द्धखलाफ लड़ाई मंे भाग नहीं ललया, और अंदाज़गर का भी समिणन नहीं लकया लजसने लवरोध लकया िा। जैसे ही हार स्पष्ट् हो गई, बछमन ने राज्यपाल ओजोदबेह को कमान सौपं दी, और वह खुद तेसीफोन वापस चला गया। लेलकन ओजोदबेह ने लड़ाई मंे शालमल होने और हीरा की रक्षा करने के बजाय, अपनी सेना को भाग्य की दया पर छोड़ लदया और खुद भाग गया। हार के बाद अंदाज़गर भी भाग गया और प्यास से मरुभूलम में मर गया।1 ये घटनाएँा शहंशाहों के लसंहासन पर एक दृढ हाि की अनुपद्धथिलत की गवाही देती हंै, क्ोलं क राज्य मंे प्रवेश करने के समय एयाजलदगाडण तृतीय बहुत छोटा (१६ वर्षण) िा और राज्य और सेना पर शासन करने में असमिण िा। उबुला और हीरा के महत्वपूर्ण व्यापार और सांस्कृ लतक कंे िों के साि फरात नदी के दलक्षर्ी लकनारों का नुकसान इस्लाम की संगलठत ताकतों के हािों सासानीदों की पहली बड़ी हार िी। हीरा के लनवालसयों को लजन्हंे शासकों के लबना छोड़ लदया गया िा, शांलत की थिापना के ललए खाललद इब्न अल-वाललद के पास अलधकृ त व्यद्धियों को भेजने के ललए मजबूर होना पड़ा। खाललद इब्न अल-वाललद ने हीरा के कु लीनों के प्रलतलनलधयों की अगवानी की, लजसकी अध्यक्षता अयास इब्न अबुबासा कर रहा िा और उन्हें चुनने के ललए तीन लवकल्पों की पेशकश की गई। पहला लवकल्प िा इस्लाम में पररवलतणत हो जाना और सभी मुसलमानों के साि सालाना जकात अदा करना। दू सरा लवकल्प िा पहले की तरह ईसाई रहना, लेलकन इस्लामी खलीफा के अलधकार को मान्यता देना, और ईसाई धमण को संरलक्षत करने के ललए, प्रलत व्यद्धि का एक सोने के दीनार की रालश सालाना जलजया देना। अंत में, तीसरा लवकल्प िा युि और हीरा का लनमणम कब्ज़ा। शहर के लनवालसयों ने दू सरा लवकल्प चुना और क्षलतपूलतण के रूप मंे २९० हजार लदरहम का भुगतान करने का वचन लदया। जहााँ तक हीरा के पड़ोस के लकसानों और लनवालसयों का प्रश्न उठता है तो उन्हें हर साल बीस लाख लदरहम की रालश मंे जलजया देना िा।2 ईरानी राज्यपालों और सैन्य नेताओं की दर पर भारी लूट के माल पर कब्ज़ा करने के बाद, खाललद इब्न अल-वाललद ने हीरा शहर को इस्लामी सेना 1 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. I. – M., 1989, p. 216-217; Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 82. 2 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 57-58; O.G. Bolshakov. The history of the Caliphate. Vol. I. – M., 1989, p. 218-220. 251
का मुख्यालय बना लदया। उसके बाद, उसने अनबर, ऐनुतम्र, डोवमतुलजंडल के गांवों और शहरों और साि ही लफरोज़ शहर के सैन्य दुगण पर भी आसानी से कब्जा कर ललया, जहां उसने रमजान का एक महीना लबताया, आराम लकया, इस्लामी सेना को प्रलशक्षर् लदया और सेना मंे भती भी की गयी। अरब सेना के इस लकलेबंदी मंे लगभग एक साल रहने के बाद सासालनद इराक और बीजाद्धिन सीररया के बीच सीमा पर द्धथित लफरोज़ शहर, बीजाद्धिन साम्राज्य के नेताओं के बीच लचंता का कारर् बनने लगा। हालांलक, कु छ समय बाद, खाललद इब्न अल-वाललद ने इस्लामी सेना के मुख्यालय को हीरा को लौटा लदया, और सैलनकों के बीच जब्त लूट को लवभालजत लकया। मदीना मंे लूट का पांचवां लहस्सा भेजने के बाद, उसने इस्लाम का प्रचार करना शुरू लकया और हीरा में अपने अनुयालययों की संख्या बढाई। हालाँालक खलीफा अबू बक् इराक की लवजय और खाललद इब्न अल-वाललद की लगातार जीत से उत्सालहत िा, लेलकन वह सीररया और लफललस्तीन की लदशा में इस्लामी सेना की प्रगलत की गलत से संतुष्ट् नहीं िा। सीररयाई-लफललस्तीनी मोचे के सेनापलतयो,ं अबुबयदे इब्न जराणह, यज़ीद इब्न अबुसुफ़्यान और अम्र इब्न अल- अस, के संयुि कायों के समन्वय मंे कमी िी, क्ोलं क उनमंे से प्रत्येक ने अपनी अपनी टुकलड़यों के साि लड़ाई लड़ी िी। यमोक की लडाई की शुरुआि: बीजाद्धियम के सम्राट हेराद्धियस को अच्छी तरह से पता िा लक इस्लामी सेना कई लदशाओं से सीररया और लफललस्तीन की ओर बढ रही िी, और इराक पर लवजय के बाद खाललद इब्न अल-वाललद, बीजाद्धियम की पूवी सीमाओं पर हमला करने की तैयारी कर रहा िा। इसललए, उसने कॉन्स्टेंलटनोपल, एं लटओक, दलमि और कै सररया से सैलनकों को वालपस बुला ललया और आगामी लड़ाई की तैयारी के ललए उन्हें यमोक ले गया। जल्द ही, खाललद इब्न अल-वाललद को अबु बक् का आदेश लमला लक हीरा मंे अपनी सेना के मुख्य भाग को मुसन्ना इब्न हाररस की कमान के तहत छोड़कर, खुद जल्दी ही में सीररयाई-लफललस्तीनी मोचे पर जा कर सभी सैलनकों और बलों को इकठा करेाँ। ख़लीफा के आदेश को पूरा करते हुए, खाललद इब्न अल-वाललद तत्काल सीररया चला गया और शुहरालबल इब्न हसन की सेना द्वारा बसरा की लवजय में सहायता की। लकलाबन्द बसरा जो पूवी बायज़ेंलटयम के महत्वपूर्ण व्यापाररक शहरों में से एक िा, पर कब्ज़े से इस्लामी सेना ने बहुत 252
संपलि हालसल की और उनकी लड़ाई की मनोवृलि को बहुत बल लमला। खाललद इब्न अल-वाललद यमोक मंे अरब सैलनकों के लशलवर में पहुंचा और खुद को सैलनकों के सभी गुटों से पररलचत कराया, लेलकन उसने महसूस लकया लक प्रत्येक लदशा व्यद्धिगत रूप में के वल एक सेनापलत के अधीन िी, और कोई संयुि कायण योजना नहीं िी। बदू लोगों की ऐसी पसंदीदा रर्नीलत एक एकल और लनयलमत बीजाद्धिन सेना के साि युि के ललए पूरी तरह से अनुपयुि िी, जो इसके अलतररि, इनसे दोगुनी संख्या में अपनी श्रेष्ठता रखती िी। इसललए, खाललद इब्न अल-वाललद, लजसने दस वर्षों में समृि अनुभव प्राि लकया िा, ने नए संयुि और कंे िीकृ त मोचों का लनमाणर् लकया। अबु बक् के लनदेशन के बाद, उसने पूरी सेना की कमान संभाली। यमोक की लड़ाई के ललए तैयारी करते हुए, उसने पूरी इस्लामी सेना को ३६ टुकलड़यों में लवभालजत लकया, लजनमें से प्रत्येक का अपना सेनापलत िा, और लफर कई टुकलड़यों के समूह बनाए, लजनमंे से प्रत्येक की कमान एक उच्च श्रेर्ी के सैन्य नेता ने की। उसने सेना के मध्य भाग में कई समूहों को एकजुट लकया और अबुबायदा इब्न जराणह के अधीन कर लदया। दालहनी लदशा की कमान अम्र इब्न अल-अस और शुहरालबल इब्न हसन ने संभाली और बायीं लदशा की कमान यज़ीद इब्न अबुसुफयान ने। खाललद इब्न अल-वाललद खुद सवोच्च सेनापलत बना। उसने मोहरा और चंडावल इकाइयाँा भी बनाईं और घुड़सवार सेना को चार टुकलड़यों मंे लवभालजत लकया - हर एक लदशा पर एक और एक सुरलक्षत। उसने घुड़सवार सेना की कमान भी संभाली।1 यमोक की लडाई: २० अगस्त से शुरू हुई इस लड़ाई मंे, यानी अबु बक् की मौत से दो लदन पहले, इस्लामी सेना का पहली बार इतनी मजबूत और कई सेनाओं (इलतहासकारों के अनुसार, पचास हजार से अलधक सैलनको)ं ने लवरोध लकया। लड़ाई की शुरुआत मंे ही, दोनों पक्षों के कई हजार लोग मारे गए, मुसलमानों की सेना लड़खड़ा गई, और वे पीछे हटने के ललए मजबूर हो गए।2 हालांलक, खाललद इब्न अल-वाललद, इलक्म इब्न अबुझाल और अन्य समलपणत सेनापलतयों के नेतृत्व में घुड़सवार सेना के हस्तक्षेप के द्वारा, इस्लामी सेना ने 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 68-69; Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. I. – M., 1989, p. 21. 2 Said Abdurrahim Khatib. Ibid. – p. 57-58; Bolshakov O.G. Ibid. – p. 55. 253
दृढता से दुश्मन के हमले का जवाब लदया, लजससे मुसलमानों की लड़ाई के साहस को नई ताकत लमली। उन्हों ने भारी बललदानों की कीमत पर, बीजाद्धिन घुड़सवार सेना के हमले को लनरस्त कर लदया, और उस समय खाललद इब्न अल-वाललद की सुरलक्षत घुड़सवार टुकड़ी आ गई, लजसने दुश्मन पर पीछे से, दाएं और बाएं तरफ से, हमला कर लदया। उसी लदन की शाम में, मुद्धस्लम घुड़सवार टुकड़ी ने जवाबी कारण वाई शुरू की और दुश्मन के घुड़सवारों को पीछे हटने के ललए मजबूर लकया। खाललद इब्न अल-वाललद ने बीजाद्धिन घुड़सवार सेना को भागने के ललए रास्ता खोलने का आदेश लदया, और लफर दुश्मन के पैदल सैलनकों को घेर ललया और उन्हें एक-एक करके मार डाला।1 बीजाद्धिन के इलतहासकारों के अनुसार, उनकी घुड़सवार सेना को रे त के साि एक मजबूत हवा से रोका गया, और खाललद इब्न अल-वाललद की घुड़सवार सेना के जवाबी हमले के दौरान, बीजाद्धिन घुड़सवार सेना के दालहने लहस्से के सेनापलत को मार लदया गया, और इस सभी ने लड़ाई का पररर्ाम मुसलमानों के पक्ष मंे तय कर लदया।2 इस्लामी सेना को बड़ी कीमत पर जीत लमली िी: यमोक में ४ हज़ार से अलधक मुसलमान युि के मैदान मंे मारे गए। कई हजार घायल हो गए, और २७ हजार संख्या वाली मजबूत सेना के के वल १०-१२ हजार सैलनक बचे। ऐलतहालसक स्रोतों के अध्ययन के आधार पर, शोधकताण इस नतीजे पर पहुंचते हैं लक ५० हज़ार संख्या वाली बीजाद्धिन सेना मंे से के वल बीस हज़ार लोग ही बचे िे, और बाकीयों को बंदी बना ललया गया या मार लदया गया िा।3 जैसे भी रहा हो पर इस जीत की बदौलत इस्लामी सेना ने दुश्मन के खेमे से ढेर सारे सैन्य उपकरर् और इतनी लूट खसोट की लक “प्रत्येक घुड़सवार के लहस्से चौबीस हजार सोने के दीनार, और प्रत्येक पैदल सैलनक के लहस्से आठ 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 85; Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. I. – M., 1989, p. 55-56. 2 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. I. – M., 1989, p. 56. 3 Ibid. – p. 57. 254
हजार सोने के दीनार आये। लूट का पांचवां भाग मदीना में खलीफा के कंे ि मंे भेजा गया।”1 हार के बाद, बीजाद्धियम का सम्राट हेराद्धियस पूवी बायज़ांलटयम, एं लटओक की राजधानी पहुंचा, और, कु छ समय वहााँ रहने के बाद, कॉन्स्टेंलटनोपल चला गया। कॉन्स्टेंलटनोपल में आवश्यक धन और सैलनकों को इकट्ठा करने के ललए उसने संभवतः सीररया को त्याग लदया िा। इस्लाम के इलतहासकार इस तथ्य को लवशेर्ष महत्व देते हंै, क्ोलं क उनके अनुसार, सीररया त्यागने पर, हेराद्धियस ने कलित रूप से कहा: \"लवदाई, सीररया, हमेशा के ललए!\"2 खलीफा उमर का शासनकाल (६३४-६४४): खलीफा उमर इब्न खट्टब के शासनकाल की अवलध, जो लक लहजरा के १३वीं वर्षण (अगस्त ६३४ ईस्वी) के अंत मंे जुमादा अल-उहरा के महीने के अंत मंे शुरू हुई िी, वो दस साल सन् ६४४ ईस्वी तक चली। उसने नबी द्वारा रखी गई नीलत को जारी रखा। इस्लाम के इलतहासकारों का कहना है लक जब अबू बक् सत्यवादी की मौत के बाद उमर इब्न खट्टब ख़लीफा बना, तो उसने मदीना मद्धिद में इस्लाम के प्रलत अपनी दृढ प्रलतबिता की लफर से पुलष्ट् की िी। उसने कहा: “अल्लाह के रसूल और उनके ख़लीफा अबू बक् के हािों में, मंै एक लनदणयी तलवार की तरह िा। मैं ईश्वर के शुि धमण की मूलतण-उपासकों और दुजणनों से रक्षा करं ूगा।”3 वास्तव मंे, उमर वह लनमणम तलवार बन गया िा, लजसने दस साल तक, लबना एक पल भी शांत हुए, ईरान और बीजाद्धियम के क्षेिों - मध्य पूवण के दो महान राज्यों - में इस्लाम का एक लवशाल साम्राज्य बनाया, पारसीवाद और ईसाई धमण की जगह इस्लाम धमण का प्रसार लकया, और मुसलमानों के महान राज्य को इलतहास के क्षेि मंे तब्दील लकया। तबरी के अनुसार, ख़लीफा बनने के बाद, उमर इब्न खट्टब ने सबसे पहले खाललद इब्न अल-वाललद को सेना की कमान से हटा लदया, अबुबैदाह इब्न जराणह को अपना सहायक लनयुि लकया और प्रधान सेनापलत के रूप में उसे सीररया, 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 86. 2 Ibid. 3 Ibid. – p. 146. 255
लफललस्तीन और इराक की लवजय जारी रखने के ललए आदेश लदया।1 कु छ इलतहासकार बताते हैं लक यह कदम उमर इब्न खट्टब और खाललद इब्न अल- वाललद के बीच बहुत अच्छे संबंध नहीं होने के कारर् उठाया गया िा, और कु छ का मानना है लक बीजाद्धिन पर इस्लामी सेना की जीत के बाद नए खलीफा ने, अबु बक् के लपछले आदेश के अनुसार, अबुबैद इब्न जराणह (आलमर अल-जैश) को सवोच्च सेनापलत के पद पर लफर से बहाल कर लदया, और खाललद इब्न अल- वाललद को कमान से हटा लदया। यमोक की लवजय के बाद, इस्लाम के योिाओं ने अजलनडैन, दलमि, कै सररया, साि ही साि सीररया और लफललस्तीन में अन्य बद्धस्तयों पर कब्जा करने मंे कलठनाइयों का अनुभव लकया और लकले और सैन्य दुगों पर कब्जा करने मंे अपने अपयाणि अनुभव को भी महसूस लकया। उदाहरर् के ललए, खाललद इब्न अल-वाललद और यज़ीद इब्न अबुसुफ्यान की संयुि सेना को दलमि मंे सिर लदनों से अलधक समय तक घेराबंदी के तहत रखना पड़ा िा, जब तक लक आद्धखरकार, ईसाई धमणगुरु अनास्तालसयस नेिर के नेतृत्व मंे शहर के लनवालसयों के साि बातचीत के बाद, शांलत का लनष्कर्षण नहीं लनकाला गया। राजाब (१४ लसतंबर ३ लसतंबर), ८३५ ईस्वी को खाललद इब्न अल-वाललद के साि संपन्न हुई दलमि शांलत संलध के अनुसार, शहर के लनवालसयों ने एक लाख दीनार की रालश को क्षलतपूलतण के रूप मंे भुगतान करने की प्रलतज्ञा की, और लफर प्रलत वर्षण प्रलत व्यद्धि २ से ४ दीनार की रालश के बराबर या एक बराबर रालश के रूप में जलजया देना स्वीकार लकया।”2 सीररया और लफललस्तीन के उपलनवेश से संबंलधत घटनाओं को संक्षेप मंे सारांलशत करते हुए, यह ध्यान लदया जाना चालहए लक एक अन्य अरब सरदार, अबूबैद इब्न मसऊद सकाफी ने, ख़लीफा उमर इब्न खट्टब के आदेश के अनुसार, लहजरा के १३वीं वर्षण (६३४ ईस्वी) में जुमैदा अल-अव्वल के महीने मंे इराक में दस हज़ार इस्लामी योिा तैयार लकये और मुन्ना इब्न हाररस की सेना के साि हीरा में एकजुट हुए। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है लक खाललद इब्न अल- वाललद के सीररयाई-लफललस्तीनी मोचे पे जाने के बाद, १० हजार से अलधक मुसन्ना की सेना ने इराक में अरब लवरोधी दंगों के कारर् खुद को एक कलठन द्धथिलत मंे पाया और मुसलमानों से मदद की प्रतीक्षा में हीरा में लछपने के ललए मजबूर हो गई। इराक के प्रांत, जो खाललद इब्न अल-वाललद द्वारा जब्त लकए गए िे, उसकी 1 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 984. 2 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 35. 256
अनुपद्धथिलत के दो वर्षों के दौरान, थिानीय आबादी की अशांलत के कारर्, धीरे - धीरे उसके लनयंिर् से बाहर हो गए, लजसने इस्लामी सेना की लपछली जीत को शून्य कर लदया। इराक पर द बारा श्ववजय: हीरा और कालदलसयाह के बीच द्धथित नामाररक शहर में अबुबायद सकाफी और मुन्ना इब्न हाररस की संयुि सेना ने गोबोन के नेतृत्व में लविोही सैलनकों के साि लड़ाई लड़ी और उन्हंे हराया। इस लड़ाई मंे, गोबोन और एक सेनापलत को कै दी बना ललया गया। एयाजलदगाडण तृतीय से महत्वपूर्ण लवशेर्षालधकार प्राि अनुभवी सासालनद सैन्य नेता रुस्तम फारुखजोद जो खुरासान से आया िा, ने नारसा के नेतृत्व में अन्य लविोही इकाइयों पर इस्लामी सैलनकों द्वारा हमले के खतरे को भांप ललया िा, उनकी मदद करने के ललए जोललनोस नामक एक सैन्य नेता को भेजा। इस्लामी योिाओं के साि सीधे संघर्षण में प्रवेश करने की लहम्मत नहीं करते हुए, नारसा ने कास्कर के पास सकलतया लकले मंे सुदृढीकरर् का इंतजार लकया। नारसा और जोललनस की सेना को एकजुट होने से रोकने के ललए मुद्धस्लम सेना ने अबुबैदा सकाफी की जीत से प्रेररत होकर बारसामा गांव में सकलतया से दू र द्धथित जोललनस की सेना पर हमला कर लदया। जोललनस की टुकड़ी इस्लामी योिाओं का कोई गंभीर प्रलतरोध नहीं कर सकी और जल्दबाजी मंे तेसीफोन की तरफ पीछे हटने को मजबूर हो गई।1 इसके बाद, इराक के प्रांत और शहर, जो लविोह के पररर्ामस्वरूप खो चुके िे, पर लफर से लवजय प्राि की गई। लविोही नेताओं गोबोन और नारसा की हार, साि ही जोललनस के पलायन से लनराश होकर रुस्तम फरण ूखज़ोद ने बखमन जोसुई की कमान के तहत एक पेशेवर सेना इकट्ठा की, और जोललनस के सैलनकों और अन्य सैन्य इकाइयों के अवशेर्षों को उनके लनपटान में थिानांतररत कर लदया। बखमन जोसुई की कमान के तहत सासालनद सेना फरात नदी के बाएं लकनारे पर द्धथित कसुन्नतीफ शहर मंे, और इस्लामी सेना अबुबैदा सकाफी की कमान के तहत फरात नदी के दालहने लकनारे पर, दलक्षर् में द्धथित मारवाह शहर मंे द्धथित िी।2 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 172-173; Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 72-73. 2 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 175. 257
पुल की लडाई: चंूलक दोनों सेनाओं के बीच एकमाि बाधा फरात नदी िी, अबुबैदा सकाफी के अनुरोध पर और सेनापलतयों के बीच बातचीत के बाद, सासालनद सेना िोड़ा पीछे हट गई तालक अरब लोग फरात नदी का पुल पार कर सकंे । इराक को ईरान से जोड़ने वाला यह पुल जीर्ण-शीर्ण द्धथिलत में होने के कारर् अबुबैदा सकाफी के सभी हलियारों और सैन्य उपकरर्ों के साि ३० हजार की संख्या वाली मजबूत सेना के लनबाणध आवागमन के ललए सुरलक्षत नहीं िा। अपने सालियों की आपलियों के बावजूद, अबुबैदा सकाफी ने पुल को और एक-दू सरे से जुड़ी नौकाओं के साि कई जगहों पर मरम्मत करने का आदेश लदया, तालक उसकी सेना आसानी से दू सरी तरफ जा सके । यही कारर् है लक यह लड़ाई, जो लक लहजरा के १३वें वर्षण (अरू बर-नवंबर ६३४ ईस्वी) मंे रमजान के महीने में हुई िी, और ईरान की भूलम मंे इस्लामी सेना के ललए सबसे भयंकर बन गई िी, वह इलतहास में पुल की लड़ाई के रूप मंे प्रलसद्द हुई।1 पुल को पार करते हुए, अबुबैदा सकाफी की सेना ने तट पर घूमना शुरू कर लदया, तब बखमन जोसुई ने अपने सैलनकों को हमला करने का आदेश लदया। उसकी सेना मंे सबसे आगे हािी िे, लजनकी गदणन पे बड़ी घंलटयााँ लटकी हुई िी।ं लवशाल हालियों को देखकर और घंलटयों की भयानक आवाज़ सुनकर, अरबों के घोड़े वापस मुड़ गए। अरब घुड़सवारों की उलझन का फायदा उठाते हुए, हालियों पर बैठे धनुधाणररयों ने उन्हंे आसानी से नष्ट् कर लदया। युि में घोड़ों के भय को देखकर, अबुबैदा सकाफी ने घुड़सवारों को नीचे उतरने को कहा और हालियों पर बैठे धनुधाणररयों के साि पैदल ही युि करने का आदेश लदया। असमान लड़ाई कई घंटों तक चली, लेलकन बहुत भारी हताहतों की कीमत पर हालियों को आगे बढने से रोका गया। लफर भी कई हालियों ने आगे बढकर इस्लामी सेना को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचाया। अबुबैदा सकाफी ने सामने चल रहे एक सफे द हािी की संूड मंे अपनी तलवार घुसा दी। हािी गंभीर ददण से क्ोलधत हो गया। उसने अबुबैदा सकाफी पर हमला लकया और उसे रौदं लदया। लफर उसके भाई हाकम सकाफी ने कमान संभाली। उसने भी घायल हािी पर हमला लकया, लेलकन वह भी मारा गया। सात अन्य अबुबयदाह आलदवासी नेता, लजन्होनं े अपने सरदारों का बदला लेने की कोलशश की, गुस्साए हालियों के पैरों के नीचे दबकर मर गए। सेनापलतयों की मौत और इस्लामी योिाओं के हुए बहुत नुकसान के कारर् मुन्ना इब्न हाररस को सेना की वापसी के ललए पुल और 1 Said Abdurrahim Khatib. Ibid. – p. 180; Kolesnikov A.I. Ibid. – p. 74. 258
नौकाओं को तैयार करने का आदेश देने के ललए मजबूर होना पड़ा। कु छ इस्लामी योिाओं ने फरात नदी तैर कर पार करने की कोलशश की और डू ब गए, लेलकन उनमें से कु छ पुल को पार कर दू सरी तरफ पहुँाचने में सफल हुए। मुन्ना इब्न हाररस भी एक तीर से घायल हो गया और उसके कई दजणन सैलनक मारे गए।1 इस लड़ाई में, अरबों ने ४ हजार से अलधक सैलनकों को खोया, कई हजार फरात नदी में डू ब गए। तीन हजार शेर्ष सैलनकों के साि, मुन्ना इब्न हाररस बेबीलोन की ओर पीछे हट गया। बखमन जोसुई पुल को पार करके इस्लामी योिाओं का पीछा करना चाहता िा, लेलकन इसी समय उसे तेसीफोन मंे लविोह की खबर लमली, इसललए वह तुरं त ही राजधानी के ललए रवाना हो गया।2 पुल की लड़ाई में बखमन जोसुई की सेना की जीत वास्तव मंे इस्लामी सेना पर सासानीदों की पहली जीत में से एक िी, और दुश्मन के संगलठत पीछा करने की द्धथिलत मंे, वे उन्हंे करारी हार दे सकते िे। हालांलक, सासालनद राज्य में आंतररक संघर्षण और अद्धथिरता ने मुन्ना इब्न हाररस को बखमन जोसुई के हमले से बचने, सेना को लफर से संगलठत करने और एक नए सैन्य अलभयान शुरू करने का मौका प्रदान लकया। इस्लामी सेना की हार और अबुबैदा सकाफी की मौत की खबर खलीफा उमर को मुन्ना इब्न हाररस के सैलनकों और दू त ने दी जो लक मदीना भाग गए िे। इराक में युि और ईरान पर लवजय के ललए तैयारी शुरू की गयी। पुल की लड़ाई में परालजत होने के बाद, खलीफा उमर ने लगभग एक वर्षण तक इराक मंे एक और युि की तैयारी मंे लबताया, और मुसलमानों के बीच सासानीदों के द्धखलाफ दुष्प्रचार लकया। उसने मुन्ना इब्न हाररस की मदद के ललए स्वयंसेवकों को भेजा जो सीररया के साि युि में जा रहे िे। बदु लोगों और मदीना की मदद के ललए भेजी गई सेना की कीमत पर एक नई सेना बनाई गयी, और नवंबर ६३५ ईस्वी मंे मुन्ना इब्न हाररस ने इराकी शहर बुआइब मंे मेहरोन नाम के एक सासालनदी सैन्य नेता को हराया। बाद मंे, मदीना से खलीफा उमर इब्न खट्टब के आदेश से, हीरा के पास शराफ प्रांत में द्धथित साद इब्न वक्कस की १० हजार से अलधक सेना ने मदद के ललए मूसाना से संपकण लकया। साद इब्न वक्कस नबी की माँा का ररश्तेदार िा और 1 Ibid. – p. 177-179; Ibid. – p. 74. 2 Yakubov Yu. History of the Tajik people. Beginning of the middle ages. – Dushanbe, 2001, p. 122. 259
उसने अबुसुफयान और इस्लाम के अन्य दुश्मनों के द्धखलाफ लड़ाई मंे कई कारनामें लदखाए िे। ख़लीफा के आदेश से, उसे इराकी मोचे की सेनाओं का सवोच्च सेनापलत लनयुि लकया गया, और मुन्ना इब्न हाररस एवं इस्लाम के अन्य सैन्य नेताओं की सेनाओं को उसका पालन करना िा। खलीफा उमर इब्न खट्टब ने सीररयाई मोचे के सवोच्च सेनापलत को आदेश लदया लक वह उन सैलनकों को साद इब्न वक्कस के पास लौटाए जो दो साल पहले खाललद इब्न वाललद की कमान में सीररया और लफललस्तीन मंे प्रवेश लकये िे। जल्द ही, हालशम इब्न उतबा की कमान के तहत आठ हजार सैलनक इराक पहुंचे, जो साद इब्न वक्कस की सेना के साि एकजुट हुए। इस समय, मुन्ना इब्न हाररस युि मंे प्राि एक घाव से मर गया, और उसकी १० हजार की सेना भी साद इब्न वक्कस की सेना मंे शालमल हो गई। इस प्रकार, साद इब्न वक्कस की सेना की संख्या, जो सासनीदों से लड़ने के ललए कलदलसय्याह की सीमा पर तैयारी कर रही िी, लगभग ६६ हजार सैलनकों तक पहुंच गई। अंत में, लहजरा के १५वंे वर्षण (५३६ ईस्वी) में, खलीफा उमर इब्न खट्टब के आदेश पर, साद इब्न वक्कस अपनी सेना के साि कलदलसय्याह, जो ईरान के रास्ते मंे मुख्य शहरों मंे से एक माना जाता िा, मंे दाद्धखल हुआ। क़श्वदश्वसय्याह की लडाई और िेसीफ न पर कब्जा: यह सासालनद वंश के अंलतम प्रलतलनलध एयाजलदगाडण तृतीय के शासनकाल का तीसरा वर्षण िा। देश की राजनीलतक और आलिणक द्धथिलत कलठन बनी हुई िी, और वह एक गहरे सामालजक संकट, अशांलत और लवभाजन की चपेट में िा। कें िीय शद्धि के कमजोर होने का फायदा उठाते हुए, ईरान के बाहरी प्रांतों ने गुि रूप से या खुले तौर पर स्वतंिता का मागण अपनाया, और शहंशाह के आदेशों का पूरी तरह से उलंघन करने लगे। आंतररक लवरोधाभासों और दरबार की अदू रदशी नीलतयों के कारर् लवशाल, लेलकन कमजोर सासालनद साम्राज्य, लजसकी पूरी सैन्य- राजनीलतक क्षमता वास्तव मंे मुख्य सैन्य नेता रुस्तम फरण ूखज़ोद के हािों मंे िी, अरब के हमलों का लवरोध नहीं कर सकता िा। साद इब्न वक्कस, जो पहले बि और उहुद की लड़ाई के साि साि मक्का और ताइफ पर कब्ज़ा करने के दौरान प्रलसि हुआ िा, ने अब इराकी मोचे के सेनापलत के रूप मंे उज़बेब प्रांत के कलदलसय्याह के बाहरी इलाके में इस्लाम की एक बड़ी सेना को थिालपत लकया और सासानीदीयों के साि लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी। 260
एयाजलदगाडण तृतीय ने रुस्तम फरण ूखज़ोद और सेनापलतयों लफरोज़न, बहमन जोशुई, जोललनस और अन्य लोगों को ईरानी क्षेि से सभी सैलनकों को इराकी प्रांत सवद मंे इकट्ठा होने और कलदलसय्याह शहर की रक्षा के ललए तैयार रहने का आदेश लदया। ईरान के लनकट और सुदू र क्षेिों से चालीस हजार घोड़े और पैदल सैलनक पहुंचे, और उनके लनपटान मंे तीस से अलधक युि हािी िे।1 तबरी के अनुसार, \"अरब सेनापलत साद इब्न वक़्कास ने कलदलसय्याह के पास पंैतीस हज़ार लोगों की एक सेना को तैनात लकया, और लफर उनके करीबी लोगों में से चौदह लोगों का चयन करके उन्हंे एयाजलदगाडण के पास भेजा।\"2 साद इब्न वक़्कस के दू त, लजनके चेहरे सूरज से झुलस गए िे, कमरबंद पेलटयों पर तलवारंे लटकाये हुए, तेसीफोन पहुंचे। एयाजलदगाडण ने उनकी अपने शानदार महल मंे अगवानी की और पूछा: \"आप लकस व्यवसाय के साि और हमारी भूलम मंे क्ों आएं हैं?\" राजदू तों मंे वररष्ठ, नूमान इब्न मुकरीन ने उिर लदया: “हम अपमालनत लोग िे। सवणशद्धिमान ईश्वर ने हमपर दया लदखाई और एक नबी भेजा। इस पैगंबर ने वास्तव में हमंे मूलतणपूजा के अंधेरे से लनकालकर इस्लाम की रोशनी तक पहुंचा लदया। मरते वक़्त, उन्होनं े हमें झठू ी आथिा रखने वालों को इस्लाम धमण में पररवलतणत करने का आग्रह लकया िा। आज हम आपके पास आए हंै तालक आप हमारे लवश्वास को स्वीकार करंे और इस्लाम मंे पररवलतणत हो जाएाँ । यलद आप हमारे लवश्वास को स्वीकार नहीं करते हंै, तो जलजया अदा करें । यलद आप न तो ये करते हंै और न ही वो तो युि के ललए तैयार रहें, क्ोलं क हमारे बीच अब और अलधक शांलत और सद्भाव नहीं हो सकता।” इन शब्दों ने एयाजलदगाडण, जो पारसी धमण को मानता िा, को बेहद क्ोलधत लकया, लेलकन उसने गुस्से पर काबू करते हुए कहा: \"मैंने लवलभन्न प्रकार के लोगों को देखा है, लेलकन दुलनया मंे कोई भी व्यद्धि आपसे अलधक दुखी नहीं है, क्ोलं क आप सभी चूहों और सांपों को खाते हैं, और आपकी गरीबी के कारर् आप ऊं ट और भेड़ की खाल से बने कपड़े पहनते हैं। अब आप अपनी हैलसयत 1 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 62; Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 86. 2 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 996. 261
में लौट आयो, मैं आप को जी भर के द्धखलाने का आदेश देता हँा। मंै आप पर शासन करं ूगा।\"1 इस्लाम के प्रलतलनलधयों ने अपनी तीन शतों को दोहराया: या तो इस्लाम में पररवलतणत हो जाएं , या प्रलत व्यद्धि जलजया का भुगतान करंे , या युि की तैयारी करें । इस तरह की दृढता से नाराज, एयाजलदगाडण ने चौदह बोरों मंे लमट्टी भरने का आदेश लदया, उन बोरों को राजदू तों की गदणन पर लटका लदया और उन्हंे शहर से बाहर लनकाल लदया। इस्लामी इलतहासकारों के अनुसार, राजदू तों ने ऊं टों पर बोरे डालें और इसे एक अच्छा शगुन मानते हुए बोरों को साद इब्न वक्कस के मुख्यालय में ले गए। वे कहते हैं, एयाजलदगाडण ने हमंे अजम की भूलम दी, लजसका अिण है लक ईरान की भूलम हमारी होगी!2 \"शाहनामा\" में लफरदौसी ने रुस्तम फरण ूखज़ोद द्वारा अरबों के सेनापलत को एक पि भेजने के बारे मंे बताया है। उसका पि साद वक़्कस के पास पेरोज़ शपुर नामक योिा द्वारा पहुँाचता है। साद वक्कस ने अपनी सेना के सामने उस ईरानी नायक से मुलाकात की, और उसे अपने लबादे पर बैठाया, माफी मांगी लक उसके पास के वल तीर और धनुर्ष हैं, लेलकन कोई कालीन और रे शम नहीं हंै। लफर उसने अनुवादक को पि लदया और सुनने के बाद, उसने इसके बारे मंे सोचा।3 प्रलतलक्या पि मंे, साद इब्न वक़्कास ने एके श्वरवाद, कु रान, स्वगण और नरक का उल्लेख लकया और ईरानी सैन्य नेता से इस्लाम मंे पररवलतणत होने का आह्वान लकया। यह पि, जो उसके वृि मंुशी के हाि से ललखा गया िा, उसने रुस्तम फरण ूखज़ोद को भेजा। रुस्तम फरण ूखज़ोद के लनदेशों के अनुसार, अरब राजदू त की अगवानी करने के ललए एक रे शम और कशीदाकारी कपड़े से बना तंबू और एक सोने का छांटा हुआ कालीन रखा गया िा। हालााँलक, उसने कालीन पर पैर तक नहीं रखा, और ईरानी सेनापलत की तरफ देखे लबना ही जमीन पर बैठ गया। रुस्तम फरण ूखज़ोद ने महसूस लकया लक ईरान के लसंहासन और मुकु ट के 1 Ibid. – p. 996. 2 Abuali Mohammad Bal’ami. Ibid. – p. 997; Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 200. 3 Firdausi. Shahnama. Vol. IX. – Dushanbe, 1991, p. 427-428. 262
ललए प्रयास करने वाले इन अज्ञानी बदु लोगों से बात करना बेकार है। उसने इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर लदया और युि का रास्ता चुना।1 आइए हम शोधकताणओं के ललए तबरी और लफरदौसी की कहालनयों की ऐलतहालसक प्रामालर्कता की एक प्रश्नावली प्रस्तुत करते हंै, जबलक हम खुद उस क्षर्ों को देखते हंै जब दोनों सेनाएं कलदलसय्याह की सीमा पर एक दू सरे का सामना कर रही िी।ं रुस्तम फारुखजोद अपनी सेना के साि सवाद से दजला नदी के बाएाँ तट पर गया, खवारनाक पहुाँचा और नजफ और सेलद्धखन के बीच एक लशलवर थिालपत लकया। इस्लाम और सासानीदों की सेनाएं अतीक नदी (फरात नदी की एक सहायक नदी) के सामने तीन से चार महीनों तक खड़ी रही, यह इंतजार करते हुए लक पहले कौन हमला करे गा। संभवतः रुस्तम फारुखजोद ने मुसलमानों को िका देने और उनके बीच भ्रम पैदा करने के ललए लड़ाई की शुरुआत करने मंे देरी की िी। जहाँा तक साद इब्न वक्कस का सवाल है, उसने पुल पर लड़ाई के कड़वे सबक को याद करते हुए, अतीक नदी को पार करने की लहम्मत नहीं की। एयाजलदगाडण तृतीय युि की लम्बी खीचं ती अवलध के कारर् अपना धैयण खो बैठा िा। उसने रुस्तम फारुखजोद को आक्मर् करने का आदेश लदया। अतीक नदी को पार करते समय, रुस्तम फारुखजोद ने मौजूदा पुल का उपयोग करने से इनकार कर लदया और रात में एक नए पल का लनमाणर् लकया, लजसके द्वारा उसके सैलनक आसानी से दू सरी तरफ चले गए। कलदलसय्याह की लड़ाई शावल १७, लहजरा के १५वें वर्षण (२ लदसंबर, ६३६ ईस्वी) को शुरू हो कर चार लदनों तक चली।2 तलवारों और भालों से लैस दोनों पक्षों के घुड़सवारों के आपसी हमलों के साि भयंकर लड़ाई हुई और पहले घंटों मंे ही मुसलमानों और सासालनद सैलनकों को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ। नुकसान को रोकने के ललए, रुस्तम फारुखजोद ने हालियों को तीन भागों में लवभालजत लकया: कंे ि में १८ हािी और दाएं और बाएं प्रत्येक लदशा मंे ८ हािी। कें िीय टुकड़ी को बदु जनजालत की घुड़सवार सेना के द्धखलाफ अलभयान पर भेज लदया, जो साहसपूवणक आगे बढी।3 इसने मुद्धस्लम घुड़सवार सेना को आगे बढने से रोक लदया, क्ोलं क हालियों 1 Firdausi. Shahnama. Vol. IX. – Dushanbe, 1991. – p. 432. 2 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 62; Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 95-96. 3 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 206-207; Bolshakov O.G. Ibid. – p. 63-64. 263
से घबराए हुए घोड़े पीछे हट गए िे। बदु जनजालत के पैदल योिा, जो लंबे भालों से लैस हालियों के द्धखलाफ खड़े िे, एक के बाद एक उनकी मौत हो गई। तब उनकी सहायता के ललए अनुभवी घुड़सवार तुलैही इब्न हुवेलाइड और असीम इब्न अम्र पहुंचे। वे हालियों के गठन को तोड़ने में कामयाब रहे, लजसके बाद पैदल और घोड़ों पर मुसलमान सेना ने हालियों को एक-एक करके घेर कर उन्हंे ख़ि कर लदया। लफर भी लदन, लजसे कब्रों का लदन भी कहा जाता है, लड़ाई देर रात तक चलती रही और मुसलमानों को भारी क्षलत पहुंची। अगले लदन, हालशम इब्न उतबा की ८ हजार की सेना सीररया-लफललस्तीनी कंे ि से अरबों के पास पहुंची, लजसने इस्लामी सैलनकों के होसं ले ओर बुलंद लकये।1 इस बार हालियों ने लड़ाई मंे भाग नहीं ललया। सहयोगी ताकतों के ताजा दृलष्ट्कोर् के कारर्, नयी ऊजाण के साि इस्लामी सेना आगे बढने मंे सक्षम िी। ऊं ट सवार योिा और धनुधाणरी, जो प्रारं लभक एवं अगुआ मोहरे िे, उन्होनं े ससालनदी घुड़सवार सेना को पीछे हटने के ललए मजबूर कर लदया। इस लड़ाई मंे, बखमन जोसुई और कई अन्य ईरानी योिा मारे गए, और शाम के कई हमलों में से एक के दौरान रुस्तम फारुखजोद भी लगभग मरते मरते बचा। इलतहासकारों के अनुसार, दू सरे लदन, सासानीदी सेना का नुकसान मुद्धस्लमों की तुलना मंे दोगुना िा।2 तीसरे लदन, ईरानी सेनापलतयों ने हालियों को लफर से युि के मैदान में उतारा। मुद्धस्लम घुड़सवारों ने हालियों को तीरों से अंधा और उनकी सूड़ों पर भाले फंे ककर उनको घायल कर लदया। क्ोलधत हालियों ने उन धनुधाणररयों को फंे क लदया जो उन पर बैठे हुए िे और पीछे की ओर भागते हुए, अपने ही सैलनकों को रौदं डाला। हालियों की भागदौड़ से उत्सालहत होकर, इस्लामी सेना ने हमला शुरू कर लदया, और एक भयंकर युि हुआ। शाम तक दोनों लवरोलधयों ने डटकर मुकाबला लकया और प्रत्येक ने इस लदन को अपनी जीत में लगना। तबरी के अनुसार, अरबों और फारलसयों के बीच इतना भयंकर युि अभी तक नहीं हुआ िा। उस लड़ाई मंे, मुसलमानों ने छह हजार लोग खोए।3 1 Ibid. – p. 207. 2 Bolshakov O.G. Ibid. – p. 64; Said Abdurrahim Khatib. Ibid. – p. 212. 3 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1000. 264
चौिे लदन, लबना लकसी रुकावट के लड़ाई जारी रही। दोनों तरफ के ज्यादातर सैलनकों ने सुबह तक अपने हलियार नहीं छोड़े िे। काकी इब्न अमार की घुड़सवार सेना ने अपने सैलनकों को पुनगणलठत लकया और ससालनदी सेना के कंे ि पर हमला लकया, लजससे उन्हंे पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा। िोड़ी ही देर में एक तेज़ आंधी आयी, लजसने ईरालनयों की ओर रे त और धूल ढो दी, लजसके कारर् उन्हें अपने सैलनकों को लततर-लबतर करने मंे मुद्धिलों का सामना करना पड़ा। इस तूफानी हवा से रुस्तम फरण ूखज़ोद के तंबू भी उड़ गए, लजसने उसे उलझन मंे डाल लदया। रुस्तम फरण ूखज़ोद को अपना मुख्यालय छोड़कर अतीक नदी की तरफ जाने के ललए मजबूर होना पड़ा। इस समय, उसको मुसलमानों की एक घोड़ा टुकड़ी ने पहचाना और हमला कर लदया। अपनी जान बचाने की कोलशश करते हुए रुस्तम फरण ूखज़ोद खुद पानी में कू द गया, परन्तु इस्लामी सेना के सेनापलतयों मंे से एक लहलाद इब्न अलकमा ने उसे मार डाला। कु छ समय बाद, सासानीदों के राज्य ध्वज - कावे ध्वज - को भी कब्जे में ले ललया गया, जो गहनों से सजा हुआ िा (उसका मूल् १ लाख २०० हजार लदरहम िा)।1 रुस्तम फरण ूखज़ोद की हत्या और उसके राज्य ध्वज के नुकसान के बाद, जोललनस के नेतृत्व में ईरानी सेना की बची हुई टुकलड़यां अतीक नदी की तरफ पीछे भाग गई। हालाँालक, खुरमुज़ोन और ज़ोदी बुलख़श के आदेश के तहत ईरानी स्वयंसेवकों की एक छोटी टुकड़ी साहसपूवणक युि के मैदान में दुश्मनों के लवरुि खून की आद्धखरी बूंद तक लड़ती रही। साद इब्न वक़्कास ने उसके द्धखलाफ दस हज़ार इस्लामी योिा भेजे, और ईरानी स्वयंसेवक इस असमान लड़ाई में मारे गए। इस्लामी सेना की एक और टुकड़ी ने, जोललनस का पीछा करते हुए, नजफ के रास्ते में उसे घेरकर मार डाला।2 लड़ाई के चौिे लदन की दोपहर को, इस्लामी सेना ने कलदलसय्याह को अपने कब्जे मंे ले ललया। इस कब्ज़े से उन्हंे एक बड़ी तादाद मंे शाही धनपूाँजी, संपलि प्राि हुई। आद्धखरी लड़ाई मंे, जो लबना लकसी रुकावट के छिीस घंटे तक चली, लजसमें छह हजार से अलधक मुसलमान और दस हजार सासालनद सैलनक मारे गए िे, इलतहास मंे \"कलदलसय्याह की रात\" के नाम से जाना जाता है।3 1 Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 95. 2 Kolesnikov A.I. Ibid. – p. 95; O.G. Bolshakov. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 64. 3 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 216; Bolshakov O.G. Ibid. – p. 65-66. 265
रुस्तम, बखमन, जोललनस की मृत्यु और उनकी सेना की हार के बारे में जानने के बाद, एयाजलदगाडण तृतीय ने अपनी राजधानी तेसीफोन को बचाने के ललए एक शांलत संलध के बारे मंे सोचा। उसने साद इब्न वक़्कास को प्रस्तालवत लकया लक साद इब्न वक़्कास मुसलमानों को दजला नदी के दू सरे लकनारे की भूलम हस्तांतररत कर दे, और पहले की तरह सासालनद के पीछे दजला नदी के लवपरीत लकनारे पर द्धथित प्रदेशों को छोड़ दे। हालांलक, साद इब्न वक़्कास ने शांलत के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं लकया और लतग्रेस को दजला नदी पार करने और तेसीफोन पर कब्जे करने के ललए तैयार करना शुरू कर लदया। दो महीने के अन्तराल के बाद कलदलसय्याह में उसने पहले अग्रर्ी सेना, और लफर इस्लाम की पूरी सेना को दजला नदी पार करके तेसीफोन थिानांतररत होने का आदेश लदया। सबसे पहले, सफार के महीने, लहजरा के १६वंे वर्षण (माचण ६३७ ईस्वी) में, उसने बीस गुलेल और गोले फंे कने वाले उपकरर्ों का उपयोग करते हुए, बीख आदणशीर (सेल्ूलसया) शहर पर कब्जा कर ललया, जो दो महीने से घेराबंदी में िा, और लफर दजला नदी पार करके तेसीफोन पर हमले की तैयारी शुरू कर दी।1 तेसीफोन का शहर, जो पहले बेबीलोन साम्राज्य के समृि शहरों में से एक िा, सेल्ूकस की राजधानी, और लफर पालिणयन आकण लशड्स की राजधानी; २२७ ईस्वी मंे, आदणशीर बोबाकन के राज्यालभर्षेक के बाद, सासालनद की राजधानी बना। और अब इस राजसी शहर को साद इब्न वक़्कास की कमान के तहत इस्लाम के योिाओं द्वारा जब्त करने की तैयारी चल रही िी। एयाजलदगाडण तृतीय के आदेश पर, दजला नदी पर पुल और कु छ जहाजों को नष्ट् कर, बाकी बचे जहाजों को पूवी तट पर थिानांतररत कर लदया गया। शायद उस को लवश्वास िा लक इस से अरबी लोग लनराश हो जायंेगे और नदी को पार करने से इनकार कर दंेगें। हालााँलक, तेसीफोन शहर का राजसी दृश्य और लवशेर्ष रूप से इसके शानदार महल, इस्लाम के योिाओं को मोलहत करने लगे िे, और वे लजतनी जल्दी हो सके वहाँा पहुंचना चाहते िे। तेसीफोन के असंख्य धन और खजाने की अफवाहें इतनी लुभावनी िीं लक असीम इब्न अम्र की कमान मंे एक ६००-मजबूत अरब घुड़सवारों की टुकड़ी नदी के तट पर गई और दजला नदी को पार कर गई। उसी समय, सेना की एक अन्य टुकड़ी नव लनलमणत जहाजों के द्वारा सैन्य उपकरर्ों के माल के साि पूवी तट पर पहुाँच गई। 1 Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 98; Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 65-66. 266
सासालनद सेना को यह उम्मीद नहीं िी लक जो अरब पानी के आदी नहीं िे, वे इतनी आसानी से नदी तट को व्यावहाररक रूप से लबना लकसी समस्या के पार कर पाएं गे। सेनापलतयों के साि परामशण करने के बाद, एयाजलदगाडण तृतीय ने महसूस लकया लक शहर में रहना एवं प्रलतरोध करना बेकार है, और वह अपनी सारी धन दौलत एवं पररवार के सदस्यों के साि हुलवोन शहर मंे चला गया। अंत मंे, लहजरा के १६वंे वर्षण (माचण ६३७ ईस्वी) सफार के महीने के मध्य में, इस्लामी सेना ने रक्षाहीन तेसीफोन शहर मंे प्रवेश लकया और लसफण महल मंे लूट के रूप में तीन लाख सोने के लसक्के जब्त लकए। इस्लाम के प्रावधानों के अनुसार, साद इब्न वक़्कास ने सेनापलतयों और सैलनकों के बीच लूट के चार लहस्से को लवतररत लकया, और शेर्ष पांचवें लहस्से को खलीफा उमर इब्न खट्टब को मदीना मंे थिानांतररत कर लदया।1 साद इब्न वक़्कास और सैन्य नेता आकण खोस्रो महल में बस गए। चँूालक उन्होनं े पहले तेसीफोन लजतने बड़े शहरों को नहीं देखा िा, इसललए उन्होनं े इसका नाम मदेन रखा, जो मदीना शब्द (शहर) का एक बहुवचन रूप है, और इस तरीके से इसका अिण है \"शहरों का शहर।\" कु छ समय के ललए, साद इब्न वक़्कास ने तेसीफोन मंे आराम लकया, लूट का सामान बांटा और सेना के मामलों को लनयंलित लकया। इसके अलावा, उमर इब्न खट्टब के आदेश से, उसने कु फा (फरात नदी के पलश्चमी तट पर) और बसरा (दजला नदी के तट पर) मंे दो सैन्य लठकाने बनाए और मदीना के साि एक थिायी संचार व्यवथिा थिालपत की। जलुल और हुलव न की लडाई: इस बीच, सासालनद सैन्य नेता खुरण जोद (रुस्तम फरण ूखज़ोद के भाई), पेरोज और हमुणजोन, जलुलो शहर (सीटीसेफॉन से चालीस मील) में एकि हुए और राज्य के शेर्ष क्षेिों की रक्षा के ललए तैयारी करने लगे। साद इब्न वक़्कास ने हालशम इब्न उतबा की कमान के तहत उनके द्धखलाफ १२ (या १४) हजार योिा भेजे और काकी इब्न अमार का हमली दस्ता भी लदया।2 जलुलो की घेराबंदी कई महीनों (छह से नौ महीनों तक) तक चली, 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 232-234. 2 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 68; Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 100. 267
और इलतहासकारों के अनुसार, इस दौरान कई दजणन अरब हमले हुए। योजना और संयुि कारण वाई में तालमेल की कमी के कारर्, हुलवोन में द्धथित सेना ने जलुलो की रक्षा में भाग नहीं ललया। अंत में, आद्धखरी लड़ाई मंे, जो १८ लदनों तक चली, ईरानी सेना ने इस्लामी सेना के लनरं तर हमलों का लवरोध करने की क्षमता खो दी और रात मंे हुलवोन की ओर भाग गई। यह ६३७ ईस्वी के अंत मंे हुआ िा। इस्लामी इलतहासकारों ने जलुलो की भयंकर लड़ाई की तुलना कलदलसय्याह की लड़ाई के चौिे लदन से की, क्ोलं क इसमें मरने वालों की संख्या कम नहीं िी।1 जलुलो में अपनी सेना की हार की जानकारी लमलने पर, एयाजलदगाडण हुलवोन शहर को छोड़ कर भाग गया और जल्दबाजी में रे की ओर आगे बढा। इस्लामी सेना ने, जलूलो के कब्जे के बाद, हुलवोन पर हमला लकया, और एक भयंकर लड़ाई के बाद उस पर भी कब्जा कर ललया। इसललए मुसलमानों को ईरालनयो,ं जो लक तेसीफोन से भाग गए िे, द्वारा इन शहरों मंे लाए गए खजाने के रूप मंे भारी धनरालश लमली। मुसलमानों का खजाना, लवशेर्ष रूप से, एक लाख हज़ार घोड़ों का िा, लजसने तेजी से सवारों के साि इस्लाम की लगातार बढती सेना को मजबूती प्रदान करना संभव कर लदया।2 जलुलो और हुलवोन के कब्जे के बाद लहजरा के १७ वंे वर्षण के अंत और १८वें वर्षण की शुरुआत (६३८- ६३९ ईस्वी) मंे इस्लामी सेना ने शहरों और किों पर कब्जा कर ललया लजसमंे लतकररत, मावलसल, महरुद, दस्तकाटण, होलनलकन, कु रमानशाह, शुश और सासानीद राज्य के अन्य प्रांत शालमल िे। उसी समय, खाललद इब्न अल-वाललद की कमान के तहत सीररयाई मोचे ने सीररया और लफललस्तीन के सभी प्रांतों - दलमि, लनकोपोल, येरुशलम, लतबेररयस और कै सररया - पर कब्जा कर ललया गया और लफर वह लमस्र चला गया। हैजा का प्रक प: लवधाता के ललखे अनुसार, इस्लामी सेना की शद्धि के लवकास की अवलध के दौरान, लहजरा के १८वें वर्षण (६३९ ईस्वी) में हैजा का प्रकोप उत्पन्न हुआ जो ९ महीने (जनवरी से नवंबर तक) तक चला और इसने 1 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p.68-69; Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 100-101. 2 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 239. 268
लफललस्तीन, सीररया, इराक और पलश्चमी ईरान में हजारों सैलनकों की जान ले ली।1 संभवतः बीमारी का प्रसार इस तथ्य के कारर् हुआ िा लक अंतहीन लड़ाई के बाद छोड़ी गई कई लाशों ने नलदयो,ं नालों और कु ओं के पानी को संक्लमत कर लदया िा। बीमारी से सब से पहले मरने वालों मंे इस्लामी सेना का सवोच्च सेनापलत अबूबैद इब्न जराणह, उसका सहायक माज़ इब्न जैलबल, और उसके बाद प्रलसि सैन्य नेता यज़ीद इब्न अबुथस्यान और दजणनों अन्य सेनानायक शालमल िे। अके ले महामारी के पहले कु छ महीनों मंे, मौत ने लगभग २५ हजार मुसलमान सैलनकों (शायद उनके पररवारों के साि) के जीवन को अपने गले लगा ललया िा।2 सूखे के पररर्ामस्वरूप, लगभग सभी कब्जे वाले प्रांत अकाल की चपेट में आ गए, और मौत से मुद्धि की तलाश में हजारों लभखारी और वंलचत लोग, ६० हजार से ज्यादा सैलनक और शरर्ािी मदीना चले गए।3 जानवरों का वध शुरू हो गया, क्ोलं क, लोगों के पास खाने के ललए भोजन, गेहं और वनस्पलत तेल इत्यालद कु छ भी नहीं बचा िा। मदीना के अन्न भण्डार खली हो रहे िे। द्धथिलत को संभालने हेतु खलीफा उमर इब्न खट्टब ने खुद आटा, तेल और भोजन लवतररत लकया। यहां तक लक उसने स्वयं लोगों के ललए भोजन तैयार लकया। पतझड़ में शुरू हुई बाररश ने महामारी के खतरे को धीरे -धीरे खि कर लदया, और मदीना ने एक दुखद समय को पार कर ललया। नहावंद की लडाई और सासाश्वनद राज् के अंश्विम प्रांि ं पर श्ववजय: सीररया और लफललस्तीन में खाललद इब्न अल-वाललद की लवजय, साि ही हैजा के प्रकोप, जो लगभग एक वर्षण तक जारी रहा, ने शेर्ष सासालनद प्रांतों पर अरबों की लवजयगलत को धीमा कर लदया िा। दो साल में, एयाजलदगाडण तृतीय ने नहावंद क्षेि मंे सैलनकों को इकट्ठा करके , अरबों द्वारा कब्जा नहीं लकए गए प्रांतों में थिानांतररत कर लदया। तबरी के अनुसार, मदद मांगते हुए उसने इथफहान, खुरासान और यहाँा तक लक तुकों को पि भेजे ... पिों में उसने कहा: \"अब अरब कमजोर पड़ गए हैं, इसललए उनके साि युि में जाने के ललए तैयार हो जाओ।\"4 1 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 78-79. 2 Ibid. – p. 79. 3 Ibid. – p. 78-79. 4 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1037. 269
यह जानने के बाद लक एयाजलदगाडण तृतीय एक सेना का गठन कर रहा है, बसरा के राज्यपाल साद इब्न वक़्कास के बजाय खलीफा उमर इब्न खट्टब ने नुमान इब्न मुकरीन की कमान के तहत नहावंद मंे ३० हजार सैलनकों की मजबूत सेना और उसकी मदद के ललए अब्दुल्ला इब्न उतबा की सेना की आक्ामक टुकड़ी भेजी। नुमान इब्न मुकरीन अपनी सेना के साि करमानशाह और महदश के प्रांतों के बीच रहा, लफर इद्धथफज़ोन और कु डेलसज़न के लजलों मंे चला गया, जहााँ उसने नहावंद से तीन फारसाख (१५-२० लकमी) की दुरी पर, लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी। अनुभवी सेनापलत फे रुज़ोन की कमान में सासानीदी सेना, नहावंद से दो फारसाख की दुरी पर द्धथित वैखुदण के लकलेबंदी में डटी हुई िी।1 हालाँालक एयाजलदगाडण तृतीय की सेना संख्या के मामले में इस्लामी सेना से बहुत बड़ी िी, फे रुज़ोन ने अप्रत्यालशत गोलंदाज़ी और हमलों के साथ-साथ छोटी झड़पों को ध्यान मंे रखते हुए रक्षात्मक रणनीलत को चुना। नहावंद की लड़ाई लहजरा के २१वें वर्षण (६४२ ईस्वी) के बीच गमण वसंत के मौसम की शुरुआत के बाद (हालांलक इस तारीख को लेकर इस्लामी इलतहासकारों की राय अलग है।)2 शुरू हुई। दुश्मन के सीधे टकराव से बचने के कारर्, नूमान इब्न मुकरीन ने धोखे और चालाकी से फे रुज़ोन को युि में उकसाने का फै सला लकया, अफवाहें फै ला दी लक वह इस लनरिणक युि से िक गया है, इसके अलावा, सेना के संसाधन और घोड़ों का राशन खि हो चुके हैं। तब उसने ऐसा लदखाने की कोलशश की लक वह राजधानी जा रहा है क्ोलं क ऐसा कहते हैं लक मदीना में खलीफा मर गया िा। फे रुज़ोन ने इन झठू ी अफवाहों पर लवश्वास करते हुए लक दुश्मन ने युि के मैदान को छोड़ने का इरादा कर ललया है, उस का पीछा करने का फै सला लकया। इस के ललए, सासालनद सेना ने अपनी लकलेबंदी छोड़ दी और एक प्रलतकू ल जगह पर पहले से तैयार तैनात दुश्मन के जाल में फॅ स गई। माना जाता है लक भागी हुई मुद्धस्लम सेना वापस लौट आई और फे रुज़ोन के अग्रर्ी सैलनकों पर हमला कर लदया। इस भयंकर युि में दोनों तरफ के कई सैलनक मारे गए और एयाजलदगाडण की सेना की बची हुई टुकलड़यां हमदान भाग गई। नहावंद की खूनी लड़ाई के दौरान, इस्लामी सेना के सेनापलत नुमान इब्न मुकरीन और सासालनद सैन्य नेता फे रुज़ोन (भागने के दौरान) मारे गए। 1 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 68; Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 109. 2 Bolshakov O.G. Ibid. – p. 100; A.I. Kolesnikov. Ibid. – p. 111. 270
नहावंद की लड़ाई के बाद, ईरानी क्षेि में लगभग अप्रभालवत रास्ता इस्लामी सेना के सामने खुल गया, और ६४२-६४५ ईस्वी मंे इस्लामी सेना ने हमदान, रे , इथफहान, कोशोन, कु म, कद्धज़्वन और करमन को जीत ललया, बहुत सारी संपलि को जब्त लकया और इन शहरों पर क्षलतपूलतण का कर लगाया। नहावंद से भागकर, एयाजलदगाडण तृतीय ने पहले इस्तखार, लफर करमन, लसस्तान और आद्धखरकार बल्ख और मवण मंे शरर् ली। इसी बीच, पहली मुहरण म लहजरा के २३वें वर्षण (७ नवंबर, ६४४ ईस्वी) को खलीफा उमर इब्न खट्टब की मृत्यु एक लनलश्चत लफरुज़, जो एक ईरानी लोहार, बढई और नक़्काश िा, के द्वारा उस पर लकए गए खंजर के घाव से हुई। लफरुज़ अरबों द्वारा बंदी बना ललया गया।1 लूट के लवभाजन के दौरान, लफरुज, जो अबुलुला के नाम से जाना जाता िा, को मुगीरा इब्न शुबा द्वारा गुलाम बना ललया गया, और वह अपने माललक, जो उसे हर लदन अपनी कमाई से दो लदरहम देता िा, के आदेश से लवलभन्न प्रकार के व्यवसायों के काम करता िा। \"तबरी का इलतहास\" के अनुसार, लकसी तरह लफरुज ने उमर इब्न खट्टब के पास आकर लशकायत की: \"ओह, वफादार लोगों की हुकू मत! मेरा माललक मुझ से ऐसे असहनीय काम करवाता है जो मंै नहीं कर सकता। उसे कम करने का आदेश दंे।\" उमर इब्न खट्टब ने पूछा: \"आप क्ा करते हैं?\" उसने उिर लदया: \"मंै एक बढई, नक्काश और एक लोहार हो सकता हं।\" उमर इब्न खट्टब ने कहा: \"आपके हस्तलशल्प के ललए, दो लदरहम बहुत कम हंै। मैंने सुना है लक आप गेहं पीसने के ललए एक पवनचक्की बना सकते हैं।\" लफरुज़ ने जवाब लदया: \"हां, मैं कर सकता हं।\" लफर खलीफा ने पूछा: \"क्ा आप इस तरह की चक्की मेरे ललए बनाएं गे?\" लफरुज़ ने कहा: \"अगर मैं जीलवत रहा तो, मैं ऐसी चक्की बनाऊं गा लक पूरब और पलश्चम में हर कोई उसकी बात करे गा।\"2 इलतहासकारों का कहना है लक लफरुज खलीफा के प्रस्ताव से संतुष्ट् नहीं हुआ और अगले लदन वह अपनी छाती में एक दोधारी चाकू लछपा कर, कलित तौर पर नमाज़ के ललए, मदीना की मद्धिद मंे गया, जहां वह सामने की पंद्धि में बैठा। जब उमर इब्न खट्टब ने 1 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1075- 1076; Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p.344; O.G. Bolshakov. Ibid. – 155-156. 2 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1075. 271
नमाज़ शुरू की, “उसने अपने हािों से बनाये एक ज़हरीले खंजर से खलीफा पर कई वार लकए और तेरह मुसलमानों को भी घायल कर लदया, जो उसे रोकना चाहते िे। उनमें से सात की गंभीर चोटों से मौत हो गई। जब कई मुसलमानों में से एक ने उसके लसर पर एक रूमाल फें का, तो उसे कै द मंे ललया गया, लेलकन उसने उसी खंजर से खुद को भी मार डाला।\"1 उमर इब्न खट्टब की मौजूदगी के दौरान, दो महान साम्राज्यों - बीजाद्धिन और सासालनद - ने अपनी पूवण महानता खो दी, और इस्लाम का लवश्व प्रभाव उल्लेखनीय रूप से बढ गया। खलीफा ने इस्लाम के प्रसार की नीलत जारी रखी, मुसलमानों का एक बड़ा साम्राज्य बनाया और राज्य की राजनीलतक, आलिणक और सैन्य क्षमता को नाटकीय रूप से बढाया। उसने लवकलसत राज्यों के लसिांतों के आधार पर कायाणलय कायण, आय पर लनयंिर् और व्यय की एक प्रर्ाली थिालपत की, क्षेिों के प्रशासलनक लवभाजन, सेना का नेतृत्व, इस्लाम के प्रचार और संरक्षर्, प्रशासलनक और लनयंिर् तंि और शद्धि के अन्य तत्वों को मजबूत लकया। खलीफा उस्मान का शासनकाल और खुरासान और आमू-पार के द्धखलाफ अरब सैन्य अश्वभयान ं की शुरुआि: तबरी में उल्लेद्धखत वर्णन के अनुसार, उमर इब्न खट्टब की मृत्यु के बाद, २ मुहरण म लहजरा के २३वें वर्षण (८ नवंबर, ६४४ ईस्वी), को “मुसलामानों ने उस्मान इब्न अफान के प्रलत लनष्ठा की कसम खाई। अगले लदन वह बाहर आया और लोगों के सामने नमाज अदा की।”2 तीसरे धमी ख़लीफा उस्मान इब्न अफान, कु रै श जनजालत के उमैय्या कबीले से और इस्लाम धमण में पररवलतणत होने से पहले व्यापारी िा। उसका लपता अफ्फान अमीर कु रै लशयों मंे से एक िा और उस्मान के पाररवाररक ररश्ते पैगंबर के परदादा अब्दु लमानफ के समय से चल रहे िे। ६१० ईस्वी मंे उसने रुलकया नामक नबी की एक बेटी से शादी की, और इसललए उसे मदीना मंे मुहम्मद के सबसे करीबी लोगों में से एक माना जाता िा। लहजरा के दू सरे वर्षण में, रुलकया की मृत्यु हो गई, और नबी ने उस्मान इब्न अफान को एक और बेटी दी - उम्म 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Islam during the Caliphs of Abu Bakr and Omar. Book 1. – Dushanbe, 2005, p. 344. 2 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1077. 272
कु लसुम। इसललए, इस्लाम के इलतहासकारों में, उसको को माननीय नाम \"ज़ू-एन- नुराइन\" के तहत जाना जाता है, लजसका अिण है \"पैगंबर का दो बार दामाद।\" उस्मान इब्न अफान ने खुदीलबया की लड़ाई में मक्का के लनवालसयों के साि थिालपत संचार द्वारा एक मध्यथि की भूलमका लनभाई और कु रै श के बीच अपने सम्मान की वजह से आगे की शांलत वाताणओं के ललए रास्ता खोल लदया। उसने अपने धन और संपलि को इस्लामी सेना और हलियारों के ललए उपयोग करने मंे कोई कसर नहीं छोड़ी और तब्बुक में बीजाद्धिन के साि लड़ाई की तैयारी करते समय \"उसने एक हजार ऊं ट, पचास घोड़े और एक हज़ार सोने के दीनार पैगंबर को पेश लकये।\"1 ख़लीफा बनने के बाद, उस्मान इब्न अफान ने इस्लाम के प्रसार और ईरान के उिर और पूवण की शेर्ष भूलम पर लवजय प्राि करने की लपछली नीलत को जारी रखा। यलद एक ओर अबू बक् ने इस्लाम के लवरोलधयों को दबा लदया िा और अरब प्रायद्वीप मंे मुसलमानों की शद्धि को मजबूत लकया िा, तो, दू सरी ओर, उस्मान इब्न अफान ने अरब के बाहर इस्लाम धमण को फै लाया और दो महान लवश्व साम्राज्यो,ं बीजाद्धियम और ईरान, की भूलम को जीतना शुरू लकया। उस्मान इब्न अफान के शासनकाल के दौरान, ईरान के सबसे महत्वपूर्ण आलिणक, राजनीलतक और सांस्कृ लतक कें ि, कलदलसय्याह, नहावंद, इथफहान, रे और कई अन्य और इराक के सभी भूभाग और सासानीदी राज्य की राजधानी पर कब्जा कर ललया गया िा। इसके फलस्वरूप, महान बीजाद्धिन साम्राज्य ने अपने पूवी प्रभुत्व के क्षेिो-ं सीररया, लफललस्तीन, लमस्र और अलेक्जेंलडर या पर अपनी सिा खो दी िी। खलीफा के शासन के पहले छह वर्षों में, इस्लामी राज्य ने ईरान के शेर्ष बचे प्रदेशों और बीजाद्धिन साम्राज्य की पूवी संपलियों को अपने अधीन कर ललया, और इस्लामी साम्राज्य की सीमाओं को तीन महाद्वीपों - एलशया के क्षेि, उिरी अफ्रीका के देशों और यूरोप मंे एं डालुलसया (स्पेन) - तक फै ला लदया। उस्मान इब्न अफान की मृत्यु के बाद, ईरान के कब्जे वाले कु छ क्षेि नवगलठत इस्लामी साम्राज्य की सिा से बाहर होने के ललए तैयार होने लगे। उदाहरर् के ललए, खलीफा के शासन के पहले वर्षण मंे, अजरबैजान के कु छ प्रांतों ने, लजन्होनं े पहले एक समझौते के तहत आठ लाख लदरहम की रालश के वालर्षणक जलजया का 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 19. 273
भुगतान करने का वचन लदया िा, इसे चुकाने से इंकार कर लदया। कु फा वाललद इब्न उक़्बा के राज्यपाल की सेना, लजसका एक महत्वपूर्ण लहस्सा, साद इब्न वक़्कास की कमान के तहत िा को उसके द्धखलाफ भेजा गया, और पहले तेसीफोन और ईरान के कई प्रांतों पर लवजय प्राि की। इस्लाम की इस युि- परीक्षर् वाली सेना ने लविोलहयों को हराया और उन्हें सहमत रालश का भुगतान करने के ललए मजबूर कर लदया। अरबों द्वारा इस्तखार, करमन और लनशापुर पर लफर से लवजय प्राि करने के बाद, इस्लामी सेना ने खुरासान का रास्ता खोल ललया। उस्मान इब्न अफान के शासनकाल की शुरुआत तक, मुद्धस्लम सेना व्यावहाररक रूप से तबस्सैन और कु रै न (लकरमन के आसपास के क्षेि), लजसे सन् ६४३ ईस्वी मंे अब्दु ल्ला इब्न बुडेल द्वारा जीता गया िा, की सीमाओं से परे खोरासान की ओर नहीं बढी िी। ६४९-६५० ईस्वी के आसपास, खलीफा ने बसरा के राज्यपाल, अब्दु ल्ला इब्न ओमीर इब्न कु ररज़ु, जो उसका ररश्तेदार िा, को इस्तखार और करमन में हुए लविोह को दबाने के ललए भेजा।1 एक गमण और ऊजाणवान २५ साल की उम्र का युवक, अब्दु ल्ला इब्न ओमीर, सबसे पहले इस्तखार पहुंचा और उसने लविोलहयों को हरा कर कई पुरुर्षों और मलहला को कै दी बनाते हुए चालीस हजार लविोलहयों को मार डाला। कु छ किनों के अनुसार, इस्तखार के बचे हुए लनवासी बीस लाख लदरहम की क्षलतपूलतण देकर लवनाश से बचे।2 लफर, एयाजलदगाडण का पीछा करते हुए, अब्दु ल्ला इब्न ओमीर लनशापुर की ओर इस्तखार और करमन के रास्ते आगे लनकल गया। इस अलभयान पर, उसकी लगभग २० हजार सेना को अरब सेनापलतयो,ं आहनाफ इब्न काईस, सईद इब्न अस, यजीद अल-जुराशी, रबी इब्न लजयाद और उन की सेनाओं का साि लमला। याकू बी के अनुसार, उस्मान इब्न अफान ने अब्दु ल्ला इब्न ओमीर और सईद इब्न आसू को पि भेजे, लजसमंे उसने उन्हंे सूलचत लकया लक जो ख़ुरासान पर सबसे पहले कब्ज़ा करे गा, उसको ख़ुरासान के राज्यपाल का पद लमलेगा।3 1 Ghoibov Gh. Early campaigns of Arabs in Central Asia. – Dushanbe, 1989, p. 73. 2 Iranian history. – M., 1993, p. 124. 3 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 185. 274
अब्दु ल्ला इब्न ओमीर ने लनशापुर क्षेि में पहुंचकर, अबारशहर को घेर ललया और कई गांवों और किों पर कब्जा कर ललया िा। अबारशहर के शासकों में से एक ने अपने पद को बनाए रखने के ललए रात में शहर के फाटकों मंे से एक को खोला और अरब सेना को लकले के अंदर आने लदया। वाताण के पररर्ामस्वरूप, १० लाख लदरहम की रालश एक क्षलतपूलतण के भुगतान स्वरुप अदा करने के बदले में, शांलत का लनष्कर्षण लनकाला गया, और अरब सेनापलत के ब इब्न हैिम को ख़ुरासान का पहला राज्यपाल लनयुि लकया गया।1 इस प्रकार, ६५१ में अब्दुल्ला इब्न ओमीर ने लनशापुर के साि उसके कें ि अबारशहर के क्षेिों पर कब्जा कर ललया और या तो वाताण या लड़ाई के माध्यम से, तबासेन, जाम, तुस, मवण, अबेवाडण, लनसा, सेराक्स और हेरात क्षेि के शहरों के साि ही बुशंेड्ज़ और बैलजस के शहरों को अपने अधीन कर ललया। बलमी के अनुसार, के वल एक वर्षण मंे ६२ लाख लदरहम और बड़ी मािा में लूट का सामान मदीना भेजा गया।2 यह ध्यान लदया जाना चालहए लक खोरासन और अमु दररया के तट पर, इस्लामी सेनापलतयों ने आसानी से, कभी-कभी लबना लड़ाई के भी, अलधकांश छोटी ररयासतों और व्यद्धिगत शहरों पर इस वादे के साि कब्जा कर ललया लक उनके शासकों को धन और पदों को संरलक्षत करने के ललए क्षलतपूलतण का भुगतान करना होगा। अल-बलाज़ुरी (देशों के लवजय) और “लसस्तान का इलतहास\" के अनुसार, अरब सेनापलत रबी इब्न लज़याद ने लसस्तान में आकर, करकु ई के लनवालसयों के साि एक समझौता करके लसस्तान की राजधानी ज़ारं ग के आसपास के क्षेि मंे एक भयंकर युि लकया, लजसमें दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। ज़ारं ग की घेराबंदी के दौरान, इसके लनवालसयों ने बार-बार शहर की दीवारों को छोड़कर बहुत बहादुरी से लड़ते हुए, अरबों पर हमला लकए। जब बात वाताण और युिलवराम पर आयी, लसस्तान का शासक, रुस्तम फरण ूखज़ोद का पुि इरोन, रब्बी इब्न लज़याद के पास पहुंचा। रब्बी इब्न लज़याद को दू र से देखते हुए उसने पाया लक एक मजबूत, असभ्य व्यद्धि मुलाकात की इंतजार मंे लाशों के ढेर पर बैठा िा। उस के आकार प्रकार से हैरान हो कर, उसने कहा: “यह कहा जाता है लक अलहमणन (पारलसयों का शैतान) लदन के उजाले में लदखाई नहीं देता है। लेलकन देखो - यहाँा है वह, हमारे सामने!\" जब रब्बी इब्न लज़याद के ललए इन शब्दों का अनुवाद लकया गया, तो उसने सहजपूवणक और लापरवाही से हाँसते 1 Ghoibov Gh. Early campaigns of Arabs in Central Asia. – Dushanbe, 1989, p. 74. 2 Ibid. – p. 76. 275
हुए युिलवराम की कीमत बताई। संलध के अनुसार, रुस्तम फरण ूखज़ोद के बेटे, इरोन को एक सौ चयलनत दास, लजनके हािों मंे एक हजार स्वर्ण प्याले रखे िे, उसे योगदान स्वरूप देने पड़े, और बदले मंे उसको अपना धन और उपवास लमला।1 और ६५२ ईस्वी मंे मुरगब की ऊपरी पहुाँच मंे मव्रणद शहर की घेराबंदी के दौरान, एक अन्य अरब सेनापलत अहनाफ इब्न काज़ ने माज़णबान बज़ान के साि एक समझौता लकया, लजसके अनुसार उसे इस्लाम को अपना कर ६० हज़ार लदरहम का भुगतान करना िा और बदले में, उसके पद, संपलि और भूलम को संरलक्षत एवं खाराज़ के भुगतान से मुि करने का आश्वासन लदया गया िा।2 ख़ुरासान में सलक्य अरब लवजय के इस काल के दौरान, एयाजलदगाडण तृतीय एक दहशत मंे आ गया और आद्धखरी समय के ललए सैलनकों को इकट्ठा करने और अरबों के हमलों को रोकने के अलभप्राय से सहायता और प्रयासों की तलाश मंे ख़ुरासान और आमू-पार के शहरों के आसपास भटकने के ललए मजबूर हो गया। हालांलक, अरब सेना के हमले को रोकना पहले से ही पूरी तरह से असंभव िा। दारा तृतीय जो मैसेडोलनया के लवजेता के द्धखलाफ सेना इकट्ठा करने के ललए ख़ुरासान, बैद्धरर या और सुदद मंे एक गढ बनाना चाहता िा, नौ शताद्धब्दयों के बाद भाग्य की इच्छा से एयाजलदगाडण तृतीय के दुखद भाग्य में पररवलतणत हो गया। दारा, जैसा लक हमने दू सरी पुस्तक \"आयों से सामानीदों तक\" में उल्लेख लकया िा, की तरह एयाजलदगाडण तृतीय हमादान से रे में भाग जाने एवं कई हारों के बाद \"अपने ररश्तेदार बैद्धरर या बेसा के राज्यपाल के आदेश से, सेनापलत नबरज़ान और अचोलसया और डर ाद्धन्जयम के राज्यपाल बैररएं ट द्वारा मार लदया गया।\" जल्द ही, यह खबर लसकं दर महान तक पहुंची लक दारा तृतीय का शरीर कहीं रि और कीचड़ मंे पड़ा हुआ है। लसकं दर वहां पहुंचा और एक सैलनक से पूछा लक यह मृतक कौन है। योिा ने उिर लदया लक \"लसकं दर महान के आने से पहले, सूयोदय से सूयाणस्त तक, दुलनया के सभी लोग और देश उसे शहंशाह दारा कोडोमन कहते िे।\"3 इसी तरह, एयाजलदगाडण तृतीय, कलदलसय्याह के पतन और नहावंद के युि मंे हार के बाद, हमादान और रे से भाग कर, दस वर्षों 1 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 184. 2 Bolshakov O.G. Ibid. – p. 187-188; G. Ghoibov. Ibid. – p. 76. 3 Emomali Rahmon. Tajiks in the mirror of the history. From the Aryans to the Samanids. Book 2. – Dushanbe, 2002, p. 34. 276
तक अपने पूवणजों की भूलम पर भटकते हुए और ख़ुरासान और आमू-पार के उग्र लनवालसयों को अरबों के द्धखलाफ खड़ा करने की कोलशश करता रहा। हालांलक, इस अवलध के दौरान, जैसा लक हमने पहले ही ऊपर उल्लेख लकया है, आमू-पार और ख़ुरासान के पूवी भाग, तुकों के आक्मर् के बाद, राजनीलतक लवखंडन का अनुभव कर रहे िे, और संघर्षण के ललए एक सामान्य ध्वज के तहत इन सभी स्वतंि और अधण-स्वतंि राज्यों और ररयासतों को एकजुट करना व्यावहाररक रूप से असंभव िा। रे मंे पहुंचकर, एयाजलदगाडण तृतीय ने शरर्ािी की तरह, तबरी के अनुसार, आग के प्राचीन मंलदर में कु छ समय के ललए प्रािणना की, और लफर इथफखान, और वहााँ से लनशापुर चला गया। लनशापुर से, वह मवण मंे पहुंचा और वहां से उसने ख़ुरासान और आमू-पार के क्षेिों के शासको,ं लजनमें सुदद के इखलशद और तुकण खगन शालमल िे, को मदद के ललए अनुरोध करते हुए पि भेजा। चंूलक इस्लाम के इलतहासकार, बालाज़ुरी, याकू लब, तबरी, मद्धिसी और अन्य, एयाजलदगाडण तृतीय की मृत्यु के बारे में अलग-अलग संस्करर् देते हैं, और बाद के शोधकताणओं और इलतहासकारों की राय इस मुद्दे पर अलग-अलग है,1 हमने तबरी और लफरदौसी द्वारा रलचत “शाहनामा” के संस्करर् को चुना और इलतहास के तकण का पालन करते हुए इसे उद् धृत लकया है। तबरी के अनुसार, जब तक एयाजलदगाडण तृतीय, सुदद के इखलशद और तुकण खगन सलहत लवलभन्न क्षेिों के राज्यपालों से सहायक सैलनकों के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा िा, तब तक अरब सेनापलत अखनाफ इब्न कै स की मदद करने के ललए कु फा से अलधक से अलधक टुकलड़यां पहुंचने लगी िी। एयाजलदगाडण तृतीय को मवण छोड़ने और अपने सैलनकों के साि बल्ख जाने के ललए मजबूर होना पड़ा। जब अरब सेना भी बल्ख में आ गई, तो एयाजलदगाडण तृतीय ने अमू दररया को पार कर ललया और आमू-पार के क्षेिों मंे घूमने लगा। यहााँ, सुदद के इखलशद और तुकण खगन (तबरी के अनुसार ७ हजार लोग) द्वारा भेजे गए सुदृढीकरर् की कीमत पर, उसने अपने सैलनकों की कु ल संख्या मंे वृद्धि की और लफर से अरबों से लड़ने का इरादा रखते हुए बल्ख की तरफ 1 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 185-186; A.I. Kolesnikov. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 132-142; Ghoibov Gh. Early campaigns of Arabs in Central Asia. – Dushanbe, 1989, p. 80-84. 277
लनकल पड़ा। जब एयाजलदगाडण तृतीय बल्ख के पास पहुंचा, तो इस्लामी सेना के सेनापलतयों अहनाफ इब्न कै स और हाररस इब्न नूमान ने मवाणडण की तरफ पीछे हटना शुरू कर लदया। उनका पीछा करते हुए, एयाजलदगाडण तृतीय की एकजुट इकाइयाँा पवणत के बीच के संकु लचत मागण मंे समा गईं, लजसके शीर्षण पर अरबों ने सुलवधाजनक मुकाबला करने की द्धथिलत ले ली िी। ऐलतहालसक स्रोतों का अनुमान है लक अरब सेना का आकार २० हज़ार (कु फा के १० हज़ार लनवासी और बसरा के १० हज़ार लनवासी) िा, जबलक एयाजलदगाडण तृतीय के पास इसके दोगुने सैलनक िे। लदन की लड़ाई ने वांलछत पररर्ाम नहीं लदया, और इसललए अहनाफ ने रात में तुकों के लशलवर पर हमला करके खगन के कई करीबी ररश्तेदारों और तुकी कु लीनों के प्रलतलनलधयों का लवनाश कर लदया। इस लनदणयी शगुन को देखकर, खगन अपनी सेना के साि बल्ख में चला गया, और वहां से चीन। एयाजलदगाडण तृतीय ने मवण की तरफ पीछे हटने का फै सला ललया, तालक, वह अपने धन, शाही खजाने और घरे लू सामान को लेकर, चीन या तुकण खगन के पास चला जाए। एयाजलदगाडण तृतीय के फै सले से उसके करीलबयों में असंतोर्ष फै ल गया, क्ोलं क उन्होनं े अपनी मातृभूलम मंे रहने के ललए अरबों को सैन्य क्षलतपूलतण के रूप मंे खजाना देने का इरादा कर ललया िा, और जहां तक संभव हो सके , वे अपने जीवन और संपलि को संरलक्षत करना चाहते िे।1 तबरी के अनुसार, अजम के उल्लेखनीय लोगो,ं जो एयाजलदगाडण तृतीय के साि िे, ने कहा, “आप क्ा करना चाहते हैं?\" तब उसने कहा: \"मंै दया के ललए खगन से प्रािणना करं ूगा और तुकण स्तान मंे उसके साि रहंगा।\" उन्होनं े कहा, \"ऐसा मत कररये, हम आपके साि नहीं जायंेगे। तुकण लोग लवश्वास और लनष्ठा के कालबल नहीं हंै। वे आपको घर से बाहर लनकाल कर पर कब्जा कर लंेगे।\" एयाजलदगाडण तृतीय उनकी बात मानने को तैयार नहीं िा। तब उन्होनं े कहा: \"हम आपको अजम से खजाना लनकालने और तुकण को देने की अनुमलत नहीं दंेगे।\"2 1 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1059- 1060. 2 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1062- 1063. 278
मवण के लवर्षय में लववाद और असहमलत एक लड़ाई में समाि हो गई, और शहंशाह के बहुत सारे समिणकों को हार लमली। इसी बीच खबर आई लक हाररस इब्न नूमान की सेना मवण के पास आ रही िी, और एयाजलदगाडण तृतीय ने लकले मंे शरर् लेने का फै सला लकया। परन्तु मवण के शासक मोहुई ने, जो एयाजलदगाडण से नफरत करता िा (एयाजलदगाडण कलित तौर पर उसे उसके पद से हटाना चाहता िा), इस मुद्धिल क्षर् में उसके ललए लकले का द्वार नहीं खोला। आश्रय के लबना, एयाजलदगाडण ने दुश्मन से मौत और उत्पीड़न के लशकार होने से बचने के ललए, वहाँा से भागने का फै सला लकया और रात के अँाधेरे का लाभ उठाते हुए, मवण से दो फारसाख की दुरी पर द्धथित एक चक्की मंे शरर् ली। अके ला और भूखा, उसने रात वहीं लबताई और सुबह उस चक्की के माललक की नजर उसपर पड़ी। शानदार शाही कपड़ों को देखकर, उसने मोहुई को उसके बारे मंे सूलचत लकया। मोहुई ने चक्की माललक को घुड़सवारों के साि शहंशाह एयाजलदगाडण तृतीय को मारने और उसके मुकु ट, मुहर और कपड़े वालपस लाने का आदेश दे कर भेजा। लफरदौसी की कहानी के अनुसार, एयाजलदगाडण तृतीय को खुदोडमोह महीने के तीसरे लदन (जुलाई २२-२३, ६५१ ईस्वी)1 मार लदया गया िा। इस तरह सासालनद वंश के साि ४२५ साल के शासनकाल का भी अंत हुआ। चक्की के पास नदी से एयाजलदगाडण तृतीय के शव को लनकालते हुए, मवण के लनवासी शोक मंे डू ब गए, और ईसाई पादररयों ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए लक वह बीजाद्धिन सम्राट की बेटी का भतीजा िा, उसे एक शानदार ताबूत में रखा, और मवण के उिर में बगीचों के एक तहखाने मंे दफना लदया।2 लफरदौसी भी दफन करने के बारे में बताता है।3 तबरी के अनुसार, एयाजलदगाडण तृतीय की मृत्यु के बाद, मोहुई और सासालनदी कु लीनों के कई लोगों ने अरब सेनापलत अहनाफ इब्न कै स को शाही ख़ज़ाना दे लदया, उसके साि शांलत थिालपत की और, अपनी जान बचाकर, मदैन, फारस और अहवाज़ के पास चले गए।4 मोहुई को, लजसने चक्की माललक और 1 Firdausi. Shahnama. Vol. IX. – Dushanbe, 1991, p. 469. 2 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p.186; Kolesnikov A.I. The conquest of Iran by the Arabs. – M., 1982, p. 139-140. 3 Firdausi. Shahnama. Ibid. – p. 475. 4 Abuali Mohammad Bal’ami. Ibid. – p. 1063. 279
योिाओं को एयाजलदगाडण तृतीय को मारने का आदेश लदया िा, बैद्धरररया के राज्यपाल बेसा के सामान ही भाग्य का सामना करना पड़ा, लजसने दारा तृतीय के बजाय खुद को शहंशाह घोलर्षत लकया िा, परन्तु लसकं दर महान का गंभीर प्रलतरोध नहीं कर सका िा; उसके सालियों ने बेसा को पकड़ कर लसकं दर के हवाले कर लदया िा; और लसकं दर ने तुरं त दारा को राजिोह के जुमण मंे मारने का आदेश लदया िा। लफरदौसी की कहानी के अनुसार, मोहुई एयाजलदगाडण तृतीय के मुकु ट को सर पे सजा कर और सोने के साि कढाई की हुई उसकी शाही वेशभूर्षा पहन कर लसंहासन पर बैठा और खुद को शहंशाह घोलर्षत लकया। लेलकन लकसी ने भी उसे मान्यता नहीं दी। अरब हमले के बढते खतरे का सामना करते हुए, वह मवण को छोड़कर बुखारा मंे भागने के ललए मजबूर हो गया लेलकन वहााँ तुकों ने उसे नकार लदया। तब एक बेजान नामक क्ू र ईरानी शूरवीर ने उसे पकड़ ललया और उसकी भयानक मौत हो गई। पहले उसकी भुजाओं को उसके शरीर से अलग लकया गया, लफर उसके पैरों को, लफर उसके कानों और नाक को और अंत मंे उसके लसर को। उस ईरानी शूरवीर ने उसके तीन जवान बेटों को भी मार डाला और उनके लाशों को आग लगा दी।1 हालांलक, ६५१ ईस्वी की गलमणयों में खुरासान मंे हुई लड़ाई में सासालनद के अंलतम राजा एयाजलदगाडण तृतीय नहीं िा, भाग्य ने खलीफा उस्मान इब्न अफान का साि नहीं लदया। प्रारं भ मंे, पहले दो खलीफाओ,ं अबू बक् और उस्मान इब्न अफान, के दौरान पैगंबर के सहयोलगयों और इस्लाम के अलधकाररयों के साि सलाह मशलवरा करके राज्य के मुद्दों को हल लकया जाता िा, और कु रान की नमाज और नबी की परं परा के आधार पर धालमणक और धमणलनरपेक्ष समस्याओं को दू र लकया जाता िा। उस्मान इब्न अफान के शासन के दौरान, इस्लामी खलीफत व्यावहाररक रूप से एक लवशाल साम्राज्य बन गया, और इस्लाम के पहले अनुयायी - मुहालजर, अंसार, मुसलमान सेनापलत - संपलि, धन, भूलम और यहां तक लक पूरे प्रांतों के माललक बन गए, और धीरे -धीरे एक तपस्वी और संयमी जीवन जीने लगे। उस्मान के साि मुसलमानों के असंतोर्ष का एक मुख्य कारर् यह िा लक उसने मदीना के कें ि में एक शानदार घर बनवाया, जो अबू बक् और उमर इब्न 1 Firdausi. Shahnama. Vol. IX. – Dushanbe, 1991, p. 487-488. 280
खट्टब की तपस्वी और लवनम्र जीवन शैली के ठीक लवपरीत िा। उदाहरर् के ललए, मदीना मंे ११ घरों के माललक पैगंबर के सालियों में से एक जुबैर, ने बसरा मंे दो शानदार महल बनाए, लजनमें से एक के सामने एक बड़ा बाजार िा। इसके अलावा, खलीफा से लनकटता के कारर्, कू फा, अलेक्जेंलडर या और फु सगाट में उसके पास मकान और उपजाऊ भूलम िी, जो मुसलमानों की आँाखों से लछपी नहीं िी।1 इस प्रकार, एक दृढ इच्छाशद्धि वाले खलीफा उमर इब्न खट्टब की मृत्यु के बाद, मुसलमानों की समानता और बंधुत्व के लसिांतों का, जो इस्लाम के उज्ज्वल धमण के अलनवायण प्रावधान िे, गुि रूप से या स्पष्ट् रूप में उल्लंघन शुरू हो गया िा। आंतररक झगड़े मदीना मंे आए, लवलजत देशों की संपलि पर कब्जे के ललए संघर्षण तेज हो गया, और खलीफा की कें िीय शद्धि अब एक लवशाल साम्राज्य के प्रबंधन के कायों का सामना नहीं कर सकी। शायद इस कारर् से, पहले से ही सिर से अलधक उम्र का बुजुगण उस्मान इब्न अफान अपने ररश्तेदारों को खलीफत के प्रांतों और क्षेिों मंे महत्वपूर्ण पदों पर लनयुि करके उनके धालमणक और धमणलनरपेक्ष प्रभाव और अलधकार को संरलक्षत करना चाहता िा। खलीफत मंे लवलभन्न संप्रदायों के आंतररक टकराव तेजी से बड़े जो मुद्धस्लम समुदायों के नेताओं के आसपास मंडरा रहे िे लजन्होनं े इस्लाम के जीवन और व्यवहार में अत्यलधक लवलालसता को स्वीकार नहीं लकया िा। उसी समय, उस्मान इब्न अफान ने समुदाय और सहयोलगयों के साि परामशण लकए लबना, अपने ररश्तेदारों को लवलभन्न प्रांतों के राज्यपाल के रूप मंे लनयुि लकया, लजनमें इब्न मावणन, अबुज़र, अब्दु ल्ला इब्न ओमीर और अन्य शालमल िे। पररर्षद के सदस्यों और सहयोलगयों की आपलियों को नजरअंदाज करते हुए, उसने ररश्तेदारों और करीबी सहयोलगयों पर भरोसा करने की नीलत अपनाई। अपने शासनकाल के पहले वर्षों से, उस्मान इब्न अफान, अबु बक् और उमर इब्न खट्टब के जीवन के साधारर् और सरल तरीकों से दू र चला गया, और यह बात सामने आई लक उसने खलीफत के ख़ज़ाने से पैसा और संपलि न के वल अपने ललए, बद्धि सहयोलगयो,ं उनके ररश्तेदारो,ं कु लीनों के प्रलतलनलध को देने के ललए भी ली िी। उसने फराखलदली से अपने ररश्तेदारों और सहयोलगयों को पदों 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p.73; Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 191. 281
और लाभों के साि संपन्न लकया और कु रै शी जनजालत के सदस्य बानू उमेया के लहतों का बचाव लकया। इससे अन्य अरब जनजालतयों और मुद्धस्लम समुदायों मंे असंतोर्ष फै ल गया। इसके अलावा, इस बहाने के साि लक प्रलसि अरब सेनापलत साद इब्न वक़्कास ने कलित तौर पर खलीफत से कजण ललया िा और वालपस नहीं लौटाया िा (जैसा लक कोर्षाध्यक्ष की लशकायत मंे कहा गया िा), उस्मान इब्न अफान ने उसे कु फा के राज्यपाल को पद से हटा लदया और उसकी जगह पर अपने चाचा, अपनी माँा के भाई, वाललद इब्न उकबा को लनयुि कर लदया। वाललद इब्न उकबा ने पद सँाभालते ही, उस क्षेि के भाग्य को भगवान भरोसे छोड़ लदया, और खुद नशे और अयोग्य कमों मंे ललि हो गया, लजससे मुसलमानों में असंतोर्ष बढा और लशकायतंे हुईं। यद्यलप खलीफा उस्मान इब्न अफान ने इसके बारे में कु छ भी नहीं जानने का नाटक लकया, लेलकन प्रत्यक्षदलशणयों ने वाललद इब्न उकबा को नशे की हालत मंे पाया, और उसकी उंगली पर पहनी अंगूठी जो सरकार की मुहर िी को उतार कर उसे खलीफा के सामने सबूत के तौर पर प्रस्तुत लकया। उस्मान इब्न अफान को उसे पद से हटाने और सैद इब्न अस को राज्यपाल के रूप में लनयुि करने के ललए मजबूर होना पड़ा। कु फा की मद्धिद में पहुाँचते ही, सैद इब्न अस ने सबसे पहले वाललद इब्न उक़्बा की अवहेलना से मुरीब और आसन को साफ करने का आदेश लदया।1 उसी समय असाधारर् अरब सेनापलत साद इब्न वक़्कास को राज्यपाल के पद से हटाकर, तेसीफोन के अलधपलत और ईरानी भूलम के आधे लहस्से के माललक और खलीफा के चाचा, वाललद इब्न उक़्बा को राज्यपाल के पद पर एक भव्य प्रदशणन के साि लनयुि लकया गया, लजसने मुसलमानों के बीच लकस्से और खलबली मचा दी। इसके अलावा, उत्कृ ष्ट् सैन्य नेताओं और इस्लाम के अलधकाररयों में से एक, अम्र इब्न अल-अस, लजसने उमर इब्न खट्टब के तहत सभी लफललस्तीन, यरूशलेम और लमस्र को जीत ललया िा, को उस्मान इब्न अफान ने लमस्र के राज्यपाल के पद से बखाणस्त कर लदया, और उसके बदले अपने पालक भाई अब्दु ल्ला इब्न साद को लनयुि लकया।2 1 Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 177-181. 2 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 114; Bolshakov O.G. Ibid. – p. 159-160. 282
इसके अलावा, अबू मूसा अशरीर, जो पैगंबर के करीबी सहयोगी और कु रान के सवणश्रेष्ठ लवद्वानों मंे से एक िा, को उस्मान इब्न अफान ने बसरा के प्रबंधन से हटा लदया और उसके थिान पर अपने दिक पुि अब्दु ल्ला इब्न ओमीर को लनयुि लकया। उसी समय, पैगंबर के सबसे बुरे दुश्मनों में से एक, मारवान इब्न हाकम, उस्मान इब्न अफान के चाचा का बेटा जो अपने पूरे पररवार के साि मक्का से ताइफ भाग गया िा, को मदीना मंे वापस बुला ललया गया और उसे अपने सबसे करीबी सलाहकारों में से एक बना लदया। मारवान इब्न हाकम की बेटी से शादी करने के ललए उस्मान इब्न अफान ने अपने भावी ससुर को मुआवजे के रूप मंे उिरी अफ्रीका (ट्यूनीलशया और अिीररया) में लूटे हुए ख़ज़ाने के पांचवें लहस्से में से दो लाख दीनार पेश लकए और दुल्हन के दादा को बानो कु दैरा जनजालत के बलल वाले ऊं टों को सौपं लदया।1 तथ्य यह है लक मारवान इब्न हाकम को देश पर शासन करने के महत्वपूर्ण मामलों मंे सलाहकार बनाया गया, और नबी और पररर्षद के सदस्यों के लनकटतम सालियों को ख़लीफा द्वारा अनदेखा कर लदया गया। साि ही साि, उस्मान इब्न अफान ने पदों और लवशेर्षालधकारों को उदारतापूवणक अपने ररश्तेदारों और लनकट सहयोलगयों मंे लवतररत लकया, लजससे मुसलमान समुदाय के नेताओं में भी धीरे -धीरे आक्ोश और असंतोर्ष पैदा हो गया। मदीना के कु छ प्रमुख लनवासी अली इब्न अबुताललब के पास गए और उससे उनके और उस्मान इब्न अफान के बीच मध्यथि बनने को कहा, तालक वह तत्कालीन कु लीनों मंे से कु छ अपने लवश्वासपािों को पद से मुि कर दे और उनकी जगह इस्लाम के वास्तलवक प्रलतलनलधयों और उत्कृ ष्ट् सैन्य नेताओं को लनयुि करे । अली इब्न अबुताललब ने खलीफा को मदीना के कु लीनों और सामान्य मुसलमानों के अनुरोध से अवगत कराया, लेलकन उस्मान इब्न अफान ने अपने सालियों और ररश्तेदारों का बचाव करना शुरू कर लदया: “मेरे ररश्तेदार भी तुम्हारे हंै। उमर इब्न खट्टब ने भी अपने कु छ ररश्तेदारों पर शासन की कमान देने का भरोसा लकया िा।” अली ने उिर लदया: \"हां, वे मेरे ररश्तेदार हैं, लेलकन उनसे बेहतर और अलधक योग्य लोग हैं ... यह सच है लक उमर इब्न खट्टब ने अपने कु छ ररश्तेदारों को प्रबंधन सौपं ा िा, लेलकन वे जानकार और योग्य लोग िे। उमर इब्न खट्टब के पास शद्धि और अलधकार िा जो आपके पास नहीं है। क्ा आप नहीं जानते लक जब उमर इब्न खट्टब को सूलचत लकया गया िा लक देश 1 Said Abdurrahim Khatib. Ibid. – p. 114-116; Bolshakov O.G. Ibid. – p. 159-160. 283
के सबसे सुदू रवती क्षेि में उसके कु छ अलधकाररयों ने लकतनी बड़ी गलती की िी तो वह लकतना नाराज िा? उसने तुरं त दोर्षी व्यद्धि को अपने पास बुलाने की मांग की, उसे लगरे बान से द्धखंच कर ले गया और उसे दंलडत लकया। लेलकन आप ऐसा नहीं करते हैं। अन्यिा, मोहुई सीररया मंे अयोग्य कायण कै से कर सकता िा और कह सकता िा लक यह उस्मान का आदेश है, लबना आपसे भयभीत हुए?\"1 अली इब्न अबुताललब और उस्मान इब्न अफान के बीच हुई इस बातचीत ने सबसे पहले लमस्र, कु फा और बसरा मंे छोटे गुि समाजों का उदय लकया, लजन्होनं े भूलमगत रूप से कायण करते हुए, अपने ररश्तेदारों और करीबी लोगों से उस्मान इब्न अफान और उसके अलधकाररयों के द्धखलाफ मुसलमानों के बीच प्रचार लकया। ख़लीफा के लवरोधी समूहों के नेताओं ने अन्य शहरों के लनवालसयों को पैगंबर के आलधकाररक सालियों की ओर से फजी पि भेजे, लजसमें लविोह और इस्लाम के प्रकाश धमण की सुरक्षा का आह्वान लकया गया िा।2 जैसा लक ऊपर उल्लेख लकया गया है, उस्मान इब्न अफान के शासनकाल के दौरान, पैगंबर के कु छ सािी और इस्लामी समुदाय के नेता, खलीफा की राज्य नीलत, व्यवहार और कायों से असंतुष्ट् िे, लवशेर्ष रूप से उसके स्वािी आदेश और उसके ररश्तेदारों और सहयोलगयों को राज्यपालों और सैन्य नेताओं के पदों पर लनयुि करने के आदेश, लजनसे लवरोधाभासों और आंतररक संघर्षों का जन्म हुआ। जल्द ही, लगभग लहजरा के ३५वें वर्षण में, उस्मान इब्न अफान के लगभग एक हजार लवरोधी, हज करने और नबी के मकबरे की पूजा करने के बहाने, लमस्र, कु फा और बसरा से मदीना पहुंचे और खलीफा से मद्धिद में इस पद को छोड़ने की मांग की। उसने यह कहते हुए इस मांग को अस्वीकार कर लदया: “मंै लकसी भी अजनबी को खलीफा का पद नहीं दूंगा, जो सवणशद्धिमान द्वारा मुझे लदया गया है।”3 लविोलहयों ने उस्मान इब्न अफान के घर को घेर ललया, लजसके बाद \"लविोलहयो”ं के तेरह नेताओं का एक समूह, लजनके बीच मुहम्मद इब्न अबू बक् 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 75; Bolshakov O.G. The history of the Caliphate. Vol. II. – M., 1993, p. 79-80. 2 Ibid. – p. 79-80. 3 Ibid. – p. 90. 284
(सत्यवादी खलीफा अबू बक् का बेटा)”1 भी िा, घर में घुस गया और उसने उस्मान के इस्तीफे की मांग की। घर की घेराबंदी चालीस लदनों तक चली, और यह सब इस तथ्य के साि समाि हुआ लक १८ जूल लहजरा के ३५वें वर्षण (२० जून, ६५६ ईस्वी) को उस्मान इब्न अफान, ग्यारह साल, ग्यारह महीने और बारह लदनों के शासनकाल के बाद, \"चालीस लदनों के घरे लू कारावास और दुश्मनों की घेरे बंदी के बाद, लविोलहयों के हािों मारा गया\" और अस्सी वर्षण की आयु में उसकी मृत्यु हो गई।2 उपयुि पल को पाते हुए, लविोलहयों ने घर में तोड़फोड़ की और लूट के खजाने को जब्त कर ललया। तबरी के अनुसार, वे खलीफा का शव लेना चाहते िे और अगले लदन उसे दफनाना चाहते िे। हालांलक, लमस्र के नेता अब्दु रण हमान इब्न अब्बास ने आकर कहा: “आप इसे मुद्धस्लम कलब्रस्तान ले जायंेगे इसललए हम इस का लवरोध करते हंै, क्ोलं क वह मुद्धस्लम नहीं िा”। उसके बाद मुद्धस्लम कलब्रस्तान के बगल मंे एक यहदी कलब्रस्तान िा, जहां उन्होनं े उस्मान इब्न अफान की कब्र खोदी और दफनाया। उस जगह को बानू उमेय कलब्रस्तान कहा जाता िा।”3 उस्मान का महान कायण - कु रान की श्वलद्धखि संश्वहिा और इस श्वदव्य पश्ववत् पुस्तक के पाि के क्म का एकीकरण करना िा। यह याद लकया जाना चालहए लक कु रान के छं द, ११४ सूरों से लमलकर, अल्लाह मुहम्मद के पैगंबर को २३ साल तक जबरायल के माध्यम से भेजे गए िे। मुहम्मद के जीवन के दौरान, कु रान के उपदेश मौद्धखक रूप में अनुयालययों तक पहुँाचते िे और पैगंबर के शब्दों को याद लकया जाता िा। ऐलतहालसक परं परा के अनुसार, हालांलक कु रान के कु छ लबखरे हुए खण्डों को पैगंबर के शाद्धस्त्रयों द्वारा दजण लकया गया िा, लेलकन, उन्हें एक अलग अलभन्न पुस्तक के रूप में एकि नहीं लकया गया िा। पैगंबर की मृत्यु के बाद, भलवष्यद्विा और कु रान के पाठकों ने लनरं तर युिों और सैन्य अलभयानों मंे भाग ललया, और पलवि पुस्तक के मौद्धखक हस्तांतररत करनेवालों की संख्या में कमी आई। इस संबंध मंे, उमर इब्न खट्टब के 1 Ibid. – p. 93. 2 Ibid. – p. 94-95. 3 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1105. 285
सुझाव और सत्यवादी अबु बक् के व्यद्धिगत लनदेश पर, कु रान को पहली बार एकलित लकया गया और ज़ायेद इब्न सलबत द्वारा एक अलग पुस्तक मंे ललखा गया। पैगंबर के लप्रय सािी ज़ायेद इब्न सलबत, लजसने कु रान को अच्छी तरह से याद लकया और कभी-कभी पैगंबर के ललए ईश्वरीय संदेश के शब्दों को ललखा िा, ने अन्य सालियों के लबखरे हुए अलभलेख एकि लकए, कु रान के लवद्वानों के मौद्धखक पढने की तुलना में, उन्हंे सही लकया, संपालदत लकया, और लफर चमणपि पर कु रान का पूरा पाठ ललखा और उसे अबू बक् के घर मंे छोड़ लदया।1 जब इस्लाम का प्रसार और खलीफत का लवस्तार अबू बक्, उमर इब्न खट्टब और उस्मान इब्न अफान के तहत शुरू हुआ िा, तो इराक, ईरान, सीररया, लमस्र और अन्य देशों मंे मुसलमानों की संख्या बढने लगी िी। तदनुसार, कु रान के पठन और उसके अलग-अलग वैयद्धिक शब्दों के उच्चारर् में अंतर लदखाई देने लगा िा, लजसके कारर् कु रान के व्यावहाररक पाठन के ललए लवलभन्न पाठशालाओं (उदाहरर् के ललए, कु लफक और बसरी) का गठन लकया गया। “यह तथ्य तब उजागर हुआ जब पैगंबर का महान सािी खुज़ेबा इब्न यमन, जो लहजरा के २५वंे वर्षण या उस्मान इब्न अफान के शासन के दू सरे वर्षण मंे, अजरबैजान और सीररया में लड़ाई का नेतृत्व कर रहा िा, और जब उसके सैलनकों ने अपने आराम के दौरान कु रान को पढा, तो पता चला लक प्रत्येक जनजालत इसे अपने तरीके से पढती है। कभी-कभी इस वजह से, उनके बीच लववाद उत्पन्न होते िे, और प्रत्येक जनजालत का प्रलतलनलध कहता िा लक उसका पढना सबसे सही है। यह सब संघर्षण का कारर् बनता िा।”2 इसललए, उस्मान इब्न अफान ने ज़ायेद इब्न सलबत को कु रान की एक प्रलत सौपं ी, लजसे अबु बक् के लनदेशन में संकललत लकया गया िा, और उसे लनदेश लदया लक वह सभी मुसलमानों को सूरह, कलवताओं के एक क्म और अक्षरों के उच्चारर् के ललए एक समान प्रलक्या तैयार करे । अंत में, कु रान की एक आलधकाररक प्रलत संकललत और सस्वर पढने के संदभण मंे समान रूप से दजण की गई, और अन्य सभी प्रलतयों को अमान्य घोलर्षत लकया गया। उस्मान इब्न अफान 1 Easy interpretation. Surah “Fotiha” (Opening book) and “Baqara” (Cow). – Khujand, 2004, p. 7. 2 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 125. 286
द्वारा उठाए गए इस कदम ने कु रान को लवकृ त होने से बचाया। इलतहासकारों के अनुसार, कु रान की सभी बाद की प्रलतयां जो तीसरे खलीफा द्वारा इस्लामी क्षेिों में भेजी गई, सात आलधकाररक प्रलतयों पर आधाररत िी।ं 1 खलीफा अली इब्न अबुिाश्वलब का शासनकाल (६५६-६६१): उस्मान इब्न अफान की हत्या के बाद, चौिे और अंलतम खलीफा, अली इब्न अबुताललब, खलीफत का शासक बना, जो अपने पैतृक और मातृ दोनों पक्षों से कु रै शी और बानू हालशम कबीले से आता िा। वह पैगंबर के चाचा का बेटा और दामाद िा, अिाणत, वह उसकी बेटी फालतमा का पलत और पैगंबर के पुरुर्ष वंशज हसन और हुसैन का लपता िा। अली इब्न अबुताललब स्वभाव से बहादुर, बुद्धिमान, दृढ इच्छाशद्धि और एक सम्मानजनक स्वभाव का व्यद्धि िा। उसे एक संयलमत जीवन शैली पसंद िी। मुहम्मद के जीवनकाल मंे भी, उसे बार-बार नबी की प्रशंसा लमली और उसे उनके सबसे वफादार सालियों मंे से एक माना गया, लजनसे उन्होनं े स्वगण का वादा लकया िा। पैगंबर के लगभग सभी सैन्य अलभयानों में, उसने लहम्मत और साहस का प्रदशणन लकया। बि, उहुद और खैबर की लड़ाई मंे उसे कु ल १६ घाव लमले िे। जब उस्मान इब्न अफान की हत्या हुई, तो गलफक इब्न हरबी ओलमरी के नेतृत्व मंे लविोलहयों ने मदीना मंे सिा हालसल कर ली िी, लजससे इस्लामी राज्य के कंे ि में मनमानी पैदा हो गई, और लजसका प्रलतरोध करने की लहम्मत लकसी मंे नहीं िी। इस्लामी समुदाय, मदीना और अन्य मुद्धस्लम क्षेिों के , दो समूहों में लवभालजत हो गए िे - उस्मान इब्न अफान के लवरोधी और उसके समिणक।2 उसके समिणकों में सीररया, लफललस्तीन, जॉडणन और लेबनान की समृि भूलम का एक प्रभावशाली राज्यपाल, मुलवया इब्न अबुसुफ्यान, िा, जो अपने लविोलहयों और हत्यारों से बदला लेना चाहता िा। तबरी के अनुसार, सबसे पहले, जो अली इब्न अबुताललब के पास आये और उसकी लनष्ठा की कसम खाई, वो लमस्र के लनवासी िे। हालांलक, उन्होनं े जल्दबाजी न करने का फै सला ललया और इस मामले को पररर्षद के लववेक पर 1 Ibid. – p. 125-126. 2 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 158; Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1108. 287
छोड़ लदया।1 इसके बाद, कु फा और बसरा के लविोलहयों द्वारा लमलस्रयों के प्रस्ताव का समिणन लकया गया। इस कलठन और लजम्मेदार क्षर् मंे, मदीना के कु छ सािी और नेक लोग अली के पास उसके प्रलत लनष्ठा की शपि लेने और सरकार की बागडोर उसे सौपं ने आए। हालााँलक, अली आने वाली मुद्धिलों से अच्छी तरह वालकफ िा, और सोच रहा िा लक क्ा उसे सहमत हो जाना चालहए। मुसलमानों ने उसे यह लवश्वास करते हुए अके ला नहीं छोड़ा, लक खलीफत पर शासन करने के ललए अली इब्न अबुताललब से ज्यादा योग्य और कोई नहीं है। अंत में, पैगंबर के सालियों और आम मुसलमानों के आग्रह पर, २४ जून, ६५६ ईस्वी को, उसने खलीफा के कतणव्यों को संभाला, और “शुक्वार २५ की सुबह धुल लहजजाह, लहजरा के ३५वें वर्षण, उस्मान की मौत के एक हफ्ते बाद, पलवि मदीना मंे पैगंबर की पलवि मद्धिद मंे उनकी कब्र के बगल में शपि ली।\"2 धालमणक लनयमों के अनुसार, अली इब्न अबुतललब ने मदीना मद्धिद मंे मुसलमानों से धमोपदेश के साि बात की, उन्हंे गररमापूर्ण नैलतकता, अच्छी लनयत और लवचार, सामान्य शांलत और सुरक्षा के संरक्षर्, ईश्वर की आज्ञा मानने और इस्लाम के उज्ज्वल धमण का पालन करने का आग्रह लकया। इस मुद्धिल क्षर् मंे, उस्मान इब्न अफान की हत्या के ठीक एक हफ्ते बाद, हत्या लकये गए खलीफा के ररश्तेदार अली के पास आए, और मांग की लक अली शररया कानून के अनुसार उस्मान के हत्यारों को सजा दे। स्वभाव से, सतकण और लववेकपूर्ण, अली ने अशांलत और उिल-पुिल की ऐसी नाजुक द्धथिलत मंे ऐसी कारण वाई करना संभव नहीं माना, जो लवरोधाभासों को और बढा सकती िी। लेलकन, जैसा लक यह हो सकता है, खलीफत को एकजुट करने, मुसलमानों के लवरोधाभासों और असंतोर्ष को खि करने और अपने पदों से अनुपयुि राज्यपालों को हटाने की आवश्यकता ने चौिे खलीफा को ठोस उपाय करने को मजबूर लकया। तबरी के अनुसार, \"सबसे पहले, अली ने अब्दु ल्ला इब्न अब्बास को सीररया भेजकर मुलवयाह को कब्ज़े में लेने के ललए भेजा।\"3 जब अब्दु ल्ला ने मुलवयाह के लविोह के खतरे के बारे मंे चेतावनी दी और जोर देकर कहा लक \"सभी उमय्या बानू सीररया मंे इकट्ठा हुए हंै और उस्मान के खून के ललए आपको दोर्षी ठहराएं गे,\" 1 Abuali Mohammad Bal’ami. Ibid. – p. 1107. 2 Said Abdurrahim Khatib. Ibid. – p. 154. 3 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1109. 288
अली ने जवाब लदया, \"मैं अब मुलवयाह पर सीररया का शासन नहीं रहने दूंगा। मेरे और मुलवयाह के बीच का लववाद तलवार से ही सुलझेगा।”1 यह कहा जाना चालहए लक उस्मान इब्न अबुसुफ्यान की मृत्यु के बाद, महान प्रभाव रखने वाले मुलवयाह इब्न अबुसुफ्यान को बानू उमैया कबीले का वास्तलवक नेता माना जाता िा। उसने मक्का लवजय के बाद लहजरा के आठवंे वर्षण में इस्लाम स्वीकार लकया िा और कु छ समय के ललए वह पैगंबर का सलचव रहा िा। ६३४ ईस्वी में, यज़ीद इब्न अबुसुफ्यान की टुकलड़यों के लहस्से के रूप मंे, उसने लफललस्तीन की लवजय मंे भाग ललया, और लफर तेसीफोन के ललए लड़ाई में साहस और वीरता लदखाई। अपने भाई यज़ीद की मृत्यु के बाद, उमर इब्न खट्टब के शासनकाल के दौरान, वह सीररया और लफललस्तीन का शासक बना। उस्मान इब्न अफान के तहत, उसने साइप्रस के द्वीप पर लवजय प्राि की, बड़ी लूट को जब्त लकया और सात हजार सोने के दीनार और एक थिायी द्धखराज की रालश में जलजया अदा करने की शतण पर द्वीप छोड़ लदया। जैसा लक हमने पहले ही उल्लेख लकया है, उस्मान इब्न अबुसुफ्यान के शासनकाल के दौरान, अपने पद का दुरुपयोग करते हुए, उसने अपने ररश्तेदारों को मनमानी करने की अनुमलत दी, लजससे कु फा और बसरा के लनवालसयों में असंतोर्ष पैदा हो गया िा। जब अली इब्न अबुताललब खलीफा बना, तो उसने सीररया की सरकार से मुलवयाह को हटा लदया और उसके थिान पर सालहल इब्न हुनन को लनयुि लकया। हालांलक, मुलवयाह ने खलीफा के आदेशों की अवहेलना की, अपनी शद्धियों को नहीं छोड़ा, और खलीफा द्वारा लनयुि राज्यपाल को मदीना लौटने के ललए मजबूर लकया। खलीफा ने मुलवयाह को दू त द्वारा एक पि भेजा, लजसमें उसने खलीफत के प्रलत लनष्ठा और समपणर् की शपि मांगी। मुलवयाह ने उस दू त को लहरासत मंे ललया और अली इब्न अबुताललब के शासन के तीसरे महीने मंे, कु बैसा नामक एक दू त के हािों खलीफा को एक पि सौपं ा, लजस मंे ललखा िा: \"मुलवयाह से - अली को।\" खलीफा ने संदेशवाहक से कहा लक पि मंे कु छ भी नहीं ललखा और पूछा लक क्ा उसे शब्दों मंे कु छ कहना है। संदेशवाहक शलमंिदा िा। उसने कहा: “सीररया में हर लकसी ने मांग की है लक आप उस्मान इब्न अबुसुफ्यान के खून का जवाब दें। मद्धिद में हर लदन एक लाख लोग आते हंै और उसका शोक मनाते हैं।”2 1 Ibid. – p. 1109. 2 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1111. 289
यह जानकर लक मुलवयाह के कई समिणकों ने दलमि की मद्धिद में उस्मान की खून से लिपि कमीज़ टांग रखी िी और वे शहीद ख़लीफा (उस्मान इब्न अबुसुफ्यान) के रि के ललए प्रलतशोध की माँाग करते हुए, चौिे ख़लीफा के द्धखलाफ लविोह करने का आह्वान करते िे,1 अली इब्न अबुताललब ने सैन्य कारण वाई करने का फै सला ललया। मुलवयाह ने न के वल खलीफत के प्रलत लनष्ठा की शपि लेने से इनकार लकया िा, बद्धि, इसके लवपरीत, खुद को उस्मान इब्न अबुसुफ्यान की मौत के बाद इस्लाम का असली खलीफा घोलर्षत लकया, और अपने अनुयालययों को शपि लदलाई। तबरी के अनुसार, \"तब खबर आई लक मुलवयाह सीररया मंे शपि ग्रहर् कर चुका है, अली पर उस्मान के खून का आरोप लगाया गया है और उसने खुद को इमाम घोलर्षत लकया है।\"2 बसरा में कायवक्म और \"ऊं ट की लडाई\": अली इब्न अबुताललब मदीना मंे बहुत मुद्धिल द्धथिलत में िा। खलीफत के पतन के खतरे को देखते हुए, वह सीररया पर माचण करने के ललए एक सेना बनाने में व्यस्त िा। और उसी समय उसे पता चला लक उसके कु छ लवरोलधयों ने मक्का में लविोह कर लदया िा और तल्हा और जुबैर के नेतृत्व में बसरा की लदशा में चले गए िे, साि ही उनके साि अबु बक् की बेटी और पैगंबर की पत्नी आयशा भी िी। लविोलहयों ने, उस्मान इब्न अबुसुफ्यान के खून का बदला लेने के ललए, लहजरा के ३६वें वर्षण (अरू बर ६५६ ईस्वी) में रबी-अस-सानी के महीने की शुरुआत मंे मक्का छोड़ लदया और जल्दी से बसरा की ओर बढे।3 तबरी के अनुसार, जब आयशा के साि लविोलहयों ने मदीना से रुख लकया, तो उनकी संख्या एक हजार िी, और जब वे बसरा पहुंचे, तो \"तीन हजार लोग उनके साि इकट्ठा हो गए िे।\"4 इस अलभयान में, आयशा \"अस्कर नाम के एक ऊं ट पर\"5 बैठी िी, और इसललए कु छ इलतहासकारों ने बाद की घटनाओं को \"ऊं ट की लड़ाई\" का नाम लदया। 1 Ibid. – p. 173. 2 Ibid. – p. 1131. 3 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 180; A. Muller. History of Islam. Book 1. – M., 2004, p. 440. 4 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1113. 5 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1113. 290
लविोही बसरा से कु छ दू री पर द्धथित लमरबाद नामक मैदान मंे रुके और उनकी संख्या लगातार इस शहर के लनवालसयो,ं जो उस्मान के खून का बदला लेने के ललए उत्सुक िे, की भावनाओं के कारर् बढ रही िी। खलीफा अली इब्न अबुताललब द्वारा लनयुि बसरा का राज्यपाल उस्मान इब्न हुनयफ उन पर हमला करने के ललए सेना इकट्ठा कर रहा िा। तबरी के अनुसार, \"बसरा के लनवालसयों को दो भागों मंे लवभालजत लकया गया िा: आधा - उस्मान इब्न हुनयफ के साि, और दू सरा - आयशा के साि ... लफर बानू वंश का एक युवक साद वहां आया और उसने कहा: \"या तो तलहा या ज़ुबैर। आप पैगंबर के लशष्य और सहायक िे और उनसे बातें करते िे। लेलकन उस के बाद आपने कु छ भी अच्छा नहीं लकया।” लकसी ने जवाब नहीं लदया - न तो तलहा, न जुबैर। लेलकन तभी उस्मान हुनयफ की सेना का हाकम इब्न जाबाल बाहर आया और आयशा के सैलनकों पर हमला कर लदया। लड़ाई शुरू हुई। दोनों तरफ से लोगों ने छतों से एक-दू सरे पर पथर फंे के । वे पूरे लदन रात तक लड़ते रहे, और दोनों तरफ से कई लोग मारे गए।”1 एक रात के छापे के दौरान, तलहा और ज़ुबैर उस्मान इब्न हुनयफ के महल के दरवाज़ों की तरफ बढे, चालीस पहरे दारों को अचर्चेत अवथिा मंे पकड़ा, और खलीफा के राज्यपाल के बाल, दाढी और भौहं ों को खीचं ते हुए, बसरा से बाहर लनकाल लदया। \"ऊं ट की लड़ाई\" के पररर्ामस्वरूप, लजसने संवाद और लववादों को जन्म लदया, बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए। इस घटना से क्ोलधत होकर, अली इब्न अबुताललब लहजरा के ३६वंे वर्षण (अरू बर ६५६ ईस्वी) के अंत रबी-ए-सानी के महीने के अंत मंे बसरा की ओर बढा। सिा के ललए एक तीव्र संघर्षण ने मुसलमानों को अली के समिणकों और लवरोलधयों में लवभालजत कर लदया। उसके समिणकों का मानना िा लक पैगंबर के साि उसकी ररश्तेदारी के कारर् उसे ख़लीफा की पदवी के साि लवशेर्ष अलधकार लमले िे, उसके पास पैगंबर की कृ पा द्वारा प्रदान लकये गए लवशेर्ष गुर् और असाधारर् क्षमताएं िी। बाद मंे, अली के अनुयालययों ने यह भी प्रचार लकया लक एक लदव्य प्रकाश ने उस को आशीवाणद लदया िा। उनके अनुसार, \"मुहम्मद का प्रकाश\" कलित 1 Hazrati M., Saidiyon I. Islam: direction, madhab and its groups. – Dushanbe, 1999, p. 171. 291
रूप से आदम के समय मंे उत्पन्न हुआ िा और ऐसा लगता है, भलवष्यद्विाओं के अनुक्म के माध्यम से \"मोहम्मद का प्रकाश\" पैगंबर मुहम्मद के दादा अब्दु लमुतलीब के उिरालधकार से हस्तांतररत लकया गया िा। तब यह प्रकाश दो भागों मंे लवभालजत हो गया और मोहम्मद के लपता अब्दु ल्ला और अली के लपता अबुतालीब को दे लदया गया। उनसे लदव्य प्रकाश उनके पुिों - मोहम्मद और अली को हस्तांतररत लकया गया। इसललए, मुहम्मद के बाद अली इब्न अबुताललब, एक इमाम के रूप मंे, इस्लाम धमण का नेता और मुद्धस्लम समुदाय के राजनीलतक नेता बनने का लवशेर्ष अलधकार रखता िा। यह इस्लाम की मुख्य धाराओं मंे से एक की शुरुआत िी - लशयावाद। हमारी राय मंे, सुन्नीवाद और लशयावाद को सटीक रूप से धाराओं मंे पुकारना अलधक सही है, चंूलक ये दोनों शाखाएं इस्लामी लशक्षर् के मूलभूत प्रावधानों को पररभालर्षत करती हंै। अरबी शब्द \"लशया\" का अिण है दोस्त, मददगार, लकसी का अनुयायी - एक शब्द मंे, लकसी की मदद करने वाले लोगों का समूह। अली इब्न अबुताललब ने इस शब्द से अपने अनुयालययों को सम्बोलधत लकया, लजनकी संख्या शुरुआती लदनों में ज़्यादा नहीं िी। अली के साहस और सद् गुर्ों का वर्णन करते हुए, उसके अनुयालययों ने उसे इस्लाम धमण और समुदाय का नेता कहा िा। यह बात इतनी बढ गई लक उस्मान इब्न अबुसुफ्यान के शासनकाल में, अबूज़र लग़फारी, लमक्कड इब्न असवद और सलमान अल-फारसी सलहत कु छ अली प्रशंसकों ने भी खलीफा की लनंदा की और कहा लक वे पैगंबर के बाद, अली इब्न अबुताललब को खलीफा के पद का सबसे योग्य उम्मीदवार मानते िे। इस प्रकार, राज्यपाल की उपद्धथिलत मंे, बगदाद की धालमणक पररर्षद् की मद्धिद में अबुजर लगफारी ने, \"मुलवयाह को एक लालची और अन्यायी शासक कहा और अली को मुहम्मद का उिरालधकारी घोलर्षत लकया। बगदाद के राज्यपाल ने उसे मदीना भेजा, लेलकन उसने अपने प्रचार को नहीं रोका, और अलधक से अलधक अनुयालययों को अपने आस-पास इकट्ठा लकया।”1 अली के अनुयायी उसके गुर्ों को उजागर करने के ललए इतने जोश मंे िे लक वे अपने अलत उत्साही समिणकों मंे से एक - अब्दुल्ला इब्न सबा को हटाने के ललए भी मजबूर हो गए। कु छ इलतहासकारों का दावा है लक वह खुद जन्म से यहदी िा, यहदी धमण और ईसाई धमण की लशक्षाओं मंे पारं गत िा, लफर इस्लाम 1 Ibid. – p. 173-174. 292
धमण मंे पररवलतणत हो गया और लवशेर्ष रूप से उस्मान के शासनकाल में अली के समिणक के रूप मंे सलक्य रहा। इमामत को लशया लशक्षर् की मुख्य धुरी के रूप मंे देखते हुए, उसने उपदेश लदया लक इमाम पैगंबर के वैध उिरालधकारी हंै और मुसलमानों को ईश्वर के मागण पर चलने और पृथ्वी पर न्याय थिालपत करने की लजम्मेदारी रखते हैं। उसने आगे कहा लक इमाम ईश्वर की कृ पा का उपयोग करता है, और छोटे मोटे पापों से मुि रहता है, क्ोलं क लदव्य प्रकाश उस पर उतरता है। इसललए, उसने खलीफा उस्मान की धालमणक और सामालजक नीलतयों पर संदेह जताया और मुसलमानों के मन मंे भ्रम पैदा लकया। “अपनी शुरुआत के समय, लशयावाद ने बहुत सारी सुन्नी परं पराओं को अपनाया। यहाँा तक लक संप्रदायों की मुख्य शाखाओं में लवभाजन होने के बाद भी, धमण के लसिांतों के संदभण मंे यह धमी खलीफाओं के काल के दौरान इस्लाम से बहुत समानता रखता िा। लशयाओं के एक समूह ने अबू बक्, उमर इब्न खट्टब और उस्मान इब्न अबुसुफ्यान की पहचान की, दू सरे ने खलीफा उस्मान के शासन को नकार लदया और तीसरे ने अली इब्न अबुताललब का समिणन लकया।\" इस्लामी धमणशाद्धस्त्रयों पर सुन्नी और लशया लशक्षाओं के बीच समानता और मतभेदों का न्याय करने के लवर्षय को छोड़कर, हमें इस तथ्य पर वापस लौटना चालहए लक आयशा ने पैगम्बर के सालियों तलहा और ज़ुबैर के साि, बसरा पर कब्जा कर ललया और अली द्वारा लनयुि राज्यपाल को शहर से लनष्कालसत कर लदया। रास्ते मंे, अली ने, कु फा मंे अपने अनुयालययों के सहयोग से अपनी सेना को लफर से सुदृढ लकया, जो लक लकं वदंती के अनुसार, बारह हजार की संख्या मंे िी, और, बसरा के पास जाकर, शांलत और सद्भाव के मागण को पसंद करते हुए, बातचीत का रास्ता अपनाया। हालांलक, दुश्मनों के अचानक रात के हमले के कारर्, उसे हलियार उठाना पड़ा। इसललए नवंबर ६५६ के अंत मंे, अली की लगभग बीस हज़ार टुकलड़यों ने एक भीर्षर् युि में प्रवेश लकया। बसरा के आसपास के इलाके मंे हुरयब की लड़ाई इतनी भयंकर िी लक आयशा की रक्षा के ललए उसके रक्षकों को उसके ऊं ट के आसपास इकट्ठा करने पड़ा। इस लड़ाई मंे जो लक \"ऊं ट की लड़ाई\" के नाम से जानी जाती है, तल्हा इब्न उबैदुल्लाह और ज़ुबैर इब्न अवाम मारे गए, और अली इब्न अबुताललब ने 293
लविोलहयों को हराते हुए, १४ जुमादा-ए-सानी लहजरा के ३६वें वर्षण (७ जनवरी, ६५७ ईस्वी) में बसरा मंे प्रवेश लकया।1 श्वसश्वफन की लडाई और खाररजीय ं का इश्विहास: बसरा पर कब्जा करने के बाद, अली ने अब्दु ल्ला इब्न अब्बास को वहां का शासक लनयुि लकया, और वह खुद कु फा चला गया। चंूलक कु फा में उसके बहुत सारे समिणक िे, इसललए उसने खलीफत की राजधानी को मदीना से कु फा (इराक) में थिानांतररत कर लदया। वह रहबा नामक कु फा के एक खंड के घरों मंे से एक घर में रहा, जहााँ उसने कु छ समय के ललए लवश्राम लकया। लफर उसने सीररया मंे मुलवयाह के पास एक दू त भेजा, तालक वह लवरोधाभासों को न बढाए, उसे खलीफा के रूप में पहचाने और उसके प्रलत लनष्ठा की कसम खाए। मुलवयाह इब्न अबुसुफयान ने अली के अनुरोध को अस्वीकार कर लदया और लफर से उस्मान के हत्यारों के द्धखलाफ बदला लेने की मांग की। तबरी के अनुसार, \"हर शुक्वार, जब मुलवयाह धमोपदेश देता, तो अपनी आस्तीन पर एक खून से रं गी कमीज़ और कटा हुआ बाजू लटका देता और लोगों को प्रेररत करता। अंत में, सीररया के तीस हज़ार से अलधक लनवालसयों ने उस्मान इब्न अबुसुफ्यान के खून का बदला लेने के ललए शपि ली। उन्होनं े उसकी हत्या के ललए अली इब्न अबुताललब को दोर्षी ठहराया और घोर्षर्ा की: \"वह उस्मान के हत्यारों को अपने साि रखता और द्धखलाता लपलाता है।\"2 अली ने सीररया में एक अलभयान शुरू करने का फै सला ललया और, कु फा के आसपास के क्षेि नौद्धखला के क्षेि मंे रुक कर सेना का गठन करना शुरू कर लदया। जल्द ही, उसकी सेना की संख्या ९० हजार तक पहुंच गई, और धू- एल-लहदजाह के महीने की शुरुआत में लहजरा के ३६वंे वर्षण (६५७ ईस्वी मई के अंत मंे) मंे उसने फरात नदी के लकनारे वह लसलफन शहर की ओर बढने लगा। उधर मुलवयाह अपनी ८५ हजार की मजबूत सेना के साि उसकी ओर बढ रहा िा। लसलफन की लड़ाई फरात नदी के तट पर हुई और शुरुआती लदनों में - १ से ७ सफर लहजरा के ३७वें वर्षण (जुलाई १९-२५, ६५७ ईस्वी) तक एक के 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 214; Islam: encyclopaedic dictionary. – M., 1991, p. 18. 2 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1131. 294
बाद एक लड़ाई के रूप में चली। आठवें लदन, लड़ाई ने एक भयंकर युि का रूप ले ललया, और लफर मुलवयाह की हार स्पष्ट् हो गई। उसके पास लकसी भी तरह की सीधी टक्कर लेने की ताकत नहीं बची िी, इसललए उसने अपने अनुभवी सेनापलत अम्र इब्न अल-अस की टुकलड़यों के साि लमलकर भागने की कोलशश की। उस ने कु रान के उपदेश वलर्णत करती हुई पलियां मुलवयाह के अंग रक्षक सैलनकों की पोशाकों पर लटका दी और पलवि पुस्तक के लसिांतो,ं जो कहते हैं लक लवरोधी दलों के बीच मध्यथिता के अवसर बने रहने चालहए, का पालन करने के ललए अली के सैलनकों को आवाहन लकया।1 तबरी के अनुसार, “मुलवयाह ने कागज़ के मुट्ठे को एक भाले की नोक पर लटका देने का आदेश लदया और सीररया और इराक के सभी मुसलमानों से अपील की लक वे खुदा की लकताब पर भरोसा करंे ।” इरालकयों ने कहा, “हम सहमत हंै।\" और अली आगे बढा और उसने कहा: “हे लोगो,ं तुम हमारे धमण के ललए ऐसा नहीं कर रहे हो।”2 अली इब्न अबुताललब के अलधकांश योिाओं ने मुलवयाह की इस चाल के आगे घुटने टेक लदए और खुदा की लकताब और नबी की परं पराओं के अनुसार लवरोधाभासों को हल करने के प्रस्ताव का समिणन लकया। तब अली की सेना दो लहस्सों में बाँट गई। एक समूह इन शब्दों के साि अली के पास आया: “वे हमें खुदा की पुस्तक के ललए बुला रहे हंै, और हमें तलवारों के साि नहीं जाना चालहए और उन्हंे युि और रिपात के ललए प्रोत्सालहत नहीं करना चालहए। यलद आप खुदा की पुस्तक का पालन नहीं करते हंै, तो हम आपको मार डालेंगे, क्ोलं क हमने उस्मान को भी मार लदया िा; उसने भी खुदा की पुस्तक के अनुसार कायण नहीं लकया िा।\"3 अशास इब्न कै सा के अनुरोध पर, अली को सुलह की ओर झुकाव और कु रान पर आधाररत समस्या के समाधान के ललए सहमत होना पड़ा। सीररयाई सेना ने मध्यथि के रूप मंे अम्र इब्न अल-असद के नाम की पेशकश की, और इराक की सेना और अली के समिणकों ने अबुमुसा अशारी की। तब एक समझौते पर हस्ताक्षर लकए गए और एक अनुबंध लकया गया लक अली और मुलवयाह के पास अपने पररवेश मंे चार सौ से अलधक सैलनक नहीं होने 1 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 224. 2 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1137. 3 Ibid. – p. 1138. 295
चालहए, और मध्यथि (अबुमुसा अशारी और अम्र इब्न अल-अस) मुद्दे के समाधान के ललए कु रान और पैगंबर की परं परा की ओर रुख करें गे।1 युिलवराम के बाद, सेनाएँा लततर-लबतर हो गईं और अपने मृतकों को दफनाने लगी।ं इब्न कलसर के अनुसार, दोनों पक्षों मंे मरने वालों की कु ल संख्या सिर हजार िी, और एक अन्य लववरर्ी के अनुसार - नब्बे हजार लोगों की मृत्यु हुई िी, इसललए हर पचास मारे गए लोगों के ललए, एक आम कब्र खोदी गयी।2 इस दुखद पररर्ाम ने लसलफन की लड़ाई को समाि कर लदया, और मुसलमानों के दो बड़े समूहों के बीच एक गृह युि को समाि कर लदया। हालााँलक, इस लनर्ाणयक क्षर् में, अली इब्न अबुताललब के समिणकों के एक अन्य समूह ने उसके सुलहनीय व्यवहार से असंतुष्ट् होकर, मध्यथिता की अदालत का लवरोध लकया और अपना किन बयान स्पष्ट् लकया: \"अल्लाह के न्यायालय के अलावा और कोई उपाय नहीं है!\" १२ लोगों का यह समूह अली के अनुयालययों से अलग हो गया और कु फा के पास हुरै रा शहर में बस गया। इस समूह को इलतहास मंे ख़ाररज के नाम से जाना जाता है, लजसने अली की सुलह नीलत से असहमलत के संके त के रूप मंे, अपनी सेना के पदों को (अरबी मंे - \"खारजा\") त्याग लदया िा। उन्होनं े तकण लदया लक अल्लाह द्वारा मुलवयाह की सजा पहले ही पाररत कर दी गई िी। हालांलक, अली ने भगवान के फै सले के लवपरीत, मध्यथिों अबुमुसा और अम्र इब्न अल-अस के मध्यथिता पर लनर्णय लदया, \"भ्रष्ट् कौन हंै और भगवान के फै सले को नहीं जानते हंै।”3 सेना में लवभाजन और अपने समिणकों के दो गुटों मंे बंटने से लचंलतत, अली इब्न अबुताललब ख़ाररजीयों के पास गया और उनके दावों को सुनने के बाद उनको समझाने की कोलशश की। हालााँलक, वह उन्हंे संयम से जीतने और अपने पक्ष मंे लाने में असमिण रहा। ख़ाररजीयों ने शबीस इब्न रबी और अब्दु ल्ला इब्न 1 Abuali Mohammad Bal’ami. Ibid. Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 228; Muller A. History of Islam. Book 1. – M., 2004, p. 455-456. 2 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 228-229 3 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1140; Islam: encyclopaedic dictionary. – M., 1991, p. 18. 296
वहाबा को अपने नेताओं के रूप में चुना और बग़दाद और वालसत के बीच द्धथित नहावंद शहर में इकट्ठा हुए। ख़ाररजी आंदोलन अलनवायण रूप से खलीफत की सामालजक और राजनीलतक व्यवथिा के द्धखलाफ एक लवरोध िा और अरब समाज के भीतर लवरोधाभासों के पररर्ामस्वरूप उत्पन्न हुआ िा। अली और मुलवयाह का लवरोध करने के बाद, ख़ाररजीयों ने अपने लोगों में असंतुष्ट्ों को एकजुट लकया और एक शद्धिशाली बल, वास्तव में खतरनाक आंदोलन, मंे पररवलतणत कर लदया। इस बीच, मध्यथिों अबुमुसा अशारी और अम्र इब्न अल-अस ने, लसलफन की लड़ाई के छह महीने बाद, बातचीत और बैठकों के बाद लनष्कर्षण लनकाला लक अली और मुलवयाह दोनों को उनके पदों से हटा लदया जाना चालहए। दू सरे शब्दों मंे, अली इब्न अबुताललब को खलीफा के पद से और मुलवयाह इब्न अबुसुफ्यान को सीररया के शासक के रूप मंे अपने पद से हटा लदया जाना चालहए। हालांलक, एक नए खलीफा के चुनाव के दौरान, न्यायाधीशों के बीच एक लववाद पैदा हो गया, और यह बात सामने आई लक, तबरी के अनुसार, \"अबुमुसा और अम्र ने एक दू सरे को पकड़ ललया और हािापाई शुरू कर दी िी।\"1 चंूलक वे एक नए खलीफा की लनयुद्धि पर समझौते तक नहीं पहुंच सके , और उनके बीच लववाद अलधक से अलधक बढ गया, दोनों पक्ष अपने नेताओं - अली और मुलवयाह - के समिणन की बात करते हुए एक दुसरे के सामने डट गए। मध्यथिों के बीच काफी बहस के बाद, सीररया के लोगों ने मुलवयाह को वफादार शासक कहा, और इस कारर् अली के समिणकों ने पांच नमाजों के दौरान मुलवयाह को शाप लदया। \"जब यह खबर मुलवयाह तक पहुंची, तो उसने यह भी आदेश लदया लक अली को पांच नमाजों के दौरान शालपत लकया जाए।\"2 अंत मंे, अली इब्न अबुताललब ने मुलवयाह और उसके समिणकों के अपमान से नाराज होकर, सीररया में सैलनकों को भेजने का फै सला ललया और ख़ाररजीयों को एक पि ललखकर उनसे मुलवयाह के द्धखलाफ युि में साि देने का आग्रह लकया। उसने इस युि के ललए बसरा के राज्यपाल अब्दु ल्ला इब्न अब्बास को भी उसकी सेना के साि बुलाया। ख़ाररजीयों ने अली के आग्रह को खाररज कर लदया, और अब्दु ल्ला इब्न अब्बास ने अली को तीस हज़ार घुड़सवार और दो सौ पैदल सैलनक मदद के ललए भेजे। जब अली अपनी सेना के साि सीररया जाने 1 Abuali Mohammad Bal’ami. Ibid. – p. 1144. 2 Ibid. – p. 1141. 297
वाला िा, तभी खबरंे आईं लक खारीलजये, जो नहावंद से तेसीफोन तक के क्षेिों में डकै लतयों और हत्याओं मंे ललि िे, अब खलीफत की नई राजधानी - कु फा- मंे थिानांतररत होने जा रहे िे। इस बात से डरते हुए लक अगर ख़ाररजीयों ने कू फा पर हमला लकया, तो सबसे पहले उसके पररवार के सदस्यों और उसके वफादार सालियों को खि करें गे, इसललए अली इब्न अबुताललब ने पहले उनके हमले का मुहं तोड़ जवाब देने का आदेश लदया, और उसके बाद ही मुलवयाह इब्न अबुसुफ्यान के द्धखलाफ युि करने का लनर्णय ललया। इस भयंकर सशस्त्र टकराव में, जो सफार ९, लहजरा के ३८वंे वर्षण (१७ जुलाई, ६५८ ईस्वी) को हुआ िा, अली ने ख़ाररजीयों को हराया। उनमंे से कु छ भाग गए, जबलक बाकी ने दया की भीख मांगी। ख़ाररजीयों को हराने के बाद, अली ने लफर से सीररया जाने का इरादा लकया, लेलकन उसके योिाओं ने आराम करने और अपने पररवारों से लमलने के ललए पांच लदन का समय मांगा।1 कु छ लदनों बाद, वे चुपके से अपने लशलवरों को छोड़कर कु फा और बसरा चले गए, और इस तरह नौद्धखला लशलवर में बहुत कम योिा रह गए। अली कु फा लौटने के ललए मजबूर हो गया तालक एक सैन्य अलभयान के ललए लोगों को बुलाया जा सके । अनावश्यक लववरर् में जाने के लबना, हम ध्यान दंे लक अली और मुलवयाह के बीच की प्रलतद्वंलद्वता, लजसे धालमणक शद्धि और सरकार के दावों ने तीव्र रूप दे लदया िा, अली के समिणकों के बीच लवरोधाभासों के कारर्, धीरे -धीरे एक लनरं तर संघर्षण में पररवलतणत हो गयी। यद्यलप ख़ाररजीयों को व्यावहाररक रूप से सैन्य रूप से परालजत लकया गया िा, पर एक धालमणक और राजनीलतक आंदोलन के रूप में, उन्होनं े इस्लामी समुदाय में मुद्धस्लम समानता के लवचार का प्रचार करना जारी रखा, और गैर-अरब मुद्धस्लम आबादी के बीच उन्हंे कई अनुयायी भी लमल गए। पाररवाररक और आपसी कलह, जनजालतयों के बीच दुश्मनी, बदला लेने की प्यास, नेताओं की अलगाववादी आकांक्षाएं , खासकर उस्मान इब्न अबुसुफ्यान की मौत के बाद, सेना और आम लोगो,ं सबको िका लदया िा। शायद इसीललए, तबरी के अनुसार, लहजरा के ४०वंे वर्षण मंे, तीन ख़ाररजी, अब्दु रण हमान इब्न मुिाम अल-मुरादी, बुरक इब्न अब्दुल्लाह और अम्र इब्न बकर, लकसी न लकसी तरह कु फा मद्धिद में इकट्ठा हुए और नहावंद मंे युि में मारे 1 Abuali Mohammad Bal’ami. Ta’rikhi Tabari. Vol. II. – Dushanbe, 2001, p. 1141. 298
गए अपने भाइयों को याद लकया। उन्होनं े मुलवयाह, अम्र इब्न अल-अस और अन्य भि बालगयों को कोसा और लधक्कारा और लोगों के दुभाणग्यपूर्ण अंत पर शोक व्यि लकया। अंत में, उन्होनं े फै सला लकया: \"हम सच्चाई के नाम पर खुद का बललदान दे कर अपने भाइयों का बदला लेने के ललए सभी अधमी शासकों को मार डालंेगे और देश को उनसे साफ कर दंेगे।\"1 यह लनर्णय लेते हुए, ख़ाररजीयों को लगता िा लक अली, मुलवयाह और अम्र इब्न अल-अस को मारकर, वे टकराव को समाि कर देंगे, देश मंे अमन और शांलत बहाल करें गे और मुसलमानों को एक-दू सरे से लड़ने से रोक सकंे गे। रमजान १७, लहजरा के ४०वें वर्षण (१९ जनवरी, ६६१ ईस्वी) की सुबह उन्होनं े हत्या के अपने प्रयासों को अंजाम देने का फै सला लकया। एक ही समय मंे अलग- अलग जगहों पर इन तीन र्षड्यंिकाररयों द्वारा लकए गए प्रयासों में से एक के पररर्ामस्वरूप, सुबह की प्रािणना के समय, अली इब्न अबुताललब को अब्दु रण हमान इब्न मुिम ने, लजसे मुराद हुमाया भी कहा जाता िा, तलवार से घायल कर लदया, और दो लदन बाद उसकी मृत्यु हो गई। हालांलक, अम्र इब्न अल-अस उस सुबह बीमारी के कारर् प्रािणना करने नहीं आया, और मृत्यु से बच गया। दलमि मद्धिद मंे बुरक इब्न अब्दुल्ला की तलवार से मुलवयाह इब्न अबुसुफ्यान के वल िोड़ा घायल हुआ और वह भी बच गया।2 इस तरह, ६३ साल की उम्र में, चार खलीफाओं में से अंलतम अली इब्न अबुताललब, चार साल और नौ महीने के शासन के बाद ठीक उमर इब्न खट्टब और उस्मान इब्न अबुसुफ्यान की तरह, हत्या के पररर्ामस्वरूप मारा गया और कु फा के एक मैदान मंे दफन लकया गया। इस प्रकार, लहजरा के ४०वंे वर्षण (६६१ ईस्वी) में चार खलीफाओं के शासन का युग समाि हो गया, और खलीफत का शासन उमय्यद कबीले के हािों में चला गया। नया खलीफा उमय्यद जो ख़लीफाओं मंे सबसे पहले, मुलवयाह इब्न अबुसुफयान, और लफर अली इब्न अबुताललब का कठोरलचि प्रलतद्वंद्वी िा, ने चौिे खलीफा की दुखद मृत्यु के बाद, देश की राजधानी को कु फा से दलमि थिारान्तररत कर लदया और उसे एक नए राजनीलतक, आलिणक और सांस्कृ लतक कंे ि में पररवलतणत कर लदया। 1 Ibid. – p. 1153. 2 Said Abdurrahim Khatib. The history of Caliphs Osman and Ali. Book 2. – Dushanbe, 2006, p. 252-254. 299
धालमणक खलीफाओं का शासनकाल मुख्य रूप से अरब प्रायद्वीप से परे इस्लाम के प्रसार और सीररया, लफललस्तीन, एलशया माइनर, लमस्र, इराक, ईरान और खुरासान सलहत कई गैर-इस्लामी देशों के मुद्धस्लम बलों द्वारा लवजय प्राि करने का काल िा। हम कह सकते हंै लक, लबिु ल इसी अवलध के दौरान उस समय के दो महान साम्राज्यों - सासालनद और पूवी रोमन - का युग समाि हो गया िा। सासालनद राज्य के क्षेि मंे, इस्लामी सभ्यता और संस्कृ लत ने कई अनुयालययों को प्राि लकया और धीरे -धीरे आयण राज्यत्व और सभ्यता का थिान ललया। इस्लाम के प्रसार के बाद, सासालनदी राज्य की स्वतंिता और महानता धीरे -धीरे खो गई, और मुसलमानों का लवजय अलभयान मध्य एलशया, तुकण स्तान और भारत के क्षेिों मंे जारी रहा। अध्याय ५ अरब श्ववजय और खुरासान ििा आमू-पार मंे इस्लाम का प्रसार १. उमय्यद खलीफा और खुरासान ििा आमू-पार के ल ग ं के अरब ं के श्ववरुि संघर्व की शुरुआि अली इब्न अबुताललब की मृत्यु के बाद, खलीफा की राजनीलतक द्धथिलत और दलों के अंतलवणरोध और भी बढ गए िे। भाग्य की इच्छा से उस्मान इब्न अबुसुफ्यान के रि के ललए प्रलतशोध की आग में तड़प रहे उन सभी लोगों को अपने चारों ओर जमघट कराने वाले मुलवयाह इब्न अबुसुफ्यान की लजद और इच्छाशद्धि ने उसे एक अलग मोड़ पर ला खड़ा लकया िा। अब, कु फा और इराक के लनवासी आन्दोलन में आ गए िे और एक ऐसे नेता की तलाश में िे, जो इस्लाम के लनयमों के अनुसार, अली की मौत का बदला मुलवयाह से ले सके । तबरी के अनुसार, चालीस हज़ार सैलनकों ने अली के बड़े बेटे हसन इब्न अली के प्रलत लनष्ठा की कसम खाई और उन्होनं े मांग की लक वह मुलवयाह के द्धखलाफ सीररया मंे कू च करंे । हालाँालक, हसन इब्न अली, जो तेसीफोन मंे खोस्रोव के सफे द महल में शांलत से रहते िा, मुलवयाह से लड़ने का इरादा नहीं रखता िा। यह देखकर लक नया ख़लीफा सैन्य कारण वाई करने का इरादा नहीं रखता, सेना टुकलड़यां आंलशक रूप से लबखर गई, और कु छ टुकलड़यां आंलशक रूप से मुलवयाह के पक्ष में चली गई। सेना की एक अन्य टुकड़ी ने \"हसन इब्न अली के 300
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