च0 द्रका ताच द्रका ता: िह दी उप यास की आधारिशलाप्रेमच द-पवू व्र तीर् िह दी उप यास-सािह य म दो प्रमखु धाराय प्रवािहत होती िदखाईदेती ह, िजनम से प्रथम धारा भारते दयु ुगीन सधु ारवादी नैितकता प्रधान सामािजकउप यास की धारा है, िजसका प्रितिनिध व लाला ीिनवास दास के ‘परीक्षा गु ’ मिमलता है, और उसकी दसू री धारा िजसे ितिल मी-ऐयारी एवं जाससू ी उप यास कीसजं ्ञा प्रा त है, उसके सवािर् धक चिचतर् लेखक बाबू देवकीन दन खत्री ह, और उनकीकलम का जादू है ‘च द्रका ता’। हम यह िन सकं ोच प से मानकर चले ह िकप्रेमच द-पवू व्र तीर् उप यासकार म बाबू देवकीन दन खत्री सवाि्र धक लोकिप्रय कथाकारह और ‘च द्रका ता’ उनकी प्रथम मौिलक औप यािसक सजन्र ा होते हुए भी उनकीकीित्र का आधार- त भ बन गयी है। इसे इ ह ने ‘ितिल मी ऐयारी’ उप यास काअिभधान िदया है। िह दी की यही एकमात्र मात्र ऐसी औप यािसक रचना है िजसनेत कालीन जन साधारण म उप यास पढ़ने की प्रविृ त जाग्रत की तथा असखं ्यिनरक्षर उद्रदू ां लोग को िह दी सीखने के िलए प्रेिरत िकया। यिद यह कहा जाये िकइसी रचना ने पहली बार िह दी पाठक को कथारस से अवगत कराकर उ ह अिभभतूकर िलया तो कोई अितशयोिक्त न होगी। अपने यगु म (और बहुत बाद तक भी)‘च द्रका ता’ का जादू इस प्रकार छाया रहा था िक लोग उप यास को उप यास नकहकर ‘च द्रका ता’ कहने लगे थे। जसै े म यकालीन भावुक भक्त किव ‘रसखान’अपने सवैय की सरसता और मधुरता के कारण ‘सवयै े’ के पयार्य बन गये थ,े उसीप्रकार ‘च द्रका ता’ उप यास अपने कथा-रस के कारण ‘उप यास’ का समानक लगनेलगा था। एक अिवि छ न, अज त्र और अद्भतु प्रवाह है इसके कथा िव तार म, औरअन त कौतूहल इसका प्राण है। भारतीय सािह य सगं ्रह का जो काय्र पु तक.आगर् नेसन ् 2004 म आरंभ िकया है, उसके कायक्र ाल म अभी तक सबसे यादा िबकने वालीपु तक भी च द्रका ता ही रही है। इसकी माँग हमारे पास अमेिरका, कनाडा, जापान,मलेिशया और यहाँ तक िक अफ्रीका म कायर्र त भारतीय करते रहे ह। भारतवषर् म तोइसकी लोकिप्रयता पाठक म है ही। पु तक.आग्र इस पु तक का प्रथम भाग बेबसाईटपर पढ़ने के िलए उपल ध करवा रही है, और भिव य म अ य भाग और च द्रका तास तित को भी उपल ध करवायेगी।‘च द्रका ता’ (सन ् 1888) को मलू त: और प्रमखु त: एक प्रेम-कथा कहा जा सकता है।चार िह स म िवभािजत इस उप यास की कथा अनायास ही हम म यकालीनप्रेमाख्यानक का य का मरण कराती है। इस प्रेम-कथा म अलौिकक और
अितप्राकृ ितक त व का प्राय: अभाव है और न ही इसे आ याि मक रंग म रंगने काही प्रयास िकया गया है। यह शदु ्ध लौिकक * प्रेम-कहानी है, िजसम ितिल मी औरऐयारी के अनेक चम कार पाठक को चम कृ त करते ह। नौगढ़ के राजा सुरे द्रिसहं केपतु ्र वीरे द्रिसहं तथा िवजयगढ़ के राजा जयिसहं की पतु ्री च द्रका ता के प्रणय औरपिरणय की कथा उप यास की प्रमखु कथा है। इस प्रेम कथा के साथ-साथ ऐयारतजे िसहं तथा ऐयारा चपला की प्रेम-कहानी भी अनेकत्र झलकती है। िवजयगढ़ केदीवान कु पथिसहं का पुत्र क्रू रिसहं इस उप यास का खलनायक है। वह राजकु मारी कोहिथयाने के िलए अनेक ष य त्र रचता है।नािज़म और अहमद जसै े ऐयार उसके सहायक ह पर तु अपने कु कृ य के अनु प हीउसका अ त हो जाता है। चनु ार का राजा िशवद तिसहं भी असत ् अथवा खल पात्र की ेणी म आता है। वह भी क्रू रिसहं से प्रेिरत होकर च द्रका ता की प्राि त का िवफलप्रय न करता है। वह िवजयगढ़ पर आक्रमण करता है, पर तु नौगढ़ एवं िवजयगढ़ केशासक और वीरे द्रिसहं की वीरता तथा जीतिसहं , तेजिसहं , देवीिसहं आिद ऐयार केप्रय न से परा त होता है। इन ऐयार की सहायता से वीरे द्रिसहं अनेक किठनाइयऔर बाधाओं का सामना करता हुआ ितिल म को तोड़ता है और च द्रका ता को मकु ्तकराता है। इस ितिल म से उसे अपार स पदा प्रा त होती है और वह च द्रका ता कापािणग्रहण करता है। चपला तजे िसहं की पिरणीता बनती है और च पा का देवीिसहं सेिववाह होता है। हूण और मगु ल आक्रमणकािरय के समय से भारत म नािरय कास मान कम हुआ और क्रमशः पदा्र प्रथा आिद कु रीितयाँ भारतीय जीवन पर अपनाप्रभाव िदखाने लगीं िक आज के समय म सामा य यिक्त पदा्र प्रथा को भारतीय देनसमझता है। इस उप यास म भी कु छ िमि त प्रभाव िदखाई देता है। एक तरफ तोऐयारी जसै ा कायर् िजसम काफी जोिख़म और साहस का प्रदशन्र करना होता है उसमचपला, च पा तथा आगे के भाग म मनोरमा, गौहर आिद बढ़-चढ़कर भाग लेती बताईंगईं है, वहीं राज पिरवार कभी-कभी इसी प्रथा का अ यास करते भी िदखे ह।देवकीन दन खत्री ने समसामियक नीित-प्रधान उप यास से िभ न कौतूहल प्रधान‘ितिल मी ऐयारी’ उप यास रचना की नयी िदशा को उ घािटत करने का सफल प्रयासिकया। ‘ितिल म’ अरबी का श द है, िजसका अथर् है-‘ऐ द्रजािलक रचना, गाड़े हुए धनआिद पर बनायी हुई सपर् आिद की भयावनी आकृ ित व दवाओं तथा लग्न के मेल सेबँधा हुआ य त्र’। ‘च द्रका ता’ के चौथे भाग के बीसव बयान म ऐयार जीतिसहं ज रतपड़ती थी तो वे बड़-े बड़े योितषी, नजमू ी, वै य, कारीगर, ितिल म के स ब ध म कहताहै-‘‘ितिल मी वही शख्स तयै ार करता है, िजसके पास बहुत माल-खजाना हो औरवािरस न हो।...पुराने जमाने के राजाओं को जब ितिल मी बाधँ ने की आव यकता होतीथी तब योितषी, कारीगर और तांित्रक लोग इकट्ठे िकये जाते थे। उ हीं लोग के कहे
मतु ािबक ितिल मी बाधँ ने के िलए जमीन खोदी जाती थी, उसी जमीन के अ दरखजाना रखकर ऊपर ितिल मी इमारत बनायी जाती थी। उसम योितषी, नजमू ी, वै य,कारीगर और तांित्रक लोग अपनी ताकत के मतु ािबक उसके िछपाने की बंिदश करते थेमगर इसके साथ ही उस आदमी के नक्षत्र एवं ग्रह का भी खयाल रखते थे, िजसकेिलए वह खजाना रक्खा जाता था।’’‘ऐयार’ श द भी अरबी का है, िजसका शाि दक अथ्र है- धतू र् अथवा वेश या पबदलकर अनोखे काम करने वाला यिक्त। ‘ऐयार’ उसको कहते ह जो हर एक फनजानता हो, शक्ल बदलना और दौड़ना उसके मखु ्य काम ह। ऐयार के स ब ध म खत्रीजी ने ‘च द्रका ता’ की भिू मका म िलखा है- राजदरबार म ऐयार भी नौकर होते थे जोिक हरफनमौला, यानी सरू त बदलना, बहुत-सी दवाओं का जानना, गाना-बजाना, दौड़ना,अ त्र चलाना, जाससू का काम करना, वगरै ह बहुत-सी बात जाना करते थे। जबराजाओं म लड़ाई होती थी तो ये लोग अपनी चालाकी से िबना खनू बहाये व पलटनकी जाने गवं ाये लड़ाई ख म करा देते थे।’’ ’च द्रका ता’ म लेखक चनु ार के बाहर केख डहर के ितिल म का वणनर् करता है, जहाँ काले प थर के ख भे पर सगं मरमर काबगलु ा है जो िकसी के पास आते ही मँहु खोल लेता है और उसे उदर थ कर लेता है।च द्रका ता को यही बगलु ा िनगल लेता है तथा वह ितिल म म कै द हो जाती है।उसकी सखी चपला का भी यही हाल होता है। इस ितिल म के िवषय म एक सखु ्रप थर पर िलखा है-‘यह ितिल म है, इसम फं सने वाला कभी बाहर नहीं िनकल सकता।हाँ, अगर कोई इसको तोड़े तो सब कै िदय को छु ड़ा ले और दौलत भी उसके हाथ लगे।ितिल म तोड़ने वाले के बदन म खूब ताकत भी होनी चािहए, नहीं तो सारी मेहनत यथर् है।’ इस ितिल म को तोड़ने की िविध भी एक पु तक म िलखी िमलती है,िजसका अथ्र तेजिसहं और योितषीजी रमल की सहायता से ज्ञात करते ह। इसपु तक की प्राि त से वीरे द्रिसहं अपने ऐयार सािथय की मदद से अनेक किठनाइय ,बाधाओं एवं सघं ष का सामना करता हुआ ितिल म को तोड़ने म सफल होता है औरच द्रका ता को मकु ्त कराता है। उप यास के तीसरे और चौथे िह से म मखु ्य प सेइसी ितिल मी को तोड़ने की कथा रोचक, कौतूहल पणू र् और अद्भतु वणन्र है। वनक या,सरू जमखु ी आिद पात्र का सजृ न और उनके काय्र उप यास म रोचकता और कौतहू लकी विृ द्ध करते ह। कौतहू ल प्रेमी पाठक को िवशषे कर यह अदं ाजा लगाने म भी काफीआन द आता है िक कब कौन सा ऐयार क्या करामात िदखा रहा है। कई पात्र केचलते यह कायर् काफी चुनौती भरा बन जाता है। इसी ंखृ ला म भतू नाथ तो सबसेगढ़ू पात्र बन जाता है, यहाँ तक उसके चिरत्र को सही प्रकार समझाने के िलएदेवकीन दन खत्री जी को एक और 23 ख ड का उप यास भतू नाथ िलखना पड़ गया।भतू नाथ और रोहतासमठ दोन पु तक पु तक.आग्र के वारा उपल ध ह।
ऐयारी प्रधान होने के कारण ‘च द्रका ता’ म ऐयार की चाल , फन और घात-प्रितघातका बड़ा ही सजीव, रोचक और चम कािरक वणनर् िमलता है। उप यास म कई ऐयारह। वीरे द्रिसहं के पक्ष के ऐयार ह- जीतिसहं , तेजिसहं , और देवीिसहं । क्रू रिसहं के ऐयारह- अहमद और नािजम। िशवद त के छ: ऐयार ह- पि डत बद्रीनाथ, चु नीलाल,रामनारायण, भगवानद त, प नालाल और घसीटािसहं । उनके पास रमल का ज्ञाता योितषी जग नाथ भी है। चपला और च पा ऐयािरन ह जो िक च द्रका ता के साथरहती ह। उप यास म इन ऐयार के कायर् पाठक को चम कृ त और िवि मत करते ह।कहीं ये सघुं नी सघंु ाकर िकसी को बेहोश कर देते ह और कहीं लखलखा सघंु ाकर होशम ले आते ह। ऐयारी बटु आ इनके पास हमेशा रहता है और इसम वे सभी आव यकसामग्री रखते ह। जाससू ी करने, लड़ने-िभड़ने, गाने-बजाने, नाचने आिद म ये कु शल होतेह। ऐयार के कायर् उप यास की कथा को मोड़ देते ह। कहीं देवीिसहं साधू का वेषबनाकर तेजिसहं को सावधान करता है तो कहीं चपला और च पा की नकली लाश ह।कहीं वनक या और सरू जमखु ी के करतब ह, कहीं नकली च द्रका ता िशवद तिसहं सेप्रेम प्रदशनर् करती है तो कहीं जािलमखाँ और आफतखाँ अपने-अपने ढंग से आफतऔर जु म ढाते ह, जीतिसहं रह यमय प से साधु बाबा बन जाता है। सारे उप यासम इन ऐयार के चम कारपणू र् काय्र पाठक को मगु ्ध और ति भत करते ह। इनऐयार की अपनी आचार-सिं हता भी है, िजसका पालन करना वे अपना कत्र य मानतेह। उप यास म विणतर् ऐयार के घात-प्रितघात िवशाखद त के ‘मदु ्राराक्षस’ म विणत्रचाणक्य और राक्षस के राजनीितक दावं -पेच का मरण करा देते ह।व त-ु सगं ठन म उ सकु ता और कौतूहल की प्रधानता, पात्र के सजृ न म िविवध क्षते ्र सेउनका चयन, बातचीत के सवं ाद, चनु ार, िवजयगढ़, नौगढ़ आिद की निदय , तालाब ,बाविड़य , खोह , टील , ख डहर , पिक्षय , वकृ ्ष आिद का िचत्रा मक शैली म प्रकृ ित-िचत्रण,युगीन पिरि थितय का अप्र यक्ष प म अकं न, बोलचाल की सजीव भाषा, आदश्रचिरत्र की सजनर् ा वारा नैितक मू य की प्रित ठा आिद ‘च द्रका ता’ की कितपयऐसी िवशषे ताय ह; जो लेखक के जीवन अनभु व, क पना की िव मयकारी उड़ान तथाकथा-िनमा्रण की अद्भतु क्षमता की पिरचायक ह। व ततु : ितिल म और ऐयारी के सतू ्रसे गथुं ी हुई प्रेम और रोमांस की यह औप यािसक कथा िह दी के घटना-प्रधानरोमांचक उप यास की ऐसी शभु शु आत थी, िजसने असखं ्य पाठक को िह दी भाषाका प्रेमी बना िदया और िह दी उप यास को ढ़ आधारिशला प्रदान की।-पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सां य)-डॉ. रवेलच द आन द-(िद ली िव विव यालय)-नेह नगर, नयी िद ली-110065
-------------------------------------------------------------------------------------------------------शुद््ध लौिकक उस व तु को कहते ह िजसका आधार पणू तर् ः लौिकक हो। 1लेखक की ओर सेप्रथम सं करण से आज तक िह दी उप यास म बहुत से सािह य िलखे गये ह िजनमकई तरह की बात व राजनीित भी िलखी गयी है, राजदरबार के तरीके एवं सामान भीजािहर िकये गये ह, मगर राजदरबार म ऐयार (चालाक) भी नौकर हुआ करते थे जोिक हरफनमौला, यानी सरू त बदलना, बहुत-सी दवाओं का जानना, गाना-बजाना, दौड़ना,अ त्र चलाना, जाससू का काम देना, वगरै ह बहुत-सी बात जाना करते थे। जब राजाओंम लड़ाई होती थी तो ये लोग अपनी चालाकी से िबना खून बहाये व पलटन की जानगवं ाये लड़ाई ख म करा देते थे। इन लोग की बड़ी कदर की जाती थी। इसी ऐयारीपेशे से आजकल बहु िपये िदखाई देते ह। वे सब गणु तो इन लोग म रहे नही,ं िसफर्शक्ल बदलना रह गया है, और वह भी िकसी काम का नहीं। इन ऐयार का बयानिह दी िकताब म अभी तक मेरी नजर से नहीं गजु रा। अगर िह दी पढ़ने वाले इसआन द को देख ल तो कई बात का फायदा हो। सबसे यादा फायदा तो यह िक ऐसीिकताब को पढ़ने वाला ज दी िकसी के धोखे म न पड़गे ा। इन सब बात का ख्यालकरके मने यह ‘च द्रका ता’ नामक उप यास िलखा। इस िकताब म नौगढ़ विवजयगढ़ दो पहाड़ी रजवाड़ का हाल कहा गया है। उन दोन रजवाड़ म पहले आपसम खबू मेल रहना, िफर वजीर के लड़के की बदमाशी से िबगाड़ होना, नौगढ़ के कु मारवीरे द्रिसहं का िवजयगढ़ की राजकु मारी च द्रका ता पर आिशक होकर तकलीफउठाना, िवजयगढ़ के दीवान के लड़के क्रू रिसहं का महाराज जयिसहं से िबगड़ कर चनु ारजाना और च द्रका ता की तारीफ करके वहाँ के राजा िशवद तिसहं को उभाड़ लानावगरै ह। इसके बीच म ऐयारी भी अ छी तरह िदखलाई गयी है, और ये रा य पहाड़ीहोने से इसम पहाड़ी निदय , दर , भयानक जगं ल और खूबसरू त व िदलच प घािटयका बयान भी अ छी तरह से आया है।मने आज तक कोई िकताब नहीं िलखी है। यह पहला ही ीगणेश है, इसिलए इसमिकसी तरह की गलती या भलू का हो जाना ता जबु नही,ं िजसके िलए म आप लोगसे क्षमा माँगता हूँ, बि क बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप लोग मेरी भलू को पत्र वारामझु पर जािहर करगे। क्य िक यह ग्र थ बहुत बड़ा है, आगे और छप रहा है, भलूमालमू हो जाने से दसू री िज द म उसका खयाल िकया जायेगा।[आषाढ़, सवं त ् 1944 िव] देवकीन दन खत्री
च2 द्रका ता ॥ भाग -1 (पहला अ याय) ॥ पहला बयानशाम का वक्त है, कु छ-कु छ सरू ज िदखाई दे रहा है, सनु सान मदै ान म एक पहाड़ी केनीचे दो शख्स वीरे द्रिसहं और तजे िसहं एक प थर की चट्टान पर बैठकर आपस मबात कर रहे ह।वीरे द्रिसहं की उम्र इक्कीस या बाईस वष्र की होगी। यह नौगढ़ के राजा सरु े द्रिसहं काइकलौता लड़का है। तेजिसहं राजा सरु े द्रिसहं के दीवान जीतिसहं का यारा लड़का औरकंु वर वीरे द्रिसहं का िदली दो त, बड़ा चालाक और फु तीर्ला, कमर म िसफर् खजं र बाधं े,बगल म बटु आ लटकाये, हाथ म एक कम द िलए बड़ी तेजी के साथ चार तरफदेखता और इनसे बात करता जाता है। इन दोन के सामने कसाकसाया चु त-दु तएक घोड़ा पेड़ से बंधा हुआ है।कु अरं वीरे द्रिसहं कह रहे ह, ‘‘भाई तेजिसहं , देखो महु बत भी क्या बरु ी बला है िजसनेइस हद तक पहुँचा िदया। कई दफे तुम िवजयगढ़ से राजकु मारी च द्रका ता की िचट्ठीमेरे पास लाये और मेरी िचट्ठी उन तक पहुँचायी, िजससे साफ मालमू होता है िकिजतनी महु बत म च द्रका ता से रखता हूँ उतनी ही च द्रका ता मझु से रखती है,हालांिक हमारे रा य और उसके रा य के बीच िसफ्र पाचँ कोस का फासला है इस परभी हम लोग के िकये कु छ भी नहीं बन पड़ता। देखो इस खत म भी च द्रका ता नेयही िलखा है िक िजस तरह बने, ज द िमल जाओ।’’तजे िसहं ने जवाब िदया, ‘‘म हर तरह से आपको वहाँ ले जा सकता हूँ, मगर एक तोआजकल च द्रका ता के िपता महाराज जयिसहं ने महल के चार तरफ सख्त पहराबठै ा रक्खा है, दसू रे उनके म त्री का लड़का क्रू रिसहं उस पर आिशक हो रहा है, ऊपर सेउसने अपने दोन ऐयार को िजनका नाम नािजम अली और अहमद खाँ है इस बातकी ताकीद करा दी है िक बराबर वे लोग महल की िनगहबानी िकया कर क्य िकआपकी महु बत का हाल क्रू रिसहं और उसके ऐयार को बखबू ी मालमू हो गया है। चाहेच द्रका ता क्रू रिसहं से बहुत ही नफरत करती है और राजा भी अपनी लड़की अपनेम त्री के लड़के को नहीं दे सकता िफर भी उसे उ मीद बंधी हुई है और आपकीलगावट बहुत बुरी मालमू होती है। अपने बाप के जिरये उसने महाराज जयिसहं के
कान तक आपकी लगावट का हाल पहुँचा िदया है और इसी सबब से पहरे की सख्तताकीद हो गयी है। आप को ले चलना अभी मझु े पस द नहीं जब तक की म वहाँजाकर फसािदय को िगर तार न कर लँ।ू ’’‘‘ इस वक्त म िफर िवजयगढ़ जाकर च द्रका ता और चपला से मलु ाकात करता हूँक्य िक चपला ऐयारा और च द्रका ता की यारी सखी है और च द्रका ता को जान से यादा मानती है। िसवाय इस चपला के मेरा साथ देने वाला वहाँ कोई नहीं है। जब मअपने दु मन की चालाकी और कार्रवाई देखकर लौटूं तब आपके चलने के बारे म रायदँ।ू कहीं ऐसा न हो िक िबना समझ-े बझू े काम करके हम लोग वहाँ ही िगर तार होजाय।’’वीरे द्र : जो मनु ािसब समझो करो, मझु को तो िसफ्र अपनी ताकत पर भरोसा है लेिकनतमु को अपनी ताकत और ऐयारी दोन का।तजे िसहं : मझु े यह भी पता लगा है िक हाल म ही क्रू रिसहं के दोन ऐयार नािजमऔर अहमद यहाँ आकर पनु : हमारे महाराजा के दशनर् कर गये ह। न मालमू िकसचालाकी से आये थे। अफसोस, उस वक्त म यहाँ न था।वीरे द्र : मिु कल तो यह है िक तुम क्रू रिसहं के दोन ऐयार को फं साना चाहते हो औरवे लोग तु हारी िगर तारी की िफक्र म ह, परमे वर कु शल करे। खैर, अब तमु जाओऔर िजस तरह बने, च द्रका ता से मेरी मलु ाकात का ब दोब त करो।तजे िसहं फौरन उठ खड़े हुए और वीरे द्रिसहं को वहीं छोड़ पदै ल िवजयगढ़ की तरफरवाना हुए। वीरे द्रिसहं भी घोड़े को दरख्त से खोलकर उस पर सवार हुए और अपनेिकले की तरफ चले गये।-------------------------------------------------------------------------------------------------------*ऐयार उसको कहते ह जो हर एक फन जानता हो, शक्ल बदलना और दौड़ना उसका मखु ्य काम है। दसू रा बयानिवजयगढ़ म क्रू रिसहं * अपनी बैठक के अ दर नािजम और अहमद दोन ऐयार केसाथ बात कर रहा है।क्रू र : देखो नािजम, महाराज का तो यह खयाल है िक म राजा होकर म त्री के लड़केको कै से दामाद बनाऊँ , और च द्रका ता वीरे द्रिसहं को चाहती है। अब कहो िक मेराकाम कै से िनकले? अगर सोचा जाये िक च द्रका ता को लेकर भाग जाऊँ , तो कहाँ जाऊँऔर कहाँ रहकर आराम क ँ ? िफर ले जाने के बाद मेरे बाप की महाराज क्या ददु ्रशा
करगे? इससे तो यही मनु ािसब होगा िक पहले वीरे द्रिसहं और उसके ऐयार तेजिसहं कोिकसी तरह िगर तार कर िकसी ऐसी जगह ले जाकर खपा डाला जाये िक हजार वषर्तक पता न लगे, और इसके बाद मौका पाकर महाराज को मारने की िफक्र की जाये,िफर तो म झट ग ी का मािलक बन जाऊँ गा और तब अलब ता अपनी िजदं गी मच द्रका ता से ऐश कर सकँू गा। मगर यह तो कहो िक महाराज के मरने के बाद मग ी का मािलक कै से बनँूगा? लोग कै से मझु े राजा बनाएगं े।नािजम : हमारे राजा के यहाँ बिन बत कािफर के मसु लमान यादा ह, उन सब कोआपकी मदद के िलए म राजी कर सकता हूँ और उन लोग से कसम िखला सकता हूँिक महाराज के बाद आपको राजा मान, मगर शत्र यह है िक काम हो जाने पर आपभी हमारे मजहब मसु लमानी को कबूल कर?क्रू रिसहं : अगर ऐसा है तो म तु हारी शतर् िदलोजान से कबूल करता हूँ?अहमद : तो बस ठीक है, आप इस बात का इकरारनामा िलखकर मेरे हवाले कर। मसब मसु लमान भाइय को िदखलाकर उ ह अपने साथ िमला लँगू ा।क्रू रिसहं ने काम हो जाने पर मसु लमानी मजहब अिख्तयार करने का इकरारनामािलखकर फौरन नािजम और अहमद के हवाले िकया, िजस पर अहमद ने क्रू रिसहं सेकहा, ‘‘अब सब मसु लमान का एक (िदल) कर लेना हम लोग के िज मे है, इसकेिलए आप कु छ न सोिचये। हाँ, हम दोन आदिमय के िलए भी एक इकरारनामा इसबात का हो जाना चािहए िक आपके राजा हो जाने पर हमीं दोन वजीर मकु र्रर िकयेजाएगं े, और तब हम लोग की चालाकी का तमाशा देिखये िक बात-की-बात म जमानाकै से उलट-पुलटकर देते ह।’’क्रू रिसहं ने झटपट इस बात का भी इकरारनामा िलख िदया िजससे वे दोन बहुत हीखुश हुए। इसके बाद नािजम ने कहा, ‘‘इस वक्त हम लोग च द्रका ता के हालचाल कीखबर लेने जाते ह क्य िक शाम का वक्त बहुत अ छा है, च द्रका ता ज र बाग मगयी होगी और अपनी सखी चपला से अपनी िवरह-कहानी कह रही होगी, इसिलए हमको पता लगाना कोई मिु कल न होगा िक आज कल वीरे द्रिसहं और च द्रका ता केबीच म क्या हो रहा है।’’ये कह कर दोन ऐयार क्रू रिसहं से िवदा लेकर वहाँ से चले गये।-----------------------------------------------------------------------------------------------*इनकी उम्र 21 वषर् या 22 वषर् की थी, इनके ऐयार भी कमिसन थे।
तीसरा बयानकु छ-कु छ िदन बाकी है, च द्रका ता, चपला और च पा बाग म टहल रही ह। भीनी-भीनीफू ल की महक धीमी हवा के साथ िमलकर तबीयत को खुश कर रही है। तरह-तरह केफू ल िखले हुए ह। बाग के पि चम की तरफ वाले आम के घने पेड़ की बहार औरउसम से अ त होते हुए सरू ज की िकरण की चमक एक अजीब ही मजा दे रही है।फू ल की क्यािरय की रिवश म अ छी तरह िछड़काव िकया हुआ है और फू ल केदरख्त भी अ छी तरह पानी से धोए ह। कहीं गलु ाब, कहीं जहू ी, कहीं बेला, कहीं मोितयेकी क्यािरयाँ अपना-अपना मजा दे रही ह। एक तरफ बाग से सटा हुआ ऊँ चा महलऔर दसू री तरफ सु दर-सु दर बिु जयर् ां अपनी बहार िदखला रही ह। चपला, जो चालाकीके फन म बड़ी तेज और च द्रका ता की यारी सखी है, अपने चंचल हाव-भाव के साथच द्रका ता को सगं िलए चार ओर घमू ती और तारीफ करती हुई खशु बूदार फू ल कोतोड़-तोड़कर च द्रका ता के हाथ म दे रही है, मगर च द्रका ता को वीरे द्रिसहं कीजदु ाई म ये सब बात कम अ छी मालमू होती ह? उसे तो िदल बहलाने के िलए उसकीसिखयां जबद्र ती बाग म खीचं लायी ह।च द्रका ता की सखी च पा तो गु छा बनाने के िलए फू ल को तोड़ती हुई मालती लताके कंु ज की तरफ चली गई लेिकन च द्रका ता और चपला धीरे-धीरे टहलती हुई बीचके फौ वारे के पास जा िनकलीं और उसकी चक्करदार टू िटय से िनकलते हुए जल कातमाशा देखने लगी।ंचपला : न मालमू च पा िकधर चली गयी?च द्रका ता : कहीं इधर- उधर घमू ती होगी।चपला : दो घड़ी से यादा हो गया, तब से वह हम लोग के साथ नहीं है।च द्रका ता : देखो वह आ रही है।चपला : इस वक्त तो उसकी चाल म फक्र मालमू होता है।इतने म च पा ने आकर फू ल का एक गु छा च द्रका ता के हाथ म िदया और कहा,‘‘देिखये, यह कै सा अ छा गु छा बना लायी हूँ, अगर इस वक्त कंु वर वीरे द्रिसहं होतेतो इसको देख मेरी कारीगरी की तारीफ करते और मझु को कु छ इनाम भी देते।’’वीरे द्रिसहं का नाम सनु ते ही एकाएक च द्रका ता का अजब हाल हो गया। भलू ी हुईबात िफर याद आ गई, कमल मखु मरु झा गया, ऊं ची-ऊं ची सांस लेने लगी, आँख सेआँसू टपकने लगे। धीरे-धीरे कहने लगी, ‘‘न मालमू िवधाता ने मेरे भाग्य म क्यािलखा है? न मालमू मने उस ज म म कौन से-ऐसे पाप िकये ह िजनके बदले यह द:ु ख
भोगना पड़ रहा है? देखो, िपता को क्या धुन समायी है। कहते ह िक च द्रका ता कोकंु वारी ही रक्खगूँ ा। हाय ! वीरे द्र के िपती ने शादी करने के िलए कै सी-कै सी खशु ामदकीं , मगर दु ट क्रू र के बाप कु पथिसहं ने उसको ऐसा कु छ बस म कर रखा है िककोई काम नहीं होने देता, और उधर क बख्त क्रू र अपनी ही लसी लगाना चाहता है।’’एकाएक चपला ने च द्रका ता का हाथ पकड़कर जोर से दबाया मानो चपु रहने केिलए इशारा िकया।चपला के इशारे को समझ च द्रका ता चपु हो रही और चपला का हाथ पकड़कर िफरबाग म टहलने लगी, मगर अपना माल उसी जगह जान-बूझकर िगराती गई। थोड़ीदरू आगे बढ़कर उसने च पा से कहा, ‘‘ सखी देख तो, फौ वारे के पास कहीं मेरा मालिगर पड़ा है।’’च पा माल लेने फौ वारे की तरफ चली गयी तब च द्रका ता ने चपला से पूछा,‘‘सखी, तूने बोलते समय मझु े एकाएक क्य रोका?’’चपला ने कहा, ‘‘ मेरी यारी सखी, मझु को च पा पर शुबहा हो गया है। उसकी बातऔर िचतवन से मालमू होता है िक वह असली च पा नहीं है।’’ इतने म च पा ने माल लाकर चपला के हाथ म िदया। चपला ने च पा से पूछा, ‘‘सखी, कल रात कोमने तुझको जो कहा था सो तनै े िकया?’’ च पा बोली, ‘‘नही,ं म तो भलू गयी।’’ तबचपला ने कहा, ‘‘भला वह बात तो याद है या वो भी भलू गयी?’’ च पा बोली, ‘‘बाततो याद है।’’ तब िफर चपला ने कहा, ‘‘भला दोहरा के मझु से कह तो सही तब मजानू की तुझे याद है।’’इस बात का जवाब न देकर च पा ने दसू री बात छे ड़ दी िजससे शक की जगह यकीनहो गया िक यह च पा नहीं है। आिखर चपला यह कहकर िक म तझु से एक बातकहूँगी, च पा को एक िकनारे ले गयी और कु छ मामलू ी बात करके बोली,‘‘देख तोच पा, मेरे कान से कु छ बदबू तो नहीं आती ? क्य िक कल से कान म दद्र है।’’ नकलीच पा चपला के फे र म पड़ गयी और फौरन कान सँघू ने लगी। चपला ने चालाकी सेबेहोशी की बुकनी कान म रखकर नकली च पा को सँघु ा दी िजसके सँघू ते ही च पाबेहोश होकर िगर पड़ी।चपला ने च द्रका ता को पकु ार कर कहा, ‘‘ आओ सखी, अपनी च पा का हाल देखो।’’च द्रका ता ने पास आकर च पा को बेहोश पड़ी हुई देख चपला से कहा, ‘‘सखी, कहींऐसा न हो िक तु हारा ख्याल धोखा ही िनकले और पीछे च पा से शरमाना पड़े !’’नही,ं ऐसा न होगा।’’ कहकर चपला च पा को पीठपर लाद फौ वारे के पास ले गयीऔर च द्रका ता से बोली, ‘‘तमु फौ वारे से चु लू भर-भर पानी इसके मँहु पर डालो, म
धोती हूँ !’’ च द्रका ता ने ऐसा ही िकया और चपला खूब रगड़-रगड़कर उसका मँहुधोने लगी। थोड़ी देर म च पा की सरू त बदल गयी और साफ नािजम की सरू त िनकलआयी। देखते ही च द्रका ता का चेहरा गु से से लाल हो गया और वह बोली, ‘‘सखी,इसने तो बड़ी बेअदबी की !’’‘‘देखो तो, अब म क्या करती हूँ।’’ कहकर चपला नािजम को िफर पीठ पर लाद बागके एक कोने म ले गयी, जहाँ बजु र् के नीचे एक छोटा-सा तहखाना था। उसके अ दरबेहोश नािजम को ले जाकर िलटा िदया और अपने ऐयारी के बटु ए म से मोमब तीिनकाल कर जलायी। एक र सी से नािजम के पैर और दोन हाथ पीठ की तरफ खबूकसकर बाधँ े और िडिबया से लखलखा िनकाल कर उसको सँघु ाया, िजससे नािजम नेएक छींक मारी और होश म आकर अपने को कै द और बेबस देखा। चपला कोड़ा लेकरखड़ी हो गयी और मारना शु िकया।‘‘माफ करो मझु से बड़ा कसरू हुआ, अब म ऐसा कभी न क ँ गा बि क इस काम कानाम भी न लँगू ा !’’ इ यािद कहकर नािजम िच लाने और रोने लगा, मगर चपला कबसनु ने वाली थी ? वह कोड़ा जमाये ही गयी और बोली, ‘‘सब्र कर, अभी तो तरे ी पीठकी खुजली भी न िमटी होगी ! तू यहाँ क्य आया था ? क्या तझु े बाग की हवा अ छीमालमू हुई थी ? क्या बाग की सरै को जी चाहा था ? क्या तू नहीं जानता था िकचपला भी यहाँ होगी ? हरामजादे के ब च,े बेईमान, अपने बाप के कहने से तनू े यहकाम िकया ? देख म उसकी भी तबीयत खुश कर देती हूँ !’’ यह कहकर िफर मारनाशु िकया, और पछू ा, ‘‘सच बता, तू कै से यहाँ आया और च पा कहाँ गई ?’’मार के खौफ से नािजम को असल हाल कहना ही पड़ा। वह बोला, ‘‘च पा को मने हीबेहोश िकया था, बेहोशी की दवा िछड़ककर फू ल का गु छा उसके रा ते म रख िदयािजसको सँघू कर वह बेहोश हो गयी, तब मने उसे मालती लता के कंु ज म डाल िदयाऔर उसकी सरू त बना उसके कपड़े पहन तु हारी तरफ चला आया। लो, मने सब हालकह िदया, अब तो छोड़ दो !’’चपला ने कहा, ‘‘ठहर, छोड़ती हूँ।’’ मगर िफर भी दस पाँच कोड़े और जमा ही िदये, यहाँतक की नािजम िबलिबला उठा, तब चपला ने च द्रका ता से कहा, ‘‘सखी, तुम इसकीिनगहबानी करो, म च पा को ढूँढ़कर लाती हूँ। कहीं वह पाजी झठू न कहता हो!’’च पा को खोजती हुई चपला मालती लता के पास पहुँची और ब ती जलाकर ढ़ँूढ़नेलगी। देखा की सचमचु च पा एक झाड़ी म बेहोश पड़ी है और बदन पर उसके एकल ता भी नहीं है। चपला उसे लखलखा सँघु ाकर होश म लायी और पूछा, ‘‘क्यिमजाज कै सा है, खा गई न धोखा।’’
च पा ने कहा, ‘‘ मझु को क्या मालमू था िक इस समय यहाँ ऐयारी होगी? इस जगहफू ल का एक गु छा पड़ा था िजसको उठाकर सघूं ते ही म बेहोश हो गयी, िफर नमालमू क्या हुआ ! हाय, हाय ! न जाने िकसने मझु े बेहोश िकया, मेरे कपड़े भी उतारिलए, बड़ी लागत के कपड़े थे !’’वहाँ पर नािजम के कपड़े पड़े हुए थे िजनम से दो एक लेकर चपला ने च पा काबदन ढंका और तब यह कहकर की ‘मेरे साथ आ, म उसे िदखलाऊँ िजसने तरे ी यहहालत की’ च पा को साथ ले उस जगह आई जहाँ च द्रका ता और नािजम थे।नािजम की तरफ इशारा करके चपला ने कहा, देख, इसी ने तरे े साथ यह भलाई की थी!’’ च पा को नािजम की सरू त देखते ही बड़ा क्रोध आया और वह चपला से बोली,‘‘बहन अगर इजाजत हो तो म भी दो चार कोड़े लगा कर अपना गु सा िनकाल लँ?ू ’’चपला ने कहा, ‘‘हा,ँ हा,ँ िजतना जी चाहे इस मएु को जिू तयाँ लगाओ !’’ बस िफर क्याथा, च पा ने मनमाने कोड़े नािजम को लगाये, यहाँ तक िक नािजम घबड़ा उठा औरजी म कहने लगा, ‘‘खदु ा, क्रू रिसहं को गारत करे िजसकी बदौलत मेरी यह हालत हुई!’’आिखरकार नािजम को उसी कै दखाने म कै द कर तीन महल की तरफ रवाना हुई। यहछोटा-सा बाग िजसम ऊपर िलखी बात हुईं, महल के सगं सटा हुआ उसके िपछवाड़े कीतरफ पड़ता था और खास कर च द्रका ता के टहलने और हवा खाने के िलए हीबनवाया गया था। इसके चार तरफ मसु लमान का पहरा होने के सबब से ही अहमदऔर नािजम को अपना काम करने का मौका िमल गया था। चौथा बयानतेजिसहं वीरे द्रिसहं से खसत होकर िवजयगढ़ पहुँचे और च द्रका ता से िमलने कीकोिशश करने लगे, मगर कोई तरकीब न बठै ी, क्य िक पहरे वाले बड़ी होिशयारी सेपहरा दे रहे थे। आिखर सोचने लगे िक क्या करना चािहए? रात चादँ नी है, अगर अधं ेरीरात होती तो कमदं लगाकर ही महल के ऊपर जाने की कोिशश की जाती।आिखर तजे िसहं एका त म गये और वहाँ अपनी सरू त एक चोबदार की-सी बना महलकी योढ़ी पर पहुँचे। देखा िक बहुत से चोबदार और यादे बठै े पहरा दे रहे ह। एकचोबदार से बोले, ‘‘यार, हम भी महाराज के नौकर ह, आज चार महीने से महाराजहमको अपनी अद्रली म नौकर रक्खा है, इस वक्त छु ट्टी थी, चाँदनी रात का मजादेखत-े टहलते इस तरफ आ िनकले, तुम लोग को त बाकू पीते देख जी म आया िकचलो दो फँू क हम भी लगा ल, अफीम खाने वाल को त बाकू की महक जसै ी मालमू
होती है आप लोग भी जानते ही ह गे !’’‘‘हाँ, हाँ, आइए, बैिठए, त बाकू पीिजए !’’कहकर चोबदार और याद ने हुक्का तेजिसहंके आगे रक्खा। तजे िसहं ने कहा, ‘‘म िह दू हूँ, हुक्का तो नहीं पी सकता, हा,ँ हाथ सेज र पी लँगू ा।’’ यह कह िचलम उतार ली और पीने लगे।उ ह ने दो फँू क त बाकू के नहीं िपये थे िक खासँ ना शु िकया, इतना खासं ा िक थोड़ा-सा पानी भी मँहु से िनकाल िदया और तब कहा, ‘‘िमयां तमु लोग अजब कड़वात बाकू पीते हो? म तो हमेशा सरकारी त बाकू पीता हूँ। महाराज के हुक्काबदा्रर सेदो ती हो गयी है, वह बराबर महाराज के पीने वाले त बाकू म से मझु को िदया करताहै, अब ऐसी आदत पड़ गयी है िक िसवाय उस त बाकू के और कोई त बाकू अ छानहीं लगता !’’इतना कह चोबदार बने हुए तजे िसहं ने अपने बटु ए म से एक िचलम त बाकूिनकालकर िदया और कहा, ‘‘तुम लोग भी पीकर देख लो िक कै सा त बाकू है।भला चोबदार ने महाराज के पीने का त बाकू कभी काहे को िपया होगा। झट हाथफै ला िदया और कहा, ‘‘लाओ भाई, तु हारी बदौलत हम भी सरकारी त बाकू पी ल।तुम बड़े िक मतवार हो िक महाराज के साथ रहते हो, तुम तो खूब चनै करते होगे !’’यह नकली चोबदार (तजे िसहं ) के हाथ से त बाकू ले िलया और खूब दोहरा जमाकरतेजिसहं के सामने लाए ! तेजिसहं ने कहा, ‘‘तमु सलु गाओ, िफर म भी ले लँगू ा।’’अब हुक्का गड़ु गड़ु ाने लगा और साथ ही ग प भी उड़ने लगी।ंथोड़ी ही देर म सब चोबदार और याद का सर घमू ने लगा, यहाँ तक िक झकु ते-झकु तेसब औधं े होकर िगर पड़े और बेहोश हो गये।अब क्या था, बड़ी आसानी से तेजिसहं फाटक के अ दर घसु गये और नजर बचाकरबाग म पहुँचे। देखा िक हाथ म रोशनी िलए सामने से एक ल डी चली आ रही है।तेजिसहं ने फु तीर् से उसके गले म कम द डाली और ऐसा झटका िदया िक वह चंू तकन कर सकी और जमीन पर िगर पड़ी। तुर त उसे बेहोशी की बुकनी सँुघाई और जबबेहोश हो गयी तो उसे वहां से उठाकर िकनारे ले गये। बटु ए म से सामान िनकालमोमब ती जलाई और सामने आईना रख अपनी सरू त उसी के जसै ी बनाई, इसके बादउसको वहीं छोड़ उसी के कपड़े पहन महल की तरफ रवाना हुए और वहाँ पहुँचे जहाँच द्रका ता, चपला और च पा दस पाँच ल िडय के साथ बात कर रही थीं। ल ड़ी कीसरू त बनाये हुए तेजिसहं भी एक िकनारे जा कर बैठ गये।
तेजिसहं को देख चपला बोली, ’’ क्य के तकी, िजस काम के िलए मने तुझको भेजा थाक्या वह काम तू कर आई जो चुपचाप आकर बठै गयी है?चपला की बात सनु तजे िसहं को मालूम हो गया िक िजस ल ड़ी को मने बेहोश िकयाहै और िजसकी सरू त बनाकर आया हूँ उसका नाम के तकी है।नकली के तकी : हां काम तो करने गयी थी मगर रा ते म एक नया तमाशा देखतुमसे कु छ कहने के िलए लौट आयी हूँ।चपला : ऐसा ! अ छा तनू े क्या देखा कह?नकली के तकी : सभी को हटा दो तो तु हारे और राजकु मारी के सामने बात कहसनु ाऊँ ।सब ल िडयां हटा दी गईं और के वल च द्रका ता, चपला और च पा रह गईं। अबके तकी ने हँसकर कहा, ‘‘कु छ इनाम तो दो खशु खबरी सनु ाऊं ।’’च द्रका ता ने समझा िक शायद वह कु छ वीरे द्रिसहं की खबर लाई है, मगर िफर यहभी सोचा िक मने तो आजतक कभी वीरे द्रिसहं का नाम भी इसके सामने नहीं िलयातब यह क्या मामला है ? कौन-सी खुशखबरी है िजसके सनु ाने के िलए यह पहले हीसे इनाम माँगती है ? आिखर च द्रका ता ने के तकी से कहा, ‘‘हाँ हाँ, इनाम दंगू ी, तू कहतो सही, क्या खुशखबरी लाई है ?’’के तकी ने कहा, ‘‘पहले दे दो तो कहूं, नहीं तो जाती हूँ।’’ यह कह उठकर खड़ी हो गई।के तकी के ये नखरे देख चपला से न रहा गया और वह बोल उठी, ‘‘क्य री के तकी,आज तुझको क्या हो गया है िक ऐसी बढ़-बढ़ के बात कर रही है। लगाऊं दो लात उठके !’’के तकी ने जवाब िदया, ‘‘क्या म तुझसे कमजोर हूँ जो तू लात लगावेगी और म छोड़दंगू ी !’’अब चपला से न रहा गया और के तकी का झ टा पकड़ने के िलए दौड़ी, यहां तक िकदोन आपस म गथुं गईं। इि तफाक से चपला का हाथ नकली के तकी की छाती परपड़ा जहाँ की सफाई देख वह घबरा उठी और झट से अलग हो गई।नकली के तकी: (हँसकर) क्य , भाग क्य गई ? आओ लड़ो !चपला अपनी कमर से कटार िनकाल सामने हुई और बोली, ‘‘ओ ऐयार, सच बता तूकौन है, नहीं तो अभी जान ले डालती हूँ !’’इसका जवाब नकली के तकी ने चपला को कु छ न िदया और वीरे द्रिसहं की िचट्ठी
िनकाल कर सामने रख दी। चपला की नजर भी इस िचट्ठी पर पड़ी और गौर से देखनेलगी। वीरे द्रिसहं के हाथ की िलखावट देख समझ गई िक यह तेजिसहं ह, क्य िकिसवाय तेजिसहं के और िकसी के हाथ वीरे द्रिसहं कभी चीट्ठी नहीं भेजगे। यह सोच-समझ चपला शरमा गई और गदर्न नीची कर चपु हो रही, मगर जी म तेजिसहं कीसफाई और चालाकी की तारीफ करने लगी, बि क सच तो यह है िक तेजिसहं कीमहु बत ने उसके िदल म जगह बना ली।च द्रका ता ने बड़ी महु बत से वीरे द्रिसहं का खत पढ़ा और तब तेजिसहं से बातचीतकरने लगी-च द्रका ता: क्य तेजिसहं , उनका िमजाज तो अ छा है ?तेजिसहं : िमजाज क्या खाक अ छा होगा ? खाना-पीना सब छू ट गया, रोते-रोते आखँसजू आईं, िदन-रात तु हारा यान है, िबना तु हारे िमले उनको कब आराम है। हजारसमझाता हूँ मगर कौन सनु ता है ! अभी उसी िदन तु हारी िचट्ठी लेकर म गया था,आज उनकी हालत देख िफर यहाँ आना पड़ा। कहते थे िक म खदु चलगंू ा, िकसी तरहसमझा-बुझाकर यहाँ आने से रोका और कहा िक आज मुझको जाने दो, म जाकर वहाँब दोब त कर आऊं तब तुमको ले चलगूं ा िजससे िकसी तरह का नकु सान न हो।च द्रका ता: अफसोस ! तुम उनको अपने साथ न लाये, कम-से-कम म उनका दशनर् तोकर लेती ? देखो यहाँ क्रू रिसहं के दोन ऐयार ने इतना ऊधम मचा रक्खा है िक कु छकहा नहीं जाता। िपताजी को म िकतना रोकती और समझाती हूँ िक क्रू रिसहं के दोनऐयार मेरे दु मन ह मगर महाराज कु छ नहीं सनु ते, क्य िक क्रू रिसहं ने उनको अपनेवश म कर रक्खा है। मेरी और कु मार की मलु ाकात का हाल बहुत कु छ बढ़ा-चढ़ाकरमहाराज को न मालमू िकस तरह समझा िदया है िक महाराज उसे स च का बादशाहसमझ गये ह, वह हरदम महाराज के कान भरा करता है। अब वे मेरी कु छ भी नहींसनु ते, हाँ आज बहुत कु छ कहने का मौका िमला है क्य िक आज मेरी यारी सखीचपला ने नािजम को इस िपछवाड़े वाले बाग म िगर तार कर िलया है, कल महाराजके सामने उसको ले जाकर तब कहूंगी िक आप अपने क्रू रिसहं की स चाई को देिखए,अगर मेरे पहरे पर मकु र्रर िकया ही था तो बाग के अ दर जाने की इजाजात िकसनेदी थी ?यह कह कर च द्रका ता ने नािजम के िगर तार होने और बाग के तहखाने म कै दकरने का सारा हाल तजे िसहं से कह सनु ाया।तजे िसहं चपला की चालाकी सनु कर हैरान हो गये और मन-ही-मन उसको यार करनेलगे, पर कु छ सोचने के बाद बोले, ‘‘चपला ने चालाकी तो खूब की मगर धोखा खा
गई।’’यह सनु चपला हैरान हो गई हाय राम ! मने क्या धोखा खाया ! पर कु छ समझ मनहीं आया। आिखर न रहा गया, तजे िसहं से पछू ा, ‘‘ज दी बताओ, मने क्या धोखाखाया ?’’ तेजिसहं ने कहा, ‘‘क्या तुम इस बात को नहीं जानती थीं िक नािजम बागम पहुँचा तो अहमद भी ज र आया होगा ? िफर बाग ही म नािजम को क्य छोड़िदया ? तमु को मनु ािसब था िक जब उसको िगर तार िकया ही था तो महल म लाकरकै द करतीं या उसी वक्त महाराज के पास िभजवा देती,ं अब ज र अहमद नािजम कोछु ड़ा ले गया होगा।इतनी बात सनु ते ही चपला के होश उड़ गये और बहुत शिम्र दा होकर बोली, ‘‘सच है,बड़ी भारी गलती हुई, इसका िकसी ने खयाल न िकया !’’तेजिसहं : और कोई क्य खयाल करता ! तमु तो चालाक बनती हो, ऐयारा कहलाती हो,इसका खयाल तमु को होना चािहए िक दसू र को ? खैर, जाके देखो, वह है या नहीं ?चपला दौड़ी हुई बाग की तरफ गई। तहखाने के पास जाते ही देखा िक दरवाजा खलु ापड़ा है। बस िफर क्या था ? यकीन हो गया िक नािजम को अहमद छु ड़ा ले गया।तहखाने के अ दर जाकर देखा तो खाली पड़ा हुआ था। अपनी बेवकू फी पर अफसोसकरती हुई लौट आई और बोली, ‘‘क्या कहूं, सचमचु अहमद नािजम को छु ड़ा ले गया।’’अब तजे िसहं ने छे ड़ना शु िकया, ‘‘बड़ी ऐयार बनती थी,ं कहती थीं हम चालाक ह,होिशयार ह, ये ह, वो ह। बस एक अदने ऐयार ने नाक म दम कर डाला !’’चपला झझंु ला उठी और िचढ़कर बोली, ‘‘चपला नाम नहीं जो अबकी बार दोन कोिगर तार कर इसी कमरे म लाकर बेिहसाब जिू तयां न लगाऊँ ।’’तजे िसहं ने कहा, ‘‘बस तु हारी कारीिगरी देखी गई। अब देखो, म कै से एक-एक कोिगर तार कर अपने शहर म ले जाकर कै द करता हूँ।’’इसके बाद तजे िसहं ने अपने आने का परू ा हाल च द्रका ता और चपला से कह सनु ायाऔर यह भी बतला िदया िक फलां जगह पर म के तकी को बेहोश कर के डाल आयाहूँ, तुम जाकर उसे उठा लाना। उसके कपड़े म न दंगू ा क्य िक इसी सरू त से बाहर चलाजाता हूँ। देखो, िसवाय तुम तीन को यह हाल और िकसी को न मालमू हो, नहीं तोसब काम िबगड़ जायेगा।च द्रका ता ने तजे िसहं से ताकीद की िक ‘‘दसू रे, तीसरे िदन तमु ज र यहाँ आयाकरो, तु हारे आने से िह मत बनी रहती है।’’
‘‘बहुत अ छा, म ऐसा ही क ँ गा !’’ यह कहकर तेजिसहं चलने को तयै ार हुए।च द्रका ता उ ह देख रोकर बोली, ‘‘क्य तजे िसहं , क्या मेरी िक मत म कु मार कीमलु ाकात नहीं बदी है ?’’ इतना कहते ही गला भऱ आया और वह फू ट-फू ट कर रोनेलगी। तेजिसहं ने बहुत समझाया औऱ कहा िक देखो, यह सब बखेड़ा इसी वा ते िकयाजा रहा है िजससे तु हारी उनसे हमेशा के िलए मलु ाकात हो, अगर तमु ही घबड़ाजाओगी तो कै से काम चलेगा ? बहुत-कु छ समझा-बुझाकर च द्रका ता को चुप कराया,तब वहाँ से रवाना हो के तकी की सरू त म दरवाजे पर आये। देखा तो दो-चार यादेहोश म आये ह बाकी िच त पड़े ह, कोई औधं ा पड़ा है, कोई उठा तो है मगर िफर झकु ाही जाता है। नकली के तकी ने डपट कर दरबान से कहा, ‘‘तमु लोग पहरा देते हो याजमीन सँघू ते हो ?’’ इतनी अफीम क्य खाते हो िक आखं नहीं खुलती,ं और सोते होतो मदु से बाजी लगाकर ! देखो, म बड़ी रानी से कहकर तु हारी क्या दशा कराती हूँ!’’जो चोबदार होश म आ चकु े थे, के तकी की बात सनु कर स न हो गये और लगेखुशामद करने-‘‘देखो के तकी, माफ करो, आज एक नालायक सरकारी चोबदार ने आकर धोखा दे ऐसाजहरीला त बाकू िपला िदया िक हम लोग की यह हालत हो गई। उस पाजी ने तोजान से मारना चाहा था, अ लाह ने बचा िदया नहीं तो मारने म क्या कसर छोड़ी थी! देखो, रोज तो ऐसा नहीं होता था, आज धोखा खा गये। हम हाथ जोड़ते ह, अब कभीऐसा देखो तो जो चाहे सजा देना।’’नकली के तकी ने कहा, ‘‘अ छा, आज तो छोड़ देती हूँ मगर खबरदार ! जो िफर कभीऐसा हुआ !’’ यह कहते हुए तजे िसहं बाहर िनकल गये। डर के मारे िकसी ने यह भीन पूछा िक के तकी तू कहाँ जा रही है ? पाचँ वाँ बयानअहमद ने, जो बाग के पेड़ पर बठै ा हुआ था जब देखा िक चपला ने नािजम कोिगर तार कर िलया और महल म चली गई तो सोचने लगा िक च द्रका ता, चपलाऔर च पा बस यही तीन महल म गई ह, नािजम इन सभी के साथ नहीं गया तोज र वह इस बगीचे म ही कहीं कै द होगा, यह सोच वह पेड़ से उतर इधर-उधर ढूँढ़नेलगा। जब उस तहखाने के पास पहुंचा िजसम नािजम कै द था तो भीतर से िच लानेकी आवाज आयी िजसे सनु उसने पहचान िलया िक नािजम की आवाज है। तहखानेके िकवाड़ खोल अ दर गया, नािजम को बंधा-पा झट से उसकी र सी खोली औरतहखाने के बाहर आकर बोला, ‘‘चलो ज दी, इस बगीचे के बाहर हो जाय तब सब हाल
सनु िक क्या हुआ।’’नािजम और अहमद बगीचे के बाहर आये और चलते-चलते आपस म बाच-चीत करनेलगे। नािजम ने चपला के हाथ फं स जाने और कोड़ा खाने का पूरा हाल कहा।अहमदः भाई नािजम, जब तक पहले चपला को हम लोग न पकड़ लगे तब तक कोईकाम न होगा, क्य िक चपला बड़ी चालाक है और धीरे-धीरे च पा को भी तेज कर रहीहै। अगर वह िगर तार न की जायेगी तो थोड़े ही िदन म एक की दो हो जाएंगीच पा भी इस काम म तजे होकर चपला का साथ देने लायक हो जायेगी।नािजमः ठीक है, खरै , आज तो कोई काम नहीं हो सकता, मिु कल से जान बची है। हाँ,कल पहले यही काम करना है, यानी िजस तरह से हो चपला को पकड़ना और ऐसीजगह िछपाना है िक जहाँ पता न लगे और अपने ऊपर िकसी को शक भी न हो।ये दोन आपस म धीरे-धीरे बात करते चले जा रहे थ,े थोड़ी देर म जब महल के अगलेदरवाजे के पास पहुंचे तो देखा िक के तकी जो कु मारी च द्रका ता की ल डी है सामनेसे चली आ रही है।तेजिसहं ने भी जो के तकी के वेश म चले आ रहे थे, नािजम और अहमद को देखते हीपहचान िलया और सोचने लगे िक भले मौके पर ये दोन िमल गये ह और अपनी भीसरू त अ छी है, इस समय इन दोन से कु छ खेल करना चािहए और बन पड़े तो दोननही,ं एक को तो ज र ही पकड़ना चािहए।तजे िसहं जान-बझू कर इन दोन के पास से होकर िनकले। नािजम और अहमद भी यहसोचकर उसके पीछे हो िलए िक देख कहाँ जाती है ? नकली के तकी (तजे िसहं ) नेमड़ु कर देखा और कहा, ‘‘तमु लोग मेरे पीछे -पीछे क्य चले आ रहे हो ? िजस काम परमकु र्रर हो उस काम को करो !’’अहमद ने कहा, ‘‘िकस काम पर मकु रर्र ह और क्याकर, तुम क्या जानती हो ?’’ के तकी ने कहा, ‘‘म सब जानती हूँ ! तुम वही काम करोिजसम चपला के हाथ की जिू तयां नसीब ह ! िजस जगह तु हारी मददगार एक ल डीतक नहीं है वहाँ तु हारे िकये क्या होगा ?’’नािजम और अहमद के तकी की बात सनु कर दंग रह गये और सोचने लगे िक यहतो बड़ी चालाक मालमू होती है। अगर हम लोग के मेल म आ जाय तो बड़ा कामिनकले, इसकी बात से मालमू भी होता है िक कु छ लालच देने पर हम लोग का साथदेगी।नािजम ने कहा, ‘‘सनु ो के तकी, हम लोग का तो काम ही चालाकी करने का है। हमलोग अगर पकड़े जाने और मरने-मारने से डर तो कभी काम न चले, इसी की बदौलत
खाते ह, बात-की-बात म हजार पये इनाम िमलते ह, खुदा की मेहरबानी से तु हारेजसै े मददगार भी िमल जाते ह जसै े आज तुम िमल गईं। अब तुमको भी मनु ािसब हैिक हमारी मदद करो, जो कु छ हमको िमलेगा उससे हम तमु को भी िह सा दगे।’’के तकी ने कहा, ‘‘सनु ो जी, म उ मीद के ऊपर जान देने वाली नहीं हूँ, वे कोई दसू रेह गे। म तो पहले दाम लेती हूँ। अब इस वक्त अगर कु छ मझु को दो तो म अभीतेजिसहं को तु हारे हाथ िगर तार करा दं।ू नहीं तो जाओ, जो कु छ करते हो करो।’’तेजिसहं की िगर तारी का हाल सनु ते ही दोन की तबीयत खुश हो गई ! नािजम नेकहा, ‘‘अगर तजे िसहं को पकड़वा दो तो जो कहो हम तुमको द।’’के तकीः एक हजार पये से कम म हरिगज न लगूं ी। अगर मंजरू हो तो लाओ पयेमेरे सामने रखो।नािजमः अब इस वक्त आधी रात को म कहां से पये लाऊं , हाँ कल ज र दे दँगू ा।के तकीः ऐसी बात मझु से न करो। म पहले ही कह चकु ी हूँ िक म उधार सौदा नहींकरती, लो म जाती हूँ।नािजमः (आगे से रोक कर) सनु ो तो, तुम खफा क्य होती हो ? अगर तमु को हम लोगका ऐतबार न हो तो तमु इसी जगह ठहरो, हम लोग जाकर पये ले आते ह।के तकीः अ छा, एक आदमी यहाँ मेरे पास रहे और एक आदमी जाकर पये ले आओ।नािजमः अ छा, अहमद यहाँ तु हारे पास ठहरता है, म जाकर पये ले आता हूँ।यह कहकर नािजम ने अहमद को तो उसी जगह छोड़ा और आप खशु ी-खुशी क्रू रिसहंकी तरफ पये लेने को चला।नािजम के चले जाने के बाद थोड़ी देर तक के तकी और अहमद इधर-उधर की बातकरते रहे। बात करत-े करते के तकी ने दो-चार इलायची बटु ए से िनकालकर अहमद कोदीं और आप भी खाईं। अहमद को तजे िसहं के पकड़े जाने की उ मीद म इतनी खशु ीथी िक कु छ सोच न सका और इलायची खा गया, मगर थोड़ी ही देर म उसका िसरघूमने लगा। तब समझ गया िक यह कोई ऐयार (चालाक) है िजसने धोखा िदया। चटकमर से खंजर खींच िबना कु छ कहे के तकी को मारा, मगर के तकी पहले से होिशयारथी, दांव बचाकर उसने अहमद की कलाई पकड़ ली िजससे अहमद कु छ न कर सकाबि क जरा ही देर म बेहोश होकर जमीन पर िगर पड़ा। तजे िसहं ने उसकी मु कबाधं कर चादर म गठरी कसी और पीठ पर लाद नौगढ़ का रा ता िलया। खुशी के मारेज दी-ज दी कदम बढ़ाते चले गये, यह भी खयाल था िक कहीं ऐसा न हो िक नािजमआ जाय और पीछा करे।इधर नािजम पये लेने के िलए गया तो सीधे क्रू रिसहं के मकान पर पहुंचा। उस
समय क्रू रिसहं गहरी नीदं म सो रहा था। जाते ही नािजम ने उसको जगाया, क्रू रिसहं नेपछू ा, ‘‘क्या है जो इस वक्त आधी रात के समय आकर मझु को उठा रहे हो ?’’नािजम ने क्रू रिसहं से अपनी पूरी कै िफयत, यानी च द्रका ता के बाग म जाना औरिगर तार होकर कोड़े खाना, अमहद का छु ड़ा लाना, िफर वहां से रवाना होना, रा ते मके तकी से िमलना और हजार पये पर तेजिसहं को पकड़वा देने की बातचीत तयकरना वगरै ह सब खुलासा हाल कह सनु ाया। क्रू रिसहं ने नािजम के पकड़े जाने का हालसनु कर कु छ अफसोस तो िकया मगर पीछे तेजिसहं के िगर तार होने की उ मीदसनु कर उछल पड़ा, और बोला, ‘‘लो, अभी हजार पये देता हूँ, बि क खदु तु हारे साथचलता हूँ’’ यह कहकर उसने हजार पये स दकू म से िनकाले और नािजम के साथहो िलया।जब नािजम क्रू रिसहं को साथ लेकर वहाँ पहुंचा जहाँ अहमद और के तकी को छोड़ा थातो दोन म से कोई न िमला। नािजम तो स न हो गया और उसके महंु से झट यहबात िनकल पड़ी िक ‘धोखा हुआ !’क्रू रिसहं ः कहो नािजम, क्या हुआ !’नािजमः क्या कहूं, वह ज र के तकी नहीं कोई ऐयार था िजसने परू ा धोखा िदया औरअहमद को तो ले ही गया।क्रू रिसहं ः खूब, तमु तो बाग म ही चपला के हाथ से िपट चकु े थे, अहमद बाकी था सोवह भी इस वक्त कहीं जतू े खाता होगा, चलो छु ट्टी हुई।नािजम ने शक िमटाने के िलए थोड़ी देर तक इधर-उधर खोज भी की पर कु छ पता नलगा, आिखर रोत-े पीटते दोन ने घर का रा ता िलया। छठवाँ बयानतजे िसहं को िवजयगढ़ की तरफ िवदा कर वीरे द्रिसहं अपने महल म आये मगर िकसीकाम म उनका िदल न लगता था। हरदम च द्रका ता की याद म िसर झकु ाए बैठेरहना और जब कभी िनराश हो जाना तो च द्रका ता की त वीर अपने सामने रखकरबात िकया करना, या पलगं पर लेट महंु ढांप खबू रोना, बस यही उनका कम था। अगरकोई पछू ता तो बात बना देत।े वीरे द्रिसहं के बाप सरु े द्रिसहं को वीरे द्रिसहं का सबहाल मालमू था मगर क्या करत,े कु छ बस नहीं चलता था, क्य िक िवजयगढ़ का राजाउनसे बहुत जबद्र त था और हमेशा उन पर हुकू मत रखता था।वीरे द्रिसहं ने तजे िसहं को िवजयगढ़ जाती बार कह िदया था िक तुम आज ही लौटआना। रात बारह बजे तक वीरे द्रिसहं ने तेजिसहं की राह देखी, जब वह न आये तोउनकी घबराहट औऱ भी यादा हो गई। आिखर अपने को सभं ाला और मसहरी पर
लेट दरवाजे की तरफ देखने लगे। सवेरा हुआ ही चाहता था िक तेजिसहं पीठ पर एकगट्ठा लादे आ पहुंचे। पहरे वाले इस हालत म इनको देख हैरान थे, मगर खौफ से कु छकह नहीं सकते थे। तेजिसहं ने वीरे द्रिसहं के के मरे म पहुंचकर देखा िक अभी तक वेजाग रहे ह। वीरे द्रिसहं तजे िसहं को देखते ही वह उठ खड़े हुए और बोले, ‘‘कहो भाई,क्या खबर लाये ?’’तजे िसहं ने वहाँ का सब हाल सनु ाया, च द्रका ता की िचट्ठी हाथ पर रख दी, अहमदको गठरी खोल कर िदखा िदया औऱ कहा, ‘‘यह िचट्ठी है, और यह सौगात है !’’वीरे द्रिसहं बहुत खश हुए। िचट्ठी को कई मतबर् ा पढ़ा और आखं से लगाया, िफरतजे िसहं से कहा, ‘‘सनु ो भाई, इस अहमद को ऐसी जगह रक्खो जहाँ िकसी को मालमून हो, अगर जयिसहं को खबर लगेगी तो फसाद बढ़ जायेगा।तेजिसहं : इस बात को म पहले से सोच चुका हूँ। म इसको एक पहाड़ी खोह म रखआता हूँ िजसको म ही जानता हूँ।यह कह तजे िसहं ने िफर अहमद की गठरी बाँधी और एक यादे को भेजकर देवीिसहंनामी ऐयार को बलु ाया जो तेजिसहं का शािगदर्, िदली दो त और िर ते म सालालगता था, तथा ऐयारी के फन म भी तेजिसहं से िकसी तरह कम न था। जब देवीिसहंआ गये तब तजे िसहं ने अहमद की गठरी अपनी पीठ पर लादी और देवीिसहं से कहा,‘‘आओ, हमारे साथ चलो, तुमसे एक काम है।’’ देवीिसहं ने कहा, ‘‘गु जी वह गठरीमझु को दो, म चल,ंू मेरे रहते यह काम आपको अ छा नहीं लगता।’’ आिखर देवीिसहं नेवह गठरी पीठ पर लाद ली और तेजिसहं के पीछे चल पड़।ेवे दोन शहर के बाहर ही जगं ल और पहािड़य म घमू घमु ौवे पेचीदे रा त म जाते-जातेदो कोस के करीब पहुंचकर एक अंधेरी खोह म घुसे। थोड़ी देर चलने के बाद कु छरोशनी िमली। वहां जाकर तजे िसहं ठहर गये औऱ देवीिसहं से बोले, ‘‘गठरी रख दो।’’देवीिसहं : (गठरी रखकर) गु जी, यह तो अजीब जगह है, अगर कोई आवे भी तो यहाँसे जाना मिु कल हो जाए।तजे िसहं : सनु ो देवीिसहं , इस जगह को मेरे िसवाय कोई नहीं जानता, तुमको अपनािदली दो त समझकर ले आया हूं, तु ह अभी बहुत कु छ काम करना होगा।देवीिसहं : म तु हारा ताबेदार हूं, तुम गु हो क्य िक ऐयारी तु हीं ने मझु को िसखाई है,अगर मेरी जान की ज रत पड़े तो म देने को तैयार हूँ।तेजिसहं : सनु ो, और जो बात म तमु से कहता हूँ उनका अ छी तरह खयाल रक्खो। यहसामने जो प थर का दरवाजा देखते हो इसको खोलना िसवाय मेरे कोई भी नहींजानता, या िफर मेरे उ ताद िज ह ने मझु को ऐयारी िसखाई, वे जानते थे। वे तो अब
नहीं ह, मर गये, इस समय िसवाय मेरे कोई नहीं जानता, और म तुमको इसका खोलनाबतलाये देता हूँ। इसका खोलना बतलाये देता हूँ। िजस-िजस को म पकड़ कर लायाक ँ गा इसी जगह लाकर कै द िकया क ँ गा िजससे िकसी को मालमू न हो और कोईछु ड़ा के भी न ले जा सके । इसके अ दर कै द करने से कै िदय के हाथ-परै बाधं ने कीज रत नहीं रहेगी, िसफर् िहफाजत के िलए एक खुलासी बेड़ी उनके परै म डाल देनीपड़गे ी िजससे वह धीरे-धीरे चल-िफर सक। कै िदय के खाने-पीने की भी िफक्र तुमकोनहीं करनी पड़गे ी क्य िक इसके अ दर एक छोटी-सी कु दरती नहर है िजसम बराबरपानी रहता है, यहाँ मेव के दरख्त भी बहुत ह। इस ऐयार को इसी म कै द करते ह,बाद इसके महाराज से यह बहाना करके िक आजकल म बीमार रहता हूँ, अगर एकमहीने की छु ट्टी िमले तो आबोहवा बदल आऊं , महीने भर की छु ट्टी ले लो। म कोिशशकरके तु ह छु ट्टी िदला दँगू ा। तब तुम भेष बदलकर िवजयगढ़ जाओ और बराबर वहींरहकर इधर-उधर की खबर िलया करो, जो कु छ हाल हो मझु से कहा करो और जबमौका देखो तो बदमाश को िगर तार करके इसी जगह ला उनको कै द भी कर िदयाकरो।और भी बहुत-सी बात देवीिसहं को समझाने के बाद तजे िसहं दरवाजा खोलने चले।दरवाजे के ऊपर एक बड़ा सा चेहरा शरे का बना हुआ था िजसके मँहु म हाथ बखबू ीजा सकता था। तजे िसहं ने देवीिसहं से कहा, ‘‘इस चेहरे के महुं म हाथ डालकर इसकीजबु ान बाहर खींचो।’’ देवीिसहं ने वसै ा ही िकया और हाथ भर के करीब जबु ान खीचंली। उसके िखचं ते ही एक आवाज हुई और दरवाजा खलु गया। अहमद की गठरी िलएहुए दोन अ दर गये। देवीिसहं ने देखा िक वह खबू खलु ासा जगह, बि क कोस भर कासाफ मदै ान है। चार तरफ ऊँ ची-ऊँ ची पहािड़यां िजन पर िकसी तरह आदमी चढ़ नहींसकता, बीच म एक छोटा-सा झरना पानी का बह रहा है और बहुत से जगं ली मेव केदरख्त से अजब सहु ावनी जगह मालमू होती है। चार तरफ की पहािड़यां, नीचे से ऊपरतक छोटे-छोटे करजनी, घमु ची, बेर, मकोइये, िचर जी वगरै ह के घने दरख्त और लताओंसे भरी हुई ह। बड़-े बड़े प थर के ढ के म त हाथी की तरह िदखाई देते ह। ऊपर सेपानी िगर रहा है िजसकी आवाज बहुत भली मालूम होती है। हवा चलने से पेड़ कीसरसराहट और पानी की आवाज तथा बीच म मोर का शोर और भी िदल को खीचंलेता है। नीचे जो च मा पानी का पि चम से परू ब की तरफ घूमता हुआ बह रहा हैउसके दोन तरफ जामनु के पेड़ लगे हुए ह और पके जामनु उस च मे के पानी मिगर रहे ह। पानी भी च मे का इतना साफ है िक जमीन िदखाई देती है, कहीं हाथ भर,कहीं कमर बराबर, कहीं उससे भी यादा होगा। पहाड़ म कु दरती खोह बने ह िजनकेदेखने से मालमू होता है िक मान ई वर ने यहाँ सलै ािनय के रहने के िलए कोठिरयांबना दी ह। चार तरफ की पहािड़यां ढलवां और बिन बत नीचे के ऊपर से यादा
खुलासा थीं और उन पर बादल के टु कड़े छोटे-छोटे शािमयान का मजा दे रहे थे। यहजगह ऐसी सहु ावनी थी िक वष रहने पर भी िकसी की तबीयत न घबराये बि कखशु ी मालमू हो।सबु ह हो गई। सरू ज िनकल आया। तजे िसहं ने अहमद की गठरी खोली। उसका ऐयारीका बटु आ और खंजर जो कमर म बंधा था, ले िलया और एक बेड़ी उसके पैर म डालनेके बाद होिशयार िकया। जब अहमद होश म आया और उसने अपने को इस िदलच पमदै ान म देखा तो यकीन हो गया िक वह मर गया है और फिर ते उसको यहां लेआये ह। लगा कलमा पढ़ने। तेजिसहं के उसके कलमा पढ़ने पर हंसी आई, बोले,‘‘िमयां साहब, आप हमारे कै दी ह, इधर देिखए !’’ अहमद ने तजे िसहं की तरफ देखा,पहचानते ही जान सखू गई, समझ गया िक तब न मरे तो अब मरे। बीवी के तकी कीसरू त आखं के सामने िफर गई, खौफ ने उसका गला ऐसा दबाया िक एक हफर् भी महुंसे न िनकल सका।अहमद को उसी मदै ान म च मे के िकनारे छोड़ दोन ऐयार बाहर िनकल आये।तेजिसहं ने देवीिसहं से कहा, ‘‘इस शरे की जबु ान जो तुमने बाहर खींच ली है उसी केमहुं म डाल दो।’’ देवीिसहं ने वैसा ही िकया। जबु ान उसके महुं म डालते ही जोर सेदरवाजा ब द हो गया और दोन आदमी उसी पेचीली राह से घर की तरफ रवाना हुए।पहर भर िदन चढ़ा होगा जब ये दोन लौटकर वीरे द्रिसहं के पास पहुंचे। वीरे द्रिसहं नेपूछा, ‘‘अहमद को कहां कै द करने ले गये थे जो इतनी देर लगी ?’’ तेजिसहं ने जवाबिदया, ‘‘एक पहाड़ी खोह म कै द कर आया हूं, आज आपको भी वह जगह िदखाऊं गा, परमेरी राय है िक देवीिसहं थोड़े िदन भेष बदलकर िवजयगढ़ म रहे। ऐसा करने सेमझु को बड़ी मदद िमलेगी।’’ इसके बाद वह सब बात भी वीरे द्रिसहं को कह सनु ाईं जोखोह म देवीिसहं को समझाई थीं और जो कु छ राय ठहरी थी वह भी कहा िजसेवीरे द्रिसहं ने बहुत पस द िकया। नान-पूजा और मामलू ी काम से फु रसत-पा दोन आदमी देवीिसहं को साथ िलएराजदरबार म गये। देवीिसहं ने छु ट्टी के िलए अज्र िकया। राजा देवीिसहं को बहुतचाहते थे, छु ट्टी देना मजं रू न था, कहने लगे-‘‘हम तु हारी दवा यहाँ ही कराएगं े।’’आिखर वीरे द्रिसहं और तजे िसहं की िसफािरश से छु ट्टी िमली। दरबार बखा्र त होने परवीरे द्रिसहं राजा के साथ महल म चले गये और तेजिसहं अपने िपता जीतिसहं केसाथ घर आये, देवीिसहं को भी साथ लाये और सफर की तैयारी कर उसी समय उनकोरवाना कर िदया। जाती दफा उ ह और भी बात समझा दीं।दसू रे िदन तजे िसहं अपने साथ वीरे द्रिसहं को उस घाटी म ले गये जहाँ अहमद को
कै द िकया था। कु मार उस जगह को देखकर बहुत ही खशु हुए और बोले, ‘‘भाई, इसजगह को देखकर तो मेरे िदल म बहुत-सी बात पैदा होती ह।’’ तेजिसहं ने कहा,‘‘पहले-पहल इस जगह को देखकर म तो आपसे भी यादा हैरान हुआ था, मगर गुजीने बहुत कु छ हाल वहाँ का समझा कर मेरी िदलजमई कर दी थी जो िकसी दसू रेवक्त आपसे कहूंगा।’वीरे द्रिसहं इस बात को सनु कर और भी हैरान हुए और उस घाटी की कै िफयत जाननेके िलए िजद करने लगे। आिखर तजे िसहं ने वहां का हाल जो कु छ अपने गु से सनु ाथा, कहा, िजसे सनु कर वीरे द्रिसहं बहुत प्रस न हुए। तेजिसहं ने वीरे द्रिसहं से कहा, वेइतना खुश क्य हुए, और यह घाटी कै सी थी यह सब हाल िकसी दसू रे मौके पर बयानिकया जायेगा।वे दोन वहाँ से रवाना हो अपने महल आये। कु मार ने कहा, ‘‘भाई, अब तो मेरा हौसलाबहुत बढ़ गया है। जी म आता है िक जयिसहं से लड़ जाऊँ ।’’ तेजिसहं ने कहा,‘‘आपका हौसला ठीक है, मगर ज दी करने से च द्रका ता की जान का खौफ है। आपइतना घबराते क्य है ? देिखए, तो क्या होता है ? कल म िफर जाऊँ गा और मालमूक ँ गा िक अहमद के पकड़े जाने से दु मन की क्या कै िफयत हुई, िफर दसू री बारआपको ले चलगंू ा।’’ वीरे द्रिसहं ने कहा, ‘‘नही,ं अब की बार म ज र चलगंू ा, इस तरहएकदम डरपोक होकर बैठे रहना मद का काम नही।ं ’’तेजिसहं ने कहा, ‘‘अ छा, आप भी चिलए, हज्र क्या है, मगर एक काम होना ज री हैजो यह िक महाराज से पांच-चार रोज के िलए िशकार की छु ट्टी लीिजए और अपनीसरहद पर डरे ा डाल दीिजए, वहाँ से कु ल ढाई कोस च द्रका ता का महल रह जायेगा,तब हर तरह का सभु ीता होगा।’’ इस बात को वीरे द्रिसहं ने भी पस द िकया औरआिखर यही राय पक्की ठहरी।कु छ िदन बाद वीरे द्रिसहं ने अपने िपता सरु े द्रिसहं से िशकार के िलए आठ िदन कीछु ट्टी ले ली और थोड़े से अपने िदली आदिमय को, जो खास उ हीं के िखदमती थे औरउनको जान से यादा चाहते थे, साथ ले रवाना हुए। थोड़ा-सा िदन बाकी था तब नौगढ़और िवजयगढ़ के िसमाने पर इन लोग का डरे ा पड़ गया। रात भर वहाँ मकु ाम रहाऔर यह राय ठहरी िक पहले तेजिसहं िवजयगढ़ जाकर हाल-चाल ले आव। सातवां बयानअहमद के पकड़े जाने से नािजम बहुत उदास हो गया और क्रू रिसहं को तो अपनी हीिफक्र पड़ गई िक कहीं तजे िसहं मझु को भी न पकड़ ले जाये ! इस खौफ से वह
हरदम चौक ना रहता था, मगर महाराज जयिसहं के दरबार म रोज आता औरवीरे द्रिसहं के प्रित उनको भड़काया करता।एक िदन नािजम ने क्रू रिसहं को यह सलाह दी िक िजस तरह हो सके अपने बापकु पथिसहं को मार डालो, उसके मरने के बाद जयिसहं ज र तमु को मतं ्री (वजीर)बनायगे, उस वक्त तु हारी हुकू मत हो जाने से सब काम बहुत ज द होगा।आिखर क्रू रिसहं ने जहर िदलवाकर अपने बाप को मरवा डाला। महाराज ने कु पथिसहंके मरने पर अफसोस िकया और कई िदन तक दरबार म न आये। शहर म भीकु पथिसहं के मरने का गम छा गया।क्रू रिसहं ने जािहर म अपने बाप के मरने का भारी मातम (गम) िकया और बारह रोजके वा ते अलग िब तर जमाया। िदन भर तो अपने बाप को रोता पर रात को नािजमके साथ बैठकर च द्रका ता से िमलने तथा तजे िसहं और वीरे द्रिसहं को िगर तारकरने की िफक्र करता। इ हीं िदन वीरे द्रिसहं ने भी िशकार के बहाने िवजयगढ़ कीसरहद पर खेमा डाल िदया था, िजसकी खबर नािजम ने क्रू रिसहं को पहुंचाई और कहा,-‘‘वीरे द्रिसहं ज र च द्रका ता की िफक्र म आया है, अफसोस ! इस समय अहमद नहुआ नहीं तो बड़ा काम िनकलता। खैर, देखा जाएगा। ’’ वह कह क्रू रिसहं से िबदा होबालादवी* के वा ते चला गया।तजे िसहं वीरे द्रिसहं से खसत हो िवजयगढ़ पहुंचे और मतं ्री के मरने तथा शहर भरम गम छाने का हाल लेकर वीरे द्रिसहं के पास लौट आये। यह भी खबर लाये िक दोिदन बाद सतू क िनकल जाने पर महाराज जयिसहं क्रू र को अपना दीवान बनायगे।वीरे द्रिसहं ः देखो, क्रू र ने च द्रका ता के बाप को मार डाला। अगर राजा को भी मारडाले तो ऐसे आदमी का क्या िठकाना !तजे िसहं : सच है, वह नालायक जहाँ तक भी होगा राजा पर भी बहुत ज द हाथ फे रेगा,अ तु अब म दो िदन च द्रका ता के महल म न जाकर दरबार ही का हालचाल लगंू ा,हाँ, इस बीच म अगर मौका िमल जाय तो देखा जायगा।वीरे द्रिसहं ः सो सब कु छ नही,ं चाहे जो हो, आज म च द्रका ता से ज र मलु ाकातक ँ गा।तजे िसहं : आप ज दी न कर, ज दी ही सब काम को िबगाड़ती है।वीरे द्रः जो भी हो, म तो ज र जाऊं गा।तजे िसहं ने बहुत समझाया मगर च द्रका ता की जदु ाई म उनको भला-बुरा क्यासझू ता था ! एक न मानी और चलने के िलए तयै ार हो ही गये। आिखर तजे िसहं नेकहा, ‘‘खरै , नहीं मानते तो चिलए, जब आपकी ऐसी मजीर् है तो हम क्या कर ! जो
कु छ होगा देखा जायगा।’’शाम के वक्त ये दोन टहलने के िलए खेमे के बाहर िनकले और अपने याद से कहगये िक अगर हम लोग के आने म देर हो तो घबराना मत। टहलते हुए दोनिवजयगढ़ की तरफ रवाना हुए।कु छ रात गई होगी जब च द्रका ता के उसी नजरबाग के पास पहुँचे िजसका हालपहले िलख चकु े ह।रात अधं ेरी थी इसिलए इन दोन को बाग म जाने के िलए कोई तर दु न करना पड़ा,पहरे वाल को बचाकर कम द फका और उसके जिरए बाग के अ दर एक घने पेड़ केनीचे खड़े हो इधर उधर- िनगाह दौड़ा कर देखने लगे।बाग के बीचोबीच सगं मरमर के एक साफ िचकने चबतू रे पर मोमी शमादान जल रहाथा च द्रका ता, चपला और च पा बैठी बात कर रही थी।ं चपला बात भी करती जातीथी और इधर-उधर तजे ी के साथ िनगाह भी दौड़ा रही थी।च द्रका ता को देखते ही वीरे द्रिसहं का अजब हाल हो गया, बदन म कं पकं पी होनेलगी, यहाँ तक िक बेहोश होकर िगर पड़।े मगर वीरे द्रिसहं की यह हालत देख तजे िसहंपर कोई प्रभाव न हुआ, झट अपने ऐयारी बटु ए से लखलखा िनकाल सघुं ा िदया औरहोश म लाकर कहा, ‘‘देिखए, दसू रे के मकान म आपको इस तरह बेसधु न होनाचािहए। अब आप अपने को स हािलए और इसी जगह ठहिरए, म जाकर बात करआऊं तब आपको ले चल।ंू ’’ यह कह उ ह उसी पेड़ के नीचे छोड़ उस जगह गये जहाँच द्रका ता, चपला और च पा बठै ी थीं। तेजिसहं को देखते ही च द्रका ता बोली, ‘‘क्यजी इतने िदन कहाँ रहे ? क्या इसी का नाम मरु वत है ? अबकी आये तो अके ले हीआये। वाह, ऐसा ही था तो हाथ म चूड़ी पहन लेते, जवांमदीर् की डींग क्य मारते ह!जब उनकी महु बत का यही हाल है तो म जीकर क्या क ं गी ?’’ कहकर च द्रका तारोने लगी, यहाँ तक िक िहचकी बंध गई। तेजिसहं उसकी हालत देख बहुत घबराये औरबोले, ‘‘बस, इसी को नादानी कहते ह ! अ छी तरह हाल भी न पछू ा और लगीं रोने,ऐसा ही है तो उनको िलये आता हूँ !’’यह कहकर तेजिसहं वहाँ गये जहाँ वीरे द्रिसहं को छोड़ा था और उनको अपने साथ लेच द्रका ता के पास लौटे। च द्रका ता वीरे द्रिसहं के िमलने से बड़ी खुश हुई, दोनिमलकर खबू रोए, यहाँ तक िक बेहोश हो गये मगर थोड़ी देर बाद होश म आ गयेऔर आपस म िशकायत िमली महु बत की बात करने लगे।अब जमाने का उलट-फे र देिखए। घमू ता-िफरता टोह लगाता नािजम भी उसी जगह आपहुँचा और दरू से इन सब की खुशी भरी मजिलस देखकर जल मरा। तुर त ही
लौटकर क्रू रिसहं के पास पहुंचा। क्रू रिसहं ने नािजम को घबराया हुआ देखा और पूछा,‘‘क्य , क्या बात है जो तमु इतना घबराये हुए हो ?’’नािजमः है क्या, जो म सोचता था वही हुआ ! यही वक्त चालाकी का है, अगर अबभी कु छ न बन पड़ा तो बस तु हारी िक मत फू ट गई, ऐसा ही समझना पड़गे ा।क्रू रिसहं ः तु हारी बात तो कु छ समझ म नहीं आतीं, खलु ासा कहो, क्या बात है ?नािजमः खलु ासा बस यही है िक वीरे द्रिसहं च द्रका ता के पास पहुंच गया और इससमय बाग म हंसी के कहकहे उड़ रहे ह।यह सनु ते ही क्रू रिसहं की आंख के आगे अ धेरा छा गया, दिु नया उदास मालमू होनेलगी, कहीं तो बाप के जािहरी गम म वह सर मड़ु ाए बरसाती मढक बना बठै ा था, तेरहरोज कहीं बाहर जाना हो ही नहीं सकता था, मगर इस खबर ने उसको अपने आपे मन रहने िदया, फौरन उठ खड़ा हुआ और उसी तरह नंग-धड़गं औधं ी हाडँ ी-सा िसर िलएमहाराज जयिसहं के पास पहुंचा। जयिसहं क्रू रिसहं को इस तरह आया देख हैरान होबोले, ‘‘क्रू रिसहं , सतू क और बाप का गम छोड़ कर तु हारा इस तरह आना मझु कोहैरानी म डाल रहा है।क्रू रिसहं ने कहा, ‘‘महाराज, हमारे बाप तो आप ह, उ ह ने तो पदै ा िकया, परविरश आपकी बदौलत होती है। जब आपकी इ जत म बट्टा लगा तो मेरी िज दगी िकस काम कीहै और म िकस लायक िगना जाऊं गा ?’’जयिसहं : (गु से म आकर) क्रू रिसहं ! ऐसा कौन है जो हमारी इ जत िबगाड़े ?क्रू रिसहं ः एक अदना आदमी।जयिसहं : (दांत पीसकर) ज दी बताओ, वह कौन है, िजसके िसर पर मौत सवार हुई है?क्रू रिसहं ः वीरे द्रिसहं !जयिसहं : उसकी क्या मजाल जो मेरा मकु ाबला करे, इ जत िबगाड़ना तो दरू की बातहै ! तु हारी बात कु छ समझ म नहीं आती, साफ-साफ ज द बताओ, क्या बात है ?वीरे द्रिसहं कहाँ ह ?क्रू रिसहं ः आपके चोर महल के बाग म !* बालादवी-टोह लेने के िलए ग त करना। आठवां बयानवीरे द्रिसहं च द्रका ता से मीठी-मीठी बात कर रहे ह, चपला से तजे िसहं उलझ रहे ह,च पा बेचारी इन लोग का महुं ताक रही है। अचानक एक काला कलटू ा आदमी िसरसे परै तक आबनसू का कु दा, लाल-लाल आंख, लगं ोटा कसे, उछलता-कू दता इस सबकेबीच म आ खड़ा हुआ। पहले तो ऊपर नीचे दातं खोल तजे िसहं की तरफ िदखाया, तब
बोला, ‘‘खबरी भई राजा को तुमरी सुनो गु जी मेरे।’’ इसके बाद उछलता कू दता चलागया। जाती बार च पा की टागं पकड़ थोड़ी दरू घसीटता ले गया, आिखर छोड़ िदया।यह देख सब हैरान हो गये और डरे िक यह िपशाच कहां से आ गया, च पा बेचारी तोिच ला उठी मगर तजे िसहं फौरन उठ खड़े हुए और वीरे द्रिसहं का हाथ पकड़ के बोले,‘‘चलो, ज दी उठो, अब बठै ने का मौका नहीं !’’ च द्रका ता की तरफ देखकर बोले,‘‘हम लोग के ज दी चले जाने का रंज तमु मत करना और जब तक महाराज यहांन आय इसी तरह सब-की-सब बैठी रहना।’’च द्रका ता: इतनी ज दी करने का सबब क्या है और यह कौन था िजसकी बातसनु कर भागना पड़ा ?तजे ः (ज दी से) अब बात करने का मौका नहीं रहा।यह कहकर वीरे द्रिसहं को जबरद ती उठाया और साथ ले कम द के जिरए बाग केबाहर हो गये।च द्रका ता को वीरे द्रिसहं का इस तरह चला जाना बहुत बरु ा मालमू हुआ ! आखं मआसं ू पर चपला से बोली, ‘‘यह क्या तमाशा हो गया, कु छ समझ म नहीं आता। उसिपशाच को देखकर म कै सी डरी, मेरे कलेजे पर हाथ रखकर देखो, अभी तक धड़धड़ारहा है ! तुमने क्या खयाल िकया ?’’चपला ने कहा, ‘‘कु छ ठीक समझ म नहीं आता, हा,ँ इतना ज र है िक इस समयवीरे द्रिसहं के यहाँ आने की खबर महाराज को हो गई है, वे ज र आते ह गे।’’ च पाबोली, ‘‘ न मालमू मएु को मझु से क्या दु मनी थी ?’’च पा की बात पर चपला को हंसी आ गई मगर हैरान थी िक यह क्या खेल हो गया? थोड़ी देर तक इसी तरह की ता जबु भरी बात होती रही,ं इतने म ही बाग के चारतरफ शोरगलु की आवाज आने लगीं। चपला ने कहा, ‘‘रंग बरु े नजर आने लगे, मालमूहोता है बाग को िसपािहय ने घेर िलया।’’ बात पूरी भी न होने पाई थी िक सामनेमहाराज आते हुए िदखाई पड़।ेदेखते ही सब-की-सब उठ खड़ी हुईं। च द्रका ता ने बढ़कर िपता के आगे िसर झकु ायाऔर कहा, ‘‘इस समय आपके एकाएक आने...!’’ इतना कहकर चुप हो रही। जयिसहं नेकहा, ‘‘कु छ नही,ं तु ह देखने को जी चाहा इसी से चले आये। अब तुम भी महल मजाओ, यहाँ क्य बैठी हो ? ओस पड़ती है, तु हारी तबीयत खराब हो जायगी।’’ यहकहकर महल की तरफ रवाना हुए।च द्रका ता, चपला और च पा भी महाराज के पीछे -पीछे महल म गईं। जयिसहं अपने
कमरे म आये और मन म बहुत शिमर् दा होकर कहने लगे, ‘‘देखो, हमारी भोली-भालीलड़की को क्रू रिसहं झठू -मठू बदनाम करता है। न मालमू इस नालायक के जी म क्यासमाई है, बेधड़क उस बेचारी को ऐब लगा िदया, अगर लड़की सनु ेगी तो क्या कहेगी ?ऐसे शतै ान का तो महुं न देखना चािहए, बि क सजा देनी चािहए, िजससे िफर ऐसाकमीनापन न करे।’’ यह सोच हरीिसहं नामी एक चोबदार को हुक्म िदया िक बहुतज द क्रू र को हािजर करे।हरीिसहं क्रू रिसहं को खोजता हुआ और पता लगाता हूआ बाग के पास पहुंचा जहां वहबहुत से आदिमय के साथ खशु ी-खुशी बाग को घेरे हुए था। हरीिसहं ने कहा, ‘‘चिलए,महाराज ने बुलाया है।’’क्रू रिसहं घबरा उठा िक महाराज ने क्य बलु ाया ? क्या चोर नहींिमला ? महाराज तो मेरे सामने महल म चले गये थे। हरीिसहं से पूछा, ‘‘महाराज क्याकह रहे ह ?’’ उसने कहा, ‘‘अभी महल से आये ह, गु से से भरे बैठे ह, आपको ज दीबलु ाया है।’’ यह सनु ते ही क्रू रिसहं की नानी मर गई। डरता कापं ता हरीिसहं महाराजके पास पहुंचा।महाराज ने क्रू रिसहं को देखते ही कहा, ‘‘क्य बे क्रू र ! बेचारी च द्रका ता को इस तरहझठू -मठू बदनाम करना और हमारी इ जत म बट्टा लगाना, यही तेरा काम है ? यहइतने आदमी जो बाग को घेरे हुए ह अपने जी म क्या कहते ह गे ? नालायक, गधा,पाजी, तनू े कै से कहा िक महल म वीरे द्र है !’’मारे गु से के महाराज जयिसहं के ह ठ कापँ रहे थे, आंख लाल हो रही थीं। यहकै िफयत देख क्रू रिसहं की तो जान सखू गई, घबरा कर बोला, ‘‘मझु को तो यह खबरनािजम ने पहुंचाई थी जो आजकल महल के पहरे पर मकु रर्र है।’’ यह सनु ते हीमहाराज ने हुक्म िदया, ‘‘ बुलाओ नािजम को।’’ थोड़ी देर म नािजम भी हािजर िकयागया। गु से से भरे हुए महाराज के महंु से साफ आवाज नहीं िनकलती थी। टू टे-फू टेश द म नािजम से पछू ा, ‘‘क्य बे, तूने कै सी खबर पहुंचाई ?’’ उस वक्त डर के मारेउसकी क्या हालत थी, वही जानता होगा, जीने से नाउ मीद हो चुका था, डरता हुआबोला, ‘‘मने तो अपनी आंख से देखा था हुजरू , शायद िकसी तरह भाग गया होगा।’’जयिसहं से गु सा बदा्र त न हो सका, हुक्म िदया, ‘‘पचास कोड़े क्रू र को और दो सौकोड़े नािजम को लगाए जाय ! बस इतने ही पर छोड़ देता हूँ, आगे िफर कभी ऐसाहोगा तो िसर उतार िलया जायेगा। क्रू र तू वजीर होने लायक नहीं है।’’अब क्या था, लगे दो तफीर् कोड़े पड़ने। उन लोग के िच लाने से महल गजंू उठा मगरमहाराज का गु सा न गया। जब दोन पर कोड़े पड़ चकु े तो उनको महल के बाहरिनकलवा िदया और महाराज आराम करने चले गये, मगर मारे गु से के रात भर उ ह
नींद न आई।क्रू रिसहं और नािजम दोन घर आये और एक जगह बठै कर लगे झगड़ने। क्रू र नािजमसे कहने लगा, ‘‘तेरी बदौलत आज मेरी इ जत िमट्टी म िमल गई ! कल दीवान ह गेयह उ मीद भी न रही, मार खाई उसकी तकलीफ म ही जानता हूँ, यह तरे ी ही बदौलतहुआ !’’ नािजम कहता था-‘‘म तु हारी बदौलत मारा गया, नहीं तो मझु को क्या कामथा ? जह नुम म जाती च द्रका ता और वीरे द्र, मझु े क्या पड़ी थी जो जूते खाता !’’ येदोन आपस म यंू ही पहर झगड़ते रहे।अ त म क्रू रिसहं ने कहा, ‘‘हम तमु दोन पर लानत है अगर इतनी सजा पाने पर भीवीरे द्र को िगर तार न िकया।’’नािजम ने कहा, ‘‘इसम तो कोई शक नहीं िक वीरे द्र अब रोज महल म आया करेगाक्य िक इसी वा ते वह अपना डरे ा सरहद पार ले आया है, मगर अब कोई काम करनेका हौसला नहीं पड़ता, कहीं िफर म देखूं और खबर करने पर वह दबु ारा िनकल जायतो अबकी ज र ही जान से मारा जाऊं गा।’’क्रू रिसहं ने कहा, ‘‘तब तो कोई ऐसी तरकीब करनी चािहए िजससे जान भी बचे औरवीरे द्रिसहं को अपनी आंख से महाराज जयिसहं महल म देख भी ल।’’बहुत देर सोचने के बाद नािजम ने कहा, ‘‘चनु ारगढ़ महाराज िशवद तिसहं के दरबारम एक पि डत जग नाथ नामी योितषी ह जो रमल भी बहुत अ छा जानते ह। उनकेरमल फकने म इतनी तजे ी है िक जब चाहो पूछ लो िक फलां आदमी इस समय कहांहै, क्या कर रहा है या कै से पकड़ा जायेगा ? वह फौरन बतला देते ह। उनको अगरिमलाया जाये और वे यहाँ आकर और कु छ िदन रहकर तु हारी मदद कर तो सबकाम ठीक हो जाय। चनु ारगढ़ यहाँ से बहुत दरू भी नहीं है, कु ल तईे स कोस है, चलोहम तुम चल और िजस तरह बन पड़े उ ह ले आव।’’आिखर क्रू रिसहं ने बहुत कु छ जवाहरात अपने कमर म बांध दो तजे घोड़े मगं वानािजम के साथ सवार हो उसी समय चुनार की तरफ रवाना हो गया और घर मसबसे कह गया िक अगर महाराज के यहाँ से कोई आये तो कह देना िक क्रू रिसहंबहुत बीमार ह। नौवां बयानवीरे द्रिसहं और तेजिसहं बाग के बाहर से अपने खेमे की तरफ रवाना हुए। जब खेमेम पहुंचे तो आधी रात बीत चुकी थी, मगर तेजिसहं को कब चैन पड़ता था, वीरे द्रिसहं
को पहुंचाकर िफर लौटे और अहमद की सरू त बना क्रू रिसहं के मकान पर पहुंचे।क्रू रिसहं चनु ार की तरफ रवाना हो चकु ा था, िजन आदिमय को घर म िहफाजत केिलए छोड़ गया था और कह गया था िक अगर महाराज पूछ तो कह देना बीमार है,उन लोग ने एकाएक अहमद को देखा तो ता जबु से पछू ा, ‘‘कहो अहमद, तुम कहाँ थेअब तक?’’ नकली अहमद ने कहा, ‘‘म जह नमु की सरै करने गया था, अब लौटकरआया हूँ। यह बताओ िक क्रू रिसहं कहाँ है?’’ सभी ने उसको पूरा-पूरा हाल सनु ाया औरकहा, ‘‘अब चुनार गये ह, तमु भी वहीं जाते तो अ छा होता !’’अहमद ने कहा, ‘‘हाँ म भी जाता हूँ, अब घर न जाऊं गा। सीधे चुनार ही पहुंचता हूँ।’’यह कह वहाँ से रवाना हो अपने खेमे म आये और वीरे द्रिसहं से सब हाल कहा।बाकी रात आराम िकया, सवेरा होते ही नहा-धो, कु छ भोजन कर, सरू त बदल, िवजयगढ़की तरफ रवाना हुए। नगं े िसर, हाथ-पैर, महुं पर धूल डाले, रोते-पीटते महाराज जयिसहंके दरबार म पहुँचे। इनकी हालत देखकर सब हैरान हो गये। महाराज ने मशुं ी से कहा,‘‘पछू ो, कौन है और क्या कहता है ?’’तेजिसहं ने कहा-‘‘हुजरू म क्रू रिसहं का नौकर हूँ, मेरा नाम रामलाल है। महाराज सेबागी होकर क्रू रिसहं चुनारगढ़ के राजा के पास चला गया है। मने मना िकया िकमहाराज का नमक खाकर ऐसा न करना चािहए, िजस पर मझु को खबू मारा और जोकु छ मेरे पास था सब छीन िलया। हाय रे, म िब कु ल लटु गया, एक कौड़ी भी नहींरही, अब क्या खाऊं गा, घर कै से पहुंचंूगा, लड़के -ब चे तीन बरस की कमाई खोजगे, कहगेिक रजवाड़े की क्या कमाई लाये हो ? उनको क्या दंगू ा ! दहु ाई महाराज की, दहु ाई !दहु ाई !!’’बड़ी मिु कल से सभी ने उसे चुप कराया। महाराज को बड़ा गु सा आया, हुक्म िदया,‘‘क्रू रिसहं कहाँ है ?’’ चोबदार खबर लाया-‘‘बहुत बीमार ह, उठ नहीं सकते।’’ रामलाल(तजे िसहं ) दहु ाई महाराज की ! यह भी उ हीं की तरफ िमल गया, झठू बोलता है !मसु लमान सब उसके दो त ह ; दहु ाई महाराज की ! खूब तहकीकात की जाय !’’महाराज ने मशुं ी से कहा, ‘‘तुम जाकर पता लगाओ िक क्या मामला है ?’’ थोड़ी देरबाद मशुं ी वापस आये औऱ बोले, ‘‘महाराज क्रू रिसहं घर पर नहीं है, और घरवाले कु छबताते नहीं िक कहाँ गये ह।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ज र चुनारगढ़ गया होगा। अ छा,उसके यहाँ के िकसी य़ादे को बुलाओ।’’ हुक्म पाते ही चोबदार गया और बदिक मत यादे को पकड़ लाया। महाराज ने पूछा, ‘‘क्रू रिसहं कहाँ गया है ?’’ यादे ने ठीक पतानहीं िदया। राम लाल ने िफर कहा, ‘‘दहु ाई महाराज की, िबना मार खाये न बताएगा !’’महाराज ने मारने का हुक्म िदया। िपटने के पहले ही उस बदनसीब ने बतला िदया िकचनु ार गये ह।
महाराज जयिसहं को क्रू र का हाल सनु कर िजतना गु सा आया बयान के बाहर है।हुक्म िदया-(1) क्रू रिसहं के घर के सब औरत-मदर् घ टे भर के अ दर जान बचाकर हमारी सरहदके बाहर हो जाय।(2) उसका मकान लटू िलया जाये।(3) उसकी दौलत म से िजतना पया रामलाल उठा ले जा सके , ले जाये, बाकी सरकारीखजाने म दािखल िकया जाये।(4) रामलाल अगर नौकरी कबलू करे तो दी जाये।हुक्म पाते ही सबसे पहले रामलाल क्रू रिसहं के घर पहुंचा। महाराज के मशुं ी को जोहुक्म तामील करने गया था, रामलाल ने कहा, ‘‘ पहले मझु को पये दे दो िक उठा लेजाऊं और महाराज को आशीवारद् क ं । बस, ज दी दो, मझु गरीब को मत सताओ!’’मशंु ी ने कहा, ‘‘अजब आदमी है, इसको अपनी ही पड़ी है ! ठहर जा, ज दी क्य करताहै !’’ नकली रामलाल ने िच लाकर कहना शु िकया, ‘‘दहु ाई महाराज की, मेरे पयेमशुं ी नहीं देता।’’कहता हुआ महाराज की तरफ चला। मशंु ी ने कहा, ‘‘ले लो, जाते कहाँहो, भाई पहले इसको दे दो !’’रामलाल ने कहा, ‘‘ह त तेरे की, म िच लाता नहीं तो सभी पये डकार जाता !’’ उइसपर सब हंस पड़।े मशंु ी ने दो हजार पये आगे रखवा िदया और कहा, ‘‘ले, ले जा !’’रामलाल ने कहा, ‘‘वाह, कु छ याद है ! महाराज ने क्या हुक्म िदया है ? इतना तो मेरीजेब म आ जायेगा, म उठा के क्या ले जाऊं गा ?’’ मशंु ी झझंु ला उठा, नकली रामलालको खजाने के स दकू के पास ले जाकर खड़ा कर िदया और कहा, ‘‘उठा, देख िकतनाउठाता है ?’’ देखत-े देखते उसने दस हजार पये उठा िलये। िसर पर, बटु ए म, कमरम, जेब म, यहां तक िक महंु म भी कु छ पये भर िलये और रा ता िलया। सब हँसनेऔर कहने लगे, ‘‘आदमी नही,ं इसे राक्षस समझना चािहए !’’महाराज के हुक्म की तामील की गई, घर लटू िलया गया, औरत-मदर् सभी ने रोत-े पीटतेचुनार का रा ता पकड़ा।तेजिसहं पया िलये हुए वीरे द्रिसहं के पास पहुंचे औऱ बोले, ‘‘आज तो मनु ाफा कमालाये, मगर यार माल शैतान का है, इसम कु छ आप भी िमला दीिजए िजससे पाक होजाये ! वीरे द्रिसहं ने कहा, ‘‘यह तो बताओ िक लाये कहाँ से ?’’ उ ह ने सब हालकहा। वीरे द्रिसहं ने कहा, ‘‘जो कु छ मेरे पास यहाँ है मने सब िदया !’’ तजे िसहं नेकहा, ‘‘मगर शतर् यह है िक उससे कम न हो, क्य िक आपका तबा उससे कहीं यादाहै।’’ वीरे द्रिसहं ने कहा, ‘‘तो इस वक्त कहाँ से लाय ?’’तजे िसहं ने जवाब िदया,
‘‘तम सकु िलख दो !’’ कु मार हंस पड़े और उं गली से हीरे की अगं जी उतारकर दे दी।तेजिसहं ने खशु होकर ले ली औऱ कहा, ‘‘परमे वर आपकी मरु ाद पूरी करे। अब हमलोग को भी यहाँ से अपने घर चले चलना चािहए क्य िक अब म चुनार जाऊं गा, देखंूशैतान का ब चा वहाँ क्या ब दोब त कर रहा है।’’ दसवां बयानक्रू रिसहं की तबाही का हाल शहर भर म फै ल गया। महारानी ऱ नगभा्र (च द्रका ता कीमाँ) और च द्रका ता इन सभी ने भी सनु ा। कु मारी और चपला को बड़ी खशु ी हुई। जबमहाराज महल म गये तो हंसी-हंसी म महारानी ने क्रू रिसहं का हाल पछू ा। महाराज नेकहा, वह बड़ा बदमाश तथा झठू ा था, मु त म लड़की को बदनाम करता था।’’महारानी ने बात छे ड़कर कहा, ‘‘आपने क्या सोचकर वीरे द्र का आना-जाना ब द करिदया ! देिखए यह वही वीरे द्र है जो लड़कपन से, जब च द्रका ता पदै ा भी नहीं हुईथी, यहीं आता और कई-कई िदन तक रहा करता था। जब यह पैदा हुई तो दोनबराबर खेला करते और इसी से इन दोन की आपस की महु बत भी बढ़ गई। उसवक्त यह भी नहीं मालमू होता था िक आप और राजा सरु े द्रिसहं कोई दो ह या नौगढ़या िवजयगढ़ दो रजवाड़े ह। सरु े द्रिसहं भी बराबर आप ही के कहे मतु ािबक चला करतेथे। कई बार आप कह भी चुके थे िक च द्रका ता की शादी वीरे द्र के साथ कर देनीचािहए। ऐसे मेल-महु बत और आपस के बनाव को उस दु ट क्रू र ने िबगाड़ िदया औरदोन के िच त म मलै पैदा कर िदया !’’महाराज ने कहा, ‘‘म हैरान हूँ िक मेरी बुिद्ध को क्या हो गया था। मेरी समझ परप थर पड़ गये ! कौन-सी बात ऐसी हुई िजसके सबब से मेरे िदल से वीरे द्रिसहं कीमहु बत जाती रही। हाय, इस क्रू रिसहं ने तो गजब ही िकया। इसके िनकल जाने परअब मझु े मालमू होता है।’’ महारानी ने कहा, ‘‘देख, अब वह चनु ार म जाकर क्याकरता है ?’’ ज र महाराज िशवद त को भड़ाकायेगा और कोई नया बखेड़ा पैदा करेगा।महाराज ने कहा, ‘‘खैर, देखा जायेगा, परमे वर मािलक है, उस नालायक ने तो अपनीभरसक बुराई म कु छ भी कमी नहीं की।’’यह कह कर महाराज महल के बाहर चले गये। अब उनको यह िफक्र हुई िक िकसी कोदीवान बनाना चािहए नहीं तो काम न चलेगा। कई िदन तक सोच-िवचारकरहरदयालिसहं नामी नायब दीवान को मतं ्री की पदवी और िखलअत दी। यह शख्स बड़ाईमानदार, नेकबख्त, रहमिदल और साफ तबीयत का था, कभी िकसी का िदल उसनेनहीं दखु ाया।
ग्यारहवां बयानक्रू रिसहं को बस एक यही िफक्र लगी हुई थी िक िजस तरह बने वीरे द्रिसहं औरतजे िसहं को मार डालना ही नहीं चािहए, बि क नौगढ़ का रा य ही गारत कर देनाचािहए। नािजम को साथ िलए चुनार पहुँचा और िशवद त के दरबार म हािजर होकरनजर िदया। महाराज इसे बखबू ी जानते थे इसिलए नजर लेकर हाल पूछा। क्रू रिसहं नेकहा, ‘‘महाराज, जो कु छ हाल है म एका त म कहूंगा।’’दरबार बखा्र त हुआ, शाम को तखिलए (एका त) म महाराज ने क्रू र को बलु ाया औरहाल पूछा। उसने िजतनी िशकायत महाराज जयिसहं की करते बनी, की, और यह भीकहा िक-‘‘ल कर का इ तजाम आजकल बहुत खराब है, मसु लमान सब हमारे मेल मह, अगर आप चाह तो इस समय िवजयगढ़ को फतह कर लेना कोई मिु कल बात नहींहै। च द्रका ता महाराज जयिसहं की लड़की भी जो खबू सरू ती म अपना कोई सानीनहीं रखती, आप ही के हाथ लगेगी।’’ऐसी-ऐसी बहुत-सी बात कह उसने महाराज िशवद त को उसने पूरे तौर से भड़काया।आिखर महाराज ने कहा, ‘‘हमको लड़ने की अभी कोई ज रत नही,ं पहले हम अपनेऐयार से काम लगे िफर जसै ा होगा देखा जाएगा। मेरे यहाँ छः ऐयार ह िजनम सेचार ऐयार के साथ पि डत जग नाथ योितषी को तु हारे साथ कर देते ह। इन सभीको लेकर तुम जाओ, देखो तो ये लोग क्या करते ह। पीछे जब मौका होगा हम भील कर लेकर पहुंच जायगे।’’उन ऐयार के नाम थे- पि डत बद्रीनाथ, प नालाल, रामनारायण, भगवानद त औरघसीटािसहं । महाराज ने पि डत बद्रीनाथ, रामनारायण, और भगवान द त इन चार कोजो मनु ािसब था कहा और इन लोग को क्रू रिसहं के हवाले िकया।अभी ये लोग बठै े ही थे िक एक चोबदार ने आकर अजर् िकया, ‘‘महाराज योढ़ी परकई आदमी फिरयादी खड़े ह, कहते ह हम लोग क्रू रिसहं के िर तेदार ह, इनके चुनारजाने का हाल सनु कर महाराज जयिसहं ने घर-बार लटू िलया और हम लोग कोिनकाल िदया। उन लोग के िलए क्या हुक्म होता है ?’’यह सनु कर क्रू रिसहं के होश उड़ गये। महाराज िशवद त ने सभी को अ दर बलु ायाऔर हाल पछू ा। जो कु छ हुआ था उ ह ने बयान िकया ! इसके बाद क्रू रिसहं औरनािजम की तरफ देखकर कहा, ‘‘अहमद भी तो आपके पास आया है !’’ नािजम नेपूछा, अहमद ! वह कहाँ है ? यहाँ तो नहीं आया ! ’’ सभी ने कहा, ‘‘वाह, वहाँ तो घरपर गया था और यह कहकर चला गया िक म भी चनु ार जाता हूँ !’’नािजम ने कहा, ‘‘बस म समझ गया, वह ज र तेजिसहं होगा इसम कोई शक नहीं !
उसी ने महाराज को भी खबर पहुंचाई होगी, यह सब फसाद उसी का है !’’ यह सनुक्रू रिसहं रोने लगा। महाराज िशवद त ने कहा, ‘‘जो होना था सो हो गया, सोच मतकरो। देखो इसका बदला जयिसहं से म लेता हूँ। तुम इसी शहर म रहो, हमाम केसामने वाला मकान तु ह िदया जाता है, उसी म अपने कु टु ब को रक्खो, पये कीमदद सरकार से हो जायेगी। क्रू रिसहं ने महाराज के हुक्म के मतु ािबक उसी मकान मडरे ा जमाया।’’कई िदन बाद दरबार म हािजर होकर क्रू रिसहं ने महाराज से िवजयगढ़ जाने के िलएअजर् िकया। सब इ तजाम हो ही चकु ा था, महाराज ने मय चार ऐयार और पि डतजग नाथ योितषी के साथ क्रू रिसहं और नािजम को िवदा िकया। ऐयार लोग भीअपने-अपने सामान से लसै हो गये। कई तरह के कपड़े िलए। बटु आ ऐयारी का अपने-अपने क धे से लटका िलया, खजं र बगल म िलया। योितषीजी ने भी पोथी-पत्रा आिदऔर कु छ ऐयारी का सामान ले िलया क्य िक वह थोड़ी-बहुत ऐयारी भी जानते थे। अबयह शैतान का झु ड िवजयगढ़ की तरफ रवाना हुआ। इन लोग का इरादा नौगढ़ जानेका भी था। देिखए कहाँ जाते ह और क्या करते ह ? बारहवां बयानवीरे द्रिसहं और तजे िसहं नौगढ़ के िकले के बाहर िनकल बहुत से आदिमय को साथिलये च द्रप्रभा नदी के िकनारे बैठ शोभा देख रहे थे। एक तरफ से च द्रप्रभा दसू रीतरफ से करमनाशा नदी बहती हुई आई है और िकले के नीचे दोन का सगं म हो गयाहै। जहाँ कु मार और तेजिसहं बैठे ह, नदी बहुत चौड़ी है और उस पर साखू का बड़ाभारी जगं ल है िजसम हजार मोर तथा लगं रू अपनी-अपनी बोिलय और िकलकािरयसे जगं ल की शोभा बढ़ा रहे ह। कंु वर वीरे द्रिसहं उदास बैठे ह, च द्रका ता के िबरह ममोर की आवाज तीर-सी लगती है, लगं रू की िकलकारी वज्र-सी मालमू होती है, शामकी धीमी-धीमी ठंडी हवा लू का काम करती है। चुपचाप बैठे नदी की तरफ देख ऊं चीसांस ले रहे ह।इतने म एक साधु रामरज से रंगी हुई कफनी पहने, रामन दी ितलक लगाये हाथ मखंजरी िलए कु छ दरू नदी के िकनारे बैठा यह गाता हुआ िदखाई पड़ा-‘‘गये चनु ार क्रू र बहुरंगी लाये चारिचतारी*।सगं म उनके पि डत देवता, जो ह सगनु िबचारी।।इनसे रहना बहुत सभं ल के रमल चले अित कारी।क्या बठै े हो तुम बेिफकरे, काम करो कोई भारी।।
यह आवाज कान म पड़ते ही तजे िसहं ने गौर से उस तरफ देखा। वह साधु भी इ हींकी तरफ महंु करके गा रहा था। तजे िसहं को अपनी तरफ देखते दातं िनकालकरिदखला िदये और उठ के चलता बना।वीरे द्रिसहं अपनी च द्रका ता के यान म डू बे ह, उनको इन सब बात की कोई खबरनहीं। वे नहीं जानते िक कौन गा रहा है या िकधर से आवाज आ रही है। एकटक नदीकी तरफ देख रहे ह। तजे िसहं ने बाजू पकड़ कर िहलाया। कु मार च क पड़।े तजे िसहंने धीरे से पछू ा, ‘‘कु छ सनु ा ?’’ कु मार ने कहा, ‘‘क्या ? नहीं तो कहो !’’ ‘‘उिठए अपनीजगह पर चिलए, जो कु छ कहना है वहीं एका त म कहगे !’’ वीरे द्रिसहं स हल गयेऔर उठ खड़े हुए। दोन आदमी धीरे-धीरे िकले म आये और अपने कमरे म जाकरबठै े ।अब एका त है, िसवाय इन दोन के इस समय इस कमरे म कोई नहीं है। वीरे द्रिसहंने तेजिसहं से पूछा, ‘‘कहो क्या कहने को थे?’’ तजे िसहं ने कहा, ‘‘सिु नए, यह तोआपको मालूम हो ही चकु ा है िक क्रू रिसहं महाराज िशवद त से मदद लेने चुनार गयाहै, अब उसके वहाँ जाने का क्या नतीजा िनकला वह भी सिु नए ! वहाँ से िशवद त नेचार ऐयार और एक योितषी को उनके साथ कर िदया है। वह योितषी बहुत अ छारमल फकता है, नािजम पहले से उसके साथ है। अब इन लोग की म डली भारी होगई, ये लोग कम फसाद नहीं करगे, इसीिलए म अज्र करता हूँ िक आप स हले रिहये।म अब काम की िफक्र म जाता हूँ, मझु े यकीन है िक उन ऐयार म से कोई-न-कोईज र इस तरफ भी आवेगा और आपको फं साने की कोिशश करेगा। आप होिशयाररिहयेगा और िकसी के साथ कहीं न जाइएगा, न िकसी का िदया कु छ खाइएगा, बि कइत्र, फू ल वगैरह भी कु छ कोई दे तो न सिूं घएगा और इस बात का भी खयाल रिखएगािक मेरी सरू त बना के भी वे लोग आव तो ता जबु नही।ं इस तरह आप मझु कोपहचान लीिजएगा, देिखए मेरी आखं के अ दर, नीचे की तरफ यह एक ितल है िजसकोकोई नहीं जानता। आज से लेकर िदल म चाहे िजतनी बार जब भी म आपके पासआया क ँ गा इस ितल को िछपे तौर से िदखला कर अपना पिरचय आपको िदयाक ँ गा। अगर यह काम म न क ं तो समझ लीिजएगा िक धोखा है।’’और भी बहुत-सी बात तेजिसहं ने समझाईं िजनको खबू गौर के साथ कु मार ने सनु ाऔर तब पछू ा, ‘‘तमु को कै से मालमू हुआ िक चनु ार से इतनी मदद इसको िमली है ?’’तेजिसहं ने कहा, ‘‘िकसी तरह मझु को मालमू हो गया, उसका हाल भी कभी आप परजािहर हो जायेगा, अब म खसत होता हूँ, राजा साहब या मेरे िपता मझु े पूछ तो जोमनु ािसब हो सो कह दीिजएगा।पहर रात रहे तेजिसहं ऐयारी के सामान से लसै होकर वहाँ से रवाना हो गये।
चपला बालादवी के िलए मदार्ने भेष म शहर से बाहर िनकली। आधी रात बीत गईथी। साफ िछटकी हुई चादँ नी देख एकाएक जी म आया िक नौगढ़ चलंू और तेजिसहंसे मलु ाकात क ं । इसी खयाल से कदम बढ़ाये नौगढ़ की तरफ चली। उधर तेजिसहंअपनी असली सरू त म ऐयारी के सामान से सजे हुए िवजयगढ़ की तरफ चले आ रहेथे। इि तफाक से दोन की रा ते ही म मलु ाकात हो गयी। चपला ने पिहचान िलयाऔर नजदीक जाकर, ‘‘असली बोली म पछू ा, ‘‘किहए आप कहाँ जा रहे ह ?’’तेजिसहं ने बोली से चपला को पहचाना और कहा, ‘‘वाह ! वाह !! क्या मौके पर िमलगईं ! नहीं तो मझु े बड़ा तर दु तमु से िमलने के िलए करना पड़ता क्य िक-बहुत-सीज री बात कहनी थीं, आओ इस जगह बैठो।’’एक साफ प थर की चट्टान पर दोन बठै गये। चपला ने कहा, ‘‘कहो वह कौन-सी बातह ?’’ तजे िसहं ने कहा, ‘‘सनु ो, यह तो तुम जानती ही हो िक क्रू र चुनार गया है। अबवहाँ का हाल सनु ो, चार ऐयार और एक पि डत जग नाथ योितषी को महाराजिशवद त ने मदद के िलए उसके सगं कर िदया है और वे लोग यहाँ पहुँच गये ह।उनकी म डली अब भारी हो गई और इधर हम तुम दो ही ह, इसिलए अब हम दोनको बड़ी होिशयारी करनी पड़गे ी। वे ऐयार लोग महाराज जयिसहं को भी पकड़ ले जायतो ता जबु नही,ं च द्रका ता के वा ते तो आये ही ह, इ हीं सब बात से तु ह होिशयारकरने म चला था।’’ चपला ने पूछा, ‘‘िफर अब क्या करना चािहए ?’’ तेजिसहं ने कहा,‘‘एक काम करो, म हरदयालिसहं नये दीवान को पकड़ता हूँ और उसकी सरू त बनाकरदीवान का काम क ं गा। ऐसा करने से फौज और सब नौकर हमारे हुक्म म रहगे औरम बहुत कु छ कर सकँू गा। तमु भी महल म होिशयारी के साथ रहा करना और जहाँतक हो सके एक बार मझु से िमला करना। म दीवान तो बना रहूंगा ही, िमलना कु छमिु कल न होगा, बराबर असली सरू त म मेरे घर अथात्र ् हरदयालिसहं के यहाँ िमलाकरना, म उसके घर म भी उसी की तरह रहा क ं गा।’’इसके अलावा और भी बहुत-सी बात तजे िसहं ने चपला को समझाईं ! थोड़ी देर तकचहल रही इसके बाद चपला अपने महल की तरफ खसत हुई। तजे िसहं ने बाकी रातउसी जगं ल म काटी और सबु ह होते ही अपनी सरू त एक ग धी की बना कई शीशी इत्रको कमर और दो-एक हाथ म ले िवजयगढ़ की गिलय म घमू ने लगे। िदन-भर इधर-उधर िफरते रहे, शाम के वक्त मौका देख हरदयालिसहं के मकान पर पहुँचे। देखादीवान साहब लेटे हुए ह और दो-चार दो त सामने बठै े ग प उड़ा रहे ह। बाहर-भीतरखबू स नाटा है।तजे िसहं इत्र की शीिशयाँ िलए सामने पहुंचे और सलाम कर बठै गये, तब कहा,
‘‘लखनऊ का रहने वाला ग धी हूँ, आपका नाम सनु कर आप ही के लायक अ छे -अ छेइत्र लाया हूँ !’’ यह कह शीशी खोल फाहा बनाने लगे। हरदयालिसहं बहुत रहमिदलआदमी थे, इत्र सघंू ने लगे और फाहा सघंू -सघूं अपने दो त को भी देने लगे। थोड़ी देरम हरदयालिसहं और उसके सब दो त बेहोश होकर जमीन पर लेट गये। तजे िसहं नेसभी को उसी तरह छोड़ हरदयालिसहं की गठरी बाधँ पीठ पर लादी और महुं परकपड़ा ओढ़ नौगढ़ का रा ता िलया, राह म अगर कोई िमला भी तो धोबी समझ कर नबोला।शहर के बाहर िनकल गये औऱ बहुत तजे ी के साथ चल कर उस खोह म पहुंचे जहाँअहमद को कै द िकया था। िकवाड़ खोलकर अ दर गये और दीवान साहब को उसीतरह बेहोश वहाँ रख अगं जी मोहर की उनकी उं गली से िनकाल ली, कपड़े भी उतारिलये औऱ बाहर चले आये। बेड़ी डालने और होश म लाने की कोई ज रत न समझी।तरु त लौट िवजयगढ़ आ हरदयालिसहं की सरू त बना कर उसके घर पहुंचे।इधर दीवान साहब के भोजन करने का वक्त आ पहुंचा। ल डी बलु ाने आई, देखा िकदीवान साहब तो ह नही,ं उनके चार-पाचँ दो त गािफल पड़े ह। उसे बड़ा ता जबु हुआऔर एकाएक िच ला उठी। उसकी िच लाहट सनु नौकर और यादे आ पहुंचे तथा यहतमाशा देख हैरान हो गये, दीवान साहब को इधर-उधर ढूंढ़ा मगर कहीं पता न लगा। तेरहवाँ बयानतीन पहर रात गजु र गई, उनके सब दो त तो बेहोश पड़े थे वह भी होश म आये मगरअपनी हालत देख-देख हैरान थे। लोग ने पछू ा, ‘‘आप लोग कै से बेहोश हो गये औरदीवान साहब कहाँ ह ?’’ उ ह ने कहा, ‘‘एक गधं ी इत्र बेचने आया था िजसका इत्रसघूं त-े सघंू ते हम लोग बेहोश हो गये, अपनी खबर न रही। क्या जाने दीवान साहबकहाँ ह ? इसी से कहते ह िक अमीर की दो ती म हमेशा जान की जोिखम रहती है।अब कान उमेठत ह िक कभी अमीर का सगं न करगे !’’ऐसी-ऐसी ता जबु भरी बात हो रही थीं और सवेरा हुआ ही चाहता था िक सामने सेदीवान हरदयालिसहं आते िदखाई पड़े जो दरअसल ी तेजिसहं बहादरु थे। दीवानसाहब को आते देख सभी ने घेर िलया और पछू ने लगे िक ‘आप कहाँ गये थे ? दो तने पूछा, ‘‘वह नालायक गधं ी कहाँ गया और हम लोग बेहोश कै से हो गये ?’’ दीवानसाहब ने कहा, ‘‘वह चोर था, मने पहचान िलया। अ छी तरह से उसका इत्र नहीं सघूं ा,अगर सघंू ता तो तु हारी तरह म भी बेहोश हो जाता। मने उसको पहचान कर पकड़नेका इरादा िकया तो वह भागा, म भी गु से म उसके पीछे चला गया लेिकन वहिनकल ही गया, अफसोस....!’’
इतने म ल डी ने अज्र िकया, ‘‘कु छ भोजन कर लीिजए, सब-के -सब घर म भखू े बैठे ह,इस वक्त तक सभी को रोते ही गजु रा !’’ दीवान साहब ने कहा, ‘‘अब तो सवेरा होगया, भोजन क्या क ँ ? म थक भी गया हूँ, सोने को जी चाहता है।’’ यह कह करपलगं पर जा लेटे, उनके दो त भी अपने घर चले गये।सवेरे मामलू के मतु ािबक वक्त पर दरबारी पोशाक पहन गु त रीित से ऐयार काबटु आ कमर म बाधं दरबार की तरफ चले। दीवान साहब को देख रा ते म बराबरदोपट्टी लोग म हाथ उठने लगे, वह भी जरा-जरा िसर िहला सभी के सलाम काजवाब देते हुए कचहरी म पहुंचे। महाराज अब नहीं आये थे, तजे िसहं हरदयालिसहं कीखसलत से वािकफ थे। उ हीं के मामलू के मतु ािबक वह भी दरबार म दीवान कीजगह बठै काम करने लगे, थोड़ी देर म महाराज भी आ गये।दरबार म मौका पाकर हरदयालिसहं धीरे-धीरे अजर् करने लगे, ‘‘महाराजािधराज, ताबेदारको पक्की खबर िमली है िक चुनार के राजा िशवद तिसहं ने क्रू रिसहं की मदद की हैऔर पांच ऐयार साथ करके सरकार से बेअदबी करने के िलए इधर रवाना िकया है,बि क यह भी कहा है िक पीछे हम भी ल कर लेकर आयगे। इस वक्त बड़े तर ुद कासामना है क्य िक सरकार म आजकल कोई ऐयार नही,ं नािजम और अहमद थे सो वेभी क्रू र के साथ ह, बि क सरकार के यहाँ वाले मसु लमान भी उसी तरफ िमले हुए ह।आजकल वे ऐयार ज र सरू त बदलकर शहर म घूमते और बदमाशी की िफक्र करतेह गे।’’महाराज जयिसहं ने कहा, ‘‘ठीक है, मसु लमान का रंग हम भी बेढब देखते ह। िफरतमु ने क्या ब दो ब त िकया ?’’ धीरे-धीरे महाराज और दीवान की बात हो रही थीं िकइतने म दीवान साहब की िनगाह एक चोबदार पर पड़ी जो दरबार म खड़ा िछपीिनगाह से चार तरफ देख रहा था। वे गौर से उसकी तरफ देखने लगे। दीवान साहबको गौर से देखते हुए-पा वह चोबदार चौक ना हो गया और कु छ स हल गया। बातछोड़ कड़क के दीवान साहब ने कहा, ‘‘पकड़ो उस चोबदार को !’’ हुक्म पाते ही लोगउसकी तरफ बढ़े, लेिकन वह िसर पर परै रखकर ऐसा भागा िक िकसी के हाथ नलगा। तेजिसहं चाहते तो उस ऐयार को जो चोबदार बनके आया था पकड़ लेत,े मगरइनको तो सब काम बि क उठना-बैठना भी उसी तरह से करना था जसै ा हरदयालिसहंकरते थे, इसिलए वह अपनी जगह से न उठे । वह ऐयार भाग गया जो चोबदार बनाहुआ था, जो लोग पकड़ने गये थे वापस आ गये।दीवान साहब ने कहा, ‘‘महाराज देिखए, जो मने अजर् िकया था औऱ िजस बात कामझु को डर था वह ठीक िनकली।’ महाराज को यह तमाशा देखकर खौफ हुआ , ज दीदरबार बखा्र त कर दीवान को साथ ले तखिलए म चले गये। जब बैठे तो
हरदयालिसहं से पछू ा ‘‘क्य जी अब क्या करना चािहए ? उस दु ट क्रू र ने तो एक बड़ेभाई को हमारा दु मन बनाकर उभारा है। महाराज िशवद त की बराबरी हम िकसीतरह भी नहीं कर सकते।’’दीवान साहब ने कहा, ‘‘महाराज, म िफर अजर् करता हूँ िक हमारे सरकार म इस समयकोई ऐयार नही,ं नािजम और अहमद थे सो क्रू र ही की तरफ जा िमले, ऐयार काजवाब िबना ऐयार के कोई नहीं दे सकता। वे लोग बड़े चालाक और फसादी होते ह,हजार-पाँच सौ की जान ले लेना उन लोग के आगे कोई बात नहीं है, इसिलए ज रकोई ईमानदार ऐयार मकु र्रर करना चािहए, पर यह भी एकाएक नहीं हो सकता। सनु ाहै राजा सरु े द्रिसहं के दीवान का लड़का तेजिसहं बड़ा भारी ऐयार िनकला है, म उ मीदकरता हूँ िक अगर महाराज चाहगे और तेजिसहं को मदद के िलए मांगगे तो राजासरु े द्रिसहं को देने म कोई उज्र न होगा क्य िक वे महाराज को िदल से चाहते ह। क्याहुआ अगर महाराज ने वीरे द्रिसहं का आना-जाना ब द कर िदया, अब भी राजासरु े द्रिसहं का िदल महाराज की तरफ से वैसा ही है जसै ा पहले था।’’हरदयालिसहं की बात सुन के थोड़ी देर महाराज गौर करते रहे िफर बोले, ‘‘तु हाराकहना ठीक है, सरु े द्रिसहं और उनका लड़का वीरे द्रिसहं दोन बड़े लायक है। इसमकु छ शक नहीं िक वीरे द्रिसहं वीर है और राजनीित भी अ छी तरह जानता है, हजारसेना लेकर दस हजार से लड़ने वाला है और तेजिसहं की चालाकी म भी कोई फकर्नही,ं जसै ा तुम कहते हो वसै ा ही है। मगर मझु से उन लोग के साथ बड़ी हीबेमरु वती हो गई है िजसके िलए म बहुत शिमर् दा हूँ, मझु े उसने मदद मागँ ते शम्रमालमू होती है, इसके अलावा क्या जाने उनको मेरी तरफ से रंज हो गया हो, हा,ँ तमुजाओ और उनसे िमलो। अगर मेरी तरफ से कु छ मलाल उनके िदल म हो तो उसेिमटा दो और तजे िसहं को लाओ तो काम चले।’’ हरदयालिसहं ने कहा, ‘‘बहुत अ छामहाराज, म खदु ही जाऊं गा और इस काम को क ं गा। महाराज ने अपनी मोहरलगाकर एक मखु ्तसर िचट्ठी अपने हाथ से िलखी और अगं जी की मोहर लगाकर उनकेहवाले िकया।’’हरदयालिसहं महाराज से िवदा हो अपने घर आये और अ दर जनाने म न जाकरबाहर ही रहे, खाने को वहां ही मगं वाया। खा-पीकर बठै े और सोचने लगे िक चपला सेिमल के सब हाल कह ल तो जाय। थोड़ा िदन बाकी था जब चपला आई। एका त मले जाकर हरदयालिसहं ने सब हाल कहा और वह िचट्ठी भी िदखाई जो महाराज नेिलख दी थी। चपला बहुत ही खुश हुई और बोली, ‘‘हरदयालिसहं तु हारे मेल म आजायेगा, वह बहुत ही लायक है। अब तमु जाओ, इस काम को ज दी करो।’’ चपलातेजिसहं की चालाकी की तारीफ करने लगी, अब वीरे द्रिसहं से मलु ाकात होगी यहउ मीद िदल म हुई।
नकली हरदयालिसहं नौगढ़ की तरफ रवाना हुए, रा ते म अपनी सरू त असली बना ली।* िचतारी- ऐयार। चौदहवाँ बयाननौगढ़ और िवजयगढ़ का राज पहाड़ी है, जगं ल भी बहुत भारी और घना है, निदयांच द्रप्रभा और कमनर् ाशा घूमती हुईं इन पहाड़ पर बहती ह। जा-बजा खोह और दरपहाड़ म बड़े खूबसरू त कु दरती बने हुए ह। पेड़ म साख,ू तद, िवजयसार, सनई, कोरया,गो, खाजा, पेयार, िजगना, आसन आिद के पेड़ ह। इसके अलावा पािरजात के पेड़ भी ह।मील-भर इधर-उधर जाइए तो घने जगं ल म फं स जाइएगा ! कहीं रा ता न मालमूहोगा िक कहाँ से आये और िकधर जाएंगे। बरसात के मौसम म तो अजब ही कै िफयतरहती है, कोस भर जाइए, रा ते म दस नाले िमलगे। जंगली जानवर म बारहिसघं ा,चीता, भाल,ू तदआु , िचकारा, लगं रू , ब दर वगरै ह के अलावा कभी-कभी शरे भी िदखाई देतेह मगर बरसात म नही,ं क्य िक नदी नाल म पानी यादा हो जाने से उनके रहने कीजगह खराब हो जाती है, और तब वे ऊं ची पहािड़य पर चले जाते ह। इन पहाड़ परिहरन नहीं होते मगर पहाड़ के नीचे बहुत से दीख पड़ते ह। पिर द म तीतर, बटेर,आिद की अपेक्षा मोर यादा होते ह। गरज िक ये सहु ावने पहाड़ अभी तक िलखेमतु ािबक मौजदू ह और हर तरह से देखने के कािबल ह।उन ऐयार ने जो चुनार से क्रू र और नािजम के सगं आये थे, शहर म न आकर इसीिदलच प जगं ल म मय क्रू र के अपना डरे ा जमाया, और आपस म यह राय हो गई िकसब अलग-अलग जाकर ऐयारी कर। बद्रीनाथ ने जो इन ऐयार म सबसे यादाचालाक और होिशयार था यह राय िनकाली िक एक दफे सब कोई अलग-अलग भेषबदलकर शहर म घुस दरबार और महल के सब आदिमय तथा ल िडय बि क रानीतक को देख के पहचान आव तथा चाल-चलन तजबीज कर नाम भी याद कर लिजससे वक्त पर ऐयारी करने के िलए सरू त बदलने और बातचीत करने म फकर् नपड़।े इस राय को सभी ने पस द िकया नािजम ने सभी का नाम बताया और जहाँतक हो सका पहचनवा भी िदया ! वे ऐयार लोग तरह-तरह के भेष बदलकर महल मभी घसु आये और सब कु छ देख-भाल आये, मगर ऐयारी का मौका चपला की होिशयारीकी वजह से िकसी को न िमला और उनको ऐयारी करना मजं रू भी न था जब तक िकहर तरह से देख-भाल न लेत।ेजब वे लोग हर तरह से होिशयार और वािकफ हो गये तब ऐयारी करना शु िकया।भगवानद त चपला की सरू त बना नौगढ़ म वीरे द्रिसहं को फं साने के िलए चला। वहां
पहुंचकर िजस कमरे म वीरे द्रिसहं थे उसके दरवाजे पर पहुंच पहरे वाले से कहा,‘‘जाकर कु मार से कहो िक िवजय गढ़ से चपला आई है।’’ उस यादे ने जाकर खबरदी। कु छ रात गजु र गई थी, कंु वर वीरे द्रिसहं च द्रका ता की याद म बठै े तबीयत सेयिु क्तयां िनकाल रहे थे, बीच-बीच म ऊं ची सांस भी लेते जाते थे, उसी वक्त चोबदार नेआकर अजर् िकया-‘‘पृ वीनाथ, िवजयगढ़ से चपला आई ह और योढ़ी पर खड़ी ह।क्या हुक्म होता है ? कु मार चपला का नाम सनु ते ही च क उठे और खुश होकर बोले,‘‘उसे ज दी अ दर लाओ।’’ हुक्म के बमिू जब चपला हािजर हुई, कु मार चपला को देखउठ खड़े हुए और हाथ पकड़ अपने पास बठै ा बातचीत करने लगे, च द्रका ता का हालपूछा। चपला ने कहा, ‘‘अ छी ह, िसवाय आपकी याद के और िकसी तरह की तकलीफनहीं है, हमेशा कह करती ह िक बड़े बेमरु ौवत ह, कभी खबर भी नहीं लेते िक जीती हैया मर गई। आज घबड़ाकर मझु को भेजा है और यह दो नासपाितयां अपने हाथ सेछील-काटकर आपके वा ते भेजी ह तथा अपने िसर की कसम दी है िक इ ह ज रखाइएगा।’’ वीरे द्रिसहं चपला की बात सनु बहुत खुश हुए। च द्रका ता का इ क परू ेदज पर था, धोखे म आ गये, भले-बुरे की कु छ तमीज न रही, च द्रका ता की कसमकै से टालते, झट नासपाती का टु कड़ा उठा िलया और महंु से लगाया ही था िक सामनेसे आते हुए तजे िसहं िदखाई पड़।े तजे िसहं ने देखा िक वीरे द्रिसहं बठै े ह, देखते हीआग हो गये। ललकार कर बोले, ‘‘खबरदार, महुं म मत डालना !’’ इतना सनु ते हीवीरे द्रिसहं क गये और बोले, ‘‘क्य क्या है ?’’ तजे िसहं ने कहा, ‘‘म जाती बार हजारबार समझा गया, अपना िसर मार गया, मगर आपको खयाल न हुआ ! कभी आगे भीचपला यहाँ आई थी ! आपने क्या खाक पहचाना िक यह चपला है या कोई ऐयार !बस सामने र डी को देख मीठी-मीठी बात सनु मजे म आ गये !’’तेजिसहं की घुड़की सनु वीरे द्रिसहं तो शमार् गये और चपला के महंु की तरफ देखनेलगे !मगर नकली चपला से न रहा गया, फं स तो चकु ी ही थी, झट खंजर िनकाल करतजे िसहं की तरफ दौड़ी। वीरे द्रिसहं भी जान गये िक यह ऐयार है, उसको खजं र लेतजे िसहं पर दौड़ते देख लपक कर हाथ से उसकी कलाई पकड़ी िजसम खंजर था, दसू राहाथ कमर म डाल उठा िलया और िसर से ऊं चा करना चाहते थे िक फके िजससे ह डीपसली सब चूर हो जाये िक तेजिसहं ने आवाज दी, ‘‘हाँ, हा,ँ पटकना मत, मर जायेगा,ऐयार लोग का काम ही यही है, छोड़ दो, मेरे हवाले करो।’’ यह सनु कु मार ने धीरे सेजमीन पर पटक कर मु क बांध तजे िसहं के हवाले िकया। तेजिसहं ने जबदर् ती उसकेनाक म दवा ठूंस बेहोश िकया और गठरी म बांध िकनारे रख बात करने लगे।तजे िसहं ने कु मार को समझाया और कहा, ‘‘देिखए, जो हो गया सो हो गया, मगर अबधोखा मत खाइएगा।’’ कु मार बहुत शिमर् दा थे, इसका कु छ जवाब न दे िवजयगढ़ काहाल पूछने लगे। तजे िसहं ने सब खलु ासा यौरा कहा और िचट्ठी भी िदखाई जो
महाराज जयिसहं ने राजा सरु े द्रिसहं के नाम िलखी थी। कु मार यह सब सनु औरिचट्ठी देख उछल पड़,े मारे खुशी के तजे िसहं को गले से लगा िलया और बोले, ‘‘अबजो कु छ करना हो ज दी कर डालो।’’ तजे िसहं ने कहा, ‘‘हाँ, देखो सब कु छ हो जाता है,घबराओ मत।’’ इसी तरह दोन को बात करते तमाम रात गुजर गई।सवेरा हुआ चाहता था जब तेजिसहं उस ऐयार की गठरी पीठ पर लादे उसी तहखानेको रवाना हुए िजसम अहमद को कै द कर आये थे। तहखाने का दरवाजा खोल अ दरगये, टहलत-े टहलते च मे के पास जा िनकले। देखा िक अहमद नहर के िकनारे सोया हैऔर हरदयालिसहं एक पेड़ के नीचे प थर की चट्टान पर िसर झकु ाये बठै े ह। तेजिसहंको देखकर हरदयालिसहं उठ खड़े हुए और बोले, ‘‘क्य तेजिसहं मने क्या कसरू िकयाजो मझु को कै द कर रक्खा है ?’’ तजे िसहं ने हंसकर जवाब िदया, ‘‘अगर कोई कसरूिकया होता तो पैर म बेड़ी पड़ी होती, जसै ा िक अहमद को आपने देखा होगा। आपनेकोई कसरू नहीं िकया, िसफ्र एक िदन आपको रोक रखने से मेरा बहुत काम िनकलताथा इसिलए मने ऐसी बेअदबी की, माफ कीिजए। अब आपको अिख्तयार है िक चाहेजहाँ जाय, म ताबेदार हूँ। िवजयगढ़ म नेक ईमानदार इ साफ पस द िसवाय आपकेकोई नहीं है, इसी सबब से म भी मदद का उ मीदवार हूँ।’’हरदयालिसहं ने कहा, ‘‘सनु ो तजे िसहं , तमु खदु जानते हो िक म हमेशा से तु हारा औरकंु वर वीरे द्रिसहं का दो त हूँ, मझु को तमु लोग की िखदमत करने म कोई उज्र नही।ंम तो आप हैरान था िक दो त आदमी को तेजिसहं ने क्य कै द िकया ? पहले तोमझु को यह भी नहीं मालमू हुआ िक म यहाँ कै से आया, मर के आया हूँ या जीते जी,पर अहमद को देखा तो समझ गया िक यह तु हारी करामात है, भला यह तो कहोमझु को यहाँ रखकर तुमने क्या कार्रवाई की और अब म तु हारा क्या काम कर सकताहूँ?’’तेजिसहं : म आपकी सरू त बनाकर आपके जनाने म नहीं गया इससे आप खाितर जमारिखए।हरदयालिसहं ः तुमको तो म अपने लड़के से यादा मानता हूँ, अगर जनाने म जाते भीतो क्या था ! खरै , हाल कहो।तेजिसहं ने महाराज जयिसहं की िचट्ठी िदखाई, हरदयाल के कपड़े जो पहने हुए थेउनको दे िदये और अब खुलासा हाल कह कर बोले, ‘‘अब आप अपने कपड़े सहेजलीिजए और यह िचट्ठी लेकर दरबार म जाइए, राजा से मझु को मांग लीिजए िजससे मआपके साथ चल,ंू नहीं तो वे ऐयार जो चुनार से आये ह िवजयगढ़ को गारत करडालगे और महाराज िशवद त अपना क जा िवजयगढ़ पर कर लगे। म आपके सगंचलकर उन ऐयार को िगर तार क ँ गा। आप दो बात का सबसे यादा खयाल
रिखयेगा, एक यह िक जहां तक बने मसु लमान को बाहर कीिजए और िह दओु ं कोरिखए, दसू रे यह िक कंु वर वीरे द्रिसहं का हमेशा यान रिखये और महाराज से बारबरउनकी तारीफ कीिजए िजससे महाराज मदद के वा ते उनको भी बलु ाव !’’हरदयालिसहं ने कसम खाकर कहा, ‘‘म हमेशा तमु लोग का खरै ख्वाह हूँ, जो कु छतमु ने कहा है उससे यादा कर िदखाऊं गा।’’तेजिसहं ने ऐयारी की गठरी खोली और एक खुलासा बेड़ी उसके परै म डाल तथाऐयारी का बटु आ और खजं र उसके कमर से िनकालने के बाद उसे होश म लाये।उसके चेहरे को साफ िकया तो मालमू हुआ िक वह भगवानद त है।ऐयार होने के कारण चुनार के सब ऐयार को तजे िसहं पहचानते थे और वे सब लोगभी उनको बखबू ी जानते थे। तजे िसहं ने भगवानद त को नहर के िकनारे छोड़ा औरहरदयालिसहं को साथ ले खोह के बाहर चले। दरवाजे के पास आये, हरदयाल से कहािक, ‘‘मेहरबानी करके मझु े इजाजत द िक म थोड़ी देर के िलए आपको िफर बेहोशक ँ , तहखाने के बाहर होश म ले आऊं गा।’’ हरदयालिसहं ने कहा, ‘‘इसम मझु को कु छउज्र नहीं है, म यह नहीं चाहता िक इस तहखाने म आने का रा ता देख ल,ूं यह तु हीलोग के काम ह, म देखकर क्या क ं गा ?’’तजे िसहं हरदयालिसहं को बेहोश करके बेहोश करके बाहर लाये और होश म लाकरबोले, ‘‘अब आप कपड़े पहन लीिजए और मेरे साथ चिलए।’’ उ ह ने वैसा ही िकया।शहर म आकर तेजिसहं के कहे मतु ािबक हरदयालिसहं अलग होकर अके ले राजासरु े द्रिसहं के दरबार म गये। राजा ने उनकी बड़ी खाितर की और हाल पछू ा। उ ह नेबहुत कु छ कहने के बाद महाराज जयिसहं की िचट्ठी दी िजसको राजा ने इ जत केसाथ लेकर अपने वजीर जीतिसहं को पढ़ने के िलए िदया, जीतिसहं ने जोर से खतपढ़ा। राजा सरु े द्रिसहं िचट्ठी पढ़कर बहुत खुश हुए और हरदयालिसहं की तरफ देखकरबोले, ‘‘ मेरा रा य महाराज जयिसहं का है, िजसे चाह बुला ल मझु े कु छ उज्र नही,ंतजे िसहं आपके साथ जायेगा।’’ यह कह अपने वजीर जीतिसहं को हरदयालिसहं कीमेहमानी का हुक्म िदया और दरबार बखा्र त िकया।दीवान हरदयालिसहं की मेहमानी तीन िदन तक बहुत अ छी तरह से की गई िजससेवे बहुत खशु हुए। चौथे िदन दीवान साहब ने राजा से खसत मागं ी, राजा बहुत कु छदौलत जवाहरात से उनकी िवदाई की और तेजिसहं को बुला समझा-बझु ाकर दीवानसाहब के सगं िकया।
बड़े साज-सामान के साथ ये दोन िवजयगढ़ पहुँचे और शाम को दरबार म महाराज केपास हािजर हुए। हरदयालिसहं ने महाराज की िचट्ठी का जवाब िदया और सब हाल कहसरु े द्रिसहं की बड़ी तारीफ की िजससे महाराज बहुत खशु हुए और तेजिसहं को उसीवक्त िखलअत देकर हरदयालिसहं को हुक्म िदया िक, ‘‘इनके रहने के िलए मकान काब दोब त कर दो और इनकी खाितरदारी और मेहमानी का बोझ अपने ऊपर समझो।’’दरबार उठने पर दीवान साहब तेजिसहं को साथ ले िवदा हुए और एक बहुत अ छेकमरे म डरे ा िदलवाया। नौकर और पहले वाले तथा याद का भी बहुत अ छाइ तजाम कर िदया जो सब िह दू थे। दसू रे िदन तेजिसहं महाराज के दरबार महािजर हुए, दीवान हरदयालिसहं के बगल म एक कु सीर् उनके वा ते मकु र्रर की गई। प द्रहवाँ बयानहम पहले यह िलख चुके ह िक महाराज िशवद त के यहाँ िजतने ऐयार ह सभी कोतजे िसहं पहचानते ह। अब तेजिसहं को यह जानने की िफक्र हुई िक उनम से कौन-कौन चार आये ह, इसिलए दसू रे िदन शाम के वक्त उ ह ने अपनी सरू त भगवानद तकी बनाई िजसको तहखाने म ब द कर आये थे और शहर से िनकल जगं ल-म इधर-उधर घूमने लगे, पर कहीं कु छ पता न लगा। बरसात का िदन आ चकु ा था, रात अधं ेरीऔर बदली छाई थी, आिखर तेजिसहं ने एक टीले पर खड़े होकर जफील बजाई।थोड़ी देर म तीन ऐयार मय पि डत जग नाथ योितषी के उसी जगह पहुंचे औरभगवानद त को खड़े देखकर बोले, ‘‘क्य जी, तुम नौगढ़ गये थे ना ? क्या िकया, खालीक्य चले आये ?’’तेजिसहं ने सब को पहचानने के बाद जवाब िदया, ‘‘वहाँ तजे िसहं की बदौलत कोईकार्रवाई न चली, तमु लोग म से कोई एक आदमी मेरे साथ चले तो काम बने !’’प नाः अ छा कल हम तु हारे साथ चलगे, आज चलो महल म कोई कारर्वाई कर।तेजिसहं : अ छा चलो, मगर मझु को इस वक्त भखू बड़े जोर की लगी है, कु छ खा लंूतो काम म जी लगे। तुम लोग के पास कु छ हो तो लाओ।जग नाथः पास म तो जो कु छ है बेहोशी िमला है, बाजार से जाकर कु छ लाओ तो सबकोई खा-पीकर छु ट्टी कर।भगवानः अ छा एक आदमी मेरे साथ चलो।प नालाल साथ हुए, दोन शहर की तरफ चले। रा ते म प नालाल ने कहा, ‘‘हम लोगको अपनी सरू त बदल लेना चािहए क्य िक तेजिसहं कल से इसी शहर म आया है और
हम सब को पहचानता भी है, शायद घमू ता-िफरता कहीं िमल जाये।’’भगवानद त ने यह सोचकर िक सरू त बदलगे तो रोगन लगाते वक्त शायद यहपहचान ले, जवाब िदया, ‘‘कोई ज र नही,ं कौन रात को िमलता है ?’’ भगवानद त केइनकार करने से प नालाल को शक हो गया और गौर से इनकी सरू त देखने लगा,मगर रात अधं ेरी थी पहचान न सका, आिखर को जोर से जफील बजाई। शहर के पासआ चकु े थे, ऐयार लोग दरू थे जफील सनु न सके ; तेजिसहं भी समझ गये िक इसकोशक हो गया, अब देर करने की कु छ ज रत नही,ं झट उसके गले म हाथ डाल िदया,प नालाल ने भी खजं र िनकाल िलया, दोन म खबू जोर की िभड़ त हो गई। आिखरको तेजिसहं ने प ना को उठा के दे मारा और मु क कस बेहोश कर गठरी बांध लीतथा पीठ पर लाद शहर की तरफ रवाना हुए। असली सरू त बनाये डरे े पर पहुंचे। एककोठरी म प नालाल को ब द कर िदया और पहरे वाल को सख्त ताकीद कर आपउसी कोठरी के दरवाजे पर पलगं िबछवा सो रहे, सवेरे प नालाल को साथ ले दरबारकी तरफ चले।इधर रामनारायण, बद्रीनाथ और योितषीजी राह देख रहे थे िक अब दोन आदमीखाने का सामाना लाते ह गे, मगर कु छ नही,ं यहाँ तो मामला ही दसू रा था। उन लोगको शक हो गया िक कहीं दोन िगर तार न हो गये ह , मगर यह खयाल म न आयािक भगवानद त असल म दसू रे ही कृ पािनधान थे।उस रात को कु छ न कर सके पर सवेरे सरू त बदल कर खोज म िनकले। पहलेमहाराज जयिसहं के दरबार की तरफ चले, देखा िक तेजिसहं दरबार म जा रहे ह औरउसके पीछे -पीछे दस-प द्रह िसपाही कै दी की तरह प नालाल को िलये चल रहे ह। उनऐयार ने भी साथ-ही-साथ दरबार का रा ता पकड़ा।तजे िसहं प नालाल को िलए दरबार म पहुंच,े देखा कचहरी खबू लगी हुई है, महाराजबठै े ह, वह भी सलाम कर अपनी कु सीर् पर जा बठै े , कै दी को सामने खड़ा कर िदया।महाराज ने पछू ा, ‘‘क्य तजे िसहं िकसको लाये हो ?’’तजे िसहं ने जवाब िदया, ‘‘महाराज,उन पाचं ऐयार म से जो चुनार से आये ह एक िगर तार हुआ है, इसको सरकार मलाया हूँ। जो इसके िलए मनु ािसब हो, हुक्म िकया जाये।’’महाराज गौर के साथ खुशी भरी िनगाहो से उसकी तरफ देखने लगे और पछू ा, ‘‘तेरानाम क्या है ?’’ उसने कहा, ‘‘मक्कार खां उफ्र ऐयार खां।’’ महाराज उसकी िढठाई औरबात पर हँस पड़,े हुक्म िदया, ’’बस इससे यादा पछू ने की कोई ज रत नहीं, सीधेकै दखाने म ले जाकर इसको ब द करो और सख्त पहरे बठै ा दो।’’ हुक्म पाते ही यादने उस ऐयार के हाथ म हथकड़ी और पैर म बेड़ी डाल दी और कै दखाने की तरफ ले
गये। महाराज ने खशु होकर तेजिसहं को सौ अशफीर् इनाम म दीं। तेजिसहं ने खड़ेहोकर महाराज को सलाम िकया और अशिफर् याँ बटु ए म रख ली।ंरामनारायण, बद्रीनाथ और योितषीजी भेष बदले हुए दरबार म खड़े यह सब तमाशादेख रहे थे जब प नालाल को कै दखाने का हुक्म हुआ, वे लोग भी बाहर चले आये औरआपस म सलाह कर भारी चालाकी की। िकनारे जाकर बद्रीनाथ ने तो तजे िसहं कीसरू त बनाई और रामनारायण और योितषीजी यादे बनकर तेजी के साथ उनिसपािहय के साथ चले जो प नालाल को कै दखाने की तरफ िलये जा रहे थे। पासपहुंच कर बोले,. ‘‘ठहरो, ठहरो, इस नालायक ऐयार के िलए महाराज ने दसू रा हुक्मिदया है, क्य िक मने अज्र िकया था िक कै दखाने म इसके सगं ी-साथी इसको िकसी-न-िकसी तरह छु ड़ा ले जायगे, अगर म इसको अपनी िहफाजत म रखगंू ा तो बेहतर होगाक्य िक मने ही इसे पकड़ा है, मेरी िहफाजत म यह रह भी सके गा , सो तुम लोगइसको मेरे हवाले करो।’’ यादे तो जानते ही थे िक इसको तजे िसहं ने पकड़ा है, कु छ इनकार न िकया और उसेउनके हवाले कर िदया। नकली तजे िसहं ने प नालाल को ले जगं ल का रा ता िलया।उसके चले जाने पर उसका हाल अज्र करने के िलए यादे िफर दरबार म लौट आये।दरबार उसी तरह लगा हुआ था, तजे िसहं भी अपनी जगह बैठे थे। उनको देख याद केहोश उड़ गये और अजर् करते-करते क गये। तेजिसहं ने इनकी तरफ देखकर पूछा,‘‘क्य ? क्या बात है, उस ऐयार को कै द कर आये ?’’ याद ने डरत-े डरते कहा, ‘‘जीउसको तो आप ही ने हम लोग से ले िलया।’’ तजे िसहं उनकी बात सनु कर च क पड़ेऔर बोले, ‘‘मने क्या िकया है ? म तो तब से इसी जगह बैठा हूँ !’’ याद की जान डर और ता जबु से सखू गई, कु छ जवाब न दे सके , प थर की त वीरकी तरह जसै े-के -तैसे खड़े रहे। महाराज ने तजे िसहं की तरफ देखकर पूछा, ‘‘क्य ?क्या हुआ ?’’ तजे िसहं ने कहा, ‘‘ऐयार चालाकी खेल गये, मेरी सरू त बना उसी कै दी कोइन लोग से छु ड़ा ले गये !’’ तजे िसहं ने अज्र िकया, ‘‘महाराज इन लोग का कसरूनही,ं ऐयार लोग ऐसे ही होते ह, बड़-े बड़ को धोखा दे जाते ह, इन लोग की क्याहकीकत है।’’तजे िसहं के कहने से महाराज ने उन याद का कसरू माफ िकया, मगर उस ऐयार केिनकल जाने का रंज देर तक रहा।बद्रीनाथ वगरै ह प नालाल को िलए हुए जगं ल म पहुंच,े एक पेड़ के नीचे बैठकर उसकाहाल पूछा, उसने सब हाल कहा। अब इन लोग को मालमू हुआ िक भगवानद त कोभी तेजिसहं ने पकड़ के कहीं िछपाया है, यह सोच सभी ने पि डत जग नाथ से कहा,
‘‘आप रमल के जिरए दिरया त कीिजए िक भगवानद त कहाँ है ?’’ योितषीजी नेरमल फका और कु छ िगन-िगनाकर कहा, ‘‘बेशक भगवानद त को भी तेजिसहं ने हीपकड़ा है और यहाँ से दो कोस दरू उ तर की तरफ एक खोह म कै द कर रक्खा है।’’यह सनु सभी ने उस खोह का रा ता िलया। योितषीजी बार-बार रमल फकते औरिवचार करते हुए उस खोह तक पहुँचे और अ दर गये, जब उजाला नजर आया तोदेखा, सामने एक फाटक है मगर यह नहीं मालमू होता था िक िकस तरह खुलेगा। योितषीजी ने िफर रमल फका और सोचकर कहा, ‘‘यह दरवाजा एक ितिल म केसाथ िमला हुआ है और रमल ितिल म म कु छ काम नहीं कर सकता, इसके खोलनेकी कोई तरकीब िनकाली जाय तो काम चले।’’ लाचार वे सब उस खोह के बाहरिनकल आये और ऐयारी की िफक्र करने लगे। सोलहवाँ बयानएक िदन तजे िसहं बालादवी के िलए िवजयगढ़ के बाहर िनकले। पहर िदन बाकी थाजब घमू त-े िफरते बहुत दरू िनकल गये। देखा िक एक पेड़ के नीचे कंु वर वीरे द्रिसहंबैठे ह। उनकी सवारी का घोड़ा पेड़ से बंधा हुआ है, सामने एक बारहिसघं ा मरा पड़ा है,उसके एक तरफ आग सलु ग रही है, और पास जाने पर देखा िक कु मार के सामनेप त पर कु छ टु कड़े गो त के भी पड़े ह।तेजिसहं को देखकर कु मार ने जोर से कहा, ‘‘आओ भाई तिे जिसहं , तमु तो िवजयगढ़ऐसा गये िक िफर खबर भी न ली, क्या हमको एक दम ही भलू गये ?’’तेजिसहं : (हँसकर) िवजयगढ़ म म आप ही का काम कर रहा हूँ िक अपने बाप का ?वीरे द्रिसहं ः अपने बाप का।यह कहकर हंस पड़।े तेजिसहं ने इस बात का कु छ भी जवाब न िदया और हंसते हुएपास जा बैठे । कु मार ने पछू ा, ‘‘कहो च द्रका ता से मलु ाकात हुई थी ?’’तेजिसहं ने जवाब िदया, ‘‘इधर जब से म गया हूँ इसी बीच म एक ऐयार को पकड़ाथा। महाराज ने उसको कै द करने का हुक्म िदया मगर कै दखाने तक पहुँचने न पायाथा िक रा ते ही म मेरी सरू त बना उसके साथी ऐयार ने उसे छु ड़ा िलया, िफर अभीतक कोई िगर तार न हुआ।’’कु मारः वे लोग भी बड़े शतै ान ह !तजे िसहं : और तो जो ह, बद्रीनाथ भी चुनार से इन लोग के साथ आया है, वह बड़ाभारी चालाक है। मझु को अगर खौफ रहता है तो उसी का ! खैर, देखा जायेगा, क्या हज्रहै। यह तो बताइए, आप यहाँ क्या कर रहे ह ? कोई आदमी भी साथ नहीं है।कु मारः आज म कई आदिमय को ले सवेरे ही िशकार खेलने के िलए िनकला, दोपहर
तक तो हैरान रहा, कु छ हाथ न लगा, आिखर को यह बारहिसघं ा सामने से िनकलाऔर मने उसके पीछे घोड़ा फका। इसने मझु को बहुत हैरान िकया, सगं के सब साथीछू ट गये, अब इस समय तीर खाकर िगरा है। मझु को भखू बड़ी जोर की लगी थीइससे जी म आया िक कु छ गो त भनू के खाऊं ! इसी िफक्र म बठै ा था िक सामने सेतुम िदखाई पड़,े अब लो तमु ही इसको भनू ो। मेरे पास कु छ मसाला था उसको मनेधो-धाकर इन टु कड़ म लगा िदया है, अब तयै ार करो, तुम भी खाओ म भी खाऊं , मगरज दी करो, आज िदन भर से कु छ नहीं खाया।तजे िसहं ने बहुत ज द गो त तयै ार िकया और एक सोते के िकनारे जहाँ साफ पानीिनकल रहा था बैठकर दोन खाने लगे। वीरे द्रिसहं मसाला प छ-पोछकर खाते थे,तजे िसहं ने पछू ा, ‘‘आप मसाला क्य प छ रहे ह ?’’ कु मार ने जवाब िदया, ‘‘फीकाअ छा मालूम होता है।’’ दो-तीन टु कड़े खाकर वीरे द्रिसहं ने सोते म से चु ल-ू भर केखूब पानी िपया और कहा, ‘‘बस भाई, मेरी तबीयत भर गई, िदन भर भखू े रहने परकु छ खाया नहीं जाता।’’ तजे िसहं ने कहा, ‘‘आप खाइए चाहे न खाइये म तो छोड़तानही,ं बड़े मजे का बन पड़ा है। आिखर जहाँ तक बन पड़ा खबू खाया और तब हाथ-मँहु धोकर बोले, ’’चिलए, अब आपको नौगढ़ पहुंचा कर िफर िफरगे।’’ वीरे द्रिसहं‘‘चलो’’ कहकर घोड़े पर सवार हुए और तेजिसहं पैदल साथ चले।थोड़ी दरू जाकर तेजिसहं बोले, ‘‘न मालमू क्य मेरा िसर घमू ता है।’’ कु मार ने कहा,‘‘तुम मांस यादा खा गये हो, उसने गमीर् की है।’’ थोड़ी दरू गये थे िक तेजिसहंचक्कर खाकर जमीन पर िगर पड़।े वीरे द्रिसहं ने झट घोड़े पर से कू दकर उनके हाथ-पैर खूब कसके गठरी म बांध पीठ पर लाद िलया और घोड़े की बाग थाम िवजयगढ़का रा ता िलया। थोड़ी दरू जाकर जोर से जफील (सीटी) बजाई िजसकी आवाज जंगलम दरू -दरू तक गजूं गई। थोड़ी देर म क्रू रिसहं , प नालाल, रामनारायण और योितषीजीआ पहुँचे। प नालाल ने खशु होकर कहा, ‘‘वाह जी बद्रीनाथ, तुमने तो बड़ा भारी कामिकया। बड़े जबदर् त को फासं ा ! अब क्या है, ले िलया !!’’ क्रू रिसहं मारे खशु ी के उछलपड़ा। बद्रनीथ ने, जो अभी तक कंु वर वीरे द्रिसहं बना हुआ था गठरी पीठ से उतार करजमीन पर रख दी और रामनारायण से कहा, ‘‘तमु इस घोड़े को नौगढ़ पहुंचा दो, िजसअ तबल से चुरा लाये थे उसी के पास छोड़ा आओ, आप ही लोग बाधं लगे।’’ यहसनु कर रामनारायण घोड़े पर सवार हो नौगढ़ चला गया। बद्रीनाथ ने तजे िसहं कीगठरी अपनी पीठ पर लादी और ऐयार को कु छ समझा-बुझाकर चनु ार का रा तािलया।तजे िसहं को मामलू था िक रोज महाराज जयिसहं के दरबार म जाते और सलाम करकेकु सीर् पर बठै जात।े दो-एक िदन महाराज ने तेजिसहं की कु सीर् खाली देखी,
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