराज को क्या सझू ी है। मगर लाचार होकर आना ही पड़ा। आकर जबएक चांद के टु कड़े को सामने देखा तो तबीयत खशु हो गई। कु ढ़े हुए आये थे मगरअब िखल गये। झट साज िमला करीने से बैठे , चपला ने गाना शु िकया। अब क्याथा, साज व सामान के साथ गाना, िपछली रात का समा, महाराज को बुत बना िदया,सपदा्र भी दंग रह गये, तमाम इ म आज खच्र करना पड़ा। बेवक्त की महिफल थीितस पर भी बहुत-से आदमी जमा हो गये। दो चीज दरबारी की गायी थी िक सबु ह होगई। िफर भरै वी गाने के बाद चपला ने ब द करके अज्र िकया, ‘‘महाराज, अब सबु ह होगई, म भी कल की थकी हूं क्य िक दरू से आई थी, अब हुक्म हो तो खसत होऊं ?’’चपला की बात सनु कर महाराज च क पड़।े देखा तो सचमचु सवेरा हो गया है। अपनेगले से मोती की माला उतारकर इनाम म दी और बोले, ‘‘अभी हमारा जी तु हारे गानेसे िब कु ल नहीं भरा है, कु छ रोज यहाँ ठहरो, िफर जाना !’’ र भा ने कहा, ‘‘अगरमहाराज की इतनी मेहरबानी ल डी के हाल पर है तो मझु को कोई उज्र रहने म नहीं !’’महाराज ने हुक्म िदया िक र भा के रहने का परू ा ब दोब त हो और आज रात कोआम महिफल का सामान िकया जाये। हुक्म पाते ही सब सरंजाम हो गया, एक सु दरमकान म र भा का डरे ा पड़ गया, नौकर मजदरू सब तैनात कर िदये गये।आज की रात आज की महिफल थी। अ छे आदमी सब इकट्ठे हुए, र भा भी हािजरहुई, सलाम करके बैठ गई। महिफल म कोई ऐसा न था िजसकी िनगाह र भा कीतरफ न हो। िजसको देखो ल बी सासँ े भर रहा है, आपस म सब यही कहते ह िक‘‘वाह, क्या भोली सरू त है, क्य ? कभी आज तक ऐसी हसीना तमु ने देखी थी ?’’र भा ने गाना शु िकया। अब िजसको देिखए िमट्टी की मरू त हो रहा है। एक गीतगाकर चपला ने अजर् िकया, ‘‘महाराज एक बार नौगढ़ म राजा सरु े द्रिसहं की महिफलम ल डी ने गाया था। वैसा गाना आज तक मेरा िफर न जमा, वजह यह थी िक उनकेदीवान के लड़के तेजिसहं ने मेरी आवाज के साथ िमलकर बीन बजाई थी, हाय, मझु कोवह महिफल कभी न भलू ेगी ! दो-चार रोज हुआ, म िफर नौगढ़ गई थी, मालमू हुआिक वह गायब हो गया। तब म भी वहाँ न ठहरी, तुर त वापस चली आई।’’ इतना कहर भा अटक गई। महाराज तो उस पर िदलोजान िदये बठै े थे। बोले, ‘‘आजकल तो वहमेरे यहां कै द है पर मिु कल तो यह है िक म उसको छोड़ूगं ा नहीं और कै द की हालतम वह कभी बीन न बजायेगा !’’ र भा ने कहा, ‘‘जब वह मेरा नाम सनु ेगा तो ज र
इस बात को कबूल करेगा मगर उसको एक तरीके से बुलाया जाये, वह अलब ता मेरासगं देगा नहीं तो मेरी भी न सनु ेगा क्य िक वह बड़ा िज ी है।’’ महाराज ने पूछा, ‘‘ वहकौन-सा तरीका है ?’’ र भा ने कहा, ‘‘ एक तो उसके बलु ाने के िलए ब्रा मण जायेऔर वह उम्र म बीस वष्र से यादा न हो, दसू रे जब वह उसको लावे, दसू रा कोई सगंन हो, अगर भागने का खौफ हो तो बेड़ी उसके पैर म पड़ी रहे इसका कोई मजु ायकानही,ं तीसरे यह िक बीन कोई उ दा होनी चािहए।’’ महाराज ने कहा, ‘‘यह कौन-सी बड़ीबात है।’’ इधर-उधर देखा तो एक ब्रा मण का लड़का चेतराम नामी उस उम्र का नजरआया, उसे हुक्म िदया िक तू जाकर तजे िसहं को ले आ, मीर मशुं ी ने कहा, ‘‘तमु जाकरपहरे वाल को समजा दो िक तेजिसहं के आने म कोई रोक-टोक न करे। हा,ँ एक बेड़ीउसके पैर म ज र पड़ी रहे।’’हुक्म पा चेतराम तजे िसहं को लेने गया और मीरमशंु ी ने भी पहरेवाल को महाराज काहुक्म सनु ाया। उन लोग को क्या उज्र था, तेजिसहं को अके ले रवाना कर िदया।तेजिसहं तुर त समझ गये िक कोई दो त ज र यहाँ आ पहुंचा है तभी तो उसने ऐसीचालाकी की शतर् से मझु को बलु ाया है। खुशी-खुशी चेतराम के साथ रवाना हुए। जबमहिफल म आये, अजब तमाशा नजर आया। देखा िक एक बहुत ही खूबसरू त औऱतबैठी है और सब उसी की तरफ देख रहे ह। जब तेजिसहं महिफल के बीच म पहुँचे,र भा ने आवाज दी, ‘‘आओ, आओ तजे िसहं , र भा कब से आपकी राह देख रही है !भला वह बीन कब भलू ेगी तो आपने नौगढ़ म बजायी थी !’’ यह कहते हुए र भी नेतेजिसहं की तरफ देखकर बायीं आँख ब द की। तेजिसहं समझ गये िक यह चपला है,बोले, ‘‘र भा, तू आ गई। अगर मौत भी सामने नजर आती हो तो भी तेरे साथ बीनबजा के म ं गा, क्य िक तरे े जसै े गाने वाली भला काहे को िमलेगी !’’ तेजिसहं औरर भा की बात सनु कर महाराज को बड़ा ता जबु हुआ मगर धनु तो यह थी िक कबबीन बजे और कब र भा गाये। बहुत उ दी बीन तेजिसहं के सामने रक्खी गई औरउ ह न बजाना शु िकया, र भा भी गाने लगी। अब जो समा बंधा उसकी क्या तारीफकी जाये। महाराज तो सकत-े की सी हालत म हो गये। और की कै िफयत दसू री होगयी।एक गीत का साथ देकर तेजिसहं ने कहा, ‘‘बस, म एक रोज म एक ही गीत या बोलबजाता हूं इससे यादा नहीं। अगर आपको सनु ने का यादा शौक हो तो कल िफरसनु लीिजएगा !’’ र भा ने भी कहा, ‘‘हा,ँ महाराज यही तो इनम ऐब है ! राजासरु े द्रिसहं , िजनके यह नौकर थे, कहते-कहते थक गये मगर इ ह ने एक न मानी, एकही बोल बजाकर रह गये। क्या हजर् है कल िफर सनु लीिजएगा।’’ महाराज सोचने लगेिक अजब आदमी है, भला इसम इसने क्या फायदा सोचा है, अफसोस ! मेरे दरबार मयह न हुआ। र भा ने भी बहुत कु छ उज्र करके गाना मौकू फ िकया। सभी के िदल म
हसरत बनी रह गई। महाराज ने अफसोस के साथ मजं िलस बखार् त की और तेजिसहंिफर उसी चेतराम ब्रा मण के साथ जेल भेज िदये गये।महाराज को तो अब इ क को हो गया िक तजे िसहं के बीन के साथ र भा का गानासनु । िफर दसू रे रोज महिफल हुई और उसी चेतराम ब्रा मण को भेजकर तजे िसहंबुलाये गये। उस रोज भी एक बोल बजाकर उ ह ने बीन रख दी। महाराज का िदल नभरा, हुक्म िदया िक कल परू ी महिफल हो। दसू रे िदन िफर महिफल का सामान हुआ.सब कोई आकर पहले ही से जमा हो गये, मगर र भा महिफल म जाने के वक्त सेघंटे भर पहले दांव बचा चेतराम की सरू त बना कै दखाने म पहुंची। पहरेवाले जानते हीथे िक चेतराम अके ला तजे िसहं को ले जायेगा, महाराज का हुक्म ही ऐसा है। उ ह नेताला खोलकर तेजिसहं को िनकाला और पैर म बेड़ी डाल चेतराम के हवाले कर िदया।चेतराम (चपला) उनको लेकर चलते बने। थोड़ी दरू जाकर चेतराम ने तजे िसहं की बेड़ीखोल दी। अब क्या था, दोन ने जगं ल का रा ता िलया।कु छ दरू जाकर चपला ने अपनी सरू त बदल ली और असली सरू त म हो गई, अबतेजिसहं उसकी तारीफ करने लगे। चपला ने कहा, ‘‘आप मझु को शिम्र दा न करक्य िक म अपने को इतना चालाक नहीं समझती िजतनी आप तारीफ कर रहे ह, िफरमझु को आपको छु ड़ाने की कोई गरज भी न थी, िसफर् च द्रका ता की मरु ौवत से मनेयह काम िकया।’’ तजे िसहं ने कहा, ‘‘ठीक है, तुमको मेरी गरज काहे हो होगी ! गरजूंतो म ठहरा िक तु हारे साथ सपदा्र बना, जो काम बाप-दाद ने न िकया था सो करनापड़ा !’’ यह सनु चपला हंस पड़ी और बोली, ‘‘बस माफ कीिजए, ऐसी बात न किरए।’’तजे िसहं ने कहा, ‘‘वाह, माफ क्या करना, म बगरै मजदरू ी िलए न छोड़ूगं ा।’’ चपला नेकहा, ‘‘मेरे पास क्या है जो म दंू ?’’ उ ह ने कहा, ‘‘जो कु छ तु हारे पास है वही मेरेिलए बहुत है।’’ चपला ने कहा, ‘‘खरै , इन बात को जाने दीिजए और यह किहए िकयहाँ से खाली ही चिलयेगा या महाराज िशवद त को कु छ हाथ भी िदखाइएगा ?’’तेजिसहं ने कहा, ‘‘इरादा तो मेरा यही था, आगे तमु जसै ा कहो।’’ चपला ने कहा,‘‘ज र कु छ करना चािहए !’’बहुत देर तक आपस म सोच-िवचारकर दोन ने एक चालाकी ठहराई िजसे करने केिलए ये दोन उस जगह से दसू रे घने जगं ल म चले गये। अट्ठारहवाँ बयानअब महाराज िशवद त की महिफल का हाल सिु नए। महाराज िशवद तिसहं महिफल मआ िवराजे। र भा के आने म देर हुई तो एक चोबदार को कहा िक जाकर उसको बुलालाय और चते राम ब्रा मण को तजे िसहं को लाने के िलए भेजा। थोड़ी बाद चोबदार ने
आकर अज्र िकया िक महाराज र भा तो अपने डरे े पर नहीं है, कहीं चली गई। महाराजको बड़ा ता जबु हुआ क्य िक उसको जी से चाहने लगे थे। िदल म र भ के िलएअफसोस करने लगे और हुक्म िदया िक फौरन उसे तलाश करने के िलए आदमी भेजेजाय। इतने म चेतराम ने आकर दसू री खबर सनु ाई िक कै दखाने म तेजिसहं नहीं है।अब तो महाराज के होश उड़ गये। सारी महिफल दंग हो गई िक अ छी गाने वालीआई जो सभी को बेवकू फ बनाकर चली गई। घसीटािसहं और चु नीलाल ऐयार ने अज्रिकया, ‘‘महाराज बेशक वह कोई ऐयार था जो इस तरह आकर तेजिसहं को छु ड़ा लेगया।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, मगर काम उसने कािबल इनाम के िकया। ऐयार नेभी तो उसका गाना सनु ा था, महिफल म मौजदू ही थे, उन लोग की अक्ल पर क्याप थर पड़ गये थे िक उसको न पहचाना ! लानत है तमु लोग के ऐयार कहलाने पर!’’ यह कह महाराज गम और गु से से भरे हुए उठकर महल म चले गये। महिफल मजो लोग बैठे थे उन लोग ने अपने घर का रा ता िलया। तमाम शहर म यह बातफै ल गई ; िजधर देिखए यही चचा्र थी।दसू रे िदन जब गु से म भरे हुए महाराज दरबार म आये तो एक चोबदार ने अजर्िकया, ‘‘महाराज, वह जो गाने वाली आयी थी असल म वह औऱत ही थी। वह चेतरामिम की सरू त बनाकर तजे िसहं को छु ड़ा ले गई। मने अभी उन दोन को उस सलईवाले जगं ल म देखा है।’’ यह सनु महाराज को और भी ता जबु हुआ, हुक्म िदया िकबहुत से आदमी जाय और उनको पकड़ लाव, पर चोबदार ने अज्र िकया-‘‘महाराज इसतरह वे िगर तार न ह गे, भाग जायगे, हाँ घसीटािसहं और चु नीलाल मेरे साथ चल तोम दरू से इन लोग को िदखला दँ,ू ये लोग कोई चालाकी करके उ ह पकड़ ल।’’महाराज ने इस तरकीब को पस द करके दोन ऐयार को चोबदार के साथ जाने काहुक्म िदया। चोबदार ने उन दोन को िलए हुए उस जगह पहुंचा िजस जगह उसनेतजे िसहं का िनशान देखा था, पर देखा िक वहाँ कोई नहीं है। तब घसीटािसहं ने पूछा,‘‘अब िकधर देख ?’’ उसने कहा, ‘‘क्या यह ज री है िक वे तब से अब तक इसी पेड़के नीचे बैठे रह ? इधर-उधर देिखए, कहीं ह गे !’’ यह सनु घसीटािसहं ने कहा, ‘‘अ छाचलो, तुम ही आगे चलो।वे लोग इधर-उधर ढूंढ़ने लगे, इसी समय एक अहीिरन िसर पर खंिचए म दधू िलएआती नजर पड़ी। चोबदार ने उसको अपने पास बलु ाकर पूछा, ‘‘िक तूने इस जगह कहींएक औरत और एक मदर् को देखा है ?’’ उसने कहा, ‘‘हा,ँ हाँ, उस जगं ल म मेरा अडारहै, बहुत-सी गाय-भसी मेरी वहाँ रहती ह, अभी मने उन दोन के पास दो पैसे का दधूबेचा है और बाकी दधू लेकर शहर बेचने जा रही हूँ।’’ यह सनु कर चोबदार बतौरइनाम के चार पैसे िनकाल उसको देने लगा, मगर उसने इनकार िकया और कहा िकम तो सत के पसै े नहीं लेती, हा,ँ चार पसै े का दधू आप लोग लेकर पी ल तो म शहर
जाने से बचूं और आपका अहसान मानूं। चोबदार ने कहा, ‘‘क्या हजर् है, तू दधू ही देदे।’’ बस अहीरन ने खाचं ा रख िदया और दधू देने लगी। चोबदार ने उन दोन ऐयारसे कहा, ‘‘आइए, आप भी लीिजए।’’ उन दोन ऐयार ने कहा, ‘‘हमारा जी नहीं चाहता!’’ वह बोली, ’’अ छा आपकी खुशी।’’ चोबदार ने दधू िपया और तब िफर दोन ऐयारसे कहा, ‘‘वाह ! क्या दधू है ! शहर म तो रोज आप पीते ही ह, भला आज इसको भीतो पीकर मजा देिखए !’’ उसके िज करने पर दोन ऐयार ने भी दधू िपया और चारपैसे दधू वाली को िदये।अब वे तीन तजे िसहं को ढूंढ़ने चले, थोड़ी दरू जाकर चोबदार ने कहा, ‘‘न जाने क्यमेरा िसर घमू ता है।’’ घसीटािसहं बोले, ‘‘मेरी भी वही दशा है।’’ चु नीलाल तो कु छकहना ही चाहते थे िक िगर पड़।े इसके बाद चोबदार और घसीटािसहं भी जमीन परलेट गये। दधू बेचने वाली बहुत दरू नहीं गई थी, उन तीन को िगरते देख दौड़ती हुईपास आई और लखलखा सघंु ाकर चोबदार को होिशयार िकया। वह चोबदार तेजिसहं थे,जब होश म आये अपनी असली सरू त बना ली, इसके बाद दोन की मु क बांध गठरीकस एक चपला को और दसू रे को तेजिसहं ने पीठ पर लादा और नौगढ़ का रा तािलया। उ नीसवाँ बयानतेजिसहं को छु ड़ाने के िलए जब चपला चुनार गई तब च पा ने जी म सोचा िक ऐयारतो बहुत से आये ह और म अके ली हूं, ऐसा न हो, कभी कोई आफत आ जाय। ऐसीतरकीब करनी चीिहए िजसम ऐयार का डर न रहे और रात को भी आराम से सोने मआये। यह सोचकर उसने एक मसाला बनाया। जब रात को सब लोग सो गये औऱच द्रका ता भी पलगं पर जा लेटी तब च पा ने उस मसाले को पानी म घोलकर िजसकमरे म च द्रका ता सोती थी उसके दरवाजे पर दो गज इधर-उधर लेप िदया औरिनि च त हो राजकु मारी के पलगं पर जा लेटी। इस मसाले म यह गणु था िक िजसजमीन पर उसका लेप िकया जाये सखू जाने पर अगर िकसी का पैर उस जमीन परपड़े तो जोर से पटाखे की आवाज आवे, मगर देखने से यह न मालमू हो िक इसजमीन पर कु छ लेप िकया है। रात भर च पा आराम से सोई रही। कोई आदमी उसकमरे के अ दर न आया, सबु ह को च पा ने पानी से वह मसाला धो डाला। दसू रे िदनउसने दसू री चालाकी। िमट्टी की एक खोपड़ी बनाई और उसको रंग कर ठीकच द्रका ता की मरू त बनाकर िजस पलगं पर कु मारी सोया करती थी तिकए के सहारेवह खोपड़ी रख दी, और धड़ की जगह कपड़ा रखकर एक ह की चादर उस पर चढ़ादी, मगर महंु खलु ा रखा, और खबू रोशनी कर उस चारपाई के चार तरफ वही लेप करिदया। कु मारी से कहा, ‘‘आज आप दसू रे कमरे म आराम कर।’’ च द्रका ता समझ गई
और दसू रे कमरे म जा लेटी। िजस कमरे म च द्रका ता सोई उसके दरवाजे पर भीलेप कर िदया और िजस कमरे म पलगं पर खोपड़ी रखी थी उसके बगल म एककोठरी थी, िचराग बुझाकर आप उसम सो रही।आधी रात गजु र जाने के बाद उस कमरे के अ दर से िजसम खोपड़ी रखी थी पटाखेकी आवाज आई। सनु ते ही च पा झट उठ बैठी और दौड़कर बाहर से िकवाड़ ब द करखूब गलु करने लगी, यहाँ तक िक बहुत-सी ल िडयाँ वहाँ आकर इकट्ठी हो गईं और एकजोर से महाराज को खबर दी िक च द्रका ता के कमरे म चोर घसु ा है। यह सनुमहाराज खदु दौड़े आये और हुक्म िदया िक महल के पहरे से दस-पांच िसपाही अभीआव। जब सब इकट्ठे हुए, कमरे का दरवाजा खोला गया। देखा िक रामनारायण औरप नालाल दोन ऐयार भीतर ह। बहुत से आदमी उ ह पकड़ने के िलए अ दर घुसगये, उन ऐयार ने भी खजं र िनकाल चलाना शु िकया। चार-पाचं िसपािहय कोजख्मी िकया, आिखर पकड़े गये। महाराज ने उनको कै द म रखने का हुक्म िदया औरच पा से हाल पछू ा। उसने अपनी कार्रवाई कह सनु ाई। महाराज बहुत खुश हुए औऱउसको इनाम देकर पूछा, ‘‘चपला कहाँ है ?’ उसने कहा, ‘वह बीमार है’। िफर महाराजने और कु छ न पूछा अपने आरामगाह म चले गये। सबु ह को दरबार म उन ऐयार कोतलब िकया। जब वे आये तो पूछा, ‘‘तु हारा क्या नाम है ?’’ प नालाल बोला,‘‘सरतोड़िसहं ।’’ महाराज को उसकी िढठाई पर बड़ा गु सा आया। कहने लगे िक, ‘‘येलोग बदमाश ह, जरा भी नहीं डरते। खरै , ले जाकर इन दोन को खबू होिशयारी केसाथ कै द रखो।’’ हुक्म के मतु ािबक वे कै दखाने म भेज िदये गये।महाराज ने हरदयालिसहं से पूछा, ‘‘कु छ तेजिसहं का पता लगा ?’’ हरदयालिसहं नेकहा, ‘‘महाराज अभी तक तो पता नहीं लगा। ये ऐयार जो पकड़े गये ह उ ह खूबपीटा जाये तो शायद ये लोग कु छ बताव।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, मगर तेजिसहंआवेगा तो नाराज होगा िक ऐयार को क्य मारा ? ऐसा कायदा नहीं है। खैर, कु छ िदनतजे िसहं की राह औऱ देख लो िफर जसै ा मनु ािसब होगा, िकया जायेगा, मगर इस बातका खयाल रखना, वह यह िक तमु फौज के इ तजाम म होिशयार रहना क्य िकिशवद तिसहं का चढ़ आना अब ता जबु नहीं है।’’ हरदयालिसहं ने कहा, ‘‘म इ तजामसे होिशयार हूँ, िसफर् एक बात महाराज से इस बारे म पछू नी थी जो एका त म अजर्क ं गा।’’जब दरबार बखार् त हो गया तो महाराज ने हरदयालिसहं को एका त म बलु ाया औरपूछा, ‘‘वह कौन-सी बात है ?’’ उ ह ने कहा, ‘‘महाराज तजे िसहं ने कई बार मझु से कहाथा बि क कंु वर वीरे द्रिसहं और उनके िपता ने भी फमार्या था िक यहां के सबमसु लमान क्रू र की तरफदार हो रहे ह, जहां तक हो इनको कम करना चािहए। म
देखता हूं तो यह बात ठीक मालमू होती है, इसके बारे म जसै ा हुक्म हो, िकया जाये।’’महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, हम खुद इस बात के िलए तमु से कहने वाले थे। खरै , अबकहे देते ह िक तमु धीरे-धीरे सब मसु लमान को नाजकु काम से बाहर कर दो।’’हरदयालिसहं ने कहा, ‘‘बहुत अ छा, ऐसा ही होगा।’’ यह कह महाराज से खसत होअपने घर चले आये। बीसवाँ बयानमहाराज िशवद तिसहं ने घसीटािसहं और चु नीलाल को तेजिसहं को पकड़ने के िलएभेजकर दरबार बखा्र त िकया और महल म चले गये, मगर िदल उनका र भा कीजु फ म ऐसा फं स गया था िक िकसी तरह िनकल ही नहीं सकता था। उस महारानीसे भी हंसकर बोलने की नौबत न आई। महारानी ने पछू ा, ‘‘आपका चेहरा सु त क्यह, ‘‘महाराज ने कहा, ‘‘कु छ नही,ं जागने से ऐसी कै िफयत है।’’ महारानी ने िफर सेपूछा, ‘‘आपने वादा िकया था िक उस गाने वाली को महल म लाकर तुमको भी उसकागाना सनु वाएंगे, सो क्या हुआ ?’’ जवाब िदया, ‘‘वह हमीं को उ लू बनाकर चली गई,तुमको िकसका गाना सुनाव ?’’ यह सनु कर महारानी कलावती को बड़ा ता जबु हुआ।पूछा, ‘‘कु छ खलु ासा किहए, क्या मामला है ?’’ इस समय मेरा जी िठकाने नहीं है, म यादा नहीं बोल सकता।’’ यह कह कर महाराज वहाँ से उठकर अपने खास कमरे मचले गये और पलगं पर लेटकर र भा को याद करने लगे और मन म सोचने लगे,‘‘र भा कौन थी ? इसम तो कोई शक नहीं िक वह थी औऱत ही, िफर तजे िसहं कोक्य छु ड़ा ले गई ? उस पर वह आिशक तो नहीं थी जसै ा िक उसने कहा था ! हायर भा, तूने मझु े घायल कर डाला। क्या इसी वा ते तू आई थी ? क्या क ं , कु छ पताभी नहीं मालमू जो तमु को ढूँढूँ !’’िदल की बेताबी और र भा के खयाल म रात भर नीदं न आई। सबु ह को महाराज नेदरबार म आकर दिरया त िकया, ‘‘घसीटािसहं और चु नीलाल का पता लगाकर आयेया नहीं ?’’ मालमू हुआ िक अभी तक वे लोग नहीं आये। खयाल र भा ही की तरफथा। इतने म बद्रीनाथ, नािजम, योितषीजी, और क्रू रिसहं पर नजर पड़ी। उन लोग नेसलाम िकया और एक िकनारे बैठ गये। उन लोग के चेहरे पर सु ती और उदासीदेखकर और भी रंज बढ़ गया, मगर कचहरी म कोई हाल उनसे न पछू ा। दरबारबखा्र त करके तखिलए म गये और पिं डत बद्रीनाथ, क्रू रिसहं , नािजम और जग नाथ योितषी को तलब िकया। जब वे लोग आये और सलाम करके अदब के साथ बैठ गयेतब महाराज ने पूछा, ‘‘कहो, तमु लोग ने िवजयगढ़ जाकर क्या िकया ?’’ पंिडतबद्रीनाथ ने कहा, ‘‘हुजरू काम तो यही हुआ िक भगवानद त को तेजिसहं ने िगर तारकर िलया और प नालाल और रामनारायण को एक च पा नामी औरत ने बड़ी
चालाकी और होिशयारी से पकड़ िलया, बाकी म बच गया। उनके आदिमय म िसफर्तेजिसहं पकड़ा गया िजसको ताबेदार ने हुजरू म भेज िदया था िसवाय इसके और कोईकाम न हुआ।’’ महाराज ने कहा, ‘‘तेजिसहं को भी एक औरत छु ड़ा ले गई। काम तोउसने सजा पाने लायक िकया मगर अफसोस ! यह तो म ज र कहूँगा िक वह औरतही थी जो तजे िसहं को छु ड़ा ले गई, मगर कौन थी, यह न मालमू हुआ। तजे िसहं कोतो लेती ही गई, जाती दफा चु नीलाल और घसीटािसहं पर भी मालमू होता है िक हाथफे रती गई, वे दोन उसकी खोज म गये थे मगर अभी तक नहीं आये। क्रू र की मददकरने से मेरा नुकसान ही हुआ। खैर, अब तुम लोग यह पता लगाओ िक वह औऱतकौन थी िजसने गाना सनु ाकर मझु े बेताब कर िदया और सभी की आँख म धलूडालकर तेजिसहं को छु ड़ा ले गई ? अभी तक उसकी मोिहनी सरू त मेरी आखं के आगेिफर रही है।’’नािजम ने तरु त कहा, ‘‘हुजरू म पहचान गया। वह ज र च द्रका ता की सखी चपलाथी, यह काम िसवाय उसके दसू रे का नहीं !’’ महाराज ने पूछा, ‘‘क्या चपला च द्रका तासे भी यादा खूबसरू त है ?’’ नािजम ने कहा, ‘‘महाराज च द्रका ता को तो चपला क्यापावेगी मगर उसके बाद दिु नया म कोई खूबसरू त है तो चपला ही है, और वह तेजिसहंपर आिशक भी है।’’ इतना सनु महाराज कु छ देर तक हैरानी म रहे िफर बोले, ‘‘ चाहेजो हो, जब तक च द्रका ता और चपला मेरे हाथ न लगगी मझु को आराम न िमलेगा।बेहतर है िक म इन दोन के िलए जयिसहं को िचट्ठी िलख।ूँ ’’ क्रू रिसहं बोला, ‘‘ महाराजजयिसहं िचट्ठी को कु छ न मानगे।’’ महाराज ने जवाब िदया, ‘‘क्या हजर् है, अगर िचट्ठीका कु छ खयाल न करगे तो िवजयगढ़ को फतह ही क ं गा।’’ यह कह मीर मशुं ी कोतलब िकया, जब वह आ गया तो हुक्म िदया, राजा जयिसहं के नाम मेरी तरफ सेखत िलखो िक च द्रका ता की शादी मेरे साथ कर द और दहेज म चपला को दे द।’’मीर मशुं ी ने बमिू जब हुक्म के खत िलखा िजस पर महाराज ने मोहर करके पंिडतबद्रीनाथ को िदया और कहा, ‘‘तु हीं इस िचट्ठी को लेकर जाओ, यह काम तु हीं सेबनेगा।’’ पंिडत बद्रनाथ को क्या उज्र था, खत लेकर उसी वक्त िवजयगढ़ की तरफरवाना हो गये। इक्कीसवाँ बयानदसू रे िदन महाराज जयिसहं दरबार म बैठे हरदयालिसहं से तजे िसहं का हाल पूछ रहेथे िक अभी तक पता लगा या नही,ं िक इतने म सामने से तेजिसहं एक बड़ा भारीगट्ठर पीठ पर लादे हुए आ पहुंचे। गठरी तो दरबार के बीच म रख दी और झकु करमहाराज को सलाम िकया। महाराज जयिसहं तजे िसहं को देखकर खशु हुए और बठै नेके िलए इशारा िकया। जब तजे िसहं बठै गये तो महाराज ने पूछा, ‘‘क्य जी, इतने िदन
कहाँ रहे और क्या लाये हो ? तु हारे िलए हम लोग को बड़ी भारी परेशानी रही, दीवानजीतिसहं भी बहुत घबराये ह गे क्य िक हमने वहाँ भी तलाश करवाया था।’’ तेजिसहं नेअज्र िकया, ‘‘महाराज, ताबेदार दु मन के हाथ म फं स गया था, अब हुजरू के इकबालसे छू ट आया है बि क आती दफा चनु ार के दो ऐयार को जो वहाँ से, लेता आया है।’’महाराज यह सनु कर बहुत खुश हुए और अपने हाथ का कीमती कड़ा तजे िसहं कोईनाम देकर कहा, ‘‘यहाँ भी दो ऐयार को महल म च पा ने िगर तार िकया जो कै दिकये गये ह। इनको भी वहीं भेज देना चािहए !’’ यह कहकर हरदयालिसहं की तरफदेखा। उ ह ने याद को गठरी खोलने का हुक्म िदया, याद ने गठरी खोली। तजे िसहंने उन दोन को होिशयार िकया और याद ने उनको ले जाकर उसी जेल म ब द करिदया, िजसम रामनारायण और प नालाल थे।तेजिसहं ने महाराज से अजर् िकया, ‘‘ मेरे िगर तार होने से नौगढ़ म सब कोई परेशानह गे, अगर इजाजत हो तो म जाकर सब से िमल आऊं !’’ महाराज ने कहा, ‘‘हा,ँ ज रतमु को वहाँ जाना चािहए, जाओ, मगर ज दी वापस चले आना।’’ इसके बाद महाराज नेहरदयालिसहं को हुक्म िदया, ‘‘तुम मेरी तरफ से तोहफा लेकर तेजिसहं के साथ नौगढ़जाओ !’’ बहुत अ छा’’ कह के हरदयालिसहं ने तोहफे का सामान तैयार िकया औरकु छ आदमी सगं ले तजे िसहं के साथ नौगढ़ रवाना हुए।चपला जब महल म पहुंची, उसको देखते ही च द्रका ता ने खशु होकर उसे गले लगािलया और थोड़़ ी देर बाद हाल पछू ने लगी। चपला ने अपना पूरा हाल खलु ासा तौर परबयान िकया। थोड़ी देर तक चपला और च द्रका ता म चहु ल होती रही। कु मारी नेच पा की चालाकी का हाल बयान करके कहा िक, ‘‘तु हारी शािगिद्रन ने भी दो ऐयारको िगर तार िकया है’ यह सनु कर चपला बहुत खशु हुई और च पा को जो उसी जगहमौजदू थी गले लगाकर बहुत शाबाशी दी।इधर तेजिसहं नौगढ़ गये थे रा ते म हरदयालिसहं से बोले, ‘‘अगर हम लोग सवेरेदरबार के समय पहुंचते तो अ छा होता क्य िक उस वक्त सब कोई वहां रहगे।’’ इसबात को हरदयालिसहं ने भी पस द िकया और रा ते म ठहर गये, दसू रे िदन दरबार केसमय ये दोन पहुंचे और सीधे कचहरी म चले गये। राजा साहब के बगल मवीरे द्रिसहं भी बैठे थे, तेजिसहं को देखकर इतने खशु हुए िक मान दोन जहान कीदौलत िमल गई हो। हरदयालिसहं ने झकु कर महाराज और कु मार को सलाम िकयाऔर जीतिसहं से बराबर की मलु ाकात की। तेजिसहं ने महाराज सरु े द्रिसहं के कदमपर िसर रखा, राजा साहब ने यार से उसका िसर उठाया। तब अपने िपता कोपालागन करके तेजिसहं कु मार की बगल म जा बैठे ।
हरदयालिसहं ने तोहफा पेश िकया और एक पोशाक जो कंु वर वीरे द्रिसहं के वा तेलाये थे, वह उनको पहनाई िजसे देख राजा सरु े द्रिसहं बहुत खुश हुए और कु मार कीखशु ी का तो कु छ िठकाना ही न रहा। राजा साहब ने तजे िसहं से िगर तार होने काहाल पछू ा, तजे िसहं ने परू ा हाल अपने िगर तार होने का तथा कु छ बनावटी हाल अपनेछू टने का बयान िकया और यह भी कहा, ‘‘आती दफा वहाँ के दो ऐयार को भीिगर तार कर लाया हूँ जो िवजयगढ़ म कै द ह। यह सनु कर राजा ने खुश होकरतजे िसहं को बहुत कु छ इनाम िदया औऱ कहा, ‘‘तमु अभी जाओ, महल म सबसेिमलकर अपनी मां से भी िमलो। उस बेचारी का तु हारी जदु ाई म क्या हाल होगा, वहीजानती होगी।’’ बमिू जब मजीर् के तेजिसहं सभी से िमलने के वा ते रवाना हुए।हरदयालिसहं की मेहमानी के िलए राजा ने जीतिसहं को हुक्म देकर दरबार बखा्र तिकया। सभी के िमलने के बाद तजे िसहं कंु वर वीरे द्रिसहं के कमरे म गये। कु मार नेबड़ी खशु ी से उठकर तेजिसहं को गले लगा िलया और जब बठै े तो कहा, ‘‘अपनेिगर तार होने का हाल तो तमु ने ठीक बयान कर िदया मगर छू टने का हाल बयानकरने म झठू कहा था, अब सच-सच बताओ, तमु को िकसने छु ड़ाया ?’’ तेजिसहं नेचपला की तारीफ की और उसकी मदद से अपने छू टने का स चा-,स चा हाल कहिदया। कु मार ने कहा, ‘‘मबु ारक हो ! तेजिसहं बोले, ‘‘पहले आपको म मबु ारकबाद देदंगू ा तब कहीं यह नौबत पहुंचेगी िक आप मझु े मबु ारकबाद द।’’ कु मार हंसकर चुप होरहे। कई िदन तक तजे िसहं हंसी-खशु ी से नौगढ़ म रहे मगर वीरे द्रिसहं का तकाजारोज होता ही रहा िक िफर िजस तरह से हो च द्रका ता से मुलाकात कराओ। यह भीधीरज देते रहे।कई िदन बाद हरदयालिसहं ने दरबार म महाराज से अज्र िकया, ‘‘कई रोज हो गयेताबेदार को आये, वहाँ बहुत हज्र होता होगा, अब खसत िमलती तो अ छा था, औरमहाराज ने भी यह फमा्यर ा था िक आती दफा तेजिसहं को साथ लेते आना, अब जसै ीमजीर् हो।’’ राजा सरु े द्रिसहं ने कहा, ‘‘बहुत अ छी बात है, तुम उसको अपने साथ लेतेजाओ।’’ यह कह एक िखलअत दीवान हरदयालिसहं को िदया और तजे िसहं को उनकेसाथ िवदा िकया । जाते समय तजे िसहं कु मार से िमलने आये, कु मार ने रोकर, उनकोिवदा िकया और कहा, ‘‘मझु को यादा कहने की ज रत नही,ं मेरी हालत देखतेजाओ।’’ तजे िसहं ने बहुत कु छ ढाढं स िदया और यहाँ से िवदा हो उसी रोज िवजयगढ़पहुंचे। दसू रे िदन दरबार म दोन आदमी हािजर हुए और महाराज को सलाम करकेअपनी-अपनी जगह बैठे । तजे िसहं से महाराज ने राजा सरु े द्रिसहं की कु शल-क्षमे पूछीिजसको उ ह ने बड़ी बिु द्धमानी के साथ बयान िकया। इसी समय बद्रीनाथ भी राजािशवद त की िचट्ठी िलये हुए आ पहुंचे और आशीवा्रद देकर िचट्ठी महाराज के हाथ म देदी िजसको पढ़ने के िलए महाराज ने दीवान हरदयालिसहं को िदया। खत पढ़त-े पढ़ते
हरदयालिसहं का चेहरा मारे गु से के लाल हो गया। महाराज और तेजिसहंहरदयालिसहं के महुं की तरफ देख रहे थ,े उसकी रंगत देखकर समझ गये िक खत मकु छ बेअदबी की बात िलखी गई ह। खत पढ़कर हरदयालिसहं ने अज्र िकया यह खततखिलए म सनु ने लायक है। महाराज ने कहा, ‘‘अ छा, पहले बद्रीनाथ के िटकने काब दोब त करो िफर हमारे पास दीवानखाने म आओ, तेजिसहं को भी साथ ले आना।’’महाराज ने दरबार बखा्र त कर िदया और महल म चले गये। दीवान हरदयालिसहंपंिडत बद्रीनाथ के रहने और ज री सामान का इ तजाम कर तजे िसहं को अपने साथले कोट म महाराज के पास गये और सलाम करके बैठ गये। महाराज ने िशवद त काखत सनु ाने का हुक्म िदया। हरदयालिसहं ने खत को महाराज के सामने ले जाकरअज्र िकया िक अगर सरकार खत पढ़ लेते तो अ छा था। महाराज ने खत पढ़ा, पढ़तेही आंख मारे गु से के सखु ्र हो गईं। खत फाड़कर फक िदया और कहा, ‘‘बद्रीनाथ सेकह दो िक इस खत का जवाब यही है िक यहाँ से चले जाये।’’ इसके बाद थोड़ी देरतक महाराज कु छ देखते रहे, तब रंज भरी धीमी आवाज म बोले. ‘‘क्रू र के चुनार जातेही हमने सोच िलया था िक जहाँ तक बनेगा वह आग लगाने से न चूके गा, औरआिखर यही हुआ। खैर, मेरे जीत-े जी तो उसकी मरु ाद परू ी न होगी, साथ ही आप लोगको भी अब पूरा ब दोब त रखना चािहए।’’ तेजिसहं ने हाथ जोड़ अजर् िकया, ‘‘इसमकोई शक नहीं िक िशवद त अब ज र फौज लेकर चढ़ आवेगा इसिलए हम लोग कोभी मनु ािसब है िक अपनी फौज का इ तजाम और लड़ाई का सामान पहले से कररख। य तो िशवद त की नीयत तभी मालमू हो गई थी जब उसने ऐयार को भेजाथा, पर अब कोई शक नहीं रहा।’’ महाराज ने कहा, ‘‘म इस बात को खूब जानता हूँिक िशवद त के पास तीस हजार फौज है और हमारे पास िसफ्र दस हजार, मगर क्याम डर जाऊं गा !’’ तेजिसहं ने कहा, ‘‘दस हजार फौज महाराज की और पाचं हजारफौज हमारे सरकार की, प द्रह हजार हो गई, ऐसे गीदड़ के मारने को इतनी फौजकाफी है। अब महाराज दीवान साहब को एक खत देकर नौगढ़ भजे, म जाकर फौज लेआता हूँ, बि क महाराज की राय हो तो कंु वर वीरे द्रिसहं को भी बुला ल और फौज काइ तजाम उनके हवाले कर, िफर देिखए क्या कै िफयत होती है।’’दीवान हरदयालिसहं बोले, ‘‘कृ पानाथ, इस राय को तो म भी पस द करता हूँ।’’महाराज ने कहा, ‘‘सो तो ठीक है मगर वीरे द्रिसहं को अभी लड़ाई का काम सपु ुदर्करने को जी नहीं चाहता ? चाहे वह इस फन म होिशयार ह मगर क्या हुआ, जसै ासरु े द्रिसहं का लड़का, वैरा मेरा भी, म कै से उसको लड़ने के िलए कहूँगा और सरु े द्रिसहंभी कब इस बात को मजं रू करगे ?’’ तेजिसहं ने जवाब िदया, ‘‘महाराज इस बात कीतरफ जरा भी खयाल न कर ! ऐसा नहीं हो सकता िक महाराज तो लड़ाई पर जायऔर वीरे द्रिसहं घर बठै े आराम कर ! उनका िदल कभी न मानेगा। राजा सरु े द्रिसहं
भी वीर ह कु छ कायर नही,ं वीरे द्रिसहं को घर म बैठने न दगे बि क खुद भी मदै ान मबढ़कर लड़ तो ता जबु नहीं !’’महाराज जयिसहं तेजिसहं की बात सनु कर बहुत खुश हुए और दीवान हरदयालिसहं कोहुक्म िदया िक ‘तमु राजा सरु े द्रिसहं को िशवद त की गु ताखी का हाल और जो कु छहमने उसका जवाब िदया है वह भी िलखो और पछू ो िक आपकी क्या राय है ? इसबात का जवाब आ ले तो जसै ा होगा िकया जायेगा, औऱ खत भी तु हीं लेकर जाओऔर कल ही लौट आओ क्य िक अब देर करने का मौका नहीं है। हरदयालिसहं नेबमिू जब हुक्म के खत िलखा और महाराज ने उस पर मोहर करके उसी वक्त दीवानहरदयालिसहं को िवदा कर िदया। दीवान साहब महाराज से िवदा होकर नौगढ कीतरफ रवाना हुए। थोड़ा-सा िदन बाकी था जब वहाँ पहुंचे। सीधे दीवान जीतिसहं केमकान पर चले गये। दीवान जीतिसहं खबर पाते ही बाहर आये, हरदयालिसहं कोलाकर अपने यहाँ उतारा और हाल-चाल पूछा। हरदयालिसहं ने सब खुलासा हाल कहा।जीतिसहं गु से म आकर बोले, आजकल िशवद त के िदमाग म खलल आ गया है, हमलोग को उसने साधारण समझ िलया है ? खरै , देखा जायेगा, कु छ हज्र नही,ं आप आजशाम को राजा साहब से िमल।’शाम के वक्त हरदयालिसहं ने जीतिसहं के साथ राजा सरु े द्रिसहं की मलु ाकात कोगये। वहाँ कंु वर भी बठै े थे। राजा साहब ने बैठने का इशारा िकया और हाल-चालपछू ा। उ ह ने महाराज जयिसहं का खत दे िदया, महाराज ने खदु उस िचट्ठी को पढ़ा,गु से के मारे कु छ बोल न सके और खत कंु वर वीरे द्रिसहं के हाथ म दे िदया। कु मारने भी उसको बखबू ी पढ़ा, इनकी भी वही हालत हुई, क्रोध से आंख के आगे अधँ ेरा छागया। कु छ देर तक सोचते रहे इसके बाद हाथ जोड़कर िपता से अज्र िकया, ‘‘मझु कोलड़ाई का बड़ा हौसला है, यही हम लोग का धम्र भी है, िफर ऐसा मौका िमले या निमले, इसिलए अजर् करता हूँ िक मझु को हुक्म हो तो अपनी फौज लेकर जाऊं औरिवजयगढ़ पर चढ़ाई करने से पहले ही िशवद त को कै द कर लाऊं ।’’ राजा सरु े द्रिसहंने कहा, ‘‘उस तरफ ज दी करने की कोई ज रत नहीं है, तुम अभी िवजयगढ़ जाओ,क्षित्रय को लड़ाई से यादा यारा बाप, बेटा, भाई-भतीजा कोई नहीं होता। इसिलएतु हारी महु बत छोड़ कर हुक्म देता हूँ िक अपनी कु ल फौज लेकर महाराज जयिसहंको मदद पहुंचाओ और नाम पैदा करो। िफर जीतिसहं की तरफ देखकर, ‘‘फौज ममनु ादी करा दो िक रात भर म सब लसै हो जाय, सबु ह को कु मार के साथ जानाहोगा।’’ इसके बाद हरदयायलिसहं से कहा, ‘‘आज आप रह जाय और कल अपने साथही फौज तथा कु मार को लेकर तब जाय।’’ यह हुक्म दे राजमहल म चले गये।जीतिसहं दीवान हरदयालिसहं को साथ लेकर घर गये और कु मार अपने कमरे म
जाकर लड़ाई का सामान तयै ार करने लगे। च द्रका ता को देखने और लड़ाई पर चलनेकी खुशी म रात िकधर गई कु छ मालमू ही न हुआ। बाईसवाँ बयानसबु ह होते ही कु मार नहा-धोकर जगं ी कपड़े पहन हिथयार को बदन पर सजा बाप-मांसे िवदा होने के िलए महल म गये। रानी से महाराज ने रात ही सब हाल कह िदयाथा। वे इनका फौजी ठाठ देखकर िदल म बहुत खुश हुईं। कु मार ने दंडवत कर िवदामांगी, रानी ने आसं ू भर कर कु मार को गले से लगाया और पीठ पर हाथ फे रकर कहा,‘‘बेटा जाओ, वीर पु ष म नाम करो, क्षित्रय का कु ल नाम रख फतह का डकं ा बजाओ।शरू वीर का धम्र है िक लड़ाई के वक्त मां-बाप, ऐश, आराम िकसी की महु बत नहींकरत,े सो तुम भी जाओ, ई वर करे लड़ाई म बरै ी तु हारी पीठ न देखे !’’मा-ं बाप से िवदा होकर कु मार बाहर आये, दीवान हरदयालिसहं को मु तदै देखा, आप भीएक घोड़े पर सवार हो रवाना हुए। पीछे -पीछे फौज भी समदु ्र की तरह लहर मारतीचली। जब िवजयगढ़ के करीब पहुंचे तो कु मार घोड़े पर से उतर पड़े और हरदयालिसहंसे बोले, ‘‘मेरी राय है िक इसी जगं ल म अपनी फौज को उता ं और सब इ तजामकर लूं तो शहर म चल।ूं ’’ हरदयालिसहं ने कहा, ‘‘आपकी राय बहुत अ छी है। म भीपहले से चलकर आपके के आने की खबर महाराज को देता हूं िफर लौटकर आपकोसाथ लेकर चलगंू ा।’’ कु मार ने कहा, ‘‘अ छा जाइए।’’ हरदयालिसहं िवजयगढ़ पहुंचे,कु मार के आने की खबर देने के िलए महाराज के पास गये और खलु ासा हाल बयानकरके बोले, ‘‘कु मार सेना सिहत यहाँ से कोस भर पर उतरे ह।’’ यह सनु महाराज बहुतखशु हुए और बोले, ‘‘फौज के वा ते वह मकु ाम बहुत अ छा है, मगर वीरे द्रिसहं कोयहाँ ले आना चािहए। तमु यहाँ के सब दरबािरय को ले जाकर इ तकबाल करो औरकु मार को यहाँ ले आओ !’’बमिू जब हुक्म के हरदयालिसहं बहुत से सरदार को लेकर रवाना हुए। यह खबरतेजिसहं को भी हुई, सनु ते ही वीरे द्रिसहं के पास पहुंचे और दरू ही से बोले, ‘‘मबु ारकहो !’’ तजे िसहं को देखकर कु मार बहुत खुश हुए और हाल-चाल पछू ा, तेजिसहं ने कहा,‘‘जो कु छ है सब अ छा है, जो बाकी है अब बन जायेगा !’’ यह कह तेजिसहं ल करके इंतजाम म लगे। इतने म दीवान हरदयालिसहं मय दरबािरय के आ पहुंचे औरमहाराज ने जो हुक्म िदया था, कहा। कु मार ने मजं रू िकया और सज-सजाकर घोड़े परसवार हो एक सौ फौजी िसपाही साथ ले महाराज से मलु ाकात को िवजयगढ़ चले।शहर भर म मशहूर हो गया िक महाराज की मदद को कंु वर वीरे द्रिसहं आये ह, इसवक्त िकले म जायगे। सवारी देखने के िलए अपने-अपने मकान पर औऱत-मदर् पहले
ही से बठै गये औऱ सड़क पर भी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई। सभी की आंख उ तर कीतरफ सवार के इंतजार म थी।ं यह खबर महाराज को भी पहुंची िक कु मार चले आरहे ह। उ ह न महल म जाकर महारानी से सब हाल कहा िजसको सनु कर वे प्रस नहुईं और बहुत सी औरत के साथ िजनम च द्रका ता और चपला भी थीं, सवारी कातमाशा देखने के िलए ऊं ची अटारी पर जा बैठीं। महाराज भी सवारी का तमाशा देखनेके िलए दीवानखाने की छत पर जा बठै े । थोड़ी ही देर बाद उ तर की तरफ से कु छधूल उड़त िदखाई दी और नजदीक आने पर देखा िक थोड़ी-सी फौज (सवार की) चलीआ रही है। कु छ अरसा गजु रा तो साफ िदखाई देने लगा।कु छ सवार, जो धीरे-धीरे महल की तरफ आ रहे थे, फौलादी जेरा्र पहने हुए थे िजस परडू बते हुए सयू र् की िकरण पड़ने से अजब चमक-दमक मालमू होती थी। हाथ म झडं दे ारनेजा िलए, ढाल-तलवार लगाये जवानी की उमगं म अकड़े हुए बहुत ही भले मालमूपड़ते थे। उनके आगे-आगे एक खबू सरू त, ताकतवर और जेवर से सजे हुए घोड़ा, िजसपर जड़ाऊ जीन कसी हुई थी और अठखेिलयां कर रहा था, पर कंु वर वीरे द्रिसहं सवारथे। िसर पर फौलादी टोप िजसम एक हुमा के पर की ल बी कलगं ी लगी थी, बदन मबेशकीमती िलबास के ऊपर फौलादी जेरार् पहने हुए थे। गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आखं , गालपर सखु ीर् छा रही थी। बड़-े बड़े प ने के दान का क ठा और भजु ब द भी प ने का थािजसकी चमक चेहरे पर पड़कर खबू सरू ती को दनू ा कर रही थी। कमर म जड़ाऊ पेटीिजसम बेशकीमती हीरा जड़ा हुआ था, और िपडं ली तक का जूता िजस पर कौदैये मोतीका काम था, चमड़ा नजर नहीं आता था, पहने हुए थे। ढाल, तलवार, खजं र, तीर-कमानलगाये एक गजु र् करबूस म लटकता हुआ, हाथ म नेजा िलए घोड़ा कु दाते चले आ रहेथे। ताकत, जवामं दीर्, िदलेरी, और रोआब उनके चेहरे से ही झलकता था, दो त के िदलम महु बत और दु मन के िदल म खौफ पदै ा होता था। सबसे यादा लु फ तो यहथा िक जो सौ सवार सगं म चले आ रहे थे वे सब भी उ हीं के हमिसन थे। शहर मभीड़ लग गई, िजसकी िनगाह कु मार पर पड़ती थी आखं म चकाच ध-सी आ जातीथी। महारानी ने, जो वीरे द्रिसहं को बहुत िदन पर इस ठाठ और रोआब से आते देखा,सौगनु ी महु बत आगे से यादा बढ़ गई। महंु से िनकल पड़ा, ‘‘अगर च द्रका ता केलायक वर है तो िसफ्र वीरे द्र ! चाहे जो हो, म तो इसी को दामाद बनाऊं गी।’’च द्रका ता और चपला भी दसू री िखड़की से देख रही थीं। चपला ने टेढ़ी िनगाह सेकु मारी की तरफ देखा। वह शमा्र गई, िदल हाथ से जाता रहा, कु मार की त वीर आखंम समा गई, उ मीद हुई िक अब पास से देखगूँ ी। उधर महाराज की टकटकी बधं गई।इतने म कु मार िकले के नीचे आ पहुंचे। महाराज से न रहा गया, खुद उतर आये औरजब तक वे िकले के अ दर आव महाराज भी वहां पहुंच गये। वीरे द्रिसहं ने महाराजको देखकर पैर छु ए, उ ह ने उठाकर छाती से लगा िलया और हाथ पकड़े सीधे महल म
ले गये। महारानी उन दोन को आते देख आगे तक बढ़ आईं। कु मार ने चरण छु ए,महारानी की आंख म प्रेम का जल भर आया, बड़ी खुशी से कु मार को बैठने के िलएकहा, महाराज भी बठै गये। बाय तरफ महारानी और दािहनी तरफ कु मार थे, चारतरफ ल िडय की भीड़ थी जो अ छे -अ छे गहने और कपड़े पहने खड़ी थी।ं कु मार कीनीची िनगाह चार तरफ घमू ने लगी मानो िकसी को ढूंढ़ रही ह । च द्रका ता भीिकवाड़ की आड़ म खड़ी उनको देख रही थी, िमलने के िलए तबीयत घबड़ा रही थीमगर क्या करे, लाचार थी। थोड़ी देर तक महाराज और कु मार महल म रहे, इसके बादउठे और कु मार को साथ िलये हुए दीवानखाने म पहुंचे। अपने खास आरामगाह केपास वाला एक सु दर कमरा उनके िलए मकु रर्र कर िदया। महाराज से िवदा होकरकु मार अपने कमरे म गये। तेजिसहं भी पहुंचे, कु छ देर चहु ल म गजु री, च द्रका ता कोमहल म न देखने से इनकी तबीयत उदास थी, सोचते थे िक कै से मलु ाकात हो। इसीसोच म आखं लग गई।सबु ह जब महाराज दरबार म गये, वीरे द्रिसहं नान-पूजा से छु ट्टी पा दरबारी पोशाकपहने, कलगं ी सरपच समेत िसर पर रख, तजे िसहं को साथ ले दरबार म गये। महाराजने अपने िसहं ासन के बगल म एक जड़ाऊ कु सीर् पर कु मार को बैठाया। हरदयालिसहं नेमहाराज की िचट्ठी का जवाब पेश िकया जो राजा सरु े द्रिसहं ने िलखा था। उसकोपढ़कर महाराज बहुत खुश हुए। थोड़ी देर बाद दीवान साहब को हुक्म िदया िक कु मारकी फौज म हमारी तरफ से बाजार लगाया जाये और ग ले वगरै ह का पूरा इ तजामिकया जाये, िकसी को िकसी तरह की तकलीफ न हो। कु मार ने अजर् िकया, ‘‘महाराज,सामान सब साथ आया है।’’ महाराज ने कहा, ‘‘क्या तुमने इस रा य को दसू रे कासमझा है ! सामान आया है तो क्या हुआ, वह भी जब ज रत होगी काम आवेगा। अबहम कु ल फौज का इ तजाम तु हारे सपु दु र् करते ह, जसै ा मनु ािसब समझो ब दोब तऔर इ तजाम करो।’’ कु मार ने तेजिसहं की तरफ देखकर कहा, ‘‘तमु जाओ। मेरीफौज के तीन िह से करके दो-दो हजार िवजयगढ़ के दोन तरफ भेजो और हजारफौज के दस टु कड़े करके इधर-उधर पाचं -पाचं कोस तक फै ला दो और खेमे वगरै ह कापूरा ब दोब त कर दो। जाससू को चार तरफ रवाना करो। बाकी महाराज की फौजकी कल कवायद देखकर जसै ा होगा इ तजाम करगे।’’ हुक्म पाते ही तजे िसहं रवानाहुए। इस इ तजाम और हमददीर् को देखकर महाराज को और भी तस ली हुई।हरदयालिसहं को हुक्म िदया िक फौज म मनु ादी करा दो िक कल कवायद होगी। इतनेम महाराज के जाससू ने आकर अदब से सलाम कर खबर दी िक िशवद तिसहं अपनीतीस हजार फौज लेकर सरकार से मकु ाबला करने के िलए रवाना हो चकु ा है, दो-तीनिदन तक नजदीक आ जायेगा। कु मार ने कहा, ‘‘कोई हज्र नहीं, समझ लगे, तुम िफरअपने काम पर जाओ।’’
दसू रे िदन महाराज जयिसहं और कु मार एक हाथी पर बठै कर फौज की कवायद देखनेगये। हरदयालिसहं ने मसु लमान को बहुत कम कर िदया था-तो भी एक हजारमसु लमान रह गये थे। कवायद देख कु मार बहुत खशु हुए मगर मसु लमान की सरू तदेख योरी चढ़ गई। कु मार की सरू त से महाराज समझ गये और धीरे से पछू ा, ‘‘इनलोग को जवाब दे देना चािहए ?’’ कु मार ने कहा, ‘‘नही,ं िनकाल देने से ये लोग दु मनके साथ हो जायगे ! मेरी समझ म बेहतर होगा िक दु मन को रोकने के िलए पहलेइ हीं लोग को भेजा जाये। इनके पीछे तोपखाना और थोड़ी फौज हमारी रहेगी, वे लोगइन लोग की नीयत खराब देखने या भागने का इरादा मालमू होने पर पीछे से तोपमार-कर इन सभी की सफाई कर डालगे। ऐसा खौफ रहने से ये लोग एक दफा तोखूब लड़ जायगे, मु त मारे जाने से लड़कर मरना बेहतर समझगे।’’ इस राय कोमहाराज ने बहुत पस द िकया और िदल म कु मार की अक्ल की तारीफ करने लगे।जब महाराज िफरे तो कु मार ने अजर् िकया, ‘‘मेरा जी िशकार खेलने को चाहता है,अगर इजाजत हो तो जाऊं ? महाराज ने कहा, ‘‘अ छा, दरू मत जाना और िदन रहतेज दी लौट आना।’’ यह कहकर हाथी बठै वाया। कु मार उतर पड़े और घोड़े पर सवारहुए। महाराज का इशारा पा दीवान हरदयालिसहं ने सौ सवार साथ कर िदये। कु मारिशकार के िलए रवाना हुए। थोड़ी देर बाद एक घने जगं ल म पहुंचकर दो साभं र तीरसे मार िफर और िशकार ढूंढ़ने लगे। इतने म तजे िसहं भी पहुंचे कु मार से पूछा, ‘‘क्यासब इ तजाम हो चुका जो तमु यहाँ चले आये ?’’ तजे िसहं ने कहा, ‘‘क्या आज ही होजायेगा ? कु छ आज हुआ कु छ कल दु त हो जायेगा। इस वक्त मेरे जी म आया िकचल जरा उस तहखाने की सरै कर आव िजसम अहमद को कै द िकया है, इसिलएआपसे पछू ने आया हूं िक अगर इरादा हो तो आप भी चिलए।’’‘‘हा,ँ म भी चलगंू ा।’’ कहकर कु मार ने उस तरफ घोड़ा फे रा। तजे िसहं भी घोड़े के साथरवाना हुए। बाकी सभी को हुक्म िदया िक वापस जाएं और दोन साभं र का जोिशकार िकये ह, उठवा ले जाय। थोड़ी देर म कु मार और तेजिसहं तहखाने के पास पहुंचेऔर अ दर घुसे। जब अंधेरा िनकल गया और रोशनी आई तो सामने एक दरवाजािदखाई देने लगा। कु मार घोड़े से उतर पड़।े अब तेजिसहं ने कु मार से पछू ा, ‘‘भला यहकिहए िक आप यह दरवाजा खोल भी सकते ह िक नहीं ?’’ कु मार ने कहा, ‘‘क्य नही,ंइसम क्या कारीगरी है ?’’ यह कह झट आगे बढ़ शेर के महुं से जबु ान बाहर िनकालली, दरवाजा खलु गया। तेजिसहं ने कहा, ‘‘याद तो है !’’ कु मार ने कहा, ‘‘क्या मभलू ने वाला हूं।’’ दोन अ दर गये और सरै करत-े करते च म के िकनारे पहुंचे। देखािक अहमद और भगवानदास एक चट्टान पर बैठे बात कर रहे ह, पैर म बेड़ी पड़ी है।कु मार को देख दोन उठ खड़े हुए, झकु कर सलाम िकया और बोले, ‘‘अब तो हम लोगका कसरू माफ होना चािहए।’’ कु मार ने कहा, ‘‘हाँ थोड़े रोज और सब्र करो।’’
कु छ देर तक वीरे द्रिसहं और तजे िसहं टहलते और मेव को तोड़कर खाते रहे। इसकेबाद तेजिसहं ने कहा, ‘‘अब चलना चािहए। देर हो गई।’’ कु मार ने कहा, ‘‘चलो।’’ दोनबाहर आये तेजिसहं ने कहा, ‘‘इस दरवाजे को आपने खोला है, आप ही ब द कीिजए।’’कु मार ने यह कह िक ‘‘अ छा लो, हम ही ब द कर देते ह’’, दरवाजा ब द कर िदयाऔर घोड़े पर सवार हुए। जब िवजयगढ़ के करीब पहुंचे तो तजे िसहं ने कहा, ‘‘अबआप जाइए, म जरा फौज की खबर लेता हुआ आता हूँ।’’ कु मार ने कहा, ‘‘अ छाजाओ।’’ यह सनु तजे िसहं दसू री तरफ चले गये और कु मार िकले म चले आये, घोड़े सेउतर कमरे म गये, आराम िकया। थोड़ी रात बीते तेजिसहं कु मार के पास आये। कु मारने पूछा, ‘‘कहो, क्या हाल ह ?’’तजे िसहं ने कहा, ‘‘सब इ तजाम आपके हुक्म मतु ािबकहो गया, आज िदनभर म एक घ टे की छु ट्टी न िमली जो आपसे मलु ाकात करता।’’यह सनु वीरे द्रिसहं हंस पड़े और बोले, ‘‘दोपहर तक तो हमारे साथ रहे ितस परकहते हो िक मलु ाकात न हुई !’’ यह सनु ते ही तजे िसहं च क पड़े और बोले, ‘‘आप क्याकहते ह।’’ कु मार ने कहा, ‘‘कहते क्या ह, तमु मेरे साथ उस तहखाने म नहीं गये थेजहाँ अहमद और भगवानद त ब द ह ?’’अब तो तजे िसहं के चेहरे का रंग उड़ गया और कु मार का मुंह देखने लगे। तजे िसहंकी यह हालत देखकर कु मार को भी ता जबु हुआ। तेजिसहं ने कहा, ‘‘भला यह तोबताइए िक म आपसे कहाँ िमला था, कहाँ तक साथ गया और कब वापस आया ?’’कु मार ने सब कु छ कह िदया। तेजिसहं बोले. ‘‘बस, आपने चौका फे रा। अहमद औरभगवानद त के िनकल जाने का तो इतना गम नहीं है मगर दरवाजे का हाल दसू रेको मालमू हो गया इसका बड़ा अफसोस है।’’ कु मार ने कहा, ‘‘तुम क्या कहते होसमझ म नहीं आता।’’ तेजिसहं ने कहा, ‘‘ऐसा ही समझते तो धोखा ही क्य खाते।तब न समझे तो अब समिझए, िक िशवद त के ऐयार ने धोखा िदया और तहखाने कारा ता देख िलया। ज र यह काम बद्रीनाथ का है, दसू रे का नही,ं योितषी उसको रमलके जिरए से पता देता है।’’कु मार यह सनु दंग हो गये और अपनी गलती पर अफसोस करने लगे। तेजिसहं नेकहा, ‘‘अब तो जो होना था हो गया, उसका अफसोस कहे का। म इस वक्त जाता हूँ,कै दी तो िनकल गये ह गे मगर म जाकर ताले का ब दोब त क ं गा।’’ कु मार ने पछू ा,‘‘ताले का ब दोब त क्या करोगे ?’’ तेजिसहं ने कहा, ‘‘उस फाटक म और भी दो तालेह जो इससे यादा मजबूत ह। उ ह लगाने और ब द करने म बड़ी देर लगती हैइसिलए उ ह नहीं लगाता था मगर अब लगाऊं गा।’’ कु मार ने कहा, ‘‘मझु े भी वहताला िदखाओ।’’ तेजिसहं ने कहा, ‘‘अभी नही,ं जब तक चुनार पर फतह न पावगे नबतावगे नहीं तो िफर धोखा होगा।’’ कु मार ने कहा, ‘‘अ छा मजीर् तु हारी।’’
तजे िसहं उसी वक्त तहखाने की तरफ रवाना हुए और सवेरा होने के पिहले ही लौटआये। सबु ह को जब कु मार सोकर उठे तो तेजिसहं से पछू ा, ‘‘कहो तहखाने का क्याहाल है ?’’ उ ह ने जवाब िदया, ‘‘कै दी तो िनकल गये मगर ताले का ब दोब त करआया हूँ।’’नहा-धोकर कु छ खाकर कु मार को तजे िसहं दरबार ले गये। महाराज को सलाम करकेदोन आदमी अपनी-अपनी जगह बठै गये। आज जाससू ने खबर दी िक िशवद त कीफौज और पास आ गई है, अब दस कोस पर है। कु मार ने महाराज से अजर् िकया,‘‘अब मौका आ गया है िक मसु लमान की फौज दु मन को रोकने के िलए आगे भेजीजाये।’’ महाराज ने कहा, ‘‘अ छा भेज दो।’’ कु मार ने तेजिसहं से कहा, ‘‘अपना एकतोपखाना भी इस मसु लमानी फौज के पीछे रवाना करो।’’ िफर कान म कहा, ‘‘अपनेतोपखाने वाल को समझा देना िक जब फौज की नीयत खराब देख तो िज दा िकसीको न जाने द।तेजिसहं इ तजाम करने के िलए चले गये, हरदयालिसहं को भी साथ लेते गये।महाराज ने दरबार बखार् त िकया और कु मार को साथ ले महल म पधारे। दोन नेसाथ ही भोजन िकया, इसके बाद कु मार अपने कमरे म चले गये। छटपटाते रह गयेमगर आज भी च द्रका ता की सरू त न िदखी, लेिकन च द्रका ता ने आड़ से इनकोदेख िलया। तईे सवाँ बयानशाम को महाराज से िमलने के िलए वीरे द्रिसहं गये। महाराज उ ह अपनी बगल मबठै ा कर बातचीत करने लगे। इतने म हरदयालिसहं और तजे िसहं भी आ पहुंचे।महाराज ने हाल पछू ा। उ ह ने अजर् िकया िक फौज मकु ाबले म भेज दी गई है। लड़ाईके बारे म राय और तरकीब होने लगी।ं सब सोचते-िवचारते आधी रात गजु र गई,एकाएक कई चोबदार ने आकर अजर् िकया, ‘‘महाराज, चोर-महल म से कु छ आदमीिनकल भागे िजनको दु मन समझ पहरे वाल ने तीर छोड़,े मगर वे जख्मी होकर भीिनकल गये।’’यह खबर सनु महाराज सोच म पड़ गये। कु मार और तजे िसहं भी हैरान थे। इतने मही महल से रोने की आवाज आने लगी। सभी का खयाल उस रोने पर चला गया। पलम रोने और िच लाने की आवाज बढ़ने लगी, यहाँ तक िक तमाम महल म हाहाकारमच गया। महाराज और कु मार वगरै ह सभी के महुं पर उदासी छा गई। उसी समयल िडयां दौड़ती हुई आईं और रोत-े रोते बड़ी मिु कल से बोली,ं ‘‘च द्रका ता और चपलाका िसर काटकर कोई ले गया।’’ यह खबर तीर के समान सभी को छे द गई। महाराज
तो एकाएक हाय कह के िगर ही पड़,े कु मार की भी अजब हालत हो गई, चेहरे परमदु र्नी छा गई। हरदयालिसहं की आंख से आसं ू जारी हो गये, तेजिसहं काठ की मरू तबन गये। महाराज ने अपने को सभं ाला और कु मार की अजब हालत देख गले लगािलया, इसके बाद रोते हुए कु मार का हाथ पकड़े महल म दौड़े चले गये। देखा िकहाहाकार मचा हुआ है, महारानी च द्रका ता की लाश पर पछाड़ खा रही ह, िसर फटगया, खनू जारी है। महाराज भी जाकर उसी लाश पर िगर पड़।े कु मार म तो इतनीभी ताकत न रही िक अ दर जाते। दरवाजे पर ही िगर पड़,े दांत बठै गया चेहरा जदर्और मदु की-सी सरू त हो गई।च द्रका ता और चपला की लाश पड़ी थीं, िसर नहीं थे, कमरे म चार तरफ खून-ही-खून िदखाई देता था। सभी की अजब हालत थी, महारानी रो-रोकर कहती थी,ं ‘‘हायबेटी ! तू कहाँ गई ! उसका कै सा कलेजा था िजसने तरे े गले पर छु री चलाई ! हायहाय, अब म जी-कर क्या क ं गी ! तेरे ही वा ते इतना बखेड़ा हुआ और तू ही न रहीतो अब यह रा य क्या हो ?’’ महाराज कहते थे- ‘‘अब क्रू र की छाती ठ डी हुई,िशवद त को मरु ाद िमल गई। कह दो, अब आवे िवजयगढ़ का रा य करे, हम तोलड़की का साथ दगे।’’एकाएक महाराज की िनगाह दरवाजे पर गई। देखा वीरे द्रिसहं पड़े हुए ह, िसर से खूनजारी है। दौड़े और कु मार के पास आये, देखा तो बदन म दम नही,ं न ज का पतानही,ं नाक पर हाथ रक्खा तो सासं ठ डी चल रही है। अब तो और भी जोर सेमहाराज िच ला उठे , बोले, ‘‘गजब हो गया ! हमारे चलते नौगढ़ का रा य भी गारतहुआ। हम तो समझे थे िक वीरे द्रिसहं को रा य दे जगं ल म चले जायगे, मगर हाय !िवधाता को यह भी अ छा न लगा ! अरे कोई जाओ, ज दी तेजिसहं को िलवा लाओ,कु मार को देख ! हाय हाय ! अब तो इसी मकान म मझु को भी मरना पड़ा। मसमझता हूँ राजा सरु े द्रिसहं की जान भी इसी मकान म जायेगी ! हाय, अभी क्यासोच रहे थ,े क्या हो गया ! िवधाता तूने क्या िकया ?’’इतने म तेजिसहं आये। देखा िक वीरे द्रिसहं पड़े ह और महाराज उनके ऊपर हाथ रखरो रहे ह। तजे िसहं की जो कु छ जान बची थी वह भी िनकल गई। वीरे द्रिसहं की लाशके पास बठै गये और जोर से बोले, ‘‘कु मार, मेरा जी तो रोने को भी नहीं चाहताक्य िक मझु को अब इस दिु नया म नहीं रहना है, म तो खशु ी-खशु ी तु हारा साथ दंगू ा!’’ यह कह कर कमर से खंजर िनकाला और पेट म मारना ही चाहते थे िक दीवारफांदकर एक आदमी ने आकर हाथ पकड़ िलया।तजे िसहं ने उस आदमी को देखा जो िसर से परै तक िस दरू से रंगा हुआ था उसनेकहा-‘‘काहे को देते हो जान, मेरी बात सनु ो दे कान।
यह सब खेल ठगी को मान, लाश देखकर लो पहचान।उठो देखो भालो, खोजो खोज िनकालो।।’’यह कह वह दातं िदखलाता उछलता-कू दता भाग गया। ॥ भाग 1(पहला अ याय) समा त ॥ ॥ भाग -2 (दसू रा अ याय) ॥ पहला बयान इस आदमी को सभी ने देखा मगर हैरान थे िक यह कौन है, कै से आया और क्या कहगया। तजे िसहं ने जोर से पुकार के कहा, ''आप लोग चुप रह, मझु को मालमू हो गया िक यहसब ऐयारी हुई है, असल म कु मारी और चपला दोन जीती ह, यह लाश उन लोग की नहीं ह!'' तजे िसहं की बात से सब च क पड़े और एकदम स नाटा हो गया। सब ने रोना-धोना छोड़िदया और तेजिसहं के मंुह की तरफ देखने लगे। महारानी दौड़ी हुई उनके पास आईं औरबोली,ं ''बेटा, ज दी बताओ यह क्या मामला है! तमु कै से कहते हो िक चंद्रका ता जीती है? यहकौन था जो यकायक महल म घसु आया?'' तेजिसहं ने कहा, ''यह तो मझु े मालमू नहीं िक यहकौन था मगर इतना पता लग गया िक चंद्रका ता और चपला को िशवद तिसहं के ऐयार चरु ाले गए ह और ये बनावटी लाश यहां रख गए ह िजससे सब कोई जान िक वे मर गईं औरखोज न कर।'' महाराज बोले, ''यह कै से मालूम िक यह लाश बनावटी ह?'' तजे िसहं ने कहा, ''यहकोई बड़ी बात नहीं है, लाश के पास चिलए म अभी बतला देता हूं।'' यह सुन महाराज तेजिसहंके साथ लाश के पास गए, महारानी भी गईं। तजे िसहं ने अपनी कमर से खंजर िनकालकरचपला की लाश की टागं काट ली और महाराज को िदखलाकर बोले, ''देिखए इसम कहीं ह डीहै।'' महाराज ने गौर से देखकर कहा, ''ठीक है, बनावटी लाश है।'' इसके पीछे चंद्रका ता की लाशको भी इसी तरह देखा, उसम भी ह डी नहीं पाई। अब सब को मालूम हो गया िक ऐयारी कीगई है। महाराज बोले, ''अ छा यह तो मालूम हुआ िक चंद्रका ता जीती है, मगर दु मन के
हाथ पड़ गई इसका गम क्या कम है?'' तजे िसहं बोले, ''कोई हज्र नही,ं अब तो जो होना था होचकु ा। म चंद्रका ता और चपला को खोज िनकालंूगा।'' तजे िसहं के समझाने से सब को कु छ ढाढ़स हुई, मगर कु मार वीरे द्रिसहं अभी तकबदहवास पड़े ह, उनको इन सब बात की कु छ खबर नहीं। अब महाराज को यह िफक्र हुई िककु मार को होिशयार करना चािहए। वै य बलु ाए गये, सब ने बहुत-सी तरकीब कीं मगर कु मारको होश न आया। तजे िसहं भी अपनी तरकीब करके हैरान हो गए मगर कोई फायदा न हुआ,यह देख महाराज बहुत घबड़ाए और तजे िसहं से बोले, ''अब क्या करना चािहए?'' बहुत देर तकगौर करने के बाद तेजिसहं ने कहा िक ''कु मार को उठवा के उनके रहने के कमरे म िभजवानाचािहए, वहां अके ले म म इनका इलाज क ं गा।'' यह सुन महाराज ने उ ह खुद उठाना चाहामगर तेजिसहं ने कु मार को गोद म ले िलया और उनके रहने वाले कमरे म ले चले ।महाराज भी सगं हुए। तेजिसहं ने कहा, ''आप साथ न चिलए, ये अके ले ही म अ छे ह गे।''महाराज उसी जगह ठहर गये। तजे िसहं कु मार को िलए हुए उनके कमरे म पहुंचे और चारपाईपर िलटा िदया, चार तरफ से दरवाजे बंद कर िदए और उनके कान के पास मुंह लगाकरबोलने लगे, ''चदं ्रका ता मरी नहीं, जीती है, वह देखो महाराज िशवद त के ऐयार उसे िलए जातेह ! ज दी दौड़ो, छीनो, नहीं तो बस ले ही जायगे! क्या इसी को वीरता कहते ह! छी:,चंद्रका ता को दु मन िलए जायं और आप देखकर भी कु छ न बोल? राम राम राम!'' इतनी आवाज कान म पड़ते ही कु मार म आखं खोल दीं और घबड़ाकर बोले, ''ह! कौनिलए जाता है? कहां है चंद्रका ता?'' यह कहकर इधर-उधर देखने लगे। देखा तो तजे िसहं बैठे ह।पछू ा-''अभी कौन कह रहा था िक चदं ्रका ता जीती है और उसको दु मन िलये जाते ह?''तेजिसहं ने कहा, ''म कहता था और सच कह रहा था! कु मारी जीती ह मगर दु मन उनकोचुरा ले गए ह और उनकी जगह नकली लाश रख इधर-उधर रंग फै ला िदया है िजससे लोगकु मारी को मरी हुई जानकर पीछा और खोज न कर।''
कु मार ने कहा, ''तमु हम धोखा देते हो! हम कै से जान िक वह लाश नकली है?'' तजे िसहं नेकहा, ''म अभी आपको यकीन करा देता हूं।'' यह कह कमरे का दरवाजा खोला, देखा िकमहाराज खड़े ह, आंख से आंसू जारी ह। तजे िसहं को देखते ही पूछा, ''क्या हाल है?'' जवाबिदया, ''अ छे ह, होश म आ गए, चिलए देिखए।'' यह सनु महाराज अदं र गए, उ ह देखते हीकु मार उठ खड़े हुए, महाराज ने गले से लगा िलया। पछू ा, ''िमजाज कै सा है!'' कु मार ने कहा,''अ छा है!'' कई ल िडयां भी उस जगह आईं िजनको कु मार का हाल लेने के िलए महारानी नेभेजा था। एक ल डी से तेजिसहं ने कहा, ''दोन लाश म से जो टु कड़े हाथ-परै के मने काटे थेउ ह ले आ।'' यह सुन ल डी दौड़ी गई और वे टु कड़े ले आई। तेजिसहं ने कु मार को िदखलाकरकहा, ''देिखए यह बनावटी लाश है या नहीं, इसम ह डी कहां है?'' कु मार ने देखकर कहा, ''ठीक है,मगर उन लोग ने बड़ी बदमाशी की!'' तजे िसहं ने कहा, ''खैर जो होना था हो गया, देिखए अबहम क्या करते ह।'' सबेरा हो गया। महाराज, कु मार और तेजिसहं बठै े बात कर रहे थे िक हरदयालिसहं नेपहुंचकर महाराज को सलाम िकया। उ ह ने बठै ने का इशारा िकया। दीवान साहब बठै गये औरसब को वहां से हट जाने के िलए हुक्म िदया। जब िनराला हो गया हरदयालिसहं ने तेजिसहंसे पूछा, ''मने सुना है िक वह बनावटी लाश थी िजसको सभी ने कु मारी की लाश समझा था?''तजे िसहं ने कहा, ''जी हां ठीक बात है!'' और तब िब कु ल हाल समझाया। इसके बाद दीवानसाहब ने कहा, ''और गजब देिखए! कु मारी के मरने की खबर सनु कर सब परेशान थ,े सरकारीनौकर म से िजन लोग ने यह खबर सुनी दौड़े हुए महल के दरवाजे पर रोते-िच लाते चलेआये, उधर जहां ऐयार लोग कै द थे पहरा कम रह गया, मौका पाकर उनके साथी ऐयार ने वहांधा◌ावा िकया और पहरे वाल को जख्मी कर अपनी तरफ के सब ऐयार को जो कै द थे छु ड़ाले गए।'' यह खबर सरु कर तेजिसहं , कु मार और महाराज स न हो गये। कु मार ने कहा, ''बड़ीमुि कल म पड़ गये। अब कोई भी ऐयार उनका हमारे यहां न रहा, सब छू ट गये। कु मारी औरचपला को ले गये यह तो गजब ही िकया! अब नहीं बदार् त होता, हम आज ही कू च करगे और
दु मन से इसका बदला लगे।'' यह बात कह ही रहे थे िक एक चोबदार ने आकर अजर् िकयािक ''लड़ाई की खबर लेकर एक जाससू आया है, दरवाजे पर हािजर है, उसके बारे म क्या हुक्महोता है?'' हरदयालिसहं ने कहा, ''इसी जगह हािजर करो।'' जासूस लाया गया। उसने कहा,''दु मन को रोकने के िलए यहां से मसु लमानी फौज भेजी गई थी। उसके पहुंचने तक दु मनचार कोस और आगे बढ़ आये थे। मुकाबले के वक्त ये लोग भागने लगे, यह हाल देखकरतोपखाने वाल ने पीछे से बाढ़ मारी िजससे करीब चौथाई आदमी मारे गये। िफर भागने काहौसला न पड़ा और खूब लड़,े यहां तक िक लगभग हजार दु मन को काट िगराया लेिकन वहफौज भी तमाम हो चली, अगर फौरन मदद न भेजी जायगी तो तोपखाने वाले भी मारेजायगे।'' यह सुनते ही कु मार ने दीवान हरदयालिसहं को हुक्म िदया िक ''पाचं हजार फौज ज दीमदद पर भेजी जाय और वहां पर हमारे िलए भी खेमा रवाना करो, दोपहर को हम भी उसतरफ कू च करगे।'' हरदयालिसहं फौज भेजने के िलए चले गये। महाराज ने कु मार से कहा, ''हमभी तु हारे साथ चलगे।'' कु मार ने कहा, ''ऐसी ज दी क्या है? आप यहां रह, रा य का कामदेख। म जाता हूं, जरा देखूं तो राजा िशवद त िकतनी बहादरु ी रखता है, अभी आपको तकलीफकरने की कु छ ज रत नही।ं '' थोड़ी देर तक बातचीत होने के बाद महाराज उठकर महल म चले गए। कु मार औरतेजिसहं भी नान और सं या-पजू ा की िफक्र म उठे । सबसे ज दी तेजिसहं ने छु ट्टी पाई औरमुनादी वाले को बुलाकर हुक्म िदया िक तू तमाम शहर म इस बात की मनु ादी कर आ िक-'द तारबीर का िजसको इ ट हो वह तेजिसहं के पास हािजर हो।' बमूिजब हुक्म के मनु ादीवाला मनु ादी करने चला गया। सभी को ता जुब था िक तजे िसहं ने यह क्या मनु ादी करवाईहै। दसू रा बयान
मामलू वक्त पर आज महाराज ने दरबार िकया। कु मार और तेजिसहं भी हािजर हुए।आज का दरबार िब कु ल सु त और उदास था, मगर कु मार ने लड़ाई पर जाने के िलए महाराजसे इजाजत ले ली और वहां से चले गए। महाराज भी उदासी की हालत म उठ के महल मचले गये। यह तो िन चय हो गया िक चदं ्रका ता और चपला जीती ह मगर कहां ह, िकसहालत म ह, सुखी ह या द:ु खी, इन सब बात का ख्याल करके महल म महारानी से लेकर ल डीतक सब उदास थी,ं सब की आखं से आंसू जारी थ,े खाने-पीने की िकसी को भी िफक्र न थी,एक च द्रका ता का यान ही सब का काम था। महाराज जब महल म गये महारानी ने पूछािक ''चंद्रका ता का पता लगाने की कु छ िफक्र की गई?'' महाराज ने कहा, ''हां तजे िसहं उसकीखोज म जाते ह, उनसे यादा पता लगाने वाला कौन है िजससे म कहूं? वीरे द्रिसहं भी इसवक्त लड़ाई पर जाने के िलए मझु से िबदा हो गए, अब देखो क्या होता है।'' तीसरा बयान कु छ िदन बाकी है, एक मैदान म हरी-हरी दबू पर पंद्रह-बीस कु िसय्र ां रखी हुई ह औरिसफर् तीन आदमी कंु अर वीरे द्रिसहं , तजे िसहं और फतहिसहं सेनापित 1 बैठे ह, बाकी कु िसय्र ांखाली पड़ी ह। उनके पूरब तरफ सकै ड़ खेमे अधा्रचंद्राकार खड़े ह। बीच म वीरे द्रिसहं केपलटन वाले अपने-अपने हरब को साफ और दु त कर रहे ह। बड़-े बड़े शािमयान के नीचेतोप रखी ह जो हर एक तरह से लैस और दु त मालमू हो रही ह। दिक्षण तरफ घोड़ काअ तबल है िजसम अ छे -अ छे घोड़े बंधे िदखाई देते ह। पि चम तरफ बाजे वाल , सुरंगखोदने वाल , पहाड़ उखाड़ने वाल और जाससू का डरे ा तथा रसद का भ डार है। कु मार ने फतहिसहं िसपहसालार से कहा, ''म समझता हूं िक मेरा डरे ा-खेमा सुबह तक'लोहरा' के मैदान म दु मन के मकु ाबले म खड़ा हो जायगा?'' फतहिसहं ने कहा, ''जी हा,ं ज रसुबह तक वहां सब सामान लैस हो जायगा, हमारी फौज भी कु छ रात रहते यहां से कू च करकेपहर िदन चढ़ने के पहले ही वहां पहुंच जायगी। परस हम लोग के हौसले िदखाई दगे, बहुतिदन तक खाली बठै े -बैठे तबीयत घबड़ा गई थी!'' इसी तरह की बात हो रही थीं िक सामनेदेवीिसहं ऐयारी के ठाठ म आते िदखाई िदये। नजदीक आकर देवीिसहं ने कु मार और तजे िसहं
को सलाम िकया। देवीिसहं को देखकर कु मार बहुत खुश हुए और उठकर गले लगा िलया,तजे िसहं ने भी देवीिसहं को गले लगाया और बठै ने के िलए कहा। फतहिसहं िसपहसालार1. फतहिसहं की उम्र पचीसवषर् से यादा न होगी।ने भी उनको सलाम िकया। जब देवीिसहं बैठ गये, तेजिसहं उनकी तारीफ करने लगे। कु मार नेपछू ा, ''कहो देवीिसह, तुमने यहां आकर क्या-क्या िकया?'' तजे िसह ने कहा, ''इनका हाल मुझसेसुिनये, म मखु ्तसर म आपको समझा देता हूं।'' कु मार ने कहा, ''कहो!'' तजे िसहं बोले, ''जब आपचंद्रका ता के बाग म बठै े थे और भूत ने आकर कहा था िक 'खबर भई राजा को तुमरी सुनोगु जी मेरे!' िजसको सनु कर मने जबद्र ती आपको वहां से उठाया था, वह भूत यही थ।े नौगढ़म भी इ ह ने जाकर क्रू रिसहं के चनु ार जाने और ऐयार को संग लाने की खबर खंजरीबजाकर दी थी। जब चंद्रका ता के मरने का गम महल म छाया हुआ था और आप बेहोश पड़ेथे तब भी इ हीं ने चदं ्रका ता और चपला के जीते रहने की खबर मुझको दी थी, तब मनेउठकर लाश पहचानी नहीं होती तो पूरे घर का ही नाश हो चुका था। इतना काम इ ह नेिकया। इ हीं को बुलाने के वा ते मने सबु ह मनु ादी करवाई थी, क्य िक इनका कोई िठकाना तोथा ही नहीं।'' यह सुनकर कु मार ने देवीिसहं की पीठ ठ की और बोले, ''शाबास! िकस महुं सेतारीफ कर, दो घर तुमने बचाये।'' देवीिसहं ने कहा, ''म िकस लायक हूं जो आप इतनी तारीफकरते ह, तारीफ सब काम से िनि चत होकर कीिजयेगा, इस वक्त चदं ्रका ता को छु ड़ाने कीिफक्र करनी चािहए, अगर देर होगी तो न जाने उनकी जान पर क्या आ बने। िसवाय इसकेइस बात का भी ख्याल रखना चािहए िक अगर हम लोग िब कु ल चंद्रका ता ही की खोज मलीन हो जायगे तो महाराज की लड़ाई का नतीजा बुरा हो जायगा!'' यह सनु कु मार ने पछू ा,''देवीिसहं यह तो बताओ चंद्रका ता कहां है, उसको कौन ले गया।'' देवीिसहं ने जवाब िदया िक''यह तो नहीं मालमू िक चंद्रका ता कहां है, हां इतना जानता हूं िक नािज़म और बद्रीनाथिमलकर कु मारी और चपला को ले गये, पता लगाने से लग ही जायगा!'' तजे िसहं ने कहा, ''अबतो दु मन के सब ऐयार छू ट गये, वे सब िमलकर नौ ह और हम दो ही आदमी ठहरे। चाहेचदं ्रका ता और चपला को खोज चाहे फौज म रहकर कु मार की िहफाजत कर, बड़ी मिु कल है।''
देवीिसहं ने कहा, ''कोई मुि कल नहीं है सब काम हो जायगा, देिखए तो सही। अब पहले हमकोिशवद त के मकु ाबले म चलना चािहए, उसी जगह से कु मारी के छु ड़ाने की िफक्र की जायगी।''तजे िसहं ने कहा, ''हम लोग महाराज से िबदा हो आये ह, कु छ रात रहते यहां से पड़ाव उठे गा,पेशखेमा जा चकु ा है।'' आधी रात तक ये लोग आपस म बातचीत करते रहे, बाद इसके कु मार उठकर अपने खेमेम चले गये। कु मार के बगल म तेजिसहं का खेमा था िजसम देवीिसहं और तेजिसहं दोन नेआराम िकया। चार तरफ फौज का पहरा िफरने लगा, ग त की आवाज आने लगी। थोड़ी रातबाकी थी िक एक छोटी तोप की आवाज हुई, कु छ देर बाद बाजा बजने लगा, कू च की तयै ारीहुई और धीर- धीर फौज चल पड़ी। जब सब फौज जा चकु ी, पीछे एक हाथी पर कु मार सवारहुए िज ह चार तरफ से बहुत-से सवार घेरे हुए थ।े तेजिसहं और देवीिसहं अपने ऐयारी केसामान से सजे हुए कभी आगे कभी पीछे कभी साथ, पैदल चले जाते थ।े पहर िदन चढ़े कंु अरवीरे द्रिसहं का ल कर िशवद तिसहं की फौज के मकु ाबले म जा पहुंचा जहां पहले से महाराजजयिसहं की फौज डरे ा जमाये हुए थी। लड़ाई बंद थी और मसु लमान सब मारे जा चकु े थ,ेखेमा-डरे ा पहले ही से खड़ा था, कायदे के साथ प टन का पड़ाव पड़ा। जब सब इंतजाम हो चुका, कंु अर वीरे द्रिसहं ने अपने खेमे म कचहरी की और मीर मंुशीको हुक्म िदया, ''एक खत िशवद त को िलखो िक मालमू होता है आजकल तु हारे िमजाम मगमीर् आ गई है जो बैठे -बठै ाये एक नालायक क्रू र के भड़काने पर महाराज जयिसहं से लड़ाईठान ली है। यह भी मालमू हो गया िक तु हारे ऐयार चदं ्रका ता और चपला को चुरा लाये ह,सो बेहतर है िक चदं ्रका ता और चपला को इ जत के साथ महाराज जयिसहं के पास भेज दोऔर तमु वापस जाओ नहीं तो पछताओगे, िजस वक्त हमारे बहादरु की तलवार मदै ान मचमकगी, भागते राह न िमलेगी।'' बमूिजम हुक्म के मीर मशंु ी ने खत िलखकर तैयार की। कु मार ने कहा, ''यहखत कौन लेजायगा?'' यह सनु देवीिसहं सामने आ हाथ जोड़कर बोले, ''मझु को इजाजत िमले िक इस खत को
ले जाऊं क्य िक िशवद तिसहं से बातचीत करने की मेरे मन म बड़ी लालसा है।'' कु मार नेकहा, ''इतनी बड़ी फौज म तु हारा अके ला जाना अ छा नहीं है।'' तेजिसहं ने कहा, ''कोई हजर् नहीं, जाने दीिजए।'' आिखर कु मार ने अपनी कमर से खंजरिनकालकर िदया िजसे देवीिसहं ने लेकर सलाम िकया, खत बटु ए म रख ली और तेजिसहं केचरण छू कर रवाना हुए। महाराज िशवद तिसहं के प टन वाल म कोई भी देवीिसहं को नहीं पहचानता था। दरू सेइ ह ने देखा िक बड़ा-सा कारचोबी खेमा खड़ा है। समझ गये िक यही महाराज का खेमा है,सीधो धाड़धाड़ाते हुए खेमे के दरवाजे पर पहुंचे और पहरे वाल से कहा, ''अपने राजा को जाकरखबर करो िक कंु अर वीरे द्रिसहं का एक ऐयार खत लेकर आया है, जाओ ज दी जाओ! ''सनु तेही यादा दौड़ा गया और महाराज िशवद त से इस बात की खबर की। उ ह ने हुक्म िदया,''आने दो।'' देवीिसहं खेमे के अदं र गये। देखा िक बीच म महाराज िशवद त सोने के जड़ाऊिसहं ासन पर बैठे ह, बाईं तरफ दीवान साहब और इसके बाद दोन तरफ बड़-े बड़े बहादरुबेशकीमती पोशाक पिहरे उ दे-उ दे हरबे लगाये चांदी की कु िसयर् पर बठै े ह, िजनके देखने सेकमजोर का कलेजा दहलता है। बाद इसके दोन तरफ नीम कु िसय्र पर ऐयार लोगिवराजमान ह। इसके बाद दरजे बदरजे अमीर और ओहदेदार लोग बठै े ह, बहुत से चोबदार हाथबांधो सामने खड़े ह। गरज िक बड़े रोआब का दरबार देखने म आया। देवीिसहं िकसी को सलाम िकये िबना ही बीच म जाकर खड़े हो गए और एक दफे चारतरफ िनगाह दौड़ाकर गौर से देखा, िफर बढ़कर कु मार की खत महाराज के सामने िसहं ासन पररख दी। देवीिसहं की बेअदबी देखकर महाराज िशवद त मारे गु से के लाल हो गये और बोले-''एक म छर को इतना हौसला हो गया िक हाथी का मुकाबला करे! अभी तो वीरे द्रिसहं केमंहु से दधू की महक भी गई न होगी।'' यह कह खत हाथ म ले फाड़कर फक दी। खत काफटना था िक देवीिसहं की आंख लाल हो गईं। बोले, ''िजसके सर मौत सवार होती है उसकीबिु द पहले ही हवा खाने चली जाती है।'' देवीिसहं की बात तीर की तरह िशवद त के कलेजे
के पार हो गई। बोले, ''पकड़ो इस बेअदब को!'' इतना कहना था िक कई चोबदार देवीिसहं कीतरफ झकु े । इ ह ने खजं र िनकाल दो-तीन चोबदार की सफाई कर डाली और फु तीर् से अपनेऐयारी के बटु ए म से एक गद िनकालकर जोर से जमीन पर मारी िजससे बड़ी भारी आवाजहुई। दरबार दहल उठा, महाराज एकदम च क पड़े िजससे िसर का शमला िजस पर हीरे कासरपच था जमीन पर िगर पड़ा। लपक के देवीिसहं ने उसे उठा िलया और कू दकर खेमे केबाहर िनकल गये। सब के सब देखते रह गये िकसी के िकये कु छ बन न पड़ा। सारा गु सा िशवद त ने ऐयार पर िनकाला जो िक उस दरबार म बैठे थे। कहा-''लानतहै तमु लोग की ऐयारी पर जो तमु लोग के देखते दु मन का एक अदना ऐयार हमारीबेइ जती कर जाय!'' बद्रीनाथ ने जवाब िदया, ''महाराज, हम लोग ऐयार ह, हजार आदिमय मअके ले घुसकर काम करते ह मगर एक आदमी पर दस ऐयार नहीं टू ट पड़त।े यह हम लोगके कायदे के बाहर है। बड़-े बड़े पहलवान तो बैठे थ,े इन लोग ने क्या कर िलया!'' बद्रीनाथ कीबात का जवाब िशवद त ने कु छ न देकर कहा, ''अ छा कल हम देख लगे।'' चौथा बयान महाराज िशवद त का शमला िलए हुए देवीिसहं कंु अर वीरे द्रिसहं के पास पहुंचे और जोकु छ हुआ था बयान िकया। कु मार यह सनु कर हंसने लगे और बोले, ''चलो सगनु तो अ छाहुआ?'' तजे िसहं ने कहा, ''सबसे यादा अ छा सगुन तो मेरे िलए हुआ िक शािगदर् पैदा करलाया!'' यह कह शमले म से सरपच खोल बटु ए म दािखल िकया। कु मार ने कहा, ''भला तुमइसका क्या करोगे, तु हारे िकस मतलब का है?'' तेजिसहं ने जवाब िदया, ''इसका नाम फतह कासरपच है, िजस रोज आपकी बारात िनकलेगी महाराज िशवद त की सूरत बना इसी को माथेपर बांधा म आगे-आगे झ डा लेकर चलगूं ा।'' यह सुनकर कु मार ने हंस िदया, पर साथ हीइसके दो बंदू आंसू आखं से िनकल पड़े िजनको ज दी से कु मार ने माल से प छ िलया।तेजिसहं समझ गये िक यह चंद्रका ता की जुदाई का असर है। इनको भी चपला का बहुत कु छख्याल था, देवीिसहं से बोले, ''सनु ो देवीिसहं , कल लड़ाई ज र होगी इसिलए एक ऐयार का यहां
रहना ज री है और सबसे ज री काम चंद्रका ता का पता लगाना है।'' देवीिसहं ने तजे िसहं सेकहा, ''आप यहां रहकर फौज की िहफाजत कीिजए। म चदं ्रका ता की खोज म जाता हूं।''तेजिसहं ने कहा, ''नहीं चनु ार की पहािड़यां तु हारी अ छी तरह देखी नहीं ह और चदं ्रका ताज र उसी तरफ होगी, इससे यही ठीक होगा िक तुम यहां रहो और म कु मारी की खोज मजाऊं ।'' देवीिसहं ने कहा, ''जैसी आपकी खशु ी।'' तेजिसहं ने कु मार से कहा, ''आपके पास देवीिसहंहै। म जाता हूं, जरा होिशयारी से रिहएगा और लड़ाई म ज दी न कीिजएगा।'' कु मार ने कहा,''अ छा जाओ, ई वर तु हारी रक्षा कर।'' बातचीत करते शाम हो गई बि क कु छ रात भी चली गई, तजे िसहं उठ खड़े हुए औरज री चीज ले ऐयारी के सामान से लसै हो वहां के एक घने जंगल की तरफ चले गये। पाचं वाँ बयान 'चंद्रका ता को ले जाकर कहां रखा होगा? अ छे कमरे म या अंधेरी कोठरी म? उसकोखाने को क्या िदया होगा और वह बेचारी िसवाय रोने के क्या करती होगी। खान-े पीने की उसेकब सधु होगी। उसका मुंह द:ु ख और भय से सखू गया होगा। उसको राजी करने के िलए तगंकरते ह गे। कहीं ऐसा न हो िक उसने तंग होकर जान दे दी हो।' इ हीं सब बात को सोचतेऔर ख्याल करते कु मार को रात-भर नींद न आई। सबेरा हुआ ही चाहता था िक महाराजिशवद त के ल कर से डकं े की आवाज आई। मालूम हुआ िक दु मन की तरफ लड़ाई कासामान हो रहा है। कु मार भी उठ बैठे , हाथ-मंहु धोए। इतने म हरकारे ने आकर खबर दी िकदु मन की तरफ लड़ाई का सामान हो रहा है। कु मार ने भी कहा, ''हमारे यहां भी ज दीतैयारी की जाय।'' हुक्म पाकर हरकारा रवाना हुआ। जब तक कु मार ने नान-स धया से छु ट्टीपाई तब तक दोन तरफ की फौज भी मदै ान म जा डटीं। बेलदार ने जमीन साफ कर दी।कु मार भी अपने अरबी घोड़े पर सवार हो मैदान म गये और देवीिसहं से कहा, ''िशवद त कोकहना चािहए िक बहुत से आदिमय का खून कराना अ छा नहीं, िजस-िजस को बहादरु ी काघम ड हो एक पर एक लड़ के ज दी मामला तै कर ल। िशवद तिसहं अपने को अजुनर्
समझते ह, उनके मुकाबले के िलए म मौजदू हूं, क्य बेचारे गरीब िसपािहय की जान जाय।''देवीिसहं ने कहा, ''बहुत अ छा, अभी इस मामले को तै कर डालता हूं!'' यह कह मदै ान म गयेऔर अपनी चादर हवा म दो-तीन दफे उछाली। चादर उछालनी थी िक झट बद्रीनाथ ऐयारमहाराज िशव त के ल कर से िनकल के मैदान म देवीिसहं के पास आये और बोले, ''जयमाया की!'' देवीिसहं ने भी जवाब िदया, ''जय माया की!'' बद्रीनाथ ने पूछा, ''क्य क्या बात हैजो मैदान म आकर ऐयार को बुलाते हो?'' देवी-तमु से एक बात कहनी है! बद्री-कहो। देवी-तु हारी फौज म मदर् बहुत ह िक औरत? बद्री-औरत की सरू त भी िदखाई नहीं देती! देवी-तु हारे यहां कोई बहादरु भी है िक सब गरीब िसपािहय की जान लेने और आपतमाशा देखने वाले ही ह? बद्री-हमारे यहां खिचय बहादरु भरे ह? देवी-तु हारे कहने से तो मालूम होता है िक सब खेत की मलू ी ही ह! बद्री-यह तो मुकाबला होने ही से मालमू होगा! देवी-तो क्य नहीं एक पर एक लड़ के हौसला िनकाल लेत?े ऐसा करने से मामला भीज द तै हो जायगा और बेचारे िसपािहय की जान भी मु त म न जायगी। हमारे कु मार तोकहते ह िक महाराज िशवद त को अपनी बहादरु ी का बड़ा भरोसा है, आव पहले हम से ही िभड़जायं, या वही जीत जायं या हम ही चुनार की ग ी के मािलक ह , बात की बात म मामलातय होता है।
बद्री-तो इसम हमारे महाराज कभी न हटगे, वह बड़े बहादरु ह। तु हारे कु मार को तोचटु की से मसल डालगे। देवी-यह तो हम भी जानते ह िक उनकी चुटकी बहुत साफ है, िफर आव मदै ान म! इस बातचीत के बाद बद्रीनाथ लौटकर अपनी फौज म गये और जो कु छ देवीिसहं सेबातचीत हुई थी जाकर महाराज िशवद त से कहा। सनु ते ही महाराज िशवद त तो लाल होगए और बोले, ''यह कल का लड़का मेरे साथ मकु ाबला करना चाहता है!'' बद्रीनाथ ने कहा, ''िफरिहयाव ही तो है, हौसला ही तो है, इसम रंज होने की क्या बात है? म जहां तक समझता हूं,उनका कहना ठीक है!'' यह सुनते ही महाराज िशवद त झट घोड़ा कु दा के मैदान म आ गयेऔर भाला उठाकर िहलाया, िजसको देख वीरे द्रिसहं ने भी अपने घोड़े को एड़ मारी और मदै ानम िशवद त के मकु ाबले म पहुंचकर ललकारा, ''अपने महुं अपनी तारीफ करता है और कहता हैिक म वीर हूं? क्या बहादरु लोग चोट्टे भी होते ह? जवांमदीर् से लड़कर चंद्रका ता न ली गई?लानत है ऐसी बहादरु ी पर!'' वीरे द्रिसहं की बात तीर की तरह महाराज िशवद त के कलेजे मलगी। कु छ जवाब तो न दे सके , गु से म भरे हुए बड़े जोर से कु मार पर नेजा चलाया, कु मार नेअपने नेजे से ऐसा झटका िदया िक उनके हाथ से नेजा छटककर दरू जा िगरा। यह तमाशा देख दो त-दु मन दोन तरफ से 'वाह-वाह' की आवाज आने लगी। िशवद तबहुत िबगड़ा और तलवार िनकालकर कु मार पर दौड़ा, कु मार ने तलवार का जवाब तलवार सेिदया। दोपहर तक दोन म लड़ाई होती रही, बाद दोपहर कु मार की तलवार से िशवद त काघोड़ा जख्मी होकर िगर पड़ा, बि क खदु महाराज िशवद त को कई जगह जख्म लगे। घोड़े सेकू दकर िशवद त ने कु मार के घोड़े को मारना चाहा मगर मतलब समझ के कु मार भी झटघोड़े पर से कू द पड़े और आगे होकर एक कोड़ा इस जोर से िशवद त की कलाई पर मारा िकहाथ से तलवार छू टकर जमीन पर िगर पड़ी िजसको दौड़ के देवीिसहं ने उठा िलया। महाराजिशवद त को मालूम हो गया िक कु मार हर तरह से जबदर् त है, अगर थोड़ी देर और लड़ाईहोगी तो हम बेशक मारे जायगे या पकड़े जायगे। यह सोचकर अपनी फौज को कु मार पर
धावा करने का इशारा िकया। बस एकदम से कु मार को उ ह ने घेर िलया। यह देख कु मार कीफौज ने भी मारना शु िकया। फतहिसहं सेनापित और देवीिसहं कोिशश करके कु मार के पासपहुंचे और तलवार और खंजर चलाने लगे। दोन फौज आपस म खबू गथु गईं और गहरीलड़ाई होने लगी। िशवद त के बड़-े बड़े पहलवान ने चाहा िक इसी लड़ाई म कु मार का काम तमाम कर दमगर कु छ बन न पड़ा। कु मार के हाथ से बहुत दु मन मारे गये। शाम को उतारे का डकं ाबजा और लड़ाई बदं हुई। फौज ने कमर खोली। कु मार अपने खेमे म आये मगर बहुत सु तहो रहे थ,े फतहिसहं सेनापित भी जख्मी हो गये थ।े रात को सब ने आराम िकया। महाराज िशवद त ने अपने दीवान और पहलवान से राय ली थी िक अब क्या करनाचािहए। फौज तो वीरे द्रिसहं की हमसे बहुत कम है मगर उनकी िदलावरी से हमारा हौसलाटू ट जाता है क्य िक हमने भी उससे लड़ के बहुत जक उठाई। हमारी तो यही राय है िक रातको कु मार के ल कर पर धावा मार। इस राय को सब ने पसंद िकया। थोड़ी रात रहे िशवद तने कु मार की फौज पर पाचं सौ िसपािहय के साथ धावा िकया। बड़ा ही गड़बड़ मचा। अंधेरीरात म दो त-दु मन का पता लगाना मिु कल था। कु मार की फौज दु मन समझ अपने हीलोग को मारने लगी। यह खबर वीरे द्रिसहं को भी लगी। झट अपने खेमे से बाहर िनकलआए। देवीिसहं ने बहुत से आदिमय को महताब 1 जलाने के िलए बांटी।ं यह महताब तेजिसहंने अपनी तरकीब से बनाई थीं। इसके जलाते ही उजाला हो गया और िदन की तरह मालूमहोने लगा। अब क्या था, कु ल पाचं सौ आदिमय को मारना क्या, सबु ह होते-होते िशवद त केपाचं सौ आदमी मारे गए मगर रोशनी होने के पहले करीब हजार आदमी कु मार की तरफ केनुकसानहो चुके थे िजसका रंज वीरे द्रिसहं को बहुत हुआ और सुबह की लड़ाई बंद न होने दी। दोन फौज िफर गथु गईं। कु मार ने ज दी से नान िकया और सं या-पजू ा करके हरबको बदन पर सजा दु मन की फौज म घसु गए। लड़ाई खूब हो रही थी, िकसी को तनोबदन कीखबर न थी। एकाएक परू ब और उ तार के कोने से कु छ फौजी सवार तेजी से आते हुए िदखाई
िदये िजनके आगे-आगे एक सवार बहुत उ दा पोशाक पिहरे अरबी घोड़े पर सवार घोड़ा दौड़ाएचला आता था। उसके पीछे और भी सवार जो करीब-करीब पांच सौ के ह गे घोड़ा फके चलेआ रहे थ।े अगले सवार की पोशाक और हरब से मालूम होता था िक यह सब का सरदार है।यह सरदार महुं पर नकाब 21. फौजममहताबबहुतसे बनाए जाते थे इसिलए िक शायद रात को लड़ाई होतोरोशनीकीजाय।2. नकाब एक कपड़े का नाम है जो मुंह पर परदे की तरह पड़ा रहता है, बदं से बाधं ाते ह, आंख की जगह खाली रहती है।डाले हुए था और उसके साथ िजतने सवार पीछे चले आ रहे थे उन लोग के भी मुहं परनकाब पड़ी हुई थी। इस फौज ने पीछे से महाराज िशवद त की फौज पर धावा िकया और खूब मारा। इधरसे वीरे द्रिसहं की फौज ने जब देखा िक दु मन को मारने वाला एक और आ पहुंचा, तबीयतबढ़ गई और हौसले के साथ लड़ने लगे। दोतरफी चोट महाराज िशवद त की फौज स हाल नपाई और भाग चली। िफर तो कु मार की बन पड़ी, दो कोस तक पीछा िकया, आिखर फतह काडकं ा बजाते अपने पड़ाव पर आए। मगर हैरान थे िक ये नकाबपोश सवार कौन थे िज ह नेबड़े वक्त पर हमारी मदद की और िफर िजधर से आये थे उधर ही चले गये। कोई िकसी कीजरा मदद करता है तो अहसान जताने लगता है मगर इ ह ने हमारा सामना भी नहीं िकया,यह बड़ी बहादरु ी का काम है। बहुत सोचा मगर कु छ समझ न पड़ा। महाराज िशवद त का िब कु ल माल-खजाना और खेमा वगरै ह कु मार के हाथ लगा। जबकु मार िनि चत हुए उ ह ने देवीिसहं से पछू ा, ''क्या तमु कु छ बता सकते हो िक वे नकाबपोशकौन थे िज ह ने हमारी मदद की?'' देवीिसहं ने कहा, ''मेरे कु छ भी ख्याल म नहीं आता, मगर
वाह! बहादरु ी इसको कहते ह!!'' इतने म एक जाससू ने आकर खबर दी िक दु मन थोड़ी दरूजाकर अटक गये ह और िफर लड़ाई की तैयारी कर रहे ह। छठवाँ बयान तेजिसहं चदं ्रका ता और चपला का पता लगाने के िलए कंु अर वीरे द्रिसहं से िबदा होफौज के हाते के बाहर आये और सोचने लगे िक अब िकधर जायं, कहां ढूंढ? दु मन की फौजम देखने की तो कोई ज रत नहीं क्य िक वहां चदं ्रका ता को कभी नहीं रखा होगा, इससेचनु ार ही चलना ठीक है। यह सोचकर चुनार ही की तरफ रवाना हुए और दसू रे िदन सबेरे वहांपहुंचे। सूरत बदलकर इधर-उधर घूमने लगे। जगह-जगह पर अटकते और अपना मतलबिनकालने की िफक्र करते थे मगर कु छ फायदा न हुआ, कु मारी की खबर कु छ भी मालमू नहुई। रात को तेजिसहं सरू त बदल िकले के अदं र घुस गये और इधर-उधर ढूंढने लगे। घूमते-घमू ते मौका पाकर वे एक काले कपड़े से अपने बदन को ढांक कमदं फक महल पर चढ़ गये।इस समय आधी◌ी रात जा चकु ी होगी। छत पर से तजे िसहं ने झांककर देखा तो स नाटामालमू पड़ा मगर रोशनी खबू हो रही थी। तजे िसहं नीचे उतरे और एक दलान म खड़े होकरदेखने लगे। सामने एक बड़ा कमरा था जो िक बहुत खबू सूरती के साथ बेशकीमती असबाबऔर त वीर से सजा हुआ था। रोशनी यादे न थी िसफ्र शमादान जल रहे थे, बीच म ऊं चीमसनद पर एक औरत सो रही थी। चार तरफ उसके कई औरत भी फशर् पर पड़ी हुई थीं।तजे िसहं आगे बढ़े और एक-एक करके रोशनी बुझाने लगे, यहां तक िक िसफर् उस कमरे मएक रोशनी रह गई और सब बझु गईं। अब तजे िसहं उस कमरे की तरफ बढ़े, दरवाजे पर खड़ेहोकर देखा तो पास से वह सरू त बखबू ी िदखाई देने लगी िजसको दरू से देखा था। तमामबदन शबनमी से ढंका हुआ मगर खबू सरू त चेहरा खलु ा था, करवट के सबब कु छ िह सा मुंह कानीचे के मखमली तिकए पर होने से िछपा हुआ था, गोरा रंग, गाल पर सुखीर् िजस पर एकलट खलु कर आ पड़ी थी जो बहुत ही भली मालूम होती थी। आखं के पास शायद िकसी जख्मका घाव था मगर यह भी भला मालमू होता था। तेजिसहं को यकीन हो गया िक बेशक
महाराज िशवद त की रानी यही है। कु छ देर सोचने के बाद उ ह ने अपने बटु ए म से कलम-दवात और एक टु कड़ा कागज का िनकाला और ज दी से उस पर यह िलखा- ''न मालूम क्य इस वक्त मेरा जी चदं ्रका ता से िमलने को चाहता है। जो हो, म तोउससे िमलने जाती हूं। रा ते और िठकाने का पता मझु े लग चकु ा है।'' बाद इसके पलंग के पास जा बेहोशी का धतरु ा रानी की नाक के पास ले गये जो सासंलेती दफे उसके िदमाग पर चढ़ गया और वह एकदम से बेहोश हो गई। तेजिसहं ने नाक परहाथ रखकर देखा, बेहोशी की सासं चल रही थी, झट रानी को तो कपड़े म बांधा और पजु ा्र जोिलखा था वह तिकए के नीचे रख वहां से उसी कमंद के जिरए से बाहर हुए और गंगा िकनारेवाली िखड़की जो भीतर से बंद थी, खोलकर तजे ी के साथ पहाड़ी की तरफ िनकल गये। बहुतदरू जा एक दर म रानी को और यादे बेहोश करके रख िदया और िफर लौटकर िकले केदरवाजे पर आ एक तरफ िकनारे िछपकर बठै गये। सातवाँ बयान अब सबेरा हुआ ही चाहता है। महल म ल िडय की आंख खलु ीं तो महारानी को नदेखकर घबरा गईं, इधर-उधर देखा, कहीं नहीं। आिखर खबू गलु -शोर मचा, चार तरफ खोज होनेलगी, पर कहीं पता न लगा। यह खबर बाहर तक फै ल गई, सब को िफक्र पैदा हुई। महाराजिशवद तिसहं लड़ाई से भागे हुए दस-पदं ्रह सवार के साथ चनु ार पहुंचे, िकले के अदं र घुसते हीमालूम हुआ िक महल म से महारानी गायब हो गईं। सुनते ही जान सखू गई, दोहरी चपेटबठै ी, धाड़धाड़ाते हुए महल म चले आये, देखा िक कु हराम मचा हुआ है, चार तरफ से रोने कीआवाज आ रहीहै। इस वक्त महाराज िशवद त की अजब हालत थी, हवास िठकाने नहीं थे, लड़ाई से भागकरथोड़ी दरू पर फौज को तो छोड़ िदया था और अब ऐयार को कु छ समझा-बझु ा आप चनु ारचले आये थ,े यहां यह कै िफयत देखी। आिखर उदास होकर महारानी के िब तरे के पास आये
और बठै कर रोने लगे। तिकये के नीचे से एक कागज का कोना िनकला हुआ िदखाई पड़ा िजसेमहाराज ने खोला, देखा कु छ िलखा है। यह कागज वही था िजसे तजे िसहं ने िलखकर रखिदया था। अब उस पुज को देख महाराज कई तरह की बात सोचने लगे। एक तो महारानी कािलखा नहीं मालूम होता है, उनके अक्षर इतने साफ नहीं ह। िफर िकसने िलखकर रख िदया?अगर रानी ही का िलखा है तो उ ह यह कै से मालूम हुआ िक चंद्रका ता फलाने जगह िछपाईगई है? अब क्या िकया जाय? कोई ऐयार भी नहीं िजसको पता लगाने के िलए भेजा जाय।अगर िकसी दसू रे को वहां भेजंू जहां चंद्रका ता कै द है तो िब कु ल भ डा फू ट जाय। ऐसी-ऐसी बहुत-सी बात देर तक महाराज सोचते रहे। आिखर जी म यही आया िक चाहेजो हो मगर एक दफे ज र उस जगह जाकर देखना चािहए जहां चदं ्रका ता कै द है। कोई हजर्नहीं अगर हम अके ले जाकर देख, मगर िदन म नहीं, शाम हो जाय तो चल। यह सोचकर बाहरआये और अपने दीवानखाने म भूख-े यासे चपु चाप बठै े रहे, िकसी से कु छ न कहा मगर िबनाहुक्म महाराज के बहुत से आदमी महारानी का पता लगाने जा चुके थ।े शाम होने लगी, महाराज ने अपनी सवारी का घोड़ा मंगवाया और सवार हो अके ले हीिकले के बाहर िनकले और परू ब की तरफ रवाना हुए। अब िब कु ल शाम बि क रात हो गई,मगर चांदनी रात होने के सबब साफ िदखाई देता था। तेजिसहं जो िकले के दरवाजे के पासही िछपे हुए थ,े महाराज िशवद त को अके ले घोड़े पर जाते देख साथ हो िलये। तीन कोस तकपीछे -पीछे तजे ी के साथ चले गये मगर महाराज को यह न मालमू हुआ िक साथ-साथ कोईिछपा हुआ आ रहा है। अब महाराज ने अपने घोड़े को एक नाले म चलाया जो िब कु ल सूखापड़ा था। जैसे-जसै े आगे जाते थे नाला गहरा िमलता जाता था और दोन तरफ के प थर केकरारे ऊं चे होते जाते थ।े दोन तरफ बड़ा भारी डरावना जगं ल तथा बड़-े बड़े साखू तथा आसनके पेड़ थे। खूनी जानवर की आवाज कान म पड़ रही थी।ं जसै े-जैसे आगे बढ़ते जाते थे करारेऊं चे और नाले के िकनारे वाले पेड़ आपस म ऊपर से िमलते जाते थ।े
इसी तरह से लगभग एक कोस चले गये। अब नाले म चंद्रमा की चांदनी िब कु ल नहींमालूम होती क्य िक दोन तरफ से दरख्त आपस म िब कु ल िमल गये थ।े अब वह नाला नहींमालमू होता बि क कोई सरु ंग मालूम होती है। महाराज का घोड़ा पथरीली जमीन और अधं ेराहोने के सबब धीर - धीर जाने लगा, तजे िसहं बढ़कर महाराज के और पास हो गये। यकायककु छ दरू पर एक छोटी-सी रोशनी नजर पड़ी िजससे तेजिसहं ने समझा िक शायद यह रा तायहीं तक आने का है और यही ठीक भी िनकला। जब रोशनी के पास पहुंचे देखा िक एकछोटी-सी गफु ा है िजसके बाहर दोन तरफ लंबे-लंबे ताकतवर िसपाही नगं ी तलवार हाथ मिलए पहरा दे रहे ह जो बीस के लगभग ह गे। भीतर भी साफ िदखाई देता था िक दो औरतप थर पर ढासना लगाये बैठी ह। तेजिसहं ने पहचान तो िलया िक दोन चंद्रका ता औरचपला ह मगर सूरत साफ-साफ नहीं नजर पड़ी। महाराज को देखकर िसपािहय ने पहचाना और एक ने बढ़कर घोड़ा थाम िलया, महाराजघोड़े पर से उतर पड़।े िसपािहय ने दो मशाल जलाये िजनकी रोशनी म तजे िसहं को अब साफचदं ्रका ता और चपला की सरू त िदखाई देने लगी। चंद्रका ता का महुं पीला हो रहा था, िसर केबाल खलु े हुए थ,े और िसर फटा हुआ था। िमट्टी म सनी हुई बदहवास एक प थर से लगी पड़ीथी और चपला बगल म एक प थर के सहारे उठंगी हुई चंद्रका ता के िसर पर हाथ रखे बठै ीथी। सामने खाने की चीज रखी हुई थीं िजनके देखने ही से मालूम होता था िक िकसी ने उ हछु आ तक नही।ं इन दोन की सरू त से नाउ मीदी बरस रही थी िजसे देखते ही तजे िसहं कीआंख से आसं ू िनकल पड़।े महाराज ने आते ही इधर-उधर देखा। जहां चदं ्रका ता बैठी थी वहां भी चार तरफ देखा,मगर कु छ मतलब न िनकला क्य िक वह तो रानी को खोजने आये थ,े उस पुज पर जो रानीके िब तर पर पाया था महाराज को बड़ी उ मीद थी मगर कु छ न हुआ, िकसी से कु छ पछू ाभी नहीं, चंद्रका ता की तरफ भी अ छी तरह नहीं देखा और लौटकर घोड़े पर सवार हो पीछेिफरे। िसपािहय को महाराज के इस तरह आकर िफर जाने से ता जबु हुआ मगर पछू ताकौन? मजाल िकसकी थी? तजे िसहं ने जब महाराज को िफरते देखा तो चाहा िक वहीं बगल म
िछप रह, मगर िछप न सके क्य िक नाला तंग था और ऊपर चढ़ जाने को भी कहीं जगह नथी, लाचार नाले के बाहर होना ही पड़ा। तेजी के साथ महाराज के पहले नाले के बाहर हो गयेऔर एक िकनारे िछप रहे। महाराज वहां से िनकल शहर की तरफ रवाना हुए। अब तेजिसहं सोचने लगे िक यहां से म अके ले चदं ्रका ता को कै से छु ड़ा सकंू गा। लड़नेका मौका नही,ं क ं तो क्या क ं ? अगर महाराज की सरू त बन जाऊं और कोई तरकीब क ं तोभी ठीक नहीं होता क्य िक महाराज अभी यहां से लौटे ह, दसू री कोई तरकीब क ं और काम नचले, बरै ी को मालूम हो जाय, तो यहां से िफर चदं ्रका ता दसू री जगह िछपा दी जायगी तबऔर भी मुि कल होगी। इससे यही ठीक है िक कु मार के पास लौट चलूं और वहां से कु छआदिमय को लाऊं क्य िक इस नाले म अके ले जाकर इन लोग का मकु ाबला करना ठीक नहींहै। यही सब-कु छ सोच तजे िसहं िवजयगढ़ की तरफ चले, रात भर चले गये, दसू रे िदन दोपहरको वीरे द्रिसहं के पास पहुंच।े कु मार ने तजे िसहं को गले लगाया और बेताबी के साथ पूछा,''क्य कु छ पता लगा?'' जवाब म 'हां' सुनकर कु मार बहुत खुश हुए और सभी को िबदा िकया,के वल कु मार, देवीिसहं , फतहिसहं सेनापित और तजे िसहं रह गये। कु मार ने खुलासा हाल पछू ा,तजे िसहं ने सब हाल कह सनु ाया और बोले, ''अगर िकसी दसू रे को छु ड़ाना होता या िकसी गरैको पकड़ना होता तो म अपनी चालाकी कर गुजरता, अगर काम िबगड़ जाता तो भागिनकलता, मगर मामला चदं ्रका ता का है जो बहुत सकु ु मार है। न तो म अपने हाथ से उसकीगठड़ी बाधं ा सकता हूं और न िकसी तरह की तकलीफ िदया चाहता हूं। होना ऐसा चािहए िकवार खाली न जाय। म िसफर् देवीिसहं को लेने आया हूं और अभी लौट जाऊं गा, मझु े मालूम होगया िक आपने महाराज िशवद त पर फतह पाई है। अभी कोई हज्र भी देवीिसहं के िबनाआपका न होगा।'' कु मार ने कहा, ''देवीिसहं भी चल और म भी तु हारे साथ चलता हूं, क्य िक यहां तो अभीलड़ाई की कोई उ मीद नहीं और िफर फतहिसहं ह ही और कोई हज्र भी नहीं।'' तजे िसहं ने
कहा, ''अ छी बात है आप भी चिलये।'' यह सुनकर कु मार उसी वक्त तयै ार हो गये औरफतहिसहं को बहुत-सी बात समझा-बझु ाकर शाम होते-होते वहां से रवाना हुए। कु मार घोड़े पर,तेजिसहं और देवीिसहं पदै ल कदम बढ़ाते चले। रा ते म कु मार ने िशव तिसहं पर फतह पानेका हाल िब कु ल कहा और उन सवार का हाल भी कहा जो महुं पर नकाब डाले हुए थे औरिज ह ने बड़े वक्त पर मदद की थी। उनका हाल सुनकर तेजिसहं भी हैरान हुए मगर कु छख्याल म न आया िक वे नकाबपोश कौन थे। यही सब सोचते जा रहे थ,े रात चांदनी थी, रा ता साफ िदखाई दे रहा था, कु ल चार कोसके लगभग गए ह गे िक रा ते म प.ं बद्रीनाथ अके ले िदखाई पड़े और उ ह ने भी कु मार कोदेख पास आ सलाम िकया। कु मार ने सलाम का जवाब हंसकर िदया। देवीिसहं ने कहा, ''अजीबद्रीनाथजी, आप क्या उस डरपोक गीदड़ दगाबाज और चोर का संग िकए ह! हमारे दरबार मआइए, देिखए हमारा सरदार क्या शरे िदल और इंसाफपसदं है।'' बद्रीनाथ ने कहा, ''तु हारा कहनाबहुत ठीक है और एक िदन ऐसा ही होगा, मगर जब तक महाराज िशवद त से मामला तैनहीं होता म कब आपके साथ हो सकता हूं और अगर हो भी जाऊं तो आप लोग कब मुझपर िव वास करगे, आिखर म भी ऐयार हूं!'' इतना कह और कु मार को सलाम कर ज दी दसू रारा ता पकड़ एक घने जगं ल म जा नजर से गायब हो गये। तेजिसहं ने कु मार से कहा, ''रा तेम बद्रीनाथ का िमलना ठीक न हुआ, अब वह ज र इस बात की खोज म होगा िक हम लोगकहां जाते ह।'' देवीिसहं ने कहा, ''हां इसम कोई शक नहीं िक यह सगुन खराब हुआ।'' यहसनु कर कु मार का कलेजा धाड़कने लगा। बोले, ''िफर अब क्या िकया जाय?'' तेजिसहं ने कहा,''इस वक्त और कोई तरकीब तो हो नहीं सकती है, हां एक बात है िक हम लोग जंगल कारा ता छोड़ मैदान-मदै ान चल। ऐसा करने से पीछे का आदमी आता हुआ मालूम होगा।'' कु मारने कहा, ''अ छा तुम आगे चलो।'' अब वे तीन जंगल छोड़ मैदान म हो िलए। पीछे िफर-िफर के देखते जाते थे मगर कोईआता हुआ मालमू न पड़ा। रात भर बेखटके चलते गए। जब िदन िनकला एक नाले के िकनारेतीन आदिमय ने बैठ ज री काम से छु ट्टी पा नान-सं या िकया और िफर रवाना हुए। पहर
िदन चढ़त-े चढ़ते एक बड़े जगं ल म ये लोग पहुंचे 1 जहां से वह नाला िजसम चंद्रका ता औरचपला थी,ं दो कोस बाकी था। तेजिसहं1. चुनार जाने का ठीक रा ता भी था मगर तेजिसहं कु मार को िलए हुए जगं ल और पहाड़ीरा ते से गए थे।ने कहा, ''िदन इसी जगं ल म िबताना चािहए। शाम हो जाय तो वहां चल, क्य िक काम रात हीम ठीक होगा।'' यह कह एक बहुत बड़े सलई के पेड़ तले डरे ा जमाया। कु मार के वा तेजीनपोश िबछा िदया, घोड़े को खोल गले म लबं ी र सी डाल एक पेड़ से बांधा चरने के िलएछोड़ िदया। िदन भर बातचीत और तरकीब सोचने म गुजर गया, सरू ज अ त होने पर ये लोगवहां से रवाना हुए। थोड़ी ही देर म उस नाले के पास जा पहुंचे, पहले दरू ही खड़े होकर चारतरफ िनगाह दौड़ाकर देखा, जब िकसी की आहट न िमली तब नाले म घसु े। कु मार इस नाले को देख बहुत हैरान हुए और बोले, ''अजब भयानक नाला है!'' धीरे- धीरेआगे बढ़े, जब नाले के आिखर म पहुंचे जहां पहले िदन तेजिसहं ने िचराग जलते देखा था तोवहां अधं ेरा पाया। तेजिसहं का माथा ठनका िक यह क्या मामला है। आिखर उस कोठरी केदरवाजे पर पहुंचे िजसम कु मारी और चपला थीं। देखा िक कई आदमी जमीन पर पड़े ह। अबतो तेजिसहं ने अपने बटु ए म से सामान िनकाल रोशनी की िजससे साफ मालूम हुआ िकिजतने पहरे वाले पहले िदन देखे थे, सब जख्मी होकर मरे पड़े ह। अंदर घुसे, कु मारी औरचपला का पता नहीं, हां दोन के गहने सब टू टे-फू टे पड़े थे और चार तरफ खनू जमा हुआथा। कु मार से न रहा गया, एकदम 'हाय' करके िगर पड़े और आसं ू बहाने लगे। तजे िसहं समझानेलगे िक ''आप इतने बेताब क्य हो गये। िजस ई वर ने यहां तक हम पहुंचाया वही िफर उसजगह पहुंचायेगा जहां कु मारी है!'' कु मार ने कहा, ''भाई, अब म चंद्रका ता के िमलने सेनाउ मीद हो गया, ज र वह परलोक को गई।'' तजे िसहं ने कहा, ''कभी नहीं, अगर ऐसा होतातो इ हीं लोग म वह भी पड़ी होती।'' देवीिसहं बोले, ''कहीं बद्रीनाथ की चालाकी तो नहीं भाई!''उ ह ने जवाब िदया, ''यह बातभी जी म नहीं बठै ती, भला अगर हम यह भी समझ ल िक
बद्रीनाथ की चालाकी हुई तो इन याद को मारने वाला कौन था? अजब मामला है, कु छ समझम नहीं आता। खैर कोई हजर् नहीं, वह भी मालमू हो जायगा, अब यहां से ज दी चलनाचािहए।'' कंु अर वीरे द्रिसहं की इस वक्त कै सी हालत थी उसका न कहना ही ठीक है। बहुतसमझा-बुझाकर वहां से कु मार को उठाया और नाले के बाहर लाये। देवीिसहं ने कहा, ''भला वहांतो चलो जहां तमु ने िशवद त की रानी को रखा है।'' तेजिसहं ने कहा चलो। तीन वहां गये,देखा िक महारानी कलावती भी वहां नहीं है, और भी तबीयत परेशान हुई। आधी रात से यादा जा चकु ी थी, तीन आदमी बैठे सोच रहे थे िक यह क्या मामला होगया। यकायक देवीिसह बोले, ''गु जी, मझु े एक तरकीब सझू ी है िजसके करने से यह पता लगजायगा िक क्या मामला है। आप ठहिरए, इसी जगह आराम कीिजए म पता लगाता हूं, अगरबन पड़गे ा तो ठीक पता लगाने का सबतू भी लेता आऊं गा।'' तजे िसहं ने कहा, ''जाओ तमु हीकोई तारीफ का काम करो, हम दोन इसी जगं ल म रहगे।'' देवीिसहं एक देहाती पंिडत की सूरतबना रवाना हुए। वहां से चुनार करीब ही था, थोड़ी देर म जा पहुंच।े दरू से देखा िक एकिसपाही टहलता हुआ पहरा दे रहा है। एक शीशी हाथ म ले उसके पास गये और एक अशफीर्िदखाकर देहाती बोली म बोले, ''इस अशफीर् को आप लीिजए और इस इत्र को पहचान दीिजएिक िकस चीज का है। हम देहात के रहने वाले ह, वहां एक गंधी गया और उसने यह इत्रिदखाकर हमसे कहा िक 'अगर इसको पहचान दो तो हम पाचं अशफीर् तुमको द' सो हम देहातीआदमी क्या जान कौन चीज का इत्र है, इसिलए रात -रात यहां चले आए, परमे वर ने आपकोिमला िदया है, आप राजदरबार के रहने वाले ठहरे, बहुत इत्र देखा होगा, इसको पहचान के बतादीिजए तो हम इसी समय लौट के गावं पहुंच जायं, सबेरे ही जवाब देने का उस गंधी से वादाहै।'' देवीिसहं की बात सनु और पास ही एक दकु ान के दरवाजे पर जलते हुए िचराग की रोशनीम अशफीर् को देख खशु हो वह िसपाही िदल म सोचने लगा िक अजब बेवकू फ आदमी सेपाला पड़ा है। मु त की अशफीर् िमलती है ले लो, जो कु छ भी जी म आवे बता दो, क्या कलमुझसे अशफीर् फे रने आयेगा? यह सोच अशफीर् तो अपने खलीते म रख ली और कहा, ''यह कौन
बड़ी बात है, हम बता देते ह!'' उस शीशी का मंहु खोलकर सूघं ा, बस िफर क्या था सघूं ते हीजमीन पर लेट गया, दीन दिु नया की खबर न रही, बेहोश होने पर देवीिसहं उस िसपाही कीगठरी बाधं ा तेजिसहं के पास ले आये और कहा िक ''यह िकले का पहरा देने वाला है, पहलेइससे पूछ लेना चािहए, अगर काम न चलेगा तो िफर दसू री तरकीब की जायगी।'' यह कह उसिसपाही को होश म लाये। वह हैरान हो गया िक यकायक यहां कै से आ फं से, देवीिसहं को उसीदेहाती पंिडत की सूरत म सामने खड़े देखा, दसू री ओर दो बहादरु और िदखाई िदये, कु छ कहाही चाहता था िक देवीिसहं ने पछू ा, ''यह बताओ िक तु हारी महारानी कहां ह? बताओ ज दी!''उस िसपाही ने हाथ-परै बधं े रहने पर भी कहा िक ''तमु महारानी को पछू ने वाले कौन हो, तु हमतलब?'' तजे िसहं ने उठकर एक लात मारी और कहा, ''बताता है िक मतलब पूछता है।'' अबतो उसने बेउज्र कहना शु कर िदया िक ''महारानी कई िदन से गायब ह, कहीं पता नहींलगता, महल म गुल-गपाड़ा मचा हुआ है, इससे यादे कु छ नहीं जानते।'' तेजिसहं ने कु मार से कहा, ''अब पता लगाना कई रोज का काम हो गया, आप अपनेल कर म जाइये, म ढूंढने की िफक्र करता हूं।'' कु मार ने कहा, ''अब म ल कर म न जाऊं गा।''तजे िसहं ने कहा, ''अगर आप ऐसा करगे तो भारी आफत होगी, िशवद त को यह खबर लगी तोफौरन लड़ाई शु कर देगा, महाराज जयिसहं यह हाल पाकर और भी घबड़ा जायगे, आपकेिपता सुनते ही सखू जायगे।'' कु मार ने कहा, ''चाहे जो हो, जब चदं ्रका ता ही नहीं है तो दिु नयाम कु छ हो मझु े क्या परवाह!'' तजे िसहं ने बहुत समझाया िक ऐसा न करना चािहए, आप धीरजन छोिड़ये, नहीं तो हम लोग का भी जी टू ट जायगा, िफर कु छ न कर सकगे। आिखर कु मार नेकहा, ''अ छा कल भर हमको अपने साथ रहने दो, कल तक अगर पता न लगा तो हम ल करम चले जायगे और फौज लेकर चुनार पर चढ़ जायगे। हम लड़ाई शु कर दगे, तमु चदं ्रका ताकी खोज करना।'' तजे िसहं ने कहा, ''अ छा यही सही।'' ये सब बात इस तौर पर हुई थीं िक उसिसपाही को कु छ भी नहीं मालमू हुआ िजसको देवीिसहं पकड़ लाये थ।े तेजिसहं ने उस िसपाही को एक पेड़ के साथ कस के बांधा िदया और देवीिसहं से कहा,''अब तमु यहां कु मार के पास ठहरो म जाता हूं और जो कु छ हाल है पता लगा लाता हूं।''
देवीिसहं ने कहा, ''अ छा जाइये।'' तेजिसहं ने देवीिसहं से कई बात पूछीं और उस िसपाही काभेष बना िकले की तरफ रवाना हुए।'' आठवाँ बयान िजस जगं ल म कु मार और देवीिसहं बैठे थे और उस िसपाही को पेड़ से बाधं ा था वहबहुत ही घना था। वहां ज दी िकसी की पहुंच नहीं हो सकती थी। तेजिसहं के चले जाने परकु मार और देवीिसहं एक साफ प थर की चट्टान पर बठै े बात कर रहे थे। सबेरा हुआ हीचाहता था िक परू ब की तरफ से िकसी का फका हुआ एक छोटा-सा प थर कु मार के पास आिगरा। ये दोन ता जबु से उस तरफ देखने लगे िक एक प थर और आया मगर िकसी कोलगा नही।ं देवीिसहं ने जोर से आवाज दी, ''कौन है जो िछपकर प थर मारता है, सामने क्यनहीं आता है?'' जवाब म आवाज आई, ''शरे की बोली बोलने वाले गीदड़ को दरू से ही माराजाता है!'' यह आवाज सुनते ही कु मार को गु सा चढ़ आया, झट तलवार के क जे पर हाथरखकर उठ खड़े हुए। देवीिसहं ने हाथ पकड़कर कहा, ''आप क्य गु सा करते ह, म अभी उसनालायक को पकड़ लाता हूं, वह है क्या चीज?'' यह कह देवीिसहं उस तरफ गये िजधर सेआवाज आई थी। इनके आगे बढ़ते ही एक और प थर पहुंचा िजसे देख देवीिसहं तजे ी के साथआगे बढ़े। एक आदमी िदखाई पड़ा मगर घने पेड़ म अधं रॆ ा यादे होने के सबब उसकी सरू तनहीं नजर आई। वह देवीिसहं को अपनी तरफ आते देख एक और प थर मारकर भागा।देवीिसहं भी उसके पीछे दौड़े मगर वह कई दफे इधर-उधर लोमड़ी की तरह चक्कर लगाकरउ हीं घने पेड़ म गायब हो गया। देवीिसहं भी इधर-उधर खोजने लगे, यहां तक िक सबेरा होगया, बि क िदन िनकल आया लेिकन साफ िदखाई देने पर भी कहीं उस आदमी का पता नलगा। आिखर लाचार होकर देवीिसहं उस जगह िफर आये िजस जगह कु मार को छोड़ गये थ।ेदेखा तो कु मार नहीं। इधर-उधर देखा कहीं पता नहीं। उस िसपाही के पास आये िजसको पेड़ केसाथ बांधा िदया था, देखा तो वह भी नही।ं जी उड़ गया, आंख म आसं ू भर आये, उसी चट्टानपर बैठे और िसर पर हाथ रखकर सोचने लगे-अब क्या कर, िकधर ढूंढ, कहां जाय! अगर ढूंढत-ेढूंढते कहीं दरू िनकल गये और इधर तेजिसहं आये और हमको न देखा तो उनकी क्या दशा
होगी? इन सब बात को सोच देवीिसहं और थोड़ी देर इधर-उधर देख-भालकर िफर उसी जगहचले आये और तजे िसहं की राह देखने लगे। बीच-बीच म इस तरह कई दफे देवीिसहं ने उठ-उठकर खोज की मगर कु छ काम न िनकला। नौवाँ बयान तजे िसहं पहरे वाले िसपाही की सूरत म िकले के दरवाजे पर पहुंच।े कई िसपािहय ने जोसबेरा हो जाने के सबब जाग उठे थे तजे िसहं की तरफ देखकर कहा, ''जरै ामिसहं , तुम कहां चलेगये थे? यहां पहरे म गड़बड़ पड़ गया। बद्रीनाथजी ऐयार पहरे की जाचं करने आये थे, तु हारेकहीं चले जाने का हाल सनु कर बहुत खफा हुए और तु हारा पता लगाने के िलए आप ही कहींगए ह, अभी तक नहीं आये। तु हारे सबब से हम लोग पर खफगी हुई!'' जैरामिसहं (तेजिसहं )ने कहा, ''मेरी तबीयत खराब हो गई थी, हाजत मालमू हुई इस सबब से मदै ान चला गया, वहांकई द त आये िजससे देर हो गई और िफर भी कु छ पेट म गड़बड़ मालमू पड़ता है। भाई,जान है तो जहान है, चाहे कोई रंज हो या खुश हो यह ज रत तो रोकी नहीं जाती, म िफरजाता हूं और अभी आता हूं।'' यह कह नकली जैरामिसहं तरु ंत वहां से चलता बना। पहरे वाल से बातचीत करके तेजिसहं ने सनु िलया िक बद्रीनाथ यहां आये थे औरउनकी खोज म गये ह, इससे वे होिशयार हो गए। सोचा िक अगर हमारे यहां होते बद्रीनाथलौट आवगे तो ज र पहचान जायगे, इससे यहां ठहरना मनु ािसब नहीं। आिखर थोड़ी दरू जाएक िभखमंगे की सूरत बना सड़क िकनारे बठै गए और बद्रीनाथ के आने की राह देखने लगे।थोड़ी देर गजु री थी िक दरू से बद्रीनाथ आते िदखाई पड़,े पीछे -पीछे पीठ पर गट्ठर लादे नािज़मथा िजसके पीछे वह िसपाही भी था िजसकी सरू त बना तेजिसहं आए थ।े तजे िसहं इस ठाठ से बद्रीनाथ को आते देख चकरा गए। जी म सोचने लगे िक ढंग बरु ेनजर आते ह। इस िसपाही को जो पीछे -पीछे चला आता है म पेड़ के साथ बांधा आया था,उसी जगह कु मार और देवीिसहं भी थे। िबना कु छ उपद्रव मचाये इस िसपाही को ये लोग नहींपा सकते थ।े ज र कु छ न कु छ बखेड़ा हुआ है। ज र उस गट्ठर म जो नािज़म की पीठ पर
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