वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 1
Volume 7, Issue 78-80, October-December 2021 ISSN: 2454-2725 (Peer-Reviewed / Refreed) (विशेषज्ञ समीवित) जनकृ ति अक्टूबर-विसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) प्रकाशक जनकृ दि संस्था सपं ािकीय कायाालय फ्लटै जी-2, बागशे ्वरी अपाटषमंटे , आयापष री, रािू रोड़, राचं ी, 834001, झारखडं , भारि ईमेल: [email protected] वेबसाईट: www.jankriti.com सपं कष : 8805408656 इस पदिका में प्रकादिि सामग्री के उपयोग के दलए प्रकािक से अनमदि आवश्यक है। वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 2
िषा 7, अंक 78-80, अक्टूबर-विसबं र 2021 (सयंक्त अंक) ISSN: 2454-2725 जनकृ ति संपपराामदशा मकंडलीय डॉ. सधा ओम ढींगरा (अमेररका), प्रो. करुणािकं र उपाध्याय (मंबई), प्रो. रमा (दिल्ली) डॉ. हरीि नवल (दिल्ली), डॉ. हरीि अरोड़ा (दिल्ली), डॉ. प्रमे जन्मेजय (दिल्ली), डॉ. कै लाि कमार दमश्रा (दिल्ली), प्रो. िलै ेन्र कमार िमाष (उज्जनै ), प्रो. कदपल कमार (दिल्ली), प्रो. दजिरंे श्रीवास्िव (दिल्ली), प्रो. रत्निे दवश्वक्सने (झारखडं ) संपािक डॉ. कमार गौरव दमश्रा (सहायक प्रोफ़े सर, झारखडं के न्रीय दवश्वदवद्यालय) सहायक संपािक डॉ. पनीि दबसाररया (एसोदसएट प्रोफ़े सर एवं अध्यक्ष, दहिं ी दवभाग, बिं ले खंड दवश्वदवद्यालय, उत्तर प्रिेि) संपािन मण्डल/विशेषज्ञ सवमवत डॉ. सिानन्ि कािीनाथ भोसले (प्रोफ़े सर एवं अध्यक्ष, दहिं ी दवभाग, सादविीबाई फले पणे दवद्यापीठ , महाराष्ट्र) डॉ. िीपने ्र दसंह जाड़ेजा (प्रोफ़े सर एवं अध्यक्ष, दहंिी दवभाग, महाराजा सयाजीराव बड़ौिा दवश्वदवद्यालय, वड़ोिरा) डॉ. नाम िेव (प्रोफ़े सर, दकरोड़ीमल कॉलजे , दिल्ली दवश्वदवद्यालय) डॉ. प्रज्ञा (प्रोफ़े सर, दकरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली दवश्वदवद्यालय) डॉ. रचना दसहं (एसोदसएट प्रोफ़े सर, दहन्िू कॉलजे , दिल्ली दवश्वदवद्यालय) डॉ. रूपा दसंह (एसोदसएट प्रोफ़े सर, बाब िोभा राम गोवरे मटें आटष कॉलेज, राजस्थान) डॉ. पल्लवी (सहायक प्रोफ़े सर, िजे पूर दवश्वदवद्यालय, असम) डॉ. मोहदसन खान (एसोदसएट प्रोफ़े सर एवं अध्यक्ष, दहिं ी दवभाग, जेएसएम कॉलजे , रायगढ़, महाराष्ट्र) डॉ. अदखलेि कमार िमाष (सहायक प्रोफ़े सर, दमजोरम दवश्वदवद्यालय, दमजोरम) डॉ. प्रवीण कमार (सहायक प्रोफ़े सर, इदं िरा गाधं ी राष्ट्रीय जनजािीय दवश्वदवद्यालय, मध्य प्रिेि) डॉ. मन्ना कमार पाण्डेय (एसोदसएट प्रोफ़े सर, सत्यविी कॉलजे , दिल्ली दवश्वदवद्यालय) डॉ. चंरेि कमार छिलानी (सहायक प्रोफ़े सर, जेआरएन राजस्थान दवद्यापीठ, राजस्थान) डॉ. अंदबके ि दिपाठी (सहायक प्रोफ़े सर, गांधी एवं िादं ि दवभाग, महात्मा गांधी के न्रीय दवश्वदवद्यालय) डॉ. ज्ञान प्रकाि (सहायक प्रोफ़े सर, दबहार) संपािन सहयोग श्री चन्िन कमार (िोधाथी, गोवा दवश्वदवद्यालय, गोवा) राके ि कमार (िोधाथी, दिल्ली दवश्वदवद्यालय, दिल्ली) ससं ्थापक सिस्य कदविा दसंह चौहान (मंबई) डॉ. जैनने ्र कमार (दबहार) अतं रराष्ट्रीय सिस्य प्रो. अरुण प्रकाि दमश्रा (स्लोवेदनया), डॉ. इिं चंरा (दफ़जी), डॉ. सोदनया िनजे ा (स्टने फोडष यूदनवदसटष ी), डॉ. अदनिा कपरू (अमेररका) राके ि माथर (लंिन), ररद्मा (श्री लकं ा), मीना चोपड़ा (कै नडे ा), पजू ा अदनल (स्पेन) वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 3
4 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 आप सभी पाठकों के समक्ष जनकृ दि का अक्टूबर- दिसबं र सयंक्त अकं प्रस्िि ह।ै इस अकं में आप सादहत्य, कला, पिकाररिा, इदिहास, राजनीदि इत्यादि क्षिे ों के महत्वपूणष दवर्यों पर आधाररि िोध आलखे , लेख पढ़ सकिे ह।ैं इसके अदिररक्त अंक में आप सादहदत्यक रचनाएँ भी पढ़ सकिे ह।ंै जनकृ दि एक बह-ु दवर्यक अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका ह।ै यह पणू ष रूप से दवमिष के दन्रि पदिका ह,ै जहां आप दवदभन्न अनिासन के नवीन दवर्यों को एकसाथ पढ़ सकिे ह।ैं पदिका में एक ओर जहां सादहत्य की दवदवध दवधाओं में रचनाएँ प्रकादिि की जािी है वहीं नवीन दवर्यों पर लेख, िोध आलेख प्रकादिि दकए जािे ह।ंै अकािदमक क्षेि में िोध की गणवत्ता को ध्यान मंे रखिे हएु अंिरराष्ट्रीय मानकों के अनरृ ूप िोध आलखे प्रकादिि दकए जािे ह।ंै िोध आलखे ों का चयन दवदभन्न क्षिे ों के दवर्य दविरे ्ज्ञों द्वारा दकया जािा ह,ै जो दवर्य की नवीनिा, मौदलकिा, िथ्य इत्यादि के आधार पर चयन करिे ह।ंै जनकृ दि के माध्यम से हम सजृ नात्मक, वैचाररक वािावरण के दनमाषण हिे प्रदिबद्ध ह।ै -डॉ. कमार गौरि वमश्रा वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 4
5 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 अनक्रम संपािकीय 4 कला-विमशा सज्जलक से िदवषलक : गौण पाि से प्रधान नायक िक / मोिी राके ि नारायणिास 8 मानव-मन की आकाकं ्षाओं के िमन को दचदिि करिा नाटक ‘अजं ोसिपंीिाीि’/कदसीयमरन 184 स्त्री पर पाररवाररवकहिं दही संभााषकाा सावहत्य का विकासि/वलडॉत. कएिमंाआर गवौिरििासवमीश-्वरिा म1श2ा ििं और िदलि आत्मकथाएँ / डॉ. ररि अहलावि 24 गादडया लोहार(प्रदिज्ञा और वचन से बंधी एक जनजादि)का अवलोकन / रमाकांि 33 जयपाल दसहं मडं ा एक आदिवासी नायक / मोहन 39 स्त्री-विमशा मकट दबहारी वमा’ष कृ ि 'स्त्री समस्या': एक अध्ययन / दमन्न जोसेफ 45 जनजािीय स्त्री के सिक्तीकरण की प्रदिष्ठा करिा अनज लगन का काव्य संग्रह 'बाघ और सगना मंडा की बटे ी'/ डॉ. कमारी उवषिी 49 ‘ माई ’ : स्त्री संविे ना का ज्वलिं िस्िावज़े / आदिरा कृ ष्ट्णन 57 ‘आििष संबंधों की चाह में िनावग्रस्ि नारी : आप न बिलेंग’े / डॉ. सोमाभाई जी. पटेल 62 कहानीकार यिपाल का नारीवािी दृदिकोण/ डॉ. आिा कमारी 68 वकन्नर-विमशा सभ्य समाज की जरूरि है दकन्नर दवमिष / नेहा झा 72 दहिं ी कहादनयों में दकन्नर समाज / डॉ. दिराजोद्दीन 79 अल्पसखं ्यक-विमशा मदस्लम औरिों की सच्ची अक्कासी ‘सूखी रेि’ गदड़या का घर’ मंे / डॉ. बने जीर 86 मीवडया-विमशा दिदटि राज मंे दहन्िी पिकाररिा/ डॉ. दववके कमार जायसवाल 93 दहिं ी पिकाररिा का धमष : अिीि, विमष ान और भदवष्ट्य / डॉ. अजीि कमार परी 105 न्यू मीदड़या एवं ससं ्कृ दि/ माधवी 112 भावषक-विमशा लखे - पूवोत्तर भारि का भादर्क पररदृश्य और दहिं ी का भदवष्ट्य / वीरेन्र परमार 118 दहिं ी-उिषू दववाि की प्रमख बहसंे / कलिीप दसंह 125 वशिा-विमशा Women Education in Ancient India: A Rethवरi्षn7,kअinकं g7/8-R80u, अniक्sटूबmर-iदिtaसंबPर r2i0t2i1p(uसsयpकं ्तaअ1ंक3) /45 ग्रामीण ओदडिा मंे लड़दकयों की दिक्षा: समस्याएं और आगे का रास्िा / कल्याणी प्रधान 138
6 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 समसामवयक व तं न Transgenics in Atwood’s Oryx and Crake / Priyanka 145 िशान गाधं ी जी के योगििनष की आधदनक प्रासंदगकिा / पवन चन्र 151 धमा एिं संस्कृ वत ित्तोपिं ठेंगड़ी का धमष सम्बन्धी दवचार / समीि कमार गप्ता 158 राजनीवतक विज्ञान वदै िक वाङ्मय मंे दनदहि प्रजािांदिक दसद्धान्ि / ड़ॉ. िम्भ कमार झा 163 बौद्ध सघं के दवकास यािा मंे राजव्यवस्था / जगन्नाथ कमार यािव 169 सावहवत्यक-विमशा मध्यकालीन महाजनी सभ्यिा मंे पीदड़ि गरीब दकसान और सूरिास / अदनल कमार 175 ‘काल खड़ा दसर ऊपरे’: आज के संिभष मंे कबीर / डॉ. दबमलिंे िीथकं र 179 दहन्िी सादहत्येदिहास की समस्याएँ/ प्रवीन वमाष 184 मदक्तबोध द्वारा दवकदसि कला का समाजिाि/ डॉ. सधांि भूर्ण नाथ दिवारी 189 दवद्यादनवास दमश्र के मूल्य-बोध का समकालीन संिभष: (िम चिं न हम पानी के दविेर् संिभष मं)े / रोिन कमार प्रसाि 200 वािों के िायरे और कं वर नारायण/ डॉ. अनिं दवजय पालीवाल 208 विषमान बरे ोजगारी का नया कलवे र और अन्वरे ्ण उपन्यास की प्रासंदगकिा/ पजू ा मिान, प्रो. आलोक गप्त 215 मन के दकदमयागार रचनाकार िोस्िोवस्की और मदक्तबोध/ डॉ. भारिी िक्ला 219 मध्यम वगीय पररवार में बचपन (दविरे ् सन्िभष प्रेमचिं की कहादनयां)/ अदभर्के रंजन 231 ‘आचँ की जाचँ ’ के मायने/ मनीर्ा 236 जनै ेन्र की कहादनयों में स्त्री, ‘जान्वी’ के दविेर् सन्िभष म/ें कमकम पाण्डेय 241 छायावािी कदविाओं मंे मािभृ ूदम का दचिण / डॉ. जादहिल िीवान 245 ‘कलभरू ्ण का नाम िजष कीदजए’: पूवी बंगाल की िास्िान’/ डॉ. दप्रयकं ा 253 आधदनक जीवन की झलक में ‘चक्रव्यूह’/ अदखला आर 261 बिरीनारायण चौधरी ‘प्रमे घन’ का महत्व/ मके ि कमार 267 THE FIRE OF SONAKHAN \"SONAKHAN KE AAGI\" - AN EPIC HEROIC CHHATTISGARHI VERSIFICATION OF BRAVEHEART VEERNARANYAN SINGH BY LAXMAN MASTURIYA/ Dr Vineeta Diwan, Mr Arun Jaiswal 273 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 6
7 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 लेख कोदवड़ 19 के पररप्रेक्ष्य में सादहत्य और समाज/ डॉ.श्रीलिा दवष्ट्ण 287 प्रेम का अजब दिकोण ‘अमिृ ा, सादहर और इमरोज’/ डॉ. हरीि नवल 291 सावहवत्यक र नाएँ कविता मोिीलाल िास 294 कहानी स्पिष/ पारुल 296 पस्तक समीिा मध्यकालीन काव्य की नूिन मीमांसा / दप्रयंका दमश्रा 298 समीक्ष्य पस्िक - वज्रपाि (कहानी), समीक्षा आलेख - ग्राम और कस्बे के फलक/ सर्मा मनीन्र 302 अलग-अलग भंदगमाओं को समेटिा कहानी सगं ्रह 'गँड़ासा गरु की िपथ'/ डॉ.मधदलका बेन पटेल 304 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 7
8 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 सज्जलक से शविालक : गौण पात्र से प्रधान नायक तक मोिी राके श नारायणिास एसो.प्रोफ. नाट्य दवभाग फे कल्टी ऑफ़ परफोदमगं आट्षस ध महाराजा सयाजीराव दवश्व दवद्यालय, बडौिा. वड़ोिरा ३९० ००१ मोबा. ९८२४ ५८५ ५५० इमेल: [email protected] साराशं : संस्कृ त नाटको मंे विविध प्रकार के ‘रूपक’ प्राप्त है । वकं तु ‘प्रकरण’ नामक रूपक अल्प संख्या में है । इसापिू व में महाकवि भास रवित ‘दररद्रिारुदत्तम’ विसमे समाि के सारे िर्गों का प्रवतवनवधत्ि निर आता है । मध्ययरु ्ग में इस कृ वत पर आधाररत शदू ्रक रवित् ‘मचृ ्छकवटकम’ नामक कृ वत प्राप्त होती है । और इन्ही दोनों कृ वतयो के आधार पर सन१९५७ में र्गुिरात के नाट्यकार परीख रवसकलाल नया सिवन ‘शविलव क’ नाम से करते है । संस्कृ त और आधुवनक नाटको के सदं भव मंे शायद यह तीन कृ वतयााँ एसी है विसका कथानक और िररत्र पररितनव के साथ साथ साम्प्प्रत समाि का प्रवतविम्प्ि भी दशावती है । ितृ के साथ कु छ एक िररत्रभी एसे है िो पररिवतवत होती कृ वत के साथ उसके लक्षणों के कारण विस्ततृ भी हएु है । िैसा ही एक तिे स्िी िररत्र है ‘सज्िलक’,िो भास की कृ वत में ‘स्िवहत’ के वलए ‘िोरकम’व करता है । ‘मचृ ्छकवटकम’ में शूद्रक उसे उपकथा (क्ांवत कथा) का उप-नायक िनाते ह,ै तो श्री परीख उसे ‘शविवलक’ नाटक में प्रधान नायक के रूप में प्रस्ततु करते है । िहां ‘क्ांवत कथा’ मुख्य हो िाती है और ‘प्रेम कथा’ र्गौण िनती है । शोध का आशय यही है की तीनों रिनाकारो ने इस िररत्र में कोनसे लक्षण पायंे विससे ‘िोरकमव (सज्िलक) से क्ावं तकारी(शविलव क)’ िनाया । बीज शब्ि: सज्ज्लक, िोरकम,व मदवनका, रािक्ावं त, आयवक, क्षात्रतिे , शविवलक, लोकवहत शोध आलेख: भदू मकाथआष योदजि पािा : II १ संस्कृ ि नाटकों में नायकों का हमेिा से ही दविेर् महत्व रहा ह।ै यहाँ िक दक ससं ्कृ ि नाटककारोंने भी रूपकों में नायक के गणों पर हमेिा जोर दिया ह,ै और नायक के प्रकारों के बारे मंे भी अच्छी चचाष की ह।ै रूपकों के वगीकरण मंे 'नेिा, वस्ि और रस' को भी दविेर् महत्व दिया जािा ह।ै नाटककारोंने भी चररि-दनयोजनके महत्वको स्वीकार दकया है । उनका प्रधान उद्देश्य चररिको अपने दृदिकोण, संस्कृ दि, वािावरण की मिि से पोदर्ि करना ह।ै चररि वह है जो \"रुवि, अरुवि प्रदवशतव करके एक नवै तक उद्दशे ्य को प्रदवशवत करता ह,ै \" २ चररि नाटककारका आधार है और उसके माध्यम से वह अपना सिं िे िेिा ह।ै एक नाटककार जो पािों के चररिको यथासंभव स्पि रूप से दचदिि कर सकिा है उसे एक सफल नाटककार माना जािा ह।ै जसै े महाकदव भास, िूरक और आधदनक नाटककार श्री. रदसक्लाल छोटालाल परीख...आदि. वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 8
9 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 नाटक-दनििे क भी अदभनेिा के माध्यमसे सबं ंदधि 'आदं गक, वादचक, सादत्वक और आहायष' प्रििनष के माध्यम से नाटक प्रिदििष करिा ह।ै भरिमदन के नाट्य िास्त्र के चौबीसवें अध्यायमें, यह ििाषया गया है दक सामान्य अदभनयके दलए अनकू ल हावभावको कै से अपनाया जाए। यह बिािा है दक \"प्रत्यके िररत्र का मनोरंिन उसके अपने िररत्र और व्यिहार से होता ह।ै \" ३ 'चररि' दकसी भी कथानक में दविरे ् रूप से सहाय कारक होिा ह।ै दजस िरह ईटं ें दकसी भी वास्िकला के दनमाषण में मिि करिी ह,ंै उसी िरह पाि, सीमटें हंै जो इन ईटं ों को बाधं िे ह।ंै नाटककार नाटक मंे चररि-दचिण के माध्यमसे अपने दवचारों मंे दनदहि दसद्धांिों को प्रकट करिा ह।ै पािों को दवदभन्न पररदस्थदियों में रखकर जीवन के सघं र्ों को प्रस्िि करिा ह।ै एसे ही उत्कृ ि पािों के दनमािष ा ह,ंै महाकदव भास । उनका चररि-दवश्व बहिु व्यापक और दवदवध ह।ै पािों का भािीगल दचिण उनकी रचनाओमं ंे िेखा जा सकिा ह।ै उन्होंने अपने िेरह नाटकोंमंे लगभग िोसौ िीस पािोंकी रचना की ह।ै जैसे, राम, कृ ष्ट्ण, रावण, घटोत्कच, कण,ष भरि, वसिं सने ा, चारुित्त... जसै े उच्च वगष के पाि और सज्जलक, दवट, चटे , गदणका... जसै े दनम्न वगष के पाि िेखे जािे ह।ैं उन्होंने जीवन के सभी क्षेिों से पािों का चयन करके समाजकी परू ी िस्वीर खींचनके ी कोदिि की ह।ै के वल इिना ही नहीं बदल्क कई पािोंको मनोवजै ्ञादनक रूप से दचदिि दकया गया ह।ै भास रदचि 'िररर चारूििम्' की रचनामें एक चिर, उज्ज्वल, प्रदिभािाली और रंगीन चररि ह,ै दजसका नाम है 'सज्जलक' । इस रूपक में उनका स्थान 'गौण पाि' जसै ा ह,ै वे थोड़े समय के दलए ही प्रकट होिा ह,ैं दफर भी उनका व्यदक्तत्व एक अनूठा आकर्णष पैिा करिा ह।ै कदव ने उसके व्यदक्तत्व को कलात्मक रूप में दवकदसि दकया ह।ै अन्य पािों की िलना मंे, यह चररि काल्पदनक िदनया से नहीं ह।ै यहां िक दक ििषक भी इस चररि के साथ आत्मीयिा और अपनापन महससू करिे ह।ैं कदव िरू कने 'िरररचारूििम्' का दवस्िार दकया और 'मचृ ्छटकदटकम्' की रचना की, दजसमंे यही 'सज्जलक' को 'िदवषलक' में रूपािं ररि दकया और उसे 'राजक्रांदि' की उपकथा का नायक बनाया ह!ै िो, गजराि के मूधषन्य नाटककार श्री. रदसक्लाल छोटालाल परीख भी 'िदवषलक' के चंबकीय आकर्षण से अछू िे नहीं हंै !! वह भी िदवलष क को प्रधान नायक के रूप में पेि करिे है और हमें सामने एक नया कलेवर नया सजषन लािे ह।ै अब सवाल यह उठिा है दक इस चररि के व्यदक्तत्वमंे दकस िरहका चंबकीय आकर्णष है जो गौण चररि से उपकथा का नायक और प्रधान नायक िक दवस्िाररि हुआ ह।ै और आज भी रचनाकारों सदहि हमारे भीिर अिं रंगिा की भावना को प्रकट करिा ह।ै ‘िरररचारूििम्’ का 'सज्जलक' यवा और साहसी ह।ै वह जन्म से िाह्मण है (वह अन्य िो कृ दिओ में भी िाह्मण ह)ै लेदकन यहाँ वह अपनी िदक्तयोंका ठीकसे उपयोग नहीं होिा । अपने नाम को साथषक बनाने के दलए वह एक दनंिनीय कृ त्य यादन 'चोरकमष' करिे नजर आिा ह।ंै हां, वह अपने व्यवसाय में किल ह।ै जो उनके कथन से पिा चलिा ह-ै ‘माजारष प्लवने वकृ ोऽपसरणे श्येनोगहृ ालोकने दनरा सप्तमनष्ट्यवीयिष लने ससं पणे पन्नग : मायावणषिरीरभिे करणे वाग् िेिभार्ान्िरे वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 9
10 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 िीपो रादिर् संकटे च दिदमरं वाय: स्थले नौजॅले II चारु. ३/११ ४ उछ्लने में विल्ली के समान,तिे भार्गने में भवे िया िैसा, घर की िस्तओु ं को दखे ने मंे िाि पक्षी-सा, सोते हुए मनषु ्य की शवि की तुलना मंे नींद सा, सरकने में साँपा िसै ा, स्थूल शारीर मंे माया के समान, विवभन्न भाषाओं का अतं र करने मंे सरस्िती के समान, रावत्र मंे दीपक-सा संकटो मंे अंधार िैसा, स्थल पर िायु समान और िल में नाि के समान िन िाता ह।ै चोरी के व्यवसाय में, वह उदचि उपकरण और छेि बनाने के िरीके , उसके प्रकार, सघंे कहाँ लगाना ह,ै दकस आकार में संेघ करना ह,ै आदि की कला मंे पारंगि ह।ै इसी के साथ 'नवन्िदं वदिा ब्रह्मसतू ्रं रात्रो कमवसूत्रं भविष्यवत' ५ दिन मंे उसके दलए जो िह्मसिू होिा है वह राि मंे कमषसिू बन जािा ह।ै सज्जलक यह सब दसफष दनवाषह के दलए नहीं करिा। इस प्रकार के कायष के मूल मंे मिदनका के प्रदि गहरा लगाव ह।ै जो वसंिसेना की 'गलामी' में बंधी हुइ है और उसे मक्त कराने के अथष मंे साहसी बन गया ह।ै इसदलए वे कहिा हंै, 'वकं िा न कारयवत मन्मथ :’ ६ कामिवे मनष्ट्य के पास क्या नहीं करा लेिा? ('सज्जलक' के मख से मानवजीवन का ििनष रूप यह कथन, िे कर कदव ने साथषक सन्ििे दिया ह)ै चौयकष मष करने से पहले वह प्रभ पाथनष ा करिा ह,ै जो उसकी धादमकष आस्था को व्यक्त करिा ह,ै िो अपने इस दनंिनीय कायष से लोक िोर् भी िेंगे और उसकी सराहना भी करेंगे इस दद्वधामय दस्थदिका भी अनभव करिा है । कमष से चोर होिे हुए भी ‘सज्जलक’ ियाल वदृ ि का ह।ंै चारुित्त के घर की िरररिा िखे कर वह चोरी न करने और खाली हाथ लौटने की सोचिा ह।ै िो वहां, स्वप्नमें बडबडानवे ाला दविरू ्क जब उसे 'िाह्मणवाि' का िाप ििे ा है और 'स्वणालष कं ार’ लने े के दलए कहिा ह,ै िो िादकष क रूप से सोच कर 'स्वणालष कं ार’ ले भी लिे ा ह।ै इस प्रकार मानदसक और वास्िदवक दस्थदि मंे झूलिे चररि का चररि प्रकट होिा ह।ै सज्जलक, ‘प्यार और यद्ध में सब कछ सही ह’ै कहावि को सही ठहरािा ह,ै मिदनका का स्नहे प्राप्त करने हिे ू चोरी के आभूर्णों लके र वसिं सने ा के भवन में जािा है और मिदनका से दमलिा ह।ै मिदनका उसकी पूरी कहानी सनने के बाि कहिी है की, ये सारे अलंकार 'वसंिसेना' के ह,ंै िब वह िखू ी: होकर कहिा है दक- \"अज्ञानाद या मया पिू व शाखा पत्रे पत्रवै ियॅि ोविता । छायाथी ग्रीष्मसन्तप्तस्तामेि पनु रावश्रत’ ।।४.५ ‘अज्ञानतािश िो शाखा मंनै े पहले पत्तों से अलर्ग की थी पनु : र्गमी से पीवित होकर मै छाया की कामना से उसी के पास आया ह’ुाँ ।७ इस प्रकार वह अच्छे बरे का दववेक भी जानिा ह।ै भावीपत्नी की आज्ञा का सम्मान करिा ह।ै मिदनका के दनििे ों के बाि, सज्जलकने वसंिसने ा को 'स्वणाषलंकार’ सौंपिे हएु कहा दक उसे चारुित्त ने भजे ा ह।ै वसंिसेना भी उिार भावों से अलकं ारो का स्वीकार करिी ह,ै और बिले मंे वह 'मिदनका' को उन्हीं अलकं ारो से सजाकर ‘वध’ू बनाकर दबिाई िेिी ह।ै िब सज्जलक मन मंे सोचिा है दक ‘िसतं सेना के उपकारका िदला कि िकू ाऊँा र्गा?’ । ८ और कृ िज्ञिा भाव से स्वगि कहिा ह-ंै 'शातं म पापम शातं म पापम' ।९ महाकदव भास का यह एक गौणपाि है लेदकन चररि िेजस्वी है और यह उनकी चररि-दचिण कला का एक उत्कृ ि उिाहरण भी ह।ै दजसने धिू ष और प्रेमी का रूप धारण कर दलया ह।ै यहाँ ऊपर वदणिष उनके कमष और भावों म,ें मानव सहज प्रवृदत्त हंै और एक छाप हमारे मन पर अंदकि होिी ह।ै कदव ने यहाँ उसके चोरकमष के पीछे एक ठोस मनोवजै ्ञादनक वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 10
11 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 आधार दिया है और वह है 'मिदनका' की प्रादप्त। एसा नटखट और प्रभाविाली व्यदक्तत्व को स्वाथष के दलए काम करिे हुए यहाँ प्रस्िि दकया गया ह।ै इस प्रकार ‘िरररचारूििम्’ में हमें ‘सज्जलक’ के िानिार व्यदक्तत्व का उपरी पहलू दमलिा ह।ै इसी रूपक से आकदर्िष होकर मध्यकालीन यग के कदव िूरक ने 'मृच्छटकदटकम्' की रचना की। कदव इसमें ‘राजक्रांदि’ की गौण कथा को प्रधानकथा (प्रेमकथा) से जोड़िे ह।ै नाट्यिास्त्र मंे इसे 'प्रकरी' के कहिे ह।ै प्रस्िि कृ दि में कदव अनके नये पािों की रचना करिा ह।ै यहाँ िक की 'सज्जलक' का नाम बिलकर ‘िदवषलक’ दकया और इस चररि का दवस्िार भी दकया। प्रेम कथा मंे राजक्रांदि (राजा पालक की हत्या और आयषक की राज्य प्रादप्त) की गौणकथा को जोड़ दिया। सबप्लॉट की धरी ‘िदवषलक’ के हाथ मंे िे िी। ‘िदवलष क’ प्रधान कहानी और गौण कहानी के बीच की कड़ी ह।ै ‘िरररचारूििम्’ में 'सज्जलक', जो 'स्व-दहि' के दलए कायष करिा ह,ै वह ‘मचृ ्छटकदटकम्' में 'िदवलष क', 'जन-दहि' के दलए कायष करिा ह।ै 'मचृ ्छटकदटकम्' मंे कदव ने िदवषलक की कहानी को ‘मिदनका प्रादप्त’ िक अनसरण करने की प्रयत्न कीया ह।ै पत्नी के रूप मंे 'मिदनका' की प्रादप्त के बाि, पिे के पीछेसे एक उद्घोर्णा सनाई ििे ी है की, '…िो-िो भी िहााँ हों, िे सि सनु लंे । वसद्धों की भविष्यिाणी िानकर वक ‘ग्िालेपुत्र आयवक रािा होर्गा’ रािा पालक ने उसे घर से लाकर कारर्गर मंे डाल वदया ह.ै .. ।'१० यहाँ से क्रादं ि के दलए सज्ज होकर ‘िदवषलक’ नए लक्षणों के साथ प्रकट होिा ह।ै वह िरंि अपनी नवदववादहिा पत्नी मिदनका को अपने दमि रेदभल के वहां पहुचाने की व्यवस्था करिा ह,ै और वह अपने िोस्ि आयषक को मक्त करने के दलए दनकल पड़िा ह।ै यहाँ भी वह गरीब है लेदकन एक एसे दपिा का पि है जो चारों वेिों का जानकार और व्रिों का पालन करने वाला ह।ै जो उनके चररि को एक ठोस पषृ ्ठभूदम प्रिान करिा ह।ै उसने चोरी के िास्त्र में व्यवदस्थि दिक्षा प्राप्त की ह।ै चारूित्त के भवन मंे चोरी से पहले चोरीके कायष मंे दवदिि एसे दविेर्ज्ञों के नाम लेिा ह।ैं दजसमें 'कादिषके य' चोरों के इििवे ह।ै ‘िवे व्रि, कनक्षदक्त, भास्करनंिी और योगाचाय’ष जसै े गरुओं को नमस्कार करिा ह।ै वह ‘योगाचाय’ष को अपना गरु मानिा ह।ंै यहाँ यह स्पि प्रिीि होिा है दक वह दिदक्षि है, जबदक ‘िरररचारूििम’् में वह अस्पि प्रिीि होिा ह।ै िदवषलक (सज्जलक की िरह) कछ नीदि-दनयमों का पालन करिा ह।ै ऊपर वदणिष ‘िररर चारूििम्’ के श्लोक ९/११ के गण यहाँ प्रकट हएु ह।ैं ऐसे गण सेना मंे और जासूसी के क्षिे मंे काम करने वाले परुर्ों को दसखाए जािे ह।ंै िरू क के काल के िौरान सामादजक, धादमषक और राजनीदिक दस्थदि बिल गई थी। उज्जयनी में राजा पालक के किासन से प्रजा िस्ि थी। िकार इसका 'प्रिीक' ह।ै उसका अत्याचार राजनीदिक क्रांदि की आग मंे ईधं न पूरने का काम करिा ह।ंै ऐसी पररदस्थदिओं का सजनष करके कदव ‘िदवषलक’ का मानस क्रादं िकारी बनािा हैं और उसमंे पड़े हुए नेितृ ्व गणों को एक नई दििा ििे ा ह।ंै इस नए किषव्य के दलए, िूरक 'िदवषलक' के कथन के माध्यम से दनििे करिे है दक 'वमत्र और नारी दोनों व्यविको िहुत वप्रय होते है । परंतु वमत्रका स्थान अन्य सिसे कहीं ऊाँ िा होता ह.ै ..’ ११ वह िरंि नवदववादहिा ‘मिदनका’ को दमि रेदभल के पास भजे कर दप्रय दमि आयषक को कारागहृ से छड़ाने हिे ू दनकल जािा ह।ै यहाँ िदवलष क की ऊजाष प्रेम से पलटकर, िख्िापलट के दलए के दन्रि होकर सदक्रयिा में बिल जािी ह।ै अलग होिे समय मिदनका उसे सावधान वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 11
12 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 रहनके ा दनििे ििे ी ह,ंै िो वह कहिा हंै,' उदयन के अमात्य यौर्गधं रायण की तरह अपने वमत्र के उद्धार के वलए अपने सिं वं धयों को, अपने भुििल से ख्यावत-प्राप्त विटों को, और रािा द्वारा अपमावनत तथा उस पर कु वपत राि- कमविारीयों को भिकानेका प्रयत्न कराँूर्गा ।' १२ उसका यह कथन िख्िापलट की भावी योजनाओं को प्रदिध्वदनि करिी है और कदव यह एहसास करािे है की वह कू टनीदि भी अच्छी िरह जानिा ह।ै क्रांदि मंे 'लोक' का साथ होना बहुि जरूरी ह,ै लेदकन उससे पहले वह िि ििओं की छावनी में अचानक से हमला करके आयषक को ररहा करना पसंि करिा ह।ै यहाँ कदव िदवलष क का ‘सज्जन के साथ सज्जन और िजषन के साथ िजषन’ का दचिण दकया ह।ै इससे िदवषलक का एक नया पहलू सामने आिा ह।ै चौथे अंक में प्रकट होने वाला िदवषलक सीधे िसवंे अकं में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई ििे ा ह!ै हां, लेदकन समय- समय पर कदव अपने िख्िापलट के दलए 'लोक-प्रकोप' के ित्वों को परोक्ष रूप से प्रस्िि करिे जािे है । (चिं नक, चारूित्त, दवट इत्यादि) ‘िकार’ अपने अत्याचारोंसे िदवषलक की योजना को सफल बनाने में सहायिा प्रिान करिा हैI जो नाटक के अिं मंे सफल होिी दिखाई िेिी हIै पाँचवाँ और छठा अंक क्रमिः 'अदभसरण' और 'िदिषन' के प्रसंग से दघरा हआु ह।ै ‘दमट्टीकी गाड़ी’ ये प्रसगं िरू होने िक िदवलष क आयषक को बंिीगहृ बाहर दनकालनेमें सफल होिा ह।ै आयकष , जो प्रवहण के अिल-बिल अवसर पर बच गया था, अनजाने में चारुित्त के प्रवहण मंे बठै जािा है, िब राजा का वफािार सेवक 'चिं नक' आयकष को सरक्षा ििे ा ह।ै और िकार के प्रवहणमंे बठै ी हईु ‘वसंिसेना’ को एक स्मदृ ि के रुपमे ‘िलवार’ िेिा ह,ै और राजा के दवश्वासपाि सेवक ‘वीरक’ से झगड़ा मोल लिे ा ह।ै 'चंिनक' की इस घटना से स्पि होिा है दक 'िदवलष क' की राजक्रादं ि की गप्त गदिदवदध 'लोक' के संज्ञान मंे आ गई है और जो लोग िासन से पीदड़ि और िस्ि हैं वे इसमें िादमल होने लगे ह।ंै आयषक, जो अनजाने में चारुित्त के प्रवहणमंे मंे बैठ गया था, वह पष्ट्पकरंडक उद्यान िक पहचुँ िा ह,ै लेदकन चारुित्त उसे बचािा है और उसकी बेडीयों को कएँ मंे फें क कर भगाने मंे उसकी मिि करिा ह।ै चारुित्त िदवलष क की राज क्रादं ि मंे भी अप्रत्यक्ष िादमल होिा ह।ंै 'चारुित्त' को पिा नहीं है दक यह ‘िदवषलक’ वही है दजसने उसके घर से वसिं सने ा के अलकं ारो की चोरी की थी !! वसिं सेना भी अनजाने में 'िकार' के प्रवहणमंे बठै कर 'िकार' के उद्यान मंे प्रविे करिी ह,ै िो िकार का 'दवट' उसे बचाने की कोदिि करिा है लदे कन वह असफल होिा ह।ै जब वसिं सने ा िकार द्वारा मिृ :प्राय दस्थदि प्राप्त करिी ह,ै िो इस घटना से व्यदथि ‘दवट’, िकार के दखलाफ अपनी िलवार खींचिा ह।ै लदे कन यह महसूस करिे हुए दक यहां रहना उदचि नहीं ह,ै िो वह 'िदवषलक' के समूह मंे िादमल होने के दलए दनकल जािा ह।ंै नौवें अंक में िदवषलक अदृश्य ह।ै चारुित्त, जो नाटकके आरंभमें िवे िाओं को ‘बदल’ ििे ा है , नाटक के अंि मंे खि ‘बदल’ चढ़न की दस्थदि मंे ह।ैं वहां परिे के पीछे ‘राजा पालक’ के वध की घोर्णा सनाई ििे ी ह।ै और राजा आयषक की सचू ना पर, ‘िदवलष क’ चारुित्त को मक्त करने के दलए सदक्रय होिा ह।ै यहां पहली बार िोनों प्रत्यक्ष होिे हंै और िदवषलक सकं ल्प पणू ष करने की दििा में िेजी से आगे बढ़ रहा ह।ै राजा आयकष की सूचना से, चारुित्त को किाविी का राजा घोदर्ि दकया जािा है, वहां अदननप्रवेि प्रविे करने के दलए िैयार चारूित्त की पत्नी 'द्यिा' को बचािा ह,ै और 'वसंिसेना' को 'वधूपि' प्रिान करिा ह।ै और नाटक भरिवाक्य के साथ समाप्त होिा ह।ै उपरोक्त सभी घटनाचक्र को िदवलष क के संिभष मंे समझिे हएु , हम महसूस करिे है दक यह वास्िव मंे क्रांदिकारी ह।ै वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 12
13 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 एक दमि के दलए मिदनका को छोड़ने वाला ‘िदवषलक’, लोक समिायको राजा पालक के दवरुद्ध िख्िापलट के दलए उकसािा ह।ै इस नाटक मंे जनोई से छेि करने वाला िाह्मण ही अब क्रांदिकारी बनिा ह।ै लदे कन, िूरक स्नहे कथा के प्रवाह में जैसे 'िदवषलक' को भूल गये ह,ै वह सीधे नाटक के अिं मंे, राजा पालक को मारकर और आयषक को दसहं ासन पर दबठाकर ही मचं पर प्रविे करिा ह!ै इस प्रकार, 'िदवलष क' इस नाटक का अन-नायक ह,ै लदे कन जसै े-जैसे िख्िापलट का आंिोलन पिे के पीछे चल रहा ह,ै उसका चररि कछ हि िक दक्षदिज के समानांिर ही दवकदसि होिा ह।ै सादहत्य अकािमी की योनयिा प्राप्त है, ऐसी गौरवमयी कृ दि 'िदवषलक' के रचदयिा ह,ै श्री रदसकलाल छोटालाल परीख । ‘चारूित्तम’् का सज्जलक 'साहसे श्री प्रदिवसदि’ में माननवे ाला, ऐसे ‘िदवषलक’ के चररि से आकदर्षि होकर, एक नया अनसजनष करनके ा साहस दकया, दसफष इिनाही नहीं दकं ि ‘िदवषलक’ के चररि को दक्षदिज की समानािं रसे दवस्िाररि दकया और उसेके चररि को उध्वगष दि प्रिान करके एक नया ही सजषन दकया ‘मचृ ्छकटीक का राज पररविषकार’ । ‘मचृ ्छकटीकम्’ की गौण कथा का अन-नायक िदवषलक ह,ै और राजपररविषकी कथा के अिं को प्रधान बना दिया और इसका नायक है ‘िदवषलक’। यहाँ प्रणय कथा है, 'िदवलष क और मिदनका' की। िो, नादयका मिदनका भी वारागं ना से वीरांगना बन चकी ह।ै 'राजपररविष' की कथा कें रीविी ह।ै वह दलखिे हंै दक \"यह शविवलक सच्िा ररिोल्यशु नरी - क्ांवतिादी नहीं - क्ांवतकारी ह।ै \" १३ श्री परीख िदवषलक के चररि को एक ऐदिहादसक और पौरादणक पषृ ्ठभदू म ििे े ह।ैं िदवषलक महाराज चंडप्रद्योि के महाअमात्य िालकं ायन का पि था िक्रबदद्ध। राजा का ज्येष्ठ पि गोपालक गद्दी पर आया, लदे कन वह बौद्ध धमष मंे आस्था रखने वाला (दनग्रनष ्थ) था, इसदलए भरि रोहिकने उसे पिच्यि कर दिया और दसहं ासन छोटेभाई 'पालक' को सोंप दिया, गोपालक के पि आयकष की परवररि करिे हएु , िालंकयनने अपने पि िक्रबदद्ध को अपने जीवन के अंि मंे अपना किवष ्य पूणष करने का दनिेि दिया था । क्रादं िकारी के रुपमे उसने ‘िदवषलक’ उपनाम धारण दकया था वह लोकायिमि वािी/िफी ह।ै लोक जीवन में ‘अथष और काम’ प्रधान ित्व ह।ंै ऐसा उनका मानना ह।ै प्रजाका सख और उसके दलए ‘अथष और काम’ के परुर्ाथष की दसदद्ध हिे ू सराज्यकी आवश्यकिाको वह जानिा ह।ैं इसी दलए पालक जैसे िि राजा को उखाड़ फें कना और गोपालक पि आयषक की राजाके रुपमे स्थापना करने में दपिा के आिेि के अदिररक्त लोकायिमि की पदि भी प्रिीि होिी ह।ै िदवलष क है िो िाह्मण लेदकन उसमंे िाह्म-क्षाि िजे है और एक क्रादं िकारी के रूप मं,े उसका बदद्धिेज और क्षाििजे िोनों का पररचय होिा ह।ै िदवलष क का व्यदक्तत्व प्रभाविाली ह।ै वह पालक के दखलाफ दवरोह करने हिे ू उज्जयनी आिा ह।ै िदवलष क की उपदस्थदिसे ही द्यिागार के द्यिू कार भी व्यग्र होिे ह।ैं राजपरुर् और चोर भी परेिान ह,ैं दवद्वानों की मंडली में पंदडि भी उनकी राय पूछिे ह।ंै गादयक और निकष ीयां भी उसके अनग्रह-व्यंनय के दलए उत्सक ह।ंै लदे कन, सबकी उपेक्षा करने वाली 'मिदनका', जो कल्पलिा की िरह है, वो ‘िदवलष क’ से स्नेह करिी ह।ै इन सबके बावजिू उज्जदयनी कभी-कभी ‘िदवलष क’ को दनराि करिी ह।ै उनका मानना है दक उज्जयनी के लोग स्मदृ िभ्रंि से पीदड़ि ह।ंै राजा पालकने अपने ज्यषे ्ठ भाई को मारकर उसका राज्य ले दलया इस बाि प्रजा को चभू िी नहीं है । वसिं सने ा जैसी नगरश्री को बलात्कार से वि करने की और चारुित्त जसै े प्रदिदष्ठि संस्कारी व्यदक्त से बिला लने े की धमकी िने े वाला ऐसे अनायष ‘िकार’ के दखलाफ नगरमंे दकसी का लहू नहीं खौलिा! उसे एक ऐसे नगरमें मंे जान फंू कनी है जो दवलासी और दनवीयष हो गया ह।ै उज्जदयनी का ‘नरिग’ष भेिकर उसे राजपररविष करना ह।ै इसदलए ‘माधव, ििषरक और निं नक’ जसै े दमिो को 'रािधमव का वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 13
14 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पालन न करने िाले रािा को कु त्ते की तरह मार डालो !' १४ ये मिं ििे े ह।ैं वह मिदनका के स्नहे का भी स्वीकार करिा ह।ै और सोचिा है दक मिदनका के माध्यम से राजदवप्लव में वसंिसेना और चारुििकी भी सहायिा ली जा सकिी ह।ै िदवलष क अपनी सने ा को महल में सरं क्षक के पास और बंिीगहृ में महत्वपूणष स्थानों पर रखिा ह।ै माधव मरने से पहले राजमरा भी लािा ह।ै ििषरक आदि राजा पालक के प्रदि लोगों मंे असंिोर् फै लािे हंै और उसके काम मंे मिि करिे ह।ैं िो सामने महाअमात्य भरि रोहिक ने आयकष को पकड़ने की योजना बनाई ह।ै ऐसी सूचना दमलने पर िदवलष क दमि बचाव के दलए ििषरक को भेजिा ह।ै और उज्जयनी की रोजाना दस्थदि सभँ ालने हिे ू वह खि उज्जयनी मंे रहिा ह।ैं लदे कन गहरा कारण यह हो सकिा है दक उन्हंे मिदनका को छोड़ना पसंि नहीं था। उसका सारा धन आयकष के दलए सने ा जटाने में खचष हो गया, िसू री सने ा के दलए और साथ ही उसे मिदनका को वसिं सेना के बधं न से मक्त करने के दलए धन की आवश्यकिा थी। इसदलए उसने चोरी करने का फै सला दकया। और अनजाने मंे वह चारुित्त के घर मंे चोरी करिा ह।ै वह चोरिास्त्र का भी दविेर्ज्ञ ह।ैं वह अलंकार चराकर मिदनका को छड़ाने जािा ह।ै वहां चारुित्त की िस्वीर िेखकर वह हरै ान रह जािा है दक उसने वहां चोरी की ह।ै यह जानिे हएु दक अलकं र वसिं सने ा के ह,ै वह अिं र से अपराधभाव का अनभव करिा ह।ै लदे कन बाहर से साहस के साथ वह मिदनका को समझािा ह,ै दक मिदनका के दलए उसका प्यार अनोखा ह।ै इस िरह के उसके साहदसक कायष से िंदकि बनी मिदनका को यह कहकर चलिा बनिा है दक ‘मदवनका से अवधक र्गौरिपूणव लक्ष्य हंै मरे े पास’ ।१५ वहां दछपी हुई वसंिसने ा उन िोनों को बलािी है और अलंकारो के बिले मंे मिदनका का हाथ िदवषलक के हाथ मंे िेकर उसे ‘वधपू ि’ प्रिान करिी ह।ै उसी समय नेपथ्य मंे घोर्णा सनाई ििे ी है की, नपे थ्यम:े परादजि। समस्ि आयकष सैन्य परादजि। सावधान...। िदवलष क को लगिा है दक उसकी योजना दवफल हो रही ह।ै मिदनका के स्नहे मंे, उसे पछिावा होिा है दक वह आलसी हो गया ह।ै मिदनकाको दमि भाव रेदभल के सहारे छोड़कर दवप्लव कायष को और िेज करिा हIै आयकष को जले से कै से छड़ाया जाए इस बाि से िदवषलक दचंदिि है । जीणोद्धान मंे वािाष के िौरान, चारुित्त सझाव िेिे है दक दकसी प्रकार से ‘यदि राजामरा दमल जाए िो आयषक को छड़ाया जा सकिा ह’ै । माधव ने मरिे वक्त राजमरा िदवलष क को िी थी, लेदकन वह अब मिदनका के पास ह।ै अगर इसे उसके पास जािा है िो प्रदिज्ञा भगं हो जािी ह।ंै ‘चारुित्तम् और मृच्छकदटकम’् की वारागं ना मिदनका इस नाटकमंे दवरागं ना बनकर आिी है और यह बाि गप्त रूप से सनकर प्रगट होकर ‘राजमरा’ उसके सामने रखिी है और लोकदवप्लव के कायष मंे उसके साथ रहने की अनमदि मागं िी ह।ै लदे कन एक बार जब िदवषलक, मिदनका के प्यार मंे पड़ गया और आलसी हो गया, िो वह अब नहीं चाहिा है दक वह उसका सहवास करे। क्योंदक उसे खि पर भरोसा ह।ै लदे कन आविे मंे आकर मिदनका को 'दवलादसनी' कह ििे ा ह,ै बाि में उसे इसका पछिावा होिा ह।ै मिदनका आघाि पाकर कहिी है 'आपके शील की परीक्षा लेने नहीं आउंर्गी’ १६ कहकर उससे महं मोड़ लेिी ह,ै िो िदवषलक भावनात्मक रूप से कहिा ह।ै 'िाओ, हृदयशे ्वरी, मैं तमु्प्हारा उपयिु पवत िनरंू ्गा और तमु से वमलूरं ्गा।' १७ लेदकन मिदनका ने यह दिखािे हएु दक वह क्रादं ि की साथी ह,ै वह आयकष को मक्त करािी ह,ै िो श्विे पद्माको भी पालक के महले से भगाने मंे सहायिा करिी है और राज्यकी ‘िक’ प्रजाको राजा पालक के प्रदि उकसािी ह,ै और वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 14
15 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 ‘ििक’ को हमले करनके ा का संके ि भी िेिी ह।ै िदवषलक लोकायिमागी ह।ैं उसे भगवान की पूजा में कोई दवश्वास नहीं ह।ै लेदकन वसिं सेना और मिदनका का जब पिा नहीं चलिा है िो क्षणभर के दलए, अगर उनका पिा चले िो वह िवे िाओं की पूजा करने का भी मन बनािा ह।ै वह उलझन मंे है दक उज्जयनी मंे प्रविे कै से दकया जाए। क्योंदक भरि रोहिक ने पख्िा इिं जाम दकया ह,ै लदे कन खदफया जानकारी के आधार पर अब वह क्षोदिय िाह्मणों के वेि मंे राज्यमंे घसने का फै सला करिा ह।ै पालक का यज्ञभदू ममंे ही वध करके राजसत्ता को कै से हदथयाना ह,ै इसकी सटीक योजना िय करिा ह।ै इन सारी दस्थदियोंमें उसकी सूक्ष्म और िरू दृदि प्रिीि होिी ह।ै राजा पालकका वध हो गया, दवप्लव दसद्ध हो गया ह।ै लदे कन उसे सत्ता की कोई लालसा नहीं ह।ै वह आयषक के अमात्य बनने के दलए अपने प्रदिद्वंद्वी भरि रोहिक से प्राथषना करिा ह।ै भरि रोहिकको भी अपने कट्टर िि को िेखकर कहिे ह,ैं “धमावदथशव ्च कामश्च । शालंकायनपतु ्र, अर्गर तु महाअमात्य होकर िैवदक धमव को अर्गर दृढ िनाये तो तेरे वपता का सारा िरे भूलने को तैयार ह’ँा । १८ भरि को प्रिीि होिा है दक “अर्गर मझु े इसके िैसा पुत्र होता तो?” १९ िब िदवषलक जीवन के प्रदि अपने दृदिकोण की व्याख्या करिे हएु कहिे ा है की \"मुझे अवधकारों के प्रवत आकषणव नहीं ह,ै मझु े सौन्दयव का, साहस का आकषवण है मोक्ष खोिनमे ें साहस ह,ै उसका का भी मझु े आकषणव ह।ै लवे कन मेरी िवृ त्त लोर्गों की आवथकव सुखकारी मंे खेलती की ह।ै मुझे मोक्ष के वलए िरै ाग्य िावहए, मुझमंे िरै ाग्य नहीं ह।ै “ २० यह कहकर भरि रोहिक को अमात्य का पि स्वीकार करने को कहिा ह।ै लदे कन भरि रोहिक उसे िरंि िदक्षणके स्मिान जाने के दलए कहिा ह।ै \"... वह वहां जािा ह,ै िो उसकी दप्रयिमा के िरीर का अंदिम संस्कार कर दिया गया ह।ै वह “आपके शील की परीक्षा नही आउंर्गी” २१ ऐसे मिदनका के िब्िों को याि करिे पछिािा ह।ै लोकायि के अनसार, मानव िरीर के वल चार भिू ों से बना ह,ै लदे कन मिदनका के चल बसने से, उन्हंे लगिा दक मिदनका दसफष चार भूिों की मूदिष नहीं थी। कछ दविेर् थी । वह जानना चाहिा है दक यह दविेर् ित्व क्या ह।ै आयकष उसे अपना अमात्य बनने के दलए कहिा है लदे कन वह नहीं मानिा। वह कहिा ह:ै 'मझु े िैराग्य नहीं है । मैंतो अनुरार्ग से प्रेररत हं ।' २२ लेदकन वसिं सेना उसे अनरागधमष समझािी ह।ै वह मिदनका का सच्चा साहदसक ह,ैं उन्हंे िो महाराज आयषक का लोकरिा सदचव ही बनना ह।ै िब िदवषलक सोचिा है दक राजपररविष की समथष नादयका प्रदि सही िपषण िो लोक का कल्याण करने में ह।ै इसदलए, आयषक का लोकरिा बनना स्वीकार करिा है और इस प्रकार वह अनासदक्त का प्रविष क बन जािा ह।ै नाटक में दनदमिष संघर्ष का नायक ‘िदवषलक’ ह।ै राम-रावण के यद्ध में सत्य और असत्य के पक्ष में सेनाएँ खडी ह,ैं जीव सटोसटकी बाजी खेली जा रही ह,ै धारा रक्तरंदजि है और िोनों ओर रक्तपाि का खेल खेला जा रहा ह।ै असत्य के पक्ष में ‘पालक, िकार, भरि रोहिक’ मारे जािे ह,ंै िो सत्य की ओर से ‘चारूित्त’ मारा जािा ह!ै मिदनका ने आत्महत्या कर ली। क्रादं िकाररयों बदलिान िेिे है और अंि में सत्य की जीि होिी ह।ै आयषक राजा बन जािा ह।ै इस प्रकार िदवषलक एक सच्चा \" ररवोल्यिनरी - क्रादं िवािी नहीं - क्रांदिकारी ह।ै \" २३ वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 15
16 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 वनष्ट्कषा: मूल महाकदव भास की कृ दि ‘िररर चारूििम्’ में जो के वल स्नहे के दलए, साहस करनवे ाला िाह्मण, ‘सज्जलक’ चोर कमष करिे हुए दिखाया गया ह।ै चोरकमष के प्रसंग मंे ही उसकी प्रदिभा का ििनष होिा ह,ै एक गौण चररि के रूप में उन्हंे यहाँ पयाषप्त जगह नहीं दमली। लदे कन िूरके ने उनके व्यदक्तत्वके लक्षणों को पहचानिे हुए उन्हंे 'राजक्रांदि' की उपकथा का उपनायक बना दिया, लेदकन क्रादं ि का आंिोलन िो पिे के पीछे ही रखा था, इसदलए उनका चररि उिना नहीं उभर पाया, दजिना उभरना चादहए था। क्योंदक प्रधानकथा िो 'प्रेम कथा' ह,ै ‘राजक्रादं ि’ नहीं। लदे कन 'िदवषलक' के रचदयिा श्री परीख 'राजक्रांदि' की कथा को प्रधान बनािे हैं और ‘प्रमे कथा/ए’ गौण, साथ ही प्रधान नायक के गणों से भरपूर एसा 'िदवलष क' सही अथषमें क्रादं ि करिे नजर आिे ह।ैं ‘मचृ ्छकदटकम’् मंे, आयकष को िदवषलक द्वारा कारागहृ से ररहा कर दिया जािा ह,ै लदे कन ‘िदवषलक’ में मिदनका, वारागं ना से वीरागं ना बनकर 'राजमरा' की मिि से आयषक को मक्त कराने मंे मिि करिी ह।ै िो, ‘िदवषलक’ भरि रोहिक और राजा पालक की सभी योजनाओं को उलट िेिा ह।ै यहाँ वह एक किल राजनीदिज्ञ ह,ै एक वीर योद्धा ह,ै िक्र बदद्ध ह,ै किवष ्यपरायण ह,ै हाँ चोरकमष उसके व्यदक्तत्व का अभाव है लदे कन वह प्रमे और िौयष में अदद्विीय ह।ै मिदनका के दलए त्यागवदृ ि ह,ै िो क्रांदि हिे ू किवष ्यदनष्ठ ह।ै इस प्रकार एक सफल राजनीदिज्ञ, सच्चा प्रमे ी, िपस्वी, क्षमािील, उिार, वीर और किषव्यपरायण अमात्य के रूप मंे 'िदवलष क' का चररि चन्रमा की सोलह कलाओं समान दखल उठिा ह।ै सिं भा: १. सीिाराम चिविे ी (१९६४) ‘अवभनि नाट्य शास्त्र’ : (१९६४) इल्ल्हाबाि, दकिाब महल प.ृ ११३ २. डॉ. िास्त्री एन (२००९) महाकवि भास भोपाल, मध्य प्रििे ग्रन्थ अकािमी प.ृ १८८ ३. के . का. िास्त्री : ‘संवक्षप्त भरत नाट्य शास्त्र ‘ (१९५८) बडौिा, म. स. दवश्वदवद्यालय प.ृ ८४-८५ ४. प.ं पाण्डेय, पी. (१९९५) ‘िारुदत् ्तम’ वाराणसी, कृ ष्ट्णिास अकािमी. अकं ३, प.ृ ११०-१११ ५. वही प.ृ १०८-१०९ ६. वही प.ृ १०४-१०५ ७. वही प.ृ १४२-१४३ अंक ४ श्लोक ५ ८. वही प.ृ १५६-१५७ ९. वही प.ृ १५७ १०. मोहन राके ि, (१९९९) ‘मचृ ्छकदटक’ नइ दिल्ली, बहावलपर हाउस, रा. ना. दव., प.ृ ७९ ११. वही प.ृ ७९ अकं ३ श्लोक ११ १२. वही प.ृ ८० १३. परीख, आर. सी (१९८३) ‘िदवषलक’ अमिावाि, गजरष ग्रन्थ रत्न कायाषलय. प.ृ २ वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 16
17 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 (मलू मंे गजरािी ; अनवाि दहन्िी मं)े १४. वही अ.ं १ प.ृ ४७ १५. वही अ.ं ३ प.ृ ११६ १६. वही अ.ं ३ प.ृ १३७ १७. वही १८. वही अ.ं ५ प.ृ १९४ १९. वही २०. वही २१. वही अ.ं ५ प.ृ १९७ २२. वही अ.ं ५ प.ृ १९४ २३. वही प.ृ २ सन्िभा सू ी: १. के . का. िास्त्री : सदं क्षप्त भरि नाट्य िास्त्र (गजरािी) २. अदभनव नाट्य िास्त्र : सीिाराम चिविे ी ३. डॉ. रमाकािं दिपाठी : ससं ्कृ ि नाट्य दसद्धांि ४. डॉ. कृ ष्ट्णकांि कडदकया : िदवलष क : नाट्य प्रयोग दिल्प नी रदिऐ (गजरािी) ५. नारायण, हेन्री डब्ल्यू वेल्स : अन: वीरंेर : ‘भारि का प्राचीन नाटक ‘ ६. डॉ. िास्त्री नेदमचन्र : महाकवि भास ७. प.ं पाण्डये , पी. : ‘भासनाटकचक्र ’‘िारुदत् ्तम’ ८. प्रा. िांदिकमार एम.् पडं ्या प्रा. िदचिा वाय. महिे ा : ‘चारुित् ्तम’ ९. डॉ. गंगा सागर राय : ‘मचृ ्छकदटकम’ १०. मोहन राके ि : ‘मचृ ्छकदटकम’ ११. डॉ. डी. आर. सथार: ‘मचृ ्छकदटकम’ (गजरािी) १२. श्रीरदसकलाल छो. परीख : ‘िदवलष क’ (गजरािी) वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 17
18 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मानि-मन की आकािं ाओं के िमन को व वत्रत करता नाटक ‘अंजो िीिी’ वसमरन िोधाथी (पी-एच.डी.) दहन्िी दवभाग, दिल्ली दवश्वदवद्यालय ई.मेल.- [email protected] साराशं उपने ्द्र नाथ ‘अश्क’ वहन्दी सावहत्य के अन्यतम सावहत्यकार के रूप मंे िाने िाते हंै । अपने लेखन के द्वारा उन्होंने तत्कालीन समाि की समस्याओं को िाणी प्रदान की । उनका सम्प्पणू व लखे न मानि मन के अनके पक्षों को स्पशव करने का साथवक प्रयास है । 1954 मंे वलवखत उनका नाटक ‘अंिो दीदी’ आिादी के िाद के समाि की मन:वस्थवत का िीिंत वित्र प्रस्तुत करता है विसमंे मानि मन की कंु ठाएा,ँ इच्छाओं के दमन और पीढ़ी के द्वदं ्व को स्पष्ट रूप से देखा िा सकता है । असल में अिं ो दीदी नाटक अवभिात्य समाि की यावं त्रक मनोिवृ त्त की ओर सकं े त करता है विसमंे मनुष्य का िीिन एक घिी की सईु की भावँा त हो र्गया ह,ै विसके िीिन मंे ठहराि की कोई र्गंिु ाइश नहीं वदखलाई पिती । स्ियं अिं ो कहती है वक ‘मैं िाहती हाँ – मेरा घर भी घिी ही की तरह िले । हम सि उसके पिु ें िन िायँा ।’ वकन्तु श्रीपत के माध्यम से नाटककार ने इस आतकं को अतं मंे समाप्त कर वदया है । नाटक के प्रारंभ मंे घिी की सईु से मनुष्य की तलु ना करने िाली अंिो की वििारधारा का, नाटक के अतं मंे उसके ही पवत इन्द्रनारायण द्वारा अस्िीकार, आतकं -वमवश्रत-वतवलस्म का टूट िाना है िो नाटककार के आशािादी दृवष्टकोण का सूिक प्रतीत होता है । अतः अश्क िी की दृवष्ट मानि मन की कंु ठाओं का वित्रण करते हुए, के िल और के िल समस्या को ितलाने की ओर नहीं रही, िवल्क सतं ुवलत समाधान प्रस्तुवत की ओर भी रही है और यही उनका आधवु नक भाििोध है । बीज िब्ि - सतं ्रास, कंु ठा, द्वंद्व, तानाशाह, अतवृ प्त, दमन, भवू मका दकसी भी समाज के दवकास की सभं ावनाओं का आधार, उस समाज की यवा पीढ़ी मानी जािी है जो उस समाज के दवकास में सबसे अदधक योगिान िेने का कायष करिी है । भारिीय ‘दिि’ समाज में बड़ों का आिर, दिििा,िालीनिा जसै े िब्िों का बालक के भीिर िलाि दकया जाना, कोई असामान्य या अनोखी बाि नहीं कही जा सकिी । भारिीय समाज में इसके इिर ‘टाइप’ बनने का दवरोध करने बालकों या यवाओं को, सिैव ही अदिि, संस्कारहीन और असामान्य की उपादध िी जािी रही है । इस संिभष मंे दहन्िी के दवरोही सादहत्यकार ‘अज्ञये ’ के उपन्यास ‘िेखर एक जीवनी’ के दवरोही िखे र का उिाहरण प्रस्िि दकया जाए या जैनने ्र के ‘त्यागपि’ की मणृ ाल का, िोनों ही टाइप के दसद्धांि के दवरोध के कारण जीवन मंे अनेक बाधाओं का सामना करिे हैं । ‘दिि’ समाज उनके नवीन दवचारों, िकों का मानो उपहास करिा प्रिीि होिा है दकन्ि इसके बाि भी यह िोनों ही पाि नवीन दवचारधारा को पि करने हिे संघर्रष ि रहिे ह,ंै दजसकी सफलिा िोनों ही उपन्यासों के अंि से पररलदक्षि होिी है । िखे र और िदि का साथ रहना और मणृ ाल का सामान्य जीवन त्यागना, िोनों ही; टाइप ना बनने का अप्रत्यक्ष दवरोह है जो समाज की परंपरागि दवचारधारा में पररविनष की माँग करिा है । ठीक इसी प्रकार आधदनक दहन्िी सादहत्य की प्रत्येक दवधा में परंपरागि जड़ मान्यिाओ,ं रूदढ़वािी दवचारधारा आदि के प्रदि अस्वीकार की भावना दिखलाई पड़िी है । दजनमें मानव-मन की आकांक्षाओ-ं अदभलार्ाओं के िमन को वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 18
19 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 सूक्ष्मिा से दचदिि दकया गया है । दहन्िी सादहत्य की नाटक दवधा को प्रारंभ से ही एक महत्वपणू ष दवधा के रूप मंे प्रदिष्ठा प्राप्त है कहने में अदिियोदक्त नहीं दक नाटक एकमाि ऐसी दवधा है दजसकी लोकदप्रयिा उपन्यास, कहानी, दनबधं आदि दवधाओं से सिैव अदधक रही ह,ै दजसका मलू कारण यह है दक अन्य दवधाओं के दलए उस वगष दविरे ् की आवश्यकिा रही है जहाँ का समाज दिदक्षि हो, दकन्ि नाटक के संिभष मंे यह समस्या नहीं है । दहन्िी और अन्य भार्ाओं के ऐसे अनके रदचि नाटक है दजसे दविरे ् रूप से सामान्य जन को जाग्रि करने हिे रचा गया था व दजसका उद्देश्य नाटक को मचं न योनय बनाना था, दजससे समाज ित्कालीन समस्याओं से रूबरू हो सके । भारिने ्ि द्वारा रदचि नाटक ‘अंधरे नागरी’ को भी मंचन हिे ही दलखा गया था । अस्ि नाटक दवधा आरंदभक काल से सम्पूणष समाज की जागदृ ि का कायष कर रही है । सामादजक उत्थान के दलए भारिने ्ि यग से दजस नाट्य दवधा का पिापणष हुआ, उसका पररपक्व रूप हमें आजािी के बाि के नाटकों मंे प्राप्त होिा है । समकालीन नाटकों में दवर्वस्ि और रचना-दवधान िोनों ही स्िरों पर प्रौढ़िम रूप ििनष ीय है । शोध आलेख दहन्िी मंे नाट्य दवधा के उत्थान के पाचँ चरण माने जािे हंै – भारिने ्ि, दद्वविे ी, प्रसाि, प्रसािोत्तर । प्रसािोत्तर यग के बाि पाचँ वा चरण समकालीन नाटक के रूप मंे प्रारंभ होिा है । यह समय आजािी के बाि की समस्याओं को नाटक के माध्यम से वाणी प्रिान करिा है । दहन्िी मंे प्रसािोत्तर काल के बाि, यथाथष की भदू म पर सामादजक समस्या को नाट्य लखे न के द्वारा अदभव्यक्त प्रिान की गई । इस यग के नाटककारों के लखे न में समाज की समस्याओं का यथावि दचिण दमलिा है । आरंदभक नाटककारों में प्रेम सहाय, लक्ष्मीनारायण दमश्र , उपेन्रनाथ अश्क , सठे गोदविं िास , हररकृ ष्ट्ण प्रेमी, दवष्ट्ण प्रभाकर, रामवकृ ्ष बने ीपरी आदि प्रमख माने जािे ह,ंै वहीं बाि के नाटककारों मंे जगिीिचंर माथर, मोहन राके ि, लक्ष्मीनारायण लाल , सरेन्र वमाष , लक्ष्मीकािं वमाष, सवशे ्वर ियाल सक्सने ा आदि ने भी ित्कालीन समस्याओं को आधार बनाकर नाट्य दवधा को संवद्धष दकया । विमष ान काल को नाट्य दवधा का पि काल दनसन्िेह ही माना जा सकिा है दजसमंे नाटकों में अदियथाथवष ाि की प्रचरिा दमलिी ह,ै जो समस्या को परू ी नननिा के साथ दचदिि करिा है । दकन्ि विमष ान काल की यह भी एक दवडंबना है दक नाट्य दवधा के दवकास में दिदथलिा आ रही है व उसका अदस्ित्व अब वसै ा नहीं रहा,जैसा आज से िीन-चार ििकष पूवष रहा करिा था । अिः नाट्य दवधा के महत्व को पन: प्रकाि को लाने हिे पाठक और ििषक के भीिर रुदच जागिृ करने का प्रयास दकया जाना चादहए, ऐसे नाटकों का मचं न दवदभन्न िदै क्षक ससं ्थाओं द्वारा कराया जाना चादहए, दजससे उनके भीिर पनः इन दवधाओं के प्रदि रुदच जागिृ हो । दहन्िी सादहत्य मंे उपेन्र नाथ ‘अश्क’ एक ऐसे सादहत्यकार के रूप मंे जाने जािे हंै दजन्होंने अपने लखे न के द्वारा समकालीन समस्याओं को सरलिम िैली (िेि भार्ा)मंे प्रस्िि दकया, दकन्ि इसके पश्चाि भी उन्हंे वह ख्यादि प्राप्त नहीं हईु , दजसके वे असल अदधकारी थे । दवधा चाहे कहानी हो, नाटक,उपन्यास,एकाकं ी,ससं ्मरण या आलोचना उनकी दृदि सरलिम लखे न की रही है । लखे न के माध्यम से उन्होंने जन-जन िक अपनी रचनाओं को पहुचँ ाने का प्रयास दकया । नाटक की बाि की जाए िो उनके कई नाटक सादहदत्यक और व्यवसादयक िोनों ही दृदियों से उत्तम माने जािे हंै । उन्होंने कई नाटक दलख,े दजनमें ‘लक्ष्मी का स्वागि’,‘स्वगष की झलक’,‘छटा बेटा’,’लौटिा हुआ दिन’,‘जय पराजय’,‘िवे िाओं की छाया’,‘अलग अलग रास्ि’े , ‘भँवर’, ‘अजं ो िीिी’ प्रमख है । उनकी अन्य रचनाओं का नाट्य रूपािं रण भी जगह-जगह प्रस्िदि हिे दकया गया । उनकी लखे न की बारीदकयों के कारण ही, सभी दवधा की रचना में नाटकीयिा के ित्व दिखलाई पड़िे हैं उनकी रचना पाठक के सामने एक जीवंि दचि प्रस्िि करिी है दजससे पाठक ग्रहण करने मंे दकं दचि भी सकं ोच नही करिा वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 19
20 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 । उनके लखे न मंे कहीं भी कृ दिमिा या अनावश्यक ित्व नहीं नजर आिे और यही उनके लेखन की सबसे प्रमख दविरे ्िा रही ह,ै दजसके कारण विमष ान में भी उनकी अनेक रचनाएं प्रासंदगक प्रिीि होिी हंै । सन् 1954 में रदचि उनका नाटक ‘अजं ो िीिी’ आजािी के बाि के उस अदभजात्य समाज का दचि प्रस्िि करिा है दजनका जीवन यादं िकिा की पराकाष्ठा को प्राप्त कर चका है और दजसका सचं ालन नाटककार ‘अंजो’के माध्यम से सचं ादलि करिे हंै । सम्पूणष नाटक की कंे र दबन्ि ‘अंजो’ और उसकी िानािाही प्रवदृ त्त रही है । आजािी के बाि के सपनों के क्रमिः टूटने और जीवन के यांदिक होने की दववििा को यह नाटक दचदिि करिा है । नाटक मंे ‘अजं ो िीिी’ पाि के माध्यम से यादं िक समाज की मॉदबडष जीवन की ओर सकं े ि दकया गया है दक कै से समाज और उनकी जीवन-िैली ने मानव को भीिर से बीमार कर दिया है । उसका जीवन एक यिं की भाँदि हो गया है । कथा के लगभग सभी पाि – अंजली, इरं नारायण ,नीरज, अन्नो, ओमी, मन्नी, राध,ू नीलम और अन्य गौण पाि भी जीवन के प्रत्यके क्षण को घड़ी की सई के दहसाब से जीने को दववि है । श्रीपि के इिर कोई भी पाि अपने जीवन से सिं ि नहीं दिखलाई पड़िा । मानों सभी को बार-बार घड़ी की सई की भादँ ि, समय से चलने को दववि दकया गया हो । नाटककार ने श्रीपि के द्वारा सामादजक समस्याओं का दचिण दकया है व नाटककार के दवचारों का प्रदिदनदधत्व भी श्रीपि के माध्यम से ही होिा है । आजािी के बाि के नाटकों मंे घटन, संिास ,अके लेपन, कं ठा व पीढ़ी के द्वंद्व जसै े दवर्य पर लखे न दविेर् रूप से दकया गया है । समाजवािी नाटककारों ने इस प्रकार के लेखन के माध्यम से सामादजक समस्याओं के दनवारण का भरसक प्रयास दकया, दजसका एक सफल उिाहरण ‘अजं ो िीिी’ नाटक के रूप मंे प्रस्िि है । नाटककार ‘अश्क’ जी ने नाटक मंे स्थान-स्थान पर ऐसे प्रसगं ों की सजषना है दजससे अदभजात्य समाज की आंिररक दस्थदि का ननन दचि प्रस्िि दकया जा सके । प्रस्िि नाटक मानव-मन की आकाकं ्षाओ-ं अदभलार्ाओं के िमन को वाणी प्रिान करिी है । ‘अजं ो िीिी’ यांदिक होिे समाज का ही एक उिाहरण है दक कै से सम्पूणष समाज मनष्ट्य ना होकर घड़ी का प्रिीक बनिा जा रहा है और दजसका संचालन पीढ़ी िर पीढ़ी हस्िांिररि हो रहा है । डॉ नगने ्र ‘अंजो िीिी’ नाटक के दवर्य में अपने इदिहास ग्रंथ मंे दलखिे हैं दक-“ ‘अजं ो िीिी’ किाव त अश्क की सिाावधक प्रौढ़ नाटकीय कृ वत है ।”1 नाटककार की गहन समझ और दृदि इस नाटक को साथकष िा प्रिान करिी है । कहीं भी अजं ो का चररि कृ दिम प्रिीि नहीं होिा, दजसका कारण है अंजो िीिी के नानाजी । सम्पणू ष नाटक का अध्ययन करने पर अजं ो िानािाह के रूप मंे दिखलाई पड़िी है दकन्ि सकू्ष्मिा से कथा पर ध्यान आकृ ि करने पर पाठक इस समझ को दवकदसि कर सकें गे दक अजं ो िीिी स्वयं नानाजी के कारण अदभलार्ाओं और आकांक्षाओं के िमन को झेल चकी है और अब िमन का संचालन उसे दवरासि मंे प्राप्त हो गया है । नाटककार ने मानव मन को अत्यंि गहराई से जानने का प्रयास दकया है अंजो के इस चररि को स्वाभादवक और स्वीकायष बनाने हिे अनेक यत्न दकये हैं जो इस प्रसंग में स्पि रूप से दृिव्य है – “हमारे नानाजी कहा करते थे, नौकरों को सिा साफ़- सथरा रखना ावहए । जैसे घर के भाग्य का पता िहे री से लता है िैसे ही मावलकों के स्तर का पता नौकरी के पहरािे से लगता है । गंिे नौकरों से नानाजी को बड़ी व ढ़ थी,उनके साथ रहकर मंै भी िैसी ही हो गयी ।”2 अंजली (अंजो िीिी) नाटक की पहली िदमि पाि का एक उिाहरण है जो अपने नानाजी के कारण िदमि जीवन व्यिीि कर, अब उसी जीवन की अभ्यस्ि हो चकी है और वही जीवन अपने पि नीरज को भी िने ा चाहिी है । उसे दकं दचि भी उस आिं ररक िमन का अिं ाजा नहीं है जो उसे उसके नानाजी ने दिया । वह सिवै अपनी बाि को पि करने के दलए ‘नानाजी कहा करिे थे’ वाक्य का इस्िेमाल करिी है जो इस बाि का सचू क है दक अंजली अत्यदधक िमन का दिकार रही है उसकी आकाकं ्षाओं का सबसे अदधक िमन हआु है दकन्ि दजसका कभी प्रत्यक्ष रूप से उसे कभी एहसास िक नहीं 1(सं)डॉ.,नगने ्र,सह(सं)डॉ हरियाल,(2018).दहन्िी सादहत्य का इदिहास.निे नल पदब्लदिंग हाउस.दिल्ली.पषृ ्ठ सं-663 2 अश्क,उपेन्रनाथ.(2016)अंजो िीिी.नीलाभ प्रकािन.इलाहबाि.पृष्ठ सखं ्या-29 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 20
21 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 हआु ! इसी कारण वह अपने पि को नानाजी जैसा बनाने के स्वप्न िखे िी है वह अन्नो(अदनमा) से नीरज के दवर्य में कहिी है – “िह हमेशा समय से उठता है समय से डडै ी के साथ सैर जाता है ...हमारे नानाजी कहा करते थे िक्त की पाबंिी सभ्यता की पहली वनशानी है.. और नीरू काम आराम और खेल के समय का परू ा-परू ा ध्यान रखता है ।”1 नानाजी की यादं िक प्रवदृ त्त स्पि रूप से अजं ो के चररि के माध्यम से रेखांदकि होिी है । िमन को झले चकी अजं ो को िमन का एहसास िक नहीं है वह बार-बार नानाजी के दवचारों को गवष से सबको बिािी है जैसे वो जीवन जीने का सबसे सलभ ढगं हो । नाटककार ने अंजो के चररि के मानदसक िमन को दचदिि दकया है । िमन की दिकार ‘अजं ो’ अब स्वयं िमन का सचं ालन करिी प्रिीि होिी है । अपनी आकांक्षाओं और अदभलार्ाओं की िदृ प्त, वह अपने पि के माध्यम से चाहिी है । नीरज की बाल सलभ चचं लिा के स्थान पर चहे रे पर गभं ीर भाव का होना अजं ो की अिदृ प्त का ही पररणाम है । अजं ो का यादं िक चररि, नीरज िक पर अनेक पाबंदियाँ लगािा दिखलाई पड़िा है और यही कारण है दक उसकी बाल सलभ चंचलिा िलषभ हो गयी है । उसके चररि का वणषन माि ही इस बाि को प्रमादणि करिा ििे ा है – “नीरज िस-ग्यारह िषा का बच् ा है । नीली बश्शटा और सफे ि वनक्कर पहने, संिर, सकमार और ससंस्कृ त । लेवकन ेहरा उसका गंभीर है । बाल सलभ ं लता का सिाथा िहाँ अभाि है । उसकी ाल उस बछड़े सी है, वजसने गले मंे बंधीं रस्सी के साथ समझौता कर वलया हो ।”2 इस प्रकार नाटककार ने बाल-मन की चंचलिा के िमन की ओर संके ि दकया है । नाटक के आरंभ में अंजली द्वारा यह कहना दक वह कमरे मंे ही नाश्िा करिा ह,ै इस बाि का सूचक है दक पररवार से दजस प्यार की उसे अपके ्षा है सवषथा दिि बनने के कारण उसका वहाँ अभाव है । नाटक में सभी पािों का अप्रत्यक्ष रूप से िमन दचदिि होिा है दजस कारण इसके प्रदि आरंभ से ही कोई दवरोध नहीं दिखाई पड़िा,दकन्ि अंजली के भाई श्रीपि के द्वारा नाटककार अश्क जी ने सभी पािों की इच्छाओं के िमन को वाणी प्रिान की है । अंजली के यादं िक चररि के स्पि कारण भी श्रीपि के माध्यम से ही नाटककार प्रकाि में लािे हंै । घर में प्रवेि करने के साथ ही वह अजं ली के ऐसे चररि होने के कारणों को उद्घादटि कर िेिा ह,ै वह कहिा है –“हमारे घर में वकसी तरह का बधं न नहीं । बात यही है वक स्िगीय नानाजी ने अंजो डीिी के विमाग को जकड़ रखा है । िे थे भी तानाशाह । सिा अपनी राय िूसरों पर लािा करते थे ..... हमारे घर में ऐसा करना महापाप समझा जाता है ।”3 इस प्रसंग के माध्यम से श्रीपि अजं ो की िानािाही के कारण को पररवार के सामने प्रस्िि कर ििे ा है और इससे अंजो के चररि को और अदधक जीवनंिा प्राप्त होिी ह,ै उसका चररि कहीं भी कृ दिम प्रिीि नहीं होिा, वहीं यह प्रसगं अंजो की िानािाही के कारण को भी पाठक के सम्मख प्रस्िि करिा है । नाटक के सभी पािों के दवर्य में श्रीपि कहिा है दक -“इस घर के सभी लोग पजे हैं,कसम भगिान की, मशीन के पजे !”4 उपरोक्त प्रसगं ों के माध्यम से नाटककार ने मानव मन की इच्छाओं के िमन व उनके कारणों का उल्लखे दकया है । अदभजात्य समाज की जीवन-िैली दकस प्रकार घड़ी की सई जसै ी होिी जा रही है इस ओर भी अश्क जी पाठक का ध्यान कें दरि करिे नजर आिे हंै ,दजसका प्रदिदनदधत्व श्रीपि के द्वारा दकया गया है । सम्पणू ष नाटक में उसका चररि एक ही समान दिखाई पड़िा है उसके चररि में पहले अंक से लेकर अदं िम अकं िक कोई भी पररविनष िखे ने को नहीं दमलिा । िोनों ही अंकों में उसके आने के पश्चाि अनके सत्य उद्घादटि होिे हंै । अंजो के पदि इरं नारायण की इच्छाओं के साकल श्रीपि के स्पिष करने भर से स्वयं खल जािे हैं । उनके नीरस जीवन पर बार-बार श्रीपि अट्टहास करिा है दकन्ि वे अजं ो के 1 वही.पृष्ठ सं-30 2 वही-पृष्ठ सं-42 3 वही.पषृ ्ठ स-ं 54 4 वही.पृष्ठ स-ं 53 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 21
22 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 कारण यादं िक जीवन जीने को दववि है । नाटककार ने इन्रनारायण के दववाहपूवष दजस प्रकार के जीवन का वणषन दकया है उससे स्पि होिा है दक अजं ो की िानािाही के कारण वे इस जीवन िैली को अपनाने को दववि हएु । कथा के िसू रे अंक के अंि मंे वे कहिे ह-ैं “ज़रा-सी गलती पर अपनी सनक में तमने मेरे पाँ बरस रेवगस्तान बना डाले अजं ो, मंै तम्हंे क्या कहँ । इस कमरे पर बरसों से तम्हारा जािू तारी है,पर श्रीपत ठीक कहता है,यह जािू टूटना ावहए,इस घर को उस घड़ी की तरह नहीं, इसं ानों की तरह जीना ावहए ।”1 अजं ो के पि नीरज की कं ठा और िमन को भी श्रीपि के प्रयासों द्वारा ही स्वर दमला है । िािं और अंजो की आज्ञा को जीवन का अंदिम सत्य मानने वाला उसका पि, श्रीपि के सम्मख अपनी सभी इच्छों का दजक्र कर ििे ा है उसके भीिर अपनी इच्छा से कछ कर सकने की पहली उम्मीि उसके मामा के माध्यम से उसे दमलिी है दकन्ि अंजो के आििष नीरज की इच्छाओं का िमन कर िेिी ह,ै दजसके पररणामस्वरूप ही अपनी अधूरी कामना को वो अपने पि नीलम के माध्यम से फलीभूि करना चाहिा है । िमन का यह हस्िािं रण पीढ़ी िर पीढ़ी दकस प्रकार हस्िांिररि हो रहा है इस समस्या को सामने लाना ही नाटककार का उद्दशे ्य है । मनष्ट्य की जीवन िैली, इच्छाओं व बालकों के नसै दगषक रुझान का िमन दविरे ् रूप से इस नाटक मंे दृिव्य है । अंजो का नानाजी द्वारा,नीरज का अंजो द्वारा और नीलू का नीरज और ओमी िमन, उस िमन चक्र का सचू क है दजसका पीढ़ी िर पीढ़ी पररवार के सिस्यों द्वारा हस्िािं रण हो रहा है । नाटककार अश्क जी ने ओमी के माध्यम से एक नई अंजो के चररि को पाठक के सम्मख प्रस्िि दकया है । एक स्थान पर श्रीपि कहिा है – “मैंने गलत कहा,तम अंजो िीिी से एक किम आगे हो । तम्हंे वकसी हस्पताल की मेरन होना ावहए ।”2इस प्रकार नाटककार ने सकं े ि दकया है दक पीढ़ी िर पीढ़ी उसी मानदसकिा को पोदर्ि दकया जा रहा है । वही नीलू नीरज की प्रदिच्छाया ह,ै अंजो की मतृ ्य के बाि भी सबकछ घड़ी की सई के अनसार ही ओमी करिी है । ओमी पनः अंजो की प्रदिमूदिष या उससे और अदधक िानािाह प्रिीि होिी है दजसके कारण ही नीलू कदव बनने की इच्छा के बावजूि श्रीपि से कहिा है दक –“पर मम्मी कहती हैं यह सब पागलों के काम हैं ,तझे कवमशनर बन कर वजलों पर राज करना है ... पापा कहते हंै वक तू वक्रके ट खेला कर , वक्रके ट खेलेगा तो मनकि, हजारों, अमरनाथ की तरह प्रवसद्ध हो जाएगा..।”3 िबला पिला होने के बावजिू नीरज अपनी अिपृ ्त आकांक्षाओं को अपनी संिान के माध्यम से फलीभूि करना चाहिा है । वहीं ओमी अपनी सास की इच्छा कदमिनर बनाने के स्वप्न को परू ा होिे िखे ना चाहिी है । दकन्ि नीलू की इच्छा,जो दक कदव बनने की है उसका िोहरा िमन दकया जािा है और यह िमन चक्र दनरंिर चलिा रहिा है । नीरज की इच्छाओं का अजं ो द्वारा िमन दकया गया दकन्ि उसका पररणाम अंि में सकारात्मक नहीं दिखाई पड़िा, नीरज आई.सी.एस नहीं बन पािा; अजं ो के आििष पर िूसरे अंक में नीरज व्यंनय करिा नजर आिा ह;ै उसके चररि मंे दिििा नहीं है वह अपनी कं ठा बार-बार व्यक्त करने को उिारू रहिा है–“मन वक्रके ट में, आँखें पढ़ाई में, नतीजा तम्हारे सामने है । न वक्रके ट के कप्तान बने, न आई.सी.एस ।”4 नीरज के चररि की असफलिा है दक अंजो ने जो इच्छाएं उसपर थोपी, वही इच्छाएं वह अपने पि नीरू पर थोपिा है और उस िमन चक्र को पनः सचं ादलि करिा है । अश्क जी के इस नाटक मंे सभी चररि अपने जीवन से असन्िि दिखलाई पड़िे हंै । कथाकार कमलेश्वर प्रस्िि नाटक की भदू मका में इस नाटक के दवर्य में दलखिे हंै दक –“सभं ितः वहन्िी नाटकों मंे अभी तक इतनी वनमाल कहानी भी नहीं आयी । ...इस नाटक में कहीं भी कलष,िासना या विकृ त प्रेम आ ही नहीं पाता । एक अवत-साधारण बात को उठा कर 1 वहीं.पषृ ्ठ स-ं 108 2 वही.पषृ ्ठ स-ं 85 3 वही.पृष्ठ सं-93 4 वही.पृष्ठ सं-77 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 22
23 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 उस िगा के वजस यथाथा का उद्घाटन इसमंे हो गया है, िह भी उसकी मख्य समस्या है यह सहसा विखाई पड़ने लगता है । प्रेम, अथा आवि से परे ाररवत्रक मनोिवृ ियाँ, ग्रवं थयां और विलिणताएं भी हैं, जो आकवस्मक पररवस्थवतयों के आभाि मंे जीिन को प्रभावित करके तोड़ती और बनाती रहती है ।”1 वनष्ट्कषा – उपेन्र नाथ अश्क दहन्िी सादहत्य के अन्यिम सादहत्यकारों में से एक है । उनका सम्पणू ष सादहत्य यथाथष की भूदम पर सदजिष हुआ है । उिषू से अपने लेखन की िरुआि करने वाले अश्क जी को कथाकार के रूप मंे दहन्िी प्रेदमयों से अत्यदधक प्रमे दमला । सादहत्य की अन्य दवधाओं की भाँदि उन्होंने नाट्य दवधा मंे भी अपना बहमु लू ्य योगिान दिया । सन् 1954 मंे रदचि ‘अंजो िीिी’ के माध्यम से उन्होंने यह दसद्ध कर दिया दक वह हर दवधा में प्रदसदद्ध के अदधकारी रहे हंै । उनका यह नाटक दवर्यवस्ि, रचना-दवधान और रंगमंचीयिा आदि सभी दृदियों से प्रौढ़िा का उत्तम उिाहरण है । इस नाटक के द्वारा अश्क जी ने मानव मन की िदमि आकांक्षाओ-ं अदभलार्ाओं का जीवंि दचि प्रस्िि दकया ह,ै साथ ही समाज मंे सिं लन बनाए रखने का संििे भी अपने प्रदिदनदध पाि श्रीपि के माध्यम दिया है दजसके द्वारा अंधकारमय जीवन जीने को दववि पाि भी, आिा की लो को िलाि सके । अिः अश्क जी की यह कृ दि उनकी प्रौढ़िम नाट्य कृ दियों मंे से सवषश्रषे ्ठ है इसमें सिं हे नहीं । सहायक ग्रथं सू ी आधार ग्रंथ 1. अश्क,उपने ्रनाथ,(2016)अजं ो िीिी. नीलाभ प्रकािन.इलाहबाि सहायक ग्रंथ 1.बच्चन,हररविं राय,(2015)दहन्िी आलोचना के बीज िब्ि.वाणी प्रकािन.नई दिल्ली 2.राय,गोपाल,(2010)दहन्िी उपन्यास का इदिहास.राजकमल प्रकािन.नई दिल्ली 3.(स)ं डॉ.,नगने ्र,सह (स)ं हरियाल,(2018)दहन्िी सादहत्य का इदिहास.नेिनल पदब्लदिंग हाउस.नई दिल्ली 4.िनेजा,जयिवे ,(1978)समकालीन दहन्िी नाटक और रंगमचं .िक्षदिला प्रकािन.नई दिल्ली 5.डॉ.अमरनाथ,(2018),दहन्िी आलोचना की पाररभादर्क िब्िावली.राजकमल प्रकािन.नई दिल्ली. 1 वही.भूदमका से.पृष्ठ सं-18 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 23
24 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 स्त्री पर पाररिाररक वहसं ा का िशं और िवलत आत्मकथाएँ डॉ. ररत अहलाित मो. नं.- 7683055158 ईमले - [email protected] सारांश - ‘पाररिाररक वहसं ा’ ररश्तों के िीि हईु वहसं ा से सिं ंवधत है इसके अतं र्गतव यौन उत्पीिन, आवथवक ससं ाधनों से िंवित करना, वहसं ा, मार-वपटाई, स्िास््य को हावन पहिुँा ाना, मिाक उिाना, अश्लीलता, दषु ्कमव, मवहला को वनिुवव द्ध वसद्ध करना या अपमावनत करना, अपशब्द कहना, उसको मानवसक रूप से उत्पीवित करना आवद आता है । मवहलाओं के साथ होने िाले इस प्रकार के व्यिहार में के िल भारत ही नहीं िवल्क परू ा विश्व ही कटघरे में खिा है । िहीं दवलत मवहलाएाँ तो सामाविक और पाररिाररक दोनों प्रकार की वहसं ा झेलती निर आती हंै । पररिार के भीतर िे शारीररक मानवसक, आवथकव और यौन वहसं ा का वशकार िनाई िाती हैं । िे इसके वखलाफ आिाि भी नहीं उठा पाती क्योंवक वपतसृ त्ता के िलते यह सि झेलना उसे ससं ्कारर्गत वसखाया िाता है । ििपन से लेकर िदृ ्धािस्था तक िह िीिन के सभी पिािों मंे वकसी न वकसी रूप से वहसं ा झेलने को वििश रहती है । दवलतों द्वारा वलखी र्गयी सभी आत्मकथाओं में िाहे िह परु ुष द्वारा वलखी र्गयी हो या स्ियं स्त्री द्वारा पाररिाररक वहसं ा के वकससे ििी सखं ्या में मौिूद हैं । िहीं दवलत स्त्री द्वारा वलखी र्गयी आत्मकथाओं में तो दवलत स्त्री िीिन का मलू दंश पाररिाररक वहसं ा निर आता है । बीज शब्ि - दवलत स्त्री, दवलत आत्मकथाए,ाँ पाररिाररक वहसं ा, वपतसृ त्ता । भूवमका - पररवार समाज की सबसे छोटी इकाई है । पररवार पदि, पत्नी और बच्चों के सामदू हक संगठन को कहिे हैं । मैकाइवर और पजे के अनसार “पररवार एक ऐसा समूह ह,ै जो पयाषप्त रूप से दनदश्चि लदंै गक सबं ंध पर आधाररि होिा है और जो इिना स्थायी होिा है दक उस द्वारा बच्चों के जन्म व पालन-पोर्ण की व्यवस्था हो जािी है ।”1 पररवार एक समूह माि नहीं वरन यह ररश्िों में बंधा एक मजबिू गठबधं न है दजसे बाँधे रखने के दलए दकसी ड़ोर, सिू या ज़जं ीर की आवश्किा नहीं है । पररवार मनष्ट्य जीवन की आधारिीला है दजसमंे रहकर वह जीवन आचार, ससं ्कार और अपनी पहचान को ग्रहण करिा है । “मनष्ट्य अपने जीवन का प्रारम्भ पररवार द्वारा ही करिा है और उसी से अपने उन गणों व दविरे ्िाओं को दवकदसि करिा ह,ै जो प्रत्यके व्यदक्त के अिं दनदष हि दवद्यमान रहिा है ।”2 पररवार मंे दनभषरिा का जीवन जीने वाले मनष्ट्य का वास्िदवक रूप पररविषन िब हो जािा है जब वह दववाह कर एक पररवार के मदखया के रूप में उभरिा है । पाररवाररक जीवन की दजम्मेिाररयों को अपनाकर वह एक पूणष मनष्ट्य होने का िावेिार बन जािा है । इसके साथ ही वह अपने मािा-दपिा, भाई-बहन और अन्य ररश्िेिारों के साथ भी अपना संबंध पूणषि: दनभािा है । पररवार में रहकर अपनी दजम्मिे ाररयों का दनवहष न करिे समय मनष्ट्य कभी-कभी दहसं क भी हो उठिा है । पाररवाररक दहसं ा के दिकार मख्य रूप से स्त्री, बच्चे और वदृ ्धजन बनिे हंै । अदधकिर पाररवाररक दहसं ा परुर् द्वारा उनके रक्त सबं ंदधयों पर की जािी है । साथ ही दववाह के बाि बने ररश्िों में वचषस्ववािी व्यदक्त द्वारा भी दहसं ा की जािी ह,ै जसै े पदि-पत्नी का ररश्िा, ननि, सास-ससर, जठे -जेठानी, िेवर-िवे रानी आदि द्वारा नव दववादहिा पर की जाने वाली दहसं ा आदि । मदहलाओं के साथ घर में होने वाले अन्याय, अत्याचार, उत्पीड़न और पाररवाररक दहसं ा का लम्बा चौड़ा इदिहास रहा है । दवश्व भर में स्त्री दपिसृ त्ता से उत्पीदड़ि है । “व्यदक्त पहले राष्ट्र के सबं धं मंे दहसं क हआु , उसके बाि अपने समाज के सबं ंध में, आजकल 1 रादधका गोयल, बक एन्क्लवे प्रकािक, समािशास्त्र के वसद्धातं , जयपर, ससं ्करण : 2007, पषृ ्ठ-144 2 रादधका गोयल, समािशास्त्र के वसद्धातं , वही, पषृ ्ठ-143 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 24
25 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 िो हि यह है दक उसने अपने घर-पररवार को भी दहसं ा का दिकार बनाना प्रारंभ कर दिया है ।”1 पाररवाररक दहसं ा के अंिगिष यौन उत्पीड़न, आदथकष ससं ाधनों से वंदचि करना, मार-दपटाई, स्वास्थ्य को हादन पहुचँ ाना, मजाक उड़ाना, अश्लीलिा, िष्ट्कमष, मदहला को दनबदष द्ध दसद्ध करना या अपमादनि करना, अपिब्ि कहना, उसको मानदसक रूप से उत्पीदड़ि करना, मन मिादबक दनणषय न लने े के दलए मानदसक िबाव बनाना, दकसी कायष को करने के दलए िबाव डालना, आत्महत्या के दलए उकसाना, िलाक िने े की या घर से दनकालने की धमकी िने ा, िहज़े के नाम पर स्त्री को और उसके पररवरजनों को अपमादनि करना आदि अनेकों प्रकार की िारीररक,मानदसक और आदथकष दहंसा आिी है । दवभा िवे सरे मानदसक दहसं ा के दवर्य मंे दलखिी हंै “ककमी द्वारा की जा रही मानदसक दहसं ा में लगािार मौदखक गाली- गलौज, सिाना, अत्यदधक अदधकार प्रििनष , मदहला को दमिों और पररवार के सिस्यों से अलग रखना, भौदिक और आदथकष साधनों को कम कर िने ा और व्यदक्तगि संपदत्त को नि करना-सदमदल्लि ह।ै ”2 मदहलाओं को अपने परू े जीवन मंे इनमे से अनके ों दहसं ा का सामना करना पड़िा है । िदलि मदहला की बाि करंे िो वह हमारे समाज में पररवार और वगष में हादिए पर जीवन जीने को दववि है । “एक स्त्री के िदलि-बोध की पीड़ा, स्त्री होने की पीड़ा के साथ दमलकर और बड़ी हो जािी है । दस्त्रयों के मामले में सवणष परुर्ों की सोच और िदलि परुर्ों की सोच में कोई अिं र नहीं ।”3 वह समाज मंे जादिवािी दहसं ा झले ने के साथ ही दपिसृ त्ता के चलिे पाररवाररक दहसं ा भी झेलिी को मजबरू है । िदलि मदहला को आजीदवका और अपने अदस्ित्व के दलए जीवनभर सघं र्ष करना पड़िा है परन्ि उसे अवहले ना और दिरस्कार ही प्राप्त होिा है । मौजिू ा ढांचों पर सवाल उठाने या दफर असमानिा और िमन को चनौिी िने े पर उन्हंे दहसं ा, अपमान, िव्यवष हार व यािना सहनी पड़िी है । िदलि मदहलाओं को बलात्कार, यौन कमष, दनवषस्त्र कर घमाना, डायन घोदर्ि करना आदि अनेकों दहसं ा झेलनी पड़िी है । इसके साथ ही वे अदिक्षा और स्वास्थ्य सबं ंधी समस्याएँ भी झेलने को दववि हंै । दहन्िी की िदलि आत्मकथाओं में िदलि स्त्री पर होने वाली असखं ्य दहसं ा के स्वर सनाई पड़िे हैं । ग्रामीण क्षिे ों मंे होने वाले अपराधों मंे अदधकिम संख्या मदहलाओं के दवरुद्ध होने वाली दहसं ा की होिी ह,ै दफर चाहे वह सामादजक दहसं ा हो या पाररवाररक दहसं ा । मदहलाओं को जीवन के हर स्िर पर पाररवाररक दहसं ा से जूझना पड़िा है । परुर्ों की िलना मंे िारीररक रूप से स्त्री का कमजोर होना इसका सबसे बड़ा कारण नजर आिा है । इसी कारण जब परुर् कछ गलि कायष करिा है और स्त्री उसे रोकिी है िो स्त्री को परुर् द्वारा दहसं ा झेलनी पड़िी है । मोहनिास अपनी आत्मकथा में नूर महम्मि नाम के कसाई के दवर्य मंे बिािे हैं दक वह वशै ्यालय मंे जाया करिा था । जब उसकी पत्नी अज्जन इस बाि का दवरोध करने कोठे पर पहुचँ जािी िो वह अपनी पत्नी पर दहसं ा करिा ह-ै “घर आकर वह अज्जन को अपनी जवान बेदटयों के सामने ही बरी िरह से मारिा-पीटिा था...। राि में जब सब सो जािे िब यह मार-कटाई होिी थी । अज्जन उस बकरी की िरह चीखिी थी दजसकी गिषन पर छरी चलाई जा रही हो ।”4 ऐसा बोला जािा था दक नरू महम्मि िेल लगी लाठी से अपनी पत्नी को नंगा कर के पीटिा था । उसके कसाई वाले पेिे ने उसके भीिर की सवं ेिनाओं को खत्म कर दिया था, वह जानवर और स्त्री मंे अिं र नहीं समझिा था । बलात्कार अथवा स्त्री की इच्छा के दवरुद्ध िारीररक संबधं बनाना, अप्राकृ दिक िरीके से संबंध बनाना, अश्लील सादहत्य पढ़ने या दचि और वीदडयो िेखने को दववि करना या बच्चों के साथ लदंै गक व्यवहार, अश्लील इिारे कर स्त्री 1 नरेंर िक्ल(सं.), अदवष्ट्कार पदब्लिसष, घरेलू दहंसा : कारण व दनवारण, राजस्थान, प्रथम ससं ्करण-2011, पषृ ्ठ-4 2 दवभा िेवसरे, आयष प्रकाि मडं ल प्रकािक, घरेलू वहंसा : िवै श्वक स्तर, अजमेर, ससं ्करण-2008, पषृ ्ठ-56 3 हररनारायण ठाकर, भारिीय ज्ञानपीठ प्रकािन, दवलत सावहत्य का समािशास्त्र, दिल्ली, िीसरा संस्करण 2014, पषृ ्ठ-498 4 मोहनिास नदै मिराय, वाणी प्रकािन, अपन-े अपने वपंिरे भार्ग-1, दिल्ली, प्रथम ससं ्करण-1995, आवदृ त्त-2009, पषृ ्ठ-21 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 25
26 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 को अपमादनि करना आदि यौन दहसं ा कहलािी है । अदधकािं मदहलाएँ पदि द्वारा की गयी इस प्रकार की दहसं ा के प्रदि दकसी से कछ नहीं कह पािीं क्योंदक भारिीय संस्कृ दि मंे एक पदिव्रिा स्त्री का अपने पदि की खादमयों को जगजादहर करना असामादजक, अदिि और अपमानजनक माना जािा है । पत्नी को यह ससं ्कार दिए जािे हंै दक उसे अपने साथ हो रहे िव्यवष हार को घर की चार दिवारी से बाहर नहीं जाने िने ा चादहए । मोहनिास के बगल वाले घर मंे रहने वाली मदहला अपने पदि द्वारा प्रिादड़ि दकए जाने पर राि में अक्सर ऐसी आवाजंे दनकालिी जो पड़ोसी भी सनिे रहिे । ऐसे मंे मोहनिास की िाई उसे डाँटिी ह-ै ““अरी राि भर क्यों दचल्लावे ह?ै िेरा खसम ही िो है ।” वह जवाब में कहिी, “मइया भौि जलम करै है ।” मौसी प्यार से समझािी-पगली यह जलम थोड़ी है प्यार करै है ।” “पर ऐसा कै सा प्यार...?” वह बीच मंे बोल उठिी । “सभी मरि ऐसई करै है । िझे पिा नई ।“ मौसी दफर कहिी।””1 इस प्रकार उसे समझा कर उसकी आवाज को िबा दिया गया, सब सहन करना ही उसकी दनयदि बिाया गया । “मदहलाओं के दवरुद्ध दहसं ा का एक भयानक रूप है घरेलू दहसं ा जो प्राय: समाज और जनिा के सामने जल्िी नहीं प्रकट हो पािा ... । एक दवडंबना यह है दक घरेलू दहसं ा का एक बहुि बड़ा जाल घरों के अिं र बचा हुआ ह,ै जो घर के बाहर नहीं आ पािा है । उत्पीदड़ि मदहला पदि के भय, लोक- लाज के भय और समाज मंे प्रदिष्ठा कम होने के भय से अपना मँह नहीं खोलिी है ।”2 इस वजह से स्त्री-जीवन मंे पाररवाररक दहसं ा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है । वे दहसं ा को मकू बन बिाषश्ि करिी हंै और घट-घट कर जीिी हैं । दस्त्रयों के दवर्य में जब कोई बाि पररवार के परुर्ों को अखरिी है िो वे उनसे बाि करने और उनका पक्ष समझने के स्थान पर उनपर दहसं ा करने पर उिारू हो जािे हंै । ओमप्रकाि अपना एक अनभव बिािे हैं दक एक दिन उनके दपिा और बड़े भाई कछ वािाषलाप करिे हुए बाहर से घर में िादखल हुए- “अचानक दपिाजी गस्से में उबल पड़े । आगं न मंे एक डंडा पड़ा हआु था, उसे उठाकर उन्होंने चाची की पीठ पर जड़ दिया । इस अचानक प्रहार से चाची िोहरी हो गयी थी । उसके महँ से भयानक चीख दनकली थी ।”3 ऐसी दस्थदि में दकसी भी स्त्री का सकपकाना स्वाभादवक है अि: चाची की भी कछ ऐसी ही प्रदिदप्रया थी, वह ओमप्रकाि जी की माँ से दलपट गयी और स्वयं को बचाने की गहार लगाने लगी । आत्मकथा में इस दहसं ा का कारण नहीं बिाया गया परन्ि यहाँ एक परुर् का वचषस्व ही नजर आिा है जो दबना दकसी वािालष ाप के एक स्त्री को सजा िेिा हुआ नजर आ रहा है । स्वयं िदलि दस्त्रयों द्वारा दलखी गयी आत्मकथाओं में भी पाररवाररक दहसं ा का लम्बा-चौड़ा उल्लखे दकया गया है । दपिसृ त्तात्मक समाज में स्त्री का जीवन पग-पग पर दवपिाओं से दघरा रहिा है । उसकी प्रदिष्ठा का िो कहीं नामोदनिान िक नहीं होिा । “पाररवाररक दहसं ा मंे ऐसी अनेक प्रिाड़नाएं सदम्मदलि हैं दजन्हें गंभीरिा की कसौटी पर रखा जा सकिा है और इस कसौटी की सबसे जघन्य पररणदि ‘मदहला की हत्या है ।”4 दपिसृ त्तात्मक व्यवस्था मंे स्त्री के पास कोई अदधकार नहीं होिे यदि स्त्री अपने साथ हो रहे अन्याय के दवरुद्ध आवाज उठािी है िो सजा उसी को दमलिी है । ‘िोहरा अदभिाप’ में कौिल्या बसै ंिी ने अपनी नानी के साथ होने वाली दहसं ा का कई स्थानों पर उल्लेख दकया है साथ ही अपने समाज का एक और उिाहरण वे िेिी हैं दक सखाराम की पत्नी को कायषस्थल पर एक परुर् छेड़िा था । जब औरि ने सखाराम से उसकी दिकायि की िब उसने अपनी पत्नी को ही राि भर घर मंे घसने नहीं दिया गया और अगली सबह उस स्त्री के साथ बहिु दहसं क व्यवहार दकया गया - “उसके बिन पर दसफष चोली थी और वह एक छोटा सा कपड़ा पहने 1 मोहनिास नैदमिराय, वाणी प्रकािन, अपन-े अपने वपंिरे भार्ग-2, दिल्ली, प्रथम ससं ्करण-1995, आवदृ त्त-2009, पषृ ्ठ-37 2 दवभा िवे सरे, घरेलू वहसं ा : िैवश्वक स्तर , वही, पषृ ्ठ-46 3 ओमप्रकाि वाल्मीदक, राधाकृ ष्ट्ण प्रकािन, िठू न भार्ग-1, पहला संस्करण-1999, चौथी आवदृ त्त-2009, पषृ ्ठ-37 4 दवभा िवे सरे, घरेलू वहंसा : िवै श्वक स्तर , वही, पषृ ्ठ-50 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 26
27 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 थी । उसके माथे पर सफ़े ि रंग की दबंदिया लगाई गयी और उसके गले में चप्पलों की माला पहनाई गयी । उसे गधे पर दबठाकर परू ी बस्िी मंे घमाया गया । बस्िी के लोग हो-हल्ला मचाकर उसे बस्िी के बाहर दनकालकर आए... राि में वह बस्िी के कँ ए मंे कू ि गयी ।”1 अपने ही पदि के द्वारा उसके साथ ऐसा मानविा को िमषसार कर िेने वाला व्यवहार उसे कँ ए मंे कू िकर आत्महत्या कर िेने को दववि कर िेिा है । डॉ. मजं ू समन के अनसार िदलि समाज सासं ्कृ दिक दृदि से अत्यदधक दपछड़ा होिा है और पररवारों में दस्त्रयों की दस्थदि कछ ऐसी होिी ह-ै “पररवार मंे दकसी प्रकार का संकट, परेिानी और दिक्कि आने पर अिं मंे समस्या का समाधान लाि-घूसों और डंडों से दपटाई करके दकया जािा है । इस प्रकार की दस्थदियाँ जब सर के ऊपर होकर गजर जािी ह,ैं िो वे फांसी लगाकर, दवर् खाकर, कँ ए-िालाब मंे छलांग लगाकर आत्महत्याएँ कर लिे ी हैं ।”2 स्पि है दक िदलि स्त्री घर के बाहर िो असरदक्षि है ही परन्ि वह घर के भीिर भी सरदक्षि नहीं रहिी । ‘पत्नी’ यह एक ऐसा ओहिा है दक दजसके दकसी स्त्री को दमलिे ही बहुि सी दजम्मेिाररयाँ भी स्वाभादवक रूप से उसे दमल जािी हंै । दजन्हंे पणू ष करने की कोदििों में स्त्री का परू ा जीवन खप जािा है परन्ि िब भी पदि को उसकी सवे ाओं से सिं दि दमल ही जाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं होिी । वह घर के हजारों काम दबना दिकायि दकए चपचाप करिी ह,ै इस आधार पर उसे एक नौकरानी का िजाष िे िेना न्यायसंगि नहीं, परन्ि कछ लोग इस बाि को नहीं समझिे । कौिल्या को अपने जीवन में यह सब झेलना पड़ा । पदि(िेवेन्र) उनका िारीररक िोर्ण व दहसं ा करिा था । कौिल्या दलखिी ह-ंै “अपने महं से कहिा दक मंै िैिान आिमी हूँ । उसने मेरी इच्छा, भावना, ख़िी की कभी कर नहीं की । बाि-बाि पर गाली, वह भी गन्िी-गन्िी और हाथ उठाना । मारिा भी था बहुि क्रू र िरीके से । उसकी बहनों ने मझे बिाया था दक वह माँ-बाप, पहली पत्नी को भी पीटिा था... िवे ेन्र को पत्नी दसफष खाना बनाने और उसकी िारीररक भखू दमटाने के दलए चादहए थी ।”3 अपनी जरूरिें पूरी करने के दलए वह कौिल्या जी को पत्नी बना कर घर मंे लाया था । जब परुर् एक स्त्री को पत्नी बनाकर अपने घर ले आिा ह,ै िो उसका भी यह फजष बनिा है दक वह स्त्री की भी जरूरिों का ध्यान रखे । परन्ि कौिल्या के पदि िेवने ्र ऐसा नहीं करिे थे । वे कौिल्या जी के खचों का खयाल न रखकर उनपर आदथषक दहसं ा करिे थे । िवे ेन्र घरेलू जरूरि का सामान भी अलमारी में बिं रखिा और कहिे- “मनंै े िम्हें पालने का ठेका नहीं दलया है । मनंै े कहा, िािी के बाि पत्नी को पालने की दजम्मिे ारी पदि की होिी है । मैं भी यहाँ मफ्ि में नहीं खािी । यहाँ काम करिी हूँ । िब कहिा बाहर जाकर काम करो और खाओ । पत्नी को वह स्वििं िा सने ानी भी िासी के रूप मंे ही िेखना चाहिा था ।”4 यहाँ यह बाि जरूर अखरिी है दक जहाँ कौिल्या जी की नानी और माँ अनपढ़ होिे हएु भी स्वावलबं ी बनी वहीं यह उच्च दिक्षा प्राप्त करने के बावजिू आत्मदनभरष न बन सकीं । इिने लम्बे अरसे िक वे पदि का िव्यवष हार सहिी रहीं । कौिल्या को जब पाँचवी संिान होने वाली थी िब िेवने ्र उनके साथ नहीं रुके - “मरे ी प्रसदू ि के दिन एकिम नजिीक थे दफर भी िौरे का कायकष ्रम बनाया । दजस दिन िौरे पर गया हाथ मंे िीस रूपय पकड़ा दिए और कहा, अस्पिाल चली जाना ।”5 इनकी बेटी को भी 102 बखार था, बावजूि इसके वह कौिल्या के सर पर सारी दजम्मेिारी छोड़ कर चले गये । प्रसूदि के बाि वह होदस्पटल मंे आया और दबना कौिल्या से दमले और दबल अस्पिाल का दबल चकाए वापस लौट गये । वे ड्राइवर को िीस रुपए िेकर चले गये जबदक दबल िौ सौ रूपये का था । जब पाररवाररक झगड़ों के चलिे पररवार िो खमे ों मंे बटँ जािा है िो एक पक्ष का व्यदक्त िसू रे पक्ष के व्यदक्त के 1 कौिल्या बैसिं ी, परमशे ्वरी प्रकािन, दोहरा अवभशाप, दिल्ली, ससं ्करण-2012, पषृ ्ठ-72 2 मंजू समन, गौिम दप्रटं सष,िदलि मदहलाऐ,ं दिल्ली, दद्विीय ससं ्करण-2013,पषृ ्ठ-132 3 कौिल्या बैसिं ी, दोहरा अवभशाप, वही, पषृ ्ठ-104 4 कौिल्या बसै िं ी, दोहरा अवभशाप, वही, पषृ ्ठ-106 5 कौिल्या बैसिं ी, दोहरा अवभशाप, वही, पषृ ्ठ-117 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 27
28 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 दलए मन मंे इष्ट्याष भाव रखने लगिा है दजसके चलिे पररवार में दहसं ा की दस्थदि उत्पन्न हो जािी है । सूरजपाल के पाररवाररक झगड़े में इनकी बेटी मधर इनके पक्ष मंे खड़ी थी जो इनकी पत्नी और बेटे भान को बिाशष ्ि नहीं था । वह अपनी बेटी मधर से नफरि करने लगी थी । वह समय-समय पर उसे परेिान करिी और मारिी-पीटिी । एक बार मधर पापा के दलए चाय बनाने रसोई में जाने लगी िो- “दवमला ने उसपर थप्पड़ों की बरसाि िरू कर िी । मैं मधर को छड़ाने आगे बढ़ा ही था दक भान ने सोचा दक ियि मैं दवमला से झगड़ने जा रहा ह,ूँ उसने दबना सोचे-समझे मेरे सर के बाल पकड़कर सोफे में िबोच दिया ।”1 यह सब िेखकर सूरजपाल अपना मानदसक संिलन खो बैठे थे । कछ समझ नहीं आिा था दक आदखर यह सब क्यों हो रहा है । िहरों में पढ़ी-दलखी स्त्री भी हर-रोज न जाने दकिनी बार घरेलू दहसं ा का दिकार होिी है । वे अपने अदधकार और पररवार में अपना स्थान जानिे हुए भी अपने साथ हो रही दहसं ा के प्रदि मौन साधे रहिी है । ऐसे में ग्रामीण क्षिे ों की दनरक्षर और अदधकारों के प्रदि ज्ञान हीन मदहलाओं की दस्थदि का अनमान सहजिा से लगाया जा सकिा है । ग्रामीण मदहलाएँ िो दहसं ा को अपनी दनयदि मान लेिी हैं और परुर् वगष दहसं ा करने को अपनी मिाषनगी की पहचान मानिा है । रूपनारायण के गाँव मंे हररिकं र अवस्थी नाम का िाह्मण रहिा था जो बहे ि क्रू र व्यवहार वाला था । गाँव के लोगों के अनसार वह अपनी पत्नी पर बहुि अत्याचार करिा था- “गाँव मंे गप-चप कहा जािा था दक हररिंकर अवस्थी अपनी पत्नी पर भी अत्याचार करिा था दजनको िखे -सन कर लोगों के रोयें खड़े हो जाएँ । वह जलिी बीड़ी और दसगरेट से अपनी पत्नी के उरोज और गप्तागं जलाया करिा था ।”2 पररवार चाहे सवणष हो या िदलि उसमें स्त्री को दपिसृ त्तात्मकिा का सामना करना ही पड़िा है । दपिसृ त्तात्मक मानदसकिा से ग्रदसि परुर् चाहे सवणष हो या िदलि, स्त्री के सम्बन्ध मंे उनके दवचार एक जसै े ही होिे हैं । समाज मंे अपना सम्मान बचाए रखने और पदि के द्वारा की जाने वाली दहसं ा के भय से वह स्त्री चप्पी साधे रहिी । इस प्रकार की बीमार मानदसकिा वाले व्यदक्त स्त्री का जीवन नरक बना िेिे हंै । ऐसी परुर्वािी मानदसकिा के लोग अपनी बहनों को भी मारिे-पीटिे हंै । रूपनारायण बिािे हंै दक हररिंकर अवस्थी की बहने छि पर खड़ी थीं- “वहाँ मंैने िखे ा दक वह छि के ऊपर टहल रही अपनी खूबसूरि बहन को जोर-जोर से मक्कों से मारिे हएु जीने से होकर नीचे के कमरे में ले गया। उसको बांध कर खूब मारा । उसके रोने की आवाजें खबू सनाई िे रहीं थी ।”3 उसे िेख कर घर की दस्त्रयाँ काँपिी थी । ऐसे व्यदक्त अपनी िाकि और रौब के निे में पररवार की सभी दस्त्रयों को प्रिादड़ि दकया करिे हैं । “मदहलाओं के प्रदि घरेलू दहसं ा हमारे पाररवाररक और सामादजक जीवन की गभं ीर और दचिं ाजनक वास्िदवकिा है ।”4 घर की दस्त्रयों पर दचल्लाना, उन्हें गादलयाँ िेना, िहिि में रखना आदि यही ऐसे परुर्ों का जीवन व्यवहार होिा है । पररवार में स्त्री पर जब चाहे कोई इल्जाम लगा कर उसकी दपटाई की जा सकिी है । श्यौराज दसंह बेचनै ‘मेरा बचपन मरे े कन्धों पर’ मंे बिािे हैं दक उनके सौिेला दपिा बहिु गस्से वाला था और वह बाि-बाि पर उनकी माँ पर दहसं ा करिा था- “दभकारी अम्मा को लाठी-डंडे, क्लाबूि या फरहे से मारिा-पीटा करिा था.”5“पाररवाररक दहसं ा का सबसे मख्य कारण यह भी है दक परुर् का व्यदक्तत्व पणू ष रूप से दवदक्सि नहीं हो पािा और अपने क्रोध पर दनयंिण न कर पाने की वजह से या िो दहसं क हो जािा है या निे का दिकार हो जािा है दजसके कारण दहसं ा की प्रवदृ त्त और अदधक बढ़िी 1 सरू जपाल चौहान, वाणी प्रकािन, सतं प्त, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2006, पषृ ्ठ-107 2 रूपनारायण सोनकर, दिल्पायन प्रकािन, नार्गफनी, दिल्ली, ससं ्करण-2007, पषृ ्ठ-51 3 रूपनारायण सोनकर, नार्गफनी, वही, पषृ ्ठ-52 4 जी.वी. मधकर, कल्पाज पदब्लके िन, भारतीय नारी और उसका त्यार्ग, दिल्ली, संस्करण-2006, पषृ ्ठ-106 5 श्यौराज दसहं बचे नै , वाणी प्रकािन,मेरा ििपन मरे े कं धों पर, दिल्ली, दद्विीय प्रकािन-2013, पषृ ्ठ- 29 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 28
29 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 जािी ह.ै ”1 श्यौराज दसंह के चाचा भी इनकी माँ पर दहसं ा करिे थे । एक बार उन्होंने अपने सौिेले चाचा की जबे से एक रुपया चरा दलया था । चाचा ने चोरी का इल्जाम उनकी माँ पर लगाया और उनकी बहुि दपटाई की, वे दलखिे ह-ै “उसकी कमर पर दभकारी ने पहला वार फरहे से दकया । उसके बाि डालचिं ने भी माँ के िरीर पर लादठयाँ बरसाई थीं । उसने दसर बचा कर माँ का सारा िरीर िोड़ दिया था ।”2 उनकी माँ की चीखें ऐसे दनकल रही थीं जसै े वे दकसी कसाई द्वारा काटी जा रही हों । उन्हें इिनी क्रू रिा से मारा गया था दक परू े िरीर पर घावों के दनिान हो गये थे । इस आत्मकथा मंे स्त्री के साथ पदि द्वारा दकए गये अन्याय भी िखे ने को दमलिे हैं । लोधी राजपिू नाम का परुर् अपनी पत्नी चमेली और िो बच्चों के घर में रहिे हएु िसू री औरि को घर ले आया दजससे िखी होकर चमेली आत्महत्या का प्रयास करिी है । यह एक पत्नी के प्रदि मानदसक दहसं ा ही है । “िसू रे िरह की दहसं ा मंे मानदसक दहसं ा प्रमख है । इस प्रकार की दहसं ा कभी-कभी िारीररक दहसं ा से अदधक घािक होिी है । इसमें िब्िों का प्रहार महत्वपूणष होिा है । इसका पररणाम कभी-कभी आत्महत्या के दलए दववि कर ििे ा है ।”3 चमेली के साथ भी मानदसक दहसं ा हईु थी दजसके पररणामस्वरूप उसने स्वयं को आग लगा ली दजससे उसका चेहरा और िरीर जल गया । वह अंधी हो गयी और िर-िर की ठोकरें खाने व भीख मागँ ने को मजबूर हो गयी । बरे काम के दलए दकसी ऐसे व्यदक्त को िोर्ी ठहराना जो उसने दकया ही न हो मानदसक दहसं ा का कारण बनिा है । डॉ. धमषवीर बहुि से स्थानों पर अपनी बदे टयों पर रोक लगािे और उनपर झूठे इल्जाम लगािे नजर आिे हंै । वे अपनी बेदटयों को न के वल पहरे मंे रखिे थे बदल्क उनको दकसी से बाि भी नहीं करने ििे े थे दजसे उन्होंने स्वयं अपनी आत्मकथा ‘मरे ी पत्नी और भदे ड़या’ मंे दलखा है- “मनंै े छि पर चारों ओर छह फट ऊँ ची जालीिार िीवार कर रखी है । उस िीवार के बनाने का मिलब यही था दक कोई मेरी लड़दकयों को बाहर से न िखे सके और ये भी दकसी से बाि न करंे ।”4 मनष्ट्य एक सामादजक प्राणी है परन्ि डॉ. धमषवीर अपनी बदे टयों को समाज से काट कर रखना चाहिे थे । इिना ही नहीं उनके बिाए एक और दकस्से से उनकी दबमार मानदसकिा और भी स्पि हो जािी ह,ै जब वे दलखिे हंै दक उनकी बेटी अनीिा अपने पड़ोस के एक नवजाि बच्चे को बहिु दखलाने लगी थी जो उन्हें दबल्कल भी पसंि नहीं था- “मझे अनीिा का उस बालक को दखलाना िब बरा लगा जब वह उसे उस के दपिा से लेिी या ििे ी थी । यह मेरे दलए एक दघनौनी बाि थी । यह बाप के दलए बिाषश्ि से बाहर की बाि थी दक कोई जवान आिमी मेरी जवान बेटी को अपना बच्चा हाथों में थमाए । यह दजस्म से छेड़-छाड़ थी ।”5 इस प्रकार दकसी भी स्त्री पर बेिके आरोप लगाकर उसे समाज में अपमादनि करना उसका मान मिषन करना मानदसक दहसं ा के अिं गिष आिा है । समाज के दनयम कायिे स्त्री वगष के दलए काफी कड़े रहे ह,ंै इसके चलिे पररवार में उनपर दिकं जा कसा जािा रहा है । िलसीराम अपनी माँ और स्कू ल मंे पढ़ने वाली लड़दकयों का उिाहरण िेकर इस बाि की पदि करिे हंै । अपनी आत्मकथा मिदष हया में वे गावँ की एक लड़की के भाग जाने के बाि िसू री लड़की की दस्थदि कछ ऐसी बिािे ह-ैं “इस घटना के बाि मदठया की एक अन्य लड़की श्यामा, जो हमारे स्कू ल मंे सािवंे िजे में पढ़िी थी, की िामि आ गयी । लोग कहने लगे दक वह बाल खोलकर स्कू ल जािी ह,ै बिे वा हो गई है । अि: उसकी पढ़ाई छड़ा िी गयी ।”6 छोटी लड़दकयों 1 नरेंर िक्ल(सं.), घरेलू दहंसा : कारण व दनवारण, वही, पषृ ्ठ-25 2 श्यौराज दसहं बचे ैन, वाणी प्रकािन, मरे ा ििपन मेरे कं धों पर, दिल्ली, दद्विीय प्रकािन-2013, पषृ ्ठ-60 3 नरेंर िक्ल(सं.), घरेलू दहसं ा : कारण व दनवारण, वही, पषृ ्ठ-5 4 धमषवीर. वाणी प्रकािन दिल्ली, मरे ी पत्नी और भेविया, ससं ्करण-2009, पषृ ्ठ-791 5 धमषवीर. मेरी पत्नी और भेविया, वही, पषृ ्ठ-858 6 िलसीराम. राजकमल प्रकािन, मुदवव हया, दिल्ली, पहला ससं ्करण-2012, िीसरी आवदृ त्त-मई, 2015, पषृ ्ठ-125 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 29
30 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 के ही नहीं बड़ी औरिों के साथ भी इस प्रकार के िव्यवष हार दकए जािे थे । िलसीराम जी अपने दपिा के दपिसृ त्तात्मक व्यवहार के दवर्य मंे बिािे ह-ंै “मेरी माँ बस्िी के दकसी भी व्यदक्त से बाि करिी, दपिा जी िरंि उसके चररि पर ऊँ गली उठाना िरू कर िेिे थे । वे माँ को बहुि भद्दी-भद्दी गादलयाँ िेने लगिे थे ...वे अक्सर माँ को फरूही से मारने िौड़ पड़िे थे ।”1 पररवार के मदखया का ऐसा व्यवहार घर के बेटे के मन में उसके प्रदि घणृ ा पैिा कर िेिा है । इसके पररणाम स्वरूप िलसीराम भी अपने दपिा के प्रदि दहसं क व्यवहार कर बठै िे हंै । भारिीय समाज की यह सबसे बड़ी दवडम्बना रही है दक समाज दनमाणष मंे बराबर का महत्व रखने वाली स्त्री को वह सिैव उपदे क्षि रखिा है । यहाँ िक दक स्वयं स्त्री भी स्त्री को दनम्न घोदर्ि करने में पीछे नहीं रहिी । भारिीय पररवारों में अदधकिर लड़दकयाँ कपोदर्ि पाई जािी हैं क्योंदक मािाएँ िधू -घी, फल आदि जैसी चीजंे के वल अपने बटे ों को खाने को िेिी हंै बेदटयों को नहीं । िहरों मंे दस्थदियाँ सधर गयी हंै परन्ि गाँवों में बहिु कम जागरूकिा आई है । बच्चों के साथ इस प्रकार का भिे भाव करना पाररवाररक दहसं ा के अिं गिष आिा है । सिीला टाकभौरे की माँ भी उनके साथ ऐसा ही व्यवहार दकया करिीं थी । सिीला अपने भाई के प्रदि माँ का अदिररक्त प्रमे िखे कर दलखिी ह-ै “माँ उसका ध्यान रखिी थीं । अदधक महे नि मजिरू ी करके , पैसे जोड़ कर उसके दलए घी खरीिकर लािी । िधू और अडं ा दछपाकर उसे ििे ी । घी लोहे की कोठी मंे िाला लगाकर रखिी ...ठंडी के दिनों मंे माँ मेथी के िवा के लड्डू बनाकर िाले मंे रखिी । सबह चाय के साथ दपिाजी को ििे ी । “गरम िवाई ह”ै -कहकर हमंे नहीं िेिी ।”2 सिीला को उनके ऐसे व्यवहार पर गस्सा आिा था । दपिा और भाई को दिया जाने वाला अदिररक्त प्रेम उनके मन में हीन भावना भरिा था । दवभा िवे सरे ऐसी दस्थदि को इस प्रकार पररभादर्ि करिी ह-ैं “पोर्ण, दिक्षा, स्वास्थ्य सदवधाओं के मामले में दलंग-आधाररि भेिभाव मदहलाओं के अदधकारों का उल्लंघन माना गया है ।”3 परन्ि भारिीय पररवारों मंे लड़दकयों के साथ अक्सर ऐसा व्यवहार िखे ने को दमलिा है जो लड़दकयों के मन को कं ठा से भर िेिा है । दहसं ा के माध्यम से सिवै से दस्त्रयों को चप करवाया गया है । वे गलि के दखलाफ कछ बोल न सकंे इसदलए उन्हें मार पीट कर रखा जािा है । “कौिल्या बसै िं ी की आत्मकथा ‘िोहरा अदभिाप’ और सिीला टाकभौरे की आत्मकथा ‘दिकं जे का िि’ष मंे अनके स्थान पर िजष हआु है दक लेदखका पदि द्वारा बार-बार पीटी जािी हंै ।”4 सिीला टाकभौरे के पदि सन्िरलाल टाकभौरे ने उन्हंे कभी पत्नी का सम्मान नहीं दिया । सास और ननि इनके पदि के सामने इनकी खबू कदमयाँ दनकालिीं थी और उनकी दपटाई करवािीं, वे अपनी दस्थदि के दवर्य मंे दलखिी हैं दक रेदडयो की आवाज ऊँ ची कर इनकी खूब दपटाई की जािी- “मरे े साथ घर में मारपीट-गाली-गलौज सब कछ हुआ । बाल पकड़कर खींचना, लािों से मारना, गिषन पर मक्के बनाकर मारना, पीठ पर घूसं े मारना-मनंै े सब कछ सहा । बेंि के दनिान कई दिनों िक मेरे िरीर पर रहिे थे... कई बार मझे लगिा, लगािार बाल खींचकर सर पर मारने से कहीं मैं पागल िो नहीं हो गई ।”5 जब सन्िरलाल इनसे गस्सा हो जािे िो इन्हें अपमादनि करने के दलए इन्हंे अपने पैरों मंे दगरकर माफ़ी मागँ ने को कहिे । सिीला टाकभौरे का पाररवाररक जीवन अत्यंि वेिनापूणष रहा । उन्हंे पदि, ननि, सास व निं ोई सभी से अपमादनि होना पड़िा । ििष, यािना, उपेक्षा, अमानवीय व्यवहार आदि से उनका जीवन भरा हुआ है । सिीला जीवन मंे बहिु लम्बे समय िक आदथकष दहसं ा का दिकार रहीं । सिीला से मािसृ ेवा सघं मंे गिं े कपड़े उठाने की नौकरी करवाई जा रही थी । इनकी 1 िलसीराम. मुदवव हया, वही, पषृ ्ठ-125 2 सिीला टाकभौरे, वाणी प्रकािन, वशकं िे का ददव, दिल्ली, प्रथम ससं ्करण-2011, पषृ ्ठ-66 3 दवभा िेवसरे, घरेलू वहंसा : िैवश्वक स्तर , वही, पषृ ्ठ-48 4 भट्ट, राजेन्र(स)ं . आजकल प्रकािन दवभाग, आजकल, वर्ष-69, अंक : 11; पणू ाकं : 834, माचष 2014, दिल्ली, पषृ ्ठ-42 5 सिीला टाकभौरे,वशकं िे का दद,व वही, पषृ ्ठ-196 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अंक) / 30
31 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पूरी िनख्वा सन्िरलाल ले लिे े थे- “ननि के पररवार का परू ा खचाष उठाने के दलए मझसे मािसृ ेवा संघ की नौकरी करवाई जा रही थी । नौकरी करने के बाि भी मरे े दलए खचे के रूपये न होने की बाि की जािी ।”1 यह आदथकष दहसं ा नहीं िो और क्या था, इनके पास दकराए के दलए या लंच के दलए भी पसै े नहीं होिे थे । जब एक िदलि स्त्री पसै ा कमाने लगिी हंै और अपने दलए घर खरीिने चलिी ह,ै िब वह घर उसके नहीं उसके पदि या पि के नाम खरीिा जािा है । यह भारिीय सामादजक परम्परा रही है । स्त्री संपदत्त की अदधकारी नहीं हो सकिी, उसे इसकी क्या आवश्यकिा है । उसे के वल परुर् वगष पर आदश्रि रहना है । सिीला की कमाई से खरीिे जाने वाले फ्लैट के दवर्य में उनके पदि कहिे - “मंै अपना यह फ्लटै दचंटू (बटे ा) के नाम पर कर िँगू ा । िू उसके िरवाजे पर, उसकी महे रबानी की भीख मांगिी हुई बैठी रहना, ररररयािी रहना ।”2 दृिव्य है दक इस फ्लैट को खरीिने में सारी आदथषक दजम्मिे ारी सिीला के ही कन्धों पर थी । पी.एफ., लोन, कजाष आदि सबकी भरपाई सिीला की कमाई से होनी थी, बावजिू इसके उन्हीं को दभकारी की दस्थदि मंे पहुचं ाने की बािंे की जा रहीं थी, िादक वे हमेिा उनके सामने मस्िक झकाए रहंे और उनकी सारी बािंे मानें । “मदहलाओं को दलगं -भेि के कारण कानूनी अदधकार, सामादजक अदधकार और आदथषक अदधकारों का न दमलना आज भूमडं लीकरण की एक बड़ी चनौिी है ।”3 सिीला को भी उनके घर मंे अदधकार हीनिा की दस्थदि मंे रहना पड़ा था । यहाँ िक दक अपने द्वारा दलखे काव्य संग्रह और दकिाबों को भी लम्बे समय िक छपवाना नहीं सकीं थीं क्योंदक उन्हंे पदि द्वारा घर की दजम्मेिाररयाँ दिखाकर रोका जािा रहा था । वनष्ट्कषा : िदलि आत्मकथाओं में पररवार मंे होने वाली दहसं ा को काफी व्यापक िरीके से मखररि दकया गया है । मदहलाओं को पररवार में अपनी भूदमका दनभाने के दलए अंसख्य बार दहसं ा का दिकार होना पड़िा है । पाररवाररक दहसं ा का सबसे ज्यािा दिकार मदहलाएँ रही ह,ैं बच्चों से लके र बजगष मदहलाएँ दपिसृ त्ता के कारण दहसं ा झेलिी रही हैं । िदलि मदहला को मजिरू ी करने के बावजिू घर के भीिर भी काम करने पड़िे ह,ैं िोहरी श्रदमक दजन्िगी उसे गजारनी पड़िी है । सामादजक िौर पर िखे ा जाए िो िदलि मदहला और परुर् को समान रूप से दहसं ा झले नी पड़िी है परन्ि पाररवाररक दृदि से िदलि स्त्री अनेकों प्रकार की दहसं ा झेलिी नजर आिी है । िदलि मदहलाओं के साथ हो रही पाररवाररक दहसं ा एक दचंिाजनक दवर्य है । ग्रामीण स्त्री हो या िहरों की दिदक्षि मदहला सभी को पररवार मंे िारीररक, आदथषक और मानदसक आदि सभी प्रकार की दहसं ा का दिकार होना पड़िा है । सन्िभा ग्रन्थ सू ी : 1. रादधका गोयल, बक एन्क्लेव प्रकािक, समािशास्त्र के वसद्धांत, जयपर, संस्करण : 2007, पषृ ्ठ-144 2. रादधका गोयल, समािशास्त्र के वसद्धांत, वही, पषृ ्ठ-143 3. नरंेर िक्ल(स.ं ), अदवष्ट्कार पदब्लिसष, घरेलू दहसं ा : कारण व दनवारण, राजस्थान, प्रथम संस्करण-2011, पषृ ्ठ-4 4. दवभा िवे सरे, आयष प्रकाि मंडल प्रकािक, घरेलू वहसं ा : िवै श्वक स्तर, अजमेर, ससं ्करण-2008, पषृ ्ठ-56 5. हररनारायण ठाकर, भारिीय ज्ञानपीठ प्रकािन, दवलत सावहत्य का समािशास्त्र, दिल्ली, िीसरा संस्करण 2014, पषृ ्ठ-498 1 सिीला टाकभौरे,वशकं िे का दद,व वही, पषृ ्ठ-155 2 सिीला टाकभौरे,वशकं िे का दद,व वही, पषृ ्ठ-221 3 दवभा िवे सरे, घरेलू वहसं ा : िैवश्वक स्तर , वही, पषृ ्ठ-14 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 31
32 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 6. मोहनिास नदै मिराय, वाणी प्रकािन, अपने-अपने वपंिरे भार्ग-1, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1995, आवदृ त्त- 2009, पषृ ्ठ-21 7. मोहनिास नदै मिराय, वाणी प्रकािन, अपने-अपने वपिं रे भार्ग-2, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1995, आवदृ त्त- 2009, पषृ ्ठ-37 8. दवभा िवे सरे, घरेलू वहसं ा : िवै श्वक स्तर , वही, पषृ ्ठ-46 9. ओमप्रकाि वाल्मीदक, राधाकृ ष्ट्ण प्रकािन, िूठन भार्ग-1, पहला ससं ्करण-1999, चौथी आवदृ त्त-2009, पषृ ्ठ- 37 10. दवभा िेवसरे, घरेलू वहसं ा : िैवश्वक स्तर , वही, पषृ ्ठ-50 11. कौिल्या बसै ंिी, परमशे ्वरी प्रकािन, दोहरा अवभशाप, दिल्ली, ससं ्करण-2012, पषृ ्ठ-72 12. मजं ू समन, गौिम दप्रटं स,ष िदलि मदहलाऐ,ं दिल्ली, दद्विीय संस्करण-2013,पषृ ्ठ-132 13. कौिल्या बसै िं ी, दोहरा अवभशाप, वही, पषृ ्ठ-104 14. कौिल्या बसै िं ी, दोहरा अवभशाप, वही, पषृ ्ठ-106 15. कौिल्या बैसिं ी, दोहरा अवभशाप, वही, पषृ ्ठ-117 16. सूरजपाल चौहान, वाणी प्रकािन, सतं प्त, दिल्ली, प्रथम ससं ्करण-2006, पषृ ्ठ-107 17. रूपनारायण सोनकर, दिल्पायन प्रकािन, नार्गफनी, दिल्ली, ससं ्करण-2007, पषृ ्ठ-51 18. रूपनारायण सोनकर, नार्गफनी, वही, पषृ ्ठ-52 19. जी.वी. मधकर, कल्पाज पदब्लके िन, भारतीय नारी और उसका त्यार्ग, दिल्ली, ससं ्करण-2006, पषृ ्ठ-106 20. श्यौराज दसंह बचे नै , वाणी प्रकािन,मेरा ििपन मरे े कं धों पर, दिल्ली, दद्विीय प्रकािन-2013, पषृ ्ठ- 29 21. नरेंर िक्ल(सं.), घरेलू दहसं ा : कारण व दनवारण, वही, पषृ ्ठ-25 22. श्यौराज दसहं बचे ैन, वाणी प्रकािन, मेरा ििपन मरे े कं धों पर, दिल्ली, दद्विीय प्रकािन-2013, पषृ ्ठ-60 23. नरेंर िक्ल(स.ं ), घरेलू दहसं ा : कारण व दनवारण, वही, पषृ ्ठ-5 24. धमषवीर. वाणी प्रकािन दिल्ली, मेरी पत्नी और भेविया, संस्करण-2009, पषृ ्ठ-791 25. धमवष ीर. मरे ी पत्नी और भेविया, वही, पषृ ्ठ-858 26. िलसीराम. राजकमल प्रकािन, मुदववहया, दिल्ली, पहला संस्करण-2012, िीसरी आवदृ त्त-मई, 2015, पषृ ्ठ-125 27. िलसीराम. मुदववहया, वही, पषृ ्ठ-125 28. सिीला टाकभौरे, वाणी प्रकािन, वशकं िे का ददव, दिल्ली, प्रथम ससं ्करण-2011, पषृ ्ठ-66 29. दवभा िवे सरे, घरेलू वहसं ा : िवै श्वक स्तर , वही, पषृ ्ठ-48 30. भट्ट, राजेन्र(स)ं . आजकल प्रकािन दवभाग, आजकल, वर्ष-69, अंक : 11; पूणांक : 834, माचष 2014, दिल्ली, पषृ ्ठ-42 31. सिीला टाकभौरे,वशकं िे का ददव, वही, पषृ ्ठ-196 32. सिीला टाकभौरे,वशकं िे का ददव, वही, पषृ ्ठ-155 33. सिीला टाकभौरे,वशकं िे का ददव, वही, पषृ ्ठ-221 34. दवभा िेवसरे, घरेलू वहसं ा : िवै श्वक स्तर , वही, पषृ ्ठ-14 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 32
33 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 गावडया लोहार(प्रवतज्ञा और ि न से बधं ी एक जनजावत)का अिलोकन रमाकातं िोधाथी जीवाजी दवश्वदवद्यालय, नवादलय(मध्य प्रिेि) मो.क्र. 9977337705 [email protected] शोध साराशं -मानि िीिन का पवहऐ से प्रार्गऐवतहावसक काल से िुडाि हैं पवहऐ के अविष्कार से मानि िीिन मंे सकारात्मक िदलाि आया। र्गवत ििी िीिन आसान हुआ मर्गर इवतहास की एक कहानी ऐसी भी है िहाँा पवहऐ से िनी र्गावडयों ने िीिन को यायािर िना वदया न घर का कोई वठकाना रहा और न विन्दर्गी मे कोई स्थाईपन। प्रवतज्ञा और ििन से िधं ी उनकी यायािरी आि भी िारी ह।ै िि मुर्गल िादशाह अकिर पूरे वहन्दसु ्तान को अपने अधीन करने िाला था सारे रािे रििाडे उसके सामने झुकते िा रहे थे उस समय महाराणा प्रताप ने मुर्गलों को किी िुनोती दी थी हल्दी घाटी के युद्ध के िाद यद्यवप वित्तौड हाथ से वनकल र्गया वफर भी उनका संघषव िारी रहा इस सघं षव में विन लोर्गों ने महाराणा प्रताप का साथ वदया उनमे र्गावडया लोहारों के पूिवि भी थे उन्होने महाराणा प्रताप के साथ प्रवतज्ञा की थी वक िि तक मिे ाड को मुर्गलों से मुि नही करा लरे ्गें ति तक िे न तो अपना स्थाई घर िनाऐर्गे और न ति तक िे मिे ाि लोटेर्ग।े र्गावडया लोहार समदु ाय ऐवतहावसक रूप से वित्तौर्गढ़ रािस्थान का एक घुमन्तु समुदाय है िो ितवमान मंे मध्य प्रदशे , रािस्थान, र्गिु रात, हररयाणा और उत्तर प्रदशे के साथ साथ भारत के विवभन्न राज्यों मंे वनिास करता ह।ै शब्ि कं जी- घुमन्त,ु अधव घुमन्त,ु र्गावडया लोहार, ससं ्कृ वत, समस्याऐ।ं प्रस्तािना- गादडया लोहार छोटे स्िर पर लोहे के यंि और बिनष िथा अन्य वस्िऐं बना कर अपनी गाड़ी म(ंे दजसे गादडया कहा जािा ह)ै बेचिे है दजससे ऐ अपना जीवन यापन करिे ह।ै मध्य प्रिेि मंे ये जादियाँ नवादलयर, गना िथा दभण्ड़ दजले की मेहगावँ िेहसील के ग्राम मेघपरा में दविरे ् रूप से दनवासरि ह।ै मध्य प्रिेि के दजला गना मंे गादडया लोहारों की एक बस्िी ह।ै ऐ समिाय यहा कई लम्बे समय से दनवासरि है इनकी बदस्ियाँ सड़क के दकनारे और ऐसे फटपाथ पर बसे है जहाँ से ये अपना व्यवसाय कर रहे ह।ै ऐ लोग दकसी भी मौसम की माार से नही घवरािे ऐ अपने समहू मंे गावँ -गावँ , िहर-िहर से िरू या जंगल में अपने िम्बू गाड़ अपने ढेरे लगािे है और कडी महनि कर अपनी आजीदवका चलािे है हालांदक गादडया लोहार िहर की अथषव्यवस्था में बहिु महत्वपूणष भूदमका दनभािा है दफर भी ऐ लोग दनरन्िर जबरन बिे खली के भय के बीच दबना दकसी पयाषप्त आवासीय व्यवस्था और आधारभूि सदवधाओं के दनवास करिे ह।ै भदू म आवास और अन्य मूलभूि सदवधाओं के अभाव में जीवन जी रहे इस समिाय की मसीबि जबरन बेिखली के लगािार घटनाओं से और बढ़ जािी ह।ै सरकार द्वारा पनवाषस के अभाव में, प्रभादवि पररवार दबना उपयक्त आवास, पानी और स्वच्छिा के बहिु बरी ििा में उसी स्थान पर रहने को मजबरू ह।ै आस पास कोई िौचालय या स्नानागार न होने के कारण मदहलायंे खले मे परू े कपड़े पहन कर स्नान करने के दलये बाध्य होिी है जो उनके स्वास्थ, पानी, सरक्षा और दनजिा के मानवादधकारों का खला उल्लघं न ह।ै आलेख का मख्य भाग- जसै ा की आमिौर पर मध्यकालीन िदनया मे होिा था हारे हऐु हर समिाए जादि प्रजादि या िो वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 33
34 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 समथकष बनादलऐ जािे थे या अपनी हदै सयि कायम रखने की दजि मे वो यद्ध अपराधी घोदर्ि कर दिये जािे थ।े गादडया लोहारों के साथ भी ऐसा ही हुआ। गादडया लोहार मनलों के यद्ध अपराधी हो गऐ इनके दलऐ ऐ सख्ि आिेि थे दक इन्हे ऐसे स्थानों पर अपना दठकाना बनाना था जहाँ से इन पर नजर रखना आसान हो। दलहाजा ऐ या िो कोिवाली के आसपास दनवास करिे थे या दफर ऐसी सड़कों के दकनारे जहाँ से इनको स्वयं को दछपा लने ा ममदकन नही था मध्य काल बीिा िो अंग्रजे ों ने भी इन्हे इसी नजर से िखे ा और ऐ हमसे ा थाने के आसपास ही रहने को मजबरू हऐु । इस दलऐ आज ऐ अदधकासं िहरों मंे या िो कोिवाली के आसपास या नगर की पट्टी सड़क के दकनारे बसे हऐु दमलिे ह।ै गादडया लोहार एक ऐसा समिाय है दजसकी गाड़ी ही उसका घर होिा ह।ै या यह कहा जाऐ दक इनकी सजी धजी गादडया ही इनकी पहचान है िो यह कहना गलि नही होगा। इन्ही गादडयों के पदहयों में इनके घर पररवार के लगािार चलिे रहने की कील लगी ह।ै मनै े कछ गादडया लोहारों से बाि की िो पिा चलिा है दक ऐ लोग अपनी कछ प्रदिज्ञाऐं दनभाने के दलये घमन्ि जीवन यापन कर रहे है और आज भी वो प्रदिज्ञाऐं इनकी गाड़ी के पदहओं या कील से बांधी हुई ह।ै जब मनै े इनसे इनके इदिहास के बारे में पछू ा िो इन्होंने बिाया दक हम लोग या हमारे पूवषज महाराणा प्रिाप के सने ा के दसपाही थे। जब सोलहवीं ििाब्िी में महाराणा प्रिाप का मगलों से यद्ध चल रहा था िब हम लोग महाराणा प्रिाप की सने ा का एक अहम दहस्सा थे। इस यद्ध में महाराणा प्रिाप की हार हुई और इनका राज्य मवे ाड़ मगलों के हाथों में चला गया। इस यद्ध से हम लोग इिना िखी हो गये थे दक हम लोगों ने एक कसम खाई दक जब िक मवे ाड़ और दचत्तौड़ पर दफर से महाराणा प्रिाप दसंह दससौदिया का राज नही हो जािा िब िक हम लोग अपने घर मेवाड़ नही लौटंेगे और इस िरह िभी से ऐ लोग एक घमन्ि जादि दक रूप मंे रह कर अपना जीवन यापन कर रहे ह।ै एक घमन्ि जीवन यापन करिे करिे कई ििक और ििादब्ियाँ बीि गई लदे कन इन्होंने अपनी प्रदिज्ञाऐं नही िोड़ी और यही प्रदिज्ञाऐं इनकी पहचान बन गई। ऐ गाड़ी में अपनी गहृ स्थी जमािे है और दनकल पड़िे है अनजान राह की ओर। गादडया लोहारों मंे एक कला या हुनर की प्रधानिा यह है दक ये लोहे को अपने मनोनकू ल आकार में ढालने का इनका अपना एक दविरे ् हनु र है जो हमसे ा इनके साथ रहिा ह।ै पहले यह महाराणा प्रिाप की सेना के दलए हदथयार बनाया करिे थे वही अब ये बिलिे समय के साथ साथ घर और खिे ों मंे काम आने वाले लोहे का सामान बनाकर बेचिे ह।ै ऐ लोग िवा, कड़ाही, दचमटा से लके र फावड़ा, छैनी, हथौड़ा भी बनािे ह।ै समय की धूल धूप आधँ ी, बाररि में भी इनका हुनर ही इनके दसर की छि और पावँ िले की जमीन रहा। ऐ लोग कलात्मक दृदि से िो जरूर सम्पन्न है पर आदथकष रूप से कमजोर ह।ै इन लोगों के ज्यािािर डेरे गाँव से बाहर ही वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 34
35 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 होिे है इसका मख्य कारण है दक ऐ लोग अन्य दकसी समिाय के साथ मेलजोल ज्यािा पसंि नही करिे ह।ै इनका खनपान िथा इनकी ररश्ििे ाररयाँ भी अपने ही समिाय में होिी है इनकी भार्ा में आज भी मेवाड़ भार्ा की महक आिी ह।ै गादडया लोहार की मान्यिाऐ-ं गादडया लोहार की मान्यिा है दक वे जब महाराणा प्रिाप के सहयोगी के रूप मे यद्ध से लोट रहे थे िब रास्िे मंे इन्हे भगवान रथ पर बठै े दमले थे गादडया लोहार का मानना है दक उस वक्त भगवान के रथ की धरी टूट गई थी और गादडया लोहार ने भगवान के रथ की धरी को जोड़ दिया था इससे भागवान ने खि होकर गादडया लोहार को विाषन दिया दक लोहे के काम मंे िम्हे कोई भी परादजि नही कर सकिा और िब से ही गादडया लोहार पीढ़ी िर पीढ़ी पैिक कायष करिे आ रहे ह।ै यह एक ऐसी घमक्कड़ जािी है जो अपना घर कभी नही बनािी ह।ै इनकी कलात्मक बलै गाड़ी ही इनका चलिा दफरिा घर ह।ै इनके जीवन के दवदभि रंग इनके इसी गाड़ी में दसमटे रहिे है दफर चाहे जन्म हो, मरण हो, परण हो इनके सब काम इनकी गाड़ी मे होिे ह।ै इन लोगों की कलात्मक गादडयाँ कई सन्िर िरीके से सजी होिी ह।ै गादडयों के दवदभन्न दहस्सों मंे पीिल के गोल कलात्मक पिे कील से जड़े रहिे ह।ै गाड़ी के पदहऐं काफी भारी होिे है इनके गाड़ी के पदहऐ िखे ने मे दकसी रथ से कम नही लगिे। इनकी गाड़ी का रंग गहरा काला होिा है िादक इनकी सन्िर बहु बदे टयों को दकसी की नजर न लगे। पहनािा- गादडया लोहारों में परूर् धोिी व वन्डी पहनिे है और इस जादि की मदहलाऐं कलात्मक पहनावा पहनिी ह।ै गलें मंे चाँिी का कडा व हाथों मंे भजाओं िक लाक, काचं , सीप व िाबंे की चदू डया, नाक मंे लम्बी नथ व पाव मंे भारी भारी चािँ ी के कडे िथा कानों में पीिल या सीप की बड़ी बड़ी बादलयाँ पहनिी ह।ै इस जादि की मदहलाऐं अपने दसर पर आठ से िस िरह की चोदटयाँ बनािी है दजनमंे कोदढयों की माला एक सदलके के साथ गथी होिी ह।ै मदहलाऐं अपने परै ों की लम्बाई से आधा फट छोटा छीटर िार लहगं ा पहनिी है िथा कमर मंे काँचली पहनिी है और ऐ बिन पर प्राकृ दिक फू ल पदत्तयों की दचिकारी दवदभि रंग से करवािी ह।ै िोनों हाथों में िीन चार गिना भी गिवािी है इनका मानना है दक यह गोिना हमारी पहचान दविेर् ह।ै िैिावहक रीवत ररिाज- वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 35
36 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 गादडया लोहार के दववाह के िोर िरीके भी अनोखे होिे ह।ै िल्हा के घर वालो को िल्हन पाने के दलऐ एक दकलों से लके र िस दकलों िक चाँिीं को िल्हन के दपिा को भेट करनी होिी ह।ै इनके दववाह में मयूर पखं का बड़ा महत्व है अदनन के फै रों के उपरान्ि िल्हा िल्हन एक िसू रे को मयरू पंख भेट करिे है दजसका मिलब होिा है दक सन्िर पंख की िरह अपनी दजन्िगी का सफर प्रकृ दि के सन्िर स्थानों पर भमृ ण करिे हऐु दबिाऐ। इन लोगों की जब िािी होिी है िो वो अपनी पहली मधर राि हसी खसी अपनी गाड़ी में ही गजारिे है िथा यह भी िय करिे है दक वे अपनी भावी सन्िान को चलिी बैलगाड़ी में ही जन्म िेंगे िादक उसे भी घमक्कड़ संस्कार दमल सके । प्रदिज्ञाऐ-ं गादडया लोहार की कछ दृण प्रदिज्ञाऐं है और आज इन्ही प्रदिज्ञाओं को अपने जीवन मंे अपनाकर एक घमक्कड़ जीवन यापन कर रहे है एक कहावि थी दक प्राण जाऐ पर वचन न जाऐ वो कहावि को सनकर ऐसा लगिा है दक िायि यह कहावि गादडया लोहारों के दलऐ ही बनी है क्योंदक अपने पूवजष ों की प्रदिज्ञाओं को परू ा करने के दलऐ ये आज दजन्िगी के सभी ऐसो आराम को ठकराकर एक घमक्कड़ जीवन यापन कर रहे ह।ै वे प्रदिज्ञाऐं कछ इस प्रकार ह।ै 1 दसर पर टोपी नही पहनना 2 पलंग पर नही सोना 3 पक्का मकान नही बनाना 4 दचराग नही जलाना 5 कऐं से पानी नही भरना 6 हुक्के की नली को छोटी रखना 7 कमर मंे नाड़ा बािना 8 पराई जादि की दस्त्री से दववाह नही करना 9 मतृ ्य पर ज्यािा दवलाप नही करना इनकी दृण प्रदिज्ञाओं मंे से एक ह।ै गादडया लोहारों के कबीलों में एक मदखया होिा है और उस मदखया के हुक्म के कारण ऐ एक से ज्यािा कं गे नही रखिे कं गा टूटने पर उसे जमीन मंे िफनाकर ही नया कं गा खरीििे है और नऐं खरीिे गऐ कं गे को कल िवे ी के सामने रखकर उसे पदवि दकया जािा है उसके उपरान्ि ही उसे बाल सम्भालने के काम में दलया जािा ह।ै ऐ लोग मादचस कभी नही जलािे बदल्क इनकी अगं ीठी मंे सल्गिे हऐु कोयले के टकडे हमेसा पडे रहिे है ऐ उसी अंगीठी मंे नऐ कोयले डालकर आग लगािे ह।ै इन लोगों की मान्यिा है दक नई आग जलाने से इनके परखों की आत्मा वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 36
37 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 इन्हे परेिान करने लगिी ह।ै ऐ लोग अक्सर कत्ते को पालिे है इनका कादफला जब भी कही से गजरिा है िो प्रत्येक बैलगाड़ी के नीचे नाटे कि के िो िीन कत्ते नजर आिे ह।ै गादडया लोहार के पररवार मंे जब दकसी दिर् का जन्म होिा है िो 21 दिन के उपरान्ि एक अनोखी रस्म अिा की जािी है इस रस्म मंे दिर् की पीठ पर लोहे की गरम छड़ िागी जािी है िादक वह गादडया लोहार की सन्िान कहला सके । वनष्ट्कषा- अिीि गौरविाली मगर विमष ान बहे ि परेिान करने वाला, अपनी बाि से मकरने की कभी भी आिि नही, लेदकन इनकी दजन्िगी अपनी हदे सयि से ऐसी मकरी दक कभी उस िोर में लोट ही नही पाई जहाँ वीरिा से पररपूणष सकं ल्प के जोि ने उफान मारा था गादडया लोहार ने अपनी आजीदवका के दलऐ लोहे की कारीगरी को अपनाया कभी अस्त्र िस्त्र बनाने बाले ऐ गादडया लोहार आज घरेलू उपयोग के दलए जरूरी उपकरण और ओजार बनािे है इन लोगों की रोजी रोटी इन्ही उपकरणों और ओजारों के सहारे चलिी रहिी है सड़क दकनारे अपना बसरे ा डाले हऐु इन लोगों की जीवन की अथष व्यवस्था इन्ही उपकरणों और ओजारों के आसरे चलिी है लोहे की कारीगरी के सहारे गादडया लोहारों ने सकै डों साल गजार दिऐ लदे कन आज उनका पेिा सकं ट मे ह।ै बड़े बड़े फै क्रीयों मे बने सस्िे सामानों ने इनकी कमाई पर करारी चोट की ह।ै दपछले ििाकों मंे उिार होिी िेि की अथष व्यवस्था ने इन गादडया लोहारों के प्रदि कोई उिारिा नही बरिी, दजसके चलिे आज इनके बच्चों व पररवार के सामने एक गहरा संकट आ गया है इनका जीवन यापन बड़ी मदश्कल से चल पा रहा है और आज इस मादसकं त्यरै ी को थामने के दलऐ ने िो प्रिासन िैयार है और न सरकार को इनकी िरकार है िदियों से सड़कों पर पलिी इस दजन्िगी को आज भी पदलस की धमकी दमलिी रहिी ह।ै अस्थाई बसेरे मे पलिी दजन्िगी पर असामादजक ित्वों की भी नजरें रहिी है िासन प्रिासन इनकी िरफ पूरी िरह से नही िो कम से कम दवकाि से सन्िभष मे पूरी िरह उिासीन ह।ै रोजगार से भी ऐ लोग प्रदिदिन के दहसाब से 100 या 200 रूपऐ ही कमा पािे है और आज इस मेहगाईं के िोर मे इस कमाई का कोई ओदचत्य नही ह।ै दपछडेंपन के अधं ेरे मंे दवकाि का उदजयारा िायि इसीदलऐ भी िस्िक नही िे पािा है क्योंदक इन्हे ओपचाररक रूप से भारिीय नागररकिा भी हादसल नही ह।ै वोटर दलस्ट की सचू ी में इनको वोटर होने मंे रूदच नही ह।ै वोटर काडष नही होने से आधार काडष भी इनके नही बन पाऐ ऐसे मे आधार काडष को आधार बनाकर हादसल होिी सदबधाओं की पररधी में ऐ आिे ही नही इस जादि के बारे मे सबसे गम्भीर बाि यह है दक ऐ जादि वोटर कास्ट नही ह।ै चदू क ऐ वोटर नही है इसदलऐ दकसी भी पाटी या राजनैदिक पाटी ने इनके ऊपर ध्यान ही नही दिया दजसके कारण ऐ जहाँ थे वही रह गऐ। इन हालाि मंे इनके स्थायी बसरे े की कल्पना के साकार होने मे वास्िदवकिा की कू ्ररिा आडे आिी हैं सपने इनके भी है मगर अपनों की परबररि की िबाब में सपने दबखर गऐ ह।ै सिं भा सू ी- 1. डॉ. श्रीकृ ष्ट्ण काकड़े, 2021, दवमक्त जादियाँः समाज, भार्ा और ससं ्कृ दि, आदिवासी लोककला एवं बोली दवकास अकािमी मध्य प्रििे ससं ्कृ दि पररर्ि,् भोपाल, प.ृ क्र. 16 2. रमदणका गप्ता, 2015, दवमक्त घमन्ि आदिवादसयों का मदक्त सघं र्ष, सम्यक प्रकािन. दिल्ली, प.ृ क्र.86 वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 37
38 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 3. डॉ. ित्तािय रामचंर भोसले, 2020, घमन्ि जनजादि सादहत्य एवं समस्याऐ,ं दहन्िी बक सने ्टर. दिल्ली, प.ृ क्र.56 4. घनश्याम मैदथल अमिृ , 2017, एक लोहार की लघ कथा सगं हृ , अपना प्रकािन, गोदवन्ि परा भोपाल मध्य प्रििे , प.ृ क्र.45 5. बसन्ि दनरगणे, 2016, मध्य प्रििे की दवमक्त जादियाँ और जन जादियाँ, आलेख प्रकािन, दिल्ली, प.ृ क्र.12 वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 38
39 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 जयपाल वसहं मंडा एक आवििासी नायक मोहन पीएचडी िोधाथी, जनजािीय अध्ययन दवभाग इदं िरा गांधी निै नल राइबल यदू नवदसटष ी , अमरकं टक (मध्यप्रिेि) मोबाईल- 8890112466 ईमेल – [email protected] साराशं – प्रस्तुत शोध पत्र मंे आवदिासी नायकों में से एक ियपाल वसंह मुंडा की िीिनी वलखी र्गई है। इसमे िताया र्गया है की कै से एक प्रवतभािान आवदिासी नायक विसकी कप्तानी में भारत ने हॉकी ओलंवपक का स्िणव पदक िीता, को इवतहासकारों ने भुला वदया। कै से एक आवदिासी िालक झारखडं के टकरा र्गािँा से सतं िॉन कॉलिे , ऑक्सफोडव पढ़ने र्गया का िणवन भी पत्र में वकया र्गया है। ऑक्सफोडव, इगं्लंैड िाकर कै से अवखल भारतीय वसिील सिे ा िॉइन की ओर वफर देश के वलए हॉकी खले ने के वलए सिे ा को छोिना पिा उि विषय पर भी पत्र मंे प्रकाश डाला र्गया है। सवं िधान सभा में ियपाल वसहं मुंडा ने आवदिासी समुदाय से संिंवधत प्रश्नों पर मुखर होकर वकस प्रकार अपने वििार रखे यह शोध पत्र मंे िताया र्गया ह।ै प्रथम आम िनु ािों मंे वकस प्रकार झारखंड पाटी ने कॉगं्रेस का सफाया वकया ओर स्ियं खटंू ी से सासं द िनु कर वदल्ली र्गए। वकस प्रकार मखु ्यधारा की रािनीवतक पावटवयों ओर नेताओ ने छल करके उनकी पाटी को विलय के वलए उन्हे मििूर कर वदया। शोध पत्र में ियपाल वसहं का दशे के आवदिासी समदु ाय के वलए उल्लेखनीय योर्गदान का भी िणवन वकया र्गया ह।ै बीज शब्ि – ियपाल वसंह मुंडा, हॉकी, संविधान सभा, आवदिासी महासभा, झारखडं पाटी। शोध आलेख “सवं िधान तम्हारा है, सीमाए तम्हारी है, सपं ्रभता तम्हारी है, झण्डा तम्हारा है, हमारा क्या है ? क्या है तम्हारे प्रस्तावित संविधान मंे जो आवििावसयों ओर मख्यधारा, िोनों के वलए एक समान है” -जयपाल वसंह मंडा ‘सविधान सभा मंे’ फोटो स्त्रोि – अदश्वनी कमार पंकज मरंग गोमके जयपाल दसंह मडं ा (पकं ज, 2019 )1 दवश्व के आदिवासीयो की एक बड़ी आबािी भारि मंे दनवास करिी है दजनकी जनसखं ्या 2011 की जनगणना के अनसार 104.08 (Office of the Registrar General & Census Commissioner, 2011)2 दमदलयन है जो की िेि की वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 39
40 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 आबािी का 8.6 प्रदििि ह।ै यहा के आदिवासीयो ने अपनी ससं ्कृ दि , भार्ा , भदू म की रक्षा के दलए बाहरी आक्रामक िदक्तयों के दखलाफ लगािार संघर्ष दकया ह।ै इन संघर्ों मंे अनके महान आदिवासी नायकों का योगिान रहा है िथा उन्होंने अपने प्राणों का न्योछावर दकया है। दजसमे दबरसा मंडा (1875-1900), टंट्या भील [ इदं डयन रोदबहं डु ](1840- 1889), जबरा पहादड़या उफष दिलका माझं ी (1750-1785), िहीि वीर नारायण दसंह (1795 - 10 दिसंबर 1857), रानी गाइदडदलउ (26 जनवरी 1915- 17 फ़रवरी 1993, मदणपर), दसद्धो ओर कानहु ममषू जसै े अनेकों नायक ह।ै परंि आदिवासी समिाय कभी गैर आदिवादसयों की िरह अपने इन नायकों की मदू िष बना कर पजू ा नहीं करिा क्योंदक वह इन्हे अपने परखे मानिा ह,ै ओर आदिवादसयों का मानना है की इस िदनया से चले जाने के बाि भी उनके पूवषज उनके साथ ही रहिे ह।ै आदिवासी समिाय की इसी धारणा की वजह से बहिु सारे आदिवासी नायक गमनामी के अंधरे े मंे चले गए। दजनमे से जयपाल दसहं मंडा भी एक महान आदिवासी नायक थे दजन्होंने संवधै ादनक सभा मंे आदिवासी समिाय से जड़े प्रश्नों को प्रमखिा से उठाया परंि उसके बाि भी िेि का एक बड़ा िबका उनके नाम से आज िक अनजान ह।ै उनके नाम से अनजान होने के पीछे इदिहासकारों द्वारा उनके साथ दकया गया अन्याय है दजन्होंने उन्हे इदिहास में उदचि स्थान नहीं दिया। जयपाल दसंह मंडा का अगर कही इदिहास मंे दजक्र भी हआु है िो उन पर दलखने वाले लेखकों ने उन्हे गलि नजररए से आँकने की भूल की है उनकी िदख्सयि को समझने के दलए जरूरी था की लखे क की आदिवादसयि के प्रदि गहरी समझ हो। जयपाल दसहं मडं ा का लोकदप्रय उपनाम मरंग गोमके (सवोच्च निे ा) का जन्म 3 जनवरी 1903 को टकरा पहनटोली खूटं ी झारखडं में मडं ा समिाय मंे होरो (कच्छप) गोि में हआु इनका पाररवाररक नाम परमोि पाहन था (ित्त, 2017)3 । इनके दपिा का नाम अमरु पाहन व मािा का नाम राधामनी था उनकी बड़ी बहन का नाम दक्रस्टोमनी व छोटे भाई जय श्री ओर रघनाथ , चार ओर छोटी बहने थी। 1908 मंे जयपाल दसंह ने सिं पॉल प्राइमरे ी स्कू ल, टकरा मंे प्रािदमक दिक्षा ल्यकू स मास्टर से ली। उसके बाि आगे की दिक्षा संि पॉल स्कू ल राचं ी से प्राप्त की जहा पर उन्होंने 1911 में िादखला दलया था। रांची मंे पढ़िे समय सिं पॉल स्कू ल के दप्रन्सपल के नोन कोसग्राव के काफी नजिीक आ गए। कोसगरेव उनकी दवलक्षण प्रदिभा से काफी प्रभादवि थे । बाि में नोकरी से ररटायर होने के बाि इनं लंडै जािे समय के नोन कोसग्रावे अपने साथ जयपाल दसहं मंडा को भी इनं लंडै 1918 में ले गए जहा से उन्होंने अपनी उच्च दिक्षा प्राप्त की। जयपाल दसहं मडं ा अपने गरु कोसग्रव के साथ दिसम्बर 1918 को िरदलघं टन, इनं लडैं पहुचे वहा ईसाई धमष की िीक्षा ली परंि कभी ईसाई जसै ा आचरण नहीं दकया। अगले वर्ष उन्होंने सिं अगस्टीन कॉलजे , कै टबरी में प्रवेि दलया। सन 1922 में संि जॉन कॉलजे , ऑक्सफोडष से मदे रक उत्तीणष की। जयपाल दसहं मडं ा को बचपन से ही खेलों में बहुि रुदच थी इसी रुदच के कारण 1923 से 1928 िक हॉकी, फटबॉल, दक्रके ट, रनबी, घड़सवारी के दनयदमि दखलाड़ी रहे िथा हॉकी में उन्होंने कॉलेज, दवश्वदवद्यालय ओर इनं लैंड की व्यावसादयक टीमों की कप्तानी भी की। सिं जॉन कॉलेज में वे “दडबेदटंग सोसाइटी” के महासदचव बने बाि में वे उसके अध्यक्ष भी दनवादष चि हुए। जयपाल दसंह ऑक्सफोडष दवश्वदवद्यालय के जनलष ‘आइ सी ऍस’ में िथा ि टाइम्स आदि प्रमख पि पदिकाओ मंे खेलों पर दनरंिर लेख दलखिे रहिे थे। वे ऑक्सफोडष के पहले हॉकी ‘ब्लू कॉनरष ’ एदियाई थे। हॉकी में जयपाल दसंह को अत्यदधक रुदच होने के कारण उन्होंने ‘इदं डयन स्टूडेंट हॉकी फे डरैिन’ की स्थापना की थी। सिं जॉन कॉलेज ऑक्सफोडष से 1926 में ‘अथषिास्त्र ऑनसष’ मंे स्नािक की उपादध प्राप्त की । जयपाल दसंह 1927 में भारिीय दसदवल सेवा मंे चयदनि होने वाले पहले आदिवासी थे वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 40
41 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 परंि उन्हे हॉकी की कप्तानी के कारण सेवा का त्याग करना पड़ा। जयपाल दसहं अपनी आत्मकथा में दलखिे है की 1928 मंे एम्सटडषम ओलंदपक में खेलने वाली भारिीय हॉकी टीम का निे तृ ्व करने के दलए उन्हे भारिीय स्पोट्षस बोडष के सके ्रे टरी व सहायक सके ्रे टरी कनषल िसू टनबष उल ओर मेजर ररके ट्स ने प्रस्ताि वदया। ियपाल वसंह ने उनके प्रस्ताि को मानते हुए भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी का प्रस्ताि स्िीकार वकया। उन्ही की कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने 1928 के एम्सटडषम ओलंदपक में र्गोल्ड मडे ल िीता िो उस समय भारत के वलए र्गिव की िात थी की एक उपवनिशे ने ओलवं पक िीता था। ओलवं पक के िीि मंे टीम के मनै ेिर के नस्लभदे ी रिैये के कारण ियपाल वसहं अंवतम मैि मंे शावमल नहीं हुए। ओलंवपक समाप्त होने के िाद िि िह िावपस भारतीय वसविल सिे ा िॉइन करने के पहुिे तो उन्हे कहा र्गया की उन्होंने ओलंवपक खले ों में िाने के वलए इवं डया ऑवफस, लंदन से अनुमवत नहीं ली थी िो की सिे ा वनयमों का उलघाँ न था इसवलए उनकी पररिीक्षा अिवध एक िषव के वलए िढाई िाती है। उन्होंने अपनी आत्मकथा (Singh, 2004)4 मंे वलखा की की भारत का ओलवं पक िीतना ओर उनका उस टीम का कप्तान होना अंग्रेिों के वलए कोई महत्ि नहीं रखता था। इसवलए पररिीक्षा अिवध िढ़ाए िाने से उन्होंने भारतीय वसविल सिे ा से इस्तीफा दे वदया। इसके िाद उन्होंने रॉयल डि शले कं पनी मंे एक ििे पद पर कायव वकया िहा उन्हे 750 पाउन्ड प्रवतमाह वमलता था ििवक उस समय भारतीय वसविल सेिा के अवधकाररयों को 400 पाउन्ड ही वमलता था। ियपाल वसंह इतने ििे ओहदे पर पहिु ने िाले पहले भारतीय थे। उन्होंने 15 िनिरी 1932 को तारा मिूमदार से दाविववलरं ्ग में वििाह वकया िो की उस समय के ििे कॉगं्रेसी नते ा डब्ल्यू. सी. िनिी की नवतनी थी। ियपाल वसहं मुडं ा िीकानेर स्टेट के विदशे मतं ्री भी रह।े िे र्गोल्ड कोस्ट, घाना ( अफ्रीका) मंे अिीमोता कॉलेि ओर रािकु मार कॉलेि, रायपुर के वप्रन्सपल भी रह।े भारत आने के िाद ि रायपरु से नोकरी छोिने के िाद पहली िार पटना होते हएु रांिी होकर अपने र्गाि र्गए। िहा अपने आवदिासी समुदाय के लोर्गों की ददु शव ा दखे कर ियपाल वसहं ने रािनीवत मंे आने का फै सला वलया तावक िाहरी वदकु ओ के शोषण से उनकी रक्षा की िा सके ओर उनकी आिाि िन सके । िि रािनीवत मंे िाने की िात उन्होंने अपनी माता को िताई तो उनकी माता ने उन्हे कहा की “िो तुम्प्हंे अच्छा लर्गता है करो, लवे कन कभी वकसी से कु छ पाने की उम्प्मीद मत रखना”| 1938 ियपाल वसहं ने संथाल परर्गना के आवदिावसयों को िोिते हएु आवदिासी महासभा का र्गठन वकया। उन्होंने मध्य पूवी भारि के आदिवासी बहलु क्षेिों में आदिवादसयों को िोर्ण, अन्याय, अत्याचार से बचाने के दलए विषमान झारखडं , ओदडिा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ ओर बंगाल के कछ दहस्सों को दमलाकर आदिवासी राज्य बनाने की मांग प्रस्िादवि की। उनकी मागं उस समय िो पूरी नहीं हुई दजसका पररणाम यह दनकला की आदिवासी क्षेिों मंे आदिवादसयों पर बढ़िे हुए गैर आदिवादसयों के िोर्ण ओर अत्याचार के दखलाफ नक्सलवाि जैसी दहसं ात्मक दचगं ारी पिै ा हुई। जयपाल दसंह के इस िदनया से जाने के 30 वर्ों बाि उनका अलग राज्य बनाने का सपना झारखडं के रूप में साकार हुआ लदे कन िब िक पररदस्थदिया पूणिष बिल चकी थी दजस झारखडं मंे 1951 मंे आदिवादसयों की आबािी 51 प्रदििि हआु करिी थी वहा 2000 मंे घटकर 26 प्रदििि ही रह गई। 25 अप्रैल 1939 को दनमषल मडं ा (एक स्विंििा सने ानी ) के निे तृ ्व में हजारों आदिवासी दकसान कामगारों द्वारा उच्च भूदम करो ओर उनके भदू म अदधकारों को नकारे जाने के दवरोध मंे दसमको (झारखडं ओदडिा बॉडषर) मंे प्रििनष दकया जा रहा था लेदकन गंगापर राज्य पदलस ओर अग्रेज पदलस ने सैकड़ों आदिवादसयों पर अंधाधधं गोली चला कर उन्हे मार डाला, आदिवासी महासभा ने जयपाल दसंह मडं ा के नेितृ ्व मंे इस जनसहं ार की नींि की। जयपाल दसहं जलाई, 1946 में सदं वधान सभा के सिस्य के रूप मे चने गए ओर जनवरी 1949 िक सदं वधान संदवधान सभा की पणू िष वदजषि एवं आदं िक वदजिष जनजािीय क्षेि (असम को छोड़कर) के सिस्य रह।े सदं वधान सभा में जनजािीय समिाय के जयपाल दसहं को दमलाकर कल 5 सिस्य थे उनमे से जयपाल दसंह ने संदवधान सभा की बैठकों में जनजािीय अदधकारों की परजोर िरीके से परै वी की। संदवधान सभा की प्रथम बठै क मंे स्थाई सभापदि डॉ राजेन्र प्रसाि वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 41
42 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 को बधाई संिेि ििे े हुए जयपाल दसंह मंडा ने दनम्न बािे कही : “सभापदि महोिय, मै आपको धन्यवाि ििे ा हू दक आपने नागपर के आदि-दनवादसयों के प्रदिनदध की हदै सयि से मझे अपना दवचार व्यक्त करने का अवसर दिया। डॉ राजने ्र प्रसाि का अदभनन्िन करने को मै चन्ि बािे कहना चाहिा हू ओर दविेर्ि: आदि-दनवादसयों की ओर से। जहा िक मै समझिा हू हम के वल पाचँ सिस्य ही यहा ह।ै पर हमारी संख्या कई लाख है ओर वस्िि: भारिवर्ष हमारा ह।ै “दक्वट इदं डया” (भारि छोड़ो) कछ दिनों से प्रचदलि हआु ह।ै मरे ी िो यह दृढ़ आिा है दक यहा के आदि-दनवादसयों के पन: दस्थर होने ओर पूवावष स्था में आने का यही समय ह।ै अंग्रजे ों को भारि छोड़ने िीदजए, दफर बाि मंे आए हुए लोग यहा से कच(जाए) करे ओर िब यहा के मूल दनवासी यहा रह जाएगं े। सचमच हमे बड़ी प्रसन्निा है की हमने डॉ राजने ्र प्रसाि को हमने इस पररर्ि का स्थाई सभापदि पाया है। चंदू क डॉ राजने ्र प्रसाि उस प्रािं के है दजसके िदक्षणी भाग मंे आदि-दनवादसयों का एक बड़ा इलाका ह,ै एक बड़ी आबािी है जैसी भारि भर में और कही नहीं ह।ै हमे दवश्वास है की हम अपने मामलों में उनसे पूणष सहानभूदि पायंगे े। उनकी योनयिा के संबधं मंे मै कछ नहीं कहना चाहिा, वह सवष दवदिि ह।ै हम यही कहकर अपना वक्तव्य समाप्त करिे है। हमे आिा है की डॉ राजेन्र प्रसाि से जहा हमे सहानभदू ि दमलेगी, वही यह सभा भी उनके साथ वैसा ही सहानभदू िपणू ष व्यवहार करेगी। (हर्धष ्वदन)” ((Hindi), 1946)5 11 दिसम्बर 1946 ईस्वी, सदं वधान सभा, नई दिल्ली , जयपाल दसंह मंडा जयपाल दसहं मंडा ने ‘आदिवासी लेबर फे डरैिन’ की स्थापना 1947 मे की। राचं ी मंे 13 अप्रैल 1947 को आदिवासी महासभा का अदधविे न जयपाल दसंह की अध्यक्षिा मंे सम्पन्न हुआ। खरसावा का ओदडिा में दवलय का दवरोध कर रहे सकै ड़ों आदिवादसयों पर पदलस ने 1 जनवरी 1948 (जब परू ा ििे नया साल मना रहा था) को फायररंग की दजसमे हजारों आदिवासीयो को अपनी जान गवानी पड़ी। पूवष सांसि ओर महाराजा पीके िेव अपनी दकिाब “ममे ोयर ऑफ बायगान एरा” में लगभग 2000 लोगों के मारे जाने का दजक्र करिे है (िादं डल्य, 2019)6 । इसके दवरोध में जयपाल दसंह ने 11 जनवरी 1948 को चायबासा में दविाल प्रििनष कर इसे ‘आजाि भारि का जदलयावाला बाग कांड’ नाम दिया िथा इसकी दनिं ा करिे हएु कहा “सरकारों के हाथ आदिवादसयों के खून से सने है और वे अपने इस अपराध के दलए िदनया से मंह दछपा कर नहीं भाग सकि”े | जयपाल दसहं ने खरसावा के िहीिों की श्रद्धाजं ली सभा में एक कदविा पढ़ी जो है – “िहीि कभी बढ़ू े ओर दवस्मिृ नहीं होंगे, जैसे एक दिन हम हो जाएंगे बढ़ू े और खत्म, काल के पार भी वे जीयंगे े सदियों िक दजन्हे भलाया नहीं जा सके गा और हर दिन सरू ज के डूबने और उगने पर हम उन्हे याि करेंग”े । जयपाल दसंह ने 2 दिसम्बर 1948 की संदवधान सभा की चचाष मंे िो प्रस्िावों पर अपनी आपदत्त व्यक्त की, एक सदं वधान मंे ‘आदिवासी’ िब्ि को हटाकर उसकी जगह ‘जनजादि’ प्रयोग दकए जाने के संिभष में। जयपाल दसहं सदं वधान मंे ‘आदिवासी’ िब्ि ही चाहिे थे क्योंदक उनका कहना था दक हम इस ििे के ‘प्रथम नागररक’ व ‘मूलदनवासी’ है दजसको आदिवासी िब्ि ही सही रूप में पररलदक्षि करिा ह।ै जयपाल दसंह ने अनसूची 5 वी से बहार रह रहे आदिवादसयों पर भी क्या अनसदू चि क्षिे ों के प्रावधान लागू होंगे या नहीं इस पर भी प्रश्न दकए। िादं िपणू ष दनरायध सम्मले न व जनजािीय समिाय में प्रचदलि प्रथाओ में टकराव को लेकर भी संदवधान सभा को जयपाल दसहं ने आदिवासी समिाय की दचंिाओ वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अंक) / 42
43 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 से आवगि करवाया। (Assembly, 1948)7 जमिेिपर मंे 1 जनवरी 1950 को आयोदजि आदिवासी महासभा के अदधविे न मंे महासभा को एक राजनीदिक पाटी बनािे हएु इसका नाम ‘झारखंड पाटी’ रखा। आदिवादसयों के दलए स्वायत्त एक अलग राज्य जहा आदिवादसयों की भार्ा, ससं ्कृ दि, पहचान सरदक्षि रहे सके की स्थापना करवाना इसका प्रमख उद्देश्य था। इस पाटी ने माचष, 1952 मंे हएु प्रांिीय व के न्रीय चनावों में ‘मगा’ष चनाव दचन्ह पर चनाव लड़े िथा प्रािं मंे 32 दवधायक ओर 4 संसि चने गए। जयपाल दसंह मडं ा स्वयं खंूटी संसिीय क्षेि से सासं ि दनवाषदचि हएु िथा जब िक जीदवि रहे 4 बार यहा से सासं ि रह।े चनावों मंे जयपाल दसहं की झारखडं पाटी ने कॉगं्रसे का सफाया कर दिया। उनकी पत्नी िारा मजूमिार को जयपाल दसंह का राजनीदि मंे आना पसंि नहीं था इसदलए िोनों मंे आपसी मनमटाव रहने लगा ओर 1952 में उन्होंने कानूनी रूप से दववाह दवच्छेि कर दलया। जयपाल दसहं ने 7 मई 1952 को जहाआरा जयरत्नम से िसू रा दववाह कर दलया। जब झारखंड राज्य पनगठष न आयोग 2 फरवरी 1955 को झारखडं आया िब छल करके दबहार के कछ कॉगं्रेदसयों ने उन्हे आयोग के सामने जाने से रोका। िीसरे आम चनाव (1962) में झारखंड पाटी के दवधायकों की संख्या घट कर 22 हो गई व 5 लोकसभा सीटंे जीिी। 22 में से भी धन बल ओर प्रभाव से मजबूि काँग्रसे पाटी ने उसके 12 गैर आदिवासी दवधायकों को खरीि दलया था ओर नहे रू के झटे वािों पर भरोसा करके जयपाल दसंह ने 20 जून 1963 को झारखडं पाटी का कागँ ्रसे में दवलय कर दिया जो की कागँ ्रसे की सोची समझी हईु गहरी सदजस थी। नहे रू ने अपने जीवन काल में ही ऐसे वािों को नकार दिया था। जयपाल दसहं 1967 का लोकसभा चनाव जीिे ये उनके जीवन का अदं िम चनाव था। कॉगं्रेस पाटी की चाल समझ जाने के बाि 13 माचष 1970 को रांची मंे आयोदजि झारखडं पाटी के सम्मले न में वादपस पाटी मंे लौटने की सावजष दनक घोर्णा की लदे कन जीदवि रहिे हएु कभी लौट नहीं सके । आदिवासी अदधकारों के इस महान पैरोकार का 20 माचष 1970 को दिल्ली में अपने सरकारी आवास मंे दनधन हो गया। अंदिम ससं ्कार मडं ा दवदध दवधान से इनके पैिकृ गाँव टकरा में दकया गया व इन्हे अपने दपिा के बगल में िफनाया गया (मंडा जनजादि में िव को िफनाने की प्रथा ह)ै । इस प्रकार जयपाल दसंह के दनधन ने िेि के आदिवासी समिाय की राजनीदि में एक िनू ्य उत्पन्न कर दिया ओर एक यग का अंि हो गया। आदिवादसयि को लेकर अपनी गहन समझ से उन्होंने ििे के आजाि होने से पहले से लके र आजाि होने के बाि सदं वधान सभा मंे आदिवासी अदधकारों की खलकर परै वी की। िेि के दलए हॉकी खले ने के दलए अपने व्यदक्तगि स्वाथष को त्यागिे हएु ‘आइसीऍस’ जैसी प्रदिदष्ठि नोकरी से इस्िीफा िे दिया। इन्ही की कप्तानी मंे भारि ने हॉकी मंे गोल्ड मडे ल जीिा था। इस प्रकार जयपाल दसहं का दजिना योगिान था मख्य धारा के इदिहासकारों द्वारा हमिे ा उसे कम करके आकँ ा गया। अगर इदिहास मंे कही उनके बारे मंे दलखा भी गया िो इदिहासकारों ने िो, चार पदं क्तयों में दलखकर इदिश्री कर िी। जो की उनके साथ अन्याय ह।ै गैर आदिवासी निे ा मिृ आदिवासी महानायकों पर श्रद्धा के फू ल चढ़ा कर राजनीदि कर सकिे है परंि जीिे जी वे उन आदिवासी नायकों को कभी पसंि नहीं करिे, क्योंदक जीिे जी वे उनकी सत्ता को चनौिी िेिे है जो उन्हे अच्छा नहीं लगिा है। आवश्यकिा इस बाि की ह,ै दक इदिहास मंे उनके द्वारा दिए गए योगिान को उदचि जगह िी जाए यही उनके साथ न्याय होगा। सिं भा सू ी :- 1. पंकज, अ. क. (2019). मरंग गोमके जयपाल दसंह मडं ा . रांची : प्रभाि प्रकािन . वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयकं ्त अकं ) / 43
44 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 2. Office of the Registrar General & Census Commissioner, I. (2011). 2011 Census Data. Ministry of Home Affairs,. new delhi: Office of the Registrar General & Census Commissioner, India. Retrieved from https://censusindia.gov.in/2011- common/censusdata2011.html 3. ित्त, ब. (2017). जयपाल दसहं एक, रोमांचक अनकही कहानी (जीवनी, ससं ्मरण एवं ऐदिहादसक िस्िावजे ) (प्रथम ed.). न्यू दिल्ली: प्रभाि पयापेरबेक्स. 4. Singh, j. (2004). Lo Bir Sendra. (R. Katyayana, Ed.) Ranchi: प्रभाि खबर. 5. (Hindi), C. A. (1946). Constituent Assembly Draft Making Debates (Hindi). new Delhi: Constituent Assembly.Retrieved from https://eparlib.nic.in/bitstream/123456789/763236/1/cad_11-12- 1946_hindi.pdf#search=null%201946 6. िांदडल्य, म. (2019). 1 जनवरी 1948, जब हआु था आज़ाि भारि का 'जदलयावं ाला बाग़ काडं '. खरसावां: बीबीसी दहन्िी. Retrieved from https://www.bbc.com/hindi/india-46725260 7. Assembly, C. (1948). Constituent Assembly Draft Making Debates (Hindi). न्यू दिल्ली: Constituent Assembly. Retrieved from https://eparlib.nic.in/bitstream/123456789/763426/1/cad_02-12- 1948_hindi.pdf#search=null%201948 ‘ वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अकं ) / 44
45 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 मकट वबहारी िमाा’ कृ त 'स्त्री समस्या': एक अध्ययन वमन्न जोसेफ िोधाथी , दहिं ी दवभाग कोदच्चन दवज्ञान व प्रौद्यौदगकी दवश्वदवध्यालय – 682022 के रल मो नं. 7356585177 ईमेल. [email protected] सारााशं – सावहत्य में स्त्री िते ना के प्रसार की भूवम नििार्गरण काल मंे लेखकों द्वारा तयै ार की िा िुकी थी । लेखकों ने सावहवत्यक लेखों के माध्यम से वस्त्रयों को मुवि की राह वदखाई। मुकु ट विहारी िमाव के आलोिना पुस्तक ‘स्त्री समस्या’ 1931 मंे प्रकावशत आलोिनात्मक लेखों का सकं लन ह,ंै िो कई सालों तक अिवितव रही। स्त्री िीिन की समस्याओं पर वलवखत सावहवत्यक सामग्री के अभाि को ध्यान मंे रखकर ‘स्त्री समस्या’ का लेखन हुआ था, इसमंे स्त्री िीिन की विवभन्न समस्याओ,ं उसके यथाथव कारणों और समस्याओं के समाधानों पर भी विस्तार से वििार वकया र्गया ह।ै पुस्तक मंे स्त्री-आदं ोलन को एक व्यिहाररक स्िरूप प्रदान करने का प्रयास भी ह।ै बीज शब्ि – स्त्री ससमस्य- मकु ु ट विहारी िमाव - स्त्री आदं ोलन- स्त्री- अथोपािनव - नििार्गरण- समस्या। शोध आलेख नवजागरण कालीन आलोचना का उिय दकसी बाहरी प्रेरणा से नहीं बदल्क पररविे और पररदस्थदि की आवश्यकिाओं से हुआ। ित्कालीन राजनीदिक एवं सामादजक पररविे से प्रेररि होकर लेखकों ने समालोचना सादहत्य को अपनाया। ित्कालीन पाठकों एवं लखे कों के बीच एक अदृश्य से लगाव उत्पन्न करने में इस सादहत्य दवधा की भदू मका अत्यिं प्रिसं नीय ह।ै दहिं ी दनबधं एवम् आलोचना सादहत्य के दवकास में नवजागरण कालीन पि-पदिकाओं की अहम भदू मका ह।ै नवजागरण कालीन दनबंध व आलोचना सादहत्य के दवदभन्न प्रकार दिखाई पड़िे ह।ंै नवजागरण काल के अनके रचनाएं सादहदत्यक इदिहास से छू ट जाने के कारण सादहदत्यक चचाओष ं से बाहर रह गए। आजकल ऐसे रचनाओं को दवदभन्न आलोचकों के प्रयास से प्रकाि मंे लाया जा रहा ह।ै जसै े दक डॉ ‘धमवष ीर' ने 'सीमिं नी उपिेि' को खोज दनकाला। इसी प्रकार 'मकट दबहारी वमा'ष कृ ि 'स्त्री समस्या' अचदचषि लखे ों का सगं ्रह ह।ैं 1931 मंे प्रकादिि यह पस्िक कई सालों िक अचदचिष रही। 'गररमा श्रीवास्िव' ने 2018 मंे इसे संपादिि कर पनप्रषकादिि दकया। स्त्री समस्या पर आधाररि सिह लेख इसमें सकं दलि ह।ंै गररमा श्रीवास्िव के अनसार “मकट दबहारी जी ने भारिीय दस्त्रयों की समस्याओं पर दलदखि सामग्री की अभाव की ओर उदचि ध्यान दिलािे हुए 'स्त्री समस्या' पस्िक को स्त्री की दवदभन्न समस्याओं पर दवचार करने की दििा मंे पहला सगदठि सादहदत्यक प्रयास कहा ह।ै “1 जसै े दक इसके नाम से ही प्रकट है इसमंे दस्त्रयों की दवदभन्न समस्याओं , कारणों और सलझन के मागों को दिया गया ह।ै स्त्री समस्या का प्रश्न पहले से ही समाज में उपदस्थि ह।ै यह उिना ही प्राचीन है दजिना यह ससं ार। भारिीय एवं वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 45
46 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 पाश्चात्य आंिोलन के स्वरूप को पहचानने के प्रारंदभक प्रयास करने वालों मंे मकट दबहारी वमाष का नाम उल्लखे नीय ह।ै मकट दबहारी वमाष ने ित्कालीन पि-पदिकाओं में छपने वाले स्त्री संबंधी लखे ों के गहन अध्ययन दकया था। 'फे दमदनज्म' , 'कदमंग रेनसे ा'ं , 'दवमने आफ माडनष इदं डया' , 'दवमने आफ ि फ्रें च रेवालिन' , 'दवमेन प्रोब्लमे ्स आफ टडे' , 'िःखी भारि' , इत्यादि पस्िकों और पदिकाओं के गहन अध्ययन, उनके आलोचनात्मक दचिं न मंे गहराई एवं व्यापकिा प्रिान करने में अहम भदू मका दनभाई ह।ै 'स्त्री समस्या' में सिह लेखों साथ-साथ स्त्री आिं ोलन के इदिहास भी सकं दलि ह।ंै हरेक लेख मंे अलग अलग समस्याओं के साथ-साथ पाश्चात्य स्त्री आंिोलन की कदमयों और भारिीय स्त्री आिं ोलन के स्वरूप पर भी दवचार दकया गया ह।ै स्वाभादवक रूप से रचनाकार पर यह प्रश्न उठिा है दक एक परुर् को दस्त्रयों की समस्याओं पर कलम चलाने की क्या ज़रूरि है ? इस पर रचनाकार का मि इस प्रकार है- “ मंै जो कछ भी हू,ं हूं अपनी मािा- एक स्त्री-की िने । मां का मैं पि ह,ूं इसीदलए माि-ृ जादि-दस्त्रयों- की समस्याओं पर अपनी , छोटी सी योनयिा एवं िदक्त के साथ दवचार और उनका हल करने का प्रयत्न करना मरे ा किवष ्य ह।ै … जबदक ' हम, स्त्री- परुर्, एक- िसू रे पर अवलदं बि ह'ै और ' नारी रूपी िदक्त की अवगणना करने से ही हमारा अध:पिन हआु है ', िब िो हमारे दलए यह और भी आवश्यक हो जािा है दक हम दस्त्रयों की समस्या पर गंभीरिा से दवचार करे और दकसी समागष की खोज करें।“1 'स्त्री समस्या' के वल समस्याओं का संकलन नहीं ह।ै रचनाकार स्त्री समस्या के कई पक्षों का उद्घाटन करिे हुए समाज को जागिृ करने का महत्वपूणष कायष भी करिे ह।ैं “स्त्री समस्या में जैसे दक इसके नाम से ही प्रकट ह,ै मनंै े इसी और ध्यान दिया ह,ै दस्त्रयों की दवदभन्न समस्याओं और कदठनाइयों पर (दजन्हें आमिौर पर अयोनयिाएं, 'दडसेदबदलटीज़' कहा जािा ह)ै अंकों और उद्धरणों के िकष यक्त दवचार करने का प्रयत्न दकया गया ह;ै साथ ही, सलझन और ज्ञान वदृ ध्ि के दलए, पररदिि के रूप में स्त्री आिं ोलन और उसके दवकास का भी दसंहावलोकन कर उसकी छान बीन की गई ह।ै दहिं ी में इस िरह का यह प्रथम ही प्रयास ह।ै “2इसमंे पररवार धमष और समाज सबं धं ी दवदभन्न कई के आधार पर दवदभन्न स्त्री समस्याओं पर दवचार दकया गया ह।ै स्त्री स्वििं िा, दववाह, पिा,ष दिक्षा, वशे ्यावृदत्त, िेविासी, बाल और बमे ले , दववाह, दवधवा दववाह, दवज्ञापन जैसे अनेक दवर्यों पर चचाष की गई ह।ै समाज की नींव परस्पर सहयोग मंे ह।ै ‘स्त्री समस्या’ में इसी सहयोग भाव पर बल दिया गया है, जहां स्त्री और परुर् उन्मक्त ढंग से एक िसू रे पर आदश्रि ह।ै स्त्री गलामी के प्रत्येक अवस्था से मक्त होना चाहिी ह।ै स्त्री स्विंििा दहिं ी नवजागरण की प्रमख मागं ों मंे से एक ह।ै स्त्री के द्वारा स्वििं िा की मागं को रचनाकार एक स्वाभादवक प्रदिदक्रया कहिे ह।ैं स्त्री समस्या के समाधान के दलए पाश्चात्य नाररयों के अनकरण करने की प्रदक्रया पर रचनाकार सख्ि दवरोध प्रकट करिे ह।ैं रचनाकार के अनसार स्त्री स्विंििा का अथष, स्विंि एवं उन्मक्त व्यवहार द्वारा जीवनोत्कर्ष से ह।ंै रचनाकार ने सबसे पहले दवदभन्न स्त्री समस्याओं के दववेचन दवश्लेर्ण द्वारा स्त्री जीवन के दवदभन्न अनिेखे पहलओं को पाठकों के सामने प्रस्िि दकया ह।ै मकट दबहारी वमाष एक ही समय मंे पिकार भी हैं और रचनाकार भी ह।ैं इसदलए समस्याओं के दनरूपण मंे लेखक के रचनात्मक व्यदक्तत्व और पिकार व्यदक्तत्व पणू ष रूप से सहायक दसद्ध हुए ह।ंै दनजी अनभवों को मौदलक दचिं न के साथ आलोचना में उभारा गया ह।ै लेखक द्वारा उल्लदे खि लगभग सभी समस्याएं कई रूपों में आज भी हमारे समाज मंे उपदस्थि ह।ै वर्ष 7, अकं 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 46
47 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 समस्या के पीछे कोई-न-कोई कारण ज़रूर होिा ह।ै मकट दबहारी जी इन कारणों को ढूँढ दनकालिे ह।ंै स्त्री समस्या के मलू कारणों मंे धमिष ास्त्र, धादमषक रूदढयाँ, अदिक्षा, अनकरण, अंधदवश्वास, अथष आदि प्रमख ह।ै दपिसृ त्तात्मक समाज ने इन कारणों को समाज में महत्वपूणष स्थान दिया ह।ै रचनाकार इन कारणों की असदलयि को पाठकों के सामने प्रस्िि करिे ह।ंै रचनाकार इस बाि को स्थादपि करिे हंै दक इन कारणों का कोई व्यवदस्थि आधार नहीं ह।ै इसमें अथवष ्यवस्था को वे मख्य कारण मानिे ह।ैं स्त्री-जादि पर परुर् जो अन्याय करिे हंै उसका एक ज़बरिस्ि कारण उनकी स्वयं अथोपाजनष करने की उपयक्तिा और दस्त्रयों का उससे हीन होना ह।ै स्मदृ िकारों ने दस्त्रयों की िीनों अवस्थाओं मंे परुर् के अधीन रहने की सलाह िी ह।ै इसी बाि का सहारा लेकर सदियों से दस्त्रयों को अथोपाजनष की योनयिा से वदं चि रखा गया। “निीजा यह होिा है दक जहां कहीं उन पर आदथषक समस्या आकर पड़ी नहीं दक वह घबरा उठिी ह।ै “1 आज िक हमारे समाज मंे समस्याओं के ऊपर मरम्मि हईु ह।ै लेदकन समस्याओं की मरम्मि नहीं बदल्क समाधान ढूंढना अदनवायष ह।ै बराई को ढकने के दलए िात्कादलक समाधान ढूंढना भी एक हल नहीं ह।ै इससे समस्या अदधक सगं ीणष हो जािी ह।ै जसै े लड़दकयों को कदृदि से बचाने के दलए पिाष प्रथा और बाल दववाह को स्थादपि दकया गया, बाि मंे यही प्रथाएं सबसे बड़ी समस्याएं बन गई। यदि समस्या को खत्म करना है िो मूल कारण को समाप्त करना जरूरी ह,ै दजस प्रकार एक जंगली पौधे को नि करने के दलए जड़ से उखाड़ फें कना अदनवायष ह।ै लेखक का अगला प्रयत्न स्त्री समस्या के समाधान की दििा मंे ह।ै रचनाकार की दृदि में अदधकार प्रादप्त के दलए किवष ्य को समझना जरूरी ह।ै किषव्य की पहचान अदधकार की ओर बढ़ने का पहला किम ह।ै ित्कालीन अन्य रचनाकारों के समान मकट दबहारी वमाष स्त्री स्विंििा या स्त्री जीवन की दनदश्चि सीमा के पक्षपािी नहीं ह।ै ' वे दजिना परुर्ों के पक्षपािी है उिना दस्त्रयों के भी ह।ैं ' उनके अनसार स्त्री समस्या का समाधान के वल दस्त्रयों की दज़म्मेिारी नहीं है इसमंे परुर् सदहि समाज की सदक्रय भागीिारी अदनवायष ह।ै स्त्री समस्या के समाधान का पहला किम है आदथषक स्वालंबन क्योंदक आदथषक स्वालंबन व्यदक्त को स्विंि बनािा ह।ै समाज में समानिा की एकरूपिा रचनाकार का लक्ष्य ह।ै स्त्री समस्याओं को सलझाने के दवदभन्न मागों पर 'स्त्री समस्या' में चचाष की गई ह।ै मदक्त के दलए परुर् जैसे बनने से या परुर् के अधं ानकरण करने से समस्या की जड़ें समाज मंे और भी सख्ि हो जािी ह।ै भारिीय सिं भष मंे स्त्री संबधं ी दृदिकोण मंे बिलाव लाना जरूरी ह।ै 'अबला' की लबे ल से मक्त होकर वह व्यदक्त बनने की कोदिि मंे ह।ै स्त्री समस्या के द्वारा रचनाकार का प्रयास भी इसी दििा में ह।ै स्त्री समस्या के समाधान के दलए रचनाकार आदथषक स्वालंबन को मख्य स्थान िेिे ह।ैं “अपने हर एक काम के दलए स्त्री को परुर् के सामने हाथ फै लाना पड़ा। स्त्री की इसी पराधीनिा को बाि में उसकी सबसे बड़ी समस्या बन गई। यदि इस समस्या को दमटाना है िो स्त्री को आदथषक रूप से उसे स्वावलबं ी बनना पड़ेगा।“2 प्रदिदक्रया एक स्वाभादवक िब्ि ह।ै जब िोर्ण ज़ोर पकड़िे हंै िो प्रदिदक्रया करना प्रकृ दि का दनयम है और यह सहज और स्वाभादवक ह।ै स्त्री आंिोलन भी इसी िोर्ण परंपरा की प्रदिदक्रया ह।ै दवज्ञान भी इस बाि का पक्ष धारी है दक प्रत्येक प्रवदृ त्त के सामान और दवपरीि प्रदिदक्रया होिी ह।ै समाज मंे सत्यम,दिवम् , सिं रम की प्रादप्त के दलए रचनाकार स्त्री आिं ोलन को मख्य कड़ी मानिे ह।ंै “अवश्य उस हालि मंे कोई दकसी का गलाम न रहगे ा, न िो परुर् स्वामी होगा न स्त्री िासी। सब अपने-अपने स्विंि रहगंे े, खाए-कमाएगं े और मौज करेंग।े आज की िरह बंधन ना रहगें ;े … न स्त्री इस बाि वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयकं ्त अकं ) / 47
48 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 के दलए बाध्य होगी दक, वह घर ही में सीदमि रहें और घर गहृ स्थी के ही कामों में अपने दिल-दिमाग को खपाया करंे।“1 उनके अनसार स्त्री आंिोलन का आधार प्रदियोदगिा की क्रोध-मलू क भावना ना होकर समाज मंे संयम और िांदि की स्थापना ह।ै 'स्त्री समस्या' समाज को नए भदवष्ट्य की नई दििाएं प्रिान करिी ह।ै इसमें स्त्री जीवन के कई दहस्सों पर चचाष की गई ह।ै समकालीन पाठक को 'स्त्री समस्या' स्त्री जीवन सबं ंधी एक अलग अनभव प्रिान करिा ह।ै यह पाठक को नए दसरे से सोचने और पढ़ने के दलए दववि करिा ह।ै पस्िक का हर एक िब्ि पाठक के मन मदस्िष्ट्क को प्रभादवि करिा ह।ै रचनाकार के खोजी व्यदक्तत्व और अध्ययन वररष्ठिा 'स्त्री समस्या' को सफलिा िक पहुचं ािे ह।ंै लेदकन दकन्हीं कारणों से यह रचना अचदचषि और अनपलब्ध रह गई। रचनाकार के पिकार व्यदक्तत्व, दनजी अनभव और मौदलक दचंिन 'स्त्री समस्या' को अनठू ा बना ििे े ह।ंै यगीन िदटयों के बावजूि भी अदभव्यदक्त की दृदि से भार्ा सहज और स्वाभादवक ह।ै वस्ि और दिल्प की उत्कृ ििा, प्रगदििीलिा, यगबोध, स्त्री सवं ेिना, दवचारों की मौदलकिा एवं प्रभावात्मकिा विषमान सिं भष मंे 'स्त्री समस्या' को अन्य स्त्री जीवन संबधं ी रचनाओं से अलग पहचान प्रिान करिे ह।ंै आधार ग्रथं – 1.गररमा श्रीवास्िव – स्त्री समस्या, भदू मका,अनन्य प्रकािन, दिल्ली, प.ृ 8 2.मकट दबहारी वमाष – स्त्री समस्या, अनन्य प्रकािन, दिल्ली, पृ.10 3.मकट दबहारी वमाष – स्त्री समस्या, अनन्य प्रकािन, दिल्ली, पृ.9 4.मकट दबहारी वमाष – स्त्री समस्या, अनन्य प्रकािन, दिल्ली, प.ृ 17 5.मकट दबहारी वमाष – स्त्री समस्या, अनन्य प्रकािन, दिल्ली, पृ.32 6.मकट दबहारी वमाष – स्त्री समस्या, अनन्य प्रकािन, दिल्ली, प.ृ 202 सहायक ग्रथं सू ी- 1. स्त्री समस्या- मकट दबहारी वमाष, (स्त्री आंिोलन के इदिहास सदहि)। पहला प्रकािन – सस्िा सादहत्य मंडल, अजमेर ( चोवनवां ग्रंथ ), नवबं र 1931 2. भदू मका एवं प्रस्िदि – गररमा श्रीवास्िव, पनप्रकष ािन – 2018 , अनन्य प्रकािन , दिल्ली वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अकं ) / 48
49 ‘जनकृ वत’ अंिरराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविेर्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 जनजातीय स्त्री के सशक्तीकरण की प्रततष्ठा करता अनजु लुगनु का काव्य सगं ्रह 'बाघ और सुगना मडंु ा की बेटी' डॉ. कु मारी उर्वशी, विभागाध्यक्ष ,व दिं ी विभाग, रांिची विमेंस कॉलजे ,राचंि ी, झारखंडि , 834001 मोबाइल निंबर:- 9955354365 ईमले आईडी:- [email protected] शोध-सार जनजातीय महिलाओं का सशक्तीकरण समकालीन समय मंे िम सब दखे रिे ि।ंै लहे कन अनजु लुगनु ने इसे हबरसा के जमाने में दखे ा। हबरसा मडंु ा की बिन हबरसी मडंु ा की बात करता यि काव्य सगं ्रि इस रूप मंे मित्वपणू ण ि।ै हकसी भी समुदाय के सामाहजक, आहथकण हवकास के हलए महिलाओं की सहिय भागीदारी आवश्यक ि।ै महिलाओं का सशक्तीकरण उन अवधारणाओं मंे से एक िै जो उनकी हथथहत में सधु ार के सबं ंध मंे हवकहसत िईु ि।ै जनजातीय समाज की सबसे बडी हवशषे ता यिी िै हक इसमें स्त्री को भोग की वथतु निीं समझा जाता रिा ि।ै अन्य समाज की हस्त्रयों की बहनथबत जनजातीय हस्त्रयों को खुलकर जीने की थवततं ्रता ि,ै उन्िें प्रमे और आनं द की थवतंत्रता उनका समाज देता ि।ै ‘बाघ और सगु ना मंडु ा की बटे ी’ कहवता सगं ्रि आहदवासी हस्त्रयों की सशक्तीकरण की पुरजोर पमै ाइश करता ि।ै यि काव्य सगं ्रि आहदवाहसयत के बिआु यामी पक्ष को उद्घाहटत करने मंे सफल हसद्ध िोता ि।ै यि कहवता अपने समय की अन्य कहवताओं से इसहलए अलग िै क्योंहक इसका हवजन हवथततृ िै साथ िी साथ वहै िक पमै ाने पर िोने वाली राजनीहत से भी िमें जोडती ि।ै अनुज लगु नु की इस कहवता में कल्पना ि,ै यथाथण ि,ै हमथक िै ,‘बाघ’ का प्रतीक और कहवता की नाहयका ‘हबरसी’ का रूपक भी ि।ै यि सब कहवता के सौन्दयण मंे अहभवहृ द्ध तो करता िी िै साथ िी साथ जनजातीय स्त्री जीवन के बिआु यामी तथ्यों से िमें जोडता भी ि।ै बीज-शब्द : आहदवासी जीवन दशनण , सामूहिकता, सिअहथतत्व, सिजीहवता, अहथमता, अहथतत्व हवथथापन, पलायन, उलगुलान , पँूजीवाद, साम्राज्यवाद आहद। मूल आलेख : ‘बाघ और सगु ना मिंडु ा की बेटी’ कविता में कवि अनजु लुगुन की सवृ ि ै 'वबरसी' । ‘वबरसी’ सगु ना मडंिु ा की बेटी और वबरसा मडंिु ा की ब न के वलए प्रयुक्त एक काल्पवनक नाम ।ै इस कविता मंे भगिान वबरसा की ब न वबरसी को के न्द्र मंे रखा गया ै एिंि नते तृ ्ि शवक्त से सपिं न्द्न भी वदखाया गया ।ै ऐसा इसवलए भी ै क्योंवक आवदिासी समदु ायों में वियांि गरै बराबरी की वशकार न ीं के ंै और य सिवव िवदत ै वक आवदिासी समुदाय मंे वियों को म त्िपरू ्व स्थान प्राप्त ।ै इवत ास गिा ै वक जल, जगंि ल जमीन बचाने के आदंि ोलनों में मव लाओिं की स भावगता एििं नेततृ ्ि क्षमता प्रबल रूप से उभरती र ी ।ै वबरसी, कवि अनजु लुगुन की एक ऐसी सवृ ि ै वजसे ि पररवस्थवतयों के सापके ्ष तैयार करते ।ंै क्ांिवतकारी वबरसा मडुिं ा की ब न वबरसी को परम्परा से जोड़ते एु ि उसे नि-साम्राज्यिादी, पूँजीिादी सभ्यता के विरुद्ध अवस्मता-अवस्तत्ि की रक्षा के वलए सिघं र्शव ील बनाते ।ैं कविता मंे एक तरफ िैश्वीकरर् की वखलाफत ै तो दसू री तरफ िविं चत िी अवस्मताओिं का संिघर्व ।ै अनुज लुगनु स जीविता के पक्षधर ,ैं इसके अभाि मंे आवदिासी समाज की कल्पना बेमानी ।ै वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसंबर 2021 (सयंक्त अंक) / 49
50 ‘जनकृ वत’ अिं रराष्ट्रीय मादसक पदिका (दविरे ्ज्ञ समीदक्षि), ISSN: 2454-2725 काव्य सिंग्र 'बाघ और सगु ना मुिंडा की बटे ी' के सिंदभव में डॉ. रविभूर्र् वलखते ैं वक अनजु लगु नु की कविता ‘बाघ और सगु ना मणु ्डा की बेटी’ के दारनाथ वसिं की बाघ कविता के बाद व दंि ी की ऐसी कविता ै वजसमें बाघ पर विस्तार पूिकव विचार वकया गया ।ै वजस बाघ का वचत्रर् कविता में वकया गया ै ि भमू डंि लीकरर् के बाद का ै । जब पथृ ्िी दो व स्सों में बट गई ।आज का बाघ अपना रंिग, रूप बदल चकु ा ै और इसी बदले रंिग रूप के बाघ का िर्नव कवि ने वकया ।ै कविता में मडिुं ा समाज ,आवदिासी समाज कंे र में ै । य कविता मवु क्त की आकांकि ्षा की एक बड़ी कविता ।ै एक साथ इस कविता मंे इवत ास-लेखन की मुख्यधारा तथा सभ्यता के विकास पर प्रश्न ।ै य मणु ्डा समाज और आवदिासी समाज मंे सीवमत न र कर सिंपरू ्व विश्व की एक पररक्मा करती ।ै यथाथव को उसकी समग्रता में दखे कर उसे बदलने की म ती आकांकि ्षा रखती ।ै य कविता बाह्य शत्रु के साथ आन्द्तररक शत्रु की स ी प चान करती ।ै िी सघंि र्व के सौन्द्दयव का विकास करती ।ै एक साथ इस कविता मंे अतीत की स्मवृ त, ितवमान का यथाथव और भविष्य का स्िप्न और उसकी कल्पना मौजूद ।ै इस कविता का फलक व्यापक ै और वचन्द्ताएँू ग री ।ंै आवदिासी समाज के पिू वजों द्वारा स जीिीता का जो धमव बनाया गया था उसके नि ोने की वचिंता कवि को ।ै ग रे आत्ममिंथन और विचार से जन्द्मी य कविता व दिं ी की कविताओंि मंे अपना विशरे ् स्थान इस बात पर रखती ै वक सुगना मुिंडा की बेटी इस लिबं ी कविता में मुख्य पात्र ै । इस नाम से उन्द् ोंने आवदिासी समाज के लवंै गक समानता का पक्ष रखा ।ै अभी तक के इवत ास मंे सुगना मुिंडा की बटे ी के वलए कोई जग न ीं थी। सघंि र्व मंे के िल सुगना मडंिु ा के बेटा वबरसा मडुंि ा का योगदान ै ऐसा प्रतीत ोता र ा लेवकन य ाँू कविता के माध्यम से ी इवत ास को चनु ौती वमल र ी ै और सघंि र्व की नावयका सगु ना मिंुडा की बेटी प्रवतस्थावपत ो र ी ।ैं य सिवमान्द्य सत्य ै वक वनजी संपि वि और अवतररक्त की लालसा सामूव कता की दवु नया का बव ष्कार और उप ास करती ै । वनजीकरर् और भमू िंडलीकरर् जनजातीय ससिं ्कृ वत और समाज के विरुद्ध ै । इस कविता मंे बाघ के जन्द्म को अवतररक्त की लालसा से जोड़ा गया ै । अवतररक्त की इस लालसा के कारर् ी उलट्बग्घों की सखंि ्या बढी ै । स जीिी बाघ विलपु ्त एु ।ैं प्राकृ त बाघ की जग अप्राकृ त बाघ उत्पन्द्न ो र े ैं जो वक वचतिं ाजनक ।ै य अप्राकृ त बाघ मारे भीतर, समाज के भीतर ,समदु ाय के भीतर अपनी वस्थवत मजबतू करता जा र ा ै क्योंवक ि चालाक और खतरनाक ।ै इस लबिं ी कविता मंे आवदिासी विमशव को मुख्य धारा के सामने एक सशक्त रूप मंे रखा गया ।ै प्रकृ वत के साथ सा चयव, लंैवगक समानता, स जीविता आवद इस कविता के कंे र में ।ै आज के संिदभव मंे यथाथव को यथारूप में रखा गया ै जैसे- आवदिासी समाज के अपने लोग के द्वारा ी समाज को शोवर्त करना, समाज में लैवं गक भदे भाि, अवतररक्त धन का लोभ इत्यावद । य व दंि ी कविता के वलए एक आशा की वकरर् ।ै कमानव िदं आयव वलखते ैं वक वजन कविताओिं के वलए अनजु लुगनु को साव त्य अकादमी परु स्कार से सम्मावनत वकया गया ,ै िे आनदिं की कविताएंि न ीं ।ैं वजतनी बार भी इस लम्बी कविता को पढा जाय पाठक पिजूं ीिाद के प्रवत घरृ ्ा और विर्ाद से भर उठता ।ै साथ ी य कविता घरृ ्ा और विर्ाद से भरना न ीं अवपतु मकु ्त ोना वसखाती ।ै य ी इस लम्बी कविता की खूबी ।ै य लंिबी कविता बाघ के िास्तविक स्िरूप से पररवचत कराती ।ै \"आवदिासी समाज धरती, प्रकृ वत और सवृ ि के ज्ञात-अज्ञात वनदशे , अनशु ासन और विधान को सिोच्च स्थान देता ।ै उसके दशनव मंे सत्य-असत्य, सदु रंि -असिंदु र, मनुष्य-अमनुष्य जसै ी कोई अिधारर्ा न ीं ैं न ी ि मनषु ्य को उसके बुवद्ध वििके अथिा 'मनुष्यता' के कारर् 'म ान' मानता ।ै उसका दृढ विश्वास ै वक सवृ ि मंे जो कु छ भी सजीि और वनजीि ,ंै सब समान ।ै न कोई बड़ा ै न कोई छोटा ।ै न कोई दवलत ंै न कोई बाह्मर्। सब अथविान ंै एििं सबका अवस्तत्ि एक समान ।ै चा े ि एक कीड़ा ो, पौधा ो, पत्थर ो या वक मनषु ्य ो।”(1) भारत मंे आवदिासी ससंि ्कृ वत सबसे पुरानी वर्ष 7, अंक 78-80, अक्टूबर-दिसबं र 2021 (सयंक्त अंक) / 50
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